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भाई भाई न रहा

‘‘मेरे सम्मानित बड़े भाई मुकेश और उन की पत्नी नीता को मौजूदा कठिन समय के दौरान मेरे साथ खड़े रहने, हमारे मजबूत पारिवारिक मूल्यों के प्रति सच्चे रहने के महत्त्व का प्रदर्शन करने के लिए मेरा हार्दिक धन्यवाद,’’ यह कहा था अनिल अंबानी ने. 2002 में धीरूभाई अंबानी की मृत्यु के बाद अनिल और मुकेश अंबानी पिता के कारोबार को ले कर लड़ते रहे और 2005 में दोनों के बीच रिलायंस एंपायर का बंटवारा हो गया. अनिल अंबानी अपनी फर्म रिलायंस कम्युनिकेशंस और टैलीकौम दिग्गज एरिक्सन के बीच एक सौदा टूटने के बाद पैसे का भुगतान करने में विफल रहे. ऐसे में मुकेश अंबानी ने छोटे भाई का भारी कर्ज चुकाया जिस से वह जेल जाने से बच गया. उपरोक्त उद्गार तब अनिल अंबानी ने बड़े भाई के सम्मान में कहे थे. ऐसी घटनाएं, बातें जब सामने आती हैं तब महसूस नहीं होता कि खून के रिश्तों का प्यार दिल के कोने में कहीं न कहीं तो दबा ही रहता है.

हम कितनी ही नफरत, द्वेष, ईर्ष्या क्यों न कर लें लेकिन जब अपने भाईबहन को मुशकिल में देखते हैं तो दिल में कुछ दरकने सा लगता है. ऐसे में सवाल है कि अपने ही भाईबहनों के बीच खासकर भाईभाई में ईर्ष्या प्रतिद्वंद्विता पैदा होती ही क्यों है? आधुनिक समय में रिश्तों की परिभाषा बदल चुकी है. जबकि कई धार्मिक ग्रंथों में बड़े भाई को सर्वोपरि रखा गया है. परिवार में बड़े भाई की बात कानून की तरह मानी गई है. महाभारत में वर्णित है कि लालच की वजह से कौरव और पांडवों में युद्ध हुआ. आज के समय में महाभारत की तरह अपने स्वार्थों को ले कर भाईबहनों में ईर्ष्या, लड़ाई झगड़ा देखने को मिल रहा है. कई बौलीवुड फिल्में भी इस थीम को ले कर बनी हैं. क्या है कारण एकसाथ बड़े हुए बच्चों के बीच जलन भाव क्यों होता है. कहते हैं कि बच्चों के बीच तुलना कर के मातापिता बच्चे में जलन पैदा करते हैं. दूसरे बच्चे के आने पर पहला बच्चा भी सब की तरह खुश होता है. आने वाले अपने नए भाई से वह भी प्यार करता है,

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पर जब सब का ध्यान उस की तरफ ज्यादा होता है तो उसे असुरक्षा का भाव सताने लगता है. तब पहला बच्चा खुद को अकेला महसूस करने लगता है. उसे लगता है कि उस का हक उस से छिन गया है, जैसे उस का कमरा, खिलौने, मम्मी की गोद आदि. जलन की वजह से वह दूसरे बच्चे के साथ अजीबअजीब हरकतें करने लगता है, मसलन उसे अकेले में मारना, डराना, उस का काम बिगाड़ना, अपने से आगे निकलने न देना आदि. यदि मातापिता बचपन की इस ईर्ष्या को सही ढंग से संभालने में नाकाम रहते हैं तो आगे चल कर इस के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं. आप बच्चे में ईर्ष्या और दूसरों से श्रेष्ठ होने का भाव जैसी सोच को अलग नहीं कर सकते. कई बार ऐसा समय भी आता है जब आप को अपना प्रिय भी बुरा लगने लगता है. ज्यादातर मामलों में यह देखा गया है कि 2 भाइयों या 2 बहनों की तुलना में भाईबहन के रिश्ते में ‘सिबलिंग राइवलरी’ की भावना कम होती है.

कुदरती भाई और बहन का व्यक्तित्व अलग होता है. उन के शौक, इच्छाएं, काम करने के तरीके अलग होते हैं. इसी कारण भाईबहन के बीच तुलना कम होती है, जबकि 2 बहनों के बीच तुलना अधिक होती है कि देखो, बड़ी कितनी जबान चलाती है और छोटी कितनी सलीकेदार है. इसी तरह 2 भाइयों के बीच भी तुलना करते हुए कहते हैं कि एक हर काम में कितना तेज है और दूसरा उतना ही फिसड्डी. बचपन में की गई यह तुलना बच्चों के बीच में प्रतिद्वंद्विता और ईर्ष्या बढ़ा देती है. बहनों में यह फिर भी कम होती है क्योंकि शादी कर के दोनों अलगअलग दूसरे घर यानी अपनीअपनी ससुराल में चली जाती हैं. अपने अलग घरपरिवार में रम जाती हैं. बहनों के बीच की यह दूरी उन में प्यार को बढ़ा देती है. ईर्ष्या भावना अकसर खत्म हो जाती है. लेकिन भाइयों को तो एक ही घर में रहना होता है. चलो, नौकरी के चलते अलग भी रहना पड़ जाए लेकिन पिता के घर, पैसे पर उन का बराबर का हक रहता है और अपना हक कोई क्यों छोड़ना चाहेगा. विनोद और उस के बड़े भाई संचित के बीच बचपन से ही कोई खास भाईचारा न था.

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बड़े होतेहोते यह फासला और चौड़ा होता गया. बड़ा भाई संचित अपनी नौकरी के चलते विदेश में सैटल हो गया. छोटा भाई विनोद अपने ही देश में मातापिता के साथ रह कर अपनी जिम्मेदारियां निभा रहा था. उसे लगता था कि बड़ा भाई जब विदेश में ही सैटल है तो यहां भारत में मातापिता की संपत्ति, रुपएपैसे पर सिर्फ उस का हक है. पिता की मृत्यु के पश्चात कुछ कानूनी अड़चनों के कारण मां ने जब घर विनोद के नाम करना चाहा तो संचित ने विरोध किया कि घर में उस का भी हिस्सा है. उस की भी बात सही थी कि बेशक मु झे भारत में आ कर सिर्फ एक महीनाभर ही रहना पड़े लेकिन रहूं अधिकार भावना के साथ तो पूरे हक के साथ आऊं. कोई बात हो जाए तो मु झे यह सुनने को न मिले कि यह घर हमारा है, तुम्हारा इस पर कोई हक नहीं. विनोद की पत्नी ने पति के खूब कान भरे कि हमारे पास इस मकान के सिवा है ही क्या? उस पर भी भाईसाहब अपना हक चाहते हैं. यहां देश में हम मातापिता की सेवा कर रहे हैं, सब नातेरिश्तेदारी निभा रहे हैं. वहां विदेश में रह कर वे तो सब जिम्मेदारियों से दूर हैं,

रुपएपैसे की कोई कमी नहीं, फिर भी यहां मकान में अपनी टांग अड़ाए रखना चाहते हैं. विनोद को अपनी पत्नी की बातें सही लग रही थीं. भाई के प्रति अपनापन पहले ही कम था, अब गुस्सा, द्वेषभाव और बढ़ गया. ऐसे में मामाजी सही वक्त पर आ गए और उन्होंने विनोद को सम झाया कि संचित गलत नहीं है. वह सिर्फ कानूनी दस्तावेज में अपना नाम चाहता है. न उस को वापस कभी इंडिया आ कर रहना है, न ही उसे कोई रुपएपैसे का लालच है. बस अपने नाम के साथ वह इस घर से जुड़ा रहना चाहता है. इस घर पर ताउम्र तुम्हारा ही हक रहेगा. विनोद के जेहन में बात उतर गई. भाई के प्रति कड़वाहट कम हो गई. विनोद और संचित के बीच की बात तो बिगड़तेबिगड़ते बन गई लेकिन सब के साथ ऐसा नहीं होता. आएदिन सुनने में आता है, अखबारों में पढ़ते हैं, चैनल्स पर खबरें सुनने को मिल जाती हैं कि फलांफलां भाइयों की आपसी रंजिश ने खून की नदी बहा दी. कितना दुख होता है न यह सब देखसुन कर. भाइयों के बीच तो रिश्ता सब से प्यारा, सुंदर और स्नेहपूर्ण होना चाहिए. सुखदुख में सब से करीब वही होने चाहिए. हमारे अपने ही तो होते हैं जो सुखदुख में सब से पहले याद आते हैं.

दुख की घड़ी में जब प्यार से बड़ा भाई गले लगा ले तो मानो सारे दुख आंसू के रास्ते बाहर बह जाते हैं. फिर क्यों हम इस अनमोल रिश्ते को कड़वाहट से भर देते हैं. रुपए, पैसे, जमीन, जायदाद सब इंसान दोबारा पा सकता है लेकिन अपनों को एक बार खो दिया तो वे जिंदगीभर दोबारा नहीं मिलेंगे. एक बात क्यों नहीं हम अपने दिमाग में बैठा लेते कि रुपयापैसा प्यार से बढ़ कर नहीं होता. हंसीखुशी, जिंदगी का चैन ही इंसान को मीठी नींद देता है और यह हंसीखुशी हमें अपने मातापिता, भाईबहनों, करीबी रिश्तों से मिलती है. उन सब के साथ बैठना, हंसनाखेलना, मौजमस्ती करना- यही तो है जिंदगी का मजा. जरा सोच कर देखिए सब भाईबहन साथ बैठे हों. हंसीखुशी का माहौल, चाय का दौर चल रहा हो, भाभियों के साथ चुटकियां ली जा रही हों, ऐसा दिलकश नजारा सोच कर ही सुकून दे रहा है. सच में हम यह सब जी रहे हों तो जिंदगी का इस से बड़ा सुख कोई नहीं. द्य भाई तो भाई है भाइयों के बीच प्यार बचपन से ही मजबूत हो तो- द्य इस के लिए पहल मातापिता को ही करनी पड़ेगी. वे बच्चों में भेदभाव न करें.

-मातापिता सभी बच्चों को साथसाथ रखें. हर चीज बराबरी में होगी तो झगड़ा नहीं होगा. द्य भाइयों में तुलना कभी न करें.

– बच्चों के बीच में एकदूसरे के लिए प्यार, मदद करने की भावना, अपनापन देने की भावना भरने का काम मातापिता से बेहतर कोई नहीं कर सकता. बड़े होने पर.

-अपने भाई को किसी से कम न सम झें. द्य बड़े भाई को सम्मान दें और बड़ा भाई छोटे को भरपूर प्यार.

-जहां रुपएपैसे की बात बीच में आए, मामला बिलकुल साफ रखें. सभी अपनी नीयत साफ रखें. द्य भाइयों के बीच लालच बिलकुल न आए. हमेशा सब बराबर का हो.

-बड़ा भाई छोटे की मदद करने में पीछे न रहे और छोटा भाई बड़े का कहना मानने में पीछे न रहे.

– संपत्ति के बंटवारे की बात हो तो शांति के साथ बैठ कर सब फैसला लें. किसी के मन में किसी बात को ले कर मैल न हो. द्य भाई एकदूसरे को कितना प्यार करते हैं, यह जताना भी जरूरी है. इस से प्यार और बढ़ता है.

-हमेशा याद रखें, अपने भाई से बढ़ कर कोई दोस्त नहीं हो सकता. बना कर तो देखिए.

