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महाराष्ट्र: कौन होगा शिवसेना का असल हकदार

महाराष्ट्र में सत्ता के उथल-पुथल के साथ आज एक ही प्रश्न फिजा में अपनी गूंज अनुगूंज के साथ तैर रहा है कि आखिरकार बालासाहेब ठाकरे की बनाई गई शिवसेना का असली हकदार कौन है. देश का कानून, राजनीतिक पार्टियों का संविधान और निर्वाचन आयोग का ऊंट किस करवट बैठेगा. जैसा कि हम आप देख रहे हैं शिवसेना पर उद्धव ठाकरे का वर्चस्व है और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही एकनाथ शिंदे शिवसेना बागी गुट यह ताल ठोक रहा है कि शिवसेना असल तो हम हैं.

आइए! आज हम इस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करते हैं और समझने का प्रयास करते हैं कि अखिर शिवसेना का भविष्य क्या होगा.

हिंदुत्ववादी और महाराष्ट्र की अस्मिता को लेकर के बाला साहब ठाकरे जो कि एक पत्रकार थे ने मुंबई में सातवें दशक में शिवसेना का गठन किया था और धीरे-धीरे शिवसेना ने अपना वजूद बनाया, सैकड़ों समर्थक बन गए.

परिणाम स्वरुप शिवसेना कल तक महाराष्ट्र में कम से कम भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी भाई की भूमिका में हुआ करती थी.

मगर विगत दिनों दोनों पार्टियों के बीच जो तलवारें खिंची है उससे भाजपा और शिवसेना आमने-सामने हैं. कभी शिवसेना 21 हो जाती है तो कभी भारतीय जनता पार्टी.

उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ करके उन्हीं के बाएं हाथ एकनाथ शिंदे को शतरंज के चौपड़ पर आगे बढ़ाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने एक तरह से बगावत करवा, शिवसेना के विधायकों को अपने प्रभाव में ले कर उद्धव ठाकरे और शिवसेना दोनों को ही खत्म करने का मानो एक प्लान बनाया है. अगर हम उसी तरीके से संपूर्ण घटनाक्रम पर दृष्टिपात करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस शिवसेना के कंधे पर चढ़कर भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में राजनीति की क, ख, ग किया करती  थी आज केंद्रीय सत्ता में बैठकर शिवसेना विशेष तौर पर उद्धव ठाकरे परिवार को राजनीति के हाशिए पर डालना चाहती है. जैसा कि बिहार में रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान के साथ किया गया , जैसा कि उड़ीसा में नवीन पटनायक के साथ भाजपा ने करने का प्रयास किया मगर वे सतर्क हो गए भाजपा से अपनी दूरी बना ली है.

क्या होगा उद्धव ठाकरे का!

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में सफलता प्राप्त करने के बाद भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व करना चाहती थी मुख्यमंत्री चाहती थी, उद्धव ठाकरे इस नकार कर शरद पवार और कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री  बन गए और  पूरे ढाई वर्षो तक सरकार चलाते रहे क्योंकि उनके साथ देश की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार थे और कांग्रेस का साथ था. मगर जैसा कि संभावित था उद्धव ठाकरे की खामियों को मुद्दा बनाकर के भारतीय जनता पार्टी ने अपने अदृश्य हाथों से उन्हीं की गर्दन नापनी शुरू कर दी. वही नेता जो बाला साहब ठाकरे और उद्धव ठाकरे के सामने मुंह नहीं खोलते थे को ऐसा पाठ पढ़ाया कि वे बगावत करने पर उतारू हो गए.

आज हालात यह है कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद को छोड़कर अपने पुराने आवास वर्षा में चले गए हैं और महाराष्ट्र में भाजपा जो खेल करना चाहती थी वह हो चुका है. यानी शिवसेना के विधायकों को अपने पाले में कर के उन्हें आगे करके पीछे से गोली चला दी गई है.

किसका होगा शिवसेना पर कब्जा

राजनीतिक पार्टियों के संविधान के मुताबिक अगर हम इतिहास के घटनाक्रम को देखते हुए चर्चा करें तो यह कहा जा सकता है कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री की शपथ लेने की पहले ही शिवसेना पर अपना दावा चाहे बड़ी पुरजोर तरीके से कर रहे हों मगर हकीकत यह है कि किसी भी राजनीतिक दल के आलाकमान अर्थात राष्ट्रीय अध्यक्ष और उसकी कार्यकारिणी ही सर्वोच्च शक्ति अपने पास रखती है.

इसका सीधा सा अर्थ यह है कि विधायकों के बूते सत्ता का परिवर्तन तो किया जा सकता है मगर किसी भी पार्टी पर अपना अधिकार पार्टी से बाहर रह करके नहीं किया जा सकता. एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों को शिव सेना ने पहले ही बाहर का दरवाजा दिखा दिया है ऐसे में शिवसेना राजनीतिक पार्टी पर कानूनी रूप से उद्धव ठाकरे का ही वर्चस्व रहेगा.
यहां हम पाठकों को बताते चलें कि भाजपा और एकनाथ शिंदे के सामने अब एक ही विकल्प बचता है वो कोई नई राजनीतिक पार्टी बना ले आखिरकार उन्हें यही करना होगा.

सौतेली: शेफाली के मन में क्यों भर गई थी नफरत

सौतेली- भाग 1: शेफाली के मन में क्यों भर गई थी नफरत

अब शेफाली को महसूस हो रहा था कि उस को 6 माह पहले एक योजना के तहत ही घर से बाहर भेजा गया था. दूसरे शब्दों में, उस के अपनों ने ही उसे धोखे में रखा था. धोखा भी ऐसा कि रिश्तों पर से भरोसा ही डगमगा जाए.

जब से जानकी बूआ ने शेफाली को यह बतलाया कि उस की गैरमौजूदगी में उस के पापा ने दूसरी शादी की है तब से उस का मन यह सोच कर बेचैन हो रहा था कि जब वह घर वापस जाएगी तो वहां एक ऐसी अजनबी औरत को देखेगी जो उस की मां की जगह ले चुकी होगी और जिसे उस को ‘मम्मी’ कह कर बुलाना होगा.

पापा की शादी की बात सुन शेफाली के अंदर विचारों के झंझावात से उठ रहे थे.

मम्मी की मौत के बाद शेफाली ने पापा को जितना गमगीन और उदास देखा था उस से ऐसा नहीं लगता था कि वह कभी दूसरी शादी की सोचेंगे. वैसे भी मम्मी जब जिंदा थीं तो शेफाली ने उन को कभी पापा से झगड़ते नहीं देखा था. दोनों में बेहद प्यार था.

मम्मी को कैंसर होने का पता जब पापा को चला तो उन्हें छिपछिप कर रोते हुए शेफाली ने देखा था.

यह जानते हुए भी कि मम्मी बस, कुछ ही दिनों की मेहमान हैं पापा ने दिनरात उन की सेवा की थी.

इन सब बातों को देख कर कौन कह सकता था कि वह मम्मी की बरसी का भी इंतजार नहीं करेंगे और दूसरी शादी कर लेंगे.

अब जब पापा की दूसरी शादी एक कठोर हकीकत बन चुकी थी तो शेफाली को अपने दोनों छोटे भाईबहन की चिंता होने लगी थी. बहन मानसी से कहीं अधिक चिंता शेफाली को अपने छोटे भाई अंकुर की थी जो 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

मम्मी को कैंसर होने का जब पता चला था तो शेफाली बी.ए. फाइनल में थी और बी.ए. करने के बाद बी.एड. करने का सपना उस ने देखा था. लेकिन मम्मी की असमय मृत्यु से शेफाली का वह सपना एक तरह से बिखर गया था.

शेफाली बड़ी थी. इसलिए मम्मी की मौत के बाद उस को लगा था कि छोटे भाईबहन के साथसाथ पापा की देखभाल की जिम्मेदारी भी उस के कंधों पर आ गई थी और उस ने भी अपने दिलोदिमाग से इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए खुद को तैयार कर लिया था.

मगर शेफाली को हैरानी उस समय हुई जब मम्मी की मौत के 3-4 महीने बाद ही पापा ने उस को खुद ही बी.एड. करने के लिए कह दिया.

शेफाली ने तब यह कहा था कि अगर वह भी पढ़ाई में लग गई तो घर को कौन देखेगा तो पापा ने कहा, ‘घर की चिंता तुम मत करो, यह देखना मेरा काम है. तुम अपने भविष्य की सोचो और अपनी आगे की पढ़ाई शुरू कर दो.’

‘मगर यहां बी.एड. के लिए सीट का मिलना मुश्किल है, पापा.’

‘तो क्या हुआ, तुम्हारी जानकी बूआ जम्मू में हैं. सुनने में आता है कि वहां आसानी से सीट मिल जाती है. मैं जानकी से फोन पर इस बारे में बात करूंगा. वह इस के लिए सारा प्रबंध कर देगी,’ पापा ने शेफाली से कहा था.

शेफाली तब असमंजस से पापा का मुख ताकती रह गई थी, क्योंकि ऐसा करना न तो घर के हालात को देखते हुए सही था और न ही दुनियादारी के लिहाज से. लेकिन पापा तो उस को जानकी बूआ के पास भेजने का मन बना ही चुके थे.

शेफाली की दलीलों और नानुकुर से पापा का इरादा बदला नहीं था और हमेशा दूसरों के घर की हर बात पर टीकाटिप्पणी करने वाली जानकी बूआ को भी पापा के फैसले पर कोई एतराज नहीं हुआ था. होता भी क्यों? शायद पापा जो भी कर रहे थे जानकी बूआ के इशारे पर ही तो कर रहे थे.

उसे लगा सबकुछ पहले से ही तय था. बी.एड. की पढ़ाई तो जैसे उस को घर से निकालने का बहाना भर था.

अब सारी तसवीर शेफाली के सामने बिलकुल साफ हो चुकी थी. शायद मम्मी की मौत के तुरंत बाद ही गुपचुप तरीके से पापा की दूसरी शादी की कोशिशों का सिलसिला शुरू हो गया था. शेफाली को पक्का यकीन था कि इस में जानकी बूआ ने अहम भूमिका निभाई होगी.

मम्मी की मौत पर जानकी बूआ की आंखें सूखी ही रही थीं. फिर भी छाती पीटपीट कर विलाप करने का दिखावा करने के मामले में बूआ सब से आगे थीं.

एक तो वैसे भी जानकी बूआ का रिश्ता दिखावे का था. दूसरे, मम्मी से बूआ की कभी बनी न थी. उन के रिश्ते में खटास रही थी. इस खटास की वजह अतीत की कोई घटना हो सकती थी. इस के बारे में शेफाली को कोई जानकारी न थी.

लगता तो ऐसा है कि मम्मी के कैंसर होने की बात जानते ही जानकी बूआ ने दोबारा भाई का घर बसाने की बात सोचनी शुरू कर दी थी. तभी तो जबतब इशारों ही इशारों में बूआ अपने अंदर की इच्छा यह कह कर जाहिर कर देती कि औरत के बगैर घर कोई घर नहीं होता. पापा ने भी शायद दोबारा शादी के लिए जानकी बूआ को मौन स्वीकृति दी होगी. तभी तो योजनाबद्ध तरीके से सारी बात महीनों में ही सिरे चढ़ गई थी.

चूंकि मैं बड़ी व समझदार हो गई थी. मुझ से बगावत का खतरा था इसलिए मुझे बी.एड. की पढ़ाई के बहाने बड़ी खूबसूरती से घर से बाहर निकाल दिया गया था.

पापा की दूसरी शादी करवा कर वापस आने के बाद जानकी बूआ शेफाली के साथ ठीक से आंख नहीं मिला पा रही थीं और तरहतरह से सफाई देने की कोशिश कर रही थीं.

किंतु अब शेफाली को बूआ की हर बात में केवल झूठ और मक्कारी नजर आने लगी थी इसलिए उस के मन में बूआ के प्रति नफरत की एक भावना बन गई थी.

फूफा शायद शेफाली के दिल के हाल को बूआ से ज्यादा बेहतर समझते थे इसलिए उन्होंने नपेतुले शब्दों में उस को समझाने की कोशिश की थी, ‘‘मैं तुम्हारे दिल की हालत को समझता हूं बेटी, मगर जो भी हकीकत है अब तुम्हें उस को स्वीकार करना ही होगा. नए रिश्तों से जुड़ना बड़ा मुश्किल होता है लेकिन उस से भी मुश्किल होता है पहले वाले रिश्तों को तोड़ना. इस सच को भी तुम्हें समझना होगा.’’

घर जाने के बारे में शेफाली जब भी सोचती नर्वस हो जाती. उस के हाथपांव शिथिल पड़ने लगते. कैसा अजीब लगेगा जब वह मम्मी की जगह पर एक अजनबी और अनजान औरत को देखेगी? वह औरत कैसी और किस उम्र की थी, शेफाली नहीं जानती मगर वह उस की सौतेली मां बन चुकी थी, यह एक हकीकत थी.

‘सौतेली मां’ का अर्थ शेफाली अच्छी तरह से जानती थी और ऐसी मांओं के बारे में बहुत सी बातें उस ने सुन भी रखी थीं. अपने से ज्यादा उसे छोटे भाईबहन की चिंता थी. वह नहीं जानती थी कि सौतेली मां उन के साथ कैसा व्यवहार कर रही होंगी.

जानकी बूआ शेफाली से कह रही थीं कि वह एक बार घर हो आए और अपनी नई मम्मी को देख ले लेकिन शेफाली ने बूआ की बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि अब उन की अच्छी बात भी उसे जहर लगती थी. इस बीच पापा का 2-3 बार फोन आया था पर शेफाली ने उन से बात करने से मना कर दिया था.

जानकी बूआ ने शेफाली पर घर जाने और पापा से फोन पर बात करने का दबाव बनाने की कोशिश की तो उस ने बूआ को सीधी धमकी दे डाली, ‘‘बूआ, अगर आप किसी बात के लिए मुझे ज्यादा परेशान करोगी तो सच कहती हूं, मैं इस घर को भी छोड़ कर कहीं चली जाऊंगी और फिर कभी किसी को नजर नहीं आऊंगी.’’

शेफाली की इस धमकी से बूआ थोड़ा डर गई थीं. इस के बाद उन्होंने शेफाली पर किसी बात के लिए जोर देना ही बंद कर दिया था.

शेफाली को यह भी पता था कि वह हमेशा के लिए बूआ के घर में नहीं रह सकती थी. 5-6 महीने के बाद जब उस की बी.एड. की पढ़ाई खत्म हो जाएगी तो उस के पास बूआ के यहां रहने का कोई बहाना नहीं रहेगा.

तब क्या होगा?

आने वाले कल के बारे में जितना सोचती उतना ही अनिश्चितता के धुंधलके में घिर जाती. बगावत पर आमादा शेफाली का मन उस के काबू में नहीं रहा था.

फूफा से शेफाली कम ही बात करती थी. बूआ से तो उस का छत्तीस का आंकड़ा था लेकिन उस घर में शेफाली जिस से अपने दुखसुख की बात करती थी वह थी रंजना, जानकी बूआ की बेटी.

रंजना लगभग उसी की हमउम्र थी और एम.ए. कर रही थी.

रंजना उस के दिल के हाल को समझती थी और मानती थी कि उस के पापा ने उस की गैरमौजूदगी में शादी कर के गलत किया था. इस के साथ वह शेफाली को हालात के साथ समझौता करने की सलाह भी देती थी.

सौतेली मां के लिए शेफाली की नफरत को भी रंजना ठीक नहीं समझती थी.

वह कहती थी, ‘‘बहन, तुम ने अभी उस को देखा नहीं, जाना नहीं. फिर उस से इतनी नफरत क्यों? अगर किसी औरत ने तुम्हारी मां की जगह ले ली है तो इस में उस का क्या कुसूर है. कुसूर तो उस को उस जगह पर बिठाने वाले का है,’’ ऐसा कह कर रंजना एक तरह से सीधे शेफाली के पापा को कुसूरवार ठहराती थी.

कुसूर किसी का भी हो पर शेफाली किसी भी तरह न तो किसी अनजान औरत को मां के रूप में स्वीकार करने को तैयार थी और न ही पापा को माफ करने के लिए. वह तो यहां तक सोचने लगी थी कि पढ़ाई पूरी होने पर उस को जानकी बूआ का घर भले ही छोड़ना पडे़ लेकिन वह अपने घर नहीं जाएगी. नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होगी और अकेली किसी दूसरी जगह रह लेगी.

2 बार मना करने के बाद पापा ने फिर शेफाली से फोन पर बात करने की कोशिश नहीं की थी. हालांकि जानकी बूआ से पापा की बात होती रहती थी.

मानसी और अंकुर से शेफाली ने फोन पर जरूर 2-3 बार बात की थी, लेकिन जब भी मानसी ने उस से नई मम्मी के बारे में चर्चा करने की कोशिश की तो शेफाली ने उस को टोक दिया था, ‘‘मुझ से इस बारे में बात मत करो. बस, तुम अपना और अंकुर का खयाल रखना,’’ इतना कहतेकहते शेफाली की आवाज भीग जाती थी. अपना घर, अपने लोग एक दिन ऐसे बेगाने बन जाएंगे शेफाली ने कभी सोचा नहीं था.

पहले तो शेफाली सोचती थी कि शायद पापा खुद उस को मनाने जानकी बूआ के यहां आएंगे पर एकएक कर कई दिन बीत जाने के बाद शेफाली के अंदर की यह आशा धूमिल पड़ गई.

इस से शेफाली ने यह अनुमान लगाया कि उस की मम्मी की जगह लेने वाली औरत (सौतेली मां) ने पापा को पूरी तरह से अपने वश में कर लिया है. इस सोच में उस के अंदर की नफरत को और गहरा कर दिया.

अचानक एक दिन बूआ ने नौकरानी से कह कर ड्राइंगरूम के पिछले वाले हिस्से में खाली पड़े कमरे की सफाई करवा कर उस पर कीमती और नई चादर बिछवा दी थी तो शेफाली को लगा कि बूआ के घर कोई मेहमान आने वाला है.

शेफाली ने इस बारे में रंजना से पूछा तो वह बोली, ‘‘मम्मी की एक पुरानी सहेली की लड़की कुछ दिनों के लिए इस शहर में घूमने आ रही है. वह हमारे घर में ही ठहरेगी.’’

‘‘क्या तुम ने उस को पहले देखा है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ रंजना का जवाब था.

शेफाली को घर में आने वाले मेहमान में कोई दिलचस्पी नहीं थी और न ही उस से कुछ लेनादेना ही था. फिर भी वह जिन हालात में बूआ के यहां रह रही थी उस के मद्देनजर किसी अजनबी के आने के खयाल से उस को बेचैनी महसूस हो रही थी.

वह न तो किसी सवाल का सामना करना चाहती थी और न ही सवालिया नजरों का.

जानकी बूआ की मेहमान जब आई तो शेफाली उसे देख कर ठगी सी रह गई.

चेहरा दमदमाता हुआ सौम्य, शांत और ऐसा मोहक कि नजर हटाने को दिल न करे. होंठों पर ऐसी मुसकान जो बरबस अपनी तरफ सामने वाले को खींचे. आंखें झील की मानिंद गहरी और खामोश. उम्र का ठीक से अनुमान लगाना मुश्किल था फिर भी 30 और 35 के बीच की रही होगी. देखने से शादीशुदा लगती थी मगर अकेली आई थी.

सिंदूर मिटाने का जुनून: अवैद्य संबंधों के चलते की पति की हत्या

कानपुर शहर के अरमापुर स्टेट के रहने वाले लोग सुबह टहलने के लिए निकले तो उन्हें कैलाशनगर पुलिया के पास सड़क के किनारे खून से लथपथ एक लाश पड़ी दिखाई दी. थोड़ी देर में वहां भीड़ लग गई. उसी भीड़ में से किसी ने इस बात की सूचना थाना अरमापुर पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी आशीष मिश्र पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे. घटनास्थल पर आने से पहले उन्होंने लाश पड़ी होने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी थी. यह 14 मई, 2017 की बात है.

घटनास्थल पर पहुंच कर आशीष मिश्र लाश का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. लाश सड़क के किनारे खून से लथपथ पड़ी थी. उस के पास ही एक मोटरसाइकिल खड़ी थी. हत्या किसी मजबूत और भारी चीज से सिर पर प्रहार कर के की गई थी. उस के बाद पहचान मिटाने के लिए उस के चेहरे को ईंट से बुरी तरह कुचल दिया गया था. खून से सनी सीमेंट वाली वह ईंट वहीं पड़ी थी.

आशीष मिश्र लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि एसपी (पश्चिम) संजय कुमार यादव, सीओ ज्ञानेंद्र सिंह और नम्रता श्रीवास्तव भी आ पहुंची थीं. अधिकारियों के आदेश पर फोरैंसिक टीम भी आ गई थी. फोरैंसिक टीम ने अपना काम कर लिया तो पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया.

घटनास्थल पर सैकड़ों लोग जमा थे, पर कोई भी लाश की पहचान नहीं कर सका था. इस से स्पष्ट था कि मृतक कहीं और का रहने वाला था. जब लोग लाश की पहचान नहीं कर सके तो एसपी संजय कुमार यादव ने मृतक के कपड़ों की तलाशी लेने को कहा. सिपाही रामकुमार ने मृतक के पैंट की जेब में हाथ डाला तो उस में एक परिचयपत्र और ड्राइविंग लाइसैंस मिला.

लाइसैंस और परिचयपत्र पर एक ही नाम सुरेंद्र कुमार तिवारी पुत्र नीरज कुमार तिवारी लिखा था. इस का मतलब दोनों चीजें उसी की थीं. दोनों पर पता मसवानपुर कच्ची बस्ती दर्ज था. परिचयपत्र के अनुसार, वह रक्षा प्रतिष्ठान में संविदा कर्मचारी था.

लाइसैंस और परिचयपत्र से मिले पते पर 2 सिपाहियों रामकुमार और मेवालाल को भेजा गया तो वहां एक लड़का मिला. उसे परिचयपत्र और ड्राइविंग लाइसैंस दिखाया गया तो उस ने कहा, ‘‘अरे, यह परिचयपत्र और लाइसैंस तो मेरे पिताजी का है. वह कहां हैं, कल रात 10 बजे घर से निकले तो अभी तक लौट कर नहीं आए हैं?’’

सिपाहियों ने उस का नाम पूछा तो उस ने अपना नाम जय तिवारी बताया. इस के बाद सिपाहियों ने बताया कि अरमापुर स्टेट स्थित कैलाशनगर पुलिया के पास एक लाश मिली है. उसी की पैंट की जेब से यह परिचयपत्र और लाइसैंस मिला है. वह उन के साथ चल कर लाश देख ले, कहीं वह लाश उस के पिता की तो नहीं है.

जय अपने चाचा सर्वेश तिवारी को साथ ले कर सिपाहियों के साथ चल पड़ा. घटनास्थल पर पहुंच कर उस ने लाश देखी तो फफकफफक कर रोने लगा. रोते हुए उस ने कहा, ‘‘सर, यह लाश मेरे पिता सत्येंद्र तिवारी की है. पता नहीं किस ने इन की हत्या कर दी.’’

जय के साथ आए उस के चाचा सर्वेश ने भी लाश की पहचान अपने भाई सत्येंद्र तिवारी के रूप में कर दी थी. घटनास्थल पर मृतक का बेटा और भाई आ गए थे, लेकिन उस की पत्नी अभी तक नहीं आई थी. थानाप्रभारी आशीष मिश्र ने जय से उस की मां के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि उस की मां सुलभ विशधन गांव गई हैं.

थानाप्रभारी ने फोन द्वारा उसे सूचना दी तो थोड़ी देर में वह भी घटनास्थल पर आ गई. पति की लाश देख कर सुलभ बेहोश हो गई. तब साथ आई महिलाओं ने किसी तरह उसे संभाला. उस समय वह कुछ भी बताने की हालत में नहीं थी, इसलिए पुलिस उस से पूछताछ नहीं कर सकी.

सीओ ज्ञानेंद्र सिंह ने मृतक के बेटे जय से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पिता सत्येंद्र कल रात 10 बजे घर से यह कह कर निकले थे कि वह एक घंटे में वापस आ जाएंगे. जब काफी देर तक वह लौट कर नहीं आए तो उस ने यह बात अपने चाचा सर्वेश तिवारी को बताई. उस के बाद उस ने चाचा के साथ पिता की काफी खोज की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. सुबह सिपाहियों से पता चला कि उन की तो हत्या हो गई है.

थोड़ी देर बाद मृतक की पत्नी सुलभ सामान्य हुई तो पुलिस अधिकारियों ने उसे सांत्वना दे कर उस से भी पूछताछ की. उस ने बताया कि उस के पति आर्डिनैंस फैक्ट्री में ठेके पर काम करते थे. लेबर कौंट्रैक्ट कंपनी वृंदावन एसोसिएट्स द्वारा उन्हें ओएफसी में काम पर लगाया था.

इस कंपनी की ओर से मजदूरों का ठेका दिनेश खंडेलवाल और उन का मुंशी अमन लेता था. लगभग 5 महीने पहले उस के पति सत्येंद्र का पैसे के लेनदेन को ले कर ठेकेदार दिनेश और मुंशी अमन से झगड़ा हुआ था, जिस में मारपीट भी हुई थी.

इस के बाद से वह काफी परेशान रहते थे. वह शराब भी बहुत ज्यादा पीने लगे थे. कहीं ठेकेदार दिनेश और उस के मुंशी अमन ने ही तो उन की हत्या नहीं कर दी है. पूछताछ के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए लालालाजपत राय अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद थाने आ कर थानाप्रभारी आशीष मिश्र ने सत्येंद्र तिवारी की हत्या का मुकदमा दर्ज करा कर ठेकेदार दिनेश और उस के मुंशी अमन को हिरासत में ले लिया गया. थाने में दोनों से सत्येंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो दोनों ने साफ मना कर दिया.

अमन का कहना था कि पैसों को ले कर उस का सत्येंद्र से झगड़ा जरूर हुआ था, लेकिन वह झगड़ा ऐसा नहीं था कि बात हत्या तक पहुंच जाती. सत्येंद्र की पत्नी उसे गलत फंसा रही है. ऐसा ही दिनेश ने भी कहा था. उन की बातों से पुलिस को लगा कि दोनों निर्दोष हैं तो उन्हें छोड़ दिया गया था.

आशीष मिश्र को इस मामले में कोई सुराग नहीं मिल रहा था. जबकि अधिकारियों का उन पर काफी दबाव था. अंत में उन्होंने मुखबिरों का सहारा लिया. आखिर उन्हें मुखबिरों से मदद मिल गई. किसी मुखबिर से उन्हें पता चला कि सत्येंद्र की हत्या उस के बेटे जय ने ही की है. इस में उस की मां सुलभ और उस के प्रेमी दीपक कठेरिया का भी हाथ हो सकता है.

बात थोड़ा हैरान करने वाली थी, लेकिन अवैध संबंधों में कुछ भी हो सकता है. यह सोच कर आशीष मिश्र ने मसवानपुर स्थित मृतक सत्येंद्र तिवारी के घर छापा मार कर जय और उस की मां सुलभ को गिरफ्तार कर लिया.

थाने ला कर सुलभ और जय से सत्येंद्र की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो दोनों कसमें खाने लगे. लेकिन पुलिस के पास जो सबूत थे, उस से पुलिस ने उन की बातों पर विश्वास नहीं किया और उन से सख्ती से पूछताछ की. फिर तो मांबेटे ने सत्येंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पता चला कि जय ने पड़ोस में रहने वाले दीपक कठेरिया की मदद से पिता की हत्या की थी. क्योंकि सुलभ के दीपक कठेरिया से अवैध संबंध थे. सत्येंद्र इस बात का विरोध करता था. शराब के नशे में वह अकसर पत्नी और बेटे की पिटाई करता था. उस की इसी हरकत से तंग आ कर बेटे और प्रेमी की मदद से सुलभ ने पति की हत्या करवा दी थी.

सत्येंद्र की हत्या में दीपक का नाम आया तो पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में दीपक ने जय और सुलभ को देखा तो उस ने भी सत्येंद्र की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस के बाद दीपक और जय ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड और खून सने अपने कपड़े बरामद करा दिए थे, जो जय ने अपने घर में छिपा रखे थे. सभी से पूछताछ में सत्येंद्र तिवारी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर शहर से 40 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा बसा है बिल्हौर. इसी कस्बे से कुछ दूरी पर एक गांव है विशधन. ब्राह्मणबाहुल्य इस गांव में रमेशचंद्र दुबे अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां शुभि और सुलभ तथा एक बेटा अरुण था. रमेशचंद्र दुबे अध्यापक थे. उन के पास खेती की थोड़ी जमीन थी. इस तरह उन का गुजरबसर आराम से हो रहा था. बड़ी बेटी शुभि की शादी उन्होंने कन्नौज में की थी.

इस के बाद सुलभ शादी लायक हुई तो कानपुर शहर में मसवानपुर बस्ती में रहने वाले नीरज तिवारी के बेटे सत्येंद्र से उस की शादी कर दी. सत्येंद्र प्राइवेट नौकरी करता था. उस का रंग थोड़ा सांवला था और वह सुलभ से उम्र में भी बड़ा था. सुलभ काफी खूबसूरत थी. इस के बावजूद उस ने कभी कोई ऐतराज नहीं किया.

देखतेदेखते 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. इस बीच सुलभ 2 बच्चों जय और पारस की मां बन गई. बच्चों के जन्म के बाद सत्येंद्र की नौकरी आर्डिनैंस फैक्ट्री में संविदा कर्मचारी के रूप में लग गई. लेबर कौंट्रैक्ट कंपनी वृंदावन एसोसिएट्स के तहत उसे काम पर रखा गया. यह कंपनी रक्षा प्रतिष्ठानों में मजदूर सप्लाई करने का ठेका लेती है. सत्येंद्र को वहां से ठीकठाक पैसे मिल रहे थे, इसलिए घर में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी.

बच्चे बड़े हुए तो घर में रहने की परेशानी होने लगी. सत्येंद्र बच्चों के साथ अलग मकान ले कर रहने लगा. सुलभ यही चाहती भी थी. बच्चे बड़े हुए तो खर्च बढ़ा, जिस से घर में पैसों को ले कर तंगी रहने लगी. उसी बीच सत्येंद्र शराब पीने लगा. उस की कमाई का एक हिस्सा शराब पर खर्च होने लगा तो घर खर्च को ले कर सुलभ परेशान रहने लगी. वह पति को शराब पीने को मना करती तो सत्येंद्र उस से लड़ाईझगड़ा ही नहीं करता, बल्कि मारपीट भी करता. इस का असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ने लगा.

एक दिन सत्येंद्र के साथ एक युवक आया, जिस के बारे में उस ने सुलभ को बताया कि यह उस का दोस्त दीपक कठेरिया है. वह भी मसवानपुर में ही रहता था. दोनों साथसाथ खातेपीते थे. दीपक ने खूबसूरत सुलभ को देखा तो पहली ही नजर में उस पर मर मिटा. दीपक शरीर से हृष्टपुष्ट और सुलभ से कमउम्र का था, इसलिए सुलभ भी उस की ओर आकर्षित हो गई. दीपक उस दिन करीब एक घंटे तक घर में रहा. इस बीच दोनों एकदूसरे को ताकते रहे.

एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि एक दिन सत्येंद्र फिर दीपक को घर ले आया. उस का आना सुलभ को अच्छा लगा. बातोंबातों में दीपक ने सुलभ का फोन नंबर ले लिया. इस के बाद दीपक ने बहाने से सुलभ को फोन किया तो उस ने बातचीत में दिलचस्पी दिखाई. फिर तो दोनों में बातें होने लगीं.

एक दिन सुलभ घर में अकेली थी. वह आंगन में खड़ी अपने बाल सुखा रही थी, तभी दीपक आ गया. उस दिन वह दीपक को कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लगी. उस की निगाहें सुलभ के चेहरे पर जम गईं. यही हाल सुलभ का भी था. अपनी स्थिति को भांप कर सुलभ ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘तुम तो मुझे ऐसे देख रहे हो, जैसे पहली बार देखा है.’’

‘‘इस तरह अकेली तो पहली बार देख रहा हूं. इस के पहले तो चोरीचोरी देखना पड़ता था. आज खुल कर देखने का मौका मिला है. अब पता चला कि तुम कितनी खूबसूरत हो.’’

‘‘ऐसा क्या है मुझ में, जो मैं तुम्हें इतनी खूबसूरत लग रही हूं?’’ सुलभ ने दीपक की आंखों में आंखें डाल कर पूछा.

‘‘हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है. मैं बड़ा नसीब वाला हूं, जिसे तुम्हारी खूबसूरती देखने का मौका मिला है.’’

‘‘वैसे आप हैं बहुत बातें बनाने वाले. बातों में उलझा कर आप मुझे फंसाना चाहते हैं. किसी की बीवी को फंसाने में तुम्हें डर नहीं लगता, ऐसा करते शरम नहीं आती?’’

‘‘कैसी शरम, खूबसूरत चीज को कौन नहीं पाना चाहता. अगर मैं तुम्हें पाना चाहता हूं तो इस में मेरा क्या दोष है?’’ कह कर दीपक ने सुलभ को अपनी बांहों में भर लिया.

सुलभ कसमसाई भी और बनावटी विरोध भी जताया, लेकिन उस के बाद खुद को समर्पित कर दिया. दीपक ने उस दिन सुलभ को जो सुख दिया, उस से वह भावविभोर हो उठी. दीपक से असीम सुख पा कर सुलभ उस की दीवानी बन गई. वह यह भी भूल गई कि वह 2 जवान बच्चों की मां है.

अवैध संबंधों का सिलसिला एक बार शुरू हुआ तो वक्त के साथ बढ़ता ही गया. ऐसे रिश्ते छिपे भी नहीं रहते. सत्येंद्र को भी इस की जानकारी हो गई. फिर तो वह सुलभ पर बरस पड़ा, ‘‘मैं तुम्हारे बारे में क्या अनापशनाप सुन रहा हूं, मेरा नहीं तो कम से कम बच्चों का तो खयाल किया होता?’’

‘‘तुम्हें तो लड़ने का बहाना चाहिए. मैं ने ऐसा क्या गलत कर डाला, जो लोग मेरे बारे में अनापशनाप बक रहे हैं?’’ सुलभ ने कहा.

‘‘मुझे पता चला है कि दीपक वक्तबेवक्त घर आता है. तुम उस से हंसहंस कर बातें करती हो. तुम्हारे दीपक के साथ नाजायज संबंध हैं. आखिर मेरी जिंदगी को नरक क्यों बना रही हो?’’

‘‘नरक तो तुम ने मेरी और बच्चों की जिंदगी बना रखी है. पत्नी और बच्चों को जो सुखसुविधा चाहिए, वह तुम ने कभी नहीं दी. तुम जो कमाते हो, शराब में उड़ा देते हो. दीपक हमारी मदद करता है तो उस पर इलजाम लगाते हो.’’

सुलभ अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि सुरेंद्र का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह सुलभ को बेरहमी से पीटने लगा. पीटते हुए उस ने कहा, ‘‘मेरा खाती है और मुझ से ही जुबान लड़ाती है.’’

इस के बाद यह रोज का नियम बन गया. देर रात सुरेंद्र नशे में धुत हो कर आता और बातबेबात सुलभ से मारपीट करता. दोनों बच्चे जय और पारस मां को बचाने आते तो वह उन्हें भी गालियां तो देता ही, उन की पिटाई भी कर देता. अब वह रातदिन नशे में डूबा रहने लगा था. कभी काम पर जाता, कभी नहीं जाता. वेतन कम मिलता तो वह ठेकेदार और मुंशी से भी लड़ने लगता.

रोजरोज की मारपीट से सुलभ और उस का बेटा जय आजिज आ चुका था. आखिर उन्होंने सत्येंद्र से छुटकारा पाने की योजना बना डाली. उस योजना में सुलभ ने अपने प्रेमी दीपक कठेरिया को भी शामिल कर लिया.

दीपक इसलिए योजना में शामिल हो गया था, क्योंकि सत्येंद्र उस के संबंधों में बाधक बन रहा था. सुलभ की पिटाई उसे भी चुभती थी. योजना के तहत दीपक मसवानपुर स्थित पवन औटो से एक लोहे की रौड खरीद लाया और मैडिकल स्टोर से एक पत्ता नशीली गोलियों को.

12 मई, 2017 को योजना के तहत सुलभ अपने मायके विशधन चली गई. अगले दिन रात 8 बजे सत्येंद्र घर आया तो उस की तबीयत ठीक नहीं थी. वह चारपाई पर लेट गया. तभी जय ने दीपक को बुला लिया. योजना के तहत जय ने जूस में नशीली गोलियां घोल कर पिता को पिता दीं.

कुछ देर बाद वह बेहोश हो गया तो दीपक और जय उसे उसी की मोटरसाइकिल पर बैठा कर अरमापुर स्टेट स्थित कैलाशनगर पुलिया पर ले गए.

वहां सन्नाटा पसरा था. दोनों ने सत्येंद्र को मोटरसाइकिल से उतारा और सड़क किनारे पुलिया के पास लिटा कर लोहे की रौड से उस के सिर पर कई वार किए, जिस से उस का सिर फट गया और वह तड़प कर मर गया. जय को पिता से इतनी नफरत थी कि उस ने सड़क के किनारे पड़ी सीमेंट की ईंट उठाई और उस के चेहरे को कुचल दिया. हत्या करने के बाद जय और दीपक पैदल ही घर आ गए.

18 मई, 2017 को पूछताछ के बाद थाना अरमापुर पुलिस ने अभियुक्त दीपक, जय और सुलभ को कानपुर की अदालत में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानतें नहीं हुई थीं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

डर- भाग 3: समीर क्यों डरता था?

‘तुम अपना सवाल जरूर पूछना पर मैं पहले कुछ कहना चाहूंगा. शिखा के साथ मेरे जो संबंध थे उसे प्रेम नहीं कहा जा सकता है. मौजमस्ती की शौकीन उस लडक़ी के ऊपर बहुत सारा पैसा खर्च कर के मैं ने उस के साथ को पाया था. मुझे पता चला है कि उस की बड़ी बहन भी ऐसी ही थी. वे 4 बहनें है और मांबाप किसी तरह उन की शादी करा देना चाहते हैं और इसलिए छूट देते हैं.

‘वह झूठ कह रही थी कि मैं ने उस के साथ शादी करने का वादा किया था. यह तुम सब भी समझ सकते हो कि ऐसी लड़कियों से शादी में किसी भी लडक़े की दिलचस्पी नहीं होती है. मैं सच कह रहा हूं कि जब से नेहा मेरी जिंदगी में आई है तब से मैं ने शिखा या अपनी पुरानी किसी दोस्त के साथ रत्तीभर गलत संबंध नहीं रखा है,’ उन्हें सचाई बताते हुए मैं काफी उत्तेजित हो उठा था.

नीरज और कविता ध्यानपूर्वक नेहा की तरफ देखने लगे. जो कुछ मैं ने कहा था शायद वे दोनों उस के प्रति नेहा की प्रतिक्रिया जानना चाहते थे.

कुछ देर सोचविचार में डूबे रहने के बाद नेहा गंभीर लहजे में मुझ से बोली, ‘समीर, मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी मान दिल की गहराइयों से प्यार करने लगी हूं. इसलिए मैं तुम्हारी पुरानी करतूतों को भुलाने को तो तैयार हूं पर क्या तुम आगे में मेरे प्रति पूरी तरह से वफादार रह सकोगे?’

‘बिलकुल वफादार रहूंगा क्योंकि मैं तुम्हें दिल की गहराइयों से प्यार करता हूं. तुम जैसी सोने का दिल रखने वाली लडक़ी को पा कर कोई भला क्यों इधरउधर तांकझांक करेगा?’ उसे अपने प्यार का भरोसा दिलाते हुए मेरी आंखों में आंसू आ गए.

‘इस वक्त दिए गए अपने इस जवाब को तुम आजीवन कभी भूलोगे तो नहीं?’

‘नहीं.’

‘देखो, तुम को अपने ऊपर भरोसा न हो तो अभी हम अपनीअपनी राह आगे बढ़ जाएंगे. मुझे जो गम होगा, उसे मैं सहन कर लूंगी. लेकिन शादी हो जाने के बाद अगर तुम ने मेरे साथ कभी भरोसा तोड़ा…’

‘मैं तुम्हें ऐसी शिकायत का कभी मौका नहीं दूंगा, माई लव,’ मैं ने नेहा का हाथ अपने हाथ में ले कर चूम लिया.

‘पक्का?’

‘वैरीवैरी पक्का.’

‘तब अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुशियां भरने में कोई कसर नहीं उठा रखने का वादा मैं इस पल तुम से करती हूं,’ नेहा ने आगे झुक जब मेरे गाल पर प्यारभरा चुम्मा लिया तो मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई थी.

नीरज ने उठ कर मुझे गले से लगाते हुए गंभीर लहजे में कहा, ‘नेहा की खुशी के लिए मैं अपनी जान दे भी सकता हूं और किसी की जान ले भी सकता हूं. तुम दोनों की जरूरत में काम आना मेरे लिए ख़ुशी की बात होगी, हमारे नए दोस्त. मुझे हमेशा मांबाप ने सिखाया है कि कुरबानी देनी पड़े तो हटना नहीं. हमारे घरों के कितने ही तो फौज में हैं.’

‘इस हीरे की सदा बहुत कद्र करना, समीर,’ कविता ने मेरा हाथ पकड़ कर नेहा के हाथ में दिया और हम तीनों के हाथ को अपने बड़ेबड़े हाथों से ढक कर नीरज ने हमारी नई बनी दोस्ती की नींव डाली थी.

नेहा के साथ शादी कर के मैं हर तरह से बहुत खुश हूं. नीरज मेरा बहुत अच्छा दोस्त बन गया है. कविता मुझे घर के जवाई जैसा आदरसम्मान देती है.

मैं चाहूं भी तो अब किसी लडक़ी को अपने प्रेमजाल में फंसाने की हिम्मत या जुर्रत नहीं कर सकता. पहली मुलाकात के दिन नीरज के घर में हुई बातों ने मेरे मन में इन तीनों का अजीब सा डर बिठा दिया है. नेहा को धोखा दे कर इन तीनों को नाराज करना पूरे खानदान को खतरे में डालना होगा, यह बात मेरे मन में कहीं गहरी जड़ें जमा चुकी है.

छवि मित्तल ने बताया कैंसर का दर्द तो यूजर ने किया ट्रोल

टीवी  एक्ट्रेस छवि मित्तल (Chhavi Mittal) लगातार सुर्खियों में छायी हुई हैं. दरअसल हाल ही में छवि मित्तल ने ऐलान किया था कि उनको ब्रैस्ट कैंसर है और उन्होंने अपनी सर्जरी भी करवाई थी. उन्होंने सोशल मीडिया पर फैंस को ये जानकारी दी थी.

अब सर्जरी के बाद छवि मित्तल सोशल मीडिया पर अपनी फोटोज शेयर करती नजर आ रही है. ऐसे में यूजर्स उन्हें ट्रोल कर रहे हैं छवि मित्तल की पोस्ट देखकर फैंस कह रहे हैं कि वो अपनी बीमारी के नाम पर सिम्पेथी गेन करने की कोशिश कर रही हैं.

 

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ऐसे में छवि मित्तल ने बिना देर किए अपने हेटर्स को करारा जवाब दे दिया है. छवि मित्तल ने कुछ समय पहले ही सोशल मीडिया पर एक स्क्रीन शॉट शेयर किया है.

 

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इस स्क्रीन शॉट को शेयर करते हुए  एक्ट्रेस ने लिखा, ये कमेंट मेरी उस पोस्ट पर किए गए हैं जहां पर मैंने अपने ब्रैस्ट कैंसर का खुलासा किया था. इस दौरान लोगों ने मुझे लेकर बहुत सारे कमेंट किए थे. मैंने अपनी मर्जी से कैंसर जैसी बीमारी को नहीं चुना था. यहां दुखद बात ये है कि बीमार होने के बाद आप अपनी हालत के बारे में लोगों से भी कुछ नहीं कह सकते.

 

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एक्ट्रेस ने आगे लिखा है कि लोगों को ये बात हजम नहीं हो रही है.  लोग मुझे कैंसर जैसी बीमारी के बारे में बात करने नहीं दे रहे हैं. मुझमे हिम्मत थी जो मैंने इस बारे में जमाने को बताया. आप लोग तो एक कैंसर के मरीज को भी ट्रोल कर सकते हैं. छवि मित्तल ने बताया, लोगों के कमेंट मेरी जिंदगी में निगेटिविटी घोल रहे हैं.

कंगना रनौत ने जावेद अख्तर पर लगाया बड़ा आरोप, पढ़ें खबर

बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत (Kangana Ranaut) अक्सर सुर्खियों में छायी रहती हैं. वह अपने बेबाक अंदाज से फैंस का दिल जीतने में कामयाब होती है. इन दिनों एक्ट्रेस मानहानी केस को लेकर चर्चा में बनी हुई है. यह केस जावेद अख्तर से जुड़ा हुआ है. आइए बताते हैं, क्या है पूरा मामला…

कंगना रनौत फिल्मों से ज्यादा अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में बनी रहती है. जी हां, एक समय था  जब कंगना और ऋतिक रोशन का नाम सोशल मीडिया पर छाया था. दरअसल दोनों के कुछ इमेल लीक हुए थे. इस मामले के लेकर दोनों के बीच विवाद हुआ था.

 

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ऐसे में  कंगना ने बॉलीवुड की जानी-मानी हस्ती जावेद अख्तर को लेकर बड़ा खुलासा किया था. उन्होंने कहा था कि जावेद अख्तर ने मुझे ऋतिक रोशन से माफी मांगने के लिए धमकाया था. इस बयान के सामने आने के बाद जावेद अख्तर ने कंगना रनौत पर मानहानि केस कर रखा है.

 

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आपको बता दें कि जावेद अख्तर ने साल  नवंबर 2020 में कंगना के खिलाफ मानहानि मुकदमा दर्ज कराया था. उन्होंने शिकायत में बताया था कि सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी में उनका नाम घसीटा था.

 

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महिलाओं की छोटी बचत ने दिखाया तरक्की का रास्ता

समस्तीपुर जिले के कई गांव ऐसे हैं, जिन में सरकार की तमाम योजनाएं संचालित होने के बावजूद भी किसान परिवारों को बीमारी, शादीब्याह और उलट हालात में सेठसाहूकारों से मोटे ब्याज पर लिए गए कर्ज के ऊपर निर्भर रहना पड़ता था. ऐसे में कर्ज के तले दबे इन परिवारों को समय से ब्याज और कर्ज न चुकता कर पाने पर अकसर सेठसाहूकारों के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता था. इन साहूकारों के कर्ज के चंगुल में फंसे तमाम परिवार कई बार सपरिवार पलायन करने को मजबूर हुए थे.

4 साल पहले ऐसे तमाम परिवार, जो साहूकारों के कर्ज के चंगुल में फंस कर अकसर परेशानियों का सामना कर रहे थे, उन को इस संकट से उबारने के लिए सामाजिक संस्था आगा खान ग्राम सर्मथन कार्यक्रम भारत ने एक्सिस बैंक फाउंडेशन के साथ मिल कर एक ऐसी पहल शुरू की, जिस से सेठसाहूकारों के चंगुल में फंसे परिवार पूरी तरह से मुक्त हो गए, बल्कि इस पहल के चलते सेठसाहूकारों को भारी ब्याज पर दिया जाने वाला व्यवसाय भी पूरी तरह ठप हो गया.

समस्तीपुर के गांवों में संस्था आगा खान ग्राम सर्मथन कार्यक्रम भारत ने एक्सिस बैंक फाउंडेशन द्वारा शुरू की गई इस पहल का नाम रखा था, महिला स्वयं सहायता समूह.

एकेआरएसपीआई द्वारा गठित कराए जाने वाले यह स्वयं सहायता समूह सरकार और दूसरी संस्थाओं द्वारा गठित कराए जाने वाले समूहों से अलग पैटर्न पर कराए गए, जिस से कम आय वाले परिवारों की न केवल कम पढ़ीलिखी महिलाएं, बल्कि अनपढ़ महिलाओं को भी बचत करने में आसानी होने लगी. स्वयं सहायता समूह से जुड़ने वाली इन महिलाओं को मुश्किल समय में समूह के बचत के पैसे से बहुत कम ब्याज पर कर्ज भी मिलने लगा.

महिलाओं की इस पहल के चलते धीरेधीरे सेठ साहूकारों के पास कर्ज मांगने वालों की तादाद शून्य होती गई. इस वजह से सेठसाहूकारों को अपने कर्ज के व्यवसाय को समेटने पर मजबूर होना पड़ा.

छोटी बचत से हुई शुरुआत ने बदली परिवारों की माली हालत

समस्तीपुर जिले के पूसा प्रखंड के गंगापुर ग्राम पंचायत का श्रीरामपुर गांव के पासवान टोले के अधिकतर परिवार सेठसाहूकारों के कर्ज तले दबे रहते थे. इस दशा में कर्ज चुकता करने के चक्कर में इन परिवारों की माली हालत बेहद खस्ता थी. इस बीच इस बात की जानकारी एकेआरएसपीआई के कार्यकर्ताओं को मिली, तो उन्होंने गांव की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह बना कर छोटीछोटी बचत कर माली हालत को सुधारने का सुझाव दिया.

महिलाओं को पहले यह बात समझ नहीं आई, लेकिन जब उन्हें समझाया गया कि इस पहल से उन्हें सेठसाहूकारों के चंगुल से नजात तो मिलेगी ही, साथ ही, वह अपने मुश्किल समय में कर्ज लेने व छोटेमोटे व्यवसाय शुरू करने का काम भी कर सकती हैं. इस के बाद साल 2018 में एकेआरएसपीआई द्वारा एक्सिस बैंक फाउंडेशन के सहयोग से महालक्ष्मी स्वयं सहायता समूह का गठन किया गया, जिस में शुरुआत में 11 महिलाओं ने 20 रुपया प्रति सप्ताह के हिसाब से बचत की शुरुआत की.

इस छोटीछोटी बचत का फायदा यह रहा कि महिलाएं अपनी जरूरत में समूह से उधार लेती हैं, जिस के लिए उन्हें बेहद कम ब्याज देना पड़ता है.

समूह से लिया गया उधार समय से चुकता न कर पाने की दशा में उन्हें किसी तरह के उत्पीड़न से भी छुटकारा मिल गया.

अनपढ़ महिलाओं ने हिसाबकिताब के लिए अपनाया यह तरीका

एकेआरएसपीआई की डेवलपमैंट और्गेनाइजर सोशल रूबी कुमारी ने बताया कि महालक्ष्मी स्वयं सहायता समूह से जो महिलाएं जुड़ कर बचत कर रही थीं, उस में से ज्यादातर को पढ़नालिखना नहीं आता या कम पढ़ीलिखी हैं. ऐसे में इन महिलाओं ने बचत, कर्ज और कर्ज वापसी के लिए अलगअलग रंगों और चिह्नों वाली मुहर का प्रयोग करना शुरू किया. इस तरह के लेनदेन के लिए सभी सदस्यों के नाम से पासबुक बनाई गई है. जब महिलाएं साप्ताहिक बैठकों में अपने बचत के पैसे जमा करती हैं, तो 50 रुपए की बचत पर एक मुहर लगाई जाती है.

ऐसे ही अगर कोई महिला सौ रुपए जमा करती है, तो 2 मुहर लगाई जाती है, जिस से महिलाएं आसानी से अपने पैसे जोड़ सकती हैं. इसी तरह कर्ज के लिए लाल मुहर और ब्याज वापसी के लिए हरे रंग की मुहर का उपयोग किया जाता है, जिस से समूह की महिलाओं को हिसाबकिताब के लिए कोई परेशानी नहीं होती है.

समूह की साख देख कर बैंक ने दिया लोन

महालक्ष्मी स्वयं सहायता समूह द्वारा किए जा रहे बचत और लेनदेन की साख को देखते हुए स्थानीय बैंक द्वारा महिलाओं को खेतीबारी और दुकान शुरू करने के लिए पहली बार कम ब्याज पर एक लाख रुपए का लोन दिया गया, जिस के जरीए समूह की कई महिलाओं ने आधुनिक तरीके से व्यावसायिक खेती शुरू की, तो कुछ ने छोटीमोटी दुकान खोल ली. इस से समूह से जुड़ी महिलाओं को मुनाफा होने लगा, जिस से इन महिलाओं ने बेहद कम समय में बैंक से मिले लोन की वापसी कर दी.

महालक्ष्मी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं ने जब धीरेधीरे खेती और बिजनैस को बढ़ाया, तो उन्हें फिर से ज्यादा पैसों की जरूरत थी. ऐसे में इन महिलाओं ने फिर से बैंक में लोन के लिए आवेदन दिया.

चूंकि बैंक द्वारा दी गई पहली बार की सभी किस्तें समय से जमा कर दी गई थीं, ऐसे में बैंक ने बिना हीलाहवाली के महिलाओं के इस समूह को 2 लाख रुपए का लोन स्वीकृत कर दिया.

आधुनिक खेती और प्रोसैसिंग को मिले पंख

महालक्ष्मी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को जब बैंक द्वारा लोन मिल गया, तो उस से जुड़े कई परिवारों ने हलदी की न केवल आधुनिक खेती शुरू की, बल्कि कई ने आम, आंवला आदि के बनाने का बिजनैस भी शुरू कर दिया. इस के अलावा कुछ महिलाओं ने स्थानीय लैवल की मांग को देखते हुए दुकानें भी खोल रखी हैं.

महिलाओं द्वारा स्वयं सहायता समूह के जरीए सेठ साहूकारों के चंगुल से नजात होने और बचत व बैंक लोन से मिले पैसों से एक सफल महिला उद्यमी के तौर पर ग्रामीण महिलाओं की सफलता के मसले पर आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत के बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय का कहना है कि महिलाओं को छोटीछोटी बचत के लिए राजी करना और उस के जरीए साहूकारों के चंगुल से उन के परिवारों को मुक्त कराते हुए उन की माली हालत सुधारना आसान नहीं था. लेकिन महिलाओं के जज्बे ने इस काम को बेहद आसान कर दिया.

सुनील कुमार पांडेय ने आगे बताया कि आज पारिवारिक और आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए घरपरिवार की जिम्मेदारियों के साथसाथ ये महिलाएं अपने समूहों के माध्यम से सामाजिक विकास में भी भागीदारी निभा रही हैं, जो अच्छी बात है.

आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत के बिहार प्रदेश के मुकेश चंद्रा, सीनियर मैनेजर विलेज इंस्टीट्यूशन ने बताया कि महालक्ष्मी स्वयं सहायता समूह से जुड़ी संगीता देवी, सुशीला देवी, विद्देश्वरी देवी, कृष्णा देवी, आशा देवी जैसी तमाम महिलाएं समूह के जरीए स्वयं का व्यवसाय कर के अपने गांव व समाज में एक उदाहरण सामने रख रही हैं.

सचिन कुमार, डेवलपमैंट और्गेनाइजर सोशल प्रोसैस ने बताया कि ये महिलाएं न केवल स्वयं के परिवार को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने में सफल हुई हैं, बल्कि अपने समूह की दूसरी महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में सहयोगी बन रही हैं. उन का कहना है कि महालक्ष्मी स्वयं सहायता से जुड़ने के बाद उन की जिंदगी में खुशियों ने दस्तक दी है. अब वे मजदूर से खुद व्यापारी के रूप में काम कर रही हैं.

Crime Story: प्रेम, प्रौपटी और प्रपंच

सौजन्य: सत्यकथा

देवकुमार नागर को मरे हुए पूरे 15 दिन हो गए थे. उन के पीछे रह गई थी उन की एकलौती बेटी प्रभा. करोड़ोंअरबों का एंपायर था उन का. जिस के मात्र 2 ही पार्टनर थे प्रभा नागर और प्रथम शर्मा. प्रथम के मातापिता 5 साल पहले ही मर चुके थे.

रात का समय था. प्रभा, प्रथम और प्रभा का प्रेमी रीतेश और युवा एडवोकेट विकास शर्मा ड्राइंगरूम में बैठे थे. विकास की उम्र 35 साल थी. लगभग 10 साल से वह देवकुमार नागर के पर्सनल लीगल एडवाइजर के रूप में काम कर रहा था. यही नहीं, एकाउंट का भी वह उन का काफी काम देखता था.

देवकुमार ने अपनी वसीयत तैयार कराई थी, जिसे उन्होंने अपनी मौत के 15 दिन बाद दोनों हिस्सेदारों को पढ़ कर सुनाने को कहा था. उस दिन उसी के लिए सब इकट्ठा हुए थे.

एडवोकेट विकास ने कहा, ‘‘मैडम, साहब की इच्छानुसार वसीयत पढ़ते समय केवल 2 ही लोगों को उपस्थित रहना है. अगर थोड़ी देर रीतेश बाहर बैठें तो अच्छा रहेगा.’’

‘‘रीतेश को कोई दिक्कत नहीं है. वह भी अब परिवार का ही एक हिस्सा है. मात्र काररवाई ही बाकी है. तुम कह रहे हो तो मुझे कोई परेशानी नहीं है.’’ प्रभा ने कहा.

एडवोकेट विकास ने संकोच के साथ वसीयत पढ़नी शुरू की. देवकुमार नागर ने लिखा था, ‘‘मैं ने पूरे होशोहवास के साथ बिना किसी के दबाव के यह वसीयत लिखी है. मेरी कंपनी पार्टनरशिप में है. जिस में से 50 प्रतिशत हिस्सा मेरा है और 50 प्रतिशत मेरे पार्टनर दीपक शर्मा का. दीपक शर्मा अब जीवित नहीं हैं, इसलिए उस 50 प्रतिशत पर अब उन के बेटे प्रथम शर्मा का हक है. अपने हिस्से में आने वाला 50 प्रतिशत हिस्सा मैं अपनी बेटी प्रभा नागर को दे रहा हूं.’’

यह वाक्य सुन कर प्रभा उछल पड़ी, ‘‘यस, थैंक यू सो मच पापा.’’

इतना कह कर उस ने रीतेश को गले से लगा लिया.

एडवोकेट विकास ने कहा, ‘‘मैडम ज्यादा खुश मत होइए, अभी वसीयत की शर्तें बाकी हैं.’’

प्रभा चुप हो गई. विकास ने आगे पढ़ना शुरू किया, ‘‘मेरी जो व्यक्तिगत प्रौपर्टी है, वह मैं अपनी बेटी के नाम कर रहा हूं. जैसे कि मेरा पर्सनल बैंक बैलेंस, अपनी तीनों की तीनों कोठियां, जमीन और गाडि़यां, सोनाचांदी और सब कुछ. परंतु शर्त यह है कि अगर प्रभा अपने प्रेमी रीतेश से विवाह करती है तो उसे इस में से फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी. मैं ने प्रभा को बहुत समझाया. पर वह नहीं मानी. अगर उस की शादी के पहले मेरी मौत हो जाती है तो मेरी इस वसीयत के अनुसार ही मेरी प्रौपर्टी का बंटवारा हो.

—आप का देवकुमार नागर’’

वसीयतनामा सुन कर प्रभा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. रीतेश भी सन्न रह गया. प्रथम पर इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. पर उसे भी यह अच्छा नहीं लगा. प्रभा फफकफफक कर रोने लगी. रीतेश और प्रथम ने उसे संभाला. प्रथम ने कहा, ‘‘प्रभा रो मत, कोई न कोई रास्ता जरूर निकल आएगा.’’

‘‘आई एम सौरी टू से. इस में अब कोई रास्ता नहीं निकलने वाला. यह कानूनी तौर पर है और आप का दोस्त होते हुए भी इस मामले में मैं आप की कोई मदद नहीं कर सकता. मुझे अपना फर्ज अदा करना ही पड़ेगा. प्रभा को 2 में से एक को चुनना पड़ेगा. रीतेश या रीति. प्रेमी या प्रौपर्टी. सौरी…अगेन.’’

‘‘नहीं चाहिए मुझे पैसा और प्रौपर्टी. मैं तो रीतेश से ही ब्याह करूंगी.’’ प्रभा ने कहा.

‘‘प्रभा, जल्दी में कोई निर्णय मत लो. जो कुछ भी करना है शांति से सोचविचार कर करो. सप्ताह, 15 दिन, महीना अभी काफी समय है तुम्हारे पास.’’ एडवोकेट विकास ने कहा.

मित्रों के बीच खूब चर्चा हुई. पर इस का कोई मतलब नहीं था. आखिर रात एक बजे सभी अपनेअपने घर के लिए निकले. रीतेश ने कहा, ‘‘प्रभा तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. तुम जो निर्णय लोगी, वह मुझे मंजूर होगा. पर एक बात का विश्वास दिला रहा हूं, तुम सब कुछ छोड़ भी दोगी, तब भी मैं तुम्हें रानी की तरह रखूंगा.’’

प्रथम ने जाने के लिए उठते हुए कहा, ‘‘प्रभा, शांति से सोचना. मैं कल फिर आऊंगा, गुडनाइट.’’

5 दिनों बाद प्रभा ने फाइनल निर्णय के लिए एडवोकेट विकास शर्मा को बुलाया. विकास ने पूछा, ‘‘बताइए मैडम, आप ने क्या निर्णय लिया?’’

‘‘मुझे इस प्रौपर्टी से फूटी कौड़ी भी नहीं चाहिए. मैं रीतेश के साथ ही ब्याह करूंगी. हम दोनों मेहनत करेंगे और जो मिलेगा, उसी में सुख से रहेंगे. पापा का सारा क्रियाकर्म पूरा हो जाए, उस के सवा महीने बाद मैं रीतेश से शादी कर लूंगी.’’

रीतेश प्रभा के इस निर्णय से बहुत खुश था. पर प्रथम खुश नहीं लग रहा था. विकास तो एडवोकेट था, उसे मात्र निर्णय का पालन करना था. उस ने कहा, ‘‘जैसा आप को ठीक लगे, वैसा कीजिए. जिस दिन आप रीतेश से शादी कर लेंगी, उसी दिन यह सारी प्रौपर्टी वृद्धाश्रम के पास चली जाएगी, धन्यवाद.’’

प्रभा ने अरबों की प्रौपर्टी पर लात मार कर अपना प्यार पाने का निश्चय कर लिया था. पर उसे पता नहीं था कि इस में प्रपंच भी चल रहा है. देवकुमार की मौत को एक महीना हो गया था. एक सप्ताह बाद प्रभा और रीतेश सादगी से सगाई और 15 दिन बाद शादी करने वाले थे.

रात के एक बजे का समय था. रीतेश सो रहा था. तभी किसी अंजान नंबर से उस के मोबाइल पर फोन आया, ‘‘सर, मैं अपोलो अस्पताल से बोल रहा हूं. किसी महिला का एक्सीडेंट हो गया है. उस के ड्राइविंग लाइसैंस में प्रभा नागर नाम लिखा है. अंतिम काल उस ने आप को किया था.’’

रीतेश झटके से पलंग से उठा और पार्किंग की ओर भागा. पार्किंग से मोटरसाइकिल निकाल कर वह सड़क पर आया था कि 3 लोगों ने उसे दबोच लिया और चाकू से गला रेत कर फरार हो गए. रीतेश तड़पतड़प कर वहीं मर गया. उतनी रात को सड़क पर पड़ी रीतेश की लाश को देख कर किसी ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया.

पुलिस कंट्रोल रूम से इलाके की पुलिस को सूचना मिली तो 10 मिनट में थानाप्रभारी इंसपेक्टर नवरंग सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मौके पर आई पुलिस टीम ने लाश की तलाशी ली तो पैंट की जेब से एक पर्स और मोबाइल फोन मिला.

ड्राइविंग लाइसैंस से पता चला कि मरने वाला बगल में ही अपार्टमेंट में रहता था. उस के फ्लैट पर जा कर पड़ोसियों से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह यहां अकेला ही रहता था. यहां उस का और कोई नहीं है.

इंसपेक्टर नवरंग सिंह ने उस के मोबाइल पर आई अंतिम काल पर पलट कर काल किया तो नंबर बंद था. उस के बाद लास्ट सेकेंड काल डायल किया. वह प्रभा का नंबर था. रीतेश के बारे में सूचना पा कर वह चीख उठी. उस ने प्रथम को फोन किया और दोनों घटनास्थल की ओर चल पड़े.

रीतेश की लहूलुहान लाश देख कर प्रभा तो जमीन पर बैठ कर रोने लगी. उस ने चीख कर नवरंग सिंह से पूछा, ‘‘सर यह क्या हो गया? किस ने मारा मेरे रीतेश को?’’

नवरंग सिंह के बजाय उन के साथ आए हैडकांस्टेबल नाथू सिंह ने जवाब दिया, ‘‘मैडम फिक्र न करें, मैं हूं न. जिस ने भी इन्हें मारा है, वह बच नहीं पाएगा.’’

नवरंग सिंह ने सब से पहले उस नंबर के बारे में पता किया, जिस नंबर से रीतेश के मोबाइल पर अंतिम काल आई थी. उस नंबर के बारे में पुलिस को पता करने में ज्यादा देर नहीं लगी. पता चला कि वह नंबर फरजी आईडी पर लिया गया था.

अब उस नंबर से जांच आगे नहीं बढ़ सकती थी, इसलिए थानाप्रभारी नवरंग सिंह ने जांच की दिशा बदल दी. क्योंकि नंबर के पीछे समय बरबाद करना उन्होंने उचित नहीं समझा. नंबर बंद भी हो चुका था, इसलिए उस से लोकेशन वगैरह भी नहीं मिल सकती थी.

इंसपेक्टर नवरंग सिंह ने बारीबारी प्रभा, उस के युवा पार्टनर प्रथम और एडवोकेट विकास शर्मा से मिल कर छोटी से छोटी जानकारी इकट्ठा की. इन से की गई पूछताछ में किसी तरह का सुराग या किसी पर शक किया जा सके, इस तरह की कोई जानकारी नहीं मिली.

दिन भर की भागदौड़ से थके इंसपेक्टर नवरंग सिंह सहयोगियों के साथ बैठे चाय पी रहे थे. साथ ही रीतेश मर्डर केस पर बात भी कर रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘अब तक जो जानकारियां मिली हैं, उस से एक बात तो साफ हो गई है कि रीतेश की हत्या देवकुमार नागर की प्रौपर्टी के लिए हुई है. इस मामले में प्रेम और प्रपंच दोनों है. अगर प्रभा रीतेश से शादी कर लेती तो प्रौपर्टी उस के हाथ से निकल जाती. प्रभा ने रीतेश के साथ शादी का जो निर्णय लिया, इसलिए रीतेश की हत्या हुई.’’

‘‘सर, प्रभा अगर रीतेश से शादी न करती तो प्रौपर्टी तो उसे ही मिलने वाली थी. इस में किसी दूसरे को तो कोई फायदा था नहीं. तो फिर कोई हत्या जैसा जघन्य अपराध क्यों करेगा?’’ बगल में बैठे एसआई जयकरन सिंह ने कहा.

‘‘बहुत ही जोरदार सवाल किया है तुम ने?’’ नवरंग सिंह ने उन्हें घूरते हुए कहा, ‘‘कोई ऐसा था, जो चाहता था कि प्रभा रीतेश से शादी न करे और यह सारी प्रौपर्टी प्रभा को मिले. और प्रभा के माध्यम से यह सारी प्रौपर्टी उसे मिले. अब समझ में आई बात?’’

‘‘जी सर. मैं ने तो इस बारे में सोचा ही नहीं.’’

‘‘सोचने के लिए दिमाग चाहिए. कोई बात नहीं, चलो अब इस बात का पता लगाओ कि प्रभा और रीतेश की शादी में विघ्न डाल कर फायदा किसे होने वाला था. तुम प्रभा की फैक्ट्री, उस के पार्टनर सहित जिनजिन लोगों से उस का संबंध है, सभी के बारे में एकएक बात का पता कर के मुझे बताओ. एक बात जान लीजिए कि संबंधों का तानाबाना उधेड़ेंगे, तभी इस मामले का तानाबाना उधड़ेगा.’’ इंसपेक्टर नवरंग सिंह ने कहा.

‘‘आप जरा भी चिंता मत कीजिए सर. मैं एकएक की कुंडली खंगालता हूं और आप को मामले की तह तक ले जाता हूं.’’ एसआई जयकरन सिंह ने कहा, ‘‘लेकिन सर हैडकांस्टेबल नाथू सिंह को भी मेरी मदद के लिए मेरे साथ भेज दीजिए.’’

‘‘ठीक है नाथू सिंह, तुम से जो हो सके, इन की मदद करो.’’

हैडकांस्टेबल नाथू सिंह ने सैल्यूट करते हुए कहा, ‘‘ओके सर.’’

2 दिन बाद सारी जानकारी इकट्ठी कर एसआई जयकरन सिंह ने बताया, ‘‘सर, प्रथम प्रभा को बहुत चाहता है. एक बार उस ने प्रभा से अपने प्यार का इजहार भी किया था. पर प्रभा ने इनकार कर दिया था. क्योंकि वह रीतेश से प्यार करती थी.’’ जयकरन सिंह ने कहा.

‘‘वैरी गुड, पर इस से क्या होगा? इस से हत्या का मामला कैसे सुलझेगा?’’ नवरंग सिंह ने पूछा.

‘‘अरे सर, इस से तो एक तीर से दो शिकार होंगे. सर, रीतेश की मौत हो चुकी है. प्रभा की शादी रुक चुकी है. अब प्रभा के पास प्रथम के अलावा और कोई दूसरा औप्शन नहीं है. इसलिए लगता है कि प्रेम और प्रौपर्टी के लिए यह प्रपंच रचा गया है. अरबों की प्रौपर्टी में उस की आधे की हिस्सेदारी है ही. प्रभा से शादी हो जाती है तो दोनों के पतिपत्नी बनते ही सर वह पूरी प्रौपर्टी का मालिक बन जाएगा.’’

‘‘हां, यह बात तो है. एक बार हत्यारों का पता चल जाए, उस के बाद तो सारा रहस्य अपने आप उजागर हो जाएगा. मुश्किल तो इस बात की है कि वहां कोई सीसीटीवी कैमरा भी नहीं था, वरना अब तक तो हत्यारे हवालात में होते और हत्या कराने वाला मेरे कदमों में. ऐसा करो, तुम सभी का बैंक डिटेल्स पता करो.’’

‘‘उस से क्या होगा सर?’’

‘‘अगर बात समझ में न आए तो जितना कहा जाए, बस उतना ही करो.’’ थानाप्रभारी ने थोड़ा खीझ कर कहा.

अगले दिन एसआई जयकरन सिंह ने प्रभा, प्रथम और एडवोकेट विकास की सारी बैंक डिटेल्स ला कर इंसपेक्टर नवरंग सिंह के सामने रख दी. इस के बाद 3 दिनों की भागदौड़ और जांच के बाद आखिर नवरंग सिंह के लंबे हाथ रीतेश के हत्यारों तक पहुंच ही गए.

इस मामले में 3 लोगों को गिरफ्तार किया गया था. पूछताछ में उन्होंने रीतेश की हत्या का अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया था.

इंसपेक्टर नवरंग सिंह ने तत्काल प्रभा, प्रथम और एडवोकेट विकास शर्मा को थाने बुला लिया. तीनों को सामने पड़ी कुरसियों पर बैठा कर इंसपेक्टर नवरंग सिंह ने कहा, ‘‘आप लोगों को यह जान कर खुशी होगी कि रीतेश के हत्यारे पकड़े जा चुके हैं और एक बड़ी साजिश का परदाफाश हो चुका है.’’

‘‘कौन हैं वे?’’ तीनों ने एक साथ पूछा.

‘‘हत्या करने वाले तो हवालात में हैं. जबकि हत्या कराने वाला अभी बाहर है. पर अब वह ज्यादा देर बाहर नहीं रहेगा.’’ नवरंग सिंह ने कहा.

नवरंग सिंह की इस बात से प्रपंची को पसीना आ गया. नवरंग सिंह ने ज्यादा सस्पेंस न रखते हुए आगे कहा , ‘‘आप लोगों को यह जानकर हैरानी होगी कि रीतेश की हत्या कराने वाला कोई और नहीं, एडवोकेट विकास शर्मा है.’’

नाम का खुलासा होते ही विकास ने थाने से भागने की कोशिश की. भला थाने से भी कोई भाग सकता है. ड्यूटी पर खड़े संतरी ने उस की टांग में अपनी टांग फंसा दी. वह मुंह के बल गिर पड़ा तो हैडकांस्टेबल नाथू सिंह ने उसे दबोच लिया.

इंसपेक्टर नवरंग सिंह ने कहा, ‘‘वकील साहब, अब आप का खेल खत्म हो गया है. अब तुम अपना केस लड़ना और हार कर जेल जाना.’’

‘‘सर, इस ने क्यों हत्या की रीतेश की?’’ प्रभा ने पूछा.

‘‘यह कमाल की ही बात है कि जिस पर शक न हो, वही सांप निकलता है. मुझे पहले प्रथम पर शक था. क्योंकि वह भी तुम से प्यार करता था. रीतेश की हत्या से उसे डबल लाभ होने वाला था. तुम्हारे साथसाथ प्रौपर्टी भी मिलती. पर उस के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला.

‘‘इस मामले में मैं ने सब की बैंक डिटेल्स निकलवाई. पता चला कि कल एडवोकेट विकास शर्मा के एकाउंट से 5 लाख रुपए किसी को दिए गए थे. उस आदमी के बारे में पता किया. वह हरियाणा के पलवल का रहने वाला था. वह पैसे ले कर हत्या करने वाला शूटर था. कई बार जेल जा चुका था.

‘‘हरियाणा पुलिस की मदद से उसे गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि एडवोकेट विकास के कहने पर अपने 2 साथियों के साथ मिल कर रीतेश की हत्या के लिए उस ने 5 लाख रुपए में सुपारी ली थी. अब विकास से पूछताछ करनी है.’’

इंसपेक्टर नवरंग सिंह अपनी बात कह ही रहे थे कि प्रभा उठी और तड़ातड़ विकास के दोनों गालों पर मारने लगी. थाने में मौजूद महिला सिपाहियों ने किसी तरह प्रभा को शांत किया. इस के बाद नवरंग सिंह ने कहा, ‘‘वकील साहब, अब आप की बारी है. आप खुद ही सब कुछ सचसच बता दो तो अच्छा है, वरना मैं तो सच उगलवा ही लूंगा.’’

आखिर एडवोकेट विकास ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने रीतेश की हत्या करवाने की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी.

हरियाणा के ही रेवाड़ी के रहने वाले विकास ने बीकौम के बाद एलएलबी की थी. पढ़ाई पूरी करने के बाद वह दिल्ली आ गया और अपने दूर के एक रिश्तेदार के साथ इनकम टैक्स विभाग में वकालत की प्रैक्टिस करने लगा. उस के वह रिश्तेदार देवकुमार नागर की कंपनी का काम देखते थे. उन्हीं के कहने पर देवकुमार ने विकास को अपनी कंपनी के लीगल काम देखने के लिए रख लिया था.

चूंकि विकास ने कौमर्स की भी पढ़ाई कर रखी थी, इसलिए देवकुमार अपना पर्सनल हिसाबकिताब विकास से ही करवाने लगे थे. इस से उसे वेतन के अलावा भी काफी लाभ हो रहा था. इसीलिए वह नहीं चाहता था कि प्रभा की शादी रीतेश के साथ हो.

उसे लगता था कि प्रौपर्टी के लालच में प्रभा रीतेश से शादी करने से मना कर देगी. पर उस ने तो प्रौपर्टी को लात मार कर रीतेश से शादी करने का निर्णय ले लिया था. अगर प्रभा के हाथ में प्रौपर्टी न आती तो विकास का बहुत बड़ा नुकसान होता.

दवकुमार नागर के हिस्से की अरबों की संपत्ति का हिसाबकिताब वही करता था. रुपए को कहां इनवैस्ट करना है, पर्सनल रुपए का किस सीए से काम कराना है, कहां कौन जमीन खरीदनी है, इन सब के लीगल पेपर विकास ही तैयार करता था. इन सभी कामों में वह वेतन के अलावा 30 से 40 लाख रुपए इधर से उधर कर देता था.

अब अगर यह सारी प्रौपर्टी प्रथम के हाथ में चली जाती तो उस की यह ऊपरी कमाई बंद हो जाती. इसलिए रीतेश की हत्या करना उस के लिए जरूरी हो गया था. उस के बाद प्रभा चाहे जिस से भी शादी करती, प्रौपर्टी उसी के पास रहती और विकास का यह धोखाधड़ी का धंधा चलता रहता.

इतना कह कर जैसे ही विकास चुप हुआ, प्रभा उस के मुंह पर थूक कर बाहर निकल गई. विकास को हवालात में डाल कर इंसपेक्टर नवरंग सिंह भी बाहर चले गए.

अगले दिन सारी काररवाई पूरी कर के विकास और सुपारी ले कर हत्या करने वाले तीनों हत्यारों को अदालत में पेश किया गया, जहां से चारों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इंसपेक्टर नवरंग सिंह के पास विकास के खिलाफ पक्के सबूत थे, इसलिए बार एसोसिएशन चाह कर भी विकास की मदद नहीं कर सकी. प्रभा को पूरा विश्वास है कि विकास को उस के किए की सजा जरूर मिलेगी.

मैं अपने रिलेशनशिप को मजबूत बनाने के लिए क्या करूं?

सवाल

मेरी नईनई जौब लगी है. नया माहौल, नए लोग सब अच्छा लग रहा है. सब से अच्छी बात यह हुई कि साथ में सेम डे एक लड़की ने भी औफिस जौइन किया. हम दोनों नए थे, इसलिए फर्स्ट डे ही हम में अच्छी फ्रैंडशिप हो गई. उस का घर भी मेरे रूट पर था तो मैं ने उसे लिफ्ट भी दे दी. वह मुझसे बहुत खुश है और सच कहूं तो मुझे लग रहा है कि मुझे उस से प्यार होने लगा है लेकिन मैं कोई जल्दबाजी उसे शो नहीं करना चाहता.

मैं इतना तो समझदार हूं कि पहले यह जान लूं कि उस के मन में मेरे लिए किस तरह की फीलिंग्स हैं. लेकिन मैं अंदर ही अंदर घबराता हूं कि अपने इस न्यू रिलेशनशिप में मैं कहीं फेल न हो जाऊं. चाहता हूं कि अपने इस नए रिश्ते को ज्यादा से ज्यादा मजबूत बनाऊं जिस से वह मुझे छोड़ने के बारे में सोचे ही नहीं. इस सब के लिए मैं क्या करूं?

जवाब

लड़कों के साथ अकसर ऐसा होता है. नए रिश्ते को ले कर जल्दी ही घबराने लगते हैं. इस की वजह से उन का मन नए रिश्ते को संजोने के बजाय दिमाग के अंदर एक डर बनने लगता है.

अभी साथ रहतेरहते दो दिन हुए नहीं और पता नहीं क्याक्या सोचने लगे हैं. अरे भई, अभी तो मिले हैं, इसलिए मुलाकात को सुनहरा बनाने की सोचें. क्योंकि उस के चले जाने का डर आप को और कमजोर करने का काम करेगा. इस की वजह से आप मजबूत बनने के बजाय कमजोर पड़ जाएंगे और रिश्ते की डोर हाथ से छूट जाएगी.

आप को असुरक्षा से निबटने के लिए तैयार रहना चाहिए. इस के लिए सब से बेहतर तरीका है अपने मन में उस लड़की को ले कर आने वाली नकारात्मक बातों को पनपने न दें. दूसरी बात, यह सोचें कि अगर कोई जाना चाहे तो उस को जबरन रोक नहीं सकते. यह उस की चाहत पर निर्भर करता है.

किसी भी नए व्यक्ति को सम?ाने और खुद को सम?ाने के लिए समय व्यतीत करने की आवश्यकता है. एक लंबा वक्त गुजारने के बाद ही आप एकदूसरे को सम?ा सकते हैं. मगर इस बीच कई बार कई बातों को ले कर गलतफहमी पैदा हो सकती है. इस के लिए आप को अपनी बात सम?ानी आनी चाहिए.

आप अपने दोनों के रिश्ते को ले कर जज्बाती हो सकते हैं लेकिन जजमैंटल न बनें. वह लड़की अभी आप को ज्यादा नहीं जानती, इसलिए आप जो भी बोलें, सोचसमझ कर बोलें. फिल्मी लवस्टोरी और रियल लाइफ में बहुत फर्क होता है. प्यार को नैचुरल रहने दें.

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