Download App

तृष्णा- भाग 2: क्या थी दीपक और दीप्ति की सच्चाई

‘‘भाई, यह क्या समय है घर आने का? अभी तो मैं हूं पर वैसे दीप्ति क्या करती होगी,’’ शिखा ने चिंतित स्वर में कहा. दीपक सीधे अंदर बैडरूम में चला गया और दीप्ति को बांहों में उठा कर ले आया.

‘‘मोटी प्यार तो मैं अब भी उतना ही करता हूं दीप्ति से, बस जिम्मेदारियां सिर उठाने ही नहीं देती,’’ दीपक बोला.

दीप्ति हंसते हुए दीपक के लिए कौफी बनाने चली गई, पर शिखा को इस प्यार में स्वांग अधिक और गरमाहट कम लग रही थी. पर उस ने अधिक तहकीकात करने की जरूरत इसलिए नहीं समझी, क्योंकि उसे खुद पता था कि वैवाहिक जीवन में ऐसे उतारचढ़ाव आते रहते हैं… उसे दोनों की समझदारी पर पूरा भरोसा था.

ये भी पढ़ें- बस एक अफेयर

जब शिखा अपना सामान पैक कर रही थी तो अचानक दीप्ति उस के गले लग कर रोने लगी. उस रोने में एक खालीपन है, यह बात शिखा से छिपी न रह सकी.

‘‘क्या बात है दीप्ति, कुछ समस्या है तो बताओ… मैं उसे सुलझाने की कोशिश करूंगी.’’

‘‘नहीं, आप जा रही हैं तो मन भर आया,’’ दीप्ति ने खुद को काबू करते हुए कहा.

ऐसी ही एक ठंडी रात दीप्ति फेसबुक पर कुछ देख रही थी कि अचानक उस ने एक मैसेज देखा जो किसी संदीप ने भेजा था, ‘‘क्या आप शादीशुदा हैं?’’

भला ऐसी कौन सी महिला होगी जो इस बात से खुश न होगी? लिखा, ‘‘मैं पिछले 15 सालों से शादीशुदा हूं और 2 बेटियों की मां हूं.’’

संदीप ‘‘झूठ मत बोलो,’’ और कुछ दिल के इमोजी…

दीप्ति, ‘‘दिल हथेली पर रख कर चलते हो क्या?’’

संदीप, ‘‘सौरी पर आप खूबसूरत ही इतनी हैं.’’

ऐसे ही इधरउधर की बात करतेकरते 1 घंटा बीत गया और दीप्ति को पता भी नहीं चला. बहुत दिनों बाद उसे हलका महसूस हो रहा था.

अब दीप्ति भी संदीप के साथ चैटिंग में एक अनोखा आनंद का अनुभव करने लगी. अब उतना खालीपन नहीं लगता था.

संदीप दीप्ति से 8 वर्ष छोटा था और देखने में बेहद आकर्षक था. संदीप जैसा आकर्षक युवक दीप्ति के प्यार में पड़ गया है, यह बात दीप्ति को एक अनोखे नशे से भर देती थी.

दीप्ति अपने रखरखाव को ले कर काफी सहज हो गई थी… कभीकभी तो युवा और आकर्षक दिखने के चक्कर में वह हास्यास्पद भी लगने लगती.

आज दीप्ति को संदीप से मिलने जाना था. वह जैसे ही औफिस में पहुंची, लोग उसे आश्चर्य से देखने लगे. काली स्कर्ट और सफेद शर्ट में वह थोड़ी अजीब लग रही थी. उस के शरीर का थुलथुलापन साफ नजर आ रहा था. जब वह संदीप के पास पहुंची तो संदीप भी कुछ देर तक तो चुप रहा, फिर बोला, ‘‘आप बहुत सैक्सी लग रही हो, एकदम कालेजगर्ल.’’

दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. कार में बैठ कर संदीप अपना संयम खोने लगा तो दीप्ति ने भी उसे रोकने की कोशिश नहीं करी. कब दीप्ति संदीप के साथ उस के फ्लैट पहुंच गई, उसे भी पता न चला. भावनाओं के ज्वारभाटा में सब बह गया. पर दीप्ति को कोई पछतावा न था, क्योंकि इस खुशी और शांति के लिए वह तरस गई थी.

कपड़े पहनती हुई दीप्ति से संदीप बोला, ‘‘अब सेवा का मौका कब मिलेगा.’’

दीप्ति मुसकराते हुए बोली, ‘‘तुम बहुत खराब हो.’’

शुरूशुरू में दीपक और दीप्ति दोनों ही आसमान में उड़ रहे थे पर उन

के नए रिश्ते की नीव ही भ्रम पर थी. कुछ पल की खुशी फिर लंबी तनहाई और खामोशी.

आज संदीप का जन्मदिन था. दिप्ति उसे सरप्राइज देना चाहती थी. सुबह ही वह संदीप के फ्लैट की तरफ चल पड़ी. उपहार उस ने रात में ही ले लिया था.

5 मिनट तक घंटी बजती रही, फिर किसी अनजान युवक ने दरवाजा खोला, ‘‘जी कहिए, किस से मिलना है आंटी?’’

दीप्ति बहुत बार आई थी पर संदीप ने कभी नहीं बताया था कि वह फ्लैट और लोगों के साथ शेयर कर रहा है. बोली, ‘‘जी, संदीप से मिलना है,’’

तभी संदीप भी आंखें मलते हुए आ गया और कुछ रूखे स्वर में बोला, ‘‘जी मैडम बोलिए. क्या काम है… पहले भी बोला था बिना फोन किए मत आया कीजिए.’’

ये भी पढ़ें- अन्यपूर्वा: क्यों राजा दशरथ देव ने विवाह न करने की शपथ ली?

दीप्ति कुछ न बोल पाई. जन्मदिन की शुभकामना तक न दे पाई, गिफ्ट भी वहीं छोड़ कर बाहर निकल गई.

जातेजाते उस के कानों में यह स्वर टकरा गया, ‘‘यार ये आंटी क्या पागल हैं, जो तुझ से मिलने सुबहसुबह आ गईं.’’

संदीप ने पता नहीं क्या कहा पर एक सम्मिलित ठहाका उसे अवश्य सुनाई दे रहा था जो दूर तक उस का पीछा करता रहा. वह दफ्तर जाने के बजाय घर आ गई और बहुत देर तक अपने को आईने में देखती रही. हां, वह आंटी ही तो है पर सब से अधिक दुख उसे इस बात का था कि संदीप ने उसे अपने दोस्तों के आगे पूरी तरह नकार दिया था.

1 हफ्ते तक दीप्ति और संदीप के बीच मौन पसरा रहा पर फिर अचानक एक दिन एक मैसेज आया, ‘‘जान, आज मौसम बहुत बेईमान है. आ जाओ फ्लैट पर.’’

सिसकी- भाग 4: रानू और उसके बीच कैसा रिश्ता था

Writer- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

मुन्नीबाई ने किसी को कुछ नहीं बताया. उस ने दोतीन बार महेंद्र को फोन लगाया, तब जा कर महेंद्र से ही बात की, ‘मैं कामवाली बाई बोल रही हूं. आप के भाई सहेंद्र साहब और भाभी रीना साहिबा का कोरोना के चलते निधन हो गया है. अभी अस्पताल से फोन आया था.’

‘तो, मैं क्या करूं?’ दोटूक जवाब दे दिया महेंद्र ने.

‘साहब जी, यहां तो केवल बच्चे ही हैं और पिताजी की तबीयत वैसे भी ठीक नहीं हैं, इसलिए मैं ने उन्हें कुछ नहीं बताया है.’

‘हां, तो बता दो,’ महेंद्र के स्वर में अभी भी कठोरता ही थी.

‘आप कैसी बात कर रहे हैं साहबजी, मैं अकेली बच्चों को संभालूंगी कि पिताजी को? आप आ जाएं तो फिर हम बता देंगे.’

‘मैं नहीं आ रहा. तुम को जो अच्छा लगे, सो कर लो,’ महेंद्र ने फोन काट दिया. मुन्नीबाई की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. उस के पास सहेंद्र की बहन का फोन नंबर भी था. उस ने उन से भी बात कर लेना बेहतर समझा. ‘दीदी, सहेंद्र साहब और रीना जी का निधन अस्पताल में हो गया है.’

‘तुम कौन बोल रही हो?’

‘मैं कामवाली बाई हूं, बच्चों की देखभाल के लिए यहीं रुकी हूं.’

‘ओह अच्छा, कहां मौत हुई है उन की- घर में कि अस्पताल में?’

‘अस्पताल में हुई है, वहीं से अभी फोन आया था.’

‘अच्छा, सुन कर बहुत दुख हुआ,’ उस के स्वर में दुख झलका भी.

‘मैडम जी, अभी मैं ने यहां किसी को बताया नहीं है. आप आ जाएं, तो बता देंगे.’

‘मैं कैसे आ सकती हूं, मैं नहीं आ पा रही, कोरोना चल रहा है.’

‘फिर, मैं क्या करूं?’ मुन्नीबाई के स्वर में निराशा झलक रही थी.

‘वह मैं कैसे बता सकती हूं कि तुम क्या करो.’

‘मैडम जी, अभी तो साहब की डैडबाडी भी अस्पताल में ही है.’

‘कोरोना मरीजों की डैडबाडी परिवार को देते कहां हैं.’

‘पर वे तो कह रहे थे कि अंतिम संस्कार कर लो आ कर.’

परिणाम: पाखंड या वैज्ञानिक किसकी हुई जीत?

‘कहने दो, हम नहीं जाएंगे तो वे अंतिम संस्कार कर देंगे. वैसे, तुम ने महेंद्र भैया से बात की थी क्या?’

‘हां, की थी. उन्होंने भी मना कर दिया है.’

