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नीतीश कुमार: पीएम मैटेरियल या पलटीमार

पीएम मैटीरियल या पलटीमार बिहार की राजनीति के क्या ही कहने, यहां कब कौन सियासी दांव खेल जाए, कहा नहीं जा सकता. इन दिनों नजरें फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर टिक गई हैं, उन का बदलाबदला मिजाज फिर खटकने लगा है. बहस है उन के पीएम मैटीरियल या पलटीमार मैटीरियल होने की. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आजकल इस बात को ले कर चर्चा में हैं कि वे राजनीति में किस टाइप के मैटीरियल हैं. जनता दल (यूनाइटेड) के नेता उपेंद्र कुशवाहा का कहना है कि नीतीश कुमार पीएम मैटीरियल हैं जबकि दल के प्रधान महासचिव और प्रवक्ता के सी त्यागी कहते हैं कि नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने की योग्यता है, लेकिन वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं.

वहीं, बिहार में विपक्ष की भूमिका निभा रही राजद यानी राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव का कहना है कि नीतीश कुमार पीएम मैटीरियल नहीं, बल्कि पलटीमार मैटीरियल हैं. नीतीश कुमार को ले कर यह पेशबंदी अचानक नहीं है. इस के पीछे 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की भावी राजनीति है. पश्चिम बंगाल चुनाव में जिस तरह से भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है, उस का प्रभाव बिहार की राजनीति पर पड़ा है. कमजोर दिख रहे नीतीश कुमार अब भाजपा के खिलाफ खड़े होने लगे हैं. ताजा घटनाक्रम को देखें तो यह बात साफ हो जाती है. जातीय जनगणना के मुद्दे पर वे भाजपा के खिलाफ और विरोधी दलों के साथ खड़े नजर आते हैं. उन की पार्टी के नेता नीतीश कुमार को पीएम मैटीरियल बताने लगे हैं. नीतीश कुमार अनुभवी नेता हैं. वे नरेंद्र मोदी की उतरती गोल्ड प्लेटिंग को देख रहे हैं. नीतीश को दिख रहा है कि भाजपा अब हताश होने लगी है.

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वह चुनाव नहीं जीत सकती, क्योंकि उस ने मोदी को चमकाने के चक्कर में नए नेता नहीं बनने दिए. ऐसे में भाजपा नीतीश को हटाए, उस के पहले नीतीश खुद अपने कद को बड़ा कर ले. वैसे तो बिहार में राजग यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार चल रही है. नीतीश कुमार इस गठबंधन के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री हैं. 2020 में जब से बिहार में यह सरकार बनी है, नीतीश कुमार और भाजपा के बीच शह और मात का खेल चल रहा है. पश्चिम बंगाल चुनाव में भाजपा ने जैसा चुनाव परिणाम सोचा था, वैसा नहीं आ सका. इस कारण बिहार में वह बदलाव नहीं कर सकी, जिस की वजह से नीतीश कुमार की कुरसी थोड़ी मजबूत दिखने लगी. इस के बाद भी अंदर ही अदंर नीतीश कुमार यानी जनता दल (यूनाइटेड) और भाजपा के बीच रस्साकशी चल रही है. नीतीश में पीएम मैटीरियल दिखने वाले बयान इस का ही प्रमुख कारण हैं.

नीतीश कुमार पीएम मैटीरियल जनता दल (यूनाइटेड) के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी पीएम मैटीरियल हैं. उपेंद्र कुशवाहा संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, ‘‘आज की तारीख में पीएम मोदी के अलावा और भी कई पीएम मैटीरियल हैं और नीतीश कुमार उन्हीं में से एक हैं.’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘जातीय जनगणना के मुद्दे पर पूरे देश में एक माहौल बनाने की जरूरत है और उस में नीतीश कुमार की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है.’’ इस के पहले जदयू के विधायक गोपाल मंडल ने भी ऐसा ही बयान देते कहा था, ‘नीतीश कुमार तो पीएम मैटीरियल हैं और उन की असली कुरसी दिल्ली में है.’ नीतीश कुमार को पीएम मैटीरियल बताने के बयान से भाजपा-जदयू के बीच माहौल तल्ख होने लगा.

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तब जदयू की तरफ से बीचबचाव करने वाले बयान आने लगे. जदयू के प्रधान महासचिव और प्रवक्ता के सी त्यागी ने कहा, ‘‘बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री बनने की योग्यता है, लेकिन वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं. हमारी पार्टी मजबूती के साथ राजग में है, जिस के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. जदयू केंद्र और राज्य में भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी है. गठबंधन का हम पुरजोर समर्थन करते हैं. ‘‘पार्टी विभिन्न विषयों पर मुद्दों को हल करने के लिए समन्वय समिति के गठन का स्वागत करेगी. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान समन्वय समिति का गठन कर कई काम किए गए थे. जदयू और भाजपा के बीच रिश्तों में कई पेंच अभी भी फंसे हैं. समन्वय समिति का गठन उन में से एक है.’’ जाति जनगणना के पक्ष में नीतीश जाति जनगणना के पक्ष में नीतीश कुमार और उन की पार्टी का खड़ा होना यह बताता है कि वे पिछड़ा वर्ग के बीच अपनी छवि को मजबूत करना चाहते हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में पिछड़ा वर्ग का वर्चस्व बने, इस के लिए जनगणना जरूरी है.

पिछड़ा वर्ग समर्थक नेताओं का मानना है कि 100 में से 60 की हिस्सेदारी पिछड़ा वर्ग की है. बिना जनगणना के उन को वाजिब हक नहीं मिल रहा है. अगर सामाजिक न्याय की लड़ाई में नीतीश कुमार की भूमिका को देखें तो पता चलता है कि वे सामाजिक न्याय की लड़ाई की राह का रोड़ा ही रहे हैं. 90 के दशक में जब बिहार में सवर्णवादी राजनीति हाशिए पर पहुंच रही थी, लालू प्रसाद यादव ने पिछड़ी जातियों को बिहार की मुख्यधारा में स्थापित करने का काम किया. इस वजह से उन को सामाजिक न्याय के नेता के रूप में स्वीकार किया जाता है. लालू प्रसाद यादव को कमजोर करने के लिए नीतीश कुमार ने पहले पिछड़ी जातियों में सेंध मारी, फिर सवर्णवादी राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ सम झौता कर के बिहार में जनाधार को बढ़ाने का काम किया. पिछड़ी जातियों में सेंधमारी के लिए नीतीश कुमार ने जातियों के वर्ग के बीच उपवर्ग और जातियों की श्रेणियों को तैयार किया. पिछड़ा वर्ग को सब से अधिक नुकसान मोस्ट ओबीसी के अलग होने से हुआ. नीतीश कुमार ने पिछड़ा वर्ग से 22 फीसदी मोस्ट ओबीसी, 12 फीसदी कोइरी, कुर्मी और कुशवाहा, 8 फीसदी महादलित को अलग कर के अपना एक नया वोटबैंक तैयार किया.

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इस वर्ग ने 16 फीसदी अगड़ों का साथ दे कर पिछड़ा वर्ग की राजनीति को बिहार से उखाड़ कर फेंक दिया. पलटीमार नीतीश कुमार नीतीश कुमार ने नौकरी छोड़ कर 1975 में राजनीति में प्रवेश किया और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़ गए. उन्होंने इंदिरा सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई. नीतीश कुमार ने 1977 में विधानसभा चुनाव लड़ा और चुनाव हार गए. इस के बाद भी नीतीश ने हार नहीं मानी. 1980 में उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला लेकिन उस में भी उन को हार मिली. भले ही वे लगातार चुनावों में हार रहे थे, लेकिन उन पर हार का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा. 1985 में पहली बार नीतीश कुमार को जीत मिली. इस के बाद युवा लोकदल के अध्यक्ष और बाद में जनता दल के प्रदेश सचिव बन गए. 1990 में केंद्र की चंद्रशेखर सरकार में वे पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल में कृषि राज्यमंत्री बने. 1991 में वे एक बार फिर लोकसभा के लिए चुने गए. उसी साल उन्हें जनता दल का राष्ट्रीय सचिव भी चुना गया. इस के साथ संसद में वे जनता दल के उपनेता भी बने.

