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‘‘जी नहीं, किसी को नहीं चुना है अभी तक. समय ही नहीं मिला. पर जब विवाह करना होगा तो समय भी निकाल लूंगी,’’ सुप्रिया का उत्तर था.

‘‘मुझे यही आशा थी. सुप्रिया, प्यार के लिए समय निकाला नहीं जाता, अपनेआप निकल आता है. 26 की हो गई हो तुम. समय रेत की तरह हाथ से फिसलता जा रहा है. तुम सब से बड़ी हो. इसलिए नीरजा और प्रताप का विवाह भी रुका हुआ है,’’ ललिता बेचैन स्वर में बोलीं.

‘‘मां, मेरे लिए इन दोनों का विवाह रोकने की क्या आवश्यकता है. दोनों ने अपने जीवनसाथी चुन रखे हैं. वे भला कब तक प्रतीक्षा करेंगे. मुझे जब विवाह करना होगा, कर लूंगी. कोई मेरी पसंद का नहीं मिला तो शायद मैं विवाह ही न करूं,’’ सुप्रिया ने चुटकियों में ललिता की समस्या हल कर दी.

‘‘यह तो मैं पहले भी कई बार सुन चुकी हूं पर तुम भी कान खोल कर सुन लो. हमारे संस्कार ऐसे नहीं हैं कि बड़ी बहन बैठी रहे और छोटे भाईबहनों का विवाह हो जाए.’’

‘‘पापा, आप कुछ कहिए न. मां तो जिद पकड़ कर बैठी हैं. मेरे कारण प्रताप और नीरजा का विवाह रोक कर रखने की क्या तुक है?’’

‘‘वे क्या बोलेंगे. उन्हें तो यह समझ  ही नहीं आता कि विवाह भी जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. यों भी हर चीज का एक समय होता है. वे तो तुम्हारी उपलब्धियों का बखान करते नहीं थकते. बस, एक बात इन की समझ में नहीं आती कि अच्छा सा वर देख कर तुम्हारे हाथ पीले कर दें…’’

‘‘ललिता, प्लीज, क्यों बैठेबिठाए घर में तनाव पैदा कर देती हो. हां, मुझे गर्व है कि सुप्रिया मेरी बेटी है. कभी 90 प्रतिशत से कम अंक नहीं आए हैं इस के. इतनी सी आयु में अपनी कंपनी की वाइस प्रैसिडैंट है. यहां तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की है इस ने.

चार लोग इस की प्रशंसा करते हैं तो अच्छा लगता है,’’ अपूर्व ने बीच में ही टोक दिया.

‘‘वह सब तो ठीक है, पर पिता होने के नाते आप का भी कुछ फर्ज है या नहीं? सुप्रिया से पहले प्रताप और नीरजा का विवाह हो गया तो ये लोग ही बातें बनाएंगे.’’

‘‘मां, समय बदल चुका है. सब अपने जीवन में इतने व्यस्त हैं कि दूसरों के लिए समय ही नहीं है? कोई कुछ नहीं कहेगा. आप निश्ंिचत हो कर इन दोनों के विवाह की तैयारी कीजिए.

मुझे भी तो कुछ आनंद उठाने दीजिए. मेरे बाद इन का विवाह हुआ तो मैं भला जी खोल कर खुशियां कैसे मना पाऊंगी. अच्छा, मैं चली, बहुत काम पड़ा है,’’ सुप्रिया उठ खड़ी हुई.

‘‘रुक जा. खाना खा कर जा, नहीं तो फिर परेशान करेगी,’’ ललिता अनमने स्वर में बोलीं. खाने की मेज पर भी यही वादविवाद चलता रहा.

‘‘शर्वरी दीदी अपना समझ कर ही तो मदद कर रही हैं. कितनी आशा ले कर आएंगी वे. जब उन्हें पता चलेगा कि यह महारानी तो विवाह के लिए तैयार ही नहीं हैं तो क्या बीतेगी उन पर. मैं तो सोच रही हूं कि उन्हें फोन कर के मना कर दूं,’’ ललिता देवी अब भी अपनी ही धुन में थीं.

‘‘नहीं मां, ऐसा मत करो, मौसी बुरा मान जाएंगी,’’ नीरजा बोली.

‘‘ठीक कह रही है, नीरजा. पहले से ही यह सोच कर बैठ जाना कि हम तो किसी से मिलेंगे ही नहीं, कहां की बुद्धिमानी है. शर्वरी दीदी किसी को ले कर आ रही हैं तो कुछ सोचसमझ कर ही ला रही होंगी. सुप्रिया, इस बारे में मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगा. तुम्हारी मां जो कह रही हैं तुम्हारे भले के लिए ही कह रही हैं. तुम्हें उन की बात का सम्मान करना चाहिए,’’ अपूर्व ने पत्नी का पक्ष लेते हुए कहा.

