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Valentine’s Special: तोहफा हो प्यार का, न की उधार का

फरवरी माह आते ही हर युवा प्यार के रंगों में सराबोर नजर आने लगता है. कारण है इस माह में आने वाला त्योहार वैलेंटाइन डे. जो प्यार और प्यार के इजहार का दिन है. अपने जज्बातों को शब्दों में बयां करने के लिए हर युवा दिल को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है, और हो भी क्यों न, इस दिन प्रेमी अपने प्यार का इजहार एकदूसरे को तोहफे व फूल दे कर करते हैं. कुछ युवा तो महंगे तोहफे खरीदने के लिए उधारी तक कर लेते हैं.

तोहफे की अहमियत

हर प्रेमी की यह चाहत होती है कि वह अपने वैलेंटाइन डे को यादगार बनाए. ऐसे में इस दिन को यादगार बनाने के लिए तोहफे की अहमियत बढ़ जाती है. अपने वैलेंटाइन को महंगे से महंगा तोहफा देने के लिए प्रेमी अपनी जेब तो हलकी करते ही हैं, साथ ही उधार लेने से भी नहीं कतराते, जबकि प्यार का तोहफा दिल का तोहफा होना चाहिए न कि उधार का.

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प्यार की उधार चढ़ी दुकान

प्यार एक खूबसूरत एहसास है. जब किसी को किसी से प्यार हो जाता है तो वह रिश्ते की शुरुआत में अकसर इतना एक्साइटेड हो जाता है कि अपने प्यार की फीलिंग्स व्यक्त करने और अपनी शान बघारने के चक्कर में महंगा गिफ्ट खरीद कर अपने वैलेंटाइन को देता है, चाहे इस के लिए उसे किसी से उधार लेना पड़े या फिर तोहफे की कीमत किस्तों में अदा करनी पड़े. आखिर मामला प्यार का जो है, पर यह कितना सही है?

जितनी चादर हो उतने पैर पसारें

यह जरूरी नहीं कि अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए आप जरूरत से ज्यादा महंगा गिफ्ट खरीद कर अपने वैलेंटाइन को देंगे तभी उस से अपने दिल की बात कह पाएंगे. आप अपनी और उस की पसंद के अनुसार ही गिफ्ट देने की सोचें, नहीं तो बाद में समस्या आप को ही होगी और महंगे गिफ्ट की उधारी चुकातेचुकाते आप परेशान हो जाएंगे. इसलिए अपने बजट के अनुसार ही गिफ्ट का चुनाव करें.

आजकल मार्केट में हर रेंज के लव गिफ्ट्स मौजूद हैं. आप अपनी जेब के हिसाब से उन में से कोई भी चुन सकते हैं.

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देखादेखी न करें

प्यार में गिफ्ट देने में कभी भी कंपीटिशन न करें. किसी दूसरे के पार्टनर ने अपने वैलेंटाइन को महंगा गिफ्ट दिया है तो आप को भी महंगा गिफ्ट देना है, यह जरूरी नहीं. अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार ही गिफ्ट का चयन करें. नहीं तो इस से आप को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की कम और गिफ्ट के बारे में चिंता ज्यादा रहेगी. ऐसे में आप के प्यार की शुरुआत ही बेकार होगी और जो प्यारभरी बात आप को अपने वैलेंटाइन से करनी है, वह भी अधूरी रह जाएगी. अत: अपनी जेब और आर्थिक स्थिति को ध्यान में रख कर ही गिफ्ट खरीदें. प्यार भरा गिफ्ट जब आप अपने वैलेंटाइन को देंगे तो बात बन जाएगी.

गिफ्ट हो कुछ इस तरह खास

– अगर आप अपने दिल के जज्बातों को अपने पार्टनर से शेयर करने के लिए कोई ऐसा गिफ्ट देना चाहते हैं जो हमेशा उसे आप की याद दिलाए तो दिल से निकला संदेश दें. इस के लिए आप कुछ ऐसा करें, जिस से आप की जेब भी हलकी न हो और आप अपनी भावनाओं को भी अच्छी तरह से व्यक्त कर सकें.

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– सब से पहले अपने बिजी शैड्यूल में से कुछ समय निकालें, क्योंकि सब से कीमती उपहार है आप का साथ, जो आज के समय में कम ही मिल पाता है.

– अपने हाथों से ग्रीटिंग कार्ड बनाएं व उस पर अपनी भावनाओं को कविता के रूप में लिख कर व्यक्त करें, यह अनमोल उपहार आप के वैलेंटाइन को बहुत पसंद आएगा.

– उस के पंसदीदा फोटोग्राफ्स से भरी एक खूबसूरत स्क्रैप बुक बना कर उसे तोहफे में दें. यह नायाब तोहफा उस के दिल को छू जाएगा.

–  अपने वैलेंटाइन के साथ बिताए पलों की सुनहरी यादों को फिर से दोहराएं, ये पल वाकई उसे रोमांचित कर देंगे.- अगर आप का वैलेंटाइन पढ़ने का शौकीन है तो उसे अच्छी किताब गिफ्ट करें.

– यदि आप के वैलेंटाइन की संगीत में रुचि है या उसे पुरानी फिल्में देखने का शौक है, तो उसे उस के पसंदीदा गानों व मूवी की सीडी गिफ्ट कर सकते हैं.

– जरूरी नहीं कि उस दिन आप अपने वैलेंटाइन को किसी फाइव स्टार होटल में ही पार्टी दें. अगर आप उसे उस की पसंद के अनुसार अपने हाथों से कोई स्पैशल डिश बना कर खिलाएंगी तो उसे खुशी होगी और अपनापन लगेगा. जैस चौकलेट केक, ब्राउनी, कुकीज कप केक आदि.

– युवतियों को फंकी ज्वैलरी बहुत पंसद आती है, ऐसे में यह भी आप के बजट के अनुसार आसानी से मिल जाएगी.

– ज्यादातर युवकों को स्पोर्ट्स पसंद होता है. ऐसे में आप स्पोर्ट्स का कोई आइटम या स्पोर्ट्स क्लब की मैंबरशिप उसे गिफ्ट कर सकती

चूक गया अर्जुन का निशाना: भाग 4

करसन और कान्हा अगले ही दिन उस गांव पहुंच गए, जिस गांव में रामजी ने सविता को देखने की बात बताई थी. उस गांव में जा कर कान्हा और करसन ने सारी सच्चाई का पता लगा लिया. अर्जुन और सविता उस गांव में नाम बदल कर पतिपत्नी बन कर रह रहे थे.

अर्जुन ने पूरे गांव को बेवकूफ बना दिया था. सविता की हत्या का कौतुक रच कर दिनेश को तो फंसा ही दिया, साथ ही बड़ी होशियारी से पूरे गांव की सहानुभूति भी पा ली थी. बेटी समान पुत्रवधू से अवैध संबंध बना कर अधेड़ अर्जुन, सोच भी नहीं सकता था उस से भी अधिक होशियार निकला था.

करसन और कान्हा अगले दिन गांव लौट आए. गांव में किसी को कुछ बताए बगैर वे सीधे थाना भादरवा पहुंचे और नए आए थानाप्रभारी फौजदार सिंह से मिले. फौजदार सिंह ईमानदार और सख्त पुलिस अधिकारी थे. वह अपने कर्तव्य के प्रति काफी सजग माने जाते थे. शिकायतकर्ता की बात ध्यान से सुन कर अपराधी को कानून का भान कराना उन्हें अच्छी तरह आता था.

कान्हा और करसन ने जब सारी बात बता कर फौजदार सिंह को अर्जुन और सविता द्वारा किए गए कारनामे के बारे में बताया तो उन का कारनामा सुन कर फौजदार सिंह भी हैरान रह गए.

उन्होंने तुरंत दोनों से एक एप्लीकेशन ले कर अर्जुन और सविता के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. उस के बाद अपनी एक टीम बना कर कान्हा तथा करसन को साथ ले कर अर्जुन और सविता की गिरफ्तारी के लिए चल पड़े.

खंभाडि़या पुलिस की मदद से थानाप्रभारी फौजदार सिंह ने गांव में छिप कर रह रहे अर्जुन और सविता को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को गिरफ्तार कर थाना भादरवा लाया गया. थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई तो बिना किसी हीलाहवाली के दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

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उस के बाद उन्होंने इस अपराध के पीछे की जो कहानी सुनाई, उसे सुन कर सभी दंग रह गए. अवैध संबंध की इस कहानी ने रिश्तों को तो कलंकित किया ही, एक निर्दोष और रिश्तों के प्रति समर्पित आदमी की जिंदगी भी बरबाद कर दी थी.

अर्जुन रबारी मंजूसर गांव का बहुत पुराना निवासी था. उस के पूर्वजों ने दूध बेच कर काफी पैसा कमाया था. अपनी कमाई का सही उपयोग करते हुए उन्होंने गांव में काफी जमीनें खरीद ली थीं. उस की कुछ जमीन जीआईडीसी में चली गई थी, जिस का उसे अच्छाखासा मुआवजा मिला था.

मुआवजे की रकम से अपनी सड़क के किनारे वाली जमीन पर उस ने दुकानें और कमरे बनवा कर किराए पर उठा दिए थे. इस तरह किराए के रूप में उसे एक मोटी रकम मिल रही थी. बाकी बची जमीन पर वह खेती करवा कर आराम की जिंदगी जी रहा था.

उस का एक ही बेटा था मोहन. अचानक 2 साल पहले उस की पत्नी की मौत हो गई तो बापबेटे ही बचे. गुजरात में जबारियों में देर से शादी करने का रिवाज है. पर अर्जुन के घर रोटी बनाने वाला कोई नहीं था, इसलिए पत्नी की मौत के बाद उस ने बेटे की शादी जल्दी ही कर डाली.

पुत्रवधू के आने से दोनों को दो जून की रोटी आराम से मिलने लगी. बापबेटे की जिंदगी आराम से कट रही थी. मोहन ने अपनी जिम्मेदारी संभाल ली थी. उस ने कई गाएं और भैंसें पाल रखी थीं, जिन का दूध बेच कर वह अच्छा पैसा कमा रहा था.

