लेखिका – सुधा थपलियाल
पानी बरसने के कारण पूरी गली पानी से भरी हुई थी. गली में कहींकहीं ईंटें पड़ी हुई थीं. निर्मलजी एक हाथ में सब्जी का थैला पकड़े व दूसरे में छाता संभाले उन्हीं पर चलने की कोशिश कर रहे थे कि अचानक तेजी से आती मोटरसाइकिल पर सवार 2 लड़कों ने उन के सारे प्रयास पर पानी फेर दिया.
निर्मलजी चिल्लाए, ‘‘दिखाई नहीं देता क्या?’’
लड़के अभद्रता से हंसते हुए निकल गए.
‘‘मैं अभी गली के सभी लोगों से मिलता हूं, सारे के सारे सोए हुए हैं,’’ निर्मलजी गुस्से से बुदबुदाए.
लेन नं. 5 में संभ्रांत लोगों का निवास था. वे न केवल उच्च शिक्षित थे वरन उच्च पदों पर भी आसीन थे. कुछ तो विदेशों में भी सर्विस कर चुके थे. पिछले वर्ष सीवर लाइन डालने के लिए गली खोदी गई थी. सीवर लाइन पड़े भी अरसा हो गया था, मगर गली अब भी ऊबड़खाबड़ पड़ी थी. जगहजगह ईंटों व मिट्टी के ढेर लगे थे. पानी का सही निकास न होने के कारण बरसात के दिनों में गली पानी से लगभग भर जाती थी, जिस कारण चलना मुश्किल हो जाता था.
‘‘आइएआइए निर्मलजी,’’ घंटी बजने पर उन्हें दरवाजे पर खड़ा देख सुभाषजी बोले.
‘‘अरे सुनती हो, 1 कप चाय भेजना, निर्मलजी आए हैं,’’ सुभाषजी पत्नी अनीता को आवाज दे कर निर्मलजी की ओर उन्मुख हो कर बोले, ‘‘कहिए, आज कैसे आने का कष्ट किया?’’
‘‘आप तो गली का हाल देख ही रहे हैं,’’ सुबह हुए हादसे का असर अभी भी दिमाग पर छाया हुआ था. अत: जबान पर उस की कड़वाहट आ ही गई.
‘‘मैं भी परेशान हूं. 1 साल से गली का यह हाल है. पहले खुदी तब परेशान हुए, अब बन नहीं रही है,’’ सुभाषजी भी अपनी भड़ास निकालते हुए बोले.
‘‘ऐसा है, सभी लेन के लोगों को बुला कर मीटिंग करते हैं, नगर निगम के औफिस जा कर शिकायत दर्ज कराते हैं, तभी कुछ होगा.’’
‘‘आप बिलकुल सही कह रहे हैं,’’ निर्मलजी की बात का समर्थन करते हुए सुभाषजी बोले.
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‘‘क्या कह रहे थे निर्मलजी?’’ उन के जाने के बाद सुभाषजी की पत्नी अनीता ने पूछा.
‘‘वही गली के बारे में कह रहे थे,’’ अखबार में नजर गड़ाए सुभाषजी बोले.
‘‘आप उन से कहते कि पहले अपने नौकर को तो समझाएं, जो रोज कूड़ा हमारे घर के सामने फेंक जाता है,’’ अनीताजी ने भी अपनी भड़ास निकालते हुए कहा.
‘‘तुम फिर शुरू हो गईं,’’ झुंझला कर अखबार एक तरफ फेंक कर सुभाषजी बोले.
‘‘क्या बात है, कर्नल विक्रमजी नहीं दिखाई दे रहे हैं,’’ शाम को मीटिंग के लिए एकत्र होने पर उन्हें उपस्थित न देख कर निर्मलजी व्यंग्य से बोले.
‘‘कहीं उठा रहे होंगे रास्ते से कूड़ा,’’ सुभाषजी ने कहा तो सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े.
‘‘अरे भई, उन से कहो यह कैंट नहीं है, जहां सिर्फ आर्मी के लोग रहते हैं. यहां सभी का आनाजाना लगा रहता है. कितनी भी कोशिश कर लो, यह लेन ऐसी ही गंदी रहेगी.’’
