मध्य प्रदेश में आम लोग जाएं तेल लेने. युवाओं को न नौकरी न बेरोजगारी भत्ता, किसानों को राहत नहीं, कर्मचारियों को एरियर व महंगाई भत्ता नहीं और महिलाओं को सुरक्षा नहीं. लेकिन धर्म की दुकानदारी में बिलकुल भी कमी नहीं, इस के लिए पंडेपुजारियों को सरकारी दानदक्षिणा जारी है.

कोई नहीं पूछता कि युवाओं को बेरोजगारी भत्ता क्यों नहीं दिया जाता, किसानों को राहत और इमदाद खासतौर से सुपात्रों को क्यों वक्त पर नहीं दी जा रही. सरकार जनता का पैसा निकम्मे पंडेपुजारियों पर क्यों लुटा रही है, कर्मचारियों को एरियर और महंगाई भत्ता देने को सरकार के खजाने में पैसा नहीं है लेकिन पैसा उन पुजारियों के लिए ही क्यों है जो कुछ नहीं करते.

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अव्वल तो तमाम धर्मग्रंथ इन नसीहतों से भरे पड़े हैं कि ब्राह्मण को दानदक्षिणा देते रहने में ही कल्याण और सार्थकता है लेकिन महाभारत का अनुशासन पर्व तो खासतौर से गढ़ा ही इसीलिए गया है. इस पर्व में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर का संवाद है जिस में युधिष्ठिर एक जिज्ञासु की तरह भीष्म से पूछ रहा है कि दान और यज्ञ कर्म इन दोनों में से कौन मृत्यु के पश्चात महान फल देने वाला होता है और ब्राह्मणों को कब और कैसे दान देना चाहिए.

दानधर्म पर्व के अध्याय 61 को पढ़ें तो यह पूरा ब्राह्मणों की दान महिमा से रंगा हुआ है. श्लोक 1 से ले कर श्लोक 38 तक में भीष्म युधिष्ठिर को बता रहे हैं कि :

तुम नियमपूर्वक यज्ञ में सुशील सदाचारी तपस्वी वेदवेत्ता, सब से मैत्री रखने वाले तथा साधु स्वभाव वाले ब्राह्मणों को संतुष्ट करो.

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1.   यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों का सदा सम्मान करो.

2 .जो बहुतों का उपकार करने वाले ब्राह्मणों का पालनपोषण करता है वह उस शुभकर्म के प्रभाव से प्रजापति के समान संतानवान होता है.

3 . युधिष्ठिर, तुम समृद्धिशाली हो इसलिए ब्राह्मणों को गाय, बैल, अन्न, छाता, घोड़े, जुते हुए रथ आदि की सवारियां, घर और शैया आदि वस्तुएं देनी चाहिए.

4.  ब्राह्मणों के पास जो वस्तु न हो उसे उन को दान देना और जो हो उस की रक्षा करना भी तुम्हारा नित्य कर्तव्य है. तुम्हारा जीवन उन्हीं की सेवा में लग जाना चाहिए.

5.  यदि तुम्हारे राज्य में कोई विद्वान ब्राह्मण भूख से कष्ट पा रहा हो तो तुम्हें भ्रूणहत्या का पाप लगेगा.

6.    जिस राजा के राज्य में स्नातक ब्राह्मण भूख से कष्ट पाता है उस के राज्य की उन्नति रुक जाती है.

ये सब व ऐसी कई हाहाकारी डराने वाली बातें सभी धर्मग्रंथों में कही गई हैं जिन्हें पढ़ कर नास्तिक से नास्तिक आदमी को भी एक बार भ्रम हो जाता है कि बात में कोई तो दम होगा. जबकि हकीकत यह है कि ब्राह्मण जैसी श्रेष्ठ जाति को मेहनतमजदूरी जैसा तुच्छ काम न करना पड़े, इसलिए यह साजिश रची गई, जो लोकतंत्र के इस दौर में भी कायम है और जनप्रतिनिधि भी इस का आचरण व पालन कर रहे हैं.

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शिवराज सिंह बने युधिष्ठिर 

इस हाहाकारी पर्व को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न केवल अच्छी तरह घोंट लिया है बल्कि इस पर अमल करना भी शुरू कर दिया है. राज्य के चालू साल के बजट में उन्होंने सभी मठमंदिरों के पुजारियों को 8 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की है. यह हालांकि भीष्म ने जो और जितना बताया उस के लिहाज से तो ऊंट के मुंह में जीरा सरीखी है लेकिन मुफ्तखोरी के लिहाज से उन की धर्मराज की इमेज गढ़ने के लिए काफी है. अब उन के राज्य में ब्राह्मण प्रसन्न हैं और उन पर आशीर्वाद बरसा रहे हैं.

