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मैं बचपन से ही एक युवक से प्यार करती हूं लेकिन हमारा रिश्ता जाति की वजह से अटका हुआ है?

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. मेरी कहानी कुछ ऐसी है जिस की कोई मंजिल न हो. मैं बचपन से ही एक युवक से प्यार करती हूं. वह भी मुझे प्यार करता है  से परंतु मेरी कहानी जातिबिरादरी पर आ कर अटकी हुई है. आप बताएं हमारी शादी कैसे होगी?

जवाब

यह अच्छी बात है कि आप अपने बचपन के प्रेम को ताउम्र जीना चाहती हैं तभी तो आप ने उस युवक के साथ शादी के बारे में सोचा. लेकिन हमारे देश में जातिबिरादरी, धर्म आदि को कुछ ज्यादा ही अहमियत दी जाती है बनिस्पत प्यार के. आप के मामले में स्पष्ट नहीं है कि अटकाव किस पक्ष की ओर से है.

बहरहाल, आप खुद अपनी शादी की बात न कर के अपने किसी हितैषी द्वारा अपनी बात आगे पहुंचाएं, जिस की बात आप के पेरैंट्स भी मानते हों. उन्हें समझाएं कि जातिबिरादरी सब मनुष्य के बनाए हुए हैं. असली रिश्ता तो प्रेम का है, मानवता का है, जिस से सब बंधे हैं. जब दोनों ओर से पेरैंट्स यह समझ जाएंगे तो आप की शादी का अटकाव खुदबखुद दूर हो जाएगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

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मेरे अपने- भाग 1: उसके अपनों ने क्यों धोखा दिया?

मातंगी बूआ ने घर में घुसते ही प्रश्नों की बौछार कर दी थी.

‘‘अरी अंबिका, यह मैं क्या सुन रही हूं, तू ने शादी करने का फैसला किया है? चलो, देरसवेर तु?ो सम?ा तो आई. बस, एक ही बात का अफसोस है कि तेरे पिता को यह दिन देखना बदा न था,’’ कह कर वे बैठक में पालथी मार कर बैठ गईं और बोलीं, ‘‘अब बता, लड़का कौन है, कैसा है? है तो अपनी ही जातबिरादरी का न?’’

‘‘नहीं बूआ,’’ अंबिका की छोटी बहन राधिका बोली, ‘‘महेन उत्तर भारत का रहने वाला है. उस के परिवार के लोग कई पुश्त पहले सिंगापुर में जा बसे थे.’’

‘‘ये लोग,’’ बूआ ने मुंह बनाया, ‘‘एक तो करेला उस पर नीम चढ़ा. क्यों अंबिका, तु?ो अपनी जात में कोई लड़का नहीं मिला जो इस सिंगापुरिया को जा पकड़ा. तेरा भी काम जग से निराला ही होता है. खैर, तू जाने तेरा काम. अब तू बच्ची तो रही नहीं कि कोई तु?ो उंगली पकड़ कर चलना सिखाए. फिर भी एक बात मैं जरूर कहूंगी कि लड़के के बारे में भलीभांति जांचपड़ताल कर लेना. ऐसा न हो कि आगे चल कर पछताना पड़े. लड़कों के बारे में पहले ही तू 2 बार धोखा खा चुकी है.’’

अंबिका का चेहरा मलीन हो गया. बूआ ने उस की दुखती रग पर हाथ जो धर दिया था.

क्या यह उस का अपराध था कि वह 2 बार शादी के लिए ठुकराई जा चुकी थी? उस ने उफनते मन से सोचा, ‘उस में क्या कमी थी, क्या वह सुंदर न थी, सुयोग्य न थी जो पहले प्रकाश फिर अविनाश, उसे ठुकरा कर चल दिए थे.’

अंबिका को उन के द्वारा दिए गए आघात से उबरने में सालों लग गए थे. कुछ दिन तो वह विक्षिप्त सी हो गई थी. लगता था, आंसुओं के सैलाब में वह खुद भी बह जाएगी, पर धीरेधीरे तटस्थ हुई. फिर भी उस के अंदर एक हीनभावना ने घर कर लिया था. वह अंतर्मुखी हो गई थी. घर और कालेज दोनों के बीच उस की दुनिया सिमट कर रह गई थी.

बूआ और राधिका कुछ जरूरी खरीदारी के लिए चल दीं. अंबिका घर के पिछवाड़े जा बैठी.

मन में तरहतरह के विचार उमड़नेघुमड़ने लगे. बूआ की बातों ने अंबिका के मन में एक तरह के भय का संचार कर दिया था. सच तो कह रही थीं बूआ कि वह महेन के बारे में जानती ही क्या थी? बस, थोड़े दिनों की पहचान के बाद ही वह उस के हृदय के निकट आ गया था और अब वे दोनों विवाह बंधन में बंधने जा रहे थे.

अंबिका को उस की पहली मुलाकात याद हो आई. वह सड़क पर पानी में भीगती हुई खड़ी थी कि सहसा एक कार उस के पास आ कर रुकी और ड्राइवर ने उस से पूछा, ‘मैडम, क्या मैं आप को कहीं छोड़ सकता हूं? इस आंधीपानी में आप को रिकशा मिलने वाला नहीं है.’

अंबिका को हिचकिचाते देख वह व्यक्ति फिर बोला, ‘घबराइए नहीं, मैं इसी सामने वाले बैंक में अधिकारी हूं. मेरा नाम महेन भारद्वाज है.’

‘मैं अंबिका अय्यर हूं,’ उस ने

कहा था.

घर पहुंच कर अंबिका ने शिष्टाचारवश महेन को कौफी पीने के लिए आमंत्रित किया. महेन आंख फाड़े उस के मकान को देख रहा था.

‘आप इस हवेली में रहती हैं?’ महेन ने पूछा.

अंबिका की हंसी छूट गई, ‘हवेली तो क्या है, एक पुराना मकान है. मेरे पिता ने इसे अपने किसी परिचित से मिट्टी के मोल खरीद लिया था.’

‘आप इसे मकान कहती हैं, यह तो अच्छाखासा महल है. वाह, क्या नक्काशी है, जरा फर्श की टाइल की डिजाइन तो देखिए, लगता है कोई ईरानी कालीन बिछा है, देख कर तबीयत खुश हो गई.’ फिर कौफी का घूंट भर कर वह बोला, ‘वाह, आप की तरह आप की कौफी भी लाजवाब है. मु?ो पुरानी वस्तुओं को संग्रह करने का बड़ा शौक है. करीब 200 तो गौतम बुद्ध की मूर्तियां हैं मेरे पास. कभी मेरे घर आइए तो दिखाऊंगा. लेकिन कभी क्यों, इसी रविवार को आइए, मैं आप को चाइनीज चाय पिलाऊंगा.’

वह अभी बैठा बातें कर ही रहा था कि राधिका आ गई थी. अंबिका ने उस का परिचय महेन से कराया.

महेन के जाने के बाद राधिका ने नाकभौं सिकोड़ कर कहा था, ‘दीदी, तुम भी कमाल करती हो, एक अनजान आदमी को घर में घुसा लिया. यदि वह चोरडाकू या ठग होता तो?’

महेन से शादी तय होने के बाद एक दिन अंबिका ने हंस कर उस से कहा था, ‘महेन, राधिका ठीक ही कहती थी, तुम चोर, डाकू व ठग निकले.’

‘मैं चोर? वह कैसे?’ आश्चर्य का भाव लिए महेन बोला.

‘तुम ने मेरा दिल जो चुराया.’

‘ओह, और डाकू?’

‘तुम ने मेरे मन पर डाका डाला.’

‘और ठग?’

‘नहीं, वह शायद तुम नहीं हो,’ अंबिका ने उस की बांहों में सिमटते हुए कहा था.

लेजर लैंड लैवलर से करें खेत को समतल, पाएं ज्यादा पैदावार

ई. वरुण कुमार, (कृषि अभियंत्रण)
कृषि विज्ञान केंद्र, जौनपुर
डा. सौरभ वर्मा, (शस्य विज्ञान)
कृषि विज्ञान केंद्र, सुलतानपुर
दिनेश कुमार, (मृदा विज्ञान)
कृषि विज्ञान केंद्र, जौनपुर

भूमि समतलीकरण फसल, मिट्टी एवं जल के उचित प्रबंधन की पहली जरूरत है. अगर भूमि के समतलीकरण पर ध्यान दिया जाए, तो उन्नत कृषि तकनीकें और ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती हैं. इसलिए किसान अपने खेतों को समतल करने के लिए उपलब्ध साधनों का पर्याप्त रूप से उपयोग
करते हैं.

इतना ही नहीं, भूमि के समतलीकरण की पारंपरिक विधियां बहुत ही कठिन और अधिक समय लेने वाली हैं. धान की खेती करने वाले किसान अपने खेतों में पानी भर कर समतल करते हैं. लगभग 20-25 फीसदी पानी का नुकसान खेतों के असमतल होने के चलते ही होता है.

असमतल होने की वजह से धान के खेतों में इस वजह से भी ज्यादा नुकसान होता है. असमतलीकरण से सिंचाई जल के नुकसान के अलावा जुताई और अन्य फसल उत्पादन प्रक्रियाओं में देरी होती है.

असमतल खेतों में फसल एकसमान नहीं होती है. उन का फसल घनत्व अलगअलग होता है. फसल एक समय में नहीं पकती है. इन सभी वजहों से फसल की उपज पर काफी बुरा असर पड़ता है और उन की क्वीलिटी भी गिर जाती है. साथ ही साथ किसानों को अपनी फसल के दाम भी बहुत कम मिलते हैं.
भूमि समतलीकरण के काम समतल भूमि में फसल प्रबंधन का काम कम हो जाता है. साथ ही, पानी की बचत होती है. फसल के उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है. भूमि समतलीकरण के निम्न फायदे हैं :

 अधिक फसल उत्पादन

भूमि समतलीकरण से 20 फीसदी तक उपज में बढ़ोतरी संभव है. भूमि जितनी अधिक समतल होगी, उतनी ही उत्पादन में अधिक वृद्धि होगी.

खरपतवार पर नियंत्रण

समतल भूमि में खरपतवार का नियंत्रण अच्छी तरह से किया जा सकता है. धान के खेतों में अधिक भूमि क्षेत्रों में पानी भरा होने से खरपतवार 40 फीसदी तक कम हो जाते हैं. साथ ही साथ निराई में कम मजदूर लगते हैं और लागत भी कम हो जाती है.

उत्पादन में वृद्धि

अच्छी तरह समतल भूमि में पानी का समान वितरण होता है, जिस से पोषक तत्त्वों का नुकसान नहीं होता है. जड़ सड़न और तना सड़न जैसे रोग कम लगते हैं और लगभग 10 से
15 फीसदी तक उत्पादन बढ़ जाता है.

