सौजन्य: सत्यकथा
देवकुमार नागर को मरे हुए पूरे 15 दिन हो गए थे. उन के पीछे रह गई थी उन की एकलौती बेटी प्रभा. करोड़ोंअरबों का एंपायर था उन का. जिस के मात्र 2 ही पार्टनर थे प्रभा नागर और प्रथम शर्मा. प्रथम के मातापिता 5 साल पहले ही मर चुके थे.
रात का समय था. प्रभा, प्रथम और प्रभा का प्रेमी रीतेश और युवा एडवोकेट विकास शर्मा ड्राइंगरूम में बैठे थे. विकास की उम्र 35 साल थी. लगभग 10 साल से वह देवकुमार नागर के पर्सनल लीगल एडवाइजर के रूप में काम कर रहा था. यही नहीं, एकाउंट का भी वह उन का काफी काम देखता था.
देवकुमार ने अपनी वसीयत तैयार कराई थी, जिसे उन्होंने अपनी मौत के 15 दिन बाद दोनों हिस्सेदारों को पढ़ कर सुनाने को कहा था. उस दिन उसी के लिए सब इकट्ठा हुए थे.
एडवोकेट विकास ने कहा, ‘‘मैडम, साहब की इच्छानुसार वसीयत पढ़ते समय केवल 2 ही लोगों को उपस्थित रहना है. अगर थोड़ी देर रीतेश बाहर बैठें तो अच्छा रहेगा.’’
‘‘रीतेश को कोई दिक्कत नहीं है. वह भी अब परिवार का ही एक हिस्सा है. मात्र काररवाई ही बाकी है. तुम कह रहे हो तो मुझे कोई परेशानी नहीं है.’’ प्रभा ने कहा.
एडवोकेट विकास ने संकोच के साथ वसीयत पढ़नी शुरू की. देवकुमार नागर ने लिखा था, ‘‘मैं ने पूरे होशोहवास के साथ बिना किसी के दबाव के यह वसीयत लिखी है. मेरी कंपनी पार्टनरशिप में है. जिस में से 50 प्रतिशत हिस्सा मेरा है और 50 प्रतिशत मेरे पार्टनर दीपक शर्मा का. दीपक शर्मा अब जीवित नहीं हैं, इसलिए उस 50 प्रतिशत पर अब उन के बेटे प्रथम शर्मा का हक है. अपने हिस्से में आने वाला 50 प्रतिशत हिस्सा मैं अपनी बेटी प्रभा नागर को दे रहा हूं.’’