राजनीति में संख्या का सब से अधिक महत्त्व होता है. हर जाति अपनी संख्या को सब से अधिक दिखा कर मजबूत दिखाना चाहती है. ओबीसी जातियों की संख्या सब से ज्यादा है. सब से बड़ा वोटबैंक होने के बाद एकजुटता न होने के कारण उसे अगड़ी, दलित और मुसलिम जातियों के पीछे चलना पड़ता है. इसी कारण उन को संख्या में अधिक होने के बाद भी सत्ता में हिस्सेदारी नहीं मिल पाती है. 1990 के बाद देश की राजनीति पर मंडल कमीशन का असर पड़ा. पिछड़ी जातियों के तमाम क्षत्रप नेता उस दौर में सत्ता का केंद्र भी बने. उस के बाद भी वे एकजुट न रह सके.
ओबीसी जातियों में भी आगे रहने वाली यादव, कुर्मी और पटेल जैसी कुछ जातियों के ही हिस्से में सत्ता की मलाई आई, जिस की वजह से ओबीसी में 2 हिस्से हो गए. ओबीसी में अतिपिछड़ा वर्ग के नाम से एक अलग वर्ग बन गया. इस वर्ग को आगे कर के पिछड़ी जातियों के चुनावी प्रभाव को कम करने का काम किया गया. जिस की वजह से 2014 के लोकसभा चुनाव में पिछड़ी जातियों की अगुआई करने वाले दल कमजोर पड़ गए. वे दूसरे दलों का सहारा लेने को मजबूर होने लगे. पिछड़ों की राजनीति यह बात सम?ा कर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव कहते हैं, ‘‘भाजपा पिछड़ों की राजनीति कर रही है. वोट के लिए मंत्री पद दिए जा रहे हैं.
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जीहुजूरी की जा रही है. यही पिछड़े वर्ग के लोग जब अपना हक मांग रहे हैं तो उन को लाठियों से पीटा जा रहा है.’’ ‘‘भाजपा जातियों को आपस में लड़ा रही है. पिछड़े वर्ग के लोगों को यह कह कर बरगलाया जा रहा है कि पिछड़ों के सारे हक यादव छीन ले जा रहे हैं. हम जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं तो भाजपा इस को स्वीकार नहीं कर रही है, दरअसल, भाजपा को मालूम है कि पिछड़ों की संख्या सब से ज्यादा है. ‘‘पिछड़ी जातियां यह देख कर सत्ता में हिस्सेदारी मांगने लगेंगी. वे भाजपा में अगड़ी विचाराधारा के लोगों के पीछे चलना छोड़ देंगी. जातीय जनगणना से ही दलित और पिछड़ों को सत्ता में हक मिल सकेगा.’’ अखिलेश यादव पिछड़ी जातियों को भरोसा दिलाते हुए कहते हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सपा की सरकार बनने के बाद जातीय जनगणना कराई जाएगी.’’ बात केवल अखिलेश यादव की नहीं है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के सहयोग से सरकार चला रहे हैं.