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CUET: परीक्षा बदला पैटर्न, चिंता वही

देश की सैंट्रल यूनिवर्सिटीज में स्टूडैंट्स के दाखिले के लिए कटऔफ की जगह एंट्रैंस टैस्ट अनिवार्य कर दिया गया है. ऐसे में एंट्रैंस टैस्ट को ले कर उन में कई तरह के कन्फ्यूजन्स हैं. आइए जानें कि उन कन्फ्यूजन्स को कैसे दूर करें.

कालेज में जाने का सपना किस यंगस्टर का नहीं होता, महानगरों में बने विश्वविद्यालयों में तो कालेज की दहलीज तक घुसने के लिए भारी जद्दोजेहद करनी पड़ती है. हर युवा चाहता है कि वह कालेज की लाइफ एंजौय करे, अपनी पढ़ाई के साथसाथ हमउम्र युवा को दोस्त बनाए, नया फ्रैश माहौल हो, बिना बाउंडेशन के खुले में घूमनेफिरने की आजादी हो, दुनिया को देखेसम?ो, हिचकिचाहट दूर करे.

कोविड महामारी के चलते 2 वर्षों से पूरे देश के एजुकेशन सिस्टम पर भारी असर पड़ा. स्कूलों से ले कर कालेजों तक को बंद करने की नौबत आ गई. पढ़ाई और एग्जाम औनलाइन शुरू हुए. इस दौरान स्टूडैंट्स ने कई बदलाव देखे. इन सब से निकलने के बाद अब छात्रों को एक नए बदलाव से गुजरना पड़ेगा. यह बदलाव हायर एजुकेशन में हुआ है.

देश में ‘न्यू एजुकेशन पौलिसी’ के साथ हायर एजुकेशन में दाखिले की प्रक्रिया में बदलाव आया है. इस साल से सैंट्रल यूनिवर्सिटीज के ग्रेजुएशन कोर्सेज में एडमिशन के लिए एंट्रैंस टैस्ट देना अनिवार्य कर दिया गया है. अब दाखिले कटऔफ के आधार पर नहीं होंगे. यानी 12वीं के मार्क्स मिनिमम एलिजिबिलिटी तो बन सकते हैं पर एडमिशन दिलाने का टिकट नहीं.

नए नियमानुसार, सरकार इस एग्जाम के माध्यम से देश के सभी स्टूडैंट्स को एकसमान अवसर देना चाहती है ताकि छात्रों को राज्यों के अलगअलग बोर्डों के आधार पर भेदभाव का सामना न करना पड़े और ऊंचीऊंची कटऔफ का डर छात्रों के मन से निकल जाए.

यानी पहले जैसे 12वीं क्लास में नंबर लाने की होड़ मची रहती थी, कुछ चयनित यूनिवर्सिटीज और कालेजों में दाखिले के लिए मारामारी मची रहती थी. अब उस तरह की होड़ नहीं रहेगी. एग्जाम में जो कालेज अनुसार बेहतर रैंक ले कर आएगा उसे दाखिला मिल जाएगा.

यूजीसी के नए नियमों के अनुसार देश की 45 सैंट्रल यूनिवर्सिटीज व इन से संबंधित तमाम कालेजों में छात्रों को इस सैशन से ग्रेजुएशन कोर्सेज में सैंट्रल यूनिवर्सिटीज एंट्रैंस टैस्ट (सीयूईटी) की रैंक के आधार पर ही दाखिला मिलेगा, जिस का एग्जाम नीट और आईआईटी की तरह नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी (एनटीए) लेगी. यह एग्जाम जुलाई के पहले या दूसरे हफ्ते के बीच में होगा.

अब चूंकि यह एंट्रैंस टैस्ट इसी साल से शुरू हो रहा है, इसलिए देश के तमाम छात्रों के बीच चिंता और असमंजस की स्थिति बन गई है. चिंता जायज भी है. कारण है नई प्रक्रिया में कई पेचीदगियां होना, जो एकदम से सामने आने से कई छात्रों को अभी भी गले नहीं उतर पाई हैं वह भी ऐसे समय में जब

2 वर्षों से स्कूल व कालेजों से छात्र दूर रहे. वे इतना तो सम?ा रहे हैं कि अब कालेजों में दाखिले के लिए एंट्रैंस एग्जाम अनिवार्य हो गया है लेकिन एग्जाम में क्या होगा, कैसे होगा, क्या पूछा जाएगा, सीयूईटी के बाद कालेज में कैसे एडमिशन मिलेगा आदि तमाम तरह के कन्फ्यूजंस छात्रों में हैं. तो आइए कन्फ्यूजंस दूर करें.

परीक्षा का माध्यम

सीयूईटी एग्जाम नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी (एनटीए) कंडक्ट करा रही है. सीयूईटी स्कोर के आधार पर हर यूनिवर्सिटी अपनी मैरिट लिस्ट निकालेगी जिस में सफल कैंडिडेंट को एडमिशन दिया जाएगा.

भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में देश में हो रही घटनाओं, जैसे पेपर लीक, परीक्षाओं में देरी, रिजल्ट में लगने वाले समय और पेपर में होने वाली धांधलियों से बचाव के लिए नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी का गठन किया था, जो सभी प्रकार के एंट्रैंस एग्जाम का देशभर में आयोजन करती है.

जैसे इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश लेने हेतु जौइंट एंट्रैंस एग्जामिनेशन, मैडिकल कोर्स में प्रवेश लेने हेतु नैशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रैंस टैस्ट (नीट), मैनेजमैंट कोर्स में प्रवेश लेने हेतु मैनेजमैंट एडमिशन टैस्ट, फार्मेसी कोर्स में प्रवेश लेने हेतु ग्रेजुएट फार्मेसी एप्टीट्यूड टैस्ट, नैशनल एलिजिबिलिटी टैस्ट (नैट) इत्यादि का आयोजन नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी द्वारा आयोजित किया जाता है, उसी प्रकार ग्रेजुएशन में दाखिले के लिए अब सीयूईटी एग्जाम होंगे.

सीयूईटी कंप्यूटर आधारित टैस्ट (सीबीटी) मोड में आयोजित किया जाएगा जिस में मल्टीपल चौइस क्वेश्चन मिलेंगे. यह एग्जाम 13 भाषाओं में कराया जाएगा. इस के साथ ही इस में एक वैकल्पिक भाषा टैस्ट भी होगा.

भाषा टैस्ट विषय : हिंदी, इंग्लिश, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, मराठी, गुजराती, उडि़या, बंगाली, असमिया, पंजाबी और उर्दू.

वैकल्पिक भाषा टैस्ट विषय : फ्रैंच, स्पेनिश, जरमन, नेपाली, फारसी, इतालवी, अरबी, सिंधी, कश्मीरी, कोंकणी, बोडो, डोगरी, मैथिली, मणिपुरी, संथाली, तिब्बती, जापानी, रूसी और चीनी.

परीक्षा पैटर्न

हर एग्जाम एक तयशुदा पैटर्न पर लिया जाता है, जिस में सिलेबस का खाका खींचा जाता है. अगर एग्जाम में सिलेबस का अतापता न हो तो एग्जाम में कौन से सवाल, किस वेटेज और किस सैक्शन में आएंगे, यह जाने बगैर छात्रों को परेशानी उठानी पड़ सकती है. इसलिए एग्जाम के पैटर्न के बारे में जानना छात्रों के लिए जरूरी हो जाता है तब जब छात्र इस तरह के एग्जाम में पहली बार बैठ रहे हैं.

लेटैस्ट सीयूईटी अपडेट 2022 के अनुसार, सीयूईटी प्रवेश परीक्षा 2022 का प्रश्नपत्र 3 सैक्शनों में होगा.

सैक्शन आईए : 13 भाषाएं (माध्यम).

सैक्शन आईबी : 20 भाषाएं.

सैक्शन ढ्ढढ्ढढ्ढ : 27 विषय डोमेन.

सेक्शन ढ्ढढ्ढढ्ढ : सामान्य टैस्ट.

पहले सैक्शन में हर भाषा में 50 में से 40 प्रश्न करने होंगे. प्रत्येक भाषा के लिए 45 मिनट दिए जाएंगे. इस में लैंग्वेज से जुड़े प्रश्न होंगे.

दूसरे सैक्शन में 27 डोमेन सब्जैक्ट के औप्शन होंगे. जिस में वह सब्जैक्ट चुनने का औप्शन है जो 12वीं में छात्रों ने पढ़े हैं या जिन का वे एग्जाम देना चाहते हैं. इन में से अधिकतम 6 सब्जैक्ट छात्र चुन सकेंगे. इस में भी 50 प्रश्न होंगे जिन में से 40 करने होंगे और इस के लिए 45 मिनट दिए जाएंगे.

तीसरे सैक्शन में जनरल टैस्ट होगा. इस में जीके, करंट अफेयर्स, मैंटल एबिलिटी, बेसिक मैथमैटिकल नौलेज आदि शामिल होंगे. इस में कुल 75 सवाल पूछे जाएंगे, जिन में से 60 प्रश्न करने होंगे. इस सैक्शन के लिए छात्रों को 60 मिनट का समय दिया जाएगा.

तैयारी में जुटे छात्र

गाजियाबाद के सेठ आनंदराम जयपुरिया स्कूल में इस साल 12वीं की पढ़ाई करने वाले छात्र अभिनंदन अधिकारी सीयूईटी एग्जाम को ले कर आश्वस्त हैं. उन के लिए यह दाखिले की प्रक्रिया बदली जरूर है पर वे एग्जाम पैटर्न के हिसाब से अपनी तैयारी कर रहे हैं. वे बताते हैं कि उन के स्कूल में इन चीजों को ले कर तैयार रहना सिखाया जाता है, कई तरह के ओलंपियाड होते हैं, ऐसे में वे मैंटली प्रिपेयर हैं, बस, एग्जाम के लिए कुछ तैयारियां हैं जो करनी बाकी हैं.

हर्षवर्धन दिल्ली विश्वविद्यालय के नौर्थ कैंपस में दाखिला लेना चाहते हैं. हर्षवर्धन बताते हैं कि इस एग्जाम को ले कर कई कोचिंग सैंटर खुल गए हैं लेकिन वे खुद से एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं. वे कहते हैं, ‘‘पिछले 2 साल कोविड में निकल गए और पढ़ाई जिस तरह होनी चाहिए थी वैसे नहीं हो पाई. इतनी जल्दी नई चीजों को सम?ाना कठिन होता है, खासकर उन के लिए जो सुविधाओं से दूर हैं. ऐसे में इस समय यह बदलाव ठीक नहीं पर मैं कोशिश कर रहा हूं कि एग्जाम के लिए जो सिलेबस दिया हुआ है उसे पढ़ं ू. इस के लिए एग्जाम के हिसाब से दिन को मैनेज करूं.’’

