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हिन्दूराज में हिन्दूवादी नेता का कत्ल:  कमलेश तिवारी हत्याकांड

उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है. जो हिन्दूओं की रक्षा का दम भरती है. प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सरकार की नाक के नीचे 18 अक्टूबर कर दोपहर हिन्दूवादी नेता कमलेश तिवारी की हत्या दिनदहाड़े घर में घुरकर हत्या कर दी गई. कमलेश तिवारी का घर लालकुआ के खुर्शिदबाग में भीडभाड वाली जगह पर था.

कमलेश तिवारी की हत्या के बाद हत्यारे आराम से फरार हो गये. लखनऊ पुलिस कमलेश हत्याकांड को आईएसआईएस के इस्लामिक जेहाद से जोड जांच कर रही है. घटना में उत्तर प्रदेश से लेकर गुजरात, पंजाब और नेपाल तक बिखरी कड़ियों को मिला रही है. 22 अक्टूबर हत्या के 5 दिन के बाद भी गुजरात एटीएस ने हत्यारों अशफाक और पठान मोइनीउउदीन को पकड़ने में सफलता पाई. कमलेश तिवारी की मां कुसुमा तिवारी हत्याकांड में सीतापुर के भाजपा नेता शिवकुमार गुप्ता का नाम ले रही थी. पुलिस ने मां के सीधे आरोप के बाद भी भाजपा नेता से पूछताछ तक नहीं की है.

कमलेश तिवारी की हत्या बहुत ही आराम से की गई. भगवा रंग के कुर्ते पहने दोनो युवक अशफाक और पठान मोइनीउउदीन उनके घर पंहुचें. मिठाई के डिब्बे में चाकू और पिस्तौल छिपाये हुये थे. दोपहर पौने 12 बजे दोनो वहां पहुचे. कमलेश से मुस्लिम लड़की की हिन्दू लडके से शादी कराने के मसले में दखल देने की बात कर रहे थे. इस बीच कमलेश से दोनो दही बड़ा खिलाया. कमलेश की पत्नी उनको चाय दे गई. चाय देने के बाद कमलेश ने पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ट्र सिंह को सिगरेट और पान मसाला लेने नीचे दुकान तक भेजा. जब वह वापस आया तब तक दोनो युवक चाकू से गला रेत कर फरार हो चुके थे. चाकू से गला रेतने के बाद शरिर पर पीठ और पेट कर तरफ चाकू से वार के कई घाव थे. इसके बाद भी कमलेश जिंदा ना रह जाये इसलिये पिस्तौल से भी गोली मारी थी.

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नात्थू राम गोड्से थे आदर्श

कमलेश तिवारी खुद को हिन्दू नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश में थे. धर्म से राजनीति की तरफ जाना चाहते थे. अपनी कट्टरवादी छवि से वह पूरे देश में अपना प्रचार प्रसार करना चाहते थे. कमलेश तिवारी ने अपने करियर की शुरूआत हिन्दू महासभा से की. इसके वह प्रदेश अध्यक्ष भी बने. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की विधानसभा से मात्र 3 किलोमीटर गुरूगोबिंद सिंह मार्ग के पास खुर्शेदबाग में हिदू महासभा का प्रदेश कार्यालय था. खुर्शेदबाग का नाम हिन्दू महासभा के कागजों पर वीर सावरकर नगर लिखा जाता था. कमलेश तिवारी नात्थूराम गोड्स को अपना आदर्श मानता था. घर पर उनकी तस्वीर लगी थी. कमलेश तिवारी सीतापुर स्थित अपने गांव में नात्थूराम गोड्से के नाम पर मंदिर भी बनाने की बात कही थी.

कमलेश तिवारी मूलरूप से सीतापुर जिले के संदना थाना क्षेत्र के पारा गांव के रहने वाले थे. साल 2014 में वह अपने गांव में नात्थूराम गोडसे के मंदिर को बनवाने को लेकर चर्चा में आये थे. 18 साल पहले कमलेश पारा गांव छोड़कर परिवार के साथ रहने महमूदाबाद चले गये थे. उनके पिता देवी प्रसाद उर्फ रामशरण  महमूदाबाद कस्बे के रामजनकी मंदिर में पुजारी थे. कमलेश पारा गांव में गोडसे का मंदिर बनवाना चाहते थे. 30 जनवरी 2015 को उनको मंदिर की नींव रखनी थी. इसी बीच पैगंबर पर टिपप्णी को लेकर वह दूसरे मामलें में उलझ गये. महमूदाबाद में कमलेश के पिता रामशरण मां कुसुमा देवी, भाई सोनू और बड़ा बेटा सत्यम तिवारी रहते है.

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कमलेश तिवारी हिन्दू महासभा के प्रदेश कार्यालय से संगठन का काम देखते थे. कुछ समय के बाद वह अपने बेटे रिशी और पत्नी किरन तिवारी और पार्टी कार्यकर्ता सौराष्ट्र सिंह के साथ इसी कार्यालय के उपरी हिस्से में रहने लगे. साल 2015 में जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब कमलेश तिवारी ने मुस्लिम पैगंबर पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी थी. जिसके बाद मुस्लिम वर्ग में आक्रोश भड़का और सहारनपुर में रहने वाले मौलाना ने तो कमलेश तिवारी का सर काटने वाले को इनाम देने की घोषणा कर दी थी. इसके बाद उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने कमलेश तिवारी को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानि रासूका के तहत जेल भेज दिया गया.

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कमलेश के जेल जाने के बाद हिन्दू महासभा ने उनकी पैरवी नहीं की. इस बात को लेकर कमलेश तिवारी काफी खफा थे. जेल से छूटने के बाद संगठन पर खुलकर अपना साथ ना देने का आरोप लगाया था. कमलेश तिवारी का कहना था कि हिन्दू महासभा में एक नहीं 8 राष्ट्रीय अध्यक्ष है. ऐसे में यह संगठन ठीक तरह से काम नहीं कर रहा. ऐसे में कमलेश तिवारी ने ‘हिंदू समाज पार्टी’  के नाम से अपना अलग संगठन बनाया. कमलेश तिवारी खुद इस सगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गये. कमलेश तिवारी का लक्ष्य धार्मिक संगठन से राजनीति पकड़ को मजबूत करने की थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में वह अयोध्या से लोकसभा का चुनाव भी लड़े थे. कमलेश अब अपनी राजनीति को अयोध्या में केन्द्रित करना चाहते थे. कमलेश को लगता था कि 2022 के विधानसभा चुनाव में वह भाजपा का विकल्प बन सकते है. ऐसे में वह हिन्दू समाज पार्टी को विस्तार देने का काम करने लगे थे.

भाजपा के विरोध में थे कमलेश तिवारी

एक तरफ कमलेश तिवारी खुद को हिन्दूवादी नेता मानते थे. दूसरी तरफ भाजपा और उससे जुड़े लोग कमलेश को कांग्रेसी बता कर उनकी आलोचना करते थे. कमलेश कहते थे कि ’30 साल की उम्र में हम जेल गये. हिन्दूओं को जगा रहे है. लाठी खाई और आन्दोलन किया. इसके बाद भी भाजपा और उसके आईटी सेल के लोग मुझे कांग्रेसी बताते है. हिन्दूओं का विरोध करने वाली समाजवादी पार्टी की सरकार में मुझे 12-13 पुलिस सिपाहियों की सुरक्षा मिली थी. योगी सरकार ने सुरक्षा हटा दी और केवल एक सिपाही ही सुरक्षा में दिया. इससे साफ जाहिर होता है कि मुझे मारने की साजिष में वर्तमान सरकार भी हिस्सेदार बन रही है.’ कमलेश तिवारी ने यह बयान सोषल मीडिया पर पोस्ट किया था. सुरक्षा वापस लिये जाने के पहले भी कमलेष तिवारी भारतीय जनता पार्टी के विरोध में थे.

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कमलेश तिवारी को लगता था कि भाजपा केवल हिन्दुत्व का सहारा लेकर सत्ता में आ गई है. अब वह हिन्दुओं के लिये कुछ नही कर रही. कमलेश के ऐसे विचारों का ही विरोध करते भाजपा से जुड़े लोग कमलेश को कांग्रेसी कहते थे. कमलेश तिवारी को लग रहा था कि देश में हिन्दुत्व का जो महौल बना है उसका लाभ उनकी हिन्दू समाज पार्टी को मिलेगा. 27 सितम्बर को हुई पार्टी की मीटिंग में ‘2022 में एचएसपी की सरकार‘ के नारे लगे थे. अपनी पार्टी को गति देने के लिये कमलेश तिवारी ने देश के आर्थिक हालात, पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार, बंगाल में हिन्दुओं की हत्या, नये मोटर कानून में बढ़े जुर्माना का विरोध, जीएसटी जैसे मुददो पर भाजपा की आलोचना की. इन मुददों को लेकर वह राजधानी लखनऊ में धरना प्रदर्शन भी कर चुके थे. ऐसे में भाजपा के खिलाफ विरोध को समझा जा सकता है.

सोशल मीडिया पर थे बडी शख्सियत

उत्तर प्रदेश की राजधानी में भले ही कमलेश तिवारी को बड़ा नेता नहीं माना जाता था. इसके बाद भी सोशल मीडिया में वह मजबूत हिन्दूवादी नेता के रूप में पहचाने जाते थे. कमलेश तिवारी हिन्दुत्व की अलख सोशल मीडिया के जरीये जला रहे थे. फेसबुक, वाट्सएप, और ट्विटर पर कमलेश हिन्दूत्व के पक्ष में अपने विचार देते रहते थे. आपत्तिजनक टिप्पणी के कारण फेसबुक उनकी प्रोफाइल बंद कर देता था. ऐसे में कमलेश तिवारी के नाम पर 270 से अधिक टिप्पणी बनी हुई थी. उत्तर प्रदेश में भले ही कांग्रेस नेताओं को कमलेश तिवारी की हत्या कानून व्यवस्था का मसला लगती हो पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कमलेश तिवारी की हत्या पर सवाल उठाते कहा कि ‘कमलेश तिवारी की हत्या सुनियोजित है या नहीं यह उत्तर प्रदेश सरकार बताये?  कमलेश की मां जिस शिव कुमार गुप्ता का नाम ले रही उसको पकड़ा क्यो नहीं गया? शिव कुमार गुप्ता भाजपा नेता है क्या इस लिये उनको पकड़ा नहीं जा रहा.? ‘ दिग्विजय सिंह ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी सवाल किये.

कमलेश तिवारी की हत्या का आरोप जिन लोगों पर है वह भी कमलेश को सोशल मीडिया से ही मिले थे. पुलिस कहती है कि कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले अशफाक ने रोहित सोलंकी राजू के नाम से अपना फेसबुक बनाया था. उसने खुद को मेडिकल कंपनी में जौब करने वाला बताया. जो मुम्बई का रहने वाला था और सूरत में काम कर रहा था. उसने हिन्दू समाज पार्टी से जुड़ने के लिये गुजरात के प्रदेश अध्यक्ष जैमिन बापू से संपर्क किया. जैमिन बापू कमलेश तिवारी के लिये गुजरात में पार्टी का काम देखते थे. जैमिन बापू के सपर्क में आने के बाद ही रोहित ने दो फेसबुक प्रोफाइल बनाई. इसके बाद वह कमलेश से जुड़ गया. अब वह यहां पर हिन्दुओं से जुड़े देवी देवताओं की पोस्ट करने लगा.

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फेसबुक बना सहारा

अशफाक ने फेसबुक मैसेंजर पर कमलेश तिवारी से बात करनी शुरू की. वह एक लड़की की शादी के सिलसिले में उनसे मिलना चाहता था. कमलेश के करीबी गौरव से अशफाक ने जानपहचान बढ़ाई और उनके बारे में सब जानकारी लेता रहा. अशफाक बने रोहित सोलंकी के फेसबुक में हिन्दूवादी संगठनों के 421 लोग जुड़े थे. हत्या के एक दिन पहले उसने कमलेश तिवारी को फोन करके मिलने का समय बताया. कमलेश ने पत्नी किरन से कहा कि ‘बाहर से दो लोग आ रहे है कमरा साफ कर दो’. अशफाक और पठान मोइनउददीन कमलेश तिवारी के घर से कुछ दूरी पर बने होटल खालसा इन में एक रात पहले आकर रूक चुके थे. सुबह 11 बजे होटल से नाश्ता करके निकले और कमलेश के घर पंहुच कर बारदात को अंजाम देकर वापस होटल आये अपने कपड़े बदले और 15 मिनट के बाद होटल छोड़ कर चले गये. होटल वालों को किसी भी तरह का कोई संदेह नहीं हुआ.

पुलिस को घटना स्थल से 16 अक्टूबर की रात करीब 9 बजे सूरत से खरीदी गई मिठाई का डिब्बा और बैग मिला. यह मिठाई सूरत के उद्योगनगर उधना स्थित धरती फूड प्रोडक्स से खरीदी गई थी. डिब्बे में पिस्ता धारी मिठाई की रसीद मिली. इसके बाद लखनऊ पुलिस ने गुजरात पुलिस के बीच संपर्क किया तो साजिश की कडियां जुड़नी शुरू हुई. पुलिस ने अशफाक और पठान मोइनउददीन के सपर्क के कुछ लोगों को पकड़ा. जिस आधार पर यह कहा जा रहा है कि 1 दिसम्बर 2015 को जिस समय कमलेष तिवारी से पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी उसी समय से वह मुसलिम कटटरवादी ताकतों और आईएसआईएस के निशाने पर थे.

