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हथेली पर आत्मसम्मान: सोम को क्या समझाना चाहता था श्याम

‘‘सोम, तुम्हारी यह मित्र इतना मीठा क्यों बोलती है?’’

श्याम के प्रश्न पर मेरे हाथ गाड़ी के स्टीयरिंग पर तनिक सख्त से हो गए. श्याम बहुत कम बात करता है लेकिन जब भी बात करता है उस का भाव और उस का अर्थ इतना गहरा होता है कि मैं नकार नहीं पाता और कभी नकारना चाहूं भी तो जानता हूं कि देरसवेर श्याम के शब्दों का गहरा अर्थ मेरी समझ में आ ही जाएगा.

‘‘जरूरत से ज्यादा मीठा बोलने वाला इनसान मुझे मीठी छुरी जैसा लगता है, जो अंदर से हमारी जड़ें काटता है और सामने चाशनी बरसाता है,’’ श्याम ने अपनी बात पूरी की.

‘‘ऐसा क्यों लगा तुम्हें? मीठा बोलना अच्छी आदत है. बचपन से हमें सिखाया जाता है सदा मीठा बोलो.’’

‘‘मीठा बोलना सिखाया जाता है न, झूठ बोलना तो नहीं सिखाया जाता. यह लड़की तो मुझे सिर से ले कर पैर तक झूठ बोलती लगी. हर भाव को प्रदर्शन करने में मनुष्य एक सीमा रेखा खींचता है. जरूरत जितनी मिठास ही मीठी लगती है. जरूरत से ज्यादा मीठा किस लिए? तुम से कोई मतलब नहीं है क्या उसे? कुछ न कुछ स्वार्थ जरूर होगा वरना आज के जमाने में कोई इतना मीठा बोलता ही नहीं. किसी के पास किसी के बारे में सोचने तक का समय नहीं और वह तुम्हें अपने घर बुला कर खाना खिलाना चाहती है. कौनकौन हैं उस के घर में?’’

‘‘उस के मांबाप हैं, 1 छोटी बहन है, बस. पिता रिटायर हो चुके हैं. पिछले साल ही कोलकाता से तबादला हुआ है. साथसाथ काम करते हैं हम. अच्छी लड़की है शोभना. मीठा बोलना उस का ऐब कैसे हो गया, श्याम?’’

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श्याम ने ‘छोड़ो भी’ कुछ इस तरह कहा जिस के बाद मैं कुछ कहूं भी तो उस का कोई अर्थ ही नहीं रहा. घर पहुंच कर भी वह अनमना सा चिढ़ा सा रहा, मानो कहीं का गुस्सा कहीं निकाल रहा हो.

‘‘लगता है, कहीं का गुस्सा तुम कहीं निकाल रहे हो? क्या हो गया है तुम्हें? इतनी जल्दी किसी के बारे में राय बना लेना क्या इतना जरूरी है…थोड़ा तो समय दो उसे.’’

‘‘वह क्या लगती है मेरी जो मैं उसे समय दूं और फिर मैं होता कौन हूं उस के बारे में राय बनाने वाला. अरे, भाई, कोई जो चाहे सो करे…तुम्हारी मित्र है इसलिए समझा दिया. जरा आंख और कान खोल कर रखना. कहीं बेवकूफ मत बनते रहना मेरी तरह. आजकल दोस्ती और किसी की निष्ठा को डिस्पोजेबल सामान की तरह इस्तेमाल कर के डस्टबिन में फेंक देने वालों का जमाना है.’’

‘‘सभी लोग एक जैसे नहीं होते हैं, श्याम.’’

‘‘तुम से ज्यादा तजरबा है मुझे दुनिया का. 10 साल हो गए हैं मुझे धक्के खाते हुए. तुम तो अभीअभी घर छोड़ कर आए हो न इसलिए नहीं जानते, घर की छत्रछाया सिर्फ घर में ही होती है. घर वाले ही हैं जो कुछ नहीं कहते फिर भी प्यार से बात भी करते हैं और पूछते हैं कुछ और भी चाहिए तो ले लो. बाहर का इनसान प्यार से बात कर जाए, हो ही नहीं सकता. अपना प्यार जताए तो समझ में आता है क्योंकि वह अपना है…बाहर वाला प्यार क्यों जताए? किस लिए वह आप का दुखदर्द बांटे? सोम, आखिर क्या लगते हो तुम उस के?’’

‘‘तुम्हें क्या लगता है क्या सिर्फ वही चोट देता है, जो हमारा कुछ नहीं लगता? अपना चोट नहीं देता है क्या? अच्छा, एक बात समझाओ मुझे, पराया इनसान चोट पहुंचा जाए तो पीड़ा का एहसास ही क्यों हो. वह तो कुछ लगता ही नहीं है न. उस के व्यवहार को हम इस तरह लें ही क्यों कि हमें चोट जैसी तकलीफ हो.

‘‘तुम कल इस शहर में आए. ट्रेन से उतरे तब अकेले तो नहीं थे न. सैकड़ों लोग स्टेशन पर उतरे होंगे. मुझ से मिलने तो कोई नहीं आया और न आए मेरी बला से पर हां, यदि तुम बिना मिले चले जाते तो दुख होता मुझे. सिर्फ इसलिए कि तुम अपने हो…इस का यही मतलब है न कि चोट पराए नहीं अपने देते हैं. इसीलिए पराए इनसान को हम इनसान ही समझें तो बेहतर है. कभी किसी के इतना भी पास न चले जाओ सोम कि धागों में उलझनें पड़ जाएं. कभीकभी उलझ जाने पर धागों का सिरा….’’

‘‘कैसा धागा और कैसा सिरा. इनसानों में धागे होते हैं क्या? तुम में और मुझ में कौन सा धागा है, जरा समझाना…’’

‘‘धागा था तभी तो अपनी बेंगलुरु की फ्लाइट छोड़ उसे 2 दिन के लिए आगे बढ़ा कर तुम यहां दिल्ली मेरे आफिस में चले आए. मुझे तो पता भी नहीं था तुम आने वाले हो. कौन लाया था तुम्हें मेरे पास? कोई तो खिंचाव था न, वरना इतनी तकलीफ उठा कर तुम मेरे पास कभी नहीं आते. तुम्हें क्या मतलब और क्या लेनादेना था मुझ से. सिर्फ धागे ही थे जो तुम्हें यहां मेरे पास खींच लाए हैं.’’

मेरी सारी बातों पर और मेरे सवाल पर श्याम मुझे टकटकी लगा कर देखता रहा जिस के साथ मैं ने अपने जीवन के 4 साल बिताए थे. इंजीनियरिंग में हम साथसाथ थे. वह होस्टल में था और मैं पढ़ने के लिए घर से जाता था. 2 साल एम.बी.ए. में लगे और अब 2 साल से हम दोनों एक अच्छी कंपनी में काम कर रहे हैं. वह भावुक और संवेदनशील है.

कहना शुरू किया श्याम ने, ‘‘मेरी एक सहयोगी है. पति के साथ उस का झगड़ा चल रहा है. तलाक तक बात पहुंच चुकी है. बहुत परेशान रहती है. पति अमेरिका में है, लंबी कानूनी प्रक्रिया और लाखों दांवपेंच. मांबाप के साथ रहती थी. कुछ दिन हुए कार दुर्घटना में मांबाप दोनों ही गुजर गए. उस की बहन और बहनोई दोनों ने मातापिता का घर और कारोबार संभाल कर उसे बेदखल ही कर दिया. आज की तारीख में वह नितांत अकेली है. मातापिता, बहन और पति, सभी से नाता टूट चुका है. मुझ से वह हर तरह की बात कर लेती है. एक तरह से आज की तारीख में मैं ही उस का सब कुछ हूं. कह सकते हो सुरक्षा कवच की तरह उसे संभाल रखा है मैं ने. हर रिश्ते को स्वयं में समेट कर उस का मरहम बनता रहता हूं…दिनरात जबजब जरूरत पड़ती है मैं चला जाता हूं…’’

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मैं अपलक उस का चेहरा पढ़ता रहा. जानता हूं श्याम पूरी ईमानदारी से उस की सहायता करता रहा होगा. तन, मन और धन तीनों से हाथ धो चुका होगा तभी इतनी पीड़ा में है.

‘‘मैं जुड़ गया हूं उस के साथ और उस का जवाब है मैं शादी के लायक ही नहीं हूं. शादी के लिए तो परिपक्वता की जरूरत होती है और मैं परिपक्व नहीं हूं.’’

‘‘यह परिपक्व होना किसे कहते हैं जरा बताना मुझे. एक तलाकशुदा औरत को मासूम समझना नासमझी है या उस के सुखदुख समझना. परिपक्व होता अगर उस की सुनाई बातों में उस का भी दोष निकालता. जिस तरह उस का पति उसे लांछित करता रहा उसी तरह मैं भी करता. क्या तभी उसे लगता मैं परिपक्व हूं? तुम्हीं समझाओ, मैं कहां चूक गया?

‘‘सामने वाले पर विश्वास कर लेना ही क्या मेरा दोष है? मेरे जैसे ही उस के और दोस्त हैं जो उस की उसी तरह से सहायता करते हैं जैसे मैं करता हूं. हम अच्छे दोस्त हैं बस…उस का कहना है हम सभी दोस्त हैं वो दूसरे भी और मैं भी.

‘‘दोस्ती के नाम पर ही क्या मैं ने हजारों खर्च कर दिए? मेरी भावनाओं को उस ने समझा नहीं होगा, इतनी नादान होगी वह ऐसा तो नहीं होगा न…वह समझदार है और मैं नासमझ.’’

श्याम की सारी गोलमोल बातें और उस की तकलीफ मेरे सामने अब आईने की तरह साफ हो चुकी थीं. मैं ने उसे समझाया, ‘‘उस से मिलनाजुलना बंद कर दो, श्याम. दूर हो जाओ तुम उस से, यही इलाज है. रिश्तों की कद्र नहीं है उस लड़की में वरना वह तुम्हारा मन नहीं दुखाती.’’

लपक कर भीतर गया श्याम और अटैची से महंगी कश्मीरी शाल निकाल लाया. उस ने यह शाल मंगाई है. 10 हजार रुपए कीमत है इस की. और यह पहली बार नहीं हुआ.

‘‘क्या वह भी तुम्हें इतने महंगे उपहार देती है?’’

‘‘पागल हो गए हो क्या? वह लड़की है सोम, मैं उस से उपहार लेता अच्छा लगूंगा क्या?’’

‘‘तो किस की कीमत वसूलती है वह तुम से. क्या तुम्हारा रिश्ता पाकसाफ है?’’

चौंक गया श्याम. मेरा सवाल था ही ऐसा कठोर. आंखें भर आईं उस की. अपलक मेरा चेहरा देखता रहा. मैं श्याम को जानता हूं. चरित्रवान है. इस ने कभी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं लांघी होगी और अगर लांघी नहीं तो कुछ तो है जो जायज नहीं है. इतने महंगे उपहार लेने का उस लड़की को भी क्या अधिकार है. हर रिश्ते की एक गरिमा होती है. दोस्ती की अलग सीमा रेखा है और प्यार की अलग. अगर प्यार नहीं करती, किसी रिश्ते में बंधना नहीं चाहती तो इस्तेमाल भी क्यों?

श्याम का हाथ पकड़ कर भींच लिया मैं ने.

‘‘मैं जानता हूं तुम कभी गलत नहीं हो सकते. अपने प्यार का निरादर मत होने दो. वह लड़की तुम्हें डिजर्व नहीं करती. प्रकृति ने तुम्हें वैसा नहीं बनाया जैसा उसे बनाया है. तुम जितने ईमानदार हो वह उतनी ईमानदार नहीं है. उस का तलाक क्यों हुआ होगा? तलाक होने में भी कौन जाने किस का दोष है? जो सब तुम ने सुनाया है उस से तो यही समझ में आता है कि वह लड़की बंध कर रहना ही नहीं चाहती और प्यार तो बंधन चाहता है न. जो सब का हो वह किसी एक का होना नहीं चाहता और प्यार बांधना चाहता है, प्यार में जो एक का है वह सब का नहीं हो सकता है.’’

‘‘मैं क्या करूं, सोम? ऐसा लगता है लगातार ठगा जा रहा हूं. सब लुटा कर भी खाली हाथ हूं.’’

‘‘लुटना छोड़ दो श्याम, आंखें मूंद कर उस रास्ते पर मत चलो जो गहरी खाई में उतरता है. शोभना के विषय में बात कर रहे थे न तुम, उस का मीठा बोलना तुम्हें पसंद नहीं आया था. उस का अपने घर बुलाना भी तुम्हें अच्छा नहीं लगा. उस के पीछे कारण पूछ रहे थे न तुम…कारण है न. हम दोनों शादी करने वाले हैं. तुम मेरे मित्र हो और उसी नाते वह तुम्हारा मानसम्मान करना चाहती है, बस.’’ अवाक् तो होना ही था श्याम को.

‘‘पिछले डेढ़ साल से हम साथसाथ काम कर रहे हैं. मेरे हर सुखदुख मेें वह मेरा साथ देती है. जितना मैं उस के लिए करता हूं उस से कहीं ज्यादा वह मेरे लिए करती है. उपहार के नाम पर मैं ने उसे कभी कुछ भी नहीं दिया क्योंकि उसे बिना किसी रिश्ते के कुछ भी लेना पसंद नहीं. जबरदस्ती कुछ ला कर दे दूं तो वह भी कुछ वैसा ही कर के सब बराबर कर देती है क्योंकि दोस्ती में लेनादेना बराबर हो तभी सम्मानजनक लगता है…’’

‘‘हैरान हूं मैं. वह लड़की किस अधिकार से तुम्हें इतना लूट रही है और रिश्ता भी बांधना नहीं चाहती. मत करो उस से इतना प्यार और अपना प्यार इतना सस्ता मत बनाओ कि कोई उसे अपमानित कर पैरों के नीचे रौंदता चला जाए. एक रेखा खींचो, श्याम.’’

