महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर में पिछले दिनों आयोजित एक कार्यक्रम में कुलपति प्रो. नरेंद्र सिंह राठौड़ ने रजनीगंधा पुष्प की 2 किस्में प्रताप रजनी 7 और प्रताप रजनी -7 (1)  का विमोचन किया. वर्तमान में रजनीगंधा फूलों की इन दोनों किस्मों का परीक्षण 14 अखिल भारतीय पुष्प अनुसंधान केंद्रों पर किया जा रहा है.

रजनीगंधा की इन 2 नई किस्मों की विशेषताएं

रजनीगंधा की इन दोनों किस्मों का उपयोग लैंडस्केपिंग, टेबल डैकोरेशन, भूमि सौंदर्य एवं फ्लावर ऐक्जीबिशन, कम ऊंचाई के गुलदस्ते बनाने में किया जा सकता है. साथ ही, इन दोनों किस्मों में ज्यादा सुगंधित होने के चलते घर के अंदर का माहौल भी खुशबूनुमा बन जाता है.

इन किस्मों के फूलों  में तकरीबन 35 तरह के फ्लोरैंस पाए जाते हैं.

प्रताप रजनी-7 की ऊंचाई 38 सैंटीमीटर और प्रताप रजनी-7 (1) की ऊंचाई

42 सैंटीमीटर रहती है और कली अवस्था पर लाल रंग पाया जाता है.

रजनीगंधा की खेती के लिए सरकार से सब्सिडी भी मिलती है. उद्यान व खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उत्तर प्रदेश की तरफ से राष्ट्रीय औद्यानिक मिशन के तहत किसानों की माली मदद भी दी जाती है.

छोटे और सीमांत किसानों के लिए कुल लागत का 50 फीसदी या अधिकतम 35,000 रुपए प्रति हेक्टेयर लाभ दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ 2 हेक्टेयर जमीन तक ही लाभ दिया जाता है.

दूसरे किसानों के लिए कुल लागत का 33 फीसदी या अधिकतम 23,100 रुपए प्रति हेक्टेयर दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ 4 हेक्टेयर जमीन पर ही लाभ दिया जाता है.

अगर आप के यहां की आबोहवा भी रजनीगंधा के फूलों की खेती करने के मुताबिक है, तो आप भी इस का लाभ ले सकते हैं. एक तरफ पारंपरिक खेती से जहां सीमित आमदनी होती है, तो वहीं दूसरी तरफ फूलों की खेती से आप अच्छी आमदनी ले कर अपने और घरपरिवार की जिंदगी को भी महका सकते हैं. इस के लिए जरूरी है कि आप इस की खेती वैज्ञानिक तरीके से करें और खेती करते समय कृषि ऐक्सपर्ट की राय लें.

रजनीगंधा के फूल लंबे समय तक सुगंधित और ताजा बने रहते हैं, इसलिए इन की मांग बाजार में काफी है. भारत में इस की खेती पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में की जाती है और इस के फूलों की खेती तकरीबन 20,000 हेक्टेयर क्षेत्र में हो रही है.

रजनीगंधा की खेती के लिए जलवायु व भूमि

रजनीगंधा की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन यह बलुईदोमट या दोमट, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में आसानी से की जा सकती है.

रजनीगंधा की खेती के लिए खेत को तैयार करने के लिए मिट्टी को भुरभुरा करना जरूरी है. इस के लिए 2 से 3 बार खेती की जुताई जरूरी है.

रजनीगंधा एक शीतोष्ण जलवायु का पौधा है. यह पूरे साल मध्यम जलवायु में भी उगाया जाता है. 20 से 35 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान रजनीगंधा के विकास और वृद्धि के लिए सही होता है. हलकी धूप वाली खुली जगहों में इसे अच्छी तरह से उगाया जा सकता है. छायादार जगह इस के लिए सही नहीं होती है.

रंजनीगंधा के पौधे 60 से 120 सैंटीमीटर  लंबे होते हैं, जिन में 6 से 9 पत्तियां, जिन की लंबाई 30-45 सैंटीमीटर और चौड़ाई 1.3 सैंटीमीटर होती है. पत्तियां चमकीली हरी होती हैं और पत्तियों के नीचे लाल बिंदी होती है. फूल लाउडस्पीकर के चोंगे के आकार के एकहरे व दोहरे सफेद रंगों के होते हैं.

रजनीगंधा की उन्नत किस्में

रजत रेखा, श्रीनगर, सुभाषिणी, प्रज्वल, मैक्सिकन सिंगल रजनीगंधा की उन्नत किस्में हैं. ये रजनीगंधा की इकहरी किस्में हैं. इस के अलावा इस की दोहरी किस्मों में कलकत्ता डबल, स्वर्णरेखा, पर्ल वगैरह आती हैं.