1989 और 2000 में उन्होंने लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1989-1999 में वे केंद्रीय रेल एवं भूतल परिवहन मंत्री रहे. अगस्त 1999 में गैसाल में हुई रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया. फिर उन्होंने जौर्ज फर्नांडिस की समता पार्टी के साथ काम किया. साल 2000 में उन को कृषि मंत्री बना दिया गया और 2001 में फिर से रेल मंत्री बना दिया गया. 2005 में बिहार में चुनाव हुए. उस समय तक नीतीश कुमार ने जनता दल (युनाइटेड) नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली थी. लालू यादव के जंगलराज और परिवारवाद के खिलाफ जनता से विकास का वादा कर के चुनाव जीतने में सफल रहे. भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन के साथ बिहार के मुख्यमंत्री बन गए. 2010 में फिर मुख्यमंत्री के चुनाव हुए. इस में नीतीश को भारी जीत मिली. अब तक नीतीश को भाजपा की जरूरत खत्म हो गई थी तो वे भाजपा से अलग हो गए. इस समय तक भाजपा में नरेंद्र मोदी का उदय शुरू हो चुका था. नीतीश नरेंद्र मोदी की आलोचना करने लगे थे. 2014 के लोकसभा चुनावों में नीतीश को तीसरे मोरचे का नेता मान प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी माना जा रहा था.

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ये सारे कयास धरे के धरे रह गए. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश ने भाजपा से नाता तोड़ कर राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ महागठबंधन कर लिया. इस चुनाव में नीतीश की पार्टी जदयू बिहार में तीसरे नंबर पर थी. इन को 17 फीसदी वोट और 71 सीटें मिलीं. राजद को 18 फीसदी वोट और 80 सीटें मिलीं. भाजपा को 24 फीसदी वोट और 50 सीटें मिलीं. कांग्रेस को 7 फीसदी वोट और 27 सीटें मिलीं. इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रहने के बाद भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री और राजद नेता लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बन गए. नीतीश और तेजस्वी यादव के बीच संबंधों की खींचतान के कारण महागठबंधन में विवाद शुरू हुआ था. 26 जुलाई, 2017 को सीबीआई द्वारा एफआईआर में उपमुख्यमंत्री और लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव के नाम आने के बाद नीतीश कुमार ने गठबंधन सहयोगी राजद के बीच मतभेद के चलते इस्तीफा दे दिया था. 20 महीने पुरानी महागठबंधन सरकार गिर गई तो नीतीश कुमार पाला बदल कर वापस भाजपा की तरफ आ गए.

वे एनडीए गठबंधन में शामिल हुए और मुख्यमंत्री पद की फिर शपथ ली. भाजपा के सहयोग से सरकार चलाने लगे. इस तरह से बदलती विचारधारा के साथ नीतीश कुमार ने बिहार पर राज किया. इस के बाद भी बिहार की हालत में कोई बदलाव नहीं दिख रहा. बिहार में सामाजिक न्याय की लड़ाई को नुकसान हुआ, जिस से दलित और पिछड़े वर्ग के लोग वापस ऊंची जातियों के पीछे चलते दिखाई दे रहे हैं. 2014 में भी पीएम मैटीरियल नीतीश कुमार को 2014 के लोकसभा चुनाव में भी तीसरे मोरचे के नेता के रूप में देखा जा रहा था. नीतीश कुमार की छवि को देखते हुए उन को ‘सुशासन बाबू’ के नाम से जाना जाता है. 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार का नाम तीसरे मोरचे के प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में लिया जाने लगा था. भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिलने के बाद जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो नीतीश कुमार ने राजनीति की गति को सम झा और धीरेधीरे वे ‘मोदीमय’ होते गए. नीतीश कुमार अब तक न तो बिहार का विकास ही कर पाए, न ही इस राज्य की सामाजिक संरचना को बचा पाए.

समाजवादी विचारधारा के नेता जयप्रकाश नारायण के साथ नीतीश ने अपनी राजनीति शुरू की थी. बाद में वे कांग्रेस के विरोध के नाम पर भाजपा की धर्मवादी सोच का हिस्सा बन गए. मोदी के प्रखर धर्म और राष्ट्रवाद आने के बाद नीतीश कुमार उस का हिस्सा बनते गए. सुशासन बाबू का सुशासन कहीं खो गया. नीतीश कुमार ने धर्म की आड़ में गरीब, पिछड़ों की आवाज को दबा दिया. नीतीश के शासन में बिहार की हालत पहले से भी बदतर होती गई. बिहार में बेकारी, बदहाली, अपराध, स्वास्थ्य और शिक्षा का बुरा हाल रहा है. नीतीश कुमार ने केवल पलटीमार दांव के चलते ही कुरसी पर अपना कब्जा जमाया है. 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू की सीटें कम होने के बाद भी भाजपा ने उन को मुख्यमंत्री की कुरसी पर बैठाया. नीतीश कुमार एक बार फिर से अपने लिए नए अवसर देख रहे हैं. पलटीमार मैटीरियल जदयू के लोग नीतीश कुमार को पीएम मैटीरियल मान रहे हैं तो वहीं राजद के नेता तेजस्वी यादव उन को पलटीमार मैटीरियल बताते हैं.

राजनीति में जिस तरह से नीतीश कुमार ने सफलता पाने के लिए पाला बदलने का काम किया, उस से उन की छवि पलटीमार नेता की हो गई है. कई लोग इस को उन का पलटीमार दांव ही कहते हैं. पिछड़ों की अगुआई करने वाले लालू प्रसाद यादव को हाशिए पर ढकेलने के लिए ऊंची जातियों ने जयप्रकाश की समाजवादी विचारधारा के साथ राजनीति शुरू करने वाले नीतीश का प्रयोग किया. कांग्रेस की विचारधारा का विरोध करने वाले नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिल कर पिछड़े वर्ग को कमजोर करने का काम किया. ऊंची जातियों ने पिछड़ों के नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को आमनेसामने कर के लालू यादव की ताकत को बिहार में खत्म कर दिया. लेकिन अब नीतीश जनगणना के मुद्दे को ले कर खुद को पिछड़ा वर्ग का नेता दिखाना चाहते हैं. उन को लगता है कि भाजपा अब जो भी व्यवहार उन के साथ करेगी, उस से वे मजबूत होंगे. जानकार लोग मानते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की चमक फीकी पड़ेगी. नीतीश कुमार का यह बदलता रंग देख कर लोग उन्हें पलटी मारने की तैयारी में देख रहे हैं.

अंतिम फैसला : भाग 1

मेहमानों को विदा कर अभी शैली ने दरवाजा लगाया ही था कि मनीष  ने उसे बांहों में भर लिया और उस के गालों को चूमते हुए बोला, “हैप्पी बर्थडे’ माई जान.“

“थैंक यू, थैंक यू सो मच” कह कर उस ने भी मनीष  को चूम लिया और बोली, “पार्टी बहुत अच्छी रही. सरप्राइज़ पार्टी रखने के लिए थैंक्स अगेन,”  यह  बोलते हुए शैली का चेहरा खुशी से दमक रहा था. आज शैली का जन्मदिन था और उस की सारी तैयारी मनीष  ने अपने हाथों से की थी. केक बनाने से ले कर घर की सारी सजावट उस ने खुद ही की थी. शैली को पता न चल जाए, इसलिए वह सुबह से ही अपनी तबीयत खराब होने का बहाना कर औफिस नहीं गया, ताकि पार्टी की तैयारियां कर सके.

