Writer- डा. श्याम किशोर पांडेय

कोरोना महामारी ने भले ही चीजें अस्तव्यस्त की हों, पर इस से उभरे अच्छे बदलावों में एक यह है कि अब पुरुष भी घरों में काम करने लगे हैं, जिन में बरतन साफ करना सब से ज्यादा सहजता से स्वीकारा जा रहा है. बरतन मांजना एक कला है, इसलिए जरूरी है कि पुरुष इस की अहमियत को सम?ों और जानें कि इस में लगने वाले श्रम और समय की भी एक कीमत है.

भारतीय समाज में ज्यादातर पुरुष घर के बाहर का कामकाज करते हैं और महिलाएं घर के कार्यों में लगी रहती हैं, जिस में भोजन बनाने से ले कर ?ाड़ूपोंछा, बरतन धोना, कपड़ा धोनासुखाना, प्रैस करना आदि तमाम शामिल हैं.

घर के इन कार्यों को कोई अहिमयत समाज का पुरुष वर्ग नहीं देता है. महिलाओं के इस अतुलनीय योगदान या यों कहें कि पूरी जिंदगी खपा देने वाले कार्य का देश की अर्थव्यवस्था के विकास में कहीं कोई योगदान नहीं माना जाता और न ही देश की जीडीपी में इसे किसी भी रूप में उल्लेखित करने की कोई व्यवस्था है.

सदियों से नारी की जिंदगी इन घरेलू कार्यों को करते हुए तिलतिल कर के मरखप जाती है. इन कार्यों से मुक्ति के लिए न तो कोई छुट्टी है और न ही कोई नाम. यश, मौद्रिक रूप में भुगतान का तो सवाल ही नहीं उठता. उलटे, जिस दिन पुरुष वर्ग की छुट्टी होती है, उस दिन महिलाओं के कार्यों की संख्या और मात्रा दोनों में बढ़ोतरी जरूर हो जाती है.

कुछ दिनों पहले मेरे एक स्थापित कम्युनिस्ट मित्र ने फोन पर कहा कि वे अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं. हमेशा लेनिन मार्क्स की बात करने वाले इस मित्र की बात पर मु?ो सहसा विश्वास नहीं हुआ और मेरे मुंह से एकाएक निकल गया, ‘क्या…?’

क्या शब्द सुनते ही उन्होंने धीरे से कहा कि, ‘भाई, अन्यथा मत लेना, बीजेपी से मेरा मतलब बरतन, ?ाड़ू, पोंछा करने से है. यह बात केवल मेरे इस मित्र की ही नहीं है बल्कि हर उस व्यक्ति की है जो इस कोरोनाकाल में अपनीअपनी सामर्थ्य के अनुसार घर का आंतरिक कामकाज कर रहा है और घर की महिलाओं को सहयोग देने में यथासंभव अपनी भूमिका भी निभा रहा है.

हमारे देश में तकरीबन हर जगह और हर समाज में बरतन मांजने के काम को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता है. सदियों से घरों में मां, बहन, पत्नी आदि महिलाएं ही बरतन मांजती चली आ रही हैं. पुरुष तो केवल साफसुथरे बरतनों में भोजन करने का आदी है.

हां, आज से एक पीढ़ी पहले तक भारत में बरतन मांजने में जितनी मेहनत व समस्याएं होती थीं, उतनी आज नहीं हैं. तब भारीभरकम पीतल व लोहे की कड़ाहियां, पतीले, थालियां, गिलास, लोटे, जग आदि हुआ करते थे. आज उन की जगह स्टील के बरतनों ने ले ली है.

पहले उपले, लकड़ी, सूखे पौधों के तने (जैसे, ?ांगअरहर के सूखे तने, कपास के सूखे तने आदि), लकड़ी, पत्थर के कोयले, मिट्टी के तेल वाले स्टोवों आदि पर भोजन पकाना पड़ता था जिस से बरतनों की पेंदियां, अंदरूनी हिस्से आदि काफी जल जाया करते थे और उन्हें मांजने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी. तब भगोने, कड़ाही, बटलोई आदि जैसे भोजन पकाने के पात्रों की पेंदी में गीली मिट्टी या राख की एक परत चढ़ा दी जाती थी, ताकि पेंदी कम जले और मांजने में अधिक मशक्कत न करनी पड़े.

ये भी पढ़ें- बैडमिंटन: तसमीन मीर की ऐतिहासिक जीत

आज गैस के चूल्हों पर भोजन पकने के कारण बरतनों की पेंदी के जलने में तुलनात्मक दृष्टि से काफी कमी आई है. दूसरी समस्या, बरतनों को धोने के मामले में पानी की उपलब्धता की भी है. पहले, आज की तरह नलों से चौबीसों घंटे पानी नहीं आता था और तब संचित किए गए पानी से ही बरतन मांजने पड़ते थे और बरतन मांजने का स्थान भी रसोईघर से हट कर होता था.

