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वसंत आ गया- भाग 2: सौरभ ने पति का फर्ज कैसे निभाया

भाभी के आने के बाद मैं बहुत मौजमस्ती करने की योजना मन ही मन बना चुकी थी, पर अब तो सब मन की मन ही में रही. तीसरे दिन अपने मम्मीपापा के साथ ही मैं ने लौटने का मन बना लिया.

दुखी मन से मैं भुवनेश्वर लौट आई. आने से पहले चुपके से एक रुमाल में सोने की चेन और कानों की बालियां कमली को दे आई कि मेरे जाने के बाद सौरभ भाई को दे देना. जब उन की ज्ंिदगी में बहार आई ही नहीं तो मैं कैसे उस तोहफे को कबूल कर सकती थी.

सौरभ भाई के साथ हुए हादसे को काकी झेल नहीं पाईं और एक साल के अंदर ही उन का देहांत हो गया. काकी के गम को हम अभी भुला भी नहीं पाए थे कि एक दिन नाग के डसने से कमली का सहारा भी टूट गया. बिना किसी औरत के सहारे के सौरभ भाई के लिए संगीता भाभी को संभालना मुश्किल होने लगा था, इसलिए सौरभ भाई ने कोशिश कर के अपना तबादला भुवनेश्वर करवा लिया ताकि मैं और मम्मी उन की देखभाल कर सकें.

मकान भी उन्होंने हमारे घर के करीब ही लिया था. वहां आ कर मेरी मदद से घर व्यवस्थित करने के बाद सब से पहले वह संगीता भाभी को अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले गए. मैं भी साथ थी.

डाक्टर ने पहले एकांत में सौरभ भाई से संगीता भाभी की पूरी केस हिस्ट्री सुनी फिर जांच करने के बाद कहा कि उन्हें डिप्रेसिव साइकोसिस हो गया है. ज्यादा अवसाद की वजह से ऐसा हो जाता है. इस में रोेगी जब तक क्रोनिक अवस्था में रहता है तो किसी को जल्दी पता नहीं चल पाता कि अमुक आदमी को कोई बीमारी भी है, परंतु 10 से ज्यादा दिन तक वह दवा न ले तो फिर उस बीमारी की परिणति एक्यूट अवस्था में हो जाती है जिस में रोगी को कुछ होश नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है. अपने बाल और कपड़े आदि नोंचनेफाड़ने जैसी हरकतें करने लगता है.

डाक्टर ने आगे बताया कि एक बार अगर यह बीमारी किसी को हो जाए तो उसे एकदम जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता, परंतु जीवनपर्यंत रोजाना इस मर्ज की दवा की एक गोली लेने से सामान्य जीवन जीया जा सकता है. दवा के साथ ही साथ साईकोथैरेपी से मरीज में आश्चर्यजनक सुधार हो सकता है और यह सिर्फ उस के परिवार वाले ही कर सकते हैं. मरीज के साथ प्यार भरा व्यवहार रखने के साथसाथ बातों और अन्य तरीकों से घर वाले उस का खोया आत्मविश्वास फिर से लौटा सकते हैं.

डाक्टर के कहे अनुसार हम ने भाभी का इलाज शुरू कर दिया. मां तो अपने घर के काम में ही व्यस्त रहती थीं, इसलिए भाई की अनुपस्थिति में भाभी के साथ रहने और उन में आत्मविश्वास जगाने के लिए मैं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. भाई और मैं बातोंबातों में निरंतर उन्हें यकीन दिलाने की कोशिश करते कि वह बहुत अच्छी हैं, सुंदर हैं और हरेक काम अच्छी तरह कर सकती हैं.

शुरू में वह नानुकर करती थीं, फिर धीरेधीरे मेरे साथ खुल गईं. हम तीनों मिल कर कभी लूडो खेलते, कभी बाहर घूमने चले जाते.

लगातार प्रयास से 6 महीने के अंदर संगीता भाभी में इतना परिवर्तन आ गया कि वह हंसनेमुसकराने लगीं. लोगों से बातें करने लगीं और नजदीक के बाजार तक अकेली जा कर सब्जी बगैरह खरीद कर लाने लगीं. दूसरे लोग उन्हें देख कर किसी भी तरह से असामान्य नहीं कह सकते थे. यों कहें कि वह काफी हद तक सामान्य हो चुकी थीं.

हमें आश्चर्य इस बात का हो रहा था कि इस बीच न तो काका और न ही सौभिक भाई कभी हालचाल पूछने आए, पर सब कुछ ठीक चल रहा था, इसलिए हम ने खास ध्यान नहीं दिया.

इस के 5 महीने बाद ही मेरी शादी हो गई और मैं अपनी ससुराल दिल्ली चली गई. ससुराल आ कर धीरेधीरे मेरे दिमाग से सौरभ भाई की यादें पीछे छूटने लगीं क्योंकि आलोक के अपने मातापिता के एकलौते बेटे होने के कारण वृद्ध सासससुर की पूरी जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी. उन्हें छोड़ कर मेरा शहर से बाहर जाना मुश्किल था.

मेरे ससुराल जाने के 2 महीने बाद ही पापा ने एक दिन फोन किया कि अच्छी नौकरी मिलने के कारण सौरभ भाई संगीता भाभी के साथ सिंगापुर चले गए हैं. फिर तो सौरभ भाई मेरे जेहन में एक भूली हुई कहानी बन कर रह गए थे.

अचानक किसी के हाथ की थपथपाहट मैं ने अपने गाल पर महसूस की तो सहसा चौंक पड़ी और सामने आलोक को देख कर मुसकरा पड़ी.

