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जब बेटी को हो जाए शादीशुदा आदमी से प्यार तो क्या करें!

युवाओं में प्रेम होना एक आम बात है. अब समाज धीरे-धीरे इसे स्वीकार भी कर रहा है. माता- पिता भी अब इतना होहल्ला नहीं मचाते, जब उनके बच्चे कहते हैं कि उन्हें अमुक लड़की/लड़के से ही शादी करनी है, लेकिन अगर कोई बेटी अपनी मां से आकर यह कहे कि वह जिस व्यक्ति को प्यार करती है, वह शादीशुदा है तो मां इसे स्वीकार नहीं कर पाती.

ऐसे में बेटी से बहस का जो सिलसिला चलता है, उसका कहीं अंत ही नहीं होता, लेकिन बेटी अपनी जिद पर अड़ी रहती है. मां समझ नहीं पाती कि वह ऐसा क्या करे, जिससे बेटी के दिमाग से इश्क का भूत उतर जाए. ऐसे संबंध प्राय: तबाही का कारण बनते हैं. इस से पहले कि बेटी का जीवन बरबाद हो, उसे उबारने का प्रयास करें.

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कारण खोजें

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलिज में मनोचिकित्सा विभाग के निदेशक डॉक्टर आरसी जिलोहा का कहना है कि इस तरह के मामले में मां एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं. मां के लिए पहले यह जानना जरूरी है कि बेटी का किसी अन्य व्यक्ति की ओर आकर्षण का कारण घरेलू वातावरण तो नहीं है. कहीं यह तो नहीं कि जिस प्यार व अपनेपन की बेटी को जरूरत है, वह उसे घर में नहीं मिलता हो और ऐसे में वह बाहर प्यार ढूंढ़ती है और हालात उसे किसी विवाहित पुरुष से मिलवा देते हैं.

यह भी संभव है कि वह व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन से संतुष्ट न हो. चूंकि दोनों के हालात एक जैसे हैं, सो वे भावुक हो एकदूसरे के साथ न जुड़ गए हों. यह भी संभव है कि अपनी पत्नी की बुराइयां कर के और खुद को बेचारा बना कर लड़कियों की सहानुभूति हासिल करना उस व्यक्ति की सोचीसमझी साजिश का एक हिस्सा है.

सो, बेटी से एक दोस्त की तरह व्यवहार करें व बातोंबातों में कारण जानने का प्रयास करें, तभी आप अगला कदम उठा पाएंगी.

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सही तरीका अपनाएं

डॉक्टर जिलोहा का कहना है कि बेटी ने किसी शादीशुदा से प्यार किया, तो अकसर माताएं उन को डांटती-फटकारती हैं और उसे उस व्यक्ति को छोड़ने के लिए कहती हैं, पर ऐसा करने से बेटी मां को अपना दुश्मन मानने लगती है. बेहतर होगा कि प्यार से उसे इसके परिणाम बताएं. बेटी को बताएं कि ऐसे रिश्तों का कोई वजूद नहीं होता. व्यावहारिक तौर पर उसे समझाएं कि उसके संबंधों के कारण बहुत सी जिंदगियां तबाह हो सकती हैं. फिर जो व्यक्ति उस के लिए अपनी पत्नी व बच्चों को छोड़ सकता है, वह किसी और के लिए कभी उसे भी छोड़ सकता है, फिर वह क्या करेगी?

मदद लें

आप चाहें तो उस व्यक्ति की पत्नी से मिलकर समस्या का हल ढूंढ़ सकती हैं. अकसर पति के अफेयर की खबर सुनते ही कुछ पत्नियां भड़क जाती हैं और घर छोड़ कर मायके चली जाती हैं. उसे समझाएं कि वह ऐसा हरगिज न करे. बातोंबातों में उस से यह जानने का प्रयास करें कि कहीं उसके पति के आप की बेटी की ओर झुकाव का कारण वह स्वयं तो नहीं. ऐसा लगे तो एक दोस्त की तरह उसे समझाएं कि वह पति के प्रति अपने व्यवहार को बदल कर उसे वापस ला सकती है.

प्लान बनाएं

आप की सभी तरकीबें नाकामयाब हो जाएं तो उसकी पत्नी से मिल कर एक योजना तैयार करें, जिस के तहत पत्नी आप की बेटी को बिना अपनी पहचान बताए उसकी सहेली बन जाए. उसे जताएं कि वह अपने पति से बहुत प्यार करती है. उसके सामने पति की तारीफों के पुल बांधें. अगर वह व्यक्ति अपनी पत्नी की बुराई करता है तो एक दिन सच्चाई पता चलने पर आपकी बेटी जान जाएगी कि वह अब तक उसे धोखा देता रहा है. ऐसे में उसे उस व्यक्ति से घृणा हो जाएगी और वह उस का साथ छोड़ देगी.

यह भी हो सकता है कि उन का शादी का इरादा न हो और अपने संबंधों को यों ही बनाए रखना चाहते हों. ऐसे में बेटी को बारबार समझाने या टोकने से वह आप से और भी दूर हो जाएगी. उस को दोस्त बना कर उसे समझाएं और प्रैक्टिकली उसे कुछ उदाहरण दें तो शायद वह समझ जाए.

वचन – भाग 2 : जब घर की चिकचिक और शोरशराबे से परेशान हुई निशा

‘‘आप को यह काम शोभा देगा क्या? जाइए, अपने कमरे में आराम कीजिए. मैं करवा रही हूं बहू के साथ काम,’’ मां मुड़ीं और किलसती सी निशा के पास पहुंच कर बरतन साफ कराने लगीं.

गुसलखाने से बाहर आते हुए मैं ने साफसाफ देखा पापा शरारती अंदाज में मुसकरा कर निशा की तरफ आंख मारते हुए जैसे कह रहे हों कि आ गया ऊंट पहाड़ के नीचे. फिर वे अपने कमरे की तरफ चले गए. मेरे देखते ही देखते शिखा भी रसोई में आ गई.

‘‘इतने से बरतनों को 3-3 लोग मांजें, यह भी कोई बात हुई. मुझे सुबह से पढ़ने का मौका नहीं मिला है. मां, जब भाभी हैं यहां तो तुम ने मुझे क्यों चिल्ला कर बुलाया?’’ शिखा गुस्से से बड़बड़ाने लगी.

‘‘मैं ने इसलिए तुझे बुलाया क्योंकि तेरे पिताजी के सिर पर आज बरतन मंजवाने का भूत चढ़ा था.’’

‘‘यह क्या कह रही हो?’’ शिखा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मैं सही कह रही हूं. अब सारी रसोई संभलवा कर ही पढ़ने जाना, नहीं तो वे फिर यहां घुस आएंगे,’’ कह कर मां रसोई से बाहर आ गईं.