साथ ही, आज बरतन मांजने के लिए भांतिभांति के जो डिटर्जेंट, लिक्विड आदि उपलब्ध हैं, वे भी पहले नहीं थे, तब राख, बालू, मिट्टी आदि से ही बरतन मांजने व चमकाने पड़ते थे. वर्तमान में, हर खातेपीते घर में कामवाली बाई को मासिक मजदूरी के आधार पर बरतन मांजने, ?ाड़ूपोंछा आदि करने के लिए रखने का चलन आम हो गया है. शहरों के साथसाथ कसबोंगांवों में भी आज यह सुविधा उपलब्ध हो गई है.

पिछले लगभग 2 वर्षों से कोविड 19 की महामारी ने हमारी जीवनचर्या को पूरी तरह से बदल दिया है. लौकडाउन के समय जहां बाहर जाने पर सरकारी प्रतिबंध था, वहीं अनलौक की स्थिति में कोरोना के बढ़ते मामलों ने अंदरूनी डर पैदा कर दिया है. इस से लोग बाहर निकलने से पहले कई बार सोचविचार कर रहे हैं. 60 वर्ष से ऊपर वाले बुजुर्ग कोरोना के कारण और भी डर रहे हैं. दवाई आने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ‘दवाई भी और कड़ाई भी’ इस का अनुसरण करते हुए मास्क और 2 गज की दूरी से अभी मुक्ति नहीं मिली है.

कोरोना के प्रकोप को देखते हुए लोगों ने काम करने वाली बाइयों को काम से हटा दिया है. कई जगहों पर इन बाइयों ने अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खुद ही घरों में काम करना छोड़ दिया है.

इन कामवाली बाइयों के न आने से तथा हमेशा पुरुष सदस्यों के घर में ही रहने से भोजन बनाने, ?ाड़ूपोंछा और बरतन धोने आदि जैसे कार्यों में भी वृद्धि हुई है. वैसे, रोज कपड़े धोने, सूखने के लिए फैलाने, उतारने, तहाने और उन्हें प्रैस करने का काम भी एक बड़ा काम है.

बारिश के मौसम में कपड़े सुखाना भारी सिरदर्द है और इसे भी घर की महिलाएं ही ?ोलती हैं. अधिकांश घरों में कोरोनाकाल के दौरान इन 4 कार्यों (भोजन बनाना, बरतन मांजना, ?ाड़ू लगाना और पोंछा लगाना) में से बरतन मांजने की जिम्मेदारी घर के पुरुष सदस्यों ने ले ली है. इस का मुख्य कारण यह है कि अधिकांश पुरुषों के लिए भोजन बनाने की कला में पारंगत होना तो बहुत दूर की बात है, बड़ी संख्या में ऐसे पुरुष हैं जिन के पास बढि़या चाय बनाने तक का हुनर नहीं है.

वैसे, कई पुरुषों को ?ाड़ूपोंछे का कार्य करने में शर्म आती है, सो उन्हें बरतन मांजने का काम ठीक लगता है. सामान्यतया खातेपीते मध्यवर्गीय व उच्चवर्गीय भारतीय परिवारों में बालक से किशोर और फिर युवा होते लड़कों को कभी भी बरतन मांजने नहीं दिए जाते हैं.

अपवादस्वरूप, यदि कहीं कोई लड़का अपनी जूठी प्लेट, गिलास आदि मांजने की कोशिश भी करता है तो परिवार की महिलाएं उसे ऐसा करने से मना कर देती हैं. माताओं का लड़कों के प्रति अतिरिक्त दुलार ही इस में एक प्रमुख कारण है.

कई घरों में तो घर के पुरुष सदस्य खुद गिलास में पानी ले कर भी नहीं पीते. पत्नी का नाम ले कर ‘जरा एक गिलास पानी देना’ कहना आम बात है. कोविड 19 के कालखंड में घर में रहने के कारण पुरुषों को यह पता चला है कि महिलाएं रातदिन घर के इन्हीं कार्यों में जुटी रहती हैं. ये कार्य देखने में भले ही बड़े न लगते हों, बराबर से लगते हों, पर उन्हें संभालना, एक ही कार्य को बारबार करते रहना, एकएक चीज को सहेज कर निर्धारित स्थान पर रखना आदि अपनेआप में बहुत बड़ा कार्य है. साथ ही, कुछ हद तक एकरस और उबाऊ भी है. इन कार्यों को करने में समय भी काफी लगता है और सब से बड़ी बात, इन्हें करने के लिए धीरज और लगन का होना बहुत जरूरी है.

