Download App

Monsoon Special: बारिश के मौसम में भी खूबसूरती रखें बरकरार 

बारिश के मौसम में सबसे पहला ख्याल यही आता है कि इस मौसम में भरपूर मस्ती की जाएं. क्योंकि बारिश का मौसम झुलसाने वाली गर्मी से राहत दिलाने वाला जो होता है. यह मौसम राहत के साथ ही अपने साथ सर्दी, बुखार और इंफेक्शन भी लाता है. इस मौसम में हमारी स्किन में नमी बनी रहती है और यही  नमी स्किन को औयली दिखने की वजह बनती है. जिससे मुंहासे निकल आते है. बाल ड्राई नजर आते है. स्किन में एलर्जी हो जाती है.इस मौसम में ऐसे कई बदलाव आते हैं कभी स्किन ड्राई तो कभी औयली हो जाती है. इसलिए स्किन को हेल्दी बनाने के लिए कुछ बेस्ट उपाय जरूरी है.

बेस्ट उपाय– हेल्दी और शाइन स्किन अपनाने के लिए अपने डेली रुटीन में बैलेंस डाइट और एक्सरसाइज  के साथ स्किन की केअर जरूर करनी चाहिए.

अपने फेस को दिन में 2 बार  फेसक्लिंजर या लाइट शोप से क्लीन करें. स्किन को क्लीन झरने के बाद टोनर का इस्तेमाल करें. टिश्यू या कॉटन वॉल से लगने वाला लिक्विड फॉर्मूला स्किन में  कसाव लाता है और क्लीजिंग के बाद भी बची धूल को ये क्लीन करता है. रोजाना घर सर बाहर निकलने से आधा घंटा पहले सनस्क्रीन लगाएं. निस दिन बारिश हो उस दिन सनस्क्रीन लगाना जरूरी है क्योंकि पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणे बादलो के पार से भी स्किन को नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए लिक्विड बेस मौइश्चराइजर लगाएं.

हफ्ते में  दो बार स्किन कीस्क्रबिंग करें और अपनी स्किन क्व अनुसार फेस पैक लगाएं.

मौइस्चर को कहें बाय-बाय– इस  मौइश्चर वाले मौसम में इंफेक्शन होना आम बात है ब्रैस्ट, अंडर आर्म्स, कमर के आस- पास एड़ियों और फिंगर के बीच की स्किन में अक्सर वैक्टेरिया और फफूंदी पनपता है. इन अंगो का मौइश्चर जल्दी ड्राई नही होता. इसलिए इनको अंगों को नहाने के बादअच्छी तरह से सुखाएं. सूखने के बाद इस पर पाउडर का इस्तेमाल करें. जिससे  स्किन ड्राई हो.

बालों की केअर– बारिश के मौसम में बालों को ड्राई रखना बहुत जरूरी हैं क्योंकि की इस मौसम में डेंड्रफ  बहुत होती है.इसके लिए रोजाना माइल्ड शैम्पू से बालों को क्लीन करें उसके बाद कंडीशनिंग करें जिससे बाल ड्राई न हो और न ही उलझें. बारिश में निकलते समय बालों को कवर कर के चले या छतरी का इस्तेमाल करें.

बारिश में अगर भीग गए हो तो लंबे समय तक गीले कपड़ों में न रहें. इससे स्किन पर कपड़ों की रगड़ पड़ती है और एलर्जी या इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है. इसलये इंफेक्शन होने पर डॉक्टर से जरूर संपर्क करें.

लाइट मेकअप करें– बारिश के मौसम में हैवी मेकअप करने से बचें. बहुत जरूरी हो तो वाटर प्रूफ मेकअप करें हैवी फाउंडेशन वाले बेस की जगह लाइट पाउडर का प्रयोग करें.

जीत गया जंगवीर: क्या मुनिया और जंगवीर मिले?

‘‘खत आया है…खत आया है,’’ पिंजरे में बैठी सारिका शोर मचाए जा रही थी. दोपहर के भोजन के बाद तनिक लेटी ही थी कि सारिका ने चीखना शुरू कर दिया तो जेठ की दोपहरी में कमरे की ठंडक छोड़ मुख्यद्वार तक जाना पड़ा.

देखा, छोटी भाभी का पत्र था और सब बातें छोड़ एक ही पंक्ति आंखों से दिल में खंजर सी उतर गई, ‘दीदी आप की सखी जगवीरी का इंतकाल हो गया. सुना है, बड़ा कष्ट पाया बेचारी ने.’ पढ़ते ही आंखें बरसने लगीं. पत्र के अक्षर आंसुओं से धुल गए. पत्र एक ओर रख कर मन के सैलाब को आंखों से बाहर निकलने की छूट दे कर 25 वर्ष पहले के वक्त के गलियारे में खो गई मैं.

