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लेखिका-डा. रंजना जायसवाल

मोहित और मुग्धा का कालेज में आखिरी साल था. मुग्धा अपने नाम के अनुरूप थी, चंचल, शोख, जिंदादिल जिंदगी से भरपूर. एक  झलक में किसी को भी अपना दीवाना बना दे. उस की कजरारी, गोलगोल सी बड़ीबड़ी आंखें सब के मन को मोह लेतीं और मोहित बांका सजीला नौजवान. कालेज की न जाने कितनी लड़कियां उस पर मरती थीं और कहीं न कहीं मन ही मन मुग्धा से जलती भी थीं कि मोहित जैसा खूबसूरत लड़का उसे बेपनाह प्यार करता है.

‘‘मुग्धा, अंदर आ जाओ भीग जाओगी. देखो बारिश शुरू हो गई है,’’ मोहित ने कहा. मुग्धा छोटे से बच्चे की तरह बारिश की बूंदों को चेहरे पर महसूस कर खुशी से पागल हो गई थी. जब भी बारिश होती तो मिट्टी की सोंधीसोंधी खुशबू के लिए मुग्धा ऐसे ही खुशी से  झूम उठती थी. बारिश में भीगना उसे बहुत पसंद था. तितलियों की तरह इधरउधर दौड़तीभागती मुग्धा, बारिश की बूंदों से भीगा हुआ मुग्धा का चेहरा उस की खूबसूरती में चारचांद लगा रहा था.

‘‘क्या मोहित, वहां क्या दुबक कर बैठे हो? देखो न, कितना अच्छा मौसम है,’’ और मुग्धा फिर से पानी में भीगने चली गई. मोहित मंत्रमुग्ध सा उसे देखता रहा. कभीकभी उसे अपने समय पर रश्क भी होता था. मुग्धा को न जाने क्या सू झा, वह अपनी नाजुक कलाइयों से बरगद के विशाल वृक्ष को बांधने का निरर्थक प्रयास करने लगी. उस की इस हरकत को देख कर मोहित के चेहरे पर मुसकान आ गई. यह जगह मुग्धा को बहुत पसंद थी. इस जगह पर उन दोनों ने भविष्य के न जाने कितने सपने देखे थे, साथ निभाने के सपने, साथ जीवन बिताने के सपने.

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