गेंदा फूल की खेती

लेखक-प्रो. रवि प्रकाश मौर्य

गेंदा फूल को शादीब्याह, जन्मदिन, सरकारी व निजी संस्थानों में आयोजित विभिन्न समारोहों के अवसर पर, पंडाल, मंडपद्वार और गाड़ी, सेज आदि सजाने व अतिथियों के स्वागत के लिए माला, बुके, फूलदान सजाने में भी इस का प्रयोग किया जाता है. गेंदा की खेती खरीफ, रबी व जायद तीनों मौसम में की जाती है. पूर्वांचल में गेंदा की खेती की काफी संभावनाएं हैं, बस यह ध्यान रखना है कि कब कौन सा त्योहार है, शादी के लग्न कब हैं, धार्मिक आयोजन कबकब होते है. इस को ध्यान में रख कर खेती की जाए, तो ज्यादा लाभदायक होगा. गेंदा के औषधीय गुण भी बताए जाते हैं. खुजली, दिनाय और फोड़ा में हरी पत्ती का रस लगाने पर रोगाणुरोधी का काम करती है. साधारण कटने पर पत्तियों को मसल कर लगाने से खून का बहना रुक जाता है. मिट्टी और खेत की तैयारी गेंदा की खेती के लिए दोमट, मटियार दोमट व बलुआर दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है.

भूमि को समतल करने के बाद एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर के और पाटा चला कर मिट्टी को भुरभुरा बनाने व कंकड़पत्थर आदि को चुन कर बाहर निकाल दें और सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियां बना दें. बीज, नर्सरी व प्रसारण गेंदा का प्रसारण बीज और कटिंग दोनों विधि से होता है. इस के लिए तकरीबन 100 ग्राम बीज प्रति बीघा (2,500 वर्गमीटर प्रति 1 हेक्टेयर का चौथाई भाग) में जरूरत होती है, जो 100 वर्गमीटर के बीज शैया में तैयार किया जाता है. बीज शैया में बीज की गहराई 1 सैंटीमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. जब कटिंग द्वारा गेंदा का प्रसारण किया जाता है, उस में ध्यान रखना चाहिए कि हमेशा कटिंग नए स्वस्थ पौधे से लें, जिस में मात्र 1-2 फूल खिला हो. कटिंग का आकार 4 इंच (10 सैमी.) लंबा होना चाहिए. इस कटिंग पर रूटैक्स लगा कर बालू से भरे ट्रे में लगाना चाहिए. 20-22 दिन बाद इसे खेत में रोप देना चाहिए. रोपाई का समय और दूरी गेंदा फूल खरीफ, रबी, जायद तीनों सीजन में बाजार की मांग के अनुसार उगाया जाता है. लेकिन इस के लगाने का सही समय सितंबरअक्तूबर महीना है.

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विभिन्न मौसम में अलगअलग दूरी पर गेंदा लगाया जाता है, जो निम्न तरह से है : खरीफ (जून से जुलाई) : 60 × 45 सैमी. रबी (सितंबरअक्तूबर) : 45 × 45 सैमी. जायद (फरवरीमार्च) : 45 × 30 सैमी. व्यावसायिक किस्में पूसा नारंगी, पूसा वसंती और पूसा अर्पिता खास हैं. खाद व उर्वरक मिट्टी परीक्षण के आधार पर उर्वरक का इस्तेमाल करना चाहिए. खेत की तैयारी से पहले 50 क्विंटल कंपोस्ट प्रति बीघा की दर से मिट्टी में मिला दें. इस के बाद 33 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 34 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश का इस्तेमाल प्रति बीघा की दर से खेत की आखिरी जुताई के समय मिट्टी में मिला दें. 16.5 किलोग्राम यूरिया रोपाई के एक माह बाद और इतनी ही मात्रा रोपाई के 2 माह बाद इस्तेमाल करें. सिंचाई खेत की नमी को देखते हुए 5-10 दिनों के अंतराल पर गेंदा में सिंचाई करनी चाहिए.

यदि वर्षा हो जाए, तो सिंचाई नहीं करें. पिंचिंग रोपाई के 30-40 दिन के अंदर पौधे की मुख्य शाकीय कली को तोड़ देना चाहिए. इस क्रिया से यद्यपि फूल थोड़ा देर से आएंगे, लेकिन प्रति पौधा फूलों की संख्या और उपज में वृद्धि होती है. निकाईगुड़ाई व खरपतवार प्रबंधन तकरीबन 15-20 दिन पर जरूरत के मुताबिक निकाईगुड़ाई करनी चाहिए. इस से भूमि में हवा का संचार ठीक से होता है और खरपतवार नष्ट हो जाते हैं. फूल की तुड़ाई रोपाई के 60 से 70 दिन पर गेंदा में फूल आता है, जो 90 से 100 दिनों तक आता रहता है,

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इसलिए फूल की तुड़ाई/कटाई आमतौर पर सुबह या शाम के समय की जाती है. फूल को थोड़ा डंठल के साथ तोड़ना/काटना सही होता है. फूल को डब्बा, जिस में चारों तरफ व नीचे में अखबार फैला कर रखना चाहिए और ऊपर से फिर अखबार से ढक कर बंद करना चाहिए. पौध स्वास्थ्य प्रबंधन लीफ हापर, रैड स्पाइडर इसे काफी नुकसान पहुंचाते हैं. इस की रोकथाम के लिए मैलाथियान 50 ईसी 2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. उपज गेंदा फूल की उपज उस की देखभाल पर निर्भर करती है. आमतौर पर 30-35 क्विंटल फूल प्रति बीघा मिल जाते हैं.

अब तक प्रदर्शित सभी सुपर हीरो प्रधान फिल्मों से परे पहली भारतीय सुपर हीरो फिल्म होगी ‘‘मिन्नलमुरली’’

हौलीवुड में ‘डार्कनाइट’, ‘आयरन मैन’,‘ब्लैक पैंथर’,‘वंडर ओमन’,‘दअवेंजर्स’, ‘स्पाइडरमैन’, ‘बैटमैन’और‘सुपरमैन’सहित कई सुपर हीरो प्रधान बड़े बजट की फिल्मों ने सफलता के कई परचम लहराए हैं. मगर अब तक सुपर हीरो वाली एक भी भारतीय फिल्म सफलता नही दर्ज करा पायी है.

मगर अब मलयालम सिनेमा के सर्वाधिक लोकप्रिय अभिनेता टोविनोथाॅमस पहली भारतीय व मलयालम सुपरहीरो प्रधान फिल्म ‘‘मिन्नालमुरली’’ में सुपर हीरो की शीर्ष भूमिका में नजर आने वाले हैं.अभिनेता टोविनोथाॅमस के संग फिल्म के निर्माता व निर्देशक का दावा है कि उनकी फिल्म ‘‘मिन्नलमुरली’’पहली भारतीय फिल्म साबित होगी, जो कि अब तक बनी सभी सुपर हीरो वाली फिल्मो से परे होने के अलावा नया रिकार्ड बनाने वाली है.मलयालम भाषा में फिल्मायी गयी इस फिल्म को ‘‘नेटफ्लिक्स’’ने हिंदी,अंग्रेजी,तमिल व कन्नड़भाषाओं में डबकर आगामी 24 सितंबर को स्ट्रीम करने का निर्णय लिया है.

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फिल्म‘‘मिन्नलमुरली‘’की कहानी एक साधारण आदमी जय साॅन से सुपर हीरो मुरली बनने की कहानी है.जय साॅन को बिजली का झटका लगता है और इससे उसे विशेष शक्तियां मिल जाती हैं.

‘वीकेंड ब्लॉकबस्टर्स’’के बैनर तले निर्मित फिल्म ‘‘मिन्नलमुरली’’की निर्माता सोफिया पाॅल वनिर्देशक बासिल जो सेफ हैं. फिल्म में सुपर हीरो मिन्नल मुरली यानी कि षीर्ष भूमिका मलयालम सिनेमा के सुपर स्टार टोविनोथाॅमस है.तथा फिल्म में गुरुसोमासुंदरम, हरि श्री अशोकन और अजूवर्गी सभी प्रमुख भूमिकाओं में हैं.

फिल्म ‘‘मिन्नलमुरली’ ’को

लेकर उत्साहित निर्देशक बेसिल जोसेफ ने कहा-“हम एक ऐसा सुपर हीरो बनाना चाहते थे, जिससे लोग भावनात्मक स्तर पर जुड़ सकें और उससे कनेक्ट कर सकें. यूॅॅं तो सुपर हीरो प्रधान फिल्म का सारादारो मदार एक्शन पर होता है,

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मगर हमने एक्शन से अधिक ध्यान मजबूत कथा पर केंद्रित किया,जिसमें एक्शन की भी प्रचुरता है.हमारी यह फिल्म वास्तव में रोमांचक होगी,जिसके प्रदर्शन का मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा हॅूं. यह फिल्म हमारी पूरी टीम के लिए एक ड्रीम फिल्म है और मुझे खुशी है कि फिल्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम होने वाली है.”

फिल्म की निर्माता सोफिया पॉल ने फिल्म के निर्माण के बारे में बात करते हुए कहा-“एक निर्माता के रूप में यह मेरा सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण लेकिन संतुष्टिदायक अनुभव रहा. मुझे इस यात्रा पर गर्व है.हम इस भारतीय/स्थानीय सुपर हीरो मिन्नालमुरली के लिए अभिनेताओं,तकनीशियनों और प्लेटफार्मों की सर्वश्रेष्ठ टीम को एक साथ लेकर आए हैं.हमारी यह सुपर हीरो फिल्म हौलीवुड व अन्यभाषाओं की सुपरहीरों फिल्मों से परे है.हमारी फिल्म मूलतःभावनाओं और परिस्थितियों की एक मानवीय कहानी है.

मैं‘मिन्नलमुरली’को लेकर बहुत उत्साहित और गौरवान्वित महसूस कर रही हूं.मुझे खुशी है कि हमें अपनी इस मलयालम फिल्म के साथ नेटफिलक्स का साथ मिला,जो कि अंग्रेजी, हिंदी,मलयलाम,तमिल,कन्नड़वतेलगू में एकसा प्रदर्षित की जाएगी.’’

मलयालम सिनेमा के सर्वाधिक लोकप्रिय 32 वर्षीय अभिनेता टोविनोथाॅम सने 2012 में सफल मलयालम फिल्म ‘‘ प्रभु विन्टेमक्कल’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था.‘स्टाइल’,‘ओरोमेक्सिकन अपरथा’, ‘इन्टेउमंटेपेरू’ जैसी फिल्मों में दोहरी भूमिका निभायी.2012 से अब तक वह मलयालम व तमिल की 40 फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.जबकि इन दिनों 11 फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं.

पांच लघु फिल्में व एक वेबसीरीज भी की.टोविनोने 2105 में उन्होने सर्वश्रेष्ठ सहकलाकार का फिल्म फेअर अवार्ड हासिल किया था. उन्हे   ‘केरला फिल्म क्रिटिक एसोसिएषन’द्वारा भी पुरस्कृत किया जा चुका है.टांेविनोथाॅमसने ‘किलोमीटर एंड किलोमीटर्स’तथा ‘काला’’फिल्मों में अभिनय करने के साथ ही इनका निर्माण व निर्देशन भी किया.

