पंजाब में एक दलित को मुख्यमंत्री बनाने और कन्हैया कुमार व जिग्नेश मेवानी को पार्टी में शामिल कर लेने के बाद कांग्रेस में घमासान सा मचा हुआ है. यह तो होना ही था. कांग्रेस के शीर्ष नेता सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और राहुल गांधी अपनी मिश्रित पृष्ठभूमि के कारण चाहे वर्गवादी सोच से निकल गए हों पर कांग्रेसी नेताओं का बड़ा तबका अब भी पूजापाठी ही है और कांग्रेस में तब तक ही है जब तक उस के पास सत्ता या प्रभाव है.

2014 व 2019 के चुनावों में हार के बावजूद आज भी कांग्रेस का वजूद है तो इसलिए कि देश की 80 फीसदी जनता को मनचाहे नेता भारतीय जनता पार्टी में कभी नहीं मिले. उन्हें बहका कर, भगवान का नाम सुझा कर,  हिंदूमुसलिम कर के, कांग्रेसी भ्रष्टाचार की सच्चीझूठी कहानियां सुना कर उन से वोट उन का वोट हथिया लिया पर जैसे अरसे से कांग्रेसी नेता आम लोगों से दूर रहे,  वैसे ही भाजपाई नेता भी आज आम जनता से दूर हैं. कांग्रेस का बहुजनवादी या समाजवादी कायापलट किसी को मंजूर नहीं है क्योंकि विपक्षी पार्टी कमजोर होने के बावजूद अपनी परतों में बहुत सी शक्ति छिपा कर रखती है. यह शक्ति गैरवर्णवादी लोगों के हाथों में चली जाए,  उस को मंजूर नहीं.

राहुल और प्रियंका ने पंजाब में मुख्यमंत्री के रूप में चरनजीत सिंह चन्नी को मुखौटे के रूप में रखा है या उसे वास्तव में हक दिया है,  यह स्पष्ट नहीं है. वहीं, उसी के बाद निचले वर्गों के युवा नेताओं को बाजेगाजे के साथ शामिल कर लेना खतरे की घंटी है.

भाजपा के साथ दिक्कत यह है कि वह पौराणिक सोच से नहीं उठ सकी है. देश को आजादी मिलने के बाद जो कांग्रेस सत्ता में आई थी, वह वैसी थी जैसी आज भाजपा है. उस में संपूर्णानंद पंत, वल्लभभाई पटेल, राजेंद्र प्रसाद,  राजगोपालाचार्य जैसे वर्गवादी कट्टरपंथी ही थे जिन्होंने कांग्रेस को पौराणिक युग में ले जा कर देश को फिर गड्ढे में धकेल दिया था. देश की प्राथमिकताएं सोमनाथ मंदिर हो गईं जवाहरलाल नेहरू के विरोधों के बावजूद. हिंदू विवाद कोड पर जो हल्ला मचा, वह आज भी नहीं सुनाया जा सकता.

राहुल गांधी का प्रयोग लीपापोती है या वास्तव में उन के गलीगली के दौरों की देन, इस पर अभी नहीं कहा जा सकता. यह स्पष्ट है कि देश की प्रगति इस के इंग्लिश माध्यम स्कूलों से पढ़ेलिखे लोगों के हाथों से तो हो नहीं सकती. देश अगर बढ़ेगा तो उन लोगों की मेहनत से जो जमीन, कारखानों में निचला माने जाने वाला काम कर रहे हैं.

राहुल के विरोध में खड़े लोगों में अधिकांश कांग्रेसी बेहद पूजापाठी हैं और अपने जन्म से मिली श्रेष्ठता पर वे गौरवान्वित हैं. उन्हें गवारा नहीं कि जिन के वोटों के सहारे वे चुनावों में जीत कर आए हैं उन्हें बराबर का दर्जा मिले. यह तो बहुजन समाजपार्टी की मायावती भी अपने संस्कृतिकरण के बाद ज्यादा दिन सह न सकी थीं और उन्होंने अपने को श्रेष्ठ कुल में पैदा हुए लोगों से घेर लिया था और खुद ने महारानियों वाली वेशभूषा अपनाई थी. आम कार्यकर्ता के लिए बहनजी भी दर्शन मात्र के लिए उपलब्ध रह गई थीं. कांग्रेसी विवाद इसी सोच की देन है.

कांग्रेसी नेता कहीं जाएंगे, ऐसा नहीं लगता. उन्हें भाजपा के अलावा कुछ चाहिए नहीं और जो भाजपा में जाता है वह अपना अस्तित्व खो बैठता है. इसलिए ये नेता कांग्रेस में रह कर शोर मचाते रहेंगे. हां,  कांग्रेस के नए प्रयोग को ये कमजोर कर सकते हैं. यह हमेशा संभव है. घर के भेदी सब से ज्यादा खतरनाक दुश्मन होते हैं.

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