शाम को मनीष  के लिए दवाइयां ले कर शैली थकेहारे और बुझेमन से घर में दाखिल हुई ही थी कि अपने सिर पर फूलों की बारिश होते देख आश्चर्यचकित रह गई. कुछ समझ पाती, इस से पहले ही ‘हैप्पी बर्थ डे डियर शैली’ कह कर जब दोस्तों ने उसे घेर लिया, तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. सब समझ गई वह कि मनीष  की कोई तबीयत खराब नहीं थी, बल्कि उस ने बहाना बनाया, ताकि उस के जन्मदिन की पार्टी की तैयारियां कर सके. अपने लिए मनीष  के दिल में इतना प्यार देख कर शैली की आंखें भर आईं.

“तुम मुझे इतना प्यार करते हो मनीष?” मनीष  के कंधे पर सिर रख शैली बोली,  “बहुत खुशनसीब हूं मैं, जो तुम जैसा साथी मिला मुझे. मेरी यही ख्वाहिश है कि हर जन्म में तुम मेरे साथी बनो और मेरी आखिरी सांस तुम्हारी बांहों में निकले.“

“दोबारा ऐसी बात अपने मुंह से कभी मत निकालना शैली, तुम्हें मेरी कसम,” उस के होंठों पर  उंगली रख मनीष  बोला, “तुम मेरी ज़िंदगी हो. और जब तक मैं हूं, तुम्हें कुछ नहीं हो सकता, आई प्रौमिस.” यह कह कर उस ने शैली को बांहों में कस लिया और वह भी अपने मनीष  के सीने से लग गई और फिर दोनों एकदूसरे की बांहों मे खो गए. धर्म, जाति, ऊंचनीच, अमीरीगरीबी हर बंधन से आजाद इन का प्यार 4 वर्षों से हर दिन और गहरा होता जा रहा था. लैलामजनूं, हीररांझा से कम नहीं था इन का प्यार. दोनों दो बदन एक जान थे जैसे.

आज से 4 साल पहले दोनों एक दोस्त की पार्टी में मिले थे. यह शहर और नौकरी दोनों के लिए नए थे, इसलिए इन के बीच अच्छी दोस्ती हो गई. एकदूसरे के विचार और व्यवहार से दोनों इतने प्रभावित हुए कि धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे और यह करीबी कब आकर्षण में बदल गई, इन्हें पता न चला. मनीष  यहां 5 लड़कों के साथ रूम शेयरिंग में रहता था, वहीं शैली पीजी में रह रही थी. मगर दोनों को वहां रहना अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए विचार कर दोनों अपनाअपना स्थान छोड़ कर 2 कमरे के किराए का घर ले कर रहने लगे. एक तो घर जैसा माहौल मिलने लगा उन्हें और साथ में जीवन में नई खुशियां भी आ गईं. अब रोज दोनों मिलजुल कर घर का काम निबटा कर औफिस निकल जाते और आते समय उधर से ही दूध, फल, सब्जी वगैरह खरीद लाते. जो घर पहले आ जाता, खाना वही बना लिया करता था.

साथ रहने से इन के बीच प्यार पनपने लगा था और इस बात का अंदाजा उन्हें तब हुआ जब दोनों एकदूसरे के बगैर बेचैन हो उठते. अब जरा देर भी एकदूसरे के बिना रहना मुश्किल होने लगा था उन्हें. शैली जब कभी अपने मम्मीपापा के पास दिल्ली चली जाती कुछ दिनों के लिए, मनीष का एकएक पल काटना मुश्किल हो जाता. लगता, कैसे भी कर के शैली यहां आ जाए. कभी मज़ाक में भी शैली उसे छोड़ कर चले जाने की बात कह देती, तो वह आहत हो उठता और कहता, ‘ऐसी बातें मत करो, नहीं तो मैं मर जाऊंगा. तुम्हारे बगैर तो अब जीने को सोच भी नहीं सकता’ और उस की बात पर शैली खिलखिला कर हंस पड़ती. मनीष  के दिल में अपने लिए ढेर सारा प्यार देख कर शैली गदगद हो उठती थी.  मगर हैरान वह तब रह जाती जब शादी के नाम से ही मनीष का मूड खराब हो जाता, कहता वह कि क्या उन के रिश्तों को शादी का नाम देना जरूरी है? पूरा जीवन ऐसे नहीं रह सकते साथ में दोनों?

“हां, जरूरी है मनीष,” उस का चेहरा अपनी तरफ करते हुए उस रोज शैली कहने लगी थी, “हम जिस समाज में रहते हैं वहां रिश्ते को नाम देना जरूरी है. मनीष,  यह बात तुम क्यों नहीं समझते? और मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि जब हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और 4 साल से पतिपत्नी की तरह साथ रह रहे हैं, तो फिर इस रिश्ते को नाम क्यों नहीं दे सकते हम? बोलो, समस्या क्या है?”

“समस्या-उमस्या कुछ नहीं है, लेकिन प्लीज, ये सब बातें कर मेरा मूड मत खराब करो. और क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है?” मनीष  ने झुंझलाते हुए कहा.

“नहीं, ऐसी बात नहीं है. भरोसा नहीं है तुम पर, ऐसा मैं ने कब कहा. पर मेरी बात भी तो समझो तुम. मांपापा चाहते हैं अब मुझे शादी कर लेनी चाहिए. कल रात भी फोन पर मां यही कह रही थी कि पापा को मेरी शादी की फिक्र सताने लगी है. वे चाहते हैं अब मैं अपनी गृहस्थी बसा लूं. और क्या गलत चाहते हैं वे? हर मांबाप यही चाहते हैं कि वक़्त के साथ उन के बच्चों की गृहस्थी बस जाए, मगर तुम क्यों नहीं समझते यह बात, बोलो? क्यों जब भी मैं शादी की बात करती हूं तो या तो तुम बात बदल देते हो या मेरा ही ब्रेनवाश कर देते हो यह समझाबुझा कर कि शादी और बच्चे के झंझट में क्यों फंसना जब ज़िंदगी आराम से बीत रही है तो? और मैं भी पागल तुम्हारी बातों में आ जाती हूं. लेकिन अब मैं ऐसे लिवइन में नहीं रहना चाहती, चाहती हूं हमारे रिश्ते को भी नाम मिले.“

Cooking Therapy: कुकिंग थेरैपी दूर करे टेंशन, होंगे ये 7 फायदे

अगर आप किचन को किचकिच रूम मानते हैं तो जान लीजिए आप गलत हैं क्योंकि रिसर्च कहती है कि कुकिंग एक स्ट्रैस बस्टर होने के साथसाथ क्रिएटिविटी निखारने का बेहतर माध्यम है. कैसे, बता रही हैं एनी अंकिता.

महिलाओं के पास टैंशन की कमी नहीं है. औफिस में काम की टैंशन तो घर पहुंचते ही पति और सास की फरमाइशों की डिशेज बनाने की टैंशन. दिनभर की थकान और तनाव के बाद महिला का किचन में जाने का बिलकुल मन नहीं करता. वह किचन को कुकिंगरूम कम, किचकिच रूम ज्यादा समझने लगती है और बेमन से खाना बनाने लगती हैं.

