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किडनी की सेहत से जुड़े इन लक्षणों पर रखें पैनी नजर

आंखें शरीर का सब से नाजुक हिस्सा होती हैं. इन की सेहत हमारे लाइफस्टाइल और हैल्थ से प्रभावित होती है. बहुत सारी बीमारियां जैसेकि क्रोनिक किडनी डिजीज, हाइपरटैंशन, डायबिटीज का संबंध हमारी आंखों की रोशनी से होता है.

किडनी की बीमारियां और आंखें

किडनी फेल्योर की वजह से आंखों की रोशनी धुंधली हो सकती है. ऐसा होने पर आंखों के डाक्टर को दिखा कर दवा लेनी चाहिए और चश्मा लगाने के बारे में पूछना चाहिए.

अगर किडनी की बीमारी का इलाज न कराया जाए तो इस की वजह से आंखों की रोशनी पूरी तरह से भी जा सकती है. हालांकि ऐसा किडनी की बीमारी की लास्ट स्टेज में होता है. इसलिए इस तरह की स्थिति आने ही न दी जाए.

किडनी की बीमारियों के लक्षण

किडनी की समस्या यकायक नहीं होती है. यह लंबे समय से गलत लाइफस्टाइल का नतीजा होती है. किडनी की समस्या से बचाव का बेहतर तरीका यह है कि इस के लक्षणों पर नजर रख सही समय पर इलाज कराया जाए. किडनी की बीमारियों के कुछ आम लक्षण निम्न हैं :

थकान: अगर आप को अकसर थकान महसूस होती है, यहां तक कि अच्छा खानपान होने के बावजूद, तो आप को किडनी की समस्या का खतरा हो सकता है. अगर किडनी सही ढंग से काम नहीं करती है, तो खून में अनगिनत टौक्सिंस अपना घर बना लेते हैं, जिन की वजह से आप को हर समय थकान महसूस होती है.

नींद में परेशानी: शरीर में टौक्सिंस की मौजूदगी किडनी की फिल्टर करने की क्षमता पर बुरा असर डालती है. इस वजह से पेशाब के जरीए शरीर से बाहर निकलने वाले टौक्सिंस शरीर में ही रह जाते हैं और नींद से जुड़ी समस्याएं पैदा करते हैं.

पेशाब में समस्या: किडनी की समस्या का सब से आम लक्षण है थोड़ीथोड़ी देर बाद पेशाब आना. अगर आप को दिन में कई बार पेशाब जाना पड़े तो यह आप के लिए डाक्टर से सलाह लेने का सही समय है. किडनियां इंसान के शरीर की पेशाब की प्रक्रिया को रैगुलेट करती हैं. अगर इन में कोई समस्या होती है, तो पेशाब करने की आदत में भी बदलाव आ जाता है.

पेशाब के टैक्स्चर, रंग, गंध आदि में बदलाव यकीनन किडनी की किसी समस्या से जुड़े हो सकते हैं. अगर आप को पेशाब करते समय बहुत बुलबुले दिखाई दें, तो तुरंत डाक्टर के पास जाएं.

पैरों में सूजन: अगर कोई किडनी सही ढंग से काम नहीं करती है, तो शरीर में सोडियम का जमाव हो जाता है. ऐसे में पैरों, टखनों में सूजन हो सकती है. ऐसे ही अगर आप के जूतेचप्पल पैरों में टाइट होने लगें, तो समझ जाएं कि किडनी की कोई समस्या हो सकती है.

आंखों और त्वचा में खुजली: शरीर में खनिजों की सही मात्रा बनाए रखने का काम भी हमारी किडनियां ही करती हैं. किडनी में कोई समस्या होने पर इस प्रक्रिया पर भी गलत असर होता है, जिस वजह से आंखों सहित पूरे शरीर में खुजली होती है.

आंखें लाल होना: आंखों के लाल होने की आम वजहें हैं- ऐलर्जी और संक्रमण, लेकिन किडनी में कोई समस्या होने पर भी आंखें लाल और उन में हर समय हलका सा दर्द महसूस हो सकता है.

आंखों का रूखापन: यह एक क्रोनिक सिंड्रोम है, जो समय के साथ ज्यादा मजबूती से उभरता है. आप आंखों को जितना अधिक रगड़ेंगी, वे उतनी ही रूखी होंगी. रूखी आंखें सही ढंग से काम नहीं करती हैं और ठीक से दिखाई नहीं देता है. किडनी की समस्या के चलते आंखों में बहुत अधिक कैल्सियम और फास्फेट जमा होने लगता है. ऐसे में आंखें बहुत अधिक रूखी हो जाती हैं जिस का इन की सेहत पर काफी बुरा असर पड़ता है.

आंखों में घाव: आंखों में घाव एक दर्द वाला सिंड्रोम होता है. इस के कई कारण हो सकते हैं, जिन में से एक किडनी की बीमारी भी है. अगर आप को बारबार आंखों में घाव हो जाता है, तो डाक्टर से जरूर मिलें. घाव की वजह से आंखें लाल हो सकती हैं और उन में खुजली भी महसूस हो सकती है. इस की वजह से आंख के कोर्निया, कंजंक्टिवा और स्लेयर यानी सफेद हिस्से को भी नुकसान हो सकता है.

रैटिनोपैथी: यह भी आंखों की एक बीमारी है, जो किडनी की समस्या के चलते हो सकती है. इस बीमारी का पहला लक्षण है आंखों की रोशनी कम होना.

इन सभी लक्षणों पर नजर रखें ताकि किडनी और आंखों की किसी भी समस्या को पहचान उस का सही समय पर इलाज करा सकें. याद रखें हैल्दी लाइफ इज हैप्पी लाइफ.

– डा. पीएन गुप्ता, चीफ नैफ्रोलौजी, पारस हौस्पिटल, गुरुग्राम

बारिश में यूं बनाएं टेस्टी बेसन के पकौड़े

बारिश के मौसम में हर किसी को पकौड़ा खाना अच्छा लगता है . ऐसे में आपको बताने जा रहे हैं पकौड़ा बनाने की आसान विधि.

सामग्री-

– बेसन ( 01 कप)

– चावल का आटा (02 बड़े चम्मच)

– प्याज (2 बड़े साइज के)

– हरी मिर्च (3 से 4)

– हरी धनिया (02 बड़ा चम्मच)

– लाल मिर्च पाउडर (01 छोटा चम्मच)

– चाट मसाला (1 छोटा चम्मच)

– तेल ( तलने के लिए)

– नमक (स्वादानुसार)

बेसन के पकोड़े बनाने की विधि :

– सबसे पहले हरी मिर्च के डंठल तोड़ कर धो लें और बारीक काट लें.

– हरी धनिया भी धो कर बारीक कतर लें.

– साथ ही प्याज को छील कर धो लें और फिर उसे लंबा और पतला काट लें.

– एक बाउल में बेसन, चावल का आटा, कटी हुई प्याज, कटी हुई हरी मिर्च, कटी हुई हरी    धनिया, लाल मिर्च पाउडर, चाट मसाला पाउडर और नमक लेकर थोड़ा-थोड़ा पानी         डालते हुए पकौड़े का घोल तैयार कर लें.

– ध्‍यान रहे यह घोल न तो ज्‍यादा पतला हो और न ही ज्यादा गाढ़ा, नही तो पकौड़ी सही   नहीं बनेगी.

– अब एक कड़ाही में तेल डालकर गरम करें.

– तेल गरम होने पर एक बड़े चम्मच के बराबर बेसन का घोल लेकर तेल में डालें.

– आप चाहें तो चम्‍मच से भी घोल तेल में डाल सकती हैं.

– कड़ाही में जितनी पकैडी आसान से आ जाएं, उतनी डालें और मीडियम आंच पर तलें.

– जब पकौड़े सुनहरे रंग के हो जाएं, उन्‍हें तेल से निकाल लें और किचन पेपर पर रखें,       जिससे पकौड़ी का एक्‍सट्रा तेल किचन पेपर सोख ले.

– इसी तरह से पूरे घोल के पकौड़े तल लें.

– लीजिए, प्‍याज के पकौड़े बनाने की विधि हुई.

– अब आपकी स्‍वादिष्‍ट बेसन की पकौड़ी  तैयार हैं.

इसे सर्विंग प्‍लेट में निकालें और टोमैटो सौस, चिली सौस या फिर मनचाही चटनी के साथ सर्व करें.

ये भोलीभाली लड़कियां: इन लड़कियों की इस में क्या गलती है

सचमुच लड़कियां बड़ी भोली होती हैं. हाय, इतनी भोलीभाली लड़कियां हमारे जमाने में नहीं होती थीं. होतीं तो क्या हम प्यार का इजहार करने से चूकते. तब लड़कियां घरों से बाहर भी बहुत कम निकलती थीं. इक्कादुक्का जो घरों से निकलती थीं, वे बस 8वीं तक पढ़ने के लिए. मैं गांवदेहात की बात कर रहा हूं. शहर की बात तो कुछ और रही होगी.

हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में मेरे साथ एक भी लड़की नहीं पढ़ती थी. निगाहों के सामने जो भी जवान लड़की आती थी, वह या तो अपने गांव की कोई बहन होती थी या फिर कोई रिश्तेदार जिस से नजर मिलाते हुए भी शर्म आती थी. इस का मतलब यह नहीं कि गांव में प्रेमाचार नहीं होता था. कुछ हिम्मती लड़केलड़कियां हमारे जमाने में भी होते थे जो चोरीछिपे ऐसा काम करते थे और उन के चर्चे भी गांव वालों की जबान पर चढ़े रहते थे.

लेकिन तब की लड़कियां इतनी भोली नहीं होती थीं, क्योंकि उन को बहलानेफुसलाने और भगा कर ले जाने के किस्से न तो आम थे, न ही खास. अब जब मैं बुढ़ापे के पायदान पर खड़ा हूं तो आएदिन न केवल अखबारों में पढ़ता हूं, टीवी पर देखता हूं, बल्कि लोगों के मुख से भी सुनता हूं कि हरदिन बहुत सारी लड़कियां बलात्कार का शिकार होती हैं. लड़कियां बयान देती हैं कि फलां व्यक्ति या लड़के ने बहलाफुसला कर उस के साथ बलात्कार किया और अब शादी करने से इनकार कर रहा है. यहां वास्तविक घटनाओं को अपवाद समझिए.