आंखें नम हो गईं श्याम की.

‘‘तुम्हारी होने वाली भाभी है शोभना और उस के कुछ गुण हैं जिन की वजह से मैं उस की इज्जत भी करता हूं. मेरी मान्यता है जब तक तुम किसी की इज्जत नहीं करते तब तक तुम उस से प्यार नहीं कर सकते. इकतरफा प्यार से आखिर कब तक निभा सकता है कोई?’’

कड़वी सी मुसकान चली आई थी श्याम के होंठों पर जिस में उस की पीड़ा मुझे साफसाफ नजर आ रही थी. लगता है कि अब वह उस लड़की का सम्मान नहीं कर पाएगा क्योंकि उस ने हाथ का कीमती शाल एक तरफ सरका दिया था… हिकारत से, मानो उसी पर अपना गुस्सा निकालना चाहता हो.

मेरा हाथ स्नेह से थाम रखा था श्याम ने. उस के हाथ की पकड़ कभी सख्त होती थी और कभी नरम. उस के भीतर का महाभारत उसे किस दिशा में धकेलेगा मैं नहीं जानता फिर भी एक उम्मीद जाग रही थी मन में. इस बार जब वह वापस जाएगा तब काफी बदल चुका होगा. अपने प्यार का, अपनी भावनाओं का सम्मान करना सीख चुका होगा.

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अमीरों से रिश्ते कैसे निभाएं

लेखिका- पद्मा अग्रवाल

अमीरी और गरीबी समाज का सत्य है. समाज को छोडि़ए, परिवार के भीतर तक में यह अंतर होता है. एक की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है तो दूसरे की बेहद खराब होती है. दोस्तों में भी ऐसा संभव है. पूरा विश्व 2 भागों में बंटा हुआ है- अमीर देश और गरीब देश. अमीर शक्तिशाली होने के कारण समयसमय पर गरीब को धमकाता रहता है और उसे हर बात पर आंखें दिखा कर अपनी बात मनवाने की कोशिश करता रहता है. गरीब हमेशा समृद्ध होने के प्रयास में लगा रहता है. धनसंपत्ति के कारण ही हम सब एकदूसरे से अलग या भिन्न दिखने लगते हैं. इस समय समाज में लगभग सब लोग या तो अपने पैसे की बात करते हैं या दूसरों के पैसे की चर्चा करते रहते हैं.

जब से कौस्तुभ की शादी का कार्ड नीलिमा ने देखा है, वह मन ही मन मायके जाने के सपने संजोने में व्यस्त हो गई थी. आखिर कौस्तुभ उन का भतीजा है. उस के भाई अब बड़े आदमी हो गए हैं. फाइवस्टार होटल ताज से शादी होने वाली है. लेकिन पति जय और बेटी नीति ने साफ मना कर दिया कि ‘कोई जरूरत नहीं है वहां जाने की. पिछली बार मामी ने कितना आप को बेइज्जत किया था.’ ‘गलती तो मेरी ही थी, मु?ो उन से उन की फेवरेट साड़ी मांगनी ही नहीं चाहिए थी और साड़ी पहनी थी तो उस की केयर करनी चाहिए थी. उन की 20 हजार रुपए की महंगी साड़ी अगरबत्ती से जल गई. फिर मैं ने उन्हें बताया भी नहीं और चुपचाप दे कर आ गई. ऐसे में उन का गुस्सा होना स्वाभाविक था.’ जय बोले, ‘हम उन से कम पैसे वाले हैं तो क्या कोई हमारी इज्जत नहीं है.

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यदि अभय का फोन आएगा तो सोचेंगे.’ नीलिमा उदास हो उठी थी. उस की एक गलती के कारण भाईबहन के रिश्ते में अजनबीपन और अनबोला हो गया था. समाज में हर व्यक्ति किसी न किसी रिश्ते में बंधा होता है. कुछ रिश्ते तो जन्म से मिलते हैं जैसे भाई, बहन, बूआ, चाचा आदि जबकि कुछ रिश्ते मुंहबोले होते हैं. कभीकभी कुछ रिश्तों को निभाना भारी पड़ने लगता है. ऐसे ही किसी रिश्ते पर एक कवि ने कहा है- ‘जिस अफसाने को अंजाम तक लाना हो मुश्किल, उसे एक खूबसूरत मोड़ पर छोड़ना है अच्छा.’ एक समय था जब लोग रिश्तों पर जान छिड़कते थे परंतु अब रिश्तों की परिभाषा बदलने लगी है. आजकल रिश्ते पैसे के तराजू पर तोले जाने लगे हैं. उपहार देने की परंपरा ने अब व्यावसायिक रूप ले लिया है. पहले उपहार रिश्तों में गरमाहट भर देते थे परंतु आज तो उपहार रिश्तों को तोड़ने की कगार पर पहुंचा देते हैं. अब हम लोग उपहार देते समय रिश्तों की नहीं,

बल्कि सामने वाले द्वारा दिए हुए उपहार के मूल्य को प्राथमिकता देते हैं. ‘बी प्रैक्टिकल’ की वकालत करने वाले लोगों के लिए रिश्ते की परिभाषा ही बदल गई है. उन के लिए तो ‘बाप बड़ा न भइया, सब से बड़ा रुपइया’ हो गया है. रिश्ते तभी स्वस्थ बने रह सकते हैं जब अपेक्षाएं न्यूनतम और वाजिब हों, वरना रिश्तों में दरार आने में देर नहीं लगती, फिर वह रिश्ता कितना ही मधुर व घनिष्ठ क्यों न हो. रिश्तों के चक्रव्यूह में फंसने के बजाय आप रिश्तों का आनंद लेते रहें, यही रिश्ते निभाने की कला है. कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो, कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो. रिश्ते तो मिलते हैं मुकद्दर से, बस, उन्हें खूबसूरती से निभाना सीखो. जब तक हम गरीब रिश्तेदार को सूती साड़ी और अमीर रिश्तेदार को महंगी रेशमी साड़ी देने की मानसिकता से बाहर नहीं आते,

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तब तक स्थिति नहीं सुधर सकती. हर रिश्ता अपनेआप में अनोखा होता है. सच्चा और मजबूत रिश्ता आप को स्वस्थ और सुखी जिंदगी जीने में मदद करता है, वहीं ?ाठा या मतलबी रिश्ता आप को हमेशा दर्द और तकलीफ देगा. यदि कोई रिश्तेदार आप के साथ आत्मिक रिश्ता नहीं रखना चाहता तो आप खुद उस की जिंदगी से दूरी बना लें, क्योंकि समय स्वयं ही सिखा देगा उसे रिश्तों की कदर करना और आप को सब्र करना. रिश्ते निभाने की पहली शर्त इज्जत होती है. यदि अमीर रिश्तेदार आप को इज्जत नहीं देता तो रिश्ते निभाने का कोई मतलब नहीं. आप ऐसे लोगों से दूरी बना लें. ऐसों से रिश्तों की फिक्र करना छोड़ दें क्योंकि रिश्ते दोनों तरफ से ही निभाए जाते हैं. जैसे ताली दोनों हाथों से बजती है वैसे ही आपसी रिश्ते दोनों ही तरफ से निभाए जाने से ही निभते हैं. जिंदगी का सब से बेहतरीन रिश्ता वह होता है जहां नाराजगी के बाद मामूली सी मुसकराहट और सौरी कहने से रिश्ते पहले जैसे हो जाएं.

जब कोई गरीब व्यक्ति अपने अमीर रिश्तेदार के यहां जाए तो उसे कुछ बातों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए- द्य सब से पहले तो आप जब भी अमीर रिश्तेदार के घर जाएं, उसे अपने पहुंचने के बारे में सूचित करें. द्य किसी भी अमीर रिश्तेदार से यह अपेक्षा कर के न उस के घर जाएं कि वह आप को अपना शहर घुमाने ले कर जाएगा, क्योंकि अमीर आदमी ज्यादातर व्यस्त रहता है. द्य यदि आप किसी बीमारी के इलाज के लिए गए हैं तो भी आप रिश्तेदार के यह उम्मीद ले कर न जाएं कि वह आप के साथ हौस्पिटल के चक्कर काटेगा. अच्छा यह होगा कि आप फोन पर पहले उस से अपनी समस्या पर बात कर लें और उस की सलाह व जानकारी ले कर जाएं ताकि वह मानसिक रूप से आप की मदद करने के लिए तैयार रहे. द्य आप वहां की संपन्नता की चकाचौंध में खो कर अपनी किस्मत का रोना ले कर न बैठ जाएं, ‘मेरी तो किस्मत ही फूटी है’, ‘भगवान मेरे साथ हमेशा बुरा ही करता है.’

इस तरह के जुमले सुन कर आप का अमीर रिश्तेदार आप से बात करना भी नहीं चाहेगा. द्य रिश्तेदार की बातों को सुनें. रिश्ते निभाने के लिए आवश्यक है कि दूसरों के विचारों को सुनने की आदत डालें. दूसरों की बातों को सुन कर भी आप उन्हें सम्मान देते हैं. द्य पुराने दिनों की बातें याद कर के, हंसीमजाक कर के आप रिश्तों में आत्मीय संबंध बना सकते हैं. द्य अमीर रिश्तेदार को प्रभावित करने के लिए महंगे फोन, गाड़ी, ब्रैंडेड कपड़ों का दिखावा करने के चक्कर में आप की आर्थिक दशा और खराब हो सकती है और आप कर्ज के चक्कर में फंस सकते हैं. द्य आप अपने अमीर रिश्तेदार को प्रभावित करने के लिए लंबीलंबी बातें कभी न करें. इस से संबंध अच्छे होने के बजाय बिगड़ ही सकते हैं और वह रिश्तेदार आप से दूरी बना सकता है. द्य पैसे के लेनदेन के कारण किसी भी रिश्ते में दरार आना बहुत आम बात है. कितना ही सगा रिश्ता हो, पैसों की ऊंचनीच रिश्ते में खटास पैदा कर ही देती है.

उदाहरण के लिए संजना ने अपनी बड़ी बहन से 2 लाख रुपए बिजनैस के लिए मांगे तो शुचिता ने दे तो दिए लेकिन कह दिया कि संजना, समय पर लौटा देना वरना तुम्हारे जीजाजी नाराज हो जाएंगे. लेकिन संजना के पति रीतेश ने पैसों को डुबो दिया. संजना आज तक अपनी दीदी से आंख नहीं मिला पाती. दोनों के आपसी रिश्ते में जो सहजता थी वह खत्म हो गई और रिश्तों में खटास पड़ गई. द्य यदि आप किसी अमीर रिश्तेदार से किसी जरूरत के समय पैसे या कोई चीज मांगते भी हैं तो ध्यान रखिए कि उसे पैसे या चीज समय पर लौटा दें. आज, कल पर न टालें. कोशिश यह रहे कि उस को आप से पैसे मांगने की नौबत न आने पाए. द्य यदि साथ में कहीं घूमने गए हैं तो खर्च करने में कंजूसी न करें और साथ में बराबर का खर्च करें. अच्छा तो यह है कि एक अकाउंट बना कर खर्च आधाआधा बांट लें.

अमीर रिश्तेदार पर इतना निर्भर न रहें कि रिश्ते बो?ा लगने लगें. अकसर हमारे मन में यह धारणा रहती है कि ये इतने अमीर हैं, इन्हें क्या फर्क पड़ेगा. लेकिन, यह सोचना सही नहीं है.

आप को गाड़ी की जरूरत है तो आप जहां तक संभव हो, ओला या किराए की दूसरी टैक्सी से अपना काम चलाने की कोशिश करें. हो सकता है कि उन से आप के इतने निकट के संबंध हैं कि वे आप से कह देते हैं कि संकोच की जरूरत नहीं है, गाड़ी तो आप के लिए हर समय हाजिर है परंतु गाड़ी देने के बाद उन्हें असुविधा हो सकती है या गाड़ी गंदी हो गई या कुछ टूटफूट हो गई तो संबंधों में दूरी या खटास आ सकती है. इसलिए ऐसी स्थिति से बचने की कोशिश करें.

यदि आप अपने किसी अमीर रिश्तेदार से हर समय सलाह या अपना काम करने को कहते रहते हैं तो निश्चय मानिए कि रिश्ते में दीमक लग जाएगी. यह हमेशा ध्यान रखिए कि किसी पर निर्भरता की कोई सीमा होती है, इसलिए रिश्तों को बो?ा न बनाएं.

यदि आप का अमीर रिश्तेदार आप को अपना पर्सनल सीक्रेट या बातें किन्हीं भावुक पलों में बता देता है तो ध्यान रखिए कि ये बातें आप को अपनी जबान से किसी को नहीं बताना है. हो सकता है कि आप के द्वारा इन कही हुई बातों की वजह से रिश्ते सदा के लिए टूट जाएं.

यदि कभी आप ने अपने अमीर रिश्तेदार के संदर्भ में कुछ गलत बात या गलत काम कर दिया है तो उसे स्पष्ट रूप से बता दें क्योंकि आपसी गलतफहमी रिश्तों में दरार पैदा कर देती है. द्य कई बार ऐसा भी होता है कि अमीर रिश्तेदार से हम दूरी बना लेते हैं और उन्हें देख कर भी अनदेखा करते हैं. यह भी रिश्ते बिगड़ने का कारण बन जाता है क्योंकि कई बार कुछ अमीर रिश्तेदार आप से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं और वे सचमुच आप की सहायता करना चाहते हैं, परंतु जब आप उन्हें देख कर अनदेखा करते हैं तो आप के व्यवहार से उन्हें चोट पहुंचती है और संबंधों में दूरी आने लगती है.