समय और पैसों की बचत

समतल भूमि में सिंचाई करने में कम समय लगता है और क्यारियां और बरहें 50 से 60 फीसदी कम बनाने पड़ते है, जिस से समय व पैसों की बचत होती है

सिंचाई में पानी की बचत

समतल भूमि में 10 से 15 फीसदी पानी की बचत होती है, जिस से जल संरक्षण में मदद मिलती है और मिट्टी की सेहत में सुधार होता है.

भूमि समतलीकरण की विधियां

भूमि समतलीकरण पशुचालित, ट्रैक्टरचालित और बुलडोजर के द्वारा भिन्नभिन्न समतलन (लैवलर) यंत्रों के उपयोग के द्वारा किया जा सकता है. पहले हल व हैरो द्वारा जुताई और फिर पटेला चला कर समतल किया जाता है. समतल किए खेतों में पूरी तरह से पानी भर कर (5 सैंटीमीटर या उस से अधिक) भी किया जाता है.

ट्रैक्टर द्वारा लैवलिंग ब्लेड या डग बकेट यंत्रों का उपयोग कर के भूमि को समतल किया जाता है. इस काम में 4 से 8 घंटे लगते हैं, जो ट्रैक्टर यंत्र व हटाए जाने वाले भूमि के आयतन और भरने वाले स्थान की दूरी पर निर्भर करता है. लेजर पद्धति में ट्रैक्टर द्वारा बकेट या लैवलर ब्लेड का उपयोग कर के भूमि को समतल किया जाता है. इस में भूमि का तल बिलकुल समतल या एकजैसी ढाल देने के लिए लेजर किरण का उपयोग किया जाता है. लेजर पद्धति द्वारा भूमि 50 फीसदी तक अधिक समतल होती है.

लेजर पद्धति द्वारा भूमि समतलीकरण से लाभ

लेजर पद्धति का उपयाग उन्नत देशों जैसे जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि में भूमि समतलीकरण के लिए किया जाता है. हमारे देश में इस पद्धति का उपयोग सीमित तौर पर शुरू हो रहा है. इस का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो, इस के लिए किसानों को इस का महत्त्व समझाना जरूरी है. इस के मुख्य लाभ निम्न हैं :
* अधिक समतल एवं चिकनी भूमि सतह.
* खेतों की सिंचाई में लगने वाले पानी की मात्रा एवं समय में कमी.
* सिंचाई में पानी का समान वितरण.
* भूमि में नमी का समान वितरण.
* अधिक अच्छा अंकुरण व फसल की बढ़वार.
* बीज, खाद, रसायन व डीजल और बिजली की बचत.
* यंत्रों सहित खेतों में चलनाफिरना आसान.

लेजर लैवलर की कार्य प्रणाली

लेजर लैवलर समतलीकरण की एक ऐसी मशीन है, जो ट्रैक्टर की मदद से ऊंचेनीचे खेतों को एक समतल सतह में बराबर करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. इस मशीन के द्वारा किरणों के निर्देशन से चलने वाली स्वचालित धातु का बग ब्लेड होता है, जो हाइड्रोलिक पंप के दबाव से काम करता है और ऊंचे स्थानों से खुद मिट्टी काट कर निचले स्थान पर गिरा देता है, जिस से खेत बराबर हो जाता है.

लेजर संप्रेषण
लेजर संप्रेषण बैटरी से चलने वाला एक किरण निकालने वाला छोटा यंत्र होता है, जिस को खेत के बाहर एक स्थान पर निर्धारित कर रख दिया जाता है, जो चालू करने पर एक सीधी रेखा में चारों तरफ किरणें निकालता है. किरणों के स्तर पर खेत समतल होता है.

लेजर ग्राही
लेजर ग्राही ब्लेड के ऊपर लगाया जाता है, जो लेजर संप्रेषण द्वारा भेजी गई किरणों को प्राप्त कर नियंत्रण बौक्स को सूचना देता है, जिस से नियंत्रण बौक्स काम करता है.

नियंत्रण बौक्स
नियंत्रण बौक्स एक छोटे से डब्बे जैसा यंत्र है जिस से छोटेछोटे बल्ब लगे होते हैं. ट्रैक्टर ड्राइवर के पास इस को लगाया जाता है, जिस से ड्राइवर की नजर उस पर पड़ती रहे. यह पूरी तरह से स्वसंचालित होता है. खेत को जिस सतह पर समतल करना होता है, उस की सूचना नियंत्रण बौक्स में निर्धारित कर दी जाती है. यह हाइड्रोलिक यूनिट को चलाता है.

हाइड्रोलिक यूनिट
हाइड्रोलिक यूनिट ट्रैक्टर के हाइड्रोलिक से जुड़ी रहती है, जो नियंत्रण बौक्स के सूचना देने पर ब्लेड को ऊपरनीचे करने में सहयोग करते हुए संचालित करती है, जिस से मिट्टी काटी या गिराई जाती है और खेत समतल होता है.

लेजर लैवलर का संचालन

इस मशीन को संचालित करने के लिए कम से कम 50-60 हौर्सपावर के ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती है. इस मशीन से खेत को समतल करने के लिए सब से पहले उसे किस लैवल पर समतल करना है, इस के लिए इस मशीन के विशेष फोल्डिंग मीटर एवं लेजर संप्रेषक की मदद से खेत में सर्वे कर लैवलिंग सतह का निर्धारण कर लिया जाता है.

यही निर्धारण सतह लेजर लैवलर नियंत्रण बौक्स में निर्धारण कर देते हैं और इस मशीन को ट्रैक्टर से जोड़ कर खेत में एक तरफ से चलना शुरू कर देते हैं, जो लेजर संप्रेषक द्वारा भेजी जा रही किरण को प्राप्त कर नियंत्रण बौक्स के माध्यम से हाइड्रोलिक यूनिट द्वारा दबाव से चलने वाले ब्लेड के द्वारा मिट्टी काट कर या गिरा कर खेत को समतल कर देता है.

भारत भूमि युगे युगे: रोजगार या संस्कार

रोजगार देने में नाकाम साबित हो रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संस्कारों की बात करने लगे हैं  क्योंकि उन के पास देने को कुछ और है भी नहीं. देश के नौजवान रोजगार से नहीं बल्कि संस्कारों से ही महान बन सकते हैं. उन का महान बनना जरूरी है क्योंकि देश को महान बनना है और वह देश कभी विश्वगुरु बन ही नहीं सकता जिस के युवा पकौड़े की दुकान खोलने का मशवरा अनसुना कर मुंह लटकाए हाथ में कटोरा और कटोरे में डिग्री लिए रोजगार की भीख मांगें.

बडोदरा के स्वामीनारायण मंदिर में वीडियो कौन्फ्रैंस के जरिए युवा शिविर को उपदेशों की वैक्सीन देते हुए नरेंद्र मोदी ने संस्कार के 6 मतलब भी गिना डाले जो जाहिर है धर्मग्रंथों से उड़ाए गए थे. उन्होंने साबित कर दिया कि संस्कार हैं तो सबकुछ है, इसलिए रोजगार के मसले पर युवाओं को निराश होने की कोई जरूरत नहीं है. शुक्र तो इस बात का है कि अभी रोजगार मांगना राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में नहीं रखा गया है.

एक थप्पड़ दो टारगेट

सत्ता से बाहर होते हुए भी राजद बिहार का सब से बड़ा दल है जिस के जनक वृद्ध लालू यादव आएदिन जेल के अंदरबाहर होते रहते हैं. सीबीआई उन के दर पर बिन बुलाए मेहमान की तरह हर कभी सुबहसुबह आ धमकती हैं. ताजा आरोप लालू का रेलमंत्री रहते जमीन ले कर नौकरी देने के आइडिए का है. भारी अफरातफरी और तनाव के बीच उन की पत्नी व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी कार्यकर्ताओं को मुखिया की कमी नहीं अखरने देतीं.

इस कमी को मनोवैज्ञानिक तरीके से दूर करने के लिए उन्होंने अपने ही एक कार्यकर्ता को जोरदार प्रायोजित थप्पड़ जड़ दिया क्योंकि कई कार्यकर्ता उस वक्त उन के समर्थन में नारे लगा रहे थे जब सीबीआई वाले दिल्ली से आ कर उन का पहले से खंगालाखंगलाया घर और खंगाल रहे थे. कार्यकर्ता तो इस प्रसाद से प्रसन्न हो गया लेकिन सीबीआई वाले सहम गए और यही राबड़ी की मंशा भी थी.

जिल्दबंद चाटुकारिता

भाजपा के शीर्ष नेता कुछ और करें न करें, पौराणिक पात्रों की तर्ज पर एकदूसरे की तारीफ जरूर किया करते हैं. बड़े नेता छोटे की करें तो इसे आशीर्वाद और छोटा बड़े की करे, तो इसे खुशामद कहा जाता है. मंचों से मुंहजबानी की गई तारीफ व्हाट्सऐप के मैसेज की तरह डिलीट हो जाती है. इसलिए इन नेताओं ने चापलूसी को स्थायी बनाने को किताबें लिखना और लिखाना शुरू कर दिया है. हाल ही में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने उन के गुरु नंबर 2 पर लिखी किताब ‘अमित शाह और भाजपा की यात्रा’ के मराठी संस्करण का विमोचन किया.

विमोचन के मौके पर स्मृति वही बोलीं जो भक्तिकाल में  मीरा बाई ने कृष्ण के बारे में पद्य रूप में कहा है. इस भक्ति की अतिशयोक्ति इस कथन के साथ समाप्त होती है कि अमित शाह ने महज 13 साल की उम्र में शास्त्रों और उपनिषदों का पूर्ण ज्ञान हासिल कर लिया था.

बुढ़ापे को बनाया हथियार

भगवा गैंग में शामिल हो कर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने वक्त से पहले उस के तौरतरीके सम?ा लिए हैं. अब वे हर कभी आरएसएस के दफ्तर में साष्टांग हो जाते हैं, छोटेमोटे कार्यकर्ताओं से हाथ मिला लेते हैं. और तो और, कभी कालीन से नीचे पांव न रखने वाले श्रीमंत अपनी नाजुक हथेलियों से सफाईकर्मियों के खुरदुरे पैर भी धुला देते हैं जिस से

उन का कांग्रेस को धोखा देने का पाप

20-25 फीसदी ही धुल जाए. यह गिल्ट उन का पीछा आसानी से नहीं छोड़ रहा है. अशोकनगर के एक सरकारी आयोजन में उन्होंने अपना ताजा दर्द बयां करते हुए कहा, ‘अब मैं बूढ़ा हो गया हूं’ तो मौजूद लोग उन के चिकनेचुपड़े गैर?ार्रीदार गुलाबी चेहरे में बुढ़ापे की निशानियां ढूंढ़ने लगे जो कि, चूंकि हैं नहीं इसलिए, दिखीं नहीं. बात असल में कुछ और थी जिस का सीधा ताल्लुक उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए जाने की आएदिन की अटकलों से है. सिंधिया जो इशारों में कह गए वह यह था कि मैं तो अभी 51 का ही हूं और कुरसी पर 63 के शिवराज सिंह चौहान बैठे हैं.

