कोरोना काल के बाद से बौलीवुड बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है.इसके लिए कोई और नहीं बल्कि बौलीवुड के फिल्मकार व कलाकार खुद ही दोषी हैं. पिछले तीन चार माह के अंतराल में जितनी भी फिल्में प्रदर्शित हुई हैं,वह सभी घिसे पिटे विषयों पर बहुत ही बकवास ढंग से बनायी गयी नीरस फिल्में ही हैं. मगर ऐसी ही फिल्मों के बीच एक आध फिल्म सर्जक कुछ अच्छा काम कर रहे है. मसलन-लेखक,एडीटर व निर्देशक मनोज शर्मा, जिनकी फिल्म ‘‘देहाती डिस्को’ 27 मई को प्रदर्षित होने जा रही है. नाम के अनुरूप मनोज शर्मा की यह फिल्म भी कुछ वर्ष पहले आयी डांस फिल्म ‘एबीसीडी’ की तर्ज पर बनी डांस फिल्म होनी चाहिए.मगर खुद मनोज शर्मा का दावा है कि यह ‘एबीसीडी’ की तर्ज पर बनी डांस फिल्म नही है. बल्कि इस फिल्म की कहानी में डांस है. इस फिल्म का मूल मकसद लोगों के हर तरह के पाखंड, अंधविश्वास, अभिषाप व वहम को तोड़ना है.
प्रस्तुत है मनोज शर्मा से हुई बातचीत के मुख्य अंश:
बॉलीवुड में सहायक निर्देशक से कैरियर शुरू करने वाला वहीं तक सीमित होकर रह जाता है? मगर आपने इसे तोड़कर …
-आपने एकदम सही कहा.पर मैने पहले सहायक एडीटर व फिर एडीटर के रूप में काम किया.एडीटर होने की वजह से मुझे काफी फायदा मिला.मैं 2004 में वीनस संगीत कंपनी के साथ जुड़ा और उनके लिए म्यूजिक वीडियो निर्देशित करने लगा.मैने ‘तुम तो ठहरे परदेसी’,‘यारों मैंने पंगा ले लिया’, ‘आवारा हवाओं का झोका हूं’ सहित कई सफलतम म्यूजिक वीडियो निर्देशित किए.
उन्हीं के लिए फिल्म ‘माई का बेटवा ’ भी निर्देशित किया.उसके बाद पीछे मुड़कर देखने नहीं पड़ी. फिल्म ‘माई का बेटवा’ के बाद लोगों को पता चल चुका था कि मनोज शर्मा केवल वीडियो निर्देशक नहीं है.वह तो फिल्म एडीटर व फिल्म निर्देशक है. फिर मैंने आशाराम बापू पर विवादास्पद फिल्म ‘स्वाहा’ निर्देशित की.उसके बाद ‘बिन फेरे फ्री में तेरे’,‘यह है लॉलीपॉप’, ‘प्रकाश इलेक्ट्रॉनिक्स,‘चल गुरू हो जा शुरू’,‘शर्मा जी की लग गयी’ सहित दस वर्ष के अंदर सत्रह फिल्में निर्देशित की.
आप अपने कैरियर का टर्निंग प्वाइंट किसे मानते हैं?
-हकीकत में बतौर निर्देशक मुझे लाइम लाइट इस फिल्म ‘‘देहाती डिस्को’’ से मिल रहा है.इससे पहले मेरी कुछ फिल्में चली,कुछ नहीं चली. मगर मैंने जिनके साथ भी काम किया,वह सभी मेरे टैलेंट व मेरे व्यवहार को जानते हैं. मेरे काम करने के तरीके से भी लोग परिचित हैं.‘शर्मा जी की लग गयी’ से भी मुझे अच्छी पहचान मिली थी. इसमें कृष्णा अभिषेक व मुग्धा गोड़से थी. फिल्म को अच्छी सफलता मिली थी.लेकिन ‘देहाती डिस्को ’ से पहले की फिल्मों का उनके निर्माताओं ने बड़े स्तर पर प्रमॉशन नहीं किया था. फिल्म का प्रमोशन बहुत मायने रखता है. ‘देहाती डिस्को’ में सभी बड़े तकनीशियन हैं.
