‘‘बचपन में मेरी नानी मु झे बताती थी कि हम लोग मूंगे की चट्टानों पर बसे हैं. मूंगा जो हमारे द्वीप की मिट्टी के नीचे है और पूरे द्वीप को अपने ऊपर संभाले हुए है. नानी कहती थी कि जिस दिन मूंगा नहीं रहेगा, उस दिन हम भी नहीं रहेंगे. मूंगे की इन मजबूत चट्टानों से ही लक्षद्वीप का पूरा ईकोसिस्टम (पारिस्थितिकी तंत्र) बना है. नानी की बातें अब मु झे डराती हैं क्योंकि मूंगा धीरेधीरे खत्म हो रहा है. मूंगे से बनी प्रवाल भित्तियां (कोरल रीफ) सिकुड़ रही हैं. ‘‘मु झे याद है, मेरे बचपन में मूंगे के छोटेबड़े टुकड़े जब बह कर किनारे पर आते थे तो हम दोनों भाई उन्हें घर की दीवारें बनाने के लिए इकट्ठा करते थे. उन को कूट कर उसी मिट्टी से घर बनाते थे. अब्बा बड़ी सी नाव में मछलियां पकड़ते थे. कभीकभी वे मु झे अपने साथ ले जाते थे. जिस दिन टूना मछली फंस गई वह दिन अब्बा अपना लकी डे मानते थे. क्योंकि टूना बड़ी मछली है और काफी महंगी बिकती है.

मछली पकड़ना हमारा पारिवारिक पेशा है. हम 2 भाई उच्च शिक्षा ले कर बाहर निकल आए, सरकारी नौकरियों में लग गए मगर परिवार के बाकी सदस्य अभी भी लक्षद्वीप में बितरा द्वीप पर ही रहते हैं.’’ दिल्ली के लक्षद्वीप भवन में ठहरे अमानत खादर लक्षद्वीप के बारे में यों बताते हैं. अमानत केरल में नौकरी करते हैं और काम के सिलसिले में दिल्ली आते रहते हैं. यहां वे अधिकतर लक्षद्वीप भवन में ही ठहरते हैं. लक्षद्वीप के बारे में उन से बातचीत में वे लक्षद्वीप के वर्तमान प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल के रवैए व उन के कार्यों से नाराज दिखते हैं. उन का कहना है, ‘‘विकास के नाम पर इस समय जो कुछ लक्षद्वीप में हो रहा है वह पूरे द्वीप को बरबाद कर देगा.’’ अमानत आगे कहते हैं, ‘‘सरकार लक्षद्वीप को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करना चाहती है, मगर वहां के ईकोसिस्टम की सम झ किसी को नहीं है. वहां की परिस्थितियों को सम झे बगैर, वहां के लोगों को विश्वास में लिए बगैर, आप निर्माण कार्य कैसे कर सकते हैं? ‘‘सौंदर्यीकरण के नाम पर मूंगे की चट्टानों को तोड़ा जाएगा.

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उस में सुराख किए जाएंगे. जलमहल बनाए जाएंगे. यह तो पूरे द्वीप को समुद्र में डुबो देगा. ये चट्टानें ही इस द्वीप को समुद्र की ताकतवर लहरों व तूफानों से बचाती हैं. अगर ये दरक गईं तो पूरा द्वीप समुद्र में समा जाएगा. फिर सरकार को वहां के निवासियों और उन के व्यवसाय के बारे में भी सोचना चाहिए. सौंदर्यीकरण और स्वच्छता के नाम पर समुद्र किनारे से हमारे शेड, नावें, मछलियां सुखाने की जगह खाली कराई जाएगी. सड़कें और पार्क बनाने के नाम पर हमारी जमीनें छीनी जाएंगी. जब वहां के निवासियों की रोजीरोटी, जमीन, व्यवसाय सब छिन जाएगा तो वे क्या करेंगे? कहां जाएंगे?’’ मूंगा जो लक्षद्वीप की कहानियों, कल्पनाओं, जीवन, आजीविकाओं और पारिस्थितिक तंत्र का केंद्र है, धीरेधीरे समाप्त हो रहा है. इस के कारण लक्षद्वीप के ईकोसिस्टम में आ रहे परिवर्तनों को यहां के मछुआरे दशकों से देख रहे हैं. अनेक वैज्ञानिक यहां मूंगे की चट्टानों और इस से जुड़े पर्यावरण पर शोध कर रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के चलते बीते 2 दशकों में लक्षद्वीप के समुद्र में मछलियों की संख्या में आश्चर्यजनक रूप में कमी आई है. अब यहां मछुआरों को अपनी नावें ले कर समुद में दूरदूर तक मछली की तलाश में जाना पड़ता है. अमानत बताते हैं, ‘‘मछलियों की तलाश में लोग कईकई दिनों तक गायब रहते हैं, कभीकभी हफ्तों तक क्योंकि मूंगे की चट्टानें, जिन में चारा मछलियां पलती थीं और बड़ी मछलियां उन की तलाश में द्वीप के आसपास ही जमा रहती थीं, अब गायब हो रही हैं. वजह है जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के व्यवहार में परिवर्तन और इस से मूंगे की चट्टानों का लगातार टूटना व नष्ट होना.

