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तालिबानी आतंक को फूल देकर मांगी जा रही रहम की भीख

आम आदमी… दुनिया आज हतप्रभ है. अफगानिस्तान में जिस तरह तालिबान ने हथियारों के दम पर देश पर कब्जा कर लिया वह एक ऐसा उदाहरण है जो मानवता के लिए चुनौती बन गया है. अभी तक जो सच सामने हैं वह यह बताता है कि तालिबान एक क्रूर शासन व्यवस्था है. जिसमें महिलाओं के लिए शिक्षा का कोई प्रावधान नहीं है, जहां बंदूक की नोक पर सत्ता का संचालन होता है. और न्याय व्यवस्था ऐसी है जो सैकड़ों हजारों साल पहले हुआ करती थी.

अगर किसी ने चोरी कर ली तो उसके हाथ काट दीजिए पैर काट दीजिए ताकि दोबारा वह या अपराध न कर सके. अगर किसी ने प्यार किया है जो उनके कानून के अनुसार के व्यभिचार है तो उसे पत्थर मार मार सके मौत की नींद सुला दिया जाए.

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मगर समय काल के चक्कर में जिस तरीके से समय का पहिया घूमता हुआ आज आधुनिक दुनिया का स्वरूप धारण कर चुका है. ऐसे में सिर्फ आतंक बंदूक और खून खराबे से देश की व्यवस्था का संचालन एक ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब आज न तो दुनिया के थानेदार अमेरिका के पास है और ना ही दुनिया की दूसरी महाशक्तिओं चीन, फ्रांस ब्रिटेन के पास, ऐसी परिस्थितियों में दुनिया देख रही है कि किस तरह तालिबान के लड़ाके खून खराबा करते हुए सत्ता पर कब्जा करते चले गए और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अब्दुल गनी रूपयों के बैग लेकर के गायब हो गए.
आज यह सब अगर हो रहा है तो दुनिया के बड़े झंडाबरदार जो मौन बैठे हुए हैं उनसे मानवता जवाब मांग रही है.

पाक का समर्थन,कई प्रश्नों का जवाब
और सबसे चकित करने वाली बात यह है कि तालिबान के लड़ाकों ने जैसे जैसे अफगानिस्तान पर कब्जा करना शुरू किया पाकिस्तान अपने रंग दिखाने लगा. काबुल पर, राष्ट्रपति भवन और संसद पर कब्जा होने के साथ ही पाकिस्तान सरकार के मुखिया इमरान खान ने एक बैठक करके दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि पाकिस्तान तालिबान की नई सरकार को मान्यता देने जा रहा है. दरअसल, इस बात से यह सच्चाई सामने आ चुकी है कि पाकिस्तान का पहले से ही तालिबान के लड़ाकों को पूरा समर्थन था अब पाकिस्तान ताल ठोक कर के सामने आ गया है और खुशी जाहिर कर रहा है. इसका सीधा सा अर्थ यह है कि जिस तरह अफगानिस्तान में आम लोगों को मारा गया, मानव अधिकार का हनन होता सारी दुनिया ने देखा है उसे पाकिस्तान को कोई सरोकार नहीं है. वह सिर्फ अपने दुरगामी हित देख रहा है.

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दूसरी तरफ तालिबान गतिविधियों को देख कर भी चीन का भी सॉफ्ट कॉर्नर सामने आ चुका है. अमेरिका तो जिस तरीके से दुनिया पर अपनी हुकूमत चला रहा था आज तालिबान मसले पर कपड़े उतार कर दुनिया के सामने खड़ा हो गया है. अमेरिका की जिस तरीके से आज दुनिया भर में आलोचना हो रही है वह यह बता रही है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने एक तरह से तालिबान की क्रूर व्यवस्था को मान्यता देकर के अपना पल्ला झाड़ लिया है.यह आने वाले समय में दुनिया भर के लिए एक बड़ा सर दर्द होगा।

सजदे में झुका सिर!

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एक तरफ से मानो दुनिया तालिबान के आतंक को देख रही है मगर मौन है. सिर्फ एक ही सवाल दुनिया के उन ताकतवर लोगों से आम आदमी पूछ रहा है कि अगर बंदूक की नोक पर दुनिया के टीवी चैनल पर सत्ता पर ऐसा का हस्तांतरण होना वैधानिक है तो फिर दुनिया भर में बनाई और खड़ी की गई संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं का औचित्य क्या है. क्या मानव अधिकार का क्या कोई मोल नहीं है. आज जिस तरीके से लोगों को मा‌रा जा रहा है, खून बहाया जा रहा है लोग भयभीत हैं तो क्या अपने आप को दुनिया का सर्वोच्च शक्ति कहने वाली ताकतें असहाय हैं? आतंक के आगे सर झुकाना अफगानिस्तान की आवाम द्वारा जिस तरह तालिबान के खतरनाक आतंकियों को फूल दे करके उनसे रहम की भीख मांगी जा रही है, यह बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है और बताती है कि दुनिया में आने वाला समय क्या ऐसा हो सकता है.

Family Story in Hindi : जिंदगी की उजली भोर

Family Story in Hindi : जिंदगी की उजली भोर – भाग 2

वक्त गुजरने लगा. अब समीर पहले से ज्यादा उस का खयाल रखता. कभी चाचाचाची का जिक्र होता तो वह उदास हो जाती. ज्यादा न पढ़ सकने का दुख उसे हमेशा सताता रहता. लेकिन समीर उसे हमेशा समझाता व दिलासा देता. जब कभी वह उस के मांपापा के बारे में जानना चाहती, वह बात बदल देता. बस यह पता चला कि समीर अपने मांबाप की इकलौती औलाद है. 3 साल पहले मां बीमारी से चल बसीं. पढ़ाई अहमदाबाद में और उसे यहीं नौकरी मिल गई. शादी के बाद फ्लैट ले कर यहीं सैट हो गया.

रूना को ज्यादा कुरेदने की आदत न थी. जिंदगी खुशीखुशी बीत रही थी. कभीकभी उसे बच्चे की किलकारी की कमी खलती. वह अकसर सोचती, काश उस के जल्द बच्चा हो जाए तो उस का अकेलापन दूर हो जाएगा. उस की प्यार की तरसी हुई जिंदगी में बच्चा एक खुशी ले कर आएगा. उम्मीद की डोर थामे अपनेआप में मगन, वह इस खुशी का इंतजार कर रही थी. सीमा ने जो कल बताया कि समीर किसी खूबसूरत औरत के साथ खुशीखुशी शौपिंग कर रहा था, मुंबई के बजाय बड़ौदा में था, उस का सारा सुखचैन एक डर में बदल गया कि कहीं समीर उस खूबसूरत औरत के चक्कर में तो नहीं पड़ गया है. उसे यकीन न था कि समीर जैसा चाहने वाला शौहर ऐसा कर सकता है. सीमा ने उसे समझाया था, अभी कुछ न कहे जब तक परदा रहता है, मर्द घबराता है. बात खुलते ही वह शेर बन जाता है.

समीर दूसरे दिन लौट आया. वही प्यार, वही अपनापन. रूना का उतरा हुआ चेहरा देख कर वह परेशान हो गया. रूना ने सिरदर्द का बहाना बना कर टाला. रूना बारीकी से समीर की हरकतें देखती पर कहीं कोई बदलाव नहीं. उसे लगता कि समीर की चाहत उजली चांदनी की तरह पाक है, पर ये अंदेशे? बहरहाल, यों ही 1 माह गुजर गया. एक दिन रात में पता नहीं किस वजह से रूना की आंख खुल गई. समीर बिस्तर पर न था. बालकनी में आहट महसूस हुई. वह चुपचाप परदे के पीछे खड़ी हो गई. वह मोबाइल पर बातें कर रहा था, इधर रूना के कानों में जैसे पिघला सीसा उतर रहा था, ‘आप परेशान न हों, मैं हर हाल में आप के साथ हूं. आप कतई परेशान न हों, यह मेरी जिम्मेदारी है. आप बेहिचक आगे बढ़ें, एक खूबसूरत भविष्य आप की राह देख रहा है. मैं हर अड़चन दूर करूंगा.’

इस से आगे रूना से सुना नहीं गया. वह लौटी और बिस्तर पर औंधेमुंह जा पड़ी. तकिए में मुंह छिपा कर वह बेआवाज घंटों रोती रही. आखिरी वाक्य ने तो उस का विश्वास ही हिला दिया. समीर ने कहा था, ‘परसों मैं होटल पैरामाउंट में आप से मिलता हूं. वहीं हम आगे की सारी बातें तय कर लेंगे.’ यह जिंदगी का कैसा मोड़ था? हर तरफ अंधेरा और बरबादी. अब क्या होगा? वह लौट कर चाचा के पास भी नहीं जा सकती. न ही इतनी पढ़ीलिखी थी कि वह नौकरी कर लेती और न ही इतनी बहादुर कि अकेले जिंदगी गुजार लेती. उस का हर रास्ता एक अंधी गली की तरह बंद था.

सुबह वह तेज बुखार से तय रही थी. समीर ने परेशान हो कर छुट्टी के लिए औफिस फोन किया.  उसे डाक्टर के पास ले गया. दिनभर उस की खिदमत करता रहा. बुखार कम होने पर समीर ने खिचड़ी बना कर उसे खिलाई. उस की चाहत व फिक्र देख कर रूना खुश हो गई पर रात की बात याद आते ही उस का दिल डूबने लगता. दूसरे दिन तबीयत ठीक थी. समीर औफिस चला गया. शाम होने से पहले उस ने एक फैसला कर लिया, घुटघुट कर मरने से बेहतर है सच सामने आ जाए, इस पार या उस पार. अगर दुख  को उस की आखिरी हद तक जा कर झेला जाए तो तकलीफ का एहसास कम हो जाता है. डर के साए में जीने से मौत बेहतर है.

उस दिन समीर औफिस से जल्दी आ गया. चाय वगैरह पी कर, फ्रैश हुआ. वह बाहर जाने को निकलने लगा तो रूना तन कर उस के सामने खड़ी हो गई. उस की आंखों में निश्चय की ऐसी चमक थी कि समीर की निगाहें झुक गईं, ‘‘समीर, मैं आप के साथ चलूंगी उन से मिलने,’’ उस के शब्द चट्टान की मजबूती लिए हुए थे, ‘‘मैं कोई बहाना नहीं सुनूंगी,’’ उस ने आगे कहा. समीर को अंदाजा हो गया, आंधी अब नहीं रोकी जा सकती. शायद, उस के बाद सुकून हो जाए. समीर ने निर्णयात्मक लहजे में कहा, ‘‘चलो.’’

रास्ता खामोशी से कटा. दोनों अपनीअपनी सोचों में गुम थे. होटल पहुंच कर कैबिन में दाखिल हुए. सामने एक खूबसूरत औरत, एक बच्ची को गोद में लिए बैठी थी. रूना के दिल की धड़कनें इतनी बढ़ गईं कि  उसे लगा, दिल सीना फाड़ कर बाहर आ जाएगा, गला बुरी तरह सूख रहा था. रूना को साथ देख कर उस के चेहरे पर घबराहट झलक उठी. समीर ने स्थिर स्वर में कहा, ‘‘रोशनी, इन से मिलो. ये हैं रूना, मेरी बीवी. और रूना, ये हैं रोशनी, मेरी मां.’’ रूना को सारी दुनिया घूमती हुई लगी. रोशनी ने आगे बढ़ कर उस के सिर पर हाथ रखा. रूना शर्म और पछतावे से गली जा रही थी. कौफी आतेआते उस ने अपनेआप को संभाल लिया. बच्ची बड़े मजे से समीर की गोद में बैठी थी. समीर ने अदब से पूछा, ‘‘आप कब जाना चाहती हैं?’’

‘‘परसों सुबह.’’

‘‘कल शाम मैं और रूना आ कर बच्ची को अपने साथ ले जाएंगे,’’ समीर ने कहा.

वापसी का सफर दोनों ने खामोशी से तय किया. रूना संतुष्ट थी कि उस ने समीर पर कोई गलत इल्जाम नहीं लगाया था. अगर उस ने इस बात का बतंगड़ बनाया होता तो वह अपनी ही नजरों में गिर जाती.

घर पहुंच कर समीर ने उस का हाथ थामा और धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘रूना, मैं बेहद खुश हूं कि तुम ने मुझे गलत नहीं समझा. मैं खुद बड़ी उलझन में था. अपने बड़ों के ऐब खोलना बड़ी हिम्मत का काम है. मैं चाह कर भी तुम्हें बता नहीं सका. करीब 4 साल पहले, पापा ने रोशनी को किसी प्रोग्राम में गाते सुना था. धीरेधीरे उन के रिश्ते गहराने लगे. उस वक्त मैं अहमदाबाद में एमबीए कर रहा था.

‘‘मेरी अम्मी हार्टपेशैंट थीं. अकसर ही बीमार रहतीं. पापा खुद को अकेला महसूस करते. घर का सारा काम हमारा पुराना नौकर बाबू ही करता. ऐसे में पापा की रोशनी से मुलाकात, फिर गहरे रिश्ते बने. रोशनी अकेली थी. रिश्तों और प्यार को तरसी हुई लड़की थी. बात शादी पर जा कर खत्म हुई. अम्मी एकदम से टूट गईं. वैसे पापा ने रोशनी को अलग घर में रखा था. लेकिन दुख को दूरी और दरवाजे कहां रोक पाते हैं.

‘‘जब मुझे पता लगा, मैं गांव गया. बूआ भी आईं, काफी बहस हुई. पापा ने अपना पक्ष रखा, बीवी की बीमारी, उन के कहीं न आनेजाने की वजह से वे भी बहुत अकेले हो गए थे. जिंदगी बेरंग और वीरान लगती थी. एक तरह से अम्मी का साथ न के बराबर था. ऐसे में रोशनी से हुई उन की मुलाकात.

‘‘जरूरत और हालात ने दोनों को करीब कर दिया. उस का भी कोई न था, परेशान थी. वह प्रोग्राम में गाने गा कर जिंदगी बसर कर रही थी. दोनों की उम्र में फर्क होने के बाद भी आपस में अच्छा तालमेल हो गया तो शादी ही बेहतर थी.

