जमशेदपुर में तमिल ब्राम्हण परिवार में जन्में व पले-बढ़ें अभिनेता,निर्माता,लेखक व निर्देशक आर माधवन की यात्रा बहुत ही अलग व रोचक रही है. वह न तो अभिनेता बनना चाहते थे और न ही इंजीनियर. पर बाद में उन्होंने इलेक्ट्रिनकस में बीएससी की. सच यह है कि वह तो एनसीसी कैडेट थे, जिसके चलते उन्हे इंग्लैंड में ब्रिटिश आर्मी से ट्रेनिंग लेने का अवसर मिला. वहां पर चार वर्ष तक ट्रेनिंग लेकर फौजी बनकर भारत वापस आए.तब तक भारतीय सेना का हिस्सा बनने की उम्र से छह माह ज्यादा हो गए थे. फिर वह पर्सनालिटी डेवलपमेंट के शिक्षक बन गए. पर तकदीर कुछ और ही चाहती थी.जिसके चलते उन्हें एक सीरियल मे अभिनय करने का मौका मिला.उसके बाद अभिनय जगत में उन्होंने अच्छा नाम कमाया.चार फिल्मफेअर अवार्ड के साथ ही तमिलनाड़ु स्टेट फिल्म पुरस्कार सहित कई पुरस्कार अपने नाम कर चुके हैं.
इन दिनों आर माधवन एक जुलाई को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘रॉक्रेट्री द नाम्बी इफेक्ट’’ को लेकर चर्चा में हैं. हिंदी, अंग्रेजी व तमिल तीन भाषाओं में बनी इस फिल्म में इसरो वैज्ञानिक नम्बी नारायण का किरदार निभाने के साथ ही उन्होंने फिल्म का लेखन व निर्देशन भी किया है.पद्म विभुषण से सम्मानित और त्रिवेंद्रम निवासी इसरो वैज्ञानिक ने रॉकेट साइंस के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की. मगर उन पर एक मालदीव की औरत के साथ अफेयर और 1994 में भारतीय रॉकेट साइंस को पाकिस्तान के हाथों बेचने का आरोप लगा था. मगर 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने नाम्बी नारायण को बइज्जत बरी करने के साथ उन पुलिस अफसरो पर काररवाही करने का आदेश दिया था, जिन्होंने इसरो वैज्ञानिक नाम्बी नारायण पर झूठा आरोप लगाया था.
प्रस्तुत है आर माधवन से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…
फिल्म उद्योग में आपका काफी लंबा करियर हो गया.मगर आपकी शुरूआत काफी अलग रही है. पहले आप एनसीसी कैडेट थे.फिर आप इंग्लैंड आर्मी की ट्रेनिंग के लिए गए. वापस आकर आप पर्सनालिटी डेवलपमेंट और कम्यूनीकेशन स्किल के प्रोफेसर बने. उसके बाद आपने टीवी सीरियलों में अभिनय करना शुरू किया. टीवी पर आपने कॉमेडी करते हुए अपना एक अलग नाम व मुकाम बनाया. फिर आप फिल्मों में रोमांटिक हीरो बन गए.
फिर अलग अलग तरह के किरदार निभाए. आपने फिल्म के संवाद लिखे.‘साला खड़ूस’ जैसी फिल्म का निर्माण किया.और अब आप बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘‘रॉक्रेट्री द नाम्बी इफेक्ट’’ लेकर आ रहे हैं,जिसमें आपने अभिनय भी किया है.यह जो बदलाव आपकी जिंदगी व कैरियर म्म आते रहे,उसकी क्या वजहें रहीं?