’’ शांत और सुरम्य द्वीप पर अशांति के बादल अरब सागर में स्थित भारत का सब से छोटा केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप 36 द्वीपों का एक समूह है. यह भारत के तटीय शहर कोच्चि से करीब 220-440 किलोमीटर की दूरी पर है और कुल 32 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला है. इस में 12 एटोल, 3 रीफ, 5 जलमग्न बैंक और 10 बसे हुए द्वीप हैं. लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती है. यह द्वीपसमूह केरल उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है. 2011 की भारतीय जनगणना के अनुसार लक्षद्वीप की कुल जनसंख्या 64,473 थी जो अब बढ़ कर 70 हजार के आसपास पहुंच गई है. अधिकांश आबादी स्थानीय मुसलमानों की है और उन में से भी ज्यादातर सुन्नी संप्रदाय के शाफी से हैं. यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय मछली पकड़ना और नारियल की खेती करना है, साथ ही टूना मछली का निर्यात भी किया जाता है. इस केंद्रशासित प्रदेश में हर 7वां व्यक्ति मछुआरा है. मछली पकड़ना और नारियल की खेती करना यहां जीवनयापन के पारंपरिक साधन हैं. लेकिन लोग पढ़ेलिखे हैं. यहां 93 फीसदी साक्षरता है. हर द्वीप पर अच्छे स्कूल हैं. 4 कालेज भी हैं. युवा उच्चशिक्षा ग्रहण करने के बाद देश की मुख्य भूमि पर काम करने जाते हैं. लक्षद्वीप के लोगों का केरल के साथ गहरा संबंध है और वे मलयालम भाषा बोलते हैं. सिर्फ मिनिकाय में मालदीव की भाषा दिवेही बोली जाती है.

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यहां के लोग केरल पर निर्भर ही नहीं बल्कि केरल से ही अपनी पहचान मानते हैं. लक्षद्वीप के लोग आपस में काफी घुलमिल कर रहते हैं. कोई भूखा नहीं रहता. स्वास्थ्य सेवाएं भी यहां अच्छी हैं. बीते कुछ सालों में परिवहन व्यवस्था भी बेहतर हुई है. लोगों को लाने व ले जाने के लिए अनेक जहाज चलते हैं. अगत्ती द्वीप से उड़ानें भी हैं. इस के अलावा हैलिकौप्टर सेवा भी है. मगर पर्यटन के लिहाज से लक्षद्वीप कोई आकर्षक जगह नहीं है. यहां सब से बड़ा द्वीप 5 वर्ग किलोमीटर का है और सब से लंबा द्वीप एक छोर से दूसरी छोर तक मात्र 10 किलोमीटर है. पर्यटन सुविधाएं सिर्फ 3 द्वीपों तक ही सीमित हैं. बंगरम द्वीप वैसे तो पानी की कमी के कारण रहने के काबिल नहीं है लेकिन यहां एक खूबसूरत छोटा रिजौर्ट है. यहां के रहवासियों ने अपने द्वीप को काफी शांत, स्वच्छ और खूबसूरत रखा है. मगर अब इस की खूबसूरती पर दाग लगाने की तैयारी की जा रही है. इस की शांत फिजाएं दर्द से चीखने को हैं क्योंकि केंद्र सरकार की ललचाई दृष्टि इस द्वीप पर जम गई है. एक सुरम्य द्वीप समूह पर विकास के नाम पर जो होने वाला है, वह यहां के पर्यावरण की बरबादी का दुस्वप्न है. केंद्र में भाजपा के सत्तासीन होने के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) देशभर में अपना सांप्रदायिक एजेंडा चला रहा है.