‘‘कहां खोई हो, डार्ल्ंिग, कल तुम्हारे प्यारे सौरभ भाई पधार रहे हैं. उन के स्वागत की तैयारी नहीं करनी है?’’ आलोक बोले. वह सौरभ भाई के प्रति मेरे लगाव को अच्छी तरह जानते थे.

‘‘अच्छा, तो आप को पता था कि फोन सौरभ भाई का था.’’

‘‘हां, भई, पता तो है, आखिर वह हमारे साले साहब जो ठहरे. फिर मैं ने ही तो उन से पहले बात की थी.’’

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर मैं ने नहाधो कर सौरभ भाई के मनपसंद दमआलू और सूजी का हलवा बना कर रख दिया. पूरी का आटा भी गूंध कर रख दिया ताकि उन के आने के बाद जल्दी से गरमगरम पूरियां तल दूं.

आलोक उठ कर तैयार हो गए थे और बच्चे भी तैयार होने लगे थे. रविवार होने की वजह से उन्हें स्कूल तो जाना नहीं था. कोई गाड़ी घर के बाहर से गुजरती तो मैं खिड़की से झांक कर देखने लगती. आलोक मेरी अकुलाहट देख कर मंदमंद मुसकरा रहे थे.

आखिर जब तंग आ कर मैं ने देखना छोड़ दिया तो अचानक पौने 9 बजे दरवाजे की घंटी बज उठी. मैं ने दौड़ कर दरवाजा खोला तो सामने सदाबहार मुसकान लिए सौरभ भाई अटैची के साथ खड़े थे. वह तो वैसे ही थे, बस बदन पहले की अपेक्षा कुछ भर गया था और मूंछें भी रख ली थीं.

उन से पहली बार मिलने के कारण बच्चे नमस्ते करने के बाद कुछ सकुचाए से खड़े रहे. सौरभ भाई ने घुटनों के बल बैठते हुए अपनी बांहें पसार कर जब उन्हें करीब बुलाया तो दोनों बच्चे उन के गले लग गए.

मैं भाई को प्रणाम करने के बाद दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि वह बोले, ‘‘अरे, क्या अपनी भाभी और भतीजे को अंदर नहीं आने दोगी?’’

मैं हक्कीबक्की सी उन का मुंह ताकने लगी क्योंकि उन्होंने भाभी और भतीजे के बारे में फोन पर कुछ कहा ही नहीं था. तभी भाभी ने अपने 7 वर्षीय बेटे के साथ कमरे में प्रवेश किया.

कुछ पलों तक तो मैं कमर से भी नीचे तक चोटी वाली सुंदर भाभी को देख ठगी सी खड़ी रह गई, फिर खुशी के अतिरेक में उन के गले लग गई.

सभी का एकदूसरे से मिलनेमिलाने का दौर खत्म होने और थोड़ी देर बातें करने के बाद भाभी नहाने चली गईं. फिर नाश्ते के बाद बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और आलोक तथा सौरभ भाई अपने कामकाज के बारे में एकदूसरे को बताने लगे.

थोड़ी देर उन के साथ बैठने के बाद जब मैं दोपहर के भोजन की तैयारी करने रसोई में गई तो मेरे मना करने के बावजूद संगीता भाभी काम में हाथ बंटाने आ गईं. सधे हाथों से सब्जी काटती हुई वह सिंगापुर में बिताए दिनों के बारे में बताती जा रही थीं. उन्होंने साफ शब्दों में स्वीकारा कि अगर सौरभ भाई जैसा पति और मेरी जैसी ननद उन्हें नहीं मिलती तो शायद वह कभी ठीक नहीं हो पातीं. भाभी को इस रूप में देख कर मेरा अपराधबोध स्वत: ही दूर हो गया.

दोपहर के भोजन के बाद भाभी ने कुछ देर लेटना चाहा. आलोक अपने आफिस के कुछ पेंडिंग काम निबटाने चले गए. बच्चे टीवी पर स्पाइडरमैन कार्टून फिल्म देखने में खो गए तो मुझे सौरभ भाई से एकांत में बातें करने का मौका मिल गया.

बहुतेरे सवाल मेरे मानसपटल पर उमड़घुमड़ रहे थे जिन का जवाब सिर्फ सौरभ भाई ही दे सकते थे. आराम से सोफे  पर पीठ टिका कर बैठती हुई मैं बोली, ‘‘अब मुझे सब कुछ जल्दी बताइए कि मेरी शादी के बाद क्या हुआ. मैं सब कुछ जानने को बेताब हूं,’’ मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रही थी.

मैं एक लड़की से शादी करना चाहता हूं पर उसकी उम्र 18 साल भी नहीं हुई है, क्या करूं?

सवाल

मैं एक लड़की से बहुत प्यार करता हूं. वह मेरे दिलोदिमाग पर छाई रहती है. हम दोनों शादी भी करना चाहते हैं, पर अभी उस की उम्र 18 साल भी नहीं हुई है जबकि मैं 21 साल का हो चुका हूं. मुझे डर है कि उस के मांबाप उस की शादी कहीं ओर न तय कर दें. सही सलाह दें?