मेरा जन्म व परवरिश बिहार के जमशदपुर में हुई, जो कि अब -झारखंड का हिस्सा है.बचपन में मैं एक हरफन मौला वाला बंदा रहा. जब मुझसे कोई कहता था कि मुझे इस रास्ते पर चलना चाहिए, तो मैं उससे पूछता था कि क्यों? तो बचपन से ही मेरी आदत रही है कि मैं अपनी मन मर्जी का ही काम करता था. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अभिनेता बनॅूंगा. मेरे माता पिता चाहते थे कि इंजीनियर बनॅूं. पर मैं इंजीनियर नहीं बनना चाहता था.तो आज जब में पीछे मुड़कर देखता हॅूं तो अहसास होता है कि पूरी जिंदगी मैं अपने आपको कलाकार के तौर पर तैयार कर रहा था.फिर चाहे वह बिहार में गुल्ली डंडा खेलना हो या गोबर डंडा खेलना हो. मेरे अंदर हिंदी बोलने की जो क्षमता है,वह भी बचपन से ही बिहार में ही सीखता रहा. मैं मूलतः मद्रासी हॅूं,तो तमिल भी बोल लेता हॅूं.कुल मिलाकर पूरी कायनात ने तय कर लिया था कि इसे तो अभिनेता ही बनाना है.जबकि मुझे यह बात पता नहीं थी. मेरे खानदान में दूर दूर तक कोई भी इंसान फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ नही था. फौजी बनने के बाद जब मैं मुंबई आया, तो राह चलते किसी इसान ने मुझसे पूछा कि अभिनय करोगे, तो मैंने उससे पूछ दिया कि कितना पैसा दोगे? वहां से कहानी शुरू हुई. मैंने टीवी सीरियल किए और देखते-देखते लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि आर माधवन तो बहुत अच्छा अभिनेता है. फिर लोगों ने मेरे ऑटोग्राफ लेने शुरू कर दिए. मेरे माता पिता जमशदपुर में नौकरी कर रहे थे.उनकी सैलरी दस हजार रूपए थी. दोनों मिलकर प्रति माह बीस हजार कमा लेते थे.मैं उन्हें अमीर समझता था.लेकिन यहां मुझे टीवी सीरियल के एक एपीसोड में अभिनय करने के एवज में बीस हजार रूपए मिल रहे थे, तो मुझे लगा कि इस तरह तो मैं अंबानी बनने वाला हॅूं. शुरूआत में कामयाबी के साथ जो अहंकार आता है, वह मुझ में भी आया था.पर बहुत जल्द मेरी समझ में आ गया कि यह स्वाभाविक है,पर इससे जल्द से जल्द बाहर निकल जाना ही हितकर है.यह बात में मध्यमवर्गीय परवरिश के चलते समझ पाया और बहुत जल्द मैं अहंकार से बाहर आ गया. फिर भी टीवी सीरियल करते हुए मैने सोचा नहीं था कि अभिनय मेरा प्रोफेशन बन जाएगा. जब मैं फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा था, उस वक्त कॉस्टिंग डायरेक्टर नहीं थे. इतने अखबार व मैगजीन नहीं थी. तो लोगों को पता ही नहीं चलता था कि यह कलाकार कौन है? मैं सेट पर देखता था कि हर कोई अभिनेता बनने को उत्सुक है.सभी ने हर किसी को अपना माई बाप बना रखा है.वह निर्माता निर्देशक के पैर छूते थे. मैं तो फौजी था,तो यह सब करना मुझे भाता नही था. मैं स्पॉट ब्वॉय व चाय बनाने वालों के साथ बैठकर चाय पीता था. बाद में पता चला कि स्पॉट ब्वॉय वगैरह ही हर जगह मेरा नाम रोशन कर रहे थे. इसी के चलते मुझे काम मिलने लगा. देखते ही देखते मैंने टीवी पर ‘घर जमाई’ व ‘बनेगी अपनी बात’ सहित हिंदी टीवी सीरियलों में 1800 एपीसोड कर लिए. मैंने मान लिया कि अपनी जिंदगी तो टीवी में सेटल हो गयी.
फिर टीवी से फिल्मों की तरफ मुड़ना कैसे हुआ था?
लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि माधवन तू तो ओवर एक्सपोज हो गया.अब तुझे फिल्मों में अभिनय करने को नहीं मिलेगा. मैंने कह दिया कि मैं यहां अभिनेता बनने तो आया ही नहीं था. इसलिए फिल्म नहीं मिलेगी, तो कोई बात नहीं. तभी मणि रत्नम सर ने मुझे बुला लिया. और मुझे तमिल फिल्म ‘‘अलैयपापुचे’’ में रोमांटिक हीरो बना दिया.फिल्म सुपर डुपर हिट हो गयी.
मैं सुपर स्टार बन गया.लोगों ने मुझे मद्रासी कलाकार कहना शुरू कर दिया. तो आप सोच नहीं सकते कि जो लड़का इंजीनियरिंग नहीं करना चाहता था. अभिनेता नहीं बनना चाहता था. जो एनसीसी कैडेट के बाद फौजी बन गया था, उसे कायनात ने फिल्म का रोमांटिक हीरो बना दिया था. इसके बाद मेरी हिंदी फिल्म ‘‘रहना है तेरे दिल में’’ प्रदर्शित हुई.पहले यह फिल्म नही चली.तो लोगों ने कह दिया कि फिल्म असफल है. यह मद्रासी कलाकार है. मोटा है. हिंदी में नहीं चलेगा. लेकिन कुछ दिन बाद ‘माउथ पब्लिसिटी’ से यह फिल्म सुपर डुपर हिट हो गयी.मेरी किस्मत ऐसी रही कि मैं कभी किसी निर्माता के घर काम मांगने नहीं गया.मगर मेरे पास काम आता गया.‘चाहे वह ‘दिल विल प्यार हो’,‘रंग दे बसंती’ हो,‘गुरू’ हो,‘3 इडिएट्स’ हो,‘जोड़ी बे्रकर’हो या दूसरी तमिल फिल्में हों.
इन फिल्मों या सीरियल में अभिनय करते हुए आपके जीवन की ट्रेनिंग काम भी आती रहीं?
