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मेरी शादी को 5 साल हो चुके हैं, मुझे एक गरीब लड़की से प्यार हो गया है,मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 26 साल का हूं. मेरी शादी को 5 साल हो चुके हैं. 2 साल का लड़का भी है. इस बीच मुझे एक गरीब लड़की से प्यार हो गया है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप अपने बच्चे व बीवी की अच्छी तरह देखभाल करें और प्यार का खयाल मन से निकाल दें. लड़की से दोस्ती रखना तो ठीक है, पर प्यार का कोई तुक नहीं है. वह गरीब है तो बेशक उस की मदद करें, मगर बगैर लालच के.

 

सवाल

मैं 40 वर्षीया विधवा हूं. मेरे 4 बच्चे हैं. मैं ने बड़ी मेहनत कर के पढ़ाई की और अब नौकरी करती हूं. इसी बीच मेरा परिचय एक 45 वर्षीय व्यक्ति से हो गया. वह मेरी हर बात मानता है. वह अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं है. मुझे उस से प्यार हो गया है. वह अपने परिवार वालों को कोई कष्ट नहीं देना चाहता. वह उन पर पैसा व्यय करता है पर मेरे लिए कभी कुछ ला कर नहीं देता. इसलिए कभीकभी झगड़ा भी हो जाता है. फिर भी मैं उस के लिए बेचैन रहती हूं. बताइए, मुझे क्या करना चाहिए.

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जवाब

यदि बिना किसी बंधन व खर्च के किसी विवाहित पुरुष को दूसरी स्त्री का साथ मिल जाए तो कौन छोड़ेगा? यह आप को देखना है कि वह वास्तव में आप से प्रेम करता है या यह सब महज यौनाकर्षण है. आप उस पुरुष को मित्र मानिए और न उस से कोई आशा करें और न मित्रता से अधिक उस से व्यवहार करें. इस के अलावा आप दोनों के निजी मामले से भी कहीं ऊपर आप दोनों की अपनेअपने परिवारों के प्रति जिम्मेदारियां भी हैं. आप को उन जिम्मेदारियों के प्रति सतर्क रहना चाहिए.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

भिक्षावृत्ति महानवृत्ति

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक राष्ट्रीय न्यूज चैनल को इंटरव्यू दिया था. उस में बड़ी बेशर्मी के साथ कहते नजर आए कि ‘आप को यह जान कर हैरानी होगी कि मैं ने 35 साल भिक्षा मांग कर खाया है.’ जैसे भिक्षा मांगना इंटरनैशनल महान कार्य किया हो. इस देश में भीख मांगने को सदा उच्च माना गया है, आदरणीय माना गया है. कई धर्मग्रंथों में लिखा है कि ब्राह्मणों को भिक्षा देना पुण्य का कार्य है. ब्राह्मणों के छोटेछोटे बच्चों को शास्त्रों का हवाला दे कर भिक्षावृत्ति में धकेला गया. उन को बताया गया कि तुम्हारे ऋषिमुनि, महात्मा भी भिक्षा मांग कर जीवनयापन करते थे, इसलिए वे महान थे. इस महान संस्कृति को आगे बढ़ाना तुम्हारा कर्तव्य है. यही कारण है कि आज बेशर्मी के साथ मांगने की वृत्ति रगरग में समा गई है. साल 1962 में चीन में त्रासदी आई.

ब्रिटेन के एनजीओ ने राहत सामग्री से भरा जहाज भेजा था. चीन के लोगों ने उस जहाज पर यह लिख कर वापस कर दिया कि भूखों मर जाएंगे मगर भीख स्वीकार नहीं करेंगे. ब्रिटेन की संसद में 31 मई 1962 में एम पी नोएल बेकर की अपील पर प्रधानमंत्री ने कहा था कि चीन ने बाहर से बड़े पैमाने पर खाद्यान्न खरीदा है और शायद वे सहायता न लें. भारत में इस तरह मदद पहुंचती तो जहाज के कैप्टन का मालाओं से स्वागत होता, पंडितजी स्वागत में नारियल फोड़ते. हम बेशर्म लोग हैं. हम ने भीख को आत्मसात कर के, आदर दे कर इस को महान संस्कृति का स्वरूप दे दिया है. आज 10-12 साल के बच्चे तिलक लगा कर, चोटी बना कर पंडालों में प्रवचन देते हैं कि जीवन के आवागमन से मुक्ति का रास्ता कैसे प्राप्त किया जा सकता है, मोक्ष कैसे मिलेगा. जिंदगी की दहलीज पर कदम रखा है अभी और अभी से ही मौत पर निशाना. जवानी तो दूर की बात है, अभी तो बचपन भी नहीं जिया,

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उस से पहले ही बूढ़े हो गए, बूढ़ों की सोच घर कर गई. मरुस्थलीय पौधे कीकर के भी कोंपल फूटती है, फूल आते हैं, फल लगते हैं. मगर भारत के मनुष्यों के जीवन में कोई रस नहीं है. कोई कली नहीं खिलती, न फूल आते हैं न फलों का आगमन होता है. पौधा पैदा हुआ और सूखे की मार पड़ जाती है. बच्चा पैदा हुआ कि धर्म की आड़ में मौत से रूबरू करवा दिया जाता है. जिंदगी क्षणभंगुर है, आसपास सबकुछ मोहमाया है. तू इस से मुक्ति का मार्ग ढूंढ़. दुनिया बेगानी घोषित की हुई है और बच्चों को भिखारी बना दिया गया है, बच्चों को बूढ़ा बना दिया गया है. यह भिखारियों की संस्कृति वाला देश है. यह बूढ़ों का देश है. यहां जवानी पैदा नहीं होती है. अगर आप भौतिक रूप से देखोगे तो हुक्मरान सही कह रहे हैं कि यह युवा देश है. हमारे पास 65 करोड़ युवाओं की संख्या है. मगर युवा सोच, स्टेट औफ माइंड, स्पिरिट के रूप में देखोगे तो ये 65 करोड़ मिट्टी के पुतले हैं. जिस देश की आधी से ज्यादा आबादी युवा हो उस देश की इतनी दयनीय हालत हो सकती है? दरिद्रता का ढेर हो सकता है?

समस्याओं का अंबार हो सकता है? कदमकदम पर अन्याय व अत्याचार है मगर कहीं कोई बगावत, विरोध, विद्रोह की कोई आवाज नहीं. क्या युवा देश में यह संभव है? जवान आदमी कोई भीख मांगता है तो हम कह देते हैं कि जवान हो कर भीख मांगता है. बूढ़ा भीख मांगे तो कोई अचरज नहीं क्योंकि वह पैदा नहीं कर सकता. मगर धर्म/संस्कृति/दान/पुण्य का तड़का लगा दिया जाए तो न मांगने वाले को शर्म आती है और न देने वाले को. मांगने वाला भी गर्व के साथ मांगता है क्योंकि यह उस की महान विरासत है जिसे वह संभाल रहा है और देने वाले के मन में भी कोई सवाल खड़ा नहीं होता कि जवान को क्यों दूं? बल्कि उसे भी गर्व की अनुभूति होती है कि भीख दे कर उस ने भी महान कार्य किया है. इस तरह हम ने हजारों सालों से भिखारियों की फौज खड़ी कर ली है. अनुत्पादक लोगों का जमघट तैयार कर लिया. जो थोड़ेबहुत उत्पादक लोग हैं उन की ऊर्जा व श्रम इन अनुत्पादक लोगों को पालने में व्यर्थ जा रहा है.