‘‘पापा अपनी जगह सही थे. यह भी ठीक था कि बीमारी से अम्मी चिड़चिड़ी और रूखी हो गई थीं. वे किसी से मिलना नहीं चाहती थीं. पर अम्मी का गम भी ठीक था. जो हो गया उसे तो निभाना था. बूआ का बेटा बाहर पढ़ने गया था. बूआ अकसर अम्मी के पास रहतीं. पापा दोनों घरों का बराबरी से खयाल रखते. लेकिन अम्मी अंदर ही अंदर घुल रही थीं. जल्दी ही वे सारे दुखों से छुटकारा पा गईं. मैं एक हफ्ता रुक कर वापस आ गया.

‘‘पापा रोशनी को घर ले आए. बूआ और गांव के मिलने वाले पापा से नाराज से थे. मगर रोशनी ने पापा व घर को अच्छे से संभाल लिया. वह मेरा भी बहुत खयाल रखती. रोशनी बहुत कम बोलती. एक अनकही उदासी उस की आंखों में तैरती रहती. मुझ से उम्र में वह 5-6 साल ही बड़ी होगी पर उस में शोखी व चंचलता जरा भी न थी. इसी तरह 1 साल गुजर गया.

 

Family Story in Hindi : जिंदगी की उजली भोर – भाग 1

उदासी का अजब सा माहौल था, होंठ खामोश, आंखों से बेमौसम बरसात. समीर को बाहर गए 4 दिन हो गए थे. वैसे यह कोई नई बात न थी. वह अकसर टूर पर बाहर जाता था. रूना तनहा रहने की आदी थी. फ्लैट्स के रिहायशी जीवन में सब से बड़ा फायदा यही है कि अकेले रहते हुए भी अकेलेपन का एहसास नहीं होता. कल शाम रूना की प्यारी सहेली सीमा आई थी. वह एक कंपनी में जौब करती है. उस से देर तक बातें होती रहीं. समीर का जिक्र आने पर रूना ने कहा कि वह मुंबई गया है, कल आ जाएगा.

‘मुंबई’ शब्द सुनते ही सीमा कुछ उलझन में नजर आने लगी और एकदम चुप हो गई. रूना के बहुत पूछने पर वह बोली, ‘‘रूना, तुम मेरी छोटी बहन की तरह हो. मैं तुम से कुछ छिपाऊंगी नहीं. कल मैं बड़ौदा गई थी. मैं एक शौपिंग मौल में थी. ग्राउंडफ्लोर पर समीर के साथ एक खूबसूरत औरत को देख कर चौंक पड़ी. दोनों हंसतेमुसकराते शौपिंग कर रहे थे. क्योंकि तुम ने बताया कि वह मुंबई गया है, इसलिए हैरान रह गई.’’ यह सुन कर रूना एकदम परेशान हो गई क्योंकि समीर ने उस से मुंबई जाने की ही बात कही थी और रोज ही मोबाइल पर बात होती थी. अगर उस का प्रोग्राम बदला था तो वह उसे फोन पर बता सकता था.

सीमा ने उस का उदास चेहरा देख कर उसे तसल्ली दी, ‘‘रूना, परेशान न हो, शायद कोई वजह होगी. अभी समीर से कुछ न कहना. कहीं बात बिगड़ न जाए. रिश्ते शीशे की तरह नाजुक होते हैं, जरा सी चोट से दरक जाते हैं. कुछ इंतजार करो.’’ रूना का दिल जैसे डूब रहा था, समीर ने झूठ क्यों बोला? वह तो उस से बहुत प्यार करता था, उस का बहुत खयाल रखता था. आज सीमा की बात सुन के वह अतीत में खो गई… 

मातापिता की मौत उस के बचपन में ही हो गई थी. चाचाचाची ने उसे पाला. उन के बच्चों के साथ वह बड़ी हुई. यों तो चाची का व्यवहार बुरा न था पर उन्हें एक अनचाहे बोझ का एहसास जरूर था. समीर ने उसे किसी शादी में देखा था. कुछ दिनों के बाद उस के चाचा के किसी दोस्त के जरिए उस के लिए रिश्ता आया. ज्यादा छानबीन करने की न किसी को फुरसत थी न जरूरत समझी. सब से बड़ी बात यह थी कि समीर सीधीसादी बिना किसी दहेज के शादी करना चाहता था. चाची ने शादी 1 महीने के अंदर ही कर दी. चाचा ने अपनी बिसात के मुताबिक थोड़ा जेवर भी दिया. बरात में 10-15 लोग थे. समीर के पापा, एक रिश्ते की बूआ, उन का बेटाबहू और कुछ दोस्त.

वह ब्याह कर समीर के गांव गई. वहां एक छोटा सा कार्यक्रम हुआ. उस में रिश्तेदार व गांव के कुछ लोग शामिल हुए. बूआ वगैरह दूसरे दिन चली गईं. घर में पापा और एक पुराना नौकर बाबू था. घर में अजब सा सन्नाटा, जैसे सब लोग रुकेरुके हों, ऊपरी दिल से मिल रहे हों. वैसे, बूआ ने बहुत खयाल रखा, तोहफे में कंगन दिए पर अनकहा संकोच था. ऐसा लगता था जैसे कोई अनचाही घटना घट गई हो. पापा शानदार पर्सनैलिटी वाले, स्मार्ट मगर कम बोलने वाले थे. उस से वे बहुत स्नेह से मिले. उसे लगा शायद गांव और घर का माहौल ही कुछ ऐसा है कि सभी अपनेअपने दायरों में बंद हैं, कोई किसी से खुलता नहीं. एक हफ्ता वहां रह कर वे दोनों अहमदाबाद आ गए. यहां आते ही उस की सारी शिकायतें दूर हो गईं. समीर खूब हंसताबोलता, छुट्टी के दिन घुमाने ले जाता. अकसर शाम का खाना वे बाहर ही खा लेते. वह उस की छोटीछोटी बातों का खयाल रखता. एक ही दुख था कि उस का मायका नाममात्र था, ससुराल भी ऐसी ही मिली जहां सिवा पापा के कोई न था. शादी को 1 साल से ज्यादा हो गया था पर वह  3 बार ही गांव जा सकी. 2 बार पापा अहमदाबाद आ कर रह कर गए.एक दिन पापा की तबीयत खराब होने का फोन आया. दोनों आननफानन गांव पहुंचे. पापा बहुत कमजोर हो गए थे. गांव का डाक्टर उन का इलाज कर रहा था. उन्हें दिल की बीमारी थी. समीर ने तय किया कि दूसरे दिन उन्हें अहमदाबाद ले जाएंगे. अहमदाबाद के डाक्टर से टाइम भी ले लिया. दिनभर दोनों पापा के साथ रहे, हलकीफुलकी बातें करते रहे. उन की तबीयत काफी अच्छी रही. रूना ने मजेदार परहेजी खाना बनाया. रात को समीर सोने चला गया. रूना पापा के पास बैठी उन से बातें कर रही थी कि एकाएक उन्हें घबराहट होने लगी. सीने में दर्द भी होने लगा. उस का हाथ थाम कर उन्होंने कातर स्वर में कहा, ‘बेटी, जो हमारे सामने होता है वही सच नहीं होता और जो छिपा है उस की भी वजह होती है. मैं तुम से…’ फिर उन की आवाज लड़खड़ाने लगी. उस ने जोर से समीर को आवाज दी, वह दौड़ा आया, दवा दी, उन का सीना सहलाने लगा. फिर उस ने डाक्टर को फोन कर दिया. पापा थोड़ा संभले, धीरेधीरे समीर से कहने लगे, ‘बेटा, सारी जिम्मेदारियां अच्छे से निभाना और तुम मुझे…मुझे…’

बस, उस के बाद वे हमेशा के लिए चुप हो गए. डाक्टर ने आ कर मौत की पुष्टि कर दी. समीर ने बड़े धैर्य से यह गम सहा और सुबह उन के आखिरी सफर की तैयारी शुरू कर दी. बूआ, बेटाबहू के साथ आ गईं. कुछ रिश्तेदार भी आ गए. गांव के लोग भी थे. शाम को पापा को दफना दिया गया. 2 दिन बाद बूआ और रिश्तेदार चले गए. गांव के लोग मौकेमौके से आ जाते. 10 दिन बाद वे दोनों लौट आए.

 

Family Story in Hindi : कर्तव्यबोध

लेखक- चितरंजन भारती

यह कर्तव्यबोध था, जिस की वजह से सरिता ने अपने बच्चे से ज्यादा दूसरे अजन्मे बच्चे की फिक्र की. उस ने घड़ी देखी और उठने को हुई, तभी नर्स लीला आ कर बोली, ‘‘आप जा रही हैं मैडम.अभीअभी एक डिलीवरी केस आ गया है. अभी तक डाक्टर श्वेता नहीं आई हैं. ऐसे में उसे क्या कहूं?’’ वह जातेजाते रुक गई. अभी आधे घंटे पहले वह औपरेशन थिएटर से निकली थी कि एक नया केस सामने आ गया है. वह करे तो क्या करे, आज मुन्ने का जन्मदिन है. कोरोना और लौकडाउन की वजह से घर में और कोई शायद ही आए या न आए, इसलिए उस ने उस से प्रौमिस कर रखा था कि वह शाम तक अवश्य आ जाएगी. कुछ सोच कर वह बोली, ‘‘ठीक है, मरीज को चैक करने में हर्ज ही क्या है.

तब तक डाक्टर श्वेता आ जाएंगी.’’ उस ने फिर से गाउन और ग्लव्स पहने. पीपीई किट का पूरा सैट पहन कर वह लीला के साथ ओपीडी की ओर बढ़ गई. ‘‘मैडम, वह कोरोना पेशेंट भी है,’’ लीला ने उसे चेतावनी सी दी, ‘‘आप को इस में देर लग सकती है. आप धीरे से निकल लें. आप की ड्यूटी तो पूरी हो ही चुकी है. डाक्टर श्वेता जब आएंगी, वे देख लेंगी.’’ ‘‘अपनी आंखों के सामने पेशेंट को देख हम भाग नहीं सकते लीला,’’ डाक्टर सरिता मुसकरा कर बोली, ‘‘कितनी उम्मीद के साथ एक पेशेंट अस्पताल में हमारे पास आता है. हम उसे अनदेखा नहीं कर सकते. तब और, जब हम इसी के लिए सरकार से सुविधाएं और वेतन पाते हों और डिलीवरी के मामले में तो यह एक नहीं, दोदो जिंदगियों का सवाल हो जाता है.’’ उस के सामने एक महिला प्रसव पीड़ा से कराह रही थी. पेशेंट का चैकअप करने के बाद वह थोड़ी विचलित हुई. मगर शीघ्र ही वह खुद पर नियंत्रण सी करती बोली, ‘‘कौम्पिलिकेटेड केस है लीला. इस का सिजेरियन औपरेशन करना होगा. तुरंत टीम को तैयार हो कर आने को कहो.’’ ‘‘आप भी मैडम क्या कहती हैं. श्वेता मैडम को आने देतीं.’’ ‘‘मैं जो कहती हूं, वह करो न. मैं इसे छोड़ कर कैसे जा सकती हूं? वार्डबौय को तैयार हो कर शीघ्र आने को बोलो. हम देर नहीं कर सकते.’’ अपनी टीम के साथ इस सिजेरियन औपरेशन को करने में उसे 3 घंटे लग गए थे.

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जन्मे हुए स्वस्थ शिशु को देख उस ने संतोष की सांस ली. आवश्यक चैकअप करने के बाद यह पता चलने पर कि वह कोरोना नैगेटिव है, उस ने उसे मां से अलग रखने का निर्देश दिया. वह शिशु चाइल्ड केयर विभाग में शिफ्ट कर दिया गया था. वापस अपने चैंबर में आ कर उस ने गहरी सांस ली. उस ने दीवार घड़ी पर नजर डाली. 9 बजने वाले थे. पीपीई किट खोलने के दौरान वहां मौजूद नर्स राधा ने उसे जानकारी दी, ‘‘आप के फोन पर अनेक मिसकौल आए हैं. चैक कर लीजिए.’’ वह पसीने से तरबतर थी. पहले उस ने स्वयं को सैनिटाइज किया. उसे पता था कि वे सभी फोन घर से ही होंगे. मुन्ने का या मुकेश का ही फोन होगा. मगर उस में एक फोन डाक्टर श्वेता का भी था. बिना मास्क उतारे उस ने कौलबैक किया. श्वेता उधर से बोल रही थी, ‘‘क्या कहूं डाक्टर सरिता, पता नहीं कैसे मेरी सास कोरोना पौजिटिव निकल आई हैं. उसी की तीमारदारी और भागदौड़ में पूरा दिन निकल गया. अभी भी घर में ही उन की देखरेख चल रही है. ‘‘क्या कहें, घर में कितना सम झाया कि कहीं बाहर नहीं निकलना है.

फिर भी वे एक कीर्तन मंडली में चली गई थीं और वहीं संक्रमित हो गईं. अब बहू कुछ भी हो, ससुराल में उस की बात कितनी रखी जाती है, तुम तो जानती ही हो. पतिदेव बोले कि पहले घर के मरीज को देखो. बाहर की बाद में सोचना.’’ ‘‘ठीक ही कह रहे हैं,’’ सरिता ने स्थिर हो कर जवाब दिया, ‘‘अपना भी खयाल रखना.’’ अब वह मुकेश को फोन लगा कर उस से बात कर रही थी, ‘‘क्या कहूं, ऐन वक्त पर एक डिलीवरी केस आ गया. औपरेशन करना पड़ गया.’’ ‘‘कोई बात नहीं,’’ जैसी कि उसे उम्मीद थी, वे बोले, ‘‘मैं ने तो आज छुट्टी ले ही ली थी. इसलिए सब प्रबंध हो गया था. हां, मुन्ना थोड़ा अपसैट जरूर है कि केक काटते वक्त तुम नहीं थीं.’’ ‘‘क्या कहूं, काम ही मु झे ऐसा मिला है कि घर पर चाह कर भी ध्यान नहीं दे पाती. फिर भी आज तो आना ही था. मैं ने यहां सब से कह भी रखा था. मगर डाक्टर श्वेता अपनी सास के कोरोना संक्रमित हो जाने के कारण आ नहीं पाईं. फिर मु झे ही सब इंतजाम करना पड़ गया. अब काम से मुक्ति मिली है तो थोड़ी देर में वापस आ रही हूं.’’ उस ने अब ड्राइवर को फोन कर उस की जानकारी ली. वह अभी तक अस्पताल में ही था. वह उस से बोली, ‘‘सौरी मुरली, मु झे आज देर हो गई.