निर्माता इसे अच्छे से प्रमोट कर रहे हैं. गणेश आचार्य जी लीजेंड है, इसलिए पूरी फिल्म इंडस्ट्री उनको सपोर्ट कर रही है.तो अपरोक्ष रूप से मुझे सपोर्ट मिल रहा है.इसलिए ‘देहाती डिस्को’ से मुझे बतौर निर्देशक पहचान मिल रही है.
आप लेखक,एडीटर व निर्देशक हैं.यह कितना सुविधाजनक हो जाता है?
-देखिए,मैं खुले विचारों और सकारात्मक सोच वाला इंसान हूं.यदि निर्माता कहता है कि उसके पास कहानी है,तो मैं वह सुनता हूं. उस कहानी में दम होता है, तो मुझे उस पर भी काम करने से कोई परहेज नहीं होता.
हमारा मकसद तो दर्शकों तक अच्छी कहानी को लेकर जाना ही है.कइ बार मेरा सहायक भी बहुत बेहतरीन आउट लाइन सुना देता है. जब कोई निर्माता कहता है कि मनोज जी हमें आपकी स्टाइल की कॉमेडी फिल्म बनानी है, तब मैं अपनी कहानी उन्हे सुनाता हूं. उन्हें अच्छी लगती है, तब हम उस पर काम करते हैं. यदि मेरी कहानी उन्हे पसंद नहीं आती, तो मैं कहता हूं कि आप किसी अच्छे लेखक से मुझे कहानी सुनवाइए. मेरे लेखक,एडीटर व निर्देशक होने का सबसे बड़ा फायदा मुझे नहीं,बल्कि निर्माता को होता है.कलाकार को होता है.हम कलाकार से बारह दिन की तारीख लेकर शूटिंग शुरू करते हैं,पर जब बारह दिन में शूटिंग पूरी होने की बजाय तीस या चालिस दिन लग जाते हैं, तो कलाकार भी चिढ़ जाता है.इससे निर्माता को भी आर्थिक नुकसान होता है. जब एडीटर खुद लिखता व निर्देशित करता है, तो उसे पता होता है कि कितना लंबा किस तरह का दृष्य चाहिए.ऐसे में ज्यादा रीटेक या ज्यादा शूटिंग करने की जरुरत नहीं पड़ती.मुझे एडीटिंग आती है, इसलिए सेट पर आठ कलाकारों की जरुरत होने पर भी मैं सभी का इंतजार नहीं करता.जो कलाकार आ जाता है,उसके सोलो दृश्य फिल्म लेता हूं,क्योंकि सोलो दृष्य भी चाहिए होते हैं.
‘‘देहाती डिस्को’’ तो पूरी तरह से डांस प्रधान फिल्म ही है?
-जी नहीं..यह नृत्य प्रधान फिल्म नही है.बल्कि यह बाप बेटे की भावना प्रधा कहानी है.कहानी में डांस है.यह एक ऐसे गांव की कहानी है,जहां डांस करना अभिशाप माना जाता है.डांस के ही कारण बाप बेटे को गांव से निकाल दिया जाता है.उसी गांव में जब एक मंत्री का बेटा उसी मंदिर प्रांगण में वेस्टर्न डांस का स्कूल खोलना चाहता है.तब जिन्हे गांव से बाहर किया गया था, वही अपने देश के डांस के बल पर वेस्टर्न वाले को बाहर का रास्ता दिखाते हैं और भारतीय संस्कृति की रक्षा करते हैं.
अभिशाप के मसले को फिल्म में किस तरह से दिखाया है?
-देखिए,समाज में जो कुछ पाखंड चल रहा है,उसका चित्रण करते हुए हमने इस बात को रेखांकित करने का प्रयास किया है कि अभिशाप वगैरह कुछ नहीं होता.