‘तो फिर रहने दो, जैसी प्रकृति की मरजी.’

‘पर मैडम जी के भाई भी हैं और आप बहन भी हैं, आप लोगों को आ कर अंतिम क्रियाकर्म करना चाहिए,’ मुन्नीबाई की झुंझलाहट बढ़ती जा रही थी.

‘अब तुम मुझे मत सिखाओ कि हमें क्या करना चाहिए.’ और बहन ने फोन काट दिया था.

मुन्नीबाई बहुत देर तक मोबाइल पकड़े, ‘हलो…हलो…’ करती रही.

मुन्नीबाई ने पिताजी को सारा घटनाक्रम बता दिया था और वह करती भी क्या, उस के पास कोई विकल्प रह ही नहीं गया था. पिताजी ने सुना तो वे दहाड़ मार कर रोने लगे. उन्हें रोता देख चिन्टू भी रोने लगा. उसे अभी तक कुछ समझ में नहीं आ रहा था. वह बहुत देर से मुन्नीबाई के कांधों से चिपका सारी बातें तो सुन रहा था पर समझ कुछ नहीं पा रहा था. रानू दूर खेल रही थी. उस ने जब रोने की आवज सुनी तो वह दौड़ कर मुन्नीबाई की गोद में जा कर बैठ गई. अस्पताल से फिर फोन आया. मुन्नीबाई ने सारी परिस्थितियां उन्हें बता दीं

‘साहब जी, हमारे घर में कोई नहीं है जो अंतिम संस्कार कर सके.’

‘पर अस्पताल को पैसे भी लेने हैं, तुम कौन बोल रही हो?’

‘मैं तो कामवाली बाई बोल रही हूं.’

‘‘घर में और कोई नहीं है?’

‘2 छोटेछोटे बच्चे हैं, बस.’

‘देखो, हम बगैर अपना पैसा लिए डैडबाडी तो देंगे नहीं और न ही उस का क्रियाकर्म करेंगे. वो ऐसे ही रखी रहेगी.’

‘अब वह आप जानें. आप डैडबाडी से ही पैसा वसूल लें,’ कह कर मुन्नी ने फोन काट दिया. दोबारा फोन की घंटी बजी पर मुन्नीबाई ने फोन नहीं उठाया.

मुन्नीबाई को समझ में नहीं आ रहा था कि वह बच्चों को और पिताजी को कैसे संभाले.

अस्पताल से फिर फोन आया. अब की बार उन्होंने दूसरे नंबर से फोन किया था. मुन्नीबाई को लगा कि हो सकता है कि साहबजी के किया हो, किसी रिश्तेदार का फोन हो, इसलिए उठा लिया.

ये भी पढ़ें- परिणाम: पाखंड या वैज्ञानिक किसकी हुई जीत?

‘देखो, आप को अस्पताल के पैसे तो देने ही होंगे.’

‘नहीं दे सकते, साहबजी और मेमसाहब दोनों का देहांत हो चुका है, तो पैसे कौन देगा.’

‘उन के परिवार में और कोई नहीं है क्या, उन से बात कराओ?’

‘कोई नहीं हैं. जो हैं वे भी मर गए, समझ लो,’ मुन्नीबाई की आवाज में तल्खी थी.

‘देखो, वह हम नहीं जानते. आप लोग आ जाएं और हमारा हिसाब चुकता कर दें.’

‘वो मैं ने बताया न, कि मैं तो यहां काम करने वाली बाई हूं, घर में कोई नहीं है.’

‘हमें इस से कोई मतलब नहीं है. आप पैसे दो और डैडबाडी उठाओ यहां से.’

मुन्नीबाई कुछ नहीं बोली. उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह जवाब क्या दे.

‘यदि आप ने हमारे अस्पताल की रकम नहीं चुकाई तो हम आप के घर वसूली करने वालों को भेज देंगे, फिर आप जानो यदि वे कोई गुंडागर्दी करते हैं तो…’

ये भी पढ़ें- शापित: रोहित के गंदे खेल का अंजाम क्या हुआ

मुन्नीबाई फिर भी चुप ही रही. अस्पमाल वाला कर्मचारी बहुत देर तक ऐसे ही धमकाता रहा. कोई जवाब नहीं मिला तो उस ने फोन रख दिया.

डैडबाडी नहीं लाई जा सकी. पिताजी बहुत देर तक रोते रहे. फिर चुप हो गए. पर चिन्टू को संभाल पाना मुन्नीबाई के लिए कठिन हो रहा था.

इस बौलीवुड एक्ट्रेस ने जिम में उठाया 80 किलो का वजन, देखें Video

‘नकाब’,’बब्बर’,‘खट्टामीठा’,,‘आक्रोश’ व ‘चक्रधर’ जैसी फिल्मों और सीरियल ‘‘अम्मा’’ की अदाकारा तथा फिल्म निर्माता व अभिनेता सचिन जोशी की पत्नी उर्वशी शर्मा इन दिनों जिम में घंटों-घंटो तक पसीना बहा रही हैं. कोरोना काल में उर्वशी शर्मा का एकमात्र मकसद खुद को फिट रखना ही रहा. अभी भी अपने परिवार से समय निकालकर उर्वशी जिम में वर्क आउट जरुर करती हैं. वैसे उर्वशी शर्मा का दावा है कि वह बहुत जल्द अभिनय मे वापसी करने जा रही है. मगर महज अभिनय में वापसी के लिए वह जिम में पसीना नहीं बहा रही हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Urvashi Sharrma (@urvashiamrrahs)

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Urvashi Sharrma (@urvashiamrrahs)

उर्वशी शर्मा अपने फिटनैस के इस शौक को छिपाने की बजाए आए दिन सोशल मीडिया पर अपने फिटनेस के वीडियो पोस्ट कर अपने फैंस को सरप्राइज करती रहती हैं. हाल ही में सोशल मीडिया पर उर्वशी की एक पोस्ट तहलका मचा रही हैं जहाँ पर वह 80 किलो का वजन उठा कर स्कॉट करते हुए नजर आ रही हैं. बड़ी ही सहजता से उर्वशी लोहे के इस 80 किलो वेट लिफ्टर को बैलेंस कर रही हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Urvashi Sharrma (@urvashiamrrahs)

ज्ञातब्य है कि सचिन जोशी से शादी करने के बाद उर्वशी बौलीवुड में नजर नहीं आयीं. बीच में एक सीरियल में वो जरुर अभिनय करते हुए नजर आयी थीं. लेकिन वह पति सचिन जोशी के होम प्रोडक्शन और उनके काम काज में हाथ बटाने के साथ ही बच्चों की भी देखभाल करती हैं. इसके अलावा अपनी सेहत को वह सबसे ऊपर रखती हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Urvashi Sharrma (@urvashiamrrahs)

उर्वशी की तरह बॉलीवुड सेंसेशन मलाइका अरोड़ा भी हैं, जो अपने डेली हेल्थ रूटीन को मेन्टेन करती हैं. मलाइका भी जिम में घंटो पसीने बहाती हैं.ताकि उनका चार्म बरकरार रह सके. हालांकि मलाइका, उर्वशी से उम्र और अनुभव दोनों में बड़ी हैं.लेकिन फिटनेस के मामले में दोनों का जवाब नही. शायद इन्ही सबसे प्रेरणा लेकर आज की युवा अदाकारा भी फिटनेस को अपनी जिंदगी का सबसे अहम हिस्सा मानने लगी हैं.

‘बुके नहीं बुक उपहार में दीजिये’- मुकेश मेश्राम, प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति

किताबों के पढने से जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आता है. इससे न केवल अच्छी सोंच का विकास होता है बल्कि जीवन में आने वाली कठिनाईयों का मुकाबला कैसे किया जाय इसकी क्षमता का भी विकास होता है. वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी (आईएएस) और उत्तर प्रदेश  के पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में कार्यरत मुकेश मेश्राम के करियर को देखे तो जीवन में किताबों के महत्व का पता चलता है. मुकेश मेश्राम मध्य प्रदेश  के बालाघाट जिले के वनग्राम बोरी गांव के रहने वाले है. इनके पिता प्राइमरी स्कूल में अध्यापक और मां खेतों में काम करती थी. मुकेश मेश्राम अपने घर से 5 किलोमीटर दूर स्कूल में पढने जाते थे. पढाई में अच्छे होने के कारण ग्रामीण प्रतिभा खोज परीक्षा की छात्रवृत्ति में तीसरी रैंक पाकर अच्छे स्कूल में दाखिला मिला. वहां से शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढे.

भोपाल के मौलाना आजाद टेक्नलौजी कालेज से आर्किटेक्ट में बीआर्क किया. आईआईटी रूढकी से एमआर्क करने के बाद इसरों में सांइटिस्ट के रूप में अपना कैरियर शुरू किया. वहां से भोपाल के मौलाना आजाद कालेज औफ टेक्नॉलौजी में प्राध्यापक के रूप में तैनात हो गये. जहां से उन्होने सिविल सर्विसेज की तैयारी की. पहली बार असफल होेने के बाद हार नही मानी. 1995 में वह सविल सर्विसेज में चुने गये. जम्मू-कश्मीर  कैडर मिला. 1998 में वह उत्तर प्रदेश आये और यहां विभिन्न प्रशासनिक पदों पर रहते खुद की एक अलग पहचान बनाई. आज भी उनके जीवन में बेहद सरलता और सहजता है. वे घूमने फिरने, कविताएं लिखने व किताबे पढने का शौक  रखते है. चिडियों के कलरव व नदियो के कलकल ध्वनि को सबसे अच्छा संगीत मानते है. मुकेश मेश्राम का व्यकितत्व इंजीनियरिग और कला साहित्य का अदभुत संगम है. पेश है उनके साथ एक खास बातचीत के प्रमुख अंश :-

सवाल  – आपका बचपन बहुत संघर्षपूर्ण और रोमांचक रहा है. आगे बढने में किन चीजों ने मदद की?

