भीगेभीगे मौसम में रवीना, दीपिका के गानों का मन ही मन आनंद ले ही रहा था कि पकौड़े खाने और खिलाने की धुन सवार हो गई और फिर मेरे साथ कुछ ऐसा हुआ... बाहरबूंदाबांदी हो रही थी. मौसम बड़ा ही सुहावना था. ठंडी हवा, हरियाली का नजारा और लौकडाउन में घर बैठने की फुरसत. मैं बड़े आराम से अपने 7वीं मंजिल के फ्लैट के बरामदे में ?ाले पर बैठा अखबार उलटपुलट रहा था. दोपहर के 4 बजने वाले थे और चाय पीने की जबरदस्त तलब हो रही थी. मैं ने वहीं से पत्नी को आवाज लगाई, ‘‘अजी, सुनती हो, एक कप चाय भेज दो जरा.’’ कोई हलचल नहीं हुई न कोई जवाब आया. सोचा, शायद किसी काम में व्यस्त होंगी, मेरी आवाज नहीं सुन पाई होंगी. अत: एक बार फिर पुकार कर कहा, ‘‘अरे भई, कहां हो, जरा चाय भिजवा दो.’’ अब की बार आवाज तेज कर दी थी मैं ने परंतु जवाब फिर भी नहीं आया.

सोचा, उठ कर अंदर जा कर चाय के लिए बोल आऊं, लेकिन इस लुभावने मौसम ने बदन में इतनी रोमानियत भर दी थी और मेरे चक्षु के पृष्ठपटल पर हिंदी फिल्मों के बारिश से भीगने वाले गानों के ऐसेऐसे दृश्य उभर रहे थे कि उठ कर एक जरा सी चाय के लिए वह तारतम्य तोड़ने का मन नहीं हुआ. आंखों के आगे रहरह कर भीगी साड़ी में नरगिस से ले कर दीपिका तक की छवि लहरा रही थी. अभी ‘टिपटिप बरसा पानी...’ की भीगती रवीना चक्षुपटल पर आई ही थी कि एक मोटी, थुलथुल 50-55 इंच की कमर वाली एक महिला मेरे आगे आ कर खड़ी हो गई? ‘‘हाय राम.’’ ऐसी भयानक काया, मैं डरतेडरते बचा... लगा जैसे किसी ने पेड़ पर बैठ कर मीठे फल खाते हुए मु?ो नीचे गिरा दिया हो. मैं ने प्रकट रूप में आ कर देखा, मेरी श्रीमतीजी हाथ में चाय का प्याला लिए खड़ी मु?ा पर बरस रही थीं. ‘‘एक तो किसी काम में हाथ नहीं बंटाते ऊपर से बैठेबैठे फरमाइशें करते रहते हो... कितना काम पड़ा है किचन में...

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