‘‘बचपन में मेरी नानी मु झे बताती थी कि हम लोग मूंगे की चट्टानों पर बसे हैं. मूंगा जो हमारे द्वीप की मिट्टी के नीचे है और पूरे द्वीप को अपने ऊपर संभाले हुए है. नानी कहती थी कि जिस दिन मूंगा नहीं रहेगा, उस दिन हम भी नहीं रहेंगे. मूंगे की इन मजबूत चट्टानों से ही लक्षद्वीप का पूरा ईकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) बना है. नानी की बातें अब मु झे डराती हैं क्योंकि मूंगा धीरेधीरे खत्म हो रहा है. मूंगे से बनी प्रवाल भित्तियां (कोरल रीफ) सिकुड़ रही हैं. ‘‘मु झे याद है, मेरे बचपन में मूंगे के छोटेबड़े टुकड़े जब बह कर किनारे पर आते थे तो हम दोनों भाई उन्हें घर की दीवारें बनाने के लिए इकट्ठा करते थे. उन को कूट कर उसी मिट्टी से घर बनाते थे. अब्बा बड़ी सी नाव में मछलियां पकड़ते थे. कभीकभी वे मु झे अपने साथ ले जाते थे. जिस दिन टूना मछली फंस गई वह दिन अब्बा अपना लकी डे मानते थे. क्योंकि टूना बड़ी मछली है और काफी महंगी बिकती है.

मछली पकड़ना हमारा पारिवारिक पेशा है. हम 2 भाई उच्च शिक्षा ले कर बाहर निकल आए, सरकारी नौकरियों में लग गए मगर परिवार के बाकी सदस्य अभी भी लक्षद्वीप में बितरा द्वीप पर ही रहते हैं.’’ दिल्ली के लक्षद्वीप भवन में ठहरे अमानत खादर लक्षद्वीप के बारे में यों बताते हैं. अमानत केरल में नौकरी करते हैं और काम के सिलसिले में दिल्ली आते रहते हैं. यहां वे अधिकतर लक्षद्वीप भवन में ही ठहरते हैं. लक्षद्वीप के बारे में उन से बातचीत में वे लक्षद्वीप के वर्तमान प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल के रवैए व उन के कार्यों से नाराज दिखते हैं. उन का कहना है, ‘‘विकास के नाम पर इस समय जो कुछ लक्षद्वीप में हो रहा है वह पूरे द्वीप को बरबाद कर देगा.’’ अमानत आगे कहते हैं, ‘‘सरकार लक्षद्वीप को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करना चाहती है, मगर वहां के ईकोसिस्टम की सम झ किसी को नहीं है. वहां की परिस्थितियों को सम झे बगैर, वहां के लोगों को विश्वास में लिए बगैर, आप निर्माण कार्य कैसे कर सकते हैं? ‘‘सौंदर्यीकरण के नाम पर मूंगे की चट्टानों को तोड़ा जाएगा.

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