अमीर रिश्तेदार से आप के संबंध बने रहें, इस के लिए आप को उन्हें समयसमय पर विश करते रहना चाहिए. आपसी रिश्ते निभाने के लिए सब से आवश्यक है कि अमीरगरीब की भावना से उठ कर एकदूसरे पर विश्वास करना सीखें.

रिश्तों को पैसे से न तौलें. यदि आप का अमीर रिश्तेदार बातबात पर अपना स्टेटस दिखा रहा है, आप की चीजों के साथ तुलना कर रहा है तो फिर उस से दूरी बनाना ठीक है क्योंकि वह आप की मदद करने के बजाय केवल दिखावा कर रहा है. रिश्ते दिल से निभाएं, दिमाग से नहीं रिश्ते निभाने के समय फायदानुकसान के बारे में न सोचें और मजबूती से साथ खड़े रहें. यदि मदद करने योग्य हैं तो मदद कर दें. यदि आप का नुकसान भी हुआ है तो उसे अहमियत न दें.

यदि आप के रिश्तेदार ने आप का मोबाइल फोन खराब भी कर दिया है तो उसे बारबार न जताएं क्योंकि उस ने जानबू?ा कर नहीं खराब किया होगा. अधिकतर अमीर लोग अपने को महान सोच कर दूसरों को नीचा दिखाने लगते हैं. वे इस तरह बात करेंगे जैसे वे बहुत बड़े ज्ञानी और जानकार हैं और दूसरा बिलकुल अज्ञानी है. लेकिन सच तो यह है कि ये बातें उसे अपना अपमान लगती हैं और वह धीरेधीरे दूरी बना लेता है.

रिश्ते हमें पूर्ण बनाते हैं, हमारे जीवन में नएनए रंग भर देते हैं परंतु आजकल घोर व्यावसायिकता के युग में रिश्ते अपना अर्थ खोते जा रहे हैं और लोग व्यस्तता का बहाना कर अपने ही अजीज रिश्तेदारों से तभी मिलेंगे या फोन करेंगे जब उन्हें उन से कोई काम पड़ जाए. पहले मिलनसार होना या रिश्ते निभाना एक खूबी मानी जाती थी और समाज में ऐसे लोगों को आदर के साथ देखा जाता था परंतु आजकल काम पड़े और पूछपरख हो तो व्यावहारिकता कहा जाता है.

सचाई तो यह है कि आजकल रिश्ते लाइक और कमैंट में उल?ा कर रह गए हैं. लोग मोबाइल की स्क्रीन के माध्यम से ही जुड़े रहते हैं. वास्तविक दुनिया में टच में रहना या रखना गैरजरूरी सा होता जा रहा है. ऐसे में जिंदगी के अहम रिश्ते सब दम तोड़ते दिखाई पड़ रहे हैं. हम सब वर्चुअल दुनिया में रह कर खुशियां मना रहे हैं, यह नहीं सोचते कि यह ?ाठी और बनावटी दुनिया है.

अमीरी और गरीबी ऐसी ज्वलंत समस्या है जो सदा से समाज में व्याप्त रही है. लेखक या फिल्म निर्माता, सभी ने इस विषय पर कलम चलाई है. 1906 से 1936 तक के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य उन 30 वर्षों का सामाजिक और सांस्कृतिक दस्तावेज है. उन के उपन्यासों में समाज के अमीर जमींदार और गरीब किसान की आर्थिक विसंगति का वर्णन बारबार आया है.

‘गोदान’ उपन्यास का नायक होरी है, वह एक किसान है. महाजनी व्यवस्था में चलने वाले शोषण तथा उस के संत्रास की कथा है. आजीवन संघर्ष के बाद भी उस की एक गाय की आकांक्षा पूरी नहीं हो पाती. सच कहा जाए तो यह कहानी अमीर जमींदार और गरीब किसान के रिश्ते पर ही आधारित है. उन की अधिकतर कहानियों में निम्न या मध्यवर्ग का चित्रण है. रिश्तों पर आधारित ‘बूढ़ी काकी’, ‘पूस की रात’, ‘बड़े घर की बेटी’ आदि कहानियों में महिलाओं की खराब स्थिति, बाल विवाह और दहेज आदि में जो सामाजिक समस्याए थीं, उन का चित्रण मिलता है.

हिमांशु श्रीवास्तवजी का उपन्यास ‘मन के वन में’ एक सामाजिक उपन्यास है, जिस में यही दिखाया गया है कि वर्तमान युग में रिश्ते पैसों के बल पर ही बनते और बिगड़ते हैं. उन का विचार है कि अधिक धन भौतिक सुख तो दे सकता है परंतु उसे अपनों से दूर कर देता है. अपनी जिम्मेदारियों, संस्कारों और नैतिकता से इंसान अपना मुंह मोड़ लेता है. लेखक ने इस उपन्यास में मानव की इसी कड़वी सचाई को अभिव्यक्त किया है.

अमीरगरीब का फार्मूला हिंदी फिल्मों का हिट और बहुत पुराना फार्मूला है. 80-90 के दशक में अमीरगरीब के फार्मूले पर बनी फिल्में हिट होती रहीं, जिन में हीरो ज्यादातर गरीब होता था और हिरोइन अमीर. हीरोहीरोइन की लवस्टोरी में से एक के अमीर होने और दूसरे के गरीब होने का सब से बड़ा उदाहरण फिल्म ‘दीवार’ थी. इसी फार्मूले पर बनी फिल्में, ‘मैं ने प्यार किया’, ‘राजा हिंदुस्तानी’, ‘इश्क’, ‘दिल’, ‘दो रास्ते’ आदि हैं.

‘बौबी’ का वह सीन जब मिसेज ब्रिगैंजा का प्यार से बनाया हुआ केक उपहारों की भीड़ में डाल दिया जाता है और हीरो को उन से मिलने भी नहीं दिया जाता है, भावुक कर देता है. हम सभी जीवन में अनेक रिश्तों से बंधे होते हैं, उन में प्यार भी बहुत होता है और तकरार भी होती है. आवश्यकता केवल यह है कि हम रिश्तों को सम?ादारी से निभाएं और अमीरगरीब सब को इज्जत दें.

रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं, यह बच्चों से सीखिए, जो आपस में लड़ने के बाद थोड़ी देर में फिर दोस्त बन जाते हैं. हर रिश्ते की एक मर्यादा होती है और हमें उस मर्यादा को नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि अगर रिश्तों की मर्यादा टूट जाती है तो बहुतकुछ खत्म हो जाता है. इसलिए,

अमीरों से रिश्ता रखने के समय सोचविचार और सम?ादारी से काम लें तो रिश्ते आसानी से निभाए जा सकते हैं.

क्या मैं गलत हूं: शादीशुदा मयंक को क्या अपना बना पाई मायरा?

लेखिका- किरण अहूजा

पियाबालकनी में आ कर खड़ी हो गई. खुली हवा में सांस ले कर ऐसा लगा जैसे घुटन से बाहर आ गई हो. आसपास का शांत वातावरण, हलकीहलकी हवा से धीरेधीरे लहराते पेड़पौधे, डूबता सूरज सबकुछ सुकून मन को सुकून सा दे रहा था. सामने रखी चेयर पर बैठ कर आंखें मूंद लीं. भरसक प्रयास कर रही थी अपने को भीतर से शांत करने का. लेकिन दिमाग शांत होने का नाम नहीं ले रहा था. एक के बाद एक बात दिमाग में आती जा रही थी…

मैं पिया इस साल 46 की हुई हूं. जानपहचान वाले अगर मेरा, मेरे परिवार का खाका खींचेंगे तो सब यही कहेंगे, वाह ऐश है पिया की, अच्छाखासा खातापीता परिवार, लाखों कमाता पति, होशियार कामयाब बच्चे, नौकरचाकर और क्या चाहिए किसी को लाइफ में खुद भी ऐसी कि 4 लोगों के बीच खड़ी हो जाए तो अलग ही नजर आती है. खूबसूरती प्रकृति ने दोनों हाथों से है. ऊपर से उच्च शिक्षा ने उस में चारचांद लगा दिए. तभी तो मयंक को वह एक नजर में भा गई थी.

‘नैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी, बेंगलुरु’ से मास्टर डिगरी ली थी उस ने.

जौब के बहुत मौके थे. मयंक का गारमैंट्स का बिजनैस देशविदेश में फैला था. फैशन इलस्टेटर की जौब के लिए उस ने अप्लाई किया था. उस के डिजाइन्स किए गारमैंट्स के कंपनी को काफी बड़ेबड़े और्डर मिले. मयंक की अभी तक उस से मुलाकात नहीं हुई, बस नाम ही

सुना था.

पिया के काम की तारीफ और स्पैशल इंसैंटिव के लिए मयंक ने उसे स्पैशल अपने कैबिन में बुलाया. कंपनी के सीईओ से मिलना पिया के लिए फक्र की बात थी.

मयंक को देखा तो देखती रह गई. किसी फिल्मी हीरो जैसी पर्सनैलिटी थी उस की. लेकिन पिया कौन सी कम थी. मयंक के दिल में उसी दिन से उतर गई थी. पिया कंपनी के सीईओ के लिए कुछ ऐसावैसा सोच भी नहीं सकती थी, लेकिन मयंक ने तो बहुत कुछ सोच लिया था पिया को देख कर. अब तो वह नित नए बहाने बना कर पिया को डिस्कस करने के लिए कैबिन में बुला लेता. पिया बेवकूफ तो थी नहीं कि कुछ सम?ा न पाती. मयंक ने उस से जब बातों ही बातों में शादी का प्रस्ताव रखा तो पिया को लगा कि कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रही. सपनों का राजकुमार उसे मिल गया था.

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शादी के बाद पिया का हर दिन सोना और रात चांदी थी. 1 साल के अंदर ही पिया बेटे अनुज की मां बन गई और डेढ़ साल बाद ही स्वीटी की किलकारियों से घर फिर से गुलजार

हो गया.

कहते हैं न जब प्रकृति देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है. दोनों बच्चे एक से बढ़ कर एक होशियार. अनुज 12वीं के बाद ही आस्ट्रेलिया चला गया और वहां से बीबीए करने के बाद उस ने मयंक के साथ बिजनैस संभाल लिया. बापबेटे की देखरेख में बिजनैस खूब फूलफल रहा था. स्वीटी का एमबीबीएस करते हुए शशांक के साथ अफेयर हो गया तो दोनों की पढ़ाई खत्म होते हुए उन की शादी कर दी. आज दोनों मिल कर अपना बड़ा सा क्लीनिक चला रहे हैं.

पिया की यह कहानी सुन कर यह लगेगा न वाऊ क्या लाइफ है. पिया को भी ऐसा लगता है. लेकिन लाइफ यों ही मजे से गुजरती रहे ऐसा भला होता है? बस पिया की जिंदगी में भी ट्विस्ट आना बाकी था.

मयंक का अपने बिजनैस के सिलसिले में दुबई काफी आनाजाना था. मायरा जरीवाला गुजरात से थी. गारमैंट्स स्टार्टअप से शुरुआत की थी उस ने और आज उस की गुजराती टचअप लिए क्लासिक और मौडर्न ड्रैसेज की खूब डिमांड हो रही थी. बहुत महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. मयंक की गारमैंट इंडस्ट्री के साथ टाइअप कर के वह अपने और पांव पसारना चाहती थी. इसी सिलसिले में उस ने दुबई में मयंक के साथ एक मीटिंग रखी थी.

मयंक 48 वर्ष का हो चुका था. कहते हैं कि पुरुष इस उम्र में अपने अनुभव, अपने धीरगंभीर व्यक्तित्व और पैसे वाला हो तो उस की पर्सनैलिटी में गजब की रौनक आ जाती है. माएरा मयंक के इस रोबीले व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. उस की कंपनी के साथ टाइअप के साथसाथ उस की जिंदगी के साथ भी टाइअप करने की उस ने ठान ली.

पता नहीं क्यों पत्नी चाहे कितनी ही खूबसूरत, प्यार करने वाली हो, हर तरह से खयाल रखने वाली हो, लेकिन जहां कोई दूसरी औरत, ऊपर से खूबसूरत लाइन देने लगे तो पुरुष को उस की तरफ खिंचते हुए ज्यादा देर नहीं लगती. मयंक भी पुरुष था. मायरा एक बिजनैस वूमन थी. ऊपर से पूरी तरह आत्मविश्वास से भरी 35 साल की खूबसूरत औरत.

मयंक धीरेधीरे उस की ओर आकर्षित होता गया. मायरा नए दौर की औरत थी, जिस के लिए पुरुष के साथ रिलेशनशिप बनाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी. अपनी खुशी उस के लिए सब से ज्यादा माने रखती थी. मयंक और वह अब अकसर दुबई में ही मिलते और हफ्ता साथ बिता कर अपनेअपने बिजनैस में लग जाते. दोनों बिजनैस वर्ल्ड में अपनी रैपो बना कर रखना चाहते थे.

‘‘मयंक डियर, मु?ो बुरा लगता है कि मेरे कारण तुम पिया के साथ धोखा कर रहे हो. लेकिन मैं क्या करूं. मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. अब मेरी खुशी तुम से जुड़ी है,’’ मायरा मयंक को अपनी बांहों के घेरे में घेरती हुई बोली.