वैसे तो घर के हर कार्य महत्त्वपूर्ण होते हैं पर बरतन मांजना उन में से बड़ा कार्य है. बरतन मांजने का काम सुनने में जितना आसान लगता है, उतना वास्तव में है नहीं. प्रतिदिन 4-5 व्यक्तियों के परिवार में 3 बार के भोजन, नाश्ता, चायपानी आदि को मिला दें तो मांजने के लिए रोज कम से कम 200 बरतन तो हो ही जाते हैं.

सिंक में देखने पर लगता है कि बरतन उगते ही चले जा रहे हैं. यदि परिवार में कुछ लोग मांसाहारी तथा कुछ विशुद्ध शाकाहारी हुए तो बरतनों की संख्या में भी तदनुसार वृद्धि हो जाती है. घर में रिश्तेदार तथा खास मित्रों के आने पर तथा छुट्टी और त्योहार के दिनों में विशिष्ट व्यंजन आदि बनने के कारण बरतनों की संख्या में और भी वृद्धि हो जाती है. मोटे तौर पर, घरों में मांजने के लिए जो बरतन होते हैं उन्हें मांजने की दृष्टि से 5 श्रेणियों में बांटा जा सकता है :

१.     भोजन पकाने, चाय बनाने, दूध उबालने आदि कार्यों से जुड़े बरतन :  इस के अंतर्गत कुकर, भगोना, कड़ाही, चकलाबेलन, पैन, केतली, मिक्सर, तवा आदि आते हैं.

२.     भोजन करने, चायपानी पीने वाले बरतन : इस के अंतर्गत थाली, प्लेट, कटोरी, चम्मच कांटे, गिलास, लोटा, जग, कपप्लेट आदि आते हैं.

३.     भोजन पकाने में सहायक बरतन : इस के अंतर्गत कलछुल, सड़सी, छनौटा, पलटा, चिमटा आदि आते हैं.

४.     विशेष त्योहार वाले बरतन : परिवार में मनाए जाने वाले त्योहारों के अनुरूप अलगअलग प्रकार के बरतन होते हैं, जिन में से कुछ को नित्य मांजना होता है तो कुछ केवल विशेष अवसरों/पर्वों पर धोए जाते हैं.

५.     स्टील के अतिरिक्त, चादी, तांबा, पीतल, कांसा, कांच, चीनीमिट्टी आदि के बरतन भी होते हैं.

बरतन मांजना भी अन्य कार्यों की तरह ही दक्षता की मांग करता है. साथ ही यदि मांजे हुए बरतनों के पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी अनुभवी पत्नी के हाथों में हो तो और अधिक सावधानी बरतनी आवश्यक है.

भोजन करने वाले बरतनों, जैसे थाली, कटोरी गिलास, चम्मच आदि को विम साबुन, पाउडर, लिक्विड आदि डाल कर प्लास्टिक के जूने से रगड़ कर आसानी से साफ किया जा सकता है पर भोजन पकाने वाले बरतनों, जैसे कड़ाही, भगोना, कुकर, मिक्सर आदि को पहले पानी में भिगोने के बाद ही मांजना चाहिए.

ये भी पढ़ें- जवां पार्टी: कदम लड़खड़ा न जाएं

यदि भगोने में देर तक दूध उबाला है, खीर, खिचड़ी, बिरियानी आदि बनाई है तो स्टोव पर बरतनों को देर तक रखने के कारण संबंधित पात्र बाहर से तो जलते ही हैं, अंदर भोजन सामग्री के भी कुछ जले हुए अंश भी काफी मजबूती से चिपक जाते हैं. इन बरतनों को देर तक पानी में भिगोने के बाद ही मांजना चाहिए, तभी ये अच्छी तरह से धुल पाएंगे.

जिन पुरुषों को कोरोनाकाल में पहली बार बरतन धोने पड़ रहे हैं, उन्हें कुकर, भगोना, कड़ाही आदि जैसे भोजन पकाने वाले बरतनों को बीच में और किनारे वाले हिस्सों को जोर लगा कर जूने से रगड़ना चाहिए, तभी घी, दूध, दाल, मसाले आदि के चिपके अंश साफ हो पाएंगे. यदि विम लिक्विड आदि का उपयोग कर रहे हैं तो उस में हिसाब से पानी डाल कर उसे पतला कर लें, क्योंकि गाढ़े लिक्विड से बरतन ठीक से साफ नहीं होते और धोने में काफी पानी भी खर्च होता है. साथ ही, धोने के बाद भी बरतनों में दागधब्बे दिखाई पड़ते हैं.

