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वनराज से बदतमीजी करेगी पाखी, बरखा को धमकी देगा अनुज!

टीवी सीरियल अनुपमा में इन दिनों बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में नयी एंट्री से कहानी में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अनुपमा के घर से शाह परिवार बिना खाना खाये लौट जाता है. इससे अनुपमा काफी निराश होती है. शो के आने वाले एपिसोड में एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. आइए बताते हैं, शो के आने वाले एपिसोड के बारे में…

शो में आप देखेंगे कि पाखी वनराज से बदतमीजी करेगी. वह कहेगी कि उसे अपने पापा पर शर्म आती है वह अपनी मम्मी के घर में रहना चाहती है. पाखी वनराज को सुना देगी कि वह आधा दिन शाह हाउस और आधा दिन अपनी मां के बड़े घर में रहकर बिताएगी.

 

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समर और काव्या पाखी को समझाने की कोशिश करेंगे लेकिन बात और भी बढ़ जाएगी. वनराज अपना आपा खा बैठेगा और पाखी को जमकर खरी खोटी सुनाएगा. तो वहीं बा भी उसे सुनाएंगी.

 

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तो दूसरी तरफ काव्या और वनराज एक-दूसरे से प्यार से बात करेंगे.  वनराज भी काव्या के बदले-बदले अंदाज को देखकर खुश होगा और उसे शुक्रिया कहेगा.

 

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुज बरखा के कमरे में जाएगा और उसे समझाएगा कि अगर अनुपमा के साथ कुछ गलत हुआ तो वह बर्दाश्त नहीं कर पाएगा.

 

तो वहीं दूसरी तरफ बरखा चौखट के बाहर तुलसी का पेड़ देखेगी और उसे गुस्सा आएगा कि डेकॉर के साथ हुई छेड़खानी हुई है. लेकिन अंकुश उसे समझाएगा कि वह इस बात को लेकर ना लड़े.

सिमरिया मौब लिंचिंग: हिंदू न मानने की सजा

गौमांस बहाना है. असल मकसद आदिवासियों को डराना है ताकि वे खुद को कट्टर हिंदू मानने लगें. कट्टर हिंदूवादियों की यह जिद और कोशिश आजादी के बाद से ही मुहिम की शक्ल में परवान चढ़ने लगी थी. इस बैर की कहानी महज दो लफ्जों की है कि आदिवासी हिंदू हैं या नहीं.

‘‘घटना के दिन मैं अपने घर में सोया हुआ था. रात के कोई 2 बजे होंगे, गांव से मारोमारो की आवाजें आईं. मैं कुछ सोचसम?ा पाता, इस के पहले ही भीड़ मेरे घर में भी घुस आई और मु?ो मारने लगी. पहले कुछ थप्पड़ मारे, फिर घर के बाहर घसीट कर मारने लगे. वे

20-25 लोग थे जो लातघूंसों के अलावा डंडों से भी मार रहे थे. मेरे घर वालों ने मु?ो उन से बचाने की कोशिश की लेकिन वे नहीं रुके. भीड़ में शामिल लोग चिल्लाचिल्ला कर कह रहे थे कि हम बजरंग दल के आदमी हैं, तुम ने गाय की हत्या की है. जबकि, इस बारे में मु?ो कुछ मालूम ही नहीं था.

‘‘मेरे घर के ही बाहर वे लोग संपत और धनशा को भी ले आए थे जिन की पिटाई मु?ा से पहले की गई थी और मु?ा से ज्यादा भी हुई थी. वे लोग हमें पुलिस के हवाले करने ले जा रहे थे. तभी किसी गांव वाले ने कहा कि अगर थाने ले जाते रास्ते में इन्हें कुछ हो गया तो इस का जिम्मेदार कौन होगा. इस पर उन्हीं लोगों में से किसी ने पुलिस को फोन कर दिया. एकडेढ़ घंटे बाद पुलिस आई और हमें थाने ले जाने लगी.

‘‘वे लोग बारबार गौमांस रखने का इलजाम लगा रहे थे. यह आरोप सरासर ?ाठा है. अगर गौमांस होता तो वे मु?ो दिखाते. मु?ो नहीं पता गौमांस रखने का ?ाठा आरोप किस ने मु?ा पर लगाया. यह बजरंग दल वालों की ही कोई चाल लगती है. धनशा और संपत को इतना मारा गया था कि वे ठीक ढंग से गाड़ी में बैठ भी नहीं पा रहे थे. वे पहले ही अधमरे हो चुके थे. दोनों बादलपुरा पुलिस चौकी पर भी नहीं उतर पा रहे थे. वहां से उन्हें कुरई अस्पताल भेज दिया गया. सुबह कोई 8 बजे पता चला कि पहले धनशा और उस के 10 मिनट बाद संपत ने भी दम तोड़ दिया.’’

पेशे से मजदूर 28 साला बृजेश बट्टी बच गया तो इसे उस का समय भी कहा जा सकता है और यह भी कहा जा सकता है कि राक्षसों सा कहर बरपा रहे बजरंगी इतना थक चुके थे कि बृजेश को ज्यादा मारने का दम उन में नहीं बचा था और अहम बात यह कि दहशत फैलाने का उन का मकसद तो संपत और धनशा की धुनाई से ही पूरा हो गया था. बृजेश तो बेचारा बोनस में पिटा.

ये दोनों आदिवासी रास्ते में ही मर गए थे या पुलिस चौकी में मरे या फिर इलाज के दौरान मरे, इन बातों के अब कोई माने नहीं हैं क्योंकि वे आदिवासी थे जिन की जिंदगी और हैसियत हिंदुओं की नजर में मवेशी सरीखी ही होती है. फिर 2 अदिवासियों की मौतों पर हंगामा क्यों? मर गए तो मर गए. गाय के गोश्त की तस्करी करेंगे या खुद घर में पका कर खाएंगे तो उन के इस पाप की सजा मौत ही धार्मिक किताबों में लिखी है. मामला अदालत जाता तो भी उन्हें थोड़ीबहुत सजा होती जो बजरंगियों और श्रीराम सेना वालों को मंजूर नहीं थी. लिहाजा, उन्होंने 2 मई की रात सिमरिया पहुंच कर अपना इंसाफ कर दिया. इस भगवा अदालत के मुंशी, पेशकार, वकील और जज भी यही थे.

यह है घटना

महाकौशल इलाके के सिवनी जिले के गांव सिमरिया, जहां साजिश के तहत एक बड़ी वारदात को अंजाम दिया गया, में आदिवासियों की तादाद ज्यादा है. बृजेश की रिपोर्ट पर पुलिस ने पहले 3 और फिर 6 लोगों को गिरफ्तार किया. ये सभी सवर्ण हिंदू हैं जिन में से अधिकतर की गिनती पिछड़ी जातियों में होती है. इन फुरसतिए नौजवानों ने हिंदू धर्म की ठेकेदारी लेते गायों की हिफाजत का भी जिम्मा उठा रखा है.

सिमरिया से ले कर दिल्ली तक पिछड़े युवा हिंदू इन दिनों धरनेप्रदर्शनों और दंगों में हाथ धोते धर्म की ही रक्षा कर रहे हैं. सिवनी के बजरंगियों के सपने में शायद विष्णु आ कर बता गया था कि गांव सिमरिया में अमुक आदिवासियों ने गौमाता की हत्या कर उस का मांस निकाला है, इसलिए हे शूरवीरो, धर्म और गौ रक्षको, हथियार उठाओ और जाओ पापियों को दंड दो.

इस हुक्म की तामील आधी रात को किस बर्बर, नृशंस और हैवानियतभरे तरीके से हुई, यह शायद शंकर की कृपा से बच गए. बृजेश की बातों से उजागर होता है कि तीनों को मवेशियों की तरह धुना गया. जादू के जोर से इन्हें पता चल गया था कि दलितों और मुसलमानों के बाद ये जंगली गंवार आदिवासी भी गौमांस खाने लगे हैं और पैसों के लिए उस की तस्करी भी करने लगे हैं.

चूंकि ये भी हिंदू नहीं हैं, इसलिए गाय की अहमियत नहीं सम?ाते कि वह (गाय) वैतरणी पार लगाने वाली होती है. उस के शरीर में 33 करोड़ देवीदेवता रहते हैं और ये पापी उसे काट रहे हैं. अगर आज इन्हें नहीं रोका गया तो हिंदू धर्म खतरे में पड़ जाएगा और एक दिन खत्म भी हो जाएगा.

धनशा और संपत की मौत के बाद बजरंगी छू हो गए लेकिन सिवनी से भोपाल होते दिल्ली तक इतना हल्ला मच चुका था कि अब हत्यारों को खुलेआम घूमने देना जंगलराज या रामराज्य, कुछ भी कह लें, का खुला ऐलान होता जिस के लिए यह वक्त मुनासिब नहीं.

हां, हालत यही रहे और केंद्र व मध्य प्रदेश में भगवा सरकारें रहीं तो जरूर इन देवदूतों और गौरक्षकों को फूलमाला पहना कर स्वागत किया जाएगा और इन की जगहजगह शोभायात्राएं भी निकाली जाएंगी. मुमकिन है इन्हें सरकारी नौकरियों से नवाजा जाने लगे या फिर उद्योगधंधे, दुकान या कारोबार चलाने के लिए इन्हें सरकारी खजाने से पैसा दिया जाने लगे.

खैर, कहने को ही सही, राज संविधान का है और देश थोड़ाथोड़ा लोकतंत्र के मुताबिक चलता है, इसलिए शेर सिंह राठौर, अजय साहू, वेदांत चौहान, दीपक अवधिया, वसंत रघुवंशी, रघुनंदन रघुवंशी, अंशुल चौरसिया, रिंकू पाल और शिवराज रघुवंशी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया जहां उन की खातिर दामादों सरीखी ही हुई होगी.