लव जेहाद का नारा

देश की सामाजिक समस्या ङ्क्षहदूमुसलिम से ज्यादा ङ्क्षहदू ङ्क्षहदू है पर उसे बड़ी सावधानी से ढक़ कर रखा जाता है. जातियों में बंटे ङ्क्षहदू समाज में एकदूसरी जाति के प्रति ज्यादा अलगाव है बजाए ङ्क्षहदूमुसलिम अलगाव के ङ्क्षहदू समाज की जातियों को साथसाथ बराबरबराबर रहना पड़ता है और मुसलमानों ने कुछ सुरक्षा की दृष्टि से और कुछ व्यावहारिक कारणों से अलग सी बस्तियां बना ली है ताकि ङ्क्षहदूओं से नाहक मुठभेंड न हो जो धाॢमक दंगों में बदल जाएं.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में लोहार जाति ने एक घर में मां और 2 बेटियों व भाई के अंतिम सप्ताह में जहर खा कर आत्महत्या कर ली क्योंकि उन का बेटा एक दलित लडक़ी से प्रेम करता था और उस के साथ भाग गया. दलित पिता ने शिकायत की और पुलिस ने लडक़े के घर छापा मारा और परिवार पर दबाव डालना शुरू किया कि वे लडक़े-लडक़ी को पेश करें.

इस दबाव में लडक़े की मां और 2 बहनों ने आत्महत्या कर ली.

पिछले 8-10 सालों से जो लव जेहाद का नारा देश पर थोपा गया है उस का असर ङ्क्षहदू जातियों पर  भी पडऩा स्वाभाविक ही है. देश और समाज ने 2 लाइनें हर गांव, कस्बे, स्कूल, दफ्तर में खींची जाएंगी तो ये लाइनें अपनेआप खिचती हुई अनेक लाइनों में परिवॢतत हो ही जाएंगी. विभाजन कोरोना वायरस की तरह है, या तो पूरा समाज एक साथ रहेगा, खाएगा, खुशियां बांटेंगा या पूरा समाज अलगथलग होगा. आप मनचाहा बंटवारा कर ही नहीं सकते. विषाणु तो हरेक को डसेंगे. यह असर घृणा को मान्यता देने का है.

आज ङ्क्षहदू औरतों को जता कर घृणा का पाठ पढ़ाया जा रहा है. हमारे मंदिर हर लिए गए की बातें केवल विद्यर्मी तक नहंं रह जाएंगी, यह विजातीय तक भी जाएंगी, ङ्क्षहदूओं की हर जाति को अपने मंदिर दिए जा रहे हैं, हरेक को दूसरे से घृणा करना सिखाया जा रहा है, जातियों पर आधारित पाॢटयां बनी हैं, जातियों पर आधारित नौकरियां है, कालेजों में प्रवेश है. पहले सिर्फ थोड़ा आक्रोश था अब आक्रोश बढ़ गया है, यह घृणा और दुश्मनी में बदल रहा है.

ङ्क्षहदू जातियों में जो थोड़ा बहुत लेनदेन साथ शिक्षा के कारण पैदा होने लगता था वह अब टूट रहा है क्योंकि अलगाव की शिक्षा कर स्कूलकालेज में जम कर दी जा रही है. यह भी कोर्स का एक हिस्सा बन चुका है. हर लडक़ी को वह दिया जाता है कि प्रेम कर लो पर जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र देख कर करना. लडक़े के प्यार करने वाले विजातीय लडक़ी को विद्यर्मी लडक़ी की तरह घर में नहीं घुसने देते. हर घर में देवीदेवताओं के ऐसे चिह्नï लगने लगे हैं कि जाति भी स्पष्ट हो जाए.

यह अफसोस की बात है पर इस का इलाज आज संभव नहीं दिखता.

Top 10 Best Father’s Day Story In Hindi: टॉप 10 बेस्ट फादर्स डे कहानियां हिंदी में

माँ के बाद अगर कोई हमसे सच्चा प्रेम करता है तो वो हैं पिता. मां अपने बच्चों को सीने से लगा कर रखती है तो पिता का दिल बच्चों के लिए धड़कता है. कहते है बेटियां हमेशा अपने पिता जैसा जीवनसाथी चाहती है. तो इस Father’s Day पर आपके लिए लेकर आए है, सरिता की Top 10 Father’s day Story In Hindi.

  1. स्मिता: बेटी के पैदा होने के बाद सारा और राजीव क्यों परेशान थे

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सारा ने प्रतिक्रिया में कुछ नहीं कहा. उस ने कौफी का मग कंप्यूटर के कीबोर्ड के पास रखा. राजीव इंटरनेट पर सर्फिंग कर रहा था. सारा ने एक बार उस की तरफ देखा, फिर उस ने मौनिटर पर निगाह डाली और वहां खडे़खडे़ राजीव के कंधे पर अपनी ठुड्डी रखी तो उस की घनी जुल्फें पति के सीने पर बिखर गईं.

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2. दूरियां: क्यों हर औलाद को बुरा मानता था सतीश?

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हाथ का अखबार पास पड़ी कुरसी पर पटक कुछ जोर से बोले सतीश, ‘‘क्या हो रहा है? मैं ने कल की खबर तुम्हें सुनाई थी कि पिता के पैसों के लिए बेटे ने उस की हत्या की सुपारी अपने ही एक दोस्त को दे दी. देखा, कलियुगी बच्चों को…बेटाबेटी ने मिल कर अपने बूढ़े मातापिता को मौत के घाट उतार दिया, ताकि उन के पैसों से मौजमस्ती कर सकें.

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3. सांझ का साथी: दीप्ति क्यों नही समझ पाई पापा का दर्द?

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‘‘पापा, यह क्या किया आप ने? इतना बड़ा धोखा वह भी अपने बच्चों के साथ, क्यों किया आप ने ऐसा? आखिर क्या कमी थी हमारे प्यार में, हमारी देखभाल में, जो आप ने ऐसा कदम उठा लिया? एक ही पल में सारे रिश्तों को भुला दिया. चकनाचूर कर दिया उन सारी यादों को, उन सारी बातों को, जिन्हें याद कर के हम खुशी से पागल हुआ करते थे.

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4. डियर पापा: क्यों पिता से नफरत करती थी श्रेया?

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सुजौय ने मुसकरा कर अपना ब्रीफकेस मुझे थमा दिया और दोनों बच्चों को बांहों में भर कर भीतर आ गए. तीनों के कहकहे सुन कर दिल को सुकून सा मिल रहा था. सुजौय को चाय दे कर मैं भी वहीं उन तीनों के पास बैठ गई. दोनों बच्चे बड़े प्यार से अपने पापा को दिन भर की शरारतें और किस्से सुना रहे थे.

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5.पिता का दर्द-: सुकुमार के बेटे का क्या रहस्य था?

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टैलीफोन की घंटी से सुकुमार का ध्यान भंग हुआ. रिसीवर उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘हैलो.’’ ‘‘बाबा, मैं सुब्रत बोल रहा हूं,’’ उधर से आवाज आई. ‘‘हां बेटा, बोलो कैसे हो? बच्चे कैसे हैं? रश्मि कैसी है?’’ एक सांस में सुकुमार ने कई प्रश्न कर डाले. ‘‘बाबा, हम सब ठीक हैं. आप की तबीयत कैसी है?’’ ‘‘ठीक ही है, बेटा. अब इस उम्र में तबीयत का क्या है, कुछ न कुछ लगा ही रहता है.

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6. पिता की पगड़ी-: अनुज के पिता के साथ क्या हुआ?

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‘‘मेरी ही कमाई है यह, जो तुम सब खा रहे हो…’’ बडे़ चाचा ने हाथ नचा कर कहा तो सहसा अनुज के दिमाग में दादाजी का चेहरा कौंध गया. शक्लसूरत बड़े चाचा की दादाजी से बहुत मेल खाती है और हावभाव भी. दादाजी अकसर इसी तरह हाथ नचा कर कहा करते थे, ‘मेरी ही कमाई हुई इज्जत है, जो तुम से लोग ढंग से बात करते हैं वरना कौन जानता है तुम्हें यहां.’

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7. वो पिताजी ही थे: रति के पति के साथ क्या हुआ?

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रति के पति विशाल 2 दिनों से सिर में दर्द व थकावट की शिकायत कर रहे थे. उन्होंने कहा कि “शायद नींद पूरी नहीं हुई है.” “आराम कीजिए आप, सारे दिन लैपटौप में आंखें गड़ाए काम भी तो करते हैं,” रति के कहने पर विशाल ने सिरदर्द की दवा ली और दूसरे कमरे में जा कर सो गए.रति मन ही मन चिंतित थी कि इन्हें तो आराम करने को कह रही हूं पर कहीं इन्हें… उफ़, मैं भी न क्या फालतू की बात सोचने लगी हूं.

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8. बेबस आंखें: केशव अपनी बेटी से आंखें क्यों नहीं मिला पा रहा था?

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‘डियर डैड, गुड मौर्निंग. यह रही आप के लिए ग्रीन टी. आप रेडी हैं मौर्निंग वौक के लिए?’’‘‘यस, माई डियर डौटर.’’ वह दीवार पर निगाह गड़ाए हुए बोली, ‘‘डैड, यह पेंटिंग कब लगवाई? पहले तो यहां शायद बच्चों वाली कोई पेंटिंग थी.’’‘‘हां, यह कल ही लगाई है. मैं पिछली बार जब मुंबई गया था तो वहां की आर्ट गैलरी से इसे खरीदा था. क्यों, अच्छी नहीं है क्या?’’

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9. आई लव यू पापा: पापा की बिटिया

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उन दिनों मैं अपनी नई जौब को लेकर बड़ी खुश थी. ग्रेजुएशन करते ही एक बड़े स्कूल में मुझे ऑफिस असिस्टेंट के रूप में काम मिल गया था. छोटे शहर में एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की के लिए यह उपलब्धि बहुत बड़ी थी. जहां आमतौर पर ग्रेजुएशन करते ही लड़कियों को शादी कर ससुराल भेजने की रवायत हो, वहां मुझे सुबह-सुबह तैयार होकर बैग लटका कर रिक्शे से नौकरी पर जाता देख मोहल्ले में कईयों के सीने पर सांप लोट जाता था.