लेकिन यह जान कर आप को हैरानी होगी कि किचन में तनाव नहीं होता, वह तो एक स्ट्रैस बस्टर है यानी तनाव को खत्म करता है. वहां आप रिलैक्स फील कर सकती हैं, अपनी सारी थकान व मानसिक तनाव को दूर कर सकती हैं.

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लंदन के मनोचिकित्सक मार्क साल्टर के अनुसार, किचन में खाना पकाना तनाव को कम करने का एक चिकित्सकीय उपचार है. यह एक ऐसी जगह है जहां आप की सारी नकारात्मक सोच सकारात्मक बन जाती है.

साल्टर के अनुसार, कुकिंग तनाव से ग्रसित रोगियों को प्रोत्साहित करती है, उन की याददाश्त, ध्यान व फोकस को बढ़ाने में मदद करती है. इस के साथ ही, उन्हें प्लानिंग करना और सोशल स्किल भी सिखाती है. अपने कई रोगियों के लिए कुकिंग को एक थेरैपी के रूप में इस्तेमाल करने वाले चिकित्सक व मानसिक स्वास्थ्य उपचार केंद्र भी साल्टर के विचारों का समर्थन करते हैं.

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दिल्ली के क्लिनिकल साइकोलौजिस्ट डा. रिपन सिप्पी कहते हैं कि हर वह काम जिसे करने में मजा आए, हमारी मैंटल हैल्थ को बेहतर करता है. महिलाओं के लिए कुकिंग भी ऐसा ही एक काम है. यह एक थेरैपी है जो शारीरिक व मानसिक रूप से फिट रहने में मदद करती है.

डा. सिप्पी कहते हैं, ‘‘जब हम तनाव में होते हैं तब हमारे शरीर से एटरलिन नामक एक कैमिकल निकलता है, जिस की वजह से हमें गुस्सा आता है और जब हम कटिंग, चौपिंग व आटा गूंधते हैं तो स्कीवीजिंग बौल की तरह हमारे शरीर में भी क्रिया होती है. जिस की वजह से धीरेधीरे हमारा गुस्सा कम होने लगता है और हम अच्छा महसूस करने लगते हैं.’’

कुकिंग थेरैपी के बारे में कुकिंग ऐक्सपर्ट मंजु मोंगा कहती हैं कि कुकिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे करने पर हमें खुशी मिलती है. हम नईनई चीजें सीखते हैं, जिस से हमारे अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है. हां, यह बात भी सही है कि हमारे मूड का असर हमारे खाने पर भी दिखता है, जैसे जब हम खुश होते हैं तो कुछ मीठा बनाने का मन करता है. किचन की छोटीछोटी गतिविधियां भी हमें खुश रखने में मदद करती हैं.

क्या है कुकिंग थेरैपी

कुकिंग थेरैपी एक स्ट्रैस बस्टर है जो हमें तनावमुक्त कर हमारी क्रिएटिविटी को निखारती है. यह एक कला है, जिस में हम एक जगह पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं. इस से हम मानसिक रूप से प्लानिंग और टाइम मैनेजमैंट के गुण सीखते हैं और शारीरिक रूप से हमारे हाथ, पैर, गरदन व उंगलियों का मूवमैंट होता है. एक जगह पर ध्यान लगाने की वजह से हम अपने अंदर नकारात्मक विचारों को भूल जाते हैं. यह थेरैपी हमारे आत्मविश्वास को भी बढ़ाती है जिस की वजह से हम अच्छा अनुभव करने लगते हैं.

किस तरह है कारगर

रिश्तों में मजबूती :

रसोई के जरिए रिश्ते मजबूत होते हैं. यहां परिवार के सदस्य मिलबांट कर काम करते हैं, एकदूसरे की मदद करते हैं और गुपचुप बातें शेयर करते हैं.

सामाजिक मेलजोल :

आसपास के लोगों से बातचीत करने की पहल के लिए कुकिंग काफी मददगार है. जब हम किचन और रैसिपीज के बारे में किसी से बात करते हैं तो हमारा सारा टैंशन दूर हो जाता है.

गुस्से पर नियंत्रण :

जब हम गुस्से में होते हैं तब हमें समझ नहीं आता है कि हम क्या कर रहे हैं. गुस्से को नियंत्रित करने के लिए कुकिंग बैस्ट औप्शन है. किचन में ऐसी कई छोटीछोटी चीजें होती हैं जिन से हमारा गुस्सा शांत हो जाता है.

हैल्दी बौडी :

कुकिंग हमें मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार से फिट रखती है, जिस से हम हैल्दी महसूस करते हैं.

शेयरिंग हैबिट :

हम ने कुछ अच्छा बनाया तो हम अपने आसपड़ोस के लोगों को भी उस का स्वाद चखाते हैं, उन से शेयर करते हैं. इस की वजह से हमारे अंदर शेयरिंग हैबिट आ जाती है.

कुकिंग एक इलाज :

कुकिंग बीमारियों का इलाज भी है. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, घर में खाना बनाना उम्र बढ़ाने में मददगार है यानी अगर आप किचन में काम करती हैं तो आप की आयु बढ़ती है. साथ ही कुकिंग तनाव, थकान, अकेलेपन जैसी कई बीमारियों को दूर भी करती है.

कुकिंग करें, खुश रहें :

कुकिंग ऐसी क्रिया है जिस में हम नईनई चीजें सीखते हैं और स्वाद से सब को खुश करते हैं.

तो फिर इंतजार किस बात का, जब भी तनाव महसूस करें, किचन में जा कर कुछ अच्छा बनाएं और तनावमुक्त हो जाएं.

सोचा न था : भाग 5

मारिया को एक इंजेक्शन लगाने की हिदायत देते हुए अपने परचे पर दवाएं लिख कर उन्होंने आशीष को परचा पकड़ाते हुए कहा, ”मैं समझता हूं कि फिलहाल इन्हें अस्पताल में एडमिट कराने की जरूरत नहीं है. घर में रहते हुए भी ठीक हो सकती हैं, लेकिन इन को केयर की बहुत जरूरत है.”

“थैंक्यू डाक्टर. पापा और भैया से पहले रितेश बोल पड़ा.”मारिया को बेहोश मां के पास छोड़ आशीष डाक्टर के साथ वापस अस्पताल जाने लगा, ताकि अपनी फार्मेसी से मां को दी जाने वाली दवाएं और इंजेक्शन ले आए, तो रितेश भी साथ हो लिया. मैं जानती थी कि रितेश जब लौटेगा तो भैया उस का दोस्त बन चुका होगा.

मारिया बेहोश मां के पास ही बैठ कर कुछ देर तक तो उन के बालों पर हाथ फेरती रही. फिर औक्सीमीटर से औक्सीजन लेवल चेक करने के बाद टेम्परेचर और बीपी चेक करने में जुटी, तो पापा मुझे कमरे से बाहर  लाते हुए बोले, “ये रितेश तेरा क्लासफैलो है?

“हां.” “और तेरा बौयफ्रेंड भी?” “हूं,” मैं ने पलकें नीचे कर लीं. “तुझे बहुत चाहता है?” मैं ने जमीन में आंखें गड़ाए हुए ‘हां’ में गरदन हिलाई. “क्या करते हैं इस के फादर?” “मिलिट्री में थे. शहीद कर्नल शरद रायजादा.” “और मां?” “मां हैं.” “तुम उन से मिल चुकी हो?”

“हां.” “ओह…” वे कुछ सोचते रहे, फिर बोले, ”अभी समय है. पढ़ाई पूरी कर लो. उस की नौकरी लगने दो. बस एक बात का ध्यान रखना कि चुपचाप शादी न कर लेना. मुझे बता जरूर देना.” “पापा,” कह कर मैं उन के पैरों के पास बैठ गई. उन्होंने मुझे अपने दोनों हाथों से उठाया और मेरे सिर पर हाथ फेरने लगे. कुछ देर बाद वे बोले, “चलो, तुम्हारी मां के पास चलते हैं.”