हां! जब मैं ‘रंग दे बसंती’ और सीरियल ‘सी हॉक्स’ में अभिनय कर रह था,उस वक्त मेरी ब्रिटिष आर्मी के साथ ली गयी आर्मी की ट्रेनिंग बहुत काम आयी.जब मैं ‘3 इडिएट्स’ कर रहा था,उस वक्त मेरी कालेज व होस्टल की ट्रेनिंग काम आयी. जब मैं ‘साला खड़ूस’ कर रहा था,तब मेरी बॉक्सिंग और फिजिकल ट्रेनिंग काम आयी. तभी तो मैं कहता हॅूं कि मेरी जिंदगी ने मेरी सोच से पहले ही तय कर लिया था कि माधवन, तुझे मैं अभिनेता बनाउंगा. अब मैंने फिल्म ‘रॉक्रेट्री का लेखन व निर्देशन किया है, इसमें मेरी इंजीनियरिंग की सारी ट्रेनिंग का उपयोग हो गया. अगर आज मुझसे पूछेंगे कि क्या मैं इतना बड़ा रास्ता तय कर पाउंगा, तो मैं मना कर दूंगा. क्योंकि सही वक्त पर सही जगह होना तो नियति का ही खेल है.सही वक्त पर मणि रत्नम का बुलाना या राज कुमार हिरानी का बुलाना,यह सब तो नियति का खेल ही रहा.यह कायनात की मर्जी थी.अन्यथा मैं तो यहां किसी को जानता ही नहीं था.मैं तो फिल्मी पार्टियों में भी नहीं जाता. मैं अपना प्रचार करने से भी दूरी बनाकर रखता हूं. मैं हमेशा अपनी पीआर एजेंसी से कहता हूं कि मुझे खबरों से बाहर ही रहने दो. मेरे पास काम लगातार आता रहता है. मैं लगातार काम कर रहा हॅूं.
यदि आपके पूरे अभिनय कैरियर पर गौर किया जाए,तो आपने हमेशा अपनी इमेज को तोड़ने की कोशिश करते रहे हैं.जब आप टीवी में हास्य किरदारों के पर्याय बन गए थे, तभी आप मणि रत्नम की फिल्मों से रोमांटिक हीरो के रूप में उभरकर आ गए.फिर कई तरह के अलग अलग किरदार करते रहे.‘साला खड़ूस’ में आपके अभिनय का अलग ही रंग नजर आया.क्या ऐसा आप सोच समझ करते रहे?
-ऐसा आप कह सकते हैं.मेरी हमेशा कोशिश यह रही कि जिन किरदारों को दूसरे अभिनेता निभाने से दूर भाग रहे हों,उन किरदारों को निभा लो.‘ थ्री इडिएट्स’(2010 ) के हिट होने के बाद जब मुझे बड़े बड़े निर्देशकों के साथ फिल्में करनी चाहिए थी,तब मैने उस वक्त के नए निर्देशक आनंद एल राय की फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’( 2011) में साथ मनोज कुमार शर्मा उर्फ मनु का किरदार निभाया.क्योंकि मु-हजये आनंद एल राय की इस फिल्म की स्क्रिप्ट भा गयी थी. राज कुमार हिरानी ने खुद मुझसे कहा था कि मैडी तू यह क्या कर रहा है? तब मैंने उनसे कहा था- सर, मुझे नहीं लगता कि जो रोमांस अमरीका व इंग्लैंड में होता है, वह भारत के छोटे शहरों से मेल खाता है. मैं तो जमशदपुर का हॅूं.जमशेदपुर में जो रोमांस होता है, उसे हम फिल्मों में दिखा नही रहे, जबकि दर्शक उसी रोमांस को देखना चाहता है.तो सिनेमा में छोटे शहरों के रोमांस व कहानी की शुरूआत मैंने ही की थी. ‘तनु वेड्स मनु’ में पहली बार देसी कहानी आयी थी,इसकी सफलता के बाद देसी कहानियों पर फिल्म बनाने का चलन ब-सजय़ा. उससे पहले हर बड़ा प्रोडक्शन हाउस अपनी फिल्मों को अमरीका ,इंग्लैंड,स्विटजरलैंड में ही फिल्मा रहा था.यदि आप पहले से भांप लेते हैं कि ऐसा होने वाला है, तो आप खुद को बदल सकते हैं. आज आप समाज में देखिए,हर युवा छह या आठ पैक के साथ नजर आता है.हर लड़की हीरोइन की तरह दिख रही है.आप डांस के रियालिटी शो देखिए,हर बच्चा हमारी फिल्मों के हीरो से ज्यादा अच्छा नाचते हुए नजर आता है.तो हम किस बात पर खुद को हीरो कहें?आप किसी शादी में चले जाइए, वहां घर की लड़कियां व बहुएं हमारी फिल्म की हीरोईन से कई गुणा ज्यादा बेहतर नाचते हुए नजर आएंगी. इसीलिए मुझे लगा कि यह सब बदलना पड़ेगा. हमें खुद को बदलना पड़ेगा. इसी वजह से मैं कई बार तीन चार वर्षों के लिए ब्रेक ले चुका हॅूं.फिर मैने ‘साला खड़ूस’ भी अलग तरह की फिल्म की.