जवाब

अभी आप दोनों की ही उम्र शादी की नहीं है. आप का डर अपनी जगह ठीक है लेकिन मुनासिब वक्त का इंतजार तो आप को करना ही पड़ेगा. हमेशा अपनी गर्लफ्रेंड के खयालों में डूबे रहने के बजाय कैरियर और पढ़ाई पर ध्यान दें. आप कुछ बन कर दिखाएंगे तो लड़की के मांबाप उस का हाथ आप को देने में हिचकिचाएंगे नहीं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

योगी सरकार 2.0 ने अपने पहले बजट में महिलाओं और बेटियों को दी प्राथमिकता

योगी आदित्‍यनाथ सरकार 2.0 का बजट विधानसभा में गुरूवार को पेश किया गया. वित्‍त मंत्री सुरेश खन्‍ना ने अब तक का सबसे बड़ा और पेपरलेस बजट पेश किया. यह बजट प्रदेश की महिलाओं, बेटियों और बच्‍चों के लिए बेहद खास है. प्रदेश की महिलाओं और बेटियों के उत्‍थान के लिए योगी सरकार ने साल 2017 से ही जमीनी स्‍तर पर योजनाओं को लागू कर सीधे तौर पर उनको लाभ पहुंचाने का काम किया. ऐसे में एक बार फिर से सरकार बनने के बाद योगी सरकार ने अपने पहले बजट में महिलाओं और बेटियों को प्राथमिकता दी है. बजट में इस बार महिलाओं व बेटियों की सुरक्षा, रोजगार, शिक्षा, स्‍वावलंबन पर जोर दिया है. जिसके तहत लखनऊ, गोरखपुर और बदायूं में 03 महिला पीएसी बटालियन का गठन किया जा रहा है. बजट में महिला सामर्थ्य योजना के लिए 72 करोड़ 50 लाख रूपये की धनराशि प्रस्तावित की गई है. इस योजना के तहत राज्य की महिलाओं को रोजगार के लिए प्रेरित किया जाएगा. इससे महिलाओ में उत्साह बढ़ेगा और वह सशक्त और आत्मनिर्भर रहेंगी.

बजट में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ

कार्यक्रम के तहत यूपीएसईई-2018 की 100 टॉपर छात्राओं को लैपटॉप और 100 टॉपर एससी व एसटी छात्राओं को लैपटॉप का वितरण किया जाएगा. प्रदेश में चल रहे वृहद मिशन शक्ति अभियान के लिए 20 करोड़ रूपये की धनराशि प्रस्तावित की गई है. इसके साथ ही मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना के तहत पात्र बालिकाओं को 06 विभिन्न श्रेणियों में 15000 रूपये की सहायता पीएफएमएस के जरिए से प्रदान की जा रही है. इस वित्तीय वर्ष 2022-2023 के बजट में योजना हेतु 1200 करोड़ रूपये की व्यवस्था प्रस्तावित की गई है. पुष्टाहार कार्यक्रम के तहत समन्वित बाल विकास योजना के तहत राज्य सरकार द्वारा दिए जाने वाले पोषाहार के लिए 1675 करोड़ 29 लाख रूपये की व्यवस्था प्रस्तावित की गई है.

योगी सरकार का बच्चों के मुद्दों पर विशेष ध्यान

उत्तर प्रदेश सरकार ने बच्चों के मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया है. इसके ही परिणाम है कि पिछले कुछ वर्षों में एक ओर शिशु मृत्यु दर में तेजी से गिरावट आई है वहीं दूसरी ओर दस्तक कार्यक्रम के परिणामस्वरूप एईएस व जेई से प्रभावित सभी क्षेत्रों में बच्चों की मृत्यु में बड़ी कमी दर्ज की गई है. योगी सरकार के इस पहले बजट में बाल कल्याण पर विशेष ध्‍यान दिया गया है. जिसके तहत कुपोषण पुनर्वास केन्द्रों को जिलों से ब्लॉक तक ले जाने के लिए बजटीय प्रावधान किया गया है. उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना के तहत पात्र बच्चों को 4000 रूपए प्रतिमाह की आर्थिक सहायता दी जाएगी. उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना (सामान्य) के तहत पात्र लाभार्थियों को 2500 रूपये प्रतिमाह की आर्थिक सहायता स्‍वीकृत है. इसके साथ ही ऑपरेशन विद्यालय कायाकल्प कार्यक्रम के तहत सरकारी स्कूलों में बच्चों के नामांकन में वृद्धि की जाएगी.

करण मेहरा के आरोपों के बीच निशा रावल ने तोड़ी चुप्पी, कही ये बात

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस निशा रावल (Nisha Rawal) अपने पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में छायी हुई हैं. करण मेहरा ( K ने कुछ दिन पहले ही निशा रावल पर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का आरोप लगाया था. इस आरोप के बाद कुछ लोगों ने निशा का सपोर्ट किया तो वहीं कुछ लोगों ने उन्हें दोषी ठहराया. अब एक्ट्रेस ने इस मामले पर चुप्पी तोड़ी है.

एक इंटरव्यू के दौरान निशा रावल ने पति से अलग होने के बाद बेटे के परवरिश को लेकर बात की. रिपोर्ट के मुताबिक एक्ट्रेस ने कहा, “अब मैं सिंगल पैरेंट हूं. मैं हमेशा कहती हूं कि एक बेबी के लिए दो लोगों की जरूरत होती है और उसे पालने के लिए भी दो लोगों का होना जरूरी है.

निशा रावल ने आगे कहा कि कई बार आप जिंदगी के ऐसे स्टेज पर पहुंच जाते हैं, जहां आपको चुनौतियों का सामना पड़ता है. आप सिंगल पैरेंट बनते हैं. मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है, क्योंकि मैं अपने बच्चे की अकेले परवरिश पर खुद को बहुत अलग मानती हूं.

निशा रावल ने ये भी बताया कि उन्हें इस बात पर भी दुख होता है कि उन्हें बेटे को छोड़कर काम पर जाना पड़ता है. एक्ट्रेस ने ये भी कहा कि मैंने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ सीखा है. हमें अपनी जिंदगी में सकारात्मक रहना और इस चीज को स्वीकार करना सीखना चाहिए कि हमारे पास कोई और ऑप्शन नहीं है.

वर्कफ्रंट की बात करे तो निशा रावल कंगना रनौत के शो ‘लॉकअप’ में नजर आई थीं. इसके अलावा एक्ट्रेस ‘शादी मुबारक’, ‘मैं लक्ष्मी तेरे अंगने की’ और ‘केसर’ में भी नजर आ चुकी हैं.

