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लेखिका- मामता रैना

छुट्टी वाले दिन दोनों अपने लैपटौप पर या तो कोई मूवी देखते या वीडियो गेम खेलते रहते. मालती अपने सीरियल देखती रहती और कसमसाती रहती कि कोई होता जो उस के साथ बैठ कर यह सासबहू वाले प्रोग्राम देखता. कभी पासपड़ोस में कोई कार्यक्रम होता, तो मालती अकेली ही जाती. लोगबाग पूछते, ‘अरे बहू को क्यों नहीं लाए साथ?’ तो वह मुसकरा कर कोई बहाना बना देती. अब कैसे बोले कि बहू तो वीडियो गेम खेल रही है अपने कमरे में.

कुल मिला कर उस के सपने मिट्टी में मिल गए थे. घर में बहू कम दूसरा बेटा आया हो जैसे. किसी शादीब्याह में भी निधि को खींच कर ले जाना पड़ता था. उसे कोई शौक ही नहीं था सजनेसंवरने का. शादी की इतनी सारी एक से एक कीमती साडि़यां पड़ी थीं, पर मजाल है जो निधि ने कभी पहनने की जहमत उठाई हो.

अपने एक रिश्तेदार की शादी में जयपुर जाना पड़ा मालती को, तो निधि और अजय को खूब सारी हिदायतें दे कर गई. खाना बहुत थोड़ा जल्दी उठ कर बना के फ्रिज में रख जाना. अजय को बाहर का खाना पचता नहीं. पेट अपसैट हो जाता है. फिर राधा को भी 10 दिन के लिए अपने गांव जाना था. ऐसे में घर की जिम्मेदारी उन दोनों पर ही है, मालती उन को बारबार यह बता रही थी. उसे पता था, दोनों लापरवाह हैं, पर जाना जरूरी था.

एक हफ्ते बाद मालती जब वापस घर लौटी तो सुबह की ट्रेन लेट हो कर दिन में पहुंची. स्टेशन से औटो कर के घर पहुंची. एक चाबी उस के पास थी पर्स में. अंदर आ कर सामान वहीं नीचे रख कर वह सोफे पर थोड़ा सुस्ताने बैठी. उस ने सोचा, चाय बनाएगी पहले अपने लिए, फिर फ्रैश होगी. सिर दर्द कर रहा था सफर की थकावट से. एक सरसरी नजर घर पर डाली उस ने पर सफाई का नामोनिशान नजर नहीं आ रहा था. उस के पैरों के पास कालीन पर दालभुजिया बिखरी पड़ी थी.  झाड़ू तक नहीं लगी  थी घर में लगता है उस के जाने के बाद.

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