‘‘मायरा, मैं तुम से ?ाठ नहीं बोलूंगा. पिया से मैं भी प्यार करता हूं. लेकिन अब जब भी तुम्हारे साथ होता हूं मु?ो अजीब सा सुकून मिलता है. मैं उसे कोई दुख नहीं पहुंचाना चाहता, लेकिन तुम्हें अब छोड़ भी नहीं सकता. वह मेरी जिंदगी है तो तुम मेरी सांस हो. मायरा, अब मैं तुम्हें जीवनभर यों ही प्यार करना चाहता हूं. मेरी जिंदगी में अब तक पिया की जगह एक तरफ

है और तुम्हारी दूसरी तरफ. मैं दोनों को ही शिकायत का मौका नहीं देना चाहता,’’ मयंक ने मायरा को एक भरपूर किस करते हुए अपने आगोश में ले लिया.

मयंक ने पूरी कोशिश की थी कि पिया को मायरा के बारे में कुछ पता न चले.

वह मायरा के साथ अपनी सारी चैट साथ ही

साथ डिलीट कर देता था. मोबाइल में अपना फिंगर पासवर्ड लगा रखा था. पिया खुद भी मयंक का मोबाइल कभी चैक नहीं करती थी, पूरा विश्वास जो था उस पर, लेकिन उस दिन मयंक नहाने के लिए जैसे ही बाथरूम में गया मायरा के 2-3 व्हाट्सऐप मैसेज आ गए.

पिया की नजर मोबाइल पर पड़ी. मोबाइल पर 2-3 बार बीप की आवाज हुई. नोटीफिकेशन में माई डियर लिखा दिख गया.

पिया का माथा ठनक गया. अब उसे मयंक की हरकतों पर शक होना शुरू हो गया. मयंक का बिजनैस ट्रिप की बात कह कर जल्दीजल्दी दुबई जाना, मोबाइल चैट पढ़ते हुए मंदमंद मुसकान, उस पर जरूरत से ज्यादा प्यार लुटाना, बातवेबात उसे गिफ्ट दे कर खुश रखना.

अपनी बौडी फिटनैस के लिए जिम एक दिन भी मिस न करना, डाइट पर पूरापूरा ध्यान देना जिस के लिए वह कहतेकहते थक जाती थी, लेकिन वह लापरवाही करता था. पिया को एक के बाद एक सब बातें जुड़ती नजर आने लगीं.

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मयंक की जिंदगी में आजकल क्या चल रहा है उस का पता लगाना उस के लिए मुश्किल नहीं था. मयंक का ऐग्जीक्यूटिव असिस्टैंट समीर को एक तरह से पिया ने ही जौब पर रखा था. वह उस की फ्रैंड सीमा का कजिन था. समीर पिया की बहुत इज्जत करता था और अपनी बड़ी बहन मानता था.

पिया ने जब समीर से मयंक के प्रेमप्रसंग के बारे में पूछा तो उस ने अपना नाम बीच में न आने की बात कह पिया को मायरा के बारे में सबकुछ बता दिया.

समीर उसे मायरा और मयंक के बीच के बारे में बताता जा रहा था और पिया को लग रहा था जैसे उस के सपनों का महल जिसे उस ने प्यार से मजबूत बना दिया था आज रेत की तरह ढह गया है.

कहां कमी छोड़ दी थी उस ने. सबकुछ तो मयंक के कहे अनुसार करती रही थी. उस ने कहा नौकरी छोड़ दो, उस ने छोड़ दी. अपने कैरियर के पीक पर थी वह लेकिन मयंक के प्यार के आगे सब फीका लगा. उस ने कहा कि पिया बच्चों की देखभाल तुम्हारी जिम्मेदारी है, मैं अपने काम में बिजी हूं, तो यह बात भी उस ने मयंक की चुपचाप मान ली थी.

बच्चों की हर जिम्मेदारी उस ने खुद पर ले ली थी. अड़ोसपड़ोस, नातेरिश्तेदार, घरबाहर की सब व्यवस्था उस ने संभाल ली थी. किस के लिए, मयंक के लिए न, क्योंकि मयंक ही उस की दुनिया था. सबकुछ उस से ही तो जुड़ा था और उस ने कितनी आसानी से मायरा को उस के हिस्से का प्यार दे दिया. यह भी नहीं सोचा कि उस पर क्या बीतेगी, जब उसे पता चलेगा.

पिया को ऐसा लग रहा था जैसे उस की नसों में गरम खून दौड़ रहा है. तनमन दहक रहा है. मन कर रहा था कि मयंक को सब के सामने शर्मसार कर दे.

पिया यह सब तू क्या सोच रही है’, अचानक पिया को अपने मन की आवाज सुनाई दी, ‘पिया, यह तो तु?ो मयंक के बारे में अचानक शक हो गया तो तू ने सच पता कर लिया. अगर उस दिन फोन नहीं देखती तो? सबकुछ वैसा ही चलता रहता जैसे पिछले कई बरसों से चलता आ रहा है.’

पिया की सोच जैसे तसवीर का दूसरा पहलू देखने लगी थी. आज समाज में मयंक का एक रुतबा है. बेटे की बिजनैस टाइकून की इमेज बनी हुई. बेटी स्वीटी अपनी ससुराल में सिरआंखों पर बैठाई जाती है, क्योंकि उस का मायका रुसूखदार है. खुद का सोसाइटी में हाई प्रोफोइल स्टेट्स रखती है. आज अगर वह मुंह खोलती है तो मयंक के इस अफेयर को ले कर मीडिया वाले मिर्चमसाला लगा कर जगजाहिर कर देंगे. उन के बिजनैस पर इस का बहुत फर्क पड़ेगा.

बरसों से कमाई गई शोहरत पर ऐसा धब्बा लगेगा जिस का खमियाजा अनुज को भुगतना पड़ेगा, बेटा जो है. अभी तो उस का पूरा भविष्य पड़ा है आगे अपनी शोहरत बटोरने के लिए. स्वीटी के लिए मयंक उस के आइडियल पापा हैं. समाज में कितना रुतबा है उन के खानदान का. ऊफ, सब मिट्टी में मिल जाएगा. सोचतेसोचते पिया का सिर चकराने लगा था.

‘‘पिया मैडम, जरा संभल कर. आप ठीक तो हैं न, आप यहां आराम से बैठिए,’’ समीर ने पिया को कुरसी पर बैठाते हुए कहा.

पिया को पानी का गिलास दिया तो वह एक सांस में पी गई. उस की चुप्पी सबकुछ वैसा ही चलते रहने देगी जैसे चलता आ रहा है और अपने साथ हो रही बेवफाई को सरेआम करती है तो सच बिखर जाएगा. दिल और दिमाग में टकराव चल रहा था.

अचानक पिया कुरसी से उठ खड़ी हुई. पर्स से मोबाइल निकाला और

मयंक को फोन मिलाया, ‘‘मयंक, कहां हो तुम.’’

‘‘डार्लिंग, मीटिंग के लिए बाहर आया था. क्यों क्या बात है?’’ मयंक ने पूछा.

‘‘वह मैं तुम्हारे औफिस आई थी कि साथ लंच करते हैं.’’

‘‘ओह, यह बात है. नो प्रौब्लम, ऐसा करो तुम शंगरिला होटल पहुंचो, मैं सीधा तुम्हें वहां

15 मिनट में मिलता हूं. साथ लंच करते हैं वहां,’’ मयंक ?ाट से बोला.

‘‘ठीक है मैं पहुंचती हूं,’’ बोल कर पिया ने फोन काट दिया.

पिया जब होटल पहुंची तो मयंक उसे उस का इंतजार करता मिला.

पिया को लगा जैसे मयंक वही तो है जैसे पहले था. उस का खयाल रखने वाला. उसे इंतजार न करना पड़े इसलिए खुद पहले पहुंच जाना. मयंक के प्यार में कमी तो उसे कहीं दिख नहीं रही.

दोनों ने साथ लंच किया और मयंक ने उसे घर छोड़ा और औफिस चला गया, क्योंकि 4 बजे उस की क्लाइंट के साथ फिर मीटिंग थी.

घर आ कर पिया बालकनी में बैठ गई थी. उस ने निर्णय ले लिया. मयंक का सबकुछ बिखेर कर रख देगा. जो कुछ वह देख पा रही है शायद मयंक ने उस बारे में सोचा तक नहीं है. उस का सबकुछ तबाह हो जाएगा.

मयंक ने शायद सोचा ही नहीं कि मायरा के साथ उस की खुशी बस तभी तक है जब तक सब परदे के पीछे है. सच सामने आ गया तो सब खत्म हो जाएगा. न प्यार का यह नशा रहेगा, न परिवार में इज्जत, न समाज में मानप्रतिष्ठा.

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‘उस की तो दोनों तरफ हार है. मयंक की तबाही से उसे क्या हासिल होगा. खुशी तो मिलने से रही. फिर यह ?ाठ ही क्यों नहीं अपना लिया जाए,’ पिया दिल को एक तरफ रख दिमाग से सोचने लगी, ‘मयंक उस से मायरा का सच छिपाने के लिए उस से बेइंतहा प्यार करने लगा है. प्यार तो कर रहा है न.

‘उस के प्यार के बिना वह नहीं रह सकती. नहीं जी पाएगी वह उस के बिना. मयंक इस भुलावे में रहे कि वह उस की सचाई जानती तो अच्छा ही है. सब अच्छी तरह तो चल रहा है.

‘पत्नी हूं मैं उस की, मेरा हक कोई और छीन नहीं सकता. पतिपत्नी के रिश्ते में सचाई होनी चाहिए. यह बात मानती है वह लेकिन अगर आज वह मयंक को उस के सच के साथ नंगा कर देगी तो क्या उन के बीच वह पहले जैसा प्यार रह पाएगा? नहीं, कई बार ?ाठ को ही अपनाना पड़ता है. दवा कड़वी होती है, लेकिन इलाज के लिए खानी ही पड़ती है.’

पिया ने अब निर्णय ले लिया और एक नई पहल शुरू करने के लिए वह कमरे के भीतर गई. लाइट औन की. पूरा कमरा लाइट से जगमगा उठा. अब अंधेरा नहीं था. मयंक के सामने जाहिर नहीं होने देगी कि वह सब जान चुकी है. शायद यही सब के लिए ठीक है. गलत तो नहीं है वह कहीं?

कैटरीना कैफ जल्द शुरू करेंगी Tiger 3 की शूटिंग, नहीं जाएंगी हनीमून मनाने

बॉलीवुड एक्ट्रेस कैटरीना कैफ ने हाल ही में एक्टर विक्की कौशल के साथ शादी के बंधन में बंधी हैं. 9 दिसंबर को कैटरीना और विक्की राजस्थान में सात फेरे लिए हैं. खबर आ रही है कि शादी के बाद कैटरीना हीनीमून पर नहीं जाएंगी. वह जल्द सलमान खान के साथ टाइगर 3 फिल्म की शूटिंग करेंगी.

रूस, तर्की और आस्ट्रिया में शूटिंग के बाद अब कैटरीना कैफ फिल्म के अंतिम चरण की शूटिंग के लिए जाएंगी. एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि फिल्म की शूटिंग दिल्ली में 15 दिनों तक चलेगी. सलमान और कैटरीना रियल लोकेशन पर शूटिंग करेंगे.

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यहीं नहीं सभी चीजों का सीक्रेट रखने के लिए मेकर्स ने हाई लेवल की सीक्यूरिटी प्लान की है. बता दें कि इस फिल्म का निर्माण आदित्या चोपड़ा को बैनर तले हो रहा है. बता दें कि इस फिल्म में सलमान खान और इमरान खान पहली बार एक साथ फिल्म में नजर आएंगे और फैंस इन दोनों की भीड़त देखने के लिए काफी ज्यादा उत्साहित हैं.

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सलमान खान के साथ कैटरीना कैफ की जोड़ी फैंस को खूब पसंद आती है. इसलिए फैंस इन दोनों को एक बार फिर से साथ में पर्दे पर देखने के लिए उत्साहित हैं.

Bigg Boss 15 : जानें कौन होगा इस हफ्ते घर से बेघर

बिग बॉस 15 के वीकेंड का वार एपिसोड का इंतजार दर्शक तेजी से कर रहे हैं. हर कोई यह जानने के लिए इच्छुक है कि सलमान खान के गुस्से का शिकार आज कौन होगा. इसके अलावा फैंस यह जानने के लिए उत्सुक है कि इस बार सलमान खान किस सदस्य को घर से बेघर करेंगे.

हालांकि मिल रही ताजा जानकारी में यह पता चला है कि इस हफ्ते राखी सावंत के पति रितेश को घर से बेघर किया जाएगा. एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. हाल ही सलमान खान ने रितेश की बुरी तरह से लताड़ लगाई है, राखी सावंत के साथ बुरा बर्ताव करने के लिए. आज रात के एपिसोड में पता चल ही जाएगा कि कौन जाएगा घर से बाहर.

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इससे पहले अभिजीत बिचकुले चर्चा में बने हुए थें, उन्होंने देबोलीना भट्टाचार्जी को कहा था कि मैं तुम्हें सामान लाकर दूंगा और तुम मुझे पप्पी देना . इस बात को लेकर काफी ज्यादा घर में गहमा-गहमी भी हुई थी.

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इस घटना के बाद से देबोलीना भट्टाचार्जी ने अभिजीत बिचकुले कि जमकर क्लास लगाई थी. इसके अलावा राखी सावंत भी अभिजीत बिचकुले की क्लास लगाई थीं. खबर है कि सलमान आज के एपिसोड में अभिजीत बिचकुले को जमकर खरी खोटी सुनाएंगे. वैसे देखना यह भी है कि आज किसका एलिमिेशन होता है.