पंजाब: मंत्री की बर्खास्तगी, मान का मानक

पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान दे अपने ही मंत्री डॉ विजय सिंगला को सिर्फ 1% रिश्वतखोरी मामले में बर्खास्त कर दिया और अब डॉक्टर विजय सिंगला जेल में है. यह मामला संभवतः पंजाब प्रदेश का पहला ऐसा मामला है जिसमें सीधे एक मंत्री की बर्खास्तगी हो गई है और देश भर में चर्चा का विषय बन गया है. लोगों को यह विश्वास नहीं हो रहा है कि कोई मुख्यमंत्री अपने ही केबिनेट मंत्री को भ्रष्टाचार रिश्वत मांगने के जुर्म में बर्खास्त कर देगा वह भी सिर्फ एक ऑडियो क्लिप के आधार पर.

जी हां! मगर ऐसा पंजाब में हो गया है जहां अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी की सरकार है और जिसकी प्रमुख स्वयं अरविंद केजरीवाल हैं उन्होंने भी सन 2015 में ऐसे ही एक मामले में बर्खास्तगी की थी और चर्चा का विषय बन गए थे.

दरअसल,स्वास्थ्य मंत्री डॉ विजय सिंगला के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की जानकारी स्वयं मुख्यमंत्री भगवंत मान ने वीडियो जारी कर देश को  दी. मुख्यमंत्री ने कहा कि मेरी सरकार घूसखोरी बर्दाश्त नहीं करेगी. चाहे वह कोई भी हो, कितना भी रसूखदार क्यों न हो, उसे ऐसी अनियमितताओं की इजाजत नहीं दी जा सकती. मुख्यमंत्री मान ने स्पष्ट किया कि उन्होंने डॉ. सिंगला को अपनी कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया है और पुलिस ने केस दर्ज उन्हें गिरफ्तार कर लिया है.

उन्होंने कहा कि यह मामला सिर्फ उनके ही ध्यान में था और वह इसे आसानी से दबा या टाल सकते थे उन्होंने पंजाब को भ्रष्टाचार मुक्त करने का प्रण लिया है और इस दिशा में यह ऐतिहासिक कदम है. मुख्यमंत्री ने कहा कि लोगों ने उन्हें पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था के लिए चुना है और हमारा फर्ज बनता है कि हर एक पंजाबी भाई की इच्छाओं पर खरा उतरें.

कथनी और करनी में  अंतर

वस्तुतः सच यह है कि हमारे देश में नेता खादी पहनकर और महात्मा गांधी की ओर देखते हुए सच्चाई ईमानदारी और देश प्रेम की कसमें खाते हैं. मगर भ्रष्टाचार के मामले में नित्य नये रिकॉर्ड बना रहे हैं.

भ्रष्टाचार की इंतिहा हो चुकी है और मंत्री अधिकारी 20 से 30% तक रिश्वतखोरी कर रहे हैं जो कि देश भर में चर्चा का विषय है मगर सैंया भए कोतवाल की तर्ज पर देशभर में भ्रष्टाचार जारी है. इसे रोकने के लिए कोई प्रयास करता हुआ दिखाई नहीं देता, ऐसे में पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा अपने ही मंत्री पर बर्खास्तगी की तलवार चलाने का यह मामला यह बताता है कि आज देश में ईमानदारी सच्चाई कीआज और भी  ज्यादा दरकार है.

चुनाव और संपूर्ण व्यवस्था भ्रष्टतम हो चुके हैं मंत्री और मुख्यमंत्री करोड़ों अरबों रुपए की काली कमाई कर रहे हैं और उसे चुनाव जीतने और अपनी निजी संपत्ति बनाने में लगे रहते हैं ऐसे में देश का भविष्य क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में है .

ऐसे हुआ मंत्री का स्टिंग ऑपरेशन

पंजाब में बर्खास्त किए गए स्वास्थ्य मंत्री विजय सिंगला का ‘स्टिंग आपरेशन’ एक अधीक्षण अभियंता राजिंदर सिंह ने किया जो ‘पंजाब हैल्थ सिस्टम कार्पोरेशन’ में नियुक्ति  हैं. भगवंत मान के भ्रष्टाचार विरोधी संदेश के बाद उन्होंने साहस करके पुलिस में  शिकायत दी , एक महीना पहले वह अपने कार्यालय में थे जब सिंगला के विशेष कार्य अधिकारी प्रदीप कुमार ने उन्हें पंजाब भवन  में बुलाया . वहां मंत्री डा. सिंगला ने सिंह से कहा – कि जो भी ओएसडी कह रहे हैं, उसे ध्यान से सुनो और समझो कि यह सब मंत्री कह रहे हैं. उसके बाद अधीक्षण अभियंता को बताया गया कि उन्होंने कई करोड़ के निर्माण ठेके आबंटित किए हैं. फिर उनसे  साफ साफ कमीशन की मांग की गई.