देश में कोई रैडिकल प्रोग्रैस नहीं हो रही है. बस, खुद द्वारा तैयार बो?ा ही खुद के कंधों पर उठाए घूम रहे हैं. यहां के धर्मगुरु सम?ा रहे हैं कि ‘क्या ले के आया बंधु, क्या ले के जाएगा!’ पैदा होते ही बुढ़ापे की चादर ओढ़ा दी जाती है. जिंदगी को मौत की ट्रेन के इंतजार करने का वेटिंगरूम बना दिया है. बस, मौत आने वाली है. यहीं शौच कर लो, कूड़ा बिखेर दो. हमारे साथ क्या चलने वाला है? सृजन करने की, निर्माण करने की क्या जरूरत है? हम तो खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाना है, इसलिए कुछ करने की जरूरत नहीं है. गलती से कुछ हाथ लग गया है तो वह भी इन भिखारियों को दे दो. इसी वृत्ति के कारण, इसी भीख मांगने की सोच के कारण यह देश हजारों सालों से दरिद्रता का, भुखमरी का, गरीबी का दर्द ?ोल रहा है. इसी वृत्ति के कारण यह देश हजारों साल गुलाम रहा है.

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इसी महान भिखमंगी वृत्ति के कारण हम आज भी कटोरा ले कर कभी अमेरिका, कभी रूस, कभी ब्रिटेन, कभी फ्रांस की तरफ भाग रहे हैं. दुनिया की सब से ज्यादा उपजाऊ भूमि हमारे पास है. दुनिया के सब से ज्यादा खनिज पदार्थों का भंडार हमारे पास है. प्राकृतिक विविधताओं का अद्भुत संगम है. मानव संसाधन का दुनिया का सब से बड़ा युवा भंडार है. मगर युवाओं की सोच में हम ने बुढ़ापा भर दिया है. यही कारण है कि पंडालों में, मसजिदों में, चर्चों में बालबह्मचारी तो पैदा हो रहे हैं, मगर भगतसिंह कहीं पैदा नहीं हो रहे. भारत के राजनेता युवाओं को दिशा देने के बजाय भटका रहे हैं. कुछ युवा मूढ़ताओं, मूर्खताओं से आजिज आते हैं तो उन की बगावती, हिंसक वृत्ति को तोड़फोड़ में लगा देते हैं. क्या तोड़ना है, वह युवाओं को सम?ा में नहीं आ रहा है, इसलिए जो नेताजी इशारा कर देते हैं वे वो ही तोड़ने लग जाते हैं. भटका हुआ युवा भारत के युवाओं को अंधविश्वास व पाखंड की बेडि़यां तोड़नी हैं, भिखमंगों की वृत्ति तोड़नी है, गुंडेमवालियों की कमर तोड़नी है, बेईमान राजनेताओं के बंगले व गाडि़यां तोड़नी हैं, विकास की राहों के हर अवरोधक को तोड़ना है जबकि वे तोड़ रहे हैं कालेज की खिड़कियां, टेबलकुरसियां, सार्वजनिक परिवहन की बसें, रेलें, आमजन के व्हीकल आदि. राजनेता भी यही चाहते हैं कि युवा यही तोड़ते रहें. धर्मगुरु भी यही चाहते हैं युवा यही तोड़ते रहें क्योंकि इसी युवा भटकाव पर इन के साम्राज्य खड़े हैं.

Crime Story: घर गृहस्थी से जेल अच्छी

लेखक- जगदीश प्रसाद शर्मा ‘देशप्रेमी’   

सौजन्य-सत्यकथा

वह 26 जून, 2020 की मध्यरात्रि थी. समय सुबह के 3 बजकर 20 मिनट. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की लक्सर कोतवाली के कोतवाल हेमेंद्र सिंह नेगी देहात क्षेत्र के गांवों में गस्त कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. नेगी ने मोबाइल स्क्रीन देखी, कोई अज्ञात नंबर था. इतनी रात में कोई यूं ही फोन नहीं करता. नेगी ने मोबाइल काल रिसिव की.

दूसरी ओर कोई अपरीचित था, जिस की आवाज डरीसहमी सी लग रही थी. हेमेंद्र सिंह के परिचय देने पर उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम अभिषेक है और मैं आप के थाना क्षेत्र के गांव झीबरहेडी से बोल रहा हूं. मुझे आप को यह सूचना देनी थी कि आधा घंटे पहले बदमाशों ने मेरे चचेरे भाई प्रदीप की हत्या कर दी है.’’

‘‘हत्या, कैसे? पूरी बात बताओ’’

‘‘सर मुझे हत्यारों की तो कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि उस वक्त मैं गहरी नींद में था. करीब आधा घंटे पहले मेरे मकान की दीवार से किसी के कूदने की आवाज आई थी. मुझे लगा कि गांव में बदमाश आ गए हैं. मैं तुरंत नीचे आ कर दरवाजा बंद कर के लेट गया.

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‘‘थोड़ी देर बाद चचेरे भाई प्रदीप के कराहने की आवाज आई तो मैं बाहर आया. मैं ने देखा कि प्रदीप लहूलुहान पड़ा था, उस के पेट, छाती व सिर पर धारदार हथियारों से प्रहार किए गए थे.’’ अभिषेक बोला.

‘‘फिर?’’

‘‘सर, फिर मैं ने अपने घरवालों को जगाया और प्रदीप को  तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा. लेकिन हम प्रदीप को अस्पताल ले जाते, उस ने दम तोड़ दिया.’’ अभिषेक बोला.

‘प्रदीप किसान था?’ नेगी ने पूछा

‘नहीं सर प्रदीप स्थानीय श्री सीमेंट कंपनी में ट्रक चलाता था और गत रात ही वह देहरादून से लौटा था. रात को वह अकेला ही अपने घर की छत पर सो रहा था.’ अभिषेक बोला.

‘‘प्रदीप की गांव में किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’ नेगी ने पूछा.

‘‘नहीं सर वह तो हंसमुख स्वभाव का था और गांव के सभी बिरादरी के लोग उस की इज्जत करते थे. प्रदीप ज्यादातर अपने काम से काम रखने वाला आदमी था.’’ अभिषेक बोला.

‘‘ठीक है अभिषेक, पुलिस 15 मिनट में घटनास्थल पर पहुंच जाएगी.’’

कोतवाल हेमेंद्र नेगी ने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया. नेगी ने सब से पहले लक्सर कोतवाली की चेतक पुलिस को गांव झीबरहेड़ी में प्रदीप के घर पहुंचने का आदेश दिया. फिर इस हत्या के बारे में सीओ राजन सिंह, एसपी देहात स्वप्न किशोर सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस. को सूचना दी.

