लेखिका-रेणु दीप
जैसे ही बड़े भैया का फोन आया कि फौरन दिल्ली जाना है, आशीष, मेरे भांजे, को किसी ने जहर खिला दिया है और उस की हालत गंभीर है, मेरे तो हाथपैर ठंडे हो गए. बारबार बस यही खयाल आया कि हो न हो चिन्मयानंद ने ही यह कांड किया होगा, नहीं तो सीधेसादे आशीष के पीछे कोई क्यों पड़ेगा? क्यों कोई उसे जहर खिलाएगा?
जब से चिन्मयानंद ने मेरी भांजी झरना से शादी कर मेरी बहन के घर अपना अड्डा जमाया तभी से मेरा मन किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त था और आखिरकार मेरी आशंका सच साबित हुई.
हम सभी झरना की शादी इस पाखंडी चिन्मयानंद से होने के खिलाफ थे. झरना की मां यानी मेरी बड़ी बहन हमारे परिवार तथा परिचितों में ‘दिल्ली वाली’ के नाम से जानी जाती हैं. यह सब उन्हीं की करनी थी. उन्हें शुरू से साधुसंतों पर अटूट विश्वास था. आएदिन उन के घर न जाने कहांकहां के साधुसंतों का जमावड़ा रहता. जब से उन के यहां बद्रीनाथ के बाबा के आशीर्वाद से आशीष और झरना का जन्म हुआ तब से वे साधुसंन्यासियों पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थीं. जब भी उन के घर जाओ, उन के मुंह से किसी न किसी आदर्श साधुसंत के गुणगान सुनने को मिलते.
मु झे उन की इस आदत से बहुत दुख होता और मैं उन्हें इस के लिए खरीखोटी सुनाती. लेकिन मेरा सारा कहनासुनना वे एक तरल मुसकराहट से पी जातीं और बहुत ही धैर्य व तसल्ली से सम झातीं, ‘देख लल्ली, तू ठहरी आजकल की पढ़ीलिखी छोरी. तु झे इन साधुसंतों के चमत्कारों का क्या ज्ञान. तू तो सदा खुशहाल रही है. मेरे जैसे दुखों की तो तु झ पर परछाईं भी नहीं पड़ी है. सो, तु झे इन साधुसंतों की शरण में जाने की क्या जरूरत? देख लल्ली, मैं कभी न चाहूंगी कि जिंदगी में कभी किसी दुख या निराशा की बदली तेरे आंगन में छाए, लेकिन फिर भी मैं तु झ से कहे देती हूं कि कभी किसी तरह के दुख या विपरीत परिस्थितियों से तेरा सामना हो तो सीधे मेरे पास चली आना. इतने गुणी और चमत्कारी साधुमहात्माओं से मेरी पहचान है कि सारे कष्टों की बदली को वे अपने एक इशारे से हटा सकते हैं.