मंत्री सिंगला पर दर्ज प्राथमिकी रपट के मुताबिक, ‘मैंने उन्हें कहा कि मैं ऐसा कर पाने में असमर्थ हूं, वह मुझे मेरे गृह विभाग में वापिस भेज सकते हैं. उसके बाद 8, 10, 12, 13 और 23 मई को लगातार वे मेरे वाट्सऐप नंबर पर फोन करते रहे. वे रकम मांगते रहे और रकम नहीं देने की सूरत में मेरा करियर बर्बाद कर देने की धमकी देते रहे. मैंने उनसे निवेदन किया मैं 30 नवंबर को रिटायर होने वाला हूं.उसके बाद 20 मई को उन्होंने मुझे कहा कि मैं उन्हें एकमुश्त 10 लाख रुपए दे दूं और उसके बाद मुझे उन लोगों को सभी कामों के बदले एक फीसद कमीशन देना होगा. मैने उन्हें बताया कि मेरे बैंक खाते में केवल 2.5 लाख रुपए पड़े हैं और 3 लाख रुपए और हैं. इस तरह मैं उन्हें 5 लाख रुपए देकर उनसे पिंड छुड़ा लेना चाहता था.फिर 23 मई को मेरे पास प्रदीप कुमार का फोन आया जिसमें उन्होंने मुझे सिविल सचिवालय आने को कहा। मैं वहां गया और उन्हें 5 लाख रुपए की पेशकश की और पूछा कि मैं यह रकम उन्हें कहां दू.’ और सिंह ने मुख्यमंत्री  के भ्रष्टाचार विरोधी संदेश को याद कर कुछ कार्रवाई की अपेक्षा में यह बातचीत रिकार्ड कर ली थी.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अगर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और आप पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने यह कदम साफ स्वच्छ मन से राजनीति को स्वच्छ बनाने के लिए उठाया है तो सराहनीय है इसके साथ ही उन्होंने भाजपा और कांग्रेस को एक तरह से चुनौती दे दी है जो भ्रष्टाचार के मामले में आमतौर पर मौन रहते हैं.

GHKKPM की पाखी बनी अंगूरी भाभी, वायरल हुआ फनी Video

‘गुम है किसी के प्यार में’ की पाखी यानी ऐश्वर्या शर्मा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह अक्सर फैंस के साथ फोटोज और वीडियोज शेयर करती रहती हैं. फैंस को उनके फोटोज और वीडियोज का बेसब्री से इंतजार रहता है. अब पाखी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह अंगूरी भाभी बन कर फैंस को एंटरटेन कर रही हैं. आइए बताते हैं इस वीडियो के बारे में.

हाल ही में पाखी का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह अंगूरी भाभी बनी हुई है. पाखी का अंदाज देख फैंस दंग रह गए हैं. इंस्टाग्राम पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें ऐश्वर्या शर्मा अंगूरी भाभी की तरह बोल रही हैं.

इस रील में पाखी टीवी के शो भाबीजी घर पर हैं की अंगूरी भाभी के अंदाज में नजर आ रही हैं. वह अंगूरी भाभी के किरदार को निभाने वाली शिल्पा शिंदे को कॉपी कर रही हैं. वीडियो में मनमोहन तिवारी और विभूति नारायण मिश्रा की भी आवाज आती है. इसके बाद वह सही पकड़े हैं कहती हुई नजर आ रही हैं.

सोशल मीडिया पर इस वीडियो को खूब पसंद किया जा रहा है. फैंस को पाखी का ये अंदाज काफी पसंद आ रहा है. फैंस मजेदार कमेंट्स कर रहे हैं. ऐश्वर्या शर्मा के इस वीडियो को 77 हजार से ज्यादा व्यूज लाइक मिल चुके हैं. इस वीडियो पर ऐश्वर्या के पति नील भट्ट ने भी कमेंट किया है.

बता दें कि गुम है किसी के प्यार में पाखी का किरदार ऐश्वर्या शर्मा निभाती हैं. ऐश्वर्या को इंस्टाग्राम पर 1.3 मिलियन यूजर्स फॉलो करते हैं.

बुलडोजर शासन शैली

दिल्ली ही नहीं देश के कर्ई शहरों में बुलडोजर आतंक के जरिए सरकारी जमीन, सडक़ों, पटरियों पर बने मकानों दुकानों, खोखो को हटाया जा रहा है. इस के सत्ता में बैठे हुए लोगों को बड़े फायदे हैं. पहली बात तो यह कि शोर मचाया जाता है कि यह मुसलिम इलाकों में ज्यादा किया जा रहा है जहां बुलडोजर का खौफ दिखा कर समझाया जा रहा है कि ङ्क्षहदुस्तान में रहना है तो हक न मांगों, दया पर रहो.

दूसरा, दलितों और गरीबों के घर उखाड़ कर उन्हें मजबूर किया जा रहा है कि वे या तो गांव चले जाए जहां सस्ते में काम करें या शहरों में ऊंची जमात के ङ्क्षहदू घरों और दुकानों में सस्ते में काम करे.

तीसरे, पटरियों पर दुकानों जो सस्ते में सामान बेच लेती थीं, उन के न रहने पर पक्की दुकानों के ऊंची जाति वाले मालिकों को मुनाफा बढ़ जाएगा. लोगों को उन्हीं से सामान खरीदना पड़ेगा.

चौथा, सब से बड़ा फायदा है कि देश में पुलिस राज कायम हो चुका है जो मंदिरों का गुणगान करने वाले पौराणिकवादी चलाते हैं, यह सब को पता चल जाएगा.

इस सारे चक्कर में किसी मंदिर को नहीं गिराया जाएगा ने मंदिर के चारों और बनी वीसियों पक्कीकच्ची दुकानों की क्योंकि मंदिर पर टिकी ङ्क्षजदगी के लिए यह जरूरी है. आज सत्ता में सब से बड़ा फायदा मंदिर मालिकों को हो रहा है, जो पहले साइकिल पर चलते थे अब स्कोॢपयों में घूमते है, जहां एक कमरे का मंदिर होता था वहां 20 कमरों का आश्रम है जो हर रोज बढ़ रहा है. बलडोजर आतंक इस बारे में पूरा साथ दे रहा है.