कमलेश तिवारी की पत्नी किरन तिवारी ने हत्या में सहारनपुर के दो मौलानाओं अनवारूल हक मुफ्रती नईम का नाम पुलिस को तहरीर में लिख कर दिया. इन दोनो ने कमलेश तिवारी का सिर काटने वाले को 1 करोड़ 11 लाख का इनाम और हीरो का हार देने की घोषणा की थी. पुलिस का कहना है कि जिस तरह से गला काट कर कमलेश तिवारी की हत्या की गई है वह आईएसआईएस का तरीका दिखता है. पुलिस ने हत्या की थ्यौरी में आईएसआईएस को सामने कर दिया है पर अभी तक मुख्य आरोपी पकड़ से दूर है. ऐसे में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे है. पुलिस ने पहले पूरे मामले को निजी विवाद बताया था पर सूरत की मिठाई की दुकान की रसीद मिलने के बाद गुप्तचर सूचानाओं को आधार मानकर वह आईएसआईएस की तरफ चली गई है. कमलेश का परिवार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिला. उत्तर प्रदेश सरकार ने कमलेश के परिवार को मदद देने की बात कही. कमलेश की मां पुलिस के खुलासे से संतुष्ट नहीं है. जब तक मुख्य आरोपी पुलिस की पकड से दूर है कमलेश हत्याकांड का सच सामने आने से दूर दिख रहा है.

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आखिरी भाग

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इसी बीच दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करते और हंसतेहंसाते थे. इस हंसनेहंसाने में दोनों में कब प्यार हो गया, इस बात का उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते थे, उन्हें चैन नहीं आता था.

इस के पहले कि दोनों के संबंधों की भनक राजकुमार चौरसिया और उस के परिवार के कानों में पहुंचती, बृजेश चौरसिया ने राजकुमार की पान की दुकान पर बैठना छोड़ दिया और उसी इलाके में एक दुकान किराए पर ले कर काम शुरू कर दिया.

एक तरफ जहां मीनाक्षी और बृजेश का प्यार मजबूत हो रहा था, वहीं दूसरी ओर राजकुमार जब कभी बृजेश से मिलता था तो बृजेश से मीनाक्षी के लिए किसी योग्य लड़के की तलाश करने को कहता था. बृजेश भी राजकुमार का मन रखने के लिए उसे हां बोल दिया करता था.

बृजेश और मीनाक्षी ने मिलना बंद नहीं किया. वे समय निकाल कर कहीं न कहीं मुलाकात कर ही लेते थे. एक दिन जब उन के संबंधों की जानकारी राजकुमार को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन सरक गई थी.

हुआ यह कि राजकुमार ने जब मीनाक्षी की शादी के लिए मुंबई के विरार में एक लड़का फाइनल किया तो मीनाक्षी ने उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. मीनाक्षी ने घर वालों से साफ कह दिया कि वह शादी केवल बृजेश से ही करेगी.

तब राजकुमार ने मीनाक्षी को आडे़हाथों लिया था. उसे मारापीटा और धमकाते हुए कहा कि यह कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह उस के ही गांव और उसी की जाति का है. उस ने इस मामले में बृजेश को भी काफी धमकाया.

इस के महीने भर बाद ही उस ने मीनाक्षी की शादी एक दूसरे लड़के के साथ तय कर दी थी. यह शादी उस के गांव में होने वाली थी. इसलिए पूरा परिवार मीनाक्षी को गांव नुमाईडाही ले कर चला गया था.

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9 मार्च, 2019 को मीनाक्षी की बारात आने वाली थी. सभी मीनाक्षी की शादी की तैयारी में लगे थे. लेकिन मीनाक्षी वहां से फरार होने का रास्ता खोज रही थी. इस बीच मौका पा कर मीनाक्षी ने बृजेश को फोन किया. बृजेश ने उसे मध्य प्रदेश के शहर सतना पहुंचने को कहा.

मीनाक्षी शादी के 15 दिन पहले 22 फरवरी, 2019 को अपना घर छोड़ कर सतना पहुंच गई, वहां बृजेश ने अपने दोस्तों के साथ उस का स्वागत किया. फिर आर्यसमाज मंदिर में जा कर दोनों ने विवाह कर लिया. मंदिर में शादी करने के बाद उन्होंने 2 मई, 2019 को मुंबई पहुंच कर कोर्टमैरिज कर ली. इस के बाद दोनों मुंबई के नारायण नगर के शिवपुरी चाल में किराए का रूम ले कर रहने लगे. बृजेश अपनी दुकान पर बैठने लगा था.

मीनाक्षी के इस कदम से राजकुमार चौरसिया की समाज, गांव और नातेरिश्तेदारी में काफी बदनामी हुई थी. बेटी की वजह से उस का सिर शर्म से झुक गया था. उसे पता चल गया था कि बेटी ने बृजेश से शादी कर ली है. जिस की टीस उस के मन की गहराई में जा कर बैठ गई थी.

कुछ दिनों बाद मीनाक्षी ने अपनी मां से फोन पर बात करनी शुरू कर दी थी. परिवार वालों ने मीनाक्षी को इस शर्त पर माफ कर दिया था कि वह कभी बृजेश के साथ मुंबई से गांव या ससुराल नहीं जाएगी.

मगर ऐसा हुआ नहीं. समय अपनी गति से चल रहा था. मीनाक्षी गर्भवती हो गई थी. इस बीच बृजेश और मीनाक्षी ने यह योजना बनाई कि डिलिवरी के बाद वे दोनों गांव जा कर बच्चे को अपने मांबाप का आशीर्वाद दिलवाएंगे.

इस बात की भनक जब राजकुमार को लगी तो वह अपनी इज्जत को ले कर परेशान हो गया. वह गांव में दोबारा अपनी बेइज्जती नहीं करवाना चाहता था, इसलिए उस ने बेटी मीनाक्षी के प्रति एक खतरनाक फैसला ले लिया. उस ने सोच लिया कि वह ऐसा करेगा कि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.

योजना के अनुसार, 13 जुलाई 2019 की रात राजकुमार चौरसिया ने मीनाक्षी को फोन कर के 14 जुलाई को अपने घर बुलाया और कहा कि जिस तरह से तुम लोगों ने शादी की थी, उस में वह उन्हें कुछ नहीं दे पाया था, इसलिए उस ने उस के और दामाद के लिए कुछ कपड़े आदि खरीद कर रखे हैं. वह आ कर कपड़े वगैरह ले जाए.

पिता से फोन पर बात होने पर मीनाक्षी काफी खुश हुई. उस ने यह बात पति बृजेश को बताई तो बृजेश ने उसे पिता के पास जाने से मना कर दिया. लेकिन फिर भी मीनाक्षी नहीं मानी. क्योंकि वह तो इस विश्वास में थी कि पिता ने उसे माफ कर दिया है.

इसलिए पिता का थोड़ा प्यार पा कर वह उन से मिलने उस के घर चली गई थी. रात 12 बजे जब बृजेश दुकान से घर आया तो उसे मीनाक्षी घर पर नहीं मिली. वह समझ गया कि वह अपने पिता के पास ही गई होगी.

उस ने उसी समय मीनाक्षी और उस के पिता राजकुमार चौरसिया को फोन किया, लेकिन फोन बंद आ रहा था. काम से थका होने के कारण उस ने घर में रखा खाना खाया और फिर सो गया. सुबह उसे पुलिस वालों ने आ कर जगाया था.

हुआ यह था कि 14 जुलाई, 2019 की रात 10 बजे जब मीनाक्षी पिता राजकुमार चौरसिया के घर पहुंची तो घर में उस समय कोई नहीं था. राजकुमार के परिवार वाले उस रात बाहर एक रिश्तेदार के यहां चले गए थे. राजकुमार चौरसिया पूरी तैयारी के साथ बेटी मीनाक्षी का इंतजार कर रहा था.

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मीनाक्षी जैसे ही घर में दाखिल हुई तो राजकुमार उठ कर खड़ा हो गया और जैसे ही आशीर्वाद लेने के लिए वह पिता के पैर छूने को नीचे झुकी, तभी राजकुमार ने चाकू से उस के ऊपर हमला कर दिया. हमला करते समय राजकुमार ने मीनाक्षी का मुंह दबा रखा था, जिस कारण उस की चीख घुट कर ही रह गई थी.

मीनाक्षी की हत्या करने के बाद उस के शव को रिक्शा स्टैंड के पीछे डाल कर वह फरार हो गया और सीधे अपने गांव चला गया था.

पुलिस टीम ने राजकुमार चौरसिया से विस्तृत पूछताछ कर उसे उस की बेटी मीनाक्षी चौरसिया की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक राजकुमार चौरसिया जेल में बंद था. मामले का आरोपपत्र इंसपेक्टर विलाख दातीर तैयार कर रहे थे.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

अंजाम ए मोहब्बत: भाग 1

सुहाग सेज पर बैठी मीनाक्षी काफी परेशान थी, क्योंकि उस ने अपनी मरजी से जो कदम उठाया था वह उस के परिवार वालों की इच्छा के खिलाफ था. उस ने अपने ही गांव के रहने वाले बृजेश चौरसिया के साथ कोर्टमैरिज की थी.

सुहागसेज पर बैठी वह सोच रही थी कि उस ने अपनी पसंद से यह शादी कर तो ली है और यदि बृजेश उस की कसौटी पर खरा न उतरा या प्यार का जुनून खत्म होने के बाद उस ने उसे अपने जीवन से दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया तो क्या होगा. ऐसी स्थिति में वह क्या करेगी, कहां जाएगी?

इन्हीं विचारों के बीच वह अपने आप को सहज करने की कोशिश भी कर रही थी. इस भंवरजाल से उस का ध्यान तब भंग हुआ जब पति बृजेश ने उस के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘क्या बात है मीनू, किन खयालों में खोई हो?’’

‘‘अरे आप कब आए, पता ही नहीं चला.’’ मीनाक्षी अपने कंधे पर रखे बृजेश के हाथ का स्पर्श पा कर चौंकते हुए बोली.

‘‘जब तुम अपने खयालों में गहरी खोई थी.’’ बृजेश ने मुसकरा कर कहा, ‘‘बताओ, क्या सोच रही थी?’’

‘‘बृजेश, मैं अंदर से बहुत डरी हुई हूं क्योंकि मैं ने अपने पिता की मरजी के खिलाफ तुम से विवाह किया है. बस मैं तुम से यही चाहती हूं कि मुझे मझधार में मत छोड़ना वरना मैं कहीं की नहीं रहूंगी.’’ कहते हुए मीनाक्षी का चेहरा उदास हो गया.

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‘‘मीनू, तुम ऐसा क्यों सोच रही हो?’’ बृजेश ने उस के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में ले कर कहा, ‘‘तुम्हें मेरे प्यार पर भरोसा नहीं है क्या, या फिर 4 सालों में तुम मुझे समझ नहीं पाई? मीनू, मैं आज भी वादा करता हूं कि मैं तुम्हें कभी अपने जीवन से अलग नहीं होने दूंगा, इसलिए इस तरह के विचार अपने मन से निकाल दो. मैं तुम्हें हमेशा खुश रखने की कोशिश करूंगा.’’

बृजेश ने मीनाक्षी के अंदर बैठी असुरक्षा की भावना को निकालने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘रही तुम्हारे मांबाप और परिवार की बात तो उस की चिंता तुम बिलकुल मत करो. समय के साथ सब ठीक हो जाएगा. यह तुम भी जानती हो कि किसी के भी मांबाप पत्थरदिल नहीं होते. उन की नाराजगी सिर्फ थोड़े ही दिनों की रहती है. बाद में वह सब भूल कर अपने बच्चों को गले लगा लेते हैं.’’

बृजेश की इन बातों से मीनाक्षी को काफी हिम्मत मिली थी और वह सामान्य हो गई. तब उन्होंने वह रात और भी ज्यादा खुशनुमा बनाई. इस के बाद बृजेश और मीनाक्षी की वैवाहिक जिंदगी हंसीखुशी से बीत रही थी. मीनाक्षी को पति से कोई शिकायत नहीं थी. ससुराल में मीनाक्षी का मन लग रहा था. वह बहुत खुश थी.

कुछ महीनों बाद मीनाक्षी ने फोन पर अपनी मां से भी बातें करनी शुरू कर दीं. वह पिता से भी बात करना चाहती थी. पिता राजकुमार ने उसे इस शर्त पर क्षमा किया कि वह अपने गांव प्रयागराज कभी नहीं जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

15 जुलाई, 2019 की बात है. सुबह के यही कोई 6 बजे का समय था. महानगर मुंबई के उपनगर घाटकोपर (पूर्व) स्थित नारायण नगर के मधुबन टोयटा शोरूम के पास रिक्शा स्टैंड के नजदीक एक युवती की लाश पड़ी मिली. कुछ ही देर में लाश मिलने की खबर पूरे इलाके में फैल गई. देखते ही देखते मौके पर लोगों की भारी भीड़ एकत्र हो गई थी.

वह लाश खून से लथपथ थी. जिस ने भी वह लाश देखी, उस का कलेजा कांप गया. चूंकि वह युवती उसी क्षेत्र की रहने वाली थी, इसलिए कई लोगों ने उसे पहचान लिया. वह और कोई नहीं बल्कि शिवपुरी की चाल में पति बृजेश चौरसिया के साथ रहने वाली मीनाक्षी चौरसिया थी.

वहां मौजूद लोगों में से किसी ने युवती की हत्या की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. चूंकि जिस स्थान पर लाश मिली थी, वह इलाका घाटकोपर थाने के अंतर्गत आता है, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से यह सूचना थाना घाटकोपर में दे दी गई.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विश्वनाथ कोलेकर सहायक इंसपेक्टर विलाख दातीर, दीपवने आदि के साथ मौके पर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने शव का निरीक्षण किया तो पता चला कि युवती की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी.

देखने से ऐसा लग रहा था जैसे कि हत्यारे से उस की किसी बात को ले कर गहरी रंजिश थी. मृतका के सिर, गले और पीठ पर चाकुओं के कई गहरे जख्म थे. उन्होंने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

वहां मौजूद लोगों ने मृतका की शिनाख्त करते हुए जानकारी पुलिस को दे दी थी. तब थानाप्रभारी ने मृतका के पति बृजेश चौरसिया को बुलाने के लिए 2 सिपाहियों को शिवपुरी की चाल में भेजा. जब पुलिस वाले वहां पहुंचे तो बृजेश उस समय सो रहा था. पुलिस वाले उसे बुला कर मौके पर ले आए. वहां पत्नी मीनाक्षी का रक्तरंजित शव देख कर बृजेश दहाड़ें मार कर रोने लगा.