मकानों और दुकानों का किराया तो आता ही था, खेती से भी ठीकठाक आमदनी हो जाती थी. उस की पत्नी सविता भी उस के हर काम में उस के साथ रह कर उस की मदद करती थी.

मोहन का सब से अच्छा दोस्त था दिनेश. हालांकि दिनेश उस से 2-3 साल बड़ा था, पर दोनों में खूब पटती थी. उन की दोस्ती ऐसी थी कि ज्यादा देर तक दोनों एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते थे. ज्यादा देर तक दोनों एकदूसरे के साथ रह सकें, इस के लिए दोनों ही खेती या घर के कामों में एकदूसरे की मदद भी करते या दोनों ही कोई भी काम एक साथ मिल कर करते.

इस से वे ज्यादा से ज्यादा देर साथ भी रह लेते और काम भी आसानी से निपट जाता. सिर्फ वे काम के ही साथी नहीं थे, दुखसुख में भी एकदूसरे का साथ देते थे.

दिनेश के पिता की बहुत पहले मौत हो गई थी. उस की शादी के साल भर बाद ही अचानक उस की मां की भी मौत हो गई थी. मां की मौत के बाद दिनेश और उस की पत्नी ही रह गए थे.

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दिनेश यारों का यार था, इसलिए उस के मोहन के अलावा भी तमाम दोस्त थे. उन में कान्हा, करसन, रफीक और महबूब खास दोस्त थे. जबकि मोहन की दोस्ती सिर्फ दिनेश से ही थी. बाकी से उस की हायहैलो भले हो जाती थी, पर साथ उठनाबैठना कोई खास नहीं था.

सब कुछ बढि़या चल रहा था कि एक दिन अचानक मोहन को घास काटते समय जहरीले सांप ने काट लिया तो उस की मौत हो गई. मोहन की मौत के बाद सविता का तो संसार ही उजड़ गया था, अर्जुन का भी बुढ़ापे का सहारा छिन गया था.

मोहन की मौत का उतना ही दुख दिनेश को भी था, जितना सविता और अर्जुन को था. इसलिए उस की मौत के बाद भी दिनेश का मोहन के घर उसी तरह आनाजाना बना रहा.

पहले जिस तरह वह हर काम में मोहन की मदद करता था, उसी तरह उस की मौत के बाद सविता की मदद करता रहा. चूंकि अब सविता विधवा हो चुकी थी, दूसरे अभी वह एकदम जवान थी, इसलिए दिनेश का उस के घर आना, उस की मदद करना लोगों की आंखों में कांटे की तरह चुभ रहा था.

सविता के ससुर अर्जुन को भी यह जरा भी पसंद नहीं था. क्योंकि दिनेश की पत्नी उसे छोड़ कर चली गई थी. वह भी अकेला था.

सविता जवान भी थी और सुंदर भी. इसलिए गांव के हर लड़के की नजर उस पर थी. अर्जुन को पता था कि सविता अभी जवान है, इसलिए कभी भी उस का पैर फिसल सकता है.

दिनेश उस के साथ हमेशा लगा ही रहता था. हालांकि वह जानता था कि दिनेश इस तरह का आदमी नहीं है, पर किसी का क्या भरोसा कब मन बदल जाए. आग और फूस करीब रहेंगे तो कभी भी आग लग सकती है.

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सविता अब करोड़ों की मालकिन थी. क्योंकि अर्जुन की सारी संपत्ति अब उसी की थी. अर्जुन नहीं चाहता था कि गांव का कोई शोहदा उस की पुत्रवधू से संबंध बना कर उस की दौलत पर उस की पुत्रवधू के साथ मौज करे. इस के लिए उस ने बिना किसी शरम संकोच के सीधे सविता से बात की.

Yeh Rishta Kya Kehalata Hai: अभिमन्यु और अनीषा पर शक करेगी अक्षरा, सामने आया Video

हर्षद चोपड़ा (Harshad Chopda) और प्रणाली राठौर (Pranali Rathore) स्टारर सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’(Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) की कहानी में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. दर्शकों को कहानी का लेटेस्ट ट्रैक काफी पसंद आ रहा है. पिछले दो हफ्ते से टीआरपी लिस्ट में इस शो का दबदबा देखने को मिल रहा है. शो में लम्बा लीप आने के बाद कहानी में दिलचस्प मोड़ आ चुका है.

शो में आपने देखा कि अनीषा का कनेक्शन कायरव से है. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट देखने को मिलेगा. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

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शो का नया प्रोमो सामने आया है. जिसमें अक्षरा अपने प्यार अभिमन्यु पर शक करती हुई नजर आ रही है. शो में दिखाया जा रहा है कि अभिमन्यु के साथ अनीषा की नजदीकियां बढ़ रही है. अक्षरा कुछ भी नहीं समझ पा रही है, आखिर उसके साथ क्या हो रहा है.

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इस प्रोमो में आप देख सकते हैं कि अक्षरा अभिमन्यु से सवाल करेगी. वह अक्षरा के हर सवाल का जवाब देगा और इस बात का भी खुलासा करेगा कि अनीषा क्या चाहती है?

 

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शो में आपने देखा था कि कायरव और अनीषा एक-दूसरे से प्यार करते हैं लेकिन अपने घर के हालात देखकर ही कायरव ने अनीषा के साथ अपने सारे रिश्ते-नाते तोड़ दिये थे. प्रोमो देखकर ये कहा जा सकता है कि कायरव और अनीषा के रिश्ते के कारण अक्षरा-अभिमन्यु के बीच सब कुछ बदल भी सकता है.

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पति हर्ष लिम्बाचिया के कारण फूट-फूट कर रोईं भारती सिंह, देखें Video

टीवी की मशहूर कॉमेडियन भारती सिंह (Bharti Singh) अपने कॉमेडी अंदाज से फैंस के दिलों पर राज करती है. भारती सिंह अपने फैंस को खुश करने के लिए शानदार कॉमेडी करती है. भारती अपने पर्सनल लाइफ को लेकर भी सुर्खियों में छायी रहती है. वह अक्सर अपने पति के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. अब भारती का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह अपने पति के कारण रोती हुई दिखाई दे रही हैं. आइए बताते हैं क्या है पूरा मामला.

भारती सिंह जल्द ही मां बनने वाली हैं. इन दिनों वह पति के साथ हुनरबाज को होस्ट कर रही हैं. शो से जुड़ा एक वीडियो सामने आया है. जिसमें कॉमेडियन भारती सिंह फूट-फूट कर रोती नजर आईं. उनके रोने का हर्ष लिम्बाचिया थे. दरअसल फील क्रू ने भारती सिंह और हर्ष लिम्बाचिया की लव स्टोरी को दर्शाते हुए परफॉर्मेंस दी थी. इसमें उन्होंने न केवल भारती सिंह के संघर्षों के बारे में बताया.

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फ्रील क्रू ने डांस के जरिए ये भी बताया कि भारती सिंह और हर्ष लिम्बाचिया की दोस्ती कैसे प्यार में बदल गई थी और एक दिन हर्ष ने उन्हें प्रपोज तक कर दिया था. परफॉर्मेंस के दौरान, हर्ष से एक बार सवाल किया गया था कि उन्होंने मोटी पंजाबी भारती सिंह में ऐसा क्या देखा था जो उसे दिल दे बैठे थे.

 

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इस बात पर हर्ष ने जवाब दिया, ‘दिल’. परफॉर्मेंस देख भारती सिंह फूट-फूटकर रोने लगी. तो वहीं हर्ष भी भावुक नजर आये. आपको बता दें कि हर्ष लिम्बाचिया ने ‘इंडियाज बेस्ट डांसर’ के मंच पर बताया था कि भारती सिंह उनकी पहली और आखिरी गर्लफ्रेंड तो थीं ही, साथ ही उनकी जिंदगी की भी पहली और आखिरी लड़की थीं.

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इधर-उधर: भाग 2

Writer- Rajesh Kumar Ranga

तनु हार मानने वालों में से नहीं थी. बोली, ‘‘और जो आप के मातापिता हमारे घर पर काजू, किशमिश और चायकाफी उड़ा रहे हैं उस का क्या?

‘‘बात तो सही है, हम दिल्ली वाले हैं. मुफ्त का माल पर हाथ साफ करना हमें खूब आता है…’’

अंबर ने हंसते हुए कहा, ‘‘चिंता न करें मैं दोनों के पैसे दे चुका हूं, नारियल वाला छुट्टा करवाने गया है.’’

यह सुन कर तनु भी हंसे बगैर नहीं रह पाई.

अंबर के जूते मिट्टी से सन गए थे. उस ने पौलिश वाले बच्चे से जूते पौलिश करवाए, तब तक नारियल वाला भी आ चुका था.

‘‘आप ने देशविदेश में कहां की सैर की है,’’ तनु ने पूछा.

अंबर के पास जवाबहाजिर था, ‘‘यह पूछिए कहां नहीं गया, नौकरी ही ऐसी है पूरा एशिया और यूरोप का कुछ हिस्सा मेरे पास है… आनाजाना लगा ही रहता है…’’

‘‘क्या फर्क लगता है आप को अपने देश और परदेश में?’’

‘‘इस का क्या जवाब दूं, सभी जानते हैं, हम हिंदुस्तानी कानून तोड़ने में विश्वास करते हैं, नियम न मानना हमारे लिए फख्र की बात है… वहां के तो जानवर भी कायदेकानून की हद से बाहर नहीं जाते.’’

‘‘फिर क्या होगा अपने देश का?’’

‘‘फिलहाल तो यह सोचिए हमारा क्या होगा, आसमान पर बादल छा रहे हैं और मेरे 10 गिनने तक बरसात हमें अपने आगोश में ले लेगी.’’

‘घर तो जाना जरूरी है. मेरी दूसरी शिफ्ट भी है,’ तनु मन ही मन बुदबुदाई और फिर ऊंची आवाज में बोली, ‘‘चलते हैं और अगर भीग भी गए तो मुझे फर्क नहीं पड़ता, मुझे बरसात में भीगना पसंद है.’’