सडक़ पर बाजार लगाना वैसे बिल्कुल गलत है पर सच बात यह है कि दुनिया का कोर्ईदेश नहीं होगा जिस के शहर में शहर में सडक़ पर व्यापार नहीं होता हो. यह शहरी जीवन का हिस्सा है. खेत, जंगल, छोटे कारखाने से सामान बच कर लाने वाला शहर में न दुकान खोल सकता और न ही जरूरी है कि वह अपना थोड़ा सा बनाया गया सामान किसी दुकानदार को बेचे जिस की शैल्फों में वह खो सा जाए.

हाथ से बनी चीजें, सैंकड हैंड यानि, बे ब्रांड की चीजें सडक़ों और पटरियों पर ही बिक सकती है चाहे इस चक्कर में पैदल चलने वालों की सडक़ें पटरियां गायब हो जाए. सडक़ व पटरी पर कब्जा आम शहरी के हक पर कब्जा है पर शहर इन के बिना ङ्क्षजदा नहीं रह सकते. इसीलिए अमीर देश भी सडक़ किनारे के दुकानों को सहते ही नहीं, उन को खुली छूट भी देते हैं क्योंकि राह चलते शहरी के लिए यह खरीदारी एक सुविधा है.

बुलडोजर शासन शैली एक तरह की पुरानी पौराणिक शासन शैली है जिस में जिस से नाराज हों, जिस ने शास्त्रों के अनुसार कम नहीं किया हो, जो शत्रु लगे उसे तुरंत मार डालो. न पूछताछ करो, न सफाई का मौका दो. राम ने शंबूक को मारा बिना पूछे, राम ने बाली को मारा बिना उस का पक्ष जाने, राम ने सीता को महल से निकाला बिना उस की सफाई लिए, द्रोण ने एवलण्य का अंगूठा कटवाया बिना किसी वजह से. ये सब शासकों की निगाहों में सडक़ पर बैठे लोग थे, जिन के कोई हक नहीं है.

संविधान ने वोट का हक दिया है और लगातार कोशिश हो रही है कि इस हक को कमजोर किया जाए, बुलडोजर से परेशान लोगों को घर बदलना पड़ेगा और उन की बांट कर जाएगी. यह भी एक फायदा है.

जनता आज इतनी डर गर्ई और अदालतें खुद इतनी नकारा हो गई हैं कि जनता अब हक मांगने भी नहीं जाती. रूस ने बिना वजह से यूक्रेन पर हमला किया था और यहां हर राज्य में, हर शहर में रूसी हमले की तरह बुलडोजर टैंकों की शक्ल में चल रहे हैं. पर वहां से व्लोदोमीर जेलेंस्की निकल आए, कौन जानता है.

भारत भूमि युगे युगे: हृदय नहीं मस्तिष्क परिवर्तन

जिसे राम अच्छे लगने लगे, नरेंद्र मोदी शक्तिमान दिखने लगे, भाजपा दमदार पार्टी लगने लगे, कल को उसे वर्णव्यवस्था की खूबियां भी नजर आने लगेंगी, दलितपिछड़ों के शोषण को वह दैवीय व्यवस्था मानने लगेगा, वह साधुसंतोंशंकराचार्यों के पैरों की धूल भी चंदन समझ माथे से लगाएगा. वामपंथी समझे जाने वाले गुजरात के युवा नेता हार्दिक पटेल की मनोस्थिति बदली है तो इस से कांग्रेस को कोई नुकसान नहीं होने वाला क्योंकि हार्दिक ने खुद को ऐक्सिडैंटल नेता साबित कर दिया है.

सत्ता की हवस बड़ी अजीब होती है. त्रेता युग में अंगद भी उन्हीं राम की गोद में जा बैठा था जिन्होंने उस के विद्वान और साहसी पिता बालि की हत्या छल से की थी. तो आज मौकापरस्त हार्दिक का क्या दोष क्योंकि कमजोर और लालची लोग लड़ने से पहले ही हथियार डाल देते हैं.

वो क्या जाने पीरपराई…

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में लातूर से भाजपा को रिकौर्ड वोटों से जिताने वाले सांसद सुधाकर श्रंगारे का दर्द आखिर छलक ही गया कि उन के दलित होने के चलते उन्हें प्रशासन सरकारी कार्यक्रमों में आमंत्रित नहीं करता. पेशे से ठेकेदार सुधाकर को तय है यह भी मालूम होगा कि शादी और तेरहवीं में भी दलितों के भोजन के अलग पंडाल लगते हैं जिस से कि दलितों को हीनता और सवर्णों को श्रेष्ठता का एहसास होता रहे.

जवाब तो खुद सुधाकर को इस सवाल का देना चाहिए कि वे उस कार्यक्रम में थे ही क्यों जिस में मूर्तिवाद के धुरविरोधी भीमराव अंबेडकर की 72 फुट ऊंची मूर्ति का अनावरण हो रहा था.

दलितों का अपमान, भेदभाव, अनदेखी और तिरस्कार हमारे धार्मिक और सामाजिक संस्कार हैं. देश में कहीं न कहीं रोज दलित लतियाया जाता है. इस पर सुधाकर कभी कुछ नहीं बोले लेकिन खुद पर गुजरी तो तिलमिला उठे. अब अगर मंच से बोलने की हिम्मत कर ही ली है तो जमीनी तौर पर कुछ करने की भी उन्हें पहल करनी चाहिए.

तो नीतीश के बाद सही

देश के गृहमंत्री अमित शाह ने अपने बिहार दौरे में ज्ञान की एक बात यह कही थी कि जल्द ही देशभर में यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी. इस पर घबराए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बजरिए अपने प्रिय शिष्य उपेंद्र कुशवाहा के श्री मुख से यह कहलवाया कि अगर ऐसा हुआ तो जदयू इस का विरोध करेगी और नीतीश के मुख्यमंत्री रहते तो बिहार में यूसीसी लागू नहीं होगी.