अंदर मारिया मां के लिए ग्लूकोज की बोतल को टांगने के लिए उन के पलंग के पास डिप स्टैंड को सेट कर रही थी. मैं ने पूछा, “भाभी, मां ठीक तो हो जाएंगी?” मारिया मुसकराते हुए बोली, ”तुम्हारे मुंह से भाभी सुन कर बहुत अच्छा लगा. रही मां के ठीक होने की बात तो मै हूं न. ठीक तो उन्हें होना ही पड़ेगा.”

कुछ ही देर बाद भैया और रितेश वापस आ गए. उन को देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे बरसों से उन की प्रगाढ़ दोस्ती रही हो. रितेश अपने घर जाने से पहले पापा के पास आ कर पैर छूने झुका तो पापा ने उसे बीच में ही रोक कर गले से लगा लिया. वे बोले, “तुम मां को देखने आते रहना.

रितेश जाने लगा, तो मैं उसे बाहर गेट तक छोड़ने गई. चलते समय उस ने फ्लाइंग किस मेरी तरफ उछाल दी  और मैं उसे कैच करती हुई घर के भीतर आ गई और सीधे मां और मारिया के पास पहुंच गई.

अगले 10 दिनों में मारिया के स्नेह भरे प्यार और अपनत्व से भरी कुशल सेवा और पूरे डाइट प्लान का पालन कराने के साथ मां के पूरे शरीर को रोज स्पंज से साफ कर उन्हें पलंग पर बिठा कर अपने हाथों से खिलानापिलाना मां को भा गया. वे बोल पड़ी, “बेटी, तुम बहुत अच्छी हो. पर, एक बात तो बताओ कि क्या तुम्हें अपने घर की याद नहीं सताती?”

“जो अपने ही घर में रह रहा हो, उसे और किस घर की याद सताएगी.” ये पापा की आवाज थी, जो अभीअभी आशीष को साथ लिए कमरे में घुसे थे. “क्या मतलब…?” “मतलब ये कि आशीष की पसंद की यही वो ईसाई लड़की है, जो अब तुम्हारी बहू है.”

पापा ने कहा, तो मां ने उसे गौर से देखा, फिर पास बुला कर अपने पास बैठाते हुए सीने से लगा लिया. मारिया भी मां के आलिंगन में सिमट कर रह गई. उन के गले से लग कर मारिया बोली, “मां की आगोश कैसी होती है, आज पता चला. मुझे तो बचपन में  अनाथालय से एडाप्ट कर के मिशनरी के एक परिवार ने गोद ले लिया था.”

मां ने आशीष को भी पास बुला कर अपने सीने के दूसरे हिस्से से लिपटा लिया और बोली, “तू ने जो किया अच्छा किया. मुझे किसी से भी इस तरह का वादा नहीं करना चाहिए था जैसा मैं ने सुजाता से कर लिया था.” “मां, आप विश्वास रखिए. आप ने अपनी सहेली से जो वादा किया था, उसे मैं पूरा करूंगी. उर्मिला के लिए लड़का पसंद कर के उस की बढ़िया सी शादी कराना अब मेरी जिम्मेदारी है. आप तो बस हंसतीमुसकराती रहो.”

मेरी बेटी के साथ रिश्ते अच्छे नहीं हैं, आजकल उसमें काफी बदलाव आ गया है कैसे समझाऊं उसे ?

सवाल 

मेरी उम्र 52 वर्ष है, कामकाजी माहिला हूं. मेरी बेटी 24 वर्ष की है, एमफिल की तैयारी कर रही है. बेटी के साथ मेरे संबंध कभी खास नहीं रहे. वह अपने में मस्त रहती है. अब मैं उस में कई बदलाव महसूस कर रही हूं. वह नाममात्र खाना खाती है, कभी भी रोती हुई दिख जाती है, कभी वह बेसुध पड़ी रहती है तो कभी किताबों या अपने फोन में गुम रहती है. मुझे याद भी नहीं आखिरी बार कब वह खुल कर हंसी थी या सब के साथ बैठ कर उस ने बातचीत की थी. मैं उस से बात करने की कोशिश करती हूं, तो वह उठ कर चली जाती है या ध्यान नहीं देती. उस के पापा भी उस से उस की पढ़ाई के अलावा कोई बात नहीं करते. मुझे अपनी बेटी की बहुत चिंता हो रही है और समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं.

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जवाब

आप अपनी बेटी में जो बदलाव देख रही हैं उस से साफ है कि उसे कोई बात परेशान कर रही है जिस के बारे में वह किसी से बात नहीं करना चाहती क्योंकि जैसा कि आप ने बताया वह घर में किसी के करीब नहीं है. आप को और आप के पति को साथ बैठ कर अपनी बेटी से बात करनी चाहिए. वह बताने में आनाकानी जरूर करेगी लेकिन उसे किस बात से परेशानी है वह जरूर बता देगी. आप ने जिस तरह बताया उस से साफ है कि वह ठीक नहीं है. वर्तमान माहौल से स्पष्ट है कि युवा आसानी से अवसादग्रस्त हो सकते हैं. हो सकता है उसे पढ़ाई की चिंता हो, किसी दोस्त से लड़ाई हुई हो या बौयफ्रैंड से ब्रेकअप. अगर वह आप से बात करने को तैयार न हो तो आप को किसी मनोवैज्ञानिक डाक्टर से कंसल्ट करना चाहिए.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

सोचा न था : भाग 1

राइटर- जीतेन्द्र मोहन भटनागर 

मेरी बड़ी बहन, किरन  की शादी के 4 साल बाद, जब मां गांधारी को पता लगा कि उन के इकलौते बेटे आशीष  का एक क्रिश्चयन लड़की मारिया के साथ कई महीनों से चक्कर चल रहा था और दोनों ने चर्च में शादी कर ली  है, तो उन के दिल पर जबरदस्त आघात लगा.

इलाहाबाद के सगंम घाट के त्रिभुवन पंडा महाराज के यहां आज से 45 साल पहले जन्म ले कर, पांडित्य संस्कारों के साथ उम्र के हरेक पड़ाव को पार करते हुए जब 20 साल की गांधारी की शादी एक उच्च कुलीन ब्राह्मण घराने में हुई थी, तब तक उस का मस्तिष्क लकीर का फकीर हो चुका था. वाराणसी में ससुराल होने के कारण भी वह अपने भाग्य को हमेशा सराहा करती थी.

शादी के बाद अगले 7 सालों में ही किरन, आशीष और मैं सिमरन, गांधारी की कोख से जन्म ले कर इस पंडित परिवार का हिस्सा बन चुके थे. हम तीनों बच्चों को भी मां गांधारी अपने पुरातन विचारों के रंग मे रंग देना चाहती थीं, परंतु गांधारी का पति अर्थात मेरे पापा निशांत उपाध्याय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भारतीय कला और संस्कृति विभाग के प्रोफैसर होने के नाते और बदलते युग की आहट को पहचानते थे.

इसलिए बड़े होने के साथसाथ स्कूल और कालेज जा कर नई विचारधाराओं की आवश्यकता समझने वाले हम तीनों बच्चे जब मां का विरोध करते, तो पापा हमेशा हमारे पक्ष में ही खड़े हो जाते. मां जब कहती, तुम हमेशा गलत बात पर बच्चों को समझाने के बजाय मुझे ही समझाने लग जाते हो, तो पापा उन्हें समझाने लगते,

“गांधारी, हमारातुम्हारा युग और था. तब मनोरंजन के इतने साधन नहीं थे. हम घर के बड़ेबूढ़ों को बिना बताए घर से बाहर नहीं जा सकते थे. समय से घर लौटने को बाध्य थे. बहुत सी बातें ऐसी थीं, जिन का हम चाह कर भी विरोध नहीं कर पाते थे… इसलिए समय की मांग है कि बच्चों को अपने हिसाब से चलाने के बजाय उन्हें अपने हिसाब से जीवन जीने दो.”