यह कोई पहला मौका नहीं है जब शिवराज सिंह पुजारियों पर मेहरबान हुए हों. इस के पहले लौकडाउन के दौरान वे 16 मई, 2020 को 8 करोड़ रुपए की गुजारा राशि दे चुके हैं. दूसरे रोजगारधंधों की तरह कड़की के उन दिनों में पुजारियों को भी कथिततौर पर खानेपीने के लाले पड़े थे, तब शिवराज सिंह को भीष्म पितामह के वचन याद आए थे. यह और बात है कि तब राज्य के भूखेप्यासे, मेहनतकश मजदूरों के लिए उन का दिल नहीं पसीजा था जो चिलचिलाती गरमी में नंगे पांव देश के कोनेकोने से भाग कर अपने घरों को लौट रहे थे. इन लोगों का गुनाह इतनाभर था कि वे ब्राह्मण या पुजारी नहीं, बल्कि अधिकांशतया दलित व पिछड़े तबके के थे.

अपने चौथे कार्यकाल के पहले ही बजट में उन्होंने पुजारियों का दिल खुश करते ब्राह्मण श्राप से मुक्ति पा ली है जिस के चलते साल 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार  झेलनी पड़ी थी. उस हार के बाद से उन्होंने दानधर्म पर्व को पूरी तरह आत्मसात कर लिया.

यों लगा था ब्राह्मण श्राप

बात मई 2016 की है जब मध्य प्रदेश में भाजपा को सम झ आ गया था कि सत्ताविरोधी लहर के चलते उस की कुरसी खतरे में है. तब दलित वोटों को लुभाने को उस ने एक अनूठा और नए किस्म का शिगूफा छोड़ा था कि वह दलित युवाओं को ट्रेनिंग दे कर पुजारी बनाएगी. इस बाबत हरी  झंडी मिलते ही अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम ने राज्य सरकार को एक प्रस्ताव भेजा था जिस में कहा गया था कि अनुसूचित जाति की सामाजिक व आर्थिक उन्नति और समरसता के लिए पुरोहित प्रशिक्षण योजना शुरू की जाए.

तब राज्य सरकार की दलील यह थी कि प्रत्येक समाज में धार्मिक अनुष्ठानों और कर्मकांडों के लिए पर्याप्त संख्या में पंडित नहीं मिल पाते. ऐसे में मनमानी दक्षिणा वसूलने व कई जगहों पर जातिगत भेदभावों के मामले सामने आते हैं. तब अनुसूचित जाति कल्याण मंत्री ज्ञान सिंह ने बड़े गर्व से यह ज्ञान बघारा था कि धार्मिक अनुष्ठानों में कुछ विशेष वर्ग (जाहिर है ब्राह्मणों) का एकाधिकार है. अगर अनुसूचित जाति व पिछड़े वर्ग के लोग कर्मकांडों में प्रशिक्षित होंगे तो यह एकाधिकार टूटने लगेगा और दलितों को रोजगार मिलने लगेगा.

उस वक्त ब्राह्मणों ने आसमान सिर पर उठा लिया था और जगहजगह सड़कों पर उतरते इस फैसले का विरोध किया था. एक शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने इस योजना का विरोध करते हुए सरकार को चेतावनी दी थी कि वह सनातन धर्म की परंपराओं को न तोड़े. कामदगिरी के पीठाधीश्वर राजीव लोचनदास ने कहा था कि मंदिर में पुजारी कौन बनेगा, इस का फैसला सरकार न करे. यह राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक व्यवस्था है. सरकार को चाहिए कि वह पुजारी बनाना छोड़ प्रहरी बनाए जिस से लोगों को रोजगार मिल सके.

धर्म के इन दोनों व सरकार के उक्त फैसले से तिलमिलाए कई ठेकेदारों ने सीधेसीधे वर्णव्यवस्था का पाठ पढ़ाते धौंस यह दी थी कि शूद्र को शूद्र ही रहने दो, उसे कोई नाम न दो. बुंदेलखंड ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष भरत तिवारी ने तो दुर्वासाई रूप दिखाते सरकार को श्राप सा दे दिया था कि सरकार ब्राह्मणों के आशीर्वाद से बनती है और श्राप से गिर जाती है. यही हाल रहा तो 2018 के चुनाव में ब्राह्मण वर्ग भाजपा का श्राद्ध कर देगा.