उस दिन से निशा के वचन व पापा की अजीबोगरीब हरकत के कारण शिखा मजबूरन पहली बार निशा का लगातार काम में हाथ बटाती रही.

इस में कोई शक नहीं कि शादी के कुछ दिनों बाद से ही निशा ने घर के सारे कामों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी. हर काम को भागभाग कर करना उस का स्वभाव था. इस कारण शिखा और मम्मी ने धीरेधीरे हर काम से हाथ खींचना शुरू कर दिया था. इस बात को ले कर मैं कभीकभी शोर मचाता, तो मां और शिखा ढकेछिपे अंदाज में मुझे जोरू का गुलाम ठहरा देतीं. झगड़े में इन दोनों से जीतना संभव नहीं था क्योंकि दोनों की जबानें तेज और पैनी हैं. पापा डपट कर शिखा या मां को अकसर काम में लगा देते थे, पर इस का फल निशा के लिए ठीक नहीं रहता. उसे अपनी सास व ननद की ढेर सारी कड़वी, तीखी बातें सुनने को मिलतीं.

अगले दिन सुबह पापा ने झाड़ू उठा कर सुबह 7 बजे से घर साफ करना शुरू किया, तो फिर घर में भगदड़ मच गई.

‘‘बहू, तुम नाश्ता बनाती रहो. मैं 15-20 मिनट में सारे घर की सफाई कर दूंगा,’’ कह कर पापा फिर से ड्राइंगरूम में झाड़ू लगाने लगे.

‘‘ऐसी क्या आफत आ रही है, पापा?’’ शिखा ने अपने कमरे से बाहर आ कर क्रोधित लहजे में कहा, ‘‘झाड़ू कुछ देर बाद भी लग सकती है.’’

‘‘घर की सारी सफाई सुबह ही होनी चाहिए,’’ पापा ने कहा.

‘‘लाइए, मुझे दीजिए झाड़ू,’’ शिखा ने बड़े जोर के झटके से उन के हाथ से झाड़ू खींची और हिंसक अंदाज में काम करते हुए सारे घर की सफाई कर दी.

वह फिर अपने कमरे में बंद हो गई और घंटे भर बाद कालेज जाने के लिए ही बाहर निकली. उस दिन जबरदस्त नाराजगी दर्शाते हुए वह बिना नाश्ता किए ही कालेज चली गई. मां ने इस कारण पापा से झगड़ा करना चाहा तो उन्होंने शांत लहजे में बस इतना ही कहा, ‘‘पहले मैं शोर मचाता था और अब चुपचाप बहू के काम में हाथ बटाता हूं क्योंकि हमसब ने उसे ऐसा करने का वचन दिया है. शिखा को मेरे हाथ से झाड़ू छीनने की कोई जरूरत नहीं थी.’’

‘‘रिटायरमैंट के बाद भी लोग कहीं न कहीं काम करने जाते हैं. तुम भी घर में पड़े रह कर घरगृहस्थी के कामों में टांग अड़ाना छोड़ो और कहीं नौकरी ढूंढ़ लो,’’ मां ने बुरा सा मुंह बना कर उन्हें नसीहत दी तो पापा ठहाका लगा कर हंस पड़े.

उस शाम मुझे औफिस से घर लौटने में फिर देर हो गई. पुराने यारदोस्तों के साथ घंटों गपशप करने की मेरी आदत छूटी नहीं थी. निशा ने कभी अपने मुंह से शिकायत नहीं की, पर यों लेट आने के कारण मैं अकसर मां और पिताजी से डांट खाता रहा हूं.

‘‘बहू के साथ कहीं घूमने जाया कर. उसे रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिलवाना चाहिए तुझे. यारदोस्तों के साथ शादी के बाद ज्यादा समय बरबाद करना छोड़ दे,’’ बारबार मुझे समझाया जाता, पर मैं अपनी आदत से मजबूर था.

मैं उस दिन करीब 9 बजे घर में घुसा तो मां ने बताया, ‘‘तेरी बहू और पिताजी घूमने गए हुए हैं.’’

‘‘कहां?’’ मैं ने माथे पर बल डाल कर पूछा.

‘‘फिल्म देखने गए हैं.’’

‘‘और खाना भी बाहर खा कर आएंगे,’’ शिखा ने मुझे भड़काया, ‘‘हम ने तो कभी नहीं सुना कि नई दुलहन पति के बजाय ससुर के साथ फिल्म देखने जाए.’’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया और गुस्से से भरा अपने कमरे में आ घुसा. मैं ने खाना खाने से भी इनकार कर दिया.

वे दोनों 10 बजे के बाद घर लौटे. पिताजी ने आवाज दे कर मुझे ड्राइंगरूम में बुला लिया.

‘‘खाना क्यों नहीं खाया है अभी तक तुम ने?’’ पापा ने सवाल किया.

‘‘भूख नहीं है मुझे,’’ मैं ने उखड़े लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं बहू को घुमाने ले गया, इस बात से नाराज है क्या?’’

‘‘इसे छोड़ गए, यह नाराजगी पैदा करने वाली बात नहीं है क्या?’’ मां ने वार्त्तालाप में दखल दिया, ‘‘इसे पहले से सारा कार्यक्रम बता देते तो क्या बिगड़ जाता आप का?’’

‘‘देखो भई, बहू के मामलों में मैं ने किसी को भी कुछ बतानासमझाना बंद कर दिया है. जहां मुझे लगता है कि उस के साथ गलत हो रहा है, मैं खुद कदम उठाने लगा हूं उस की सहायता के लिए. अब मेरे काम किसी को अच्छे लगें या बुरे, मुझे परवा नहीं,’’ पापा ने लापरवाही से कंधे उचकाए.

डांस थेरैपी: फिटनेस का नया तरीका, फायदे जान आप भी होंगे हैरान

डांस करना महज एक कला या शौक ही नहीं, बल्कि यह उपचार की एक पद्धति भी है. आधुनिक शोध और अध्ययनों ने इस बात की पुष्टि की है कि नृत्यशैली चाहे जो हो, डांस करने वाले की सेहत पर उस के सकारात्मक असर होते हैं और यह व्यक्ति को ताउम्र स्वस्थ, निरोगी तथा दीर्घायु वाला बना सकती है. अब तो इसे एक थेरैपी के तौर पर अपनाया जाने लगा है. बिना दवा के उपचार की यह पद्धति विश्वभर में लोकप्रिय होती जा रही है.

अब डांस सिर्फ ऐंटरटेनमैंट नहीं बल्कि मानसिक और शारीरिक बीमारियों के इलाज का जरिया भी है, जिस के लिए बाकायदा डिगरी और ट्रेनिंग लिए थेरैपिस्ट मौजूद हैं. यही नहीं, यह थेरैपी बच्चों के स्कूलों, हौस्पिटल, डीऐडिक्शन सैंटर और डांस इंस्टिट्यूट का हिस्सा बन चुकी है. प्राइवेट कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के तनाव को कम करने और परफौर्मैंस को बढ़ाने के लिए औफिस में ही डांस थेरैपी सेशन शुरू कर दिए हैं. स्पैशल ऐजुकेटर और हैल्थ प्रोफैशनल्स को थेरैपी सिखाई जा रही है. इस से डिप्रैशन और पार्किंसन जैसी मानसिक बीमारियों व शारीरिक अक्षमता जैसी समस्याओं का भी इलाज किया जा रहा है.