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निकलने ही वाली थी कि एक पेशेंट आ गया, जिसे देखना बहुत जरूरी था. तुम गाड़ी निकालो. मैं आ रही हूं.’’ बाहर अस्पताल परिसर में ही नहीं, सड़क पर भी लौकडाउन की वजह से गजब का सन्नाटा था. अस्पताल के मुख्य फाटक से बाहर निकलते ही जैसे उस ने चैन की सांस ली. लगभग हर मुख्य चौराहे पर पुलिस का पहरा था. एकदो जगह पुलिसवालों ने गाड़ी रुकवाई भी, तो वे ‘एम्स में डाक्टर हैं, वहीं से आ रही हैं,’ सुन कर अलग हट जाते थे. घर आने पर उस ने देखा, मुन्ने का मुंह फूला हुआ है. ‘‘आई एम सौरी, बेटे. मैं तुम्हें समय नहीं दे पाई.’’ इस के अलावा भी वह कुछ कहना चाहती थी कि उस के पति मुकेश बोले, ‘‘मानमनुहार बाद में कर लेना.

अभी तुम अस्पताल से आई हो. पहले नहाधो कर फ्रैश हो लो. गरमी तो बहुत है. फिर भी गरम पानी से ही नहानाधोना करना. मैं ने गीजर चालू कर दिया है. यह कोरोनाकाल है. समय ठीक नहीं है.’’ अपने सारे कपड़े टब में गरम पानी में भिगो कर उस ने उन्हें यों ही छोड़ दिया. अभी रात में वह स्नानभर कर ले, यही बहुत है. स्नान कर के जब वह बाहर आई, तो मुन्ने की ओर देखा. गालों पर आंसुओं की सूखी धार थी शायद, जिसे महसूस कर वह तड़प कर रह गई. वह निर्विकार भाव से उसे ही देख रहा था. मुकेश वहीं खड़े थे. उन्होंने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘तुम्हारी मम्मी, दोदो जान की रक्षा कर के आ रही है. थैंक्यू बोलो मम्मी को.’’ वह कुछ बोलता कि उस ने आगे बढ़ कर मुन्ने को छाती से लगा लिया, ‘‘मुन्ना, मु झे सम झता है. चलो, पहले मैं तुम्हारा केक खा लूं. वह बचा है या खत्म हो गया.’’ ‘‘नहीं, मैं ने पहले ही एक टुकड़ा काट कर अलग रख दिया था, ’’ मुन्ने के बोल अब जा कर फूटे, ‘‘और पापा ने होम डिलीवरी से मेरा मनपसंद खाना मंगवा दिया था.’’ ‘‘तो तुम लोगों ने खा लिया न?’’ ‘‘नहीं, तुम्हारे बिना हम कैसे खा लेते?’’ मुकेश तपाक से बोले, ‘‘मुन्ने का भी यही खयाल था कि जब तुम आओगी, तभी हम साथ खाना खाएंगे.’’ ‘‘अरे, 11 बज रहे हैं और तुम लोगों ने अभी तक खाना नहीं खाया?’’ वह डाइनिंग टेबल की ओर मुन्ने का हाथ पकड़ बढ़ती हुई बोली, ‘‘चलोचलो, मु झे भी भूख लग रही है.

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’’ बच्चा जात, आखिर अपना दुख भूल ही जाता है. खाना खाते हुए पूरे उत्साह के साथ मुन्ना बताने लगा कि पड़ोस के उस के साथियों में कौनकौन आया था, किस ने गाना गाया, किस ने डांस किया वगैरह. और किस ने क्या गिफ्ट दिया. खाना खाने के बाद वह मुन्ने को ले उस के कमरे में आई और उसे थपकियां देदे कर उसे सुलाया. फिर वह अपने कमरे में आई. वहां पलंग पर मुकेश पहले ही नींद की आगोश में जा चुके थे. उसे मालूम था कि उस की अनुपस्थिति में उन को कितनी मशक्कत करनी पड़ी होगी. घर में उस के अलावा बूढ़े सासससुर भी तो हैं, जिन्हें उन लोगों को ही देखना होता है. नींद तो उसे भी कस कर आ रही थी. मगर जब वह बिस्तर पर गिरी तो सामने जैसे वह नवजात शिशु आ कर खड़ा हो गया था. जैसे कि वह उसे धन्यवाद दे रहा हो. जब वह छोटी थी, तब उस की बड़ी बहन इसी तरह घर में प्रसव वेदना से छटपटा रही थी. उस के मम्मीपापा उसे कितने शौक से अपने घर में लाए थे कि पहला बच्चा उस के मायके में ही होना चाहिए. मगर डाक्टर की जरा सी लापरवाही कहें या देरी, उस का औपरेशन नहीं हो पाया था और वह व उस का नवजात बच्चा दोनों ही काल के मुंह में समा गए थे.

तभी उस ने संकल्प किया था कि वह डाक्टर बनेगी. कितनी मेहनत करनी पड़ी थी उन दिनों. पापा एक साधारण क्लर्क ही तो थे. फिर भी उन की इच्छा थी कि वह डाक्टर ही बने. अपनी तरफ से उन्होंने कोई कोरकसर नहीं रख छोड़ी थी और उस का हमेशा हौसला बढ़ाते रहे. यही कारण था कि पहले ही प्रयास में उस ने मैडिकल की परीक्षा क्वालीफाई कर ली थी. यह संयोग ही था कि अच्छे नंबरों की वजह से उस का चयन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान अस्पताल के लिए हो गया था. वहां उस ने अपना सारा ध्यान गाइनीकोलौजी पर लगाया, जिस में उसे सफलता मिली थी. आज उसी के बल पर वह यहां पटना के एम्स में जानीमानी गाइनीकोलौजिस्ट है. शुरूशुरू में कितनी तकलीफ हुई थी. सभी पापा से कहते ‘बेटी को सिर्फ ऊंची पढ़ाई पढ़ा कर क्या होगा. उस की शादी के लिए भी तो दहेज के लिए ढेर सारा रुपया चाहिए. वह कहां से लाओगे?’ और पापा बात को हंस कर टाल जाते थे. वह तो मुकेश के पापा थे, जिन्होंने उन्हें इस समस्या से उबार लिया. ‘मेरा बेटा पत्रकार है. स्थानीय अखबार में उपसंपादक है,’ वे बोले थे, ‘अगर तुम को आपत्ति न हो तो मैं उस के लिए तुम्हारी बेटी को बहू के रूप में स्वीकार कर लूंगा और इस के लिए किसी दहेज या लेनदेन की बात भी न होगी.’ और इस प्रकार वह मुकेश की पत्नी बन इस घर में आ गई थी. ‘मैं जिस काम से जुड़ा हूं, उसे सेवाभाव कहते हैं,’

मुकेश एक दिन उस से हंस कर बोले थे, ‘और तुम भी जिस पेशे से जुड़ी हो, वह भी सेवाभाव ही है. तो क्या तुम्हें दिक्कत नहीं आएगी?’ ‘यह सेवाभाव ही तो है, जो हम में हिम्मत और समन्वय का भाव उत्पन्न करता है,’ उस ने भी हंस कर ही जवाब दिया था, ‘और जब हम दूसरों के लिए कुछ कर सकते हैं, जी सकते हैं तो अपनों के लिए तो बेहतर ढंग से जी सकते हैं, रह सकते हैं.’ अचानक नींद से जगा कर मुकेश उसे बैठा देख चौंके और बोले, ‘अरे, अभी तक सोई नहीं. सो जाओ भई, जितना समय मिले, आराम कर लो. क्या पता कि कब अस्पताल से तुम्हारा बुलावा आ जाए. इस कोरोनाकाल में वैसे भी सबकुछ अनिश्चित है. ऐसे में तुम्हारे कर्त्तव्यबोध को देख हमें भी रश्क होने लगता है.’ उस ने हंस कर अपनी आंखें बंद कर ली थीं. सरिता मन ही मन खुश थी कि उस का परिवार उस की जिम्मेदारियां, कर्तव्यबोध को समझता है. द्य इन्हें आजमाइए ? मौनसून में एलर्जी और अन्य वायरल संक्रमण सब से अधिक होते हैं. सो, रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन ‘सी’ से भरपूर आहार लें, जैसे स्प्राउट्स, हरी सब्जियां और साइट्रस (खट्टे) फ्रूट्स आदि. ? पालक, बींस, पुदीना, धनिया, करीपत्ता, तुलसी, पुदीना, मेथी, टमाटर और बैगन जैसी सब्जियां किसी भी पौट या छोटे गमले में आप बालकनी में आसानी से उगा सकते हैं.

करेला और खीरा जैसी सब्जियों की बेलें न सिर्फ आप को फल देंगी बल्कि आप की बालकनी की खूबसूरती भी बढ़ाएंगी. ? एक हैल्दी नाश्ता शरीर को एनर्जी देता है, आप की शौर्ट टर्म मैमोरी में सुधार करता है और आप को अधिक तेजी से व अधिक समय तक ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. ? स्टूडैंट्स हर दिन किताब पढ़ें. जितना अधिक आप किताबें पढ़ेंगे, उतना ही आप अपनी अज्ञानता का एहसास करेंगे और जीवन के बेहतर विचारों को देखेंगे. ? सुबह उठते ही खाली पेट नीबू पानी पीने से शारीरिक और मानसिक रूप से एनर्जी का स्तर बढ़ता है. ? साफसुथरे कार्यक्षेत्र में काम करने से ज्यादा अच्छा और एकाग्रता से कार्य होता है. अव्यवस्था काम से आप का ध्यान खींचती है.

मानसून: बीमार न कर दे मस्ती की फुहार

मानसून के मौसम में अकसर लोग जल्द ही संक्रमण, बुखार, खांसी, जुकाम की चपेट में आ जाते हैं. हेपेटाइटिस ए के संक्रमण की संभावना भी इस मौसम में बहुत अधिक होती है. हेपेटाइटिस ए यकृत का विकार है जो दूषित भोजन या पानी के सेवन के कारण होता है. चूंकि मानसून के मौसम में पानी के गंदा होने की संभावना बहुत अधिक होती है, ऐसे में हेपेटाइटिस ए के अधिक मामले इस मौसम में देखने में आते हैं.

हेपेटाइटिस ए का वायरस आमतौर पर सक्रिय होने में 14-28 दिनों का समय लेता है. हेपेटाइटिस ए संक्रमण का सब से आम लक्षण है पीलिया यानी आंखों, त्वचा का पीला पड़ना, बुखार, भूख की कमी, कमजोरी, डायरिया और उलटी. 6 साल या अधिक उम्र के बच्चों में लक्षण अधिक गंभीर होते हैं. पीलिया से पीडि़त 70 फीसदी मामले इसी आयुवर्ग में पाए जाते हैं.

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जिन बच्चों और वयस्कों को हेपेटाइटिस ए के लिए वैक्सीन दी जा चुकी हो, उन में संक्रमण होने की संभावना बहुत कम होती है. जिन लोगों को वैक्सीन नहीं दी गई है, वे लोग जिन के आसपास का वातावरण साफ नहीं होता और वे लोग जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं, उन में संक्रमण की संभावना अधिक होती है.

हेपेटाइटिस ए संक्रमण का उपचार एवं रोकथाम

आप का यकृत हेपेटाइटिस ए संक्रमण से पीडि़त है तो इस के लिए कोई उपचार या दवाएं नहीं है. इस के उपचार का एकमात्र तरीका है शरीर से संक्रमण को पूरी तरह से ठीक करना. यह प्रक्रिया काफी धीमी हो सकती है और इस में एक महीने का समय लग सकता है. संक्रमित व्यक्ति के लिए उचित पोषण व तरल पदार्थों के सेवन का पूरा ध्यान रखना चाहिए क्योंकि कुपोषण के कारण व्यक्ति उलटी और डायरिया से पीडि़त हो सकता है.

वैक्सीनेशन यानी टीके के रूप में रोकथाम की जा सकती है, जिस से आप अपनेआप को हेपेटाइटिस ए वायरस से सुरक्षित रख सकते हैं. लाइव अटेन्यूटेड वैक्सीन की एक खुराक देने के बाद लगभग हर व्यक्ति में एंटीबौडी बनते हैं जो एक माह के अंदर वायरस से लड़ते हैं और दीर्घकालिक प्रतिरक्षा देते हैं. वास्तव में वैक्सीनेशन के 2 सप्ताह के अंदर अचानक वायरस के संपर्क में आना भी प्रतिरक्षा को सुनिश्चित करता है. दुनियाभर में लाखों लोगों को वैक्सीन दी जाती है और इस के कोई साइडइफैक्ट नहीं हैं. इन दिनों वैक्सीन का एक उन्नत रूप उपलब्ध है जिसे वेन्स में दी जाने वाली पारंपरिक 2 खुराकों के बजाय सबक्युटेनिअस को एक खुराक के रूप में दिया जाता है. जिस में अपेक्षाकृत कम दर्द होता है.

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अगर वयस्क हेपेटाइटिस ए वायरस से पीडि़त हैं तो लक्षण अधिक गंभीर हो सकते हैं और रोग के घातक परिणाम हो सकते हैं. मानसून शुरू होने से पहले उचित टीकाकरण के द्वारा अपनेआप को और अपने बच्चों को हेपेटाइटिस ए से बचाएं. उचित साफसफाई का ध्यान रखने, भोजन को पकाने से पहले अच्छी तरह धोने, उबला पानी पीने और वैक्सीनेशन से आप अपनेआप को हेपेटाइटिस ए संक्रमण से बचा सकते हैं.