मैं अपने बेटी को घूमने के लिए मना करता हूं तो वो झगड़ने लगती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 43 वर्ष है और मैं 2 बच्चों का पिता हूं. पत्नी का देहांत 8 वर्ष पहले ही हो गया था. बेटी की उम्र 19 वर्ष और बेटे की 21 वर्ष है. दोनों की परवरिश में कोई खास दिक्कत नहीं आई क्योंकि मां की मौत के बाद बच्चे उम्र से पहले ही बड़े हो गए. लेकिन जब से बेटी का कालेज में दाखिला हुआ है तब से उस के व्यवहार में काफी बदलाव आने लगा है. उसे घूमने फिरने की मंजूरी न देने पर वह झगड़ने लगती है. ऐसे में अकसर मैं और मेरा बेटा दोनों ही उस से खिन्न हो उठते हैं और उस पर चिल्ला देते हैं. उस का दिनप्रतिदिन बढ़ता गुस्सा और अपनी बातें मनवाने की आदत चिंता का विषय बना हुआ है. कृपया मार्गदर्शन करें कि आखिर करें तो करें क्या?

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जवाब

इस उम्र में बच्चों का जिद्दी और गुस्सैल होना लगभग आम बात है. स्कूल के अनुशासित माहौल से निकल कर कालेज का नया आजाद माहौल युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करता है. नए दोस्तों के साथ घूमनेफिरने, कालेज के उन्मुक्त वातावरण के आगे वे घर में दम घुटने जैसा महसूस करने लगते हैं. समय के साथसाथ मिजाज में परिवर्तन आता है. आप अपनी बेटी को थोड़ा समय दीजिए. आप का उस पर चिल्लाना या उसे डांटना किसी भी तरह से परेशानी का हल नहीं, बल्कि इस से वह आप दोनों से ही तटस्थ होती जाएगी. आप का बेटा उस का हमउम्र है, उसे अपनी बहन को समझने की, उस से बात करने की कोशिश करनी चाहिए. आप दोनों यदि मिल कर उस से उस के इस तरह के व्यवहार का कारण पूछेंगे, तो अवश्य ही वह आप से बात करेगी. यकीन मानिए, बात करने से रिश्ते सुधर सकते हैं.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

दर्द का रिश्ता : भाग 6

“रास्ते में कोई दिक्कत तो नहीं हुई.”समर ने सामान संभालते हुए कहा और जवाब का इंतजार किए बिना ही घर में घुस गया. पापा गाड़ी के पास ही खड़े थे, एक अजीब सा संकोच घर कर गया था. पहले की बात और थी पर अब… “चलिए न पापा आप यहां क्यों खड़े हैं…”

समर मुसकराते हुए घर से बाहर निकले, अपूर्वा ने राहत की सांस ली. घर में एक गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था. चौके में कुछ खटरपटर हो रही थी. शायद खाना बनाने वाली आ गई थी. अपूर्वा साधनाजी को हर कमरे में ढूंढ़ आई थी पर पता नहीं वे कहां थीं. समर पापा के साथ बैठक में बैठे हुए थे.अपूर्वा ने जल्दी से हाथमुंह धुले और सब के लिए पानी लेने के लिए चौके में घुसी.

 

“मम्मी,आप यहां…सुनीता कहां है?आप हटिए मैं करती हूं.” “सुनीता राशन लेने गई है, तेरे पापा के लिए बिना चीनी वाली चाय अलग बना दी. ये पकौड़ियां ठंडी हो जाएंगी, तुम ले कर जाओ. मैं चाय ले कर आती हूं.” अपूर्वा आश्चर्य से मम्मीजी को देख रही थी. क्या मम्मीजी को बात समझ में आ गई थी? उन्हें पापा का यहां रहने पर कोई आपत्ति नहीं थी या फिर यस तूफान से पहले की शांति थी? बैठक में समर और पापा इधरउधर की बातें कर रहे थे. अपूर्वा नाश्ता लेकर पहुंची,”यह लीजिए गरमगरम पकौड़ी.”

 

पापा वैसे ही निर्विकार से बैठे हुए थे अचानक वे खड़े हो गए,”नमस्ते भाभी जी.” साधनाजी तब तक चाय ले कर आ गई थीं. सब लोग अपनी जगह से खड़े हो गए. साधनाजी ने गरदन हिला कर पापा का अभिवादन स्वीकार कर लिया. “मम्मी, बैठिए न आप भी चाय पीजिए.”

 

“तुम्हें तो पता है अपूर्वा मेरा घूमने का समय हो गया है.” सब चुप हो गए. अजयजी ने फलों की टोकरी साधनाजी के हाथों में थमा दी. कितना मना किया था अपूर्वा ने पर उन्होंने गाड़ी रुकवा कर फल खरीद ही लिए. “अप्पू, बेटी के दरवाजे पर खाली हाथ जाऊं यस शोभा नहीं देता. तेरी मां होती तो क्याक्या बांध देती. एक तो वैसे भी कोरोना के चक्कर में मिठाइयों की दुकानें बंद हैं. कम से कम फल तो ले चलूं.”

अपूर्वा पापा को देख रही थी. कितना फर्क आ गया था पापा में…पापा अचानक से मां की तरह लगने लगे थे. पहले उस की विदाई का लिफाफा और अब यह सब…कमरे में गहरा सन्नाटा पसर गया. अजयजी अपने नए ठिकाने में सिमट गई थे. मां की फोटो जो घर पर दीवार पर टिकी थी, कमरे के मेज पर दीवार से टिका दी गई. उन का सामान कमरे के एक कमरे में 2 दिनों तक वैसे ही पड़ा रहा. अपूर्वा ने ही सामान निकाल कर अलमारी में जमाया था.अपूर्वा घर को समेटने में लगी थी. 1 हफ्ते से औफिस से छुट्टी भी ले रखी थी. ऊपर से साधनाजी का शीत युद्ध वैसे ही चल रहा था. मुंह से तो कुछ नहीं कहतीं पर उन का ठंडा व्यवहार सबकुछ कह देता.

शुरूशुरू में तो अजयजी ने भी शामिल होने की कोशिश की पर साधनाजी किसी न किसी काम के बहाने उठ जाती. वे सब समझ रहे थे पर…जब तक वर्क फ्रौम होम था तब तक स्थिति सही भी थी. अपूर्वा प्रयास करती कि मम्मीजी को कोई काम न करना पड़े.

अजयजी को सुबह की चाय के साथ अखबार पढ़ने की आदत थी. साधनाजी को अखबार पढ़ने का कोई विशेष शौक नहीं था. सच तो यह था कि कभी घरगृहस्थी से फुरसत ही नहीं मिली इसलिए अखबार की ओर ध्यान भी नहीं गया. पर जब से अजयजी आए थे वे गेट पर ही अखबार वाले का इंतजार करने लगतीं और अखबार अपने कमरे में ले कर चली जातीं. अखबार पढ़े बिना  अजयजी का सवेरा नहीं होता था. उन्हें बेचैन देख कर अपूर्वा छटपटा जाती. समर से भी वह कुछ कह नहीं पाती. कई बार सोचा कि एक और अखबार लगवा लूं पर अगर किसी ने पूछ लिया तो क्या जवाब देगी वह…

धीरेधीरे लौकडाउन में छूट मिलने लगी थी. अपूर्वा को औफिस भी जाना होता था. पापा की दवा, जूस इन सब का वह इंतजाम कर के जाती पर खाना… सुनीता से उस ने पहले ही कह रखा था कि जिस दिन न आना हो तो पहले से बता दे वरना…ऐसा नहीं था कि साधनाजी खाना नहीं बनाती थीं पर एक अनजाने भय से वे हमेशा ग्रसित रहती थीं. कहीं कल साधनाजी इसी बात को बखेड़ा न बना दें.

आज औफिस में कुछ ज्यादा ही काम था, समर घर से ही औफिस संभाल रहा था. अजयजी के कमरे में बड़ा सन्नाटा पसरा हुआ था. साधनाजी 2 बार कमरे के बाहर चक्कर भी मार आई थीं. इतनी देर तक तो अजयजी कभी नहीं सोते थे फिर आज…आज क्या हुआ? वे समर के कमरे की ओर बढ़ गईं, “समर, चाय पिएगा?”

“अपने लिए बना रही हो मां तो पिला दो…अपनी स्पैशल वाली बनाना.” साधनाजी के चेहरे पर एक मुसकराहट आ गई, दरवाजे के पास जातेजाते वह वही रुक गई. कैसे पूंछूं? पता नहीं क्या सोचेगा?”समर, तेरे ससुर ठीक है न…सुबह से देखा नहीं उन्हें, इस वक्त तक तो गमलों के साथ कुछ न कुछ करते ही रहते हैं. सब ठीक है न…” “मुझे पता नहीं मां, आज मेरी एक बहुत जरूरी मीटिंग है मैं उसी की तैयारी में व्यस्त हूं. ठीक ही होंगे?”

समर साधनाजी को उन के चिंतन के साथ छोड़ कर काम में व्यस्त हो गया. साधनाजी चौके की तरफ बढ़ गईं.चाय का पतीला उठाया पर मन तो अजय की तरफ ही लगा था,’जब चाय बना रही हूं तो एक बार पूछ ही लेती हूं…एक बार पूछ लूंगी तो कौन सा घट जाऊंगी,’ साधनाजी अजयजी के कमरे की तरफ बढ़ गईं. कमरे के अंदर अभी भी सन्नाटा था. साधनाजी ने दरवाजे को खटखटाया उधर से कोई आवाज नहीं आई, उन्होंने दूसरी बार दरवाजे को जोर से खटखटाया…

 

“आ जाओ अप्पू…” अपूर्वा को इसी नाम से तो पुकारते थे वे. साधनाजी अजीब कशमकश में पड़ी थीं, अंदर जाऊं या न जाऊं. अजयजी पता नहीं क्या सोचें पर अब तो जाना ही पड़ेगा,”मैं हूं भाईसाहब…अंदर आ जाऊं?” “जी…” साधनाजी ने दरवाजे को हलके से धक्का दे कर खोल दिया. अजयजी  बिस्तर पर ही लेटे हुए थे. साधनाजी की आवाज को सुन कर उन्होंने उठने का उपक्रम किया. “अरे क्या हुआ आप लेटे क्यों हैं… तबीयत ठीक है न?”

“हां ठीक है बस कल रात से थोड़ा सा पेट में दर्द है. 2 बार पतले दस्त भी हुए.”अजयजी के चेहरे पर दर्द की लकीरें उभर आईं, आंखें उनींदी हो रही थीं.शायद दर्द के कारण वे पूरी रात सोए नहीं थे. साधनाजी के माथे पर बल पड़ गया,”अपूर्वा ने भी कुछ नहीं बताया.. .””नहींनहीं उस की कोई गलती नहीं… उसे तो पता भी नहीं. आप ने दरवाजा खटखटाया तो मैं ने सोचा अपूर्वा ही है.””कोई दवा ली…?”

“जी दवा…”अजयजी के गले में शब्द अटक से गए. जब तक मृदुला थी तो वह कहीं भी जाने से पहले एक छोटा सा फर्स्ट एड बौक्स जरूर रख लेती थी पर अब…”कोई बात नहीं आप मुंहहाथ धो लीजिए…मैं अभी आती हूं.”अजयजी बड़े पेशोपेश में थे. इतने दिनों में पहली बार साधनाजी से उन की इतनी बात हुई थी. वे गुसलखाने में घुस गए.

“भाईसाहब, यह गरम पानी के साथ निगल लीजिए, आराम मिलेगा. समर के पापा को भी जब कभी दिक्कत होती तो मैं यही देती थी. 2-3 बार ले लेंगे तो सही हो जाएगा.””जी…”साधनाजी दवा और पानी रख कर चली गईं. अजयजी ने चुपचाप दवा ले ली और अपने बिस्तर पर लेट गए. कितने दिनों बाद उन्होंने किसी से बात की थी. ऐसा नहीं था कि समर और अपूर्वा उन्हें समय नहीं देते थे पर इंसान का एक स्वभाव होता है जहां से उम्मीद न हो वह वहां से ही उम्मीद करता है. अजयजी को न जाने क्यों बहुत पहले पढ़ी एक पत्रिका की कुछ पंक्तियां याद आ गईं,’घरों में दरवाजों से ज्यादा खिड़कियां होनी चाहिए क्योंकि दरवाजे हमेशा घुटन का एहसास कराते हैं पर खिड़कियां… खिड़कियों से आती शीतल बयार मन के कोनेकोने को सुवासित और सुगंधित कर देती है. खिड़कियों पर खड़ा आदमी उम्मीद का इंतजार करता है…’ तभी बरतनों की आवाज से उप की तंद्रा टूट गई.

“भाईसाहब, यह आप की चाय है. थोड़ी ही दी है और यह मूंग की दाल का चिल्ला, हलका रहेगा पेट तो आराम मिलेगा.”अजयजी संकोच से दोहरे हुए जा रहे थे.”आप…आप क्यों परेशान हो रही हैं.मैं ठीक हो जाऊंगा.””परेशानी कैसे…अपूर्वा मूंग की दाल पीस गई थी कि नाश्ते में पकौड़ी बनेगी, मैं ने सोचा आप के लिए चिल्ला बना दूं. पेट भी भर जाएगा और आराम भी रहेगा.

 

दर्द का रिश्ता : भाग 5

“मन तो बहुत है दीदी पर अंकलजी को छोड़ कर कैसे जाऊं. आंटीजी थीं तो बात कुछ और थी पर अब…”अपूर्वा ने कमला के हाथों को अपने हाथों में लिया और नोटों का पुलिंदा उस के हाथों में रख दिया. कमला आश्चर्य से अपूर्वा का मुंह देख रही थी.

