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बंगले वाली- भाग 3: नेहा को क्यों शर्मिंदगी झेलनी पड़ी?

मेरा ध्यान पढ़ाई से पूरी तरह हट चुका था. 10वीं में लगातार तीन वर्ष फेल होने के बाद परेशान हो कर पिताजी ने मेरी पढ़ाई छुड़वा दी. मेरी छोटी बहन ही 11वीं में पहुंच गई थी, अब तो स्कूल जाते मुझे भी बहुत शर्म आने लगी थी. पढ़ाई छूटने पर मैं ने चैन की सांस ली और शायद स्कूल के शिक्षकों ने भी… अब तो मैं पूरी तरह आजाद थी, पत्रिकाओं में से खूबसूरती के नुसखे पढ़ कर उन्हें आजमाना, हीरोइनों के फोटो कमरे में चिपकाना और सपनों के राजकुमार का इंतजार करना, ये ही मेरे जीवन का ध्येय बन गए थे.

पर, एकएक कर के सपनों के महल चकनाचूर होने लगे. सुंदरता की वजह से एक से बढ़ कर एक रिश्तों की लाइन लग गई, पर जैसे ही उन्हें पता चलता कि लड़की 10वीं तक भी नहीं पढ़ी, सब पीछे हट जाते, न पिताजी के पास देने के लिए भारीभरकम दहेज था. मेरी वजह से पूरे घर में मातमी सा सन्नाटा पसर गया था, सब मुझ से कटेकटे से रहने लगे. पिताजी भी चारों तरफ से निराश हो चुके थे. तब इन का रिश्ता आया. एकलौता लड़का था, वो भी सरकारी औफिस में क्लर्क. मांबाप गांव में रहते थे, थोड़ीबहुत खेतबाड़ी थी. उन्हें लड़की की पढ़ाई से कोई मतलब नहीं था, वे तो बस सुंदर लड़की चाहते थे. और जैसेतैसे पिताजी ने मेरी नैया पार लगा दी.

फोन की घंटी की आवाज से नेहा हड़बडा कर उठ बैठी. वह फोन उठाती, तब तक फोन बंद हो चुका था. घड़ी पर नजर पड़ते ही नेहा चौंक उठी. उफ, एक बज गया, सोचतेसोचते कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. बच्चों के आने का वक्त होने वाला है, ऐसा लग रहा है जैसे शरीर में जान ही नही है. अपने को लगभग घसीटती हुई वह किचन में पहुंची. प्लेटफार्म पर पड़ा फैलारा, सिंक में पड़े झूठे बरतन, पलकपावड़े बिछाए उसी का इंतजार कर रहे थे.

‘‘हाय, क्या जिंदगी हो गई है… सारी उम्र चौकाबरतन में निकली जा रही है. पर काम तो किसी भी हाल में करना ही पड़ेगा,’’ ऐसा सोच कर वह जैसेतैसे हाथ चलाने लगी.

शाम को पतिदेव ने चाय पीते हुए गौर किया कि रोज की अपेक्षा आज उस के चेहरे पर कुछ ज्यादा ही मायूसी छाई हुई है, तो चुटकी लेते हुए बोल पड़े, ‘‘क्या हुआ…? तुम्हारी वो बंगले वाली नहीं आई क्या, जो चेहरे पर मातम छाया  हुआ है?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है. वो तो आ गई है… आप को पता है कि वो कौन है?’’

‘‘अरे भाई, मैं अंतर्यामी थोड़े ही हूं, जो मुझे औफिस में बैठेबैठे पता चल जाएगा.’’

‘‘वो मेरे बचपन की सहेली कांची है.’’

‘‘अरे वाह, ये तो खूब रही, तुम्हारे बंगले वाले पचड़े का अंत तो हुआ. तुम हमेशा बंगले वाली से दोस्ती करना चाहती थी, लो, तुम्हारी दोस्त ही आ गई, फिर भी चेहरा लटका हुआ है?’’

‘‘आप को कुछ भी तो पता नहीं है, इसलिए आप ऐसा बोल रहे हैं. स्कूल के दिनों में उस से मेरी लड़ाई हो गई थी, किस मुंह से उस के सामने जाऊंगी.’’

इतना सुनना था कि पतिदेव चाय का प्याला टेबल पर पटकते हुए चीखे, ‘‘ऊपर वाला बचाए तुम से… क्या बच्चों जैसे बातें कर रही हो… उस के सामने नहीं जा सकती तो क्या घर में छुप कर रहोगी? बंगले वाली यहां घूमने नहीं आई, रहने आई है.

“कान खोल कर सुन लो, खबरदर, जो आज के बाद मेरे सामने बंगले वाली का जिक्र भी किया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा,’’ सुबह से पति की डांट, कांची को देख कर सारे दिन का तनाव, शाम को फिर पति की फटकार, नेहा के सब्र का बांध टूट गया. बाथरूम में घुस कर वह रो पड़ी. सब के सामने तो रो भी नहीं सकती. आंसू देखते ही पतिदेव हत्थे से ही उखड़ जाते हैं, उन्हें कुछ भी समझाना उस के बस के बाहर है.

कांची को सामने आए दो दिन हो चुके थे. दो दिनों से अंदर ही अंदर घुटन और तनाव से उस की हालत ऐसी हो गई थी जैसे वह बरसों से बीमार हो. रात को खाने की थाली में दाल देखते ही जैसे घर में तूफान आ गया. पति ने थाली उठा कर रसोईघर में पटक दी और गुस्से से दहाड़ पड़े, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? या सारे सब्जी वाले मर गए हैं, या फिर घर में इतनी कंगाली आ गई है कि सब्जी खरीदने के पैसे नहीं बचे? दो-तीन दिन हो गए, इनसान कब तक सब्र करे, सुबह आलू, टिफन में आलू, रात को दाल… इनसान कब तक खाएगा? हद होती है किसी बात की. एक सब्जी खरीदने का काम तुम्हारे जिम्मे है, क्या वो भी नहीं कर सकती?  तुम्हारा ये खाना… तुम ही खाओ, हम लोग अपना इंतजाम कर लेंगे,’’ गुस्से में बच्चों को ले कर पैर पटकते हुए घर से निकल गए.

CANNES 2022: TV सितारों के साथ भेदभाव को लेकर हिना खान और हेली शाह ने तोड़ी चुप्पी

बॉलीवुड और टीवी इंडस्ट्री को लेकर अक्सर ये अफवाह उड़ती है कि बॉलीवुड सितारे  टीवी सितारों को खुद से छोटा समझते हैं. टीवी सितारे कई बार दावा कर चुके हैं कि बॉलीवुड उनके साथ भेदभाव करता है. हाल ही में कांस फिल्म फेस्टिवल के दौरान टीवी सितारों का इस मामले को लेकर दर्द छलका है. आइए बताते हैं पूरी खबर.