उसी समय एडिशनल सीपी लखमी गौतम, डीसीपी अखिलेश सिंह, एसीपी मानसिंह पाटिल मौके पर पहुंच गए. डौग स्क्वायड टीम भी वहां पहुंच कर अपने काम में जुट गई. टीम का काम निपट जाने के बाद पुलिस ने मीनाक्षी की लाश पोस्टमार्टम के लिए घाटकोपर के ही राजावाड़ी अस्पताल भेज दी.

बृजेश की शिकायत पर थानाप्रभारी ने मुकदमा दर्ज कर उस की जांच असिस्टेंट इंसपेक्टर विलाख दातीर को सौंप दी थी.

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अगले दिन पुलिस को मीनाक्षी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. रिपोर्ट से पता चला कि मीनाक्षी 4 महीने की गर्भवती थी. उस के शरीर पर 7 गहरे घाव थे, जो किसी धारदार हथियार से किए गए थे.

इस हत्या की क्या वजह हो सकती है, जानने के लिए पुलिस ने मृतका के पति बृजेश चौरसिया को थाने बुलाया. उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मीनाक्षी की हत्या उस के पिता राजकुमार चौरसिया ने की है, क्योंकि मीनाक्षी ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ उस से लवमैरिज की थी. इस बात से उस के घर वाले नाराज थे.

चूंकि बृजेश ने सीधा आरोप अपने ससुर राजकुमार पर लगाया था, इसलिए पुलिस उसे तलाश करने लगी. लेकिन वह अपने घर से फरार मिला. आखिर राजकुमार चौरसिया के मोबाइल फोन की लोकेशन के सहारे पुलिस उस के पास पहुंच ही गई और उसे उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज में स्थित उस के पैतृक घर से दबोच लिया.

मुंबई ला कर उस से उस की बेटी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो राजकुमार ने अपनी बेटी की हत्या के मामले में अनभिज्ञता जाहिर की लेकिन पुलिस टीम ने जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह टूट गया और तोते की तरह बोलते हुए अपना गुनाह स्वीकार लिया.

इस के बाद पुलिस ने राजकुमार चौरसिया को कोर्ट में पेश कर 7 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से की गई पूछताछ के बाद मीनाक्षी चौरसिया हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार थी—

55 वर्षीय राजकुमार चौरसिया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

गांव में उस के परिवार की सिर्फ नाममात्र की काश्तकारी थी. उस का पुश्तैनी काम पान बेचने का था. गांव के बाजारों से जो आमदनी होती थी, उस से ही घर और परिवार की रोजीरोटी चलती थी. इस आमदनी से राजकुमार संतुष्ट नहीं था.

लिहाजा अपनी रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर महानगर मुंबई चला आया. क्योंकि यहां उस के इलाके के और भी लोग काम करते थे. मुंबई शहर के बारे में उस ने यह सुन रखा था कि वह एक ऐसा शहर है, जहां मेहनत करने वाला इंसान कभी भूखा नहीं सोता है.

उन दिनों मुंबई की सूरत आज जैसी नहीं थी. न तो भीड़ थी और न जमीनों की कीमत आसमान छू रही थी. उस समय वहां आदमी को मामूली किराए पर दुकान और घर मिल जाते थे.

राजकुमार चौरसिया ने 2-4 दिन इधरउधर भटकने के बाद घाटकोपर नारायणनगर में अपना पुश्तैनी काम करने के लिए एक खोखा लगा लिया, जो धीरेधीरे एक पान की दुकान में बदल गया था.

कुछ ही दिनों में उस की दुकान चल निकली और उस से अच्छी कमाई होने लगी. जिस से उस ने अपने रहने के लिए दुकान के पास ही अपना एक घर ले लिया. इस के अलावा वह अपनी कमाई से घरपरिवार की भी मदद करने लगा था, जिस से घर की आर्थिक स्थिति भी पटरी पर आने लगी थी.

इस के बाद राजकुमार की शादी भी हो गई. शादी के थोड़े दिनों बाद वह अपनी पत्नी को भी मुंबई बुला लाया. समयसमय पर वह अपने गांव जाता रहता था, जिस से गांव के लोगों से उस का संपर्क बना रहा.

समय अपनी गति से बीतता गया और राजकुमार 3 बच्चों का पिता बन गया. 20 वर्षीय मीनाक्षी राजकुमार की सब से छोटी और लाडली बेटी थी. उस से बड़े उस के 2 बेटे थे. मीनाक्षी पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. वह जवान हुई तो राजकुमार को उस की शादी की चिंता हुई. वह बेटी के योग्य वर की तलाश में लग गया.

जहां एक तरफ राजकुमार मीनाक्षी के लिए वर की तलाश में था, वहीं मीनाक्षी ने अपने लिए बृजेश चौरसिया को चुन लिया था. 27 वर्षीय बृजेश चौरसिया उस की जाति बिरादरी का था. वह भी प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

सन 2016 में जब बृजेश चौरसिया अपना गांव छोड़ कर महानगर मुंबई आया था तो राजकुमार चौरसिया ने उसे अपने यहां सहारा दे कर उस की मदद की थी. उस ने उसे अपनी दुकान पर कुछ दिनों तक काम पर लगाया. राजकुमार और परिवार वाले उसे अपने घर का सदस्य मानते थे. मीनाक्षी कभीकभी दुकान पर बैठे बृजेश के लिए खाना देने जाती थी.

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क्रमश:

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आखिरी सेल्फी : भाग 2

आखिरी सेल्फी : भाग 1

आखिरी भाग

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भाग 2

दबंग शंकर के सामने टीकूराम की हिम्मत नहीं थी कि अंजू पर पाबंदी लगाए, क्योंकि अंजू भी शंकर के रंग में रंगी हुई थी. दूसरी ओर जाट समुदाय के लोग शंकर के पिता भंवराराम से बदनामी की बात कह कर शंकर के अंजू की ओर बढ़ते कदमों को रोकने को कहते थे. लेकिन भंवराराम में भी बेटे को कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी.

फलस्वरूप अंजू और शंकर के प्रेम संबंधों और साथ घूमने पर कोई पाबंदी नहीं लग सकी. इस से हार कर टीकूराम ने अपने समाज के लोगों से कहा कि वह अंजू की शादी कर देगा तो अंजू और शंकर का मिलनाजुलना खुद ही बंद हो जाएगा. लोगों को उस की यह बात सही लगी.

आननफानन में थोड़ा परदा रख कर अंजू के लिए लड़का ढूंढा गया. चौहटन से दूर गौरीमुल्ला इलाके के गांव खारी में अंजू के लिए अरुण नाम का लड़का पसंद कर लिया गया. हाथोंहाथ शादी की बात पक्की कर दी गई, तारीख भी तय हो गई. हालांकि अंजू ने विरोध किया लेकिन घर वालों के सामने उस की एक नहीं चली. शंकर भी उस वक्त जालौर में था, अंजू की शादी की बात उसे बाद में पता चली.

मार्च के अंत में अरुण बारात ले कर आया और अंजू को ब्याह कर अपने घर ले गया. अंजू 2 महीने ससुराल में रही. इस बीच अंजू और शंकर फोन पर लगातार बातें करते रहे. शादी की बात को ले कर शंकर को कोई शिकवा नहीं था. हां, अंजू जरूर ग्लानि महसूस करती थी.

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जून के पहले हफ्ते में अंजू ससुराल से मायके आई. उस के मायके आने की बात शंकर को पता थी. वह भी जालौर से अपने घर लालसर आ गया. दोनों अंजू की शादी के लगभग 2 महीने बाद मिले थे. ऐसे में एकदूसरे से मिलने की बेताबी थी.

गांव में शंकर की दबंगई चलती थी, जिस की वजह से उन दोनों के मिलने को कोई नहीं रोक सका. मिलने पर अंजू ने शंकर से कहा, ‘‘मैं ने अरुण से मजबूरी में शादी की है. तुम होते तो तुम्हारे साथ भाग जाती. भले ही मैं 2 महीने तुम से दूर रही, लेकिन तुम दिलोदिमाग से जरा भी अलग नहीं हुए.’’

अपनी बात कह कर अंजू ने शंकर को अपनी हथेली दिखाई. उस की हथेली में मेहंदी से दिल का निशान बना था, जिस में तीर लगा था. बीच में ए.एस. (अंजू-शंकर) और उस के ऊपर दिलदार लिखा हुआ था. मेहंदी से बने चित्र और शब्दों को देखपढ़ कर शंकर हैरान रह गया.

दरअसल अंजू उसे दिलदार ही कहती थी. उस ने अंजू से पूछा तो उस ने बताया कि शादी के समय जब उसे मेहंदी लगाई गई, उस ने तभी खुद उस का नाम लिख कर, प्यार का निशान बनाया था. इस सब को वह 2 महीने तक पति और ससुराल वालों से छिपाए रही थी. यह सुन कर शंकर खुश हुआ.

वैसे यह भी संभव है कि प्यार का प्रतीक चिह्न और उस पर दिलदार शब्द लिख कर अंजू ने 2 निशाने साधे हों. मतलब जो बात उस ने शंकर से कही, वही अपने पति अरुण से भी कही हो. क्योंकि प्रेमी हो या पति, दिलदार दोनों को ही कहा जा सकता है.

12 जून बुधवार की शाम शंकर बाइक से बाछड़ाऊ गांव के ढाबे पर पहुंचा, जहां उस ने अपने 2 दोस्तों के साथ खाना खाया. उस समय रात के साढ़े 9 बजे थे. खाना खा कर दोस्त अपनी राह चले गए, जबकि शंकर अपने गांव लौट आया.

गांव में वह बाइक से सीधे अंजू के घर पहुंचा. तब तक 10 बज गए थे. शंकर ने अंजू के घर के सामने जा कर उसे फोन किया और मोटरसाइकिल पर बैठ कर इंतजार करनेलगा. थोड़ी देर में अंजू बाहर आई और बिना कुछ बोले बाइक पर पीछे बैठ गई. गांव से बाहर निकलने के बाद दोनों एक कमरे पर गए, जहां काफी देर तक रुके.

वहीं पर अंजू और शंकर ने एकदूसरे से शादी की. शंकर ने अंजू की मांग में सिंदूर भरा, बिंदी लगाई. उस के जिस हाथ पर मेहंदी से दिल का चित्र बना था और दिलदार लिखा था, उस का फोटो ले कर सोशल मीडिया पर डाला.

इसी बीच दोनों ने शराब पी. वहां से निकल कर अंजू और शंकर गांव के श्मशान के पास पहुंचे. वहां रेत के टीले पर बैठ कर दोनों ने बीयर पी.

तब तक दोनों साथसाथ आत्महत्या का फैसला कर चुके थे. अंजू और शंकर ने एकदूसरे को किस करते हुए और गलबहियां डाल कर मोबाइल के कैमरे से कुछ सेल्फी फोटो ले लिए थे.

शंकर ने 2 पिस्तौलों का इंतजाम पहले ही कर लिया था. कुछ औडियो और वीडियो भी उन्होंने बना लिए थे. एकदूसरे को गोली मारने से 10 मिनट पहले शंकर ने सेल्फी फोटो, औडियो और वीडियो अपने वाट्सऐप ग्रुप पर डाल दिए थे.

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यह सारा काम निपटाने के बाद दोनों ने एकदूसरे की कनपटी से पिस्तौल लगाई और मोबाइल का कैमरा औन कर के एकदूसरे को गोली मार दी. तब तक सुबह के सवा 4 बज गए थे.

शंकर और अंजू रात को जिस कमरे पर रुके थे, पुलिस ने वहां से एक चूड़ी और एक कंगन बरामद किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि गोली शंकर की कनपटी के आरपार हो गई थी, जबकि अंजू के सिर में गोली फंसी रह गई थी.

इस मामले में पुलिस ने शंकर के साथी मूलाराम और उस के 2 अन्य साथियों को गिरफ्तार कर पूछताछ की. इन्हें अंजू के पिता टीकूराम द्वारा लिखाई गई रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तार किया गया था.

शंकर और अंजू द्वारा आत्महत्या करने के मामले की अभी विस्तृत जांच चल रही है.

आखिरी सेल्फी : भाग 1

भाग 1

कोई जहरीली चीज खा कर, फंदा लगा कर और हाथ की नस काट कर तो आत्महत्या के मामले सामने आते रहते हैं. लेकिन अंजू और शंकर ने जिस तरह एकदूसरे को गोली मार कर आत्महत्या की, ऐसा देखनेसुनने में नहीं आया. अलबत्ता फिल्म ‘इशकजादे’ और ‘रामलीला: गोलियों की रासलीला’ का अंत जरूर ऐसा था. आखिर अंजू और शंकर ने ऐसा क्यों किया…

सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है, जिस की लोकप्रियता तो बुलंदी पर है ही, इस का नशा भी सिर चढ़ कर बोल रहा है. महानगरों और बड़े शहरों की बात तो छोडि़ए, कस्बों से ले कर गांवों तक के लोग इस नशे के आदी हो गए हैं.

ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो सुबह को सो कर उठने के बाद सब से पहले अपनी फेसबुक और वाट्सऐप का स्टेटस चैक करते हैं. पेशे से ड्राइवर धरमाराम अपने भाई शंकर के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ा था. उस दिन सुबह उठ कर उस ने मोबाइल पर अपना स्टेटस देखा तो सन्न रह गया. उस ने जो देखा, वह दिल दहला देने वाला था.

धरमाराम ने देखा कि वाट्सऐप ग्रुप में सुबह 3.58 बजे 15 फोटो और एक वीडियो डाले गए थे. फोटो उस के भाई शंकर और उस की प्रेमिका अंजू के थे, जिन में से कुछ में दोनों एकदूसरे को किस कर रहे थे तो कुछ में एकदूसरे के कंधों पर हाथ रखे खड़े थे.

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सारे फोटो सेल्फी के थे, इन में से कुछ सेल्फी शंकर ने तो कुछ अंजू ने ली थीं, जो उन के हाथों के डायरेक्शन से पता चल रही थीं. फोटो के अलावा छोटेछोटे 6 वीडियो और 3 औडियो थे. औडियो में शंकर और अंजू की आवाज थी, जिस में दोनों एक ही बात कह रहे थे कि वे लोग जो कदम उठा रहे हैं, अपनी मरजी से उठा रहे हैं. इस के लिए किसी को परेशान न किया जाए.