पापा की बातें सुन कर मां भुनभुना कर रह जातीं, क्योंकि उन के दिमाग में तो सारी पुरानी रूढ़िवादिता से भरी बातें ही थीं, जिन्हें उन का मनमस्तिष्क बाहर निकालने को तैयार ही नहीं होता था. वो यही जानती थीं कि अधिकतर अछूत और निम्न जाति के लोगों का मतांतरण करा कर उन्हें जबरन ईसाई बना दिया जाता है. खानपान में भी मांसमछली के साथसाथ स्त्री और पुरुष मदिरा का सेवन भी जम कर करते हैं. और सब से बढ़ कर ये धारणा तो इतनी गहराई से जड़ें जमा चुकी थी कि इस धर्म में लड़के व लड़कियों का स्वच्छ चरित्र नहीं होता है. कईकई लड़कियों को अपने प्रेमजाल मे फंसा कर वासना की पूर्ति करते रहना इन का शौक होता है.

इसीलिये वो आशीष के लिए अपनी पंडिताइन सहेली सुजाता की लड़की उर्मिला को बहू बना कर इस घर में लाने का सपना संजोए बैठी थीं. सुजाता आंटी से उन्होंने पक्का वादा करते हुए कह दिया था, “अब उर्मिला शादी के लायक हो रही है, तो मैं उसे अपने घर की बहू बना कर अवश्य लाऊंगी. मेरे आशीष के लिए इस से अच्छा कोई मैच हो ही नहीं सकता.”

किरन दीदी की शादी के अवसर पर हलदी की रस्म के समय भी जब सुजाता आंटी ने एक बार फिर मां का ध्यान इस बात की ओर यह कर दिलाया, “वो देखो, तुम्हारी छोटी बेटी सिमरन के साथ सजीधजी उर्मिला कितनी प्यारी लग रही है. बस उस की शादी हो जाए तो मेरी चिंता दूर हो…”

“पता नहीं, तू इतनी फिक्र क्यों करती है. मेरा आशीष कहीं भागा थोड़े ही जा रहा है. बस वह फार्मेसी का कोर्स कर के फार्मासिस्ट बन कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए, तो फिर मैं तेरी प्यारी, गोरी, गुदगारी और गुचमा लड़की को अपनी बहू बना कर ले आऊंगी. तू चिंता न कर,” मां उन्हें हिम्मत देती.

लेकिन फार्मेसी कोर्स के फाइनल ईयर के दौरान एक दिन जब मदर टैरेसा चैरिटेबल अस्पताल की पार्किंग में आशीष अपनी बाइक को पार्क कर के मुड़ा ही था, तो उस की नज़र मारिया पर पड़ी. मारिया अपनी नर्स वाली ड्रेस में बहुत ही सुंदर और आकर्षक लग रही थी. अपनी एक्टिवा को तत्परता से स्टैंड में खड़ी कर के वह आशीष पर एक नजर डालती हुई अस्पताल के एंट्रेंस गेट की ओर बढ़ी ही थी कि आशीष ने पीछे से आवाज लगाई, “अरे मैडम, आप अपना पर्स एक्टिवा के हुक में लटका हुआ छोड़े जा रही हैं.”

“ओह थैंक्यू,” कहते हुए मारिया ने वापस लौट कर अपना पर्स लिया और बोली, “मुझे पहले ही देर हो गई थी. आज एक क्रिटिकल ओपेन हार्ट सर्जरी में डाक्टर पार्नीकल की नर्स टीम का एक हिस्सा हूं मैं. 10 मिनट लेट हो गई हूं. ये बनारस का ट्रैफिक भी ना…” “वैसे, मैं इस अस्पताल की सिस्टर मारिया.”

“मै आशीष.” ‘आशीष,’ मारिया ने इस नाम को दोहराया, लेकिन उस के पास समय नहीं था, जो वह और रुकती ‘सौरी,’ कहती हुई मारिया अपना पर्स उठाए पलक झपकते ही अस्पताल के अंदर दौड़ती चली गई. आशीष को लगा कि वह तो उतनी तेज दौड़ नहीं लगा पाया, लेकिन उस का दिल  जरूर मारिया के संग दौड़ पड़ा था.

अचानक उसे बचपन के प्ले स्कूल में साथ पढ़ने वाली बार्बी डाल जैसी दिखने वाली मारिया नाम की सुंदर सी नीली आंखों वाली क्रिश्चयन लड़की का खयाल आ गया. इस की भी तो आंखें नीली ही थीं… कहीं ये वही मारिया तो नहीं, जो प्ले स्कूल के बाद किसी और स्कूल में पढ़ने चली गई थी.

मदर टैरेसा अस्पताल की फार्मेसी में अपने प्रोजैक्ट रिपोर्ट के लिए आवश्यक मेडिसिन रिलेटेड नोट्स ले कर आशीष वापस जाना चाहता था, पर उस के कदम न जाने क्यों अस्पताल के क्रिटिकल केयर यूनिट के आपरेशन थिएटर की ओर मुड़ गए. ओटी के बाहर तेज लाल बल्ब जल रहा था. इस का मतलब था कि अंदर सघन आपरेशन चल रहा था.

आशीष सोचने लगा कि इस समय मारिया मुंह को मास्क से ढके हुए कैसी लग रही होगी. एक तरफ आपरेशन टेबल पर जिंदगी और मौत  से जूझता बेहोश मरीज और दूसरी तरफ उस की जान बचाने वाले डाक्टर, हेल्पर और नर्सेज, जिस में एक मारिया भी. उस दिन ओटी के बाहर बस मारिया की एक झलक पाने के लिये वह घंटों बैठा रहा और मारिया से मिल कर ही रहा.

मारिया ने जब उस से पूछा कि, “तुम्हारा उस मरीज से क्या संबंध है?” तो वह बोला, “मेरा मरीज से तो कोई संबंध नहीं. पर हां, उस मरीज की जान बचाने वाली टीम के एक सदस्य से अवश्य आज मेरी जानपहचान हुई है और मैं उसी से संबंध बनाना चाहता हूं.”

आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को ‘स्मार्ट फोन

लखनऊ . उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि तकनीक के प्रयोग से कार्य करने में आसानी व पारदर्शिता आती है. इसके इस्तेमाल से कार्य क्षेत्र में दक्षता आती है. यह कार्य को सम्पादित करने वाले व्यक्ति को सम्मान का पात्र भी बनाती है. आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को दिया जा रहा स्मार्ट फोन उनकी कार्य पद्धति को स्मार्ट बनाएगा. इसके माध्यम से आप सब आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री शासन-प्रशासन एवं जनविश्वास जीतकर अपनी पहचान बना सकती हैं.

मुख्यमंत्री जी ने लोकभवन में बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग द्वारा आयोजित आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को ‘स्मार्ट फोन’ एवं आंगनबाड़ी केन्द्र के लिए ‘ग्रोथ मॉनीटरिंग डिवाइस’ वितरण कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. मुख्यमंत्री जी ने अपने कर कमलांे द्वारा 20 आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को ‘स्मार्ट फोन’ एवं 10 आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को ‘ग्रोथ मॉनीटरिंग डिवाइस’ प्रदान किये. उन्होंने ‘एक संग मोबाइल एप’ लॉन्च किया. इस अवसर पर एक लघु फिल्म प्रदर्शित की गयी.