मैं तो उत्तर प्रदेश के बुलंदषहर जिले के एक छोटे शहर खुर्जा का रहने वाला हूं. खुर्जा के आस पास चालिस गांव हैं.हर गांव में कुछ न कुछ अभिशाप वगैरह की किवंदंतिया हैं. कुछ अंधविष्वास फैले हुए हैं.मैने अपनी इस फिल्म ‘‘देहाती डिस्को’’ में उस अंधविश्वास को तोड़ा है.मैंने अपने किरदारों के माध्यम से उस अभिषाप को तोड़ा है.कोई आपदा आ जाए,तो उसे आप ‘डांस का अभिषाप’ नाम कैसे दे सकते हैं?मैंने सवाल उठाया है कि जिस अभिषाप की बात को या जिस अंधविश्वास को आप कई दशकों से ढोते चले आ रहे हैं,उसका कोई प्रामाणिक सबूत है?मैंने इस फिल्म में कहा है कि डांस या कला तो भगवान का रूप है,वह अभिषाप कदापि नहीं हो सकता.जिस कार्य को करने से मन को सकून मिलता है, मन को शांति मिलती है,वह अभिशाप नहीं हो सकता है. मैंने इस बात को बहुत ही तार्किक तरीके से फिल्म में रखा है. हम अपनी फिल्म के माध्यम से लोगों को अंधविष्वास के खिलाफ जागरूक करने का काम कर रहे हैं.
क्या आपकी फिल्म इस बारे में बात करती है कि मंदिरों के महंत खुद को सुरक्षित रखने के लिए अभिशाप की बातें फैलाते हैं?
देखिए ,हमारे देश में इंसान के हर रूप मौजूद है.हमने उन सभी को अपनी फिल्म का हिससा बनाया है.फिल्म देखकर आपकों अहसास होगा कि हमने सच को उजागर किया है.कुछ लोग सकारात्मक बातें करते हैं, तो कुछ लोग अपने हित के लिए लोगों में भ्रम पैदा करते हैं.डर फैलाते हैं. हमने उसी वहम को तोड़ने का काम किया है.
फिल्म का नाम ‘देहाती डिस्को’ क्यों?
-देहाती यानी कि देह यानी कि आत्मा.यानी कि देष की आत्मा. यानी कि शुद्ध देसी नृत्य.इसमें हमने जान बूझ कर वेस्टर्न षब्द ‘डिस्को’ जोड़ा है.
इंसान के लिए नृत्य कितना आवश्यक मानते हैं?
मेरी राय में नृत्य तो जीवन का अभिन्न अंग है. खुशी का मौका हो या गम का हर मौके पर नृत्य किया जाता है.बच्चे के जन्म से लेकर मृत्यू तक हर संस्कार के समय,हर अवसर पर डांस किया जाता है.नृत्य के माध्यम से इंसान अपनी भावनाओं को बड़ी सहजता से पेश कर सकता है.खुद को चुस्त दुरूस्त रखने के लिए भी डांस किया जाता है. डांस करने से इंसान के शरीर में एक लचक,एक रिदम के साथ ही एक ‘ग्रेस’
आता है. भारतीय संस्कृति का एक हिस्सा होते हुए भी नृत्य इंसान को दिमागी रूप से सकून प्रदान करता है. हमने उसी डांस की संस्कृति का बढ़ावा दिया है.हम किसी भी प्रकार के डांस के खिलाफ नहीं हैं.हमारी फिल्म की टैग लाइन है- ‘आप जो सीखकर आए हैं, हम उसका सम्मान करते हैं,लेकिन हमें अपनी कला पर गर्व है.
’’ हम हिप हॉप डांस का अपमान नहीं कर रहे हैं. हिप हाप डांस भी कला है. हर तरह के डांस को करने के लिए टैलेंट तो चाहिए ही.
गणेश आचार्य नृत्य निर्देशक होने के साथ साथ फिल्म भी निर्देशित कर चुके हैं. तो आपको इस बात का शक नहीं था कि वह आपके काम मेंव सेट पर उंगली करेंगें?