जब आप ब्रेक लेते हैं,उस वक्त किस तरह खुद को नए सिरे से विकसित करते हैं?
जब ब्रेक लेता हॅूं, उस वक्त तक मैंने जो कुछ सीखा हुआ होता है,सबसे पहले मैं उसे भुलाने का प्रयास करता हूं. जिससे मैं नई फिल्म के सेट पर अपना अनुभव लेकर जाने की बजाय सिर्फ अपना इंथुयाजम और इंस्टिंट को लेकर जाउं.जब ब्रेक लेता हूं,उस वक्त आम इंसान को सम-हजयने का प्रयास करता हूं.
मैं देखता हॅूं कि यह रिक्षा वाला है,पर इसका काम डिजिटल करेंसी से चल रहा है.तो आज की तारीख मे टेलीग्राम या मनी आर्डर से पैसा भेजने वाली कहानी लाकर गलत ही करेंगे.इसी तरह चार वर्षों के दौरान मैं जो कुछ तैयारी करता हॅूं,वही मेरी अगली फिल्म में नजर आता है.फिर चाहे वह ‘तनु वेड्स मनु’ हो या ‘विक्रम वेधा’ हो या ‘रॉक्रेट्री’ हो. मतलब मैं रिसर्च करता हूं.
मैं खुद को फिल्म इंडस्ट्री से दूर कर आम लोगों से मिलता हॅूं.मैं गोल्फ खेलने जाता हॅूं,तो वहां पर लोगों से बात करता हॅूं,उनकी सोच को जानने व सम-हजयने का प्रयास करता हॅूं.उनसे राजनीति, बिजनेस सहित हर क्षेत्र की सोच जानने का प्रयास करता हॅूं.कभी अपने गांव चला जाता हॅूं, वहां लोगों से मिलता हूं. तो हमेशा ज्ञान बटोरने का क्रम जारी रखता हॅूं.
आपके मन में ब्रेक लेने की बात कब आती है?
मैं ब्रेक तब लेता हॅूं, जब मुझे लगता है कि मैं आराम से काम कर रहा हॅूं. मेरी कई फिल्में हिट हो रही हों और मेरे अंदर एक और ‘तनु वेड्स मनु’ या एक और ‘रहना है तेरे दिल में’ करने की इच्छा होने लगती है, तो मुझे लगता है कि गिरावट शुरू हो गयी है और अब ब्रेक लेने का वक्त आ गया है. यह सिर्फ सिनेमा के लिए ही नहीं, बल्कि अपने दिमाग को शॉर्प रखने के लिए भी मैं कुछ न कुछ ज्ञान लेता रहता हॅूं. एक बार मैं स्विटजरलैंड में तमिल फिल्म की शूटिंग करते हुए हरी पैंट व लाल शर्ट पहनकर सड़कों पर नाच रहा था, तब मुझे अहसास हुआ कि मैडी तू फौज में रह चुका है, तू पब्लिक स्पीकिंग समझ चुका है, तू मोटर सायकल चलाता है, तू हायड्ोफोनिक्स के बारे में जानता है.लेकिन इसमें से अपना कोई भी हूनर तू सिनेमा में नहीं दिखा रहा.’उस वक्त तक हर निर्देषक को लगता था कि मैडी को नचाना है.उनके अनुसार यही कमर्षियल फिल्म है.उसके बाद ही मैने खुद के साथ सिनेमा को बदलने का प्रयास करने लगा.
बतौर अभिनेता फिल्म ‘तनु वेड्स मनु’ से आपने कमर्षियल फिल्म के –सजयर्रे को तोड़ा,इसका श्रेय आपके साथ ही आनंद एल राय को भी जाता है.अब सभी फिल्मकार देसी सिनेमा बनाने की होड़ में शामिल नजर आ रहे हैं.
वैसे बीच में ओटीटी के जाल में फंसकर भटक गए थे. आपके अनुसार जमीन से जुड़े रहने के लिए हर कलाकार को देसी सिनेमा जरुर करना चाहिए?
बिलकुल.. आज यह तय करना जरुरी हो गया है कि आपकी कहानी किस परदे पर अच्छी दिखेगी.अगरमैं ‘ब्रीथ’ को लेकर सिनेमा बनाउंगा तो बेवकूफी होगी.अगर मैं ‘द कपल’ को सिनेमा बनाने की कोषिष करुंगा,तो बेवकूफी होगी.
