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लेखिका – मामता रैना

मालती को कभी अखरता नहीं था अजय के यारदोस्तों का आना. पर उस ने अपने लिए कोई लड़की पसंद कर ली थी, यह बात मालती को सपने में भी नहीं आई थी. उस का बेटा अपनी मां की पसंद से शादी करेगा, यही मालती को गुमान था. जिस दिन अजय ने बताया कि वह अपनी किसी खास दोस्त को उस से मिलाने ला रहा है, वह सम झ कर भी अनजान बनने का नाटक करती रही. एक बार भी नहीं पूछा अजय से कि आखिर इस बात का मतलब क्या है?

उस दिन शाम को अजय निधि को अपनी बाइक पर बिठा कर घर ले आया. मालती ने कनखियों से निधि को देखा. नहीं, नहीं, उस के सपनों में बसी बहूरानी के किसी भी सांचे में वह फिट नहीं बैठती थी. आते ही ‘नमस्ते आंटी’ बोल कर धम्म से सोफे पर पसर गई. निधि लगातार च्युइंगम चबा रही थी. बौयकट हेयर, टाइट जींस और टीशर्ट में उस की हलकी सी तोंद भी  झलक रही थी. अजय ने मालती को ऐसे देखा जैसे कोई बच्चा अपना इनाम का मैडल दिखा कर घरवालों के रिऐक्शन का इंतजार करता है.

मालती चायनाश्ता लेने किचन में चली गई. अजय उस के पीछेपीछे चला आया. मां के मन की टोह लेने कुछ मदद करने के बहाने. मालती बड़ी रुखाई से बिना कुछ कहे नमकीन बिस्कुट ट्रे में रखती गई और चाय ले कर बाहर आ गई. निधि बहुतकुछ बातें कर रही थी जिन्हें मालती अनमने मन से सुन रही थी. अजय को मालती के चेहरे से पता चल गया कि उस की मां को निधि जरा भी पसंद नहीं आई.

क्या लड़की है, बाप रे. आते ही ऐसे मस्त हो गई जैसे इस का अपना घर हो. न शरमाना, न कोई  िझ झक, बातबात पर अजय को एकआध धौल जमा रही निधि उन्हें कहीं से भी लड़कियों जैसी नहीं लगी. चलो, ठीक है, आजकल का जमाना है लड़कियां लड़कों से कम नहीं. पर इस तरह किसी लड़की का बिंदासपन उसे अजीब लगा. वह भी तब जब वह पहली बार होने वाली सास से मिल रही हो. मालती पुराने खयालों को ज्यादा नहीं मानती थी पर जब बात बहू चुनने की आई तो एक छवि उस के मन में थी, किसी खूबसूरत सी दिखने वाली लड़की को देखते ही मालती उस के साथ अजय की जोड़ी मिलाने लगती दिल ही दिल में, पर अजय और यह लड़की? मालती की नजरों में यह बेमेल था.

यह सही है कि हर मां को अपना बच्चा सब से सुंदर लगता है. लेकिन अजय तो सच में लायक था. देखने में जितना सजीला, मन का उतना ही उजला.

मालती ने सोचा, आखिर अजय को सारी दुनिया की लड़कियां छोड़ कर एक निधि ही पसंद आनी थी? उस ने लाख चाहा कि अजय अपना इरादा बदल दे निधि से शादी करने का, उस के लिए बहुत से रिश्ते आए और कुछेक सुंदर लड़कियों के. मालती ने फोटो भी छांट कर रख ली थी उसे दिखाने के लिए.

पर, आखिर वही हुआ जो अजय और निधि ने चाहा. बड़ी ही धूमधाम से निधि उस के बेटे की दुलहन बन कर आ गई. अपनी इकलौती बेटी निधि को बहुतकुछ दिया उस के मांबाप ने. लेकिन रिश्तेदारों और जानपहचान वालों की दबीदबी बातें भी मालती तक पहुंच ही गईं. खूब दहेज मिला होगा, एकलौती बेटी जो है अपने मांबाप की, लालच में हुई है यह शादी वगैरहवगैरह.

बेटे की खुशी में ही मालती ने अपनी खुशी ढूंढ़ ली थी. उस के बेटे का घर बस गया. यह एक मां के लिए खुशी की बात थी. वह निधि को घर के कामकाज सिखा देगी, यह मालती ने सोचा. पर मालती को क्या पता था, निधि बिलकुल कोरा घड़ा निकलेगी. घरगृहस्थी के मामलों में, अव्वल तो उसे कुछ आता नहीं था और अगर कुछ करना भी पड़े तो बेमन से करती थी. मालती खुद बहुत सलीकेदार थी. हर काम में कुशल, उसे हर चीज में सफाई और तरीका पसंद था.

शादी के शुरुआती दिनों में मालती ने उसे बहुत प्यार से घर के काम सिखाने की कोशिश की. जिस निधि ने कभी अपने घर में पानी का गिलास तक नहीं उठाया था, उस के साथ मालती को ऐसे लगना पड़ा जैसे कोई नर्सरी के बच्चे को  हाथ पकड़ कर लिखना सिखाता है. एक दिन मालती ने उसे चावल पकाने का काम सौंपा और खुद बालकनी में रखे गमलों में खाद डालने में लग गई. थोड़ी देर बाद रसोई से आते धुएं को देख कर वह  झटपट किचन की ओर भागी. चावल लगभग आधे जल चुके थे. मालती ने लपक कर गैस बंद की.

बासमती चावल पतीले में खिलेखिले बनते हैं, यह सोच कर उस के घर में चावल कुकर में नहीं, पतीले में पकाए जाते थे. वह निधि को तरीका सम झा कर गई थी. उस ने निधि को आवाज दी. कोई जवाब न पा कर वह बैडरूम में आई तो देखा, निधि अपने कानों पर हैडफोन लगा कर मोबाइल में कोई वीडियो देखने में मस्त थी. मालती को उस दिन बहुत गुस्सा आया. इतनी बेपरवाही. अगर वह न होती तो घर में आग भी लग सकती थी. उस ने निधि को उस दिन दोचार बातें सुना भी दीं.

‘सौरी मां’ बोल कर निधि खिसियाई सी चुपचाप रसोई में जा कर पतीले को साफ करने के लिए सिंक में रख आई. उस दिन के बाद मालती ने उसे फिर कुछ पकाने को नहीं कहा कभी. कुछ पता नहीं, कब क्या जला बैठे. और वैसे भी, अजय मां के हाथ का ही खाना पसंद करता था. उस ने भी निधि को टिपिकल वाइफ बनाने की कोई पहल नहीं की. निधि और अजय की कोम्पैटिबिलिटी मिलती थी और दोनों साथ में खुश थे. यही बहुत था मालती के लिए.

पर उस को एक कमी हमेशा खलती रही. वह चाहती थी कि औरों की तरह उस के घर में भी पायल की रुन झुन, चूडि़यों की खनक गूंजे, सरसराता साड़ी का आंचल लहराती घर की बहू रसोई संभाले या छत पर अचारपापड़ सुखाए. कुछ तो हो जो लगे कि नई बहू आई है घर में. शादी के एक हफ्ते बाद ही निधि ने पायल, बिछुए और कांच की चूडि़यां उतार कर रख दी थीं. हाथों में, बस, एक गोल्ड ब्रैसलेट और छोटे से इयर रिंग्स पहन कर टीशर्ट व पाजामे में घूमने लगी थी. मालती ने उसे टोका भी पर उस के यह बोलने पर कि, मां ये सब चुभते हैं, मालती चुप हो गई थी.

 

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