मौका ताड़ते कांग्रेस ने हल्ला मचाया तो आदिवासी जाम लगाने लगे. इस से भाजपा सरकार की किरकिरी होने लगी और गुस्साए तमाम आदिवासी उस के खिलाफ लामबंद होने लगे तो सरकार ने मृतकों के परिजनों को 8.25-8.25 लाख रुपए की राहत राशि देने का ऐलान कर बजरंगियों के पाप का पश्चात्ताप कर डाला. भाजपा की जांच टीम सिमरिया पहुंची तो आदिवासियों ने उस की हायहाय की, जिस से घबराए भाजपाई उलटे पांव भोपाल लौट आए.

सियासत भी, मजहब भी

देश में ऐसा यानी सिमरिया जैसा हर कभी हर कहीं होता रहता है लेकिन बात आईगई हो जाती है क्योंकि मामला दलित आदिवासियों का होता है जिन की गिनती ही धर्म के लिहाज से जानवरों में होती है. सिमरिया की मौब लिंचिंग भी आईगई हो जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए जिस की जांच का जिम्मा एसआईटी को सौंप दिया गया है. यह एजेंसी वही जांच रिपोर्ट तैयार करती है जिस से भगवा गैंग की नाराजगी का सामना उसे न करना पड़े.

पुलिस कह रही है कि उस ने पीडि़तों के घर से 12 किलो गौमांस बरामद किया है तो बेचारे बृजेश का नपना जरूर तय दिख रहा है, जिस की शादी रीमा नाम की लड़की से डेढ़ महीने पहले ही हुई है. इस आदिवासी दुलहन की हथेलियों से अभी मेहंदी का रंग छूटा नहीं है. दरिंदगी पर उतारू बजरंगियों के सामने वह गिड़गिड़ाई थी कि मेरे पति को छोड़ दो, उस ने कुछ नहीं किया है. इस पर जवाब यह मिला था कि तू बीच में मत पड़, वरना तेरा और बुरा हाल होगा.  रीना उन की मंशा सम?ा गई, इसलिए चुप रहने में ही उस ने अपनी भलाई सम?ा.

रहे संपत और धनशा तो उन्हें उन के किए की सजा जिस्म से नापाक रूह को आजाद कर दी जा चुकी है. उन के बीवीबच्चे बिलखबिलख कर इमदाद के बजाय इंसाफ मांग रहे हैं. जब बजरंगी बृजेश को शहीद करने घर से बाहर ले जा रहे थे तब रीना की ?ाड़प उन से हुई थी.

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ लाख हल्ला मचाते रहें, उस का कोई असर शिवराज सरकार पर नहीं होता. सियासी तौर पर हालफिलहाल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जरूर दिक्कतों से घिर गए हैं जो 17 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आदिवासियों को तरहतरह से लुभाने में लगे थे.

मध्य प्रदेश में सत्ता उसी दल को मिलती है जिस की तरफ आदिवासी समुदाय ?ाक जाता है. राज्य में डेढ़ करोड़ से भी ज्यादा आदिवासी वोटर हैं. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में इन्होंने कांग्रेस का साथ दिया था, इसलिए वह सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी. आदिवासियों के लिए 230 में से 47 सीटें रिजर्व हैं. इन में से महज 16 पर ही भाजपा जीत पाई थी. बाकी 31 कांग्रेस के खाते में गई थीं. 2013 के चुनाव में आदिवासी वोटरों ने भाजपा पर भरोसा जताते उसे 31 सीटों पर जिताया था जिस से शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बन गए थे.लेकिन हालात ये रहे शिवराज सिंह के राज में दलितआदिवासियों पर जुल्मोसितम, जिन्हें कानून की जबान में अत्याचार और प्रताड़ना कहा जाता है, बेतहाशा बढ़े. खुद सरकारी आंकड़े इस की गवाही देते हैं. पिछले साल दिसंबर में राज्य सरकार ने माना था कि राज्य में अनुसूचित जाति और जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत 33 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे.

उग्र हिंदूवादी तेवरों वाले गृहमंत्री पंडित नरोत्तम मिश्रा ने एक तरह से मंजूर किया था कि मार्च 2020 में कांग्रेस से सत्ता छीनने के बाद इन तबकों पर हुए अत्याचारों में भारी इजाफा हुआ है. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के पेश किए आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 में 6,889 मामले इन तबकों पर अत्याचार के दर्ज किए गए थे जबकि 2019 में ऐसे दर्ज मामलों की तादाद 5,300 थी जबकि 2018 में 4,753 मामले दर्ज हुए थे. यानी भाजपा राज में इन में 30 फीसदी का इजाफा हुआ.

शिवराज सिंह चौहान आदिवासी अत्याचारों को ले कर कभी संजीदा नहीं रहे, जबकि इन इलाकों की हकीकत वे बेहतर जानते हैं कि कैसेकैसे आदिवासियों का आर्थिक और सामाजिक शोषण होता है और कौन लोग करते हैं. यह खामोशी शह ही साबित हुई जिस का नतीजा था सिमरिया मौब लिंचिंग, जिस में रोज कुआं खोद कर पानी पीने वाले 2 गरीब आदिवासी बेमौत मारे गए.

उन का गुनाह गौमांस कथित रूप से रखना नहीं था बल्कि उन का असल गुनाह खुद को हिंदू न मानना था. आदिवासी हिंदू नहीं हैं.

गौमांस तो लगता है बहाना था, मकसद आदिवासियों को डराना था कि खुद को हिंदू मानने लगो नहीं तो यों ही मारे जाते रहोगे और परेशान किए जाते रहोगे. कट्टर हिंदूवादियों की यह जिद और कोशिश आजादी के बाद से ही मुहिम की शक्ल में परवान चढ़ने लगी थी. इस बैर की कहानी महज इन दो लफ्जों की है कि आदिवासी हिंदू हैं या नहीं हैं.

जवाब दोटूक और बेहद साफ है कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं वे तो चूंकि देश में रहते हैं, इसलिए उन्हें सरकारी कागजों में जबरिया हिंदू बनना पड़ रहा है. संविधान के अनुच्छेद 366 (25) के तहत अनुसूचित जनजाति के लोग हिंदू माने गए थे.

संविधान तो उन्हें हिंदू करार देता है लेकिन हैरत की बात यह है कि हिंदू के लिए बने कानून उन पर लागू नहीं होते हैं. मसलन हिंदू विवाह अधिनयम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956, हिंदू दत्तकता और भरणपोषण अधिनियम 1956 की धारा 2 (2) और हिंदू वयस्कता और संरक्षता अधिनियम 1956 की धारा 3 (2) के मुताबिक आदिवासियों पर ऊपर बताए कानून लागू नहीं होते. सवाल बड़ा अजीब और दिलचस्प है कि आदिवासी संविधान के मुताबिक तो हिंदू हैं लेकिन कानूनन नहीं. इस खामी पर न तो कभी किसी का ध्यान गया और न ही किसी ने इसे हल करने के बारे में सोचा.

बारीकी से देखें तो क्या आदिवासियों का कोई धर्म ही नहीं है? वे शुरू से ही प्रकृति यानी कुदरत को मानते रहे हैं. जल, जंगल और जमीन से जज्बाती लगाव रखने वाले अदिवासी किसी देवीदेवता की पूजा नहीं करते हैं. वे हिंदुओं की तरह मूर्ति पूजने वाले भी नहीं हैं और न ही दूसरे कर्मकांडों को मानते हैं. आदिवासियों की शादीविवाह के रीतिरिवाज भी हिंदुओं से अलग हैं. वे हिंदुओं में पसरी वर्णव्यवस्था को भी नहीं मानते और न ही इस के दायरे में आते हैं. लेकिन एक साजिश के तहत उन्हें शुरू से ही शूद्रवर्ण का माना जाता रहा है.

आदिवासी न तो राम, कृष्ण और विष्णु, शंकर को मानते हैं और न ही हनुमान को जिन्हें वनवासी कहा जाता है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान विधानसभा चुनावप्रचार के दौरान हनुमान को शूद्र कहा था तो खासा बवंडर देशभर में मचा था. उन की मंशा ऊंची जाति वाले तमाम हिंदुओं की तरह यह जताने की थी कि आदिवासी गंवार, गुलाम और जाहिल हैं. मौजूदा दौर का सच भी यही है.

आदिवासियों के हिंदू न होने की एक बड़ी वजह यह भी कि वे न तो पितरों का श्राद्ध करते हैं और तीर्थयात्रा पर भी नहीं जाते. हिंदुओं से नजदीकियों के चलते इतना जरूर हुआ है कि वे अब तंत्रमंत्र और भूतप्रेत को मानने लगे हैं जो उन के लिए नुकसानदेह ही साबित हो रहा है. उन में भी ज्ञानियों, ओ?ाओं और गुनियों की फौज तैयार होने लगी है जो उन्हें तरहतरह के डर दिखा कर लूटतीखसोटती है.

सवर्णों ने कभी नहीं चाहा कि आदिवासी पढ़ेंलिखें, जागरूक बनें और सभ्य समाज का हिस्सा बनें. इसलिए हमेशा उन्हें लतियाया गया. अव्वल दर्जे के सीधे आदिवासी कभी अपने साथ हो रही जोरज्यादती का विरोध भी नहीं कर पाए. हालांकि उन का शुरू से ही मानना है कि वे देश के सब से पुराने और पहले नागरिक हैं, बाकी सब तो बाद में आए और उन्हें गुलाम सा बना लिया, उन की जमीनें छीन लीं, जंगलों पर हक जमा लिया और देखतेदेखते ही उन्हें अछूतों की जमात में शामिल कर दिया.

इसलिए परेशान हैं आदिवासी

हिंदुओं की इस मनमानी से आजिज आए आदिवासियों ने ईसाई बनना शुरू कर दिया तो हिंदूवादी संगठनों का माथा ठनका क्योंकि इस से हिंदुओं की तादाद कम हो रही थी और मुफ्त का गुलाम उन के हाथ से फिसल रहा था. ईसाई भी आदिवासियों का हित कहीं से नहीं कर पा रहे लेकिन ईसाई मिशनरियां उन्हें पढ़ाती हैं जिस से वे अपने हक सम?ाने लगे तो फसाद भी शुरू हो गए जो आएदिन आदिवासी बहुल इलाकों में दिखते भी रहते हैं.