‘विक्रम वेधा’ को मैं वेब सीरीज बनाने जाउंगा,तो यह बेवकूफी होगी. तो सही परदे के लिए सही कहानी का चयन करना भी कलाकार व निर्देशक दोनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है.दूसरी बात आपकी कहानी या आपकी फिल्म का कंटेंट विश्व स्तर पर पहुंचने की क्षमता रखता है या नहीं.हमारी सबसे बड़ी गलती यह है हम अपनी जनता /दर्शक को सबसे कमतर आंक कर चलते हैं. हमें लगता है कि दर्शक को क्या पता.जबकि जितनी नई तकनीक ‘मेटावर्सियल जेबी 3.2’ है, उसके जो मालिक हैं वह लखनउ, कानपुर व -हजयांसी के 25 वर्ष के बच्चे हैं .इनकी वैल्यू आज की तारीख में 15 बिलियन डॉलर है. उनसे मिलने के लिए फेशबुक व अमैजान लखनउ आ रहा है और हमें पता ही नहीं है.यह बच्चे हैं असली हीरो. इनकी फैन फालोइंग अभिनेता या क्रिकेटर से अधिक है.मगर हमें इसका अहसास ही नहीं है.
आपको नहीं लगता कि हमारे देष में सही मायनों में ‘हीरो’ का अभाव है?
रीयल लाइफ में नम्बी नारायण जैसे लोग हैं,पर हमने इन्हें तवज्जो नहीं दी गयी.
नम्बी नारायण लोगों तक नहीं पहुंच पाए, कहां गड़बड़ी हुई?
-गड़बड़ी नहीं हुई. मैं बताता हॅूं.देखिए,जब राज कपूर साहब आए तो उन्होंने वह फिल्में बनायीं और वह कहानियां सुनायी, जो उनके साथ गुजरा था या जो उन्हे भा रहा था.फिर चाहे वह हरिष्चंद्र की कहानी हो या मुगले आजम की कहानी हो,उनके साथ जो सहायक होते थे, वह भी उसी तरह की कहानियां बनाते थे.आप संजय लीला भंसाली को ले लीजिए.वह अलग तरह का सिनेमा बना रहे हैं.राज कुमार हिरानी अलग तरह का सिनेमा बना रहे हैं. सुभाष घई एक्शन वाली फिल्में बनाते रहे.रोहित शेट्टी की फिल्मों में भी एकशन ही होता है.यह सब एक ही पंरपरा का अनुसारा करते चले आ रहे हैं.अमेरीका में हुआ यह कि अचानक स्टीवन स्पीलबर्ग घुस गया.वह साइंस फिक्षन बनाने लगा.जेम्स कैरोन आया तो उसने अलग राह पकड़ ली.तो अमरीका में वह लोग आए जिन्होंने विज्ञान, इंजीनियिरंग और तकनीक को प्रोत्साहन दिया.जिसके चलते वहां के आम लोगो को लगा कि हम भी हीरो बन सकते हैं.फस्ट मैन या अपोलो
13 या स्टीव जाॅब्स जैसी फिल्में अमरीका बनाता है तो लोगों को लगता है कि अमरीका ही दुनिया को बचा सकता है.सिनेमा से बड़ा मार्केटिंग का हथियार विश्व भर में नहीं है. हमारे देश में उसी तरह के हजारों इंजीनियर पड़े हुए हैं. नंबी नारायण उन्हीं में से एक हैं.इनके बारे में जानकारी रखना जरुरी है.नंबी नारायण ने तो अपने बारे में किताब भी लिखी है. पर हम प-सजय़ते कहां हंै? आप मुझे बताइए मैं किस निर्देशक के पास जाकर बताउं कि रॉकेट साइंस क्या है? लिक्विड इंजन क्या है?इसे कोई भी फिल्मकार समझना नहीं चाहेगा. क्योंकि उन्हे लगता है कि इसे हमारे देष की जनता नहीं समझ पाएगी.लेकिन मेरा सवाल है कि जब यह सब हमारे देश की जनता ही बना रही है, तो फिर उसे समझ में क्यों नहीं आएगा.
आपने क्या सोचकर इसरो वैज्ञानिक नम्बी नारायण पर फिल्म ‘‘रॉकेट्री ’’ बनायी?