अभिनंदन और हर्षवर्धन, हालांकि मानते हैं कि स्कूल में इस तरह के एग्जाम के लिए तैयार रहना सिखाया जाता है पर वे इस के लिए खुद का टाइमटेबल बनाना जरूरी है. ‘‘जिस तरह से 3 सैक्शनों में एग्जाम बंटा हुआ है, उस हिसाब से खुद को बांटना बहुत जरूरी है. उन्होंने भी पढ़ाई को 3 हिस्सों में बांटा है. अभी यह एकदम नया है तो थोड़ा सम?ाने में मुश्किल आ रही है पर सिलेबस के हिसाब से वे तैयारी कर रहे हैं. इस के लिए वे पेरैंट्स और स्कूल टीचर्स से गाइडैंस ले रहे हैं.’’

द्वारका के डीपीएस में पढ़ाई कर रहे हर्ष भी तैयारी में जुट गए हैं. वे कहते हैं कि ‘‘एग्जाम में 6 डोमेन सब्जैक्ट्स तो स्टूडैंट्स के 12वीं के आधार पर होंगे, वह तो हो जाएगा पर जो अलग है वह तीसरा सैक्शन है जिस के सब से ज्यादा मार्क्स वैटेज है. उस में जीके, करंट अफेयर्स, मैंटल एप्टीट्यूड, रीजनिंग की तैयारी जरूरी है.’’ इस की तैयारी को ले कर जब उन से पूछा तो वे बताते हैं कि उन के घर में शुरू से न्यूजपेपर और मैगजीन आते रहे हैं. उन्हें दिक्कत इसलिए नहीं है क्योंकि पत्रिकाओं में गहरी जानकारी और अखबारों में रोजमर्रा के घटनाक्रम उन्हें पता चलते रहते हैं. बाकी इस दौरान उन्होंने जीके और रीजनिंग वगैरह की कुछ बुक्स खरीद ली हैं, बाकी वे एग्जाम के पैटर्न के हिसाब से तैयारी कर रहे हैं.

हर्ष कहते हैं, ‘‘किसी भी एग्जाम में बैठने के लिए सब से पहले एग्जाम एथिक्स सम?ाने जरूरी हैं. एग्जाम में क्या, कितना और कहां से आएगा और आप उस के लिए कितने तैयार हैं, यह सम?ाना जरूरी है. यह स्कूल से निकले स्टूडैंट्स के लिए नए तरह का एग्जाम जरूर है जिस में अभी थोड़ाबहुत कन्फ्यूजन है पर एग्जाम पैटर्न देखसम?ा कर कुछ तैयारी जरूर की जा सकती हैं.’’

कुछ डर, कुछ चिंताएं

हर्ष कुछ चिंता भी जाहिर करते हैं. वे कहते हैं कि अभी क्लीयर नहीं है कि एग्जाम के बाद कालेज किस बेस पर एडमिशन देंगे. सीयूईटी के साथ यही है कि इस में स्टूडैंट्स एलिमिनेट का प्रोसैस ज्यादा खराब है, क्योंकि इस में अब सीधा स्टूडैंट्स पर पासफेल का ठप्पा लगने वाला है.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘जैसे आईआईटी और जेईई, नीट को क्लीयर करने वाले अधिकतर छात्र किसी कोचिंग सैंटर वाले होते हैं वैसे ही आगे जा कर इस में भी यही देखने को मिलेगा, जो अच्छीखासी कोचिंग लेंगे वे ही इस एग्जाम को पास कर पाएंगे.’’

जाहिर है, जब कोई बदलाव होता है तो सब से पहले उसे ले कर चिंताएं सामने होती हैं कि क्या जो चीज बदलने जा रही है, वह उन के फायदे के लिए होगी या नहीं? इसे बदलने का मकसद क्या है? पिछले साल तक जो व्यवस्था थी उस में क्या कोई दिक्कत आ रही थी? और क्या अब नई व्यवस्था से चीजें दुरुस्त हो जाएंगी? ऐसी कुछ चिंताएं छात्रों और शिक्षकों की तरफ से सामने हैं.

यूजीसी के नए चेयरमेन एम जगदीश कुमार ने इस बदलाव के पीछे की भावना को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह टैस्ट छात्रों की भलाई को ध्यान में रख कर शुरू किया जा रहा है.

एक इंटरव्यू में वे कहते हैं, ‘‘छात्रों के ऊपर बहुत दबाव होता था कि वे 98 प्रतिशत, 99 प्रतिशत नंबर लाएं क्योंकि कई विश्वविद्यालयों में अगर इतने ज्यादा परसैंट नंबर नहीं आए तो दाखिला नहीं मिलता था. इस के साथ ही छात्रों को देश के अलगअलग हिस्सों में स्थित अलगअलग विश्वविद्यालयों के लिए प्रवेश परीक्षाओं में बैठना पड़ता था.’’

सीटें बढें़गी तभी समस्या सुलझेगी

अब सरकार के अपनी तरह के तर्क हैं, पर इस में कुछ चिंताएं हैं जैसे धड़ल्ले से कोचिंग सैंटरों का खुलना और छात्रों पर पैसा व एग्जाम को क्लीयर करने का अतिरिक्त दबाव पड़ना. मिरांडा हाउस में फिजिक्स की प्रोफैसर आभा देव हबीब कहती हैं, ‘‘यह फिल्टर लगाने का एक तरीका है कि जितनी सीटें हैं हमें उतने ही छात्र सिस्टम के अंदर चाहिए तो राहत तो उतने ही छात्रों को मिलेगी, वह चाहे सीयूईटी से हो या परसैंटेज की प्रक्रिया से. समस्या तब तक नहीं सुल?ोगी जब तक सीटों की संख्या नहीं बढ़ेगी, जब तक और कालेज व विश्वविद्यालय नहीं खुलेंगे.’’

कृषि यंत्रों में ईंधन की बचत

मशीनों का इस्तेमाल जिस तरह से खेती में दिनोंदिन बढ़ रहा है, उस की वजह से खेती के काम भी बेहद आसान हो गए हैं. आज खेती से जुड़ा कोई ऐसा काम नहीं है, जिस के लिए मशीनें न हों. खेती में मशीनीकरण और यंत्रीकरण के चलते मेहनत, लागत के साथ ही साथ समय की बचत और जोखिम में भी कमी आई है.

खेती में डीजल या पैट्रोल की खपत बहुत ज्यादा होती है. खेती में काम आने वाली ज्यादातर मशीनें पैट्रोल या डीजल से ही चलती हैं. ऐसे में देश में आएदिन पैट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं. उसी के चलते खेती में लागत भी तेजी से बढ़ी है, इसलिए जरूरी हो जाता?है कि किसान खेती में काम आने वाली मशीनों, ट्रैक्टर व इंजनों में डीजलपैट्रोल की खपत को कम करने के लिए जरूरी सावधानियां बरतें. इस से न केवल ईंधन पर खर्च होने वाली लागत में कमी आएगी, बल्कि इस प्राकृतिक संसाधन के फुजूल खर्च में भी कटौती की जा सकती है.

इस बारे में जनपद बस्ती में विशेषज्ञ, कृषि अभियंत्रण इंजीनियर वरुण कुमार से बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश :

ट्रैक्टर का इस्तेमाल करते समय डीजल की खपत को कम करने के लिए कौन सा तरीका अपनाया जा सकता है?

जब?भी?ट्रैक्टर का इस्तेमाल करने जा रहे हों, तो ट्रैक्टर को?स्टार्ट करने से पहले उस के चारों पहियों में हवा जरूर जांच लें.

अगर पहियों में हवा कम है, तो डीजल की खपत बढ़ जाती है, इसलिए पहियों में हवा का सही दबाव बनाए रखने के लिए ट्रैक्टर के साथ मिलने वाली निर्देशपुस्तिका के मुताबिक ट्रैक्टर के पहियों में हवा डलवा लें, तभी इस का इस्तेमाल करें.

इस के अलावा खेत में ट्रैक्टर से इस तरह से काम लें कि खेत के किनारों पर घूमने में कम समय लगे. कोशिश करें कि?ट्रैक्टर को चौड़ाई के बजाय लंबाई में घुमाया जाए. इस से ट्रैक्टर खेत में खाली कम घूमता है और डीजल की खपत भी कम हो जाती?है.

क्या इंजन में मोबिल औयल के पुराने होने से ईंधन या डीजल खर्च बढ़ जाता?है?

जी हां. अगर इंजन में मोबिल औयल ज्यादा पुराना हो गया हो, तो इंजन के काम करने के तरीके पर इस का सीधा असर पड़ता है और इंजन की कूवत घटने लगती है. इस वजह से ईंधन का खर्च बढ़ जाता है.

डीजल खर्च बढ़ने न पाए, इसलिए निश्चित समय पर इंजन का मोबिल औयल और फिल्टर जरूर बदल देना चाहिए.

अगर इंजन से काला धुआं निकल रहा हो, तो क्या डीजल की खपत ज्यादा हो रही है. अगर हां, तो इसे कैसे कम करें?

इंजन से काला धुआं निकलना डीजल के ज्यादा खर्च होने का संकेत है. इस का मतलब है कि इंजैक्टर या इंजैक्शन पंप में कोई खराबी हो सकती है. इन हालात से बचने के लिए ट्रैक्टर को 600 घंटे चलाने के बाद उस के इंजैक्टर की जांच जरूर करवा लें या उसे फिर से बंधवाने की जरूरत होती है.

कभीकभी इंजन स्टार्ट करने के बाद कुछ मिनट तक काला धुआं निकलता है, जो कुछ ही समय बाद सफेद हो जाता है. अगर इंजैक्टर या इंजैक्शन पंप ठीक होने पर भी काला धुआं लगातार निकलता रहे, तो यह इंजन पर पड़ रहे ओवरलोड की निशानी है. इसलिए ओवरलोड कर के इंजन नहीं चलाना चाहिए.

पंप सैट में डीजल की खपत को कम करने के लिए कौनकौन सी सावधानियां बरतें?

सब से पहले तो यह ध्यान देना जरूरी है कि पंप सैट को खाली न चलाया जाए, बल्कि उसे चालू करने के तुरंत बाद ही काम लेना शुरू कर दें, क्योंकि ठंडा इंजन चलाने से उस के पुरजों में घिसावट होती?है. इस के चलते इंजन में ज्यादा तेल लगता है.

इस के अलावा पंप सैट से ज्यादा दूरी से पानी खींचने में भी डीजल की खपत ज्यादा होती?है, इसलिए यह ध्यान दें कि जब भी पंप सैट से पानी खींचना हो, तो उसे पानी की सतह से करीब लगा कर इस्तेमाल करना चाहिए. इस से डीजल की खपत को काफी हद तक कम किया जा सकता है. साथ ही, पंप सैट को चलाने वाली बैल्ट यानी पट्टे के फिसलने से डीजल का खर्च बढ़ता है, इसलिए बैल्ट को?टाइट कर के रखना चाहिए.

यह भी ध्यान दें कि बैल्ट में कम से कम जोड़ हों और घिर्रियों की सीध में हों. इस से पंप सैट पर लोड कम पड़ने से डीजल कम खर्च होता?है.