तभी तो कहता हूं कि आजकल की पढ़ीलिखी, ट्रेन, बस और हवाई जहाज में अकेले सफर करने वाली, अपने मांबाप को छोड़ कर पराए शहरों में अकेली रह कर पढ़ने वाली लड़कियां बहुत भोली हैं.

बताइए, अगर वे भोली और नादान न होतीं तो क्या कोई लड़का उन को मीठीमीठी बातें कर के बहलाफुसला कर अपने प्रेमजाल में फंसा सकता है और अकेले में ले जा कर उन के साथ बलात्कार कर सकता है.

पुलिस में लिखाई गई रिपोर्ट और लड़कियों के बयानों के आधार पर यह तथ्य सामने आता है कि आजकल की लड़कियां इतनी भोलीभाली हैं कि वे किसी भी जानपहचान और कई बार तो किसी अनजान व्यक्ति की बातों तक में आ जातीं और उस के साथ कार में बैठ कर कहीं भी चली जाती हैं.

वह व्यक्ति उन को बड़ी आसानी से होटल के कमरे या किसी सुनसान फ्लैट में ले जाता है और वहां उस के साथ बलात्कार करता है. बलात्कार के बाद लड़कियां वहां से बड़ी आसानी से निकल भी आती हैं. 3-4 दिनों तक  उन्हें अपने साथ हुए बलात्कार से पीड़ा या मानसिक अवसाद नहीं होता, लेकिन फिर जैसे अचानक ही वे किसी सपने से जागती हैं और बिलबिलाती हुई बलात्कार का केस दर्ज करवाने पुलिस थाने पहुंच जाती हैं.

लड़कियां केवल इस हद तक ही भोली नहीं होती हैं. वे किसी भी अनजान लड़के की बातों पर विश्वास कर लेती हैं और उस के साथ अकेले जीवन गुजारने के लिए तैयार हो जाती हैं. लड़कों की मीठीमीठी बातों में आ कर वे अपने शरीर को भी उन्हें समर्पित कर देती हैं. दोचार साल लड़के के साथ रहने पर उन्हें अचानक लगता है कि लड़का अब उन से शादी करने वाला नहीं है, तो वे पुलिस थाने पहुंच कर उस लड़के के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा देती हैं.

सच, आज लड़कियां क्या इतनी भोली हैं कि उन्हें यह तक समझ नहीं आता कि जिस लड़के को बिना शादी के ही मालपुआ खाने को मिल रहा हो और जिस मालपुए को जूठा कर के वह फेंक चुका है, वह उस जमीन पर गिरे मैले मालपुए को दोबारा उठा कर क्यों खाएगा.

मैं तो ऐसी लड़कियों का बहुत कायल हूं, मैं उन की बुद्धिमता की दाद देता हूं जो मांबाप की बातों को तो नहीं मानतीं, लेकिन किसी अनजान लड़के की बातों में बड़ी आसानी से आ जाती हैं. हाय रे, आज की लड़कियों का भोलापन.

लड़कियां इतनी भोली होती हैं कि वे अनजान या अपने साथ पढ़ने वाले लड़कों की बातों में तो आ जाती हैं, लेकिन अपने मांबाप की बातों में कभी नहीं आतीं. जवान होने पर वे उन का कहना नहीं मानतीं, उन की सभी नसीहतें उन के कानों में जूं की तरह रेंग जाती हैं और वे अपनी चाल चलती रहती हैं. वे अपने लिए कोई भी टुटपुंजिया, झोंपड़पट्टी में रहने वाला टेढ़ामेढ़ा, बेरोजगार लड़का पसंद कर लेती हैं, लेकिन मांबाप द्वारा चुना गया अच्छा, पढ़ालिखा, नौकरीशुदा, संभ्रांत घरपरिवार का लड़का उन्हें पसंद नहीं आता. इस में उन का भोलापन ही झलकता है, वरना मांबाप द्वारा पसंद किए गए लड़के के साथ शादी कर के हंसीखुशी जीवन न गुजारतीं. फिर उन को किसी लड़के के साथ कुछ सालों तक बिना शादी के रहने के बाद बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराने की नौबत नहीं आती.

आजकल की लड़कियों को तब तक अक्ल नहीं आती, जब तक कोई लड़का उन के शरीर को पके आम की तरह पूरी तरह चूस कर उस से रस नहीं निचोड़ लेता. जब लड़का उस को छोड़ कर किसी दूसरी लड़की को अपने प्रेमजाल में फंसाने के लिए आतुर दिखता है, तब वे इतने भोलेपन से भोलीभाली बन कर जवाब देती हैं कि आश्चर्य होता है कि इतनी पढ़ीलिखी और नौकरीशुदा लड़की इतनी भोली भी हो सकती है कि कोई भी लड़का उसे बहलाफुसला कर, शादी का झांका दे कर उस के साथ 4 साल तक लगातार बलात्कार करता रहता है.

हाय रे, मासूम लड़कियो, इतने सालों तक कोई लड़का तुम्हारे शरीर से खेल रहा था, लेकिन तुम्हें पता नहीं चल पाया कि वह तुम्हारे साथ बलात्कार कर रहा है.

अगर शादी करने के लिए ही लड़की उस लड़के के साथ रहने को राजी हुई थी तो पहले शादी क्यों नहीं कर ली थी. बिना शादी के वह लड़के के साथ रहने के लिए क्यों राजी हो गई थी.

एक बार शादी कर लेती, तब वह उस के साथ रहने और अपने शरीर को सौंपने के लिए राजी होती. लेकिन क्या किया जाए, लड़कियां होती ही इतनी भोली हैं कि उन्हें जवानी में अच्छाबुरा कुछ नहीं सूझता और वे हर काम करने को तैयार हो जाती हैं जिसे करने के लिए उन्हें मना किया जाता है.

वे खुलेआम चिडि़यों को दाना चुगाती रहती हैं और जब चिडि़यां उड़ जाती हैं तब उन के दाना चुगने की शिकायत करती हैं. ऐसे भोलेपन का कौन नहीं लाभ उठाना चाहेगा. यह तो मानना पड़ेगा कि लड़कियों के मुकाबले लड़के ज्यादा होशियार होते हैं, तभी तो वे लड़कियों के भोलेपन का फायदा उठाते हैं. लड़कियां भोली न होतीं तो क्या अपने घर से अपनी मां के जेवर और बाप की पूरी कमाई ले कर लड़के के साथ रफूचक्कर हो जातीं.

लड़के तो कभी अपने घर से कोई मालमत्ता ले कर उड़नछू नहीं होते. वे लड़की के साथसाथ उस के पैसे से भी मौज उड़ाते हैं और जब मालमत्ता खत्म हो जाता है तो लड़की उन के लिए बासी फूल की तरह हो जाती है और तब लड़के की आंखें उस से फिर जाती हैं. उस की आंखों में कोई और मालदार लड़की आ कर बस जाती है. तब लूटी गई लड़की की अक्ल पर पड़ा पत्थर अचानक ही हट जाता है. तब भारतीय दंड संहिता की सारी धाराएं उसे याद आती हैं और वह लड़के के खिलाफ सारे हथियार उठा कर खड़ी हो जाती है. वह लड़का जो उसे दुनिया का सब से प्यारा इंसान लगता था, अचानक अब उसे वह बद से बदतर लगने लगता है.

लड़कियां अगर जीवनभर भोली बनी रहीं तो पुलिस का काम आसान हो जाए. उन के क्षेत्र में होने वाली बलात्कार की घटनाएं समाप्त हो जाएंगी, क्योंकि तब कोई लड़की बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाने के लिए थाने नहीं जाएगी. कई साल तक लड़के के साथ बिना शादी के रहने पर भी उसे शादी का खयाल तक नहीं आएगा. जब लड़की शादी ही नहीं करना चाहेगी तो फिर उस के साथ बलात्कार होने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

रही बात दूसरी लड़कियों की जो बिना कुछ सोचेविचारे लड़कों के साथ, रात हो या दिन, कहीं भी चल देती हैं, पढ़लिख कर भी उन की बुद्धि पर पत्थर पड़े रहते हैं तो उन का भला कोई नहीं कर सकता.

‘टीटू अंबानी’ फेम तुशार पांडे ने फिल्म को लेकर कही बड़ी बात, पढ़ें इंटरव्यू

दिल्ली में पले बढ़ें तुशार पांडे स्कूल दिनों से ही हर तरह की सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लेते रहे हैं.फिर एक वक्त वह आया, जब उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में प्रवेश लेकर अभिनय की बारीकियां सीखी. पर उन्हें लगा कि अभी भी कुछ सीखना बाकी है, तब वह ‘लंदन इंटरनेशनल स्कूल आफ परफार्मिंग आर्ट्स..’’चले गए. कुछ समय लंदन व यूरोप में रंगमंच पर काम करने बाद वह भारत वापस आए. भारत वापस आते ही तुषार पांडे ने सबसे पहले दिल्ली के ‘राष्ट्रीय’ नाट्य विद्यालय’ में अभिनय का प्रशिक्षण देना शुरू किया.उसके बाद वह फिल्मों से जुड़ने के मसकद से मुंबई आ गए. मुंबई में उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘बियांड’में अभिनय कर कुछ इंटरनेशनल अवार्ड अपनी झोली में कर लिए. उसके बाद ‘फैंटम’  के अलावा ‘पिंक’ व ‘हम चार’ में छोटे छोटे किरदार निभाकर अपनी अभिनय प्रतिभा से लोगों को आश्चर्यचकित करते रहे. फिर उन्हें फिल्म ‘छिछोर’ में सुशांत सिंह राजपूत के दोस्त का किरदार निभाने का अवसर मिला,जिससे उनकी पहचान बनी. ‘छिछोरे’ के बाद एम एक्स प्लेअर पर प्रसारित वेब सीरीज ‘‘आश्रम’’ में सत्ती का किरदार निभाकर उन्होंने स्टारडम हासिल कर लिया. इन दिनों वह फिल्म ‘‘टीटू अंबानी’’ को लेकर चर्चा में हैं.

प्रस्तुत है तुशार पांडे संग हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…

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आपकी परवरिश अकादमिक परिवार में हुई है.तो फिर आपको अभिनय का चस्का कैसे लगा?