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नेगी गांव झीबरहेड़ी की ओर चल दिए. 20 मिनट बाद नेगी प्रदीप के घर पर पहुंच गए. उस समय सुबह के 4 बज गए थे और अंधेरा छंटने लगा था.

प्रदीप के घर में उस का शव आंगन में चादर से ढका रखा था, आसपास गांव वालों की भीड़ जमा थी. नेगी व चेतक पुलिस के सिपाहियों ने सब से पहले ग्रामीणों को वहां से हटाया. इस के बाद शव का निरीक्षण किया. हत्यारों ने प्रदीप की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी.

बदमाशों ने प्रदीप का पूरा शरीर धारदार हथियारों से गोद डाला था. जब नेगी ने प्रदीप के बीबी बच्चों की बाबत, पूछा तो घर वालों ने बताया कि कई सालों से प्रदीप की बीबी ममता बच्चों के साथ अपने मायके बादशाहपुर में रहती है. घरवालों से नंबर ले कर नेगी ने ममता को प्रदीप की हत्या की जानकारी दी.

इस के बाद नेगी ने गांव वालों से प्रदीप की दिनचर्या के बारे में जानकारी ली और पूछा कि उस की गांव में किसी से दुश्मनी तो नहीं थी. नेगी का अनुमान था कि प्रदीप की हत्या का कारण रंजिश भी हो सकता है, क्योंकि यह मामला लूट का नहीं लग रहा था.

नेगी ग्रामीणों से प्रदीप के बारे में जानकारी जुटा ही रहे थे, कि सीओ राजन सिंह, एसपी देहात एसके सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सेंथिल अबुदई कृष्णाराज एस भी पहुंच गए. तीनों अधिकारियों ने वहां मौजूद ग्रामीणों से प्रदीप की हत्या के बारे में पूछताछ की.

इस के बाद अधिकारियों ने कोतवाल नेगी को प्रदीप के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेएन सिन्हा स्मारक राजकीय अस्पताल रुड़की भेजने के निर्देश दिए और चले गए. शव को अस्पताल भेज कर नेगी थाने लौट आए. उन्होंने प्रदीप के भाई सोमपाल की ओर से धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और मामले की जांच शुरू कर दी. प्रदीप की हत्या का मामला थोड़ा पेचीदा था, क्योंकि न तो प्रदीप का कोई दुश्मन था और न लूट हुई थी.

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अगले दिन 27 जून को एसपी देहात एसके सिंह ने इस केस का खुलासा करने के लिए लक्सर कोतवाली में मीटिंग की, जिस में सीओ राजन सिंह, कोतवाल हेमेंद्र नेगी, थानेदार मनोज नोटियाल, लोकपाल परमार, आशीष शर्मा, यशवीर नेगी सहित सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी, एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर आदि शामिल हुए.

एसके सिंह ने सीओ राजन सिंह के निर्देशन में इन सभी को जल्द से जल्द प्रदीप हत्याकांड का खुलासा करने के निर्देश दिए.

निर्देशानुसार सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी ने झीबरहेड़ी में घटी घटना का साइट सैल डाटा उठाया. साथ ही रात में हत्या के समय आसपास चले मोबाइलों की काल डिटेल्स खंगाली. इस के बाद पुलिस द्वारा उन मोबाइल नंबरों की पड़ताल की गई.

साथ ही बचकोटी ने सीआईयू के एएसआई देवेंद्र भारती व जाकिर को प्रदीप हत्याकांड की सुरागरसी करने के लिए सादे कपड़ों में झीबरहेड़ी भेजा.

सिपाहियों कपिलदेव व महीपाल को उन्होंने प्रदीप की पत्नी ममता के बारे में जानकारी जुटाने के लिए उस के मायके बादशाहपुर भेजा था.

इस का परिणाम यह निकला कि 28 जून, 2020 की शाम को पुलिस और सीआईयू के हाथ प्रदीप हत्याकांड के पुख्ता सबूत लग गए. पुलिस को जो जानकारी मिली, वह यह थी कि मृतक प्रदीप के साथ अमन भी ट्रक चलाता था. वह गांव हरीपुर, जिला सहारनपुर का रहने वाला था. इसी के चलते वह प्रदीप के घर आताजाता था. प्रदीप की पत्नी ममता का चालचलन ठीक नहीं था, इस वजह से पति पत्नी में अकसर मनमुटाव रहता था. घर में आनेजाने से अमन की आंखे ममता से लड़ गई थीं और वे दोनों प्रदीप की गैरमौजूदगी में रंगरलियां मनाने लगे थे.

गत वर्ष जब प्रदीप को ममता व अमन के अवैध संबंधों की जानकारी हुई तो उस ने दोनों को धमकाया भी, मगर 42 वर्षीया ममता अपने 23 वर्षीय प्रेमी अमन को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. इस विवाद के चलते वह अपने बच्चों के साथ मायके बादशाहपुर जा कर रहने लगी थी.

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उस के जाने के बाद प्रदीप अपने झीबरहेडी स्थित मकान पर अकेला रहने लगा. 29 जून, 2020 को पुलिस को प्रदीप की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई, जिस में उस की मौत का कारण शरीर पर धारदार हथियारों के प्रहारों से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस को अमन पर शक हो गया. दूसरी ओर सीआईयू प्रभारी एनके बचकोटी को जिस मोबाइल नंबर पर शक था, वह अमन का ही नंबर था.

सीआईयू ने अमन की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछा दिया था. अमन को शाम को ही पुलिस ने लक्सर क्षेत्र से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह ममता से मिलने जा रहा था.

अमन को पकड़ने के बाद पुलिस उसे कोतवाली ले आई. इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह व सीओ राजन सिंह ने उस से प्रदीप की हत्या के बारे में सख्ती से पूछताछ की. अमन ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार है—

अमन ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि वह प्रदीप के साथ गत 3 वर्षो से ट्रक चलाता था. उस का प्रदीप के घर आना जाना होता रहता था. प्रदीप की बीवी ममता पति के रूखे व्यवहार से परेशान रहती थी. जब उस ने ममता से प्यार भरी बातें करनी शुरू कर दीं, तो वह भी उसी टोन में बतियाने लगी. तनीजा यह हुआ कि उस के ममता से अवैध संबंध बन गए.

यह जानकारी मिलने पर प्रदीप ने मुझे धमकी दी, जिस से मैं बुरी तरह डर गया. इस के बाद उस ने प्रदीप द्वारा दी गई धमकी की जानकारी ममता को दी. तब उस ने ममता की सहमति से प्रदीप की हत्या की योजना बनाई. 26 जून को उस ने प्रदीप के बेटे शकुन को फोन किया और उस से प्रदीप के बारे में पूछा.

शकुन के मुताबिक प्रदीप उस शाम घर पर ही था. रात 12 बजे मैं छुरी ले कर झीबरहेडी की ओर निकल गया. प्रदीप के मकान के पीछे खेत थे रात करीब 2 बजे वह खेतों की ओर से मकान पर चढ़ गया. उस समय प्रदीप मकान की छत पर अकेला बेसुध सोया पड़ा था. उसे देख कर उस का खून खौल गया.