‘‘मुझे भी,’’ अंबर ने मोटरसाइकिल स्टार्ट करते हुए कहा, ‘‘मगर यों भीगने से पहले थोड़ा इंतजार करना अच्छा नहीं रहेगा? चलिए रेस्तरां में 1-1 कप कौफी हो जाए, यह मेरा रोज का सिलसिला है…’’

तनु ने मुसकरा कर हामी भर दी. अगले चंद ही मिनटों में दोनों रेस्तरां में थे. अंबर ने ऊंची आवाज में वेटर को आवाज दी और जल्दी से 2 कप कौफी लाने का और्डर दिया. कौफी खत्म कर के अंबर ने एक बड़ा नोट बतौर टिप वेटर को दिया और दोनों बाहर आ गए. बारिश रुकने के बजाय और तेज हो चुकी थी.

पूरे रास्ते तेज बरसात में भीगते हुए तनु को बहुत आनंद आ रहा था. घर पहुंचतेपहुंचते दोनों पूरी तरह भीग चुके थे. अंबर के मातापिता मानो उन का इंतजार ही कर रहे थे, उन के आते ही औपचारिक बातचीत कर के सभी वहां से चल पड़े.

‘‘कैसा लगा लड़का?’’ भाभी ने उतावलेपन से पूछा तो तनु ने भी स्पष्ट कर दिया, ‘‘भाभी दूसरे लड़के को मना ही कर दो, कह दो मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे अंबर पसंद है…’’

‘‘तनु, अब अगर वे आ ही रहे हैं तो आने दो. कुछ समय गुजार कर उन्हें रुखसत कर देना… कम से कम हमारी बात रह जाएगी.’’

‘‘लेकिन भाभी जब मुझे अंबर पसंद है, तो इस स्वयंवर की क्या जरूरत है?’’

ठीक 4 बजे एक लंबीचौड़ी गाड़ी आ कर रुकी. गाड़ी में से एक संभ्रांत उम्रदराज जोड़ा और एक नवयुवक उतरा. पूरे परिवार ने बड़े ही सम्मान से उन का स्वागत किया.

तनु ने एक नजर लड़के पर डाली और उस के मुंह से अनायास ही निकल गया, ‘‘आप सूटबूट में तो ऐसे आए हैं मानो किसी इंटरव्यू में आए हो.’’

जयनाथजी ने इशारे से तनु को हद में रहने को कहा.

जवाब में युवक ने एक ठहाका लगाया और फिर बिना ?िझके कहा, ‘‘आप सही कह रही हैं. एक तरह से मैं एक इंटरव्यू से दूसरे इंटरव्यू में आया हूं… दरअसल, हम यहां के कामा होटल को खरीदने का मन बना रहे हैं. अभी उन के निदेशकों से मीटिंग थी, जो किसी इंटरव्यू से कम नहीं थी और यह भी किसी इंटरव्यू से कम नहीं है…’’

तनु इधरउधर की औपचारिक बातें करने के बाद मुद्दे पर आ गई. बोली, ‘‘अगर आप लोग इजाजत दें तो मैं और आकाश थोड़ा समय घर से बाहर…’’

‘‘हां जरूर,’’ लगभग सब ने एकसाथ ही कहा.

आकाश ने ड्राइवर से चाबी ली और तनु के लिए गाड़ी का दरवाजा खोल कर बैठने का आग्रह किया. तनु की फरमाइश पर गाड़ी ने एक बार फिर गेटवे औफ इंडिया का रुख किया.

‘‘यहां से एक शौर्टकट है. आप चाहें तो मुड़ सकते हैं 15-20 मिनट बच जाएंगे.’’

‘‘तनुजी आप भूल रही हैं कि इधर नो ऐंट्री है,’’ आकाश ने कहा. फिर मानो उसे कुछ याद आया, ‘‘अगर आप बुरा न मानें तो मैं रास्ते में सिर्फ 10 मिनट के लिए होटल कामा में रुक जाऊं… वहां के निर्देशकों का मैसेज आया है. वे मुझ से मिलना चाहते हैं.’’

तनु ने अनमने मन से हां कर दी. आकाश ने तनु को कौफी शौप में बैठ कर वेटर को आवाज दे कर कौफी और चिप्स का और्डर दिया और स्वयं पुन: माफी मांग कर बोर्डरूम की तरफ चला गया.

10 मिनट के बाद जब आकाश आया तो उस के चेहरे पर खुशी और विजय के भाव थे, ‘‘मेरा पहला इंटरव्यू कामयाब हुआ. यहां की डील फाइनल हो गई है… तनुजी आप हमारे लिए शुभ साबित हुईं…’’

आकाश ने वेटर को बिल लाने को कहा तो मैनेजर ने बिल लाने से इनकार कर दिया, ‘‘यह हमारी तरफ से.’’

‘‘नहीं मैनेजर साहब, अभी हम इस होटल के मालिक नहीं बने हैं और बन भी जाएं तो भी मैं नहीं चाहूंगा कि हमें या किसी और को कुछ भी मुफ्त में दिया जाए. मेरा मानना है कि मुफ्त में सिर्फ खैरात बांटी जाती है और खैरात इंसान की अगली नस्ल तक को बरबाद करने के लिए काफी होती है.’’

होटल के बाहर निकल कर आकाश ने तनु की ओर नजर डाली और कहा,

‘‘बहुत दिनों से लोकल में सफर करने की इच्छा थी, आज छुट्टी का दिन है भीड़भाड़ भी कम होगी. क्यों न हम यहां से लोकल ट्रेन में चलें फिर वहां से टैक्सी.’’

तनु ने अविश्वास से आकाश की ओर देखा और फिर दोनों स्टेशन की तरफ चल पड़े.

‘‘आप तो अकसर विदेश जाते रहते होंगे. क्या फर्क लगता है हमारे देश में और विदेशों में?’’

‘‘सच कहूं तो लंदन स्कूल औफ इकौनोमिक्स से डिगरी लेने के बाद मैं विदेश बहुत कम गया हूं. आजकल के जमाने में इंटरनैट पर सबकुछ मिल जाता है और जहां तक घूमने की बात है यूरोप की छोटीमोटी भुतहा इमारतें जिन्हें वे कैशल कहते हैं और किले मुझे ज्यादा भव्य लगते हैं… स्विटजरलैंड से कहीं अच्छा हमारा कश्मीर है, सिक्किम है, अरुणाचल है, बस जरूरत है सफाई की, सुविधाओं की और ईमानदारी की…’’

‘‘जो हमारे यहां नहीं है… है न?’’ तनु ने प्रश्न किया.

‘‘आप इनकार नहीं कर सकतीं कि बदलाव आया है और अच्छी रफ्तार से आया है. जागरूकता बढ़ी है, देश की प्रतिष्ठा बढ़ी है, हमारे पासपोर्ट की इज्जत होनी शुरू हो गई है. आज का भारत कल के भारत से कहीं अच्छा है और कल का भारत आज के भारत से लाख गुना अच्छा होगा.’’

‘‘आप तो नेताओं जैसी बातें करने लगे आकाशजी,’’ तनु को उस की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

गेटवे के किनारे तनु ने फिर नारियल पानी पीने की इच्छा जाहिर कर दी. दोनों ने नारियल पानी पीया.

सही कहा गया है कि इंसान के हालात का और मुंबई की बरसात का कोई भरोसा नहीं. एक बार फिर बादलों ने पूरे माहौल को अपने आगोश में ले कर लिया और चारों ओर रात जैसा अंधेरा छा गया. अगले ही पल मोटीमोटी बूंदों ने दोनों को भिगोना शुरू कर दिया. दोनों भाग कर पास की एक छप्परनुमा दुकान में घुस कर गरमगरम भुट्टे खाने लगे.

प्यार नहीं पागलपन- भाग 3: लावण्य से मुलाकात के बाद अशोक के साथ क्या हुआ?

वे बचपन से ही कहती थीं, ‘मैं किसी सैनिक से ही शादी करूंगी.’ अशोक, मेरे डैडी सिर्फ इसीलिए सेना में गए थे, जिस से वे विद्या यानी मेरी मम्मी से शादी कर सकें. वे मेरी मम्मी के सपनों का राजकुमार बन कर उन की जिंदगी में वापस आए थे. सैकंड लैफ्टिनैंट का कमीशन ले कर आने पर मेरी मम्मी को उन पर गर्व हुआ था. यूनिफौर्म का गर्व मेरे डैडी को था तो डैडी पर मेरी मम्मी को गर्व था.

‘‘कभीकभी तो उन दोनों के प्यार को देख कर मु  झे ही ईर्ष्या होने लगती थी. मम्मी जैसी खूबसूरत स्त्री मैं ने आज तक नहीं देखी है,’’ लावण्य बोली.

अशोक भी कहना चाहता था कि उस जैसी सुंदर, लावण्यमयी स्त्री उस ने भी नहीं देखी परंतु कह नहीं सका. तभी लावण्य ने अपनी बगल वाली कुरसी पर रखा अपना पर्स उठाया और उस में से पोस्टकार्ड साइज का एक फोटो निकाल कर अशोक के हाथ में रख दिया. अशोक ने किसी पत्रिका की कवरगर्ल जितनी सुंदर उस तसवीर को देखा. वह जिस भी औरत की तसवीर थी, सचमुच वह बहुत सुंदर थी. लावण्य की बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं थी.

‘‘इस तसवीर से भी अधिक वह सुंदर थीं. यस, मोर ब्यूटीफुल दैन दिस पिक्चर. मेरे डैडी, बस, उन्हें प्रेम करते थे, अनर्गल प्रेम, नितांत अतिशयोक्तिभरा प्रेम,’’ इतना कह कर लावण्य शांत हो गई.

अशोक उस दिन लावण्य के साथ काफी देर तक बैठा रहा. दोनों ने साथसाथ खाना भी खाया. दोदो कप चाय भी पी ली थी. दोनों अलग हुए तो उस पर दुख की छाया थी, पर उस दुख में एक नया तत्त्व मिला था, अपनत्व का. अब उन्हें एकदूसरे से कहने की जरूरत नहीं थी कि वे एकदूसरे को प्यार करते हैं.