दरअसल कांस फिल्म फेस्टिवल में टीवी सितारे और बॉलीवुड सितारे दोनों पहुंचे थे. टीवी सितारों को कांस में बॉलीवुड ने जरा सा भी भाव नहीं दिया. अब हिना खान और हेली शाह ने इस मामले पर चुप्पी तोड़ी है.

 

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मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हिना खान ने बताया था कि उनको इंडियन पवेलियन ने इनविटेशन नहीं दिया था. बॉलीवुड ने हिना खान को पूरी तरह से नजरअंदाज किया. हिना खान ने ये भी बताया कि किस तरह से टीवी सितारों को बॉलीवुड नजरअंदाज करता है. हालांकि भेदभाव होने के बाद भी हिना खान अपने देश से बहुत प्यार करती हैं.

 

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इस साल हेली शाह ने कांस में डेब्यू किया था. अपने डेब्यू के बारे में बात करते हुए हेली शाह ने बताया, टीवी एक्टर होने की वजह से बॉलीवुड ने उनको नजरअंदाज किया.

 

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एक महीना पहले ही मैंने डिजाइनर्स के साथ डेट फिक्स की थी. समय आने पर हर किसी ने मुझे मना कर दिया. कोई भी मेरी मदद करने के लिए राजी नहीं था. ऐसे में मेरे मैनेजर को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. कोई इतना लापरवाह कैसे हो सकता है.

 

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कांस का हिस्सा बनने के बाद हिना खान ने बताया था कि इंडियन डिजाइनर उनके कपड़े देने से कतरा रहे थे. इस दौरान हिना खान ने जमाने को बॉलीवुड का असली चेहरा दिखाया था.

हमारी बहू इवाना- भाग 3: क्या शैलजा इवाना को अपनी बहू बना पाई?

“मैडम, मैं यह काम अपनी इच्छा से नहीं कर रहा हूं. कोविड के कारण सुखीरामजी दो साल से अपने मातापिता से नहीं मिले थे. अब पाबंदियां हटीं और सबकुछ खुला तो वे उन से मिलने गांव चले गए. मुझ से उन्होंने कुछ दिनों के लिए मंदिर की देखभाल करने काआग्रह किया था. इसलिए ही मैं मंदिर का कार्यभार संभाल रहा हूं.”

“लेकिन, तुम सुखीरामजी के इतने करीबी कैसे हो गए कि तुम्हें यहां रख कर वे अपने गांव चले गए?”

“मैडम, सुखीरामजी की कोरोना काल में मंदिर बंद रहने पर क्या दशा हो गई थी, यह जानने कोई भी भक्त नहीं आया, जबकि मंदिर में उस के पहले खूब भीड़ रहती थी. सुखीरामजी के परिवार की भूखों मरने की नौबत आ गई थी. उस समय न तो चढ़ावा आ पा रहा था और न ही किसी प्रकार का दान. मेरा घर मंदिर के बगल में ही है. पंडितजी की ऐसी दशा मुझ से देखी न गई. यों तो मैं भी कोई मोटा वेतन नहीं पाता, किंतु सोचा कि जितना भी पाता हूं, उस में अपने परिवार के अतिरिक्त 4 लोगों का पेट तो भर ही सकता हूं. पंडितजी, उन की पत्नी, 10 वर्षीय पुत्र व 5 वर्षीया पुत्री इन दो वर्षों में मुझ पर ही निर्भर थे. आप बताइए कि मुझ से अधिक कौन निकट हो सकता था उन के?”

शैलजा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि माधव पुनः बोल उठा, “सुखीरामजी का कहना था कि किसी और पंडित को यदि वे यह काम दे कर जाएंगे तो लौटने पर संभव है मंदिर वह हथिया ले.

“उन्होंने बारबार मुझ से यह निवेदन भी किया था कि मैं पुजारी की वेशभूषा धारण कर ही मंदिर में पूजा आदि का कार्य करूं, ताकि कोई हंगामा न खड़ा कर दे.”

शैलजा के रुके शब्द बाहर आ गए. तनिक कुपित स्वर में वह बोली, “क्या तुम संतुष्ट हो ऐसा कर के? अपना यह बहरूपियापन अच्छा लग रहा है क्या तुम्हें?”

“मैडम, आप सच बताइए कि क्या बहरूपिया मैं हूं? मेरे विचार से बहरूपिए तो वे लोग हैं, जो मेरे साथ दोगला व्यवहार करते हैं. जब मैं एक सफाई कर्मचारी के रूप में उन के सामने होता हूं, तो उन का व्यवहार बेहद रूखा और उपेक्षापूर्ण होता है, लेकिन मुझे मंदिर में पुजारी के रूप में देख कर मेरे आगे हाथ जोड़ते हैं, मेरे पैर छूते हैं.”

“लेकिन, वे हाथ तुम्हारे आगे नहीं जोड़ते, बल्कि तुम्हें मंदिर का पुजारी समझ वे ऐसा करते हैं.”

“तब तो वे लोग मूर्ख हुए. जब मैं साफसफाई द्वारा उन की मदद और सेवा करता हूं तो वे मुझे दुत्कारते हैं, लेकिन यहां मैं मूर्ति के आगे खड़ा हुआ केवल उन के लाए प्रसाद और फूल को प्रतिमा के आगे रख वापस लौटा देता हूं तो मेरा सम्मान करते हैं. दरअसल, वे मुझे देख ही नहीं रहे. अलगअलग जगहों पर मैं उन के लिए किसी जाति विशेष का प्रतिनिधित्व कर रहा हूं.

“मैडम, आप ही बताइए कि क्या यह सही है कि किसी व्यक्ति की पहचान उस की जाति या वेशभूषा के आधार पर हो? क्या व्यक्ति के गुण उस की कोई पहचान नहीं है?

“एक बात और है मेरे मन में. यदि ऐसे लोगों से पूछा जाए कि किसी जाति का सम्मान और दूसरी का वे अपमान क्यों कर रहे हैं, तो उन के पास कोई जवाब नहीं होगा.”

अतार्किक सी शैलजा गहरी सोच में डूब गई. कुछ देर बाद वह इतना ही बोल सकी, “माधव, सच है व्यक्ति की पहचान उस के जन्म से नहीं, बल्कि कर्मों से होनी चाहिए. और हां, जाति के भेदभाव को मन से निकालना बहुत जरूरी है.”

मंदिर से वापस आते हुए शैलजा माधव द्वारा कहे शब्दों पर जैसे स्वयं को परख रही थी. घर पहुंच कर दिनेश को सब बताते हुए बोली, “इवाना ने इतनी अच्छी यूनिवर्सिटी से एमएस किया है और अब रिप्युटिड कंपनी में सीनियर एनैलिस्ट की पोस्ट पर काम कर रही है. एक हम हैं कि उसे उस की जाति से जोड़ रहे हैं. उस के पापा ऊंची जाति के होते तो भी क्या होता? न तो तब वे बदले हुए होते और न ही इवाना. तो क्या रखा है इस जातिपांति के फेर में?”