जवाब- हमारे पिता जी स्कूल टीचर थे. वह घर से 10-12 किलोमीटर दूर पढाने के लिये जाते थे. उस समय स्कूल टीचर का वेतन बहुत नहीं होता था. हम 5 भाई और 4 बहने थे. ऐसे में बहुत परेशानी थी. मेरी मां खेतों में काम करने जाती थी जिससे घर की आर्थिक मदद हो सके. हमने मेहनत से पढाई की. 8 कक्षा के बाद स्कालरशिप के लिये ग्रामीण प्रतिभा खोज परीक्षा पास की. वहां से खुद से आत्मनिर्भर बनाना षुरू किया. हम स्कूल में पढाई के साथ ही साथ दूसरे काम करते थे. प्रकृति से लगाव था तो गांव में ‘प्रेरणा बाल सभा’ बनाई. जिसके जरिये पौधे लगाने और कल्चरल कार्यक्रम करने लगे. मुझे कहानी और कविता लेखन का शोक था. इसमें मुझे राज्यस्तरीय पुरस्कार भी मिले. किताबों और अपने मातापिता का सहयोग आगे बढाने मे मददगार रहा.

सवाल  – स्कूल से जब आप कालेज पहंुचे तो वहां पत्रिका का प्रकाशन भी शुरू किया?

जवाब- आर्किटैक्चर की पढाई के पहले साल में ही 16 वर्ष की उम्र में हमने एक पत्रिका ‘सुबास’ नाम से शुरू की. जिसमें विज्ञान, साहित्य, क्विज के साथ ही साथ युवाओं और बच्चों को लेकर जो भी फैसले सरकार करती थी उसको प्रकाशित किया जाता था. इसका आरएनआई रजिस्ट्रेशन भी कराया था. हमने तमाम बडे साहित्यकारों से संपर्क किया. इसके लिये उन सबने लिखा. 3 साल यह पत्रिका प्रकाशित हुई. हमारे साथी इसमें सहयोग देते थे. जब बीआर्क के 4 साल में पहुंचे पढाई में ज्यादा वक्त देने लगे तो यह पत्रिका बंद हो गई. इस पत्रिका को लोग बहुत पसंद करते थे. संपादक के नाम इतने पत्र आते थे कि पोस्ट ऑफिस वालों ने हमारे लिये अलग बॉक्स लगवा दिया था.

सवाल  – ‘आर्किटेक्ट’ से सिविल सर्विसेज मेे कैसे जाना हुआ?

जवाब- बीआर्क के बाद एमआर्क करने के बाद मैं जॉब करने लगा. पहले दिल्ली में फिर इसरों में. इसके बाद भोपाल में रीजनल इंजीनियरिंग कालेज में पढाते वक्त मुझे साथियों ने प्रोत्साहित किया कि सिविल सर्विस की परीक्षा मुझे देनी चाहिये. पहली बार सफल नहीं हुये. हमने इतिहास विषय लिया था. तैयारी पूरी नहीं थी. इसके बाद दूसरी बार में सफल हुये और 1995 में सिविल सर्विस में आ गया. वहा से बहुत सारे पदो पर काम करने का मौका मिला. समाज को अलग तरह से देखने और समझने के साथ ही साथ उनके लिये कुछ करने का मौका मिला. जिससे मन को सुकून मिलता है.

सवाल  – आमतौर पर कहा जाता है कि हिंदी बोलने और लिखने वाले लोग इस परीक्षा में बहुत सफल नहीं होते. आपकी क्या राय है?

जवाब- ऐसा नहीं है. अगर हम आंकडों को देखे तो अब तक सिलेक्ट हुए  26 फीसदी लोग उत्तर प्रदेश और बिहार से आते है. जो हिंदी बेल्ट कही जाती है. सिविल सर्विस में हर किसी को भी अवसर मिलता है. अगर वह अपने विषय का अच्छा जानकार हो. अच्छे से पढने वाले इस परीक्षा को पास कर लेते है. किताबों और अनुभव से जो ज्ञान मिलता है. वह इस कैरियर में आगे बढाने में मदद करता है. हमंेे लगता है कि लोगो को उपहार में बुके की जगह बुक देनी चाहिये. इससे लोग पढेेगे और समझदार बनेगे.

सवाल  – आप पतिपत्नी दोनो ही प्रशासनिक सेवा में है. कैसे तालमेल होता है?

जवाब- हम घर में कभी ऑफिस का काम नहीं ले जाते. एक दूसरे के काम का सम्मान करते है. इस तरह से जब समझदारी से काम होता है तो कोई दिक्कत नहीं आती है.

सवाल  – आपकी और हॉबीज क्या है?

जवाब- पर्यटन, स्केचिंग, म्यूजिक सुनने का शौक  है. मैं अक्सर इसके लिये प्राकृतिक जगहों पर पर्यटन करता हॅू.

दर्द का रिश्ता : भाग 2

लेखिक डा. रंजना जायसवाल

अपूर्वा इन दिनों चुप सी रहने लगी थी. समर जानता था उस चुप्पी की वजह पर उस चुप्पी को तोड़ कर उस तक पहुंच पाना इन दिनों उसे मुमकिन लग रहा था.

घर के कामों को निबटा कर अपूर्वा कमरे में दाखिल हुई,”सो गए क्या?” “नहीं तो…तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था.” “कुछ कहना था तुम से..!” “हां बोलो, तुम्हें बात करने के लिए कब से इजाजत की जरूरत पड़ गई.” कमरे की लाइट बंद थी पर चांदनी रात में रौशनी परदे से छन कर आ रही थी. कमरे के बाहर नीम की डालियों पर चांद अटका हुआ था. हवा से उड़ते परदे से लुकाछिपी करती रौशनी में अपूर्वा का चेहरा साफसाफ दिखाई दे रहा था. इन बीते  1 महीने में उस का नूर न जाने कहां खो गया था. हिरनी सी आंखों की चंचलता न जाने कुलांचे मारते उदासी के किस अरण्य में गुम हो गई थी.रूखेसूखे बाल, माथे पर एक छोटी सी बिंदी, समर न जाने क्यों हिल सा गया. अपूर्वा सिर्फ उस की पत्नी नहीं…उस का प्यार… उस की दोस्त भी थी. वह उस का दर्द अच्छी तरह से समझता था… आखिर उस दर्द को पिछले साल उस ने भी तो झेला था.

शायद ही कोई ऐसा दिन हो जब अपूर्वा ने अपनी मां से बात न की हो.औफिस हो या घर ठीक 11 बजे उसे मां को फोन करना ही होता था. मां को भी आदत सी हो गई थी. 10-15 मिनट भी आगेपीछे होता तो वे खुद ही फोन कर देतीं, कई बार तो घबरा कर उन्होंने समर को भी फोन मिला दिया था.

“समर बेटा, सब ठीक है न? अपूर्वा का आज फोन नहीं आया, कहीं तुम लोगों की…” और समर खिलखिला कर हंस पड़ता,”मम्मी, मुसीबत मोल लेनी है क्या मुझे, आप की बेटी से कोई लड़ सकता है क्या?” “वह आज उस का फोन नहीं आया न… कई बार मिला चुकी हूं, पता नहीं क्यों बंद बता रहा है.”

” दरअसल, वह मीटिंग में होगी, आज उस की कोई महत्त्वपूर्ण मीटिंग थी इसलिए फोन बंद है. आप चिंता न करें जैसे ही फ्री होती है मैं उस से कहता हूं आप से बात करने के लिए…” “ठीक है बेटा.”

और वे खट से फोन काट देतीं, कभीकभी बड़ा अजीब लगता था.आखिर यह मांबेटी रोजरोज क्या बात करती होंगी. अपूर्वा टूट सी गई थी, मां के अंतिम दर्शन करने की अनुमति नहीं मिली थी. उसे हमेशा यही लगता बस फोन की घंटी बजेगी और मां बोलेगी… “अप्पू, कहां थी बेटा सब ठीक है न..”

पर मां नहीं थी, कही नहीं थी. वे तो सफेद बादलों के पार सारे बंधन तोड़ कर दूर बहुत दूर चली गई थी. क्या इतना आसान था उन का जाना… अस्पताल में मुंह में मास्क लगाए अपनी उखड़ती हुई सांसों को संभालने की उन की नाकाम कोशिश ने उन के हौसले को टूटने नहीं दिया था पर उन की सांसों की लड़ी एक दिन टूट ही गई.

हर बार वह यही कहती,”समर बेटा, अपूर्वा को संभालो, मैं बिलकुल ठीक हूं. जल्दी घर वापस आ जाऊंगी. फिर हम सब बोटिंग करने चलेंगे, अब यहां घाट पर बहुत साफ सफाई रहने लगी है.” उन्हें क्या पता था हम नाव पर जाएंगे उन के साथ पर उन के जीवित रहते नहीं उन की मौत के बाद… अपूर्वा हमेशा बताती थी कि मां बहुत अच्छा तैरना जानती थीं. मां आज भी तैर रही थीं इस क्षणभंगुर दुनिया को छोड़ कर सारे बंधन को तोड़ कर वे पानी के प्रवाह के साथ दूर बहुत दूर तैरती बहती जा रही थीं. समर विचारों के भंवर में डूबउतर रहा था. इंसान जीवनभर ख्वाहिशों के बोझ तले डूबताउतराता रहता है, देखा जाए यह ख्वाहिशों का बोझ उतर जाए तो वह ऐसे ही पानी में उतराता रहेगा जैसे आज मम्मीजी के अस्थि अवशेष पानी पर तैर रहे थे. न जाने क्या सोच कर समर की आंखें भर आई थीं. पिछले साल इसी तरह उस ने नदी के शीतल जल में अपने पापा के अवशेष को इन्हीं हाथों से प्रवाहित किया था.