अशोक और लावण्य की दोस्ती प्रेम में बदल गई थी. अशोक ने लावण्य का परिचय अपने घर वालों से करा दिया था. अशोक के पिता शहर के जानेमाने डाक्टर थे. अशोक घर में सब से छोटा था. बड़ा भाई पिता की तरह डाक्टर हो गया था. बड़ी बहन भी गायनीकोलौजिस्ट थी और डाक्टर से शादी की थी. बड़े भाई और भाभी ने अपना अस्पताल बना लिया था. अशोक अपनी मां के साथ रहता था. लेकिन हर रविवार को निश्चितरूप से पूरा परिवार इकट्ठा होता था और दोनों समय का खाना एकसाथ खाता था.

लावण्य अशोक का परिवार देख कर बहुत खुश हुई थी. अशोक के घर वाले सम  झ गए थे कि उस ने लावण्य को उन से क्यों मिलवाया है. वह अशोक की जिंदगी का सब से खुशी का दिन था.

उस दिन अशोक लावण्य को उस के घर पहुंचाने गया था. जैसे ही लावण्य और अशोक घर में दाखिल हुए, जया आंटी रसोई से भागती हुई आईं, ‘‘लावण्य, साहब अभी तक नहीं आए हैं.’’

‘‘कहां गए हैं?’’

‘‘रणजीत मामा के यहां गए थे. उन का फोन था. तुम जा कर उन्हें ले आओ बेटा.’’

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‘‘कब गए थे?’’

‘‘4 घंटे हो गए हैं. उन्होंने खाना भी नहीं खाया है.’’

‘‘ओके आंटी, आप चिंता मत कीजिए,’’ लावण्य ने कहा, ‘‘मैं अभी देखती हूं.’’

‘‘मैं भी तुम्हारे साथ चलूं?’’ जया ने पूछा.

‘‘नहीं, मैं पहले फोन पर बात कर लेती हूं,’’ कह कर लावण्य ने फोन लगाया. फोन उस की मामी ने उठाया. थोड़ी देर बाद फोन पर मेजर विवेक आए.

लावण्य बोली, ‘‘हैलो डैडी.’’

‘‘लावण्य?’’ उस के डैडी ने पूछा.

‘‘मैं कितनी देर से आप का इंतजार कर रही हूं,’’ लावण्य ने कहा.

‘‘अरे भई, मैं तुम्हारी मम्मी को लिए बगैर कैसे आ जाऊं. वे डौली को ले कर बाहर गई हैं. अभी तक लौटी नहीं हैं,’’ मेजर ने कहा, ‘‘वे वहां तो नहीं चली गई हैं?’’

‘‘नहीं डैडी, डौली को तो वे नोएडा में ही छोड़ आई हैं,’’ लावण्य बोली.

‘‘पर, उन्हें वहां पहुंच कर मु  झे फोन तो करना चाहिए था,’’ वे बोले.

‘‘डैडी, अब आप तुरंत यहां आ जाइए.’’

‘‘तुम अपनी मम्मी को फोन दो.’’

‘‘डैडी, वे आप से नाराज हैं. वे फोन पर नहीं आएंगी.’’

‘‘तुम उस से कह दो कि वह फोन पर नहीं आएगी तो मैं उस से बात नहीं करूंगा.’’

‘‘यह आप ही आ कर कह दीजिएगा. मैं आप लोगों के बीच में क्यों पड़ूं,’’ लावण्य ने कहा और फोन रख दिया.

अशोक चुप खड़ा आश्चर्य से उन की बातें सुन रहा था. लावण्य ने एक लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘क्या करूं, डैडी का. उन का यह रवैया धीरेधीरे बढ़ता ही जा रहा है. आजकल वे जहां भी जाते हैं, ऐसा ही करते हैं. कल डाक्टर संजय के अस्पताल पहुंच गए थे. मम्मी को वहां आईसीयू में रखा गया था. वे वहां से आ ही नहीं रहे थे. मैं जा कर उन्हें किसी तरह घर लाई थी. यह तो अच्छा है कि डाक्टर संजय उन के पुराने दोस्त हैं. मैं यह सब करते अब थक गई हूं.’’

अशोक ने लावण्य के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘रिलैक्स डियर.’’

अशोक ने लावण्य को सांत्वना देने का प्रयास किया. 15 मिनट बाद मेजर विवेक घर आ गए. घर में घुसते ही वे बोले, ‘‘अरे अशोक, तुम?’’

‘‘आप से मिलने के लिए कब से बैठा हूं सर,’’ अशोक ने कहा.

‘‘अच्छा,’’ उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आओ, आओ, आज सुबह से ही मैं तुम्हारे बारे में सोच रहा था. रणजीत को तो तुम जानते हो न?’’

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‘‘जी सर, मामा, आई मीन, लावण्य

के मामा.’’

‘‘आप का खाना लगाऊं डैडी?’’ लावण्य बीच में बोली.

‘‘खाना?’’ उन्होंने घड़ी देख कर कहा, ‘‘ओह, पौने 9 बज गए हैं. यस, अब तो खाना खा ही लेना चाहिए. अशोक, तुम भी खा लो.’’

‘‘नहीं सर, मैं अभीअभी घर से खा कर, आई मीन नाश्ता कर के आया हूं.’’

‘‘आज मैं अशोक के घर गई थी डैडी.’’

‘‘अरे वाह तो मु  झे भी अपने साथ ले चलना था.’’

‘‘सर, आप जब कहें तब आप को अपने घर ले चलूं,’’ अशोक ने कहा. तब तक जया और एक नौकर ने खाना ला कर   झट से लगा दिया.

‘‘आप हाथ धो लीजिए डैडी,’’ लावण्य बोली. मेजर मुसकराते हुए बाथरूम की ओर बढ़े.

‘‘अशोक, अकसर ऐसा ही होता है. अच्छा हुआ कि तुम घर में थे. तुम्हें देख कर वे मम्मी को भूल गए. उन के खाने तक तो तुम रुकोगे न, अशोक?’’

‘‘क्यों नहीं?’’ अशोक ने कहा तो लावण्य जया आंटी की मदद करने चली गई.

‘‘कम औन यंगमैन,’’ मेजर ने कहा. फिर सब लोग टेबल पर बैठ गए. जया खाना परोसने लगी, तभी मेजर ने कहा, ‘‘जया, गुलाबजामुन खत्म हो गए क्या?’’

‘‘हैं न सर.’’

‘‘तो फिर लाओ न.’’

जया ने गुलाबजामुन का कटोरा ला कर रखा तो मेजर साहब ने उसे अशोक की ओर खिसका दिया.

‘‘अशोक, आज मैं एक गंभीर चिंता

में था.’’

‘‘कैसी चिंता सर?’’

‘‘लावण्य को ले कर, तुम्हें तो पता है?’’ उन्होंने हंस कर कहा.

‘‘मैं सम  झा नहीं सर?’’

‘‘आज रणजीत मिलने आया था.’’

‘‘रणजीत मामा?’’ लावण्य ने पूछा, ‘‘कब?’’

‘‘सवेरे, यू नो, जानती हो किसलिए आए थे?’’

‘‘नहीं डैडी.’’

‘‘तुम बड़ी चालाक हो गई हो लावण्य. अभी तक तो तुम मु  झ से सारी बातें बता देती थीं, परंतु अब कुछ नहीं बताती हो.’’

‘‘डैडी, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने कभी आप से कोई बात नहीं छिपायी है.’’

‘‘छिपाई है न,’’ मेजर ने हंसते हुए अशोक की ओर देख कर कहा, ‘‘अशोक छिपाई है कि नहीं, तुम्हारा क्या कहना है?’’

‘‘सर, मैं क्या कहूं? मु  झे पता ही नहीं कि इस ने कौन सी बात छिपाई है. लेकिन, मैं ने आप से जरूर एक बात छिपाई है,’’ अशोक ने कहा.

‘‘एट लीस्ट, भई तुम ईमानदार आदमी हो. आई लाइक दैट,’’ मेजर विवेक ने कहा, ‘‘अब बोलो, कौन सी बात छिपाई है.’’

‘‘आप नाराज तो नहीं होंगे?’’

‘‘बिलकुल नहीं.’’

‘‘प्रौमिस सर. ए सोल्जर्स प्रौमिस…’’ अशोक ने कहा.

‘‘यस, ए सोल्जर्स प्रौमिस,’’ मेजर

ने कहा.

अधूरी रह गई फैशन ब्लॉगर की मोहब्बत- भाग 3

इस घटना के बाद पुलिस के कब्जे में रितिका की लाश, लिवइन पार्टनर विपुल अग्रवाल और हत्यारोपी पति आकाश गौतम के साथ घटना में शामिल दोनों महिलाएं कुसुमा व काजल थीं. यानी साजिश और घटना का हर सिरा और किरदार बड़ी आसानी से पुलिस के हत्थे लग चुका था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मिलीं टूटी हड्डियां

दूसरे दिन शनिवार को रितिका के शव का पोस्टमार्टम किया गया. पोस्टमार्टम डाक्टरों के एक पैनल ने किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में  रितिका के सिर, हाथपैर की हड्डियों के साथ ही पसलियां टूटी हुई थीं. उस के पेट में खून भर गया था. सिर में गहरा घाव होने से खून ज्यादा बहा था, इन सभी कारणों से उस की मौत हुई थी.

मृतका के पिता सुरेंद्र व मां मंजू ने पुलिस पर आरोप लगाया कि पुलिस आरोपियों का बचाव कर रही है. अपार्टमेंट के बाहर खड़ी मिली बाइक से ही हत्यारोपी आकाश गौतम फ्लैट में आया था. वह बाइक से भागता, इस से पहले ही पकड़ा गया.

जब वह घर से घटना को अंजाम देने आ रहा था तो इसी नंबर की बाइक पर सवार था जिस की फुटेज पुलिस को उपलब्ध करा दी गई है. लेकिन पुलिस ने बाइक को थाने की जीडी में लावारिस में दिखाया है.

रितिका सिंह ने अपने पति आकाश गौतम के साथ ही लिवइन में रह रहे विपुल के सालों व पत्नी दीपाली से अपनी जान को खतरा बताया था. उस ने 12 मार्च, 2022 को इस संबंध में थाना टूंडला में अनिल धर, सत्यम धर, दीपाली निवासी मोहल्ला चाऊ, सब्जीमंडी, फिरोजाबाद तथा पति आकाश गौतम व 2 अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस संबंध में 23 मार्च को पुलिस ने मजिस्ट्रैट के समक्ष रितिका के बयान भी कराए थे.