इसी कड़ी में मोदी सरकार का अगला निशाना अब लक्षद्वीप है. लक्षद्वीप में विकास और बदलाव के नाम पर तानाशाही के नएनए फरमान जारी किए जा रहे हैं. यह तथाकथित विकास और उस के साथ कुछ और एजेंडे पिछले साल दिसंबर में केंद्र की तरफ से गुजरात के पूर्व गृहमंत्री प्रफुल्ल खोड़ा पटेल को लक्षद्वीप का प्रशासक नियुक्त करने के बाद से सामने आने शुरू हुए हैं. प्रफुल्ल खोड़ा दादर नगर हवेली के भी प्रशासक हैं. लक्षद्वीप को ले कर उन के प्रस्ताव काफी चौंकाने वाले हैं. प्रफुल्ल खोड़ा पटेल लक्षद्वीप के निवासियों के पारंपरिक खानपान में दखल देने से ले कर उन के घरबार, रोजगार, राजनीतिक और जनवादी अधिकार सबकुछ छीन लेने का मंसूबा पाले हुए हैं. वे लक्षद्वीप में विकास के नाम पर जिस तरह के प्रस्ताव पेश कर रहे हैं उन में आम लोगों की जमीनें हथियाने की योजना से ले कर स्थानीय चुनाव में उन की भागीदारी सीमित करने तक की साजिश साफ नजर आ रही है.

एक प्रस्ताव के मुताबिक, 2 से अधिक बच्चों के मातापिता स्थानीय निकाय चुनाव में हिस्सेदारी नहीं कर सकते. वहीं लक्षद्वीप में प्राकृतिक संपदा के दोहन व पर्यटकों की आमद बढ़ाने का सरकारी एजेंडा भूचाल पैदा कर रहा है. प्रफुल्ल पटेल वहां राष्ट्रीय राजमार्ग, मुख्य मार्ग, रिंग रोड, रेलवे, ट्राम, सुरंगें, जलमहल, फाइवस्टार होटल, रिजौर्ट, एयरपोर्ट, बड़ेबड़े पार्क, 50 मीटर चौड़ी सड़क, स्मार्ट सिटी प्रोजैक्ट के तहत नई इमारतें, हाईवे और नहरें बनाने जैसी बातें कर रहे हैं. लक्षद्वीप की प्राकृतिक सुंदरता को देशीविदेशी अमीर सैलानियों को बेचने के लिए यहां इन तमाम निर्माण कार्यों के ठेके मोदी सरकार के चहेते पूंजीपतियों को दिए जाएंगे, जिन में से ज्यादातर गुजराती हैं. इस के लिए लक्षद्वीप के नाजुक पर्यावरण को नुकसान से बचाने के लिए बने तमाम पुराने कानूनों को तोड़नेमरोड़ने से भाजपा को गुरेज नहीं है. नए कानूनों का औचित्य? लक्षद्वीप की पारिस्थितिकी तंत्र को सम झे बगैर, वैज्ञानिकों की सलाहों को दरकिनार कर के विकास की बातें तो हो ही रही हैं, साथ ही, कानून में भी मनमरजी बदलाव व संशोधन किए जा रहे हैं ताकि संघ के एजेंडे में रुकावट बनने वालों को जेल में ठूंसा जा सके.