लौबी में लगी घड़ी ने 11 बजने का संकेत दिया. अपूर्वा की आंखें घड़ी की तरफ चली गई और उस की आंखों से आंसू की बूंदें टपक गईं. “समर, कल मैं पापा के पास जा रही हूं.” “यों अचानक… अपूर्वा इस माहौल में घर से निकलना ठीक नहीं, मैं 2 लोगों को खो चुका हूं. बस अब और नहीं…”

 

“समर, वह पापा…” “क्या हुआ अपूर्वा, सब ठीक है न? अभी परसों ही तो बात हुई थी मेरी उन से…”समर न जाने क्यों बेचैन हो गया, वह अपूर्वा के पास सरक आया. उस ने अपूर्वा के हाथों को अपने हाथों में ले लिया. अपूर्वा की रूलाई छूट गई.”समर, वह आज बगल वाली जूली आंटी का फोन आया था.”

“जूली आंटी? तो क्या हुआ कोई खास बात?””आज सुबह चाय बनाते वक्त पापा के हाथों से गरम चाय का भगोना छूट गया.””अरे…जले तो नहीं?””हाथ पर फफोला पड़ गया है.””ओह…””आज शाम पापा से बात हुई, जानते हो वे क्या कह रहे थे…”समर ने अपूर्वा के चेहरे की तरफ ध्यान से देखा.

“तेरी मां ने कभी मुझे 1 पानी का गिलास भी नहीं उठाने दिया और आज देख मेरी क्या दशा हो रही है.आज तेरी मां की बहुत याद आ रही.इस से अच्छा होता कि मैं भी उन के साथ चला गया होता.”अपूर्वा फूटफूट कर रो पड़ी, समर की आंखें भीग गईं.”समर, मैं उन्हें इस हाल में अकेला नहीं छोड़ सकती. मैं कल उन्हें लेने जा रही.”

समर के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं, मां का व्यवहार देख कर वह सोच नहीं पा रहा था कि इस बात को वह किस तरीके से लेंगी. अपूर्वा समर के चेहरे को देख कर उस की मनोस्थिति को समझ गई थी. वह जानती थी कि मम्मीजी को मनाना इतना आसान नहीं था पर निर्णय तो लेना ही था. आखिर पापा को यों अकेले नहीं छोड़ सकती थी.

“समर, आप यहां संभाल लेना, मैं ने ड्राइंगरूम के बगल वाला कमरा ठीक कर दिया है. पापा अब वहीं रहेंगे.” “और मां?”

लेन नं 5: क्या कोई कर पाया समस्या का समाधान

लेखिका – सुधा थपलियाल 

पानी बरसने के कारण पूरी गली पानी से भरी हुई थी. गली में कहींकहीं ईंटें पड़ी हुई थीं. निर्मलजी एक हाथ में सब्जी का थैला पकड़े व दूसरे में छाता संभाले उन्हीं पर चलने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक तेजी से आती मोटरसाइकिल पर सवार 2 लड़कों ने उन के सारे प्रयास पर पानी फेर दिया.

निर्मलजी चिल्लाए, ‘‘दिखाई नहीं देता क्या?’’

लड़के अभद्रता से हंसते हुए निकल गए.

‘‘मैं अभी गली के सभी लोगों से मिलता हूं, सारे के सारे सोए हुए हैं,’’ निर्मलजी गुस्से से बुदबुदाए.

लेन नं. 5 में संभ्रांत लोगों का निवास था. वे न केवल उच्च शिक्षित थे वरन उच्च पदों पर भी आसीन थे. कुछ तो विदेशों में भी सर्विस कर चुके थे. पिछले वर्ष सीवर लाइन डालने के लिए गली खोदी गई थी. सीवर लाइन पड़े भी अरसा हो गया था, मगर गली अब भी ऊबड़खाबड़ पड़ी थी. जगहजगह ईंटों व मिट्टी के ढेर लगे थे. पानी का सही निकास न होने के कारण बरसात के दिनों में गली पानी से लगभग भर जाती थी, जिस कारण चलना मुश्किल हो जाता था.

‘‘आइएआइए निर्मलजी,’’ घंटी बजने पर उन्हें दरवाजे पर खड़ा देख सुभाषजी बोले.

‘‘अरे सुनती हो, 1 कप चाय भेजना, निर्मलजी आए हैं,’’ सुभाषजी पत्नी अनीता को आवाज दे कर निर्मलजी की ओर उन्मुख हो कर बोले, ‘‘कहिए, आज कैसे आने का कष्ट किया?’’

‘‘आप तो गली का हाल देख ही रहे हैं,’’ सुबह हुए हादसे का असर अभी भी दिमाग पर छाया हुआ था. अत: जबान पर उस की कड़वाहट आ ही गई.

‘‘मैं भी परेशान हूं. 1 साल से गली का यह हाल है. पहले खुदी तब परेशान हुए, अब बन नहीं रही है,’’ सुभाषजी भी अपनी भड़ास निकालते हुए बोले.

‘‘ऐसा है, सभी लेन के लोगों को बुला कर मीटिंग करते हैं, नगर निगम के औफिस जा कर शिकायत दर्ज कराते हैं, तभी कुछ होगा.’’

‘‘आप बिलकुल सही कह रहे हैं,’’ निर्मलजी की बात का समर्थन करते हुए सुभाषजी बोले.

ये भी पढ़ें- असली चेहरा: अवंतिका से क्यों नफरत करने लगी थी उसकी दोस्त

‘‘क्या कह रहे थे निर्मलजी?’’ उन के जाने के बाद सुभाषजी की पत्नी अनीता ने पूछा.

‘‘वही गली के बारे में कह रहे थे,’’ अखबार में नजर गड़ाए सुभाषजी बोले.

‘‘आप उन से कहते कि पहले अपने नौकर को तो समझाएं, जो रोज कूड़ा हमारे घर के सामने फेंक जाता है,’’ अनीताजी ने भी अपनी भड़ास निकालते हुए कहा.

‘‘तुम फिर शुरू हो गईं,’’ झुंझला कर अखबार एक तरफ फेंक कर सुभाषजी बोले.

‘‘क्या बात है, कर्नल विक्रमजी नहीं दिखाई दे रहे हैं,’’ शाम को मीटिंग के लिए एकत्र होने पर उन्हें उपस्थित न देख कर निर्मलजी व्यंग्य से बोले.

‘‘कहीं उठा रहे होंगे रास्ते से कूड़ा,’’ सुभाषजी ने कहा तो सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े.

‘‘अरे भई, उन से कहो यह कैंट नहीं है, जहां सिर्फ आर्मी के लोग रहते हैं. यहां सभी का आनाजाना लगा रहता है. कितनी भी कोशिश कर लो, यह लेन ऐसी ही गंदी रहेगी.’’

मीटिंग शुरू हुई. सभी लोग न केवल गली के हाल से परेशान थे वरन एकदूसरे के व्यवहार से भी क्षुब्ध थे. कोई किसी के पानी के अपने गेट के पास इकट्ठा होने से परेशान था, कोई गली गंदी करने के कारण से, कोई किसी के आचरण से, कोई बच्चों की गेंद बारबार घर आने से, तो कोई अपने गेट के पास किसी की गाड़ी की पार्किंग से.

‘‘मैं तो रोज एक शिकायती पत्र ईमेल करता हूं, मेयर साहब को,’’ विदेश में 10 वर्ष रह चुके दिनेशजी बोले.

उन पर विदेशी अनुभव पूरी तरह छाया हुआ था, अपनी मातृभूमि का प्रभाव कहीं नजर नहीं आ रहा था.

‘‘आप ईमेल की बात करते हैं. आप तो सशरीर भी उन के सामने उपस्थित हो जाएं तब भी वे आप को न पढ़ें,’’ निर्मलजी की बात पर फिर सब हंसने लगे.

‘‘तभी तो इस देश का कुछ नहीं हो रहा,’’ खीज कर चिरपरिचित जुमला हवा में उछालते हुए दिनेशजी बोले.

अंत में यह तय हुआ कि एक शिकायती पत्र लिख कर उस पर सब के हस्ताक्षर करा कर नगर निगम के औफिस जा कर जमा कराया जाए. पत्र को निर्मलजी और सुभाषजी ले कर जाएंगे. कारण, दोनों सेवानिवृत्त थे और दोनों के पास पर्याप्त समय था इन कार्यों को करने का.

अगले दिन निर्मलजी और सुभाषजी पत्र ले कर कर्नल विक्रमजी के घर पहुंचे, ‘‘आप मीटिंग में उपस्थित नहीं थे. हम सब एक शिकायती पत्र पर सब के हस्ताक्षर करा कर नगर निगम के औफिस में जमा करा रहे हैं. उसी संबंध में आप से इस पत्र पर हस्ताक्षर कराने आए हैं,’’ गर्व से निर्मलजी बोले.

‘‘बहुत अच्छा किया,’’ कह कर विक्रमजी ने हस्ताक्षर कर दिए.

शिकायती पत्र को नगर निगम के कार्यालय में दिए 1 महीने से ऊपर समय बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी. जब भी उन के पास जाते एक ही जवाब सुनने को मिलता कि फंड नहीं है.

प्रशासन को कोसते हुए लेन नं. 5 के निवासियों की सहनशक्ति दिनबदिन कम होती जा रही थी.

‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे होती है हमारे घर के पास कूड़ा फेंकने की?’’ सुभाषजी की पत्नी अनीताजी दहाड़ते हुए बोलीं.

एकाएक हुए इस आक्रमण से निर्मलजी का नौकर सकपका गया.

‘‘जब देखो तब कूड़ा हमारे घर के पास फेंक देता है,’’ रात के 10 बजे अनीताजी की बुलंद आवाज से आसपास के सभी लोग घरों से बाहर निकल आए.