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डांस के फायदे

डांस मूवमैंट फेसिलिटेटर निरमेथा जैन के अनुसार, शरीर के लिए मूवमैंट बेहद जरूरी है. पैदा होने से पहले ही बच्चा मूवमैंट के जरिए अपनी बात कहने लगता है. जब हम बड़े होने लगते हैं, शरीर का हिलना कम हो जाता है. जिस से हमारे ऐक्सप्रैशन जाहिर होने कम हो जाते हैं. डांस इसी ऐक्सप्रैशन को मूवमैंट के जरिए रिलीज करता है.

मुंबई की देविका मेहता गरबा से अपने पेरैंट्स का इलाज करती हैं. उन्होंने साइकोलौजी की पढ़ाई की है. वे कहती हैं, ‘‘गरबे के मूवमैंट जन्म से मृत्यु तक के सारे जीवनचक्र को दिखाते हैं. ताली बजाने से ऐक्युप्रैशर पौइंट्स चार्ज होते हैं. झुकने और उठने से शरीर की कनैक्टिविटी बनी रहती है, हाथों और आंखों का कोऔर्डिनेशन सुधरता है और कम्युनिकेशन बेहतर होता है.’’

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निकिता मित्तल फिजियोथेरैपिस्ट थीं. पीडिएट्रिक रिहेबिलिटेशन सैंटर में नौकरी करती थीं. उन्हें डांस थेरैपी के बारे में पता चला. अब वे अपंग बच्चों के लिए पुणे में डांस थेरैपी एकेडमी चलाती हैं. निकिता कहती हैं, ‘‘अपंग बच्चे सोचते हैं कि वे अक्षम हैं. डांस उन का ध्यान बांट कर उन से वही काम करवाता है. इमोशनल और फिजिकल हैल्थ को ध्यान में रख कर वे हर बच्चे को कोर्स करवाती हैं.’’

व्हीलचेयर पर बैठे अपने भाई से त्रिपुरा कश्यप को डांस थेरैपी सीखने का आइडिया मिला. उन का भाई म्यूजिक सुनते ही व्हीलचेयर पर बैठेबैठे कमर से ऊपर के हिस्से को हिलाता था. त्रिपुरा के पास क्लासिकल डांस में डिगरी थी, उन्होंने साइकोलौजी से मास्टर किया और फिर अमेरिका जा कर डांस थेरैपी की ट्रेनिंग ली. वे वृद्धाश्रमों में बुजुर्गों को भी थेरैपी देती हैं और अपंग बच्चों के लिए भी सेशन कराती हैं. वे दिल्ली, बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद में भी वर्कशौप आयोजित करती हैं.

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डांस कई समस्याओं का हल

वैज्ञानिकों ने शोध में पाया कि नृत्य से तनाव, थकान और सिरदर्द जैसी समस्याओं से नजात मिल सकती है. इस के अलावा, यह थेरैपी मैंटल हैल्थ और सैल्फ एस्टीम में भी अपना योगदान देती हैं, व्यक्ति मानसिक रूप से फ्री होता है और उस में समस्याओं का सामना करने की ज्यादा क्षमता उत्पन्न हो जाती है.

स्वीडन की ओरेबी यूनिवर्सिटी हौस्पिटल की फिजिकल थेरैपिस्ट अन्ना डुबर्ग और कई चिकित्सकों ने लड़कियों पर एक अध्ययन किया. इस में 112 युवतियों को शामिल किया गया. जिन की उम्र 13 से 19 वर्ष के बीच थी. 8 महीने तक किए गए इस अध्ययन में 91 फीसदी युवतियों पर इस का असर पौजिटिव पाया गया.

डांस द्वारा हम चुस्तदुरुस्त रह सकते हैं. डांस मोटापे को हावी नहीं होने देता और इस से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है तथा शरीर लचीला होता है. इस से हाथ, पैर, कमर, पेट, गरदन, आंखें आदि सभी में लोच बढ़ती है. रक्त का संचार शरीर में नियमित रहता है.

डांस से ताउम्र जोश बरकरार

तन और मन की स्वस्थता के लिए डांस बहुत जरूरी है. इस से शरीर तो स्वस्थ और मजबूत बनता ही है, साथ ही मन भी प्रफुल्लित रहता है. डांस से मानसिक परेशानियां और उलझनें दूर होती हैं तथा आत्मविश्वास में वृद्धि होती है. चिरयौवन के लिए डांस का बड़ा योगदान है. इस से शरीर पर उम्र का प्रभाव देर से आता है. इस से तन और मन में ताउम्र जोश और उमंग बनी रहती है.

बीमारियों का इलाज भी

डांस के जरिए न केवल मनोरंजन बल्कि औटिज्म, डिप्रैशन, मोटापा और मधुमेह जैसी बीमारियों का इलाज भी हो सकता है. गौरतलब है कि कुछ डांस एक्युपंक्चर के सिद्धांत पर आधारित हैं और इस के जरिए कई बीमारियों का इलाज हो सकता है.

क्लासिकल डांस की भावभंगिमाएं व्यायाम पर आधारित होती हैं. अंगों के संचालन से संपूर्ण शरीर का व्यायाम होता है. भरतनाट्यम में तो आंखों, पलकों और पुतलियों का भरपूर व्यायाम होता है. कथक नृत्य में भी ग्रीवाभेद व नेत्र संचालन किया जाता है. डांस के दौरान गरदन की भी अच्छी कसरत हो जाती है. इस से गरदन सुडौल और सुराहीदार होती है. डांस से शरीर सुडौल और चेहरे पर निखार आता है. कमर, नितंब, स्तन आदि अंगों में कसाव आता है तथा वे सही आकार में आ जाते हैं.

ऐरोबिक्स तो नाचते हुए सेहत बनाने का एक सर्वमान्य तरीका है, जिस के माध्यम से कई लोग अपनी सेहत बना रहे हैं. ऐरोबिक्स से न केवल शरीर में स्फूर्ति आती है बल्कि मन की शांति तथा दिमागी कार्यक्षमता भी बढ़ती है.

डांस से पौैजिटिव सोच

डांस व्यक्ति की सोच को सकारात्मक बनाता है तथा मन को शांति प्रदान करता है. इस से शरीर को नई ऊर्जा मिलती है और व्यक्ति खुद को पहले से अधिक चुस्तदुरुस्त पाता है. कसरत करने से दिल की मांसपेशियां उतनी सक्रिय नहीं होतीं, लेकिन डांस करने से रोमरोम फड़क उठते हैं.