पंप सैट से जुड़ी पानी को बाहर फेंकने वाली पाइप को जमीन की सतह से बहुत ज्यादा ऊपर नहीं उठाना चाहिए,?क्योंकि पाइप जमीन की सतह से जितनी ऊंची होगी, इंजन पर उतना ज्यादा बोझ पड़ेगा और डीजल ज्यादा खर्च होगा. पाइप को उतना ही ऊपर उठाना चाहिए, जितनी जरूरत हो.

डीजल या पैट्रोल से चलने वाली मशीनों में ईंधन की खपत को कम करने के लिए और किन चीजों पर ध्यान देना जरूरी?है?

जब भी इंजन चालू किया जाता है, तो उस की आवाज ध्यान से सुनें. अगर उस के टाइपिट से आवाज आ रही हो, तो इस का मतलब है कि इंजन में हवा कम जा रही है. इस से इंजन में डीजल की खपत बढ़ जाती है, इसलिए टाइपिट से आवाज आने पर उसे सही से फिट कराएं.

खेती की मशीनें, जो डीजल या पैट्रोल से चलती हैं, उन में डीजल के किफायती खर्च के लिए मशीन खरीदते समय निर्देशपुस्तिका मिलती?है. उस में तमाम तरह की सावधानियां लिखी होती?हैं. निर्देशपुस्तिका में लिखी गई उन तमाम बातों का पालन जरूर करें.

अनोखी जोड़ी- भाग 3: शादी के बाद विशाल और अवंतिका के साथ क्या हुआ?

विशाल उसे सांत्वना दे ही रहा था कि विवेक ने प्रवेश किया, ‘‘मैं कान्फिडेंशल सेल से आया हं. यह कागजात, पिस्तौल और साइनाइट की टिकिया है. और हां, ये 2 टिकिट रोम के हैं. अंतिम जानकारी वहां दी जाएगी.’’

विवेक के जाने के बाद विशाल ने समझाया कि रोम तक वह भी चल सकती है तो अवंतिका मान गई.

हेमंत ने विवेक को अवंतिका के घर से निकलते देखा तो उसे कुछ शक हुआ और थोड़ी दूर पर विवेक को पकड़ कर बोला, ‘‘मैं प्रधानमंत्री के गुप्तचर विभाग से हूं. यह विशाल क्यों आंदोलनकर्ताओं से मिल रहा है? बताओ…वरना…’’ और हेमंत की घुड़की काम कर गई. विवेक ने पूरी कहानी उगल दी.

हवाई अड्डे से अब मुंशी दंपती निकल रहे थे तो विशाल और अवंतिका दिखाई दिए. विशाल ने अवंतिका को वहीं रुकने को कह कर मुंशी साहब का अभिनंदन किया, ‘‘साहब, श्रीमतीजी की मां मौत के मुंह में हैं, इसलिए जाना पड़ रहा है.’’

उधर हेमंत ने मौका मिलते ही अवंतिका को विशाल की झूठ पर आधारित पूरी योजना समझा दी. फिर क्या था, गुस्से से लाल होते हुए उस ने विशाल को परची लिखी, ‘‘माफ करना, मैं रोम नहीं जा सकती. आंदोलन में भाग लेना है. तुम चाहो तो साइनाइड की टिकिया खा सकते हो.’’

मुंशी दंपती और विवेक सभा भवन के पास पहुंच रहे थे कि देखा बिकनी पहने एक महिला घोड़े पर सवार है और विशाल उस से कुछ कहने की कोशिश कर रहा है. हेमंत व पुलिस के 2 सिपाही उसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं. विशाल को जब तीनों ने दबोचा तो संवाददाताओं व फोटोग्राफरों ने अपनेअपने कार्य मुस्तैदी से किए.

मुंशी साहब घबरा कर बोले, ‘‘अरे, यह तो विशाल की पत्नी है और विशाल कर क्या रहा है?’’

विवेक ने जवाब दिया, ‘‘साहब, वह मां के दुख से पागल लगती है. विशाल उसे संभाल रहा है.’’

पुलिस ने सब को हिरासत में ले लिया.

अगले दिन अदालत में न्यायाधीश ने अवंतिका व हेमंत की गवाही सुन उन्हें मुक्त कर दिया फिर विशाल की तरफ मुड़े, ‘‘आप की सफाई के बारे में आप के वकील को कुछ कहना है?’’

विवेक के वकील ने दलील पेश की कि उस का मुवक्किल एक प्रसिद्ध तेल कंपनी का उच्च पदाधिकारी है और अपने मालिक से मिलने बैठक में जा रहा था कि रास्ते में उसे अश्लील वस्त्र पहने पत्नी दिखी जो उस की कंपनी को बदनाम करने पर उतारू थी. अब जज साहब ही निर्णय दें कि क्या उस का अपनी पत्नी को बेहूदी हरकत से बचाने का कार्य गैरकानूनी था?’’

वकील के बयान पर जज को कुछ शक हुआ तो उन्होंने सीधे विशाल से पूछा, ‘‘क्यों मिस्टर विशाल स्वरूप, क्या आप के वकील का बयान सच है?’’

‘‘बिलकुल झूठ, जज साहब. रत्ती भर भी सच नहीं है,’’ और विशाल ने 8 वर्ष से तब तक की पूरी कहानी सुनाई. अवंतिका ने भी चुपचाप अदालत में उस की कहानी सुनी.

विशाल ने अंत में कहा, ‘‘जज साहब, मैं अपनी कंपनी के प्रबंधक का आभारी हूं कि उन्होंने मेरा साथ अंत तक निभाया. किंतु उन्हें यह करने की कोई जरूरत नहीं थी. मैं ने अपना त्यागपत्र उन्हें कल ही भेज दिया है. मेरी पत्नी इस तरह के आंदोलन में विश्वास रखती है, मैं नहीं रखता. किंतु सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मैं उस से प्रेम करता हूं. कल जो मैं ने किया उसे रोकने के लिए नहीं बल्कि उसे यह बताने के लिए कि उस का पति बना रहना ही मेरा सब से बड़ा ध्येय व पद है.’’

जज साहब हंस दिए, ‘‘मैं आशा करता हूं कि आप अपने ध्येय में सफल रहें और फिर कभी पत्नी से अलग न हों. मुकदमा बरखास्त.’’

मुंशी साहब विशाल से हाथ मिलाते हुए बोले, ‘‘तुम्हारा त्यागपत्र स्वीकार होने का सवाल ही नहीं उठता. कल तुम और अवंतिका रोम, पैरिस व लंदन के लिए रवाना हो जाओ.’’

न्यायालय से बाहर निकलते समय विवेक का हेमंत से टकराव हो गया, ‘‘माफ कीजिएगा, आप ने अपना परिचय नहीं दिया.’’

हेमंत ने हाथ बढ़ाते हुए जवाब दिया, ‘‘इंस्पेक्टर जयकर, दिल्ली गुप्तचर विभाग.’’

Monsoon Special: आलू खाने से हो सकते हैं ये 4 नुकसान

अधिकतर सब्जियों में आप आलू का इस्तेमाल करते होंगे. आलू के बिना सब्‍जी अधूरी रहती है. लेकिन क्या आप जानते हैं, आलू खाने के नुकसान भी है. तो आइए जानते हैं, आलू खाने से होने वाले क्या-क्या नुकसान हैं.

  1. ब्लड प्रेशर

यह हाई ब्लड प्रेशर के खतरे को बढ़ा सकता है. रिसर्च के मुताबिक हफ्ते में चार या उससे ज्यादा बार आलू खाने से हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बढ़ जाता है. जरूरी है कि हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से बचाव के लिए आलू का सेवन न करें या कम करें.

2. डायबिटीज

अगर आप डायबिटि के मरीज हैं तो आलू से दूर ही रहे. यह आपके लिए बहुत नुकसानदेय साबित हो सकता है. दरअसल, शुगर को नियंत्रण में करने के लिए आपको आलू इनटेक पर नियंत्रण करना होगा. आलू में ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है, जिससे शरीर में ग्लूकोज की मात्रा में बढ़ोतरी होती है.

3. वजन

आलू के सेवन से आपका वजन भी बढ़ता है. अगर आप वजन को कम करना चाहते हैं तो ऐसे में आप आलू खाना कम करें.

4. एसिडिटी

अगर आप आलू खा रहे हैं तो गैस की समस्या हो सकती है. आलू से ज्यादातर लोगों को गैस हो जाती है. तो ऐसे में आप खाने में आलू का इस्तेमाल कम करें.

मेरे पति खिलौने की तरह मेरा इस्तेमाल करते हैं, क्या करूं?

सवाल

मैं 30 साल की एक शादीशुदा औरत हूं. मेरे पति रात को बिस्तर पर बहुत ज्यादा हैवान हो जाते हैं. वे मुझे अपने जीवनसाथी की तरह नहीं, बल्कि किसी खिलौने की तरह इस्तेमाल करते हैं और सैक्स को मजा नहीं सजा बना देते हैं. इस बात से मैं बहुत ज्यादा तनाव में रहती हूं. मैं क्या करूं?

जवाब
आप के पति जरूरत से ज्यादा सैक्स एडिक्ट हैं, जो एक तरह की बीमारी ही है. पति को बताएं और सम?ाएं कि आप को किस तरह के सैक्स में मजा आता है और कैसे आता है. सैक्स का असली सुख उसे ही मिलता है, जो अपने पार्टनर के मजे का भी ध्यान रखता है. आप धीरेधीरे कोशिश करें और पति के अंग को किसी भी तरह सैक्स के पहले ही डिस्चार्ज कराएं.

इस पर भी बात न बने तो किसी माहिर डाक्टर से मशवरा लें. हैरत तो इस बात की है कि सैक्स पावर बढ़ाने की तो कई दवाएं आती हैं, लेकिन कम करने की नहीं आती हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

Monsoon Special: बारिश में घर पर ही बनाएं ये 5 टेस्टी पास्ता डिश

पास्ता का नाम सुनते ही बच्चों के ही नहीं बड़ों के भी मुंह में पानी आ जाता है. कई बार बच्चों से कहना पड़ता है कि ज्यादा पास्ता मत खाओ, यह हैल्दी नहीं है लेकिन आप उसे ज्यादा सब्जियां, क्रीम व चीज डाल कर बच्चों के लिए पोषक बना सकते हैं, जैसे कि लाल, पीली, हरी शिमलामिर्च, बीन्स, ब्रोकली, स्वीट कौर्न, सलादपत्ती, पालक, बेबीकौर्न और गाजर.

बच्चे कई ऐसी सब्जियां भी खा जाते हैं जिन्हें वे पसंद नहीं करते और खा कर आप की तारीफ भी करते हैं कि वाह, मम्मी, पास्ता बहुत अच्छा था. सब्जियों से विटामिंस, खनिज व रेशे की प्राप्ति होती है. आजकल गेहूं और सूजी से बना पास्ता व नूडल्स भी मिलते हैं. आप उसे कैसे पोषक बनाते हैं, यह आप के ऊपर है, जैसे सूजी में मैदा की जगह आटा या ओट्स के आटे का इस्तेमाल कर सकते हैं. नट्स जैसे अखरोट, बादाम और काजू आदि डाल सकते हैं.