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10. लव यू पापा: तनु उसे अपना पिता क्यों नहीं मानती थी?

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‘‘अरे तनु, तुम कालेज छोड़ कर यहां कौफी पी रही हो? आज फिर बंक मार लिया क्या? इट्स नौट फेयर बेबी,’’ मौल के रेस्तरां में अपने दोस्तों के साथ बैठी तनु को देखते ही सृष्टि चौंक कर बोली. फिर तनु से कोई जवाब न पा कर खिसियाई सी सृष्टि उस के दोस्तों की तरफ मुड़ गई.

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सैकंड हैंड: शाहीन ने अपने पति से क्यों तलाक लिया था?

मेरे मोबाइल फोन पर ईमेल सुविधा नहीं है, इसलिए मैं ने मित्र के कंप्यूटर पर ही अपना ईमेल अकाउंट सेट कर रखा है. मैसेज बड़ौदा से आया था. वहां मेरा छोटा भाई है. घर की देखभाल करते हुए वह वहीं पढ़ भी रहा है. कहीं उसे कुछ हुआ तो नहीं? 2 वर्ष पहले जब कोरोना फैला था शिक्षकों को कोचिंग क्लासों से निकाल दिया गया था, परिणामत: मैं अहमदाबाद चला आया और वहां छोटामोटा काम करने लगा. अहमदाबाद में मकानों की तंगी के कारण छोटे भाई को वहीं छोड़ आया.

पासवर्ड डाल कर मैसेज पढ़ा, शब्दों पर नजर पड़ते ही चेहरे का रंग पीला पड़ गया. बरबस ही होंठों पर मुसकान आ गई. संक्षिप्त सा मैसेज था, ‘‘भाभी आ गई हैं. जल्दी आ जाओ.’’

मैसेज पढ़ने के पहले चिंता के जो गहरे बादल चेहरे पर छा गए थे, वे हट गए. मैं सोच में पड़ गया. यह अभी कैसे आ गई? उसे गए अभी डेढ़ वर्ष ही तो हुआ है. हमेशा कहा करती थी, ‘देखना, अब की जाऊंगी तो कभी लौट कर नहीं आऊंगी. मैं अपने भाइयों के पास जिंदगी काट लूंगी.’

वैसे भी उस के जो मैसेज इधरउधर आते थे, उन से पता चलता था कि वह अभी एक वर्ष तक नहीं आएगी. मुझे तो उस ने ब्लौक कर रखा था. शायद उस के पास स्मार्टफोन था, पर मैं बिना इंटरनैट वाला फोन ही इस्तेमाल करता था. अब यह अचानक कैसे आ टपकी? सोचा, इतवार की छुट्टी में जाऊंगा. लेकिन वहां जाने पर सुख भी क्या मिलेगा? जब वह गई थी, शादी हुए 6 वर्ष हो गए थे. मैं ने उसे प्रसन्न रखने के लिए क्या नहीं किया? उस की ख्वाहिश का खयाल रखा. हर तरह से सुखी रखने का प्रयत्न किया, मगर बेगम साहिबा थीं कि बस गुमसुम, न हंसना, न बोलना. पर, इतना तो मानना पड़ेगा ही कि उस में एक प्रशंसनीय खूबी जरूर है. उस ने मेरे हर शारीरिक आराम का खयाल रखा. वक्त पर हर काम तैयार. मुझे कभी शिकायत का मौका ही नहीं दिया, लेकिन यह भी कोई जिंदगी है. बस मशीन की तरह काम किए जा रहे हैं. कई मर्तबा मैं ने उस को हंसाने का प्रयत्न किया. खुश रहना सिखाना चाहा. लेकिन हंसना तो दरकिनार, क्या मजाल कि होंठों पर मुसकराहट तो आ जाए. खुदा ने न जाने किस मिट्टी से बनाया है उस औरत को कि मुझे भी गंभीर मनोवृत्ति का बना कर रख दिया.

डेढ़ साल पहले वह मुझे बस इतना कह कर चली गई थी कि वह अपने मांबाप और भाई के पास दुबई जा रही है, जहां वे 2 साल पहले जा बसे थे.

मैं आंखें बंद कर अपने बिस्तर पर लेट सबकुछ भूल जाने का प्रयत्न करने लगा. विचारों की श्रृंखला में मेरे दोनों नन्हेमुन्ने आ गए. मेरी पुत्री रेहाना अब बड़ी हो गई होगी. 4 साल की थी, जब वह यहां से गई थी. और फरहान वह शायद मुझे भूल ही गया होगा. दो साल का ही तो था. जब तक मैं घर में रहता था दोनों मेरे आसपास ही चक्कर लगाया करते थे.

उन का खिलखिलाना, फुदकना याद हो आया. पत्नी से जो सुख मुझे न मिल सका था, वह उन दोनों बच्चों ने पूरा किया था. मैं फौरन बिस्तर से खड़ा हो गया. घड़ी में देखा 5 बजे थे. मैं ने फौरन कागज उठा कर छुट्टी की अर्जी लिख डाली और मित्र को थमाते हुए बोला, ‘‘स्कूल पहुंचा देना. श्रीमतीजी दुबई से आ गई हैं, जरा मिल आऊं.’’ बोल कर बसस्टैंड की ओर चल पड़ा.

जब मैं ने बड़ौदा वाले घर में प्रवेश किया तो रात के 9 बजे थे. श्रीमतीजी पलंग पर बैठी कुछ पढ़ रही थी और बच्चे फर्श पर खेल रहे थे. मुझे देखते ही बोली, ‘‘देखो, तुम्हारे पापा आ गए.’’

बच्चों ने मुझे देखा और मेरी तरफ लपके. रेहाना तो मेरे पैरों से लिपट गई. मैं ने उसे प्यार से थपथपाया, लेकिन फरहान, पहले तो दौड़ा, फिर ठिठक कर खड़ा रह गया. वह कभी मेरी सूरत देखता तो कभी रेहाना की तरफ ताकने लगता. मैं ने लपक कर उसे गोद में उठा लिया और चूम लिया.

उस ने अपनी दोनों नन्हीनन्हीं बांहें मेरे गले में डाल दीं और चिपक गया.

इस कोमल प्यार की अनुभूति ने मेरे सफर की थकान दूर कर दी. आरामकुरसी पर बैठ कर कुछ देर तक उन के साथ अठखेलियां करता रहा. बच्चों की भोलीभाली बातों से हृदय गदगद हो गया. नजर श्रीमतीजी की तरफ भी उठ जाती थी. बस वह मुसकरा रही थी और शोख नजरों से मेरी तरफ देखे जा रही थी.

मैं ने बैग में से निकाल कर रेहाना को चाकलेट थमाई और चिप्स के पैकेट व संतरे फरहान के सामने रख कर कहा, ‘‘ले जाओ अपनी मां के पास. वह तुम्हें बांट देंगी,’’ फिर उस तरफ मुखातिब हो कर बोला, ‘‘कहिए, क्या हाल हैं आप के?’’ वह उत्साह से बोली, ‘‘खूब मजे में हूं.’’ और खिलखिला दी.

मैं ने कहा, ‘‘चलो खुदा का शुक्र है, दुबई ने तुम्हें हंसना तो सिखाया.’’

वह तुनक कर बोली, ‘‘दुबई क्या हंसना सिखाएगा, वहां तो लोगों को बात करने की ही फुरसत नहीं.’’

‘‘खूब मजे उड़ाए वहां रह कर. अच्छा, अब बताइए क्या हाल है वहां के? कौनकौन मिले? उन का कैसा सुलूक रहा तुम्हारे साथ? तुम्हारे तो बहुत से घर वाले खाड़ी के देशों में हैं.”

‘‘मजे और वहां…? हुब्बे वतन, प्यारा वतन. भई, मजे तो अपने ही वतन में है. जहां जीवनसाथी हो वहीं मजे आ सकते हैं. हां, तफरीहन एक अच्छी जगह है. वहां के लोगों में न तो मुरब्बत है और न ही खुलूस है. वे खुद ही दूसरों के मुल्क में हैं.’’

‘‘भई, यह तो हर जगह होता है. इनसान तो हर जगह एक सा ही होता है. चाहे वह दुबई हो या हिंदुस्तान. आप अपने अजीजों की बात कीजिए.’’

‘‘मैं भी उन्हीं की बात कर रही हूं. मुझे दूसरे लोगों से क्या मतलब…? सब लोग मजे में हैं. आप को खूब याद करते हैं, खासकर आप की एक फूफी. हां, एक बड़े मजे की मुलाकात हुई,’’ कहते हुए वह फिर खिलखिला पड़ी. मेरे फूफा भी शारजाह में हैं, पर कभी न बुलाया और जब से गए हैं, कभी नहीं मिलने आए.

मेरी उत्सुकता बढ़ी और मैं ने पूछा, ‘‘ऐसी कौन सी मुलाकात ने आप को कमल के फूल की तरह खिला दिया. जरा हम भी तो सुनें.’’

‘‘ओह, मजा आ गया,’’ कहते हुए वह पलंग से उठी और मेरे ही नजदीक आ कर आरामकुरसी पर बैठ गई. उस की आंखों में शरारत नाच रही थी. जिस को देखने की मुद्दत से आरजू थी, मिलने की तमन्ना थी, आखिर वह मिल ही गई. उस के चेहरे पर सुर्खी दौड़ आई थी. उस के चेहरे पर ऐसी आभा मैं ने पहले कभी नहीं देखी थी.

मैं ने हिचकिचाते हुए पूछा, ‘‘आखिर कौन सी है वह बात, जरा हम भी तो सुनें.’’

मैं ने सोचा कि वह अपनी बचपन की किसी सहेली की बात करेगी. औरतों की आदत होती है कि जब अपनी किसी सहेली को अचानक पा लेती है तो फिर जब तक उस की चर्चा दूसरों के सामने न करे उन्हें चैन ही नहीं पड़ता.

‘‘क्या करेंगे सुन कर?’’ मेरे चेहरे के भाव पढ़ते हुए उस ने टालने की कोशिश की. पर मुझे असमंजस में पड़ा देख उस ने कहा, ‘‘आप की चहेती और कौन?’’

यह सुन कर मैं तिलमिला उठा. यह सरासर झूठा आक्षेप मैं कैसे सहन कर सकता था. मैं ने बौखला कर कहा, ‘‘मेरी चहेती और वह भी दुबई में…? तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया.’’

‘‘अजी, बिगड़ते क्यों हैं, जरा सुनिए तो,’’ उस ने हलकी सी प्यारभरी चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘वह आप की राजकोर्ट वाली दुलहन मिल गई थी.’’

मुझे करंट जैसे लगा. सारे शरीर में झनझनाहट का राज. मेरे जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए ये चुटकियां ली जा रही थीं.