माना कि मेरी मां शिक्षक है. मेरी बहने भी शिक्षक हैं. तो मेरा पूरा परिवार अकादमिक है. मगर हुआ यह है कि स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ मेरा रूझान हर तरह की गतिविधि की तरफ रही है. फिर चाहे वह नृत्य हो,पेटिंग हो या क्रिकेट हो या फुटबाल हो. मतलब कुछ भी हो.सब कुछ करता रहता था.हमारे स्कूल में  सारी एक्टीविटीज हुआ करती थी, जिनमें हिस्सा लेने के लिए हमें स्कूल के शिक्षक प्रोत्साहित भी किया करते थे. मैं हर एक्टीविटी में हिस्सा लिया करता था, पर कभी यह नहीं सोचा कि मुझे डांसर बनना है या मुझे क्रिकेटर बनना है.ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई के दौरान इंजीनियरिंग मेरा विषय था,पर मैंने कभी भी इंजीनियिरंग की परीक्षा नहीं दी. मुझे कभी लगा नहीं कि इंजीनियिरंग में मेरी कोई रूचि है. मेरे इस विचार का मेरे माता पिता ने भी समर्थन किया.कहने का अर्थ यह कि कहीं न कहीं मुझे लगा कि यह चीज मेरे लिए वर्कआउट कर रही है, वह मैं करता रहा.मैने अंग्रेजी ऑनर्स से कालेज की पढ़ाई पूरी की. उसके बाद मेरे दिमाग में अभिनय की बात आयी और मैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ से जुड़ गया.जब दूसरे विषय का सेशन खत्म होने वाला था, तो मेरे दिमाग में आया कि सवा साल में एनएसडी की मेरी पढ़ाई पूरी हो जाएगी. लेकिन अभिनय तो बहुत गूढ़ विषय है.

इसमें तो बहुत परखने की जरुरत है. इस सोच के साथ मैने’ राष्ट्रीय स्कॉलरशिप के लिए आवेदन किया. वह भी मिल गया.तो एनएसडी के बाद मैं लंदन चला गया. वहां लंदन इंटरनेशनल स्कूल आफ परफार्मिंग आर्ट्स’ में दो वर्ष की पढ़ाई की.

तो अब तक कालेज मे थिएटर मे काम करने, एनएसडी और लंदन की अभिनय की ट्रेनिंग मिलाकर अभिनय के क्षेत्र में मैं आठ वर्ष काम कर चुका था. तब मुझे लगा कि अब मैं परफार्म करने को तैयार हॅूं. खैर, कुछ दिन मैंने लंदन में रहकर अभिनय जगत में काम किया. उसके बाद मैं भारत वापस आ गया.

एनएसडी और लंदन इंटरनेशनल स्कूल आफ परफार्मिंग आर्ट्स की पढ़ाई में क्या अंतर है. और आप कलाकार के तौर पर किस तरह से विकसित होते हैं?

एनएसडी की ट्रेनिंग में सारी हिंदुस्तानी कला की चीजों को लेकर दी जाती है.यहां इतना कुछ सिखाया जाता है कि हर शैली को लेकर आपको काफी ज्यादा जानकारी मिल जाती है. मगर मैं लंदन एक खास शैली की पढ़ाई करने के लिए गया था. मैं थिएटर निर्देशक पिकाक फ्रेंच की शैली पढ़ेना चाहता था.तो लंदन में मैंने एक खास शैली पर स्पेशलाइजेशन किया.

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एनएसडी से निकल कलाकार मैथड एक्टिंग को महत्व देते हैं.जबकि हिंदी फिल्म उद्योग में मैथड एक्टिंग काम नही आती.क्या इस तरह का आपका भी कोई अनुभव रहा?

देखिए, एनएसडी की ट्रेनिंग के बाद मैंने लंदन जाकर एक खास शैली पर स्पेशलाइजेशन किया, हो सकता कि एनएसडी से निकल कुछ कलाकार उसी शैली को अपनाते हों. मगर मैंने दूसरी शैली में दक्षता हासिल की है, इसलिए मुझे मैथड एक्टिंग को अपनाने की जरुरत नही पड़ती.मैं अपना एक अलग रास्ता अपनाता हॅूं,जो कि मैथड एक्टिंग नही है.

आपको थिएटर निर्देशक पिकाक फ्रेंच में क्या खास बात नजर आयी?

मैंने उनके साथ काम नहीं किया.मैने उनकी शैली पर काम किया. उनकी अपनी एक्टिंग की एक अलग स्टाइल है. इस शैली में बहुत ज्यादा शरीर पर काम होता है.

इसमें शरीर पर काम करने के साथ साथ अपनी मनः स्थिति को समझकर किरदार में सजयालना होता है.वास्तव में इस शैली में आपके अंदर क्या चल रहा है और आप बाहर क्या दिखा रहे हैं,इन दोनों पर काम करना पड़ता है. इसके अलावा बहुत सारा काम मास्क के माध्यम से होता है.यह एक काफी विस्तृत शैली है,जिसे भारतीय कलाकारों ने ज्यादा उपयोग नहीं किया है. मुझे पता है कि अब दो तीन लोग भारत से वहां पर प-सजय़ने गए हैं.मैं देख पा रहा हॅूं कि लंदन से एक्टिंग की. ट्रेनिंग लेकर आए लोगो को फिल्मों में बहुत ज्यादा अवसर नही मिले.

आपके अनुभव क्या रहे?

देखिए,पहली बात तो यह है कि मैं लंदन पढ़ने यह सोचकर नही गया था कि इससे मुझे बहुत ज्यादा काम मिल जाएगा. दूसरी बात मैंने योजना नहीं बनायी थी कि मुझे पांच वर्षों में या दस वर्षों में कितना क्या करना है. मेरी सोच ऐसी नही है कि डिग्री हाथ में आ गयी, तो नौकरी मिल जाएगी. जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि एनएसडी के बाद मुझे लगा था कि मुझे अभी अभिनय की और ट्रेनिंग की जरुरत है, इसलिए मैं लंदन पढ़ने गया था. अब काम करते हुए मुझे पता है कि मैं किस ट्रेनिंग का कितना उपयोग कर पा रहा हूं.अब दूसरों की क्या परिस्थिति या क्या सोच रही, पता नहीं. ट्रेनिंग से आपके अंदर क्षमता विकसित होती है,उसका उपयोग किस तरह करना है, यह तो आप पर निर्भर है.

आपने थिएटर भी किया है.थिएटर में आपके किन नाटकों को ज्यादा पसंद किया गया?

मैंने उज्बेकिस्तान के थिएटर निर्देशक के साथ शेक्सपिअर के नाटक ‘‘लायर किंग’’ में मैंने एडमैन नामक विलेन का किरदार निभाया.जिसे काफी शोहरत मिली.

इसके बाद मैंने राम गोपाल बजाज के निर्देशन में ‘चल डमरू बाजे’ किया, जिसे काफी शोहरत मिली. मैंने लंदन में एक नाटक ‘शिप आफ सैंड’ किया था, जिसे हमने एटनबरा फेस्टिवल में परफार्म कर जबरदस्त शोहरत बटोरी. मैं अभी भी किसी न किसी रूप में थिएटर से जुड़ा रहता हॅूं. मैं कभी कभी एनएसडी में पढ़ाने जाता हूं.

मुंबई में ‘ड्रामा स्कूल आफ मुंबई ’ है. जो कि आठ वर्षों से चल रहा है. पहले मैं इसे विकसित करने के मदद किया करता था.अब मैं इस स्कूल के बोर्ड आफ डायरेक्टर में हॅूं.यह कैसे आगे ब-सजय़े इस पर काम करता रहता हॅूं.मतलब मैं खुद को किसी न किसी रूप में थिएटर से जोड़कर रखने का प्रयास करता रहता हॅूं. मैंने थिएटर को अलविदा नही कहा है.

आप लंदन व यूरोप में काम कर रहे थे,तो फिर भारत वापस आने की क्या वजह रही?

इस पर मैंने काफी विचार किया. मेरी समझ में आया कि जिस तरह के किरदार निभाने के और जिस तरह का विविधतापूर्ण काम करने का अवसर मु-हजये भारत में मिलेगा, वह मुझे लंदन या यूरोप में नहीं मिल सकता. अगर आप हॉलीवुड या विदेशी फिल्मों की बात करें, तो इन फिल्मों में एशियन कलाकारों को लेकर एक सोच बनी हुई है,जो कि धीरे धीरे टूट रही है,पर अभी तक टूटी नहीं है. मुझे भारतीय फिल्मों में जिस तरह के विविधतापूर्ण किरदार निभाने के अवसर मिल रहे हैं या आगे भी मिल सकते हैं, वह वहां संभव नहीं था. मुझे पैसे की बजाय कला व काम पर खुद को फोकश करना था. मैं महज यह नहीं सुनना चाहता था कि तुशार लंदन में रहता है.

लंदन से वापस मुंबई, भारत आने के बाद किस तरह का संघर्ष रहा?

लंदन से वापस मैं दिल्ली आया था.दिल्ली में कुछ समय तक मैने एनएसडी में प-सजय़ाया.उसके बाद मैंने मुंबई फिल्म नगरी की तरफ रूख किया. यहां पहुंचने के बाद भी मैंने इंतजार किया. कुछ भी काम आया और उसे स्वीकार कर लो, की नीति नहीं अपनायी. मुझे बिना संघर्ष किए एक अमरीकन निर्माता की फिल्म ‘बियांड’ मिली,जो कि कांस इंटरनेशनल फेस्टिवल सहित कई फेस्टिवल में सराही गयी. यह 2015-2016 की बात है.

रोम के फेस्टिवल में मु-हजये इस फिल्म के लिए पुरस्कार मिला.तो दूसरी तरफ मआॅडीषन दे रहा था. मैं पहले कहानी सुनता था,कहानी पसंद न आने पर मना करता था. मेरा मानना है कि कहानी पढ़कर यदि आप खुद खुश नहीं होंगे, तो अपने अभिनय से दूसरों को भी खुश नहीं कर सकते.

ऑडीशन से ही ‘छिछोरे’ मिली थी. अब ‘छिछोरे’ और ‘आश्रम’ के बाद काफी सचेत होकर फिल्में चुन रहा हूं. ‘आश्रम’ के बाद मेरे पास तीन फिल्में आयी और तीनों बहुत ही अलग तरह की फिल्में हैं.मुद्दा सिर्फ इतना रहा कि जब तक मैं खुद कुछ नया करने के लिए अपने आपकों ‘पुश’ नहीं करुंगा, तब तक नया कुछ नहीं होगा. इंडस्ट्री तो आपको वही पुराना थमाते रहेगी.