मिन्नलमुरली का किरदार निभाने के अनुभव के संबंध में अभिनेता टोविनोथॉमस नेकहा-“मैं शुरू से ही ‘मिन्नलमुरली’ के किरदार से जुड़ा हूं और इसके लिए प्रतिबद्ध हूं, मैंने अपना सारा समय अपने निर्देशक के साथ संवाद करने में बितायाता कि सर्वोत्तम परिणाम सुनिश्चित किया जा सके,

जिससे मिन्नल मुरली को यथार्थ पर कगढ़ने में मेरी काफी मदद की. मैंने बहुत कुछ सीखा है और मैं आभारी हूं कि इस अजीब समय के दौरान लोग अभी भी नेटफ्लिक्स के माध्यम से अपने घरों में बैठकर सिनेमा की सराहना कर सकते हैं. मुझे उम्मीद है कि फिल्म देखने वाला हर कोई ‘मिन्नलमुरली’को उतना ही प्यार करेगा,जितना मैं करता हूं.’’

नेटफ्लिक्स इंडिया की फिल्म और लाइसेंसिंग निदेषक प्रतीक्षा राव ने कहा-‘‘मलयालम सिनेमा ने दर्शकों को कथाकथन और अविश्वसनीय फिल्म निर्माण शिल्प के साथ सदैव आकर्षित किया है.जैसा कि हमने अलग-अलग तरह की मलयालम कहानियों को शामिल करने के लिए अपनी फिल्म स्लेट का विस्तार किया है,नेटफ्लिक्स फिल्म के रूप में बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘मिन्नलमुरली’को लाने के लिए उत्साहित है.

टोविनोथॉमस द्वारा अभिनीत यह निश्चित तौर पर देखी जाने वाली स्थानीय सुपरहीरो की कहानी हर वर्ग व देश के दर्शकों का मनोरंजन करेगी.’’

 

सिद्धार्थ शुक्ला के जाने के बाद दुश्मनी भुलाकर एक हुए Asiam Riaz और Paras chhabra, ऐसे हुआ खुलासा

बिग बॉस 13 के विनर रहे सिद्धार्थ शुक्ला की अचानक मौत से पूरी इंडस्ट्री को सदमा लगा है, बिग बॉस 13 में बने उनके दोस्तों को भी इस घटना से सदमा लगा है. वह लोग भी बुरी तरह से परेशान हैं कि अचानक सिद्धार्थ हमें छोड़कर जा कैसे सकता है.

सिद्धार्थ शुक्ला के मौत के बाद से सबसे पहले उनके करीबी दोस्त आसिम रियाज और पारस छाबड़ा उनके घर पहुंचे थें, इन दोनों की दोस्ती बिग बॉस के घर में ही पक्के यार की  तरह हुई थी, हालांकि बाद में सिद्धार्थ शुक्ला औऱ आसिम रियाज कि दोस्ती दुश्मनी में बदल गई और पारस छाबड़ा की दुश्मनी दोस्ती में बदल गई.

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अब हाल ही में पारस छाबड़ा और आसिम रियाज ने अपनी दोस्ती के बारे में जिक्र करते हुए बताया कि इन दोनों की दूबारा दोस्ती सिद्धार्थ शुक्ला के घर पर ही हुई है दोबारा सिद्धार्थ की मौत के बाद. ऐसा है मानो सिद्धार्थ शुक्ला ही आसमान में जाकर हमारी दोबारा दोस्ती करवाई है.

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आगे उन्होंने बताया कि जब मैंने सिद्धार्थ की मौत की खबर सुनी तो इतना ज्यादा परेशान हो गया कि दरअसल, सुबह 6 बजे मैं अपनी मां के साथ सोशल मीडिया पर तस्वीर डाली थी औऱ उसके बाद से 12 बजे मेरी मां का फोन लगातार बजने लगा कि क्या हुआ सद्धार्थ को. उस वक्त मैं काफी ज्यादा घबरा गया था.

उसी वक्त मैंने फैसला किया की तुरंत मैं सिद्धार्थ के घर जाउंगा, जैसे ही मैं उसके घर पहुंचा और आसीम और मैं एक-दूसरे को देखें हम दोनों एक दूसरे सेे गले लगकर रोने लगे, उसी दिन हमने फैसला किया कि हम दुश्मनी को भूलाकर दोस्ती करेंगे,  हमें समझ में आ गया कि जिंदगी की कोई भी लड़ाई आपके जान से ज्यादा बड़ी नहीं होती है.

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हमें आज भी सिद्धार्थ के जाने का गम है, वह हमारे बीच नहीं रहकर भी हमारी यादों में हमेशा रहेगा.

धर्म और समाज: प्रेम कथा एक जैन मुनि की

`सन्यास में हमने एंट्रेस तो रखा है एक्झिट नही रखा है, उसमें भीतर जा सकते हैं बाहर नहीं आ सकते, और ऐसा स्वर्ग भी नर्क हो जाता है जिसमें बाहर लौटने का दरवाजा न हो, वह परतंत्रता बन जाता है, जेल बन जाता है.कोई सन्यासी लौटना चाहे तो कोई क्या कर सकता है वह लौट सकता है लेकिन आप उसकी निंदा करते हैं अपमान करते हैं कंडेमनेशन है उसके पीछे.

और इसलिए हमने एक तरकीब बना रखी है कि जब कोई सन्यास लेता है तो उसका भारी शोरगुल मचाते हैं, जब कोई सन्यास लेता है तो बहुत बैंडबाजा बजाते हैं,जब कोई सन्यास लेता है तो फूलमालाएं पहनाते हैं और यह उपद्रव का दूसरा हिस्सा है वह उस सन्यासी को पता नहीं है कि अगर कल वह वापस लौटा तो जैसे फूलमालाएं फेंकी गईं वैसे ही पत्थर और जूते भी फेके जायेंगे.और ये ही लोग होंगे फेंकने बाले कोई दूसरा नहीं`.

अपने दौर के मशहूर चिंतक और दर्शनशास्त्री ओशो यानी रजनीश के ये विचार जो कुछ अर्थों में हमेशा प्रासंगिक रहेंगे अगर दमोह के एक जैन मुनि सुद्धांत सागर ने वक्त रहते पढ़ लिए होते तो तय है कि वे बीती 24 अगस्त को दमोह के ही हिंडोरिया थाने में बैठे न तो किसी की शिकायत कर रहे होते और न ही जैन धर्म को धता बताते कपडे पहन गृहस्थ और सांसारिक जीवन में लौटने पुलिस बालों और मीडिया के मोहताज होते.

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जैन मुनि की इस प्रेम कथा में वह सब कुछ है जो आमतौर पर आम प्रेमियों की लव स्टोरी में होता है मसलन आश्रम में रहते इश्वर का छोड़ अपनी प्रेमिका के ध्यान में लींन होकर `एक` हो जाने की सोचना, धार्मिक सिद्धांतों का डर छोड़ देना, दिल में लगातार कुछ कुछ होते रहना, कुछ भी अच्छा न लगना और इन से भी अहम बात किसी की परवाह न करते अपने प्यार को दुनिया के सामने उजागर कर देना.यही आम प्रेम कथाओं में होता है बस आश्रम की जगह घर व समाज गुरु की जगह पेरेंट्स और रिश्तेदारों की जगह दूसरे आश्रमवासी ले लेते हैं जिनकी नजर में प्यार एक संगीन गुनाह हो जाता है क्योंकि यह धर्म और समाज के बनाए भोंथरे उसूलों को तोड़ने की हिम्मत बिना किसी ईश्वरीय प्रेरणा के ले लेता है.

सन्यासी का प्यार –

दमोह का बेलग्राम जैनियों का एक प्रमुख तीर्थ है जहां देश भर के छोटे बड़े जैन मुनि चौमासा करने आते हैं.इनमें से ही एक थे 22 अगस्त को आए 41 वर्षीय मुनि सुद्धांत सागर जिनका असली यानि सन्यास पूर्व का नाम राकेश जैन है तब वे दमोह के टंडन बगीचा में रहा करते थे उनके पिता का नाम मुलायम चन्द्र जैन है.राकेश ने 16 साल की उम्र में ही सन्यास ले लिया था और सन्यासी रहते ही 25 साल जैन धर्म के कड़े सिद्धांतों का पालन करते देश भर में प्रवचन आदि करते रहे.बेलखेड़ा आने से पहले वे कथित रूप से जैनियों के सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ शिखर जी में थे जो झारखण्ड के गिरीडीह जिले में है.

24 अगस्त की रात हिंडोरिया थाने में उस वक्त सनसनी मच गई जब सुद्धांत सागर एक महिला जिसका नाम प्रज्ञा दीदी है को लेकर पहुंचे.दोनों बदहबास, परेशांन और घबराये हुए थे.यह एक गैरमामूली बात थी क्योंकि दिगंबर जैन साधु और साध्वियां आमतौर पर रात में अकेले आश्रम से नहीं निकलते और न ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते. लेकिन ये दोनों एक एम्बुलेंस में लिफ्ट लेकर आए थे तो थाने में मौजूद पुलिसकर्मियों ने सहज अंदाजा लगा लिया कि जरुर कोई ख़ास बात है.

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यह ख़ास बात अब बजाय सुद्धांत सागर के राकेश जैन ही कहना ही बेहतर होगा की शिकायत से स्पष्ट हुई.बकौल राकेश,बेलाग्राम में प्रज्ञा दीदी नाम की एक महिला सप्ताह भर पहले रहने आई थी.हम दोनों के बीच बातचीत होने लगी.24 अगस्त को प्रज्ञा बड़े मंदिर में बैठकर किसी से फोन पर बात कर रही थी.आश्रम प्रमुख सिद्धांत सागर जिनकी देखरेख में सुद्धांत सागर साधना कर रहे थे को शक हुआ तो उन्होंने प्रज्ञा को आश्रम छोडकर चले जाने को कहा.प्रज्ञा के साथ मारपीट की गई.जब मैंने मारपीट से आचार्य को रोकने की कोशिश की तो मेरे साथ भी मारपीट की गई.साथ ही मौजूद दूसरे लोगों से भी मुझे पीटने को कहा गया.मेरे पिच्छि व कमंडल भी छीन लिए गए.इस पर मैं घबराकर वहां से भाग निकला और रात में ही जननी एक्सप्रेस एम्बुलेंस से लिफ्ट मांगकर थाने पहुंचा.

प्रज्ञा ने और गंभीर आरोप लगाये कि आश्रम में मौजूद कुछ माता और सेवक महिलाएं मुझे प्रताड़ित कर रही थीं मुझे खाना नहीं दिया जा रहा था.मुझ पर मुनि जी ( सुद्धांत सागर ) के साथ गलत संबंधों का आरोप लगाया जा रहा था जबकि हम दोनों के बीच ऐसा कुछ नहीं था हाँ फोन पर जरुर मेरी मुनि महाराज से बात होती रहती थी.

पुलिस बालों ने मामले की गंभीरता को देखते आला अफसरों को फोन खटखटाए फिर चंद मिनिटों में ही बात पूरे देश भर में फ़ैल गई कि 25 साल से सन्यासी जीवन जी रहा एक जैन साधु अपनी शिष्या या महिला मित्र कुछ भी कह लें से शादी कर रहा है.जैन समाज के कर्ता धर्ता कुछ सोच और कर पाते इसके पहले ही सुद्धांत सागर कपडे पहनकर फिर से राकेश जैन बन चुके थे और इत्मीनान से थाने की एक कुर्सी पर बैठे पैर हिलाते कुछ सोच रहे थे.थाने के बाहर जैन समुदाय के लोगों का इकट्ठा होना शुरू हो गया था.

जब अंदरूनी और बाहरी बबंडर मचा और कुछ मीडियाकर्मी कमरे लेकर थाने पहुँच गए तो असिस्टेंट पुलिस अधीक्षक दमोह शिवकुमार सिंह ने उक्त पूरा घटनाक्रम बताते कहा कि रात में सुद्धांत सागर थाने आए थे और उन्होंने पूरा घटनाक्रम बताया था लेकिन साथ ही कोई काररवाई करने और रिपोर्ट लिखाने से मना कर दिया उन्होंने ये बातें लिखित में भी दी हैं.इसके बाद वे कहीं चले गए.