हिंदूवादी उन की घरवापसी का

ड्रामा करते रहते हैं. इस बाबत गांवगांव जा कर आरएसएस, बजरंगदल और विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों के कार्यकर्ता घरघर जा कर त्रिशूल और हनुमान चालीसा जैसी किताबें बांटा करते हैं. आदिवासी अगर हिंदू होते तो इन चीजों को उन्हें बांटने की नौबत ही न आती. ये तो पहले से ही उन के पास होतीं.

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई फैसलों में माना है कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. भाजपा छोड़ दूसरे राजनीतिक दलों के नेता भी आदिवासियों को हिंदू कहने पर एतराज जताते रहे हैं. हेमंत

सोरेन के ?ारखंड का मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद इस संवाददाता ने रांची में उन से बात की थी. तब उन्होंने साफ कहा था कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. यह इंटरव्यू सरिता पत्रिका में प्रमुखता से छपा था.

सिवनी के सिमरिया में आदिवासियों की मौब लिंचिंग की एक बड़ी वजह हिंदू युवाओं की यही खी?ा दिखती है कि आदिवासी खुद को सीधे से हिंदू क्यों नहीं मान लेते. नहीं मानते तो उन्हें भी गौकशी के नाम पर खुलेआम बेरहमी से मारा जाने लगा है ठीक वैसे ही जैसे मुसलमानों और दलितों को मारा जाता है.

भगवा गैंग का आदिवासी प्रेम कितना बड़ा धोखा और पाखंड है, यह भी सिमरिया कांड से उजागर हुआ है कि वह आदिवासियों के वोटों के जरिए हिंदू राष्ट्र बनाने का ख्वाव देख रहा है. इस के लिए सीधी उंगली से घी नहीं निकल रहा तो उंगली टेढ़ी की जाने लगी है जो कम से कम आदिवासियों के भले की बात तो नहीं.

Satyakatha: इश्क का जहरीला जुनून

संगीता को महेंद्र से बेपनाह मोहब्बत थी. वे सजातीय नहीं थे, इसलिए शादी नहीं हो पाई. किंतु उन की चाहत का जुनून बना रहा. इसी दौरान महेंद्र की शादी सरिता से हो गई. लेकिन इस बीच ऐसी घटना घटी कि

महाशिवरात्रि का त्यौहार था. तारीख थी 28 फरवरी, 2022. मलीहाबाद के एक मंदिर की सजावट देखने और पूजा करने के लिए लोग उमड़ पड़े थे. कोरोना से उबरने के 2 साल बाद भव्यता के साथ शिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा था.

महेंद्र पूजा खत्म होने का इंतजार कर रहा था, ताकि प्रसाद ले कर जल्द घर जा सके. उस की पत्नी सरिता घर पर अकेली थी. वह उसे 2 महीने पहले ही ब्याह कर लाया था.

नवविवाहिता सरिता को भी अपने पति के आने का बेसब्री से इंतजार था. रात के 11 बज चुके थे. उसे नींद भी आ रही थी, किंतु बारबार आंखें धो कर नींद को भगा देती थी. मंदिर के लाउडस्पीकर से भजन की तेज आवाजें आ रही थीं. कुछ समय में जब घंटे और घडि़याल बजने लगे तब उस ने समझ लिया कि मंदिर की पूजाअर्चना अंतिम दौर में आ गई है.

वह अपने बैड से उठी और रसोई में जा कर 2 थालियों में खाना परोसने लगी. तभी पीछे से उस के कंधे पर किसी ने हाथ रख दिया. वह चौंक पड़ी, क्योंकि घर का मेन दरवाजा भीतर से बंद था. मुड़ कर देखा, पीछे संगीता थी. आश्चर्य से पूछ बैठी, ‘‘अरे तुम! इस वक्त? अंदर कैसे आई? दरवाजा तो बंद था? महेंद्र आ गए क्या?’’

‘‘मैं तो कहीं भी, कभी भी पहुंच सकती हूं. महेंद्र के दिल की रानी जो ठहरी.’’ यह कहती हुई संगीता ने उसे अपनी ओर एक झटके में खींच लिया.

जोर से खींचे जाने पर सरिता लड़खड़ा गई. बड़ी मुश्किल से गिरतेगिरते बची. वह बोली, ‘‘अरेअरे, ये क्या करती हो मैं गिरने वाली थी. चोट लग जाती तो?’’

‘‘तुम्हें गिराने ही तो आई हूं, ऐसा गिराऊंगी कि कभी उठ ही नहीं पाओगी.’’ इसी कड़वे बोल के साथ संगीता ने एक हाथ से उस की चोटी कस कर पकड़ ली और दूसरे हाथ से कमरे की कुंडी लगा दी.

संगीता क्या करने वाली थी, सरिता को न तो कुछ समझने का समय मिला और न ही विरोध करने का मौका. संगीता ने उस के सिर को पास रखे लकड़ी के स्टूल पर दे मारा. स्टूल के कोने से सिर टकराने से खून निकलने लगा. वह चीखी, लेकिन उस की चीख बंद कमरे से बाहर नहीं निकल पाई. वैसे भी बाहर लाउडस्पीकर का काफी शोर था.

सरिता चोट खा कर जमीन पर गिर गई थी. इस के बाद संगीता ने उस पर स्टूल से ही ताबड़तोड़ हमला कर दिया. दोनों के बीच कुछ देर तक हिंसक मारपीट का दौर चलता रहा.

आखिर में संगीता के आक्रामक तेवर के आगे सरिता ही पस्त पड़ गई. वह बुरी तरह से जख्मी हो गई. कराहने लगी. फिर संगीता ने कमर में छिपा कर लाए बांके से उस के शरीर पर लगातार कई हमले किए. गरदन पर हुए हमले से सरिता एकदम से निढाल हो गई, जिस से खून निकल कर जमीन पर फैल गया.

संगीता ने एक नजर उस पर डाली और भुनभुनाती हुई बोलने लगी, ‘‘अब मर हरामजादी यहीं पर. कुतिया कहीं की. याद रख कि महेंद्र मेरा नहीं तो तू भी महेंद्र की नहीं.’’

उस ने मरणासन्न सरिता को एक जोरदार लात मारी. लात की चोट खा कर वह औंधे मुंह पलट गई. उस के बाद संगीता मकान के पिछले दरवाजे से निकल कर अंधेरी गली और फिर खेतों से होते हुए फरार हो गई.

महेंद्र थोड़ी देर में मंदिर से पूजा का प्रसाद ले कर घर आ गया. बंद दरवाजे की कुंडी खटखटाई. दरवाजा नहीं खुलने पर सोचा, शायद सरिता सो रही होगी. फिर दीवार फांद कर अपने मकान में दाखिल हो गया. वह बैडरूम में गया. सरिता वहां नहीं दिखी तो उसी के साथ लगे दूसरे कमरे की ओर आगे बढ़ा, जो रसोई से जुड़ा था. किंतु यह क्या, जब उस ने अंदर का मंजर देखा तो हक्काबक्का रह गया.

उसे तनिक भी यकीन नहीं हो रहा था, 2 महीने पहले ही बयाह कर लाई गई पत्नी इस हाल में होगी. पूरी तरह खून से लथपथ. वह जमीन पर निढाल पड़ी हुई थी. चारों तरफ फैले खून के बीच औंधी पड़ी पत्नी को उठाने के लिए उस ने हाथ बढ़ाया.

उस के कराहने की आवाज सुनाई दी तो तुरंत पूछा, ‘‘कैसे हुआ यह सब, कौन आया था यहां?’’

सरिता धीमी सांस ले कर कराहते हुए बोली, ‘‘चुड़ैल संगीता…’’ इतना कहने के बाद वह बेहोश हो गई.

तब तक घर में पड़ोस में रह रहे दूसरे परिजन भी आ चुके थे. सब ने सरिता की हालत देखी. डाक्टर के पास ले जाने की बात कही लेकिन जहां महेंद्र का घर था, वहां से आधी रात के वक्त उपचार के लिए शहर ले जाना आसान नहीं था.

महेंद्र सरिता के सिर को अपनी गोद में लिए था. उस के गालों को थपकी दे कर होश में लाने की कोशिश कर रहा था, जबकि एकदो औरतें उस के शरीर से बह रहे खून को रोकने का घरेलू उपाय करने लगी थीं.

कुछ देर में ही महेंद्र ने पाया कि सरिता की अटकती सांसें एकदम से थम गईं. उस के बाद तो घर में चीखपुकार मच गई. मातम का माहौल बन गया.

सुबह होते ही सूर्योदय से पहले सरिता के पति महेंद्र ने मोबाइल से इस घटना की सूचना अपनी ससुराल फूलचंद खेड़ा निवासी ससुर रामसनेही को दे दी. यह गांव लखनऊ जिलांतर्गत मलीहाबाद थाने में आता है.

सूचना पाते ही रामसनेही चौंक गए. उन्होंने दहेज हत्या का मामला समझा और बदहवासी की हालत में कुछ लोगों को साथ ले कर पहले  पुलिस चौकी कसमंडी गए. वहीं सरिता ब्याही थी. उन्होंने महेंद्र और उस के घर वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और हत्या की शिकायत दर्ज करवा दी.

यह पुलिस चौकी भी मलीहाबाद थाने में आती है. रामसनेही की शिकायत की सूचना चौकीप्रभारी ने तुरंत मलीहाबाद थानाप्रभारी नित्यानंद सिंह को भेज दी गई. इस तरह पहली मार्च, 2022 को एक घंटे के भीतर ही एसएसआई नसीम अहमद सिद्दीकी और बीट प्रभारी कुलदीप सिंह घटनास्थल पर पहुंच गए.

उन के साथ हैडकांस्टेबल नृपेंद्र सिंह, लेडी कांस्टेबल सुरमिला यादव, कांस्टेबल अवनीश सिंह भी थे. वहां पहले से ही पुलिस चौकी कसमंडी पर तैनात हैडकांस्टेबल मदन सिंह और कांस्टेबल राघवेंद्र सिंह पहुंचे हुए थे.