वायरल फीवर का शिकंजा

बारिश ने बेशक तेज गरमी से लोगों को राहत दी है परंतु कई तरह की बीमारियों का खतरा भी बढ़ाया है. झमाझम बारिश ने तेजी से लोगों को वायरल इन्फ्लुएजा की चपेट में लिया है.

इस के अलावा बढ़ता प्रदूषण भी वायरस के तेजी से फैलने के पीछे एक कारण माना जा सकता है. बढ़ती नमी और गिरते तापमान के साथ वातावरण में मौजूद प्रदूषण के छोटेछोटे कण के साथ ये वायरस वातावरण की निचली सतह में धरती से 5 फुट की ऊंचाई तक मौजूद रहते हैं और आसानी से सांस के द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाते हैं.

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कैसे होता है वायरल फीवर

यह वायरस सांस के द्वारा शरीर में प्रवेश करता है और हमारी श्वसन प्रणाली के प्राथमिक अंगों जैसे नाक, गला पर हमला करता है जिस के कारण गले में खराश, जुकाम आदि होते हैं. हमारे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति उस वायरस को नष्ट करने की कोशिश करती है जिस कारण हमारे शरीर का तापमान बढ़ता है. इसे ही वायरल बुखार कहा जाता है. वायरल बुखार संक्रमित व्यक्ति के छींकने और खांसने से हवा में फैलने वाले वायरस के संपर्क में आने से दूसरे व्यक्ति तक पहुंच जाता है. इस के अलावा मौसम में आए बदलाव के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ जाती है जिस के चलते लोग आसानी से इस की चपेट में आ जाते हैं. इन्फ्लुएंजा के वायरस खांसने व छींकने के जरिए 2 से 3 मीटर की दूरी तक के व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं.

लक्षण

–  अचानक तेज बुखार आना.

–  सिर और बदन दर्द होना.

–  छींकें आना.

–  नाक और आंख से पानी निकलना.

–  गले में खराश.

–  भूख खत्म होना.

वायरल बुखार का इलाज

शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के अनुकूल 3-4 दिनों में खुद ही ठीक हो जाता है, परंतु बुखार तेज हो तो उसे कम करने की दवाएं जैसा पैरासिटामोल, कालपोल दी जाती हैं. बुखार से राहत पाने के लिए रोगी को ज्यादा से ज्यादा आराम करना चाहिए और अनावश्यक दवाओं, विशेषरूप से एंटीबायोटिक दवाएं नहीं लेनी चाहिए. बुखार के कारण शरीर के तापमान में उतारचढ़ाव के कारण रोगी को अत्यधिक पसीना आता है, जिस के कारण रोगी को निर्जलीकरण की समस्या हो सकती है. रोगी को अधिक मात्रा में तरल पदार्थ पीने के साथ भाप लेना और नमक के गरम पानी के गरारे करने की हिदायत दी जाती है. रोगी को अधिक से अधिक मात्रा में तरल पदार्थ लेना चाहिए.

वैसे वायरल फीवर किसी भी आयुवर्ग के शख्स को हो सकता है परंतु छोटे बच्चों, बुजुर्ग एवं वे रोगी जिन को श्वास, मधुमेह, किडनी या हृदय संबंधी समस्या है, को होने का खतरा ज्यादा रहता है.

सावधानी

बुखार 102 डिगरी तक है और रोगी को कोई और परेशानी नहीं हैं तो उस की देखभाल घर पर ही कर सकते हैं. परंतु बुखार अगर 102 डिगरी से अधिक बढ़ जाए तो मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें. पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए. अगर इस से ज्यादा तापमान है या बुखार 3 दिन से अधिक समय तक रहे, तो तुरंत डाक्टर से परामर्श लें

ध्यान रखें

–       इन दिनों भीड़भाड़ वाली जगहों पर हो सके तो जाना कम करें और अगर जाना हो तो मुंह और नाक पर साफ कपड़ा या रूमाल रखें.

–       अगर परिवार में किसी सदस्य को वायरल बुखार है तो साफसफाई का पूरा खयाल रखें.

–       मरीज को वायरल है तो उस से थोड़ी दूरी बनाए रखें और उस के द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें इस्तेमाल न करें.

–       छींकने से पहले नाक और मुंह पर रूमाल या टिश्यू पेपर रखें.

–       सूप, जूस, हलदी का दूध, गुनगुने पानी आदि का सेवन करें.

–       तेज बुखार होने पर भी खाना न छोड़ें. तरल पदार्थों का सेवन करते रहें, ताकि शरीर की ताकत बनी रहे.

–       तुलसी के 8-10 पत्तों का रस शहद के साथ मिला कर लें या 10 पत्तों को आधा लिटर पानी में उबालें, जब आधा हो जाए तो पिएं.

–       वायरल बुखार उतर जाने के बाद भी अकसर देखा जाता है कि रोगी को कमजोरी और थकावट रहती है, इसलिए विटामिन बी और सी का अधिक सेवन करें और पौष्टिक आहार लें.

डा. नितिन शाह और डा. एस के मुंद्रा.

दस्तक – भाग 4 : नेहा किस बात को लेकर गहरी सोच में डूबी थी

नेहा ने घर में हुए एकएक वाकए को शिवम के आगे रख दिया. शिवम आवाक सा उस को देखता रह गया. ऐसा नहीं कि कसबे में लोगों की रूढ़िवादी सोच और जातिगत भेदभाव से वह अनभिज्ञ था, लेकिन वह नेहा के परिवार को इन सब से बहुत ऊपर समझता था. अपने प्रति अंकल-आंटी के स्नेह पर पूरा विश्वास था. फिर सालों से दोनों परिवारों के बीच में गहरे संबंध थे. नेहा की बातों ने शिवम को अंदर तक आहत कर दिया.

‘क्या सोचा तुमने,’ नेहा पर एक गहरी दृष्टि डालते हुए शिवम ने कहा. नेहा ने बड़ीबड़ी आंख़ों से शिवम की ओर देखा. मन कसक गया. भावनाओं का तूफान दिल में उमड़ने लगा. ‘क्या  प्यार किसी से किया जाता है? नहीं, प्यार किया नहीं जाता, यह अपनेआप हो जाता है. यह, बस, एक एहसास है जिस को महसूस कर सकते हैं, बयां नहीं. प्यार न जाति देखता है, न धर्म और न समाज. प्यार इन बातों से दूर है, बहुत दूर,’ नेहा भावनाओं के सैलाब में बह कहती जा रही थी, ‘मैं तुम से बहुत प्यार…’ कि एकाएक मम्मी, पापा, दादी की कठोर छवि आंखों के आगे उभर आई और घबरा कर उस के मुंह से निकल गया, ‘परिवार के विरुद्ध जाने की मेरी हिम्मत नहीं है.’

शिवम हतप्रभ सा हो कर रह गया. अविश्वास से नेहा को एकटक देखता रहा. जबान निशब्द हो गई. दोनों के बीच एक सन्नाटा व्याप्त हो गया. यह उन की पसंदीदा जगह थी जहां वे घंटों बैठे दीनदुनिया से बेखबर एकदूसरे में खोए बातें करते रहते थे. आज उसी जगह में देर तक दोनों खामोशी से बैठे, बस, अपनी धड़कनों को सुनते रहे. लगता है जैसे दोनों के बीच कुछ कहने के लिए शेष न रह गया हो. आख्रिर जब और बैठना मुश्किल हो गया, तो शिवम अपनी कुरसी से उठते हुए बोला, ‘मुझे तुम्हारे निर्णय का इंतजार रहेगा.’

नेहा कुछ नहीं बोली, आंखों में उतर आए आंसुओं को बरबस रोकते हुए, उस के साथ औफिस की ओर चल दी.सगाई का दिन निर्धारित हो गया. विवाह की तिथि पक्की करने के लिए देवेंद्र सिंह ने लड़के के पिता को फोन किया.‘कुछ भी तय करने से पहले आप जरा एक बार बेटी नेहा से विवाह के लिए पूछ लें,’ लड़के के पिता की बातें सुन देवेंद्र सिंह स्तब्ध रह गए.

 

‘नहीं, नहीं, नेहा से क्या पूछना,’ देवेंद्र सिंह ने अचकचाते हुए कहा.‘कल अंशुमन का फोन आया था. वह बहुत उदास लग रहा था, कह रहा था कि पापा, नेहा श्योर नहीं विवाह के लिए,’ चिंतित स्वर में अंशुमन के पापा बोले.‘अंशुमन को अवश्य कोई गलतफहमी हुई होगी,’ बात को संभालने की कोशिश करते हुए देवेंद्र सिंह बोले.

‘मैं सोचता हूं कि हमें बच्चों के साथ कोई जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए और इस बात को यहीं पर खत्म कर देते हैं,’ कह कर उन्होंने फोन नीचे रख दिया.

 

क्रोध, अपमान, क्षोभ से देवेंद्र सिंह का पूरा चेहरा तमतमा गया. उसी समय नेहा को फोन लगाया.‘तूने अंशुमन से क्या कहा कि उन लोगों ने रिश्ता करने से इनकार कर दिया?’‘पापा…” भयाक्रांत नेहा की आवाज गले में अटक गई.

‘मैं ने पूछा, क्या कहा?,’ इस बार और सख्त आवाज में देवेंद्र सिंह ने पूछा.‘पापा, मुझे यह विवाह नहीं करना,’ हिम्म्त जुटाती हुई नेहा बोली‘चुप,” देवेंद्र सिंह की दहाड़ती आवाज सुन घबराई हुई सी रमा किचन से निकल कर आई.

 

क्या हुआ?’ रमा ने घबराते हुए पति से पूछा.‘इस लड़की ने हमें कहीं मुंह दिखाने लायक न छोड़ा. अंशुमन के पापा ने रिश्ता तोड़ दिया.’‘क्या…’ रमा धप्प से सोफे पर गिर पड़ी. कानों पर विश्वास न हुआ, तुरंत नेहा को फोन लगाया. फोन बजता रहा, लेकिन नेहा ने फोन न उठाया.

उस के बाद 2 अन्य लड़कों से भी नेहा की शादी की बात चलाई. नेहा ने पूरी कोशिश की मातापिता के बताए रिश्तों से अपने को जोड़ने की, लेकिन हर बार असफल रही. जब भी किसी लड़के से मिलती, उस का प्यार- शिवम का व्यक्तित्व, उस का बौद्धिक स्तर, उस की संवेदनशीलता, सशक्त रूप से आ कर खड़े हो जाते. और वह हर बार किसी निर्णय तक पहुंचने में असफल हो जाती. जब वह तीसरे लड़के से मिली, तो वह एक निर्णय पर पहुंच गई थी.

पूरी रात करवटें बदलते बीत गई. सुबह साढ़े पांच बजे उजाले ने दस्तक दी. यह दस्तक भोर की लालिमा,  रात्रि के प्रहर के बीत जाने पर की ही नहीं थी. यह दस्तक नेहा के अंतर्मन पर भी थी. एकाएक उस के मन में छाया कुहासा छंटने लगा. धुंधला गई मंजिल उस को साफ दिखाई देने लगी. ‘बस, अब और नहीं.’

गहरी नींद में सोया शिवम को लगातार बजती फोन की घंटी ने आखिरकार उठने पर मजबूर कर दिया. नेहा का इतनी सुबह फोन देख कर चौंक गया.

 

‘हैलो.’‘शिवम, मैं ने फैसला कर लिया.’ ‘क्या?’ ‘जिंदगीभर तुम्हारा साथ निभाने का,’ एक भर्राया सा स्वर फोन के उस पार से आया और फिर फोन बंद.शिवम को लगा कि वह कोई सपना देख रहा है. यकीन करने के लिए एक बार अपने मोबाइल को चैक किया. देखा, नेहा की ही कौल थी. सत्य का आभास होते ही मन में हिलोरें उठने लगीं, जेहन में विचारों की उड़ानें कुलांचे मारने लगीं और उन विचारों में तैरते हुए पुलकित हो शिवम ने मम्मी को फोन लगा दिया. शिवम के घर पर किसी को कोई आपत्ति न थी. उन्हें तो बस नेहा के परिवार वालों की सहमति का इंतजार था.

नेहा के पापा का, शिवम के पापा से लगभग रोज ही मिलना होता था बिजनैस के सिलसिले में. लेकिन इस विषय पर दोनों ने चुप्पी साधी हुई थी. विचित्र सी स्थिति हो रखी थी दोनों परिवारों के बीच में, या यह कहें कि एक अजीब सी अनकही अग्नि धधक रही थी उन के बीच में एक निष्क्रिय ज्वालामुखी की तरह. शिवम को अपना फैसला सुनाने के बाद, नेहा ने घर पर फोन करना कम कर दिया. जब भी मम्मी या पापा का फोन आता, ‘बिजी हूं’ कह कर टाल जाती.

एक दिन रमा दीप्ति के साथ हैदराबाद चली आई, वैभव का रिश्ता ले कर. नेहा मम्मी और दीप्ति को देख भावविह्ल हो उठी. मम्मी की आंख़ें भी नेहा को देख नम हो आईं. खानेपीने के बाद तीनों जो गपें मारने बैठीं तो कब रात के एक बज गए, पता ही न चलादूसरे दिन इतवार था. नेहा की नींद खाने की खुशबू से टूटी. मम्मी को अपनी पसंद के आलू के परांठें बनाते देख, नेहा प्यार से रमा से लिपट गई.

 

‘जा, फ्रैश हो कर आ जा,’ नेहा को अपने से अलग करती हुई रमा बोली.तीनों अभी नाश्ता कर रहे थे कि डोरबैल बजी. रमा ने दरवाजा खोला, सामने शिवम खड़ा था. शिवम ने रमा को प्रणाम किया. शिवम को देख रमा की भ्रकुटि तन गई. अपने प्रणाम का जवाब न पा, शिवम झेंप सा गया. वातावरण को सहज बनाने के लिए दीप्ति से बातें करने लगा. लेकिन शिवम सिर्फ बातें करने नहीं, वह किसी मकसद से आया था.