आश्रम या यातना गृह  –

बात एक तरह से आई गई हो गई लेकिन थाने के बाहर मौजूद मीडियाकर्मियों को राकेश और प्रज्ञा ने जो बताया वह दिल दहला देने बाला है क्योंकि इन्ही आश्रमों से सत्य अहिंसा और अपरिग्रह जैसे पाठ भक्तों को प्रतिदिन तोते की तरह रटाये जाते हैं.पत्रकारों को प्रज्ञा ने बताया कि उसे आश्रम की 2 माताजी मारती थीं जब उसने भूख बर्दाश्त न होने पर खाना माँगा तो उसे दुत्कार दिया गया.बाहर से आए भक्तों ने उसे कुछ फल दिए.जब सिद्धांत सागर से उसकी कहासुनी हुई तो उन्होंने उसके सर पर ईंट का टुकड़ा दे मारा जिससे उसके सर में हलकी चोट आई यह चोट उसने पत्रकारों को दिखाई भी जो कि एक वीडियो में कैद है.

प्रज्ञा ने यह भी बताया कि वह आगरा में अपनी माँ से बात कर रही थी तभी आचार्य ने उसका फोन छीन लिया.आश्रम के अन्दर राकेश के झोले से पैसे माता जी निकाले जो हर कभी चोरी करती हैं उनका तो काम यही है.इस से ज्यादा हैरानी की बात यह है कि धन संचय न करने का उपदेश देने बाले जैन साधु संत मुनि खुद आश्रमों में अपने पास नगदी रखते हैं जिसे आश्रम के ही लोग चोरी भी कर लेते हैं.

कपडे पहन सन्यासी जीवन छोड़ने बाले राकेश का कहना था कि इस बाबत उसे समाज के कुछ लोगों और सिद्धांत सागर द्वारा दबाब बनाकर मजबूर किया जा रहा है.जब वह आश्रम से भागा था तब उसने अपने हाथ में ईंट का एक टुकड़ा उठा लिया था ताकि कोई अगर पीछा करे तो बचाब के लिए उसे डरा सके.यानी आश्रम में हिंसा हुई थी और राकेश और प्रज्ञा जैसे `उद्दंड`मुनि व साध्वियों को `सबक` सिखाया जाता है.नहीं तो कोई वजह नहीं थी कि राकेश हाथ में ईंट लेकर भागता.अंदाजा भर लगाया जा सकता है कि इन आश्रमों में सीनियर और दबंग संतों की दादागिरी चलती है जो बकौल प्रज्ञा आश्रम की निगरानी भी करते हैं.

ये वही आश्रम हैं जिनमें दाखिल होते ही भक्तों को खामोख्वाह की अदभुद शांति और इश्वर का भी आभास होता है.ओशो ने सिंगल डोर बाले इन आश्रमों को नर्क वेबजाह नहीं कहा जहां धार्मिक सिद्धांतों और रूढ़ियों के नाम पर घुटन थोपी जाती है यहाँ व्यक्तिगत स्वतंत्रता नही होती और साधकों को बतौर सजा भूखा रखने का गुनाह जिसे धर्म की भाषा में पाप कहा जाता है किया जाता है.

साधु संत तो वैसे ही मानसिक गुलाम होते हैं यह गुलामी बनी रहे इस बाबत उन्हें कष्टों और अभावों में रखा जाता है, बाहर की दुनिया से डराया जाता है जिससे कि वे भागने या पलायन की कोशिश न करें.धर्म की दुकानदारी का यह शर्मनाक पहलू देश भर में आए दिन उजागर होता रहता है और आश्रमों की जिन्दगी का सच भी सामने आता रहता है लेकिन चूँकि मामला धर्म का होता है इसलिए एक मुकम्मल ख़ामोशी ओढ़ ली जाती है उलट इसके यही मारपीट और अत्याचार किसी अनाथ आश्रम महिला उद्धार गृह या किसी दूसरे शेल्टर होम में होते हैं तो हल्ला तो मचता ही है साथ ही मानव अधिकारों के हितैषी संगठन और आयोग सर पर संविधान उठाये तुरंत हरकत में आ जाते हैं.

इनका स्वागत होना चाहिए –

राकेश और प्रज्ञा धर्म और सन्यास की घुटन छोडकर अगर प्यार मेहनत और स्वाभिमान की जिन्दगी जीना चाहते हैं तो बजाय उन्हें प्रताड़ित या बहिष्कृत करने के उनका स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि वे सुबह के भूले हैं.असल सुख सांसारिक जीवन में ही है जिसमें लोग तमाम सुख भोगते हुए घर समाज और देश के लिए कुछ न कुछ योगदान देते ही हैं. दुःख और परेशानियाँ आयें तो लोग उनका सामना भी एक दूसरे के साथ और सहयोग से कर लेते हैं.

राकेश और प्रज्ञा जैसे लोग सन्यास क्यों लेते हैं अब इससे ज्यादा अहम बात यह हो चली है कि क्यों वे सन्यास छोड़ने उतारू हो आते हैं.धर्म का नशा जब सर चढ़कर बोलता है तो साधकों को लगता है कि वे कीड़े मकोड़ों जैसे बिलबिलाते दुःख भोगते आम भक्तों का साक्षात्कार इश्वर से करा देंगे उन्हें मोक्ष और मुक्ति दिला देंगे.फिर वे कपडे उतारकर दीक्षा लेकर आश्रमों का हिस्सा बन जाते हैं.

आश्रम के अन्दर उन्हें एहसास होता है कि दुःख, प्रतिस्पर्धा, कलह द्वेष और छीना छपटी तो यहाँ भी है और वर्जनाएं भी बहुत हैं कि आप मर्जी से खा पी और सो नहीं सकते, सेक्स सहित जिन्दगी के दूसरे लुत्फ़ नहीं ले सकते और चौबीसों घंटे आप एक्टिंग करने मजबूर रहते हैं.अधिकतर साधु मुनि इस स्थिति से समझौता कर लेते हैं क्योंकि सन्यास शेर की सवारी सरीखा होता है कि आप अगर उतरे तो शेर खा जायेगा.

25 साल ज्ञान बांटने के बाद भी कहीं भगवान् नहीं मिला तो राकेश को प्यार हो आया यही हालत आगरा से आई प्रज्ञा की हो गई थी लेकिन उनकी राह आसान नहीं थी पर यह भी गलत नहीं कहा जाता कि इस दौड़ती भागती दुनिया में मोहब्बत एक बार जिसका दामन थाम लेती है वह इन्सान कुछ भी कर गुजर सकता है.देखा जाये तो एक तरह से इन्हें असल ज्ञान प्राप्त हो गया था कि सुख इन्द्रियों के दमन में नहीं बल्कि उनके उपभोग में है.

दोनों इस रास्ते पर चल पड़े हैं जो कर्मण्यता का है, मेहनत का है, रंगीनियों का है जिम्मेदारियों का है  लेकिन खतरा उन पर से टल गया है ऐसा कहने की कोई वजह नहीं क्योंकि प्रज्ञा को एक माताजी द्वारा धौंस दी गई थी कि थाने में सिद्धांत सागर जी के बारे में मुंह मत खोलना यह बात भी उसने पत्रकारों को बताई थी.असल में इस प्रेम कांड से जैन धर्म की इमेज और दुकान बिगड़ी है जिसे अंधभक्त कितना बर्दाश्त कर पाएंगे यह वक्त बताएगा.

नाम न छापने की शर्त पर दमोह के युवा व्यवसायी का कहना है कि किसी को जबरन साधु या मुनि बनाये रखना एक तर्कसंगत बात नहीं है आमतौर पर जैन धर्म में लोग बहुत कम उम्र में सन्यास ले लेते हैं जब वे सन्यास का अर्थ भी नहीं समझते. वक्त रहते उनकी जरूरतें और जज्बात सर उठाने लगते हैं तो वे कुंठित हो उठते हैं लेकिन तब तक धार्मिक सिद्धांतों से इतने घिर चुके होते हैं कि बाहर आने में डरते हैं और यही डर उन्हें घुटन भरी जिन्दगी जीने मजबूर करता रहता है.मेरी नजर में राकेश और प्रज्ञा ने कुछ गलत नहीं किया हाँ उनके साथ जो हुआ वह जरुर गलत और जैन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत था, खैर अंत भला तो सब भला.इस व्यवसायी ने यह भी बताते कि इन दोनों ने शादी कर ली है  शादी के बाद का फोटो भी दिया जिसमें प्रज्ञा मांग भरे और मंगलसूत्र पहने खुश नजर आ रही हैं.

अंत की लिखापढ़ी –

यह अंत यूँ ही भला नहीं हो गया क्योंकि थाने के हंगामें के बाद अगर पुलिस बेलखेड़ा आश्रम पहुँचती तो बहुत कुछ और उजागर होता लेकिन बकौल सुद्धांत सागर उन्हें जैन समाज के कई लोगों ने समझाया था और कपडे पहनने सहमति दी थी.पर डर अब भी था कि कहीं राकेश और प्रज्ञा और मुंह न खोलें  दरअसल में प्रज्ञा का विवाद झारखण्ड में एक और मुनि विशुद्ध सागर से भी हुआ था जिसकी आंच इस आश्रम पर आंच न आए इसलिए दोनों पक्षों में एक लिखित समझौता हुआ था जिसके तहत दोनों एक दूसरे के खिलाफ कोई क़ानूनी काररवाई नहीं करेंगे.यह सुलहनामा प्रज्ञा और झारखण्ड दिगंबर जैन समाज चातुर्मास समिति के बीच 12 अगस्त को हुआ था.असल विवाद क्या था यह किसी को नहीं पता जो शक ही पैदा करता है.

इस समझौते की प्रति उक्त व्यवसायी ने इस प्रतिनिधि को उपलब्ध कराते आग्रह किया कि इसे आप प्रकाशित न करें क्योंकि इससे उसकी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगने लगेंगे.इस आग्रह को मानते हुए हम उस कागज को प्रकाशित नहीं कर रहे हैं.मुमकिन है दमोह में भी ऐसा कोई समझौता हुआ हो.

लाख टके का सवाल यह कि जब आश्रम के मुताबिक कोई विवाद था ही नहीं और प्रेमी जोड़े के साथ कोई दुर्व्यवहार किया ही नहीं गया था तो बबंडर किस बात पर मचा.दूसरे सिद्धांत सागर और आश्रम की एक माताजी यह किस आधार पर कह रहे हैं कि राकेश और प्रज्ञा का अफेयर तो तीन साल से चल रहा है और वे शादी भी कर चुके हैं.अगर राकेश को बेलखेड़ा आश्रम आए एक महीना और प्रज्ञा को एक सप्ताह ही हुआ था तो उनके तीन साल के अफेयर का रिकार्ड कहाँ से आश्रम पहुंचा शायद ही कोई दो टूक जबाब इस मामूली से सवाल का भी दे पाए कि क्या आश्रमों में साधकों की जासूसी भी होती है.