‘‘आप के घर के पास कहां फेंका? आप बिना वजह नाराज हो रही हैं,’’ निर्मलजी की पत्नी आशा नाराजगी से बोलीं.

‘‘आप जरा देखिए…आप ने अपने नौकर को इतने भी मैनर्स नहीं सिखा रखे.’’

‘‘आप ज्यादा मैनर्स की बातें न करें तो अच्छा रहेगा.’’

‘‘क्या कहा?’’

ये भी पढ़ें- थैंक्यू अंजलि: क्यों अपनी सास के लिए फिक्रमंद हो गई अंजलि

‘‘और नहीं तो क्या. आप के पोते, जो इतना शोर मचाते हुए खेलते हैं…कई बार गेंद हमारे घर आती है. गेंद के लिए जब देखो तब गेट खोलते रहते हैं. तब आप कुछ नहीं सोचतीं,’’ आशाजी हाथ नचाती हुई बोलीं.

दोनों एकदूसरे को गलत ठहरा रही थीं. कोई अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी, सारा पड़ोस तमाशा देख रहा था, दोनों के पति बीचबचाव करने में लगे हुए थे.

 

उस दिन के बाद वातावरण बेहद तनावग्रस्त हो गया. 2 खेमों में विभाजित हो गई लेन नं. 5. एक सुभाषजी का पक्षधर तो दूसरा निर्मलजी का. गली की समस्या अपनी जगह ज्यों की त्यों थी.

एक दिन जब मलबे से भरा ट्रैक्टर गली में आया तो सब चौंक उठे. कर्नल विक्रम ने 2 मजदूरों की सहायता से गली में जहांजहां  पानी भरा था वहां मलबा डलवाना शुरू कर दिया.

‘‘यह आप क्या करा रहे हैं कर्नल साहब?’’ निर्मलजी बोले.

‘‘मलबे से भरा यह ट्रैक्टर जा रहा था. मैं ने इन से यहां फेंकने के लिए कहा तो ये तैयार हो गए. पानी इकट्ठा होने से मच्छर आदि पैदा होने से कई बीमारियां पैदा होने का खतरा भी है.’’

‘‘यह काम तो प्रशासन का है. हम टैक्स देते हैं.’’

‘‘लेकिन परेशानी तो हमें हो रही है,’’ निर्मलजी के पोते को चिप्स खाने के बाद रैपर को सड़क पर फेंकते देख कर्नल साहब ने टोका, ‘‘नहीं बेटा, रैपर सड़क पर नहीं फेंकते. इसे कूड़ेदान में फेंकना चाहिए.’’

‘‘यहां पर तो सभी फेंकते हैं. एक इस के न फेंकने से गली साफ तो नहीं हो जाएगी?’’

कर्नल साहब द्वारा अपने पोते को इस तरह टोकना निर्मलजी को अच्छा नहीं लगा. लेकिन जब उन्होंने कर्नल साहब को रैपर उठा कर अपने घर ले जाते देखा तो कुछ सोचने पर मजबूर हो गए.

दूसरे दिन सुबह जब कूड़ा उठाने वाली एक ठेली के साथ एक सफाई कर्मचारी को निर्मलजी के घर से कूड़ा ले जाते देखा तो दिनेशजी से रहा न गया और वे पूछ ही बैठे, ‘‘निर्मलजी, यह तो आप ने बहुत अच्छा किया. मैं भी काफी दिनों से इस विषय में सोच रहा था,’’ फिर सफाई कर्मचारी की ओर उन्मुख हो कर बोले, ‘‘कहां ले कर जाते हो इस कूड़े को? पता चला यहां से उठा कर किसी और के घर के सामने फेंक दिया.’’

‘‘जी, नहीं. हम इस कूड़े को 2 हिस्सों में अलगअलग कर देते हैं. एक हिस्से में फलों व सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाना, कागज, पत्ते आदि रखते हैं, जिन्हें आसानी से खाद में बदला जा सकता है और दूसरे में वे चीजें, जिन्हें सड़ाया न जा सके. जैसे, पौलिथीन बैग्स आदि. इन्हें हम सुरक्षित तरीकों से नष्ट कर देते हैं,’’ सफाई कर्मचारी बोला.

‘‘तभी तो सरकार पौलिथीन बैग्स के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रही है, क्योंकि ये अपनेआप नहीं सड़ते. वैसे हम इन वस्तुओं से अपने घरों में भी खाद बना सकते हैं?’’ निर्मलजी ने पूछा.

‘‘बिलकुल, अगर आप के पास किचन गार्डन है तो आप उस में छोटा सा गड्ढा खोद कर उस के अंदर फलों व सब्जियों के छिलके, सूखे पत्ते, बचा खाना डालते रहें, जब गड्ढा भर जाए तो उसे मिट्टी से बंद कर उस में पानी का छिड़काव करते रहें. 3-4 महीनों में ये सब वस्तुएं सड़ जाती हैं और खाद में परिवर्तित हो जाती हैं, जिन्हें आप खाद के रूप में अपने गमलों व क्यारियों में इस्तेमाल कर सकते हैं,’’ सफाई कर्मचारी बोला.

‘‘अगर लोग सफाई के प्रति थोड़ी सी भी जागरूकता दिखाएं तो सड़कों के किनारे इतनी गंदगी नहीं दिखाई देगी,’’ दिनेशजी बोले.

‘‘कैसे?’’

‘‘सड़कों, गलियों आदि को भी अपने घरों की तरह साफ रखने की कोशिश करें और कोई भी गंदगी सड़कों व गलियों में न फेंकें. मैं तो कहता हूं कि हमें भी विदेशों की तरह थोड़ीथोड़ी दूरी पर कूड़ेदान रखने चाहिए ताकि  रास्ते में कोई गंदगी न फेंके और अगर फेंके तो हम उसे कूड़ेदान में फेंकने के लिए कहें. विदेशों में इसीलिए इतनी सफाई रहती है, क्योंकि वहां सड़कों पर कोई भी गंदगी नहीं फेंकता. सभी सड़कों और लेन आदि को साफ रखना अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं. वहां सार्वजनिक स्थानों पर तो क्या लोग निर्जन स्थानों पर भी कूड़ा नहीं फेंकते. यह उन की आदत है न कि किसी दबाव के कारण, क्योंकि बचपन से वे यह सब देखते आए हैं.

‘‘हमारा देश प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति कर रहा है, लेकिन सफाई के प्रति हम जरा भी सचेत नहीं हैं. इतना भी नहीं सोचते कि इन सब का कितना बुरा प्रभाव पड़ता है. हमारा देश इतना सुंदर है. पर्यटन से हमें आय की कितनी संभावनाएं हैं. लेकिन यहां जगहजगह फैली गंदगी को देख कर विदेशी पर्यटक

चाह कर भी यहां आने से कतराते हैं,’’ अपना विदेश का अनुभव बताते हुए दिनेशजी बोले.

कुछ सोचते हुए निर्मलजी बोले, ‘‘सड़कों पर तो प्रशासन ही कूड़ेदान रखेगा, लेकिन अपनी गली में हम आपसी सहयोग से कूड़ेदान रख सकते हैं और इसी सफाई कर्मचारी से उन की सफाई कराते रहेंगे. चलिए, सब से बात कर के देखते हैं.’’

ये भी पढ़ें- Valentine Special: एक थी इवा

कूड़ेदान के प्रस्ताव पर सब सहर्ष तैयार हो गए. सब के सहयोग से लेन नं. 5 में कूड़ेदान भी आ गए. कर्नल विक्रमजी के मलबा डलवाने, सफाई कर्मचारी के कूड़ा उठाने व कूड़ेदान रखने से लेन नं. 5 साफ और व्यवस्थित रहने लगी. घर के पास कूड़ा न पड़ने के कारण अब अनीताजी ने भी अपने पोतों पर लगाम लगानी शुरू कर दी.

‘‘देखिए, सब के थोड़े से प्रयास और सफाई के प्रति थोड़ा सा सजग रहने से लेन कितनी साफ रहने लगी है,’’ निर्मलजी बोले.

‘‘इस सब का श्रेय तो कर्नल साहब को देना चाहिए,’’ गोद में 3 वर्ष की पोती को उठाए सुभाषजी बोले.

‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं.’’

तभी कर्नल विक्रमजी की कार ने लेन में प्रवेश किया.

‘‘कहां से आ रहे हैं कर्नल साहब?’’ सुभाषजी बोले.

‘‘नगर निगम के औफिस से आ रहा हूं.’’

‘‘आप और नगर निगम के औफिस से?’’

‘‘क्यों नहीं? मैं भी इस देश का नागरिक हूं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हूं.’’

‘‘क्या कहा उन्होंने?’’ उत्सुकता से सुभाषजी ने पूछा.

‘‘उन्होंने कहा, फंड आ गया है, जल्द ही काम शुरू हो जाएगा.’’

तभी सुभाषजी की पोती गोद से उतरने के लिए मचलने लगी. जब वह नहीं मानी तो सुभाषजी को उसे गोद से उतारना पड़ा. गोद से उतरते ही अपने नन्हे कदमों से चल कर चौकलेट का रैपर, जो उस के हाथ से गिर गया था, को उठा कर कूड़ेदान में डालने की कोशिश करने लगी.

ये भी पढ़ें- चाहत के वे पल: अपनी पत्नी गौरा के बारे में क्या जान गया था अनिरुद्ध

दर्द का रिश्ता : भाग 1

लेखिक डा. रंजना जायसवाल

“कितनी बार समझाया था तुझे इकलौती लड़की से शादी मत कर पर तुझ पर तो प्यार का भूत सवार था. न आगे नाथ न पीछे पगहा… मांबाप के मरने के बाद तेरी ससुराल भी खत्म हो जाएगी…सुखदुख में खड़ा होने वाला भी कोई न रह जाएगा. हम कोई जिंदगीभर जिंदा थोड़ी बैठे रहेंगे.”