कुकर, कड़ाही, भगोना आदि जैसे बरतनों, जिन के अंदरूनी हिस्से या बाहरी हिस्से जल गए हों या जले हुए भोज्य पदार्थ मजबूती से चिपक गए हों, को मांजने के लिए लोहे के तार वाले जूने का भी प्रयोग कर सकते हैं, पर इस संबंध में यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि इस जूने का प्रयोग तभी किया जाए जब बहुत जरूरी हो, क्योंकि इन लोहे के जूनों का अनवरत प्रयोग करते रहने पर बरतनों में धारियां जैसे निशान पड़ जाते हैं.

कुकर में यदि दाल, खिचड़ी या बिरयानी बनाई गई है तो कुकर की सीटी के अगलबगल में दाल मसाले के अंश चिपके रह जाते हैं, इन्हें सावधानी से रगड़ कर छुड़ाना चाहिए. कुकर के गास्केट, सीटी को भी ध्यान से साफ करना चाहिए क्योंकि मसाले, दाल आदि के अंश इन में भी चिपके रह सकते हैं.

इसी तरह से मिक्सर को साफ करते समय पहले उस के ब्लेड को अलग कर लेना चाहिए, क्योंकि मिक्सी में लगे हुए ब्लेड से एक तो ढंग से सफाई नहीं हो पाती, दूसरे उंगलियों के कटने का खतरा भी बना रहता है.

लेखक ने बनारस में सुबहसुबह पहलवानों को दूध, रबड़ी, मलाई पकाने वाले बड़ेबड़े कड़ाहों को देर तक रगड़रगड़ कर साफ करते हुए देखा है. इन बरतनों को मांजने में इतनी मशक्कत होती थी कि जनवरीफरवरी की कड़ाके की ठंड में भी पहलवानों के मजबूत शरीर से भी पसीने की बूंदें छलछला आती थीं. बढि़या से चमकाए गए कड़ाहों को देख कर बहुत ही खुशी होती थी.

सावधानी बरतें

आजकल नौनस्टिक वाले बरतनों, जैसे कड़ाही, तवा, भगोना आदि का प्रचलन ख़ूब हो गया है. ऐसे बरतनों को मांजते समय इन पर की गई टेफ्लान की कोटिंग को भी ध्यान में रखना जरूरी है क्योंकि जोर से रगड़ने पर कोटिंग के छूटने का डर बना रहता है. कांच, चीनीमिट्टी के बरतनों को मांजते समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है क्योंकि विम लिक्विड, साबुन आदि लगने के बाद ये बरतन काफी चिकने हो जाते हैं और जरा सा ध्यान हटते ही ये गिर कर टूट सकते हैं.

टूटने पर तकलीफ होने के साथसाथ किचन के सिंक में से कांच के टुकड़ों को चुनचुन कर निकालना भी एक बड़ी समस्या होती है और जरा सी असावधानी से शीशे का कहीं कोई छोटामोटा कण यदि हथेली में चुभ गया तो लेने के देने पड़ सकते हैं.

इस के अतिरिक्त, गिलास, चीनीमिट्टी की एक कटोरी, कप, बाउल के टूट जाने पर पूरा का पूरा सेट भी बिगड़ सकता है. पिछले दिनों की बात है, लेखक बगल वाले कमरे में चल रहे टीवी पर एक रोचक कार्यक्रम देख रहा था और साथ में सिंक में चीनीमिट्टी के सुंदर बाउल को भी धो रहा था, पता नहीं कैसे ध्यान भटक गया और बाउल हाथ से फिसल कर सिंक में टूट गया. महंगे बाउल के टूटने का जो अफसोस हुआ वह तो हुआ ही, सेट के बिगड़ जाने का मलाल अब सदा के लिए हो गया.

पिछले कुछ वर्षों से लोग तांबे के जग में पानी रख कर तांबे के गिलास से पानी पीने लगे हैं. तांबे के बरतनों की यह खासीयत होती है कि इन्हें यदि ठीक से साफ न किया जाए तो ये काले पड़ने लगते हैं और इन में रखे हुए पानी का स्वाद कड़वा लगने लगता है.

तांबे के बरतनों को साफ करने के लिए ‘पीतांबरी’ नामक पाउडर आता है. इस पाउडर से साफ करने पर तांबे के पुराने बरतनों में स्वाभाविक चमक आ जाती है. तांबे के बरतनों को साफ करने के लिए नमक और नीबू के साथ पीतांबरी पाउडर को मिला कर सफाई की जाए तो उन में चमकदमक आ जाती है.