सच जो भी हो हमेशा की तरह परदे में ही रहेगा लेकिन सन्यास छोड़ सांसारिक जीवन में आए एक और जैन मुनि मुदित सागर उर्फ़ हुकुम चंद जैन ने कोई दो साल पहले साफ़ साफ़ कहा था कि सन्यास एक तरह का बंधन है, कैद है जिससे उन्होंने आश्रम से भागकर छुटकारा पा लिया.रायपुर के हुकुम चंद जैन ने साल 2007 में सन्यास लिया था और वह गुजरात के जूनागढ़ आश्रम में रह रहा था और वहीँ से भाग गया था.इसकी गुमशुदगी पर देश भर में जैनियों ने खूब हल्ला मचाया था यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक को भी ज्ञापन दिया गया था आशंका अपहरण की थी पर एक दिन नाटकीय तरीके से वह खुद प्रगट हो गया और गृहस्थ जीवन में आने की इच्छा जताकर अटकलों को विराम दे दिया.

हाल यह है कि पढ़े लिखे रईस जैन युवा फेशन के चलते सन्यास ले रहे हैं जिनके सन्यासी बनने पर खूब धूम धडाका किया जाता है मसलन अरबपति की बेटी बनेगी सन्यासिन, एमबीए युवक ने सन्यास लिया बगैरह लेकिन इसके बाद क्या क्या होता है यह राकेश प्रज्ञा और हुकुम चंद जैसे उजागर उदाहरणों से उजागर होता रहता है.सुद्धांत सागर उर्फ़ राकेश जैन ने थाने के बाहर यह भी कहा था कि किसी को भी दिगम्बर मुनि बनने के पहले खूब सोच समझ लेना चाहिए.जाहिर है उनका इशारा उन नारकीय यातनाओं की तरफ था जो उन्होंने अपनी प्रेयसी के साथ भुगती थीं.

कई बार तो मुनियों को बतौर सजा गृहस्थ जीवन में जबरन धकेल दिया जाता है.2 साल पहले  एक जैन मुनि नयन सागर का वीडियों वायरल हुआ था जिसमें वे मुज्जफरपुर के एक आश्रम में हैं.एक शाम एक सुन्दर युवती उनके कमरे में साढ़े सात बजे दाखिल हुई और सुबह छह बजे कमरे से बाहर निकली. यह सब सीसीटीवी कमरे में कैद हुआ तो जैन समाज के लोग तिलमिला उठे और नयन सागर को नश्वर संसार में भेजने का फैसला लिया.

ऐसे कई मामले हैं जो सन्यास और सन्यासियों को कटघरे में खड़ा करते हैं ऐसे में सन्यास एक फिजूल की बात ही लगती है जिसका मकसद है तो धर्म की दुकानदारी ही.

मजबूत इरादों से बदले हालात

संतकबीरनगर . मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि प्रदेश की जेलों को हमनें सुधारगृह के रूप में बदला है. यहां अपराधियों को सुधरने का अवसर दिया गया है लेकिन जेलों को अपराध का गढ़ या अपराधियों की मौज मस्ती का केंद्र नहीं बनने दिया है. एक दौर वह भी था जब सत्ता माफिया का शागिर्द बन उसके पीछे चलती थी, आज माफिया पर हमारी सरकार का बुलडोजर चलता है.

सीएम योगी ने संतकबीरनगर जिले में 126 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित जिला कारागार का लोकार्पण समेत कुल 245 करोड़ रुपये की लागत वाली 122 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण व शिलान्यास करने के बाद जनसभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार में माफिया को मिले सत्ता के संरक्षण पर जमकर निशाना साधा.

सुधरे नहीं तो हराम कर देंगे माफियाओं को जीना

सीएम योगी ने कहा कि माफिया के लिए हमारा संदेश बिलकुल स्पष्ट है. माफिया यदि गरीब, किसान, व्यापारी का जीना हराम करेगा तो हमारी सरकार उसका जीना हराम कर देगी. सरकार ने यह करके दिखाया भी है. मुख्यमंत्री ने कहा कि संतकबीरनगर में जिला कारागार बन जाने से अब यहां के कैदियों को बस्ती नहीं भेजना पड़ेगा. उन्होंने उम्मीद जताई कि यह कारागार सुधारगृह के रूप में आदर्श कारागार बनेगा.

पहले नौकरियां नीलाम होती थीं,अब ऐसा करने वालों के घर

मुख्यमंत्री ने कहा कि साढ़े चार साल पहले कैसी सरकार थी, इसे आप सभी जानते हैं. वंशवाद, भाई भतीजावाद, तुष्टिकरण से जनता के हित पर डकैती, गुंडागर्दी और दंगा ही प्रदेश की पहचान बन गई थी. नौजवानों की नौकरियों की नीलामी होती थी और गरीबों के निवाले की डकैती. नौकरियां पहले गिरवी रख दी जाती थीं. एक परिवार के लोग नौकरी के नाम पर वसूली करने निकल जाते थे. आज किसी ने नौकरी नीलाम करने की कोशिश भी की तो हम उसका घर नीलाम करवा देंगे.

योग्यता 4.5 लाख सरकारी नौकरियां, 90 हजार और आ रहीं

सीएम योगी ने कहा कि हमारी सरकार ने नौजवानों को उनकी योग्यता के आधार पर 4.5 लाख सरकारी नौकरियां दी हैं. पूरी पारदर्शिता के साथ, कहीं भी सिफारिश नहीं, एक रुपये वसूली की शिकायत नहीं. उन्होंने कहा कि 90 हजार सरकारी नौकरियां और आ रही हैं.

प्रतियोगी परीक्षाओं में जुटे नौजवानों को देंगे भत्ता, टेबलेट

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक बार फिर नौजवानों के लिए प्रदेश सरकार की तरफ से खजाना खोलने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि जब तक कोरोना का प्रभाव है, उनकी सरकार प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटे नौजवानों को वाहन किराया भत्ता व तैयारी भत्ता देने जा रही है. इसके अलावा वर्चुअली या फिजिकली तैयारी करने वाले, उच्च-तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा में अध्ययनरत नौजवानों को मुफ्त टैबलेट के साथ उन्हें डिजिटल असेस भी प्रदान किया जाएगा.

महिलाओं के सुरक्षा,सम्मान व स्वावलंबन पर सरकार का जोर

सीएम ने कहा कि उनकी सरकार का जोर महिलाओं की सुरक्षा के साथ उनके सम्मान और स्वावलंबन पर भी है. 30 हजार महिला पुलिसकर्मीयों की भर्ती इसी दिशा में बढ़ाया गया महत्वपूर्ण कदम है. महिलाओं के हित में सरकार मिशन शक्ति, कन्या सुमंगला, निराश्रित महिलाओं को पेंशन जैसी अनेकानेक योजनाओं को निरंतर आगे बढ़ा रही है.

रेडीमेड गारमेंट का हब बन सकता है संतकबीरनगर

सीएम योगी आदित्यनाथ ने समारोह में विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना के तहत पांच महिलाओं को टेलरिंग टूलकिट भी प्रदान किया. इसका जिक्र अपने संबोधन में करते हुए उन्होंने कहा कि यह टूलकिट महिलाओं के लिए पीएम नरेंद्र मोदी की मंशा के अनुरूप वोकल फॉर लोकल के मंत्र का अनुसरण करते हुए स्वरोजगार का मंच बन सकता है. सीएम ने कहा कि एक समय इस जिले का खलीलाबाद करघा और हथकरघा का बड़ा केंद्र हुआ करता था. ऐसे में यह रेडीमेड गारमेंट का हब क्यों नहीं बन सकता. अगर हम महिलाओं को आधुनिक सिलाई मशीन देकर उन्हें मार्केट से लिंक कर दें तो हर घर रेडीमेड गारमेंट बनने लगेगा. ऐसी स्थिति में रेडीमेड गारमेंट के उत्पादन के मामले में हम बांग्लादेश और वियतनाम को भी पीछे छोड़ सकते हैं.

बखिरा के बर्तन उद्योग को दिलाएंगे वैश्विक पहचान

मुख्यमंत्री ने संतकबीरनगर जिले के बखिरा के बर्तन उद्योग का भी प्रमुखता से उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि कभी इस जिले की पहचान बखिरा के बर्तनों से होती थी. पूर्व की सरकारों में इसे भुला दिया गया लेकिन हम बखिरा के बर्तन उद्योग को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने की दिशा में कार्य कर रहे हैं. यह स्थानीय स्तर पर नौजवानों व महिलाओं के लिए रोजगार का बड़ा माध्यम बनेगा.

संतकबीरनगर में पीपीपी मॉडल पर बनेगा मेडिकल कॉलेज

सीएम योगी ने कहा कि एक समय तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में इंसेफेलाइटिस, मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों से बहुत मौतें होती थीं. इलाज का सारा दारोमदार गोरखपुर के जर्जर बीआरडी मेडिकल कॉलेज पर होता था. लोगों को मजबूरन लखनऊ, दिल्ली या मुम्बई जाना पड़ता था. आज प्रदेश के हर जिले में मेडिकल कॉलेज की व्यवस्था हो रही है. गोरखपुर का बीआरडी मेडिकल कॉलेज नए व बेहतरीन रूप में है. गोरखपुर में एम्स भी बनकर तैयार है जिसका उद्घाटन पीएम मोदी शीघ्र करेंगे. देवरिया, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, बहराइच सुल्तानपुर, प्रतापगढ़ को मेडिकल कॉलेज की सौगात दी गई है. प्रदेश में कोई भी जिला शेष नहीं रहेगा जहां मेडिकल कॉलेज न हो. मुख्यमंत्री ने एक बार फिर कहा कि संतकबीरनगर में पीपीपी मॉडल पर मेडिकल कॉलेज स्थापित किया जाएगा.

हर बाढ़ पीड़ित को उपलब्ध कराई जा रही राहत किट

संतकबीरनगर में लोगों से मुखातिब सीएम योगी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारी बारिश के चलते आई बाढ़ का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार हर पीड़ित तक पर्याप्त मात्रा में राहत सामग्री का किट उपलब्ध करा रही है. साथ ही बाढ़ के कारण होने वाली बीमारी से बचाव के लिए लोगों को जागरूक भी किया जा रहा है. बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में एंटी स्नेक वेनम और एंटी रेबीज वैक्सिन की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है. उन्होंने जनप्रतिनिधियों से अपील की वे हर बाढ़ पीड़ित तक राहत सामग्री पहुंचना सुनिश्चित करें.

सपा-बसपा शासन के दौरान कोरोनाकाल में केरल, दिल्ली जैसे होते यूपी के हालात

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आज यूपी में कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण है. पर सपा-बसपा का शासन होता तो कोरोनाकाल में यूपी के हालात केरल व दिल्ली जैसे खतरनाक होते. उन्होंने यूपी में कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण के लिए जनता के अनुशासन, स्वास्थ्यकर्मियों, कोरोना वारियर्स, जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों व मीडिया की भूमिका की सराहना की.

अब विकास में किसी से पीछे नहीं रहेगा संतकबीरनगर

सीएम ने अपने संबोधन में लोगों को जिले की विकास परियोजनाओं से जोड़ते हुए कहा कि अब संतकबीरनगर विकास के पैमाने पर किसी भी जनपद से पीछे नहीं रहेगा. उन्होंने कहा कि बाबा तामेश्वरनाथ और महान सूफी संत संतकबीर की यह धरती 24 वर्ष से विकास की आस में थी. विकास के लिए राजनीतिक घोषणाएं तो होती थीं लेकिन उनका क्रियान्वयन नहीं होता था. योजनाएं ठेके पट्टे, भाई भतीजावाद के चक्कर में फंसकर रह जाती थीं. पर बीते साढ़े चार सालों में परिवर्तन आया है.