  1. चीज पास्ता

सामग्री:

1 कप पका पास्ता,

1/4 कप अखरोट (गिरी),

1 कप फ्रैश क्रीम,

/4 कप पारमेसन चीज,

नमक स्वादानुसार,

1/2 कप ब्रोकली,

1 छोटा चम्मच मक्खन,

1 स्प्रिंग अनियन,

1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर.

विधि:

कड़ाही में मक्खन गरम करें. उस में कटा हरा प्याज, ब्रोकली व अखरोट भूनें. हलका भुनने पर क्रीम डाल कर पकाएं, उबालें नहीं. इस में पास्ता, चीज, नमक व कालीमिर्च पाउडर डाल कर आंच से उतार लें. गरमा-गरम परोसें.

2. पास्ता शैल्स

सामग्री:

1 कप पकी पास्ता शैल्स,

1 कप बेबी पालक,

1/2 कप ब्रोकली,

6-8 फ्रैंच बीन्स,

1/2 कप कटा हरा प्याज,

1/2 हरीमिर्च,

1/4 कप कसी चीज,

1 बड़ा चम्मच बटर,

नमक स्वादानुसार.

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विधि:

मक्खन गरम कर हरा प्याज, ब्रोकली भूनें. फ्रैंच बीन्स काट कर स्टीम करें. प्याज, ब्रोकली के साथ स्टीम फ्रैंच बीन्स, हरीमिर्च, नमक व पास्ता डाल कर पकाएं. अंत में बेबी पालक डालें. अब कसी चीज से गार्निश करें, परोसें.

3. वरमीसिली सलाद

सामग्री:

1 कप पकी वरमीसिली,

1/2 कप लाल, पीली, हरी शिमलामिर्च,

कटा हरा प्याज,

नमक स्वादानुसार,

1 टमाटर,

1/4 कप उबली फ्रैंच बीन्स,

1 बड़ा चम्मच तेल,

1 छोटा चम्मच नीबू रस,

1/4 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर,

2-3 बेबीकौर्न (ब्लांच्ड किए हुए).

विधि:

एक बाउल में तेल, नीबू रस, नमक, कालीमिर्च पाउडर मिक्स करें. इस में कटी शिमलामिर्च (लाल, पीली, हरी), हरा प्याज, टमाटर, बीन्स, बेबीकौर्न मिलाएं. बाद में वरमीसिली मिक्स कर सर्व करें.

4. फेट्यूसिन इन वेजीस

सामग्री:

गाजर,

8-10 ब्रोकली फ्लोरेट,

1 हरा प्याज,

8 फ्रैंच बीन्स (स्टीम्ड),

1/2 कप हरी,

लाल, पीली शिमलामिर्च,

1/4 कप स्वीटकौर्न,

1 कप पकी फेट्यूसिन,

2 बड़े चम्मच तेल,

1/4 छोटा चम्मच सीजनिंग,

नमक स्वादानुसार.

विधि:

कड़ाही में 1 बड़ा चम्मच तेल गरम कर हरा प्याज, स्टीम्ड फ्रैंच बीन्स, हरी, लाल, पीली शिमलामिर्च, गाजर के गोल टुकड़े, स्वीटकौर्न, नमक डाल कर स्टरफ्राई करें. तेल गरम कर फेट्यूसिन स्टरफ्राई करें व सीजनिंग डालें. प्लेट में फेट्यूसिन वेजीस के साथ सर्व करें.

5. क्रीमी टोमैटो मैकरोनी

सामग्री:

2 टमाटर, 1 प्याज, 1/4 हरीमिर्च, 1/4 कप चीज, 1 कप क्रीम, 1 कप पकी मैकरोनी, 1 बड़ा चम्मच मक्खन, नमक स्वादानुसार.

विधि:

प्याज, टमाटर, हरीमिर्च, नमक डाल कर पीस लें. कड़ाही में मक्खन गरम कर पिसी प्यूरी को भूनें. इस में क्रीम, चीज डालें व पकी मैकरोनी डाल कर मसाला अच्छे से मिक्स करें. गरमागरम सर्व करें.

और आंखें भर आईं- भाग 1: क्यों पछता रही थी पार्वती?

थाने में घुसते ही मेरी पुत्रवधू पार्वती का कर्कश स्वर मेरे कानों में शीशे की तरह पिघलता चला गया- ‘‘पापा जी, मुझे बचा लीजिए. इस बार मुझे बचा लीजिए. मैं आगे से ऐसा नहीं करूंगी. मुझे माफ कर दीजिए, प्लीज.’’

मैं ने एक बार पार्वती की ओर देखा इस भाव से कि कितनी बार यह सब करोगी? कितनी बार माफी मांगोगी? आंखों में आक्रोश और क्रोध था. संग ही निराशा के भाव भी थे कि यह सब क्यों है? क्यों ऐसा होता है? परंतु इस क्यों का मेरे पास कोई उत्तर न था. मैं आहत था. एक ओर मैं अपनी पत्नी का लहूलुहान चेहरा देख कर आ रहा था, इसी पार्वती का, जाने किस आवेश का परिणाम था. दूसरी ओर मेरी यह पुत्रवधु, जिसे मैं अपनी बेटी की तरह ब्याह कर लाया था, थाने में बंद पड़ी है. एक ओर मेरी जीवनसंगिनी, दूसरी ओर मेरे घर की लाज.

मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं किस का साथ दूं और किस का न दूं? दोनों ही तरह से मेरे घर पर ही प्रहार था. ‘सर, आप? प्रणाम सर.’ मैं चौंका, देखा, 2 महिला इंस्पैक्टर मेरे पावों में झुक कर आशीर्वाद प्राप्त करने को उद्यत थीं. मैं ने आशीर्वाद दिया परंतु वे अब भी जिज्ञासा लिए खड़ी थीं. कालेज में दोनों मेरी विद्यार्थी थीं. अभी 2 साल पहले ही इन्होंने पढ़ाई खत्म की थी. मैं इन को इस रूप में देखूंगा, मुझे उम्मीद न थी. फिर आशा बंधी, सबकुछ ठीक करने में ये सहायक होंगी.

‘सर, आप यहां कैसे?’ इंस्पैक्टर सीमा ने मेरी ओर सवाल उछाला और इंस्पैक्टर अमिता प्रश्नचिन्ह बनी खड़ी रही. ‘‘कहीं बैठने की जगह मिलेगी, तो मैं बताऊ.’’ “आइए सर, हमारे केबिन में आइए.’ उन के केबिन में जा कर मैं कुरसी पर बैठ गया. एक गिलास पानी पिया और आश्वस्त हो गया. इन दोनों इंस्पैक्टरों के कारण मैं ठीक कर ले जाऊंगा.

इंस्पैक्टर सीमा ने फिर अपना सवाल दोहराया, ‘सर, आप यहां कैसे?” “उस लौकअप में पार्वती नाम की जो लड़की बंद है, वह मेरी पुत्रवधू है.’’ “इस ने तो अपनी सास को बुरी तरह पीटा है.” “उस की सास मेरी पत्नी है.”

“यानी मैडम को? इस की तो मां की…,” इंस्पैक्टर अमिता गाली देतेदेते रह गई. ‘लेकिन सर, यह हुआ कैसे? मैडम जैसी सहृदय और स्नेहशील महिला संग इस तरह का दुर्व्यवहार? मैं उन को व्यक्तिगत रूप से जानती हूं,” इंस्पैक्टर सीमा ने आगे जोड़ा.

‘‘मैं जानता हूं, यह दुर्व्यवहार असहनीय है और दुखद है. अपराध है, अक्षम्य है. यदि मैं अपनी पत्नी का साथ नहीं देता हूं तो उस का अपराधी होता हूं. पार्वती का साथ देने का मतलब है कि उसे फिर ऐसे अपराध करने को उकसाना. दोनों ही स्थितियों में अपराधी के कठघरे में मैं ही खड़ा होता हूं. पार्वती का चुनाव मैं ने और मेरी पत्नी ने किया था. ब्याह होते ही हमें पता चल गया था कि उस में अपना दिमाग नहीं है. चाहे यह एमए पास है और फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया हुआ है. कई बार ऐसा लगता कि न केवल यह पढ़ाई में नगण्य है बल्कि इस के पास जो डिग्रियां हैं, वे नकली हैं. नहीं तो एमए पास लड़की व्यावहारिक रूप से लगती है कि वह एमए है. चाहे वह हिंदी स्कूल की पढ़ी हो. कभी लगता, न केवल पढ़ाई में बल्कि वह मानसिक स्तर पर भी ठीक नहीं है. इस की हरकतों से हमें यही लगता.’’

“कैसी हरकतें, सर?”

“जैसे हमारी पोती हुई तो इस की मां ने पार्वती और मेरी पोती पर 7 बार जूता वार कर मेरी पत्ली के सामने फेंका. और यह निर्विकार बैठ कर देखती रही कि उस की ससुराल में उस की मां क्या कर रही है? जैसे कोई विक्षिप्त व्यक्ति देखता रहता है. मुझे जब पता चला तो मैं ने उस की मां से साफ शब्दों में कहा कि ऐसी हरकतें हमें बरदाश्त नहीं हैं, जबकि, यह बात पार्वती को कहनी चाहिए थी.

“हर 15 दिन में इस के रंग बदल जाते. इस की हरकतों में और वृद्धि हो जाती. पोती धीरेधीरे बड़ी होने लगी, यहां तक कि स्कूल जाने लगी. वह रोज अकसर इस बात पर मार खाने लगी कि वह दादी का नाम क्यों लेती है? पोती ने अपनी मां के पास जाना छोड़ दिया. बच्चे को जहां प्यार मिलेगा, वहीं जाएगा. इस बात से भी उस का दिमाग सातवें आसमान पर रहता. वह अकसर उग्र रहती. मैं उसे समझाने की कोशिश करता कि दादादादी एक प्राकृतिक आकर्षण है. मूल पर सूद की तरह. परंतु उसे न समझना था, न समझी.

“जिद्द की यह हालत थी कि मैं इतने वर्षों में इसे ‘हां’ से ‘हां जी’ नहीं सिखा पाया. उस पर इस की मां का हस्तक्षेप. तकरीबन रोज ही यह अपनी मां से बातें करती. मना करने पर भी कि घर की बातें मायके में नहीं करते. अब तुम्हारा घर ससुराल है. यह साफ झूठ बोल जाती कि वह तो करती नहीं. इस की मां बिना परिस्थितियों को जाने कि कौन सी बात कैसे हुई है, इसे गाइड करती रही बिना जाने, बिना समझे कि इस का प्रभाव उस की बेटी और उस के परिवार पर कैसा पड़ेगा? जानेअनजाने वह अपनी बेटी की बेड़ियों में बट्टे डालती रही थी. और आज नतीजा आप दोनों के सामने है.’’