इस के बाद का वीडियो देख कर धरमाराम दहल गया. क्योंकि एक वीडियो में शंकर और अंजू अपनीअपनी कनपटी पर पिस्तौल रखे हुए थे. देखतेदेखते 4 बज कर 15 मिनट पर एक साथ 2 गोलियां चलीं और दोनों जमीन पर गिरते नजर आए.

धरमाराम समझ गया कि शंकर और अंजू ने आत्महत्या कर ली है. वाट्सऐप ग्रुप पर फोटो, औडियो और वीडियो डालने का समय 3 बज कर 58 मिनट से 4 बज कर 15 मिनट के बीच था. उम्मीद तो नहीं थी, फिर भी धरमाराम ने यह सोच कर शंकर के मोबाइल पर काल की कि क्या पता भाई की जान बच जाए. लेकिन दूसरी ओर फोन नहीं उठाया गया.

धरमाराम समझ गया कि शंकर ने अपनी प्रेमिका अंजू के साथ सुसाइड कर लिया है. उस ने अपने वाट्सऐप ग्रुप के मेंबरों को यह बात बताई तो सभी ने अपनेअपने मोबाइलों पर मौत का भयावह दृश्य देखा. जरा सी देर में यह बात पूरे लालसर गांव में फैल गई.

लोग घर से निकल कर इस खोज में लग गए कि शंकर और अंजू ने आत्महत्या कहां की. थोड़ी खोजबीन के बाद दोनों की लाशें लालसर से थोड़ी दूर स्थित श्मशान के पास रेत में पड़ी मिलीं. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं.

किसी ने इस घटना की सूचना थाना चौहटन को दे दी थी. इंसपेक्टर राकेश ढाका पुलिस टीम के साथ लालसर पहुंच गए. उन्होंने घटना की सूचना उच्चाधिकारियों और फोरैंसिक टीम को दे दी.

पुलिस टीम ने घटनास्थल पर जा कर देखा तो युवक और युवती की लाशों के मुंह विपरीत दिशा में थे लेकिन दोनों की पीठ मिली हुई थीं. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं और चेहरे खून से तर.

घटनास्थल पर माचिस, सिगरेट का पैकेट, बीयर और पानी की बोतल पड़ी थीं. लाशों के पास एक मोबाइल भी पड़ा मिला. एसपी राशि डोगरा और फोरैंसिक टीम के आने के बाद इन सभी चीजों को काररवाई के बाद जाब्ते में ले लिया गया.

गांव वालों से यह बात पता चल गई थी कि आत्महत्या करने वाला युवक शंकर है और युवती अंजू. दोनों लालसर गांव के ही रहने वाले थे. एसपी राशि डोगरा मौकामुआयना कर के वापस चली गईं.

उन के जाने के बाद इंसपेक्टर राकेश ढाका ने दोनों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए चौहटन सीएचसी भेज कर गांव वालों से पूछताछ की. मृतक के पिता भंवराराम ने पुलिस को बताया कि उसे सुबह पता चला कि उस के बेटे शंकर की लाश श्मशान के पास रेत के टीले पर पड़ी है. उस के साथ अंजू की लाश भी वहीं पड़ी है.

गांव वालों के साथ वह मौके पर पहुंचा तो श्मशान के पास दोनों की लाशें पड़ी मिलीं. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं. भंवराराम ने यह भी बताया कि शंकर और अंजू एकदूसरे को प्यार करते थे.

उधर अंजू के पिता टीकूराम सुथार ने कुछ और ही कहानी बताई. उस के अनुसार, शंकर जाट और मूलाराम उन की बेटी का यौनशोषण करते थे. 12 जून की रात शंकर और मूलाराम मोटरसाइकिल से उस के घर आए. शंकर ने अंजू को फोन कर के धमकी दी और उसे घर के बाहर बुलाया. फिर अंजू को मोटरसाइकिल पर बैठा कर ले गए. रात में शंकर और उस के 2 साथियों ने शराब पार्टी की. उन्होंने उस की बेटी अंजू को भी जबरन शराब पिलाई और उस के साथ गैंगरेप किया. बाद में इन लोगों ने उसे गोली मार दी. पुलिस ने टीकूराम की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसपी राशि डोगरा ने उसी दिन प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि लालसर गांव के श्मशान के पास एक लड़की और लड़के की लाशें पड़ी मिलीं. युवती 18-19 साल की थी और लड़का 20-21 साल का. दोनों के हाथों में पिस्तौल थीं और उन्होंने अपनीअपनी कनपटी पर गोली मार कर आत्महत्या की थी.

पत्रकारों ने जब एसपी से पिस्तौलों के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि राजस्थान का सीमावर्ती इलाका होने की वजह से वहां हथियारों की तस्करी होती है. पिस्तौलों की बात जांच का विषय है, हम जांच करेंगे. पुलिस जांच में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस तरह थी—

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21 वर्षीय शंकर जाति से जाट था और 18 वर्षीय अंजू जाति से सुथार (बढ़ई) थी. दोनों में करीब 2 साल पहले प्यार हो गया था. शंकर और अंजू बेखौफ साथसाथ बाहर आनेजाने लगे थे. शंकर चूंकि दबंग लड़का था, इसलिए अंजू के घर वाले भी उसे कुछ नहीं कह पाते थे. वह अंजू को बाइक पर बैठा कर शहर घुमाने ले जाता था. दोनों ने शादी करने और साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा ली थीं.

कसम खाने से पहले अंजू ने शंकर से पूछा था, ‘‘हमारी जातियां अलगअलग हैं. ऐसे में समाज हमें शादी करने देगा?’’

शंकर ने एक मोटी सी गाली दे कर कहा, ‘‘शादी हम दोनों को करनी है, समाज को नहीं. कौन रोकेगा हमें?’’

इस बात से अंजू को काफी सकून मिला और वह भावुक हो कर शंकर के सीने से लग गई. शंकर जालौर में ठेकेदारी का काम करता था. वह सीमेंट, चिनाई, प्लास्टर वगैरह के ठेके लेता था. इस काम में उसे अच्छी आय थी.

दूसरी और सुथार समाज के लोग अंजू के पिता टीकूराम पर दबाव डाल रहे थे कि अंजू और शंकर के संबंधों की वजह से समाज की बदनामी हो रही है, इसलिए वह अपनी बेटी पर पाबंदी लगाए.

क्रमश:

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25000 करोड़ के मालिक ने की हत्या: भाग 2

25000 करोड़ के मालिक ने की हत्या: भाग 1

आखिरी भाग

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25 नौकाओं के जरिए 200 से अधिक पुलिसकर्मी और 3 गोताखोर उन की तलाश में लग गए. हेलीकौप्टर और खोजी कुत्तों को भी मदद ली जा रही थी. लापता सिद्धार्थ ने आखिरी बार फोन पर किस से बात की थी, इस की भी छानबीन की जा रही थी.

60 वर्षीय वीजी सिद्धार्थ का जन्म कर्नाटक के चिकमंगलुरु में हुआ. उन का परिवार लंबे समय से कौफी उत्पादन से जुड़ा था. सिद्धार्थ ने मंगलुरु यूनिवर्सिटी से इकोनौमिक्स में मास्टर की डिग्री ली थी. वह अपने दम पर कुछ करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने विरासत में मिली खेती से आराम की जिंदगी न गुजार कर अपने सपने पूरा करने की ठानी.

21 साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को बताया कि वह मुंबई जाना चाहते हैं. इस पर उन के पिता ने उन्हें 5 लाख रुपए दे कर कहा कि अगर वह असफल हो जाएं तो वापस आ कर परिवार का कारोबार संभाल सकते हैं. 5 लाख रुपए में से सिद्धार्थ ने 3 लाख रुपए की जमीन खरीदी और 2 लाख रुपए बैंक में जमा कर दिए.

इस के बाद मुंबई आ कर उन्होंने जेएम फाइनेंशियल सर्विसेज (अब जेएम मौर्गन स्टैनली) में मैनेजमेंट ट्रेनी के रूप में काम करना शुरू कर दिया. यहां उन्होंने 2 साल तक काम किया. 2 साल की ट्रेनिंंग के बाद सिद्धार्थ ने अपना कारोबार शुरू करने की सोची. नौकरी छोड़ कर वे बंगलुरु वापस आ गए.

उन के पास 2 लाख रुपए बचे थे. उस पैसे से उन्होंने वित्तीय कंपनी खोलने का फैसला किया. सोचविचार कर उन्होंने सिवन सिक्योरिटीज के साथ अपने सपने को साकार किया. यह कंपनी इंटर मार्केटिंग टे्रनिंग के लिए थी. उस दौर में इंटर मार्केटिंग से पैसे बनाना आसान था. इस के लिए वे अपने मुंबई (तब बंबई) के दोस्तों के शुक्रगुजार थे. इसी दौर में उन्होंने स्टौक मार्केट से खूब कमाई की.

बहरहाल, सन 1985 में सिद्धार्थ ने कौफी की फसल खरीदनी शुरू कर दी. धीरेधीरे सिद्धार्थ का यह कारोबार 3 हजार एकड़ में फैल गया. उन के परिवार में कौफी का यह कारोबार 140 वर्षों से चलता आ रहा था. इस के बाद सिद्धार्थ ने कारोबार का विस्तार किया. यहीं से सीसीडी की बुनियाद भी रखी जाने लगी.

वह कर्नाटक के ऐसे पहले इंटरप्रेन्योर थे,  जिन्होंने सन् 1996 में सीसीडी की स्थापना की थी. इस काम में उन्हें बहुत बड़ी सफलता मिली.

कैफे कौफी डे कंपनी के भारत के 250 शहरों में 1751 आउटलेट हैं. इस के अलावा आस्ट्रिया, मलेशिया, मिस्र, नेपाल, कराची और दुबई आदि में भी कंपनी के आउटलेट हैं.

वीजी सिद्धार्थ के सितारे बुलंदियों पर थे. उन के लिए यह ऐसा समय था कि अगर वे मिटटी को भी छू देते तो सोना बन जाती थी. 5 लाख से बिजनेस आरंभ करने वाले सिद्धार्थ 25000 करोड़ के मालिक बन गए थे. वे फर्श से उठ कर अर्श तक पहुंचे थे. उद्योगजगत में सिद्धार्थ का नाम बड़े उद्योगपतियों के रूप में लिया जाता था. सफलता की बुलंदियों पर पहुंचते ही कैफे कौफी डे का सीधा मुकाबला टाटा ग्रुप की स्टारबक्स से हुआ.

मुकाबला टाटा ग्रुप के स्टारबक्स से ही नहीं, बल्कि बरिस्ता और कोस्टा जैसी कंपनियों से भी था. इस के अलावा कंपनी को चायोस से भी चुनौती मिल रही थी.

सिद्धार्थ अमीरी की जिंदगी जरूर जी रहे थे, लेकिन ऐसा नहीं था कि सामान्य लोगों की तरह उन के जीवन में तनाव नहीं था. सच तो यह है कि उन की जिंदगी कांटों की सेज पर बनी हुई थी. वह करवट बदलते थे तो उन्हें तनाव भरे कांटें चुभते थे.

दरअसल, कैफे कौफी डे का परिचालन करने वाली सीसीडी इंटरप्राइजेज में कारपोरेट संचालन का मुद्दा रहरह कर उठता रहा.

सन 2018 में कंपनी में उस समय भूचाल आ गया जब आयकर विभाग ने वीजी सिद्धार्थ की परिसंपत्तियों पर छापे मारे. आयकर विभाग को पता चला था कि सीसीडी कंपनी ने बड़े पैमाने पर टैक्स की चोरी की है. इसी सिलसिले में विभाग ने छापे डाले थे.

सिद्धार्थ ने स्वीकार किया कि उन के पास 365 करोड़ की अघोषित संपत्ति है. इसी दौरान कंपनी माइंडट्री में हिस्सेदारी बेचने और इस्तेमाल को ले कर भी सवाल उठे. इस पर कई विभागों की नजर जमी थी.

दरअसल, सिद्धार्थ ने माइंडट्री में भी निवेश कर रखा था. माइंडट्री में सिद्धार्थ की करीब 21 फीसदी हिस्सेदारी थी. हालांकि पिछले दिनों उन्होंने अपने शेयर एलएंडटी को बेच दिए थे. इस सौदे से उन्हें करीब 2856 करोड़ रुपए का फायदा हुआ था. वह करीब एक दशक से इस कंपनी में निवेश कर रहे थे और 18 मार्च, 2019 को उन्होंने एलएंडटी से 3269 करोड़ रुपए का सौदा किया था.

बहरहाल, पिछले 2 सालों में सीसीडी के विस्तार की रफ्तार घटी और कंपनी कर्ज में डूबती चली गई. सीएमआईई के डाटा के अनुसार, कंपनी पर मार्च 2019 तक 6547.38 करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ चुका था. जबकि कंपनी (सीसीडी) ने मार्च 2019 में खत्म हुई तिमाही में 76.9 करोड़ रुपए की स्टैंडअलोन नेट सेल्स दर्ज की थी.

मार्च तिमाही में कंपनी को 22.28 करोड़ रुपए का लौस भी हुआ था. इस से साल भर पहले की इसी तिमाही में लौस का यह आंकड़ा 16.52 करोड़ रुपए था. कंपनी में लगातार हो रहे लौस से वीजी सिद्धार्थ परेशान थे, लेकिन वे इस बात से और भी ज्यादा परेशान थे कि आखिर कंपनी में यह लौस कैसे और क्यों हो रहा है. यह बात उन की समझ से परे थी.

कंपनी में लगातार हो रहे लौस और कर्ज के संकट से उबरने के लिए उन्होंने अपनी रियल एस्टेट प्रौपर्टी को बेचने का फैसला कर लिया था.

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इस के लिए कोका कोला कंपनी से 8 से 10 हजार  करोड़ में बेचने की बात भी चल रही थी. लेकिन इस  में सफलता नहीं मिल पा रही थी. ऐसा नहीं था कि अगर 10 हजार करोड़ में संपत्ति बिक जाती तो वे आर्थिक संकट से निबट जाते. हां, आर्थिक मुश्किलें कुछ कम जरूर हो जातीं.