इस से साफ हो गया कि जदयू और भाजपा में कभी भी डाइवोर्स हो सकता है. वैसे भी नीतीश की पलटीमार फितरत को देखते अंदाजा लगाया जा रहा है कि अब वे फिर पलटी मारने की तैयारी कर रहे हैं.

नीतीश की दिक्कत यह है कि बिहार के लोगों के सिर से उन का जादू उतर रहा है. हालत भाजपा की भी खस्ता है जो अभी बोचहां विधानसभा उपचुनाव का जख्म सहला रही है. यह हालत या समीकरण लालूपुत्र तेजस्वी के हक में है. अब देखना दिलचस्प होगा कि वे इस हालत को कितना भुना पाते हैं.

ममता का जादू जीते बिहारी बाबू

हिंदीभाषी राज्यों की तो 4-6 सीटों के लिए कहा जाता है कि यहां से तो भाजपा का पुतला भी जीत जाएगा लेकिन पश्चिम बंगाल की सभी लोकसभा सीटों के बारे में दिख रहा है कि टीएमसी जिसे खड़ा कर दे, उस की जीत तय है. आसनसोल लोकसभा सीट से अभिनेता शत्रुध्न सिन्हा की जीत तो यही बताती है कि भाजपा को अब बंगाल में वक्त और पैसा जाया नहीं करना चाहिए. यहां के लोग मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को किसी भी हद से ज्यादा चाहते हैं या यों कह लें कि भाजपा की भड़काऊ और बांटने वाली सियासत से नफरत करते हैं.

मुद्दत से बेगारी काट रहे बिहारी बाबू अब बंगाली बाबू हो गए हैं. अब उन के पास मौका है कि लोकसभा में भाजपा को घेरते अपनी भड़ास निकालें और 2024 की तैयारी करें. इतना तो उन्हें भी समझ आ गया होगा कि लोकप्रियता दरअसल, होती क्या है.

अंत भला तो सब भला- भाग 2: ग्रीष्मा की जिंदगी में कैसे मची हलचल

‘‘हां बेटा सच में तू आज अच्छी लग रही है,’’ सासूमां ने भी कहा तो उसे सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ और फिर सोचने लगी कि क्या सारे जमाने को विनय सर की हवा लग गई है जो सब को वह सुंदर लग रही है.

सासूमां की बात सुन कर वह दूसरी बार चौंकी और अंदर जा कर एक बार फिर आईने में खुद को देखा कि कहीं चेहरे पर तो ऐसा कुछ नहीं है जिस से सब को वह सुंदर नजर आ रही है पर अब न जाने क्यों सुबह स्कूल जाते समय अच्छे से तैयार होने का उस का मन करता. विनय सर और उन की बातों से उस के सुसुप्त मन में प्रेमरस की लहरें हिलोरे लेने लगी थीं.

विवाह के बाद सजनेसंवरने और प्रेमरस में डूबे रहने की जो भावनाएं रवींद्र के शुष्क व्यवहार के कारण कभी जन्म ही नहीं ले पाई उन के अंकुर अब फूटने लगे थे. इधर वह नोटिस कर रही थी कि विनय सर भी किसी न किसी बहाने से उसे लगभग रोज अपने कैबिन में बुला ही लेते.

एक दिन जब ग्रीष्मा एक छात्र के सिलसिले में विनय सर से मिलने गई तो बोली, ‘‘सर, यह बच्चा पिछले माह से स्कूल नहीं आ रहा है?

क्या करूं?’’

की समस्या मैं हल कर दूंगा. उस के घर का फोन नंबर दीजिए पर यह बताइए आप हमेशा इतनी गुमसुम सी क्यों रहती हैं… जिंदगी एक बार मिलती है उसे खुश हो कर जीएं. जो हो गया है उसे भूल जाइए और आगे बढि़ए. चलिए आज शाम को मेरे साथ कौफी पीजिए.

‘‘मैं… नहींनहीं सर, ये सब ठीक नहीं है… मैं कैसे जा पाऊंगी? आप ही चले जाइएगा.’’

ग्रीष्मा को तो कुछ जवाब ही नहीं सूझ रहा था… जो मन में आया कह कर बाहर जाने के लिए कैबिन का दरवाजा खोला ही था कि विनय सर की आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘मैं बगल वाले इंडियन कौफी हाउस में शाम 7 बजे आप का इंतजार करूंगा. आना न आना आप की मरजी?’’

इस अनापेक्षित प्रस्ताव से उस की सांसें तेजतेज चलने लगीं. वह तो अच्छा था कि

गेम्स का पीरियड होने के कारण बच्चे खेलने गए थे वरना उस की हालत देख कर बच्चे क्या सोचते? बारबार विनय सर के शब्द उस के कानों में गूंज रहे थे. दूसरी ओर मन में अंतर्द्वंद भी था कि यह उसे क्या हो रहा है. जो भावना कभी रवींद्र के लिए भी नहीं जागी वह विनय सर के लिए… विनय सर शाम को इंतजार करेंगे. जाऊं या न जाऊं… वह इसी ऊहापोह में थी कि छुट्टी की घंटी बज गई.

घर आ कर सब को चाय बना कर पिलाई. घड़ी देखी तो 6 बज रहे थे. फिर वह सोचने लगी कि कैसे जाऊं…,मांबाबूजी से क्या कहूं…पर सर…ग्रीष्मा को सोच में बैठा देख कर ससुर बोले, ‘‘क्या बात है बहू क्या सोच रही है?’’

वह हड़बड़ा गई जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. फिर कुछ संयत हो कर बोली. ‘‘कुछ नहीं पिताजी एक सहेली के बेटे का जन्मदिन है. वहां जाना था सो सोच रही थी कि जाऊं या नहीं, क्योंकि लौटतेलौटते देर हो जाएगी.’’