इस के बाद उस ने पूरी ताकत लगा कर प्रदीप के गले पर वार करने शुरू कर दिए. उस ने प्रदीप के गले, सिर व पेट पर कई वार किए. इस के बाद वह मकान की छत से कूद कर, वापस लक्सर आ गया.

लक्सर से बादशाहपुर ज्यादा दूर नहीं था. इसलिए लक्सर पुलिस ममता को भी कोतवाली ले आई. जब ममता ने अमन को पुलिस हिरासत में देखा, तो वह सारा माजरा समझ गई और पुलिस के सामने अपने पति की हत्या का षडयंत्र रचने में अपनी संलिप्तता मान कर ली.

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इस के बाद एसपी देहात एसके सिंह ने प्रदीप हत्याकांड का खुलासा होने और 2 आरोपियों के गिरफ्तार होने की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार सेंथिल अबुदई कृष्णाराज को दी.

30 जून, 2020 को एसपी देहात एसके सिंह ने लक्सर कोतवाली में प्रैसवार्ता के दौरान मीडियाकर्मियों को प्रदीप हत्याकांड के खुलासे की जानकारी दी. इस के बाद पुलिस ने अमन व ममता को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया.

3 बच्चों की मां होने के बाद भी ममता अमन के प्रेम में इस कदर डूबी कि उस ने पति की हत्या अपने प्रेमी से कराने में कोई संकोच नहीं किया, बल्कि इस हत्याकांड को छिपाए रखा. प्रदीप से ममता की शादी वर्ष 2001 में हुई थी. प्रदीप का 18 वर्षीय बेटा सन्नी हैदराबाद में कोचिंग कर रहा है और 17 साल की बेटी आंचल और 12 साल का बेटा शकुन मां ममता के साथ बादशाहपुर में रहते थे.

लौकडाउन में दिल मिल गए

लौकडाउन में दिल मिल गए : भाग 1

सविताबारबार घर की बालकनी से नीचे झांक रही थी. पार्वती अभी तक आई नहीं थी. बेकार ही सामान मंगवाया, सबकुछ तो रखा था. थोड़ा कम में काम चल जाता पर बेवजह अधिक जमा करने के चक्कर में उस बेचारी को दौड़ा दिया. तभी नीचे पार्वती को आता देख उन्होंने राहत की सांस ली और लगभग दौड़ कर दरवाजा खोला.

लगभग हांफती हुई पार्वती ने दोनों थैले घर के कोने पर पड़ी एक टेबल पर रखे और नीचे बैठ गई. ‘‘बड़ी मुश्किल से मिला है दीदी, सभी दुकानों पर भारी भीड़ थी. सोसाइटी की दुकान पर तो खड़े होने की जगह भी नहीं थी, फिर बाहर जा कर कोने वाली एक दुकान से खरीद कर ले आई हूं.’’

‘‘ओह, इतनी दूर क्यों गईं, नहीं मिलता तो न सही, ऐसी भी क्या जरूरत थी?’’ ‘‘नहीं दीदी,पता नहीं यह लौकडाउन कब तक चलेगा? स्थिति बहुत खराब हो चली है. बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं. बस, आप को किसी चीज की कमी नहीं होनी चाहिए.’’

‘‘कितनी चिंता करती है मेरी? चल सब से पहले हाथों और सामान को सैनिटाइज कर ले.’’रात को बिस्तर पर सोते समय सविता की आंखों से नींद कोसों दूर थी. सच में कितना करती है पार्वती उस के लिए. अगर वह नहीं होती तो उस का क्या होता? सोचते हुए सविता 2 साल पहले उन यादों के झरोखे में जा पहुंची जहां पति के अत्याचारों से तंग पार्वती से वह पहली बार अपने कालेज में मिली थी.

वह जिस कालेज में पढ़ाती थी, वहां पार्वती भी बाई का काम करती थी. लगभग रोज ही उस का सूजा चेहरा और शरीर पर जगहजगह पड़े नील स्याह निशान पति के दुर्दांत जुल्मों की इंतहा की याद दिलाते रहते. उस की नौकरी के बल पर ऐयाशी करने वाला उस का शराबी पति बातबात पर उसे पीटा करता था. उन दोनों की एक ही लड़की थी जो शादी कर अपनी ससुराल जा चुकी थी.

उस वक्त उस ने आगे बढ़ कर न सिर्फ उस की मदद की थी बल्कि उस के पति को सलाखों के पीछे भी पहुंचाया था. दुखी पार्वती को घर लाते वक्त उसे बोध भी न था कि जिसे निराश्रित, निस्सहाय समझ वह मानवता के नाते आश्रय दे रही है, वही कल को उस का सब से बड़ा संबल बन जाएगी.

सविता के पति पहले ही एक सड़क दुर्घटना में उसे छोड़ कर जा चुके थे. इकलौता बेटा बहू के साथ कनाडा में रह रहा था. बेटेबहू के बहुत कहने के बावजूद वह उन के साथ कनाडा नहीं शिफ्ट हुई थीं, क्योंकि हाथपांव के चलते रहने तक वे किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थीं.

वैसे भी नौकरी के 8-10 साल बचे थे और स्वावलंबी सविता अपने बल पर ही अपनी जिंदगी जीना चाहती थीं.तब से वह अपने फ्लैट पर अकेली रहती आई थी. वैसे तो कालेज में बच्चों के बीच वह काफी व्यस्त रहती थी, पर छुट्टी का दिन उस से काटे न कटता था.हां, पार्वती के आने से उस की जिंदगी बेहद आसान हो चली थी. पार्वती के रूप में

उसे एक सखी, सहायक और शुभचिंतक मिल गई थी, जिस ने बड़ी कुशलता से उस के घर को संभाल लिया था और इस तरह दोनों एकदूसरे का सहारा बन कर अपनी जिंदगी जिए जा रही थीं. हालांकि बेटेबहू ने बारबार उसे पार्वती के लिए चेताया था.उन का कहना था कि किसी पर इतनी जल्दी ऐसा भरोसा करना ठीक नहीं. शायद वे अपनी जगह सही भी थे. मगर कोई रिश्ता न होते हुए भी पार्वती उस की कितनी अपनी हो चुकी है यह बात सिर्फ वही समझती थी. यही सब सोचतेसोचते जाने कब सविता को नींद ने आ घेरा.

सुबह सविता की नींद कुछ देर से खुली. घर का काम निबटा कर पार्वती नहाधो चुकी थी. सविता को उठा देख वह झटपट चाय बना लाई. बालकनी में बैठ वे दोनों चाय की चुसकियां ले ही रही थीं कि दरवाजे की बैल बजी. लौकडाउन के दौरान किसी के कहीं भी आनेजाने पर पूर्णत: पाबंदी लगी हुई है. फिर कौन हो सकता है? ‘‘दीदी, मैं देखती हूं, जो भी होगा बाहर से चलता कर दूंगी,’’ चेहरे पर मास्क लगाए पार्वती ने उठ कर दरवाजा खोला.