जिस दर्द को मैं सीने में छिपाए बैठा था, जिसे भूल जाने की लाख कोशिश की, आखिर वही राख में छिपी हुई चिनगारी फिर से सुलग उठी.

शाहीन मेरी जिंदगी में बिजली की कौंध की तरह आई और जिस दुनिया से आई थी उसी में हमेशा के लिए अदृश्य हो गई. आई थी जिंदगी में बहार बनने के लिए, लेकिन अंत में खिजां छोड़ गई.

मैं ने बीए पास किया ही था कि मातापिता हाथ धो कर पीछे पड़ गए. जैसा कि हर मांबाप की ख्वाहिश होती है कि बच्चा अब पैरों पर तो खड़ा हो ही गया है, चलो जल्दी से बहू ले आएं.

नौकरी मुझे देहात के एक स्कूल में मिल ही गई थी. खुद जोरशोर से शादी के लिए लड़की की दूरदूर तक तलाश जारी हो गई. इस मामले में सब से आगे हमारी दूर के रिश्ते वाली फूफी थीं. उन्होंने अपनी रिश्ते की भांजी शाहीन से रिश्ता तय कर लिया. टोंक में हमारा एक टूटाफूटा सा घर था, उसी में हम रहते थे. थोड़े से बरातियों को ले कर हम राजकोट पहुंच गए और शाहीन को ब्याह कर ले आए. साल 2002 के दंगों के बाद हम सब शादीब्याह संभल कर करते थे कि कहीं कोई बवाल न खड़ा हो जाए.

साल 2002 के दंगों में हमारा मकान जला दिया गया था और बड़ी मुश्किल से जिंदगी पटरी पर आई थी. अब तक वे लोग भारत में ही थे.

एक कमरे का हमारा छोटा सा घर था. उस में हर तरह का सामान भरा था. कमरे के सामने एक बरामदा था, जो सोनेबैठने के काम आता था. एक छोटा सा बावरचीखाना, गुसलखाना व पाखाना और बीच में छोटा सा दालान. उसी में जो मकान से लाए सामान को सजा कर रखते थे.

सुहागरात को मुझे उस छोटे से कमरे में भेजा गया, जहां दुलहन एक पलंग पर छुईमुई सी बैठी थी. पहले तो कुछ हिचकिचाहट महसूस हुई, पर धीमे कदमों से जा कर उस के पास बैठ गया. दिल में उमंगे और हृदय में तूफान लिए झिझकते हुए बातचीत का सिलसिला शुरू किया.

बातों के दौरान ही शाहीन जरा उद्विग्न हो कर बोली, ‘‘क्या आप के घर में दुलहन का इसी तरह इस्तकबाल किया जाता है?’’

मैं उस की यह बात सुन कर भौचक्का सा रह गया. उस के शरीर से अठखेलियां करने के लिए आगे बढ़ते हाथ वहीं रुक गए. मैं ने सवालिया निगाह से उस की ओर देखा. उस ने कहा, ‘‘गरमी के दिन हैं, और इस छोटे से कमरे में बंद कर दिया. कब से अकेली बैठी हूं, पसीने से मरी जा रही हूं. कोई हाल पूछने वाला ही नहीं. और कुछ तभी तो जो मैं अपने साथ कूलर लाई हूं वहीं लगा दिया होता.’’

‘‘ओह,’’ मुझे एकदम खयाल आया. ठीक ही तो कहती है बेचारी. शादी के हंगामे में किसी को खयाल ही नहीं आया. मैं उठा और कूलर निकाल कर चालू किया तो जरा राहत मिली.

मैं ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा, ‘‘माफ करना, किसी को खयाल ही नहीं रहा इस बात का.’’

‘‘खयाल भी कैसे आए. घर में कभी एसी, कूलर लगाया हो तब न.’’

उस के इस कटाक्ष पर मेरे काटो तो खून नहीं. मैं तो अवाक ही रह गया. गरीब मांबाप का गरीब बेटा जरूर सही, लेकिन गैरत तो मुझ में है. मुझे खामोश देख कर उस ने रोआंसी हो कर कहा, ‘‘अब आप ही देखिए न, इस छोटे से पलंग पर मुझे ला कर बिठा दिया है. एक तो शादी के हंगामे में मैं वैसे ही तीनचार रातें जगी हूं. अब इस पुराने से पलंग पर सोऊं तो कमर ढीली हो जाए. आखिर मेरे घर से फोम के गद्दे, तकिए, चादरें वगैरह किस दिन के लिए आई हैं? हमें आए दोतीन घंटे हो गए, अगर किसी को मेरी फिक्र होती तो अभी तक सब तैयार हो जाता.’’

मैं ने कमरे में चारों ओर नजर दौड़ाई, कमरा सामान से खचाखच भरा हुआ था. बाहर आंगन में सब घरवाले व मेहमान खापी कर थकेहारे सो गए थे. हम दोनों को इस कमरे में बंद कर के सब निश्चिंत पड़े थे.

मेरी गंभीरता को भंग करते हुए उस ने कहा, ‘‘यह सुहागरात, छोटा सा कमरा वह भी सामान से भरा हुआ. और यह छोटा सा पुराना पलंग, जिस में आग के निशान भी दिख रहे हैं.’’

मैं फौरन उठा और सामान के ढेर के नीचे से कार्टन निकाला और उसे बनाने के लिए बरामदे में ले गया. मुझे घरवालों पर क्रोध आ रहा था कि उन्हें यह छोटी पर मुख्य बात भी याद नहीं आई. आखिर ये मेहमान कोई मौजमजे करने तो आए नहीं हैं. आए हैं शादी में मदद करने. किसी से भी यह काम लिया जा सकता था. मैं आवाज किए बिना कार्टन खोल मसहरी के सब भाग बैठाने की कोशिश की. लेकिन पाए काटनेपीटने में ठोंकने पर आवाज तो होगी ही. थोड़ी ही देर में अच्छाखासा हंगामा हो गया. आखिर दो घंटे की मेहनत के बाद हमारा कमरा तैयार हुआ. और सुहागरात का पलंग भी तैयार हुआ.

इसी में रात के 3 बज गए. शाहीन ने इस पर बैठ कर राहत की सांस ली. मेरे अहं को धक्का लगा. इन सब लोगों ने क्या सोचा होगा? सब रोमांटिक मूड खराब हो गया और उस के स्थान पर हृदय में भर गया उद्वेग और घृणा.

मैं बरामदे में आ कर बेंत की कुरसी पर पड़ गया और थोड़ी ही देर में नींद के आगोश में मधुर स्वप्न देखने लगा. शादी तय करते समय फूफी कहती थीं, ‘‘अरे देखना, मैं कैसी जगह ब्याहती हूं अपने मम्मू को. आखिर उस ने बीए किया है. फिर खानदान भी धनीमानी. उस के 4 भाई हैं. सब ऊंचऊंचे ओहदों पर हैं. अकेली बहन को जोकुछ दे, वह कम है. अरे, जानपहचान वाला जो भी देखेगा रश्क करेगी. मम्मू की किस्मत पर और दुलहन तो चांद सी है, देखते ही नजर लग जाएगी. कुछ रिश्तेदार शरजाह में हैं तो कुछ सऊदी में. 2-3 तो अमेरिका में भी हैं.’’

सुबह से ही अच्छाखासा हंगामा शुरू हो गया. हमारे कमरे में अटैच्ड बाथरूम नहीं था. नाश्ता और चाय तैयार हो गई. हम दोनों को साथसाथ नाश्ते के लिए बिठाया गया. नाश्ते के समय वह चोरीछिपे शोख नजरों से मेरी तरफ देख लेती और फिर नजरें नीची कर लेती.

नाश्ते के पश्चात बरामदे में एक तरफ सोफासेट सजाया गया. एक टेबल पर कूलर था. घर वाले देखदेख कर खुश हो रहे थे. महल्ले की कुछ औरतें दुलहन को मिलने पूछने आने वाली थीं कि मुंहदिखाई तो क्या यों कहना चाहिए दहेज में क्या मिला.

दोपहर के खाने के समय उस ने मुझ से कहा, ‘‘आप का घर इतना छोटा है कि मेरा डाइनिंग टेबल वैसे ही पड़ा रह गया. घर इतना तो बड़ा हो कि मेरे पापा ने जो सामान दिया है उन का इस्तेमाल हो सके. ये सब आप की इज्जत बढ़ाने और हमारी सुविधा के लिए ही तो है.’’

‘भाड़ में जाए ऐसी इज्जत,’ मैं अंदर ही अंदर झल्ला उठा. चाहा कि कह दूं अभी घर में कदम ही रखा है कि अपनी अमीरी की शान दिखाने लगी. साथ में दहेज क्या लाई, अपने को बहुत ऊंचा समझने लगी. लेकिन एक अच्छे शिक्षक की तरह मैं ने सहनशीलता का दामन नहीं छोड़ा. धैर्य ही तो शिक्षक की संपत्ति है. जब धैर्य से टेढ़े से टेढ़े विद्यार्थी को सीधा किया जा सकता है, तो वह तो पत्नी थी. सोचा, आ जाएगी धीरेधीरे रास्ते पर. दूसरी रात हमारे सोने का इंतजाम उसी छोटे से कमरे में था. यह सोच कर कि ख्वाहमख्वाह कुछ कहासुनी हो जाएगी. मैं बाहर बरामदे में ही फोल्डिंग पलंग बिछा कर सो गया. शादी के लिए वह फोल्डिंग पलंग किराए पर लाए गए थे.

थोड़ी रात गए उस ने मुझे आ कर जगाया, ‘‘ओजी, क्या, आप सो गए क्या?’’

मैं ने सुनीअनसुनी कर दी, तो उस ने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘क्यों, नाराज हो गए मुझ से? अंदर नहीं आओगे,’’ कहते हुए वह पलंग पर बैठ गई.

मैं ने सहज ही कहा, ‘‘देखो, बेगम, कमरे में इतना सामान भरा है कि मेरा दम घुटने लगता है.’’

‘‘यह तो पहले ही सोचसमझ कर लेना था न. कम से कम शादी से पहले अच्छे मकान का इंतजाम कर लेते.’’

‘‘अब की बार आप को लाने से पहले इंतजाम कर के रखूंगा. तब तक के लिए अलविदा.’’

मेरा रूखा सा जवाब सुन कर वह उठ कर अंदर चली गई.

दूसरे दिन वलीमा दावत थी. उस के घर वाले राजकोट से उसे लेने आ गए थे. जाते समय उस ने मेरी बहन को बुला कर कहा, ‘‘जरा अपने भाईजान को तो बुला दो.’’

मैं अंदर गया तो उस ने कहा, ‘‘मुझे लेने आने के पहले मकान का इंतजाम जरूर कर लीजिएगा. और हां, जरा मेरे पापा के दिए सामान का खयाल रखना.’’