‘‘ठीक है. मैं आप के अतिथियों से मिल लूंगी. बस, इतना ही आश्वासन दे सकती हूं. क्या करूं, न आप को नाराज कर सकती हूं न शर्वरी मौसी को,’’ सुप्रिया ने हथियार डाल दिए. वह नहीं चाहती थी कि यह बहस और लंबी खिंचे. परिवार का आश्वासन पा कर ललिता तैयारियों में जुट गईं. घर को सजानेसंवारने का काम वे रात में ही पूरा कर लेना चाहती थीं. अगला दिन तो खानेपीने की तैयारियों में ही बीत जाएगा. लगभग 1 बजे जब सुप्रिया अपना लैपटौप बंद कर सोने चली तो पाया कि ललिता देवी अब भी नए कुशन कवर लगाने में जुटी थीं.

‘‘मां, कब तक लगी रहोगी. रात का 1 बजा है. पता नहीं क्यों दिनरात काम में जुटी रहती हो. कभी अपने स्वास्थ्य की भी चिंता कर लिया करो,’’ सुप्रिया बड़े प्यार से उन्हें पकड़ कर शयनकक्ष में ले गई. ललिता मुसकरा कर रह गईं. बात तो सच थी. 3 युवा संतानों की मां होते हुए भी घर के काम में वही जुटी रहती थीं. कभीकभी अपूर्व उन का हाथ बंटा लेते थे. अन्यथा उन्हें अपनी काम वाली बाई आशा का ही सहारा था. उस के नाजनखरे वे केवल इसलिए सह लेती थीं कि वह कामधंधे में उन का हाथ बंटाने में कभी आनाकानी नहीं करती थी. पर आज सुप्रिया ने उन के प्रति चिंता जताई तो उन्हें अच्छा लगा. कम से कम उन के बारे में सोचती तो है सुप्रिया. क्या पता घर के अन्य सदस्य भी उन की चिंता करते हों या शायद न करते हों, कौन जाने. बचपन में सुप्रिया दौड़दौड़ कर उन का हाथ बंटाती थी पर उन्होंने ही पढ़ाई में ध्यान देने का हवाला दे कर उसे ऐसा करने से रोक दिया.

अगले दिन औफिस जाते समय ललिता ने सुप्रिया को समझा दिया था, समय रहते ही घर लौट आए. फिर भी उन का दिल धड़क रहा था. क्या पता कहीं कुछ गड़बड़ हो गई तो. नीरजा को उन्होंने सुप्रिया को समय से घर लाने और तैयार करने का काम सौंप रखा था. अपूर्व अपने औफिस चले गए थे और तीनों बच्चे अपनेअपने काम पर. सभी लगभग तभी घर लौटने वाले थे जब मेहमान के आने का कार्यक्रम था. जरा सी फुरसत मिली तो शर्वरी को फोन मिला लिया. उन्हें सुप्रिया के संबंध में सूचना देना तो आवश्यक था.

‘‘बोल ललिता, कैसा चल रहा है सबकुछ? सारी तैयारी हो गई न?’’ शर्वरी ने ललिता का स्वर सुनते ही प्रश्न किया.

‘‘कहां दीदी, कुछ भी ठीक नहीं है. सुप्रिया ने तो साफ कह दिया है कि

वह प्रेम विवाह में विश्वास करती है. ऐसे में सारे तामझाम का क्या अर्थ है, दीदी.’’

‘‘तू छोटीछोटी बातों से परेशान मत हुआ कर. सुप्रिया जैसा चाहती है वैसा ही होगा. शर्वरी ने कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. मैं सब संभाल लूंगी,’’ शर्वरी ने आश्वासन दिया.

‘‘ठीक है, दीदी, पर मुझे बहुत डर लग रहा है. सुप्रिया आजकल की लड़कियों जैसी नहीं है. आप तो उसे अच्छी तरह जानती हैं. वह तो आसानी से किसी से मिलतीजुलती भी नहीं.’’

‘‘चिंता मत कर. सुप्रिया बहुत समझदार है. अपना भलाबुरा भली प्रकार समझती है. वह जो भी निर्णय लेगी सोचसमझ कर ही लेगी. चल, ठीक है. फिर मिलते हैं शाम को,’’ शर्वरी ने उन्हें धीरज बंधाया. सुप्रिया के घर लौटते ही गतिविधियां तेज हो गईं. नीरजा अपने साथ अपनी 2 ब्यूटीशियन सहेलियों को भी लाई थी. तीनों ने मिल कर सुप्रिया को तैयार किया.

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