सभी ने सरिता के शव और घटनास्थल का मुआयना किया. उस के पति महेंद्र, घर वालों और ग्रामीणों से आवश्यक पूछताछ की गई. उन्हें केवल यह मालूम हुआ कि सरिता की किसी ने बेरहमी से हत्या कर दी है. मारने वाली संगीता नाम की महिला हो सकती है.

सरिता की लाश का पंचनामा तैयार कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. उस के पिता राम सनेही द्वारा दी गई लिखित शिकायत के आधार पर भादंवि की धारा 120बी एवं 498, 3/4 डीपी ऐक्ट के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कर ली गई.

मुख्य आरोपी उस के पति महेंद्र को बनाया गया. महेंद्र मधवाना गांव के निवासी रामेश्वर दयाल का बड़ा बेटा था. परिवार में भाई रामचंदर और महेश हैं. उन्हें भी आरोपी बनाया गया. इस जांच के बारे में सीओ नबीना शुक्ला को भी जानकारी दे दी गई.

पूछताछ में महेंद्र ने खुद को निर्दोष बताते हुए संगीता के बारे में भी कई बातें बताईं. किंतु दावे के साथ वह भी नहीं कह पाया कि सरिता की हत्या संगीता ने की होगी. चश्मदीद कोई नहीं था. पुलिस के सामने हत्यारे तक पहुंचने की चुनौती थी.

महेंद्र ने पुलिस से कुछ नहीं छिपाया. संगीता से अपने प्रेम संबंध के बारे में भी साफसाफ सब कुछ बता दिया. उस के अनुसार एक समय में वह संगीता से बेपनाह मोहब्बत करता था. वह उस की प्रेमिका थी, उस के सौंदर्य और मदमस्त कर देने वाली अदाओं का वह दीवाना था.

लेकिन सरिता से शादी के बाद उस की यादों को जहन से निकाल चुका था. इस में वह कितना सफल हो पाया था, ठीक से नहीं कहा जा सकता था, क्योंकि सरिता के साथ उस के मधुर संबंध नहीं बन पा रहे थे.

संगीता महेंद्र के गांव से सटे दूसरे गांव डीहा की रहने वाली थी. उस ने जिस स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई की थी, महेंद्र भी वहीं पढ़ता था. इसी दौरान उन के बीच दोस्ती हो गई.

आगे की पढ़ाई के लिए संगीता लखनऊ में एक रिश्तेदार के यहां रहने चली गई.

इधर महेंद्र ने हाईस्कूल के बाद आगे की पढ़ाई नहीं की. रोजगार के लिए उस ने ड्राइविंग सीख ली. उसे भी लखनऊ में ही ड्राइविंग का काम मिल गया. एक दिन दोनों लखनऊ की सड़क पर अचानक टकरा गए.

उस रोज दोनों के बीच फिर से नई जानपहचान की शुरुआत हुई. दोनों ने एक होटल में साथ खाना खाया. एकदूसरे के कामकाज और ठौरठिकाने पर भी बातें हुईं. दोनों दोबारा मिलते रहने के वादे के साथ विदा हुए.

उन के बीच प्रेमालाप का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह लगातार परवान चढ़ने लगा. एक दिन संगीता ने महेंद्र से कह दिया कि वह उस के बगैर और अकेली नहीं रह सकती. हमेशा के लिए उस के साथ लखनऊ में ही बस जाना चाहती है. उस का भी काम लखनऊ में ही है तो फिर क्यों न वे दोनों शादी कर लें.

संगीता के प्रस्ताव पर छूटते ही महेंद्र ने भी हामी भर दी. साथ ही आश्वासन दिया कि उस के परिवार की तरफ से शादी में कोई बाधा नहीं आएगी. वह भी अपने मातापिता को राजी कर ले. तभी उन की शादीशुदा जिंदगी मजे में कटेगी.

इसी बीच उन के प्रेम संबंध के छिटपुट किस्से की भनक संगीता के परिवार में कुछ लोगों को लग चुकी थी. एक दिन संगीता के पिता शिवप्रसाद रावत रिश्ते के लिए महेंद्र के पिता रामेश्वर दयाल से मिलने गए.

रामेश्वर दयाल ने गांव, गोत्र और जाति का हवाला देते हुए शादी से इनकार कर दिया. उन्होंने साफसाफ कह दिया कि वह परिवार में दूसरी जाति की बहू किसी भी कीमत पर नहीं लाएंगे.

उस के बाद संगीता और महेंद्र का दिल टूट गया. महेंद्र को अपने परिवार पर भरोसा था, लेकिन वही मुकर गए थे. संगीता इस का उलाहना देने लगी थी. वह जबरन शादी करने की जिद भी कर बैठी.

उस ने तो एक बार महेंद्र को धमकी तक दे डाली थी, ‘‘मैं नहीं तो कोई और नहीं.’’

इसे महेंद्र ने हल्के में लिया था. तड़प दोनों तरफ थी, लेकिन इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पा रहा था. महेंद्र ने खुद को ड्राइविंग के काम में व्यस्त कर अपने दिल को समझा लिया था, लेकिन संगीता ऐसा नहीं कर पा रही थी. नतीजा उस ने शराब की मदद लेने की ठानी.

वह लखनऊ में जिस रिश्तेदारी में रह रही थी, वहीं शिवबरन से भी उस की अच्छी पटती थी. वह भुलभुलाखेड़ा गांव का रहने वाला था, लेकिन संगीता के दूर का रिश्तेदार भी था. आए दिन उस से छोटीमोटी मदद ले लिया करती थी.

उस की भी नजर संगीता के यौवन पर थी, लेकिन पहली बार वह शिवबरन के काफी पास बैठी शराब का गिलास थामे हुए थी. संगीता शराब का घूंट धीरेधीरे लगा रही थी. शिवबरन ने पूछा, ‘‘कड़वी लग रही है? थोड़ा और पानी मिला दूं.’’

‘‘अरे नहीं रे शिवबरन, सुना है शराब पीने से गम दूर हो जाता है, इसलिए पी रही हूं. किसी को मत बताना इस बारे में.’’ संगीता लड़खड़ाती आवाज में बोली.

‘‘क्या गम है तुम्हें? तुम तो इतनी हंसमुख और खुशमिजाज हो.’’ शिवबरन ने यह पूछ कर संगीता के जख्म को कुरेद दिया था.

फिर उस ने अपनी प्रेम कहानी से ले कर शादी में बाधा तक की कहानी सुना डाली. इस के साथ उस ने शिवबरन से मदद करने का वादा लिया.

शिवबरन की जानपहचान महेंद्र से थी. उस ने ड्राइवरी का काम दिलवाने में उस की मदद की थी. इसलिए उसे लगा कि वह उस की बात को नहीं टालेगा.

इसी उम्मीद के साथ वह महेंद्र से मिला. उसे समझाया कि अगर उस के पिता नहीं मान रहे हैं तो वह कोर्ट में शादी कर ले.

बातोंबातों में उस ने संगीता के शराब पीने की भी बात उसे बता दी. उस ने यह भी बता दिया कि घंटों साथ बैठ कर शराब पीती है. नशे की हालत में उसे उठा कर बैड तक ले जाना पड़ता है. उस की हालत देखी नहीं जाती. इसलिए उस के शादी करने से संगीता की जिंदगी संवर जाएगी.

शिवबरन संगीता की बात कह कर चला गया, लेकिन महेंद्र के दिमाग में कुलबुलाने वाला एक कीड़ा भी डाल गया कि वह उस के साथ घंटों बैठ कर शराब पीने लगी है.

उस के दिमाग में संगीता के शिवबरन के साथ यौनसंबंध कायम होने की बात घर कर गई. इस की सच्चाई जाने बगैर महेंद्र ने संगीता से हमेशा के लिए संपर्क खत्म करना ही सही समझा.

एक हफ्ते बाद महेंद्र को संगीता मिल गई. महेंद्र ने उसे दोबारा समझाया कि वह उसे भूल जाए और अपने परिवार के कहे अनुसार शादी कर ले. क्योंकि उस की भी कुछ दिनों में शादी होने वाली है.

महेंद्र की शादी की बात सुन कर संगीता और तिलमिला गई. पैर पटकती हुई गुस्से में चली गई. पूछा तक नहीं कि कब उस की शादी है? कहां तय हुई है? होने वाली पत्नी का नाम क्या है? जातेजाते अंगुली दिखाई. मानो संगीता पर चढ़ा इश्क का जुनून खतरनाक इरादे में बदलने वाला हो.

महेंद्र की 30 जनवरी, 2022 को सरिता के साथ शादी संपन्न हो गई. उस के पिता ने अपनी हैसियत के मुताबिक पैसे, जेवर और दहेज का सामान दे कर विदा किया था. शादी के बाद संगीता एक दिन महेंद्र की नवविवाहिता सरिता को बधाई देने उस के घर गई.

चंद पल में ही उस से दोस्ती बना ली. सरिता को भी लगा कि कोई तो नई जगह में दोस्त मिला. उस के जाते ही महेंद्र ने सरिता को डांट लगाते हुए हिदायत दी कि उस के साथ संपर्क बनाने की कोई जरूरत नहीं है.

जबकि संगीता हर दूसरे तीसरे दिन सरिता के पास पहुंच जाती थी. सरिता को उस का आना बुरा नहीं लगता था, क्योंकि वह घर में अकेली रहती थी. उस के ससुराल के लोग पास के दूसरे मकान में रहते थे.

महेंद्र अपने काम के सिलसिले में लखनऊ चला जाता था. सच तो यह था कि संगीता को महेंद्र की पत्नी सरिता से नफरत थी. उस के दिमाग में सिर्फ एक ही बात घूमती रहती थी कि उस के सिवाय महेंद्र की जिंदगी में कोई और न आने पाए.