‘आंटी, मैं नेहा से…’ गले को खंगालते हुए, भूमिका बनाने की कोशिश करते हुए, शिवम ने अभी इतना ही बोला था कि रमा तमक गई.‘हम ने तुम पर इतना विश्वास किया और तुम ने हमारी ही बेटी को फंसा दिया. तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई?’ इतने दिनों से दबी भड़ास को निकालते हुए रमा, शिवम पर आक्रमण करती हुई बोली.

भारत भूमि युगे युगे- 16 अगस्त को खेला होबे

16 अगस्त को खेला होबे के राष्ट्रीय आयोजन के पीछे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मंशा विपक्ष की सर्वमान्य नेता बनने की कम, चुनावप्रचार के दौरान अपनी बेइज्जती का बदला लेने की ज्यादा दिख रही है. दिल्ली से ले कर अहमदाबाद तक मोदी गैंग को घेर रहीं ममता भाजपाइयों के जख्मों पर नमक छिड़क रही हैं.

दिलचस्प बात पश्चिम बंगाल के क्लबों को मुफ्त एक लाख फुटबौल बांटने की घोषणा है. कम्युनिस्टों के दौर में वहां क्लब पौलिटिक्स खूब फलीफूली थी, तब लोग मुंह से बोलते थे पर अब लातों से बोलेंगे. इस घोषणा से 2 मई के बाद वायरल हुआ एक संपादित वीडियो प्रासंगिक हो जाता है जिस में ममता कुरसी पर बैठेबैठे फुटबौल फेंक रही हैं जो नरेंद्र मोदी के कमजोर होते कंधे पर जा कर लगती है और वे लड़खड़ा कर गिर पड़ते हैं. इस बार कैसे बचते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.

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माया का ब्राह्मण प्रेम
तमाम धर्मग्रंथ निर्देश देते हैं कि ब्राह्मण जन्मना पूज्य हैं और दलित जन्मना तिरस्कृत हैं. इसी मनुवादी व्यवस्था को कोसकोस कर बसपा प्रमुख मायावती सत्ता के शिखर तक पहुंची थीं जो अब स्वीकारने लगी हैं कि भला है बुरा है जैसा भी है मेरा ब्राह्मण मेरा देवता है. इसीलिए, दलित उन से छिटक भी गया है. 2007 के चुनाव में उन का सोशल इंजीनियरिंग का टोटका चल गया था. लेकिन 2022 में पुराने फार्मूलों से नए समीकरण हल होने के आसार दिख नहीं रहे.

बसपा उत्तर प्रदेश में जगहजगह ब्राह्मण सम्मेलन कर ब्रह्मा के मुंह और पैर को जोड़ने की कोशिश कर रही है. इन सम्मेलनों में अभिषेक और पूजापाठ सहित तमाम कर्मकांड बसपा के गुरु वशिष्ठ सतीश मिश्रा कर रहे हैं. शुक्र बस इस बात का है कि इन आयोजनों में दलितों से ब्राह्मणों के पैर नहीं धुलाए जा रहे.
दलित मंदिर जाते ही क्यों हैं

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मोक्षदायिनी नगरी गया में तेजी से दलित इसाई बन रहे हैं. इस पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मां झी ने तुक की यह बात तो कही कि हिंदू धर्म में अपमान होता है इसलिए लोग धर्मांतरण करते हैं. गौरतलब है कि नैली पंचायत के दुबहल गांव के महादलित चर्चों में जाने लगे हैं जिस से बिहार की सियासत गरमा रही है.
दलित समुदाय के जीतनराम ने बेतुकी बात यह कही कि जब भी वे किसी मंदिर में जाते हैं तो उसे धोया जाता है. जब ऐसा होता है तो वे और दूसरे दलित अपमानित होने को मंदिर जाते ही क्यों हैं और क्या चर्चों में जा कर प्रार्थना करने से उन की बदहाली दूर हो जाएगी? इस सवाल का जवाब मां झी शायद ही दे पाएं. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में पहली बार 18 मार्च, 2018 को बेइज्जत हुए थे तो दूसरी बार 22 मार्च, 2019 को उन्होंने मंदिर को एक लाख रुपए का दान दिया था. जीतनराम को भी बेइज्ज्ती से बचने के लिए यही शौर्टकट अपनाना चाहिए और दलितों की वाकई चिंता उन्हें है तो इस तबके को शिक्षा और स्वाभिमान का पाठ पढ़ाना चाहिए जो उन के भगवा खूंटे से बंधे रहने के साथ नामुमकिन है.

कांवड़ यात्रा
समुद्र मंथन से निकला जहर पीने के बाद शंकरजी की हालत बिगड़ने लगी तो उन के परमभक्त राक्षस राजा रावण से देखा नहीं गया. उस ने कांवड़ में जल भर कर अभिषेक शुरू कर दिया जो सालोंसाल चला. चल अब भी रहा है लेकिन इसे ले कर समारोहपूर्वक यात्राएं निकलने लगी हैं जिन में हुड़दंग ज्यादा होता है. जगहजगह कांवडि़यों का सम्मान सैनिकों से भी ज्यादा होता है. हिंदीभाषी राज्यों में यह करोड़ों का धार्मिक इवैंट होता है जिसे फुरसतिए युवा खूब एंजौय करते हैं.

कोरोना के कहर के चलते इस बार यह यात्रा प्रतिबंधित है और जगहजगह पुलिस जांच करती नजर आई कि कहीं कोई शिव भक्त चोरी से गंगाजल न ले जाए. अब वक्त है कि खर्चीली कांवड़ यात्रा के रिवाज पर हमेशा के लिए रोक लगाई जाए.

पैगासस जासूसी कांड: गुलामी की जंजीर में जकड़ने की साजिश

लेखक-रोहित
सरकार हर प्रकार से जनता को जंजीरों में जकड़ना चाहती है. वह इस के लिए उन माध्यमों को तहसनहस कर देना चाहती है जो लोकतंत्र में उन की पहली आवाज बन कर उठते हैं चाहे वे पत्रकार हों, विपक्षी पार्टियां हों या फिर न्यायालय हों. ‘पैगासस प्रोजैक्ट’ रिपोर्ट के सनसनीखेज खुलासे से यह खुल कर सामने आ गया है.

साल था 1972. जगह थी वाशिंगटन डीसी. उस समय अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के रिचर्ड निक्सन राष्ट्रपति थे, जो 1969 में चुने गए थे. 2 वर्ष बाद देश में फिर से राष्ट्रपति का चुनाव होना था. राजनीति में माहौल गरमाने लगा था. निक्सन फिर से राष्ट्रपति बनने को उतावले थे. उसी दौरान 17 जून को तड़के सुबह 2.30 बजे होटल वाटरगेट बिल्ंिडग की 6ठी मंजिल पर मुख्य विपक्षी पार्टी, डैमोक्रेटिक नैशनल कमेटी के कार्यालय में 5 संदिग्ध लोग चोरीछिपे घुसते पकड़े गए.

शुरुआती अंदेशा चोरी का था क्योंकि उन के पास नकदी, कुछ लौक पिक्स और डोर जिम्मीज (ताले व दरवाजे खोलने वाले उपकरण) बरामद हुए. घटना के अगले दिन अमेरिका के चर्चित अखबार ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में चोरी की खबर भी छपी. जांच चली, जांच में पता चला उन के पास एक डायरी भी थी जिस में वाइट हाउस और री-इलैक्शन कमेटी के नंबर लिखे हुए थे. यह तय था कि वे वाइट हाउस से जुड़े अंदरूनी लोगों के कौन्टैक्ट में थे. लेकिन कौन थे, इस पर संशय था. इसी के साथ उन के पास से रेडियो स्कैनर, वाकीटौकी, कैमरे और कई रीलें भी पाई गईं. दरअसल, वे लोग डैमोक्रेटिक कार्यालय पर प्लांट किए गए जासूसी उपकरणों को ठीक करने गए थे, जहां वे धरे गए.

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इस मसले पर वाशिंगटन पोस्ट के 2 पत्रकार बौब वुडवर्ड और कार्ल बर्नस्टीन छानबीन कर रहे थे. इस खबर पर काम करते हुए उन्हें एक बड़ा सोर्स हाथ लगा. उस सोर्स का नाम उन्होंने ‘डीप थ्रोट’ रखा. वह सोर्स इस मामले को भीतर तक जानता था. जाहिर है, मामले की सारी गुत्थी सत्तापक्ष द्वारा विपक्षी नेताओं के ऊपर जासूसी कराने पर अटक रही थी. जासूसी कराने का मकसद विपक्ष की सारी रणनीति जाननासम झना था. साल 1973 में उन पांचों कैदियों को कोर्ट द्वारा सजा सुनाई गई, जिस से एक कैदी खासा नाखुश था. उस ने सजा सुनाए जाने के बाद जज को एक चिट्ठी लिख डाली. चिट्ठी में उस ने साफसाफ बताया कि जासूसी के इस स्कैंडल में रिपब्लिकन पार्टी के नेताओं का हाथ है.

मामला आगे बड़ा तो एकएक कर के निक्सन के करीबी लोगों के इस्तीफे होने लगे. ऐसे में जब निक्सन को लगा कि वे इस मामले में खुद फंस जाएंगे तो जांच में जुटे प्रो. काक्स को हटाने का प्रयत्न करने लगे. जुलाई 1974 में हाउस औफ जुडिशियरी कमेटी ने निक्सन पर महाभियोग (इम्पीचमैंट) लगाया. न्यायिक मामलों में दखल देने, अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल करने और गवाही देने न आने को ले कर उन पर 3 मुकदमे दायर किए गए. निक्सन असहाय थे, वे तकरीबन फंस चुके थे, उन के आगे इस्तीफा देने के अलावा और कोई रास्ता न बचा. उन्होंने टीवी पर सब के सामने 8 अगस्त, 1974 को रिजाइन दे दिया.
इस घटना को पूरे विश्व में ‘वाटरगेट स्कैंडल’ के नाम से जाना गया. मसला सिर्फ जासूसी कराने का नहीं था, बल्कि जासूसी की गलत ‘मंशा’ को ले कर था. सरकारी संस्थाओं का गलत इस्तेमाल कर खुद को सत्ता में बनाए रखने का था. जिस को ले कर दुनिया के सब से शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति को अपना पद छोड़ना पड़ गया.

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इस घटना के 33 वर्षों बाद आज फिर से दुनिया में ‘वाटरगेट स्कैंडल’ चर्चा में बन गया है, यह पहले से ज्यादा घातक और मारक भी है. हालत यह है कि एक नहीं, बल्कि एकसाथ कई ‘वाटरगेट स्कैंडल’ सामने आए हैं जिन्हें ‘स्नूपगेट स्कैंडल’ या ‘पैगासस स्कैंडल’ कहा जा रहा है. वजह, ‘पैगासस प्रोजैक्ट’ का खुलासा.
पैगासस प्रोजैक्ट में खुलासा
दुनिया की बहुत सी सरकारों द्वारा पैगासस स्पाईवेयर के माध्यम से जासूसी कराने का लीक्ड पिटारा खुला है. पिटारे से रोज होने वाले नए खुलासे विश्वभर को हैरान कर रहे हैं, लोगों पर जासूसी करने और उस के तरीके पर बहस छिड़ गई है. कारण, यह जासूसी पहले जैसी नहीं है, इस में हद पार कर देने वाली निगरानी है. ऐसी निगरानी जिस में टारगेट के एकएक पल की खबर जासूसी कराने वाले के पास मौजूद रहती है.

भारत समेत कई देशों की सरकारों पर आरोप है कि वे खतरनाक जासूसी सौफ्टवेयर के जरिए अपने देश के लोगों, खासकर वे जो सरकार की नीतियों पर सवाल खड़ा करते हैं, पर सूक्ष्म निगरानी रख रही हैं.
खोजी मीडिया संस्थाओं के अंतर्राष्ट्रीय ग्रुप से जुड़े तकरीबन 17 मीडिया संस्थानों ने 18 जुलाई को सनसनी खबर ब्रेक कर दावा किया कि इसराईली कंपनी एनएसओ के पैगासस स्पाईवेयर से 10 देशों में तकरीबन 50 हजार लोगों की जासूसी की जा रही है और इस जासूसी को गैरकानूनी तरीके से अंजाम दिया जा रहा है.

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सम झा जा सकता है कि जासूसी के मामले में अब तक का यह सब से बड़ा खुलासा है. इन में कई नाम ऐसे हैं जो हैरान करते हैं. इस खबर के आते ही दुनियाभर में खलबली मचनी शुरू हो गई है. तमाम सरकारें निशाने और संदेह के घेरों पर आने लगी हैं. यह लीक्ड हुआ डाटाबेस सब से पहले फ्रांस की नौन-प्रौफिट मीडिया संस्था ‘फोर्बिडन स्टोरीज’ और मानवाधिकार संस्था ‘एमनैस्टी इंटरनैशनल’ को मिली. इन दोनों संस्थाओं ने यह डाटा दुनिया के 17 मीडिया संस्थानों के साथ शेयर किया. उन में ‘द गार्जियन’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’, ‘द मोंद’ और भारत की औनलाइन मीडिया संस्था ‘द वायर’ के साथ अन्य मीडिया संस्थाएं शामिल थीं.

इस पूरे डाटा के इन्वैस्टिगेशन को ‘पैगासस प्रोजैक्ट’ का नाम दिया गया. इस के खुलासे में बताया जा रहा है कि दुनिया के कई देशों की विभिन्न सरकारों ने पत्रकारों, कानूनविदों, महिलाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, नेताओं, संवैधानिक पद पर बैठे अधिकारियों और यहां तक कि उन के रिश्तेदारों की भी जासूसी करवाई है. उजागर हुए नामों से यह सम झा जा रहा है कि भारत के संदर्भ में इस जासूसी खेल का सीधा जुड़ाव मोदी सरकार से है.

इस लिस्ट में पहचान किए गए नंबरों का अधिकांश हिस्सा भौगोलिक तौर पर 10 देशों के समूह भारत, अजरबैजान, बहरीन, कजाकिस्तान, मैक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में केंद्रित है. भारत देश के साथ यह पहली बार हुआ है कि वह लिस्ंिटग में ऐसे देशों के साथ जुड़ा है जहां या तो लोकतंत्र वजूद में नहीं है या खत्म होने की कगार पर है. अभी तक अंतर्राष्ट्रीय जगत में कई राष्ट्राध्यक्षों, 3 प्रधानमंत्रियों, 7 पूर्व प्रधानमंत्रियों, 65 से अधिक बिजनैसमैनों, 185 से अधिक पत्रकारों और 600 से अधिक राजनेताओं व कैबिनैट मंत्रियों के नंबर इस लिस्ट में बताए जा रहे हैं.