2015 से ‘छिछोरे’ तक संघर्ष रहा.पर मैं बेकार नहीं था.मैं एक नाटक स्कूल में पढ़ा रहा था.कुछ नाटक किए.कुछ नाटकों का निर्देषन भी किया. मैं अभी भी अपनी तरफ से कुछ न कुछ करता रहता हॅूं. पर आप यह मानते हैं कि बॉलीवुड में आप पहला जो किरदार निभाते हैं,वह आपकी छाप बन जाती है.ऐसे में ‘छिछोरे’ में दोस्त का किरदार निभाना..?

यह कास्र्टिग डायरेक्टर व फिल्म के निर्देशक की वजह से हुआ. क्योंकि जब मैंने इसका ऑडीशन दिया था, तो मैंने उनसे कहा था कि मुझे कहानी पढ़नी है. उस वक्त मैं दो सप्ताह के लिए सिक्किम में एनएसडी की तरफ से एक्टिंग पढ़ाने गया था.

फिल्म के निर्देशक ने मुझे वहां पर स्क्रिप्ट भेज दी थी.मैने स्क्रिप्ट पढ़कर समझा कि यह दोस्त का किरदार नहीं है.इसकी भी अपनी कहानी है. निर्देशक ने भी मुझसे कहा था कि यह फिल्म छह लड़कों पर है.इस किरदार की अपनी अलग यात्रा है. इसलिए लोग इससे रिलेट करेंगे.यह सोच गलत है कि फिल्म में सिर्फ हीरो ही नजर आता है.अगर आप अच्छा काम करेंगे,तो छोटे किरदार में भी अपनी अलग पहचान बना सकते हैं.कहानी या पटकथा में आपके किरदार के चलते कुछ बदलाव आ रहा है,तो आपका किरदार महत्वपूर्ण हो जाता है.

‘‘आश्रम’’ में सत्ती का किरदार काफी लोकप्रिय हुआ. दूसरे किरदार आगे बढ़े पर सत्ती का किरदार आगे नहीं बढ़ा.क्या आपका निर्णय था कि इससे आगे नहीं करना है?

जब मैंने ‘आश्रम’में सत्ती का किरदार निभाना स्वीकार किया था, तब मुझे पता था कि मेरा किरदार कहां तक जाएगा. मुझे पता था कि सत्ती की मौत कब होगी. उसकी मौत का बहुत बड़ा कारण था. किरदार का जो ग्राफ होता है कि वह कहां से कहां

तक गया, वही दर्शकों पर छाप छोड़ता है. कई किरदार होते हैं,जो कि वेब सीरीज या सीरियल में चलते रहते हैं,पर उनके साथ दर्शक का जुड़ाव नहीं होता है.आश्रम

की पटकथा पढ़कर मैं बहुत एक्साइटेड हो गया था. आपको भी पता है कि पहले दो सीजन एक साथ फिल्माए गए थे.सत्ती के साथ जो भी घटनाएं होती हैं,उन्हें परदे पर अभिनय से साकार करना आसान नहीं है.मेरे लिए यही चुनौती थी कि मेरे किरदार को देखकर लोग खुद को जुड़ा हुआ पाएं, न कि उस पर हॅंसे.

सत्ती के किरदार को निभाने के लिए आपको अपनी तरफ से किस तरह की तैयारियां करनी पड़ी थीं?

जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि मैंने वह तकनिक सीखी है कि अपनी स्वतः की मनः स्थिति और हम जो कुछ बाहर दिखा रहे हैं,उसे सम-हजय सके.देखिए मैं तो उत्तर भारत से हूं,फिर भी सत्ती के किरदार को निभाने के लिए मैंने सबसे पहले हरियाणवी भाषा पर काम किया.इसके लिए मैंने बाकायदा कोचिंग ली.मैं यह नहीं चाहता था कि देखने वाले को अहसास हो कि सत्ती हरियाणा से नही है. दूसरी बात मैं हमेशा यह याद रखता हॅंू कि यह सीन मेरा है. मगर यदि मेरा सीन नही है, तो भी उसे कहीं न कहीं मैं सपोर्ट कर रहा हॅूं. इसलिए मैं स्क्रिप्ट को एक नहीं कई बार पढ़ता हॅूं. यदि आप हर सीन को अपना सीन समझेंगे, तो सब कुछ बेकार हो जाएगा.‘आश्रम’ में सत्ती बहुत ही ज्यादा प्रोमीनेंट किरदार है और नहीं भी है.तो मेरी यह अप्रोच है कि किस सीन में मैं अपनी तरफ से कितना इफर्ट डालूं.

हकीकत में तैयारी करना आवष्यक था. मुझे आश्रमके चलते अपने उपर काफी काम करने का अवसर मिला.फिर रीयल लोकेशन पर शूटिंग करने के अपने फायदे होते हैं.

इसी तरह मैने आने वाली फिल्म ‘‘टीटू अंबानी’’ में भी अपनी तरफ से कुछ इनपुट डाले हैं.

फिल्म ‘‘टीटू अंबानी’’ से जुड़ने का फैसला किस आधार पर किया?

-देखिए, मेरे पास कास्टिंग डायरेक्टर का फोन आया था कि एक फिल्मकार मुझे अपनी फिल्म में लेना चाहते हैं.मैने कहा कि पहले स्क्रिप्ट भेज दीजिए. पसंद अएगी, तो करुंगा.उसने कहा कि निर्देषक खुद मिलकर सुनाना चाहते हैं. मैने कहा कि ठीक है. फिर निर्देशक रोहित राज गोयल हमसे मिले. हमने कहानी सुनी.मैने कहा कि आपने जो सुनाया,वह काफी रोचक लग रहा है. मगर आप मुझे स्क्रिप्ट दे दें,  मैं इसे एक बार पढ़ना चाहॅूंगा. पढ़ने पर ही सब कुछ सही ढंग से समझ में आता है.

मैंने घर पर पटकथा पढ़ा. रात भर सोचा तो समझ में आया कि मुझे इसमें कलाकार के तौर पर बहुत कुछ करने का अवसर मिलेगा. दूसरे दिन मैने रोहित को बता दिया कि मैं इसे करने में रूचि रखता हॅूं. धीरे धीरे सह कलाकारों के नाम पता चलने लगे, तो मेरा एक्साइटमेंट बढ़ने लगा.

आपके अनुसार फिल्म ‘‘टीटू अंबानी’’ किस तरह की फिल्म है?

यह टीटू की कहानी है, जिसे अंबानी बनना है. उसके लिए अंबानी का मतलब सफलता और ऐसी सफलता की हर कोई उसकी बात माने.पर उसे नही पता कि बनना कैसे है? वह समझना चाहता है कि सफलता, खुशी व जिम्मेदारी के क्या मायने हैं. सफलता सिर्फ पैसा कमाना नही है.जिम्मेदारी तो एक ब्वॉय के मैन बनने की बात है.यही टूटी की कहानी है.फिल्म शुरू होने पर टीटू एक लड़का है और जब फिल्म खत्म होती है,तो टीटू एक आदमी बन चुका होता है.उसे सफलता मिलती है,पर उसके लिए सफलता के मायने बदल चुके होेते हैं.यह एक प्रेरणादायक कहानी है.

फिल्म टीटू अंबानीमें टीटू के साथ उसकी पत्नी मौसमी है.ऐसे में पति व पत्नी के बीच जो कुछ खोनेे व पाने की कश्मकश होती है, आपसी प्रतिस्पर्धा होती है.वह इस फिल्म में कैसे है?

यह आधुनिक युवा दंपति की कहानी है, जहां लड़का व लड़की एक दूसरे पर निर्भर हैं भी और नहीं भी है.पहले मर्द नौकरी करता था और लड़की घर संभालती थी.मगर अब दोनों यह काम करते हैं. अब पूरे विश्व में जिम्मेदारी के मायने बदल गए हैं.अब महिला को संभालना मर्द की जिम्मेदारी नहीं रही.लेकिनॉ वर्तमान समय में पति व पत्नी के बीच जो कश्मकश आ रही है,उसे एकदम यथार्थ के धरातल पर यह फिल्म पेश करती है.इसके अलावा इस फिल्म में शादी के बाद लड़की की अपने माता पिता के प्रति जिम्मेदारी खत्म नही होती.इसमें सवाल उठाया गया है कि क्या शादी के बाद पत्नी की जिम्मेदारी सिर्फ पति का साथ देना ही होता है.यह सारी बातें भी टीटू की सफलता के साथ जुड़ती हैं और उसे एक नई दिशा में ले जाती है और उसे समझाती है कि सफलता को पूरे परिवार के साथ अहसास करना कितना आवश्यक है. खुशी और संतुलन साथ में रहने और साथ में पार करने में ही है.

आप जब दूसरे कलाकारों को अभिनय पढ़ाते हैं और जब आप खुद अभिनय करते हैं, तो कहां आपको संतुलन नवजयट मिलती है?

अभिनय ऐसी स्किल है, जिसे करते हुए आप खुद को समझते है. हम समझाते हैं, तब भी हम कुछ न कुछ सीखते हैं.जब हम बतौर शिक्षक, कलाकार को कुछ करने का टाक्स देते हैं,उस वक्त उन्हे ऑब्जर्व करते हुए भी हम सीखते हैं. कलाकार के तौर हमें सदैव देने और दूसरों से ग्रहण करने के लिए तैयार रहना चाहिए.

Anupamaa: पाखी के हंगामे के बाद अनुज-अनुपमा पहुंचे जंगल, देखें Video

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ फेम गौरव खन्ना और रुपाली गांगुली सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं. अनुज-अनुपमा आए दिन फैंस के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करते रहते हैं. शो में इन दिनों  दिखाया जा रहा है कि पाखी ने शाह हाउस में खूब हंगामा किया है. उसने वनराज-काव्या और अनुपमा-अनुज के रिश्ते पर सवाल किये है. इसी बीच अनुज- अनुपमा जंगल पहुंच गये हैं. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला.

पाखी के सवाल ने शाह परिवार को हिलाकर रख दिया है. हालांकि अनुपमा को इससे फर्क नहीं पड़ता और वह घर का ड्रामा छोड़कर अनुज के साथ रोमांस करने निकल गई है.

 

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अनुज अनुपमा के साथ मान डे मना रही है. रुपाली गांगुली ने सेशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर की है. इस वीडियो में रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना फुल मस्ती के मूड में नजर आ रहे हैं. फैंस को अनुज और अनुपमा का ये अंदाज बहुत पसंद आ रहा है.