“मां, कैसी बात करती हो, मैं भी तो इकलौता ही हूं.””तेरी बात अलग है, तू लड़का है. अपूर्वा को देख अपने साथ दहेज में कुछ भी न लाई पर मांबाप की जिम्मेदारी जरूर ले आई.”

“मां, ऐसा न कहो, यह बात तो हम पहले दिन से जानते थे. वैसे भी अपूर्वा से शादी का निर्णय मेरा था फिर दानदहेज की बात कहां से आ गई. अपूर्वा ने शादी के पहले ही मुझे स्पष्ट शब्दों में यह बात कह दी थी.शादी के बाद उस के मातापिता की जिम्मेदारी वही उठाएगी.”

साधनाजी का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था. समर की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि वह उन की तरफ नजर उठा कर देखे.”वाह रे जमाना, हमारे जमाने में लड़की के मांबाप बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते थे और यह साहब अपने ससुर को यहां लाने को सोच रहे हैं. क्या कहेंगे लोग…”

“मां, लोगों की मैं परवाह नहीं करता. जब पापा बीमार पड़े थे तो अपूर्वा के पापा ने कितनी मदद की थी भूला नहीं हूं मैं… जिन लोगों की आप बात कर रही हैं वे तो झांकने भी नहीं आए थे. मां, जैसे सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे हर बात के भी तीन पहलू होते है आप का, उन का और सच. कभी सुनीसुनाई बात पर भरोसा मत कीजिए.”

“आ गए ससुराल के वकील बन कर…” “मां, वकील बनने की बात नहीं है, उन का हमारे सिवा है ही कौन? आप ही बताइए इस उम्र में वे भला कहां जाएंगे.” “भाड़ में जाओ तुम…लोगों को कुल्हाड़ी पैर पर मारते देखा था पर जब कोई पैर ही कुल्हाड़ी पर मारने को आतुर हो तो उस को क्या कहना और क्या समझाना.”

अपूर्वा 1 महीने से यह नाटक देख रही थी. कोरोना महामारी ने उस की मां को लील लिया था. अजयजी इस भरी दुनिया में बिलकुल अकेले पड़ गये थे. फोन पर वे कुछ भी न कह पाते पर उन की आवाज में उन का अकेलापन उसे महसूस हो जाता था.इस मशीनी युग में इंसान वैसे भी कितना अकेला था, ऊपर से इस महामारी ने इंसान को बिलकुल ही अकेला कर दिया था. साधनाजी दिल की बुरी नहीं थीं, पिछले साल कोरोना की वजह से उन्होंने अपने पति को खो दिया था. बस तभी से एक अजीब सी झुंझलाहट उन के व्यवहार में आ गई थी. उन्हें हमेशा यही लगता था कि शायद उन की सेवा, उन के देखरेख में कहीं कुछ कमी रह गई थी शायद इसलिए वे…साधनाजी का दर्द समर और अपूर्वा अच्छी तरह से समझते थे. आखिर उन्होंने भी तो अपने पिता को खोया था.

इंसान की जवानी घरपरिवार की जिम्मेदारियों में ही गुजर जाती है पर बुढ़ापा जब एकदूसरे के साथ की सब से ज्यादा जरूरत होती है, उस में से कोई एक हाथ छुड़ा कर चला जाए तो जीवन पहाड़ की तरह लगने लगता है. साधनाजी इन दिनों उसी दौर से गुजर रही थीं.

अपूर्वा जानती थी की यह सब इतना आसान नहीं था पर…बात सिर्फ मम्मीजी की नहीं थी, पापा को समझाना क्या इतना आसान था?

अपूर्वा और समर ने प्रेमविवाह किया था, दोनों ही परिवार इस रिश्ते, इस शादी के लिए तैयार नहीं थे पर बच्चों की जिद के आगे उन्होंने घुटने टेक दिए. वक्त के साथ सबकुछ ठीक होने लगा था पर संकोच की दीवार तब भी उन के आड़े आ ही जाती थी. पिछले साल समर के पापा को जब कोरोना हुआ था तो अपूर्वा की मां दोनों वक्त  फोन कर के साधनाजी को सांत्वना देतीं. अपूर्वा के पापा ने भी समर का हर कदम पर साथ दिया. कभीकभी जब वह निराशा से टूटने लगता तो वह उस की हिम्मत बन कर खड़े हो जाते.समर के लाख मना करने पर भी उन्होंने अपूर्वा के अकाउंट में यह कर पैसे डाल दिए,”बेटा, सबकुछ तुम लोगों का ही है, आज वक्त पर यह पैसे न काम आए तो फिर उन के होने का क्या फायदा…”

समर ने उन के आगे हथियार डाल दिए, जानता था पापाजी के पास इस पैंशन के पैसे के अलावा धन आने का कोई जरीया नहीं था…कमाने को तो वे दोनों भी कमा ही रहे थे पर लौकडाउन के चलते तनख्वाह 50% कट कर मिल रही थी. समर के पापा के इलाज में पैसा पानी की तरह बह रहा था, पैसे की जरूरत तो समर को वाकई में बहुत थी पर वो उन से मांग वह अपूर्वा की नजरों में छोटा नहीं होना चाहता था. उस ने दोस्तों से पैसे का जुगाड़ करने की कोशिश की पर सब के हालात एकजैसे ही थे.

मृदा परीक्षण से कृषि उत्पादन लागत और उपज पर प्रभाव

डा. आर. नायक, डा. आरके सिंह, डा. आरपी सिंह एवं डा. एके यादव वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, प्रभारी अधिकारी, कृषि विज्ञान केंद्र,

कोटवा मृदा परीक्षण से कृषि उत्पादन लागत और एवं उपज पर प्रभाव फ सलों की वृद्धि और विकास के लिए 16 पोषक तत्त्वों की आवश्यकता पड़ती है, जिसे पौधे अपने जीवनकाल में वातावरण, मृदा और पानी के स्रोतों से प्राप्त कर भरपूर उत्पादन देते हैं. असंतुलन की स्थिति में यदि जैविक घटक जैसे मृदा, बीज, सिंचाई, उर्वरक, पेस्टीसाइड और अन्य प्रबंधन आदि अथवा गैरजैविक घटक जैसे वर्षा (कम या ज्यादा), तापमान (कम या ज्यादा), तेजी से चलने वाली हवाएं, कुहरा, ओले पड़ना आदि के कारण भी कृषि उत्पादन प्रभावित होता है. उपरोक्त घटकों में सब से महत्त्वपूर्ण मृदा को ही माना जाता है,

जिस का स्वस्थ होना नितांत आवश्यक है. स्वस्थ मृदा का अनुकूल प्रभाव, लागत और उत्पादन सहित अन्य क्षेत्रों में भी पड़ता है. उत्पादन लागत में कमी के साथ उपज में बढ़ोतरी * मृदा परीक्षण के उपरांत अंधाधुंध उर्वरक के प्रयोग में कमी होने से संतुलित उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा मिलना. * पोषक तत्त्वों के असंतुलन की दशा में मृदा में विषाक्तता बढ़ने के कारण पौधों/फसलों में उपज की कमी को दूर करने में सहायक है मृदा परीक्षण/स्वायल हैल्थ कार्ड. * मृदा परीक्षण से मौजूद जीवांश की स्थिति (0.80 फीसदी सामान्य दशा) जानने के बाद उसे स्थायी बनाने के लिए फसल चक्र, समन्वित पोषक तत्त्व प्रबंधन, फसल अवशेष प्रबंधन आदि उपायों पर जोर देने से मृदा की भौतिक, रासानिक व जैविक क्रियाओं में सुधार होने से कम लागत में भी अधिक गुणवत्तायुक्त उपज हासिल होती है. किसान की आय में बढ़ोतरी

ये भी पढ़ें- मोटे अनाजों की खेती

* कृषि उपज बढ़ने से किसान की आय में गुणात्मक वृद्धि होगी, यह कोई सर्वमान्य विधा नहीं है, जब तक कि कृषि उत्पादन लागत में कमी करते हुए अधिक उपज प्राप्त की जाए.

* मृदा परीक्षण के उपरांत मृदा में उपलब्ध पोषक तत्त्वों की मात्रा के अनुसार रासायनिक उर्वरक व अन्य उपलब्ध स्रोतों का प्रयोग करने से कम खर्च में ही फसलों का पोषण हो जाता है और अच्छी उपज के साथ आमदनी में भी वृद्धि होती है.

* पोषक तत्त्वों की कमी के लक्षण फसल/फल/पौधे के विभिन्न भागों पर प्रदर्शित होते हैं और कई बार बीमारियों के लक्षण मिलतेजुलते होते हैं. इस के निदान के लिए किसान पैस्टीसाइड का प्रयोग करने लगते हैं, जो लागत बढ़ाने के साथ उपज में कमी लाती है, इसलिए स्वस्थ मृदा ही प्रबंधन में आसानी के साथ आमदनी बढ़ाने में भी सहायक होती है. वातावरण पर प्रभाव

ये भी पढ़ें- बैगन की खेती

* नाइट्रोजन के अत्यधिक प्रयोग से वातावरण में नाइट्रस औक्साइड गैस की मात्रा बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है, जो वाष्प के साथ संयोग कर के अम्लीय वर्षा को बढ़ावा देती है. इसलिए नाइट्रोजन का प्रयोग सदैव मृदा परीक्षण के आधार पर किया जाए.