‘द गार्जियन’ में छपी खबर के मुताबिक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, इराक के बरहम सलीह, पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और साउथ अफ्रीका के रामाफोसा, मोरक्को के किंग मोहम्मद, डब्ल्यूएचओ डायरैक्टर जनरल टेड्रोस आदि 14 अंतर्राष्ट्रीय हस्तियां लिस्ट में शामिल हैं जिन के नंबर हैक कर जासूसी करने की कोशिश की गई. बताया जा रहा है कि इस खोजबीन में दुनियाभर से करीब 70 पत्रकारों की टीम लगी हुई थी. वह कई महीनों से इन नंबरों की पहचान में जुटी हुई थी. यह पूरी इन्वैस्टिगेशन उस ने बेहद गुप्त तरीके से की थी.

‘पैगासस प्रोजैक्ट’ के मुताबिक, इस पूरी लिस्ट में 300 भारतीय नागरिकों की पहचान की गई है जिन की जासूसी की जा रही थी. भारत में इस खबर को ब्रेक करने वाले ‘द वायर’ मीडिया संस्था के अनुसार, लिस्ट में अभी तक 40 से अधिक पत्रकार, 3 प्रमुख विपक्षी नेता, मौजूदा 2 सिटिंग मिनिस्टर और एक जज के नाम सामने आए हैं. यह लेख लिखे जाने तक इस प्रोजैक्ट के तहत 22 लोगों के फोन की फौरेंसिक जांच की गई थी जिस में 10 लोगों के फोन में पैगासस के अंश पाए गए. फौरेंसिक जांच में पता चला कि भारत के मामले में 2017 के मध्य से ले कर 2019 के मध्य तक यह जासूसी की गई. वहीं, पत्रकारों पर 2018 के मध्य से 2019 के मध्य तक जासूसी की गई. ध्यान रहे, यह वही पीक समय भी था जब देश में आम चुनाव होने थे और राष्ट्रीय राजनीति में काफी उथलपुथल चल रही थी.

पैगासस तकनीक क्या है
पैगासस स्पाईवेयर इसराईली साइबर इंटैलिजैंस फर्म एनएसओ ग्रुप द्वारा 2016 में बनाया गया था. इसराईल की यह संस्था पूरी दुनिया में जासूसी के लिए मशहूर है. दावा है कि इस फर्म का काम इसी तरह के जासूसी सौफ्टवेयर बनाना है और इन्हें अपराध व आतंकवादी गतिविधियों को रोकने, लोगों के जीवन को बचाने के एकमात्र उद्देश्य के लिए विभिन्न देशों की सरकारों की खुफिया एजेंसियों को बेचा जाता है. पैगासस एक ऐसा सौफ्टवेयर है जो बिना सहमति के आप के फोन तक पहुंच हासिल करने और व्यक्तिगत और संवेदनशील जानकारी इकट्ठा कर जासूसी करने वाले यूजर को देता है.

केस्परस्काई के अनुसार, पैगासस स्पाईवेयर यूजर के एसएमएस मैसेज और ईमेल को पढ़ने, कौल सुनने, स्क्रीनशौट लेने, कीस्ट्रोक्स रिकौर्ड करने और कौन्टैक्ट्स व ब्राउजर हिस्ट्री तक पहुंचने में सक्षम है. एक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि इस स्पाईवेयर के जरिए एक हैकर फोन के माइक्रो फोन और कैमरे को हाईजैक कर सकता है, उसे रीयल-टाइम सर्विलांस डिवाइस में बदल सकता है. यह इतना आधुनिक है कि एक बार अगर यह फोन में घुस गया खुद ही सारी चीजें औपरेट करने लगता है, यहां तक कि इस से किसी के भी फोन का कैमरा और रिकौर्डिंग औन कर लाइव चीजों को देखासुना जा सकता है. यह भी जान लें कि पैगासस एक जटिल और महंगा मैलवेयर है, जिसे विशेष खासतौर से जासूसी करने के लिए डिजाइन किया गया है. किसी एक टारगेट की जासूसी करने के लिए इस में औसतन एक करोड़ रुपए की लागत आती है.

पैगासस स्पाईवेयर को पहली बार 2016 में आईओएस डिवाइस में खोजा गया था और फिर एंड्रौयड पर थोड़ा अलग वर्जन पाया गया. केस्परस्काई का कहना है कि शुरुआती दिनों में इस का अटैक एक एसएमएस के जरिए होता था. पीडि़त को एक लिंक के साथ एक संदेश मिलता था. यदि वह उस लिंक पर क्लिक करता तो उस का डिवाइस स्पाईवेयर से संक्रमित हो जाता था. हालांकि, पिछले 5 सालों में पैगासस काफी हद तक विकसित किया गया है, जिस में यूजर के लिंक पर क्लिक किए बिना ही यह फोन का एक्सैस ले सकता है. इस के लिए जरूरी नहीं कि किसी संदेश पर टारगेट क्लिक करे या फोन उठाए. साइबर वर्ल्ड की भाषा में कहें, तो यह जीरो-क्लिक एक्सप्लौइट करने में सक्षम है. यानी बिना आप के कुछ किए भी यह फोन में दाखिल हो सकता है.

साइबर सुरक्षा कंपनी की रिपोर्ट के मुताबिक, पैगासस एंड टू एंड एनक्रिप्टेड औडियो सुनने और एनक्रिप्टेड मैसेज पढ़ने की सुविधा देता है. यानी वे संदेश जिन्हें सिर्फ फोन का मालिक ही पढ़सुन सकता है उसे भी यह स्पाईवेयर कलैक्ट कर लेता है. यह फोन के भीतर जितनी भी जानकारियां हैं उन्हें डिटैक्ट कर सकता है यहां तक कि कुछ का आरोप है कि इस तरह के सौफ्टवेयर से कोई फाइल प्लांट भी की जा सकती है.
एनएसओ के अनुसार, उस के 40 देशों में 60 ग्राहक हैं. मैक्सिको और पनामा की सरकारें ही खुल कर पैगासस का इस्तेमाल करती हैं. बाकी ने खुल कर कभी इस की पुष्टि नहीं की. कंपनी के 51 फीसदी यूजर इंटैलिजैंस एजेंसियों, 38 फीसदी कानून प्रवर्तन एजेंसियों और 11 फीसदी सेना से संबंधित हैं.

‘द इकोनौमिक टाइम्स’ ने 2019 में दावा किया था कि एनएसओ पैगासस के लाइसैंस के लिए 7-8 मिलियन डौलर यानी 52 करोड़ से ले कर 59 करोड़ रुपए सालाना खर्च वसूलता है. एक लाइसैंस से 50 फोन का सर्विलांस हो सकता है. यानी पैगासस लिस्ट में 300 फोन की निगरानी करने की बात आई है तो 6 लाइसैंस के साथ 313 करोड़ से ले कर 358 करोड़ रुपए सालाना खर्च रहा होगा. यह गौर करने वाली बात है कि एनएसओ ने भले इन आरोपों को नाकारा हो लेकिन हाल ही में स्पाईवेयर के दुरुप्रयोग की बात कुबूली भी है.

रेंज औफ टारगेट्स
भारत के संदर्भ में सामने आई पैगासस की टारगेट लिस्ट से सम झा जा सकता है कि अब तक की इस लिस्ट में वे नाम शामिल हैं जो मौजूदा सरकार के राजनीतिक विरोधी रहे हैं या वे पत्रकार हैं जो सरकार के कामों पर सवाल खड़ा करते रहे हैं या वे अधिकारी या नेतागण हैं जिन के साथ कभी न कभी मोदीशाह के साथ प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष कोई विवाद जरूर रहा है.

एनएसओ ने बारबार कहा है कि वे अपनी सेवा को सिर्फ ‘सरकारों’ को ही बेचते हैं, भले भाजपा सरकार ने इस खुलासे के आरोपों का खंडन किया हो लेकिन बात स्पष्टता से नहीं की, तो यह तय है कि बात कहीं इधर ही रुकती दिखाई देती है. ऐसे में कई सवाल हैं जो सीधे सरकार की तरफ इशारा कर रहे हैं. लिस्ट में शामिल अधिकतर पत्रकार दिल्ली बेस्ड हैं जो बड़े मीडिया समूह में काम कर रहे हैं. पैगासस प्रोजैक्ट की रिपोर्ट के अनुसार, लिस्ट में ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के 4 वर्तमान और एक पूर्व पत्रकार हैं. वहीं ‘द मिंट’ से एक रिपोर्टर शामिल है. इसी लिस्ट में ‘इंडियन एक्सप्रैस’, ‘इंडिया टुडे’, ‘टीवी 18’, ‘द हिंदू’ का एकएक पत्रकार शामिल है. इन सभी के फोन में पैगासस डालने की कोशिशों के प्रमाण मिले हैं.

इसी प्रकार ‘द वायर’ के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन समेत अन्य पत्रकारों की स्पष्ट पुष्टि हुई है. इस में एक दिलचस्प बात यह देखी गई है कि इन में से अधिकतर पत्रकार सरकार से जुड़े सीधे मसलों पर रिपोर्टिंग करते रहे हैं. अधिकतर रक्षा, गृह, डिप्लोमैसी, राष्ट्रीय सुरक्षा कवर करने वाले पत्रकार हैं. हालाकि सभी पत्रकार दिल्ली के नहीं हैं, कुछ ऐसे भी हैं जो राज्य स्तर पर पत्रकारिता करते हैं और सरकार से नीतिगत सवाल करते हैं. यह नोट करने वाली बात है कि अंतर्राष्ट्रीय संस्था आरएसएफ ने बीते दिनों उन नेताओं के नाम घोषित किए जो मीडिया के लिए खतरनाक हैं. इस लिस्ट में 37 देशों के नेताओं को रखा गया था जिन में सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी शामिल हैं.

ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि यह देखने में आया है कि निडर और निष्पक्ष पत्रकारों पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं. उन्हें देशद्रोह जैसे गंभीर कानूनों की धाराओं में फंसाया जा रहा है. इस का ताजा उदाहरण किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली प्रैस ग्रुप के संपादक परेश नाथ समेत कई पत्रकारों पर देशद्रोह के फर्जी मुकदमे दर्ज किए जाने से लगाया जा सकता है. ऐसे लोगों में उन सामाजिक कार्यकर्ताओं के नाम भी शामिल हैं जो पिछले सालों गंभीर धाराओं में गिरफ्तार किए गए. एल्गार परिषद और भीमा कोरेगांव मामले में सीधेतौर पर आरोपियों के अलावा गिरफ्तार किए गए लोगों के एक दर्जन से अधिक करीबी रिश्तेदार, दोस्त, वकील और सहयोगी इस निगरानी के दायरे में आए हैं. यह देखने में आया कि एल्गार परिषद के मामले में पहले से ही पैगासस का जाल बिछाया जा चुका था.

‘द वायर’ की रिपोर्ट के अनुसार, लीक हुए रिकौर्ड में तेलुगू कवि और लेखक वरवरा राव की बेटी पवना, वकील सुरेंद्र गाडलिंग की पत्नी मीनल गाडलिंग, उन के सहयोगी वकील निहालसिंह राठौड़ और जगदीश मेश्राम, उन के पूर्व क्लाइंट मारुति कुरवाटकर (यूएपीए के तहत कई मामलों में आरोपी बनाया था और वे 4 साल से अधिक समय तक जेल में रहे थे तथा बाद में जमानत पर रिहा हुए), भारद्वाज की वकील शालिनी गेरा, तेलतुम्बडे के दोस्त जैसन कूपर, केरल के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता, बस्तर की वकील बेला भाटिया, सांस्कृतिक अधिकार और जातिविरोधी कार्यकर्ता सागर गोरखे की पार्टनर रूपाली जाधव, आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता महेश राउत के करीबी सहयोगी और वकील लालसू नागोटी के नंबर भी शामिल हैं.

इसी एल्गार परिषद से जुड़े होने के आरोप में पिछले वर्ष अक्तूबर में 83 वर्षीय स्टेन स्वामी को गिरफ्तार किया गया था जिन का बीती 5 जुलाई को मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया था. फादर स्वामी की मौत के अगले ही दिन अमेरिका की फौरेंसिक एजेंसी आर्सनल कंसंल्ंिटग ने अपनी जांच में दावा किया कि इसी मामले से जुड़े अन्य गिरफ्तार आरोपी सुरेंद्र गाडलिंग के लैपटौप में सुबूत प्लांट किए गए थे.
पैगासस कांड के सामने आने के बाद यह कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं आर्सनल की बात सच है तो पैगासस स्पाईवेयर के साथ उन सुबूतों का मामला जुड़ा हो सकता है. ऐसे ही जेएनयू से जुड़े कुछ छात्रों और कश्मीर नेताओं के नंबर भी पैगासस की लिस्ट में हैक करने के लिए मिलते है. यह प्रकरण सीधा दिखाता है कि सरकार ने पिछले कुछ सालों में जिन लोगों को कथित राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के तहत गिरफ्तार किया है उन में से अधिकतर परिवार और करीबियों समेत पैगासस की लिस्ट में पाए गए.

गैर तो गैर, अपने भी लपेटे में
इसी लिस्ट में वे नाम भी शामिल हैं जिन के चलते इस मामले को भारत में ‘वाटरगेट स्कैंडल’ से जोड़ा जा रहा है. दरअसल, लिस्ट में सामने आए नामों में सब से अधिक सनसनी नाम 3 मुख्य विपक्षी नेताओं का होना है, जिन में एक नाम कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का है और बाकी 2 रणनीतिकार प्रशांत किशोर और तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी के हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राहुल गांधी पर जासूसी लोकसभा चुनाओं को मद्देनजर रख कर की जा रही थी. इस की सनक इतनी थी कि राहुल गांधी के करीबी अन्य 5 लोगों को भी टारगेट में रखा गया था. यह जासूसी 2018 के मध्य से 2019 के मध्य में की गई थी. संभव है कि विपक्षी नेता पर यह सारी जासूसी चुनाव के दौरान चुनावी रणनीति पता लगाए जाने के लिए की जा रही थी.