इस अवसर पर प्रदेश में पोषण अभियान के अन्तर्गत आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को तकनीक से जोड़ने व उनकी कार्य सुविधा के लिए 1,23,000 ‘स्मार्ट फोन’ एवं बच्चों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए 1,87,000 ‘ग्रोथ मॉनीटरिंग डिवाइस’ वितरित किये जा रहे हैं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि सामान्य रूप से कहने के लिए यह केवल ‘स्मार्ट फोन व ‘ग्रोथ मॉनीटरिंग डिवाइस’ के वितरण का कार्यक्रम हो सकता है, लेकिन इसकी गूंज सुशासन के लक्ष्य को प्राप्त करने में नींव के पत्थर के रूप में है. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का संकल्प है कि पारदर्शी और ईमानदार सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तकनीक के माध्यम से शासन की योजनाओं को प्रत्येक नागरिक तक पहुंचाया जाए. इसके लिए आवश्यक है कि ऐसे संसाधन उन लोगों को उपलब्ध कराए जाएं, जो शासन की योजनाओं को अन्तिम पायदान के व्यक्ति तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आज आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों के प्रति लोगों में सम्मान व आदर का भाव बढ़ा है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि किसी भी व्यक्ति या संस्था की पहचान विपत्ति व आपत्ति के समय पता चलती है. जो व्यक्ति संकट आने पर भाग खड़ा हो, सहयोग न करे वह, कितना भी बड़ा, सम्पन्न व बुद्धिमान हो, अगर उसकी बुद्धिमत्ता व उसका ऐश्वर्य लोक कल्याण व समाज कल्याण के उपयोग में नहीं आ रहा है, तो उसका कोई महत्व नहीं है. संकट के समय सहयोगात्मक व लोक कल्याणकारी कार्य करने वाला ही महत्वपूर्ण होता है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कोरोना की द्वितीय लहर के समय प्रदेश सरकार द्वारा निर्णय लिया गया कि प्रत्येक ग्राम व शहरी मोहल्लों में एक निगरानी समिति बनायी जाएगी. अप्रैल, 2021 में प्रदेश में निगरानी समितियां गठित की गयीं. इनके द्वारा घर-घर जाकर एक-एक व्यक्ति की पहचान कर संदिग्ध व्यक्ति को मेडिसिन किट उपलब्ध करायी गयी. इनकी सूची बनाकर अगले 24 घण्टे के अन्दर आर0आर0टी0 की टीम द्वारा जांच कराने की कार्यवाही की गयी. इस कार्य में 10 से 12 लोगों की एक टीम का गठन किया गया था, जिसमें आंगनबाड़ी, आशा वर्कर, ए0एन0एम0, ग्राम प्रधान, पार्षद, सहित ग्राम्य विकास, नगर विकास, पंचायतीराज तथा राजस्व विभाग के कर्मी शामिल थे.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कोरोना वर्करों एवं निगरानी समितियों के सहयोग से प्रदेश में कोरोना नियंत्रित स्थिति में है. प्रदेश में कोरोना नियंत्रण एक मॉडल के रूप में सामने आया है कि किस प्रकार सामूहिक प्रयासों से एक महामारी को नियंत्रित किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं हुआ है, इसके पूर्व, राज्य सरकार इंसेफेलाइटिस के सफल नियंत्रण का मॉडल प्रस्तुत कर चुकी है. वर्ष 1977 से वर्ष 2017 तक पूर्वी उत्तर प्रदेश के 07 जनपदों सहित प्रदेश के कुल 38 जनपदों में इन्सेफेलाइटिस रोग से मौतें होती थीं. इसमें अकेले बस्ती व गोरखपुर जनपद में प्रत्येक वर्ष डेढ़ से दो हजार बच्चों की असमय मृत्यु हो जाती थी. प्रदेश सरकार द्वारा किये गये प्रयासों से पूर्वी उत्तर प्रदेश में इन्सेफेलाइटिस रोग से होने वाली 95 से 97 प्रतिशत मृत्यु को नियंत्रित किया जा चुका है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कोरोना महामारी को नियंत्रित करने में कोरोना वॉरियर्स, खास तौर पर आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री, आशा, ए0एन0एम0 ने अत्यन्त सराहनीय कार्य किया है. उन्होंने कहा कि अच्छा कार्य करेंगे, तो समाज आपको सम्मान देगा. यही भूमिका आपको आगे बढ़ाएगी. कार्य करने से व्यक्ति शारीरिक रूप से मजबूत, मानसिक रूप से परिपक्व तथा आत्मविश्वास से भरपूर होता है. प्रदेश सरकार द्वारा प्रत्येक जनपद में कुपोषित बच्चों, गर्भवती महिलाओं के लिए पोषाहार तैयार करने के लिए संयंत्र स्थापित किया जा रहा है. उसकी क्वॉलिटी की जांच की व्यवस्था की जा रही है. यह प्रदेश में मातृ मृत्यु दर व शिशु मृत्यु दर को कम करने व देश के औसत के समकक्ष लाने में मदद करेगा. इससे राज्य सरकार की दवा एवं अन्य खर्चाें में बचत होगी.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि पिछले दिनों पोषण माह के कार्यक्रम में मैंने कहा था कि आंगनबाड़ी या आशा वर्कर का जितना पिछला मानदेय बकाया है, उसका तत्काल भुगतान किया जाए. विभाग ने उसकी कार्यवाही प्रारम्भ की है. यह पिछला वाला था. अभी सरकार उनको और भी देने जा रही है. आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री अपनी पूरी तन्मयता से कार्य कर रही हैं.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रदेश सरकार ने वर्ष 2017 में एक्साइज के क्षेत्र में हावी गिरोह को पारदर्शी कार्यपद्धति एवं नीतियों को लाकर पूरी तरह से समाप्त किया. जब भ्रष्टाचार के सभी रास्ते बन्द कर दिये जाते हैं, तो विकास अपने आप बढ़ता हुआ दिखायी देता है. प्रदेश सरकार द्वारा सर्वांगीण विकास की नींव को रखने का कार्य किया जा रहा है. प्रत्येक आंगनबाड़ी केन्द्र के भवन का निर्माण कराया जा रहा है. इन आंगनबाड़ी भवनों को बाद में प्री-प्राइमरी के रूप में बनाने पर सरकार गम्भीरता से विचार कर रही है.

इस अवसर पर कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए महिला कल्याण बाल विकास एवं पुष्टाहार राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीमती स्वाती सिंह ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों ने बड़ी निष्ठा से कार्य किया. मुख्यमंत्री जी नेे वर्ष 2017 में प्रदेश की बागडोर संभालते ही, राज्य में गुड गवर्नेंस लाए. इस गुड गवर्नेंस का आधार ई-गवर्नेंस है. मुख्यमंत्री जी की मान्यता है कि जब तक आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को ई-गवर्नेंस से नहीं जोड़ा जाएगा, तब तक गुड गवर्नेंस की सोच को साकार नहीं किया जा सकता. इसके दृष्टिगत आंगनबाड़ी कार्यकर्त्रियों को ‘स्मार्ट फोन’ तथा सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों को ‘ग्रोथ मॉनीटरिंग डिवाइस’ प्रदान किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ‘एक संग मोबाइल एप’ आंगनबाड़ी केन्द्रों को सामुदायिक भागीदारी का एक मंच प्रदान करेगा, जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति एवं संस्था अपनी सहायता प्रदान कर सकता है.