इस के बाद 25 मार्च को नामजद लोगों ने मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाते हुए जान से मारने या मरवाने की धमकी दी थी. इस पर रितिका ने 28 मार्च को एसएसपी फिरोजाबाद को एक शिकायतीपत्र दिया, जिस में धमकी से भयभीत होने तथा भविष्य में उस के साथ कोई अप्रिय घटना होने पर इसी शिकायती पत्र को अंतिम बयान माने जाने की बात भी कही थी.

रितिका के मातापिता का आरोप है कि पुलिस ने उस के पत्र पर कोई काररवाई नहीं की. मां मंजू ने कहा कि सरकार बेटियों की सुरक्षा के लिए कई कदम उठा रही है. इस के बावजूद उन की बेटी की घर में हत्या कर दी गई. यदि पुलिस समय रहते कदम उठाती तो उन की बेटी जिंदा होती.

रितिका का इमोशनल लेटर

रितिका की मां मंजू का कहना है कि आकाश के टौर्चर से बेटी बहुत परेशान थी. घर वालों ने उस का एक लेटर जारी किया है. लेटर रोमन लिपि में था, हालांकि उस की भाषा हिंदी है. इस पर 10 जून, 2021 की तारीख लिखी थी. पत्र में लिखा था—

‘बचपन से अब तक बहुत दुख, संघर्ष देखे हैं. पर जब बड़ी हुई तो दुखों ने हर तरफ से घेर लिया. हमेशा दूसरों के चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश की. शायद किस्मत में इतने दुख लिख कर लाई थी कि बस सब ने इस बात का फायदा उठा कर बहुत सताया.

‘पहले आकाश ने, जो अभी तक मेरी फैमिली को परेशान कर रहा है. मेरी झूठी फोटो बना कर हर जगह झूठे आरोप लगा कर मुझे बदनाम कर रहा है और वो औरत दीपाली उस ने तो मुझे, मेरी फैमिली को इतना परेशान किया है कि नरक में भी उसे जगह नहीं मिलेगी.’

बताते चलें कि दीपाली लिवइन में रह रहे दोस्त विपुल अग्रवाल की पत्नी है.

सीओ (सदर) अर्चना सिंह के अनुसार पुलिस ने अपार्टमेंट के इस फ्लैट पर ताला लगा दिया है. अभी और सुबूत जुटाए जाएंगे. रितिका द्वारा की गई शिकायत की भी जांच की जाएगी. गिरफ्तार हत्यारोपी पति आकाश गौतम व दोनों महिलाओं कुसुमा व काजल को जेल भेज दिया गया है.

लिवइन पार्टनर विपुल अग्रवाल के खिलाफ पुलिस को कोई सबूत न मिलने पर उसे छोड़ दिया गया.

पति को पत्नी का गैरपुरुष के साथ संबंध नागवार गुजरता है. पत्नी की बेवफाई यदि साबित हो जाती है तो इस मजबूत आधार पर पुरुष को पत्नी से तलाक मिल सकता है. कुछ इसी तरह की सोच को ले कर आकाश ने योजना बनाई थी.

लेकिन असली योजना उस के मन में कुछ और ही थी इस की भनक तक उस ने योजना में शामिल अपने सहयोगियों तक को भी नहीं लगने दी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

वजूद से परिचय: भैरवी के बदले रूप से क्यों हैरान था ऋषभ?

Writer- Padma Aggarwal

‘‘मम्मी… मम्मी, भूमि ने मेरी गुडि़या तोड़ दी,’’ मुझे नींद आ गई थी. भैरवी की आवाज से मेरी नींद टूटी तो मैं दौड़ती हुई बच्चों के कमरे में पहुंची. भैरवी जोरजोर से रो रही थी. टूटी हुई गुडि़या एक तरफ पड़ी थी.

मैं भैरवी को गोद में उठा कर चुप कराने लगी तो मुझे देखते ही भूमि चीखने लगी, ‘‘हां, यह बहुत अच्छी है, खूब प्यार कीजिए इस से. मैं ही खराब हूं… मैं ही लड़ाई करती हूं… मैं अब इस के सारे खिलौने तोड़ दूंगी.’’

भूमि और भैरवी मेरी जुड़वां बेटियां हैं. यह इन की रोज की कहानी है. वैसे दोनों में प्यार भी बहुत है. दोनों एकदूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकतीं.

मेरे पति ऋषभ आदर्श बेटे हैं. उन की मां ही उन की सब कुछ हैं. पति और पिता तो वे बाद में हैं. वैसे ऋषभ मुझे और बेटियों को बहुत प्यार करते हैं, परंतु तभी तक जब तक उन की मां प्रसन्न रहें. यदि उन के चेहरे पर एक पल को भी उदासी छा जाए तो ऋषभ क्रोधित हो उठते, तब मेरी और मेरी बेटियों की आफत हो जाती.

शादी के कुछ दिन बाद की बात है. मांजी कहीं गई हुई थीं. ऋषभ औफिस गए थे. घर में मैं अकेली थी. मांजी और ऋषभ को सरप्राइज देने के लिए मैं ने कई तरह का खाना बनाया.

परंतु यह क्या. मांजी ऋषभ के साथ घर पहुंच कर सीधे रसोई में जा घुसीं और फिर

जोर से चिल्लाईं, ‘‘ये सब बनाने को किस ने कहा था?’’

मैं खुशीखुशी बोली, ‘‘मैं ने अपने मन से बनाया है.’’

वे बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में चली गईं और दरवाजा बंद कर लिया. ऋषभ भी चुपचाप ड्राइंगरूम में सोफे पर लेट गए. मेरी खुशी काफूर हो चुकी थी.

ऋषभ क्रोधित स्वर में बोले, ‘‘तुम ने अपने मन से खाना क्यों बनाया?’’

मैं गुस्से में बोली, ‘‘क्यों, क्या यह मेरा घर नहीं है? क्या मैं अपनी इच्छा से खाना भी नहीं बना सकती?’’

मेरी बात सुन कर ऋषभ जोर से चिल्लाए, ‘‘नहीं, यदि तुम्हें इस घर में रहना है तो मां की इच्छानुसार चलना होगा. यहां तुम्हारी मरजी नहीं चलेगी. तुम्हें मां से माफी मांगनी होगी.’’

मैं रो पड़ी. मैं गुस्से से उबल रही थी कि सब छोड़छाड़ अपनी मां के पास चली जाऊं. लेकिन मम्मीपापा का उदास चेहरा आंखों के सामने आते ही मैं मां के पास जा कर बोली, ‘‘मांजी, माफ कर दीजिए. आगे से कुछ भी अपने मन से नहीं करूंगी.’’

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मैं ने मांजी के साथ समझौता कर लिया था. सभी कार्यों में उन का ही निर्णय सर्वोपरि रहता. मुझे कभीकभी बहुत गुस्सा आता मगर घर में शांति बनी रहे, इसलिए खून का घूंट पी जाती.

सब सुचारु रूप से चल रहा था कि अचानक हम सब के जीवन में एक तूफान आ गया. एक दिन मैं औफिस में चक्कर खा कर गिर गई और फिर बेहोश हो गई. डाक्टर को बुलाया गया, तो उन्होंने चैकअप कर बताया कि मैं मां बनने वाली हूं.

सभी मुझे बधाई देने लगे, मगर ऋषभ और मैं दोनों परेशान हो गए कि अब क्या किया जाए.

तभी मांजी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे बेटा नहीं था उसी कमी को पूरा करने के लिए यह अवसर आया है.’’

मां खुशी से नहीं समा रही थीं. वे अपने पोते के स्वागत की तैयारी में जुट गई थीं.

अब मां मुझे नियमित चैकअप के लिए डाक्टर के पास ले जातीं.

चौथे महीने मुझे कुछ परेशानी हुई तो डाक्टर के मुंह से अल्ट्रासाउंड करते समय अचानक निकल गया कि बेटी तो पूरी तरह ठीक है औैर मां को भी कुछ नहीं है.

मांजी ने यह बात सुन ली. फिर क्या था. घर आते ही फरमान जारी कर दिया कि दफ्तर से छुट्टी ले लो और डाक्टर के पास जा कर गर्भपात कर लो. मांजी का पोता पाने का सपना जो टूट गया था.

मैं ने ऋषभ को समझाने का प्रयास किया, परंतु वे गर्भपात के लिए डाक्टर के पास जाने की जिद पकड़ ली. आखिर वे मुझे डाक्टर के पास ले ही गए.

डाक्टर बोलीं, ‘‘आप लोगों ने आने में बहुत देर कर दी है. अब मैं गर्भपात की सलाह नहीं दे सकती.’’

अब मांजी का व्यवहार मेरे प्रति बदल गया. व्यंग्यबाणों से मेरा स्वागत होता. एक दिन बोलीं, ‘‘बेटियों की मां तो एक तरह से बांझ ही होती हैं, क्योंकि बेटे से वंश आगे चलता है.’’

अब घर में हर समय तनाव रहता. मैं भी बेवजह बेटियों को डांट देतीं. ऋषभ मांजी की हां में हां मिलाते. मुझ से ऐसा व्यवहार करते जैसे इस सब के लिए मैं दोषी हूं. वे बातबात पर चीखतेचिल्लाते, जिस से मैं परेशान रहती.

एक दिन मांजी किसी अशिक्षित दाई को ले कर आईं और फिर मुझ से बोलीं, ‘‘तुम औफिस से 2-3 की छुट्टी ले लो… यह बहुत ऐक्सपर्ट है. इस का रोज का यही काम है.

यह बहुत जल्दी तुम्हें इस बेटी से छुटकारा दिला देगी.’’

सुन कर मैं सन्न रह गई. अब मुझे अपने जीवन पर खतरा साफ दिख रहा था. मैं ऋषभ के आने का इंतजार करने लगीं. वे औफिस से आए तो मैं ने उन्हें सारी बात बताई.

ऋषभ एक बार को थोड़े गंभीर तो हुए, लेकिन फिर धीरे से बोले, ‘‘मांजी नाराज हो जाएंगी, इसलिए उन का कहना तो मानना ही पड़ेगा.’’

