लड़का देख कर मामाजी ने कहा, "यह तो हीरा है. ऐसे लड़के को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए." पापा बोले,"देखिए, वे लोग कर्मकांडी लोग हैं. हमारी बिटिया आकांक्षा आधुनिक विचारों की है. कर्मकांड और अंधविश्वास उसे पसंद नहीं."
मम्मी बोलीं,"अरे लड़का नामी कालेज में पढ़ा हुआ है. अभी तो मांबाप के कहे पर है पर वह बाद में अंधविश्वास, कर्मकांड में विश्वास नहीं करेगा. आप भी तो गांव के थे, अब कैसे बदल गए?"
मेरे घर में सभी खुले विचारों के थे,"आप की बहन के घर में तो ऐसा ही वातावरण था. पर सब बच्चे पढ़लिख कर बड़ीबड़ी पोस्टों में आ गए और सब बदल गए. राजीव भी बदल जाएगा."
मामा और नानी के बहुत कहने के पापा ने परेशान हो कर 'हां' कह दिया. पर उन्होंने कहा कि 1 महीने में मैं तैयारी नहीं कर सकता?" "अजी हम लोग हैं ना...हम कर लेंगे..."
पापा को मजबूरी में मानना पड़ा.शादी की तारीख तय कर दी गई. तैयारियां शुरू हो गईं. मैं बात को ठीक से समझ नहीं पाई, क्योंकि मैं तब सिर्फ 20 साल की थी. मुझे सोचनेसमझने का समय ही नहीं दिया गया.
एक दिन जब सगाई की अंगूठी के लिए हम बाजार गए तो वे लोग भी आए. जब मेरी बात राजीव से हुई तब मैं समझ चुकी थी कि घर के सभी लोगों की सोच एकजैसी है और सब के सब अंधविश्वासी और रूढ़िवादी हैं. तब तक पापा भी समझ चुके थे.
वहां से वापस आ कर जब मैं ने शादी के लिए मना किया तो सारे रिश्तेदार, जो घर पर आ चुके थे उन लोगों ने कहा,"इस में तो बचपना है. कार्ड छप चुका है, खानेपीने का ऐडवांस दे चुके हैं. अब कुछ नहीं हो सकता. हमारी बदनामी होगी. यह शादी तो करनी होगी..."