“मेरा मन भी खिन्न सा था. शायद इस का कारण यह बेतुका नजरिया ही था, जो बिना सोचेसमझे हम भी अपनाए थे, आंखें बंद कर चल रहे थे, लोगों ने जिस राह पर धकेल दिया था. चलो, विशाल को फोन कर कहते हैं कि इवाना जैसी बहू का ही सपना देखते थे हम.”

दिनेश के हृदय पर रखा मनों बोझ जैसे आज उतर गया हो.

रजनीगंधा की खेती

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में पिछले दिनों आयोजित एक कार्यक्रम में कुलपति प्रो. नरेंद्र सिंह राठौड़ ने रजनीगंधा पुष्प की 2 किस्में प्रताप रजनी 7 और प्रताप रजनी -7 (1)  का विमोचन किया. वर्तमान में रजनीगंधा फूलों की इन दोनों किस्मों का परीक्षण 14 अखिल भारतीय पुष्प अनुसंधान केंद्रों पर किया जा रहा है.

रजनीगंधा की इन 2 नई किस्मों की विशेषताएं

रजनीगंधा की इन दोनों किस्मों का उपयोग लैंडस्केपिंग, टेबल डैकोरेशन, भूमि सौंदर्य एवं फ्लावर ऐक्जीबिशन, कम ऊंचाई के गुलदस्ते बनाने में किया जा सकता है. साथ ही, इन दोनों किस्मों में ज्यादा सुगंधित होने के चलते घर के अंदर का माहौल भी खुशबूनुमा बन जाता है.

इन किस्मों के फूलों  में तकरीबन 35 तरह के फ्लोरैंस पाए जाते हैं.

प्रताप रजनी-7 की ऊंचाई 38 सैंटीमीटर और प्रताप रजनी-7 (1) की ऊंचाई

42 सैंटीमीटर रहती है और कली अवस्था पर लाल रंग पाया जाता है.

रजनीगंधा की खेती के लिए सरकार से सब्सिडी भी मिलती है. उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उत्तर प्रदेश की तरफ से राष्ट्रीय औद्यानिक मिशन के तहत किसानों की माली मदद भी दी जाती है.

छोटे और सीमांत किसानों के लिए कुल लागत का 50 फीसदी या अधिकतम 35,000 रुपए प्रति हेक्टेयर लाभ दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ 2 हेक्टेयर जमीन तक ही लाभ दिया जाता है.

दूसरे किसानों के लिए कुल लागत का 33 फीसदी या अधिकतम 23,100 रुपए प्रति हेक्टेयर दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ 4 हेक्टेयर जमीन पर ही लाभ दिया जाता है.

अगर आप के यहां की आबोहवा भी रजनीगंधा के फूलों की खेती करने के मुताबिक है, तो आप भी इस का लाभ ले सकते हैं. एक तरफ पारंपरिक खेती से जहां सीमित आमदनी होती है, तो वहीं दूसरी तरफ फूलों की खेती से आप अच्छी आमदनी ले कर अपने और घरपरिवार की जिंदगी को भी महका सकते हैं. इस के लिए जरूरी है कि आप इस की खेती वैज्ञानिक तरीके से करें और खेती करते समय कृषि ऐक्सपर्ट की राय लें.

रजनीगंधा के फूल लंबे समय तक सुगंधित और ताजा बने रहते हैं, इसलिए इन की मांग बाजार में काफी है. भारत में इस की खेती पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में की जाती है और इस के फूलों की खेती तकरीबन 20,000 हेक्टेयर क्षेत्र में हो रही है.

रजनीगंधा की खेती के लिए जलवायु व भूमि

रजनीगंधा की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन यह बलुईदोमट या दोमट, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में आसानी से की जा सकती है.

रजनीगंधा की खेती के लिए खेत को तैयार करने के लिए मिट्टी को भुरभुरा करना जरूरी है. इस के लिए 2 से 3 बार खेती की जुताई जरूरी है.

रजनीगंधा एक शीतोष्ण जलवायु का पौधा है. यह पूरे साल मध्यम जलवायु में भी उगाया जाता है. 20 से 35 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान रजनीगंधा के विकास और वृद्धि के लिए सही होता है. हलकी धूप वाली खुली जगहों में इसे अच्छी तरह से उगाया जा सकता है. छायादार जगह इस के लिए सही नहीं होती है.

रंजनीगंधा के पौधे 60 से 120 सैंटीमीटर  लंबे होते हैं, जिन में 6 से 9 पत्तियां, जिन की लंबाई 30-45 सैंटीमीटर और चौड़ाई 1.3 सैंटीमीटर होती है. पत्तियां चमकीली हरी होती हैं और पत्तियों के नीचे लाल बिंदी होती है. फूल लाउडस्पीकर के चोंगे के आकार के एकहरे व दोहरे सफेद रंगों के होते हैं.

रजनीगंधा की उन्नत किस्में

रजत रेखा, श्रीनगर, सुभाषिणी, प्रज्वल, मैक्सिकन सिंगल रजनीगंधा की उन्नत किस्में हैं. ये रजनीगंधा की इकहरी किस्में हैं. इस के अलावा इस की दोहरी किस्मों में कलकत्ता डबल, स्वर्णरेखा, पर्ल वगैरह आती हैं.

फूलों की खेती से लाभ

रजनीगंधा के फूलों को माला बनाने, सजावट के काम में लेने में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इस के अलावा इस के फूलों से  तेल भी मिलता है, जिस का इस्तेमाल इत्र या परफ्यूम बनाने में किया जाता है.

रजनीगंधा की खेती कैसे करें

फसल से अच्छी  पैदावार लेने के लिए उस में जरूरी मात्रा में जैविक खाद या कंपोस्ट खाद का होना जरूरी है. इस के लिए एक एकड़ जमीन में 25-30 टन गोबर की सड़ी खाद बराबरबराबर मात्रा में देनी चाहिए.

रोपाई के लिए इस के कंद का आकार

2 सैंटीमीटर व्यास का या इस से बड़ा होना चाहिए और हमेशा सेहतमंद और ताजे कंदों को ही रोपना चाहिए. कंदों को 4-8 सैंटीमीटर की गहराई पर और 20-30 सैंटीमीटर लाइन से लाइन और 10-12 सैंटीमीटर कंद से कंद के बीच की दूरी पर रोपणा चाहिए.

कंदों को रोपते समय भूमि में सही नमी होनी चाहिए. एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में तकरीबन 1,200-1,500 किलोग्राम कंदों की जरूरत होती है.

खाद व उर्वरक

फसल से बेहतर पैदावार लेने के लिए एक एकड़ जमीन में 25-30 टन गोबर की सड़ी खाद डालें. बराबरबराबर मात्रा में नाइट्रोजन

3 बार दें. एक तो रोपाई से पहले, दूसरी इस के तकरीबन 60 दिन बाद और तीसरी मात्रा तब दें, जब फूल निकलने लगें.

तकरीबन 90 से 120 दिन बाद कंपोस्ट खाद दें और फास्फोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दें.