आजकल के किचन में सिंक के पास खड़े हो कर बरतन मांजने की सुविधा होती है. ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति की कमर में, गरदन में या घुटने आदि में दर्द हो या स्पाइनल कौर्ड की कोई तकलीफ हो तो उन्हें देर तक खड़े हो कर बरतन मांजने से परहेज करना चाहिए.

एक ही बार में यदि सिंक में 50 या उस से ज्यादा बरतन हों, जिन में कड़ाही, भगोने, कुकर आदि भी हों, तो उन्हें मांजने में कम से कम एक या सवा घंटे का वक्त तो लग ही जाता है. इतनी देर तक निरंतर खड़े रहना उम्रदराज व्यक्ति के लिए न तो संभव है और न ही स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त है. सो, एक ही बार में सारे बरतनों को मांजने के बजाय उन्हें 3 बार में मांजा जाए तो ज्यादा तनाव भी नहीं होगा और रीढ़ की हड्डी पर अधिक जोर भी नहीं पड़ेगा. अधिक बरतन मांजने से हथेलियां खुश्क और खुरदरी हो सकती हैं, नाखून घिस सकते हैं या उन की लालिमा पर भी असर पड़ सकता है. इसलिए जरूरी है कि ग्लब्स पहन कर बरतन मांजे जाएं. यदि किसी कारणवश ग्लव्स नहीं पहन पाते हैं तो बरतन धोने के बाद हथेलियों को सुखा कर कोई बढि़या सी क्रीम जरूर लगानी चाहिए और इसे उंगिलयों की पोरों व नाखूनों पर भी अच्छी तरह से लगानी चाहिए.

साथ ही बरतन मांजने के संबंध में घर की महिलाओं द्वारा दी गई हर सलाह को उसी तरह से मानना चाहिए जैसे हम कार्यालय के बौस की राय या आदेश को मानते हैं. कार्यालय में मेहनत से बनाए गए नोट को काट कर जब बौस रिड्राफ्ट करने को कहता है तो ?ां?ालाहट भी होती है और बौस को भलाबुरा कहने का मन भी करता है, पर कहते कुछ नहीं हैं, बस, चुपचाप निर्देशानुसार एक दूसरा संशोधित ड्राफ्ट तैयार कर देते हैं.

वैसे ही मांजे हुए बरतन में यदि कोई जूठा निकाल दे, कमी बता दे या मांजने का कोई तरीका सु?ा दे तो भुनभुनाए बिना उसे स्वीकारने की आदत डाल लेनी चाहिए. मांजे हुए बरतनों को एक बार सूखे साफ कपड़े से पोंछ भी लेना चाहिए. इस के 2 लाभ हैं, एक तो बरतनों में स्वाभाविक चमक आ जाती है और दूसरे, यदि कहीं कोई जूठा अंश छूट गया है तो उस का भी पता लग जाता है और उसे दोबारा धो कर साफ किया जा सकता है.

इस का एक और बड़ा लाभ यह होगा कि भोजन करने वाले द्वारा पात्र में जूठा दिखाने की नौबत नहीं आएगी. भोजन परोसे हुए पात्र में यदि कोई जूठा निकल जाए और खाने वाला उसे इंगित कर दे तो उस समय बरतन मांजने वाले को बड़ी शर्मिंदगी ?ोलनी पड़ती है.

बरतन मांजना ऐसा महत्त्वपूर्ण कार्य है जो उत्साह, धीरज और एकाग्रता की मांग करता है. 4-5 लोगों के घर वाले परिवार में दो बार, तीन बार बरतन मांजने में हर बार कम से कम एक घंटे का समय लग जाता है.

इस समय का उपयोग मन को शांत रखने तथा मन में उमड़तेघुमड़ते फालतू विचारों को रोकने के लिए भी किया जा सकता है. कोरोनाकाल से पहले पुरुषों को बरतन मांजना बहुत ही आसान काम लगता था पर आज जब कोरोनाकाल में उन्हें खुद ही बरतन मांजने पड़ रहे हैं

तो उन्हें उस की अहिमयत सम?ा में आ गई है.

साथ ही उन्हें बात का भी गहराई से अनुभव हो रहा है कि घर की महिलाएं घर के ऐसे ही अनेक छोटेबड़े कितने महत्त्वपूर्ण एवं मेहनत से जुड़े कार्यों को हंसतेहंसते, बोलतेबतियाते अनवरत किया करती हैं और अपनी पूरी की पूरी जिंदगी पुरुषों तथा परिवार की खुशहाली के लिए न्योछावर कर देती हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...