जब मैं 2017 में तमिल भाषा की ‘नियो नॉयर एकशमन थ्रिलर ‘विक्रम वेधा’ की शूटिंग पूरी कर चुका था,तब एक बंदा मेरे पास आया और उसने मु-हजयसे कहा कि ‘इसरो के वैज्ञानिक हैं.देखने में खूबसूरत है. उनका अफेयर हो गया एक मालदीविया औरत के साथ, जिसके चलते उन्होेने भारत की रॉकेट साइंस पाकिस्तान को बेच दिया.उन्हे पकड़ कर जेल में डाल दिया गया.जेल के अंदर उन्हें बहुत टॉर्चर किया गया.जेल से बाहर निकलकर उन्होंने खुद को निर्देषक साबित कर दिया.’मुझे लगा कि यह कहानी अच्छी है.एक गरीब इंसान की जेम्स बांड टाइप फिल्म है.मैने इस पर काम करने का फैसला लिया.इस तुच्छ या यूं कहे कि नीच इरादे के साथ मैं नंबी नारायण से मिलने चला गया. उनसे मिलने के बाद मेरी जिंदगी बदल गयी.उन्हे देखते ही मेरे अंदर से आवाज आयी कि कुछ तो गड़बड़ है.उनके चेहरे पर एक तेजस्वता थी. उनका अपना औरा नजर आ रहा था.मेरे मन में आया कि यह इंसान महज इस केस की वजह से नही जाना जा सकता.नंबी नारायण साहब बड़े प्यार से मु-हजयसे मिले.फिर जब उन्होंने केस के बारे में बताना शुरू किया,तो उनके होंठ गुस्से में हिल रहे थे.गुस्से में उनकी आंखों से आंसू आ रहे थे कि यह लोग कैसे कह सकते हैं कि मैं देशद्रोही था?यह सोच कैसे सकते हैं कि मैने देश को बेचा.उन्होंने अफेयर को लेकर एक शब्द नहीं कहा. मैंने उनसे कहा कि आप गुस्सा क्यों हो रहे हो.आपको अदालत ने बरी कर दिया है.तब उन्होंने कहा तुझे पता है. मुझे पता है.अदालत को पता है कि मैं निर्दो-ुनवजया हॅूं.पर गूगल में मेरा नाम डालने पर क्या आता है.वही स्पाय केस नम्बी नारायण… जिंदगी भर लोग मुझे जासूसी कांड के लिए ही जानेंगें.लोग मेरे घर पर अपनी लड़की नहीं देना चाहते. आखिर मैंने इस देश के लिए ऐसा क्या कर दिया?’ मुझे लगा कि नंबी नारायण ने बहुत बड़ा सवाल उठाया है और मुझे यह एक बेहतरीन कहानी लगी. मैंने जो सोचा था,वह यह कहानी नहीं थी.उसके बाद सारे साक्ष्य लेकर सात माह के अंदर मैंने पूरी कहानी लिखी.मैने जो कहानी लिखी थी, उसे मैंने नंबी नारायण साहब को दिखायी. सम झने के बाद उन्होंने कहा कि सब ठीक है.पर कुछ चीजें मैं भूल गया.क्योकि इस वक्त में पिं्रसटन युनिवर्सिटी में था,काक्रो के साथ लिक्विड प्रोपुलेशन पर काम कर रहा था.क्राको यानी कि आप प्रोफेसर लुइगी क्राको की बात कर रहे है.तो उन्होेने बताया कि उन्होंने प्रोफेसर लुइगी क्राको के मार्गदर्शन में दस माह के अंदर एक थिसिस की थी.लुइगी क्राको को नासा का सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक माना जाता है.वह मून मिषन के मालिक है.उनके यहां लोग दस दस साल तक थीसिस करते हैं,पर पास नहीं हो पाते और नंबी नारायण मुझसे कह रहे थे कि उन्होने दस माह में थीसिस पूरी कर ली
थी.फिर उन्होने फ्रांस को लेकर बातें बतायी.फिर स्कॉटलैंड और रूस के बारे में बातें बतायी. तो मेरी समझ में आया कि मैं तो एक छोटे जेम्स बांड की फिल्म बनाने आया था,यह तो जेम्स बांड के बाप के बाप हैं. अफसोस सब कुछ सच बताया.मैने उनसे पूछा कि आपने इन सभी बातों का जिक्र अपनी किताब में नहीं किया.तो उन्होनें कहा कि,‘इसमें लिखने वाली कोई बात नही थी. उन्होने मुझे तनख्वाह दी और मैंने अपना काम किया.’उन्हें अहसास ही नहीं हुआ कि उन्होने अपनी जिंदगी को हथेली में लेकर जो काम कर रहे थे, वह ‘हीरोईजम’ वाली कहानी है.मैंने उनसे कहा कि मैं आपके केस को लेकर फिल्म नहीं बनाना चाहता.मैं तो आपके बारे में फिल्म बनाना चाहता हॅूं. अफसोस की बात है कि लोग आपके बारे में नहीं जानते.
आपने फिल्म ‘रॉक्रेट्रीः द नाम्बी इफेक्ट’’ में नंबी नारायण का महिमा मंडन किया होगा?
जी नहीं…मैने 75 वर्षों के बुजुर्ग इंसान नंबी नारायण से कहा था कि सर मैं आपको मर्यादा पुरूशोत्तम नहीं दिखाउंगा. मुझे आप अपने अवगुणों के बारे में बताएं. आपके अंदर हैवानियत क्या है?आपने क्या वास्तव में उस लड़की के साथ अफेयर किया,उसके साथ सोए?सब कुछ सच सच बताएं.मेरे सवाल सुनकर उन्होंने जो कुछ अपने अवगुणों के बारे में बताया,उन्होने अपने अंदर की कट्टरता व हैवानियत के बारे में बताया,वह नही था,जो मैं सम-हजय रहा था. उनकी बातें सुनकर मैं डर गया कि एक इंसान से यह सब कैसे हो सकता है.एक इंसान इतना बेरहम कैसे हो सकता है? फिर भी जब आप उनकी कहानी सुनेंगे, तो समझ में आएगा कि यह इंसान हीरो क्यो है?अपने सर्वायवल के लिए इन्हे पूजना क्यों जरुरी है.मैंने यह फिल्म इसलिए बनायी कि नम्बी नारायण जैसे लोग दुनिया में दोबारा पैदा नहीं होने चाहिए और दूसरी वजह कि ऐसे लोगों के साथ वह नही होना चाहिए,जो हमारे देश में हुआ.