समय पर सिंचाई व निराईगुड़ाई

रजनीगंधा कंद की रोपाई के समय पर्याप्त नमी हो. जब कंद के अंकुर निकलने लगें, तब सिंचाई से बचना चाहिए. गरमी के मौसम में फसल में 5-7 दिन और सर्दी में 10-12 दिन के अंतराल पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करना उचित रहता है. इस के बाद भी मौसम की दशा, फसल की वृद्धि अवस्था और जमीन के प्रकार को ध्यान में रख कर सिंचाई व्यवस्था का निर्धारण करना चाहिए.

फसल में खरपतवार की रोकथाम भी जरूरी है, इसलिए समयसमय पर निराईगुड़ाई का काम करना चाहिए, जिस से रजनीगंधा के पौधों को अच्छी बढ़वार मिल सके.

फसल में कीट व रोग की रोकथाम

अगर फसल में कीट व रोगों का प्रकोप दिखाई दे, तो फसल को बचाने के लिए जरूरी दवाओं का इस्तेमाल करें. रजनीगंधा में तना गलन रोग लगने का डर रहता है. इस रोग के कारण पत्तों की सतह पर फंगस और हरे रंग के धब्बे भी देखे जा सकते हैं. कई बार पौधों से पत्ते ?ाड़ भी जाते हैं.

रजनीगंधा में धब्बा और ?ालसा रोग भी लगता है. ये रोग अकसर बरसात के मौसम में फैलता है. इस रोग के चलते फूलों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. रोगों से रजनीगंधा को बचाने के लिए समयसमय पर कृषि विशेषज्ञों से सलाह ले कर उचित उपाय करें.

कीट व रोग से बचाव भी जरूरी

रजनीगंधा में कीट व रोग लगने का डर रहता है. चेंपा, थ्रिप्स और सूंड़ी का सब से ज्यादा प्रकोप इन पौधों पर हो सकता है.

चेंपा और थ्रिप्स से बचाव के लिए फसल पर उचित कीटनाशक दवाओं का सीमित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए.

फूलों की तुड़ाई

तकरीबन 3-4 महीने बाद फसल में फूल आने लगते हैं, लेकिन फूलों को पूरी तरह खिलने पर ही तोड़ना चाहिए. जिस तरह से फलसब्जी की तुड़ाई का काम सुबह या शाम के समय करते हैं, उसी तरह फूलों को चुनने का अच्छा समय भी सुबह या शाम का ही होता है. तुड़ाई के बाद फूलों की पैकिंग कर उन्हें बाजार में भेजें.

धर्म के धंधे का पहला हथियार

उत्तर प्रदेश सरकार ने लाउडस्पीकरों के नियमों को न मानने की वजह से 10,900 लाउडस्पीकर हटवा दिए हैं जो आबादी को नाहक परेशान करते थे. वैसे तो इस का मकसद मसजिदों से लाउडस्पीकर हटाना था जहां से अजान पढ़ी जाती थी पर देश में अभी इतना लोकतंत्र बचा हुआ है कि मंदिरों से भी लाउडस्पीकरों को हटाया गया है. जैसे रूस यूक्रेन युद्ध में रूस की आॢथक नाकाबंदी करने के लिए उस के विदेशी लेनदेन बंद कर देने से यूरोप को गैस का संकट झेलना पड़ रहा है वैसे ही मसजिदों के लाउडस्पीकर उतरवाने के चक्कर में मंदिरों और गुरूद्वारों के लाउडस्पीकर भी फिलहाल उतर गए हैं.

फिलहाल शब्द बहुत जरूरी है क्योंकि धर्र्म के दुकानदार अपना प्रचार किसी भी हालत में कम नहीं होने देगें और इस नियम को तोड़मरोड़ कर फिर लागू कर दिया जाएगा. पुलिस की इजाजत के नाम से मंदिरों और गुरुद्वारों विशेष अवसरों की आड़ में 100-200 दिन की इजाजत मिल जाएगी और मसजिदों को नहीं दी जाएगी.

लाउडस्पीकर धर्म के धंधे का पहला हथियार है. हर प्रवचक आजकल बढिय़ा साउंड सिस्टम लगवाता है ताकि उनकी कर्कश आवाज भी मधुर होकर देश के कोनेकोने में पहुंच जाए. यही लाउडस्पीकरों का होगा. कनफोडू लाउडस्पीकरों की जरूरत इसलिए होती है कि इन्हीं पूजापाठ के फायदों का झूठा लाभ घरघर पहुंचाया जाता है और भक्तों की गिनती भी बढ़ाई जाती है और जेब भी खाली कराई जाती है.

हनुमान चालिसा का पाठ जो नया शगूफा भारतीय जनता पार्टी ने शुरू किया है वह लाउडस्पीकरों पर हो तो आधारित है. लाउडस्पीकर न हो तो चाहे जितनी रामायण, महाभारत, हनुमान चालिसा, आरतियां गाइए, जनता को फर्क नहीं पड़ेगा. जिस युग में लाउडस्पीकर नहीं थे, उस में धर्म के दुकानदार आमतौर पर फटेहाल ही होते थे क्योंकि खुले मैदान में अपनी कपोल कल्पित कहानी 10-20 को सुनाई जा सकती है. लाखों की भीड़ के लिए तो लाउडस्पीकर चाहिए ही.

धर्म का धंधा एक तरफ बात के आधार पर चलता है जिस में आप कहें और सुनने वाला न सवाल पूछे और न अपनी बात कहे और न ही आप की बात को काट सके. लाउडस्पीकर के युग में तर्क और तथ्य की बात बंद करना बहुत ही आसान है.

उत्तर प्रदेश सरकार को अभी तो मुसलिम समाज को संदेश देना था जो दे दिया. अब मंदिरों और गुरूद्वारों से वह कैसे निपटती है देखना है. यह मुसीबत सारे देश की है और इस तरह से सारी जनता की है जो धर्म प्रचारकों के लाउडस्पीकरों के सामने चुप रहने को मजबूर रहते हैं.

मैं एक लड़की से प्यार करता हूं लेकिन वह मुझसे कटीकटी सी रहती है, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं एक लड़की से प्यार करता हूं लेकिन वह मुझ से कटीकटी सी रहती है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

सब से पहले तो उस युवती को टटोलिए और यह जानने की कोशिश कीजिए कि वह भी आप से प्यार करती है या नहीं. कटीकटी सी रहने से आप का क्या मतलब है स्पष्ट नहीं है, अगर वह आप से मिलतीजुलती रहती है तो आप आसानी से बातोंबातों में उस के दिल का हाल जान सकते हैं. यदि उस की बातों में आप के प्यार की महक झलके तो बेझिझक उस से मिलते रहिए व प्यार को बढ़ाइए अन्यथा आप का प्यार एकतरफा कहलाएगा, जिस का कोई अर्थ नहीं. अत: उस से किनारा करना उचित होगा. इसलिए उस युवती के मन की जानें व अपने मन की उस से कहें. अगर वह मना करती है तो बजाय उस के साथ चिपके रहने के दूसरा रास्ता देखें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

बंगले वाली- भाग 6: नेहा को क्यों शर्मिंदगी झेलनी पड़ी?