जब वे इस में सफल नहीं हुए तो 29 जुलाई, 2019 से देश के एक बड़े बैंक से 1600 करोड़ रुपए का कर्ज लेने की कोशिश कर रहे थे, यहां पर भी बात बनती नजर नहीं आ रही थी, जिस से वे तनाव में आ गए और जिंदगी से हार मान बैठे. 29 जुलाई, 2019 को उन्होंने उफनती नेत्रवती नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली.

बहरहाल, लापता होने के तीसरे दिन यानी 31 जुलाई, 2019 की दोपहर में पुल से करीब एक किमी दूर सिद्धार्थ की लाश बरामद हुई. सिद्धार्थ के बेटों और दोस्तों ने उन के शव की पहचान की. शव मिलने के बाद मंगलुरु के सरकारी हौपिस्टल में उस का पोस्टमार्टम कराया गया.

पोस्टमार्टम के बाद शव को उन के बेटों को सौंप दिया गया. उन का अंतिम संस्कार सीसीडी कंपनी के परिसर में किया गया. सिद्धार्थ के इस आत्मघाती फैसले से उद्योग जगत में शोक की लहर दौड़ गई थी, आखिरकार इस असामयिक मौत के लिए जिम्मेदारी कौन है? यह सवाल मुंह बाए खड़ा है.

सौजन्य: मनोहर कहानियां

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25000 करोड़ के मालिक ने की हत्या: भाग 1

भाग 1

29जुलाई, 2019 को दोपहर बाद 60 वर्षीय वीरप्पा गंगैय्या सिद्धार्थ हेगड़े उर्फ वीजी सिद्धार्थ नहाधो कर तैयार हुए तो वे काफी खुश थे. जब वे बाथरूम से बाहर निकले थे तो उन की पत्नी मालविका सिद्धार्थ उन के सामने आ कर खड़ी हो गईं. पति को खुश देख कर उन्होंने मजाक में कहा, ‘‘क्या बात है, साहब. आज तो आप बड़े मूड में लग रहे हो. कहीं घूमने जाना है क्या?’’

‘‘नहीं कंपनी के काम से हासन जाना है, वहां मीटिंग है.’’ वीजी सिद्धार्थ ने दीवार घड़ी पर नजर पर नजर डालते हुए कहा, ‘‘तुम ऐसा करो, मेरा नाश्ता टेबल पर लगा दो. वैसे भी बहुत देर हो गई है. मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से मीटिंग लेट हो. मैं कपड़े पहन कर आता हूं.’’

‘‘आप कपड़े पहन कर आओ, नाश्ता टेबल पर तैयार मिलेगा.’’ मालविका ने कहा.

‘‘सुनो, मालविका… जरा देखना, बासवराज कहां है? उस से कहो गाड़ी तैयार रखे, मैं तुरंत आता हूं.’’

‘‘जी ठीक है. मैं देखती हूं. आप तैयार हो कर आओ.’’

कहती हुई मालविका किचन की ओर चली गई. उन्होंने अपने हाथों से पति का नाश्ता तैयार कर के डाइनिंग टेबल पर लगा दिया. साथ ही पति को आवाज दे कर बता भी दिया कि नाश्ता डाइनिंग टेबल पर लगा दिया है, नाश्ता कर के ही बाहर जाएं. उन्होंने ड्राइवर बासवराज को आवाज दे कर साहब की गाड़ी तैयार करने को भी कह दिया. बासवराज साहब की गाड़ी तैयार कर उन के आने का इंतजार करने लगा.

वीजी सिद्धार्थ नाश्ता कर के डाइनिंग रूम से बाहर निकले तो पत्नी मालविका भी उन के पीछेपीछे आईं. और उन्हें बाहर आ कर सी औफ किया. जब कार आंखों के सामने से ओझल हो गई तो मालविका अपने कमरे में लौट आईं. उस समय दोपहर के 2 बजे थे. बंगलुरु से हासन 182 किलोमीटर था यानी करीब साढ़े 3 घंटे का सफर.

सिद्घार्थ के दोनों बेटे अमर्त्य सिद्धार्थ और ईशान सिद्धार्थ अपनी कंपनी कैफे कौफी डे इंटरप्राइजेज लिमिटेड की ड्यूटी पर चले गए थे. पिता के व्यवसाय को उन के दोनों बेटों ने ही संभाल रखा था. दरअसल, कौफी का व्यवसाय उन के पूर्वजों से चला आ रहा था.

वीजी सिद्धार्थ ने पूर्र्वजों के व्यवसाय को  आगे बढ़ाने के लिए पिता से 5 लाख रुपए ले कर सन 1996 में बेंगलुरु के ब्रिगेट रोड पर कारोबार शुरू किया था. उन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से उस व्यवसाय को 25000 करोड़ के एंपायर में बदल दिया था. इसी बिजनैस के सिलसिले में वह बंगलुरु से हासन की मीटिंग करने जा रहे थे.

न जाने क्यों अचानक वीजी सिद्धार्थ का मूड बदल गया. उन्होंने रास्ते में ड्राइवर बासवराज पाटिल से हासन के बजाए मंगलुरु की ओर गाड़ी मोड़ने को कहा. मालिक के आदेश पर बासवराज ने गाड़ी हासन के बजाए मंगलुरु की ओर मोड़ दी.  मंगलुरु से पहले रास्ते में जिला कन्नड़ पड़ता था.

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कन्नड़ जिले से हो कर ही मंगलुरु जाया जाता था. बासवराज ने कार कन्नड़ मंगलुरु के रास्ते पर दौड़ानी शुरू कर दी. उस समय शाम के 5 बज कर 28 मिनट हो रहे थे. करीब एक घंटे बाद यानी शाम के 6 बज कर 30 मिनट पर उन की कार कन्नड़ जिले की ऊफनती हुई नेत्रवती नदी के पुल पर पहुंची.

पुल पर पहुंच कर सिद्धार्थ ने बासवराज से गाड़ी रोकने के लिए कहा. मालिक का आदेश मिलते ही बासवराज पाटिल ने गाड़ी पुल शुरू होते ही रोक दी. चमकदार शूट पहने सिद्धार्थ ने गाड़ी से उतर कर ड्राइवर से कहा कि वह टहलने जा रहे हैं. उन के वापस लौटने तक वहीं इंतजार करे. फिर वह टहलते हुए आगे चले गए.

सिद्धार्थ की यह बात बासवराज को कुछ अजीब लगी. उस की समझ में नहीं आया कि साहब को अचानक क्या सूझा जो उन का पुल पर टहलने का मन बन गया. लेकिन उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मालिक से इस बारे में कुछ पूछ सके. वह अपलक और चुपचाप मालिक को आगे जाते हुए देखता रहा.

वीजी सिद्धार्थ को टहलने को निकले करीब डेढ़ घंटा बीत चुका था. बासवराज बारबार कलाई घड़ी पर नजर डालतेडालते थक चुका था. सिद्धार्थ टहल कर वापस नहीं लौटे थे. फिर उस ने हिम्मत जुटा कर उन के फोन पर काल की तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला.

उस ने जितनी बार सिद्धार्थ के फोन पर काल की उतनी ही बार उन का फोन स्वीच्ड औफ मिला. मालिक का फोन स्विच्ड औफ मिला तो ड्राइवर बासवराज पाटिल परेशान हो गया. उस के मन में कई तरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगीं. वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या करे?

बासवराज पाटिल को जब कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने मालकिन मालविका को फोन कर के पूरी बात बता दी और वहां से घर लौट आया.

पहले तो मालविका ड्राइवर की बात सुन कर हैरान रह गई. फिर वह पति के फोन पर काल कर के उन से संपर्क करने की कोशिश करने लगीं, लेकिन हर बार उन का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. पति का  फोन बंद देख मालविका परेशान हो गईं. उन्होंने ये बातें अपने दोनों बेटों अमर्त्य और ईशान को बता कर पिता का पता लगाने को कहा.

बेटों ने भी पिता के फोन पर बारबार काल कीं, लेकिन उन का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. रात गहराती जा रही थी. बेटों ने पिता के दोस्तों और उन के करीबियों को फोन कर के उन के बारे में पूछा तो सब ने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि सिद्धार्थ न तो उन के पास आए और न ही  उन्होंने फोन किया.

बहरहाल, मालिक का पता न चलने पर घर लौटे ड्राइवर बासवराज पाटिल से मालविका और उन के दोनों बेटों ने सवालों की झड़ी लगा दी. उन के सवालों का उस ने वही जवाब दिया जो वह जानता था. बासवराज की बात सुन कर मालविका और उन के बेटों को पिता के अपहरण किए जाने की आशंका सताने लगी, लेकिन वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके. वीजी सिद्धार्थ के रहस्यमय तरीके से लापता होने घर में कोहराम मचा था.

सिद्धार्थ कोई मामूली इंसान नहीं थे. वह जानेमाने बिजनैस टायकून थे. 25000 हजार करोड़ की संपत्ति के मालिक और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस.एम. कृष्णा के दामाद. सिद्धार्थ के लापता होने की खबर मीडिया तक पहुंच गई थी. इस के बाद यह खबर न्यूज चैनलों की लीड खबर बन कर न्यूज पट्टी पर चलने लगी.

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अगले दिन 30 जुलाई को अमर्त्य छोटे भाई ईशान और चालक बासवराज पाटिल को ले कर कन्नड़ जिले के लिए रवाना हो गए. वहां पहुंच कर अमर्त्य पुलिस उपायुक्त से मिले ओर उन्हें पूरी बात बता कर पिता का पता लगाने को कहा. उन के आदेश पर कर्नाटक पुलिस ने सिद्धार्थ की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के उन की खोजबीन शुरू कर दी.

दूसरी ओर मालविका पति को ले कर परेशान थीं. दरअसल सिद्धार्थ पिछले कई दिनों से बिजनैस को ले कर काफी तनाव में थे. पूछने पर उन्होंने अपनी परेशानी का कोई ठोस जवाब नहीं दिया था.

मालविका ने पति की अलमारी खोली तो अलमारी से उन की एक डायरी हाथ लग गई. उत्सुकतावश मालविका डायरी खोल कर उस के पन्नों को उलटनेपलटने लगीं. इस कवायद में उन के हाथ पति की हाथ से लिखी एक चिट्टी मिली.

वह चिट्ठी उन्होंने अपनी कंपनी के कर्मचारियों को संबोधित करते हुए लिखी थी. पत्र पढ़ कर मालविका के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वीजी सिद्धार्थ ने पत्र में जो लिखा था, उस का आशय साफ था. पत्र के हिसाब से वीजी सिद्धार्थ का अपहरण नहीं हुआ था, बल्कि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

वह पत्र सिद्धार्थ ने कैफे कौफी डे के कर्मचारियों और निदेशक मंडल को संबोधित करते हुए लिखा था. पत्र में उन्होंने लिखा था कि हर वित्तीय लेनदेन मेरी जिम्मेदारी है. कानून को मुझे और केवल मुझे जवाबदेह मानना चाहिए.

सिद्धार्थ ने आगे लिखा कि जिन लोगों ने मुझ पर विश्वास किया उन्हें निराश करने के लिए मैं माफी मांगता हूं. मैं लंबे समय से लड़ रहा था, लेकिन आज मैं हार मान गया हूं, क्योंकि मैं एक प्राइवेट लेंडर पार्टनर का दबाव नहीं झेल पा रहा हूं, जो मुझे शेयर वापस खरीदने के लिए विवश कर रहा है.

इस का आधा लेनदेन मैं 6 महीने पहले एक दोस्त से बड़ी रकम उधार लेने के बाद पूरा कर चुका हूं. उन्होंने आगे लिखा कि दूसरे लेंडर भी दबाव बना रहे थे, जिस की वजह से वह हालात के सामने झुक गए.

पत्र पढ़तेपढ़ते मालविका की आंखें नम हो गईं उन्होंने बेटों को फोन कर के बता दिया कि उन के पापा का अपहरण नहीं हुआ है, बल्कि उन्होंने नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली है. उस के बाद उन्होंने पति के हाथों लिखे  गए सुसाइड नोट के बारे में सारी बातें बता दी.

अमर्त्य ने यह बात जब पुलिस उपायुक्त शशिकांत सेतिल को बताई तो वे भी चौंके. यह बात उन की समझ में आ गई कि सिद्धार्थ ड्राइवर वासवराज को पुल पर खड़ा कर अकेले टहलने क्यों गए थे.

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पुलिस उपायुक्त शशिकांत सेतिल ने सिद्धार्थ के शव की खोज में नैशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ), तटरक्षक, अग्निशमन दल और तटवर्ती पुलिस की टीमों को लगा दिया. पुलिस और गोताखोरों की टीमें भी उन की तलाश में लग गईं.

क्रमश:

ये कैसा बदला ?

चीचली गांव कहने भर को ही भोपाल का हिस्सा है, नहीं तो बैरागढ़ और कोलार इलाके से लगे इस गांव में अब गिनेचुने घर ही बचे हैं. बढ़ते शहरीकरण के चलते चीचली में भी जमीनों के दाम आसमान छू रहे हैं. इसलिए अधिकतर ऊंची जाति वाले लोग यहां की अपनी जमीनें बिल्डर्स को बेच कर कोलार या भोपाल के दूसरे इलाकों में शिफ्ट हो गए हैं.

इन गिनेचुने घरों में से एक घर है विपिन मीणा का. पेशे से इलैक्ट्रिशियन विपिन की कमाई भले ही ज्यादा न थी, लेकिन घर को घर बनाने में जिस संतोष की जरूरत होती है वह जरूर उस के यहां था.  विपिन के घर में बूढ़े पिता नारायण मीणा के अलावा मां और पत्नी तृप्ति थी. लेकिन घर में रौनक साढ़े 3 साल के मासूम वरुण से रहती थी. नारायण मीणा वन विभाग से नाकेदार के पद से रिटायर हुए थे और अपनी छोटीमोटी खेती का काम देखते हैं.

इस खुशहाल घर को 14 जुलाई, 2019 को जो नजर लगी, उस से न केवल विपिन के घर में बल्कि पूरे गांव में मातम सा पसर गया. उस दिन शाम को विपिन जब रोजाना की तरह अपने काम से लौटा तो घर पर उस का बेटा वरुण नहीं मिला.