‘‘माफ कीजिएगा, थोड़ी शक्कर मिल सकती है क्या?’’‘‘आप यहीं ठहरिए, मैं दीदी से पूछ कर बताती हूं,’’ कह कर पार्वती ने दरवाजा चिपका दिया.‘‘दीदी, सामने वाले फ्लैट में जो नए किराएदार आए हैं उन्हें शक्कर चाहिए,’’ पार्वती ने सविता पर प्रश्नवाचक नजर डाली.‘‘मना कर दूं क्या, कल ही लौकडाउन की घोषणा हुई है, तो क्या ला कर नहीं रख सकते थे? एक बार दिया तो बारबार किसी भी चीज को मांगने आ जाएंगे.’’

‘‘नहींनहीं… ऐसा कर, एक डब्बे में आधा किलोग्राम के करीब दे दे. अपने पास कोई कमी नहीं, बहुत रखी है,’’ सविता ने चाय का कप उसे पकड़ाते हुए कहा.‘‘लेकिन दीदी…’’‘‘अरे जितना कहा है उतना कर दे न,’’ सविता ने झूठमूठ की त्योरियां चढ़ाईं.‘‘यह लीजिए शक्कर…’’ पार्वती ने आगंतुक को घूरा.‘‘आप की मैडम दिखाई नहीं दे रहीं?’’‘‘आप को मैडम चाहिए या शक्कर?’’ पार्वती ने अपनी खीझ उतारी. हाथ में शक्कर की थैली लिए वे महानुभाव जैसे आए थे वैसे ही अपने फ्लैट में वापस लौट गए.

‘‘बड़ा अजीब था. आप के बारे में पूछने लगा. भला यह क्या बात हुई? ऐसे लोगों से तो थोड़ी दूरी ही अच्छी है,’’ पार्वती के स्वर में झल्लाहट थी.‘‘जाने दे पार्वती, अभी नएनए आए हैं. ज्यादा किसी को जानते नहीं होंगे इसलिए पूछ रहे होंगे,’’ कह कर सविता ने बात खत्म की.सरकार द्वारा लौकडाउन का दूसरा चरण और भी सख्ती से लागू करदिया गया था. कुछ दिन बाद शाम के वक्त सविता और पार्वती टीवी पर कोरोना के बारे में न्यूज देख रही थीं कि तभी बैल बजी. चिटकनी खोलते ही फिर वही सज्जन दरवाजे पर खड़े दिखाई दिए.

‘‘ओहो… चाय का दौर चालू है,’’ कह कर बड़ी ही बेतकल्लुफी से वे सामने वाले साफे पर जा विराजे.‘‘अभी बस पी कर खत्म ही की है. आप चाहें तो आप के लिए भी…’’ अभी सविता की बात पूरी भी न हो पाई थी कि आगंतुक ने कहा, ‘‘हांहां… क्यों नहीं, चाय के लिए मना मैं कर ही नहीं सकता… हाहाहाहाहा…’’

‘मान न मान मैं तेरा मेहमान…’ मन ही मन भुनभुनाते हुई पार्वती चाय बनाने को उठ खड़ी हुई.

 

लौकडाउन में दिल मिल गए : भाग 2

‘‘सुनो पार्वती, अदरक थोड़ी ज्यादा ही रखना. बिना अदरक के चाय भी कोई चाय है. दरअसल, मेरे पास आज ही अदरक खत्म हो चुकी है तो मैं ने सोचा…’’‘‘जी हां, क्यों नहीं. पार्वती, तुम साहब के लिए 2-4 अदरक की टुकड़ी भी ले आना,’’ सविता ने किचन की ओर मुंह कर के आवाज लगाई.

‘‘बंदे को ओंकार कहते हैं. एक रिटायर्ड फौजी. बस यही छोटी सी पहचान है अपनी,’’ बेबाकी से ओंकार ने अपना परिचय दिय. बातों की श्रृंखला में एक हलका सा अल्पविराम आ गया जब पार्वती ने चाय का मग और अदरक के 2 टुकड़े ला कर जरा जोर से सैंटर टेबल पर रखे.

‘‘पार्वती, बस इतना ही…’’ सविता ने आंखें तरेरीं. ‘‘हां, दीदी, अब ज्यादा अपने पास भी नहीं है.’’ ‘‘अरे, इतना बहुत है मेरे लिए. कम से कम 3-4 दिन चलेगा. वैसे चाय बहुत बढि़या बनाई है तुम ने,’’ पहला सिप लेते हुए ओंकार बोल पड़े. उन के जाने के बाद पार्वती ने बड़बड़ाते हुए पूरी जगह को अच्छे से सैनिटाइज किया और अपने काम में लग गई. उस की मुखमुद्रा देख सविता के चेहरे पर हंसी आ गई.

उस दिन सविता का जन्मदिन था. मना करतेकरते भी पार्वती ने उस की पसंदीदा रैसिपी छोलेकुलचे बना लिए. उस दिन स्वाद ही स्वाद में वह कुछ ज्यादा ही खा गई. शाम होतेहोते उस का जी मितलाया और उलटी हो गई. पार्वती ने जल्दी से ग्लूकोज का पानी पिलाया पर थोड़ी देर बाद फिर उलटी हुई. बाद में 3-4 उलटियां और होने से शरीर में पानी की कमी के चलते सविता को बहुत कमजोरी व चक्कर आने लगे. पेट में रहरह कर मरोड़ भी उठने लगी थी. वे लगातार कराह रही थीं.

रात के 1 बजे थे. पार्वती को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. कहीं डायरिया की नौबत आ गई तो कैसे क्या होगा? घर में उलटी की कोई दवा भी नहीं थी. कोई और रास्ता न देख उस ने फौरन ही जा कर ओंकार के फ्लैट की घंटी बजा दीं…

‘‘साहब, दीदी को बहुत उलटियां हो रही हैं. पेट में दर्द भी है. घरेलू नुसखों से भी कोई आराम नहीं मिला,’’ यह कह कर पार्वती रोआंसी हो गई. ‘‘लगता है फूड पौइजिनिंग हो गई है. रुको, मेरे पास मैडिसिन है. मैं ले कर आता हूं, तब तक हो सके तो तुम गरम पानी से उन के पेट की सिंकाई करो.’’

2-3 मिनट बाद ही वे मैडिसिन का पूरा पत्ता हाथ में लिए सविता के सामने खड़े थे.‘‘यह एक गोली अभी ले लीजिए और देखिए तुरंत आराम मिल जाएगा.’’ ‘‘जी धन्यवाद, पर आप ने तकलीफ क्यों की? पार्वती से भिजवा दिया होता,’’ सविता ने कराहते हुए कहा. ‘‘अरे तकलीफ किस बात की? मैं तो वैसे भी अकेले बोर ही होता रहता हूं,’’ कहते हुए ओंकार ठठा कर हंस पड़े.