फूलों की खेती से लाभ

रजनीगंधा के फूलों को माला बनाने, सजावट के काम में लेने में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. इस के अलावा इस के फूलों से  तेल भी मिलता है, जिस का इस्तेमाल इत्र या परफ्यूम बनाने में किया जाता है.

रजनीगंधा की खेती कैसे करें

फसल से अच्छी  पैदावार लेने के लिए उस में जरूरी मात्रा में जैविक खाद या कंपोस्ट खाद का होना जरूरी है. इस के लिए एक एकड़ जमीन में 25-30 टन गोबर की सड़ी खाद बराबरबराबर मात्रा में देनी चाहिए.

रोपाई के लिए इस के कंद का आकार

2 सैंटीमीटर व्यास का या इस से बड़ा होना चाहिए और हमेशा सेहतमंद और ताजे कंदों को ही रोपना चाहिए. कंदों को 4-8 सैंटीमीटर की गहराई पर और 20-30 सैंटीमीटर लाइन से लाइन और 10-12 सैंटीमीटर कंद से कंद के बीच की दूरी पर रोपणा चाहिए.

कंदों को रोपते समय भूमि में सही नमी होनी चाहिए. एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में तकरीबन 1,200-1,500 किलोग्राम कंदों की जरूरत होती है.

खाद व उर्वरक

फसल से बेहतर पैदावार लेने के लिए एक एकड़ जमीन में 25-30 टन गोबर की सड़ी खाद डालें. बराबरबराबर मात्रा में नाइट्रोजन

3 बार दें. एक तो रोपाई से पहले, दूसरी इस के तकरीबन 60 दिन बाद और तीसरी मात्रा तब दें, जब फूल निकलने लगें.

तकरीबन 90 से 120 दिन बाद कंपोस्ट खाद दें और फास्फोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दें.

समय पर सिंचाई व निराईगुड़ाई

रजनीगंधा कंद की रोपाई के समय पर्याप्त नमी हो. जब कंद के अंकुर निकलने लगें, तब सिंचाई से बचना चाहिए. गरमी के मौसम में फसल में 5-7 दिन और सर्दी में 10-12 दिन के अंतराल पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करना उचित रहता है. इस के बाद भी मौसम की दशा, फसल की वृद्धि अवस्था और जमीन के प्रकार को ध्यान में रख कर सिंचाई व्यवस्था का निर्धारण करना चाहिए.

फसल में खरपतवार की रोकथाम भी जरूरी है, इसलिए समयसमय पर निराईगुड़ाई का काम करना चाहिए, जिस से रजनीगंधा के पौधों को अच्छी बढ़वार मिल सके.

फसल में कीट व रोग की रोकथाम

अगर फसल में कीट व रोगों का प्रकोप दिखाई दे, तो फसल को बचाने के लिए जरूरी दवाओं का इस्तेमाल करें. रजनीगंधा में तना गलन रोग लगने का डर रहता है. इस रोग के कारण पत्तों की सतह पर फंगस और हरे रंग के धब्बे भी देखे जा सकते हैं. कई बार पौधों से पत्ते ?ाड़ भी जाते हैं.

रजनीगंधा में धब्बा और ?ालसा रोग भी लगता है. ये रोग अकसर बरसात के मौसम में फैलता है. इस रोग के चलते फूलों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. रोगों से रजनीगंधा को बचाने के लिए समयसमय पर कृषि विशेषज्ञों से सलाह ले कर उचित उपाय करें.

कीट व रोग से बचाव भी जरूरी

रजनीगंधा में कीट व रोग लगने का डर रहता है. चेंपा, थ्रिप्स और सूंड़ी का सब से ज्यादा प्रकोप इन पौधों पर हो सकता है.

चेंपा और थ्रिप्स से बचाव के लिए फसल पर उचित कीटनाशक दवाओं का सीमित मात्रा में छिड़काव करना चाहिए.

फूलों की तुड़ाई

तकरीबन 3-4 महीने बाद फसल में फूल आने लगते हैं, लेकिन फूलों को पूरी तरह खिलने पर ही तोड़ना चाहिए. जिस तरह से फलसब्जी की तुड़ाई का काम सुबह या शाम के समय करते हैं, उसी तरह फूलों को चुनने का अच्छा समय भी सुबह या शाम का ही होता है. तुड़ाई के बाद फूलों की पैकिंग कर उन्हें बाजार में भेजें.

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