उस समय यह कोई खास चिंता वाली बात नहीं थी क्योंकि वरुण घर के बाहर गांव के बच्चों के साथ खेला करता था. कभीकभी बच्चों के खेल तभी खत्म होते थे, जब अंधेरा छाने लगता था.

थोड़ी देर इंतजार के बाद भी वरुण नहीं लौटा तो विपिन ने तृप्ति से उस के बारे में पूछा. जवाब वही मिला जो अकसर ऐसे मौकों पर मिलता है कि खेल रहा होगा यहीं कहीं बाहर, आ जाएगा.

विपिन वरुण को ढूंढने अभी निकला ही था कि घर के बाहर उस के पिता मिल गए. उन से पूछने पर पता चला कि कुछ देर पहले वरुण चौकलेट खाने की जिद कर रहा था तो उन्होंने उसे 10 रुपए दिए थे.

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चूंकि शाम गहराती जा रही थी और विपिन घर के बाहर आ ही गया था, इसलिए उस ने सोचा कि दुकान नजदीक ही है तो क्यों न वरुण को वहीं जा कर देख लिया जाए. लेकिन वह उस वक्त चौंका जब वरुण के बारे में पूछने पर जवाब मिला कि वह तो आज उस की दुकान पर आया ही नहीं.

घबराए विपिन ने इधरउधर नजर दौड़ाई तो उसे कोई बच्चा खेलता नजर नहीं आया, जिस से वह बेटे के बारे में पूछता. एक बार घर जा कर और देख लिया जाए, शायद वरुण आ गया हो. यह सोच कर वह घर की तरफ चल पड़ा.

घर आने पर भी विपिन को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि वरुण अभी भी घर नहीं आया था. लिहाजा अब पूरा घर परेशान हो उठा. उसे ढूंढने के लिए विपिन ने गांव का चक्कर लगाया तो जल्द ही उस के लापता होने की बात भी फैल गई और गांव वाले भी उसे ढूंढने में लग गए.

रात 10 बजे तक सभी वरुण को हर उस मुमकिन जगह पर ढूंढ चुके थे, जहां उस के होने की संभावना थी. जब वह कहीं नहीं मिला और न ही कोई उस के बारे में कुछ बता पाया तो विपिन सहित पूरा घर किसी अनहोनी की आशंका से घबरा उठा.

वरुण की गुमशुदगी को ले कर तरहतरह की हो रही बातों के बीच गांव वालों ने एक क्रेटा कार का जिक्र किया, जो शाम के समय गांव में देखी गई थी. लेकिन उस का नंबर किसी ने नोट नहीं किया था.

हालांकि चीचली गांव में बड़ीबड़ी कारों का आना कोई नई बात नहीं है, क्योंकि अकसर प्रौपर्टी ब्रोकर्स ग्राहकों को जमीन दिखाने यहां लाते हैं. लेकिन उस दिन वरुण गायब हुआ था, इसलिए क्रेटा कार लोगों के मन में शक पैदा कर रही थी.

थकहार कर कुछ गांव वालों के साथ विपिन ने कोलार थाने जा कर टीआई अनिल बाजपेयी को बेटे के गुम होने की जानकारी दे दी. उन्होंने वरुण की गुमशुदगी दर्ज कर तुरंत वरिष्ठ अधिकारियों को इस घटना से अवगत भी करा दिया.

टीआई पुलिस टीम के साथ कुछ ही देर में चीचली गांव पहुंच गए. गांव वालों से पूछताछ करने पर पुलिस का पहला और आखिरी शक उसी क्रेटा कार पर जा रहा था, जिस के बारे में गांव वालों ने बताया था.

पूछताछ में यह बात उजागर हो गई थी कि मीणा परिवार की किसी से कोई रंजिश नहीं थी जो कोई बदला लेने के लिए बच्चे को अगवा करता और इतना पैसा भी उन के पास नहीं था कि फिरौती की मंशा से कोई वरुण को उठाता.

तो फिर वरुण कहां गया. उसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया, यह सवाल हर किसी की जुबान पर था. क्रेटा कार पर पुलिस का शक इसलिए भी गहरा गया था क्योंकि कोलार के बाद केरवा चैकिंग पौइंट पर कार में बैठे युवकों ने खुद को पुलिस वाला बता कर बैरियर खुलवा लिया था और दूसरा बैरियर तोड़ कर वे कार को जंगलों की तरफ ले गए थे.

चीचली और कोलार इलाके में मीणा समुदाय के लोगों की भरमार है, इसलिए लोग रात भर वरुण को ढूंढते रहे. 15 जुलाई की सुबह तक वरुण कहीं नहीं मिला और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो लोगों का गुस्सा भड़कने लगा.

यह जानकारी डीआईजी इरशाद वली को मिली तो वह खुद चीचली पहुंच गए. उन्होंने वरुण को ढूंढने के लिए एक टीम गठित कर दी, जिस की कमान एसपी संपत उपाध्याय को सौंपी गई. दूसरी तरफ एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम जंगलों में जा कर वरुण को खोजने लगी.

पुलिस टीम ने 15 जुलाई को जंगलों का चप्पाचप्पा छान मारा लेकिन वरुण कहीं नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई सुराग हाथ लगा. इधर गांव भर में भी पुलिस उसे ढूंढ चुकी थी. एक बार नहीं कई बार पुलिस वालों ने गांव की तलाशी ली लेकिन हर बार नाकामी ही हाथ लगी तो गांव वालों का गुस्सा फिर से उफनने लगा.

बारबार की पूछताछ में बस एक ही बात सामने आ रही थी कि वरुण अपने दादा नारायण से 10 रुपए ले कर चौकलेट खरीदने निकला था, इस के बाद उसे किसी ने नहीं देखा. इस से यह संभावना प्रबल होती जा रही थी कि हो न हो, बच्चे को घर से निकलते ही अगवा कर लिया गया हो.

विपिन का मकान मुख्य सड़क से चंद कदमों की दूरी पर पहाड़ी पर है, इसलिए यह अनुमान भी लगाया गया कि इसी 50 मीटर के दायरे से वरुण को उठाया गया है.

लेकिन वह कौन हो सकता है, यह पहेली पुलिस से सुलझाए नहीं सुलझ रही थी. क्योंकि पूरे गांव व जंगलों की खाक छानी जा चुकी थी इस पर भी हैरत की बात यह थी कि बच्चे को अगवा किए जाने का मकसद किसी की समझ नहीं आ रहा था.

अगर पैसों के लिए उस का अपहरण किया गया होता तो अब तक अपहर्त्ता फोन पर अपनी मांग रख चुके होते और वरुण अगर किसी हादसे का शिकार हुआ होता तो भी उस का पता चल जाना चाहिए था. चीचली गांव की हालत यह हो चुकी थी कि अब वहां गांव वाले कम पुलिस वाले ज्यादा नजर आ रहे थे. इस पर भी लोग पुलिसिया काररवाई से संतुष्ट नहीं थे, इसलिए माहौल बिगड़ता देख गांव में डीजीपी वी.के. सिंह और आईजी योगेश देशमुख भी आ पहुंचे.

2 बड़े शीर्ष अधिकारियों को अचानक आया देख वहां मौजूद पुलिस वालों के होश उड़ गए. चंद मिनटों की मंत्रणा के बाद तय किया गया कि एक बार फिर से गांव का कोनाकोना देख लिया जाए.

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इत्तफाक से इसी दौरान टीआई अनिल बाजपेयी की टीम की नजर विपिन के घर से चंद कदमों की दूरी पर बंद पड़े एक मकान पर पड़ी. उन का इशारा पा कर 2 पुलिसकर्मी उस सूने मकान की दीवार लांघ कर अंदर दाखिल हो गए. दाखिल तो हो गए लेकिन अंदर का नजारा देख कर भौचक रह गए क्योंकि वहां किसी बच्चे की अधजली लाश पड़ी थी.

बच्चे का अधजला शव मिलने की खबर गांव में आग की तरह फैली तो सारा गांव इकट्ठा हो गया. दरवाजा खोलने के बाद पुलिस और गांव वालों ने बच्चे की लाश देखी तो उस का चेहरा बुरी तरह झुलसा हुआ था. लेकिन विपिन ने उस लाश की शिनाख्त अपने साढ़े 3 साल के बेटे वरुण के रूप में कर दी.

सभी लोग इस बात से हैरान थे कि पिछले 2 दिनों से जिस वरुण की तलाश में लोग आकाशपाताल एक कर रहे थे, उस की लाश घर के नजदीक ही पड़ोस में पड़ी है, यह बात किसी ने खासतौर से पुलिस वालों ने भी नहीं सोची थी.

वरुण के मांबाप और दादादादी होश खो बैठे, जिन्हें संभालना मुश्किल काम था. घर वाले ही क्या, गांव वालों में भी खासा दुख और गुस्सा था. अब यह बात कहनेसुनने और समझने की नहीं रही थी कि मासूम वरुण का हत्यारा कोई गांव वाला ही है, लेकिन वह कौन है और उस ने उस बच्चे को जला कर क्यों मारा, यह बात भी पहेली बनती जा रही थी.

गुस्साए गांव वालों को संभालती पुलिसिया काररवाई अब जोरों पर आ गई थी. देखते ही देखते खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम चीचली पहुंच गई.

डीआईजी इरशाद वली ने बारीकी से वरुण के शव का मुआयना किया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि जिस किसी ने भी उसे जलाया है, उस ने धुआं उठने के डर से तुरंत लाश पर पानी भी डाला है. वरुण के शव पर गेहूं के दाने भी चिपके हुए थे, इसलिए यह अंदाजा भी लगाया गया कि उसे गेहूं में दबा कर रखा गया होगा. यानी हत्या कहीं और की गई है और लाश यहां सूने मकान में ला कर ठिकाने लगा दी गई है.

इस मकान के बारे में गांव वाले कुछ खास नहीं बता पाए सिवाए इस के कि कुछ दिनों पहले ही इसे भोपाल के किसी शख्स ने खरीदा है. पूछताछ करने पर विपिन ने बताया कि उस की किसी से भी कोई दुश्मनी नहीं है.

इस के बाद पुलिस ने लाश से चिपके गेहूं के आधार पर ही जांच शुरू कर दी. अच्छी बात यह थी कि खाली पड़े उस मकान से जराजरा से अंतराल पर गेहूं के दानों की लकीर दूर तक गई थी.

डीआईजी के इशारे पर पुलिस वाले गेहूं के दानों के पीछे चले तो गेहूं की लाइन विपिन के घर के ठीक सामने रहने वाली सुनीता के घर जा कर खत्म हुई. यह वही सुनीता थी जो कुछ देर पहले तक वरुण के न मिलने की चिंता में आधी हुई जा रही थी और उस का बेटा भी गांव वालों के साथ वरुण को ढूंढने में जीजान से लगा हुआ था.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ की तो उस का चेहरा फक्क पड़ गया. वह वही सुनीता थी, जो एक दिन पहले तक एक न्यूज चैनल पर गुस्से से चिल्लाती दिखाई दे रही थी. वह चीखचीख कर कह रही थी कि हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

इस बीच पूछताछ में उजागर हुआ था कि सुनीता सोलंकी का चालचलन ठीक नहीं है और उस के घर तरहतरह के अनजान लोग आते रहते हैं. पर यह सब बातें उसे हत्यारी ठहराने के लिए नाकाफी थीं, इसलिए पुलिस ने सख्ती दिखाई तो सच गले में फंसे सिक्के की तरह बाहर आ गया.

वरुण जब चौकलेट लेने घर से निकला तो सुनीता को देख कर उस के घर पहुंच गया. मासूमियत और हैवानियत में क्या फर्क होता है, यह उस वक्त समझ आया जब भूखे वरुण ने सुनीता से रोटी मांगी. बदले की आग में जल रही सुनीता ने उसे सब्जी के साथ रोटी खाने को दे दी, लेकिन सब्जी में उस ने चींटी मारने वाली जहरीली दवा मिला दी.

वरुण दवा के असर के चलते बेहोश हो गया तो सुनीता ने उसे मरा समझ कर उस के हाथपैर बांधे और पानी के खाली पड़े बड़े कंटेनर में डाल दिया. इधर जैसे ही वरुण की खोजबीन शुरू हुई तो वह भी भीड़ में शामिल हो गई. इतना ही नहीं, उस ने दुख में डूबे अपने पड़ोसी विपिन मीणा के घर जा कर उन्हें चाय बना कर दी और हिम्मत भी बंधाती रही.

जबकि सच सिर्फ वही जानती थी कि वरुण अब इस दुनिया में नहीं है. उस की तो वह बदले की आग के चलते हत्या कर चुकी है. हादसे की शाम सुनीता का बेटा घर आया तो उसे बिस्तर के नीचे से कुछ आवाज सुनाई दी. इस पर सुनीता ने उसे यह कहते हुए टरका दिया कि चूहा होगा, तू जा कर वरुण को ढूंढ.

बाहर गया बेटा रात 8 बजे के लगभग फिर वापस आया तो नजारा देख कर सन्न रह गया, क्योंकि सुनीता वरुण की लाश को पानी के कंटेनर से निकाल कर गेहूं के कंटेनर में रख रही थी. इस पर बेटे ने ऐतराज जताया तो उस ने उसे झिड़क कर खामोश कर दिया. सुनीता ने मासूम की लाश को पहले गेहूं से ढका फिर उस पर ढेर से कपड़े डाल दिए थे.

16 जुलाई, 2019 की सुबह तड़के 5 बजे सुनीता ने घर के बाहर झांका तो वहां उम्मीद के मुताबिक सूना पड़ा था. वरुण की तलाश करने वाले सो गए थे. उस ने पूरी ऐहतियात से लाश हाथों में उठाई और बगल के सूने मकान में ले जा कर फेंक दी.

लाश को फेंक कर वह दोबारा घर आई और माचिस के साथसाथ कुछ कंडे (उपले) भी ले गई और लाश को जला दिया. धुआं ज्यादा न उठे, इस के लिए उस ने लाश पर पानी डाल दिया. जब उसे इत्मीनान हो गया कि अब वरुण की लाश पहचान में नहीं आएगी तो वह घर वापस आ गई.