नेहा ने इतनी गरम चाय एक घूंट में ही पी ली और उठ खड़ी हुई.

‘‘अरे, बैठ ना…”

‘‘नहीं, मैं तो भूल गई, मुझे प्रेस वाले के यहां से साडियां भी उठानी हैं, मैं फिर आऊंगी.’’

कांची के कुछ कहने से पहले ही उस ने ऐसी दौड़ लगाई, जैसे पीछे भूत पड़े हों, घर में घुस कर ही सांस ली.

धम्म से कुरसी पर बैठ गई, जब सांस में सांस आई तो एहसास हुआ कि ये क्या किया?

हाय, मैं ने चोरी की, वो भी कांची के यहां से.

ये चोरी थोड़े ही है, 2-3 दिन की ही तो बात है. शादी से लौट कर, उस से मिलने जाऊंगी, और धीरे से रख दूंगी. मन के दूसरे कोने से आवाज आई.

पर्स से नेकलेस निकाल कर आईने के सामने गले पर लगाते ही नेहा की सारी ग्लानि बह गई.

वाह… क्या लग रही हूं मैं, सब देखते ही रह जाएंगे. उस ने जल्दी से नेकलेस को सूटकेस में रख लिया.

बच्चे पढ़ाई कर रहे थे, पतिदेव के आने में अभी वक्त था. कई दिन बाद उस ने बालकनी का दरवाजा खोल कर ताजी हवा को महसूस किया. तभी बंगले से कांची निकलती हुई दिखी.

अरे, ये तो इधर  ही आ रही है. हाय, लगता है कि उसे पता चल गया कि मैं ने ही उस का नेकलेस चुराया है. अब क्या करूं? क्या सोचेगी वह मेरे बारे में? मेरी भी मति मारी गई थी, जो मैं ने ऐसा नीच काम किया, क्या करूं?

जल्दी से बालकनी का दरवाजा बंद कर, बच्चों को हिदायत दी कि कोई आ कर पूछे तो कहना कि मम्मी बाहर गई हैं, देर से आएंगी.

नेहा सांस रोके अंदर जा कर बैठ गई.

घंटी बजते ही बेटे ने दरवाजा खोल दिया.

‘‘क्या यह नेहा का घर है?’’

‘‘जी आंटी, पर मम्मी घर पर नहीं हैं.’’

‘‘अच्छा, कोई बात नहीं. मै बाद में आऊंगी,” कांची ने जाते हुए कहा. उस के जाते ही नेहा की जान में जान आई.

उफ, शुक्र है, बच गई, बस कल ट्रेन पकड़ लूं.

सारी रात चिंता के मारे नेहा सो न सकी. सुबह पति और बच्चों के जाने के बाद वह जल्दीजल्दी जाने की तैयारी करने लगी.

ट्रेन तो 11 बजे की है, लगभग 10 बजे घर से निकल जाऊंगी. अरे, सूखे कपड़े तो बालकनी में ही रह गए, अगर नहीं उठाए तो 3 दिन तक वहीं पड़े रहेंगे, मजाल है कि कोई उठा कर अंदर रख दे. बड़बड़ाते हुए नेहा ने जैसे ही बालकनी का दरवाजा खोला, सामने से आती हुई कांची को देख कर उस के हाथपैर फूल गए. कुछ समझ न आया तो बाहर से ताला बंद कर के, ऊपर सीढ़ियों में जा कर छिप गई.

हाय, अगर ऊपर से कोई आ गया तो क्या कहूंगी? क्यों बैठी हू सीढ़ियों में… ये किस मुसीबत में फंस गई, पर अब करे क्या? दम साधे बैठी रही.

कुछ देर बाद सीढ़ियों पर किसी के उतरने की आवाज आई, शायद ताला देख कर कांची चली गई थी. 5 मिनट रुक कर वह नीचे आई और ताला खोला. मायके में अपनी झूठी शान दिखाने के लिए क्याक्या करना पड़ रहा है, बस एक बार ट्रेन में बैठ जाऊं.

10 बजने ही वाले थे. सूटकेस उठा कर, ताला लगाया, चाबी पड़ोस में दे कर सीढ़ियां उतरने लगी, उस की सांस धौंकनी की तरह चल रही थी, ज्यादा गरमी न होने के बाद भी पसीना पीठ से बह कर एड़ियों तक पहुंच रहा था.

भगवान का लाखलाख शुक्र है कि आटो सामने ही दिख गया, बिना मोलभाव (जो उस की आदत नहीं थी) के वह जल्दी से आटो में बैठ कर स्टेशन के लिए निकल पड़ी.

क्या कांची पीछे से आवाज दे रही थी…, नहींनहीं, मेरा भ्रम होगा…

जैसेतैसे स्टेशन पहुंच कर अंदर घुसी ही थी कि सचमुच पीछे से कांची के पुकारने की आवाज सुन कर उस के होश ही उड़ गए…

अब तो ऊपर वाला भी मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ने से नहीं बचा सकता. झूठी शान के चक्कर में मेरी मति मारी गई थी जो मैं ने ऐसा नीच काम किया. अब कांची से आंखें मिलाऊंगी… हे भगवान, काश, ये धरती फट जाए तो मैं उसी में समा जाऊं… क्या करूं? कहां जाऊं…. भागूं…..पर, पैर  जड़ हो गए…

तभी हांफती हुई कांची आई, ‘‘कब से आवाज दे रही हूं? सुन ही नहीं रही है, कल तेरे घर आई, तो भी नहीं मिली. सुबह आई, तो ताला लगा था, मुझे लगा कि गई ये तो… पर, अभी आटो में बैठती हुई दिखी, तब भी आवाज लगाई, पर शायद तू सुन नहीं पाई. नेहा को काटो तो खून नहीं.

‘‘अरे, उस दिन तू मेरे घर आई थी न शायद जल्दबाजी में तेरी झुमकी वहीं गिर गई थी, उसे ही लौटाने आई थी. मैं सोचसोच कर परेशान हो रही थी. अगर न दे पाई तो तू वहां क्या पहनेगी. चल, अब मैं निकलती हूं, पहले ही बैंक के लिए देर हो गई है, तू वहां से आ जा, फिर मिलते हैं.’’

नेहा ठगी सी खड़ी रह गई, डायमंड की चमक पूरी तरह से फीकी पड़ चुकी थी.

गर्लफ्रेंड के साथ करण जौहर की पार्टी में पहुंचे ऋतिक रोशन, देखें Photos

बीती रात करण जौहर ने अपना 50वां जन्मदिन मनाया है. इस खास मौके पर एक शानदार पार्टी का आयोजन किया गया था. पार्टी में बॉलीवुड की कई मशहूर हस्ती नजर आई. इस पार्टी में बॉलीवुड के कई कपल्स धमाल मचाने पहुंचे थे. इस लिस्ट में ऋतिक रोशन और सबा आजाद का भी नाम शामिल है.