‘‘जा बेटा तेरा भी थोड़ा मन बहलेगा…बस, जल्दी आने की कोशिश करना.’’

‘‘ठीक है, मैं जल्दी आ जाऊंगी,’’ कह कर उस ने अपना पर्स उठाया और फिर स्कूटी स्टार्ट कर चल दी. स्कूटी चलातेचलाते उसे खुद पर हंसी आने लगी कि कैसे कुंआरी लड़कियों की तरह वह भाग ली. विनय सर का जनून उस पर इस कदर हावी था कि आज पहली बार उस ने कितनी सफाई से ससुर से झूठ बोल दिया.

जैसे ही ग्रीष्मा ने कौफी हाउस में प्रवेश किया विनय सर सामने एक टेबल पर बैठे इंतजार करते मिले. उसे देखते ही बोले, ‘‘मुझे पता था कि आप जरूर आएंगी.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘बस पता था,’’ कुछ रोमांटिक अंदाज में विनय सर बोले, ‘‘बताइए क्या लेंगी कोल्ड या हौट.’’

‘‘हौट ही ठीक रहेगा,’’ उस ने सकुचाते हुए कहा.

‘‘आप बिलकुल आराम से बैठिए यहां. भूल जाइए कि मैं आप का बौस हूं. यहां हम सिर्फ 2 इंसान हैं. वैसे आप आज भी बहुत सुंदर लग रही. आप इतनी खूबसूरत हैं, योग्य हैं और सब से बड़ी बात आप अपने पति के मातापिता को अपने मातापिता सा मान देती हैं. जो हो गया उसे भूल जाइए और खुल कर बिंदास हो कर जीना सीखिए.’’

‘‘सर आप को पता नहीं है मेरे पति… और मेरा अतीत…’’ उस ने अपनी ओर से सफाई देनी चाही.

‘‘ग्रीष्मा प्रथम तो तुम्हारा अतीत मुझे पता है. स्टाफ ने मुझे सब बताया है. दूसरे मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता… कब तक आप अतीत को अपने से चिपका कर बैठी रहेंगी. अतीत की कड़वी यादों के साए से अपने वर्तमान को क्यों बिगाड़ रही हैं? जब वर्तमान में प्रसन्न रहेंगी तभी तो आप अपने भविष्य को भी बेहतर बना पाएंगी… मेरी बातों पर विचार करिए और अपने जीने के अंदाज को थोड़ा बदलने की कोशिश करिए.’’

विनय सर ने पहली बार उसे उस के नाम से पुकारा था. वह समझ नहीं पा रही थी कि सर उसे क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं.

अचानक ग्रीष्मा ने घड़ी पर नजर डाली.

8 बज रहे थे. वह एकदम उठ गई और बोली, ‘‘सर, अब मुझे चलना होगा. मांबाबूजी इंतजार कर रहे होंगे,’’ कह कर वह कौफी हाउस से बाहर आ स्कूटी स्टार्ट कर घर चल दी.

घर आ कर ग्रीष्मा सीधे अपने कमरे में गई और खुद को फिर आईने में देख सोचने लगी कि क्या हो रहा है उसे? कहीं उसे प्यार तो नहीं हो गया… पर नहीं वह एक विधवा है… मांबाबूजी और कुणाल की जिम्मेदारी है उस पर…वह ये सब क्यों भूल गई…सोचतेसोचते उस का सिर दर्द करने लगा तो कपड़े बदल कर सो गई.

अगले दिन जैसे ही स्कूल पहुंची तो विनय सर सामने ही मिल गए. उसे देखते ही बोले, ‘‘मैम, फ्री हो कर मेरे कैबिन में आइएगा, आप से कुछ काम है.’’

‘‘जी सर,’’ कह कर वह तेज कदमों से स्टाफरूम की ओर बढ़ गई.

जब वह सर के कैबिन में पहुंची तो विनय सर बोले, ‘‘मैडम कल शिक्षा विभाग की एक मीटिंग है, जिस में आप को मेरे साथ चलना होगा.’’

‘‘सर मैं… मैं तो बहुत जूनियर हूं… और टीचर्स…’’ न जाने क्यों वह सर के साथ जाने से बचना चाहती थी.

‘‘यह तो मेरी इच्छा है कि मैं किसे ले जाऊं, आप को बस मेरे साथ चलना है.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर वह स्टाफरूम में आ गई और सोचने लगी कि यह सब क्या हो रहा है… कहीं विनय सर को मुझ से… मुझे विनय सर से… तभी फ्री टाइम समाप्त होने की घंटी बजी और वह अपनी कक्षा में आ गई. आज उस का मन बच्चों को पढ़ाने में भी नहीं लगा. दिलदिमाग पर सर का जादू जो छाया था.

अगले दिन मीटिंग से वापस आते समय विनय सर ने गाड़ी फिर कौफी हाउस के बाहर रोक दी. बोले, ‘‘चलिए कौफी पी कर चलते हैं.’’

उन का ऐसा जादू था कि ग्रीष्मा चाह कर भी मना न कर सकी.

कौफी पीतपीते विनय सर उस की आंखों में आंखें डाल कर बोले, ‘‘ग्रीष्मा, आप ने अपने भविष्य के बारे में कुछ सोचा है?’’

‘‘क्या मतलब सर… मैं कुछ समझी नहीं…’’ अचकचाते स्वर में समझ कर भी नासमझ बनते हुए उस ने कहा.

‘‘जो हो गया है उसे भूल कर नए सिरे से जिंदगी शुरू करने के बारे में सोचिए…मैं आप का हर कदम पर साथ देने को तैयार हूं. यदि आप को मेरा साथ पसंद हो तो…’’ सपाट स्वर में विनय सर ने अपनी बात ग्रीष्मा के सामने रख दी.

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