“अर्थात, मां ही बेटी की दुश्मन निकली,” इंस्पैक्टर अमिता ने कहा, “सर, आप ही कहा करते थे कि बेटी मां की प्रयोगशाला में पलतीबढ़ती है. वह उसे सबकुछ सिखाती है जो उसे घरसंसार में स्थापित होने की शक्ति देती है. और एक यह है?” इंस्पैक्टर अमिता की आंखों में आक्रोश और क्रोध साफ देखा जा सकता था.

‘‘मेरे प्रयोग फेल हो गए, अमिता.’’

“सर, आप दुखी न हों. आप जैसा चाहेंगे, वैसा ही होगा. सिद्धार्थ सर, जो यहां के एसीपी हैं, वे भी आप के विद्यार्थी हैं. वे अकसर ही आप को याद करते हैं. उन के आईपीएस बनने में आप का कितना योगदान है, नहीं भूले. वे भी आते होंगे,” इंस्पैक्टर सीमा ने कहा.

‘‘पापा, यह देखो, एक मां अपनी बेटी की कितनी बड़ी दुश्मन होती है, इस का उदाहरण लाया हूं,” बेटे राजन के हाथ में एक पेपर था.

“अमिता, सीमा, यह मेरा बेटा राजन है. पार्वती इसी की पत्नी है,” मैं ने राजन के हाथ से पेपर लिया, पढ़ा और इंस्पैक्टर सीमा की ओर बढ़ा दिया.

‘‘मैंने खुद के साथ सिनेमा को भी बदलने का प्रयास किया”: आर माधवन

जमशेदपुर में तमिल ब्राम्हण परिवार में जन्में व पले-बढ़ें अभिनेता,निर्माता,लेखक व निर्देशक आर माधवन की यात्रा बहुत ही अलग व रोचक रही है. वह न तो अभिनेता बनना चाहते थे और न ही इंजीनियर. पर बाद में उन्होंने इलेक्ट्रिनकस में बीएससी की. सच यह है कि वह तो एनसीसी कैडेट थे, जिसके चलते उन्हे इंग्लैंड में ब्रिटिश आर्मी से ट्रेनिंग लेने का अवसर मिला. वहां पर चार वर्ष तक ट्रेनिंग लेकर फौजी बनकर भारत वापस आए.तब तक भारतीय सेना का हिस्सा बनने की उम्र से छह माह ज्यादा हो गए थे. फिर वह पर्सनालिटी डेवलपमेंट के शिक्षक बन गए. पर तकदीर कुछ और ही चाहती थी.जिसके चलते उन्हें एक सीरियल मे अभिनय करने का मौका मिला.उसके बाद अभिनय जगत में उन्होंने अच्छा नाम कमाया.चार फिल्मफेअर अवार्ड के साथ ही तमिलनाड़ु स्टेट फिल्म पुरस्कार सहित कई पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं.

इन दिनों आर माधवन एक जुलाई को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘रॉक्रेट्री द नाम्बी इफेक्ट’’ को लेकर चर्चा में हैं. हिंदी, अंग्रेजी व तमिल तीन भाषाओं में बनी इस फिल्म में इसरो वैज्ञानिक नम्बी नारायण का किरदार निभाने के साथ ही उन्होंने फिल्म का लेखन व निर्देशन भी किया है.पद्म विभुषण से सम्मानित और त्रिवेंद्रम निवासी इसरो वैज्ञानिक ने रॉकेट साइंस के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की. मगर उन पर एक मालदीव की औरत के साथ अफेयर और 1994 में भारतीय रॉकेट साइंस को पाकिस्तान के हाथों बेचने का आरोप लगा था. मगर 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने नाम्बी नारायण को बइज्जत बरी करने के साथ उन पुलिस अफसरो पर काररवाही करने का आदेश दिया था, जिन्होंने इसरो वैज्ञानिक नाम्बी नारायण पर झूठा आरोप लगाया था.

प्रस्तुत है आर माधवन से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…

फिल्म उद्योग में आपका काफी लंबा करियर हो गया.मगर आपकी शुरूआत काफी अलग रही है. पहले आप एनसीसी कैडेट थे.फिर आप इंग्लैंड आर्मी की ट्रेनिंग के लिए गए. वापस आकर आप पर्सनालिटी डेवलपमेंट और कम्यूनीकेशन स्किल के प्रोफेसर बने. उसके बाद आपने टीवी सीरियलों में अभिनय करना शुरू किया. टीवी पर आपने कॉमेडी करते हुए अपना एक अलग नाम व मुकाम बनाया. फिर आप फिल्मों में रोमांटिक हीरो बन गए.

फिर अलग अलग तरह के किरदार निभाए. आपने फिल्म के संवाद लिखे.साला खड़ूसजैसी फिल्म का निर्माण किया.और अब आप बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘‘रॉक्रेट्री द नाम्बी इफेक्ट’’ लेकर आ रहे हैं,जिसमें आपने अभिनय भी किया है.यह जो बदलाव आपकी जिंदगी व कैरियर म्म आते रहे,उसकी क्या वजहें रहीं?

मेरा जन्म व परवरिश बिहार के जमशदपुर में हुई, जो कि अब -झारखंड का हिस्सा है.बचपन में मैं एक हरफन मौला वाला बंदा रहा. जब मुझसे कोई कहता था कि मुझे इस रास्ते पर चलना चाहिए, तो मैं उससे पूछता था कि क्यों? तो बचपन से ही मेरी आदत रही है कि मैं अपनी मन मर्जी का ही काम करता था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अभिनेता बनॅूंगा. मेरे माता पिता चाहते थे कि इंजीनियर बनॅूं. पर मैं इंजीनियर नहीं बनना चाहता था.तो आज जब में पीछे मुड़कर देखता हॅूं तो अहसास होता है कि पूरी जिंदगी मैं अपने आपको कलाकार के तौर पर तैयार कर रहा था.फिर चाहे वह बिहार में गुल्ली डंडा खेलना हो या गोबर डंडा खेलना हो. मेरे अंदर हिंदी बोलने की जो क्षमता है,वह भी बचपन से ही बिहार में ही सीखता रहा. मैं मूलतः मद्रासी हॅूं,तो तमिल भी बोल लेता हॅूं.कुल मिलाकर पूरी कायनात ने तय कर लिया था कि इसे तो अभिनेता ही बनाना है.जबकि मुझे यह बात पता नहीं थी. मेरे खानदान में दूर दूर तक कोई भी इंसान फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ नही था. फौजी बनने के बाद जब मैं मुंबई आया, तो राह चलते किसी इसान ने मुझसे पूछा कि अभिनय करोगे, तो मैंने उससे पूछ दिया कि कितना पैसा दोगे? वहां से कहानी शुरू हुई. मैंने टीवी सीरियल किए और देखते-देखते लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि आर माधवन तो बहुत अच्छा अभिनेता है. फिर लोगों ने मेरे ऑटोग्राफ लेने शुरू कर दिए. मेरे माता पिता जमशदपुर में नौकरी कर रहे थे.उनकी सैलरी दस हजार रूपए थी. दोनों मिलकर प्रति माह बीस हजार कमा लेते थे.मैं उन्हें अमीर समझता था.लेकिन यहां मुझे टीवी सीरियल के एक एपीसोड में अभिनय करने के एवज में बीस हजार रूपए मिल रहे थे, तो मुझे लगा कि इस तरह तो मैं अंबानी बनने वाला हॅूं. शुरूआत में कामयाबी के साथ जो अहंकार आता है, वह मुझ में भी आया था.पर बहुत जल्द मेरी समझ में आ गया कि यह स्वाभाविक है,पर इससे जल्द से जल्द बाहर निकल जाना ही हितकर है.यह बात में मध्यमवर्गीय परवरिश के चलते समझ पाया और बहुत जल्द मैं अहंकार से बाहर आ गया. फिर भी टीवी सीरियल करते हुए मैने सोचा नहीं था कि अभिनय मेरा प्रोफेशन बन जाएगा. जब मैं फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा था, उस वक्त कॉस्टिंग डायरेक्टर नहीं थे. इतने अखबार व मैगजीन नहीं थी. तो लोगों को पता ही नहीं चलता था कि यह कलाकार कौन है? मैं सेट पर देखता था कि हर कोई अभिनेता बनने को उत्सुक है.सभी ने हर किसी को अपना माई बाप बना रखा है.वह निर्माता निर्देशक के पैर छूते थे. मैं तो फौजी था,तो यह सब करना मुझे भाता नही था. मैं स्पॉट ब्वॉय व चाय बनाने वालों के साथ बैठकर चाय पीता था. बाद में पता चला कि स्पॉट ब्वॉय वगैरह ही हर जगह मेरा नाम रोशन कर रहे थे. इसी के चलते मुझे काम मिलने लगा. देखते ही देखते मैंने टीवी पर ‘घर जमाई’ व ‘बनेगी अपनी बात’ सहित हिंदी टीवी सीरियलों में 1800 एपीसोड कर लिए. मैंने मान लिया कि अपनी जिंदगी तो टीवी में सेटल हो गयी.

फिर टीवी से फिल्मों की तरफ मुड़ना कैसे हुआ था?

लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि माधवन तू तो ओवर एक्सपोज हो गया.अब तुझे फिल्मों में अभिनय करने को नहीं मिलेगा. मैंने कह दिया कि मैं यहां अभिनेता बनने तो आया ही नहीं था. इसलिए फिल्म नहीं मिलेगी, तो कोई बात नहीं. तभी मणि रत्नम सर ने मुझे बुला लिया. और मुझे तमिल फिल्म ‘‘अलैयपापुचे’’ में रोमांटिक हीरो बना दिया.फिल्म सुपर डुपर हिट हो गयी.

मैं सुपर स्टार बन गया.लोगों ने मुझे मद्रासी कलाकार कहना शुरू कर दिया. तो आप सोच नहीं सकते कि जो लड़का इंजीनियरिंग नहीं करना चाहता था. अभिनेता नहीं बनना चाहता था. जो एनसीसी कैडेट के बाद फौजी बन गया था, उसे कायनात ने फिल्म का रोमांटिक हीरो बना दिया था. इसके बाद मेरी हिंदी फिल्म ‘‘रहना है तेरे दिल में’’ प्रदर्शित हुई.पहले यह फिल्म नही चली.तो लोगों ने कह दिया कि फिल्म असफल है. यह मद्रासी कलाकार है. मोटा है. हिंदी में नहीं चलेगा. लेकिन कुछ दिन बाद ‘माउथ पब्लिसिटी’ से यह फिल्म सुपर डुपर हिट हो गयी.मेरी किस्मत ऐसी रही कि मैं कभी किसी निर्माता के घर काम मांगने नहीं गया.मगर मेरे पास काम आता गया.‘चाहे वह ‘दिल विल प्यार हो’,‘रंग दे बसंती’ हो,‘गुरू’ हो,‘3 इडिएट्स’ हो,‘जोड़ी बे्रकर’हो या दूसरी तमिल फिल्में हों.

इन फिल्मों या सीरियल में अभिनय करते हुए आपके जीवन की ट्रेनिंग काम भी आती रहीं?