मैं ने स्वीकृति में गरदन हिला दी और बाहर निकल गया. राजकोट पहुंचने पर उस का एक व्हाट्सएप मैसेज आया, प्यार भरा. उस ने अपनी हरकत की माफी चाही थी. लेकिन मकान की याद दिलाना वह नहीं भूली थी. मैं ने भी बैंक से 50 हजार रुपए का कर्ज लिया और उसी मकान में एक कमरा और लगा दिया. मैं ने सोचा कि अब जोकुछ हुआ है उसे तो निभाना ही पड़ेगा, पढ़ीलिखी है, जानती है कि जमाना क्या है. अपनेआप संभल जाएगी.

कुछ दिनों बाद ही अम्मी ने रट शुरू कर दी, ‘‘बहू को ले आ.’’

मैं कुछ दिन तक तो टालता रहा, मगर अम्मी ने बहन के मोबाइल से मैसेज भिजवा ही दिया कि मम्मू लेने आ रहा है. तैयार रहना.

एक सप्ताह में ही राजकोट से मेरे मोबाइल पर मैसेज आया. उस ने खुशी का इजहार किया था कि वह बेचैनी से मेरा इंतजार करेगी. लेकिन साथ ही यह भी लिखा था, ‘‘मेहरबानी कर के शेरवानी पहन कर न आएं. यहां वाले हंसी उड़ाते हैं. जरा कोटपैंट में आइएगा.’’

हद हो गई शराफत की भी. शेरवानी पहन कर न आएं. और यहां इन्हें अच्छी नहीं लगती. सोचेसमझे बगैर मैम साहब और्डर झाड़ने लगी हैं. वह मुझे बुद्धू समझती हैं क्या? मैं ने सोचा, जरा दिमाग ठिकाने आ जाए, तब ले जाऊंगा. दोचार माह ऐसे ही बीत गए. अम्मी बीमार पड़ गईं. उन की बीमारी बढ़ती ही गई. अब आग्रह करने लगीं कि मैं जा कर बहू को ले आऊं, ताकि बुढ़िया मां की तीमारदारी तो अच्छी तरह हो सके. मैं ने भी हठ छोड़ दी और जा पहुंचा लेने. खूब आवभगत हुई. उसी समय में उस की बहन भी आबूधाबी से आई हुई थी. मैं ने कहा, ‘‘अम्मी घर में बीमार हैं. तुम्हें बहुत याद करती हैं. हमें जल्दी ही यहां से रवाना होना चाहिए.’’

उस ने छूटते ही कहा, ‘‘अच्छा, तो अपनी अम्मी की खिदमत के लिए ले जा रहे हैं मुझे. अब खयाल आया मेरा. यहां बरसों के बाद बहन आबूधाबी से आई है. उन के साथ तो थोड़े दिन रह लूं.’’

यह सुन कर मेरा हृदय ही धक से रह गया. सुन कर उस की बहन और भाभी ने समझाया, ‘‘शाहीन, तुम्हें ऐसी बेतुकी बातें नहीं करनी चाहिए. शौहर की इताअत बीवी का सब से बड़ा फर्ज है. तुम फौरन चली जाओ.’’

लेकिन उस ने अपनी हठ के सामने किसी की न चलने दी और कहा, ‘‘15 दिन बाद लेने आइए, खुशी से चलूंगी.’’

आखिर अपना सा मुंह ले कर मैं स्टेशन पर आ पहुंचा. इतने में हमारे छोटे साले साहब दौड़ते आए, ‘‘चलिए, आप को बाजी बुला रही हैं. वह आप के साथ जाना चाहती हैं.’’

‘‘आप बाजी से कहना कि अगर वह किसी शहंशाह की शहजादी होती तो अच्छा होता. अब उन्हें जब आना हो आ जाएं. घर तो उन्हीं का है.’’

जब अम्मी ने देखा कि दुलहन नहीं आई है और मैं मुंह लटकाए वापस आ गया हूं तो उन की आंखों से आंसू निकल आए. कुछ दिन बाद इसी सदमे में उन्होंने दम तोड़ दिया.

अम्मी की मृत्यु के बाद उस का खत आया कि मैं उसे ले जाऊं, पर अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत.

4 माह बाद हमारे सब से बड़े साले सूचना दिए बगैर ही आ धमके. साथ में शाहीन की चिट्ठी भी लाए. चिट्ठी में शाहीन ने खूब शिकवेशिकायत लिखे थे और साथ ही तलाक की मांग की थी. मुझे तो इस से खुशी ही हुई. हम ने काजी साहब के पास जा कर तलाक के कागजात तैयार कर दिए और रस्म अदा हो गई. मेरी छाती पर जो एक बड़ा सा बोझ लदा हुआ था, वह उतर गया.

मैं ने एक ट्रक किराए से करवा दिया और दहेज का सब सामान उस में भरवाना शुरू किया. मियां अपने साथ एक लिस्ट बना कर लाए थे. उसी समय मियां के मोबाइल पर एक मैसेज आया. साले साहब ने खोल कर पढ़ा और अपना करम पीट कर बैठ गए. हम सब घबरा गए, पूछा, ‘‘क्या हुआ? कैसा मैसेज है?’’

कहने लगे, ‘‘शाहीन का मैसेज है. लिखा है, तलाक मत लो.’’

अब हंसने की मेरी बारी थी. मेरे मुंह से एक जोर का ठहाका निकल गया. वह क्रोधित हो कर बोले, ‘‘अजीब अहमक आदमी हो. यहां मेरी जान पर बन आई है और तुम्हें हंसी आ रही है.’’

मैं ने कहा, ‘‘भाई साहब, बिना सोचेसमझे औरतों को हठ पर काम करने वालों का यही अंजाम होता है. वह आप लोगों की लाडली बहन है. जो गुल न खिलाए, कम ही है.’’

कुछ समय उन के रोनेधोने में गया. जब सब सामान लद गया तो वह रंजीदा मन से ट्रक में जा बैठे. मैं ने हंसतेहंसते आखिरी सलाम करते हुए कहा, ‘‘भाई साहब, अगर कोई सामान बाकी रह गया हो तो खुशी से लिख दीजिएगा. मैं पार्सल से भेज दूंगा.’’

उस के बाद कितनी ही बहारें आईं और चली गईं. समय ने अंगड़ाई ली. मैं ने एमए पास कर लिया. बहनों की शादियां कर दीं, पर साथ ही अब्बा का साया भी सिर से उठ गया. साल 2002 के घाव भी भरने लगे थे. हालांकि हर समय पूरी कौम पर खौफ का साया रहता था.

इस के कुछ दिन बाद एक दौर फिर ऐसा आया कि लोग खाड़ी की तरफ दौड़ लगाने लगे. मुझे से भी कहा गया, ‘‘चलो, खाड़ी में वहीं नौकरी ढूंढ़ो. यहां रखा ही क्या है? वहां पढ़ेलिखे लोगों की बहुत जरूरत है. कहीं अच्छी जगह मिल जाएगी.’’

मैं ने कहा, ‘‘भाई, मुझे तो अपने वतन से प्यार है. अगर जाना चाहते तो वालिद 1948 में न चले जाते. अब खराब दिन हैं, पर मैं तो यहीं रहूंगा.’’

‘‘अरे मियां, वहां चलोगे तो माल खाओगे, माल. यहां भूखे भी मरोगे और न जाने क्याक्या सहोगे.’’

मैं ने कहा, ‘‘अच्छा, तो माल खाने दौड़ रहे हो वहां?’’ वतन की खिदमत का कोई खयाल नहीं? याद रखना, माल खातेखाते एक दिन ऐसी मार खाओगे कि नानी याद आ जाएगी और दुनिया वाले सुनेंगे कि माल के लालच से दौड़ लगाने वालों का क्या अंजाम होता है? किसी दिन इराक जैसा हाल न हो कि न यहां के रहो, न वहां के.”

एक दिन टाइम्स औफ इंडिया में पढ़ा कि अहमदाबाद के किसी कालेज में लैक्चरर की जरूरत है. मैं ने भी अर्जी डाल दी और अहमदाबाद में आ गया. मेरे अधिकतर रिश्तेदार दुबई वगैरह चले गए थे. मेरे लिए तो गुजरात हो या बड़ौदा सब जगह एक सी थी.

मेरे एक दूर के रिश्ते के फूफा थे. एक दिन जामनगर से उस का एक पत्र आया, जिस में उन्होंने शादी कर लेने का आग्रह किया था. लिखा था, “लड़की मेरी देखीभाली है. गरीब घराने की है. बहुत ही सुशील और नेक है. उम्मीद है, तुम्हें जरूर पसंद आएगी. अब की छुट्टियों में यहां आ जाओ.’’

मैं भी अकेला कहां तक रहता. शादी की अनुमति दे दी. जब छुट्टियों में रायबरेली पहुंचा तो मैं ने साफसाफ सुना दिया, ‘‘मुझे बीवी के अलावा दहेज के नाम पर एक फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए.’’

फूफा ने कहा, “लड़की देखभाल लो. उस के बाद तुम्हें जोकुछ पूछताछ करनी हो, इतमीनान से कर लो तो शादी की बात तय हो जाए.’’

मैं ने कहा, ‘‘फूफाजान, लड़की और घरबार आप का देखाभाला है न?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘तो फिर इस में क्या देखना है. बिसमिल्लाह कीजिए.’’

मैं ने सोचा पहले भी देखभाल कर कौन सा सुख पाया है.

‘‘नहीं बेटे, आजकल का जमाना और है, तुम लड़की देख कर पसंद कर लो, वरना बाद में जब कभी पछताना पड़े तो फूफा को कोसोगे. हां, लड़की के चालचलन और सलीका वगैरह की जवाबदारी मेरी.’’

इन बेगम को देखा, पसंद आ गई. फूफा ने हमारे ससुर के सामने ही मुझ से पूछा, ‘‘भैया, तुम्हें दहेज नहीं चाहिए, पर लड़की के साथ सोनेचांदी के जेवर तो चाहिए न?’’

‘‘नहींजी, अगर हमारे हाथपैर सलामत हैं, तो अपनी जरूरत की चीजें हम खुद बना लेंगे.’’

मेरी बातों से ससुर साहब इतने प्रभावित हुए कि जोश में आ कर उन्होंने मुझे गले से लिपटा लिया. उन की आंखों में आंसू भर आए. कहने लगे, ‘‘बेटा, तुम ने मुझ गरीब को उबार लिया.’’

मैं ने कहा, ‘‘अब्बाजान, बस आप की शफाकत का साया सिर पर चाहिए. यह दहेज से ज्यादा कीमती सरमाया है.’’