शोध से पता चला है कि डांस मांसपेशियों की ऊर्जा बढ़ाता है, श्वसन प्रक्रिया को नियमित करता है तथा ब्लडप्रैशर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है. यही नहीं, इस से घबराहट व बेचैनी दूर होती और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है.

यदि वर्जिश संगीतमय हो तो व्यायाम के लाभ दोगुने हो जाते हैं. सुरताल के साथ किए जाने वाले व्यायाम को ऐरोबिक्स कहते हैं. इस की बाजार में सीडी तथा डीवीडी मिलती हैं. ऐरोबिक्स  के लिए पौपसंगीत की धुनें ठीक रहती हैं.

वैज्ञानिक विश्लेषणों से पता चलता है कि भागदौड़ की जिंदगी में यदि मनपसंद डांस दैनिक जीवन में आत्मसात किया जाए, तो हर दर्द में दवा की जरूरत नहीं पड़ती.

पत्नी के बदलते स्वर

लेखक- अक्षय कुलश्रेष्ठ

रामी काफी परेशान थी, क्योंकि देश में कोरोना के चलते 21 दिन का लौकडाउन था. बच्चे और पति राज घर पर ही थे. हर समय बच्चों के साथसाथ ये भी कुछ न कुछ फरमाइश करते रहते. रामी को इस का कोई तोड़ नजर नहीं आ रहा था, तभी घर का काम करते हुए 3 अप्रैल की सुबह प्रधानमंत्री के भाषण की आवाज उस के कानों में सुनाई पड़ी: ‘5 अप्रैल, 2020 की रात 9 बजे, 9 दीए…’ रामी बस इतना ही सुन सकी, तभी छोटे बच्चे ने कार्टून का चैनल लगा दिया. पति राज छत से टहल कर नीचे आए और एक कप चाय की मांग कर डाली. उन्हें नहीं पता था प्रधानमंत्री के इस भाषण के बारे में.

पति राज कुछ समझ पाता, पत्नी रामी ने थैला थमाते हुए कहा कि पहले कहीं से 9 दीए का इंतजाम करो. ‘क्यों…? क्या हुआ…? इन दीए का क्या करोगी…?’ राज ने पूछने की गुस्ताखी की, ‘क्या लौकडाउन में भी…’ ‘जी हां, पहले जो कहा है, वह करो,’ रामी ने गुस्सा दिखाते हुए कहा. ‘अच्छा, जो तुम कहोगी, वही होगा, पर पहले नहा तो लेने दो,’ राज ने अपना पक्ष रखा. राज कुछ सोचता हुआ नहाने बाथरूम की ओर चला गया. राज जब नहा कर आया, तो उस ने मुसकान बिखेरते हुए रामी से एक कप चाय की फरमाइश कर दी. चाय का नाम सुनते ही रामी का पारा चढ़ गया, ‘पहले जो कहा है, उसे पूरा करो.’ नरम पड़ते हुए राज ने रामी से कहा, ‘क्या हुआ आज जो इतनी गुस्से में हो?’ ‘मैं गुस्से में नहीं हूं…’ रामी ने नाराजगी छिपाते हुए कहा. ‘जब मैं आज घर का नाश्ता तैयार कर रही थी, तभी प्रधानमंत्री की स्पीच आ रही थी, जिस में कहा गया था कि रविवार की रात 9 बजे 9 मिनट अंधेरा करें, फिर 9 दीए जला कर बालकनी में रखें…’ रामी ने इतना ही कहा. ‘तुम भी बेवजह हंगामा करती रहती हो,’ राज ने छोटे बेटे के हाथ से मोबाइल छीन कर न्यूज वाला चैनल लगा दिया.

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न्यूज सुन कर राज ने अपना सिर पीट लिया और बोला, ‘हंसी आती है ऐसी बातों पर. क्या इस से कोरोना अपनी चाल बदल लेगा? ‘क्या यही है वायरस को मारने का अचूक फार्मूला? पहले अंधेरा कर दो, फिर कुछ देर तक तेज दीए या मोबाइल की फ्लैश चला दो. रोशनी से आंखें फेल जाएंगी. वायरस दिखेगा नहीं और चला जाएगा, कहानी खत्म.’ ‘यह तुम क्या बोले जा रहे हो? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा,’ रामी राज के अजीब चेहरे को देख कर बोली. ‘तुम बस अपने घर पर ध्यान दो. इधरउधर की बातों में कम,’ राज अजीब नजरों से रामी को देखता हुआ खुद ही चाय बनाने लगा. राज को चाय बनाते देख रामी खुद ही असल बात पर आते हुए बोली, ‘मैं इन दोनों बच्चों से काफी तंग आ चुकी हूं, सारा दिन काम करतेकरते मैं भी थक जाती हूं. कमबख्त, ये लौकडाउन नहीं हुआ, दिमाग का दही हो गया.’ राज ने रामी के गले मे हाथ डालते हुए कहा, ‘क्यों इतनी नाराज होती हो?’ राज का हाथ छिटकते हुए रामी बोली,

‘रहने दो आप भी. मैं ने भी अब तय कर लिया है कि आज रात 9 बजे इन बच्चों से बात करूंगी,’ कहते हुए वह वहां से चली गई. पूरे दिन खुटका रहा, रामी न जाने क्याक्या बच्चों से बोलेगी. रात 9 बजे हम सब के लिए फर्श पर दरी बिछा दी गई. ठीक रात के 9 बजते ही रामी ने 9 मिनट तक अंधेरा कर दिया, उस के बाद मोबाइल की फ्लैश जलाते हुए दरी पर बैठ गई. यह हरकत देख बच्चे हैरानी से मां की ओर देखने लगे. कुछ देर बाद राज ने लाइट जलाई और बच्चों के पास ही आ कर बैठ गए. बच्चों की ओर देख कर रामी बोली, ‘मेरे प्यारो, पापा के दुलारो, आप सब का काम करतेकरते मैं थक गई हूं. लौकडाउन के चलते सब ही घर में बैठे हैं और सिर्फ खाए जा रहे हैं, सो रहे हैं बस.