हां! जब मैं ‘रंग दे बसंती’ और सीरियल ‘सी हॉक्स’ में अभिनय कर रह था,उस वक्त मेरी ब्रिटिष आर्मी के साथ ली गयी आर्मी की ट्रेनिंग बहुत काम आयी.जब मैं ‘3 इडिएट्स’ कर रहा था,उस वक्त मेरी कालेज व होस्टल की ट्रेनिंग काम आयी. जब मैं ‘साला खड़ूस’ कर रहा था,तब मेरी बॉक्सिंग और फिजिकल ट्रेनिंग काम आयी. तभी तो मैं कहता हॅूं कि मेरी जिंदगी ने मेरी सोच से पहले ही तय कर लिया था कि माधवन, तुझे मैं अभिनेता बनाउंगा. अब मैंने फिल्म ‘रॉक्रेट्री का लेखन व निर्देशन किया है, इसमें मेरी इंजीनियरिंग की सारी ट्रेनिंग का उपयोग हो गया. अगर आज मुझसे पूछेंगे कि क्या मैं इतना बड़ा रास्ता तय कर पाउंगा, तो मैं मना कर दूंगा. क्योंकि सही वक्त पर सही जगह होना तो नियति का ही खेल है.सही वक्त पर मणि रत्नम का बुलाना या राज कुमार हिरानी का बुलाना,यह सब तो नियति का खेल ही रहा.यह कायनात की मर्जी थी.अन्यथा मैं तो यहां किसी को जानता ही नहीं था.मैं तो फिल्मी पार्टियों में भी नहीं जाता. मैं अपना प्रचार करने से भी दूरी बनाकर रखता हूं. मैं हमेशा अपनी पीआर एजेंसी से कहता हूं कि मुझे खबरों से बाहर ही रहने दो. मेरे पास काम लगातार आता रहता है. मैं लगातार काम कर रहा हॅूं.

यदि आपके पूरे अभिनय कैरियर पर गौर किया जाए,तो आपने हमेशा अपनी इमेज को तोड़ने की कोशिश करते रहे हैं.जब आप टीवी में हास्य किरदारों के पर्याय बन गए थे, तभी आप मणि रत्नम की फिल्मों से रोमांटिक हीरो के रूप में उभरकर आ गए.फिर कई तरह के अलग अलग किरदार करते रहे.‘साला खड़ूस’ में आपके अभिनय का अलग ही रंग नजर आया.क्या ऐसा आप सोच समझ करते रहे?

-ऐसा आप कह सकते हैं.मेरी हमेशा कोशिश यह रही कि जिन किरदारों को दूसरे अभिनेता निभाने से दूर भाग रहे हों,उन किरदारों को निभा लो.‘ थ्री इडिएट्स’(2010 ) के हिट होने के बाद जब मुझे बड़े बड़े निर्देशकों के साथ फिल्में करनी चाहिए थी,तब मैने उस वक्त के नए निर्देशक आनंद एल राय की फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’( 2011) में साथ मनोज कुमार शर्मा उर्फ मनु का किरदार निभाया.क्योंकि मु-हजये आनंद एल राय की इस फिल्म की स्क्रिप्ट भा गयी थी. राज कुमार हिरानी ने खुद मुझसे कहा था कि मैडी तू यह क्या कर रहा है? तब मैंने उनसे कहा था- सर, मुझे नहीं लगता कि जो रोमांस अमरीका व इंग्लैंड में होता है, वह भारत के छोटे शहरों से मेल खाता है. मैं तो जमशदपुर का हॅूं.जमशेदपुर में जो रोमांस होता है, उसे हम फिल्मों में दिखा नही रहे, जबकि दर्शक उसी रोमांस को देखना चाहता है.तो सिनेमा में छोटे शहरों के रोमांस व कहानी की शुरूआत मैंने ही की थी. ‘तनु वेड्स मनु’ में पहली बार देसी कहानी आयी थी,इसकी सफलता के बाद देसी कहानियों पर फिल्म बनाने का चलन ब-सजय़ा. उससे पहले हर बड़ा प्रोडक्शन हाउस अपनी फिल्मों को अमरीका ,इंग्लैंड,स्विटजरलैंड में ही फिल्मा रहा था.यदि आप पहले से भांप लेते हैं कि ऐसा होने वाला है, तो आप खुद को बदल सकते हैं. आज आप समाज में देखिए,हर युवा छह या आठ पैक के साथ नजर आता है.हर लड़की हीरोइन की तरह दिख रही है.आप डांस के रियालिटी शो देखिए,हर बच्चा हमारी फिल्मों के हीरो से ज्यादा अच्छा नाचते हुए नजर आता है.तो हम किस बात पर खुद को हीरो कहें?आप किसी शादी में चले जाइए, वहां घर की लड़कियां व बहुएं हमारी फिल्म की हीरोईन से कई गुणा ज्यादा बेहतर नाचते हुए नजर आएंगी. इसीलिए मुझे लगा कि यह सब बदलना पड़ेगा. हमें खुद को बदलना पड़ेगा. इसी वजह से मैं कई बार तीन चार वर्षों के लिए ब्रेक ले चुका हॅूं.फिर मैने ‘साला खड़ूस’ भी अलग तरह की फिल्म की.

जब आप ब्रेक लेते हैं,उस वक्त किस तरह खुद को नए सिरे से विकसित करते हैं?

जब ब्रेक लेता हॅूं, उस वक्त तक मैंने जो कुछ सीखा हुआ होता है,सबसे पहले मैं उसे भुलाने का प्रयास करता हूं. जिससे मैं नई फिल्म के सेट पर अपना अनुभव लेकर जाने की बजाय सिर्फ अपना इंथुयाजम और इंस्टिंट को लेकर जाउं.जब ब्रेक लेता हूं,उस वक्त आम इंसान को सम-हजयने का प्रयास करता हूं.

मैं देखता हॅूं कि यह रिक्षा वाला है,पर इसका काम डिजिटल करेंसी से चल रहा है.तो आज की तारीख मे टेलीग्राम या मनी आर्डर से पैसा भेजने वाली कहानी लाकर गलत ही करेंगे.इसी तरह चार वर्षों के दौरान मैं जो कुछ तैयारी करता हॅूं,वही मेरी अगली फिल्म में नजर आता है.फिर चाहे वह ‘तनु वेड्स मनु’ हो या ‘विक्रम वेधा’ हो या ‘रॉक्रेट्री’ हो. मतलब मैं रिसर्च करता हूं.

मैं खुद को फिल्म इंडस्ट्री से दूर कर आम लोगों से मिलता हॅूं.मैं गोल्फ खेलने जाता हॅूं,तो वहां पर लोगों से बात करता हॅूं,उनकी सोच को जानने व सम-हजयने का प्रयास करता हॅूं.उनसे राजनीति, बिजनेस सहित हर क्षेत्र की सोच जानने का प्रयास करता हॅूं.कभी अपने गांव चला जाता हॅूं, वहां लोगों से मिलता हूं. तो हमेशा ज्ञान बटोरने का क्रम जारी रखता हॅूं.

आपके मन में ब्रेक लेने की बात कब आती है?

मैं ब्रेक तब लेता हॅूं, जब मुझे लगता है कि मैं आराम से काम कर रहा हॅूं. मेरी कई फिल्में हिट हो रही हों और मेरे अंदर एक और ‘तनु वेड्स मनु’ या एक और ‘रहना है तेरे दिल में’ करने की इच्छा होने लगती है, तो मुझे लगता है कि गिरावट शुरू हो गयी है और अब ब्रेक लेने का वक्त आ गया है. यह सिर्फ सिनेमा के लिए ही नहीं, बल्कि अपने दिमाग को शॉर्प रखने के लिए भी मैं कुछ न कुछ ज्ञान लेता रहता हॅूं. एक बार मैं स्विटजरलैंड में तमिल फिल्म की शूटिंग करते हुए हरी पैंट व लाल शर्ट पहनकर सड़कों पर नाच रहा था, तब मुझे अहसास हुआ कि मैडी तू फौज में रह चुका है, तू पब्लिक स्पीकिंग समझ चुका है, तू मोटर सायकल चलाता है, तू हायड्ोफोनिक्स के बारे में जानता है.लेकिन इसमें से अपना कोई भी हूनर तू सिनेमा में नहीं दिखा रहा.’उस वक्त तक हर निर्देषक को लगता था कि मैडी को नचाना है.उनके अनुसार यही कमर्षियल फिल्म है.उसके बाद ही मैने खुद के साथ सिनेमा को बदलने का प्रयास करने लगा.

बतौर अभिनेता फिल्म तनु वेड्स मनुसे आपने कमर्षियल फिल्म के –सजयर्रे को तोड़ा,इसका श्रेय आपके साथ ही आनंद एल राय को भी जाता है.अब सभी फिल्मकार देसी सिनेमा बनाने की होड़ में शामिल नजर आ रहे हैं.

वैसे बीच में ओटीटी के जाल में फंसकर भटक गए थे. आपके अनुसार जमीन से जुड़े रहने के लिए हर कलाकार को देसी सिनेमा जरुर करना चाहिए?

बिलकुल.. आज यह तय करना जरुरी हो गया है कि आपकी कहानी किस परदे पर अच्छी दिखेगी.अगरमैं ‘ब्रीथ’ को लेकर सिनेमा बनाउंगा तो बेवकूफी होगी.अगर मैं ‘द कपल’ को सिनेमा बनाने की कोषिष करुंगा,तो बेवकूफी होगी.

‘विक्रम वेधा’ को मैं वेब सीरीज बनाने जाउंगा,तो यह बेवकूफी होगी. तो सही परदे के लिए सही कहानी का चयन करना भी कलाकार व निर्देशक दोनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.दूसरी बात आपकी कहानी या आपकी फिल्म का कंटेंट विश्व स्तर पर पहुंचने की क्षमता रखता है या नहीं.हमारी सबसे बड़ी गलती यह है हम अपनी जनता /दर्शक को सबसे कमतर आंक कर चलते हैं. हमें लगता है कि दर्शक को क्या पता.जबकि जितनी नई तकनीक ‘मेटावर्सियल जेबी 3.2’ है, उसके जो मालिक हैं वह लखनउ, कानपुर व -हजयांसी के 25 वर्ष के बच्चे हैं .इनकी वैल्यू आज की तारीख में 15 बिलियन डॉलर है. उनसे मिलने के लिए फेशबुक व अमैजान लखनउ आ रहा है और हमें पता ही नहीं है.यह बच्चे हैं असली हीरो. इनकी फैन फालोइंग अभिनेता या क्रिकेटर से अधिक है.मगर हमें इसका अहसास ही नहीं है.

आपको नहीं लगता कि हमारे देष में सही मायनों में हीरोका अभाव है?

रीयल लाइफ में नम्बी नारायण जैसे लोग हैं,पर हमने इन्हें तवज्जो नहीं दी गयी.

नम्बी नारायण लोगों तक नहीं पहुंच पाए, कहां गड़बड़ी हुई?