आखिर, मैं इन बेगम साहिबा को ले आया. कितना बड़ा अंतर है दोनों में. एक थी और एक यह है कि आदेश माने जा रही है. शाहीन के सामने में मूक रहता था, पर अंदर ही अंदर घुटे जाता था.

इधर यह है कि मेरी हर ख्वाहिश को मूक रह कर पूरा किए जा रही है और माथे पर कोई शिकन तक नहीं, चूंकि शाहीन के सामने मैं अंदर ही अंदर घुटे जा रहा था, इसीलिए मैं यह महसूस करता आ रहा था कि जरूर इन बेगम साहिबा को भी कुछ अंदर ही अंदर खाए जा रहा है. मैं ने देखा, बेगम अपने दोनों बच्चों को सुला रही थीं. मैं ने मुसकरा कर पूछा, ‘‘अच्छा तो यह मुलाकात कैसे हो गई?’’

बेगम ने फरहान को थपकी देते हुए कहा, ‘‘फूफीजान के इसरार पर मैं 15-20 दिन वहां मेहमान के रूप में रही थी. इसी दौरान आप की चहेती भी आ टपकीं.’’

‘बड़ी खुशकिस्मत हो तब तो. खुदा भी शक्करखोर को शक्कर दे ही देता है,’’ मैं ने हंस कर कहा.

‘‘एक दिन दोपहर को मैं फरहान के लिए पास्ता बना रही थी. फूफी भी पास में बैठी थीं कि शाहीन आ धमकी. सिर से पैर तक जेवर, गालों पर पाउडर व लाली थी. बस छमकछल्लो छमछमाती आई. न अदब, न लिहाज. आते ही एसी चला कर बिस्तर पर लेट गई.

फूफी ने पूछा, ‘कहो कैसे आना हुआ?’

‘‘कहने लगी, ‘जरा खाला के यहां आई थी. सोचा कि फूफीजान से भी मिलती चलूं’.’’

‘‘फूफी बोली, ‘बड़ी नवाजिश की गरीब पर. खैर, हम याद तो आए. और क्या हालचाल हैं?’

“वह बोली, ‘ठीक हैं, यह है दुलहन?’”

‘‘‘हां भई, यह हमारी दुलहन है. अहमदाबाद से आई है.’”

‘‘‘अच्छा, तो आप का अहमदाबाद में भी कोई है?’”

‘‘‘अरे भई, हमारा कहां और कौन नहीं है? हम तो जिधर भी नजर डालते हैं, अपने ही अपने पाते हैं.’”

‘‘सुनते ही शाहीन जो अभी तक इतरा कर खिलखिला रही थी, उस के चेहरे का रंग ही उड़ गया. चेहरे पर पसीना आ गया. फूफी ने पूछा, ‘ खैरियत तो है?’ उस ने हकलाते हुए कहा, ‘फूफीजान, जरा एक काम याद आ गया. मैं फिर आऊंगी.’ और वह जूते पहन कर तेजी से चलती बनी. जीने से उतर कर टैक्सी ली और गायब… मैं तो भौंचक्की देखती ही रह गई.

‘‘उस के जाने के बाद मैं ने पूछा, ‘फूफीजान, कौन थी, यह साहिबा?’’’

‘‘यह शाहीन थी. तुम्हारे खाविंद की पहली बीवी…

अब दुबई से आ कर पहले तो भाई के पास रही, पर फिर अलग रह रही है. 2 सहेलियों के साथ एक पैकिंग फैक्टरी में काम करती थी. चूंकि और कोई खर्च नहीं है, इसलिए बनठन कर रहती है, पर अकड़ अभी तक गई नहीं इसलिए न हिंदुस्तान का, न ही पाकिस्तान का कोई शादी करने को तैयार हो रहा है.’’

‘‘अच्छा तो यह है, वह. मैं अवाक हो कर बोली, ‘और इस ने तलाक क्यों ली थी?’

‘‘‘अरे, औरतें जब तलाक लेती हैं तो उन के पास एक ही तो बहाना होता है, खाविंद नामर्द है.’

‘‘सुनते ही मुझे हंसी आ गई. हंसतेहंसते पेट दुखने लगा. यह सोच कर कि नामर्द और तुम?”

‘‘थोड़ी देर खामोश रह कर फूफी बोलीं, ‘और देखा, जब उस ने देखा कि मम्मू की दोनों औलादें हैं तो मुंह चुरा कर किस तरह भाग खड़ी हुई.’ फिर बोली, ‘‘फूफी ने यह भी बताया कि मेरे आने के बाद लोगों को गलतफहमी भी दूर हो गई कि तलाक तो बहाना था. अब शायद कोई मर्द उस से आसानी से शादी करने को राजी न हो.’’

उस की ये बातें सुन कर मैं भी हंस पड़ा. मैं ने एक आह भरी और जबान से अपनेआप ही निकल पड़ा, ‘‘जाने वो कैसे लोग थे जिन को, प्यार से प्यार मिला. लेकिन हम तो सब तरफ से तरसते ही रहे.’’

‘‘अच्छाजी, तो आप को किसी का प्यार ही नहीं मिला?’’ उस ने बड़े ही शोख अंदाज में कहा.

‘‘तरसते रहे.’’

‘‘और ये दोनों निशानियां किस बात की नजीर पेश कर रही हैं?’’ उस ने बच्चों की तरफ संकेत कर के कहा.

‘‘इसे प्यार की निशानी कहती हो? अरे, ये तो सैक्स की निशानी हैं. सैक्स तो हर एक इनसान में होता ही है. हम भूल से सैक्स को प्यार समझ बैठते हैं.’’

वह पलंग से उठी और आ कर मुझ से लिपट गई. वह रोआंसी हो कर बोली, ‘‘माफ करना. मैं आज तक आप को नहीं समझ सकी थी. मैं ने आप को…’’

‘‘तो क्या समझा था अभी तक मुझे?’’ मैं ने उस की चिबुक हाथ से ऊंची करते हुए पूछा.

मेरे झलकते भावों को पढ़ते हुए उस ने मेरी छाती में चेहरा गड़ाते हुए धीमे से कहा, ‘‘सैकंड हैंड.’’

मैं उछल पड़ा, “सैकंड हैंड.’’

उस के दोनों कंधे पकड़ कर उस के चेहरे पर आंखें गड़ाते हुए मैं ने कहा, ‘‘हम ने स्कूल और कालेजों में सैकंड हैंड किताबों के लिए तो खूब सुना है. लेकिन इनसान भी सैकंड हैंड होते हैं, यह आज ही सुना,’’ बोल कर मैं मुसकरा पड़ा.

‘‘माफ करना, सरताज,’’ उस ने मुझे आलिंगन में भरते हुए कहा, ‘‘अब मेरी आंखें खुल गई हैं. आज महसूस हो रहा है कि आप मेरे हैं, सिर्फ मेरे.’’

‘‘अच्छाजी, तो यह गम खाए जा रहा था अब तक कि हम पराए हैं?” इस के साथ ही हम दोनों हंस पड़े.

…………..पहली पत्नी शाहीन को ले कर रेहाना के मन में कई शंकाएं थीं, आखिर अच्छेभले व्यक्ति से तलाक लेने का रहस्य क्या था? पर एक दिन जब परदा हट ही गया तो रेहाना मेरे कदमों में झुक गई.

कितने पास मगर दूर: यशोदा का बेटा कौन था?

कल नानी गुजर गई थीं. मम्मी और पापा को जाना पड़ा था. मैं और नीता पढ़ाई की वजह से आंटी के घर रुक गए थे. आंटी के घर में हमारा अच्छा आनाजाना था. उस समय आंटी के दूर के रिश्तेदार का लड़का आया हुआ था. हम तीनों एकदूसरे के साथ घुलमिल गए थे.

एक दिन की बात है. काफी रात तक हम आपस में बातें कर रहे. अंकलआंटी भी सो चुके थे. ठंड बहुत पड़ रही थी. उस रात वह हुआ जो नहीं होना चाहिए था. मैं भी यह समझ नहीं पाई कि यह क्यों हुआ और जो हुआ अनजाने में और शायद गलत हुआ. मुझे कुछ समझ में ही नहीं आया और न ही उसे. दूसरे दिन हम सामान्य रहे और अपनी गलती को भूल कर अपनेआप को संभाल लिया. पर कुदरत ने तो कुछ और ही लिख कर रखा थ. 2-3 दिन के बाद मम्मीपापा भी आ गए और हम अपने घर चले गए.

समय बीत रहा था मगर मुझे क्या हो रहा था मैं समझ ही नहीं पा रही थी. एक दिन सिर भारी होने लगा और मैं चक्कर खा कर गिर पड़ी. मम्मी घबरा गईं. वे मुझे डाक्टर के पास ले कर गईं. डाक्टर ने चैक किया और मम्मी को बताया कि मैं प्रैगनैंट हूं. 2-3 महीने हो चुके हैं. मम्मी घबरा गईं. उन्हें खुद पर गुस्सा आ रहा था और मुझ पर भी. शायद वे सोच रही थीं कि न वह मुझे छोड़ कर जातीं और न ऐसा होता? मैं रोने लगी और मम्मी सोच रही थीं  कि अब क्या किया जाए? उन्होंने सोचा कि हम गांव जाएंगे. उन की सहेली डाक्टर है. उन के पास जा कर मेरा गर्भपात करवा देंगी. लेकिन यह पापा को मंजूर नहीं था. पापा ने बहुत डांटा कि तुम जीव हत्या नहीं कर सकतीं. जीव हत्या करना पाप है. और फिर देर भी हो चुकी है.

मम्मीपापा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था इसलिए उस साल मैं और मम्मी गांव में ही रहे. 9 महीने तक वहीं रुके रहे और बेटा होने के बाद उसे अनाथालय में दे दिया और हम शहर लौट आए. सालभर मेरी तबीयत खराब होने की वजह से मैं कोई ऐग्जाम नहीं दे पाई फिर दूसरे साल प्राइवैट ऐग्जाम दे कर पास की और कालेज में चली गई… उस के बाद जिंदगी बहुत ही मुश्किल थी. सबकुछ भूल जाना था और बस पढ़ाई और पढ़ाई में लग जाना था. अब 24 घंटे में से अधिक समय सिर्फ पढ़ाई होती थी और इस तरह मुझे नर्सिंग कालेज मैं ऐडमिशन मिल गया था. मम्मीपापा बहुत खुश थे और शायद मैं ने भी उन को जो दुख दिया उस को कुछ कम कर पाई थी.

