नरेंद्र मोदी सरकार देश का निर्माण उन सडक़ों को मानती है जिस पर फर्राटे से बड़ी गाडिय़ां चल सकें या जिन पर एयर कंडीशन बसेें चल सकें. जिन में तीर्थ पर जाने वाले भरे हों. आज देश को जरूरत है ऐसी सडक़ों की जो घरों को जोड़े, ऐसे सीवरों की जो गांव, कस्बे शहर का मलमूत्र ले जाकर ढंग से निपटा कर पानी को बचा सके, ऐसे स्कूलों की जहां हर गरीब पढ़ सकें. ऐसी लाइब्रेरियों की जहां हर तरह की किताबें मिल सकें.
आज देश के गांवगांव में फैक्ट्रियों की जरूरत है. बेरोजगारी को दूर करने के लिए नईनई चीजें बनाने की जरूरत है. बिमारी से बचने के लिए अपस्पतालों की जरूरत है. पर मोदी सरकार ने 25 अगस्त को हुई प्रगति कमेटी की मीङ्क्षटग में पूछा कि चारधाम यात्रा का रास्ता ठीक करने में अदालतों ने कहांकहां रोढ़ा अटका रखा है, इसकी सूची दो. डेढ़ लाख करोड़ रुपए (ये कितने होते हैं, भूल जाइए, बस याद रखिए कि इन कसे ढाई करोड़ परिवारों के घर बन सकते हैं) की सडक़ों का काम किसानों की जमीन अदालतों की दखल के कारण जबरन न छीन पाने की वजह से क्यों रूका है, उस क सूची दें. उस के बाद अदालतों पर दबाव डाला जाएगा कि वे जल्दी फैसले दें.
मोदी सरकार उन मामलों की सूची नहीं मांग रही जिन में कारखानों के बंद हो जाने की वजह से मजदूर और मालिक बेकार हो गए हैं. सरकार को उन मामलों की फिक्र नहीं है जिन में डीजल के मंहगे होने से उपज की लागत बढ़ गई है पर बड़ी कंपनियों की थोक खरीद की वजह से ब्रिकी का दाम नहीं बढ़ा है.
मोदी सरकार के उद्योगपतियों को रेलों के वायदे पूरे करने की ङ्क्षचता है और वह पूछ रही हैकि चाहे जंगल हों या पहाड़, पर्यावरण की ङ्क्षचता में रेल व सडक़ों को बनाना क्यों बंद हो रहा है. पहाड़ों में बनी सडक़ों का क्या हाल हो रहा है, यह दिख रहा है, पूरे हिमालय में बढ़ रहे पूजी जाने वाली नदियों के किनारे टूटने के मामले दिख रहे हैं. सरकार को सब से बड़े धंधे पूजापाठ का ख्याल है, आम मजदूरों और गांव के लोगों का नहीं जो आज भी 10वीं सदी के दौर की तरह जी रहे हैं.
कोविड के बाद सरकार की पहली सोच अस्पतालों और दवाओं पर होनी चाहिए. हस्पताल और दवाएं भारत जैसे देश में हरेक के लिए मुफ्त होने चाहिए पर सरकार ने यह अमीर कंपनियों को दे दिया है जहां सिर्फ धन्ना सेठ जा सकते हैं जो भयंकर तौर पर पूजापाठी भी है. आम किसान, मजदूर, रेहड़ी का व्यापारी, छोटा दुकानदार छोटा कारीगर आज सब सरकार की निगाह में मुफ्त में काम करने वाले गुलाम हैं जिन्हें सिर्फ गेंहूचावल देने से काम चल सकता है.
सरकार की यह सोच कि वह केवल अमीरों या मंदिरों के लिए है, देश के लिए बड़ी घातक हो गर्ई है. अफसोस यह है कि आज सरकार को सच दिखाने वालों ने खुद रंगीन चश्मा चढ़ा रखा है और पिस रहा है आम आदमी जबकि अमीर मालामाल हो रहे हैं जो शेयर बाजार की नई ऊंचाइयों से साफ है.
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