मुझे कायर ऋषभ से घृणा होने लगी. अपने दब्बूपन पर भी गुस्सा आने लगा कि क्यों मैं मुखर हो कर अपने पक्ष को नहीं रखती. मैं क्रोध से थरथर कांप रही थी. बिस्तर पर लेटी तो नींद आंखों से कोसों दूर थी.

ऋषभ बोले, ‘‘क्या बात है? बहुत परेशान दिख रही हो? सो जाओ… डरने की जरूरत नहीं है. सबेरे सब ठीक हो जाएगा.’’

मैं मन ही मन सोचने लगी कि ऋषभ इतने डरपोक क्यों हैं? मांजी का फैसला क्या मेरे जीवन से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? मेरा मन मुझे प्रताडि़त कर रहा था. मुझे अपने चारों ओर उस मासूम का करुण क्रंदन सुनाई पड़ रहा था. मेरा दिमाग फटा जा रहा था… मुझे हत्यारी होने का बोध हो रहा था. ‘बहुत हुआ, बस अब नहीं,’ सोच मैं विरोध करने के लिए मचल उठी. मैं चीत्कार कर उठी कि नहीं मेरी बच्ची, अब तुम्हें मुझ से कोई नहीं दूर कर सकता. तुम इस दुनिया में अवश्य आओगी…

मैं ने निडर हो कर निर्णय ले लिया था. यह मेरे वजूद की जीत थी. अपनी जीत पर मैं स्वत: इतरा उठी. मैं निश्चिंत हो गई और प्रसन्न हो कर गहरी नींद में सो गई.

सुबह ऋषभ ने आवाज दी, ‘‘उठो, मांजी आवाज दे रही हैं. कोई दाई आई है… तुम्हें बुला रही हैं.’’

मेरे रात के निर्णय ने मुझे निडर बना दिया था. अत: मैं ने उत्तर दिया, ‘‘मुझे सोने दीजिए… आज बहुत दिनों के बाद चैन की नींद आई है. मांजी से कह दीजिए कि मुझे किसी दाईवाई से नहीं मिलना.’’

मांजी तब तक खुद मेरे कमरे में आ चुकी थीं. वे और ऋषभ दोनों ही मेरे धृष्टता पर हैरान थे. मेरे स्वर की दृढ़ता देख कर दोनों की बोलती बंद हो गई थी. मैं आंखें बंद कर उन के अगले हमले का इंतजार कर रही थी. लेकिन यह क्या? दोनों खुसुरफुसुर करते हुए कमरे से बाहर जा चुके थे.

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भैरवी और भूमि मुझे सोया देख कर मेरे पास आ गई थीं. मैं ने दोनों को अपने से लिपटा कर खूब प्यार किया. दोनों की मासूम हंसी मेरे दिल को छू रही थी. मैं खुश थी. मेरे मन से डर हवा हो चुका था. हम तीनों खुल कर हंस रहे थे.

ऋषभ को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि रात भर में इसे क्या हो गया. अब मेरे मन में न तो मांजी का खौफ था न ऋषभ का और न ही घर टूटने की परवाह थी. मैं हर परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार थी.

यह मेरे स्वत्व की विजय थी, जिस ने मुझे मेरे वजूद से मेरा परिचय कराया था.

कोरोना काल में पुरुष मांज रहे बर्तन

Writer- डा. श्याम किशोर पांडेय

कोरोना महामारी ने भले ही चीजें अस्तव्यस्त की हों, पर इस से उभरे अच्छे बदलावों में एक यह है कि अब पुरुष भी घरों में काम करने लगे हैं, जिन में बरतन साफ करना सब से ज्यादा सहजता से स्वीकारा जा रहा है. बरतन मांजना एक कला है, इसलिए जरूरी है कि पुरुष इस की अहमियत को सम?ों और जानें कि इस में लगने वाले श्रम और समय की भी एक कीमत है.

भारतीय समाज में ज्यादातर पुरुष घर के बाहर का कामकाज करते हैं और महिलाएं घर के कार्यों में लगी रहती हैं, जिस में भोजन बनाने से ले कर ?ाड़ूपोंछा, बरतन धोना, कपड़ा धोनासुखाना, प्रैस करना आदि तमाम शामिल हैं.

घर के इन कार्यों को कोई अहिमयत समाज का पुरुष वर्ग नहीं देता है. महिलाओं के इस अतुलनीय योगदान या यों कहें कि पूरी जिंदगी खपा देने वाले कार्य का देश की अर्थव्यवस्था के विकास में कहीं कोई योगदान नहीं माना जाता और न ही देश की जीडीपी में इसे किसी भी रूप में उल्लेखित करने की कोई व्यवस्था है.

सदियों से नारी की जिंदगी इन घरेलू कार्यों को करते हुए तिलतिल कर के मरखप जाती है. इन कार्यों से मुक्ति के लिए न तो कोई छुट्टी है और न ही कोई नाम. यश, मौद्रिक रूप में भुगतान का तो सवाल ही नहीं उठता. उलटे, जिस दिन पुरुष वर्ग की छुट्टी होती है, उस दिन महिलाओं के कार्यों की संख्या और मात्रा दोनों में बढ़ोतरी जरूर हो जाती है.

कुछ दिनों पहले मेरे एक स्थापित कम्युनिस्ट मित्र ने फोन पर कहा कि वे अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं. हमेशा लेनिन मार्क्स की बात करने वाले इस मित्र की बात पर मु?ो सहसा विश्वास नहीं हुआ और मेरे मुंह से एकाएक निकल गया, ‘क्या…?’

क्या शब्द सुनते ही उन्होंने धीरे से कहा कि, ‘भाई, अन्यथा मत लेना, बीजेपी से मेरा मतलब बरतन, ?ाड़ू, पोंछा करने से है. यह बात केवल मेरे इस मित्र की ही नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो इस कोरोनाकाल में अपनीअपनी सामर्थ्य के अनुसार घर का आंतरिक कामकाज कर रहा है और घर की महिलाओं को सहयोग देने में यथासंभव अपनी भूमिका भी निभा रहा है.

हमारे देश में तकरीबन हर जगह और हर समाज में बरतन मांजने के काम को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है. सदियों से घरों में मां, बहन, पत्नी आदि महिलाएं ही बरतन मांजती चली आ रही हैं. पुरुष तो केवल साफसुथरे बरतनों में भोजन करने का आदी है.

हां, आज से एक पीढ़ी पहले तक भारत में बरतन मांजने में जितनी मेहनत व समस्याएं होती थीं, उतनी आज नहीं हैं. तब भारीभरकम पीतल व लोहे की कड़ाहियां, पतीले, थालियां, गिलास, लोटे, जग आदि हुआ करते थे. आज उन की जगह स्टील के बरतनों ने ले ली है.

पहले उपले, लकड़ी, सूखे पौधों के तने (जैसे, ?ांगअरहर के सूखे तने, कपास के सूखे तने आदि), लकड़ी, पत्थर के कोयले, मिट्टी के तेल वाले स्टोवों आदि पर भोजन पकाना पड़ता था जिस से बरतनों की पेंदियां, अंदरूनी हिस्से आदि काफी जल जाया करते थे और उन्हें मांजने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी. तब भगोने, कड़ाही, बटलोई आदि जैसे भोजन पकाने के पात्रों की पेंदी में गीली मिट्टी या राख की एक परत चढ़ा दी जाती थी, ताकि पेंदी कम जले और मांजने में अधिक मशक्कत न करनी पड़े.

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आज गैस के चूल्हों पर भोजन पकने के कारण बरतनों की पेंदी के जलने में तुलनात्मक दृष्टि से काफी कमी आई है. दूसरी समस्या, बरतनों को धोने के मामले में पानी की उपलब्धता की भी है. पहले, आज की तरह नलों से चौबीसों घंटे पानी नहीं आता था और तब संचित किए गए पानी से ही बरतन मांजने पड़ते थे और बरतन मांजने का स्थान भी रसोईघर से हट कर होता था.

साथ ही, आज बरतन मांजने के लिए भांतिभांति के जो डिटर्जेंट, लिक्विड आदि उपलब्ध हैं, वे भी पहले नहीं थे, तब राख, बालू, मिट्टी आदि से ही बरतन मांजने व चमकाने पड़ते थे. वर्तमान में, हर खातेपीते घर में कामवाली बाई को मासिक मजदूरी के आधार पर बरतन मांजने, ?ाड़ूपोंछा आदि करने के लिए रखने का चलन आम हो गया है. शहरों के साथसाथ कसबोंगांवों में भी आज यह सुविधा उपलब्ध हो गई है.

पिछले लगभग 2 वर्षों से कोविड 19 की महामारी ने हमारी जीवनचर्या को पूरी तरह से बदल दिया है. लौकडाउन के समय जहां बाहर जाने पर सरकारी प्रतिबंध था, वहीं अनलौक की स्थिति में कोरोना के बढ़ते मामलों ने अंदरूनी डर पैदा कर दिया है. इस से लोग बाहर निकलने से पहले कई बार सोचविचार कर रहे हैं. 60 वर्ष से ऊपर वाले बुजुर्ग कोरोना के कारण और भी डर रहे हैं. दवाई आने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ‘दवाई भी और कड़ाई भी’ इस का अनुसरण करते हुए मास्क और 2 गज की दूरी से अभी मुक्ति नहीं मिली है.

कोरोना के प्रकोप को देखते हुए लोगों ने काम करने वाली बाइयों को काम से हटा दिया है. कई जगहों पर इन बाइयों ने अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खुद ही घरों में काम करना छोड़ दिया है.

इन कामवाली बाइयों के न आने से तथा हमेशा पुरुष सदस्यों के घर में ही रहने से भोजन बनाने, ?ाड़ूपोंछा और बरतन धोने आदि जैसे कार्यों में भी वृद्धि हुई है. वैसे, रोज कपड़े धोने, सूखने के लिए फैलाने, उतारने, तहाने और उन्हें प्रैस करने का काम भी एक बड़ा काम है.