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‘पूरे दिन मोबाइल फोन पर गेम या व्हाट्सएप पर चैटिंग के अलावा टीवी के तमाम प्रोग्राम देखते रहते हैं और मैं पूरे दिन चकरघिन्नी की तरह इधर से उधर तुम सब की फरमाइश पूरी करने के लिए दौड़ती रहती हूं. ‘इसलिए मैं ने बहुत सोचसमझ कर यह फैसला लिया है कि आज रात 12 बजे…’ कहते हुए रामी ने थोड़ा पोज बदला, ध्यान से सुनिए, ‘आज रात 12 बजे…’ फिर रामी बच्चों की ओर देखने लगी… बच्चों के साथसाथ राज की भी सांस ऊपरनीचे हो रही थी. पता नहीं, क्या कहेगी. फिर मेरी ओर देख कर वह बोली, ‘आज रात 12 बजे से अब इस घर में मेरा लौकडाउन रहेगा. आज से सब अपनाअपना काम खुद ही करेंगे, अगर आप चाहते हैं कि सबकुछ ठीकठाक चलता रहे तो आप को मेरे द्वारा बनाए नियम मानने होंगे. ‘सब से पहला नियम तो यह कि किचन अब जरूरी होगा तभी खुलेगा, वह भी मेरी मरजी से. मतलब, सिर्फ ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर और वह भी लिमिट में.

इस के अलावा शाम 4 बजे का स्नैक वाला प्रोग्राम नहीं होगा, चाय हो या कौफी, सिर्फ सुबह और शाम को ही मिलेगी. दिनभर किसी को चाय या कौफी नहीं मिलेगी. ‘दूसरा नियम यह कि खाने के स्वाद, मात्रा और क्वालिटी पर किसी को कुछ भी कहने का हक नहीं होगा. ‘आप सभी को मेरे बनाए नियम मानने होंगे. यह नियम आज रात 12 बजे से ही लागू माने जाएंगे.’ फिर बच्चों की ओर उंगली दिखाते हुए रामी बोली, ‘अगर घर में ठीक ढंग से रहना है तो मेरे इन नियमों को मानना होगा, वरना बाहर सड़क पर पुलिस वालों से मार खाने के लिए तैयार रहना.’ रामी की बात में सचाई थी, इसलिए सभी चुप थे. पति राज ने बच्चों की आंखों में देखा और एक मत से रामी के लिखे नियम पर दस्तखत कर दिए. ऐसा देख रामी अपनी जीत पर इतराते हुए मुसकराई और बेडरूम की ओर विजयी मुद्रा में सोने चल दी.

वचन – भाग 3 : जब घर की चिकचिक और शोरशराबे से परेशान हुई निशा

‘‘मैं आप से कुछ कह रहा हूं क्या?’’ मेरी नाराजगी अपनी जगह कायम रही.

‘‘बहू से भी कुछ मत कहना. मेरी जिद के कारण ही वह मेरे साथ गई थी. आगे भी अगर तुम ने यारदोस्तों के चक्कर में फंस कर बहू की उपेक्षा करनी जारी रखी तो हम फिर घूमने जाएंगे. हाउसफुल होने के कारण आज फिल्म नहीं देखी है हम दोनों ने. कल की 2 टिकटें लाए हैं. तुझे बहू के साथ जाने की फुरसत न हो तो मुझे बता देना. मैं ले जाऊंगा उसे अपने साथ,’’ अपनी बात कह कर पापा अपने कमरे की तरफ बढ़ गए.

निशा को तंग करने के लिए मैं उस रात खाना बिलकुल न खाता पर ऐसा कर नहीं सका. उस ने मुझे बताया कि वह और पापा सीधे चाचाजी के घर गए थे. दोनों बाहर से कुछ भी खा कर नहीं आए थे. इन तथ्यों को जान कर मेरा गुस्सा गायब हो गया और हम दोनों ने साथसाथ खाना खाया.

अगले दिन निशा और मैं ने साथसाथ फिल्म देखी और खाना भी बाहर खा कर लौटे. यों घूमना उसे बड़ा भा रहा था और वह खूब खुल कर मेरे साथ हंसबोल रही थी. उस की खुशी ने मुझे गहरा संतोष प्रदान किया था.

पापा ने एक ही झटका दे कर मेरी देर से घर आने की आदत को छुड़ा दिया था. यारदोस्त मुझे रोकने की कोशिश में असफल रहते थे. मैं निशा को खुश और संतुष्ट रखने की अपनी जिम्मेदारी पापा को कतई नहीं सौंपना चाहता था.

पापा की अजीबोगरीब हरकतों के चलते मां और शिखा भी बदले. ऐसा हुआ भी कि एक दिन पापा को पूरे घर में झाड़ू लगानी पड़ी. शिखा या मां ने उन्हें ऐसा करने से रोका नहीं था.

उस दिन शाम को चाचा सपरिवार हमारे घर आए थे. पापा ने सब के सामने घर में झाड़ू लगाने का यों अकड़ कर बखान किया मानो बहुत बड़ा तीर मारा हो. मां और शिखा उस वक्त तो सब के साथ हंसीं, पर बाद में पापा से खूब झगड़े भी.

‘‘जो सच है उसे क्यों छिपाना?’’ पापा बड़े भोले बन गए, ‘‘तुम लोगों को मेरा कहना बुरा लगा, यह तुम दोनों की प्रौब्लम है. मैं तो बहू का कैसे भी काम में हाथ बटाने से कभी नहीं हिचकिचाऊंगा.’’

‘‘बुढ़ापे में तुम्हारा दिमाग सठिया गया है,’’ मां ने चिढ़ कर यह बात कही, तो पापा का ठहाका पूरे घर में गूंजा और हमसब भी मुसकराने लगे.

इस में कोई शक नहीं कि पापा के कारण निशा की दिनचर्या बहुत व्यवस्थित हो गई थी. वह बहुत बुरी तरह से थकती नहीं थी. मेरी यह शिकायत भी दूर हो गई थी कि उसे घर में मेरे पास बैठने का वक्त नहीं मिलता था. धीरेधीरे मां और शिखा निशा का घर के कामों में हाथ बटाने की आदी हो गईं.

बहुत खुश व संतुष्ट नजर आ रहे पापा को एक दिन सुबहसुबह मां ने उन्हीं के अंदाज में झटका दिया था.

मां सुबहसुबह रजाई से निकल कर बाहर जाने को तैयार होने लगीं तो पापा ने चौंक कर उन से पूछा, ‘‘इस वक्त कहां जा रही हो?’’

‘‘दूध लाने. ताजी सब्जियां भी ले आऊंगी मंडी से,’’ मां ने नाटकीय उत्साह दिखाते हुए जवाब दिया.

‘‘दूध लाने का काम तुम्हारे बेटे का है और सब्जियां लाने का काम तुम कुछ देर बाद करना.’’

‘‘ये दोनों जिम्मेदारियां मैं ने अब अपने कंधों पर ले ली हैं.’’

‘‘बेकार की बात मत करो, इतनी ठंड में बाहर जाओगी तो सारे जोड़ अकड़ कर दर्द करने लगेंगे. गठिया के मरीज को ठंड से बचना चाहिए. दूध रवि ही लाएगा.’’

पापा ने मुझे आवाज लगाई तो मैं फटाफट उन के कमरे में पहुंच गया. मां ने पिछली रात ही मुझे अपना इरादा बता दिया था. पापा को घेरने का हम दोनों का कार्यक्रम पूरी तरह तैयार था.