उल्लेखनीय है कि प्रफुल्ल खोड़ा यहां ‘गुंडा अधिनियम’, ‘तटरक्षक अधिनियम’, ‘पशु संरक्षण अधिनियम’ तथा ‘मसौदा लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021’ (एलडीएआर 2021)’’ को लागू करना चाहते हैं. स्थानीय निवासियों में इन कानूनों को ले कर डर पैदा होने लगा है और वे इस के विरोध में एकजुट होना शुरू हो गए हैं. यह भी गौर करने वाली बात है कि दशकों से लक्षद्वीप के प्रशासक के तौर पर आईएएस अफसर की तैनाती ही होती आई है. यह पहली बार है जब मोदी सरकार ने लक्षद्वीप में गुजरात के पूर्व मंत्री प्रफुल्ल खोड़ा पटेल को कमान सौंपी है. खोड़ा के प्रस्ताव लक्षद्वीप के लिए काफी खतरनाक हैं. वे वहां बीफ पर बैन लगाने की बात करते हैं. गोहत्या पर 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान उन के प्रस्ताव के पीछे छिपे एजेंडे को सम झने के लिए काफी है. लक्षद्वीप में ज्यादा आबादी मुसलामानों की है. बीफ, मछली, नारियल यहां खाने का अहम हिस्सा है.

ऐसे में खोड़ा बीफ को बैन करना चाहते हैं और शराब का कारोबार खोलना चाहते हैं, जो मुसलिम कम्युनिटी में हराम मानी जाती है. गौरतलब है कि बंगरम द्वीप के अलावा लक्षद्वीप में बाकी सभी जगहों पर मद्यनिषेध है, लेकिन खोड़ा का नया प्रस्ताव बाकी द्वीपों पर भी शराब के कारोबार को हरी झंडी देने वाला है. कहने को पर्यटन बढ़ाने के नाम पर ऐसा किया जा रहा है, लेकिन इस के पीछे छिपा एजेंडा यह है कि इस से मुसलिम कम्युनिटी में रोष पैदा होगा, वे विरोध करेंगे और फिर कानून व्यवस्था बिगाड़ने के आरोप में उन को जेल भेजना आसान होगा. गौरतलब है कि लक्षद्वीप एक शांत और सौहार्दपूर्ण जगह है. पुलिस की वैबसाइट के अनुसार, यहां अपराध की दर भारत में सब से कम है. यहां अपराध का आंकड़ा लगभग शून्य है. यहां की जेल में मात्र 4 कैदी हैं. ऐसे में नई जेलों के निर्माण का क्या औचित्य है? प्रफुल्ल खोड़ा के नए प्रस्ताव में नई जेलों का निर्माण भी शामिल है. प्रफुल्ल खोड़ा के प्रस्तावों पर उठने लगी हैं उंगलियां 80 के दशक में लक्षद्वीप के प्रशासक रह चुके जगदीश सागर कहते हैं, ‘‘जहां सब से लंबी सड़क ही मात्र 10 किलोमीटर की है, वहां हाईवे बनाने जैसी बात हो रही है.

क्या मजाक है? प्रफुल्ल खोड़ा लक्षद्वीप को मालदीव की तरह पर्यटन स्थल बनाने का प्रस्ताव ले कर आए हैं. वे क्यों भूल रहे हैं कि मालदीव में 300 द्वीप हैं, जिन में से करीब 100 पर पर्यटक जाते हैं. लेकिन मात्र 36 द्वीपों वाले लक्षद्वीप, जिन में से सिर्फ 10 द्वीपों पर ही लोग बसे हैं, की तुलना मालदीव से कैसे की जा सकती है? लक्षद्वीप में जितने पर्यटक अभी आते हैं, उस से अधिक की उस की क्षमता ही नहीं है. और फिर सैकड़ों मील समुद्र को पार कर कौन यहां उस हाईवे पर चलने आएगा, जिस की कोई मंजिल नहीं? या फिर ट्राम में सफर का आनंद लेने कौन आएगा?’’ शराब की खरीदफरोख्त को खुली छूट, बीफ पर बैन और गुंडा एक्ट लाने के प्रस्ताव पर भी जगदीश सागर सवाल उठाते हैं. सागर पूछते हैं, ‘‘मद्यनिषेध से गुजरात में पर्यटकों का आना बंद नहीं हुआ तो यहां की मुसलिम आबादी की इच्छा के खिलाफ मद्यनिषेध क्यों खत्म किया जा रहा है? पटेल बीफ पर बैन लगा कर स्थानीय नागरिकों के खानपान में बदलाव करना चाहते हैं. जहां कोई गुंडा नहीं, वहां प्रफुल्ल खोड़ा गुंडा कानून लाने की बात कर रहे हैं. क्योंकि इस एक्ट से उन्हें किसी को भी हिरासत में लेने का अधिकार मिल जाएगा.