मैं तो इसे अच्छा मानता हूं. देखिए,सेट पर एक सहायक या कैमरामैन भी हमें सलाह दे सकता है और निर्देषक होने के नाते उसकी बात को सुनना और उस पर गौर करना भी चाहिए.क्योंकि सेट पर हर कलाकार व तकनीशियन फिल्म की बेहतरी की ही बात सोचता है. गणेश मास्टर जी यदि कुछ गलत कहेंगे, तो मैं क्यों मानने लगा.पर उनकी सही बात पर गौर करता हॅूं. कई बार सेट पर हमारा कैमरामैन कहता है कि यदि हम ट्रॉली को लेफ्ट में राइट से चलाएं.तो मैं कहता हूं कि चला कर दिखा. बात समझ में नहीं आती तो कहता हूं कि नही तू लेफ्ट से ही चला. देखिए,अब काम करना आसान हो गया है.अब हम उसी वक्त मॉनीटर पर देख लेते हैं और जरुरत हो दो बार शूट कर लेते हैं.गणेष मास्टर जी बहुत बड़े तकनीशियन हैं.वह कई बड़े बड़े गाने फिल्मा चुके हैं. फिल्म निर्देषित कर चुके हैं.सेट पर एक बार उन्होने कहा कि,‘मनोज इस दृष्य को ट्रॉली के उपर से देख कैसा लगेगा? उन्होने यह नहीं कहा कि तुझे इसी तरह से लेना पड़ेगा? गणेष मास्टर जी इतने वर्षों से इंडस्ट्री में है. समझदार हैं.उन्होने प्रोटोकाल नहीं तोड़ा. हमेशा एक भाई की ही तरह व्यवहार किया.
ट्रेलर का रिस्पांस किस तरह का आ रहा है?
लोग कह रहे हैं कि फिल्म में कंटेंट तो है.एक्शन व डांस भी है,जिससे लोगों के अंदर एक उत्सुकता पैदा हो रही है. देखिए हमारी फिल्म में कुछ कमियां है,तो उन्हें हम स्वीकार करने को तैयार हैं.देखिए,रचनात्मकता में तो अंतिम समय तक सुधार की जरुरत रहती ही है.
इसके अलावा क्या कर रहे हैं?
मेरी एक दूसरी फिल्म ‘‘खली बली’ प्रदर्षन के लिए तैयार है.इस फिल्म में लंबे समय बाद धर्मेंद्र जी नजर आने वाले हैं.इस फिल्म स मधु की वापसी हो रही है.
इसके अलावा इसमें रजनीश दुग्गल,विजय राज,राजपाल यादव जैसे कलाकार है.यह पूरी तरह से हॉरर कॉमेडी कमर्शियल फिल्म है.इसके अलावा दो फिल्मों की शूटिंग शुरू करने वाला हूं. इनमें से एक फिल्म ‘‘कालिंग शिवा’’ है, जो कि कश्मीर की वर्तमान परिस्थितियों पर है. इसे हम कश्मीर में ही फिल्माएंगे. यह कश्मिरी पंडित की इमोशनल फिल्म है.
क्या फिल्म ‘कालिंग शिवा’ में जम्मू एंड कष्मीर में 370 हटने के बाद के हालात की बात होगी?
-जी हां! मैं आज 2022 की कहानी कहने जा रहा हूं. मैं गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ता. हम तो लोगों को आगे बढ़ना सिखाने में यकीन करते हैं.370 हटने के बाद पंडित वापस कष्मीर जा रहा है. उसके बेटे कहते है कि, ‘पापा अब क्यों जा रहे हैं.हमने दिल्ली में अच्छा मकान बना लिया है, हमारी बहुत बड़ी फैक्टरी है.पर वह नही मानता.वह कश्मीर जाकर अपने बंद पड़े पुश्तैनी मकान में गार्मेंट फैक्टरी उन कश्मिरी लड़को के लिए खुलवाकर वापस दिल्ली आ जाता है,जिन्हे रोजगार की जरुरत है.तो हम अपनी फिल्म में सकारात्मक बातें कर रहे हैं.हम समस्या का चित्रण नही बल्कि समस्या का हल दे रहे हैं.जो लोग यथार्थपरक सिनेमा के नाम पर अपनी फिल्मों में महज समस्याओं का चित्रण कर रहे हैं, उनके पक्ष में नही है.मेरा मानना है कि आप समस्या का चित्रण तभी करें,जब उसका हल आपके पास हो.फिल्म में समस्या के हल की बात तो होनी ही चाहिए.