‘‘रवि, दूध तुम्हें ही लाना…’’

‘‘नहीं, दूध मैं ही लेने जाया करूंगी,’’ मां ने पापा की बात जिद्दी लहजे में फौरन काट दी.

‘‘मां की बात पर ध्यान मत दे और दूध लेने चला जा तू,’’ पापा ने मुझे आदेश दिया.

‘‘देखो जी, मेरे कारण आप रवि के साथ मत उलझो. मेरी सहायता करनी हो तो खुद करो. मेरे कारण रवि डांट खाए, यह मुझे मंजूर नहीं,’’ मां तन कर पापा के सामने खड़ी हो गईं.

‘‘मैं क्या सहायता करूं तुम्हारी?’’ पापा चौंक पड़े.

‘‘मेरी गठिया की फिक्र है तो दूध और सब्जी खुद ले आइए. रवि को कुछ देर ज्यादा सोने को मिलना ही चाहिए, नहीं तो सारा दिन थका सा नजर आता है. हां, आप को नींद प्यारी है तो लेटे रहो और मुझे अपना काम करने दो. रवि, तू जा कर आराम कर,’’ मां ने गरम मोजे पहनने शुरू कर दिए.

पापा अपने ही जाल में फंस गए. मां मुझे ले कर वही दलील दे रही थीं जो पापा निशा को ले कर देते थे. जैसे निशा ने अपने कारण किसी अन्य से न झगड़ने का वचन हम सब से लिया था कुछ वैसी ही बात मां अब पापा से कर रही थीं.

‘‘तुम कहीं नहीं जा रही हो,’’ पापा ने झटके से रजाई एक तरफ फेंकते हुए क्रोधित लहजे में कहा, ‘‘मेरा आराम तुम्हारी आंखों को चुभता है तो मैं ही दूध लाने जाता हूं.’’

‘‘यह काम आप को ही करना चाहिए. इस से मोटापा, शूगर और बीपी, ये तीनों ही कम रहेंगे,’’ मां ने मुझे देख कर आंख मारी और फिर से रजाई में घुसने को कपड़े बदलने लगीं.

पापा बड़बड़ाते हुए गुसलखाने में घुस गए और मैं अपने कमरे की तरफ चल पड़ा. वैसे एक बात मेरी समझ में उसी समय आई. मां ने जिस अंदाज में मेरी तरफ देखते हुए आंख मारी थी वैसा ही मैं ने पापा को निशा के जन्मदिन पर करते देखा था. यानी कि बहू और ससुर के बीच वैसी ही मिलीभगत चल रही थी जैसी मां और मेरे बीच पापा को फांसने के लिए चली थी. पापा के कारण निशा के ऊपर से गृहकार्यों का बोझ कम हो गया था और अब मां के कारण पापा का सवेरे सैर को जाना शुरू होने वाला था. इस कारण उन का स्वास्थ्य बेहतर रहेगा, इस में कोई शक नहीं था.

अपने मन की बात को किसी के सामने, निशा के भी नहीं, जाहिर न करने का फैसला मन ही मन करते हुए मैं भी रजाई में कुछ देर और नींद का आनंद लेने के लिए खुशीखुशी घुस गया था.

 

खेतों में करें चूहा प्रबंधन

खेतों में करें चूहा प्रबंधन घर हो या खेतखलिहान या फिर हो दुकान, चूहे हर जगह पाए जाते हैं, जो घरों में, दुकानों में सामान काट कर खा कर, नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, खेतखलिहानों में भी ये बहुत नुकसान करते हैं. खाद्य पदार्थों को नुकसान पहुंचाने वाले जीवों में चूहों का पहला स्थान है. एक चूहा एक दिन में तकरीबन 10-60 ग्राम तक अनाज खा सकता है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में कुल उत्पादित खाद्यान्न का तकरीबन 8 से 10 फीसदी चूहे ही बरबाद कर देते हैं और एक बड़ी आबादी के हिस्से का खाद्यान्न खा जाते हैं. साथ ही, खाने के साथसाथ अपने मलमूत्र से अनाज को भी दूषित करते हैं और बीमारियां भी फैलाते हैं.

मादा चूहा 1 साल में 8 से 10 बार बच्चा देती है और एक बार में 6 से 12 बच्चे दे सकती है. एक जोड़ी चूहे यदि नियंत्रित न हों, तो एक साल में 1,000 से 1,200 तक की संख्या बढ़ा सकते हैं. चूहों की संख्या मईजून महीने में कम होती है, यही समय चूहा नियंत्रण अभियान के लिए सही है. क्षेत्र विशेष के लोगों को मिल कर इस की रोकथाम के लिए सामूहिक रूप से अभियान चलाना चाहिए. जानकारी में पाया है कि चूहों के दांत बड़ी तेजी से बढ़ते हैं, इसीलिए आप ने देखा भी होगा कि ये चूहे घरों में कुछ न कुछ काटते रहते हैं. इस समय अनाज भंडारण का भी समय है, इसलिए चूहों पर काबू पाना बहुत जरूरी है, नहीं तो वे भारी नुकसान पहुंचाएंगे.

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आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, सोहांव, बलिया के अध्यक्ष प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि दुनियाभर में चूहों की 500 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं. इन में से हमारे देश में 110 प्रजातियां मिलती हैं. इन्हें 4 कैटीगरी में बांटा गया है. घर का चूहा, पड़ोसी चूहा, खेत का चूहा व जंगली चूहा. इन के प्रबंधन के लिए कम से कम 30 से 40 लोगों की टोली होनी चाहिए. पहले दिन बिलों को देखना चाहिए यानी निरीक्षण करना चाहिए और उन्हें मिट्टी से बंद कर 2 फुट का डंडा पहचान के लिए लगा देना चाहिए.

दूसरे दिन खुले हुए बिलों के पास भुना दाना चना/चावल 10 ग्राम की कागज की पुडि़या बना कर रखनी चाहिए और बंद बिल के पास के डंडे हटा दें. तीसरे दिन भी फिर से सादा चारा रखना चाहिए और चौथे दिन जहरीला चारा 8-10 ग्राम की कागज की पुडि़या बना कर प्रति बिल में शाम के समय रखनी चाहिए. जहरीले चारे के लिए 56 ग्राम दाना भुना चना/चावल, 2 ग्राम जिंक फास्फाइड व 2 ग्राम सरसों का तेल लकड़ी से मिला कर बनाएं. जहरीला चारा रखने के दूसरे दिन सुबह मरे हुए चूहों व बचे हुए जहरीले चारे को इकट्ठा कर के गड्ढा खोद कर दबा देना चाहिए. चूहे को मीठा पसंद होता है.