-गड़बड़ी नहीं हुई. मैं बताता हॅूं.देखिए,जब राज कपूर साहब आए तो उन्होंने वह फिल्में बनायीं और वह कहानियां सुनायी, जो उनके साथ गुजरा था या जो उन्हे भा रहा था.फिर चाहे वह हरिष्चंद्र की कहानी हो या मुगले आजम की कहानी हो,उनके साथ जो सहायक होते थे, वह भी उसी तरह की कहानियां बनाते थे.आप संजय लीला भंसाली को ले लीजिए.वह अलग तरह का सिनेमा बना रहे हैं.राज कुमार हिरानी अलग तरह का सिनेमा बना रहे हैं. सुभाष घई एक्शन वाली फिल्में बनाते रहे.रोहित शेट्टी की फिल्मों में भी एकशन ही होता है.यह सब एक ही पंरपरा का अनुसारा करते चले आ रहे हैं.अमेरीका में हुआ यह कि अचानक स्टीवन स्पीलबर्ग घुस गया.वह साइंस फिक्षन बनाने लगा.जेम्स कैरोन आया तो उसने अलग राह पकड़ ली.तो अमरीका में वह लोग आए जिन्होंने विज्ञान, इंजीनियिरंग और तकनीक को प्रोत्साहन दिया.जिसके चलते वहां के आम लोगो को लगा कि हम भी हीरो बन सकते हैं.फस्ट मैन या अपोलो

13 या स्टीव जाॅब्स जैसी फिल्में अमरीका बनाता है तो लोगों को लगता है कि अमरीका ही दुनिया को बचा सकता है.सिनेमा से बड़ा मार्केटिंग का हथियार विश्व भर में नहीं है. हमारे देश में उसी तरह के हजारों इंजीनियर पड़े हुए हैं. नंबी नारायण उन्हीं में से एक हैं.इनके बारे में जानकारी रखना जरुरी है.नंबी नारायण ने तो अपने बारे में किताब भी लिखी है. पर हम प-सजय़ते कहां हंै? आप मुझे बताइए मैं किस निर्देशक के पास जाकर बताउं कि रॉकेट साइंस क्या है? लिक्विड इंजन क्या है?इसे कोई भी फिल्मकार समझना नहीं चाहेगा. क्योंकि उन्हे लगता है कि इसे हमारे देष की जनता नहीं समझ पाएगी.लेकिन मेरा सवाल है कि जब यह सब हमारे देश की जनता ही बना रही है, तो फिर उसे समझ में क्यों नहीं आएगा.

आपने क्या सोचकर इसरो वैज्ञानिक नम्बी नारायण पर फिल्म ‘‘रॉकेट्री ’’ बनायी?

जब मैं 2017 में तमिल भाषा की ‘नियो नॉयर एकशमन थ्रिलर ‘विक्रम वेधा’ की शूटिंग पूरी कर चुका था,तब एक बंदा मेरे पास आया और उसने मु-हजयसे कहा कि ‘इसरो के वैज्ञानिक हैं.देखने में खूबसूरत है. उनका अफेयर हो गया एक मालदीविया औरत के साथ, जिसके चलते उन्होेने भारत की रॉकेट साइंस पाकिस्तान को बेच दिया.उन्हे पकड़ कर जेल में डाल दिया गया.जेल के अंदर उन्हें बहुत टॉर्चर किया गया.जेल से बाहर निकलकर उन्होंने खुद को निर्देषक साबित कर दिया.’मुझे लगा कि यह कहानी अच्छी है.एक गरीब इंसान की जेम्स बांड टाइप फिल्म है.मैने इस पर काम करने का फैसला लिया.इस तुच्छ या यूं कहे कि नीच इरादे के साथ मैं नंबी नारायण से मिलने चला गया. उनसे मिलने के बाद मेरी जिंदगी बदल गयी.उन्हे देखते ही मेरे अंदर से आवाज आयी कि कुछ तो गड़बड़ है.उनके चेहरे पर एक तेजस्वता थी. उनका अपना औरा नजर आ रहा था.मेरे मन में आया कि यह इंसान महज इस केस की वजह से नही जाना जा सकता.नंबी नारायण साहब बड़े प्यार से मु-हजयसे मिले.फिर जब उन्होंने केस के बारे में बताना शुरू किया,तो उनके होंठ गुस्से में हिल रहे थे.गुस्से में उनकी आंखों से आंसू आ रहे थे कि यह लोग कैसे कह सकते हैं कि मैं देशद्रोही था?यह सोच कैसे सकते हैं कि मैने देश को बेचा.उन्होंने अफेयर को लेकर एक शब्द नहीं कहा. मैंने उनसे कहा कि आप गुस्सा क्यों हो रहे हो.आपको अदालत ने बरी कर दिया है.तब उन्होंने कहा तुझे पता है. मुझे पता है.अदालत को पता है कि मैं निर्दो-ुनवजया हॅूं.पर गूगल में मेरा नाम डालने पर क्या आता है.वही स्पाय केस नम्बी नारायण… जिंदगी भर लोग मुझे जासूसी कांड के लिए ही जानेंगें.लोग मेरे घर पर अपनी लड़की नहीं देना चाहते. आखिर मैंने इस देश के लिए ऐसा क्या कर दिया?’ मुझे लगा कि नंबी नारायण ने बहुत बड़ा सवाल उठाया है और मुझे यह एक बेहतरीन कहानी लगी. मैंने जो सोचा था,वह यह कहानी नहीं थी.उसके बाद सारे साक्ष्य लेकर सात माह के अंदर मैंने पूरी कहानी लिखी.मैने जो कहानी लिखी थी, उसे मैंने नंबी नारायण साहब को दिखायी. सम झने के बाद उन्होंने कहा कि सब ठीक है.पर कुछ चीजें मैं भूल गया.क्योकि इस वक्त में पिं्रसटन युनिवर्सिटी में था,काक्रो के साथ लिक्विड प्रोपुलेशन पर काम कर रहा था.क्राको यानी कि आप प्रोफेसर लुइगी क्राको की बात कर रहे है.तो उन्होेने बताया कि उन्होंने प्रोफेसर लुइगी क्राको के मार्गदर्शन में दस माह के अंदर एक थिसिस की थी.लुइगी क्राको को नासा का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक माना जाता है.वह मून मिषन के मालिक है.उनके यहां लोग दस दस साल तक थीसिस करते हैं,पर पास नहीं हो पाते और नंबी नारायण मुझसे कह रहे थे कि उन्होने दस माह में थीसिस पूरी कर ली

थी.फिर उन्होने फ्रांस को लेकर बातें बतायी.फिर स्कॉटलैंड और रूस के बारे में बातें बतायी. तो मेरी समझ में आया कि मैं तो एक छोटे जेम्स बांड की फिल्म बनाने आया था,यह तो जेम्स बांड के बाप के बाप हैं. अफसोस सब कुछ सच बताया.मैने उनसे पूछा कि आपने इन सभी बातों का जिक्र अपनी किताब में नहीं किया.तो उन्होनें कहा कि,‘इसमें लिखने वाली कोई बात नही थी. उन्होने मुझे तनख्वाह दी और मैंने अपना काम किया.’उन्हें अहसास ही नहीं हुआ कि उन्होने अपनी जिंदगी को हथेली में लेकर जो काम कर रहे थे, वह ‘हीरोईजम’ वाली कहानी है.मैंने उनसे कहा कि मैं आपके केस को लेकर फिल्म नहीं बनाना चाहता.मैं तो आपके बारे में फिल्म बनाना चाहता हॅूं. अफसोस की बात है कि लोग आपके बारे में नहीं जानते.

आपने फिल्म रॉक्रेट्रीः द नाम्बी इफेक्ट’’ में नंबी नारायण का महिमा मंडन किया होगा?

जी नहीं…मैने 75 वर्षों के बुजुर्ग इंसान नंबी नारायण से कहा था कि सर मैं आपको मर्यादा पुरूशोत्तम नहीं दिखाउंगा. मुझे आप अपने अवगुणों के बारे में बताएं. आपके अंदर हैवानियत क्या है?आपने क्या वास्तव में उस लड़की के साथ अफेयर किया,उसके साथ सोए?सब कुछ सच सच बताएं.मेरे सवाल सुनकर उन्होंने जो कुछ अपने अवगुणों के बारे में बताया,उन्होने अपने अंदर की कट्टरता व हैवानियत के बारे में बताया,वह नही था,जो मैं सम-हजय रहा था. उनकी बातें सुनकर मैं डर गया कि एक इंसान से यह सब कैसे हो सकता है.एक इंसान इतना बेरहम कैसे हो सकता है? फिर भी जब आप उनकी कहानी सुनेंगे, तो समझ में आएगा कि यह इंसान हीरो क्यो है?अपने सर्वायवल के लिए इन्हे पूजना क्यों जरुरी है.मैंने यह फिल्म इसलिए बनायी कि नम्बी नारायण जैसे लोग दुनिया में दोबारा पैदा नहीं होने चाहिए और दूसरी वजह कि ऐसे लोगों के साथ वह नही होना चाहिए,जो हमारे देश में हुआ.

अफसोस की बात यह है कि हमारे देश में ऐसी फिल्मों पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है,जिनका कोई मायने ही नही है.हमारे स्पेस रिसर्च या आई टी के जीनियसों के बारे में कोई बात ही नही होती.जबकि हमारे देश के ही लोग विदेशों में नाम कमा रहे हैं. आप अमरीका जाइए,तो पहले 500 फारच्यून लोगों में टॉप 14 लोग भारतीय हैं. सुंदर पिचई के बारे में कोई फिल्म नही बनाता.अमरीकी उद्योगपति स्टीव जाब्स के बारे में हम फिल्म बनाते हैं.नासा में भी हमारे देष की छोटी जगहों के लोग काम कर रहे हैं.हम अपनी इस फिल्म के माध्यम से विदेषांे में कार्यरत भारतीय प्रतिभाओं को संदेश देने का प्रयास किया है कि वह भारत आकर काम करें.हम तो चाहते हैं कि जर्मन वैज्ञानिक भी भारत आकर काम करे. आने वाले दस पंद्रह वर्षों में हो

सकता है कि हमें व आपको अंतरिक्ष में ही जाना पड़े.क्योंकि हम जिस तरह से पृथ्वी के साथ व्यवहार कर रहे हैं,उसे देखते हुए पानी व तेल का संकट गहराने वाला है.तब हमें अंतरिक्ष का रूख करना पड़ सकता है.वैसे हमारे पास पुरानी सभ्यता,संस्कृति व विज्ञान है.हमारे पास पंचाग है,जिसकी वजह से गणना कर हम कम खर्च में अपने मंगल यान का सफल प्रक्षेपण कर सके.हम सब चाहे तो मिलकर भारत को विश्व का सर्वश्रेष्ठ देश बना सकते हैं,पर हम वह सब नहीं कर रहे हैं.

फिल्म रॉक्रेट्रीको लेकर आप कांस फिल्म फेस्टिवल, नासा सहित कई देशों में गए. वहां किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली?