अफसोस की बात यह है कि हमारे देश में ऐसी फिल्मों पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है,जिनका कोई मायने ही नही है.हमारे स्पेस रिसर्च या आई टी के जीनियसों के बारे में कोई बात ही नही होती.जबकि हमारे देश के ही लोग विदेशों में नाम कमा रहे हैं. आप अमरीका जाइए,तो पहले 500 फारच्यून लोगों में टॉप 14 लोग भारतीय हैं. सुंदर पिचई के बारे में कोई फिल्म नही बनाता.अमरीकी उद्योगपति स्टीव जाब्स के बारे में हम फिल्म बनाते हैं.नासा में भी हमारे देष की छोटी जगहों के लोग काम कर रहे हैं.हम अपनी इस फिल्म के माध्यम से विदेषांे में कार्यरत भारतीय प्रतिभाओं को संदेश देने का प्रयास किया है कि वह भारत आकर काम करें.हम तो चाहते हैं कि जर्मन वैज्ञानिक भी भारत आकर काम करे. आने वाले दस पंद्रह वर्षों में हो
सकता है कि हमें व आपको अंतरिक्ष में ही जाना पड़े.क्योंकि हम जिस तरह से पृथ्वी के साथ व्यवहार कर रहे हैं,उसे देखते हुए पानी व तेल का संकट गहराने वाला है.तब हमें अंतरिक्ष का रूख करना पड़ सकता है.वैसे हमारे पास पुरानी सभ्यता,संस्कृति व विज्ञान है.हमारे पास पंचाग है,जिसकी वजह से गणना कर हम कम खर्च में अपने मंगल यान का सफल प्रक्षेपण कर सके.हम सब चाहे तो मिलकर भारत को विश्व का सर्वश्रेष्ठ देश बना सकते हैं,पर हम वह सब नहीं कर रहे हैं.
फिल्म ‘रॉक्रेट्री’ को लेकर आप कांस फिल्म फेस्टिवल, नासा सहित कई देशों में गए. वहां किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली?
मैंने पहली बार निर्देशन किया है,तो मैं अंदर से डरा हुआ था.मेरी फिल्म को इतने बड़े अंतरराष्ट्रीय समारोह में बुलाया गया था.मुझे डर था कि कहीं मुझे मुंह छिपाकर वहां से न निकलना पड़े. फ्रांस का दर्शक बहुत बेरहम होता है.फिल्म अच्छी न हो तो बीच में ही फिल्म छोड़कर चल देते हैं.पर जिस तरह से उन्होंने प्रतिक्रिया दी, जिस तरह से दस मिनट तक उन्होने तालियां बजायीं, उससे यकीन हुआ कि मैंने वाहियात फिल्म नहीं बनायी.
आप तो अभिनेता के साथ पहले भी लेखन करते रहे.आपने कुछ फिल्मों के संवाद भी लिखे है.एक लेखक जिस कहानी को लिखता है, वह उसके साथ हमेशा न्याय करने में सफल होता है, फिर भी आप डरे हुए क्यों थें?
देखिए, मेरे अंदर निर्देशक बनने की कोई क्षमता नहीं थी.मैं इससे पहले कभी एडीटिंग के समय नहीं बैठा. मैं म्यूजिक सिटिंग में भी नहीं बैठा हॅूं. मुझे यह नहीं पता था कि एकशन डायरेक्टर के साथ किस तरह बात करनी है.
मैने इससे पहले अपने आई फोन से भी कुछ भी निर्देशित नहीं किया था. तो मुझे लग रहा था कि मैंने कुछ गलत फिल्म तो नहीं बना डाली.वै से तो हर निर्देशक को यही लगता है कि उसने मुगल ए आजम बनायी है.मगर जब फिल्म रिलीज होती है,तो पता चलता है कि उसने क्या फिल्म बनायी है.इसके अलावा पहली ही फिल्म बड़ी फिल्म निर्देशित की. इसे एक साथ अंग्रेजी, हिंदी और तमिल भाषा में फिल्माया है. मैंने इस फिल्म में ऐसे कारनामे किए है,जिन्हे आज तक दुनियाभर में किसी ने नहीं किया है.
मसलन..?