मीटिंग शुरू हुई. सभी लोग न केवल गली के हाल से परेशान थे वरन एकदूसरे के व्यवहार से भी क्षुब्ध थे. कोई किसी के पानी के अपने गेट के पास इकट्ठा होने से परेशान था, कोई गली गंदी करने के कारण से, कोई किसी के आचरण से, कोई बच्चों की गेंद बारबार घर आने से, तो कोई अपने गेट के पास किसी की गाड़ी की पार्किंग से.
‘‘मैं तो रोज एक शिकायती पत्र ईमेल करता हूं, मेयर साहब को,’’ विदेश में 10 वर्ष रह चुके दिनेशजी बोले.
उन पर विदेशी अनुभव पूरी तरह छाया हुआ था, अपनी मातृभूमि का प्रभाव कहीं नजर नहीं आ रहा था.
‘‘आप ईमेल की बात करते हैं. आप तो सशरीर भी उन के सामने उपस्थित हो जाएं तब भी वे आप को न पढ़ें,’’ निर्मलजी की बात पर फिर सब हंसने लगे.
‘‘तभी तो इस देश का कुछ नहीं हो रहा,’’ खीज कर चिरपरिचित जुमला हवा में उछालते हुए दिनेशजी बोले.
अंत में यह तय हुआ कि एक शिकायती पत्र लिख कर उस पर सब के हस्ताक्षर करा कर नगर निगम के औफिस जा कर जमा कराया जाए. पत्र को निर्मलजी और सुभाषजी ले कर जाएंगे. कारण, दोनों सेवानिवृत्त थे और दोनों के पास पर्याप्त समय था इन कार्यों को करने का.
अगले दिन निर्मलजी और सुभाषजी पत्र ले कर कर्नल विक्रमजी के घर पहुंचे, ‘‘आप मीटिंग में उपस्थित नहीं थे. हम सब एक शिकायती पत्र पर सब के हस्ताक्षर करा कर नगर निगम के औफिस में जमा करा रहे हैं. उसी संबंध में आप से इस पत्र पर हस्ताक्षर कराने आए हैं,’’ गर्व से निर्मलजी बोले.
‘‘बहुत अच्छा किया,’’ कह कर विक्रमजी ने हस्ताक्षर कर दिए.
शिकायती पत्र को नगर निगम के कार्यालय में दिए 1 महीने से ऊपर समय बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो रही थी. जब भी उन के पास जाते एक ही जवाब सुनने को मिलता कि फंड नहीं है.
प्रशासन को कोसते हुए लेन नं. 5 के निवासियों की सहनशक्ति दिनबदिन कम होती जा रही थी.
‘‘तुम्हारी हिम्मत कैसे होती है हमारे घर के पास कूड़ा फेंकने की?’’ सुभाषजी की पत्नी अनीताजी दहाड़ते हुए बोलीं.
एकाएक हुए इस आक्रमण से निर्मलजी का नौकर सकपका गया.
‘‘जब देखो तब कूड़ा हमारे घर के पास फेंक देता है,’’ रात के 10 बजे अनीताजी की बुलंद आवाज से आसपास के सभी लोग घरों से बाहर निकल आए.
‘‘आप के घर के पास कहां फेंका? आप बिना वजह नाराज हो रही हैं,’’ निर्मलजी की पत्नी आशा नाराजगी से बोलीं.
‘‘आप जरा देखिए…आप ने अपने नौकर को इतने भी मैनर्स नहीं सिखा रखे.’’
‘‘आप ज्यादा मैनर्स की बातें न करें तो अच्छा रहेगा.’’
‘‘क्या कहा?’’
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‘‘और नहीं तो क्या. आप के पोते, जो इतना शोर मचाते हुए खेलते हैं…कई बार गेंद हमारे घर आती है. गेंद के लिए जब देखो तब गेट खोलते रहते हैं. तब आप कुछ नहीं सोचतीं,’’ आशाजी हाथ नचाती हुई बोलीं.
दोनों एकदूसरे को गलत ठहरा रही थीं. कोई अपनी गलती मानने को तैयार नहीं थी, सारा पड़ोस तमाशा देख रहा था, दोनों के पति बीचबचाव करने में लगे हुए थे.