“दीदी, आप पैसे क्यों दे रही और वह भी इतने सारे, अभी तो महीना भी पूरा नहीं हुआ. अंकलजी है न वे दे देंगे.”अपूर्वा बड़ी देर तक चुपचाप खड़ी रही, कमला समझ नहीं पा रही थी कि आखिर अपूर्वा करना क्या चाहती है.”कमला, मैं पापा को यहां अकेले नहीं छोड़ सकती, पूरी रात मम्मी की तसवीर की तरफ ही देखते रहते हैं. मेरे सिवा उन का है ही कौन? तुम मेरी एक मदद करेगी.”

“बोलो दीदी…?””जब पापा सो कर उठें तो उन से अपनी मां की तबीयत का बहाना कर के महीनेभर के लिए तुम गांव चली जाओ. मैं पापा को किसी तरह भी मना कर अपने साथ ले कर चली जाऊंगी,”कहतेकहते अपूर्वा का गला भर आया. कमला की आंखें भी डबडबा गईं. अपने आंचल से अपूर्वा के आंसू पोंछते हुए कमला ने कहा,”दीदी, आप जरा भी चिंता न करो, खुशीखुशी अपने पापा को अपने घर ले जाओ. तुम्हारी जैसी बिटिया कुदरत सब को दें.”

अपूर्वा के चेहरे पर खुशी की लहर आ गई. एक जंग तो वह जीत चुकी थी अब दूसरी जंग की तैयारी करनी थी. कमला ने योजना के अनुसार वैसा ही किया,पापा कमला के 1 महीने गांव जाने की बात सुन कर सोच में पड़ गए पर कमला की मां की बीमारी की बात सुन कर वे ज्यादा कुछ न बोल पाए. अपूर्वा ने उन के चेहरे पर एक अजीब सी बेचैनी देखी. अपूर्वा भी तो अपने घर जाएगी फिर उन का खानापीना… उन्हें तो चाय के सिवा कुछ बनाने भी नहीं आता. अपूर्वा सबकुछ चुपचाप देख रही थी. उस दिन पूरी रात उन की आंखों में पश्चाताप में ही गुजरी.

“पापा, उठिए कितना सोएंगे…मैं ने चाय चढ़ा दी है. एक बार आप जरा अपने कपड़े देख लीजिए हम लोग शाम तक निकलेंगे.”अपूर्वा, तू जा रही है? सब ठीक है न?””मैं नहीं पापा हम…हम दोनों कानपुर जा रहे हैं. 2 घंटे का ही रास्ता है. शाम होने से पहले पहुंच जाएंगे.””अप्पू, मैं तुझ से पहले ही कह चुका हूं मैं तेरी ससुराल नहीं जा सकता. लोग क्या कहेंगे.””पापा, आप हमेशा के लिए थोड़ी जा रहे हैं, बस 1 महीने की बात है. कमला भी यहां नहीं है, आप को दिक्कत हो जाएगी न..”

‘दिक्कत…’ अजयजी मन ही मन बुदबुदाए, अपूर्वा गलत तो नहीं कह रही थी.”पर तेरी सास?””उन की चिंता मत कीजिए.”””बस 1 महीना.””हांहां भाई बस 1 महीना..”

अपूर्वा मन ही मन खुश थी. अजयजी ने बड़े भारी दिल से अपने सामान को पैक किया. अपूर्वा ने कपड़ों के बीच उन को मां की तसवीर छिपाते देख लिया था. मृदुलाजी के बिना अपूर्वा के घर जाने का उन का पहला मौका था. पापा भरी निगाहों से उस घर के कोनेकोने को देख रहे थे. इतने मन से बनाए इस घर को छोड़ कर यों जाना उन्हें अच्छा नहीं लग रहा था पर जाना तो था ही…तभी पापा को कुछ याद आया,”अप्पू जरा रुक तो..”

“क्या हुआ पापा?”पापा बिना कुछ कहे कमरे में घुस गए और मां की अलमारी में टटोलने लगे. थोड़ी देर में पापा एक रंगीन लिफाफा ले कर हाजिर थे.”तेरी मां कहती थी कि बहनबेटियों को खाली हाथ विदा नहीं करते. यह ले तेरा शगुन…तू पिछले साल आ नहीं पाई थीं न… तेरी मां ने पिछले साल से ही तेरे लिए कुछ खरीद कर रखा था. सोचा था जब तू आएगी तो तुझे देंगी पर वे तो रहीं नहीं खैर…”

पापा ने पैकेट अपूर्वा के हाथों में पकड़ा दिया. अपूर्वा मूकदर्शक बनी सबकुछ देख रही और समझने का प्रयास कर रही थी. उस कल के इंतजार में मां चली गईं. वह कल आएगा कितना बड़ा भ्रम था. पैकेट से लाल रंग की साड़ी झांक रही थी,”कितनी बार कहा था मां से मुझे साड़ी मत दिया करो. पहनने में नहीं आती. आप के पैसे भी फंस जाते हैं…”और मां कहतीं, “तू तो साड़ी खरीदती नहीं. कम से कम तीजत्योहार पर तो पहन लिया कर.”

मां जातेजाते भी अपने हाथों की खुशबू अपने होने का एहसास छोड़ गई थी. अपूर्वा ने उस साड़ी को अपने गालों से लगा लिया. आंसू की 2 बूंदें साड़ी पर टपक गईं. वह सुकून भरी गोद अब नहीं थी, थी तो बस उस की स्मृतियों का एहसास जो हर सांस के साथ महसूस होता था.

गाड़ी तेजी से धूल उड़ाते हुए आगे बढ़ गई. अपूर्वा और पापा की नजर कार के शीशे के बाहर घर के दरवाजे पर ही अटक गई थी. अपूर्वा को लगा आज वह एक बार विदा हो रही थी इस दहलीज से… शायद हमेशा के लिए कभी भी न लौटने के लिए. रास्ते भर दोनों ने एकदूसरे से कोई भी बात नहीं की. दोनों अपनेअपने विचारों से जूझ रहे थे. विचारों की एक गहरी सुनामी उन्हें विचलित कर रही थी. हाइवे पर तेजी से दौड़ती कार पीछे छूटते खेतखलिहानों के साथ पीछे बहुत कुछ छूट गया था.

“भाभी,घर आ गया.”दिनेश की बात सुन कर दोनों मानों नींद से जागे. अपूर्वा का मन एक अनजाने भय से भयभीत था. पैर मानों भारी हो रहे थे. एक बहुत बड़ा सवाल उस के सामने मुंह बाए खड़ा था. गाड़ी का हौर्न सुन कर समर बाहर निकल आए पर मम्मीजी… समर के लिए भी एक अजीब सी स्थिति थी. मां के बिना पापा का स्वागत, कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी.

जिस्म के धंधे में धकेली 200 लड़कियां

सत्यकथा

—संवाददाता

मध्य प्रदेश सरकार द्वारा गठित स्पैशल इनवैस्टिगेशन टीम (एसआईटी) के आला अधिकारियों द्वारा भोपाल में सितंबर 2021 के अंतिम सप्ताह में एक अहम बैठक की गई. इस दौरान मानव तस्करी समेत हनीट्रैप के बढ़ते मामले को ले कर चिंता जताई गई.

राज्य में विगत कुछ माह में ऐसे मामले बढ़ गए थे. राजधानी भोपाल और दूसरे बड़े शहर इंदौर एवं ग्वालियर में एमएलए, एमपी, ब्यूरोक्रेट, बिजनैसमैन या बड़े उद्योगपति को लड़की द्वारा सैक्स जाल में फंसाने और उन से वसूली की कई शिकायतें आ चुकी थीं. अधिकतर मामलों में लड़की द्वारा फार्महाउस, गेस्ट हाउस, रेंटेड फ्लैट या होटल के कमरे में अवैध सैक्स के वीडियो छिपे कैमरे से बनाए जाते थे. फिर उन से मोटी रकम वसूली जाती थी. इस काम को बड़े ही सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया जा रहा था.

जबकि पुलिस के बड़े अफसरों पर ऐसे गिरोह को धर दबोचने का पौलिटिकल प्रेशर भी बना हुआ था. कब कौन किस तरह से हनी ट्रैप का शिकार हो जाए, कहना मुश्किल था. वे टेक्नोलौजी, ऐप्स और सोशल साइटों का इस्तेमाल करते हुए बच निकलते थे.

इसी तरह पिछले कुछ महीनों से आए दिन होटल, गेस्टहाउस, स्पा और मसाज सेंटर से सैक्स रैकेट का भी भंडाफोड़ हो रहा था. दूसरे राज्यों से आई जिस्फरोशी में लिप्त लड़कियां वहां से पकड़ी जा रही थीं, लेकिन उन का सरगना गिरफ्त से बाहर था. 2-3 से ले कर कभी 11, तो कभी 15 या 21 पकड़ी गई लड़कियों में अधिकतर बांग्लादेश की होती थीं.

वे वहां तक कैसे पहुंचीं, उन का मुखिया कौन है, उन के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं होती थी. यहां तक कि वे ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाती थीं. अपना सही पताठिकाना तक नहीं बता पाती थीं.

इन्हीं सब बातों को ले कर एसआईटी की बुलाई गई विशेष बैठक में बडे़ अफसरों ने इंदौर, भोपाल और ग्वालियर की पुलिस को आड़ेहाथों लिया था. उन्हें जबरदस्त डांट पिलाई थी.

उसी सिलसिले में सैंडो, आफरीन, बबलू सरकार, दिलीप बाबा, प्रमोद पाटीदार, उज्ज्वल ठाकुर एवं विजयदत्त उर्फ मुनीरुल रशीद का नाम भी सामने आया. पता चला कि मुनीरुल ही इस गैंग का सरगना है. उसे मुनीर कह कर बुलाते थे.

इस पर यह सवाल भी उठा कि मुनीर पिछले 11 महीने से क्यों फरार है, जबकि उस पर 10 हजार रुपए का ईनाम भी है. वह पकड़ा क्यों नहीं गया?

उल्लेखनीय है कि पिछले साल दिसंबर में इंदौर के विजय नगर और लसूडि़या इलाके में सैक्स रैकेट के खिलाफ औपरेशन चलाया गया था. तब कुल 15 लड़कियां पकड़ी गई थीं.

उन से मिली जानकारी के आधार पर ही उन आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे. उस वक्त मुख्य आरोपी मुनीर भाग निकला था. उसे पकड़ने के लिए 10 हजार रुपए ईनाम की भी घोषणा की गई थी.

उस के बाद ही इंदौर में हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट और मानव तस्करी की जांच के लिए डीआईजी ने दिसंबर 2020 में ही एसआईटी बनाई थी. इस में पूर्व क्षेत्र के एएसपी राजेश रघुवंशी, विजय नगर सीएसपी राकेश गुप्ता, एमआईजी टीआई विजय सिसौदिया और विजय नगर टीआई तहजीब काजी को रखा गया था.

फिर एसआईटी ने सैक्स रैकेट के खिलाफ एक अभियान छेड़ दिया था और जगहजगह सैक्स रैकेट के अड्डों पर लगातार छापेमारी की गई थी, लेकिन मुनीर पकड़ा नहीं जा सका था. वह पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर हमेशा बच निकलता था.

एसआईटी को मुनीर के सूरत में छिपे होने की सूचना मिली थी. वह बारबार अपना ठिकाना बदलने में माहिर था, उस की लोकेशन की पूरी जानकारी पुख्ता होने के बाद ही एसपी ने उसे पकड़ने के निर्देश दिए.

इस के लिए टीम ने एक सप्ताह तक सूरत में डेरा डाल दिया. टीम को बताया गया था कि वह अपना धंधा वीडियो कालिंग के जरिए करता है. वाट्सऐप से मैसेज करता है.

इसे ध्यान में रखते हुए उस की ट्रैकिंग पूरी मुस्तैदी के साथ मोबाइल टेक्नोलौजी का इस्तेमाल करते हुए की जानी चाहिए. जरा सी भी चूक या नजरंदाजी से वह बच निकल सकता था.

टीम के एक्सपर्ट पुलिसकर्मियों ने आखिरकार मोबाइल लोकेशन के आधार पर मुनीर को 30 सितंबर, 2021 की रात को पकड़ ही लिया.

पकड़े जाने पर उस ने पहले तो अपनी पहचान छिपाने की हरसंभव कोशिश की, किंतु इस में वह सफल नहीं होने पर तुरंत रुपए ले कर छोड़ने का दबाव बनाया. इस में भी उसे सफलता नहीं मिली. अंतत: टीम उसे पकड़ कर पहली अक्तूबर को इंदौर के पुलिस हैडक्वार्टर ले आई.

इंदौर में एसआइटी के सामने सख्ती से पूछताछ में उस ने कई ऐसे राज खोले, जिसे सुन कर सभी को काफी हैरानी हुई. उस ने मानव तस्करी से ले कर लड़कियों को डरानेधमकाने, प्रताडि़त करने, यौन उत्पीड़न किए जाने, बांग्लादेश का बौर्डर पार करवाने, देह के बाजार के लिए बिकाऊ बनाने के वास्ते ट्रेनिंग देने और कानून को झांसा देने के लिए फरजी शादियां करने तक के कई खुलासे किए. उस के अनुसार जो तथ्य सामने आए वे इस प्रकार हैं.

मूलत: बांग्लादेश का रहने वाला विजयदत्त उर्फ मुनीरुल रशीद उर्फ मुनीर पिछले 5 सालों से मानव तस्करी के धंधे में था. बांग्लादेश के जासोर में उस का पुश्तैनी घर है. गर्ल्स स्मगलिंग में तो वह एक माहिर और मंझा हुआ खिलाड़ी था.

उस की नजर हमेशा बांग्लादेश के उन गरीब परिवारों पर टिकी रहती थी, जिन में लड़कियां होती थीं. उन की उम्र 16-17 के होते ही उन के परिवार वालों को भारत में काम दिलाने के बहाने अच्छी कमाई का लालच दे कर मना लेता था.