‘‘जाहिर है, उस का इस्तेमाल मनमाना होगा. जब विकास के नाम पर लोगों की जमीनें जबरन अधिग्रहीत की जाएंगी तो विरोध प्रदर्शन होंगे ही, तब यह एक्ट स्थानीय लोगों को जेल में ठूंसने के काम आएगा. मेरी सम झ से स्थानीय लोगों के लिए बेहद क्रूर फैसले किए जा रहे हैं.’’ खत्म हो सकता है लक्षद्वीप : रोहन आर्थर : लक्षद्वीप पर 20 वर्षों तक शोध करने वाले वरिष्ठ समुद्री जीवविज्ञानी और नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के संस्थापक ट्रस्टी, डाक्टर रोहन आर्थर लक्षद्वीप की आयु को ले कर बेहद चिंतित हैं. बीते 2 दशकों से वे लगातार द्वीप के नीचे मूंगे की चट्टानों को टूटते व सिकुड़ते देख रहे हैं. आर्थर कहते हैं, ‘‘मेरी मुख्य चिंता मूंगे की चट्टानों को ले कर है. यहां के लोगों का अस्तित्व उन्हीं पर निर्भर है. चट्टानों का संबंध केवल मूंगे से नहीं है बल्कि ये संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती हैं. सरकार इसे पानी के नीचे के जंगल के रूप में देखे और जंगल का मतलब सिर्फ पेड़ नहीं है.’’ वे कहते हैं, ‘‘लक्षद्वीप में एक ही समय में 2 बड़े बदलाव हो रहे हैं, जलवायु परिवर्तन से मूंगे की चट्टानों को नुकसान पहुंच रहा है और दूसरा, इस से मछली की आपूर्ति प्रभावित हो रही है. इन दोनों कारणों से लक्षद्वीप पर मछुआरे और उन की आजीविका प्रभावित हो रही है. लक्षद्वीप में चल रहे ताजा घटनाक्रमों के बीच एक ऐसी त्रासदी धीरेधीरे इस जगह को प्रभावित कर रही है,

जिस से आने वाले दिनों में इन द्वीपों पर मनुष्य का निवास मुश्किल हो सकता है.’’ रोहन आर्थर प्रफुल्ल खोड़ा पटेल द्वारा लाई जा रही विकास की तमाम परियोजनाओं पर ढेरों सवाल खड़े करते हैं. वे कहते हैं, ‘‘जिस तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है और मूंगे की चट्टानें बिखर रही हैं उस को देखते हुए लक्षद्वीप के पास समय बहुत कम है और इस कम समय में हम कौन से कदम उठाते हैं, उन पर द्वीपसमूह का और द्वीपसमूह के नागरिकों का अस्तित्व निर्भर करेगा.’’ रीफ के डूबने का खतरा द्वीप पर रहने वाले लोग पूरी तरह कोरल रीफ पर निर्भर होते हैं. प्रवाल भित्तियां, कोरल या मूंगा जीव का समूह है जो सूरज के प्रकाश की मदद से प्रकाश संश्लेषण कर समुद्री जल को अरगोनाइट नामक खनिज में बदलता है. इस के फलस्वरूप चट्टान का निर्माण होता है. प्रवाल के जीवनचक्र की वजह से धीरेधीरे भित्तियों का निर्माण होता है. कुदरती प्रक्रिया, जैसे तूफान, समुद्री लहरें और प्रवाल खाने वाली प्रजातियों की वजह से भित्तियों में कटाव होता है. कटे हुए अरगोनाइट के टुकड़े इस प्रक्रिया में तट पर आते रहते हैं और टूट कर रेत में तबदील हो जाते हैं. प्रवाल भित्तियों के बीचोंबीच रेत का ढेर जमा हो जाता है और द्वीपों का निर्माण होता है. यही द्वीप मनुष्यों का ठिकाना हैं. इसी प्रकार प्रवाल का जीवनचक्र किसी अरगोनाइट या सीमेंट फैक्ट्री जैसे काम करता है. अरगोनाइट बनने की प्रक्रिया अगर चलती रहती है तो यह प्रवाल से बनी हुई सुरक्षा दीवार द्वीप को बनाए रखती है.