उत्तर में सविता भी धीरे से मुसकराई और उठने की कोशिश करने लगी. आज पहली बार उस ने ओंकार के चेहरे पर एक भरपूर नजर डाली और फिर देखती रह गई. लंबा कद, रौबीले चेहरे पर घनी व तावदार मूंछें. हां, उम्र का अंदाजा उन के चेहरे से लगाना मुश्किल था, क्योंकि बढ़ती उम्र के बोझ से बेअसर उन के चेहरे की रौनक बता रही थी कि वे अपने जीवन में कितने अनुशासित रहे हैं. कुल मिलाकर आकर्षक व्यक्तित्व के धनी ओंकार ने आज पहली बार उसे काफी प्रभावित किया था. अभी तक तो बिन बुलाया मेहमान मान वह उन से ढंग से बात भी न करती थी.

‘‘आप बैठिए न,’’ सामने पड़ी कुरसी की ओर सविता ने इशारा किया.‘‘जी जरूर…’’ तभी पार्वती ट्रे में पानी ले आई, ‘‘क्या लेंगे आप, ठंडा या चायकौफी?’’ उस ने प्रश्नवाचक निगाह उन पर डाली.‘‘फिलहाल कुछ नहीं. आप की चाय ड्यू रही,’’ ओंकार फिर खिलखिला उठे.

बच्चों जैसी उन की मासमू निश्छल हंसी सविता के दिल को छू गई. थोड़ी देर बाद ही दवा ने अपना प्रभाव दिखाया और सविता को तनिक आराम मिला. ओंकार से बात करतेकरते वह न जाने कब सो गई.

‘‘साहब, आप भी जा कर सो जाइए. 3 बज रहे हैं,’’ पार्वती ने ओंकार का धन्यवाद अदा करते हुए कहा.‘‘1-2 घंटे और देख लेते हैं, वैसे भी मुझे जागने का अच्छा अभ्यास है. जाओ तुम सो जाओ,’’ साइड टेबल पर पड़ी गृहशोभा मैगजीन उठाते हुए ओंकार ने कहा.

सुबह 5 बजे के करीब जब पार्वती की आंखें खुलीं तो सविता गहरी नींद में सो रही थी और कुरसी पर बैठेबैठे ओंकार भी ऊंघ रहे थे.उस ने उन्हें उठाया और घर भेजा, ‘‘ठीक है, जब सविता जी उठें तो उन्हें 1-2 बिसकुट खिला कर फिर यह दवा दे देना,’’ कह कर ओंकार चले गए.

सुबह 11 बजे के करीब बेल बजने पर पार्वती ने जा कर दरवाजा खोला, ‘‘क्या कह रही हैं? अब आप की तबियत कैसी है?’’ ड्राइंगरूम में प्रवेश करे ही सामने बैठी सविता को देख ओंकार ने पूछा.‘जी काफी आराम है और अब तो भूख भी लग रही है.’’

‘‘मैं जानता था, इसलिए ही मूंगदाल की पानी वाली खिचड़ी बना कर ले आया हूं. यही इस वक्त आप के हाजमे के लिए बैस्ट है,’’ ओंकार आदतन हंस पड़े.‘‘पर आप ने क्यों तकलीफ उठाई, मैं बना देती न…’’ इस बार सविता को बोलने का मौका दिए बिना पार्वती बोल उठी.

‘‘तुम तो रोज ही बनाती हो पार्वती. आज मेरे हाथ का सही. जाओ 3 प्लैंटें ले आओ. तुम भी खा कर बताओ जरा कैसी बनी है?’’ ओंकार ने कैसरोल खोलते हुए कहा.हींग की सोंधी महक वाली खिचड़ी वाकई बहुत स्वादिष्ठ बनी थी. उस के साथ भुने पापड़ों के जोड़ ने खाने के स्वाद को दोगुना कर दिया. सविता का पेट भर गया पर थोड़ी खिचड़ी और लेने की लालसा वह रोक नहीं सकी और खिचड़ी परोसने के लिए अपनी प्लेट आगे बढ़ाई.

‘‘बस अब ज्यादा न खाएं. भूख से थोड़ा कम ही खाएं तो जल्दी ठीक होंगी,’’ कहते हुए ओंकार ने साधिकार उस के हाथ से प्लेट ले ली और किचन की तरफ बढ़ चले. सविता चकित हो उन्हें निहारती रह गई.

उस दिन काफी देर बातों का सिलसिला जारी रहा. ओंकार के व्यवहार की सादगी और स्पष्टता ने पार्वती के दिल में भी उन के लिए सम्मान की भावना जगा दी थी.

ओंकार पुरानी फिल्मों व गाने के बहुत शौकीन थे. इधर सविता भी बहुत अच्छा गाती थी लेकिन वक्त के बहाव ने इस शौक को धूमिल कर दिया था. लेकन अब ओंकार की संगत में उसे अपने पुराने दिनों की याद हो आई और एक दिन बातों ही बातों में इस का पता चलते ही ओंकार उस से गाने की हठ कर बैठे.

‘‘दिल की गिरह खोल दो चुप न बैठो कोई गीत गाओ…’’ सविता द्वारा यह गीत छेड़ते ही मानो फिजा में एक रूमानियत सी घुल गई.‘‘हम तुम न हम तुम रहे अब कुछ और

ही हो गए… सपनों के झिलमिल जहां में जाने कहां खो गए अब…’’ तन्मय हो कर गाने की अगले कड़ी को गाते हुए ओंकार जैसे कहीं खोसे गए.दोनों ने नज्म की रूह को महसूस करते हुए गाने को पूरा किया.‘‘वाह दीदी, आप तो बड़ी छुपी रुस्तम निकलीं. पिछले 2 सालों से मुझे अपनी इस कला की भनक भी न लगने दी और साहब आप की प्रतिभा को भी मानना पड़ेगा.’’

गाना सुन कर पार्वती ने सविता को झूठमूठ की नाराजगी जताई.‘‘वाकई मैं तो आप की सुमधुर आवाज में खो कर रह गया.’’ ‘‘वह तो ऐसे ही…’’ कहते हुए सविता की आंखें ओंकार से जा मिलीं और उस के चेहरे पर उभर आई हया की हलकी लालिमा पार्वती की अनुभवी निगाहों से छिप न सकी. लौकडाउन की बोरियत छंटने लगी थी. कभी सविता तो कभी ओंकार के घर गपशप के साथ चाय के दौर पर दौर चलते. किसी दिन चैस की बाजी लगती तो कभी तीनों मिल कर देर रात तक लूडो खेला करते. कभी दोनों के युगल गीतों से शाम रंगीन हो उठती और खूबसूरत समां सा बंध जाता.

ओंकार और सविता की दोस्ती धीरेधीरे चाहत में बदलती जा रही थी. जहां ओंकार की जीवंतता ने सविता के अंदर जिंदगी जीने की लालसा पैदा कर दी थी, वहीं सविता की सादगी ने ओंकार के दिल को सहज ही अपने आकर्षण में बांध लिया था.पार्वती को भी दोनों के बीच पनप रहे इस इमोशनल टच का अंदेशा हो चुका था, क्योंकि वह अपनी दीदी सविता में नित नए बदलाव देख रही थी. हमेशा अपने कालेज के कामों में खोई, स्वभाव से तनिक गंभीर सविता अब बातबात पर खिलखिला उठती थी. उस के व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलू अब खुल कर सामने आ रहा था. सविता 53-54 साल की हो चली थी मगर अब भी एक तरुणी के समान व्यवहार करती दिखाई देती थी. अब उस के चेहरे पर उजास उमंग से भरी एक आभा दिखाई देती थी.