245 करोड़ रुपये की विकास परियोजनाओं से जुड़ा यह कार्यक्रम प्रदर्शित करता है कि यह जिला अब विकास के नए प्रतिमानों को छुएगा. विकास जनता की आवश्यकता है और इससे ही हर व्यक्ति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि दो वर्ष पूर्व मगहर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संतकबीर की साधना स्थली पर कबीरपीठ की स्थापना की थी, इसके लोकार्पण की शुभ तिथि भी अब आने वाली है.

कोरोना से निराश्रित बच्चों को प्यार-दुलार

कार्यक्रम में कोरोना से निराश्रित बच्चों को मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना का स्वीकृति पत्र प्रदान करने के दौरान सीएम योगी ने बच्चों को खूब प्यार-दुलार दिया. उनसे उनकी पढ़ाई के बारे में पूछा और सिर पर हाथ फेरकर आशीर्वाद दिया. सीएम ने कहा कि हर पीड़ित के साथ सरकार खड़ी है. निराश्रित बच्चों के अलावा कोरोना से निराश्रित हुई महिलाओं के लिए भी सरकार शीघ्र योजना ला रही है.

कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों को स्वीकृति पत्र का वितरण

समारोह के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना के लाभार्थियों, मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना व शादी अनुदान योजना के लाभार्थियों तथा सामुदायिक शौचालयों का स्वच्छता प्रबंधन करने वाले स्वयं सहायता समूहों के केयर टेकर्स को मानदेय स्वीकृति पत्र का वितरण भी किया. कोविड 19 से मृतक सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को नियुक्ति पत्र प्रदान करने के साथ ही उन्होंने विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना के लाभार्थियों को टूलकिट सौंपा. इस अवसर पर सीएम के हाथों सबमिशन ऑफ एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन योजना के लाभार्थियों को चाबी का वितरण भी किया गया. समारोह में कारागार मंत्री जयकुमार सिंह जैकी, उद्यान एवं कृषि विपणन मंत्री श्रीराम चौहान, जिले के प्रभारी मंत्री व स्टाम्प पंजीयन मंत्री रवींद्र जायसवाल, सांसद प्रवीण निषाद, विधायक राकेश सिंह बघेल, दिग्विजय नारायण चौबे, दयाराम चौधरी आदि भी मौजूद रहे. आभार ज्ञापन अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने किया.

महिला सशक्तिकरण को विशेष महत्व

लखनऊ. प्रदेश सरकार एक ओर अपनी योजनाओं से महिलाओं के मनोबल को बढ़ा रही है वहीं दूसरी ओर मिशन शक्ति जैसे वृहद अभियान से उनको सुरक्षा, सम्‍मान और स्‍वावलंबन का कवच प्रदान कर रही है. प्रदेश सरकार की दो योजनाओं से महिलाओं और बेटियों को लाभ मिल रहा है जिसमें पति की मृत्यु के बाद निराश्रित महिला पेंशन योजना और मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना से महिलाओं और बेटियों को सीधे तौर पर मदद मिल रही है.

मिशन शक्ति अभियान के तहत इन दोनों योजनाओं से नए लाभार्थियों को जोड़ने का कार्य किया जा रहा है. महिला कल्‍याण विभाग की ओर से स्‍वावलंबन कैंप कार्यक्रम का आयोजन कर नई महिलाओं बेटियों के आवेदनों को स्‍वीकार कर इस योजना के तहत लाभान्वित किया जा रहा है. बता दें क‍ि म‍िशन शक्ति अभियान से प्रदेश की महिलाओं और बेटियों को योगी सरकार की योजनाओं की जानकारी संग उनको विभिन्‍न योजनाओं से जोड़ा जा रहा है.

महज एक साल में जुड़े 1.73 लाख पात्र नवीन लाभार्थी

पति की मृत्यु उपरान्त निराश्रित महिला पेंशन योजना  के तहत साल 2017 से 2021 तक पति की मृत्यु उपरान्त निराश्रित महिला पेंशन योजना के तहत कुल 12.36 लाख नए लाभार्थी जुड़े हैं. वहीं साल 2021-22 में 1.73 लाख पात्र नवीन लाभार्थी जोड़े गए हैं. अब तक 29.68 लाख महिलाओं को लाभान्वित किया जा चुका है. बता दें कि पात्र लाभार्थियों को 500 रुपए प्रतिमाह की दर से 04 तिमाही में पेंशन का भुगतान पीएफएमएस के जरिए से सीधे उनके बैंक खाते में किया जाता है. इसके साथ ही योजना के लिए लाभार्थी की आयु की अधिकतम सीमा को समाप्त करते हुए वार्षिक आय सीमा को बढ़ाकर 2.00 लाख कर दिया गया है.

कन्या सुमंगला योजना से संवर रहा बेटियों का भविष्‍य

प्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने, बालिकाओं के स्वास्थ्य व शिक्षा को सुदृढ करने, बालिका के परिवार को आर्थिक सहायता प्रदान करने साथ ही बालिका के प्रति आम जन में सकारात्मक सोच विकसित करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने अप्रैल 2019 में मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना की शुरूआत की. इस योजना तहत अब तक 9.91 लाख लाभार्थियों को लाभान्वित किया जा चुका है.

संपादकीय

नरेंद्र मोदी सरकार देश का निर्माण उन सडक़ों को मानती है जिस पर फर्राटे से बड़ी गाडिय़ां चल सकें या जिन पर एयर कंडीशन बसेें चल सकें. जिन में तीर्थ पर जाने वाले भरे हों. आज देश को जरूरत है ऐसी सडक़ों की जो घरों को जोड़ेऐसे सीवरों की जो गांवकस्बे शहर का मलमूत्र ले जाकर ढंग से निपटा कर पानी को बचा सकेऐसे स्कूलों की जहां हर गरीब पढ़ सकें. ऐसी लाइब्रेरियों की जहां हर तरह की किताबें मिल सकें.

आज देश के गांवगांव में फैक्ट्रियों की जरूरत है. बेरोजगारी को दूर करने के लिए नईनई चीजें बनाने की जरूरत है. बिमारी से बचने के लिए अपस्पतालों की जरूरत है. पर मोदी सरकार ने 25 अगस्त को हुई प्रगति कमेटी की मीङ्क्षटग में पूछा कि चारधाम यात्रा का रास्ता ठीक करने में अदालतों ने कहांकहां रोढ़ा अटका रखा हैइसकी सूची दो. डेढ़ लाख करोड़ रुपए (ये कितने होते हैंभूल जाइएबस याद रखिए कि इन कसे ढाई करोड़ परिवारों के घर बन सकते हैं) की सडक़ों का काम किसानों की जमीन अदालतों की दखल के कारण जबरन न छीन पाने की वजह से क्यों रूका हैउस क सूची दें. उस के बाद अदालतों पर दबाव डाला जाएगा कि वे जल्दी फैसले दें.

मोदी सरकार उन मामलों की सूची नहीं मांग रही जिन में कारखानों के बंद हो जाने की वजह से मजदूर और मालिक बेकार हो गए हैं. सरकार को उन मामलों की फिक्र नहीं है जिन में डीजल के मंहगे होने से उपज की लागत बढ़ गई है पर बड़ी कंपनियों की थोक खरीद की वजह से ब्रिकी का दाम नहीं बढ़ा है.

मोदी सरकार के उद्योगपतियों को रेलों के वायदे पूरे करने की ङ्क्षचता है और वह पूछ रही हैकि चाहे जंगल हों या पहाड़पर्यावरण की ङ्क्षचता में रेल व सडक़ों को बनाना क्यों बंद हो रहा है. पहाड़ों में बनी सडक़ों का क्या हाल हो रहा हैयह दिख रहा हैपूरे हिमालय में बढ़ रहे पूजी जाने वाली नदियों के किनारे टूटने के मामले दिख रहे हैं. सरकार को सब से बड़े धंधे पूजापाठ का ख्याल हैआम मजदूरों और गांव के लोगों का नहीं जो आज भी 10वीं सदी के दौर की तरह जी रहे हैं.

कोविड के बाद सरकार की पहली सोच अस्पतालों और दवाओं पर होनी चाहिए. हस्पताल और दवाएं भारत जैसे देश में हरेक के लिए मुफ्त होने चाहिए पर सरकार ने यह अमीर कंपनियों को दे दिया है जहां सिर्फ धन्ना सेठ जा सकते हैं जो भयंकर तौर पर पूजापाठी भी है. आम किसानमजदूररेहड़ी का व्यापारीछोटा दुकानदार छोटा कारीगर आज सब सरकार की निगाह में मुफ्त में काम करने वाले गुलाम हैं जिन्हें सिर्फ गेंहूचावल देने से काम चल सकता है.

सरकार की यह सोच कि वह केवल अमीरों या मंदिरों के लिए हैदेश के लिए बड़ी घातक हो गर्ई है. अफसोस यह है कि आज सरकार को सच दिखाने वालों ने खुद रंगीन चश्मा चढ़ा रखा है और पिस रहा है आम आदमी जबकि अमीर मालामाल हो रहे हैं जो शेयर बाजार की नई ऊंचाइयों से साफ है.

अफगानिस्तान पर इतना रोना-पीटना क्यों?

अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा बिना खूनखराबे के हो गया. तालिबान इस बार एक नए रूप में सामने आया है. उस ने न तो सरकारी अधिकारियों व नेताओं के साथ मारकाट मचाई, न आम शहरी को नुकसान पहुंचाया. इस बार तो उस ने यह भी कह दिया है कि वह पहले की तरह महिलाओंबच्चियों पर अत्याचार भी नहीं करेगा. उन को पढ़ने और काम करने से भी नहीं रोकेगा. फिर निजाम बदलने पर इतना चीखनाचिल्लाना क्यों? अफगानिस्तान में तालिबान ने अपना परचम फहरा दिया है. अमेरिका वहां से निकल चुका है. उस के सारे सैनिक और दूतावास में काम कर रहे लोग भी निकाले जा चुके हैं तालिबान ने विश्वास दिलाया है कि किसी के साथ कोई सख्ती नहीं होगी.

अफगानिस्तान के लिए अमेरिका ने अपना फैसला लिया. अफगान ने अपना फैसला लिया. अमेरिका की सेनाएं 20 साल से वहां डेरा डाले थीं. आखिर और कब तक डटी रहतीं? अमेरिकी सेना की घर वापसी तो डोनाल्ड ट्रंप के समय में ही तय हो गई थी. अमेरिका ने बाकायदा अपने चुनाव में इसे मुद्दा बनाया था कि उस की फौज को अफगानिस्तान जैसे देशों से वापस लौटना चाहिए. और उस पर अमेरिका में सहमति बनी थी. यानी अमेरिकियों ने अपने देश के हित को देखा और सेना की वापसी करवाई. अब 20 सालों में अफगान में शासन संभाल रहे लोग अगर अब तक अपने पैरों पर नहीं खड़े हो पाए तो क्या यह इस बात का खुलासा नहीं है कि वे शासन करने के काबिल ही नहीं थे? तालिबानियों की 40-50 हजार की संख्या से टकराने में नाकाम रही 3-4 लाख लोगों की अफगानी फौज ने आसानी से हथियार डाल दिए. किसी में दम नहीं था या सब यह चाहते थे कि गनी की गुलामी से मुक्ति मिले. क्या यह वजह नहीं है कि अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी रात के अंधेरे में मुंह छिपा कर देश की जनता को डर और बदहवासी की हालत में छोड़ कर और देश का ढेरों पैसा सूटकेसों में भर कर चंपत हो गए?