और समुद्र की बड़ी लहरों या तूफान के खिलाफ प्रतिरक्षा विकसित करती है. लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और जलवायु परिवर्तन के सामने द्वीप का यह रक्षा कवच बौना साबित हो रहा है. प्रवाल की क्षति सहने की क्षमता कम होती जा रही है. ऐसे में यदि सरकार यहां विकास के नाम पर खुदाई शुरू करेगी या निर्माण कार्य होंगे तो द्वीप का नष्ट होना तय है. शोध में यह बात सामने आई है कि लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती में प्रवाल भित्ति के बनने की रफ्तार उन की कटाई की रफ्तार से बहुत कम हो गई है. इस का मतलब यह हुआ कि अगले कुछ दशकों में कवरत्ती में तट का कटाव तेज होगा और ताजे पानी का भंडार कम हो जाएगा, या खत्म हो जाएगा. ओखी और ताउते जैसे तूफानों से द्वीप को भविष्य में बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा. ‘‘जलवायु परिवर्तन के कारण क्या लक्षद्वीप के डूबने का खतरा है? इस सवाल के जवाब में डा. आर्थर कहते हैं, ‘‘बीते कुछ दशकों से लक्षद्वीप बाढ़ के गंभीर खतरे का सामना कर रहा है. इस का खुलासा हाल ही में जारी आईपीसीसी की रिपोर्ट में भी हो चुका है. जलवायु परिवर्तन के कारण हिंद महासागर में समुद्र के लैवल में बढ़ोतरी हो रही है.

इस से लक्षद्वीप जैसे निचले द्वीपों के लिए गंभीर संकट पैदा हो गया है. लक्षद्वीप में भूमि की औसत ऊंचाई समुद्र के लैवल से 1-2 मीटर के बीच है. इन द्वीपों और उन में रहने वालों की रक्षा मूंगे की वे सख्त चट्टानें कर रही हैं जो किले की तरह द्वीप को घेरे हुए हैं. मगर एक ओर जहां समुद्र का स्तर अभूतपूर्व गति से बढ़ रहा है, वहीं जलवायु परिवर्तन के कारण मूंगे की यह सुरक्षात्मक दीवार ढह रही है. हमारी टीम द्वारा किए गए शोध व अनुमानों से पता चलता है कि क्षरण की दर 2100 तक इतनी बढ़ जाएगी कि द्वीप का अस्तित्व खत्म हो सकता है. आईआईटी खड़गपुर की एक टीम द्वारा हाल के अध्ययन भी इसी दिशा को इंगित करते हैं कि आने वाली शताब्दी में लक्षद्वीप के 80 फीसदी द्वीपों में बाढ़ आ जाएगी.’’ विकास की आवश्यकता क्यों? विकास के नाम पर मूंगे की चट्टानों से छेड़छाड़ द्वीप को नुकसान पहुंचाएगी. चट्टानें द्वीप के लिए एक सुरक्षात्मक अवरोध बनाती हैं जो द्वीपों को तूफान, भूमि कटाव और भूजल स्रोतों के खारे होने से सुरक्षित रखती हैं. इस के अलावा, चट्टान ही स्थानीय समुदायों के लिए जीविका का एक समृद्ध स्रोत है. यह दैनिक भोजन के लिए मछली और अन्य उत्पाद प्रदान करती है.