उस दिन के बाद वातावरण बेहद तनावग्रस्त हो गया. 2 खेमों में विभाजित हो गई लेन नं. 5. एक सुभाषजी का पक्षधर तो दूसरा निर्मलजी का. गली की समस्या अपनी जगह ज्यों की त्यों थी.
एक दिन जब मलबे से भरा ट्रैक्टर गली में आया तो सब चौंक उठे. कर्नल विक्रम ने 2 मजदूरों की सहायता से गली में जहांजहां पानी भरा था वहां मलबा डलवाना शुरू कर दिया.
‘‘यह आप क्या करा रहे हैं कर्नल साहब?’’ निर्मलजी बोले.
‘‘मलबे से भरा यह ट्रैक्टर जा रहा था. मैं ने इन से यहां फेंकने के लिए कहा तो ये तैयार हो गए. पानी इकट्ठा होने से मच्छर आदि पैदा होने से कई बीमारियां पैदा होने का खतरा भी है.’’
‘‘यह काम तो प्रशासन का है. हम टैक्स देते हैं.’’
‘‘लेकिन परेशानी तो हमें हो रही है,’’ निर्मलजी के पोते को चिप्स खाने के बाद रैपर को सड़क पर फेंकते देख कर्नल साहब ने टोका, ‘‘नहीं बेटा, रैपर सड़क पर नहीं फेंकते. इसे कूड़ेदान में फेंकना चाहिए.’’
‘‘यहां पर तो सभी फेंकते हैं. एक इस के न फेंकने से गली साफ तो नहीं हो जाएगी?’’
कर्नल साहब द्वारा अपने पोते को इस तरह टोकना निर्मलजी को अच्छा नहीं लगा. लेकिन जब उन्होंने कर्नल साहब को रैपर उठा कर अपने घर ले जाते देखा तो कुछ सोचने पर मजबूर हो गए.
दूसरे दिन सुबह जब कूड़ा उठाने वाली एक ठेली के साथ एक सफाई कर्मचारी को निर्मलजी के घर से कूड़ा ले जाते देखा तो दिनेशजी से रहा न गया और वे पूछ ही बैठे, ‘‘निर्मलजी, यह तो आप ने बहुत अच्छा किया. मैं भी काफी दिनों से इस विषय में सोच रहा था,’’ फिर सफाई कर्मचारी की ओर उन्मुख हो कर बोले, ‘‘कहां ले कर जाते हो इस कूड़े को? पता चला यहां से उठा कर किसी और के घर के सामने फेंक दिया.’’
‘‘जी, नहीं. हम इस कूड़े को 2 हिस्सों में अलगअलग कर देते हैं. एक हिस्से में फलों व सब्जियों के छिलके, बचा हुआ खाना, कागज, पत्ते आदि रखते हैं, जिन्हें आसानी से खाद में बदला जा सकता है और दूसरे में वे चीजें, जिन्हें सड़ाया न जा सके. जैसे, पौलिथीन बैग्स आदि. इन्हें हम सुरक्षित तरीकों से नष्ट कर देते हैं,’’ सफाई कर्मचारी बोला.
‘‘तभी तो सरकार पौलिथीन बैग्स के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रही है, क्योंकि ये अपनेआप नहीं सड़ते. वैसे हम इन वस्तुओं से अपने घरों में भी खाद बना सकते हैं?’’ निर्मलजी ने पूछा.
‘‘बिलकुल, अगर आप के पास किचन गार्डन है तो आप उस में छोटा सा गड्ढा खोद कर उस के अंदर फलों व सब्जियों के छिलके, सूखे पत्ते, बचा खाना डालते रहें, जब गड्ढा भर जाए तो उसे मिट्टी से बंद कर उस में पानी का छिड़काव करते रहें. 3-4 महीनों में ये सब वस्तुएं सड़ जाती हैं और खाद में परिवर्तित हो जाती हैं, जिन्हें आप खाद के रूप में अपने गमलों व क्यारियों में इस्तेमाल कर सकते हैं,’’ सफाई कर्मचारी बोला.