हम सभी ने कई फिल्मों में रॉक्रेट लॉचिंग देखी है, पर हमें नहीं पता कि रॉकेट इंजन कैसा दिखता है.यह देखने में पूरी तरह से हीरे व जवाहरात की तरह होता है.पर अब तक किसी ने परदे पर दिखाया नही.जब यह चालू होता है तो इतनी भयंकर आवाज आती है कि इंसान डर जाए.तीन किलोमीटर दूर तक इंसान खड़ा हो तो उसके कान के परदे फट जाएं.और उसके अंदर जो एनर्जी होती है,वह भी किसी ने नही दिखायी थी.
नम्बी नारायण की तरह दिखने के लिए आपने क्या क्या किया?
जो कुछ किया, वह अब तक किसी भी कलाकार ने नहीं किया होगा. मुझे इस पर गर्व है. फिल्म ‘‘रॉक्रेट्री’ में नम्बी नारायण के उन्तीस वर्षों से 70 साल तक की उम्र की कहानी दिखायी है.पर मैंने उम्र के साथ आने वाले बदलाव को दिखाने के लिए कहीं भी प्रोस्थेटिक का उपयोग नहीं किया है. पूरी फिल्म में मैंने चेहरे पर चिपकायी हुई मूंछ या चिपकायी हुई दा-सजय़ी का उपयोग नहीं किया.मैने तो नम्बी नारायण की सजती उम्र के साथ जिस तरह के दांत हुए हैं, उसे दिखाने के लिए मैने अपने दांतों का एलाइनमेंट तुड़वाया था.
फिर उसी स्थिति में मेरे दांतो को आने में डे-सजय़ व-ुनवजर्या लगे.मैने वजन घटाने व सजाने के लिए रिसर्च कर एक नई तकनीक पायी और उसी तकनीक का उपयोग किया.29 साल से सत्तर सात का गाफ दिखाने के लिए हमें वजन पर ध्यान देना था.हमने बालों को भी अलग -सजयंग से रंगा है. बालों को सफेद रंग में रंगने के लिए मुझे हर दिन चैदह घंटे बैठना पड़ता था.पर मैंने इस बात पर पूरा ध्यान दिया कि मैं गंजा न होनेे पाउं.मोटा होने पर पेट भी बाहर निलता
है,उसके लिए मैने पैड नहीं लगाया,बल्कि वास्तव में उस तरह से मोटा हुआ और 14 दिन बाद पतला भी हुआ.यह सब ‘क्राइजनिक रिसर्च’ की बदौलत संभव हो पाया.इसमें ‘अप्लाइड किंसियोलॉजी’ नामक विज्ञान है,जो बताता है कि ऐसा क्या है जो आपके मानसिक तनाव /प्रोफेशनल तनाव के चलते ऐसा कौन सा भोजन है,जो आपके शरीर के लिए सही नही है.जरुरी नहीं है कि वह क्या चीज है.वह दूध या षक्कर या भिंडी भी हो सकती है,जिससे आपको एलर्जी हो जाए.और आपको पता नहीं होता.अचानक आपको लगता है कि आप खा तो उतना ही रहे हैं, मगर आपका पेट,वजन गया.मैंने रिसर्च करते समय पाया कि दांत की वजह से इंसान की उम्र कम या ज्यादा कैसे दिखा सकते हैं.
इस फिल्म को बनाने के बाद आपके अंदर क्या बदलाव आया है?
-यही कि किसी चीज पर विश्वास हो और आपने कुछ करने की ठान ली है,तो फिर सर फटे या माथा, किसी की भी मत सुनो. उस काम को कर डालो.सही बात नम्बी नारायण भी कहते हैं.वह कहते है कि, ‘कोई तेरे रास्ते में आए,तो उसे दफना दे.अगर तुझे यकीन है कि जो कर रहा है,वह सही है, तो आगे बढ़ जा.’वह खुद इस बात पर यकीन करते हैं और यही सलाह उन्होंने मुझे दी.
क्या आप मानते हैं कि आप कम्यूनीकेशन स्किल व पर्सनालिटी डेवलपमेंट की ट्रेनिंग दिया करते थे, उसने फिल्म ‘रॉकेट्री बनाने में मदद की?
जी हां! ऐसा ही हुआ.पर्सनालिटी ट्रेनिंग की खास बात यह है कि सामने बैठे हुए इंसान को परखा कैसे जाए. जब मैं नम्बी नारायण के सामने बैठा हुआ था,तो मैं उन्हे परख नहीं रहा था,पर वह मुझे जरुर परख रहे थे कि तू तो अभिनेता है,तू रॉकेट इंजन के बारे में क्या फिल्म बनाएगा.वह हमेशा
मुझे बच्चों की तरह टेस्ट किया करते थे और मैं उनके हर टेस्ट पर खरा उतरा.क्योंकि मैं भी इंजीनियर हॅूं.इसलिए वह मुझसे इम्प्रेस हो गए और उन्होने कहा, मैडी,तुझे मेरी टीम में होना चाहिए था.’ यह मेरे लिए गर्व की बात थी.