इसलिए, एक स्वस्थ द्वीप के लिए बुनियादी जीवन का हर तत्त्व, जैसे भोजन, पानी या भूमि सुरक्षा के लिए स्वस्थ चट्टानें आवश्यक हैं. कोई भी गतिविधि जो इस नाजुक प्रणाली के लिए खतरा है, सीधे द्वीप और उस के लोगों के अस्तित्व के लिए खतरा है. जलवायु परिवर्तन से चट्टानें पहले ही नाजुक स्थिति में हैं. हाल ही में मछली पकड़ने में अनियंत्रित वृद्धि ने चट्टान को एक और खतरे से जोड़ दिया है. ऐसे में जिस तरह की विकास योजनाएं सरकार ला रही है वे लक्षद्वीप के ताबूत में अंतिम कील साबित होंगी. अगर मूंगे की चट्टानों को छेड़ा गया तो परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं. सच पूछिए तो लक्षद्वीप को विकास की आवश्यकता नहीं है. यहां 100 फीसदी साक्षरता है. असमानता का सूचकांक यहां दुनिया में सब से कम है. यहां एक समग्र मानव विकास सूचकांक है जो भारत के सभी राज्यों से ज्यादा है. अपराध नगण्य है. लोग शांतिपूर्वक मिलजुल कर रहते हैं तो फिर, ऐसे द्वीप को ‘विकास’ की आवश्यकता क्यों है? यह सब सिर्फ मुनाफाखोरी के लिए किया जा रहा है, जो भूमि उपयोग की सदियों पुरानी परंपराओं को उलट देंगे. द्वीपों के विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने की जहां तक बात है, उस का एक अलग मौडल होता है. छोटेछोटे पैमाने पर विकास होता है, द्वीपों के भूउपयोग की संस्कृति और परंपराओं के प्रति सम्मान रखते हुए होता है और वहां के ईकोसिस्टम के प्रति संवेदनशील रहते हुए होता है.

द्वीपों के विकास में 4 चीजें महत्त्वपूर्ण हैं, पहला, वह जलवायु परिवर्तन को देखते हुए पर्याप्त पारिस्थितिकी लचीलेपन को दर्शाता हो. दूसरा, बुजुर्गों और महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ा हो. तीसरा, उस द्वीप पर उत्पन्न होने वाले उत्पादों के मूल्यवर्धन को प्रोत्साहित करने वाला हो. और चौथा, उस तरह के पर्यटन को प्रोत्साहित करे जो द्वीपों की समृद्ध संस्कृति, इतिहास और ईकोसिस्टम का सम्मान करे. सरकारी योजनाओं की सब से चिंताजनक बात यह है कि इस में सामाजिक न्याय और स्थानीय आजीविका को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है. ‘वर्जिन बीच’ की तलाश में आने वाला सैलानी यह नहीं देखना चाहेगा कि तटों पर मछुआरे अपने जालों की गंदगी साफ कर रहे हैं या अपनी मछलियां सुखा रहे हैं. जबकि लक्षद्वीप में समुद्रतट एक जीवंत, मिश्रित उपयोग वाली जगह है जहां मछुआरे, उन के बच्चे और महिलाएं तथा समाज के अन्य सदस्य एकसाथ उस जगह को सा झा करते हैं. यह भारत के किसी भी हिस्से के गांव जैसा है, जहां सब बराबर हैं और यह उन की सामाजिक एकता के लिए नितांत आवश्यक भी है. पर्यटन स्थलों के नाम पर अगर इन चीजों को तटों पर होने से रोका जाएगा तो न सिर्फ मछुआरों व उन की आजीविका पर कुठाराघात होगा, बल्कि लक्षद्वीप समाज के बहुत सारे कार्य इस से प्रभावित होंगे. इन तटों से अधिकांश आबादी की रोजीरोटी जुड़ी है. परियोजना की समीक्षा जरूरी डा. रोहन आर्थर कहते हैं, ‘‘पर्यावरण, मत्स्य पालन, पर्यटन, विकास किसी भी क्षेत्र की किसी भी योजना को, नियमों में बदलाव को जलवायु परिवर्तन और इस से जुड़े प्रतिरोध क्षमता के नजरिए से देखना जरूरी है.