और ऐसा हुआ भी कि कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीन ली. हालांकि इस की वजह कांग्रेस की एकजुटता और शिवराज सरकार से आम लोगों की नाराजगी थी लेकिन यह भी सच है कि ब्राह्मणों ने भी भाजपा को वोट नहीं किया था या फिर वे वोट देने बूथ तक गए ही नहीं थे और जो गए थे वे नोटा का बटन दबाने गए थे जिस का कि फतवा भी 25 सितंबर, 2018 को पुजारी महासंघ के अध्यक्ष नरेंद्र दीक्षित ने जारी किया था. इस से आरएसएस और भाजपा के रणनीतिकार थर्रा उठे थे कि दांव तो उलटा पड़ गया. इस के बाद कांग्रेस की फूटमफाट के चलते भाजपा को फिर सत्ता मिली, तो शिवराज सिंह ब्राह्मणों के आगे नतमस्तक हो गए और अब सपने में भी दलितों को पुजारी बनाने का बेहूदा खयाल दिल में नहीं लाते. उन्हें सम झ आ गया है कि क्यों ब्राह्मण को ब्राह्मण कहा जाता है और क्यों भीष्म ने युधिष्ठिर को इस वर्ग को प्रसन्न व संतुष्ट रखने की सलाह दी थी.

नए बजट में पुजारियों को मानदेय देने की घोषणा फैसला कम बल्कि पुराने पापों का प्रायश्चित्त ज्यादा है. अब तकरीबन 25 हजार पुजारी उन पर फूल बरसा रहे हैं जिन्हें 3 से ले कर 6 हजार रुपए तक हर महीने बैठेबिठाए मिलेंगे और नियमित चढ़ावा व दक्षिणा मिलेगी, सो अलग.

कमलनाथ पर नहीं बरसी थी कृपा

15 साल बाद 2018 में कांग्रेस सत्ता में आई और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने तो प्रदेश की जनता को लगा था कि अब धार्मिक पाखंडों से मुक्ति मिल जाएगी और प्रदेश तरक्की के रास्ते चलेगा लेकिन तजरबेकार कमलनाथ आम लोगों की उस उम्मीद व मंशा को सम झ नहीं पाए. उन के कुरसी पर बैठते ही धर्मकर्म का खेल और जोरशोर से चलने लगा. हर कहीं, हर कभी यज्ञहवन पूर्ववत होते रहे. इन में भी मिर्ची यज्ञ शहरशहर हुआ तो लोग चकरा और  झल्ला उठे कि आखिर यह हो क्या रहा है. अगर यही सब हमें देखना व भुगतना था तो भाजपा ही क्या बुरी थी.

तमाशा और बात यहीं खत्म नहीं हुई. कमलनाथ ने ब्राह्मणों का दिल, जो द्यआज तक अजेय है, को जीतने के लिए 1 फरवरी, 2019 को घोषणा कर दी कि पुजारियों का मानदेय तीनगुना बढ़ाया जाएगा, इस के अलावा सरकार ऐसे मंदिरों को आर्थिक सहायता देगी जो अपनी भूमि पर गौवंश पालेंगे. इस के कुछ दिनों बाद कमलनाथ भी एक नामी हनुमान मंदिर में एक नामी पंडित के सान्निध्य में समारोहपूर्वक सुंदरकांड और हनुमान चालीसा पढ़ते नजर आए तो ठोकने वालों ने अपना सिर ठोकते सम झ लिया कि अब हो गया विकास. विकास चाहिए, रोजगार चाहिए तो गला फाड़फाड़ कर चिल्लाओ, ‘को नहीं जानत है जग में कपि, संकट मोचन नाम तिहारो…’

जाने क्यों हनुमान ने कमलनाथ पर कृपा नहीं बरसाई, उलटे, बलबुद्धि के इस देवता ने कांग्रेस से उपेक्षित चल रहे दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुद्धि इतनी भ्रष्ट कर दी कि वे अपने गुट के 22 विधायकों को ले कर भगवा खेमे में पहुंच गए. नतीजतन, 22 मार्च, 2021 को शिवराज सिंह चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन बैठे और ब्राह्मणों को पूर्ववत रेवडि़यां बांटनी शुरू कर दीं. अब किसी को गिलाशिकवा उन से नहीं है. ब्राह्मण खुश हो गया है, यह खबर भीष्म पितामह तक पहुंचा दी गई है.

बुद्धिजीवियों के राज्य मध्य प्रदेश में अब कोई नहीं पूछता कि युवाओं को बेरोजगारी भत्ता क्यों नहीं दिया जाता, किसानों, खासतौर से सुपात्रों को राहत और इमदाद क्यों वक्त पर नहीं दी जा रही. सरकार जनता का पैसा निकम्मे पंडेपुजारियों पर क्यों लुटा रही है, कर्मचारियों को एरियर और महंगाई भत्ता देने को सरकार के खजाने में पैसा नहीं है लेकिन पैसा उन पुजारियों के लिए ही क्यों है जो कुछ नहीं करते. संविधान के कौन से अनुच्छेद में लिखा है कि पूजापाठ करने वालों को सरकार अपने खजाने से पैसा देगी. ऐसा कर के क्या वह हजारों पुजारियों को निठल्ला नहीं बना रही, वह भी दूसरे गरीबों का पेट काट कर. सवाल बड़े पैमाने पर पूछा जाना तो बनता है.

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