महेंद्र द्वारा पुलिस को संगीता के बारे में मिली जानकारी से उसे गिरफ्तार करने की योजना बनाई गई. साथ ही उस के खिलाफ सबूत भी जुटाए जाने लगे.

आखिर पुलिस ने संगीता को मोबाइल फोन सर्विलांस की ट्रैकिंग और मुखबिरों के बिछाए जाल के जरिए गिरफ्तार कर लिया गया. उस की गिरफ्तारी  3 मार्च, 2022 को हुई.

उसे गिरफ्तार कर सीओ नबीना शुक्ला के सामने पेश किया गया. सीओ नबीना शुक्ला ने उस से कहा कि सरिता की हत्या के बारे में अगर तुम सच बता दोगी तो इसी में तुम्हारी भलाई है.

सीओ साहिबा का इतना कहना था कि संगीता फफक पड़ी. रोती हुई बोली, ‘‘बताऊंगी मैडमजी, सब कुछ बताऊंगी. मैं प्यार में अंधी हो गई थी, उसी के चलते यह सब हो गया.’’

उस के बाद संगीता ने सरिता की हत्या का सिलसिलेवार राज खोलते हुए अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

संगीता के बयान के अनुसार हत्याकांड में उस के एक रिश्तेदार शिवबरन ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस ने घटना के एक दिन पहले शिवबरन से महेंद्र के घर की रेकी करवाई थी.

महेंद्र का मकान गांव में गली के अंदर है, जो पीछे के खेतों से होते हुए  दूसरे रास्ते से जा मिलता है. यानी घर के पिछवाड़े से भी मकान में घुसा जा सकता है. वहां लगा दरवाजा हमेशा बंद रहता है. घर में आनाजाना आगे के रास्ते से ही होता था.

संगीता ने शिवबरन को महेंद्र के गली स्थित मकान पर रात में छिप कर आने को कहा था, क्योंकि उसे महेंद्र के घर के बारे में अच्छी जानकारी थी. सरिता के घर में अकेली होने की सूचना पाने के बाद घर में पिछले दरवाजे से घुस गई थी.

सरिता का काम तमाम करने के बाद वह शिवबरन की मदद से फरार हो गई थी. हत्या में इस्तेमाल किया गया बांका भी शिवबरन ने ही मुहैया करवाया था. इस के बदले में संगीता ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने की हामी भरी थी. घटना के दिन महेंद्र काम पर लखनऊ नहीं गया था, लेकिन उस रोज शिवरात्रि होने के कारण मंदिर गया हुआ था.

संगीता के बयान के बाद पुलिस ने शिवबरन को भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने संगीता हत्याकांड में साथ देने की बात मान ली. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार सरिता के शरीर पर 13 घाव पाए गए.

सरिता हत्याकांड का खुलासा होने के बाद संगीता और शिवबरन आरोपी बनाए गए. उस के बाद थानाप्रभारी द्वारा महेंद्र और उस के घर वालों के खिलाफ दहेज एक्ट के अंतर्गत दर्ज किए गए मुकदमे को बदल कर संगीता और शिवबरन के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 201 एवं 120बी के अंतर्गत बदल दिया गया.

संगीता ने हत्या में प्रयोग में लाए गए बांका, स्टूल, बांस की फट्टी व बेलचा बरामद करवा दिया.

कथा लिखे जाने तक संगीता और शिवबरन को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया था. जबकि पुलिस ने अपनी जांच में सरिता के पति महेंद्र को आरोप की सभी धाराओं से मुक्त कर दिया गया था.

GHKKPM: पाखी बनेगी विराट के बच्चे की मां? देखें Photos

टीवी  सीरियल गुम है किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में इन दिनों हाईलवोल्टेज ड्रामा दिखाया जा रहा है. जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि सम्राट की मौत हो जाती है. तो वहीं पाखी चौहान निवास छोड़कर अपनी मां के घर चली जाती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए जानते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आपने ये भी देखा कि सई  पाखी को रोकने की कोशिश करती है, लेकिन वह उसकी नहीं सुनती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि सई विराट से कहती है कि वो उससे अपने दिल की बात शेयर करे क्योंकि वो भी उसी दुख से गुजर रही है.

 

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इतना ही नहीं सई फूट-फूट कर रोने लगती है और कहती है कि विराट को उसकी बहुत जरूरत है औऱ इसलिए वो उससे बात करें.

 

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सई पुरानी बातें याद करती है. वह कहती है प्रेगेंनसी में विराट उसका  बहुत ख्याल रखता था. वह कहता था कि वह एक अच्छी मां बनेगी. सई, विराट को डॉक्टर की सलाह के बारे में याद दिलाती है कि या तो बच्चा गोद लें या सरोगेसी की मदद ले.

 

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इसी बीच ऐश्वर्या शर्मा (पाखी) ने अपने इंस्टाग्राम पर अपनी कुछ तसवीरें पोस्ट की है. इसमें वो व्हाइट साड़ी में दिख रही है और बेबी बंप फ्लॉन्ट कर रही है. पाखी अपने बेबी बंप को देख रही है. इस फोटो को शेयर करते हुए एक्ट्रेस ने कैप्शन में लिखा, क्या कभी पूरा होगा पाखी का सपना?

इन फोटोज पर यूजर्स पूछ रहे हैं कि क्या वो विराट के बच्चे की मां बनेगी. शो के आने वाले एपिसोड में पता चलेगा कि पाखी का ये सपना पूरा होता है या नहीं?

वनराज बना अनुज, अनुपमा के साथ किया रोमांस

स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला रिएलिटी शो रविवार विद स्टार परिवार में शाह परिवार जमकर धमाल मचा रहा है. शो के बिते एपिसोड ‘अनुपमा’ स्टार्स छाये रहे. शो के आने वाले एपिसोड में शाह परिवार दर्शकों एंटरटेनमेंट का डबल डोज देने वाले है. आइए बताते है, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा-अनुज और वनराज खूब धमाल मचाने वाले हैं. दरअसल अनुज और वनराज अपना किरदार बदलने वाले हैं. वनराज अनुज के किरदार में नजर आएगा तो वहीं अनुज वनराज के किरदार में नजर आएगा.

 

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जी हां, रविवार विद स्टार परिवार में एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिलने वाला है. अनुज और वनराज का किरदार बदलते ही अनुपमा नई आफत में फंस जाएगी.

 

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शो से जुड़ी सोशल मीडिया पर तस्वीरे वायरल हो रही है.  अनुज मूंछे लगाकर वनराज बनने की कोशिश कर रहा है. तो वहीं वनराज, अनुज बनकर अनुपमा के साथ रोमांस करता दिखाई देगा.

 

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तस्वीर में आप देख सकते हैं कि वनराज चश्मा लगाकर अनुपमा के हाथ पर किस करता दिख रहा है. तो दूसरी तरफ वनराज बनकर अनुज सबकी क्लास लगाने वाला है. शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुपमा को परेशान करते समय अनुज की नकली मूंछ गिर जाएगी. अनुज का चश्मा लगते ही वनराज के तेवर ही बदल गए.

 

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सोशल मीडिया पर ये तस्वीरें जमकर वायरल हो रही है. फैंस सीरियल अनुपमा के सितारों की जमकर तारीफ कर रहे हैं.

छोटी सी जिंदगी- भाग 1: रोहित को कौन-सी बीमारी हुई थी?

आरती और सनाया दोनों सहेलियां बचपन से ही सगी बहनों की तरह रहती हैं. आरती के परिवार में सिर्फ उस के पापा हैं जो प्रतिष्ठित उद्योगपति हैं. उस के पापा ने उसे मां और पापा दोनों का प्यार दिया है. आरती में उन की जान बसती है. जबकि सनाया के परिवार में उस के बड़े भैया व भाभी हैं. उस के भैया एक कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. उन की कोई संतान नहीं है. वे सनाया को ही अपनी संतान सम?ाते हैं.

दोनों सहेलियां एक ही यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रही हैं. रोहित, आरती का मंगेतर, भी उसी यूनिवर्सिटी में पढ़ता है. वह एक मध्यवर्गीय परिवार का लड़का है. उस के मातापिता दिनरात एक कर के अपने बेटे के सपने पूरे करने में लगे रहते हैं. इस के बावजूद वह बहुत ही रंगीनमिजाज है.

एक दिन आरती और सनाया यूनिवर्सिटी की कैंटीन में बैठे बतिया रही थीं. अचानक उन की नजर एक कोने में बैठे एक जोड़े पर पड़ी और वे सकते में आ गईं. आरती के तो होश ही उड़ गए. वह लड़का रोहित ही था जो किसी और लड़की के साथ बांहों में बांहें डाले बैठा था. कुछ क्षण वह उन दोनों की बेशर्मी को एकटक निराश मन से देखती रही. फिर थोड़ा रुक कर वह रोहित के पास गई और उसे एक जोर का तमाचा जड़ दिया. साथ ही, उस से अपने सारे रिश्ते तोड़ लिए.

आरती आगेआगे और रोहित उस के पीछेपीछे. ‘‘आरती सुनो तो, तुम ने जो भी कुछ देखा वह गलतफहमी है और कुछ नहीं.’’ आरती बिना कुछ सुने कार में बैठ घर को चल दी.

रात के खाने पर उस के पापा को आरती के चेहरे पर उदासी दिखाई दे रही थी. उन्होंने नोटिस किया कि वह उन से नजरें चुरा रही है. उस के होंठ कुछ कहना चाह रहे हैं, पर जबान साथ नहीं दे रही.

‘‘कोई बात हुई है बेटा, तुम ठीक तो हो?’’ आरती के पापा ने पूछा.

‘‘नहीं पापा, कुछ नहीं. बस, यों ही, थोड़ी थकान हो रही है,’’ आरती ने दबी सी आवाज में जवाब दिया.

‘‘ठीक है, खाना खा कर आराम करना बेटा,’’ कह कर उस के पापा चुप हो गए, पर मन ही मन वे आरती को ले कर चिंता से घिर गए.