बारिश के मौसम में कपड़े सुखाना भारी सिरदर्द है और इसे भी घर की महिलाएं ही ?ोलती हैं. अधिकांश घरों में कोरोनाकाल के दौरान इन 4 कार्यों (भोजन बनाना, बरतन मांजना, ?ाड़ू लगाना और पोंछा लगाना) में से बरतन मांजने की जिम्मेदारी घर के पुरुष सदस्यों ने ले ली है. इस का मुख्य कारण यह है कि अधिकांश पुरुषों के लिए भोजन बनाने की कला में पारंगत होना तो बहुत दूर की बात है, बड़ी संख्या में ऐसे पुरुष हैं जिन के पास बढि़या चाय बनाने तक का हुनर नहीं है.

वैसे, कई पुरुषों को ?ाड़ूपोंछे का कार्य करने में शर्म आती है, सो उन्हें बरतन मांजने का काम ठीक लगता है. सामान्यतया खातेपीते मध्यवर्गीय व उच्चवर्गीय भारतीय परिवारों में बालक से किशोर और फिर युवा होते लड़कों को कभी भी बरतन मांजने नहीं दिए जाते हैं.

अपवादस्वरूप, यदि कहीं कोई लड़का अपनी जूठी प्लेट, गिलास आदि मांजने की कोशिश भी करता है तो परिवार की महिलाएं उसे ऐसा करने से मना कर देती हैं. माताओं का लड़कों के प्रति अतिरिक्त दुलार ही इस में एक प्रमुख कारण है.

कई घरों में तो घर के पुरुष सदस्य खुद गिलास में पानी ले कर भी नहीं पीते. पत्नी का नाम ले कर ‘जरा एक गिलास पानी देना’ कहना आम बात है. कोविड 19 के कालखंड में घर में रहने के कारण पुरुषों को यह पता चला है कि महिलाएं रातदिन घर के इन्हीं कार्यों में जुटी रहती हैं. ये कार्य देखने में भले ही बड़े न लगते हों, बराबर से लगते हों, पर उन्हें संभालना, एक ही कार्य को बारबार करते रहना, एकएक चीज को सहेज कर निर्धारित स्थान पर रखना आदि अपनेआप में बहुत बड़ा कार्य है. साथ ही, कुछ हद तक एकरस और उबाऊ भी है. इन कार्यों को करने में समय भी काफी लगता है और सब से बड़ी बात, इन्हें करने के लिए धीरज और लगन का होना बहुत जरूरी है.

वैसे तो घर के हर कार्य महत्त्वपूर्ण होते हैं पर बरतन मांजना उन में से बड़ा कार्य है. बरतन मांजने का काम सुनने में जितना आसान लगता है, उतना वास्तव में है नहीं. प्रतिदिन 4-5 व्यक्तियों के परिवार में 3 बार के भोजन, नाश्ता, चायपानी आदि को मिला दें तो मांजने के लिए रोज कम से कम 200 बरतन तो हो ही जाते हैं.

सिंक में देखने पर लगता है कि बरतन उगते ही चले जा रहे हैं. यदि परिवार में कुछ लोग मांसाहारी तथा कुछ विशुद्ध शाकाहारी हुए तो बरतनों की संख्या में भी तदनुसार वृद्धि हो जाती है. घर में रिश्तेदार तथा खास मित्रों के आने पर तथा छुट्टी और त्योहार के दिनों में विशिष्ट व्यंजन आदि बनने के कारण बरतनों की संख्या में और भी वृद्धि हो जाती है. मोटे तौर पर, घरों में मांजने के लिए जो बरतन होते हैं उन्हें मांजने की दृष्टि से 5 श्रेणियों में बांटा जा सकता है :

१.     भोजन पकाने, चाय बनाने, दूध उबालने आदि कार्यों से जुड़े बरतन :  इस के अंतर्गत कुकर, भगोना, कड़ाही, चकलाबेलन, पैन, केतली, मिक्सर, तवा आदि आते हैं.

२.     भोजन करने, चायपानी पीने वाले बरतन : इस के अंतर्गत थाली, प्लेट, कटोरी, चम्मच कांटे, गिलास, लोटा, जग, कपप्लेट आदि आते हैं.

३.     भोजन पकाने में सहायक बरतन : इस के अंतर्गत कलछुल, सड़सी, छनौटा, पलटा, चिमटा आदि आते हैं.

४.     विशेष त्योहार वाले बरतन : परिवार में मनाए जाने वाले त्योहारों के अनुरूप अलगअलग प्रकार के बरतन होते हैं, जिन में से कुछ को नित्य मांजना होता है तो कुछ केवल विशेष अवसरों/पर्वों पर धोए जाते हैं.

५.     स्टील के अतिरिक्त, चादी, तांबा, पीतल, कांसा, कांच, चीनीमिट्टी आदि के बरतन भी होते हैं.

बरतन मांजना भी अन्य कार्यों की तरह ही दक्षता की मांग करता है. साथ ही यदि मांजे हुए बरतनों के पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी अनुभवी पत्नी के हाथों में हो तो और अधिक सावधानी बरतनी आवश्यक है.

भोजन करने वाले बरतनों, जैसे थाली, कटोरी गिलास, चम्मच आदि को विम साबुन, पाउडर, लिक्विड आदि डाल कर प्लास्टिक के जूने से रगड़ कर आसानी से साफ किया जा सकता है पर भोजन पकाने वाले बरतनों, जैसे कड़ाही, भगोना, कुकर, मिक्सर आदि को पहले पानी में भिगोने के बाद ही मांजना चाहिए.

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यदि भगोने में देर तक दूध उबाला है, खीर, खिचड़ी, बिरियानी आदि बनाई है तो स्टोव पर बरतनों को देर तक रखने के कारण संबंधित पात्र बाहर से तो जलते ही हैं, अंदर भोजन सामग्री के भी कुछ जले हुए अंश भी काफी मजबूती से चिपक जाते हैं. इन बरतनों को देर तक पानी में भिगोने के बाद ही मांजना चाहिए, तभी ये अच्छी तरह से धुल पाएंगे.

जिन पुरुषों को कोरोनाकाल में पहली बार बरतन धोने पड़ रहे हैं, उन्हें कुकर, भगोना, कड़ाही आदि जैसे भोजन पकाने वाले बरतनों को बीच में और किनारे वाले हिस्सों को जोर लगा कर जूने से रगड़ना चाहिए, तभी घी, दूध, दाल, मसाले आदि के चिपके अंश साफ हो पाएंगे. यदि विम लिक्विड आदि का उपयोग कर रहे हैं तो उस में हिसाब से पानी डाल कर उसे पतला कर लें, क्योंकि गाढ़े लिक्विड से बरतन ठीक से साफ नहीं होते और धोने में काफी पानी भी खर्च होता है. साथ ही, धोने के बाद भी बरतनों में दागधब्बे दिखाई पड़ते हैं.

कुकर, कड़ाही, भगोना आदि जैसे बरतनों, जिन के अंदरूनी हिस्से या बाहरी हिस्से जल गए हों या जले हुए भोज्य पदार्थ मजबूती से चिपक गए हों, को मांजने के लिए लोहे के तार वाले जूने का भी प्रयोग कर सकते हैं, पर इस संबंध में यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि इस जूने का प्रयोग तभी किया जाए जब बहुत जरूरी हो, क्योंकि इन लोहे के जूनों का अनवरत प्रयोग करते रहने पर बरतनों में धारियां जैसे निशान पड़ जाते हैं.

कुकर में यदि दाल, खिचड़ी या बिरयानी बनाई गई है तो कुकर की सीटी के अगलबगल में दाल मसाले के अंश चिपके रह जाते हैं, इन्हें सावधानी से रगड़ कर छुड़ाना चाहिए. कुकर के गास्केट, सीटी को भी ध्यान से साफ करना चाहिए क्योंकि मसाले, दाल आदि के अंश इन में भी चिपके रह सकते हैं.

इसी तरह से मिक्सर को साफ करते समय पहले उस के ब्लेड को अलग कर लेना चाहिए, क्योंकि मिक्सी में लगे हुए ब्लेड से एक तो ढंग से सफाई नहीं हो पाती, दूसरे उंगलियों के कटने का खतरा भी बना रहता है.

लेखक ने बनारस में सुबहसुबह पहलवानों को दूध, रबड़ी, मलाई पकाने वाले बड़ेबड़े कड़ाहों को देर तक रगड़रगड़ कर साफ करते हुए देखा है. इन बरतनों को मांजने में इतनी मशक्कत होती थी कि जनवरीफरवरी की कड़ाके की ठंड में भी पहलवानों के मजबूत शरीर से भी पसीने की बूंदें छलछला आती थीं. बढि़या से चमकाए गए कड़ाहों को देख कर बहुत ही खुशी होती थी.

सावधानी बरतें

आजकल नौनस्टिक वाले बरतनों, जैसे कड़ाही, तवा, भगोना आदि का प्रचलन ख़ूब हो गया है. ऐसे बरतनों को मांजते समय इन पर की गई टेफ्लान की कोटिंग को भी ध्यान में रखना जरूरी है क्योंकि जोर से रगड़ने पर कोटिंग के छूटने का डर बना रहता है. कांच, चीनीमिट्टी के बरतनों को मांजते समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है क्योंकि विम लिक्विड, साबुन आदि लगने के बाद ये बरतन काफी चिकने हो जाते हैं और जरा सा ध्यान हटते ही ये गिर कर टूट सकते हैं.

टूटने पर तकलीफ होने के साथसाथ किचन के सिंक में से कांच के टुकड़ों को चुनचुन कर निकालना भी एक बड़ी समस्या होती है और जरा सी असावधानी से शीशे का कहीं कोई छोटामोटा कण यदि हथेली में चुभ गया तो लेने के देने पड़ सकते हैं.

इस के अतिरिक्त, गिलास, चीनीमिट्टी की एक कटोरी, कप, बाउल के टूट जाने पर पूरा का पूरा सेट भी बिगड़ सकता है. पिछले दिनों की बात है, लेखक बगल वाले कमरे में चल रहे टीवी पर एक रोचक कार्यक्रम देख रहा था और साथ में सिंक में चीनीमिट्टी के सुंदर बाउल को भी धो रहा था, पता नहीं कैसे ध्यान भटक गया और बाउल हाथ से फिसल कर सिंक में टूट गया. महंगे बाउल के टूटने का जो अफसोस हुआ वह तो हुआ ही, सेट के बिगड़ जाने का मलाल अब सदा के लिए हो गया.