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किसान खेतों में हो या घर पर, अनाज भंडारणगृह में जलेबी का पाक, जो आसानी से मिल जाता है, रूई की छोटीछोटी गोली बना कर डुबा दें. जब वे गोलियां पूरी तरह से भीग जाएं, तो चूहों के बिल के पास रख दें. चूहा उसे आसानी से खा लेता है. वह रुई की गोली चूहे की आंतों में फंस जाती है. कुछ समय के बाद चूहे की मौत हो जाती है. इस के अलावा प्याज की खुशबू चूहों से बरदाश्त नहीं होती, इसलिए उन जगहों पर प्याज के टुकड़े डाल दें. इतना ही नहीं, खाने में प्रयोग होने वाली लाल मिर्च चूहों को भगाने के लिए काफी कारगर है. जहां से चूहे ज्यादा आते हैं, वहां लाल मिर्च का पाउडर छिड़क दें. इनसानों के बाल से भीकिसान खेतों चूहे भागते हैं, क्योंकि इस को निगलने से इन की मौत हो जाती है, इसलिए इस के नजदीक आने से ये काफी डरते हैं.

शाहिर शेख बने पिता: पत्नी रुचिका कपूर ने बेटी को दिया जन्म, फैंस दे रहे बधाई

टीवी स्टार शाहिर शेख इन दिनों सीरियल पवित्र रिश्ता 2.0 की शूटिंग में व्यस्त हैं. पवित्र रिश्ता के एक्टर के घर इस सीरियल के आने से पहले ही खुशियां दस्तक दे दी है. बीते दिन ही शाहिर शेख की पत्नी रुचिका ने एक बेटी को जन्म दिया है.

शाहिर शेख ने गणपति उत्सव के खास मौके पर अपने घर में बेटी का स्वागत किया है. एक रिपोर्ट में मिली जानकारी के अनुसार शाहिर शेख की पत्नी रुचिका कपूर और उनकी बेटी काफी ज्यादा स्वस्थ्य हैं. इस खास मौके पर शाहिर शेख अपनी पत्नी पर जमकर प्यार लुटाते नजर आएं. बता दें कि रुचिका कपूर और शाहिर शेख ने बीते साल नवंबर में शादी की थी.

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इसके साथ ही  हैं. शाहिर शेख की को स्टार अंकिता लोखंडे ने भी इस बात का खुलासा किया है कि पवित्र रिश्ता का काम खत्म होते ही वह अपने बॉयफ्रेंड से शादी करने वाली हैं, इंटरव्यू में शाहिर शेख ने इस बात की खुलासा किया था कि एक बार वह अंकिता को बोले कि कॉम ऑन अब बता ही दो कि शादी कब करने वाली हो तब अंकिता ने उन्हें हंसते हए जवाब देकर कहा था कि वह इस शो का काम निपटाने के तुरंत बाद शादी के बंंधन में बधेंगी.

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जिसके बाद से अंकिता शाहिर से थोड़ी नाराजगी भी दिखाई थीं, और कहा था कि अभी तो मुझे अपने प्रोजेक्ट पर काम करना है उसके बाद मैं शादी के बारे में सोचूंगी.

इससे पहले भी शाहिर शेख कई सारे सीरियल्स में शाहिर शेख नजर आ चुके हैं, लोगों नने खूब सारा प्यार दिया है.

द कपिल शर्मा शो : गोविंदा की पत्नी ने कृष्णा को लेकर तोड़ी चुप्पी, शो में कही ये बड़ी बात

कॉमे़डियन और एक्टर कृष्णा अभिषेक ने कुछ वक्त पहले यह बयान जारी करते हु कहा था कि कपिल शर्मा शो के अपकमिंग एपिसोड का हिस्सा नहीं होगें, दरअसल कृष्णा ने यह बात इसलिए कहा था क्योंकि अगले एपिसोड में गोविंदा और उनकी पत्नी सुनीता अहूजा आनेे वाले थें.

गौरतलब है की पिछले कुछ महीनों से गोविंदा और कृष्णा के परिवार में तनावपूर्ण माहौल चल रहा है. जिस वजह से कृष्णा इस शो का हिस्सा बनने से इंकार कर दिए. वहीं गोविंदा की पत्नी कृष्णा से इतनी ज्यादा नाराज हैं कि उन्होंने कहा है कि वह कभी भी कृष्णा का चेहरा नहीं देखेंगी.

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आगे सुनीता अहूजा ने कहा कि पिछले साल गोविंदा ने कहा था कि वह कभी भी पारिवारिक मुद्दों का पब्लिक तौर पर नहीं लाना चाहते हैं लेकिन अगर कोई भी उन्हें ज्यादा अंगूली करेगा तो उन्हें वह बर्दाश्त भी नहीं करेंगे. इस बात पर गोविंदा जैंटलमैन की तरह अड़े भी रहे लेकिन पत्नी सुनीता ने कृष्णा के बारे मं बुराई करने से पीछे नहीं हटी.

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अब यह पारिवारिक मुद्दा इतना ज्यादा बढ़ गया है कि इसे मिलकर हल करने की जरुरत है. आगे सुनीता ने कहा कि जब भी हम शो में आते हैं तो हमारे परिवार को लेकर मीडिया पब्लिसिटी लेने की हर कोशिश करती है जो मुझे बिल्कल भी पसंद नहीं है. इस बात पर गोविंदा भी रिएक्ट नहीं करते हैं. लेकिन यह सब चीजें मुझे परेशान करती है.

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इसके बगैर भी तो तुम्हारा शो हिट होता है तो इन सब बकवास चीजों की क्या जरुरत है. गोविंदा की पत्नी की बातों से साफ हो रहा था कि वह काफी ज्यादा नाराज है.

व्यंग्य: माधो! पग पग ठगों का डेरा

लेखक- अशोक गौतम

पता नहीं क्यों कई दिनों से दांत में दर्द हो रहा था. वायरस-फ्री पेस्ट तो दिन में चारचार बार करता रहा हूं. औफिस में खाना तो मैं ने उस दिन से ही त्यागपरित्याग दिया था जिस दिन सिर में पहला सफेद बाल दिखा था. हो सकता है पुराने खाए के चलते अब अंदर से कोई दांत सड़ रहा हो. पुरानी बीमारियां अकसर ईमानदार होने पर ही रंग दिखाती हैं. आजकल वैसे भी अंदर से ही सब सड़ा जा रहा है, क्या सिस्टम, क्या शरीर, बाहर से तो सब चकाचक है. इधरउधर से डैंटिस्ट के रिव्यू सुनने के बाद उन दंत चिकित्सकों के पास गया जिन के बारे में यह भी विख्यात था कि जो भी उन के पास अपने दांतों को ले कर एक बार गया वह दूसरी बार न गया. ‘‘क्या बात है?’’ ‘‘जी, दांत में दर्द है.’’ यह सुन उन्होंने अपने आगे मेरा मुंह खुलवाते कहा, ‘‘गुड, वैरी गुड, वैरीवैरी गुड. अच्छा तो अपना मुंह खोलो.’’ मेरे बहुत कोशिश करने के बाद भी जब उन के मनमाफिक मेरा मुंह न खुला तो वे डांटते बोले, ‘‘हद है यार, खुले मुंहों के दौर में ठीक ढंग से अपना मुंह भी नहीं खोल सकते, जबकि आज आदमी अपना मुंह सोएसोए भी खुला रखता है.’’