ऐसे ही पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव के बीच ममता बनर्जी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर के फोन को पैगासस के जरिए हैक किया गया था. इस मसले पर राहुल गांधी ने कहा, ‘‘पैगासस एक ऐसा हथियार है जिसे इसराईल की ओर से आतंकवादी गतिविधियों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए तैयार किया गया है. प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अमित शाह ने इसे हमारे खिलाफ राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है. इस की जांच होनी चाहिए और गृहमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए.’’ ‘द वायर’ के दावे के अनुसार, पैगासस स्पाईवेयर की लिस्ट में खुलासा हुआ कि साल 2019 में कर्नाटक की जनता दल यूनाइटेड (सैकुलर) और कांग्रेस सरकार से जुड़े फोन नंबर संभावित टारगेट में थे. राज्य के जिन प्रमुख नेताओं या उन के करीबी लोगों के नंबर पैगासस की लिस्ट में शामिल होने का दावा इस रिपोर्ट में किया गया है, उन में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री जी परमेश्वर जैसे बड़े नेता शामिल हैं.

हैरानी की बात यह कि इस लिस्ट में विपक्षी नेताओं को टारगेट तो किया ही गया, साथ ही पदासीन मंत्रियों और अपने राजनीतिक सहयोगियों को भी सर्विलांस में रखा गया था. इस में जिन 2 मंत्रियों के नाम सामने आ रहे हैं उन में एक अश्विनी वैष्णव हैं जिन्हें हालिया फेरबदल के बाद आईटी का मंत्री बनाया गया, वहीं, दूसरे जल मंत्रालय के राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल हैं. लिस्ट में भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के निजी सचिव और स्मृति ईरानी के नीचे बतौर ओएसडी काम करने वाले संजय कचरू भी शामिल हैं. साथ ही, विश्व हिंदू परिषद के नेता और मोदी के पुराने विरोधी प्रवीण तोगडि़या का नाम भी इस डेटाबेस में शामिल है. ये वे लोग हैं जिन के साथ बीते सालों में मोदी या भाजपा से आंतरिक विवाद गरमाया है.
जज, महिला, अधिकारी और बिजनैसमैन किसी को नहीं छोड़ा खुलासों के अनुसार, अप्रैल 2019 में भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश और वर्तमान सांसद रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली सुप्रीम कोर्ट की महिला कर्मचारी से संबंधित 3 फोन नंबर भी इसी हैक के दायरे में थे.

महिला ने आरोप लगाया था कि साल 2018 में सीजेआई रंजन गोगोई ने उन का यौन उत्पीड़न किया था. उन्होंने एक हलफनामे में अपना बयान दर्ज कर सर्वोच्च अदालत के 22 जजों को भेजा था. इस घटना के कुछ दिनों बाद ही उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. लीक्ड रिकौर्ड के अनुसार, जिस हफ्ते सीजेआई पर लगाए गए आरोपों की खबर आई थी उसी सप्ताह उन के पति और देवरों से जुड़े 8 नंबरों को टारगेट के तौर पर चुना गया था. डाटा के अनुसार, कुल 11 नंबर उन के और उन के परिवार से संबंधित थे. जाहिर है, महिला का इस सूची में चुने जाने का सीधा संकेत सीजेआई पर लगाए गए यौन उत्पीड़न से जुड़ा था. वही सीजेआई जिन्हें राज्यसभा में स्पैशल गिफ्ट के तौर पर मनोनीत किया गया. खुलासे वाली रिपोर्ट के मुताबिक 60 से अधिक भारतीय महिलाओं के टैलीफोन नंबरों, जिन में गृहिणी, वकील और स्कूल शिक्षक, पत्रकार, वैज्ञानिक, सिविल सेवक और यहां तक कि राजनेताओं के दोस्तों को पैगासस स्पाईवेयर जांच की निगरानी में रखा गया था.

इस में एक बात ध्यान देने वाली है कि महिलाओं का जासूसी कांड में चुना जाना न तो राष्ट्रीय सुरक्षा की पैरवी करता है न ही इमरजैंसी के बहाने में आता है. ऐसे में उन के नंबर पैगासस लिस्ट में होना गंभीर मसला है. यह तो सीधासीधा एक महिला की निजता पर हमला करता है जिस का वचन भारतीय संविधान देता है. पैगासस की लीक्ड लिस्ट डाटा के अनुसार, साल 2018 में सीबीआई बनाम सीबीआई विवाद का हिस्सा रहे पूर्व निदेशक अलोक वर्मा, ए के शर्मा और राकेश अस्थाना व उन के परिजनों के नंबर भी पैगासस लिस्ट में हैं. यह सब तब हुआ जब 23 अक्तूबर को मोदी सरकार ने सीबीआई निदेशक अलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजा था. वर्मा ही नहीं, उन के परिवार में उन की पत्नी, बेटी और दामाद समेत परिवार के 8 लोगों के नंबरों को निगरानी सूची में रखा गया था.

रिपोर्ट के अनुसार, राकेश अस्थाना का नंबर भी उसी समय लिस्ट में शामिल किया गया था. अक्तूबर 2018 में सीबीआई के भीतर हुई उठापटक को कौन भूल सकता है, सारे कलह बाहर खुल कर आने लगे थे और यह तब और बढ़ गया जब निदेशक अलोक वर्मा ने राकेश अस्थाना पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए केस दर्ज करने का आदेश दे दिया था. वर्मा के खिलाफ केंद्र की तरफ से की गई कार्यवाही की बड़ी वजह उन के द्वारा विवादित राफेल मामले की जांच को खारिज न करना था. उस दौरान नरेंद्र मोदी सरकार राफेल मामले के कथित भ्रष्टाचार के मामले में घिर रही थी. ऐसे में जांच केंद्र सरकार के गले की हड्डी बनी हुई थी और अलोक वर्मा जांच करने देना चाहते थे. सत्यापन प्रक्रिया चलने लगी थी और जल्द फैसला लिया जाना था. लेकिन जांच हो, उस से पहले विवाद गरमा गया. कयास लगाए जा रहे हैं कि ऐसे कई हाई प्रोफाइल मामले थे जो अलोक वर्मा के अधीन थे. राफेल मामले के अलावा एक मामला प्रधानमंत्री के मुख्य सचिव पर लगे आरोप का था.

इस लिस्ट में एक जज के नंबर का भी जिक्र है लेकिन नाम का खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है. वहीं मशहूर बिजनैसमैन अनिल अंबानी और एडीए समूह के अधिकारी टोनी जेसुडान द्वारा इस्तेमाल नंबर की पुष्टि भी रिपोर्ट में की गई है. यह सर्विलांस उस दौरान अंजाम दिया गया जब मोदी सरकार द्वारा
36 विमानों के सौदे के 2 वर्षों बाद 2018 में उस पर कथित भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे थे.
भारत के टैलीग्राफ एक्ट को सम झना जरूरी साल 2019, महीना अक्तूबर. जासूसी का मामला तब भी भारत समेत पूरी दुनिया में तूल पकड़ा था. अमेरिका की कंपनी व्हाट्सऐप ने इसराईल की कंपनी एनएसओ पर उस के सौफ्टवेयर पैगासस के जरिए तकरीबन 1400 नंबरों की जासूसी करने का आरोप लगाया था. उन में में कई नंबर भारतीयों के भी थे. मामले ने उस साल शीतकालीन सत्र में जोर पकड़ा. विपक्ष ने तत्कालीन आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद को घेर लिया और जवाब के लिए तलब किया.

उस समय सवाल था कि क्या भारत में पैगासस का उपयोग किया जा रहा है? क्या फोन गैरकानूनी तरीके से टेप किया जा रहा है? उस दौरान भी आईटी मंत्री की तरफ से यही जवाब आया कि ‘जहां तक मेरी जानकारी है कुछ भी अनाधिकृत तरीके से नहीं हो रहा है.’ इस बयान से यही सम झ आया कि भारत में सर्विलांस का जो भी काम हो रहा है वह सब कानून के दायरे में हो रहा है. लेकिन पैगासस से निकले इन लीक्ड नंबर से यह सम झ आ रहा है कि भारत में गैरकानूनी तरीके से लंबे समय से सर्विलांस चल रही है, जिसे या तो सरकार खुद करवा रही है या उस की देखरेख में किसी के द्वारा करवाया जा रहा है.

भारत में टैलीफोन आने के बाद निजता पर खतरे का मसला पैदा हुआ. जाहिर है, इस के आने के बाद नियमकानून बने यह सुनिश्चित करने के लिए कि टैलीफोन पर बातचीत करते हुए किसी की निजता भंग न हो. लेकिन ऐसे मामलों में कुछ विशेष प्रावधान किए गए जो देशविरोधी ताकतों व दुश्मन देशों से बचाव से जुड़े थे. भारत में यह सब टैलीग्राफ एक्ट (1985) के तहत आता है. जैसेजैसे तकनीक बढ़ी टैलीफोन की जगह मोबाइल ने ले ली. इंटरनैट की सुविधा आई, बातचीत करने के माध्यम डैवलप हुए. ऐसे में आईटी एक्ट (2000) बनाया गया. इस में जरूरत के हिसाब से कुछ बदलाव किए गए.

भारतीय कानून के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारों को भारतीय टैलीग्राफ अधिनियम (1985) के तहत इंटरसैप्ट करने का अधिकार दिया जाता है. फोन टेपिंग का यह अधिकार 60 दिन के लिए दिया जा सकता है जिसे जरूरत पड़ने पर 180 दिनों के लिए बढ़ाया जा सकता है. अब यह तो बात पूरी सरकार के पक्ष में जाती दिख रही है. असल पेंच इसी के आगे फंसा हुआ है. किसी डिवाइस को टैप करने के लिए एक्ट में विभिन्न परिस्थितयां जोड़ी गई हैं. किसी पब्लिक इमरजैंसी के मौके पर,
-आम जनता की सुरक्षा के लिए,
-देश की अखंडता व संप्रभुता बनाए रखने के लिए,
– विदेशी राज्यों के साथ सार्वजनिक व्यवस्था बनाए जाने, जैसे संज्ञेय अपराध को रोकने के लिए आदि.
वहीं, आईटी एक्ट 2000 में 19 नवंबर 2019 को केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार, 10 ऐसी एजेंसियां हैं जो फोन टैप कर सकती हैं. बाकी प्रावधान इस टैलीग्राफ एक्ट के इर्दगिर्द ही हैं.

अब सम झने वाला मसला यह है कि सर्विलांस और हैकिंग 2 अलगअलग चीजें होती हैं. आईटी एक्ट 2000 के विशेष प्रावधान सैक्शन 69 के तहत सरकार सर्विलांस करवा सकती है और करवाती भी हैं लेकिन अभी पैगासस के माध्यम से जो फोन के साथ किया जा रहा है उसे हैकिंग कहेंगे. क्योंकि इस पूरे प्रकरण में रिमोट पूरी तरह से हैकर के हाथों में रहता है, वह जैसे चाहे अपने अनुसार उपकरण का इस्तेमाल कर सकता है.

आईटी एक्ट के तहत किसी भी तरह की हैकिंग होने पर साइबर सैल या पुलिस में केस दर्ज कराया जा सकता है. यह एक आपराधिक कृत्य है. कोई भी इस के लिए जिम्मेदार शख्स या संस्था पर केस कर सकता है चाहे पैगासस बनाने वाली एनएसओ ही क्यों न हो. हालांकि, हैकिंग में सजा का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है.

सरकार पर उठते सवाल
‘द गार्जियन’ अखबार के अनुसार, ‘‘भारतीय नंबरों का चयन मोटेतौर पर मोदी की 2017 की इसराईल यात्रा के समय शुरू हुआ जब भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली इसराईल यात्रा की और भारत व इसराईल के बीच अरबों की डिफैंस डील की गई.’’ ऊपर रिपोर्ट में दिए नंबरों से जुड़े नामों में अधिकतर लोगों का मकसद टैलीग्राफ व आईटी एक्ट के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध मारने, आतंकवादी गतिविधि में हिस्सा लेने या अखंडता तोड़ने का हो, यह बात न तो गले के नीचे उतर रही है न जम रही है. क्योंकि इस लिस्ट में सवैधानिक पद पर बैठे जज, अधिकारी, विपक्षी नेताओं, महिलाओं व उन के परिवारों से जुड़े नंबर हैं. यही कारण है कि सरकार इस पूरे मसले पर अपना पक्ष रख नहीं पा रही.

सीधी सी बात है, पैगासस की लिस्ट में निगरानी के लिए दिए अधिकतर लोगों के नंबरों में एक समानता दिखाई देती है और वह यह कि इस लिस्ट में अधिकतर उन लोगों को शामिल किया गया है जिन का भाजपा सरकार से किसी न किसी प्रकार का विवाद जुड़ा रहा है या वे भाजपा के टारगेट में पहले से ही रहे हैं. सीधा सा मतलब है कि यह किसी पार्टी के व्यक्तिगत फायदों को ध्यान में रख कर की गई हैकिंग है.
न्यूज एजेंसी एएनआई के जरिए सरकार ने भले 18 जुलाई को हुए इस सनसनीखेज खुलासे पर चिट्ठी के माध्यम से अपनी सफाई दी हो लेकिन सरकार के तर्क गले नहीं उतरते. इस चिट्ठी का मूल यही था कि ‘सरकार खुद पर लगे इन आरोपों को नकारती है और यह रिपोर्ट भारतीय लोकतंत्र व उस के संस्थानों को बदनाम करने के अनुमानों और आरोपों पर आधारित है.’