देररात आरती के पापा का मोबाइल बजता है. उन के कौल रिसीव करते ही आवाज आई, ‘‘जी, हैलो, अंकल मैं होस्टल से बोल रहा हूं. रोहित ने आत्महत्या करने की कोशिश की है. उसे सिटी हौस्पिटल ले कर आए हैं, आप तुरंत आएं यहां,’’ और फोन कट जाता है. आरती और उस के पापा हौस्पिटल जाते है. आरती मन ही मन अपराधबोध से भरी होती है, कांपती हुई रोहित के पास जाती है. रोहित के पास होते हुए भी वह खामोश ही रहती है. यूनिवर्सिटी के दृश्य उस की आंखों के सामने घूम रहे होते हैं.

कुछ देर की खोमोशी को तोड़ते हुए रोहित बोल पड़ता है, ‘‘तुम्हें अब भी मु?ा पर यकीन नहीं आरती. वह सब छलावा था और तुम सच. आरती, तुम अभी आराम करो, इतना मत सोचो. छोड़ो ये सब, भूल जाओ सबकुछ. मैं तुम से नाराज नहीं.’’ इतने में आरती के पापा आ जाते हैं, ‘‘बेटा रोहित, मैं आरती को घर छोड़ कर वापस आता हूं तुम्हारे पास.’’ वे सारी बातों से अनजान थे.

‘‘आरती, चलें बेटा?’’

‘‘जी पापा.’’

रोहित को जाने का इशारा कर आरती अपने पापा के साथ वहां से चल देती है. उस के अंदर कशमकश चल रही होती है- दिल रोहित पर भरोसा करना चाहता है, तो दिमाग बिलकुल नहीं.

अस्पताल से बाहर आते ही उसे याद आता है कि वह अपना मोबाइल कमरे में ही भूल आई है.

‘‘पापा, मैं अपना मोबाइल तो अंदर ही भूल आई हूं.’’

‘‘कोई बात नहीं बेटा, फिर चल के ले आते हैं.’’

वे दोनों वापस अंदर जाते हैं. तभी रोहित और उस का दोस्त बातें कर रहे होते हैं, ‘‘वाह यार, क्या आइडिया दिया तू ने आरती को फिर से यकीन दिलाने का. अब तो ऐश ही ऐश होंगे, एक तरफ घरवाली तो दूसरी तरफ बाहरवाली.’’

आरती और उस के पापा ये सब सुन कर दंग रह जाते हैं. कोई इतना भी गिर सकता है भला. आरती के पापा के सामने अब सबकुछ साफ हो जाता है. वे अपनी बेटी की परेशानी की वजह सम?ा जाते हैं और उसे हाथ पकड़ कर वहां से ले जाते हैं.

‘‘गाड़ी में बैठो बेटा.’’

?‘‘जी पापा,’’ नजरें ?ाकाए आरती इतना ही कह पाती है और गाड़ी में बैठ जाती है. वह बहुत शर्मिंदा रहती है, उसे याद आता है, कैसे उस ने अपने पापा को दुखी कर के रोहित से रिश्ता जोड़ा था और उस के पापा ने अपनी बेटी की खुशी के सामने घुटने टेक दिए थे.

आज वही बेटी अपने पिता से अपनी नजरें चुरा रही है. आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. बापबेटी दोनों चुप रहते हैं. चारों ओर सन्नाटा सा पसरा हुआ होता है. दोनों ही मन की उधेड़बुन में लगे होते हैं. तभी घर आ जाता है.

‘‘पापा, वो…’’

‘‘बेटा, अभी तुम आराम करो, सुबह बात करते हैं.’’

इतनी बातचीत के बाद दोनों ही खामोशी से अपनेअपने कमरे में चले जाते हैं.

जब रोहित और उस का वही दोस्त अगले दिन सुबह आरती के घर आते हैं तो देखते हैं कि वहां बहुत भीड़ जमा है और खामोशी छाई हुई है. वहीं, लोगों का एक समूह एक अर्थी को फूलों से सजा रहा होता है. आरती के पापा और सनाया खामोशी से उस अर्थी को देखे जा रहे हैं. उन की आंखों से अश्रु की धारा मानो रुकने का नाम ही नहीं ले रही.

‘‘जहां रोहित खड़ा होता है वहीं पास ही में 2 लोग आपस में बात कर रहे होते हैं कि सुना है पंखे से लटक कर जान दी है लड़की ने. जरूर दाल में कुछ काला है भाई.’’ यह सुन कर रोहित के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. मारे डर के वह अपने दोस्त को साथ ले वहां से भाग खड़ा होता है.

‘‘जिंदगीभर तुम्हें बेइंतहा प्यार करने के बावजूद मैं तुम्हें दर्द सहना नहीं सिखा पाया, बेटा. तुम्हारे इस तरह से जाने के बाद एक पल भी चैन से जी न सकूंगा मैं. मैं तुम्हारी यादों को इस शहर में अकेला छोड़ कर जा रहा हूं या यों कहो कि इस भरी दुनिया में तुम ने मु?ो अकेला छोड़ दिया, बेटा.’’ आरती के पापा एक तसवीर से बातें कर रहे हैं.

अब उन्होंने बेसहारा लड़कियों को आसरा देने के लिए एक एनजीओ बनाने का निर्णय ले लिया.

साहिल रोहित का रूममेट है और उस का जिगरी दोस्त भी. रोहित साहिल की हरेक चीज हक से उपयोग भी करता है. पर साहिल का चरित्र बिलकुल श्वेत है और दिल एकदम सोने सा. उस के अलावा घर में परिवार के नाम पर उस की मां और चाचा हैं. उस की मां का नाम मुंबई के नामी उद्योगपतियों की गिनती में आता है.

रोहित साहिल को आरती के बारे में सबकुछ बताता है.

रोहित बोलता है, ‘‘यार, वह आरती…’’

साहिल कहता है, ‘‘क्या, आरती ने तु?ा से सारे रिश्ते तोड़ लिए, यही न. अच्छा ही हुआ. और कितनी लड़कियों के साथ फ्लर्ट करोगे तुम, कब तक सब को धोखा दोगे? जिंदगी में कभी तो सीरियस हुआ करो, मेरे भाई.’’

रोहित बोला, ‘‘वह बात नहीं है, यार.’’

‘‘तो क्या बात है, अब कौन सा कांड कर दिया तुम ने?’’ साहिल ने हैरत

से पूछा.

‘‘आरती ने सुसाइड कर लिया है,’’  रोहित ने साहिल को गले लगाते हुए जवाब दिया.

‘‘क्या… हाथ नहीं लगाना मु?ो,’’ साहिल ने रोहित को धक्का देते हुए कहा.

‘‘ऐसे मत बोल यार, मैं बहुत शर्मिंदा हूं.’’

‘‘तु?ो अंदाजा भी है कि तू ने एक मासूम लड़की की जान ले ली है. दूर हो जाओ मेरी नजरों से,’’ कहते हुए साहिल बैग निकाल सामान पैक करने लगता है.

रोहित अब कहता है, ‘‘मैं जानता हूं कि मैं आरती का गुनाहगार हूं.’’

साहिल बोला, ‘‘तुम सिर्फ आरती के ही नहीं, उस के पापा के भी गुनाहगार हो. तुम ने उन्हें एक जिल्लतभरी जिंदगी दे दी है.’’

अब रोहित बोला, ‘‘मु?ो माफ कर

दे, यार.’’

साहिल ने कहा, ‘‘तुम मु?ा से क्यों माफी मांग रहे हो. माफी मांगनी है आरती के पापा से मांगो.’’

रोहित कहने लगा, ‘‘तू मेरा सब से अच्छा दोस्त है. हम ने पूरे 4 साल साथ में बिताए हैं. ऐसे मु?ो छोड़ कर मत जा. जिंदगी बहुत बो?िल हो गई है यार. इन दोचार दिनों में ऐसा लग रहा है मानो कई सालों का दर्द ?ोल लिया हो मैं ने.’’

‘‘अभी तो शुरुआत है, तुम जैसे बदकिरदार और बेशर्म लड़के को मैं अपना दोस्त नहीं मानता. अब तो मैं यही चाहूंगा कि तुम्हें भी आरती की तरह ही दर्दनाक मौत मिले. तुम मौत मांगो और तुम्हें मौत नसीब न हो,’’ कह कर साहिल हमेशा के लिए यूनिवर्सिटी छोड़ कर चला जाता है.

‘‘चाचा, मैं घर आ रहा हूं, मेरी पढ़ाई पूरी हो गई है. बिजनैस में अब आप का साथ देना चाहता हूं,’’ साहिल रोते हुए फोन पर बात करता है.

‘‘हां बेटा, पर यों अचानक यह डिसीजन? तुम तो आगे पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, क्या हुआ साहिल, सब ठीक तो है?’’ चाचा ने पूछा.

‘‘नहीं चाचा, वह मेरी एक अच्छी दोस्त की डैथ हो गई है.’’ साहिल ने जवाब दिया.

चाचा बोले, ‘‘ओह, बहुत अफसोस

है बेटा.’’

साहिल ने आगे कहा, ‘‘मैं घर आ कर बात करता हूं.’’

चाचा बोले, ‘‘ठीक है बेटा.’’ उन के फोन रखते ही साहिल की मां वहां आ जाती है. ‘‘क्या हुआ भैया, क्या कह रहा था साहिल?’’

‘‘कुछ नहीं भाभी, बस, उस की एक दोस्त की डैथ हो गई है और अब वह वापस घर आना चाहता है.’’

‘‘मेरा तो कलेजा कांप जाता है यह सुन कर भैया. जवान बच्चों की मौत उन के मांबाप पर क्या कहर ढाती होगी. मैं अभी साहिल को फोन करती हूं.’’

‘‘नहीं भाभी, अभी नहीं. घर आए तो आराम से बात कीजिएगा. आप तो जानती हैं, बहुत सैंसिटिव लड़का है.’’

‘‘जी भैया, आप सही कह रहे हो.’’

साहिल अपने घर लौट घर का बिजनैस संभालने लगता है. गायत्री देवी (साहिल की मां) और साहिल साथ में किसी प्रोजैक्ट पर डिस्कशन कर रहे होते हैं. साहिल बारबार अपनी नाक को टिश्यू पेपर से साफ कर रहा होता है.

