अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा बिना खूनखराबे के हो गया. तालिबान इस बार एक नए रूप में सामने आया है. उस ने न तो सरकारी अधिकारियों व नेताओं के साथ मारकाट मचाई, न आम शहरी को नुकसान पहुंचाया. इस बार तो उस ने यह भी कह दिया है कि वह पहले की तरह महिलाओंबच्चियों पर अत्याचार भी नहीं करेगा. उन को पढ़ने और काम करने से भी नहीं रोकेगा. फिर निजाम बदलने पर इतना चीखनाचिल्लाना क्यों? अफगानिस्तान में तालिबान ने अपना परचम फहरा दिया है. अमेरिका वहां से निकल चुका है. उस के सारे सैनिक और दूतावास में काम कर रहे लोग भी निकाले जा चुके हैं तालिबान ने विश्वास दिलाया है कि किसी के साथ कोई सख्ती नहीं होगी.

अफगानिस्तान के लिए अमेरिका ने अपना फैसला लिया. अफगान ने अपना फैसला लिया. अमेरिका की सेनाएं 20 साल से वहां डेरा डाले थीं. आखिर और कब तक डटी रहतीं? अमेरिकी सेना की घर वापसी तो डोनाल्ड ट्रंप के समय में ही तय हो गई थी. अमेरिका ने बाकायदा अपने चुनाव में इसे मुद्दा बनाया था कि उस की फौज को अफगानिस्तान जैसे देशों से वापस लौटना चाहिए. और उस पर अमेरिका में सहमति बनी थी. यानी अमेरिकियों ने अपने देश के हित को देखा और सेना की वापसी करवाई. अब 20 सालों में अफगान में शासन संभाल रहे लोग अगर अब तक अपने पैरों पर नहीं खड़े हो पाए तो क्या यह इस बात का खुलासा नहीं है कि वे शासन करने के काबिल ही नहीं थे? तालिबानियों की 40-50 हजार की संख्या से टकराने में नाकाम रही 3-4 लाख लोगों की अफगानी फौज ने आसानी से हथियार डाल दिए. किसी में दम नहीं था या सब यह चाहते थे कि गनी की गुलामी से मुक्ति मिले. क्या यह वजह नहीं है कि अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी रात के अंधेरे में मुंह छिपा कर देश की जनता को डर और बदहवासी की हालत में छोड़ कर और देश का ढेरों पैसा सूटकेसों में भर कर चंपत हो गए?

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...