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अमेरिकी फौजों के साए में भले अशरफ गनी अपना शासन चलाते रहे मगर अफगानिस्तान से तालिबान कभी खत्म नहीं हुआ. वह वहां बढ़ा भी, मजबूत भी हुआ और अफगानियों के बीच उस ने अपनी लोकप्रियता भी कायम की. अमेरिकी सेना के हटते ही उस ने बड़ी आसानी से अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया. किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की. अफगान सैनिक उन के आगे हथियार डालते चले गए. अफगानी नेता उन के आगे नतमस्तक हो गए. 44 लाख से ज्यादा की जनसंख्या के शहर काबुल में कुछ हजार लोगों ने एयरपोर्ट पर दस्तक दी है, जिन की तसवीरें दुनियाभर का मीडिया उलटपलट कर दिखा रहा है, जिन में ज्यादातर वे लोग हैं जिन पर तालिबान सीधा निशाना साध सकता था क्योंकि या तो वे उन फौजी परिवारों से हैं जिन की सीधी अदावत तालिबान से रही है या फिर उन के पश्चिमी देशों के लोगों के साथ सीधे रिश्ते रहे हैं. लेकिन बाकी तमाम लोग काबुल की सड़कों पर आराम से तालिबानी लड़ाकों के साथ बात करते दिख रहे हैं. उन का स्वागत कर रहे हैं.

उन के गले लग रहे हैं. उन को फूलों की मालाएं पहना रहे हैं. साफ है कि अफगान खुद पर तालिबानी शासन चाहता है. फिर हम और आप क्यों रो रहे हैं? क्या इस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है कि अफगानी जनता में तालिबान का कितना विरोध और समर्थन है? क्यों उन की फौज नहीं लड़ी? क्या सड़कों पर तालिबान के समर्थन में नारे लगाते हुए लोगों की भीड़ से कुछ सम झ में नहीं आ रहा है? शरिया शासन तो अफगानिस्तान की ज्यादातर मुसलिम जनता की मांग है. वहां औरतें शरिया के तहत जिंदगी गुजारने में फख्र महसूस करती हैं. तमाम इसलामी देशों की महिलाएं ऐसा ही चाहती हैं. यह उन की चौइस है. फिर हम और आप क्यों परेशान हैं? बीते 20 सालों में कितनी अफगान औरतें वहां की राजनीति में उतरीं? महिलाओंबच्चियों के हित में कितने काम हुए? कितनी औरतों ने हिजाब छोड़ दिए? भारत को अपने लोगों की चिंता भारत इस वक्त शायद सब से ज्यादा परेशानियों से जू झ रहा है. उस को अब देश के सामने आने वाली चुनौतियों से भी निबटना है और अपने लोगों को वहां से निकालना भी है. मगर भारत का मीडिया जिस तरह अपनेअपने चैनलों पर बैठ कर तालिबान को गालियां दे रहा है, उस को बर्बर व हत्यारा बता रहा है, औरतोंबच्चियों पर जुल्म ढाने वाला करार दे रहा है, उस से अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की परेशानी ही बढ़ेगी.

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भारत के मीडिया के पास न तो विदेश नीति का कोई ज्ञान है और न उसे इस बात का अंदेशा कि भविष्य में क्या हो सकता है. भारतीय टीवी चैनलों के एंकरों को इस बात से भी कोई मतलब नहीं है कि उन की चीखपुकार से अफगानिस्तान में फंसे लोगों की क्या दशा होगी और भारत सरकार के सामने क्या समस्याएं सिर उठा कर खड़ी हो जाएंगी. हमारे लोग वहां अभी भी फंसे हुए हैं और हमारे पास इस समय बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं. ऐसे संवेदनशील वक्त में तालिबान को कोसने से बेहतर है कि अपने लोगों के बाहर निकलने का इंतजार किया जाए. इस वक्त तालिबान ही काबुल से ले कर पूरे अफगानिस्तान का मालिक है. ऐसे में एयरपोर्ट तक आने और वहां से फ्लाइट में बैठने तक भारत सरकार को उस के साथ बातचीत करनी ही है. यह बातचीत सौहार्दपूर्ण रहे और हमारे लोग सुरक्षित वहां से निकल आएं, इसलिए हमें संयम रखना चाहिए. मगर इस के विपरीत देश के मीडिया के पास बहस का मुख्य मुद्दा यह है कि तालिबान लौट आया है, मध्ययुग लौट आया है, दमन और उत्पीड़न का युग लौट आया है, महिलाओं से रेप करने वाले लौट आए हैं. बेहद सस्ती पत्रकारिता देश को परेशानियों में धकेलते हुए अफगानिस्तान में फंसे लोगों की परेशानी में इजाफा कर रही है.

मीडिया वाले यह भी नहीं सम झ रहे कि हमारी चुनौतियां क्या हैं? आगे आने वाले समय में हम को लगातार ऐसे देश से निबटना है जिस की डोर पाकिस्तान के हाथों में है और अब जिस की नस चीन के हाथ में है. इस बेहद खतरनाक त्रिकोण में हमारी कोशिश क्या होनी चाहिए, इस पर बात करने से ज्यादा हम इस बात पर चिल्ला रहे हैं कि वे अपने देश में महिलाओं के साथ क्या करेंगे? क्या होगा वहां बच्चियों का? क्या होगा अल्पसंख्यकों का (जो अब वहां हैं ही नहीं)? भविष्य में भारत की परेशानी अफगानिस्तान को देखने का दुनिया का और हमारा नजरिया अलग है. यह क्षेत्र जिसे हमारा इतिहास गांधार, कंबोज के नाम से जानता रहा है, कभी भारत का ऐतिहासिक पश्चिमी प्रवेशद्वार था. हूण-कुषाण भी इन्हीं क्षेत्रों से आ कर भारत में बसे थे. पर्वतीय दर्रों की सुरक्षा शताब्दियों से जिस गांधार का दायित्व रही, वह गांधार लगातार हुए मजहबी आक्रमण के फलस्वरूप आज कंधार बन गया.

हमारी संस्कृति पर स्मृतिलोप का प्रभाव इतना भयंकर है कि हमें अपना इतिहास भी याद नहीं आता. जब पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया तो हमारे पास अफगानिस्तान के लिए कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान से हो कर ही एक रास्ता बचता था. उस के पाकिस्तान के पास जाने से वह रास्ता भी हाथ से निकल गया. पाकिस्तान से हुए युद्धों में हमारे पास गिलगित-बाल्टिस्तान को उस के कब्जे से मुक्त कराने के बड़े अवसर आए, पर न तो इच्छाशक्ति थी और न ही कोई रणनीतिक सोच. वरना आज चीन का सीपैक प्रोजैक्ट तो अस्तित्व में ही न आ पाता. हमारे नेताओं ने कभी महसूस ही नहीं किया कि हमारा अफगानिस्तान से जमीनी संपर्क होना बहुत आवश्यक है, क्योंकि अब वहीं से हो कर पश्चिमोत्तर एशिया के लिए रास्ता जाता है. पाकिस्तान के कारण ईरानइराक से संपर्क बाधित हो जाना हमारी एक बड़ी समस्या थी, लेकिन उस पर कभी गौर नहीं किया गया. भारत का बंटवारा अफगानिस्तान के लिए बुरा समय ले कर आया. वह अफगानिस्तान, जो कभी एशिया का चौराहा हुआ करता था,

आज एक अविकसित जिहादी इसलामिक देश बन कर रह गया है. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के साथ अब भारत की चिंताएं काफी बढ़ गई हैं. बीते 2 दशकों में भारत ने अफगानिस्तान की जमीन पर न सिर्फ भारीभरकम निवेश किया है, बल्कि भारतअफगान संबंधों को नई धार दी है. साल 2001 से अब तक भारत ने अफगानिस्तान में तकरीबन 3 बिलियन अमेरिकी डौलर का निवेश किया है. भारत का अफगानिस्तान में निवेश इन्फ्रास्ट्रक्चर, सिंचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य और एनर्जी सैक्टर में है. भारत और अफगान के बीच गहरी दोस्ती सामरिक रूप से भी समय के साथ मजबूत हुई थी और यह पाकिस्तान की आंखों में खटकती रही है. एक समृद्ध, विकसित और लोकतांत्रिक अफगान का सपना इस समूचे क्षेत्र में था और यह उम्मीद भी थी कि अमेरिकी सेनाएं अपना मिशन पूरा कर के ही वापस लौटेंगी, लेकिन अमेरिका ने तालिबान के आगे घुटने टेक दिए हैं. ऐसे में स्थितियां भारत के लिए काफी निराशाजनक हैं. अगर तालिबान से हमारी बातचीत सौहार्दपूर्ण नहीं रहती है तो हमारे देश का यह तमाम पैसा डूब जाएगा और हमें वहां से कौड़ी का भी फायदा नहीं होगा. चीन अब खुल कर तालिबान के साथ है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तालिबान के प्रशंसा गीत गा रहे हैं. पाकिस्तान 2 दशकों से तालिबान को पाल रहा था और अब तालिबान जवान हो चुका है. उस की ताकत से पाकिस्तान अफगानिस्तान की जमीं से भारत को उखाड़ फेंकने का सपना देख रहा है तो ऐसे में भारत को बड़े संयमित तरीके से एक रणनीति के तहत आगे बढ़ना होगा और तालिबान से बातचीत का रास्ता खुला रखना होगा. अफगान सरकार की मदद में अमेरिका के बाद भारत ही ऐसा देश है जिस ने कोई कसर नहीं छोड़ी, चाहे वहां की सड़क बनानी हो या संसद, भारत ने अपनी भूमिका बढ़चढ़ कर निभाई. कोविड के दौर में भारत ने दवाओं से ले कर वैक्सीन तक की सप्लाई में अहम भूमिका निभाई है. लेकिन वक्त का पहिया अपनी चाल बदल चुका है. अफगानिस्तान में भारत का निवेश खतरे में है. इस की चिंता रायसीना के माथे पर भी दिख रही है, जिस ने अपनी अफगान नीति में परिवर्तन कर बैकडोर से तालिबान के साथ बातचीत का रास्ता भी खोला है, लेकिन मौजूदा वक्त में सारी कवायद ढाक के तीन पात की तरह दिख रही है. दूसरी चिंता भारत को यह है कि लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकी समूहों को तालिबानियों की सरपरस्ती में फिर से अपनी जड़ें मजबूत करने और भारत पर आतंकी हमले करने के मौके उपलब्ध होंगे. पाकिस्तान तालिबान को ऐसा करने के लिए बारबार उकसाएगा. जम्मूकश्मीर, लद्दाख जैसे सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकवाद फिर से सिर उठाएगा. तालिबानी ताकत का बढ़ना भारत सहित जितने भी सीमावर्ती गैरइसलामिक देश हैं, सब के लिए चिंतनीय और खतरनाक है.

तालिबान और पाकिस्तान मिल कर भारत की शांति में खलल डालेंगे और इन दोनों को उकसाने के लिए उन का बाप चीन तैयार बैठा है. तालिबान मुसलिम कट्टरवाद का पोषक है. लिहाजा, वह अब भारत में संघ के समानांतर धार्मिक भावनाओं को भड़काने का काम भी कर सकता है जिस से हमारी शांति और भाईचारा प्रभावित होगा. इसलिए अब भारत को अधिक संयमित और चौकन्ना होना होगा. अगर तालिबान की छत्रछाया में आतंकी संगठन अलकायदा, जैश ए मोहम्मद अपनी ताकत बढ़ाते हैं तो भारत को भी अपनी सुरक्षा पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा. इस से जरूरी विकास कार्यों का प्रभावित होना स्वाभाविक है. भारत के अनेक विश्वविद्यालयों में अफगानी बच्चे शिक्षा पा रहे हैं. जिन में लड़कियों की संख्या भी काफी ज्यादा है. बहुत मुमकिन है कि वे वापस न जाना चाहें. यहीं शादी कर लें. यहीं नौकरी करें. इस के अलावा जो अफगानी तालिबान के शरिया कानून और दबाव में नहीं रहना चाहते, जो तरक्कीपसंद हैं, शिक्षा और आजादी चाहते हैं वे भी बड़ी संख्या में भारत का रुख करेंगे. ऐसे में भारत अतिथि देवो भव: का पालन करते हुए उन का स्वागत करेगा या उन को लौटा कर अपने छोटे दिल का परिचय देगा? जबकि बंगलादेशी नागरिकों की समस्या से देश पहले ही उल झ रहा है. म्यांमार में तख्ता पलट के बाद वहां सेना की गोलियों से डर कर भारत में घुस आने वाले लोगों की संख्या का अनुमान अभी सरकार लगा नहीं पा रही है.