यह देख कर गायत्री बोलीं, ‘‘मैं देख रही हूं बेटा, तुम जब से होस्टल से आए हो, ठीक नहीं रहते हो. मैं भैया से कहती हूं कि तुम्हें अभी डाक्टर के पास ले जाएं.’’

साहिल हंसते हुए बोला, ‘‘अभी… ऐसी कोई बात नहीं है मां, बस, थोड़ा फ्लू है, शायद कोई डस्ट एलर्जी है.’’

गायत्री ने कहा, ‘‘अरे, टैंपरेचर भी तो रहता है.’’

साहिल बोला, ‘‘फ्लू में टैंपरेचर तो नौर्मल रहता ही है न मां.’’

‘‘नहींनहीं, ऐसे नहीं चलेगा,’’ कहते हुए गायत्री अनुपमजी (साहिल के चाचा) को आवाज लगाती हैं.

शाम को घर लौटते वक्त अनुपमजी साहिल को फैमिली डाक्टर के पास ले जाते हैं. डाक्टर साहब साहिल का चैकअप करते हैं.

‘‘अनुपमजी ने डाक्टर को बताया कि साहिल को डस्ट इन्फैक्शन वाला जुकाम हरारत के साथ लगभग रहता ही है और पेट भी खराब रहता है.’’

वहीं, साहिल ने कहा, ‘‘हां, कुछ गलत खा लूं तो पेट खराब हो जाता है और फ्लू 10-15 दिनों में फिर से हो ही जाता है.’’

‘‘यह कब से हो रहा है?’’ डाक्टर ने पूछा.

‘‘करीबन एक साल से.’’

डाक्टर साहिल को लिटा कर चैकअप करते हुए बोले, ‘‘जरा तेज सांस लो. हम्म… कुछ नहीं, बस, साधारण सा जुकाम ही है, दवाई लिख देता हूं. यदि कोई और परेशानी हो तो वापस आ जाना  दवाइयां खरीद कर.’’ चाचा और भतीजा दोनों ही घर लौट जाते हैं.

‘‘क्या हुआ? क्या कहा डाक्टर ने?’’ गायत्री पूछती हैं.

छोटी सी जिंदगी: रोहित को कौन-सी बीमारी हुई थी?

साहिल की गैरमौजूदगी में रोहित उस का रेजर उपयोग कर लेता था और यह बीमारी किसी संक्रमित आदमी के उपयोग की हुई सूई, रेजर, टूथब्रश या हेयरब्रश इस्तेमाल करने से भी हो सकती है.

क्या चमत्कारिक ढंग से गरीबी को दूर किया जा सकता है?

मुसलिम इतिहास को मिटाने के चक्कर में हमारे कट्टरवादी न केवल चौराहों पर और धर्म संसदों में अनापशानाप बोलते रहते हैं, वे अदालतों में भी एैरेगैरे तथ्यों को ले कर खड़े रहते है कि कभी न कभी कहीं तो कोई जज उन की सुन लेगा. उत्तर प्रदेश वाराणसी की ज्ञानवापी मसजिद और ताजमहल को ले कर मामले अदालतों में जे जाए गए जिन का कोरा उद्देश्य यह था कि जनता के सामने जो मुद्दे हैं, गरीबी, बेरोजगारी, मंहगाई, अराजकता, गंदगी, अस्तव्यस्त शहरी व ग्रामीण जीवन, आंसू बहाते अस्पताल, महंगी होती शिक्षा जैसी बातों को भुला कर बेकार के ङ्क्षहदूमुसलिम विवाद पर कुछ कहा जाता रहे.

इलाहाबाद की लखनऊ पीठ के जजों डीके उपाध्याय व सुभाष विद्यार्थी ने तो पिटिशनर को डांट लगा कर याचिका खारिज कर दी पर ज्ञानवापी सर्वे का काम वाराणसी सिविल कोर्ट ने जारी रखवा दिया.

इन से हासिल क्या होता है, यह सब जानते हैं. यह विवाद खड़े रहें यही सब से बड़ी उपलब्धि है, सैंकड़ों सालों की गुलामी वह भी कुछ सौ लोगों की सेना के हाथों के इतिहास को नकार कर ये लोग आज लोकतंत्र के बल पर लोकतंत्र को नष्ट करने में लगे हुए हैं.

ताजमहल और ज्ञानवापी मसजिदें चाहे तोड़ दिए जाएं, ये याद रहेंगे कि इस देश पर विदेश से आए लोगों ने राज किया, जम कर दिया, बड़ेबड़े शहर बनाए, भवन बनाए और इस देश का विश्वगुरू ज्ञानी चुप बैठा रहा. आज वह बैठेबिठाए अपना रोब झाड़ रहा है. जबकि तब और आज में कोई ज्यादा फर्क नहीं है.

विदेशों में किसी को छींक आती है तो भारत का उद्योग जगत बिस्तर पर पड़ जाता है. भारत चीन से उलझने की हिम्मत नहीं रखता. चीनी एप तो बंद कर दिए पर अरबों का व्यापार चालू है, भारत की प्रति व्यक्ति आय महज 1900 डौलर है जबकि छोटे से स्वीडन की 90,000 डौलर. उस की ङ्क्षचता न थके इन ज्ञानियों को कभी कुतुब दिल्ली है, कभी ताजमहल, कभी वाराणसी की मसजिद कभी कृष्णभूमि.

भारत सरकार आज 95 करोड़ गरीबों को खाना दे रही है जो लगभग 1000 महीने का पारिवारिक है, ये 95 करोड़ गरीब हैं क्यों जो गेहूं, चावल, दाल लेने के लिए लाइनों में लगते हैं. हमारा ज्ञान, हमारे वेद, पुराण, हमारे भंय, हवन, हमारे मंदिर चमत्कारिक ढंग से इन 85 करोड़ की गरीबी दूर नहीं कर सकते पर सरकारी पक्ष को ङ्क्षचता कुछ खंडहरों की है.

देश का जर्राजर्रा खंडहर हो रहा है, सडक़ें गड्डों से भरी हैं. अमीरों के हाई वे, एयरपोर्ट, एयरलाइनें, 5 स्टार होटल छोड़ दें तो देश में सुखचैन नहीं दिखता है. साफसफाई कहीं दिखती है. ये ङ्क्षहदू आस्यितन के ठेकेदार अपने शहर को क्यों नहीं देखते. अपने महल्ले में क्यों नहीं झांकते. क्यों वहां काम करना होगा और ङ्क्षहदूमुसलिम कर के चंदा मिलेगा जिस का हिसाब नहीं देना होगा जैसे कोविड के लिए पीएम फेयर फंड का नहीं दिया जा रहा.

ज्यादा मुनाफे के लिए बौना काला नमक धान की खेती

कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के अध्यक्ष व प्रोफैसर एसएन सिंह ने बताया कि केंद्र पर बौना काला नमक धान की विभिन्न लाइनों के ट्रायल भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के सहयोग से किया गया था, जिस में से 2 लाइनों का उत्पादन बहुत ही अच्छा प्राप्त हुआ था. उक्त लाइनों (प्रजातियों) की उपज 45 से 48 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई गई है और इन के पौधों की लंबाई 90 से 95 सैंटीमीटर तक रही, जो मंसूरी व सरजू 52 किस्म की ऊंचाई से मिलतीजुलती है.

इस बौना काला नमक धान के पकने की अवधि 140-145 दिन है, जिस से धान काटने के बाद गेहूं की बोआई समय से की जा सकती है.

बौना काला नमक धान की बताई गई अच्छाइयों के चलते यह किसानों के लिए सही है. एक हेक्टेयर काला नमक धान की रोपाई के लिए तकरीबन 25 से 30 किलोग्रामn बीज, 20-25 क्विंटल कंपोस्ट की खाद,
70-75 किलोग्राम सरसों या नीम की खली और एनपीके 120:60:40 की दर से डालें. वहीं नर्सरी डालने के लिए 800-1,000 वर्गमीटर खेत की जरूरत होती है. इस की नर्सरी डालने के लिए सही समय जुलाई का पहला हफ्ता और रोपाई के लिए जुलाई का आखिरी हफ्ता है. इस की रोपाई में एक जगह पर 2-3 पौधे लगते हैं.

नर्सरी डालते समय बीज का शोधन जरूर कर लेना चाहिए. 10 किलोग्राम बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन और 25 ग्राम कौपरऔक्सीक्लोराइड को 30-35 लिटर पानी में घोल कर बीज को 12-18 घंटे तक भिगोएं. उस के बाद पानी से बीज निकाल कर थोड़ी देर छाया में सुखा लें, फिर भीगे धान में 2 ग्राम कार्बंडाजिम पाउडर प्रति किलोग्राम बीज की दर से मिला कर बीज को शोधित कर लें.

किसान बौना काला नमक धान की खेती कर के ज्यादा आमदनी हासिल कर सकते हैं. बौना काला नमक धान का बीज बिक्री के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, बस्ती पर उपलब्ध है. इच्छुक किसान कार्यालय अवधि में केंद्र से बीज हासिल कर सकते हैं.

किसान जनपद में दोबारा काला नमक धान का हब तैयार कर के बाहर के जनपदों में चावल भेजने का काम कर के अपनी आमदनी में और भी इजाफा कर सकते हैं. पिछले साल जनपद के किसानों ने इस प्रजाति का उत्पादन 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हासिल किया था. बौना काला नमक धान निचले और जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए बहुत ही उपयोगी है.

धर्म की पोल खोलने पर मुकदमे

विडंबना है कि देश में अंधविश्वास फैलाने वालों को शासन, प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था द्वारा नजरअंदाज किया जा रहा है और जो इन की दुकानों की पोल खोलते हैं उन के ही खिलाफ गैरकानूनी तौर पर गंभीर धाराएं लगा कर कैद किया जा रहा है.

