कभी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे दलित नेता गायत्री प्रजापति की फर्श से अर्श तक पहुंचने और फिर अर्श से फर्श पर आ गिरने की कहानी काफी दिलचस्प है.ब्रश-पेंट का डब्बा हाथ में उठाये गली-गली काम ढूंढने वाला एक दलित युवक देखते ही देखते कैसे एक बड़े राज्य का खनन मंत्री बन गया? सुबह शाम दो निवाला रोटी को तरसने वाला उसका परिवार कैसे अरबों-करोड़ों की संपत्ति का मालिक हो गया? ये बातें अचंभित करने वाली तो हैं ही, यह बताने के लिए काफी हैं कि देश की राजनीति में भ्रष्टाचार और लूट का खेल किस चरम बिंदु को छू रहा है.

दलित तबके को देश की राजनीति में भागीदारी करने का मौक़ा आज भी कम ही मिलता है, मगर अफ़सोस, कि जब मिलता है तो वह समाज में अपनी बिरादरी के अगुआ बन कर उन्हें जिल्लत और गरीबी की जिन्दगी से उबारने की बजाय वे राजनीति पर कब्ज़ा जमाय सवर्णों की चरणवंदना और चाटुकारिता करके अपनी और अपने परिवार की तिजोरियां भरने में जुट जाते हैं.गायत्री प्रजापति तो दो कदम और आगे निकले हुए नेता हैं, जिन्होंने ना केवल गरीबों के पैसे लूट कर अपनी तिजोरियों में भरे, बल्कि औरत को अपनी दासी समझने वाले सवर्णों की आदतें भी अंगीकार करते हुए अपनी ही जाति की महिलाओं की इज्जत तार-तार करते रहे.गायत्री प्रजापति पर साईकिल चोरी से लेकर सामूहिक बलात्कार में शामिल होने तक के मुक़दमे दर्ज हैं.उनकी रासलीलाओं की कहानियां अमेठी की जनता चटखारे ले-लेकर सुनाती है.

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