* सिंचाई जल के साथ विलेय पोषक तत्त्व भूजल स्तर तक पहुंच कर उपलब्ध जल को भी प्रदूषित कर रहे हैं, जो इनसान की सेहत को प्रभावित करने के साथसाथ विषाक्तता को भी बढ़ाते हैं. इस की रोकथाम के लिए रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग को रोकने के लिए मृदा परीक्षण जरूरी है.

* अकसर यह देखा जाता है कि खेतों से पानी बहते हुए नालों/पोखरों में चला जाता है, जिस के साथ रसायन (पोषक तत्त्व) भी घुल कर जाने से पानी में विषाक्तता के कारण मछलियों और अन्य जलीय जीव बीमारी के चलते मरने लगते हैं.

* मृदा परीक्षण के आधार पर फसलों में उर्वरक का उपयोग क्षमता में वृद्धि ला कर वातावरण, जल, जमीन, जानवर और इनसानियत को बचाया जा सकता है.

* पैस्टीसाइड के प्रयोग में पूरी तरह सावधानी बरती जाए, अन्यथा वातावरण प्रदूषित होने से शहरों के अस्पतालों में मरीजों की संख्या काफी बढ़ने लगी है.

* रासायनिक उर्वरक और पैस्टीसाइड की अधिकता के दुष्परिणाम पशुओं, इनसानों और पक्षियों में भी देखने को मिलते हैं. जैसे, नाइट्रोजन की अधिकता से इनसानों में ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ (आंखों का नीला होना), पशुओं में नपुसंकता और पक्षियों में विलुप्त की स्थिति आना आम है.

* पैस्टीसाइड के प्रयोग विधि में भी सावधानी न रखने के कारण वातावरण/हवा में धूलयुक्त रसायन/छिड़काव के दौरान सूक्ष्म भाग हवा में मिल कर सामान्य जनजीवन को प्रभावित करते हैं.

* स्वस्थ मृदा और वातावरण ही स्वस्थ समाज व समृद्ध समाज बना सकता है, जिस का मूल आधार ‘स्वायल हैल्थ कार्ड’ के प्रति गंभीर जागरूकता ला कर ही हासिल किया जा सकता है.

* वर्तमान समय में मृदा में कैल्शियम, सल्फर, जिंक, बोरोन और लोहा आदि तत्त्वों की कमी पाई जाने लगी है. इस के चलते ऐसे क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसलों के उत्पाद में भी इन की कमी होने से इनसानों के खानेपीने और पशुओं के चारे में भी इन तत्त्वों की कमी पाई जाती है.

इस का दुष्परिणाम यह होता है कि इनसानों में औस्टियो पोरोसिस, मुंहासे, नाखून का टेढ़ामेंढ़ा होना, बाल गिरना, खून में कमी, मोटापा, औसत लंबाई में कमी आदि के साथ पशुओं में प्रतिरोधक क्षमता में कमी, अस्थायी बां?ापन, मांस और दूध की क्वालिटी में कमी वगैरह लक्षण पाए जाते हैं.

दर्द का रिश्ता

बेटी ही बनी पिता की मौत का कारण

लेखक- मोहम्मद आसिफ ‘कमल’ एडवोकेट

सौजन्या- सत्यकथा 

सुबह 6 बजे का समय था और तारीख थी 20 जुलाई, 2021. उत्तर प्रदश के जिला संभल के मुटेना गांव के पास दक्षिण की ओर खेत के बीचोबीच पेड़ से लाश लटकी हुई थी. उस के नीचे एक औरत और 2 लड़कियां विलाप कर रही थीं. उन के अलावा गांव के कुछ लोग भी मौजूद थे.उसी गांव के ही एक व्यक्ति ने पुलिस को इस की सूचना दी थी. वहां मौजूद सभी को पुलिस के आने का इंतजार था, लेकिन वे आपस में कानाफूसी करते हुए अचरज भी जता रहे थे कि 60 साल से अधिक उम्र के इस सीधेसादे बुजुर्ग ने आखिर फांसी क्यों लगाई होगी? कैसे फंदा बनाया होगा? कैसे फांसी लगाई होगी?

कुछ देर में ही चौकी इंचार्ज 2 कांस्टेबलों के साथ वहां पहुंच गए थे. उन्होंने पहले आसपास के लोगों को वहां से हटाया. फिर पेड़ से लटकी लाश का गहराई से मुआयना किया. प्राथमिक छानबीन की और इस की सूचना रजपुरा के थानाप्रभारी को भी दे दी.सूचना पाते ही थानाप्रभारी विद्युत गोयल उच्च अधिकारियों को सूचना भेज कर घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने लाश नीचे उतरवाई और पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए संभल जिला मुख्यालय भेज दी. मृतक की पहचान मुटेना के हरपाल यादव के रूप में हुई.

ये भी पढ़ें- जिस्म के धंधे में धकेली 200 लड़कियां

पुलिस की निगाह में मामला आत्महत्या का लग रहा था. इसलिए पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. हालांकि वहां मौजूद कुछ लोगों ने हत्या किए जाने की आशंका जरूर जताई, लेकिन मृतक के घर वालों में से किसी ने भी किसी पर कोई आरोप नहीं लगाया. हरपाल यादव के पास 30 बीघा खेती की जमीन थी. वह खेती कर अपने परिवार का गुजरबसर करते आ रहे थे. उन की 3 बेटियां नीतू, प्रीति व कविता थीं, जिन की परवरिश में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

हालांकि उन को बेटे की कमी भी खलती रहती थी. बेटा नहीं होने की टीस के चलते उन की एक आदत शराब पीने की भी लग गई थी. जबकि पत्नी लाजवंती उन से शराब छोड़ने को कहती रहती थी.
उन्होंने बड़ी बेटी नीतू की शादी कई साल पहले कर दी थी. कुछ समय से दूसरी बेटी प्रीति की शादी की चिंता सताने लगी थी. लाजवंती प्रीति के विवाह को ले कर कुछ ज्यादा चिंतित रहती थी, इस की वजह यह थी कि वह बाकी 2 बेटियों से अलग जिद्दी स्वभाव की थी. अपनी बात चाहे जैसे हो, मनवा कर ही दम लेती थी.

शादी की चिंता में घुले जा रहे मातापिता की समस्या का समाधान प्रीति ने खुद ही निकाल दिया था. उस ने अपनी मां को बताया कि वह अपनी ही जाति के बदायूं के रहने वाले धर्मेंद्र यादव नाम के लड़के को जानती है. उस ने उसे एक शादी में देखा था. उसे वह पसंद करती है.प्रीति को उस के बारे जो जानकारी थी, मां को बता दी. मां लाजवंती ने यह जानकारी अपने पति को दे कर बताया कि धर्मेंद्र बदायूं जिले की इसलामनगर तहसील के पतीसा गांव का रहने वाला है. उस के 4 भाई और एक बहन है.

ये भी पढ़ें- शिवसेना नेत्री का सेक्स रैकेट

जल्द ही प्रीति के मातापिता ने धर्मेंद्र के परिवार वालों से मिल कर कोरोना काल में ही शादी तय कर दी, किंतु शादी की तारीख कोरोना की वजह से तय नहीं हो पाई थी.प्रीति और धर्मेंद्र की शादी तय हो जाने के बाद वे मिलने को बेचैन हो गए थे, किंतु सामाजिक और पारिवारिक मानमर्यादा के चलते मिल नहीं पा रहे थे. दूसरा कोरोना काल की वजह से कहीं आनाजाना भी मुश्किल था.

दोनों की फोन पर बातें होने लगी थीं. उस के बाद उन की मिलने की इच्छा और प्रबल हो गई. एक दिन धर्मेंद्र ने प्रीति से मुलाकात करने का आग्रह किया. प्रीति भी इसी का इंतजार कर रही थी. धर्मेंद्र ने मिलने की जगह और समय बताया.धर्मेंद्र से मिलने के बाद प्रीति उस पर फिदा हो गई. उसे अपने सपनों का शहजादा मिल गया था. इकहरे बदन के मजबूत कदकाठी वाले धर्मेंद्र के चेहरे पर गजब का आकर्षण धा. उस से बातें कर प्रीति बहुत प्रभावित हो गई. धर्मेंद्र भी प्रीति को देख कर लट्टू हो गया. जवानी से मदमस्त प्रीति को देखा तो एकटक से देखता ही रह गया.

उस की सुंदर काया, झलकती जवानी, इतरानेइठलाने की अदाएं धर्मेंद्र को बहुत पसंद आईं. उस रोज उन की छोटी से मुलाकात हुई, लेकिन बाद में दोनों ने मिलनेजुलने का सिलसिला बना लिया. धीरेधीरे धर्मेंद्र का प्रीति के घर भी आनाजाना हो गया. प्रीति भी अपने होने वाले ससुराल घूम आई. धर्मेंद्र ने प्रीति से कहा कि वह काफी धूमधाम से पूरे जश्न के साथ शादी करना चाहता है.

जबकि कोरोना काल में शादी में लगी बंदिशों के चलते शादी की तारीखें टलती जा रही थीं. इस बीच उन के बीच वह सब भी हो गया, जो विवाह बाद होना चाहिए था. उन की शादी अब महज विशेष औपचारिकता भर रह गई थी. दोनों एकदूसरे के दीवाने हो गए थे. उन्होंने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाई थीं. शादी के इंतजार में 2 महीने और निकल गए. जून का महीना भी जाने वाला था. उन दिनों धर्मेंद्र प्रीति के पास आया हुआ था. प्रीति के घरवालों को उन के मिलनेजुलने से कोई आपत्ति नहीं थी. वह अकसर शाम तक ठहरता और फिर अपने घर चला जाता था.