 

20 साल की हुई श्वेता तिवारी की बेटी पलक, सेट पर मनाया अपना जन्मदिन

श्वेता तिवारी की बेटी पलक तिवारी 20 साल की हो गई हैं, पलक के बर्थ डे को खास बनाने के लिए श्वेता तिवारी तिवारी उन्हें सरप्राइज देने उनके अपकमिंग फिल्म के सेट पर पहुंची, जहां पर पलक को केक कटवाया. श्वेता ने पलक के शूटिंग लोकेशन से कुछ वीडियो शेयर किया है, जिसे फैंस काफी ज्यादा पसंद कर रहे हैं.

शेयर किए हुए वीडियो में श्वेता के साथ उनका बेटा रेयांश भी है, जो मस्ती कर रहा है, सेट पर मौजूद लोग काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं, सेट से शेयर किए हुए वीडियो में बर्थ डे गर्ल पलक काफी ज्यादा खुश और एक्साइटेड नजर आ रही हैं. ब्लैक कलर की ड्रेस और खुले बाल में पलक बला की खूबसूरत लग रही हैं.

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वीडियो  में सेट के कास्ट और क्रू मेंबर्स के साथ हैं, श्वेता ने वीडियो शेयर करते हुए लिखा है कि इतना सारा प्यार मिल रहा है ये सब तुम डिजर्व करती हो मेरी जान, इसके अलावा श्वेता तिवारी ने अपने इंस्टाग्राम पर एक रील भी शेयर किया है, जिसमें वह काफी ज्यादा अपनी बेटी के साथ मस्ती करती नजर आ रही हैं.

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श्वेता ने लिखा है मेरी राजकुमारी के साथ बर्थ डे डांस, इस रील में श्वेता तिवारी और पलक काफी ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं. श्वेता तिवारी के तमाम फैंस इस वीडियो के जरिए पलक को जन्मदिन की शुभकामाएं देते नजर आ रहे हैं. सृष्टि रोडे और करणवीर बोहरा के अलावा और भी कई सारे सितारे हैं जो पलक को सोशल मीडिया पर जन्मदिन विश करते नजर आ रहे हैं.

हाल ही में पलक ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि वह श्वेता तिवारी को आदर्श मां मानती हैं, उन्होंने श्वेता से बहुत कुछ सिखा है. बचपन से मुझे उन्हें काम करना देखना काफी ज्यादा अच्छा लगता था.

Dance Deewane 3 : पीयूष गुरभेले-रूपेश सोनी ने जीती ट्रॉफी, मिला 40 लाख रुपये का इनाम

डांस दीवाने 3 को अपना विनर मिल गया है, रविवार को शो का ग्रैंड फिनाले हुआ, जिसमें पीयूष गुरुभेल और उनके शो के कोरियोग्राफर रुपेश सोनी ने ट्रॉफी जीता, जिसमें उन्हें 40 लाख रुपये का कैश प्राइज और एक ब्रांड न्यू कार इनाम  में मिला है,

शो का ग्रैंड फिनाले काफी ज्यादा शानदार रहा , जिसमें एक के बाद एक शानदार पर्फॉर्मेंस देने वाले दिखाई दे रहे थें, जिससे स्टेज पर काफी ज्यादा अच्छा समा बंधा हुआ था, बता दें की पीयूष और रूपेश ने शो के शुरुआती दिनों से ही तारीफ बटोरी है.

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उन्होंने अपने हर परफॉर्मेंस को यूनिक रखा,जिसे देखने के बाद जज हमेशा उनकी तारीफ करते थें, अपने हर एक्ट के साथ अपने कंपटीशन को पूरा किया है. ग्रैंड फिनाले के बाद दिए गए इंटरव्यू में पीयूष ने बताया कि मैं बहुत भाग्यशाली हूं जो मुझे मौका मिला इस स्टेज पर परफार्म करने का इसके साथ ही उन्होंने माधुरी मैम, धर्मेश सर और तुषार सर को भी धन्यवाद किया.

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फिर आखिरी में पीयूष ने अपने आडियंस को भी धन्यवाद किया, जिसके बाद जब रूपेश से जीत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह मेरे और मेरे पार्टनर पीयूष के लिए बहुत बड़ी जीत है, हमारी मेहनत और सभी के प्यार के बल पर हमने यह जीत हासिल किया है,

नागपुर के पीयूष के लिए इस शो को जीतना किसी सपने से कम नहीं था, उनकी जीत से पूरा देश खुश है, बता दें कि यह पॉपुलर डांस शो है जिसे देखना हर कोई पसंद करता है.

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पीयूष ने बताया कि वह नागपुर में घर खरीदना चाहते हैं, वह कई सालों से किराए के मकान में रहते हैं.

ये हैं ‘जहन्नुम’ के असली हक़दार

लेखिका – तनवीर जाफ़री

कश्मीर घाटी में गत 5 अक्टूबर को आतंकवादियों द्वारा की गयी गोलीबारी व हत्याओं की गूँज अभी ख़त्म भी न होने पायी थी कि गत 8 अक्टूबर ( शु्क्रवार) को अफ़ग़ानिस्तान के कुंदूज़ राज्य के उत्तर पूर्वी इलाक़े में एक शिया मस्जिद पर बड़ा आत्मघाती हमला कर दिया गया जिसमें लगभग एक सौ नमाज़ियों को हलाक कर दिया गया व सैकड़ों ज़ख़्मी हो गए . इन दोनों ही हमलों में कुछ विशेषतायेँ समान थीं. कश्मीर में हुए हमले में जहां सिख समुदाय की एक स्कूल प्राध्यापिका सुपिंदर कौर की श्रीनगर के ईदगाह इलाक़े में हत्या कर दी गयी वहीं उसी स्कूल के एक अध्यापक दीपक चंद की भी गोली मार कर हत्या कर दी गयी. शहर के एक नामी केमिस्ट मक्खन लाल बिंद्रू की भी इससे पूर्व उन्हीं की केमिस्ट की दुकान पर गोली मारकर हत्या की जा चुकी है.