 

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शो के लेटेस्ट एपिसोड में आप देखेंगे कि पाखी सभी के सामने वनराज के साथ-साथ अनुपमा, समर और पारितोष  के लव-अफेयर को लेकर खूब ताना मारेगी. ऐसे में पारितोष उसे समझाएगा और साफ-साफ कहेगा कि मिडिल क्लास फैमिली में लोगों के गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड नहीं होते है. पाखी कहेगी कि वह खुद अपनी गर्लफ्रेंड किंजल के साथ भागकर शादी की थी.

 

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तो दूसरी तरफ राखी दवे आकर कहेगी कि उसने अपने परिवार के लोगों की असलियत सामने लाने की हिम्मत दिखाई. ऐसे में किंजल का गुस्सा सातवे आसमान पर होगा.

वह राखी दवे को घर से जाने के लिए कहेगी. किंजल की हालत देखकर राखी दवे तुरंत वहां से निकल जाएगी. तो दूसरी ओर अधिक पाखी को फोन करके कहेगा कि अपनी जिंदगी के फैसले लेने का हक उसे है और ऐसे में वह पीछे ना हटे.

निष्क्रियता की हद पार

जनता को सरकार से न न्याय मिलता है न सही शासन. जनता हायहाय करती रहती है. वहीं यह नहीं सोचिए कि आज सरकारी कर्मचारी खुद अपनी सरकार के निकम्मेपन से परेशान नहीं हैं. दिल्ली में इंडिया गेट के निकट वरिष्ठ सरकारी अफसरों की एक कालोनी है- पंडारा रोड कालोनी. इस के निर्माण में कालोनी वालों को छोटी मार्केट देने के लिए एक पंडारा रोड मार्केट बनाई गई थी जिस में 10-15 दुकानें हैं. अब इन दुकानों में पंडारा रोड कालोनी वालों के लिए ग्रोसरी की दुकानों की जगह भव्य रैस्ट्रों खुल गए हैं जो काफी किफायती दामों पर मिर्चमसालेदार खाना परोसने के लिए प्रसिद्ध हो गए हैं.

इसी कालोनी से सटा एक पब्लिक स्कूल है. शायद यह जगह नियत की गई होगी कि यहां कालोनी में रहने वालों के बच्चे आया करेंगे. लेकिन आज नेबरहुड स्कूल की तरह यहां पर दूरदूर से विद्यार्थी आते हैं क्योंकि यह दिल्ली का नामी स्कूल है.

अब इस कालोनी के निवासी गुहार लगा रहे हैं कि मार्केट और स्कूल में आने वाले लोगों की गाडिय़ों व भीड़ से न उन्हें दिन में चैन है न रात को. दिनभर कालोनी की गलियों में बच्चों को लेने आई गाडिय़ां ड्राइवरों के साथ खड़ी रहती हैं और देररात तक रैस्ट्रां चलते रहते हैं जहां शराब भी परोसी जाती है तो हंगामे भी होते हैं.

ऊंचे पदों पर बैठे अफसर कुछ नहीं कर पाते. देश की सरकार का कोई अफसर ऐसा न होगा जो कभी न कभी इस कालोनी के छोटेबड़े मकानों में न रहा हो और उस ने स्कूल और मार्केट को न झेला हो. पर कुछ करने की बात होती है तो सब ढीले पड़ जाते हैं.

यह स्कूल सिर्फ कालोनी वालों के लिए क्यों नहीं रहा और यह मार्केट सिर्फ कालोनी वालों के लिए क्यों नहीं रही, इस का जवाब सरकारी अफसर भी नहीं दे सकते क्योंकि उन्हीं के पुराने भाईबंधुओं ने किसी जमाने में ढील दी होगी कि इन जगहों का इस्तेमाल दूसरे कामों में किया जा सकता है.

जो सरकारी अफसर अपने इर्दगिर्द की बातों का ध्यान नहीं रख सकते उन से हम अपेक्षा करते हैं कि वे देश को ढंग से चला रहे होंगे. यह कालोनी आईएएस अफसरों के लिए है जो खुद को देश का स्टील फ्रेम कहते हैं पर यह असल में गला हुआ वह फ्रेम है जिस पर जंग लगी स्टील की परते हैं जो उखड़ रही हैं. यह फ्रेम जनता पर जुल्म होते देख सकता है, जुल्म कर सकता है, जनता को न्याय नहीं दिला सकता क्योंकि यह तो अपने घरों के आसपास का इलाका भी सुरक्षित नहीं रख सकता.

देश के राज्यों की राजधानियों में सरकारी कालोनियों का यही हाल है चाहे वे मंत्रियों की हों, विधायकों की हों, जजों की हों, अफसरों की हों या क्लास फोर कर्मचारियों की. दरअसल निकम्मेपन की संस्कृति हमारी रगरग में भरी है.

झटका: निशा के दरवाजे पर कौन था?

संगीता का हाथ पकड़ कर अजीब से अंदाज में मुसकरा रही अंजलि बहुमंजिली इमारत में प्रवेश कर गई. अपने फ्लैट का दरवाजा निशा ने खोला था. उस के बेहद सुंदर, मुसकराते चेहरे पर दृष्टि डालते ही संगीता के मन को तेज धक्का लगा.

झटका- भाग 1: निशा के दरवाजे पर कौन था?

विवेक को औफिस के लिए निकले 2 मिनट भी नहीं हुए थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उस की पत्नी संगीता ने बड़े थकेहारे अंदाज में फोन उठाया.

उस की ‘हैलो’ के जवाब में किसी स्त्री ने तेजतर्रार आवाज में कहा, ‘‘विवेक है क्या? फोन नहीं उठा रहा.’’

‘‘आप कौन बोल रही हैं?’’ उस स्त्री की चुभती आवाज ने संगीता की उदासी को चीर कर उस की आवाज में नापसंदगी के भाव पैदा किए.

‘‘तुम संगीता हो न?’’

‘‘हां, और आप?’’

‘‘मोटी भैंस, ज्यादा पूछताछ करने की आदत बंद कर,’’ उस स्त्री ने उसे डांट दिया.

‘‘इस तरह बदतमीजी से मेरे साथ बात करने का तुम्हें क्या अधिकार है?’’ मारे गुस्से के संगीता की आवाज कांप उठी.

‘‘मुझे अधिकार प्राप्त हैं क्योंकि मैं विवेक के दिल की रानी हूं,’’ वह किलसाने वाले अंदाज में हंसी.

‘‘शटअप,’’ संगीता का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया.

‘‘यू शटअप, मोटो,’’ एक बार वह फिर दिल जलाती हंसी हंसी और फिर फोन काट दिया.

‘‘बेवकूफ, पागल औरत,’’ बहुत परेशान और गुस्से में नजर आ रही संगीता ने जोर की आवाज के साथ फोन साइड में रखा.

‘‘भाभी, किस से झगड़ा कर रही हो?’’ संगीता की ननद अंजलि ने पीछे से सवाल पूछा, तो संगीता की आंखों में एकाएक आंसू उमड़ आए.

अंजलि ने संगीता को कंधों से पकड़ा, तो वह अपने ऊपर से पूरा नियंत्रण खो रोने लगी.

उसे सोफे पर बिठाने के बाद अंजलि उस के लिए पानी लाई. संगीता का रोना सुन कर उस के सासससुर भी बैठक में आ पहुंचे.

वे सब बड़ी मुश्किल से संगीता को चुप करा पाए. बारबार अटकते हुए फिर संगीता ने उन्हें फोन पर उस बददिमाग स्त्री से हुए वार्त्तालाप का ब्योरा दिया.

‘‘अगर विवेक ने इस औरत के साथ कोई गलत चक्कर चला रखा होगा, तो मैं अपनी जान दे दूंगी,’’ संगीता फिर से रोंआसी हो उठी.

‘‘मेरा बेटा ऐसी गलत हरकत नहीं कर सकता,’’ विवेक की मां आरती ने अपने बेटे के प्रति विश्वास व्यक्त किया.

‘‘भाभी, बिना सुबूत ऐसी बातों पर विश्वास कर अपने को परेशान मत करो,’’ अंजलि ने कोमल स्वर में उसे सलाह दी.

‘‘उस गधे ने अगर कोई ऐसी गलत हरकत करने की मूर्खता की, तो मैं लूंगा उस की खबर,’’ उस के ससुर कैलाशजी फौरन अपनी बहू के पक्ष में हो गए.

‘‘पापा, बिना आग के धुआं नहीं होता. वह लडक़ी बड़े कौन्फिडैंस से खुद को उन की प्रेमिका बता रही थी.’’

‘‘संगीता बेटा, तुम रोओ मत. हम जांच करेंगे पूरे मामले की.’’

‘‘मैं समय की मारी औरत हूं. पहले मैं ने अपना बच्चा खो दिया और अब उन्हें भी किसी ने मुझ से छीन लिया है,’’ इस बार संगीता अपनी सास की छाती से लगकर सुबकने लगी.

काफी समय लगा उन तीनों को उसे समझानेबुझाने में. फिर संगीता की कुछ देर को आंख लग गई और वे तीनों धीमी आवाज में इस नई समस्या पर विचारविमर्श करने लगे.

पिछले 2 महीनों से संगीता की बिगड़ी मानसिक स्थिति उन सभी के लिए चिंता का कारण बनी हुर्ई थी.

करीब 6 महीने तक गर्भवती रहने के बाद संगीता ने अपने बच्चे को खो दिया था. काफी कोशिशों के बावजूद डाक्टर गर्भपात होने को रोक नहीं पाए थे. कोविड की वजह से डाक्टर के पास न जाने के कारण उस ने कुछ लापरवाही भी बरती थी. 2 महीने भी पूरे नहीं हुए थे, उस ने तब ही विवाहित जीवन के आरंभिक समय को मौजमस्ती का हवाला दे कर गर्भपात कराने की इच्छा जताई थी. वह इतनी जल्दी मां नहीं बनना चाहती थी.

विवेक ने फौरन उस की इच्छा का जबरदस्त विरोध किया. दोनों के बीच इस विषय पर काफी तकरार भी हुई.

विवेक और उस के मातापिता दकियानूसी किस्म के थे और अभी भी गंडों/धागों में भरोसा रखते थे. वे बाबा की कृपा मानते थे उस बच्चे को. बड़े अनमन से अंदाज में संगीता बच्चे को अपनी कोख में रखने को तैयार हुई. शायद ज्यादा खुश न होने से उस की तबीयत कुछ ज्यादा ही ढीली रहती. उस की एक्सपोर्ट कंपनी की नौकरी भी छूट गई इस वजह से.

डाक्टर की देखभाल के बावजूद जब गर्भपात हो गया, तो संगीता जबरदस्त अपराधबोध और गहरी उदासी का शिकार हो गई.

‘मैं ने अपने बच्चे को जन्म देने से पहले ही अस्वीकार कर दिया, पहाड़ी वाले बाबा ने मुझे इसी बात की सजा दी है. अच्छी औरत नहीं हूं…’ ऐसी बातें मुंह से बारबार निकाल कर संगीता गहरे डिप्रैशन का शिकार हो गई. उन का परिवार हमेशा से गांव में रहा था और वहीं का रहनसहन अब भी अपनाए हुए था.

किसी के समझाने का उस पर कोई असर नहीं हुआ. रोने या मौन आंसू बहाने के अलावा वह कुछ न करती. दोबारा से नौकरी शुरू करने में उस ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखार्ई थी. घर में पैसे की थोड़ी दिक्कत भी हो गई थी.

वह खाना तो बेमन से खाती, पर उस की खुराक बढ़ गई. इस कारण उस का वजन तेजी से बढ़ा.

फोन पर उस स्त्री ने उसे ‘मोटी भैंस’ कहा, तो ये शब्द संगीता के दिल को तेज धक्का लगा गए.

नींद टूटने के बाद वह यंत्रचलित सी उठी और रसोई के पास लगे शीशे के सामने जा खड़ी हुई.

काफी लंबे समय के बाद उस दिन संगीता ने खुद को ध्यान से देखा. सचमुच ही उस का शरीर फूल कर बेडौल हो गया था. चेहरे का नूर पूरी तरह गायब था. आंखों के नीचे काले निशान भयानक से लग रहे थे. वह जानती थी कि उस की मां/दादियां इसी तरह की लगती थीं क्योंकि वे धूप में रहती थीं और गांव की गपों में  समय काटा करती थीं.

अपनी बदहाली देख कर एक बार उसे धक्का लगा, पर फिर उदासी के बादलों में घिर कर वह आंसू बहाने लगी.

‘‘मुझे जीना नहीं चाहिए… जिंदगी बहुत भारी बोझ बन गई है मेरे लिए,’’ ऐसा निराशाजनक, खतरनाक विचार पहली बार उस के मन में उठा और वह अपनी बेबसी पर रो पड़ी.

उस शाम विवेक की फैक्ट्री से लौटते ही शामत आ गई. अपने मातापिता व बहन के हाथों उसे गहन पूछताछ का शिकार बनना पड़ा. वे तीनों गुस्से में थे और बिना किसी ठोस सुबूत के ही उसे अवैध प्रेमसंबंध स्थापित करने का दोषी मान रहे थे.

आखिरकार वह बुरी तरह से चिढ़ कर चिल्ला उठा, ‘‘बेकार में मेरे पीछे मत पड़ो. मेरा किसी औरत से कोई गलत संबंध नहीं  है. मेरी चिता किसी को नहीं है, पर इस कारण मैं अपने चरित्र पर धब्बा नहीं लगा रहा हूं.’’ आखिरी वाक्य बोलते हुए विवेक ने संगीता को गुस्से से घूरा और फिर पैर पटकता शयनकक्ष में चला गया.

उस के यों फट पडऩे के कारण संगीता अचानक अपने को समय की मारी समझने लगी. उसे एहसास हुआ कि सचमुच वह अपने मर्द का ख़याल न रखने की दोषी थी. अपना मोटा शरीर इस पल उसे खुद को बड़ा खराब और शर्मिंदगी पैदा करने वाला लगा.

आरती और कैलाशजी ने अपने बेटे को निर्दोष मान लिया और कुछ देर संगीता को समझा कर अपने कमरे में चले गए.

रात में सोने के समय तक विवेक का मूड खराब बना रहा. अपने को असुरक्षित व परेशान महसूस कर रही संगीता उस से लिपट कर लेटी, पर उस ने किसी भी तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त न की.

‘‘आप मुझ से नाराज हो?’’ अपनी उपेक्षा से दुखी हो कर संगीता ने सवाल पूछा.

विवेक ने कोई जवाब नहीं दिया, तो संगीता ने फिर से अपना सवाल दोहराया.

‘‘मैं नाराज क्यों नहीं होऊंगा?’’ विवेक एकदम से चिड़ उठा, ‘‘सब घरवालों को मेरे पीछे पड़ा कर तुम्हें क्या मिला?’’

‘‘उस औरत की बातें सुन कर मैं बहुत परेशान हो गई थी,’’ संगीता ने सफाई दी.

‘‘कोई औरत तुम से फोन पर क्या कहती है, उस के लिए मैं जिम्मेदार नहीं.’’

‘‘मुझ से गलती हो गई,’’ संगीता रोंआसी हो गई.

‘‘तुम अपनेआप को संभालो, संगीता. बड़े ढीलेढाले अंदाज में जिंदगी जी रही हो तुम. अगर जल्दी अपने में बदलाव नहीं लाईं, तो बीमार पड़ जाओगी एक दिन.’’

विवेक की आंखों में अपने लिए गहरी चिंता के भाव देख कर संगीता के मन ने अजीब सी शांति महसूस की.

‘‘आप गुस्सा थूक दो, प्लीज,’’ संगीता उस की आंखों में झांकते हुए सहमे से अंदाज में मुसकराई.

विवेक ने उसे प्यार के साथ अपनी छाती से लगा लिया. मन ही मन अपनी जिंदगी को फिर से सही राह पर लाने का संकल्प ले कर संगीता जल्दी ही गहरी नींद में खो गई.

सचमुच अगले दिन से ही संगीता अपनी दिनचर्या में बदलाव लाई. वह जल्दी उठी. विवेक के लिए नाश्ता भी उसी ने तैयार किया. जल्दी नहा कर तैयार भी हुई. आदत न होने के कारण थक गई, पर फिर भी उस ने कुछ देर व्यायाम किया.

उस के इन प्रयासों को उस के सास, ससुर व अंजलि ने नोट भी किया.

संगीता खुद को काफी एनर्जी से भरा व खुश महसूस कर रही थी. लेकिन फिर उसी औरत का फोन दोपहर को आया और वह फिर से तनावग्रस्त हो गई.

‘‘तुम विवेक को आजाद कर दो, संगीता,’’ उसी स्त्री ने बिना भूमिका बांधे अपनी मांग उसे बता दी.

‘‘क्यों?’’ अपने गुस्से को काबू में रखते हुए संगीता ने एक शब्द का सवाल पूछा.

‘‘क्योंकि वह मेरे साथ खुश रहेगा.’’

‘‘तुम्हें यह गलतफहमी क्यों है कि वह मेरे साथ खुश नहीं है?’’

‘‘यह विवेक ही मुझ से रोज कहता है, मैडम. तुम उस की जिंदगी में ऐसा बोझ बन गई हो जिसे वह आगे बिलकुल नहीं ढोना चाहता.’’

‘‘कहां मिलती हो तुम उस से? कौन हो तुम?’’

पहले वह स्त्री खुल कर हंसी और फिर व्यंग्यभरे लहजे में बोली, ‘‘मोटो, मेरे बारे में पूछताछ न ही करो, तो बेहतर होगा. जिस दिन मैं तुम्हारे सामने आ गई, उस दिन शर्म के मारे जमीन में गड़ जाओगी तुम मेरी शानदार पर्सनैलिटी देख कर.’’

“पर्सनैलिटी का तो मुझे पता नहीं, पर तुम्हारे घटियापन के बारे में अंदाजा लगाना मेरे लिए मुश्किल नहीं है.”

संगीता का चुभता स्वर उस स्त्री को क्रोधित कर गया, ‘‘मेरे चालचलन पर उंगली मत उठाओ क्योंकि विवेक मुझे तुम से हजार गुणा ज्यादा चाहता है.’’

‘‘पागल औरत, ऐसे बेकार के सपने देखना बंद कर दो.’’

‘‘मोटी भैंस, सचाई का सामना करो और मेरे विवेक को आजाद कर दो.’’

‘‘विवेक का तुम से कोई संबंध नहीं है.’’

‘‘अच्छा,’’ वह गुस्से से भरी आवाज में बोली, ‘‘उस का मुझ से क्या संबंध है, इस की खबर आज शाम उस के कपड़ों से आ रही मेरे बदन की महक तुम्हें देगी.’’

सैलाब से पहले: क्या विनय दोषी साबित हुआ?

पूर्व कथा

अंधेरे कमरे में बैठे विनय को देख कर इंदु उस के पास आती है तो वह पुरू के बारे में पूछता है और इंदु से पुरू को साथ ले कर पुलिस स्टेशन जाने को कहता है.

इंदु के जाने पर विनय अतीत की यादों में खो जाता है कि पुरू और अरविंद की शादी के दिन सभी कितने खुश थे उन की जोड़ी को देख कर. इंदु ने लाख समझाया था कि लड़के वालों के बारे में तहकीकात तो कर लो पर विनय ने किसी की एक न चलने दी थी.

शादी के 4 दिन बाद पुरू के मायके आने पर इंदु उस के चेहरे की उदासी को भांप जाती है परंतु पूछने पर वह पुरू को कुछ नहीं बताती. विनय और इंदु को पुरू के मां बनने की खुशखबरी मिलती है. एक दिन पुरू के अकेले मायके आने पर सभी अरविंद के बारे में पूछते हैं तो वह कहती है कि ससुराल वाले उसे दहेज न लाने के लिए सताते हैं इसीलिए वह ससुराल छोड़ कर आई है. उस की बातें सुन कर सभी परेशान हो जाते हैं और विनय दुविधा में पड़ जाता है.

बहन को रोते देख वरुण पुलिस स्टेशन चलने को कहता तो विनय उन्हें समझाने का प्रयास करता है. अब आगे पढि़ए…

‘पापा, दीदी की हालत देखने के बाद भी आप को उन लोगों से बात करने की पड़ी है,’ वरुण उत्तेजित हो उठा, ‘अब तो उन लोगों से सीधे अदालत में ही बात होगी.’

आखिर इंदु और वरुण के आगे विनय को हथियार डाल देने पड़े. केदार भी शहर से बाहर था वरना उस से विचारविमर्श किया जा सकता था. आखिर वही हुआ जो न चाहते हुए भी करने के लिए विनय विवश थे.

पुलिस में एफ.आई.आर. दर्ज कराई गई. विनय, वरुण और इंदु के बयान… फिर पुरुष्णी के बयान के बाद तुरंत ही दीनानाथ, सुभद्रा और अरविंद सलाखों के पीछे पहुंच गए. मिलिंद अपने कालिज टूर पर बाहर गया हुआ था. घर में दूसरा कोई था ही नहीं, जो तुरंत उन लोगों के पक्ष में साथ देने अथवा सहायता के लिए खड़ा होता. रिश्तेदारी में बात फैलते देर ही कितनी लगती है. कौन दीनानाथजी के साथ खड़ा हुआ है कौन नहीं, अब विनय और इंदु को चिंता भी क्यों करनी थी?

‘इंस्पेक्टर साहब…इन की अच्छी खातिरदारी करिएगा,’ वरुण ने नथुने फुला कर जोश में कहा.

पुरू गर्भावस्था का सफर तय कर रही थी…इस अवस्था में भी पति ने…सोच कर इंस्पेक्टर ने अरविंद को खूब फटकारा था. अरविंद खामोश था… वरुण को गहरी निगाहों से ताकते हुए वह यों ही स्तब्ध खड़ा रहा.

सारे दृश्य चलचित्र की भांति दिमाग में घूम रहे थे कि इंदु की आवाज ने चौंका दिया.

सुबह 5 बजे इंदु नियमानुसार नहाधो कर स्नानघर से बाहर निकली तो विनय के कमरे से आहट पा कर वहां आ गई.

‘‘क्या…आप रातभर सोए नहीं. यों ही आरामकुरसी पर बैठेबैठे रात काट दी आप ने.’’

‘‘नहीं इंदु, कैसे सोता मैं…अपराधी को सजा मिले बिना अब सो भी नहीं सकूंगा…’’ विनय ने गहरी सांस खींचते हुए कहा, ‘‘नहाधो ली हो तो एक कप चाय बना दो. तुम से कुछ जरूरी बातें करनी हैं. और हां, पुरू और वरुण को भी जगा दो. चाहता हूं जो भी बात है एकसाथ मिलबैठ कर की जाए.’’

असमंजस के भाव क्षण भर के लिए इंदु के चेहरे पर उभरे कि ऐसी कौन सी बात होगी. फिर कुछ सोचती हुई वह रसोईघर में चली गई. कुछ ही देर बाद इंदु, पुरू और वरुण तीनों विनय के सामने बैठे हुए थे. व्यग्रता तथा चिंता के मिश्रित भाव उन के चेहरे पर आजा रहे थे…उन से अधिक उलझन विनय के चेहरे पर दिखाई दे रही थी. खुद को कुछ संयत करते हुए विनय बोले, ‘‘चाहे सौ अपराधी छूट जाएं पर एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए, यह तो मानते हो न तुम लोग.’’

तीनों ही अचंभित से एकदूसरे को देखने लगे…आखिर विनय कहना क्या चाहते हैं.

‘‘बोलो, हां या नहीं?’’ विनय का कड़क स्वर पुन: उभरा.

‘‘हां,’’ तीनों ने समवेत स्वर में उत्तर दिया.

‘‘तो आज हमें पुलिस थाने में चल कर दीनानाथजी, सुभद्रा और अरविंद तीनों के खिलाफ दर्ज कराई अपनी रिपोर्ट वापस लेनी है.’’

वरुण लगभग चिल्ला कर बोला, ‘‘पापा, आप होश में तो हैं.’’

‘‘1 मिनट वरुण, अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है.’’

विनय ने कठोरता से कहा तो वरुण शांत हो कर बैठ गया.

‘‘बेगुनाह होने के बावजूद 4 दिन तक जेल में बंद रह कर जो जिल्लत व अपमान उन तीनों ने सहा है उस की भरपाई तो हम चार जन्मों में भी नहीं कर पाएंगे पर हमारी वजह से उन की प्रतिष्ठा पर जो बदनुमा दाग लग चुका है उसे धुंधलाने के लिए जितने भी संभावित उपाय हैं…हमें करने ही होंगे.’’

क्षण भर की चुप्पी के बाद विनय फिर बोल उठे, ‘‘वास्तविक अपराधी को सजा अवश्य मिलनी चाहिए ऐसा मेरा मानना है. अब सजा क्या हो  यह पुरुष्णी तय करेगी क्योंकि पूरा मामला उसी से जुड़ा हुआ है,’’ कहते हुए विनय ने एक गहरी दृष्टि पुरुष्णी पर डाली जो यह सब सुन कर पत्ते की तरह कांपते हुए कातर निगाहों से देख रही थी.

‘‘इंदु, यह लो और पढ़ो,’’ कहते हुए विनय ने एक परचा इंदु की ओर बढ़ाया. आश्चर्य और उत्सुकता से वरुण भी मां के नजदीक खिसक आया व इंदु के साथसाथ परचे पर लिखा हुआ ध्यान से पढ़ने लगा. पर पुरू मूर्तवत बैठी रही क्योंकि उसे जरूरत ही क्या थी वह पढ़ने की. वह परचा तो उसी का लिखा हुआ था जो उस ने अपने प्रेमी अक्षय को लिखा था पर उस तक पहुंचा नहीं पाई थी.

‘‘प्रिय अक्षय, तुम ने जीवन भर वफा निभाने का वादा मांगा है न. यों 2 हिस्सों में बंट कर जीना मेरे लिए दूभर होता जा रहा है. अरविंद से छुटकारा पाए बिना मैं पूर्णरूपेण तुम्हारी कभी नहीं हो पाऊंगी. अरविंद से तलाक पाने और तुम्हारा जीवन भर का साथ पाने का बस, यही एक रास्ता मुझे दिखाई दे रहा है. पता नहीं तुम इस बात से क्यों असहमत हो…पर अब मैं बिलकुल चुप बैठने वाली नहीं हूं. एक बार चुप्पी साध कर तुम्हें खो चुकी हूं, अब दोबारा खोना नहीं चाहती. मैं ने तय कर लिया है कि मैं अपनी योजना को निभाने…’’

आगे के अक्षर इंदु को धुंधला गए, चक्कर आने लगा. माथा पकड़ कर वह वरुण का सहारा लेने लगी… परचा हाथ से छूट कर जमीन पर जा गिरा. इंदु अचेत सी वरुण के कंधे पर लुढ़क गई.

कुछ चेतना जगी तो सामने विनय, केदार और डाक्टर खड़े थे. धीरेधीरे सबकुछ स्पष्ट होता गया. वरुण माथा सहला रहा था और पुरू अपराधबोध से गठरी सी बंधी पैरों के पास बैठी सिसक रही थी.

आराम की सलाह व कुछ दवाइयां दे कर डाक्टर चले गए. इतने लोगों के कमरे में होने पर भी एक अजीब किस्म का गहन सन्नाटा छा गया था.

‘‘केदार, अब किस मुंह से माफी मांगूं तुझ से?’’ विनय के स्वर में टूट कर बिखरने का एहसास था.

‘‘विनय, माफी तुझे नहीं, पुरू को उन सब से मांगनी होगी जिनजिन का इस ने दिल दुखाया है. अरे, शादी के 2 माह बाद ही अरविंद ने मुझे अकेले में मिलने के लिए बुलाया था. तब उस ने बताया था कि पुरू हर वक्त मोबाइल पर किसी अक्षय नाम के लड़के से बात करती रहती है. अरविंद बहुत ही समझदार और धीरगंभीर किस्म का लड़का है. मैं उसे बचपन से ही जानता हूं…यों बेवजह वह पुरू पर शक करेगा नहीं. यह भी मैं अच्छी तरह जानता था, फिर भी मैं ने उसे तसल्ली दी थी कि पुरू नए जमाने की लड़की है. कोई पुराना सहपाठी होगा… तुम्हीं उस से खुल कर बात कर लो…और बेटे, कुछ बातें पतिपत्नी के बीच रह कर ही सुलझ जाएं तो बेहतर होता है.

‘‘मेरे इस समझाने के बाद फिर कभी उस ने यह विषय नहीं उठाया. पर परसों जब मिलिंद ने मुझे जयपुर में मोबाइल पर पूरी बात बताई तो मैं सन्न रह गया. दीनानाथजी मेरे बड़े भाई समान हैं और सुभद्रा भाभी तो मेरी मां के स्थान पर हैं. तभी मैं ने तत्काल फोन पर तुम से बात की और तह तक जाने के लिए कहा था. काश, तुम्हारे इस कदम उठाने के पहले ही मैं तुम से बात कर पाता,’’ केदार अपनी लाचारी पर बेचैन हो उठे. अफसोस और अवसाद एकसाथ उन के चेहरे पर उभर आया मानो वह ही कोई दोष कर बैठे हों.

‘‘नहीं केदार, दोष तुम्हारा नहीं है, यह तहकीकात तो मुझे तुम्हारे फोन आने से पहले ही कर लेनी चाहिए थी पर पुत्री प्रेम कह लो चाहे परिस्थिति की नजाकत…न जाने मैं विवेक कैसे खो बैठा…तुम से बात न कर सका था न सही, पर एक बार दीनानाथजी से खुद मिल लेता,’’ विनय का स्वर पश्चाताप से कसक उठा, ‘‘तुम्हारे फोन आने के बाद मैं ने पुरू के सामान की छानबीन की और उसी में यह पत्र मिला जो शायद अक्षय तक पहुंच नहीं पाया था. क्यों पुरू?’’ विनय ने सख्त लहजे में कहा तो पुरू, जो इतनी देर से लगातार अपनी करतूत पर शर्म से गड़ी जा रही थी, उठ कर विनय से लिपट कर रो पड़ी.

‘‘सौरी, पापा,’’ पुरू बोली, ‘‘मैं अक्षय से प्यार करती हूं, यह बात मैं शादी से पहले आप को बताना चाहती थी पर सिर्फ इसलिए नहीं बता पाई थी, क्योंकि उस वक्त अक्षय अचानक होस्टल छोड़ कर न जाने कहां चला गया था. मैं आप को उस से मिलवाना भी चाहती थी. मैं ने अक्षय की बहुत खोजबीन की पर कहीं कुछ पता नहीं चला और जब वह लौटा तो बहुत देर हो चुकी थी.