पार्टी में ऋतिक रोशन अपनी गर्लफ्रेंड पर जमकर प्यार लुटाते नजर आए. जी हां सबा और ऋतिक की केमिस्ट्री शानदार नजर आई. दोनों बातचीत करते हुए दिखाई दिए.

 

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फैंस का मानना है कि ऋतिक रोशन की गर्लफ्रेंड उनकी पहली पत्नी से भी ज्यादा खूबसूरत हैं. सबा आजाद की तस्वीरों को  फैंस काफी पसंद कर रहे हैं.

 

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पार्टी के दौरान पोज देते समय ऋतिक रोशन अपनी गर्लफ्रेंड को जमकर निहारते दिखे. सबा आजाद ब्लैक कलर की शानदार ड्रेस पहनकर पहुंची तो वहीं ऋतिक रोशन भी सबा के साथ ट्विनिंग करते दिखे. सोशल मीडिया पर ऋतिक रोशन और सबा आजाद की तस्वीरें तेजी से वायरल हो रही हैं.

 

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हमने फिल्म ‘देहाती डिस्को’ में अभिशाप व अंधविश्वास को तोड़ा है: मनोज शर्मा

कोरोना काल के बाद से बौलीवुड बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है.इसके लिए कोई और नहीं बल्कि बौलीवुड के फिल्मकार व कलाकार खुद ही दोषी हैं. पिछले तीन चार माह के अंतराल में जितनी भी फिल्में प्रदर्शित हुई हैं,वह सभी घिसे पिटे विषयों पर बहुत ही बकवास ढंग से बनायी गयी नीरस फिल्में ही हैं. मगर ऐसी ही फिल्मों के बीच एक आध फिल्म सर्जक कुछ अच्छा काम कर रहे है. मसलन-लेखक,एडीटर व निर्देशक मनोज शर्मा, जिनकी फिल्म ‘‘देहाती डिस्को’ 27 मई को प्रदर्षित होने जा रही है. नाम के अनुरूप मनोज शर्मा की यह फिल्म भी कुछ वर्ष पहले आयी डांस फिल्म ‘एबीसीडी’ की तर्ज पर बनी डांस फिल्म होनी चाहिए.मगर खुद मनोज शर्मा का दावा है कि यह ‘एबीसीडी’ की तर्ज पर बनी डांस फिल्म नही है. बल्कि इस फिल्म की कहानी में डांस है. इस फिल्म का मूल मकसद लोगों के हर तरह के पाखंड, अंधविश्वास, अभिषाप व वहम को तोड़ना है.

प्रस्तुत है मनोज शर्मा से हुई बातचीत के मुख्य अंश:

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बॉलीवुड में सहायक निर्देशक से कैरियर शुरू करने वाला वहीं तक सीमित होकर रह जाता है? मगर आपने इसे तोड़कर …

-आपने एकदम सही कहा.पर मैने पहले सहायक एडीटर व फिर एडीटर के रूप में काम किया.एडीटर होने की वजह से मुझे काफी फायदा मिला.मैं 2004 में वीनस संगीत कंपनी के साथ जुड़ा और उनके लिए म्यूजिक वीडियो निर्देशित करने लगा.मैने ‘तुम तो ठहरे परदेसी’,‘यारों मैंने पंगा ले लिया’, ‘आवारा हवाओं का झोका हूं’ सहित कई सफलतम म्यूजिक वीडियो निर्देशित किए.

उन्हीं के लिए फिल्म ‘माई का बेटवा ’ भी निर्देशित किया.उसके बाद पीछे मुड़कर देखने नहीं पड़ी. फिल्म ‘माई का बेटवा’ के बाद लोगों को पता चल चुका था कि मनोज शर्मा केवल वीडियो निर्देशक नहीं है.वह तो फिल्म एडीटर व फिल्म निर्देशक है. फिर मैंने आशाराम बापू पर विवादास्पद फिल्म ‘स्वाहा’ निर्देशित की.उसके बाद ‘बिन फेरे फ्री में तेरे’,‘यह है लॉलीपॉप’, ‘प्रकाश इलेक्ट्रॉनिक्स,‘चल गुरू हो जा शुरू’,‘शर्मा जी की लग गयी’ सहित दस वर्ष के अंदर सत्रह फिल्में निर्देशित की.

आप अपने कैरियर का टर्निंग प्वाइंट किसे मानते हैं?

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-हकीकत में बतौर निर्देशक मुझे लाइम लाइट इस फिल्म ‘‘देहाती डिस्को’’ से मिल रहा है.इससे पहले मेरी कुछ फिल्में चली,कुछ नहीं चली. मगर मैंने जिनके साथ भी काम किया,वह सभी मेरे टैलेंट व मेरे व्यवहार को जानते हैं. मेरे काम करने के तरीके से भी लोग परिचित हैं.‘शर्मा जी की लग गयी’ से भी मुझे अच्छी पहचान मिली थी. इसमें कृष्णा अभिषेक व मुग्धा गोड़से थी. फिल्म को अच्छी सफलता मिली थी.लेकिन ‘देहाती डिस्को ’ से पहले की फिल्मों का उनके निर्माताओं ने बड़े स्तर पर प्रमॉशन नहीं किया था. फिल्म का प्रमोशन बहुत मायने रखता है. ‘देहाती डिस्को’ में सभी बड़े तकनीशियन हैं.

निर्माता इसे अच्छे से प्रमोट कर रहे हैं. गणेश आचार्य जी लीजेंड है, इसलिए पूरी फिल्म इंडस्ट्री उनको सपोर्ट कर रही है.तो अपरोक्ष रूप से मुझे सपोर्ट मिल रहा है.इसलिए ‘देहाती डिस्को’ से मुझे बतौर निर्देशक पहचान मिल रही है.

आप लेखक,एडीटर व निर्देशक हैं.यह कितना सुविधाजनक हो जाता है?

-देखिए,मैं खुले विचारों और सकारात्मक सोच वाला इंसान हूं.यदि निर्माता कहता है कि उसके पास कहानी है,तो मैं वह सुनता हूं. उस कहानी में दम होता है, तो मुझे उस पर भी काम करने से कोई परहेज नहीं होता.