हत्या सुनीता ने की है, यह जान कर गांव वाले बिफर उठे और उसे मारने पर आमादा हो आए तो उन्हें काबू करने के लिए पुलिस वालों को बल प्रयोग करना पड़ा. इधर दुख में डूबे विपिन के घर वाले हैरान थे कि सुनीता ने वरुण की हत्या कर उन से कौन से जन्म का बदला लिया है.

दरअसल बीती 16 जून को सुनीता 2 दिन के लिए गांव से बाहर गई थी. तभी उस के घर से कोई आधा किलो चांदी के गहने और 30 हजार रुपए नकदी की चोरी हो गई थी. सुनीता जब वापस लौटी तो विपिन के घर में पार्टी हो रही थी.

इस पर उस ने अंदाजा लगाया कि हो न हो विपिन ने ही चोरी की है और उस के पैसों से यह जश्न मनाया जा रहा है. यह सोच कर वह तिलमिला उठी और मन ही मन  विपिन को सबक सिखाने का फैसला ले लिया.

सुनीता सोलंकी दरअसल भोपाल के नजदीक बैरसिया के गांव मंगलगढ़ की रहने वाली थी. उस की शादी दुले सिंह से हुई थी, जिस से उस के 3 बच्चे हुए. इस के बाद भी पति से उस की पटरी नहीं बैठी क्योंकि उस का चालचलन ठीक नहीं था.

इस पर दोनों में विवाद बढ़ने लगा तो दुले सिंह ने उसे छोड़ दिया. इस के बाद मंगलगढ़ गांव के 2-3 युवकों के साथ रंगरलियां मनाते उस के फोटो वायरल हुए थे, जिस के चलते गांव वालों ने उसे भगा दिया था. वे नहीं चाहते थे कि उस के चक्कर में आ कर गांव के दूसरे मर्द बिगड़ें.

इस के बाद तो सुनीता की हालत कटी पतंग जैसी हो गई. उस ने कई मर्दों से संबंध बनाए और कुछ से तो बाकायदा शादी भी की लेकिन ज्यादा दिनों तक वह किसी एक की हो कर नहीं रह पाई. आखिर में वह चीचली में ठीक विपिन के घर के सामने आ कर बस गई.

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चीचली में भी रातबिरात उस के घर मर्दों का आनाजाना आम बात थी. इन में उस की बेटी का देवर मुकेश सोलंकी तो अकसर उस के यहां देखा जाता था. इस से उस की इमेज चीचली में भी बिगड़ गई थी. लेकिन सुनीता जैसी औरतें समाज और दुनिया की परवाह ही कहां करती हैं. गांव में हर कोई जानता था कि सुनीता के पास पैसे कहां से आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता था.

चोरी के कुछ दिन पहले विपिन का भाई उस के यहां घुस आया था और उस ने सुनीता को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था. इस पर भी विपिन के घर वालों से उस की कहासुनी हुई थी. यह बात तो आईगई हो गई थी, लेकिन वह चोरी के शक की आग में जल रही थी इसलिए उस ने बदला मासूम वरुण की हत्या कर के लिया.

गांव वालों के मुताबिक यह पूरा सच नहीं है बल्कि तंत्रमंत्र और बलि का चक्कर है. गांव वाले इसे चंद्रग्रहण से जोड़ कर देख रहे हैं. गांव वालों के मुताबिक वरुण की लाश के पास से मिठाई भी मिली थी. घटनास्थल के पास से अगरबत्ती और कटे नींबू मिलने की बात भी कही गई. इस के अलावा वरुण की लाश को लाल रंग के कपड़े से ही क्यों लपेटा गया, इस की भी चर्चा चीचली में है.

गांव वालों की इस दलील में दम है कि अगर वाकई सुनीता के यहां चोरी हुई थी तो उस ने इस का जिक्र किसी से क्यों नहीं किया था और न ही पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

वरुण के नाना अनूप मीणा तो खुल कर बोले कि उन के नाती की हत्या की असली वजह तंत्रमंत्र का चक्कर है. उन्होंने घटनास्थल पर मिले नींबू के अलावा घर के बाहर पेड़ पर लटकी काली मटकी का भी जिक्र किया.

वरुण की हत्या चोरी का बदला थी या तंत्रमंत्र, इस की वजह थी, इस पर पुलिस बोलने से बच रही है. लेकिन उस की लापरवाही और नकारापन लोगों के निशाने पर रहा. चीचली के लोगों ने साफसाफ कहा कि लाश एकदम बगल वाले घर में थी और पुलिस वाले यहांवहां वरुण को ढूंढ रहे थे.

गांव वालों का यह भी कहना है कि अगर डीजीपी और आईजी गांव में नहीं आते तो ये लोग उस सूने मकान में भी नहीं झांकते और वरुण की लाश पता नहीं कब मिलती. उम्मीद के मुताबिक इस हत्याकांड पर राजनीति भी खूब गरमाई. मुख्यमंत्री कमलनाथ ने हादसे पर अफसोस जाहिर किया तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बिगड़ती कानूनव्यवस्था को ले कर सरकार को कटघरे में खड़ा करते रहे.

हैरानी तो इस बात की भी है कि गुमशुदगी का बवाल मचने के बाद भी सुनीता ने वरुण की लाश बड़े इत्मीनान से जला दी और किसी को खबर भी नहीं लगी. सुनीता को अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. इस से लगता है कि बात कुछ और भी हो सकती है.

पुलिस ने सुनीता से पूछताछ करने के बाद उस के नाबालिग बेटे को भी हिरासत में ले लिया. उस का कसूर यह था कि हत्या की जानकारी होने के बाद भी उस ने पुलिस को नहीं बताया था. पुलिस ने सुनीता को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया जबकि उस के नाबालिग बेटे को बालसुधार गृह भेजा गया.

एक गुटखे के लिए हत्या!

हत्या अनेक ढंग से होती है,कभी कोई अपने परिजन की हत्या कर देता है, तो कभी कोई अपने प्रिय के लिए हत्या कर देता है. हत्या का मनोविज्ञान कुछ ऐसा है की इसे सार रूप में समझ पाना बेहद जटिल है. देश दुनिया में हत्या अर्थात मर्डर का अपराध अपने चरमोत्कर्ष पर है. आज हम आपको बताते हैं एक ऐसे मर्डर की कहानी जो बेहद छोटी सी बात पर हो गई, यह बात थी एक गुटके को लेकर सहकर्मी ने गुटका नहीं मिलने पर और असहनीय व्यवहार की परिणति हत्या करके कर दी. पुलिस 2 माह तक इस हत्याकांड की खुरद- बीन करती रही. अंततः अपराधी तक पहुंचने में कामयाब हुई. यह कहानी है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के तिल्दा नेवरा थाना क्षेत्र की. जहां बजरंग पावर प्लांट में हुए अंधे क़त्ल की गुत्थी को पुलिस के लिए एक पहेली बन गई थी. मृतक शुभम नायक की मौत के बाद पुलिस इस मामले की लगातार जांच पड़ताल कर रही थी. आखिरकार हत्या को अंजाम देने वाले युवक को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

सहकर्मी ही निकला हत्यारा

इस समय हत्या का पर्दाफाश होने के बाद जो तथ्य सामने आए हैं यह बेहद चौंकाने वाले रहे. जांच अधिकारी शरत चंद्रा बताते हैं, हत्या को अंजाम देने वाला कोई और नहीं बल्कि मृतक के साथ पावर प्लांट में मजदूरी करने वाला युवक ही कातिल निकला है.

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पुलिस ने आरोपी को पकड़कर रायपुर सेंट्रल जेल भेज दिया है. थाना प्रभारी शरद चंद्रा ने बताया कि घटना 12 अगस्त 2019 की है. घटनास्थल बजरंग पावर प्लांट टंडवा में शुभम नायक 21 वर्ष निवासी ग्राम निनवा जो कि बजरंग पावर प्लांट में मजदूरी का काम किया करता था जिसको प्लांट के स्टोरेज बिल्डिंग में घायल अवस्था में मिलने से संयंत्र के द्वारा इलाज हेतु मेकाहारा रायपुर ले जाया गया था. जहां डौक्टरों ने मृत घोषित कर दिया . पुलिस की जांच पड़ताल और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की मौत का कारण हत्या होना बताया गया था. पुलिस के सामने एक अंधे कत्ल के रूप में यह प्रकरण चुनौती बनकर सामने था निरंतर विवेचना करने के पश्चात भी पुलिस को कोई सूत्र नहीं मिल रहा था कि आखिर हत्या का कारण क्या है और जब हत्यारा पकड़ में आया और उसने कारण बताए तो पुलिस ने भी आश्चर्य से दांतो तले उंगली दबा ली.

छोटी सी बात और कर की हत्या

पुलिस इस मामले की निरंतर जांच में सतत जुटी हुई थी. तिल्दा नेवरा में मृतक की हत्या के मामले में तहकीकात में लगी हुई थी. लगातार सघन जांच से कुछ तथ्य सामने आए. संयंत्र के संबंधित कर्मचारियों से एवं मृतक के परिजनों से पूछताछ की जा रही थी.

इस दौरान पूछताछ में मृतक शुभम नायक का घटना के कुछ दिन पहले ही ग्राम किरना निवासी भूपेंद्र मिर्झा जो की शुभम के साथ ही भी संयंत्र में काम करता था उसके साथ मृतक शुभम नायक का विवाद होने की जानकारी सामने आई. तत्पश्चात तिल्दा पुलिस हरकत में आ गई और भूपेंद्र मिर्झा की जानकारी में आए बिना संयंत्र से प्राप्त रिकार्ड को खंगाला गया. जिसमें जांच में पाया गया कि घटना दिनांक 12 अगस्त 2019 के बाद से भूपेंद्र मिर्झा कार्य पर उपस्थित नहीं हो रहा था. जिससे कि पुलिस के संदेह को और बल मिला. पुलिस भूपेंद्र की चुपचाप पतासाजी करती रही थी. जैसे ही पता चला कि आरोपी अपने घर में छुपा बैठा है.वैसे ही पलिस ने उसे पकड़ पूछताछ के लिए तलब किया.आरोपी पुलिस के सवालों से घबरा गया और बताया की घटना से पहले मृतक शुभम नायक से गुटका मांगने पर उसे बेइज्जत किया गया. इसके बाद दूसरी बार भी आरोपी का चार्जिंग में लगा मोबाइल निकाल कर शुभम नायक अपना मोबाइल चार्जिंग में लगा देता था. आरोपी द्वारा मना करने पर मृतक शुभम नायक ने आरोपी का मोबाइल पटक कर तोड़ भी दिया था  जिससे आरोपी भूपेंद्र को मृतक से नाराज था.इसके बाद भूपेन्द्र ने शुभम नायक से बदला लेने के लिए मौके की तलाश में रहने लगा और एक दिन जब मौका मिला तो मृतक के सिर पर लोहे की राड़ से हमला कर उसे मौत के घाट उतार दिया. हत्य़ा के बाद लोहे के प्लांट के बंकर क्रमांक 2 में साक्ष्य छुपा दिया. आरोपी भूपेंद्र के ने स्वीकार किया  कि वह मृतक को प्लांट में खुद अपने हाथ से मौत के घाट उतारा जिसे लोहे के राड को पुलिस ने जप्त कर लिया है.  आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है और ज्यूडिशियल रिमांड हेतु माननीय न्यायालय जेएमएफसी तिल्दा के न्यायालय पेश किया गया. जिसके बाद न्यायालय के आदेश पर आरोपी को रायपुर भेज दिया गया.

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वनभूमि पर कब्जा जमाने का परिणाम

जिस जमीन को ले कर सोनभद्र में सामूहिक नरसंहार हुआ, वह वनक्षेत्र की जमीन है, जिसे हेराफेरी कर के बेचा और खरीदा गया था. इस जमीन के चक्कर में दबंगों ने 10 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. जबकि 25 लोग घायल हुए. हकीकत में इस नरसंहार का जिम्मेदार सरकारी अमला ही है.

उस दिन 2019 की तारीख थी 17 जुलाई. उत्तर प्रदेश के जिला सोनभद्र के घोरावल स्थित गांव उम्भापुरवा का हालहवाल कुछ बिगड़ा हुआ था. दरजनों ट्रैक्टर, जिन की ट्रौलियों में 300 से ज्यादा लोग भरे थे, 148 बीघा जमीन को घेरे खड़े थे. उन में गांव का प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर भी था, जिस के साथ आए कुछ दबंग हाथों में लाठीडंडे, भालाबल्लम, राइफल और बंदूक आदि हथियार लिए हुए थे.

दूसरी तरफ जब गांव वालों ने देखा कि दबंग उस 148 बीघा जमीन को जोतने आए हैं तो उन्होंने उन्हें खेत जोतने से रोकने का फैसला किया. वे लोग उन्हें रोकने के लिए आगे बढे़. गरमागरमी में बातचीत हुई, लेकिन दोनों ही तरफ के लोग अपनीअपनी जिद पर अड़े रहे. इस का नतीजा यह हुआ कि उन के बीच विवाद बढ़ गया.

ग्राम प्रधान के साथ आए लोगों ने गांव वालों पर हमला बोल दिया. लाठीडंडों से हुए हमले के बीचबीच में गोली चलने की आवाजें भी आने लगीं. गांव वाले बचने के लिए इधरउधर भागने लगे. कुछ लोग वहीं जमीन पर गिर पड़े. लगभग आधे घंटे तक नरसंहार चलता रहा.

उम्भापुरवा गांव सोनभद्र से 55-56 किलोमीटर दूर है. यहीं पर ग्राम प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर ने 2 साल पहले करीब 90 बीघे जमीन  खरीदी थी. वह उसी जमीन पर कब्जा करने के लिए आया था. लेकिन स्थानीय लोगों ने उस का विरोध किया, जिस के बाद प्रधान के साथ आए लोगों ने आदिवासियों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी.

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संघर्ष के दौरान असलहा से ले कर गंडासे तक चलने लगे. आदिवासियों के विरोध के बाद प्रधान के लोगों ने उन पर आधे घंटे तक गोलीबारी की.