ऐसे में अफगानिस्तान से आने वाले जनसैलाब का सामना भारत कैसे करेगा, यह भी बड़ा सवाल है. -नसीम अंसारी कोचर द्य कौन है तालिबान? अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में तालिबान का उभार हुआ था. पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है छात्र, खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इसलामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हों. कहा जाता है कि कट्टर सुन्नी इसलामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इन की बुनियाद डाली. तालिबान पर देवबंदी विचारधारा का पूरा प्रभाव है. तालिबान को खड़ा करने के पीछे सऊदी अरब से आ रही आर्थिक मदद को जिम्मेदार माना जाता है. शुरुआती तौर पर तालिबान ने ऐलान किया कि इसलामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इसलामी राज्य स्थापित करना उन का मकसद है. शुरूशुरू में सामंतों के अत्याचार, अधिकारियों के भ्रष्टाचार से परेशान जनता ने तालिबान में मसीहा देखा और कई इलाकों में कबायली लोगों ने इन का स्वागत किया, लेकिन बाद में कट्टरता ने तालिबान की यह लोकप्रियता खत्म कर दी. लेकिन तब तक तालिबान इतना ताकतवर हो चुका था कि उस से नजात पाने की लोगों की उम्मीद खत्म हो गई. रूस-अमेरिका के कोल्ड वार का शिकार हुआ

अफगानिस्तान : शुरुआती दौर में अफगानिस्तान में रूसी प्रभाव खत्म करने के लिए तालिबान के पीछे अमेरिकी समर्थन रहा. अमेरिका ने तालिबान को सशक्त किया. ओसामा बिन लादेन जैसा आतंकी अमेरिका की गोद में ही पलाबढ़ा, लेकिन 9/11 के हमले ने अमेरिका को कट्टर विचारधारा की आंच महसूस कराई और वह खुद इस के खिलाफ जंग में उतर गया. लेकिन काबुल-कंधार जैसे बड़े शहरों के बाद पहाड़ी और कबायली इलाकों से तालिबान को खत्म करने में अमेरिकी और मित्र देशों की सेनाओं को 20 वर्षों के लंबे अरसे में भी सफलता नहीं मिली. खासकर, पाकिस्तान से सटे इलाकों में तालिबान को पाकिस्तानी समर्थन ने जिंदा रखा और चीन की इस में खूब मदद रही. आज अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ ही तालिबान ने फिर सिर उठा लिया है और जिस तेजी से उस ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमाया है, उस को देख दुनिया हतप्रभ है.

वचन – भाग 1 : जब घर की चिकचिक और शोरशराबे से परेशान हुई निशा

निशा ने अपने जन्मदिन के अवसर पर हम सब के लिए बढि़या लंच तैयार किया. छक कर भोजन करने के बाद सब आराम करने के लिए जब उठने को हुए तो निशा अचानक भाषण देने वाले अंदाज में उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं आप सब से आज कुछ मांगना चाहती हूं,’’ कुछ घबराते, कुछ शरमाते अंदाज में उस ने अपने मन की इच्छा प्रकट की.

हम सब हैरान हो कर उसे देखने लगे. उस का यह व्यवहार उस के शांत, शर्मीले व्यक्तित्व से मेल नहीं खा रहा था. वह करीब 3 महीने पहले मेरी पत्नी बन कर इस घर में आई थी. सब बड़ी उत्सुकता से उस के आगे बोलने का इंतजार करने लगे.

‘‘आप सब लोग मुझ से बड़े हैं और मैं किसी की डांट का, समझाने का, रोकनेटोकने का जरा सा भी बुरा नहीं मानती हूं. मुझे कोई समझाएगा नहीं तो मैं सीखूंगी कैसे?’’ निशा इस अंदाज में बोल रही थी मानो अब रो देगी.

‘‘बहू, तू तो बहुत सुघड़ है. हमें तुझ से कोई शिकायत नहीं. जो तेरे मन में है, तू खुल  कर कह दे,’’ मां ने उस की तारीफ कर उस का हौसला बढ़ाया. पापा ने भी उन का समर्थन किया.

‘‘बहू, तुम्हारी इच्छा पूरी करने की हम कोशिश करेंगे. क्या चाहती हो तुम?’’

निशा हिचकिचाती सी आगे बोली, ‘‘मेरे कारण जब कभी घर का माहौल खराब होता है तो मैं खुद को शर्म से जमीन में गड़ता महसूस करती हूं. प्लीज…प्लीज, आप सब मुझे ले कर आपस में झगड़ना बिलकुल बंद कर दीजिए…अपने जन्मदिन पर मैं बस यही उपहार मांग रही हूं. मेरी यह बात आप सब को माननी ही पड़ेगी…प्लीज.’’

मां ने उसे रोंआसा होते देखा, तो प्यार भरी डांट लगाने लगीं, ‘‘इस घर में तो सब का गला कुछ ज्यादा जोर से ही फटता है. बहू, तुझे ही आदत डालनी होगी शोर- शराबे में रहने की.’’

‘‘वाह,’’ अपनी आदत के अनुसार पापा मां से उलझने को फौरन तैयार हो गए, ‘‘कितनी आसानी से सारी जिम्मेदारी इस औरत ने बहू पर ही डाल दी है. अरे, सुबह से रात तक चीखतेचिल्लाते तेरा गला नहीं थकता? अब बहू के कहने से ही बदल जा.’’

‘‘मैं ही बस चीखतीचिल्लाती हूं और बाकी सब के मुंह से तो जैसे शहद टपकता है. कोई ऐसी बात होती है घर में जिस में तुम अपनी टांग न अड़ाते हो. हर छोटी से छोटी बात पर क्लेश करने को मैं नहीं तुम तैयार रहते हो,’’ मां ने फौरन आक्रामक रुख अपना लिया.

‘‘तेरी जबान बंद करने का बस यही इलाज है कि 2-4 करारे तमाचे…’’

गुस्से से भर कर मैं ने कहा, ‘‘कहां की बात कहां पहुंचा देते हैं आप दोनों. इस घर की सुखशांति भंग करने के लिए आप दोनों बराबर के जिम्मेदार हैं.’’

‘‘मनोज भैया, आप भी चुप नहीं रह सकते हो,’’ शिखा भी झगड़े में कूद पड़ी, ‘‘इन दोनों को समझाना बेकार है. आप भाभी को ही समझाओ कि इन की कड़वी बात को नजरअंदाज करें.’’

हम दोनों के बोलते ही मम्मी और पापा अपना झगड़ा भूल गए. उन का गुस्सा हम पर निकलने लगा. मैं तो 2-4 जलीकटी बातें सुन कर चुप हो गया, पर शिखा उन से उलझी रही और झगड़ा बढ़ता गया.

हमारे घर में अकसर ऐसा ही होता है. आपस में उलझने को हम सभी तैयार रहते हैं. चीखनाचिल्लाना सब की आदत है. मूल मुद्दे को भुला कर लड़नेझगड़ने में सब लग जाते हैं.

अचानक निशा की आंखों से बह कर मोटेमोटे आंसू उस के गालों पर लुढ़क आए थे. सब को अपनी तरफ देखते पा कर वह हाथों में मुंह छिपा कर रो पड़ी. मां और शिखा उसे चुप कराने लगीं.

करीब 5 मिनट रोने के बाद निशा ने सिसकियों के बीच अपने दिल का दर्द हमें बताया, ‘‘जैसे आज झगड़ा शुरू हुआ ऐसे ही हमेशा शुरू हो जाता है…मेरी बात किसी ने भी नहीं सुनी…क्या आप सब मेरी एक छोटी सी इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते? मेरी खुशी के लिए मेरे जन्मदिन पर एक छोटा सा वचन नहीं दे सकते?’’

हम सभी ने फटाफट उसे वचन दे दिया कि उस की इच्छा पूरी करने का प्रयास दिल से करेंगे. उस का आंसू बहाना किसी को भी अच्छा नहीं लग रहा था.

निशा ने आखिरकार अपनी मांग हमें बता दी, ‘‘घर का हर काम कर के मुझे खुशी मिलती है. मेरा कोई हाथ बटाए, वह बहुत अच्छी बात होगी, लेकिन कोई किसी दूसरे को मेरा हाथ बटाने को कहे…सारा काम उसे करने को आदेश दे, यह बात मेरे दिल को दुखाती है. मैं सब से यह वचन लेना चाहती हूं कि कोई किसी दूसरे को मेरा हाथ बटाने को नहीं कहेगा. यह बात खामखा झगड़े का कारण बन जाती है. जिसे मेरी हैल्प करनी हो, खुद करे, किसी और को भलाबुरा कहना आप सब को बंद करना होगा. आप सब को मेरी सौगंध जो आगे कोई किसी से कभी मेरे कारण उलझे.’’

निशा को खुश करने के लिए हम सभी ने फौरन उसे ऐसा वचन दे डाला. वह खुशीखुशी रसोई संभालने चली गई. उस वक्त किसी को जरा भी एहसास नहीं हुआ कि निशा को दिया गया वचन आगे क्या गुल खिलाने वाला था. कुछ देर बाद पापा ने रसोई के सामने से गुजरते हुए देखा कि निशा अकेली ढेर सारे बरतन मांजने में लगी हुई थी.

‘‘शिखा,’’ वह जोर से चिल्लाए, ‘‘रसोई में आ कर बहू के साथ बरतन क्यों नहीं…’’

‘‘पापा, अभीअभी मुझे दिया वचन क्यों भूल रहे हैं आप?’’ निशा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की, ‘‘पापा, प्लीज, आप दीदी से कुछ मत कहिए.’’

कुछ पलों की बेचैनी व नाराजगी भरी खामोशी के बाद उन्होंने निर्णय लिया, ‘‘ठीक है, मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा, पर तुम्हारे काम में हाथ बटाना तो तेरे हाथ में है. मैं मंजवाता हूं तेरे साथ बरतन.’’

अपने कुरते की बाजुएं ऊपर चढ़ाते हुए वे निशा की बगल में जा खड़े हुए. वे अभी एक तश्तरी पर ही साबुन लगा पाए थे कि मां भागती रसोई में आ पहुंचीं.

‘‘छी…यह क्या कर रहे हो?’’ उन्होंने पापा के हाथों से तश्तरी छीनने की असफल कोशिश की.

मां ने चिढ़ और गुस्से का शिकार हो शिखा को ऊंची आवाज में पुकारा तो निशा ने दबी, घबराई आवाज में उन के सामने भी हाथ जोड़ कर वचन की याद दिला दी.

‘‘क्या मुसीबत है,’’ उन्होंने अचानक पूरी ताकत लगा कर पापा के हाथ से तश्तरी छीन ही ली और उन का हाथ पकड़ कर खींचती हुई रसोई से बाहर ले आईं.

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