हमारा मकसद तो दर्शकों तक अच्छी कहानी को लेकर जाना ही है.कइ बार मेरा सहायक भी बहुत बेहतरीन आउट लाइन सुना देता है. जब कोई निर्माता कहता है कि मनोज जी हमें आपकी स्टाइल की कॉमेडी फिल्म बनानी है, तब मैं अपनी कहानी उन्हे सुनाता हूं. उन्हें अच्छी लगती है, तब हम उस पर काम करते हैं. यदि मेरी कहानी उन्हे पसंद नहीं आती, तो मैं कहता हूं कि आप किसी अच्छे लेखक से मुझे कहानी सुनवाइए. मेरे लेखक,एडीटर व निर्देशक होने का सबसे बड़ा फायदा मुझे नहीं,बल्कि निर्माता को होता है.कलाकार को होता है.हम कलाकार से बारह दिन की तारीख लेकर शूटिंग शुरू करते हैं,पर जब बारह दिन में शूटिंग पूरी होने की बजाय तीस या चालिस दिन लग जाते हैं, तो कलाकार भी चिढ़ जाता है.इससे निर्माता को भी आर्थिक नुकसान होता है. जब एडीटर खुद लिखता व निर्देशित करता है, तो उसे पता होता है कि कितना लंबा किस तरह का दृष्य चाहिए.ऐसे में ज्यादा रीटेक या ज्यादा शूटिंग करने की जरुरत नहीं पड़ती.मुझे एडीटिंग आती है, इसलिए सेट पर आठ कलाकारों की जरुरत होने पर भी मैं सभी का इंतजार नहीं करता.जो कलाकार आ जाता है,उसके सोलो दृश्य फिल्म लेता हूं,क्योंकि सोलो दृष्य भी चाहिए होते हैं.

‘‘देहाती डिस्को’’ तो पूरी तरह से डांस प्रधान फिल्म ही है?

-जी नहीं..यह नृत्य प्रधान फिल्म नही है.बल्कि यह बाप बेटे की भावना प्रधा कहानी है.कहानी में डांस है.यह एक ऐसे गांव की कहानी है,जहां डांस करना अभिशाप माना जाता है.डांस के ही कारण बाप बेटे को गांव से निकाल दिया जाता है.उसी गांव में जब एक मंत्री का बेटा उसी मंदिर प्रांगण में वेस्टर्न डांस का स्कूल खोलना चाहता है.तब जिन्हे गांव से बाहर किया गया था, वही अपने देश के डांस के बल पर वेस्टर्न वाले को बाहर का रास्ता दिखाते हैं और भारतीय संस्कृति की रक्षा करते हैं.

अभिशाप के मसले को फिल्म में किस तरह से दिखाया है?

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-देखिए,समाज में जो कुछ पाखंड चल रहा है,उसका चित्रण करते हुए हमने इस बात को रेखांकित करने का प्रयास किया है कि अभिशाप वगैरह कुछ नहीं होता.

मैं तो उत्तर प्रदेश के बुलंदषहर जिले के एक छोटे शहर खुर्जा का रहने वाला हूं. खुर्जा के आस पास चालिस गांव हैं.हर गांव में कुछ न कुछ अभिशाप वगैरह की किवंदंतिया हैं. कुछ अंधविष्वास फैले हुए हैं.मैने अपनी इस फिल्म ‘‘देहाती डिस्को’’ में उस अंधविश्वास को तोड़ा है.मैंने अपने किरदारों के माध्यम से उस अभिषाप को तोड़ा है.कोई आपदा आ जाए,तो उसे आप ‘डांस का अभिषाप’ नाम कैसे दे सकते हैं?मैंने सवाल उठाया है कि जिस अभिषाप की बात को या जिस अंधविश्वास को आप कई दशकों से ढोते चले आ रहे हैं,उसका कोई प्रामाणिक सबूत है?मैंने इस फिल्म में कहा है कि डांस या कला तो भगवान का रूप है,वह अभिषाप कदापि नहीं हो सकता.जिस कार्य को करने से मन को सकून मिलता है, मन को शांति मिलती है,वह अभिशाप नहीं हो सकता है. मैंने इस बात को बहुत ही तार्किक तरीके से फिल्म में रखा है. हम अपनी फिल्म के माध्यम से लोगों को अंधविष्वास के खिलाफ जागरूक करने का काम कर रहे हैं.

क्या आपकी फिल्म इस बारे में बात करती है कि मंदिरों के महंत खुद को सुरक्षित रखने के लिए अभिशाप की बातें फैलाते हैं?

देखिए ,हमारे देश में इंसान के हर रूप मौजूद है.हमने उन सभी को अपनी फिल्म का हिससा बनाया है.फिल्म देखकर आपकों अहसास होगा कि हमने सच को उजागर किया है.कुछ लोग सकारात्मक बातें करते हैं, तो कुछ लोग अपने हित के लिए लोगों में भ्रम पैदा करते हैं.डर फैलाते हैं. हमने उसी वहम को तोड़ने का काम किया है.

फिल्म का नाम देहाती डिस्कोक्यों?

-देहाती यानी कि देह यानी कि आत्मा.यानी कि देष की आत्मा. यानी कि शुद्ध देसी नृत्य.इसमें हमने जान बूझ कर वेस्टर्न षब्द ‘डिस्को’ जोड़ा है.

इंसान के लिए नृत्य कितना आवश्यक मानते हैं?

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मेरी राय में नृत्य तो जीवन का अभिन्न अंग है. खुशी का मौका हो या गम का हर मौके पर नृत्य किया जाता है.बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यू तक हर संस्कार के समय,हर अवसर पर डांस किया जाता है.नृत्य के माध्यम से इंसान अपनी भावनाओं को बड़ी सहजता से पेश कर सकता है.खुद को चुस्त दुरूस्त रखने के लिए भी डांस किया जाता है. डांस करने से इंसान के शरीर में एक लचक,एक रिदम के साथ ही एक ‘ग्रेस’

आता है. भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा होते हुए भी नृत्य इंसान को दिमागी रूप से सकून प्रदान करता है. हमने उसी डांस की संस्कृति का बढ़ावा दिया है.हम किसी भी प्रकार के डांस के खिलाफ नहीं हैं.हमारी फिल्म की टैग लाइन है- ‘आप जो सीखकर आए हैं, हम उसका सम्मान करते हैं,लेकिन हमें अपनी कला पर गर्व है.

’’ हम हिप हॉप डांस का अपमान नहीं कर रहे हैं. हिप हाप डांस भी कला है. हर तरह के डांस को करने के लिए टैलेंट तो चाहिए ही.

गणेश आचार्य नृत्य निर्देशक होने के साथ साथ फिल्म भी निर्देशित कर चुके हैं. तो आपको इस बात का शक नहीं था कि वह आपके काम मेंव सेट पर उंगली करेंगें?

मैं तो इसे अच्छा मानता हूं. देखिए,सेट पर एक सहायक या कैमरामैन भी हमें सलाह दे सकता है और निर्देषक होने के नाते उसकी बात को सुनना और उस पर गौर करना भी चाहिए.क्योंकि सेट पर हर कलाकार व तकनीशियन फिल्म की बेहतरी की ही बात सोचता है. गणेश मास्टर जी यदि कुछ गलत कहेंगे, तो मैं क्यों मानने लगा.पर उनकी सही बात पर गौर करता हॅूं. कई बार सेट पर हमारा कैमरामैन कहता है कि यदि हम ट्रॉली को लेफ्ट में राइट से चलाएं.तो मैं कहता हूं कि चला कर दिखा. बात समझ में नहीं आती तो कहता हूं कि नही तू लेफ्ट से ही चला. देखिए,अब काम करना आसान हो गया है.अब हम उसी वक्त मॉनीटर पर देख लेते हैं और जरुरत हो दो बार शूट कर लेते हैं.गणेष मास्टर जी बहुत बड़े तकनीशियन हैं.वह कई बड़े बड़े गाने फिल्मा चुके हैं. फिल्म निर्देषित कर चुके हैं.सेट पर एक बार उन्होने कहा कि,‘मनोज इस दृष्य को ट्रॉली के उपर से देख कैसा लगेगा? उन्होने यह नहीं कहा कि तुझे इसी तरह से लेना पड़ेगा? गणेष मास्टर जी इतने वर्षों से इंडस्ट्री में है. समझदार हैं.उन्होने प्रोटोकाल नहीं तोड़ा. हमेशा एक भाई की ही तरह व्यवहार किया.