इस के बाद मची भगदड़ में तमाम ग्रामीण जमीन पर गिर गए तो उन पर लाठियों से हमला शुरू कर दिया गया. वहां का दृश्य बहुत खौफनाक था. इस हमले में 10 लोगों की मौत हो गई. जबकि 25 लोग घायल हो गए थे. मृतकों में 3 महिलाएं और 7 पुरुष शामिल थे.

इस इलाके में गोंड और गुर्जर आदिवासी रहते हैं. गुर्जर लोग वहां दूध बेचने का काम करते हैं. यह इलाका जंगलों से घिरा है और यहां ज्यादातर वनभूमि है. सिंचाई का कोई साधन नहीं है, इसलिए लोग बारिश के मौसम में बरसात के पानी से वनभूमि पर मक्का और अरहर की खेती करते हैं. इस इलाके में वनभूमि पर कब्जे को ले कर अकसर झगड़ा होता रहता है.

घोरावल के उम्भापुरवा में खूनी जमीन की कहानी बहुत लंबी है. इस की शुरुआत सन 1940 से हुई थी. इस के पहले यहां की जमीन पर आदिवासी काबिज थे. वे लोग इस जमीन पर  बोआईजोताई करते थे. 17 दिसंबर, 1955 में मुजफ्फरपुर, बिहार के रहने वाले माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने आदर्श कोऔपरेटिव सोसाइटी बना कर यहां की 639 बीघा जमीन सोसाइटी के नाम करा ली थी.

इस के बाद माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर के 149 बीघा जमीन अपनी बेटी आशा मिश्रा के नाम करा दी. आशा मिश्रा के पति प्रभात कुमार मिश्रा एक आईएएस अफसर थे. यह काम राबर्ट्सगंज के तहसीलदार ने दबाव में आ कर किया था.

यही जमीन बाद में आशा मिश्रा की बेटी विनीता शर्मा उर्फ किरन कुमारी पत्नी भानु प्रसाद आईएएस, निवासी भागलपुर के नाम कर दी. जमीन परिवार के लोगों के नाम होती रही पर उस पर खेती का काम आदिवासी लोग ही करते रहे. जमीन से जो फसल पैदा होती थी, उस का पैसा आदिवासी आईएएस अधिकारी के परिवार को देते रहे.

17 अक्तूबर, 2017 को विनीता शर्मा ने जमीन गांव के ही प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर को बेच दी. तभी से ग्राम प्रधान यज्ञदत्त इस 148 बीघा जमीन पर कब्जा करने की योजना बना रहा था. इस जमीन के विवाद की जानकारी सभी जिम्मेदार लोगों को थी. यहां तक कि इस की शिकायत आईजीआरएस पोर्टल पर मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार से भी की गई थी. लेकिन ताज्जुब की बात यह कि बिना किसी तरह से निस्तारण के इस शिकायत को निस्तारित बता कर मामले को रफादफा कर दिया गया.

मूर्तिया के रहने वाले रामराज की शिकायत पर मार्च 2018 में अपर मुख्य सचिव राजस्व एवं आपदा विभाग और जुलाई 2018 में जिलाधिकारी सोनभद्र को नियमानुसार काररवाई के लिए यह मामला भेजा गया.

अगस्त 2018 में तहसीलदार की जांच आख्या प्रकरण के बाबत यह मामला न्यायालय सिविल जज सीनियर डिवीजन सोनभद्र के यहां विचाराधीन है. इस सिलसिले में दर्शाया गया कि वर्तमान में प्रशासनिक आधार पर इस मामले में किसी प्रकार की काररवाई किया जाना संभव नहीं है. इस के बाद यह निस्तारित दिखा गया.

7 अप्रैल, 2019 को राजकुमार ने शिकायत दर्ज कराई कि हमारी अरहर की फसल आदिवासियों ने काट ली. इस के बाद थाना घोरावल में 30 आदिवासियों के नाम मुकदमा लिखाया गया. जबकि आदिवासियों की शिकायत पर दूसरे पक्ष के खिलाफ कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई. नरसंहार के बाद अब ग्राम प्रधान यज्ञदत्त के बारे में छानबीन की जा रही है. उस के द्वारा कराए गए कामों की भी समीक्षा की जा रही है.

भूमि विवाद गुर्जर व गोंड जाति के बीच शुरू हुआ था, जो देखते ही देखते खूनी संघर्ष में बदल गया. गांव में लाशें बिछ गईं. घटना से पूरे जनपद में हड़कंप मच गया. सोनभद्र और मिर्जापुर ही नहीं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और देश की राजधानी दिल्ली तक हिल गई.

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गांव के लोग बताते हैं कि पुलिस को बुलाने के लिए 100 नंबर डायल करने के बाद भी पुलिस वहां बहुत देर से पहुंची थी. घटना के बाद पहुंची पुलिस ने घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, घोरावल में भरती कराया. गंभीर रूप से घायल आधा दरजन लोगों को जिला अस्पताल भेजा गया.

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में जमीन पर कब्जे को ले कर हुए हत्याकांड में पुलिस ने मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त, उस के भाई और भतीजे समेत 26 लोगों को गिरफ्तार किया. इस मामले में पुलिस ने 28 लोगों के खिलाफ नामजद और 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की, एसपी सलमान ताज पाटिल ने बताया कि फरार आरोपियों को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

पुलिस ने बताया कि उस ने हत्याकांड में इस्तेमाल किए गए 2 हथियार भी बरामद कर लिए हैं. पुलिस ने गांव के लल्लू सिंह की तहरीर पर मुख्य आरोपी ग्राम प्रधान यज्ञदत्त और उस के भाइयों समेत सभी पर हत्या और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओ.पी. सिंह को मामले पर नजर रखने का निर्देश दिया. योगी ने घटना को संज्ञान में लेते हुए मिर्जापुर के मंडलायुक्त तथा वाराणसी जोन के अपर पुलिस महानिदेशक को घटना के कारणों की संयुक्त रूप से जांच करने के निर्देश दिए.

सोनभद्र नरसंहार में जमीन के विवाद में प्रशासनिक लापरवाही और स्थानीय पुलिस की मिलीभगत भी सामने आई. 1955 से चल रहे जमीन के विवाद पर सरकार की नींद 10 लोगों की जान ले कर टूटी.

हत्या का आरोप भले ही प्रधान यज्ञदत्त के ऊपर है, पर सही मायने में हत्या में तहसील और थाना स्तर से ले कर जिला प्रशासन तक का हर अमला जिम्मेदार है. सोनभद्र हत्याकांड कोई अकेला मामला नहीं है. हर गांव में छोटेबड़े ऐसे मसले हैं, जो तहसील और प्रशासन की लापरवाही से ज्वालामुखी के मुहाने पर हैं.

सोनभद्र की घटना के बाद ही सही, अगर प्रशासन सचेत हो कर ऐसे मामलों को संज्ञान में ले कर तत्काल कदम उठाए तो ऐसे विवादों के रोका जा सकता है. जमीन से जुडे़ मामलों में थाना और तहसील विवाद को एकदूसरे पर टालते रहते हैं. ऐसे में नेताओं और दबंगों की पौ बारह रहती है और कमजोर आदमी अपनी ही जमीन पर कब्जा करने के लिए इधरउधर भटकता रहता है.

सोनभद्र में हुए जमीनी विवाद में 10 लोगों की जान जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार तब जागी जब दिल्ली से कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने सोनभद्र में डेरा डाला और आदिवासी परिवारों से मिलने की बात पर अड़ गईं. प्रियंका को सोनभद्र जाने से रोक कर चुनार गढ़ किले में बने गेस्ट हाउस में रखा गया.

शुरुआत में प्रदेश सरकार ने मरने वालों को 5 लाख रुपए का मुआवजा देने की बात कही पर प्रियंका गांधी की मांग के बाद मुआवजे की रकम बढ़ा कर 20 लाख कर दी गई. साथ ही यह भी कि जमीन को वही लोग जोतेबोएं, यह भरोसा भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को देना पड़ा.

मुख्यमंत्री खुद पीडि़तों से मिलने गए. जानकार लोग मानते हैं कि प्रियंका के सोनभद्र मामले में सक्रिय होने के बाद भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही सक्रिय नहीं हुए, बल्कि अन्य दलों ने भी अपने नेताओं को सोनभद्र भेजा.

करीब 1200 की आबादी वाले उम्भापुरवा गांव के 125 घरों की बस्ती में टूटी सड़कें, तार के इंतजार में खड़े बिजली के खंभे बदहाली की कहानी बताते हैं. इस गांव के लोग सरकार की योजनाओं के पहुंचने का सालों से इंतजार कर रहे थे लेकिन 17 जुलाई को हुए नरसंहार के बाद यहां पहली बार शासन की योजनाएं पहुंचने लगीं.

63 साल से अधिक की कमलावती कहती हैं कि हमारी उम्र के लोगों को वृद्धावस्था पेंशन मिलती है लेकिन हमारा नाम काट दिया गया. हमें आज तक पेंशन का लाभ नहीं मिला. न ही किसी अन्य सरकारी  योजना का लाभ मिला. इस घटना के बाद लगे कैंप में अब फार्म भरवाया गया है.

इतने दिन तक तो हमें पता ही नहीं था कि सरकार की क्याक्या योजनाएं चलती हैं. राशनकार्ड तो बना था, लेकिन राशन नहीं मिलता था. इस नरसंहार में हम ने अपना बेटा खोया है. तब जा कर आवास आदि के लिए फार्म भरवाए गए हैं.

इसी गांव की रहने वाली मालती देवी कहती हैं कि पहले न तो गांव में बिजली थी और न ही किसी के पास पक्का मकान था. इतनी बड़ी बस्ती में महज एक पक्का मकान था. घटना के बाद आवास के लिए फार्म भरवाया गया है. राशन कार्ड भी बन गया. इलाज के लिए आयुष्मान भारत का कार्ड भी बना दिया गया.

मिर्जापुर जिले से अलग कर के 4 मार्च, 1989 को सोनभद्र को अलग जिला बनाया गया था. 6,788 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के साथ यह उत्तर प्रदेश का दूसरा सब से बड़ा जिला माना जाता है. यहां जंगल सब से अधिक हैं. खाली पड़ी जमीनें बहुत पहले से नेताओं और अफसरों को अपनी तरफ आकर्षित करती रही हैं. सोनभद्र जिले के पश्चिमी में सोन नदी बहती है.

सोन नदी के नाम पर ही सोनभद्र बना है. सोनभद्र की पहाडि़यों में चूना पत्थर तथा कोयला मिलने के साथ इस क्षेत्र में पानी की बहुतायत होने के कारण यह औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित किया गया.

यहां पर देश की सब से बड़ी सीमेंट फैक्ट्रियां, बिजली घर (थर्मल तथा हाइड्रो) हिंडाल्को अल्युमिनियम कारखाना, आदित्य बिड़ला केमिकल, रिहंद बांध, चुर्क, डाला सीमेंट कारखाना, एनटीपीसी के अलावा कई सहायक इकाइयां एवं असंगठित उत्पादन केंद्र, विशेष रूप से स्टोन क्रशर इकाइयां भी स्थापित हुए हैं.

सोनभद्र का सलखन फौसिल पार्क दुनिया का सब से पुराना जीवाश्म पार्क है. जिसे देखने व घूमने के लिए पूरी दुनिया के लोग यहां आते हैं. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस जिले को भारत का स्विटजरलैंड बनाने का सपना देखा था. लेकिन बाद में इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. जिस से जवाहरलाल नेहरू का सपना सपना ही रह गया.

सोनभद्र में एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा वन भूमि पर अवैध रूप से नेता, अफसर और दबंग काबिज हैं. जिले में तैनात हुए अधिकतर अफसरों ने वन और राजस्व  विभाग कर्मियों की मिलीभगत से करोड़ों की जमीन अपने नाम कर ली.

पीढि़यों से जमीन जोत रहे वनवासियों का शोषण भी किसी से छिपा नहीं है. 5 साल पहले सन 2014 में वन विभाग के ही मुख्य वन संरक्षक (भू-अखिलेख एवं बंदोबस्त) ए.के. जैन ने यह रिपोर्ट दी थी कि पूरे मामले की सीबीआई जांच कराई जाए. लेकिन यह रिपोर्ट फाइलों में दबी रह गई.

इस रिपोर्ट के अनुसार सोनभद्र में जंगल की जमीन की लूट मची हुई है. यहां की जमीन अवैध रूप से बाहर से आए रसूखदारों या उन की संस्थाओं के नाम की जा चुकी है. यह प्रदेश की कुल वनभूमि का 6 प्रतिशत हिस्सा है.

इस पूरे मामले से सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराने की सिफारिश भी की गई थी. रिपोर्ट के अनुसार, सोनभद्र में सन 1987 से ले कर अब तक एक लाख हेक्टेयर भूमि को अवैध रूप से गैर वन भूमि घोषित कर दिया गया है. जबकि भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा-4 के तहत यह जमीन वन भूमि घोषित की गई थी.

रिपोर्ट में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की अनुमति के बिना इसे किसी व्यक्ति या प्रोजेक्ट के लिए नहीं दिया जा सकता. वन की जमीन को ले कर होने वाला खेल रुका नहीं है.

धीरेधीरे अवैध कब्जेदारों को असंक्रमणीय से संक्रमणीय भूमिधर अधिकार यानी जमीन एकदूसरे को बेचने के अधिकार भी दिए जा रहे हैं. यह वन संरक्षण अधिनियम 1980 का सरासर उल्लंघन है. 2009 में राज्य सरकार की ओर से उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी.

जिस में कहा गया था कि सोनभद्र में गैर वन भूमि घोषित करने में वन बंदोबस्त अधिकारी (एफएसओ) ने खुद को प्राप्त अधिकारों का दुरुपयोग कर के अनियमितता की है.

हालात का अंदाजा इस से लगा सकते हैं कि 4 दशक पहले सोनभद्र के रेनुकूट इलाके में 1,75,894.490 हेक्टेयर भूमि को धारा-4 के तहत लाया गया था. लेकिन इस में से मात्र 49,044.89 हेक्टेयर जमीन ही वन विभाग को पक्के तौर पर (धारा 20 के तहत) मिल सकी. यही हाल ओबरा व सोनभद्र वन प्रभाग और कैमूर वन्य जीव विहार क्षेत्र का है.

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