मगर इस मुद्दे पर सब तरफ अजीब सी खामोशी व्याप्त है. ‘‘इस मामले में 2014 में जस्टिस रवींद्रन कमेटी की रिपोर्ट में कई बेहतरीन विचार सु झाए गए थे. उन में लक्षद्वीप और उस के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की संवेदनशीलता का स्पष्ट रूप से उल्लेख था और द्वीपसमूह की पारिस्थितिकी को बचाए रखने के लिए तथाकथित ‘विकास’ की एक सीमा तय करने की सिफारिश की गई थी. पर विडंबना ही है कि उन सिफारिशों पर कभी ध्यान नहीं दिया गया. नीति आयोग द्वारा लक्षद्वीप को विकसित करने की ताजा योजना को देखते हुए तो कहा जा सकता है कि जस्टिस रवींद्रन कमेटी की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.’’ डा. रोहन आर्थर कहते हैं, ‘‘लक्षद्वीप के विकास के लिए प्रस्तावित (ड्राफ्ट लक्षद्वीप डैवलपमैंट अथौरिटी रैगुलेशन औफ 2021) विकास के मौडल का यहां के पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से कोई लेनादेना नहीं है. इस में विकास संबंधित मूलभूत संरचना, उचित शासन और दृढ़ योजनाओं की जरूरत पर ही बल दिया गया है.’’ ‘‘इस नए रैगुलेशन में जमीन के उपयोग संबंधी सभी निर्णयों को किसी एक संस्था के हाथ में केंद्रित करने की बात कही गई है जो अपनी सहज बुद्धिविवेक से द्वीपों के विकास की राह तय करेगी. मगर हास्यास्पद है कि इस विकास की दशादिशा तय करने में लक्षद्वीप के नागरिकों की कोई भूमिका नहीं होगी, जो अपने क्षेत्र को भलीभांति सम झते हैं.

न ही वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को कोई जगह दी गई है.’’ आर्थर के अनुसार, सरकार उपभोक्तावादी विकास मौडल को लागू करने से पहले जान ले कि लक्षद्वीप की प्रवाल भित्तियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं. उन के भीतर रहने वाली मछलियों की संख्या कम होती जा रही है. यहां के निवासियों के लिए मीठे पानी के स्रोत कम हो रहे हैं. समुद्र का बढ़ता जलस्तर द्वीप को पानी में डुबो कर खत्म करने पर आमादा है. लक्षद्वीप अंधाधुंध विकास का भार उठा ही नहीं सकता है. यह काफी छोटा पर अनमोल द्वीप है. यह बहुत अजीब है कि सरकार प्रवाल भित्तियों को बचाने व संरक्षित करने के बजाय यहां निर्माण कार्य करवाने पर उतारू है. द्य एनिमल प्रिजर्वेशन रैगुलेशन की क्या जरूरत ‘‘लक्षद्वीप में नए नियमों की कोई जरूरत नहीं है. पुराने कानून से ही लक्ष्य साधा जा सकता है. लक्षद्वीप को मालदीव मौडल पर विकसित करने की सोच खतरनाक है. प्रफुल्ल खोड़ा पटेल चाहते हैं कि लक्षद्वीप को मालदीव की तर्ज पर विकसित किया जाए, लेकिन पर्यावरणविद पहले ही ऐसे प्रस्ताव को खारिज कर चुके हैं. ‘‘आईलैंड डैवलपमैंट अथौरिटी ने मालदीव का दौरा किया था. उस के बाद उस ने बहुत ही गंभीरता से मालदीव मौडल को लागू करने से मना कर दिया था. क्या पटेल चाहते हैं कि लक्षद्वीप में भी मालदीव की तरह अतिवाद और चरमपंथी गतिविधियां बढ़ें? कृपया अपने दिमाग का इस्तेमाल कीजिए. लक्षद्वीप एनिमल प्रिजरर्वेशन रैगुलेशन की क्या जरूरत है? यहां के लोगों का मुख्य भोजन नौनवेज है. लोग बीफ, सीफूड, कै्रब और औक्टोपस खाना पसंद करते हैं. आप उन से उन का खानपान कैसे छीन सकते हैं?’’ वजाहत हबीबुल्लाह (लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक)

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