‘‘सर, विवाह से पहले मुंह खोलने की जो थोड़ीबहुत आदत थी, विवाह करने के बाद वह भी जाती रही. अब तो जबजब भी मुंह खोलने की कोशिश की, मुंह पर ही मुंह की खानी पड़ी. और अब हालात ये हैं कि महीनों बाद मुंह अभ्यास करने को खोल लिया करता हूं, एकांत में, ताकि कल को मुंह खुलना बिलकुल ही बंद न हो जाए या कि मुंह खोलना भूल ही न जाऊं.’’ पर आखिर वे भी वे थे. अपने हिसाब से मेरा मुंह खुलवा कर ही रहे. जब मेरा मुंह उन के आगे उन के हिसाब का खुल गया तो वे ज्ञान की टौर्च जला मेरे मुंह के भीतर झांकते मु झे दांत दर्द का ओरल समाधान और प्रायोगिक ज्ञान एकसाथ देते बोले, ‘‘डियर, आजकल दर्द कहां नहीं? आजकल दर्द किसे नहीं? यह संसार दर्द के सिवा और कुछ नहीं. इस लोक में दर्द ही शाश्वत है बाकी सब मिथ्या. ब्रह्मचर्य दर्द देता है, गृहस्थ दर्द देता, वानप्रस्थ दर्द देता है,

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और संन्यास तक तो कोई आज पहुंच ही नहीं पाता. ‘‘जो सरकार में हैं उन के भी दर्द हैं, जो सरकार से बाहर हैं उन के तो दर्द ही दर्द हैं, नख से ले कर शिख तक. वोटर से ले कर वेटर तक, हर जीव दर्द से दर्ददर्द चिल्ला रहा है. वे सुबह 10 बजे दर्द लिए उठते हैं और रात को 8 बजे दर्द में चिल्लातेचिल्लाते सो जाते हैं. सारा दिन टीवी के आगे बैठी बीवी सुबह से ले कर शाम तक दर्द से चीखचिल्लाए कराह रही है तो औफिस में उस का वर्कर वर्कलोड के दर्द से चीखचिल्लाए कराह रहा है पर सुनता कोई नहीं. ‘‘आज किसी के सिर में दर्द है तो किसी के पांव में. किसी के पेट में दर्द है तो किसी के दिल में. आजकल बंधु, हवा ही ऐसी चली है कि बंदों को चैन की सांस लेने में दर्द फील हो रहा है.’’ वे डिम टौर्च के प्रकाश से मेरे भीतर पचाने से अधिक ज्ञान का प्रकाश डालते मुंह खुलवाए रखे और बोलते खुद रहे, ‘‘पर याद रहे, आदमी के इसी दर्द का फायदा उठाने को इस दर्द से नजात दिलवाने के लिए आज पगपग पर ठग डेरा सजाए बैठे हैं. धर्म की आड़ में संत ठग रहे हैं तो लोकहित की आड़ में श्रीमंत.

‘‘इधर पकी फसल काटने के नेक इरादे लिए सरकार के शोध संस्थान की मारफत अपना शुद्धीकरण करवा सरकार में आए फसल बटोरने वाले ठग सरकार को ठग रहे हैं तो उधर नंगेपांव सरकार के साथ चले वर्करों को सरकार ठग रही है. कोई दर्द की आड़ में दर्दपीडि़त को ठग रहा है तो कोई मर्ज की आड़ में मर्जपीडि़त को. कोई रोटी की आड़ में भूखे को ठग रहा है तो कोई लंगोटी की आड़ में नंगे को. ‘‘कहीं प्रिय शिष्य की आड़ में ठग आदर्श गुरु को ठग रहा है तो कहीं आदर्श गुरु की आड़ में गुरुकंटाल भोले शिष्य को ठग रहा है. कहीं ठग घनिष्ठ बन ठग को ठग रहा है तो कहीं ठग को घनिष्ठ बना ठगों द्वारा ठगा जा रहा है. कुल मिला कर यह संसार ठगी के अड्डे के अतिरिक्त और कुछ नहीं. ‘‘डियर, दर्द और मर्ज से छुटकारा पाने का लोभ दे भलेचंगे से भलेचंगे, सुखी से सुखी जीव को जितनी सहजता से ठगा जा सकता है उतनी सहजता से स्वर्ग का लोभ दे कर भी नहीं. बिन मेहनत किए बैकुंठ की कामना करने वाला एक यह सुखप्रिय प्राणी है कि स्वयंजनित सौ विध तापों से नजात पाने के चक्कर में ठगों द्वारा कदमकदम पर सप्रेम, सादर, सानुनय ठगा जा रहा है.

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‘‘अब दांत के दर्द को मारो गोली. चक्षु हो तो देखो, सड़क से ले कर संसद तक ठग ही ठग बैठे लेटे हैं, शिकार का इंतजार करते. इसलिए जिंदगी में किसी और से सावधान रहना या न, पर ऐसे ठगों से सावधान जरूर रहना.’’ यह कह उन्होंने मेरे मुंह में घुसाई ज्ञान की टौर्च बाहर निकाली तो मुंह अपनी पोजिशन में आने लगा धीरेधीरे. मत पूछो, मु झे उस वक्त मुंह खोलने में कितनी तकलीफ हुई थी, इतनी कि तब मैं दांत का दर्द तक भूल गया था. उन्होंने ज्ञान की टौर्च औफ कर फाइनली कहा, ‘‘अब एक संवैधानिक सलाह देता हूं, केवल 500 रुपए फीस में. किसी ऐरेगैरे के आगे कभी दांत दिखाने को मुंह मत खोलना. वह मुंह खुलवाने की चाहे जितनी भी कोशिश क्यों न करे, दांत कुछ और दिन चलाने हों तो.’’ सच कहूं, जब मैं ने दांत के दर्द को गोली मार उन को गौर से देखा तो उस वक्त वे मु झे डाक्टर कम किसी चर्च के पादरी अधिक लगे.

और फिर कातिल भाव से मेरी जेब को निहारते चुप हो गए तो मैं ने िझ झकते िझ झकते अपनी जेब से खुशीखुशी उन को 500 रुपए का नोट मुसकराते हुए थमाया और खुशीखुशी घर आ गया. यह सोच कर कि चलो, दांतदर्द के लिए कम से कम कोई दवाई तो न लिखवानीखानी पड़ी. वरना आजकल तो दवा के नाम पर मरीज को पता नहीं क्याक्या खिलायापिलाया जा रहा है.

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