असम पुलिस ने कांग्रेस समर्थक व निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी को इस बात के लिए गिरफ्तार कर लिया कि उन्होंने नरेंद्र मोदी को गोडसे पूजक कह कर एक ट्वीट कर दिया. इस ट्वीट को भारतीय दंड संहिता की धारा 295 के अंतर्गत धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला कह कर जिग्नेश मेवाणी को गुजरात से पकड़ कर असम ले जाया गया.

असम पुलिस को कोई हक नहीं था पर चूंकि वहां भाजपा की कट्टर सरकार है, वह जिग्नेश मेवाणी को सबक सिखाना चाहती थी. बहरहाल 2 दिनों बाद उन्हें कोर्ट से जमानत तो मिली लेकिन एक दूसरे मामले में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. भारतीय जनता पार्टी के सदस्य अरुण कुमार डे ने भवानीपुर गांव के थाने में शिकायत दर्ज कराई थी.

पहले कोकरा?ार के चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट ने जमानत देने से इनकार कर दिया. पहली अदालतें अब देशभर में पुलिस के कथन को परम सत्य मानने लगती हैं और कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ता है और तब तक एकडेढ़ महीना लग जाता है.

अंधपूजकों की बिरादरी कहीं तर्क और तथ्य सम?ा न ले, इसलिए सारे देश में इंडियन पीनल कोड की 295 ए का जम कर दुरुपयोग किया जा रहा है कि धर्म की पोल न खोली जा सके. कोई धर्म का दुकानदार नहीं चाहता कि लोगों को उन के अपने धर्म के असल किस्सेकहानियां पढ़ने या सुनने को मिलें. धर्म के दुकानदार अपने भक्तों को गहरे अंधकार में रखना चाहते हैं और इन भक्तों में राजनीतिक पार्टियों के लोग तो हैं ही, पुलिस वाले, जज, वकील भी शामिल हैं.

कुछ वर्षों पहले बाबा धाम के नाम से मशहूर देवघर के खिजूरिया गांव के लेखक बुद्धन बौद्ध को हिंदू धर्मग्रंथों का पाखंड उजागर करने के जुर्म में आखिर राहत मिल गई है. 85 वर्षीय बुद्धन बौद्ध को 8 वर्षों तक चले मुकदमे की मुसीबतों और 49 दिनों तक जेल में कैद रहने की परेशानियों से अब नजात मिली है, अदालत ने उन्हें बरी कर दिया है.

अदालत के फैसले से एक बार फिर धर्म के उन ठेकेदारों को मुंह की खानी पड़ी है जो बातबेबात धार्मिक जज्बातों को चोट पहुंचाने, सामाजिक भाईचारे का माहौल बिगाड़ने और आपसी बैरविद्वेष फैलने की शिकायतें कर के लेखकों, पत्रकारों, संपादकों, हास्य कलाकारों और समाज सुधारकों को पुलिस, अदालतों के चक्कर में फंसा कर बेवजह परेशान करते हैं.

23 सितंबर, 2006 की पीठ परिषद, देवघर के प्रदेश संयोजक प्रभात कुमार सिंह, धर्म जागरण सभा के विभाग प्रमुख नारायण कुमार टिबड़ेवाल, पंडा धर्म बिरादरी सभा के महामंत्री लालमणि, विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय उपाध्यक्ष ब्रजेश तुलस्यान और भाजपा के मधुकर चौधरी ने देवघर पुलिस सुपरिंटेंडैंट को लिखित शिकायत पेश की.

शिकायत में कहा गया कि गांव खिजूरिया (भूतबंगला), थाना मोहनपुर, जिला देवधर निवासी बौद्धन बौद्ध ने ‘धर्म घोटाला कांड का परदाफाश,’ ‘लिंगोपासना रहस्य’ नामक किताबों में हिंदू देवीदेवताओं के खिलाफ अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल कर हिंदू धर्मावलंबियों की आस्था व विश्वास को चोट पहुंचाई है और हिंदू धर्म को अपमानित किया है. लेखक द्वारा समाज में घृणा फैलाने का काम किया जा रहा है. बौद्ध के कामों में समाज में बैर फैल रहा है. उन के काम से जातीय तनाव व सांप्रदायिक हिंसा से तमाम देश को ?ांकने का एक सोचासम?ा षड्यंत्र मालूम होता है. बुद्धन बौद्ध और उन के सहयोगियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर उन की राष्ट्रद्रोही एवं विद्वेषपूर्ण हरकतों पर रोक लगाएं.

इस शिकायत के बाद 24 जनवरी, 2007 को लेखक बुद्धन बौद्ध के खिलाफ मोहनपुर थाना में 153ए /295 ए,/ 298,/268/505/ 120 के तहत मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

मामला देवघर के सब डिवीजनल जुडिशियल मजिस्ट्रेट संजय कुमार सिंह की अदालत में चला. इस बीच देवघर की अदालत में हिंदू कट्टरपंथियों ने बुद्धन बौद्ध की जमानत नहीं होने दी. आखिर 49 दिनों तक जेल में रहने के बाद रांची हाईकोर्ट से उन की जमानत हुई.

अदालत में बुद्धन बौद्ध के बयान हुए. उन्होंने खुद को बेकुसूर बताया. पुलिस ने किस्तुदास और बदरी मेहता नामक 2 सरकारी गवाह ही पेश किए, जिन्होंने इतना ही कहा कि पुलिस ने उन से खाली कागज पर दस्तखत कराए. पुलिस ने क्याक्या जब्त किया, इन गवाहों को कुछ मालूम नहीं था.

गवाहों ने तो कुछ कहा नहीं पर सुबूतों और दोनों तरफ के वकीलों की जिरह सुनने के आधार पर मजिस्ट्रेट संजय कुमार सिंह ने लेखक बुद्धन बौद्ध को बरी कर दिया. बुद्धन बौद्ध द्वारा कथित हिंदू धर्म को बदनाम करने, बैर फैलाने वाली किताबों में कुछ भी गलत नहीं पाया गया.

धर्म से किन को फायदा

?ारखंड में तीसरे दरजे की सरकारी नौकरी से रिटायर्ड बुद्धन बौद्ध ने हिंदू धर्मग्रंथों के आधार पर कुछ किताबें लिखी थीं. इन किताबों में उन्होंने धर्म के पाखंड, देवीदेवताओं, अवतारों और पंडों की लंपटता को उजागर किया है. ‘धर्म घोटाला कांड का परदाफाश’ किताब में बुद्धन बौद्ध ने 16वीं शताब्दी में भारत आए एक यात्री लुडोविको की किताब के हवाले से लिखा था कि एक समय नियम था कि कोई व्यक्ति नवविवाहिता पत्नी लाता तो पत्नी के साथ वह तब तक सहवास नहीं कर सकता था जब तक कि कोई पंडापुजारी उस के साथ सहवास न कर ले.

‘धर्म घोटाला कांड का परदाफाश’ में एक जगह धर्मग्रंथों की कथा का जिक्र करते हुए लिखा गया था- हमारे यहां भ्रष्टाचारी देवता हुए हैं जिन्होंने वेश बदल कर हर नारी का शीलहरण किया.

बुद्धन बौध का कहना था, हिंदू धर्म के अंधविश्वास आड़े न आते तो हमें पराजय का मुंह न देखना पड़ता. बौद्धन की एक और पुस्तक ‘भगवान मानव जाति की एक कल्पना और भ्रम है’ में  लिखा है कि ब्रह्मा क्या है, यह कोई नहीं जानता है. यह एक भूलभुलैया है. इस तरह लिखी गई बातों को सब डिवीजन जुिडशियल मजिस्ट्रेट (एसडीजेएम) ने गलत या उत्तेजक नहीं माना.

धर्म से जिन लोगों को फायदा पहुंचता है वे मिल कर धर्म, देवीदेवताओं की सचाई को सामने रखने वाले लेखकों, संपादकों के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और जातीय घृणा फैलाने जैसे कपोलकल्पित आरोप लगा कर मामला दर्ज करा देते हैं. महज एक शिकायत के आधार पर लिखने या बोलने वाले को जेल में डाल दिया जाता है.

असल में 295 ए, धार्मिक वैमनस्य फैलाना, 505 (2) और 153 ए (वैमनस्य पैदा करना व घृणा फैलाना) जैसी धाराओं का कट्टरपंथियों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है. यह कानून संविधान की भावना के खिलाफ है. संविधान में जहां अधिकार बताए गए हैं तो नागरिक के कर्तव्य भी बताए गए हैं, वैज्ञानिक चेतना और विचारों की बात भी कही गई है.

धर्म के ठेकेदारों को इस के नाम पर अंधविश्वासों और आस्था को थोपने का हक मिला हुआ है. धर्म में सुधार करने से रोका जाता है. इस तरह की शिकायत किसी भी थाने में करते ही फौरन कार्रवाई शुरू हो जाती है और सारी व्यवस्था लिखे हुए, बोले हुए को विवेक से जांचेपरखे बिना प्रताड़ना शुरू कर दी जाती है.

धर्म की खाने वाले ऐसी शिकायतों के जरिए न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हैं. वे लोगों को समाज सुधार की बात नहीं करने देते. सुधार की बातें लिखने, करने वालों को जेल में ठूंस दिया जाता है. ऐसी शिकायतों के कारण जातीय विद्वेष बढ़ता है. शिकायत के आधार पर लगाई गई धाराएं जातिव्यवस्था को कायम रखने में मददगार हैं.

देश में धर्म और जाति को ले कर जो बवाल मचा हुआ है उसे जाननेपरखने के लिए हिंदू धर्मग्रंथों को खंगालना जरूरी है. ज्यादातर लेखक अपने धर्म की बुराई करने से परहेज करते हैं.

अफसोस की बात यह भी है कि हिंदू ही नहीं, मुसलमान, ईसाई, सिख धर्मों के कट्टरपंथी अपने धर्मों की खामियों को छिपाने के लिए इसी कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं. धर्मों, देवताओं, अवतारों और गुरुओं की पोल खुलने से इन की दुकानदारी पर असर पड़ता है.

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