सुहाग सेज पर बैठी मीनाक्षी काफी परेशान थी, क्योंकि उस ने अपनी मरजी से जो कदम उठाया था वह उस के परिवार वालों की इच्छा के खिलाफ था. उस ने अपने ही गांव के रहने वाले बृजेश चौरसिया के साथ कोर्टमैरिज की थी.
सुहागसेज पर बैठी वह सोच रही थी कि उस ने अपनी पसंद से यह शादी कर तो ली है और यदि बृजेश उस की कसौटी पर खरा न उतरा या प्यार का जुनून खत्म होने के बाद उस ने उसे अपने जीवन से दूध में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया तो क्या होगा. ऐसी स्थिति में वह क्या करेगी, कहां जाएगी?
इन्हीं विचारों के बीच वह अपने आप को सहज करने की कोशिश भी कर रही थी. इस भंवरजाल से उस का ध्यान तब भंग हुआ जब पति बृजेश ने उस के कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा, ‘‘क्या बात है मीनू, किन खयालों में खोई हो?’’
‘‘अरे आप कब आए, पता ही नहीं चला.’’ मीनाक्षी अपने कंधे पर रखे बृजेश के हाथ का स्पर्श पा कर चौंकते हुए बोली.
‘‘जब तुम अपने खयालों में गहरी खोई थी.’’ बृजेश ने मुसकरा कर कहा, ‘‘बताओ, क्या सोच रही थी?’’
‘‘बृजेश, मैं अंदर से बहुत डरी हुई हूं क्योंकि मैं ने अपने पिता की मरजी के खिलाफ तुम से विवाह किया है. बस मैं तुम से यही चाहती हूं कि मुझे मझधार में मत छोड़ना वरना मैं कहीं की नहीं रहूंगी.’’ कहते हुए मीनाक्षी का चेहरा उदास हो गया.
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‘‘मीनू, तुम ऐसा क्यों सोच रही हो?’’ बृजेश ने उस के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में ले कर कहा, ‘‘तुम्हें मेरे प्यार पर भरोसा नहीं है क्या, या फिर 4 सालों में तुम मुझे समझ नहीं पाई? मीनू, मैं आज भी वादा करता हूं कि मैं तुम्हें कभी अपने जीवन से अलग नहीं होने दूंगा, इसलिए इस तरह के विचार अपने मन से निकाल दो. मैं तुम्हें हमेशा खुश रखने की कोशिश करूंगा.’’