लेखक-शाहनवाज

 कहते है वर्ष 64वी ईस्वी में रोम में भयंकर आग लगी थी जो लगभग छह दिन तक जलती रही और इस आग में रोम के चौदह में से दस शहर बर्बाद हो गए थे. कुछ इतिहासकार इस बर्बादी के लिए रोम के सम्राट नीरो को जिम्मेदार ठहराते है और उन के अनुसार जब रोम जल रहा था तब सम्राट नीरो सब कुछ जानते हुए भी खुद में मगन होकर बांसुरी बजा रहा था. इतिहास में दर्ज रोम में हुई यह घटना आज भारत के लिए बिलकुल सटीक प्रासंगिक सी लगती है. बस फर्क इतना है की रोम की जगह आज के समय भारत है और कोविड की वजह से लाखों लोग मर रहे हैं जो किसी जलते हुए शहर से कम नहीं हैं.

हम सभी इस तथ्य से वाकिफ हैं की कोविड की दुसरी लहर अपनी पूरी ताकत के साथ तबाही मचा रहा है. देश में कई इलाकों में कोविड के अलगअलग वेरिएंट पाए जा रहे हैं जिस से इस महामारी को दुगना बल प्राप्त हो गया है. जिस कारण इस वायरस की वजह से इतनी संख्या में लोग सिर्फ बीमार ही नहीं हो रहे बल्कि उतनी ही संख्या के अनुपात में लोग मारे भी जा रहे हैं. लेकिन महामारी के इस दौर में सरकार की भूमिका पर लोग सवाल उठाते नजर आ रहे हैं.

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एक तरफ सरकार ने कोविड की वजह से देश भर के कई शहरों में लौकडाउन लगाया है तो वहीं दुसरी तरफ सरकार दिल्ली में सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत नए संसद और अन्य भवनों के निर्माण में हजारों करोड़ों रूपए खर्च कर रही है. ऐसे में जरुरी सवाल यह उठता है की कोविड महामारी के दौर में केंद्र सरकार को किस बात की जल्दी है की ऐसे ही मौके पर इस निर्माण कार्य को संपन्न करना है? क्या केंद्र सरकार के लिए कोविड की वजह से मरते लोग प्राथमिक नहीं है? इस प्रोजेक्ट में लगने वाले 20 हजार करोड़ रूपए खर्च न कर देश की चरमराती स्वास्थ सुविधा प्रणाली पर खर्च कर क्या थोड़ा बल देने का काम नहीं किया जा सकता था? क्या केंद्र सरकार के लिए कोविड से मरते लोगों की व्यथा कुछ भी नहीं है?

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