मुझे आज भी वे दिन याद आते तो जैसे जिंदगी से नफरत हो जाती. ऐसा क्यों हो जाता है कि जिंदगी ऐसी जगह पर ला कर हमें रख खङी कर देती है जहां से निकल पाना बहुत मुश्किल होता है… लेकिन अब मैं अपने काम में बिजी हो चुकी थी. मेरी पढ़ाई पूरी हुई और ट्रैनिंग के बाद मुझे एक क्लीनिक में नौकरी मिल गई. कुछ दिन गुजर गए और फिर मां भी गुजर गईं. नीता, पापा और मैं ही घर में थे अब. नीता की पढ़ाई पूरी हुई तो उस के लिए अच्छा सा लड़का देख कर शादी कर दी. मम्मी की कमी को घर पूरा नहीं कर पा रहा था और पापा बहुत दुखी रहते थे. मुझे हिम्मत कर के घर को संभालना था.

अनाथालय से अमित (यही नाम रखा था उस का) को दिल्ली के एक परिवार ने गोद लिया था. वहां उस की बहुत अच्छी परवरिश हुई. वह पढ़लिख कर इंजीनियर बन गया था. उस को मुंबई में जौब मिल गई थी. अमित के मम्मीपापा उस के पास आए हुए थे. हमारा क्लीनिक उन के सोसाइटी के बाहर ही था. कहने को तो क्लीनिक अस्पताल के समान था और वहां बड़ेबड़े डाक्टर आते थे और लगभग हर इलाज की व्यवस्था थी. जब अमित के पिता को हार्ट अटैक आया तब उन्हें हमारे ही अस्पताल में लाया गया. उस समय सीमाजी ड्यूटी पर थीं. उस दिन अमित का विश्वास डाक्टर पर और बढ़ गया. फिर 2-3 दिनों में अमित के पापा की तबीयत में सुधार हो गया लेकिन एक दिन उन्होंने अमित को बताया कि बेटा, तुम ने मेरी बहुत सेवा की. अब मैं ज्यादा नहीं रहूंगा लेकिन एक बोझ अपने मन पर ले कर नहीं मरूंगा. बेटा, मेरे जाने के बाद तुम्हें और कोई बताए कि तुम हमारे बेटे नहीं हो इस के पहले मैं ही तुम्हें बता देता हूं कि हम ने तुम्हें अनाथालय से गोद लिया था.

अमित ने कहा,”पर पापा, कहां से?”

तब उन्होंने सबकुछ बताया. अमित के मन में पिता के प्रति और भी सम्मान बढ़ गया. दूसरे ही दिन वे

चल बसे. लेकिन अमित के मन में यह बात बैठ गई और वह सोचने लगा कि मां की क्या मजबूरी रही होगी जो उन्हें मुझे अनाथालय में देना पड़ा.  एक बार मैं उन से मिलना चाहूंगा और शायद उन के मन में भी यही तड़प होगी.

फिर कुछ दिन बीत गए. अमित की खोजबीन चलती रही. लेकिन मां का पता नहीं मिला. इतनी बड़ी दुनिया में ढूंढ़ पाना मुश्किल था. पर वह कुदरत से हमेशा मांगता था कि एक बार मां से मिल सकूं.

कुछ दिन बीत गए फिर अमित की शादी हो गई. सबकुछ अच्छा चल रहा था. मांपिताजी के जाने के बाद मैं  टूट गई थी. एक दिन अमित की मां को पक्षाघात पड़ा और उस के बाद तो वे बिस्तर से उठ नहीं सकीं. उन के लिए एक नर्स की तलाश थी क्योंकि अमित और नेहा दोनों ही सुबह से शाम तक बाहर रहते थे. मम्मी की देखभाल के लिए फुलटाइम कोई होना चाहिए. इसलिए अमित ने डाक्टर से पूछा तो डाक्टर ने उसे नंबर दिया और कहा कि आप इस नंबर पर फोन कर के पूछ लीजिए. आप को हमारे अस्पताल की एक सिस्टर, जो पिछले महीने रिटायर हुई हैं, यह उन का नंबर है.

अमित ने पूछा तो मैं ने तुरंत हां बोल दिया. धीरेधीरे अमित की मम्मी की तबीयत में सुधार होने लगा. वे मुझे दिल ही दिल में बहुत आशीर्वाद देतीं और कहती थीं कि बहन, तुम्हारा और मेरा पिछले जन्म का क्या नाता है जो तुम इतनी अच्छी तरह से देखभाल करती हो वरना आजकल तो पैसे दे कर भी कोई नहीं करता. शायद कुछ रिश्ता रहा हो.

उन की एक आदत थी. वे रोज रात को अपनी डायरी लिखती थीं. उन से कुछ पूछो तो वे कुछ नहीं बताती थीं. बस कहतीं कि एक ही तो जन्म मिला है जिस में जितनी सेवा की जाए उतनी कम है.

एक दिन बातों ही बातों में उन्होंने  बताया कि मेरा बेटा कितना खयाल रखता है, मेरा भी और आप का भी. ऐसा बेटा कुदरत सब को दे. वे बोलीं,”देखो, मैं रहूं या नहीं रहूं, तुम मेरे बेटे का ध्यान रखना.”

मैं समझ नहीं पाई कि वे ऐसा क्यों बोल रही हैं. उस दिन उन्होंने मुझे अमित के बारे में सबकुछ बताया कि हम उसे अनाथालय से लाए थे. मैं ने पूछा कहां से? मतलब किस अनाथालय से तो उन्होंने जो बताया उसे सुन कर मेरे पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई. मैं जान गई कि अमित मेरा ही बेटा है. वह मुझे बहुत अपना सा तो लगता था लेकिन समझ में नहीं आता था कि मैं जो सोच रही हूं सही है क्या? या मेरा वहम जो मेरा हर इंसान में अमित को खोजना…

ऐसे लग रहा था जैसे यहां से बहुत दूर चली जाऊं. लेकिन बेटे की ममता ने मेरे पैरों को रोक दिया. मैं ने तो सिर्फ जन्म दिया. जिस यशोदा ने मेरे बेटे को पालपोस कर बड़ा किया वह धन्य है. मेरे बेटे को जिंदगी दी उस देवी ने, उस देवी की सेवा करने का मौका मिला है. उसे छोड़ कर मैं कैसे जा सकती हूं… मैं मेरे बेटे की अपराधी हूं.

शायद मेरे अपराध की सजा पूरी हुई. कुदरत का लाखलाख शुक्रिया जो उन्होंने मेरे बेटे से मिलाया. वरना मैं तो अधूरी आस लिए इस दुनिया से चली जाती. पर मैं बेटे की जिंदगी पर अपने इस मनहूसियत की छाया नहीं आने दूंगी और उसे पता नहीं चलने दूंगी कुछ.

यशोदा के गुजर जाने के बाद मैं ने कहा कि बेटा, अब मुझे जाना होगा तब अमित ने रोक लिया,”आंटी, आप हमारे पास रहो न.”

यशोदा के गुजर जाने के बाद जब मैं ने उन की डायरी पढ़ी तब मुझे पता चला कि अमित यशोदा की नहीं मेरा बेटा था, जो इतने पास रहते हुए भी इतना दूर था.

कुदरत का लाखलाख शुक्र है जो मुझे मेरे बेटे से मिला दिया… कहते हैं न कि दिल से जिस को मांगो वह जरूर मिलती है, चाहे वह वस्तु हो या इंसान. बस, मांगना आना चाहिए और मिलने पर उसे पहचानने की नजर होनी चाहिए. अब मैं और मेरा बेटा साथ थे. बस एक कसक सी थी कि एक मां की तरह प्यार करने के बावजूद भी उसे हकीकत बता कर उस के दिल में मेरे लिए नफरत पैदा करना नहीं चाहती थी. अगर उसे जन्म दिया तो पालनेपोसने की जिम्मेदारी भी मेरी ही होनी चाहिए थी.

मेरी चिन और अपरलिप पर बाल हैं, कोई घरेलू उपाय बताएं जिससे बाल स्थाई रूप से हट जाएं?

सवाल

मेरी चिन और अपरलिप पर बाल हैं, जिन्हें मुझे हर थोड़े दिन बाद थ्रैडिंग या वैक्सिंग से हटवाना पड़ता है. लेकिन वे फिर जल्दी बढ़ जाते हैं और चेहरा खराब दिखने लगता है. ऐसा कोई घरेलू उपाय बताएं, जिस से चिन व अपरलिप के बाल स्थाई रूप से हट जाएं?

जवाब

सामान्यतौर पर चेहरे पर अवांछित बाल हारमोनल असंतुलन के कारण होते हैं. इन अवांछित बालों को आप ब्यूटी ट्रीटमैंट जैसे ब्लीचिंग, वैक्सिंग, लेजर ट्रीटमैंट यानी हेयर रिमूवल क्रीम द्वारा हटवा सकती हैं. इन में लेजर ट्रीटमैंट स्थाई उपाय है बाकी सभी अस्थाई उपाय हैं. आप घरेलू उपाय के तौर पर हलदी का गाढ़ा पेस्ट बनाएं व अवांछित बालों पर लगाएं और फिर सूखने दें. सूखने पर रगड़ कर हलदी छुड़ा लें व चेहरे को धो लें. ऐसा

4-5 हफ्तों तक लगातार करें. हलदी प्राकृतिक ब्लीच का काम करेगी और धीरेधीरे बालों की ग्रोथ को जड़ से खत्म करने में मदद करेगी. इसी तरह नीबू व चीनी का पेस्ट भी चेहरे के अवांछित बालों को हटाने में मदद करेगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

KKK12: मगरमच्छ को Kiss करने के बाद ऐसा हुआ इस एक्ट्रेस का हाल, देखें Video

खतरों के खिलाड़ी 12 (Khatron Ke khiladi 12) की शूटिंग शुरू हो चुकी हैं. दर्शकों को इस शो का बेसब्री से इंतजार है. सेलिब्रिटी शो में खतरों का सामना करने के लिए  केपटाउन पहुंच चुके हैं. जी हां, शो से जुड़ा वीडियो आए दिन वायरल होता रहता है. इसी बीच बीच सृति झा (Sriti Jha) की एक वीडियो तेजी से वायरल हो रही है. आइए बताते है, क्या है इस वीडियो में…

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि सृति झा अपनी बस में झूमझूम कर नाचती दिख रही है. सृति झा का ये अंदाज देखकर बाकी कंटेस्टेंट्स हैरत में पड़ गए हैं. बता दें कि इससे पहले सृति झा मगरमच्छ को किस करती नजर आई थीं. सृति झा का ये वीडियो फैंस को काफी पसंद आ रहा है.

 

इस शो में कई टीवी सितारे स्टंट करते समय घायल हुए हैं. कनिका मान ने एक तस्वीर शेयर की थी. इस तस्वीर में कनिका मान के हाथ और पैर पर काफी चोट के निशान दिखे थे.

 

तो वहीं स्टंट करते समय रुबीना दिलाइक के भी पैर में चोट लगी थी. चोट की वजह से रुबीना दिलाइक की हालत खराब हो गई थी.

 

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