ट्रेलर का रिस्पांस किस तरह का आ रहा है?

लोग कह रहे हैं कि फिल्म में कंटेंट तो है.एक्शन व डांस भी है,जिससे लोगों के अंदर एक उत्सुकता पैदा हो रही है. देखिए हमारी फिल्म में कुछ कमियां है,तो उन्हें हम स्वीकार करने को तैयार हैं.देखिए,रचनात्मकता में तो अंतिम समय तक सुधार की जरुरत रहती ही है.

इसके अलावा क्या कर रहे हैं?

मेरी एक दूसरी फिल्म ‘‘खली बली’ प्रदर्षन के लिए तैयार है.इस फिल्म में लंबे समय बाद धर्मेंद्र जी नजर आने वाले हैं.इस फिल्म स मधु की वापसी हो रही है.

इसके अलावा इसमें रजनीश दुग्गल,विजय राज,राजपाल यादव जैसे कलाकार है.यह पूरी तरह से हॉरर कॉमेडी कमर्शियल फिल्म है.इसके अलावा दो फिल्मों की शूटिंग शुरू करने वाला हूं. इनमें से एक फिल्म ‘‘कालिंग शिवा’’ है, जो कि कश्मीर की वर्तमान परिस्थितियों पर है. इसे हम कश्मीर में ही फिल्माएंगे. यह कश्मिरी पंडित की इमोशनल फिल्म है.

क्या फिल्म कालिंग शिवामें जम्मू एंड कष्मीर में 370 हटने के बाद के हालात की बात होगी?

-जी हां! मैं आज 2022 की कहानी कहने जा रहा हूं. मैं गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ता. हम तो लोगों को आगे बढ़ना सिखाने में यकीन करते हैं.370 हटने के बाद पंडित वापस कष्मीर जा रहा है. उसके बेटे कहते है कि, ‘पापा अब क्यों जा रहे हैं.हमने दिल्ली में अच्छा मकान बना लिया है, हमारी बहुत बड़ी फैक्टरी है.पर वह नही मानता.वह कश्मीर जाकर अपने बंद पड़े पुश्तैनी मकान में गार्मेंट फैक्टरी उन कश्मिरी लड़को के लिए खुलवाकर वापस दिल्ली आ जाता है,जिन्हे रोजगार की जरुरत है.तो हम अपनी फिल्म में सकारात्मक बातें कर रहे हैं.हम समस्या का चित्रण नही बल्कि समस्या का हल दे रहे हैं.जो लोग यथार्थपरक सिनेमा के नाम पर अपनी फिल्मों में महज समस्याओं का चित्रण कर रहे हैं, उनके पक्ष में नही है.मेरा मानना है कि आप समस्या का चित्रण तभी करें,जब उसका हल आपके पास हो.फिल्म में समस्या के हल की बात तो होनी ही चाहिए.

आखिर क्या है देशद्रोह

जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार देश में आई है देशद्रोह गंभीर हो गया है. जहां 2014 में 30 मामलों में 73 लोगों को 2016 में देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया और सीखचों के पीछे डाल दिया गया. 2019 तक यह संख्या बढ़ कर 93 मामले और 98 गिरफ्तारियां हो गई. 2020 व 2021 में कोविड के कारण सरकार वैसे व्यस्त रही पर गिरफ्तार आमतौर पर बिना जमानत के जेलों में रहे.

देशद्रोह का मतलब होता है देश के प्रति कुछ ऐसा करना जिस से देश के आस्तित्व को आंच आए और उस के टुकड़े होने की आशंका हो. पर असल में देशद्रोह नई परिभाषा के अनुसार हर वह हो गया है जो पौराणिक ङ्क्षहदू मान्यताओं के आगे सिर न झुकाए और भेदियों के साथ राजाओं के आगे सिर झुका कर न चलें.

देश की जनता को पाठ पढ़ा दिया गया है कि देश के शासक, उस का ज्ञान, इस का इतिहास, उस की गरिमा इतनी महान है कि उन के बारे किसी तरह का तर्क, तथ्य या प्रश्न सीधा धर्म और देश के विरुद्ध विद्रोह है और प्रश्न करने वालों को जेल में डाल देना ही सही है चाहे उन की संख्या कैसी भी हो देश की जनता के एक हिस्से का विश्वास है कि देश की 80′ जनता देशद्रोही है, जी हां 2 तिहाई से ज्यादा, और वे ही देश भक्त है जो ‘जय यह जय वह के बारे सुबह, दोपहर, शाम, रात को लगाते हों. सरकार ने तो यह नीति बनाई पर जनता के प्रभावशाली वर्ग को यह इतनी भाई कि उस ने तुरंत इसे लपक लिया और वे पैसा मिलने पर या न मिलने पर भी इसे दुष्प्रचार को फैलाने में लग गए.

देश भर में समाचारपत्र, टीवी चैनल, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप गु्रप देशद्रोहियों के पचार से भर गए हैं. इस का परिणाम यह हुआ है कि देश में सामाजिक सुधार बंद ही नहीं हुए, उल्टे पुरातन विचार फिर कैक्टसों की तरह पनपने लगे हैं. देश जातियों बंटने लगा है. हर जाति अपना झंडा ले कर खड़ी हो गई है. हरेक ने अपने देवीदेवता ढूंढ लिए हैं विवाह प्रेम अपनी ही जाति में होंगे क्योंकि हर जाति अपने त्यौहार अपने प्राचीन तरीकों से करेगी.

देशद्रोह यह सब था और है. जिन्होंने अलग जातियों, संप्रदायों, देवीदेवताओं, जातियों, उपजातियों, नामों के आगे जाति लगाई वे देशद्रोही हैं. जो एक की मूॢत पूजा कर दूसरे को अपना विरोधी मानते हैं, वे देशद्रोही हैं पर देशद्रोह का आरोप उन पर लगा है जो यह बता रहे हैं कि कैसे सत्ता व प्रभाव में बने के लिए लगातार देशद्रोह के कानून, भारतीय दंडसहिता की धारा 124 ए, के साथ दूसरी धाराओं व दूसरे कानूनों की धाराओं के साथ मिला इस्तेमाल कर सुधारकों का मुंह बंद किया जा रहा है.

अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है पर जब जनता का 2 तिहाई हिस्सा गद्दार माना जाए तो क्या कहेंगे, क्या करेंगे आप.

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