सवाल
मेरी उम्र 29 साल है. मेरी माहवारी अनियमित है, साथ ही उन दिनों बहुत ज्यादा दर्द भी रहता है. क्या मैं पीसीओएस से पीड़ित हूं, और क्या मैं मां बन सकती हूं?
जवाब
अगर आप को अनियमित माहवारी है और बहुत ज्यादा गरमी व पसीना आने की शिकायत है, तो जल्द से जल्द किसी फर्टिलिटी सैंटर में जा कर अपनी जांच करवाएं. अगर ब्लड टैस्ट में आप का फौलिकल स्टिम्युलेटिंग हारमोन 25% से ज्यादा है, तो आप को पीओएफ का खतरा हो सकता है. हालांकि यह समस्या आनुवंशिक है लेकिन पर्यावरण और जीवनशैली जैसेकि धूम्रपान, शराब का सेवन, लंबी बीमारी जैसे थायराइड व आटोइम्यून बीमारियां, रेडियोथेरैपी या कीमोथेरैपी होना भी इस के मुख्य कारण हैं. इसलिए संपूर्ण जांच करानी बहुत जरूरी है.
पीसीओएस : अनदेखी न करें
एक जमाना था जब महिलाओं के लिए घर से बाहर काम करना बहुत मुश्किल था. लेकिन वर्तमान समय में बाहरी दुनिया ही नहीं चांद पर भी उन का परचम लहरा रहा है. ऐसे में घर और बाहर को संतुलित करतेकरते एक महिला खुद के लिए समय नहीं निकाल पाती है. बेवक्त खाना, सेहत की अनदेखी, मशीनी बनती जीवनशैली और तनाव के कारण आजकल महिलाएं अनेक बीमारियों से ग्रस्त रहने लगी हैं. कैंसर, हार्ट डिजीज व आर्थ्राइटिस जैसी बीमारियों से आज हर तीसरी महिला ग्रस्त है. इन्हीं में से एक है पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम यानी पीसीओएस.
क्या है पीसीओएस
दिल्ली के बीएल कपूर हौस्पिटल की गाइनैकोलौजिस्ट डा. इंदिरा गणेशन बताती हैं, ‘‘महिलाओं के मासिकधर्म में अनियमितता और हारमोनल असंतुलन के कारण यह बीमारी जन्म लेती है. हर 10 में से 5 महिलाएं पीसीओएस की शिकार हैं. उत्तरी भारत की 40% महिलाओं में इस बीमारी के लक्षण पाए गए हैं.’’ समय पर भोजन न करना, अतिरिक्त तनाव और शरीर की सही देखभाल न करने की वजह से पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम के मामले बढ़ते जा रहे हैं. पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम में शरीर की पाचन क्षमता ग्रहण करने वाली ग्रंथियों की क्षमता कम हो जाती है, जिस की वजह से रिप्रोडक्टिव डिसऔर्डर के मामले सामने आते हैं.
लक्षण
पीसीओएस से ग्रस्त रोगियों में प्राय: निम्न लक्षण देखे जाते हैं:
– मासिकधर्म का नियमित न होना. कई बार 2-3 महीनों तक नहीं होता है.
– चेहरे पर अनचाहे बालों का उगना, ऐक्ने की समस्या जो इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं.
– पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का शिकार होने वाली 50% महिलाओं को मोटापे की शिकायत होती है.
कैसे की जा सकती जांच
डा. इंदिरा गणेशन बताती हैं, ‘‘इस बीमारी की जानकारी के लिए हम रोगी का ब्लड टैस्ट कराते हैं. इस के अलावा अल्ट्रासाउंड के माध्यम से भी चैक किया जा सकता है. यदि अल्ट्रासाउंड में ओवरी का साइज मिनिमम साइज (6 एमएम) से बढ़ कर (8 से 10 एमएम) आता है, तो इस का मतलब है कि रोगी इस बीमारी से ग्रस्त है.’’
उपचार
डा. इंदिरा गणेशन का कहना है, ‘‘इस बीमारी को रोका तो नहीं जा सकता है, लेकिन इसे कंट्रोल जल्द किया जा सकता है. सब से पहले हर युवा लड़की और महिला को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि साल में 5-6 बार पीरियड जरूर आना चाहिए. अगर पीरियड बहुत कम आते हैं या 2-3 महीने के अंतराल में आते हैं, तो तुरंत महिला डाक्टर से संपर्क करें. इस के अलावा 2 तरह के हारमोंस होते हैं- प्रोजेस्टेरौन और ऐस्ट्रोजन. इन का संतुलन बनाए रखने के लिए दवा दी जाती है. इस बीमारी से गर्भ ठहरने में भी काफी दिक्कत होती है, इसलिए इस बीमारी के लक्षण दिखते ही सतर्क हो जाएं. लापरवाही कतई न बरतें.’
बचाव
– शरीर और चेहरे के अनचाहे बालों और मुंहासों का उपचार कराना.
– सही समय पर गर्भधारण करना.
– गर्भाशय की बाहरी परत के पतले होने पर कैंसरे के बढ़ते खतरे से बचाव करना.
– चरबी बनाने वाली कोशिकाओं को नियंत्रित रखना. ऐसा करने पर दिल से संबंधित बीमारियों पर भी काबू पाया जा सकता है.
प्रभाव
अगर पौलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का वक्त रहते सही उपचार नहीं होता है तो इस का पूरे शरीर पर असर दिखने लगता है. इस बीमारी की वजह से पाचन क्षमता वाली ग्रंथियां भी कमजोर होने लगती हैं. पीसीओएस को जड़ से खत्म न किए जाने पर कई और खतरनाक बीमारियां भी हो सकती हैं, जैसे स्तन कैंसर, ओवरी कैंसर, मधुमेह, रिप्रोडक्टिव सिस्टम में अनियमितता आदि.
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