शक से बचने के लिए कई बार लड़कियों को वह दुलहन बना कर लाता था. इस के लिए बाकायदा निकाहनामा साथ रखता था, लड़की का पासपोर्ट और टूरिस्ट वीजा बनने में अड़चन नहीं आती थी, भारत में ला कर उन्हें लड़कियों की मांग के आधार पर मुंबई, आगरा, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, भोपाल, दिल्ली आदि में सप्लाई कर देता था.

वह भारत में रहते हुए भारत-बांग्लादेश के पोरस बौर्डर पर बने नाले या तार के बाड़ों से हो कर गुप्त रास्ते से पश्चिम बंगाल से सटे बांग्लादेश आताजाता रहता था. इस कारण अपने पसंद की लड़कियों को भी आसानी से बौर्डर पार करवा लेता था.

लड़कियों को एक दिन अपने पास के गांव में एजेंटों के यहां ठहरा देता था.  उन्हें वहां 15 दिनों तक छोटे कपड़े पहना कर रखा जाता और उन्हें हल्दी की उबटन भी लगाई जाती ताकि वे मौडर्न और खूबसूरत दिखें. फिर पश्चिम बंगाल में मुर्शिदाबाद ला कर उन्हें महाराष्ट्र और गुजरात में पहले से तैनात एजेंटों को 75 से एक लाख रुपए में बेच देता था.

कुंवारी लड़कियों की कीमत अधिक मिलती थी. कुछ लोग उन लड़कियों का नकली आधार कार्ड और दूसरे कागजात बनाने का काम भी करते थे. एजेंट उन्हें ग्राहकों के सामने पेश करने से पहले दुलहन की तरह सजाता था. हलका मेकअप करने और अच्छे ग्लैमरस कपड़ों में रईस ग्राहकों के पास भेज देता था.

हालांकि इस के लिए सभी लड़कियों को नौकरी के लिए इंटरव्यू का झांसा ही दिया जाता था. जो ऐसा करने से इनकार करती थी या भागने का प्रयास करती थी, उन्हें भूखाप्यासा कमरे में बंद रखा जाता था. बाद में उसे मजबूरन देहव्यापार के धंधे में उतरना पड़ता था.

इंदौर के विजय नगर में छापेमारी के दौरान पकड़ी गई 11 लड़कियों में एक लड़की ने पुलिस को अपनी आपबीती सुनाई थी. उस ने बताया था कि साल 2009 में वह 15 साल की थी. उस की मां का निधन हो गया था. तब वह नौवीं कक्षा में पढ़ रही थी. पिता पहले ही गुजर चुके थे.

मां की मौत के बाद वह एकदम से अनाथ हो गई थी. पढ़ाई बंद चुकी थी. पढ़ना चाहती थी. स्कूल की फीस भरने की चिंता में वह एक दिन पेड़ के नीचे बैठी रो रही थी.

तभी उस के पास एक युवती आई. उस से बोली कि बांग्लादेश में कुछ नहीं रखा है. यहां से अच्छा भारत है. वहां बहुत तरह के काम मिल जाते हैं. कंपनियों में अच्छी नौकरी मिल जाती है. कुछ नहीं हुआ तो मौल या बड़ेबड़े होटलों या अस्पतालों में काम मिल जाता है.

वहां चाहे तो पढ़ाई भी कर सकती है. वहां दूसरे देशों से आए लोगों के लिए सरकार ने कई शहरों में शेल्टर बना रखे हैं. दिल्ली में तो बांग्लादेशियों के रहने का एक बड़ा मोहल्ला तक बसा हुआ है. इसी के साथ युवती ने अपने बारे में बताया कि भारत अकसर आतीजाती रहती है. वहीं उस ने एक युवक से शादी कर ली है. वह भी बांग्लादेशी है. बिल्डिंग बनाने की ठेकेदारी का काम करता है. अच्छी आमदनी हो जाती है.

दूर बैठे एक युवक की तरफ इशारा करते उस ने लड़की को बताया कि वह उस का शौहर है. उस युवती ने लड़की को उस की भी अच्छी शादी हो जाने के सपने दिखाए. उस ने कहा कि भारत में रह रहे बांग्लादेश के कई अविवाहित युवक चाहते हैं कि वह अपने ही देश की लड़की से शादी करे.

वह लड़की न केवल पूरी तरह से उस युवती और युवक की बातों में आ गई, बल्कि वह उन के साथ भारत जाने को राजी भी हो गई. उसे अगले रोज सूरज निकलने से पहले इंडोबांग्ला बौर्डर तक पहुंचने के लिए कहा गया.

उस ने ऐसा ही किया, किंतु उसे बौर्डर तक पहुंचने में पूरी रात पैदल चलना पड़ा. वहीं युवकयुवती उस का इंतजार करते हुए मिल गए और उसे बौर्डर पार करवा दिया.

कुछ समय बाद ही लड़की उन के साथ मुर्शिदाबाद चली गई. वहीं उसे एक दूसरे आदमी के यहां ठहराया गया और एकदूसरे को मियांबीवी बताने वाले दंपति चले गए. दोनों फिर लड़की को कभी नहीं मिले.

लड़की को जिस व्यक्ति के पास ठहराया गया था, वहां अगले रोज एक दूसरा युवक आया. उस का परिचय मुनीर नाम के व्यक्ति से करवाया गया. उस के साथ लड़की का निकाह करवा दिया गया. लड़की को बताया गया कि इस से उस के भारत में रहने और ठहरने का प्रमाणपत्र बन जाएगा.

फिर मुनीर नवविवाहिता लड़की के साथ गुजरात के सूरत शहर चला आया. मुनीर ने लड़की को अपने साथ 2 दिनों तक एक किराए के कमरे में रखा. इस बीच मुनीर ने उसे छुआ तक नहीं. उसे सिर्फ इतना बताया गया कि दोनों को मुंबई जाना है.

तीसरे दिन मुनीर ने लड़की को एक व्यक्ति के हाथों बेच दिया. लड़की को कहा कि उसे उस के साथ जाना होगा, वहीं उस की नौकरी लग जाएगी. सूरत का कुछ जरूरी काम निपटा कर 2 दिन बाद वह भी आ जाएगा. लड़की को मुनीर भी दोबारा कभी नहीं मिला.

इस बात को मुनीर ने भी पूछताछ के दौरान स्वीकार कर लिया था. उस ने बताया कि तब उस का इस धंधे में रखा गया पहला कदम ही था, जिस में उसे सफलता मिलने के बाद उस का उत्साह बढ़ गया था.

मुनीर ने बताया कि वह इसी तरह करीब 200 लड़कियों से शादी कर चुका है, लेकिन उसे याद भी नहीं है कि वे लड़कियां इस समय कहां हैं. लड़कियों को ट्रैप करने और उन्हें बहलाफुसला कर अपने जाल में फंसाने के लिए वह तरहतरह के तरीके अपनाता था.

मोबाइल के सहारे वह सारा काम निपटाता था, लेकिन हर महीने 2 महीने पर नया सिम बदल लेता था. उस का टारगेट होता था कि हर महीने कम से कम 50 लड़कियों को बांग्लादेश से ट्रैप करे और उन्हें मानव तस्करी में शामिल एजेंटों के हाथों बेच डाले.

इसी के साथ उस ने स्वीकार कर लिया कि वह 200 से अधिक लड़कियों को जिस्मफरोशी में धकेल चुका है. देखते ही देखते वह पुलिस की निगाह में बांग्लादेशी लड़कियों का एक बडा तस्कर बन चुका था. छापेमारी के दौरान जब भी बांग्लादेशी लड़कियां गिरफ्तार होतीं, तब उस का नाम जरूर आता था.

मुनीर ने बताया कि उस ने इंदौर में अड्डा जमाने के लिए यहीं के लसूडि़या थानाक्षेत्र के रहने वाले एजेंट सैजल से संपर्क किया था. सैजल ने कुछ साल पहले ही मुंबई के दलाल जीवन बाबा की बेटी से शादी की थी.

इस के बाद वह इंदौर आ गया. फिर जीवन बाबा ने उसे लड़कियों की दलाली के काम में शामिल कर लिया.

मुनीर का एक बड़ा नेटवर्क था, जिस में ज्यादातर पुरुष थे, लेकिन उन में 20 फीसदी के करीब महिलाएं भी थीं. एजेंट महिलाएं बांग्लादेश में लड़कियों को फंसाने और बांग्लादेश के गांवों से बौर्डर तक पहुंचाने या फिर भारत में बौर्डर के पास के इलाके मुर्शिदाबाद तक लाने का ही काम करती थीं.

वे औरतें बौर्डर पर तैनात बीएसएफ के जवानों के लिए खानेपीने का सामान ला कर देती थीं. बदले में लड़कियों को बौर्डर पार करने की थोड़ी छूट मिल जाती थी.

एजेंटों द्वारा लड़कियों को मानव तस्करी के लिए जैसोर और सतखिरा से बांग्लादेश में गोजादंगा और हकीमपुर लाया जाता है. कारण वहां के बौर्डर पर कंटीले तारों के बाड़ नहीं लगे हैं. साथ ही वहां की अबादी भी घनी है. इस कारण रोजाना की जरूरतों के लिए भारत और बांग्लादेश में लोगों का आनाजाना लगा रहता है.

उसे बेनोपोल बौर्डर के नाम से जाना जाता है, दक्षिणपश्चिम के  इस हिस्से में खुली जमीन होने के कारण लोग बौर्डर को आसानी से पार लेते हैं. बौर्डर पर पकड़े जाने पर लोग 200 से 400 टका (बांग्लादेश की मुद्रा) दे कर आसानी से छूट जाते हैं.

मानव तस्करी के लिए बदनाम अन्य जिलों में कुरीग्राम, लालमोनिरहाट, नीलफामरी, पंचगढ़ी, ठाकुरगांव, दिनाजपुर, नौगांव, चपई नवाबगंज और राजशाही भी है.

पुलिस ने विजय दत्त उर्फ मुनीरुल रशीद उर्फ मुनीर से पूछताछ करने के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

अपना पराया: दीपेश और अनुपमा को किसने समझाया अपने पराए का अंतर

‘‘भैया, आप तो जानते हैं कि बीना को दिल की बीमारी है, वह दूसरे का तो क्या, अपना भी खयाल नहीं रख पाती है और मेरा टूरिंग जौब है. हमारा मां को रखना संभव नहीं हो पाएगा.’’

‘‘भैया, मैं मां को रख तो लेती लेकिन महीनेभर बाद ही पिंकी, पम्मी की परीक्षाएं प्रारंभ होने वाली हैं. घर भी छोटा है. इसलिए चाह कर भी मैं मां को अपने साथ रख पाने में असमर्थ हूं.’’

दिनेश और दीपा से लगभग एक सा उत्तर सुन कर दीपेश एकाएक सोच नहीं पा रहे थे कि वे क्या करें? पुत्री अंकिता की मई में डिलीवरी है. उस के सासससुर के न होने के कारण बड़े आग्रह से विदेशवासी दामाद आशुतोष और अंकिता ने उन्हें कुछ महीनों के लिए बुलाया था, टिकट भी भेज दिए थे. अनुपमा का कहना था कि 6 महीनों की ही तो बात है, कुछ दिन अम्माजी भैया या दीदी के पास रह लेंगी.

इसी आशय से उन्होंने दोनों जगह फोन किए थे किंतु दोनों जगह से ही सदा की तरह नकारात्मक रुख पा कर वे परेशान हो उठे थे. अनु अलग मुंह फुलाए बैठी थी.

‘‘अम्माजी पिछले 30 वर्षों से हमारे पास रह रही हैं और अब जब 6 महीने उन्हें अपने पास रखने की बात आई तो एक की बीवी की तबीयत ठीक नहीं है और दूसरे का घर छोटा है. हमारे साथ भी इस तरह की अनेक परेशानियां कई बार आईं पर उन परेशानियों का रोना रो कर हम ने तो उन्हें रखने के लिए कभी मना नहीं किया,’’ क्रोध से बिफरते हुए अनु ने कहा.

दिनेश सदा मां के प्रति अपनी जिम्मेदारी से कोई न कोई बहाना बना कर बचता और जब भी दीपेश कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते तो वह बनने से पूर्व ही ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता था. यदि वे मां को साथ ले भी जाना चाहते तो वे कह देतीं, ‘‘बेटा, इस उम्र में अब मुझ से घूमनाफिरना नहीं हो पाएगा. वैसे भी तुम्हारे पिता की मृत्यु के पश्चात मैं ने बाहर का खाना छोड़ दिया है. इसलिए मैं कहीं नहीं जाऊंगी.’’

वे मां को कभी भी अकेला छोड़ कर कहीं जा नहीं पाए और न ही मां ने ही कभी अपने मन से उन्हें कहीं घूमने जाने को कहा. उन्हें याद नहीं आता कि वे कभी अनु को कहीं घुमाने ले गए हों. आज अंकिता ने उन्हें बुलाया है तब भी यही समस्या उठ खड़ी हुई है. पोती को ऐसी हालत में अकेली जान कर इस बार मां ने भी उन्हें जाने की इजाजत दे दी थी लेकिन दिनेश और दीपा के पत्रों ने उन की समस्या को बढ़ा दिया था.

अनु जहां इन पत्रों को पढ़ कर क्रोधित हो उठी थी वहीं मां अपराधबोध से ग्रस्त हो उठी थीं. उन की समस्या को देख कर मां ने आग्रहयुक्त स्वर में कहा था, ‘‘तुम लोग चले जाओ, बेटा, मैं अकेली रह लूंगी, 6 महीने की ही तो बात है, श्यामा नौकरानी मेरे पास सो जाया करेगी.’’