उस दिन धर्मेंद्र ने प्रीति से अचानक कहा कि उसे कुछ खास बात करनी है. उस के साथ ही वह पूछ बैठा, ‘‘अच्छा प्रीति, एक बात बताओ…’’ ‘‘क्या?’’ प्रीति उत्सुकता से बोली. ‘‘तुम्हारे पिताजी हमारी शादी में कितना रुपया खर्च करेंगे?’’ प्रीति याद करती हुई बोली, ‘‘नीतू दीदी की शादी में 3 लाख रुपया खर्च हुआ था. मेरी शादी में भी लगभग इतना तो खर्च करेंगे ही.’’ ‘‘इतना पैसा जमा कर लिया होगा पिताजी ने?’’ धर्मेंद्र चिंता जताते हुए बोला.

‘‘इतनी रकम की व्यवस्था नहीं है, फिर भी कुछ रिश्तेदारों से और कुछ खेती की जमीन पर बैंक से लोन लेने की तैयारी कर रहे हैं.’’ प्रीति बोली. तभी धर्मेंद्र बोला, ‘‘3 लाख रुपए में क्या होगा. देखो मुझे अपना कोई कारोबार करने के लिए कम से कम 5 लाख रुपए चाहिए. बारात की अच्छी खातिरदारी होनी चाहिए. दहेज के जरूरी सामान के लिए भी 3 लाख रुपए कम पड़ जाएंगे. शादी के बाद कोई किसी का साथ नहीं देता. हम दोनों जो खुशहाल जिंदगी का तानाबाना बुन रहे हैं, सुनहरे सपने देख रहे हैं, वे सब पूरे नहीं हो सकेंगे.’’

‘‘इतना पैसा कहां से आएगा?’’ प्रीति चिंतित हो गई.‘‘चिंता करने की जरूरत नहीं है. मेरे पास उस का समाधान है.’’ धर्मेंद्र बोला.‘‘वह क्या?’’ प्रीति ने पूछा.‘‘देखो पिताजी के पास 30 बीघा जमीन है. 3 बेटियां हैं. बेटा कोई है नहीं. हमारे हिस्से में भी 10 बीघा जमीन आएगी. उन्हें सिर्फ इतना करना है कि हमारे हिस्से की जमीन बेच कर रकम हमें दे दें.’’ धर्मेंद्र की बात प्रीति की समझ में तो आ गई पर दुविधा के साथ बोली, ‘‘लेकिन यह बात उन को कौन समझाएगा?’’

‘‘तुम, और कौन?’’ ‘‘नहीं माने तो?’’ ‘‘नहीं कैसे मानेंगे, तुम कोई गलत थोड़े कहोगी. ऐसा करने से उन के सिर पर कर्ज का कोई बोझ भी नहीं पड़ेगा. और वह अपनी तीसरी बेटी की भी शादी अच्छी तरह से कर लेंगे.’’ कुछ सोचती हुई प्रीति बोली, ‘‘अच्छा चलो, मैं आज ही उन से बात करूंगी.’’ थोड़ी देर रुक कर धर्मेंद्र चला गया. रात में पिता को खाना खिलाने के बाद प्रीति ने धर्मेंद्र ने जैसे कहा था, पिता को वैसे ही कह दिया.

संयोग से मां भी वहां मौजूद थी. हरपाल प्रीति की बात सुन कर अवाक रह गए. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘देखो प्रीति, मैं तुम्हारी हर बात मान लेता हूं, लेकिन यह बात मुझे जरा भी पसंद नहीं है.’’प्रीति ने पिता को समझाने की कोशिश की, ‘‘धर्मेंद्र कह रहे हैं कि 10 बीघा जमीन बेच ली जाए तो शादी ठीकठाक हो जाएगी. धर्मेंद्र को भी कोई कामधंधा करने के लिए रकम मिल जाएगी. वैसे भी तीनों बहनों के नाम 10 -10 बीघा जमीन तो आनी ही है.’’

दोबारा जमीन की बात सुन कर हरपाल आगबबूला हो गए. गुस्से में बोले, ‘‘जमीन मेरी मां है, तुम लोगों के कहने पर मैं अपनी मां को बेच दूं. ऐसा आज तक खानदान में न हुआ है और न आगे होगा.’’इतना कह कर वह वहां से उठ कर चले गए. जातेजाते कह गए, ‘‘आइंदा अब इधर मत आना, मुझ से बात मत करना. तुम्हारी शादी तो मैं किसी तरह करवा ही दूंगा. उस के बाद समझो हमारा रिश्ता खत्म हो जाएगा.’’

प्रीति पिता की इस नाराजगी से काफी दुखी हो गई. उस ने पूरी बात अगले रोज धर्मेंद्र को फोन पर बताई. वह समझ नहीं पा रही थी क्या करे कि उस के पिता जमीन बेचने को तैयार हो जाएं.एक हफ्ते तक बापबेटी के बीच कोई बातचीत नहीं हुई. धर्मेंद्र ने भी प्रीति की इस बीच कोई खोजखबर नहीं ली. आखिरकार प्रीति ने ही फोन कर धर्मेंद्र से हालचाल पूछा. फोन पर धर्मेंद्र काफी उखड़ाउखड़ा सा लगा. वह लापरवाही से बातें करता रहा.प्रीति ने महसूस किया कि जैसे उस के मंगेतर धर्मेंद्र को उस से कोई लगाव नहीं रहा. किसी तरह से प्रीति अपने प्रेम और अंतरंग संबंधों का हवाला देते हुए धर्मेंद्र को मनाने में कामयाब रही.

वह धर्मेंद्र के प्रेम जाल में बुरी तरह फंस चुकी थी. धर्मेंद्र को अपना सब कुछ सुपुर्द कर चुकी थी. उस ने धर्मेंद्र को आश्वासन दिया कि वह कोई न कोई रास्ता निकाल लेगी, जिस से पिता उस के हिस्से की जमीन देने के लिए राजी हो जाएंगे.इसी के साथ उस ने धर्मेंद्र को किसी जगह बैठ कर समस्या का समाधान निकालने का सुझाव दिया.धर्मेंद्र प्रीति की बात मानते हुए उस से मिला. मिलते ही प्रीति उस के गले लग कर बोली, ‘‘गुस्सा थूक दो, आओ कोई तरीका निकालते हैं.’’

‘‘बुड्ढे ने तो सारा खेल बिगाड़ दिया. और ऐसा ही हाल रहा तो हम दोनों को वह जीते जी सुखी जीवन शुरू करने नहीं देगा.’’ धर्मेंद्र गुस्से में बोला. ‘‘तो फिर उन्हें रास्ते से ही हटा देते हैं.’’ प्रीति तुरंत बोली.
धर्मेंद्र अवाक रह गया, ‘‘यह तुम क्या कह रही हो? वो तुम्हारे पिता हैं.’’ ‘‘पिता हैं तो क्या हुआ, तुम सही कह रहे हो, उन के जीते जी हमें सुखी जीवन नहीं नसीब होगा.’’ ‘‘एक बार फिर समझाते हैं, मैं भी तुम्हारे साथ रहूंगा.’’ धर्मेंद्र बोला.

‘‘तुम इस में साथ मत दो, मैं ने जो योजना बनाई है उस में मेरी मदद करो.’’उस के बाद प्रीति ने धर्मेंद्र को अपनी योजना बताई और दोनों ही उसे अंजाम देने की तैयारी में जुट गए.योजना के मुताबिक दोनों ने मिल कर हरपाल को ठिकाने लगाने की पूरी तैयारी कर ली थी. उस के बाद जो घटित हुआ, उस का खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट और पुलिस की गहन तफ्तीश से सामने आ गया. वह इस प्रकार है—

19 अगस्त, 2021 को हरपाल खेतों पर काम करने के बाद घर आ रहे थे. रास्ते में गांव का ही एक दोस्त मिल गया. वह शराब पीनेपिलाने वाला दोस्त था. दोनों ने एकांत में बैठ कर शराब पी. फिर हरपाल घर आ गए. तभी प्रीति ने बताया कि अभी उन से कोई मिलना चाहता है.प्रीति अपने पिता को घर से दूर खड़े धर्मेंद्र के पास ले गई. वह बाइक ले कर खड़ा था. प्रीति अपने पिताजी को धर्मेंद्र के हवाले कर घर आ गई.

धर्मेंद्र हरपाल को उन के खेतों की तरफ ले गया, जहां उस का साथी गौरव मौजूद था. वहां बैठ कर हरपाल को और दारू पिलाई गई. जब वह नशे में काफी धुत हो गए, तब उन के सिर पर रौड मार कर हत्या कर दी.
हरपाल की मौत के बाद धर्मेंद्र ने पूरी बात फोन से प्रीति को बता दी. उन के द्वारा ही गले में फंदा डाले हरपाल के पेड़ पर लटके होने की खबर घर पहुंचा दी गई. प्रीति इस से पहले ही घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. फिर उन्होंने लाश पेड़ से इस तरह लटका दी जिस से मामला आत्महत्या का लगे.

हरपाल की लाश को पेड़ से लटकाने में काफी समय लग गया, लेकिन सुबह होने से पहले ही प्रीति ने सभी परिचितों को इस घटना की सूचना दे दी और वे आननफानन में घटनास्थल पर जा पहुंचे.हत्या के इस मामले को आत्महत्या बनाने की कोशिश तो की गई थी, लेकिन धर्मेंद्र और उस के दोस्त इस में सफल नहीं हो पाए. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही इस का खुलासा हो गया. फिर पुलिस ने शक के आधार पर परिजनों से पूछताछ की, जिस में प्रीति का व्यवहार ही संदिग्ध दिखा.

उस के बयान के आधार पर पुलिस ने धर्मेंद्र को गिरफ्तार कर लिया. हरपाल के मर्डर केस का परदाफाश एसपी (संभल) चक्रेश मिश्रा द्वारा पत्रकार वार्ता में किया गया. पूरे हत्याकांड में प्रीति की साजिश होने के कारण 120बी आईपीसी के तहत प्रीति को भी नामजद किया गया है.तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें