लेखक- चितरंजन भारती

यह कर्तव्यबोध था, जिस की वजह से सरिता ने अपने बच्चे से ज्यादा दूसरे अजन्मे बच्चे की फिक्र की. उस ने घड़ी देखी और उठने को हुई, तभी नर्स लीला आ कर बोली, ‘‘आप जा रही हैं मैडम.अभीअभी एक डिलीवरी केस आ गया है. अभी तक डाक्टर श्वेता नहीं आई हैं. ऐसे में उसे क्या कहूं?’’ वह जातेजाते रुक गई. अभी आधे घंटे पहले वह औपरेशन थिएटर से निकली थी कि एक नया केस सामने आ गया है. वह करे तो क्या करे, आज मुन्ने का जन्मदिन है. कोरोना और लौकडाउन की वजह से घर में और कोई शायद ही आए या न आए, इसलिए उस ने उस से प्रौमिस कर रखा था कि वह शाम तक अवश्य आ जाएगी. कुछ सोच कर वह बोली, ‘‘ठीक है, मरीज को चैक करने में हर्ज ही क्या है.

तब तक डाक्टर श्वेता आ जाएंगी.’’ उस ने फिर से गाउन और ग्लव्स पहने. पीपीई किट का पूरा सैट पहन कर वह लीला के साथ ओपीडी की ओर बढ़ गई. ‘‘मैडम, वह कोरोना पेशेंट भी है,’’ लीला ने उसे चेतावनी सी दी, ‘‘आप को इस में देर लग सकती है. आप धीरे से निकल लें. आप की ड्यूटी तो पूरी हो ही चुकी है. डाक्टर श्वेता जब आएंगी, वे देख लेंगी.’’ ‘‘अपनी आंखों के सामने पेशेंट को देख हम भाग नहीं सकते लीला,’’ डाक्टर सरिता मुसकरा कर बोली, ‘‘कितनी उम्मीद के साथ एक पेशेंट अस्पताल में हमारे पास आता है. हम उसे अनदेखा नहीं कर सकते. तब और, जब हम इसी के लिए सरकार से सुविधाएं और वेतन पाते हों और डिलीवरी के मामले में तो यह एक नहीं, दोदो जिंदगियों का सवाल हो जाता है.’’ उस के सामने एक महिला प्रसव पीड़ा से कराह रही थी. पेशेंट का चैकअप करने के बाद वह थोड़ी विचलित हुई. मगर शीघ्र ही वह खुद पर नियंत्रण सी करती बोली, ‘‘कौम्पिलिकेटेड केस है लीला. इस का सिजेरियन औपरेशन करना होगा. तुरंत टीम को तैयार हो कर आने को कहो.’’ ‘‘आप भी मैडम क्या कहती हैं. श्वेता मैडम को आने देतीं.’’ ‘‘मैं जो कहती हूं, वह करो न. मैं इसे छोड़ कर कैसे जा सकती हूं? वार्डबौय को तैयार हो कर शीघ्र आने को बोलो. हम देर नहीं कर सकते.’’ अपनी टीम के साथ इस सिजेरियन औपरेशन को करने में उसे 3 घंटे लग गए थे.

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