वहीं गृहमंत्री अमित शाह भी अपने स्टेटमैंट में कहते हैं, ‘‘आप क्रोनोलोजी सम िझए, ये वे लोग हैं जो भारत के विकास को पसंद नहीं करते.’’ इसी प्रकार से केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, जिन पर खुद जासूसी करवाई गई, सदन में इस जासूसी कांड पर जांच करने से मना करते हुए इसे ‘अतिरंजित और लोकतंत्र को बदनाम करने वाला’ बताते हैं. जबकि देखा जाए तो दुनियाभर में इस जासूसी के खिलाफ जांच कराने की मांग की जा रही है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का नंबर जासूसी लिस्ट में मौजूद होने की जानकारी सामने आने के 24 घंटों के अंदर ही फ्रांस ने मामले की जांच के आदेश दिए. उन के औफिस से कहा गया, ‘‘अगर तथ्य सही हैं तो वे साफतौर पर बहुत गंभीर हैं. मीडिया के इन खुलासों का पूरा पता लगाया जाएगा. कुछ फ्रांसीसी पीडि़तों ने पहले ही शिकायत दर्ज कराने की घोषणा कर दी है और इसलिए कानूनी जांच शुरू की जाएगी.’’ वहीं माना जा रहा है कि इसराईल के वरिष्ठ मंत्रियों की एक टीम इस मामले की जांच के लिए गठित करने जा रहा है.

किंतु हमारे देश के लिए शर्मनाक यह है कि सरकार इस पर जांच तो दूर, स्पष्ट जवाब भी नहीं दे रही है. सरकार खुल कर नहीं कह पा रही कि वह इस तरह की सेवाएं एनएसओ से ले रही है या नहीं, और यदि सरकार हैकिंग करवा रही है तो क्यों और यदि नहीं करवा रही तो कौन करवा रहा है? मसला यह कि इसे कोई दूसरे देश की सरकार करवा रही है तो यह देश की राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध लगने जैसा नहीं है क्या? इसे जानना क्या सरकार का फर्ज नहीं, खासकर तब, जब उन्हीं की सरकार में उन के ही मंत्रियों, देश के जज और अधिकारियों की जासूसी चल रही हो. और यदि यह विदेशी षड्यंत्र का हिस्सा है तो तथाकथित राष्ट्रवादी पार्टी होने का ढोल पीटने वाली सरकार जांच न करवा कर अपने देश के नागरिकों पर इस तरह की जासूसी होने देना चाहती है? चलो विपक्ष और सामाजिक कर्ताओं को छोड़ भी दें तो क्या सरकार यह जानने की इच्छुक नहीं कि उन की पार्टी के मंत्री, नेताओं के सचिव और प्रवीण तोगडि़या जैसे आरएसएस के बड़े नेताओं की जासूसी करवा कौन रहा है? या यह जानने की इच्छुक नहीं कि इतना बड़ा बजट लगा कर कौन देश के लोगों की सूक्ष्म निगरानी करना चाहता है?

अव्वल, क्या यह शर्म की बात नहीं कि जिस एनएसओ कंपनी पर पूरी दुनिया निशाना साधे बैठी है और उस के पैगासस सौफ्टवेयर को लोकतंत्र के लिए घातक बता रही है, वह तक उस पर लगाए आरोपों की जांच की बात कह रही है और कार्रवाई का भरोसा दिला रही है, भले ही उस की इस बात में खास दम न भी हो, क्योंकि यह वही सौफ्टवेयर है जिस की 2018 में सऊदी के पत्रकार जमाल खगोशी की हत्या में भूमिका बताई जाती है, पर भारत सरकार का जांच से मुकरने की वजह पल्ले नहीं पड़ती. सीधी सी बात है, चोर की दाढ़ी में तिनका अटका हुआ है जो साफ दिखाई दे रहा है. खुलासे में निकली ये इतनी संवेदनशील जानकारियां हैं कि निष्पक्ष जांच होने पर आए तो सरकार में बैठे कई उच्च पदासीनों के इस्तीफों की झड़ी लग जाए.

जनता को जंजीरों में जकड़ने की साजिश किसी भी लोकतंत्र में जासूसी स्वीकार्य नहीं हो सकती है. आज तकनीक के जरिए सरकार का सत्ता में बने रहने के लिए अपने विपक्ष और विरोधियों, यहां तक कि अपने करीबियों पर जासूसी कराना उस की कमजोरी और अक्षमता दिखाता है. असल में यह राष्ट्रद्रोह और निजता पर हमला है. ‘पैगासस प्रोजैक्ट’ रिपोर्ट के सनसनीखेज खुलासे से यह खुल कर सामने आ गया है कि मौजूदा सरकार सरकारी तंत्र का अपने राजनीतिक लाभ के लिए दुरुप्रयोग कर रही है.

कई सरकार समर्थक लोगों का कहना है कि अगर इस प्रकार की हैकिंग की भी गई तो इस में दिक्कत क्या है, जरूर उन के पास छिपाने लायक कुछ होगा, वरना एतराज क्यों होता? यह कुतर्क है, क्या कोई भी अपना जीमेल, बैंक अकाउंट का पासवर्ड सब को बता सकता है? क्या आप किसी को भी अपने बाथरूम और बैडरूम में तांका झांकी करने दे सकते हैं? नहीं न. इस का अर्थ यह तो नहीं कि फलां व्यक्ति संदिग्ध कृत छिपाने लायक काम करता है. मूल बात यह है कि किसे क्या बताना है, कितना बताना है, यह खुद व्यक्ति के नियंत्रण में होना चाहिए. सार्वजनिक जीवन बिताने वाले कोई भी नेता या अधिकारी पारदर्शिता से बंधे होने चाहिए न कि हैकिंग से.

फर्ज करें, सरकारें अगर आज फोन में अपने मुख्य टारगेट की जासूसी के लिए घुस कर इस तरह से हैकिंग कर रही हैं, कल को अगर यह उपक्रम सस्ता होता है तो सरकार के लिए कितना मुश्किल रह जाएगा उन सभी लोगों के बैडरूमबाथरूम तक पहुंच जाना जो उस की बातों से सहमत नहीं हो रहे, जो आटेदाल, पैट्रोलडीजल के बढ़ते दामों से तंग आ चुके हैं और सरकार को बदलना चाहते हैं. आज नेताओं को इस जासूसी के लिए चुना गया, पत्रकारों को टारगेट किया गया क्योंकि विरोध की पहली आवाज यहीं से आती है. इन चीजों को रोका नहीं गया, जांच नहीं हुई तो बहुत दूर नहीं कि आम लोगों को भी इस के रडार में लाया जाए. क्या यह लोकतंत्र का गला दबाने का मुख्य हथियार के रूप में नहीं उभरेगा? इस की कोई गारंटी है, खासकर उस सरकार की जो ठीक से जवाब तक नहीं दे रही है.

यह न भूलें कि जो इसराईली सरकार ऐसा सौफ्टवेयर बनवा सकती है वह किसी भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के फोन की भी हैकिंग कर सकती है. हर सरकार आज ब्लैकमेल की शिकार हो सकती है.
मोदी सरकार के आने के बाद से देश का हर प्रकार से नुकसान ही हुआ है. सरकार हर क्षेत्र में विफल रही है, अर्थव्यवस्था बेपटरी हो चुकी है, बेरोजगारी को ले कर युवा दरदर भटक रहे हैं, सरकारी योजनाएं धूल खा रही हैं, गरीब भुखमरी की कगार पर हैं, मध्यवर्ग गरीबी की तरफ बढ़ रहा है और उच्चवर्ग का धंधा चौपट हुआ पड़ा है.

सरकार जानती है कि उस ने जनता के लिए कुछ भी नहीं किया है, कहीं कोई छोटी सी भी हलचल उसे सत्ता से बेदखल कर सकती है. यही कारण है कि हर प्रकार से सरकार, गैरकानूनी तरीके से भी, हर छोटी हलचल को भांप उसे अपने रास्ते से हटा देना चाहती है. यह सरासर जनता के ओपिनियन का गला दबाने जैसा है. लोगों की सोच पर नियंत्रण करने जैसा है. सरकार जनता के गले में गुलामी की जंजीर बांध देना चाहती है. वह इस के लिए जनता को धार्मिक धंधेबाजी में उल झाती है ताकि वह इन मसलों पर सोचनासम झना ही बंद कर दे.

जासूसी के विवादित मामले

देश में जासूसी कराने का यह पहला मामला नहीं है. भारत में ऐसे पहले भी कई बार मामले सामने आए हैं, जहां विरोधियों के फोन टेप हुए और खासे विवाद खड़े हुए. एक मामले में तो सरकार ही गिर गई और एक मामला ऐसा कि भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया. लेकिन ध्यान रहे, पैगासस वाले मामले को इन सब से अलग आंका जा रहा है, यहां विवाद सिर्फ फोन टेपिंग जासूसी का नहीं, बल्कि फोन हैकिंग से जुड़ा है. आइए जानते हैं क्या थे वे मुख्य मामले-

रामकृष्ण कांड : साल था 1988, प्रधानमंत्री राजीव गांधी बोफोर्स मामले में बुरी तरह घिर चुके थे. इस बीच मीडिया में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े द्वारा फोन टेपिंग का मामला उछलने लगा. राजीव गांधी ने मौका पा कर इस मामले को हवा देने के लिए जांच के आदेश दे दिए. जांच में पता चला कि मुख्यमंत्री के इशारे पर विपक्ष के नेताओं की जासूसी की गई. चौतरफा दबाव के चलते रामकृष्ण हेगड़े को इस्तीफा देना पड़ गया.

चंद्रशेखर कांड : साल 1991, प्रधानमंत्री थे चंद्रशेखर. दरअसल, हरियाणा के 2 मुख्यमंत्री राजीव गांधी के घर की निगरानी करते पकड़े गए. जिस के बाद राजीव और चंद्रशेखर की तल्खियां बढ़ गईं. कांग्रेस ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर की सरकार गिर गई. नीरा राडिया : भारतीय आयकर विभाग ने 2008-9 के बीच नीरा राडिया की पत्रकार, राजनेताओं और व्यापारियों के साथ बातचीत रिकौर्ड की. इस बात में भ्रष्टाचार के लेनदेन के आरोप सामने आए. 300 से अधिक फोन टेप किए गए. जिन में नेता और बिजनैसमैन के नामों का खुलासा हुआ. इसी मामले के बाद संचार मंत्री ए राजा को इस्तीफा देना पड़ गया.

मोदी, शाह और महिला विवाद 2013: यह विवाद मोदीशाह के लिए सब से शर्मनाक विवाद माना जाता है. आरोप था कि मोदी के इशारे पर अमित शाह एक आयुक्त से एक महिला की जासूसी करवा रहे थे. अमित शाह की टेप रिकौर्डिंग से इस का खुलासा हुआ था. इस प्रकरण में महिला की बेहद निजी जासूसी, जैसे महिला के हवाई अड्डे, होटल, शौपिंग मौल, जिम हर जगह आनेजाने, किस से मिलती है इत्यादि गतिविधियों का पता लगाया गया, यहां तक कि मोबाइल डाटा खंगाला गया.

अभिनेत्री पायल घोष,एकता जैन सहित कई महिलाएं ‘नारी शक्ति आइकॉन अचीवर अवार्ड 2021’ से हुईं सम्मानित

मशहूर फिल्म अभिनेता कल्याण जीजा ना और दादा साहब फाल्के आइकॉन अवार्ड आयोजन समिति द्वारा मुंबई के रंग शारदा ऑडिटोरिय में मुंबई में ‘नारी शक्ति आइकॉन अचीवर अवार्ड 2021’ का आयोजन किया गया, जहां अपने-अपने क्षेत्र  में विशेष योगदान के लिए कई महिलाओं को सम्मानित किया गया.यह सम्मान समारोह देश की महान महिला रानी लक्ष्मी बाई, सावित्री बाई फुले, इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, मदर टेरेसा आदि जैसी वीरांगनाओं से प्रेरित है.

इस अवार्ड समारोह में अभिनेत्री पायल घोष ,षीला षर्मा,एकता जैन,सुप्रिया के अलावा आफ्टर नूनवॉइस की संपादक वैदेही तमन, मंजूलोढ़ा , समाज से विका डॉक्टर अर्चना जैन , शशि शर्मा और कई अन्य महिलाओं को सम्मानित किया गया.

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इसके बाद अभिनेता कल्याण जी जाना ने कहा-‘‘महिलाएं समाज की अभिन्न अंग हैं और उन्हें सम्मानित करना गर्व की बात है. हमारे देश में महिलाओं का स्थान सर्वोच्च है.ऐसे में उनके द्वारा किए गए कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए इस अवार्ड का आयोजन किया गया.अभी देश ने महामारी का दौर झेला है, जिसमें महिला डॉक्टर से लेकर एक सफाई कर्मी तक ने अपनी जान पर खेलकर लोगों को बचाने का साहस दिखाया.

तो वहीं ओलंपिक हो या दूसरे अन्य  क्षेत्र महिलाओं ने यह साबित किया कि वह किसी से कम नहीं हैं.ऐसे में यह ‘नारी शक्ति आइकॉन अचीवर अवार्ड 2021’उनके लिए एक छोटा सा सम्मान है.
कल्याण जी जाना ने आगे कहा-‘‘नारी शक्ति आइकॉन अचीवर अवार्ड 2021 का सफल आयोजन हर्ष की बात है.हमने कोविड नियमों का सख्ती से पालन करते हुए  इस कार्यक्रम को सफल बनाया.इसमें हमें अंकिता जाना, भेरू जैन, पांडरी शेट्टी, मिलन जाना, चारुल मलिक, सिमरन आहूजा, अबू अब्दुल्ला, संजय भूषण पटियाला, विजय पाटिल, राजकाले, सूरज माते, पीयूष सक्सेना और वीजेराम का सहयोग मिला.

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इसके अलावा एस के एम एच फिल्म्स प्रोडक्शन एंड बुलमैन रेकॉर्ड्स के साथ ग्लोबलसन शाइन ट्रेडिंग सर्विसप्रा. लि. , श्री मलबदीप रफ्यूम्स कारपोरेशन का साथ मिला.इसके अलावा डीपीआई ए एफ रोटी और कपड़ा बैंक, के जेवाटर एंड के  जे टॉकी जफ्रीप्ले ओटीटी प्लेटफार्म का सहयोग मिला.हम उनका भी आभार व्यक्त करते हैं.’’

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