पिछले कुछ वर्षों से लोग तांबे के जग में पानी रख कर तांबे के गिलास से पानी पीने लगे हैं. तांबे के बरतनों की यह खासीयत होती है कि इन्हें यदि ठीक से साफ न किया जाए तो ये काले पड़ने लगते हैं और इन में रखे हुए पानी का स्वाद कड़वा लगने लगता है.

तांबे के बरतनों को साफ करने के लिए ‘पीतांबरी’ नामक पाउडर आता है. इस पाउडर से साफ करने पर तांबे के पुराने बरतनों में स्वाभाविक चमक आ जाती है. तांबे के बरतनों को साफ करने के लिए नमक और नीबू के साथ पीतांबरी पाउडर को मिला कर सफाई की जाए तो उन में चमकदमक आ जाती है.

आजकल के किचन में सिंक के पास खड़े हो कर बरतन मांजने की सुविधा होती है. ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति की कमर में, गरदन में या घुटने आदि में दर्द हो या स्पाइनल कौर्ड की कोई तकलीफ हो तो उन्हें देर तक खड़े हो कर बरतन मांजने से परहेज करना चाहिए.

एक ही बार में यदि सिंक में 50 या उस से ज्यादा बरतन हों, जिन में कड़ाही, भगोने, कुकर आदि भी हों, तो उन्हें मांजने में कम से कम एक या सवा घंटे का वक्त तो लग ही जाता है. इतनी देर तक निरंतर खड़े रहना उम्रदराज व्यक्ति के लिए न तो संभव है और न ही स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त है. सो, एक ही बार में सारे बरतनों को मांजने के बजाय उन्हें 3 बार में मांजा जाए तो ज्यादा तनाव भी नहीं होगा और रीढ़ की हड्डी पर अधिक जोर भी नहीं पड़ेगा. अधिक बरतन मांजने से हथेलियां खुश्क और खुरदरी हो सकती हैं, नाखून घिस सकते हैं या उन की लालिमा पर भी असर पड़ सकता है. इसलिए जरूरी है कि ग्लब्स पहन कर बरतन मांजे जाएं. यदि किसी कारणवश ग्लव्स नहीं पहन पाते हैं तो बरतन धोने के बाद हथेलियों को सुखा कर कोई बढि़या सी क्रीम जरूर लगानी चाहिए और इसे उंगिलयों की पोरों व नाखूनों पर भी अच्छी तरह से लगानी चाहिए.

साथ ही बरतन मांजने के संबंध में घर की महिलाओं द्वारा दी गई हर सलाह को उसी तरह से मानना चाहिए जैसे हम कार्यालय के बौस की राय या आदेश को मानते हैं. कार्यालय में मेहनत से बनाए गए नोट को काट कर जब बौस रिड्राफ्ट करने को कहता है तो ?ां?ालाहट भी होती है और बौस को भलाबुरा कहने का मन भी करता है, पर कहते कुछ नहीं हैं, बस, चुपचाप निर्देशानुसार एक दूसरा संशोधित ड्राफ्ट तैयार कर देते हैं.

वैसे ही मांजे हुए बरतन में यदि कोई जूठा निकाल दे, कमी बता दे या मांजने का कोई तरीका सु?ा दे तो भुनभुनाए बिना उसे स्वीकारने की आदत डाल लेनी चाहिए. मांजे हुए बरतनों को एक बार सूखे साफ कपड़े से पोंछ भी लेना चाहिए. इस के 2 लाभ हैं, एक तो बरतनों में स्वाभाविक चमक आ जाती है और दूसरे, यदि कहीं कोई जूठा अंश छूट गया है तो उस का भी पता लग जाता है और उसे दोबारा धो कर साफ किया जा सकता है.

इस का एक और बड़ा लाभ यह होगा कि भोजन करने वाले द्वारा पात्र में जूठा दिखाने की नौबत नहीं आएगी. भोजन परोसे हुए पात्र में यदि कोई जूठा निकल जाए और खाने वाला उसे इंगित कर दे तो उस समय बरतन मांजने वाले को बड़ी शर्मिंदगी ?ोलनी पड़ती है.

बरतन मांजना ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्य है जो उत्साह, धीरज और एकाग्रता की मांग करता है. 4-5 लोगों के घर वाले परिवार में दो बार, तीन बार बरतन मांजने में हर बार कम से कम एक घंटे का समय लग जाता है.

इस समय का उपयोग मन को शांत रखने तथा मन में उमड़तेघुमड़ते फालतू विचारों को रोकने के लिए भी किया जा सकता है. कोरोनाकाल से पहले पुरुषों को बरतन मांजना बहुत ही आसान काम लगता था पर आज जब कोरोनाकाल में उन्हें खुद ही बरतन मांजने पड़ रहे हैं

तो उन्हें उस की अहिमयत सम?ा में आ गई है.

साथ ही उन्हें बात का भी गहराई से अनुभव हो रहा है कि घर की महिलाएं घर के ऐसे ही अनेक छोटेबड़े कितने महत्त्वपूर्ण एवं मेहनत से जुड़े कार्यों को हंसतेहंसते, बोलतेबतियाते अनवरत किया करती हैं और अपनी पूरी की पूरी जिंदगी पुरुषों तथा परिवार की खुशहाली के लिए न्योछावर कर देती हैं.

चुनावी सपने में कृष्ण

देवीदेवता चूंकि निरे काल्पनिक होते हैं इसलिए सपने में ही आते हैं. ठीक वैसे ही जैसे सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सपने में कृष्ण आ कर रोज कहते हैं कि इस बार उत्तर प्रदेश में सपा की ही सरकार बनेगी और वही रामराज्य लाएगी. बात नई सी है लेकिन भाजपा के (क्षत्रिय) राम के मुकाबले सपा के (यादव) कृष्ण भारी पड़ सकते हैं क्योंकि वे युद्ध ताकत या इच्छाशक्ति से नहीं बल्कि चालाकी व छल से जीतने के लिए गीता का उपदेश दे कर नरसंहार करवा देते हैं.

इस स्वप्न प्रकरण पर छोटेमोटे भाजपाई तो आदतन हल्ला मचा कर रह गए लेकिन योगी आदित्यनाथ फंस गए हैं, जो बेचारे यह भी नहीं कह सकते कि ‘नहीं, चुनाव जिताने का जिम्मा तो श्रीराम का है.’

मायावती चाहें तो अपने सपने में हनुमान के आने की बात कह सकती हैं क्योंकि योगी की नजर में हनुमान शूद्र थे. कांग्रेस को भी वक्त रहते अपने चुनावी सपनों का देवता घोषित कर देना चाहिए.

मराठी राबड़ी देवी

महिलाओं का मजाक बनाने के सनातनी भाजपाई संस्कार कश्मीर से कन्याकुमारी तक समान हैं. इसी कड़ी में महाराष्ट्र भाजपा के तृतीय श्रेणी के एक नेता जितेन गजरिया ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पत्नी रश्मि ठाकरे की तुलना राबड़ी देवी से महज इस बिना पर कर दी कि उन के अपने पति की जगह संभालने की अटकलें लग रही हैं.

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इस अनुमान को तथ्य में बदलने के लिए उद्धव की तथाकथित बीमारी को खूब प्रचारित किया जा रहा है. पेशे से पत्रकार रश्मि उन पत्नियों में से एक हैं जिन्होंने पति की इमेज गढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी और कभी भी चर्चाओं और सुर्खियों में नहीं रहतीं.

उद्धव का कुसूर इतना भर है कि वे राजनीति में एक नई प्रमेय गढ़ दी है कि भाजपा को धता बता कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार सफलतापूर्वक चला रहे हैं.

मुंबई की मेयर किशोरी पेडणेकर ने इस नेता को टर्नकोट कहा तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया. कुछ दिनों पहले देवेंद्र फडनवीस की पत्नी अमृता ने भी आदित्य ठाकरे को कीड़ा कहा था. इसी से सम?ा जा सकता है कि भगवा गैंग के जख्म रिसना बंद नहीं हुए हैं.

अनदेखी का लुत्फ

बंगाल की हार अभी तक कसक रही है. तिस पर नगरीय चुनावों ने तो वहां से भाजपा को 9 फीसदी वोटों पर समेटते खत्म कर दिया है. भाड़े पर जो टट्टू भगवा गैंग ने पश्चिम बंगाल में रिक्रूट किए थे, मुमकिन है उन का ट्रांसफर यूपी कर दिया गया हो. कुछ भी हो लेकिन अपने आसमान में ममता बनर्जी नरेंद्र मोदी को ऊंचा न देखने देने का कोई मौका नहीं छोड़तीं.

हुआ सिर्फ इतना था कि कोलकाता स्थित चितरंजन राष्ट्रीय कैंसर अस्पताल का वर्चुअल उद्घाटन नरेंद्र मोदी ने किया, जिस के हो जाने के बाद ममता ने उपहास सा उड़ाया कि इस अस्पताल का उद्घाटन तो वे पहले ही कर चुकी हैं.

बचेखुचे गिनती के भाजपाई चेंचेंपेंपें करते रहे और ममता प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान अपने मोबाइल से खेलते यह जताती रहीं कि वे सरासर अनदेखी कर रही हैं और इसे सब देख लें तो बेहतर है.

बिना लक्षणों के विलक्षण

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की जिंदगी पर आधारित एक किताब ‘विलक्षण जननायक’ का विमोचन एक हिंदूवादी अखबार ने भोपाल में किया. इन दिनों मोदी और योगी की तरह मूर्तियों, नदियों और गायों की राजनीति कर रहे शिवराज ने इस मौके पर किस्सा भी दलितसवर्ण बैर का सुनाया, जिस से ये बातें सिद्ध हुईं-

1- शिवराज सिंह अपने गांव जेत में 24 घंटे रामायण पढ़ते थे. 2- तब दलितों को रामायण में भागीदारी नहीं करने दी जाती थी. 3- शिवराज ने एक हरिजन दादा मलुआ से चंदा लिया था जिस का उन के रिश्तेदारों व गांव वालों ने विरोध किया था.

निष्कर्ष- विमोचन समारोह में थोक में छोटेबड़े धर्मगुरु उन पर आशीर्वचन बरसा रहे थे लेकिन दादा मलुआ के कहीं अतेपते न थे.

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