‘‘अगर लोग सफाई के प्रति थोड़ी सी भी जागरूकता दिखाएं तो सड़कों के किनारे इतनी गंदगी नहीं दिखाई देगी,’’ दिनेशजी बोले.
‘‘कैसे?’’
‘‘सड़कों, गलियों आदि को भी अपने घरों की तरह साफ रखने की कोशिश करें और कोई भी गंदगी सड़कों व गलियों में न फेंकें. मैं तो कहता हूं कि हमें भी विदेशों की तरह थोड़ीथोड़ी दूरी पर कूड़ेदान रखने चाहिए ताकि रास्ते में कोई गंदगी न फेंके और अगर फेंके तो हम उसे कूड़ेदान में फेंकने के लिए कहें. विदेशों में इसीलिए इतनी सफाई रहती है, क्योंकि वहां सड़कों पर कोई भी गंदगी नहीं फेंकता. सभी सड़कों और लेन आदि को साफ रखना अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं. वहां सार्वजनिक स्थानों पर तो क्या लोग निर्जन स्थानों पर भी कूड़ा नहीं फेंकते. यह उन की आदत है न कि किसी दबाव के कारण, क्योंकि बचपन से वे यह सब देखते आए हैं.
‘‘हमारा देश प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति कर रहा है, लेकिन सफाई के प्रति हम जरा भी सचेत नहीं हैं. इतना भी नहीं सोचते कि इन सब का कितना बुरा प्रभाव पड़ता है. हमारा देश इतना सुंदर है. पर्यटन से हमें आय की कितनी संभावनाएं हैं. लेकिन यहां जगहजगह फैली गंदगी को देख कर विदेशी पर्यटक
चाह कर भी यहां आने से कतराते हैं,’’ अपना विदेश का अनुभव बताते हुए दिनेशजी बोले.
कुछ सोचते हुए निर्मलजी बोले, ‘‘सड़कों पर तो प्रशासन ही कूड़ेदान रखेगा, लेकिन अपनी गली में हम आपसी सहयोग से कूड़ेदान रख सकते हैं और इसी सफाई कर्मचारी से उन की सफाई कराते रहेंगे. चलिए, सब से बात कर के देखते हैं.’’
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कूड़ेदान के प्रस्ताव पर सब सहर्ष तैयार हो गए. सब के सहयोग से लेन नं. 5 में कूड़ेदान भी आ गए. कर्नल विक्रमजी के मलबा डलवाने, सफाई कर्मचारी के कूड़ा उठाने व कूड़ेदान रखने से लेन नं. 5 साफ और व्यवस्थित रहने लगी. घर के पास कूड़ा न पड़ने के कारण अब अनीताजी ने भी अपने पोतों पर लगाम लगानी शुरू कर दी.
‘‘देखिए, सब के थोड़े से प्रयास और सफाई के प्रति थोड़ा सा सजग रहने से लेन कितनी साफ रहने लगी है,’’ निर्मलजी बोले.
‘‘इस सब का श्रेय तो कर्नल साहब को देना चाहिए,’’ गोद में 3 वर्ष की पोती को उठाए सुभाषजी बोले.
‘‘आप बिलकुल ठीक कह रहे हैं.’’
तभी कर्नल विक्रमजी की कार ने लेन में प्रवेश किया.
‘‘कहां से आ रहे हैं कर्नल साहब?’’ सुभाषजी बोले.
‘‘नगर निगम के औफिस से आ रहा हूं.’’
‘‘आप और नगर निगम के औफिस से?’’
‘‘क्यों नहीं? मैं भी इस देश का नागरिक हूं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हूं.’’
‘‘क्या कहा उन्होंने?’’ उत्सुकता से सुभाषजी ने पूछा.
‘‘उन्होंने कहा, फंड आ गया है, जल्द ही काम शुरू हो जाएगा.’’
तभी सुभाषजी की पोती गोद से उतरने के लिए मचलने लगी. जब वह नहीं मानी तो सुभाषजी को उसे गोद से उतारना पड़ा. गोद से उतरते ही अपने नन्हे कदमों से चल कर चौकलेट का रैपर, जो उस के हाथ से गिर गया था, को उठा कर कूड़ेदान में डालने की कोशिश करने लगी.
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