गत एक सप्ताह में कश्मीर घाटी में सात लोगों की हत्या की जा चुकी है. इन हत्याओं  में शहीद किये गये केमिस्ट व अध्यापक जैसे ‘नोबल ‘ पेशे से जुड़े लोगों की हत्या कर देना,ऐसे लोगों को शहीद कर देना जिनका जीवन प्रत्येक कश्मीरियों के जीवन को सुधारने,सँवारने व बचाने के लिये समर्पित था,एक सिख महिला शिक्षिका जो घाटी में केवल सिखों को ही नहीं बल्कि हिन्दुओं,मुसलमानों सभी को ज्ञान का प्रकाश बांटती थी, केमिस्ट मक्खन लाल बिंद्रू जैसा समाजसेवी केमिस्ट जिसने पूरा जीवन मरीज़ों को पैसे होने या न होने की स्थिति में शुद्ध दवाएं वितरित करने में व्यतीत किया और जिसको अपनी जन्मभूमि से इतना लगाव था कि अपने ही समुदाय के हज़ारों कश्मीरियों के कश्मीर छोड़ने के बावजूद घाटी में ही रहने का फ़ैसला किया. ऐसे निहत्थे लोगों को जान से मार देना यह आख़िर कैसा ‘युद्ध ‘ अथवा जिहाद है ?

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अफ़ग़ानिस्तान एक शिया मस्जिद में हुए आत्मघाती हमले के समय भी ख़बरों के अनुसार शिया समुदाय के लगभग चार सौ लोग जुमे (शुक्रवार) की नमाज़ अदा कर रहे थे. कश्मीरी सिखों व कश्मीरी पंडितों की ही तरह शिया भी अफ़ग़ानिस्तान का अल्पसंख्यक समाज है. वे भी निहत्थे थे और मस्जिद में नमाज़ के दौरान अल्लाह की इबादत में मशग़ूल थे. किसी आत्मघाती हमलावर ने उन्हीं के बीच आकर ख़ुद को उड़ा दिया नतीजतन लगभग एक सौ नमाज़ी मारे गए. निहत्थे नमाज़ियों को मस्जिद में ही मारना यह तो उसी तरह का कृत्य है जैसे कि सुन्नी मुसलमानों के चौथे ख़लीफ़ा और शियाओं के पहले इमाम हज़रत अली को मस्जिद में इब्ने मुल्जिम नाम के स्वयं को ‘मुसलमान’ कहने वाले एक व्यक्ति के द्वारा हज़रत अली को नमाज़ के दौरान सजदे में होने की हालत में शहीद कर दिया गया था?

आश्चर्य की बात है कि आतंकी विचारधारा रखने वाले कश्मीरी आतंकी हों या तालिबानी,यह सभी हज़रत अली को तो अपना ख़लीफ़ा ज़रूर मानते हैं परन्तु इनकी ‘कारगुज़ारियां ‘ तो क़ातिल-ए-अली यानी इब्ने मुल्जिम वाली हैं ? यदि इन हत्यारों को धर्म व धर्मयुद्ध का ज़रा भी ज्ञान होता तो इन्हें मालूम होता कि निहत्थे पर वार करना तो दूर यदि युद्ध के दौरान किसी लड़ाके के हाथ की तलवार भी टूट जाती या हाथ से छूट जाती तो सामने वाला आक्रमणकारी अपनी तलवार को भी मियान में रख लेता क्योंकि निहत्थे पर हमला करना युद्ध नीति के विरुद्ध है. किसी मर्द द्वारा औरतों पर हमले करने का तो सवाल ही नहीं उठता था. कमज़ोर,अल्पसंख्यक,निहत्थे,नमाज़ी अथवा इबादत गुज़ार लोगों की हत्या का तो दूर तक इस्लाम से कोई वास्ता ही नहीं.

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परन्तु जब जब इस्लाम पर साम्राज्यवाद हावी हुआ है तब तब इस तरह की नैतिकताओं को ध्वस्त होते भी देखा गया है. हज़रत अली की पत्नी व हज़रत मुहम्मद की बेटी हज़रत फ़ातिमा पर इसी मानसिकता के मर्दों ने हमला किया था. उनके घर के दरवाज़े में आग लगाकर जलता हुआ दरवाज़ा उनपर गिरा दिया गया था और उन्हें शहीद कर दिया गया. फिर हज़रत अली को मस्जिद में सजदे की हालत में इब्ने मुल्जिम द्वारा पीछे से सिर पर वार कर शहीद कर दिया गया. इसी तरह इराक़ स्थित करबला में हज़रत इमाम हुसैन के एक घुड़सवार के मुक़ाबले सैकड़ों यज़ीदी सैनिक लड़ते थे और तलवारें टूटने व छूटने के बाद भी लड़ते और हुसैन के भूखे प्यासे सैनिक को शहीद कर देते . औरतों को गिरफ़्तार करना,उनके हाथों व गलों में रस्सियां बांधना,उन्हें बे पर्दा बाज़ारों में फिराना यह सब यज़ीदी दौर-ए-हुकूमत का चलन था.

करबला में भी यज़ीद इस्लामी साम्राजयवाद के अस्तित्व व विस्तार की लड़ाई लड़ रहा था और तालिबानी भी वही लड़ाई लड़ रहे हैं. गोया अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान से लेकर कश्मीर तक जहाँ भी ऐसी आतंकवादी घटनायें घटित हों जिनमें अल्पसंख्यकों की हत्याएं की जा रही हों,औरतों,बच्चों व बुज़ुर्गों को मारा जा रहा हो,निहत्थों पर हमले हो रहे हों तो यही समझना चाहिये कि यह मुसलमानों या इस्लामी समुदाय से जुड़े लोग नहीं बल्कि यह उस यज़ीदी विचारधारा के लोग हैं जिसने करबला में हज़रत मुहम्मद के नवासे हज़रत इमाम हुसैन के पूरे परिवार को इसी लिये क़त्ल कर दिया था क्योंकि वे यज़ीद के ज़ुल्म व अत्याचार के शासन के विरुद्ध थे और उस जैसे व्यक्ति को इस्लामी शासन के प्रतिनिधि होने के दावे को ख़ारिज करते थे.

विश्व के उदारवादी समाज को विशेषकर उदारवादी व प्रगतिशील मुसलमानों को यह समझना होगा कि आख़िर क्या वजह है और कौन सी वह विचारधारा है कौन लोग हैं जो आज भी गुरद्वारों,मंदिरों व मस्जिदों पर हमले करते हैं ? कौन हैं वह लोग जो आज भी इमामों के रौज़ों,पीरों फ़क़ीरों की दरगाहों,इमाम बारगाहों,मज़हबी जुलूसों,स्कूलों,बाज़ारों जैसी अनेक सार्वजनिक जगहों पर बेगुनाहों व निहत्थों का ख़ून बहाते फिरते हैं. इन सभी आतंकियों के आक़ाओं द्वारा इनको यही समझाया जाता है कि आतंकी मिशन को ‘जिहाद’ कहा जाता है और इस दौरान मरने वाले को ‘शहादत ‘ का दर्जा हासिल होता है तथा बेगुनाहों व निहत्थों को मार कर वापस आने पर उन्हें ‘ग़ाज़ी’ के लक़ब से नवाज़ा जाता है और इन सब के बाद मरणोपरांत उन्हें जन्नत नसीब होगी.’  परन्तु यह शिक्षा पूरी तरह ग़ैर इस्लामी व ग़ैर इंसानी  है. ऐसे वहशी लोग तो जन्नत के नहीं बल्कि जहन्नुम के असली हक़दार हैं.

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