इस अवसर पर मुख्य सचिव श्री आर0के0 तिवारी, अपर मुख्य सचिव सूचना एवं एम0एस0एम0ई0 श्री नवनीत सहगल, अपर मुख्य सचिव महिला कल्याण एवं बाल विकास श्रीमती एस0 राधा चौहान, प्रमुख सचिव महिला कल्याण एवं बाल विकास श्रीमती वी0 हेकाली झिमोमी, सूचना निदेशक श्री शिशिर, निदेशक राज्य पोषण मिशन श्री कपिल सिंह, निदेशक बाल विकास सुश्री सारिका मोहन सहित शासन-प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

यूपी के हर जिले में मेडिकल कॉलेज का संकल्प

लखनऊ. प्रदेश में 16 जिलों में पीपीपी मॉडल पर मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए सरकार की आकर्षक नीति की वजह से देश के कई बड़े संस्थानों ने पहल की है. इन जिलों में मेडिकल कॉलेज बनने से आम लोगों को बड़ी राहत मिलेगी. चिकित्सा शिक्षा विभाग ने पीपीपी मॉडल पर मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए पांच नवंबर तक आवेदन मांगे हैं. विभाग की ओर से http://etender.up.nic.in वेबसाइट पर टेंडर जारी कर दिया गया है. सरकार की ओर से निजी निवेशकों को कई तरह की छूट भी दी जा रही है.

चिकित्सा शिक्षा विभाग ने 16 जिलों में पीपीपी मॉडल पर मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए कैबिनेट की मुहर लगने के बाद हाल ही में नीति जारी की थी और तीन तरह के विकल्प उपलब्ध कराए थे. हर विकल्प के लिए नियम और शर्तें अलग हैं. निजी क्षेत्र के निवेशक अपनी जमीन या सरकारी जमीन पर भी मेडिकल कॉलेज खोल सकते हैं. खास बात यह है कि विभाग ने इन सभी जिलों में मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए जमीन पहले से चिह्नित कर आरक्षित कर ली है.

चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार ने बताया कि पीपीपी मॉडल पर मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए कई बड़े निवेशकों ने इच्छा जाहिर की है. विभाग की ओर से नीति जारी कर दी गई है. निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से निविदा प्रक्रिया के तहत निवेशकों का चयन किया जाएगा. सीएम योगी के निर्देश पर पूरी प्रक्रिया को तीव्र गति से पूरा किया जा रहा है.

हर साल मिलेंगे 16 सौ नए डॉक्टर, 10 हजार लोगों को मिलेगी नौकरी

प्रदेश में 16 जिलों में बनने वाले मेडिकल कॉलेजों से हर साल 16 सौ नए डॉक्टर मिलेंगे. साथ ही इन मेडिकल कॉलेजों में करीब 10 हजार लोगों को नौकरी मिलेगी. इसके अलावा इन मेडिकल कॉलेजों में लोगों के उपचार के लिए करीब छह हजार नए बेड उपलब्ध होंगे. इन मेडिकल कॉलेजों में आम लोगों को भी उच्च स्तरीय सहुलियत मिलेगी.

सीएम योगी ने इन जिलों में भी मेडिकल कॉलेज खोलने का लिया है संकल्प

प्रदेश में 16 जिलों बागपत, बलिया, भदोही, चित्रकूट, हमीरपुर, हाथरस, कासगंज, महराजगंज, महोबा, मैनपुरी, मऊ, रामपुर, संभल, संतकबीरनगर, शामली और श्रावस्ती में सरकारी या निजी मेडिकल कॉलेज नहीं हैं. हालांकि इन जिलों में जिला अस्पताल, सीएचसी और पीएचसी की सुविधा उपलब्ध है. इन जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं में और इजाफा करने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हर जिले में मेडिकल कालेज का खोलने का संकल्प लिया है.

The Kapil Sharma Show : Navjot Singh Sidhu के लिए अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार हैं Archana Puran Singh!

पंजाब कांग्रेस में उठा सियासी बवाल दिन प्रति दिन बढ़ते नजर आ रहा है. यह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. जिसके मुख्य कारण हैं पूर्व क्रिकेटर और शेरो शायरी के बादशाह नवजोत सिंह सिद्धू. उन्होंने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है.

जिसके बाद से लगातार कई तरह कि बातें हो रही हैं. वहीं कुछ लोग अर्चना पूरन सिंह के मजे ले रहे हैं कि अब उनकी नौकरी पहले से ज्यादा खतरे में आ गई है. जबसे सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया है तबसे लोगों ने सोशल मीडिया पर इस सवाल को उठाने शुरू कर दिए हैं. जिसे देखते हुए अर्चना सिंह ने सोशल मीडिया पर बताया है कि वह सिद्धू के लिए अपनी कुर्सी छोड़ने को तैयार है.

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एक रिपोर्ट में बातचीत करते हुए अर्चना ने इस बात का खुलासा किया है कि अगर सिद्धू वापस आएंगे तो वह कुर्सी उनके लिए खाली कर देंगी. आगे अर्चना ने कहा कि इस कुर्सी के लिए वह कई सारे ऑफर को ठुकरा दिया है. अगर वह आएंगे तो मैं अपने बाकी के काम को भी सही से समय दे पाऊंगी.

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अर्चना ने कहा कि इस शो कि वजह से मैं बाकी कई सारे प्रोजेक्ट्स के लिए हां नहीं भरती जो इंडिया से बाहर के हैं. अर्चना के इस बात से साफ लग रहा है कि उन्हें इस कुर्सी का कोई भी मोह नहीं है. वह जब चाहे तब इस कुर्सी को छोड़ने को तैयार हैं.

गौरतलब है अब देखना यह है कि सिद्धू इस शो में वापसी करते हैं या नहीं इस बात पर अभी तक नवजोत सिंह सिद्धू के तरह से कोई भी बयान नहीं आया है.

Bigg Boss 15 Promo : धमाकेदार होगी Tejasswi Prakash की एंट्री, वीडियो वायरल

बिग बॉस 15 का आगाज 2 अक्टूबर को होने वाला है, इससे पहले इस शो के मेकर्स इस शो में आने वाले कंटेस्टेंट के प्रोमो को एक- एक करके रिलीज कर रहे हैं. हाल ही में लॉच हुए प्रोमो में शो के मेकर्स ने अभी तक 2 फाइनल कंटेस्टेंट की शक्ल दिखाई है.

इस प्रोमो को देखने के बाद से फाइनल हो चुका है कि इस शो में नागिन फेम एक्ट्रेस अकाशा की एंट्री होने वाली है. अकाशा अपने अपने चुलबूले अंदाज और स्टाइलिश अपीयरेंस के लिए जानी जाती है. दूसरी कंटेस्टेंट के लिस्ट में नाम आता है तेजस्वी प्रकाश का जो इस शो का हिस्सा बनने वाली हैं.

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हाल ही में रिलीज हुए प्रोमो में तेजस्वी प्रकाश का चेहरा साफ नजर आ रहा है. हालांकि इसके अलावा औऱ भी कई सारे कंटेस्टेंट इस शो का हिस्सा बननेे वाले हैं जिनके नाम का खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है. इन सभी कंटेस्टेंट के नाम सामने आते ही बिग बॉस शो का आगाज हो जाएगा.

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इससे पहले बिग बॉस ओटीटी पर्दे पर धमाल मचाए हुए था, जिसे देखना दर्शकों को काफी ज्यादा अच्छा लग रहा था, इस शो को होस्ट कर रहे थें, करण जौहर , जिसमें शिल्पा शेट्टी की बहन स्मिता शेट्टी ने भी खुलकर हिस्सा लिया था.

फैंस को भी इस शो का बेसब्री से इंतजार है. अब देखना यह है कि इस शो में पहले की तरह कंटेस्टेंट धमाल मचा पाते हैं या नहीं. इस शो को देखने के लिए लोग इंतजार में बैठे हैं.

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