‘‘उस ने मुझे बताया कि उस के पिताजी की अचानक तबीयत खराब होने के कारण वह अपने शहर चला गया था पर वह अब भी मुझे प्रेम करता है इसलिए मुझ से रोज फोन पर बातें करता. मैं भी स्वयं को रोक नहीं पाती थी. अपने प्रेम का वास्ता दे कर वह मुझे मिलने के लिए बुलाता पर मैं अपनी विवशता पर रोने के सिवा कुछ न कर पाती. मैं भी हर हाल में उसे पाना चाहती थी. पर अरविंद से अलग हुए बिना यह संभव नहीं था. बस, इसलिए मैं ने…’’ कहतेकहते पुरू सिसक उठी, ‘‘मैं जानती हूं कि मैं ने जो रास्ता अपनाया वह गलत है…बहुत बड़ी गलती की है मैं ने, पर मैं अक्षय के बिना नहीं रह सकती पापा…ये सब मैं ने सिर्फ उसे पाने के लिए…’’

‘‘और जिसे पाने के लिए तुम ने अपने सासससुर को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया, अरविंद जैसे नेक इनसान के साथ विश्वासघात किया, जानती हो उस अक्षय का क्या जवाब है?’’ विनय ने पुरू पर नजरें गड़ाते हुए पूछा.

‘‘क्या…आप अक्षय से मिले थे?’’ पुरू आश्चर्य से आंखें फाड़ कर देखने लगी.

‘‘हां, तुम्हारा यह पत्र पढ़ने के बाद मैं और केदार अक्षय से मिलने गए थे. उस ने तो तुम्हें जानने से भी इनकार कर दिया. बहुत जोर डालने पर बताया कि हां, तुम उस के साथ पढ़ती थीं और उस के पीछे हाथ धो कर पड़ी हुई थीं. यकीन है मेरी बात पर या उस से मिल कर ही यकीन करोगी?’’ विनय ने गरज कर पूछा.

पुरू का तो मानो खून जम गया था कि जिस के लिए उस ने इतना बड़ा कदम उठाया वह उसे पहचानने से भी इनकार कर रहा है…विवाह के पहले अचानक होस्टल से गायब हो जाना भी कहीं उस से बचने का बहाना तो नहीं था…मन हुआ कि धरती फट जाए तो वह उसी में समा जाए. वह किसी से भी नजरें नहीं मिला पा रही थी. क्षण भर यों ही बुत बनी खड़ी रही पर अगले ही क्षण दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा कर तेज कदमों से अपने कमरे में दौड़ गई.

वास्तविकता से रूबरू होते ही इंदु का सिर पुन: चकराने लगा. ‘अब क्या होगा मेरी पुरू का.’ ममता की मारी इंदु सबकुछ भुला कर यह सोचने लगी कि पुरू पर से अक्षय के प्रेम का भूत उतरेगा या नहीं…पुरू फिर से अरविंद के साथ जिंदगी बिताने के लिए मानेगी या नहीं…

‘‘अब बात हमारे या पुरू के मानने की नहीं है इंदु, ये हक तो हम कब का खो चुके हैं. अब बात दीनानाथजी, सुभद्रा भाभी और अरविंद के मानने की है. हमारी पुरू को माफ करें, उसे पुन: स्वीकार करें ये कहने का साहस मुझ में तो रहा नहीं और किस मुंह से कहें हम. बेटी के प्यार और विश्वास के वशीभूत हो कर जो महाभूल हम लोग कर बैठे हैं उस का प्रायश्चित्त तो हमें करना ही पड़ेगा,’’ विनय के स्वर में हताशा के साथ निश्चय भी था.

‘‘प्रायश्चित्त…यह क्या कह रहे हैं आप?’’ इंदु कांपते स्वर में बोल पड़ी.

‘‘हां, इंदु. अपनी रिपोर्ट वापस लेने के साथ ही मुझे पुरू की गलत रिपोर्ट दर्ज कराने की बात भी पुलिस को बतानी पड़ेगी. किसी सभ्यशरीफ इनसान को अपने स्वार्थ के लिए कानून का दुरुपयोग कर के फंसाना कोई छोटामोटा अपराध नहीं है. तुम्हीं ने कहा था न कि अपराधी को सजा मिलनी ही चाहिए.’’

‘‘पर विनय, पुरू के भविष्य की तो सोचो. इस समय उस के अंदर एक नन्ही जान भी पल रही है,’’ आवाज लड़खड़ा गई इंदु की.

वरुण भी लगभग रो पड़ा, ‘‘पापा…पापा, प्लीज, एक बार और सोच लीजिए.’’

‘‘नहीं वरुण, कल को यही स्थिति हमारे साथ होती तो क्या तुम अपनी पत्नी को माफ कर देते? प्रतिष्ठा कांच की तरह नाजुक होती है वरुण, एक बार चटक जाए तो क्षतिपूर्ति असंभव है. मुझे अफसोस है कि दीनानाथजी की इस क्षति का कारण हम बने हैं.’’

निरुत्तरित हो गया था वरुण. कितनी अभद्रता से पेश आया था वह अरविंद के साथ. पर अरविंद का वह मौन केवल पुरू को बदनामी से बचाने के लिए ही था.

‘‘ओह, ये हम से क्या हो गया,’’  आह सी निकली वरुण के दिल से.

सन्नाटा सा छा गया था सब के  बीच. सभी भयाकुल से आने वाले दुर्दिनों के  ताप का मन ही मन अनुमान लगा रहे थे.

कितना सोचसमझ कर नाम रखा था विनय ने अपनी प्यारी बेटी का…अपने गांव के किनारे से कलकल कर बहती निर्मल जलधारा वाली मनोहर नदी ‘पुरुष्णी’. पर आज यह नदी भावनाओं के आवेग से दिशाहीन हो कर बह निकली थी. अपने सैलाब के  आगोश में न जाने भविष्य के गर्भ से क्याक्या तहसनहस कर ले डूबने वाली थी यह. नदी जब तक तटों के बंधन में अनुशासित रहती है, पोषक होती है, पर तटों की मर्यादाओं का उल्लंघन कर उच्छृंखल हो जाने से वह न केवल विनाशक हो जाती है बल्कि अपना अस्तित्व भी खोने लगती है. आज पुरू उर्फ पुरुष्णी ने भी अपने मायके तथा ससुराल, दोनों तटों का अतिक्रमण कर तबाही निश्चित कर डाली थी.

काश, मैं ने समय रहते ही इस पुरुष्णी पर सख्ती का ‘बांध’ बांध दिया होता…मन ही मन सोचते हुए विनय इस जलसमाधि के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगा.

नीरज चोपड़ा होने का अभिप्राय

किसी भी देश में अगर नीरज चोपड़ा जैसे खिलाड़ी हों तो यह देश के लिए गौरव की बात होती है.अपने खेल परफॉर्मेंस से नीरज चोपड़ा ने एक बार फिर इतिहास बना दिया है और जैसा कि हमारे देश में प्रचलन है नीरज चोपड़ा की विजय के साथ एक खिलाड़ी के रूप में उन्हें देश के स्वनामधन्य नेता बधाई देने में जुट गए हैं.

हम यह कहना चाहते हैं कि नीरज चोपड़ा जैसे खिलाड़ी की जीत को देश और सरकार को चाहिए कि कुछ ऐसे प्रयास करें कि नीरज जैसे खिलाड़ी पैदा हो और देश का नाम रोशन करें. मगर इस दिशा में सरकार का ध्यान नहीं है
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दरअसल,ओलिंपिक चैंपियन नीरज चोपड़ा ने विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप के जैवलिन थ्रो इवेंट का सिल्वर मेडल जीतते हुए इतिहास रच दिया है. वह इस इवेंट में मेडल जीतने वाले पहले भारतीय बन गए हैं. नीरज चोपड़ा ने 88.13 मीटर के अपने सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ सिल्वर मेडल देश की झोली में डाला है.
इस तरह 19 वर्ष बाद भारत को टूर्नामेंट में मेडल मिला है. इससे पहले 2003 में लॉन्ग जंपर अंजू बॉबी जॉर्ज ने विश्व चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता था.

आपको हम बताएं नीरज चोपड़ा होने का अभिप्राय क्या होता है.
वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 19 साल पहले 2003 में भारत के लिए पहला मेडल जीतने वाली अंजू बॉबी जॉर्ज ने नीरज चोपड़ा को बधाई दी . अंजू बॉबी जॉर्ज ने कहा – मैं नीरज के पदक जीतने पर बहुत खुश ही हूं. मैं इसलिए भी बहुत खुश हूं कि इस मेडल के लिए लंबा इंतजार खत्म हुआ. वर्ल्ड चैंपियनशिप पर पोडियम पर खड़े होना ही बहुत खास होता है. स्मरण हो कि नीरज पहले ही ओलंपिक मेडल जीत चुके हैं. इसके बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल के लिए उनको एक बार फिर से बहुत-बहुत बधाई.

इसी तरह देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सूबेदार नीरज चोपड़ा के ऐतिहासिक प्रदर्शन पर बधाई देते हुए लिखा, ‘सूबेदार नीरज चोपड़ा के शानदार प्रदर्शन से भारत आह्लादित है. ओरेगन के यूजीन में वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीतने पर उन्हें बधाई.उनकी कड़ी मेहनत, हिम्मत और दृढ़ प्रतिज्ञा ने शानदार नतीजे दिए हैं. हमें उन पर गर्व है.’

ऐसे बयानों पर यह टिप्पणी की जा सकती है कि यह एक परंपरा बन गई है इससे हटकर के केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को, जब देश दुनिया के सामने ऊंचा मस्तक लेकर खड़ा होता है, खेल की दुनिया में लीक से हटकर काम करना चाहिए. पुरानी घिसी पिटी लकीरों पर चलना आज के समय में उचित नहीं होगा खिलाड़ियों को ऐसी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए जो कि हमारे देश में नहीं दी जा रही है.
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नीरज ने सदैव इतिहास बनाया

पाठकों को शायद यह जानकारी ना हो नीरज चोपड़ा एक ऐसे महान खिलाड़ी है जिसने लगातार इतिहास बनाया है और जब जब खेले हैं जीत हासिल की है.

2022
WAC में सिल्वर

2022

लीग सिल्वर

2021 टोक्यो ओलिंपिक गोल्ड.

2018 गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड

2016 जूनियर WAC में गोल्ड

2017 एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर
2018
जकार्ता एशियन गेम्स में गोल्ड

ऐसे में खेलों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार को नई से नई योजनाओं को लांच करना चाहिए ताकि दुनिया में भारत सर उठा कर अपनी मौजूदगी प्रकट कर सकें.

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