मैंने पहली बार निर्देशन किया है,तो मैं अंदर से डरा हुआ था.मेरी फिल्म को इतने बड़े अंतरराष्ट्रीय समारोह में बुलाया गया था.मुझे  डर था कि कहीं मुझे मुंह छिपाकर वहां से न निकलना पड़े. फ्रांस का दर्शक बहुत बेरहम होता है.फिल्म अच्छी न हो तो बीच में ही फिल्म छोड़कर चल देते हैं.पर जिस तरह से उन्होंने प्रतिक्रिया दी, जिस तरह से दस मिनट तक उन्होने तालियां बजायीं, उससे यकीन हुआ कि मैंने वाहियात फिल्म नहीं बनायी.

आप तो अभिनेता के साथ पहले भी लेखन करते रहे.आपने कुछ फिल्मों के संवाद भी लिखे है.एक लेखक जिस कहानी को लिखता है, वह उसके साथ हमेशा न्याय करने में सफल होता है, फिर भी आप डरे हुए क्यों थें?

देखिए, मेरे अंदर निर्देशक बनने की कोई क्षमता नहीं थी.मैं इससे पहले कभी एडीटिंग के समय नहीं बैठा. मैं म्यूजिक सिटिंग में भी नहीं बैठा हॅूं. मुझे यह नहीं पता था कि एकशन डायरेक्टर के साथ किस तरह बात करनी है.

मैने इससे पहले अपने आई फोन से भी कुछ भी निर्देशित नहीं किया था. तो मुझे लग रहा था कि मैंने कुछ गलत फिल्म तो नहीं बना डाली.वै से तो हर निर्देशक को यही लगता है कि उसने मुगल ए आजम बनायी है.मगर जब फिल्म रिलीज होती है,तो पता चलता है कि उसने क्या फिल्म बनायी है.इसके अलावा पहली ही फिल्म बड़ी फिल्म निर्देशित की. इसे एक साथ अंग्रेजी, हिंदी और तमिल भाषा में फिल्माया है. मैंने इस फिल्म में ऐसे कारनामे किए है,जिन्हे आज तक दुनियाभर में किसी ने नहीं किया है.

मसलन..?

हम सभी ने कई फिल्मों में रॉक्रेट लॉचिंग देखी है, पर हमें नहीं पता कि रॉकेट इंजन कैसा दिखता है.यह देखने में पूरी तरह से हीरे व जवाहरात की तरह होता है.पर अब तक किसी ने परदे पर दिखाया नही.जब यह चालू होता है तो इतनी भयंकर आवाज आती है कि इंसान डर जाए.तीन किलोमीटर दूर तक इंसान खड़ा हो तो उसके कान के परदे फट जाएं.और उसके अंदर जो एनर्जी होती है,वह भी किसी ने नही दिखायी थी.

नम्बी नारायण की तरह दिखने के लिए आपने क्या क्या किया?

जो कुछ किया, वह अब तक किसी भी कलाकार ने नहीं किया होगा. मुझे इस पर गर्व है. फिल्म ‘‘रॉक्रेट्री’ में नम्बी नारायण के उन्तीस वर्षों से 70 साल तक की उम्र की कहानी दिखायी है.पर मैंने उम्र के साथ आने वाले बदलाव को दिखाने के लिए कहीं भी प्रोस्थेटिक का उपयोग नहीं किया है. पूरी फिल्म में मैंने चेहरे पर चिपकायी हुई मूंछ या चिपकायी हुई दा-सजय़ी का उपयोग नहीं किया.मैने तो नम्बी नारायण की सजती उम्र के साथ जिस तरह के दांत हुए हैं, उसे दिखाने के लिए मैने अपने दांतों का एलाइनमेंट तुड़वाया था.

फिर उसी स्थिति में मेरे दांतो को आने में डे-सजय़ व-ुनवजर्या लगे.मैने वजन घटाने व सजाने के लिए रिसर्च कर एक नई तकनीक पायी और उसी तकनीक का उपयोग किया.29 साल से सत्तर सात का गाफ दिखाने के लिए हमें वजन पर ध्यान देना था.हमने बालों को भी अलग -सजयंग से रंगा है. बालों को सफेद रंग में रंगने के लिए मुझे हर दिन चैदह घंटे बैठना पड़ता था.पर मैंने इस बात पर पूरा ध्यान दिया कि मैं गंजा न होनेे पाउं.मोटा होने पर पेट भी बाहर निलता

है,उसके लिए मैने पैड नहीं लगाया,बल्कि वास्तव में उस तरह से मोटा हुआ और 14 दिन बाद पतला भी हुआ.यह सब ‘क्राइजनिक रिसर्च’ की बदौलत संभव हो पाया.इसमें ‘अप्लाइड किंसियोलॉजी’ नामक विज्ञान है,जो बताता है कि ऐसा क्या है जो आपके मानसिक तनाव /प्रोफेशनल तनाव के चलते ऐसा कौन सा भोजन है,जो आपके शरीर के लिए सही नही है.जरुरी नहीं है कि वह क्या चीज है.वह दूध या षक्कर या भिंडी भी हो सकती है,जिससे आपको एलर्जी हो जाए.और आपको पता नहीं होता.अचानक आपको लगता है कि आप खा तो उतना ही रहे हैं, मगर आपका पेट,वजन गया.मैंने रिसर्च करते समय पाया कि दांत की वजह से इंसान की उम्र कम या ज्यादा कैसे दिखा सकते हैं.

इस फिल्म को बनाने के बाद आपके अंदर क्या बदलाव आया है?

-यही कि किसी चीज पर विश्वास हो और आपने कुछ करने की ठान ली है,तो फिर सर फटे या माथा, किसी की भी मत सुनो. उस काम को कर डालो.सही बात नम्बी नारायण भी कहते हैं.वह कहते है कि, ‘कोई तेरे रास्ते में आए,तो उसे दफना दे.अगर तुझे यकीन है कि जो कर रहा है,वह सही है, तो आगे बढ़ जा.’वह खुद इस बात पर यकीन करते हैं और यही सलाह उन्होंने मुझे दी.

क्या आप मानते हैं कि आप कम्यूनीकेशन स्किल व पर्सनालिटी डेवलपमेंट की ट्रेनिंग दिया करते थे, उसने फिल्म रॉकेट्री बनाने में मदद की?

जी हां! ऐसा ही हुआ.पर्सनालिटी ट्रेनिंग की खास बात यह है कि सामने बैठे हुए इंसान को परखा कैसे जाए. जब मैं नम्बी नारायण के सामने बैठा हुआ था,तो मैं उन्हे परख नहीं रहा था,पर वह मुझे जरुर परख रहे थे कि तू तो अभिनेता है,तू रॉकेट इंजन के बारे में क्या फिल्म बनाएगा.वह हमेशा

मुझे बच्चों की तरह टेस्ट किया करते थे और मैं उनके हर टेस्ट पर खरा उतरा.क्योंकि मैं भी इंजीनियर हॅूं.इसलिए वह मुझसे इम्प्रेस हो गए और उन्होने कहा, मैडी,तुझे मेरी टीम में होना चाहिए था.’ यह मेरे लिए गर्व की बात थी.

Anupamaa में नहीं होगी किंजल की मौत, निधि शाह ने कही ये बात

अनुपमा की कहानी में इन दिनों किंजल की गोदभराई का ट्रैक चल रहा है. हाल ही में खबर आई थी कि शो में किंजल की मौत हो जाएगी क्योंकि निधि शाह इस शो को छोड़ने वाली हैं. एक्ट्रेस ने शो में किंजल के किरदार को लेकर बड़ा बयान दिया है.

कुछ दिन पहले खबर आई थी कि निधि शाह कम उम्र में ऑनस्क्रीन मां का रोल नहीं निभाना चाहती हैं. इसलिए वह शो को अलविदा कहने वाली है. लेकिन अब निधि ने शाह ने इस किरदार को लेकर कुछ और कहा है.

 

एक रिपोर्ट के अनुसार, एक्ट्रेस ने कहा है कि उन्हें इस रोल को निभाने में कोई भी दिक्कत नहीं है और उन्हें अनुपमा के प्रोड्यूसर्स पर भरोसा है कि वह शो में किंजल की कहानी को अच्छे से आगे बढ़ाएंगे.

 

खबरों के अनुसार, एक्ट्रेस ने ये भी कहा है कि पहले मैं मां का रोल निभाने और बेबी बंप दिखाने के लिए उलझन महसूस कर रही थी. खैर मैं एक कलाकार हूं और मुझे किसी भी किरदार को कॉन्फिडेंस के साथ निभाना ही होगा. मुझे यह खुद को समझाने में समय लग गया कि मुझे प्रेग्नेंट औरत का किरदार निभाना है.

 

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उन्होंने आगे ये भी कहा कि एक कलाकार के तौर पर हर तरह के रोल निभाने की भी अहमियत होती है ताकि लोग समझ सकें कि आप क्या-क्या कर सकते हैं. तो मैंने भी इसके लिए तैयारी करनी शुरू कर दी.

 

निधि शाह की बातों से साफ हो चुका है कि अनुपमा में किंजल की मौत तो नहीं होगी. लेकिन शो में देखना होगा कि किंजल के किरदार से जुड़ा क्या ट्विस्ट आता है.

राखी भरेगी बरखा के कान, रंगे हाथों पकड़ेगी Anupamaa

टीवी सीरियल अनुपमा में  अब तक आपने देखा कि किंजल की गोदभराई की रस्म शुरू हो चुकी है. वनराज की जगह अनुज सारे रस्म निभा रहा है. बा वनराज को गोदभराई की रस्म वीडियो कॉल पर दिखाती है.  अनुज को रस्म करते हुए देखकर वनराज आगबबूला हो जाता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के नए एपिसोड में दिखाया जाएगा कि बा और राखी दवे सभी के सामने खूब तमाशा करेंगी. शाह हाउस में राखी दवे और बा के बीच जबरदस्त लड़ाई होगी. इसके बाद अनुपमा का गुस्सा फूट पड़ेगा. वह राखी के साथ-साथ बा को भी खूब सुनाएगी.

 

अनुपमा का गुस्सा देखते ही बा और राखी दवे का गुस्सा ठंडा हो जाएगा. शो में आप ये भी देखेंगे कि बरखा फोन पर बात करने के लिए बाहर जाएगी. तभी राखी दवे उसके पीछे-पीछे जाएगी और उसे जूस का ग्लास ऑफर करेगी. इसके बाद दोनों एक-दूसरे को देखकर खूब मुस्कुराएंगी.

 

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शो में दिखाया जाएगा कि राखी, बरखा को अनुपमा के खिलाफ भड़काने की कोशिश करेगी. वह उससे कहेगी कि अनुपमा की नजर सिर्फ कपाड़िया प्रॉपर्टी पर नहीं बल्कि शाह हाउस के साथ-साथ डांस एकेडमी पर भी है. अनुपमा दोनों की बातें सुन लेगी और वह राखी दवे को खूब सुनाएगी.

 

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