अनु और मां का रिश्ता भले ही कड़वाहट से भरपूर था पर समय के साथ उन में आपस में लगाव भी हो गया था. शायद इसीलिए मां के शब्द सुन कर पहली बार अनु के मन में उन के लिए प्रेम उमड़ आया था किंतु वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे? इस उम्र में उन्हें अकेले छोड़ने का उस का भी मन नहीं था. यही हालत दीपेश की भी थी. एक ओर पुत्री का मोह उन्हें विवश कर रहा था तो दूसरी ओर कर्तव्यबोध उन के पैरों में बेडि़यां पहना रहा था.

अभी वे सोच ही रहे थे कि पड़ोसी रमाकांत ने घर में प्रवेश किया और उन की उदासी का कारण जान कर बोले, ‘‘बस, इतनी सी समस्या के कारण आप लोग परेशान हैं. हम से पहले क्यों नहीं कहा? वे जैसी आप की मां हैं वैसी ही हमारी भी तो मां हैं. आप दोनों निश्ंिचत हो कर बेटी की डिलीवरी के लिए जाइए, मांजी की जिम्मेदारी हमारे ऊपर छोड़ दीजिए. उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी.

6 महीने तो क्या, आप चाहें तो और भी रह सकते हैं, बारबार तो विदेश जाना हो नहीं पाता, अत: अच्छी तरह घूमफिर कर ही आइएगा.’’

रमाकांतजी की बातें सुन कर मांजी का चेहरा खिल उठा, मानो उन के दिल पर रखा बोझ उतर गया हो और उन्होंने स्वयं रमाकांत की बात का समर्थन कर उन्हें जाने के लिए प्रोत्साहित किया.

पुत्री का मोह उन से वह करवा गया था जो वे पिछले 30 वर्षों में नहीं कर पाए थे. 2 दिन बाद ही वे न्यूयार्क के लिए रवाना हो गए. वे पहली बार घर से बाहर निकले पर फिर भी मन में वह खुशी और उमंग नहीं थी. उन्हें लगता था कि वे अपना मन वहीं छोड़ कर कर्तव्यों की बेडि़यों में बंधे जबरदस्ती चले आए हैं. यद्यपि वे हर हफ्ते ही फोन द्वारा मां का हालचाल लेते रहते थे लेकिन उन्हें यही बात बारबार चुभचुभ कर लहूलुहान करती रहती थी कि आवश्यकता के समय उन के अपनों ने उन का साथ नहीं दिया.

यहां तक कि उन की भावनाओं को समझने से भी इनकार कर दिया. वहीं, उन के पड़ोसी मित्र रमाकांत उन की अनुपस्थिति में सहर्ष मां की जिम्मेदारी उठाने को तैयार हो गए. वे समझ नहीं पा रहे थे कौन अपना है कौन पराया, खून के रिश्ते या आपसी आवश्यकताओं को निभाते दिल के रिश्ते…

कैसे हैं ये खून के रिश्ते जिन में एकदूसरे के लिए प्यार, विश्वास यहां तक कि सुखदुख में साथ निभाने की कर्तव्यभावना भी आज नहीं रही है. वे मानवीय संवेदनाए, भावनाएं कहां चली गईं जब एकदूसरे के सुखदुख में पूरा परिवार एकजुट हो कर खड़ा हो जाता था. दिनेश और दीपा उन की मजबूरी को क्यों नहीं समझ पाए. वे अंकिता के पास महज घूमने तो जा नहीं रहे थे कि अपना प्रोग्राम बदल देते या कैंसिल कर  देते. मां सिर्फ उन की ही नहीं, उन दोनों की भी तो हैं. जब वे पिछले 30 वर्षों से उन की देखभाल कर रहे हैं तो मात्र कुछ महीने उन्हें अपने पास रखने में उन दोनों को भला कौन सी परेशानी हो जाती? सुखदुख, हारीबीमारी, छोटीमोटी परेशानियां तो सदा इंसान के साथ लगी रहती हैं, इन से डर कर लोग अपने कर्तव्यों से मुख तो नहीं मोड़ लेते?

न्यूयार्क पहुंचने के 15 दिन बाद ही दीपेश और अनुपमा नानानानी बन सुख से अभिभूत हो उठे. अंकिता की पुत्री आकांक्षा को गोद में उठा कर एकाएक उन्हें लगा कि उन की सारी मनोकामनाएं पूरी हो गई हैं.

अंकिता उन की इकलौती पुत्री थी, उन की सारी आशाओं का केंद्रबिंदु थी. उस का विवाह आशुतोष से इतनी दूर करते हुए बहुत सी आशंकाएं उन के मन में जगी थीं पर अपने मित्र रमाकांत के समझाने व अंकिता की आशुतोष में रुचि देख कर बेमन से विवाह तो कर दिया था पर जानेअनजाने दूरी के कारण उस से न मिल पाने की बेबसी उन्हें कष्ट पहुंचा ही देती थी. लेकिन अब बेटी का सुखी घरसंसार देख कर उन की आंखें भर आईं.

आकांक्षा भी थोड़ी बड़ी हो चली थी अत: आशुतोष और अंकिता सप्ताहांत में उन्हें कहीं न कहीं घुमाने का कार्यक्रम बना लेते. स्टैच्यू औफ लिबर्टी के सौंदर्य ने उन का मन मोह लिया था, एंपायर स्टेट बिल्ंिडग को देख कर वे चकित थे, उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि 102 मंजिली इमारत, वह भी आज से 67-68 वर्ष पूर्व कोई बना सकता है और इतनी ऊंची इमारत भी कहीं कोई हो सकती है.

टाइम स्क्वायर की चहलपहल देख कर लगा सचमुच ही किसी ने कहा है कि न्यूयार्क कभी सोता नहीं है, वहीं मैडम तुसाद म्यूजियम में मोम की प्रतिमाएं इतनी सजीव लग रही थीं कि विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वे मोम की बनी हैं. वहां की साफसफाई, गगनचुंबी इमारतों, चौड़ी सड़कों व ऐलीवेटरों पर तेजी से उतरतेचढ़ते लोगों को देख कर वे अभिभूत थे, वहां जीवन चल नहीं रहा था बल्कि दौड़ रहा था.

आशुतोष और अंकिता ने मम्मीपापा के लिए वाश्ंिगटन और नियाग्रा फौल देखने के लिए टिकट बुक करने के साथ होटल की बुकिंग भी करवा दी थी. उन के साथ वे दोनों भी जाना चाहते थे पर आकांक्षा के छोटी होने के कारण नहीं जा पाए. वाश्ंिगटन में जहां केनेडी स्पेस म्यूजियम देखा वहीं वाइटहाउस तथा सीनेट की भव्य इमारत ने आकर्षित किया. वार मैमोरियल, लिंकन और रूजवैल्ट मैमोरियल ने यह सोचने को मजबूर किया कि यहां के लोग इतने आत्मकेंद्रित नहीं हैं जितना कि उन्हें प्रचारित किया जाता रहा है. अगर ऐसा होता तो ये मेमोरियल नहीं होते.

नियाग्रा फौल की खूबसूरती तो देखते ही बनती थी. हमारे होटल का कमरा भी फैल व्यू पर था. यहां आ कर अनु तो इतनी अभिभूत हो गई कि उस के मुंह से बस एक ही बात निकलती थी, ‘मेरी सारी शिकायतें दूर हो गईं. जिंदगी का मजा जो हम पहले नहीं ले पाए, अब ले रहे हैं. मन करता है इस दृश्य को आंखों में भर लूं और खोलूं ही नहीं.’ उस का उतावलापन देख कर ऐसा लगता था मानो वह 20-25 वर्ष की युवती बन गई है, वैसी ही जिद, प्यार और मनुहार, लगता था समय ठहर जाए. पर ऐसा कब हो पाया है? समय की अबाध धारा को भला कोई रोक पाया है?

देखतेदेखते उन के लौटने के दिन नजदीक आते जा रहे थे. उन्होंने अपने रिश्तेदारों के लिए उपहार खरीदने प्रारंभ कर दिए. एक डिपार्टमैंटल स्टोर से दूसरे डिपार्टमैंटल स्टोर, एक मौल से दूसरे मौल के चक्कर काटने में ही सुबह से शाम हो जाती थी. सब के लिए उपहार खरीदना वास्तव में कष्टप्रद था लेकिन इतनी दूर आ कर सब के लिए कुछ न कुछ ले जाना भी आवश्यक था. वैसे भी विदेशी वस्तुओं के आकर्षण से भारतीय अभी मुक्त नहीं हो पाए हैं. यह बात अनु के बेतहाशा शौपिंग करने से स्पष्ट परिलक्षित भी हो रही थी.

एकदो बार तो दीपेश ने उसे टोका तो वह बोली, ‘‘जीवन में पहली बार तो घर से निकली हूं, कम से कम अब तो अपने अरमान पूरे कर लेने दो, वैसे भी इतनी अच्छी चीजें भारत में कहां मिलेंगी?’’

अब उसे कौन समझाता कि विकेंद्रीकरण के इस युग में भारत भी किसी से पीछे नहीं है. यहां का बाजार भी इस तरह की विभिन्न वस्तुओं से भरा पड़ा है. लेकिन इन्हीं वस्तुओं को हम भारत में महंगी या अनुपयोगी समझ कर नहीं खरीदते हैं.

अंकिता और आशुतोष के सहयोग से खरीदारी का काम भी पूरा हो गया. अंत में रमाकांत और उन की पत्नी विभा के लिए उपहार खरीदने की उन की पेशकश पर अंकिता को आश्चर्यचकित देख कर वे बोले, ‘‘बेटी, वे पराए अवश्य हैं लेकिन तुम यह क्यों भूल रही हो कि इस समय तुम्हारी दादी की देखभाल की जिम्मेदारी निभा कर उन्होंने अपनों से अधिक हमारा साथ दिया है वरना हमारा तुम्हारे पास आना भी संभव न हो पाता. परिवार के सदस्यों के लिए उपहार ले जाना मेरी नजर में रस्मअदायगी है लेकिन उन के लिए उपहार ले जाना मेरा कर्तव्य है.’’

लौटने पर अभी व्यवस्थित भी नहीं हो पाए थे कि भाई दिनेश और बहन दीपा सपरिवार आ गए, क्रोध भी आया कि यह भी नहीं सोचा कि 6 महीने के पश्चात घर लौटने पर फिर से व्यवस्थित होने में समय लगता है. दीपेश के चेहरे पर गुस्सा देख अनु ने उन्हें किनारे ले जा कर धीरे से कहा, ‘‘गुस्सा थूक दीजिए. यह सोच कर खुश होने का प्रयत्न कीजिए कि कम से कम इस समय तो सब ने आ कर हमारा मान बढ़ाया है. आप बड़े हैं भूलचूक माफ कर बड़प्पन दिखाइए.’’

अनु की बात सुन कर दीपेश ने मन के क्रोध को दबाया सकारात्मक सोच से उन का स्वागत किया. खुशी तो उन्हें इस बात पर हो रही थी कि सदा झुंझलाने वाली अनु सब को देख कर अत्यंत खुश थी. शायद, उसे अपने विदेश प्रवास का आंखों देखा हाल सुनाने के लिए कोई तो चाहिए था या इतने दिनों तक घरपरिवार के झंझटों से मुक्त रहने तथा मनमाफिक भ्रमण करने के कारण उस का तनमन खुशियों से ओतप्रोत था और अपनी इसी खुशी में सभी को सम्मिलित कर वह अपनी खुशी दोगुनी करना चाहती थी.

‘‘मैं ने और अनु ने काफी सोचविचार के पश्चात तुम सभी के लिए उपहार खरीदे हैं, आशा है पसंद आएंगे,’’ शाम को फुरसत के क्षणों में दीपेश ने सूटकेस खोल कर प्रत्येक को उपहार पकड़ाते हुए कहा.

अटैची खाली हो चुकी थी. उस में एक पैकेट पड़ा देख कर सब की निगाहें उसी पर टिकी थीं. उसे उठा कर अनु को देखते हुए दीपेश ने कहा, ‘‘यह उपहार रमाकांत और विभा भाभी के लिए है, जा कर उन्हें दे आओ.’’

‘‘लेकिन उन के लिए उपहार लाने की क्या आवश्यकता थी?’’ अम्मा ने प्रश्नवाचक नजरों से पूछा.

‘‘अम्मा, शायद तुम भूल गईं कि तुम्हारे अपने जो तुम्हें कुछ माह भी अपने पास रखने को तैयार नहीं हुए थे, उस समय रमाकांत और उन की पत्नी विभा ने न केवल हमारी समस्या को समझा बल्कि तुम्हारी देखभाल की जिम्मेदारी उठाने को भी सहर्ष तैयार हो गए. अम्मा, तुम्हारी निगाहों में उन की भलमनसाहत की भले ही कोई कीमत न हो या तुम्हारे लिए वे आज भी पराए हों पर मेरे लिए आज रमाकांत पराए हो कर भी मेरे अपनों से बढ़ कर हैं,’’ कहते हुए दीपेश के स्वर में न चाहते हुए भी कड़वाहट आ गई.

अनु उपहार ले कर रमाकांत और विभा भाभी को देने चली गई थी. सच बात सुन कर सब के चेहरे उतर गए थे. दीपेश जानते थे कि उन के अपने उन से उपहार प्राप्त कर के भी खुश नहीं हैं क्योंकि वे उन के प्रेम से लाए उपहारों को पैसे के तराजू पर तौल रहे हैं जबकि रमाकांत और विभा उन से प्राप्त उपहारों को देख कर फूले नहीं समा रहे होंगे क्योंकि उन्हें उन से कोई अपेक्षा नहीं थी. उन्होंने एक मां की सेवा कर मानवीय धर्म निभाया है.

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