जगवीरी मेरी सखी ही नहीं बल्कि सच्ची शुभचिंतक, बहन और संरक्षिका भी थी. जब से मिली थी संरक्षण ही तो किया था मेरा. जयपुर मेडिकल कालेज का वह पहला दिन था. सीनियर लड़केलड़कियों का दल रैगिंग के लिए सामने खड़ा था. मैं नए छात्रछात्राओं के पीछे दुबकी खड़ी थी. औरों की दुर्गति देख कर पसीने से तरबतर सोच रही थी कि अभी घर भाग जाऊं.

वैसे भी मैं देहातनुमा कसबे की लड़की, सब से अलग दिखाई दे रही थी. मेरा नंबर भी आना ही था. मुझे देखते ही एक बोला, ‘अरे, यह तो बहनजी हैं.’ ‘नहीं, यार, माताजी हैं.’ ऐसी ही तरहतरह की आवाजें सुन कर मेरे पैर कांपे और मैं धड़ाम से गिरी. एक लड़का मेरी ओर लपका, तभी एक कड़कती आवाज आई, ‘इसे छोड़ो. कोई इस की रैगिंग नहीं करेगा.’

‘क्यों, तेरी कुछ लगती है यह?’ एक फैशनेबल तितली ने मुंह बना कर पूछा तो तड़ाक से एक चांटा उस के गाल पर पड़ा. ‘चलो भाई, इस के कौन मुंह लगे,’ कहते हुए सब वहां से चले गए. मैं ने अपनी त्राणकर्ता को देखा. लड़कों जैसा डीलडौल, पर लंबी वेणी बता रही थी कि वह लड़की है. उस ने प्यार से मुझे उठाया, परिचय पूछा, फिर बोली, ‘मेरा नाम जगवीरी है. सब लोग मुझे जंगवीर कहते हैं. तुम चिंता मत करो. अब तुम्हें कोई कुछ भी नहीं कहेगा और कोई काम या परेशानी हो तो मुझे बताना.’

सचमुच उस के बाद मुझे किसी ने परेशान नहीं किया. होस्टल में जगवीरी ने सीनियर विंग में अपने कमरे के पास ही मुझे कमरा दिलवा दिया. मुझे दूसरे जूनियर्स की तरह अपना कमरा किसी से शेयर भी नहीं करना पड़ा. मेस में भी अच्छाखासा ध्यान रखा जाता. लड़कियां मुझ से खिंचीखिंची रहतीं. कभीकभी फुसफुसाहट भी सुनाई पड़ती, ‘जगवीरी की नई ‘वो’ आ रही है.’ लड़के मुझे देख कर कन्नी काटते. इन सब बातों को दरकिनार कर मैं ने स्वयं को पढ़ाई में डुबो दिया. थोड़े दिनों में ही मेरी गिनती कुशाग्र छात्रछात्राओं में होने लगी और सभी प्रोफेसर मुझे पहचानने तथा महत्त्व भी देने लगे.

जगवीरी कालेज में कभीकभी ही दिखाई पड़ती. 4-5 लड़कियां हमेशा उस के आगेपीछे होतीं.

एक बार जगवीरी मुझे कैंटीन खींच ले गई. वहां बैठे सभी लड़केलड़कियों ने उस के सामने अपनी फरमाइशें ऐसे रखनी शुरू कर दीं जैसे वह सब की अम्मां हो. उस ने भी उदारता से कैंटीन वाले को फरमान सुना दिया, ‘भाई, जो कुछ भी ये बच्चे मांगें, खिलापिला दे.’

मैं समझ गई कि जगवीरी किसी धनी परिवार की लाड़ली है. वह कई बार मेरे कमरे में आ बैठती. सिर पर हाथ फेरती. हाथों को सहलाती, मेरा चेहरा हथेलियों में ले मुझे एकटक निहारती, किसी रोमांटिक सिनेमा के दृश्य की सी उस की ये हरकतें मुझे विचित्र लगतीं. उस से इन हरकतों को अच्छी अथवा बुरी की परिसीमा में न बांध पाने पर भी मैं सिहर जाती. मैं कहती, ‘प्लीज हमें पढ़ने दीजिए.’ तो वह कहती, ‘मुनिया, जयपुर आई है तो शहर भी तो देख, मौजमस्ती भी कर. हर समय पढ़ेगी तो दिमाग चल जाएगा.’

वह कई बार मुझे गुलाबी शहर के सुंदर बाजार घुमाने ले गई. छोटीबड़ी चौपड़, जौहरी बाजार, एम.आई. रोड ले जाती और मेरे मना करतेकरते भी वह कुछ कपड़े खरीद ही देती मेरे लिए. यह सब अच्छा भी लगता और डर भी लगा रहता.

एक बार 3 दिन की छुट्टियां पड़ीं तो आसपास की सभी लड़कियां घर चली गईं. जगवीरी मुझे राजमंदिर में पिक्चर दिखाने ले गई. उमराव जान लगी हुई थी. मैं उस के दृश्यों में खोई हुई थी कि मुझे अपने चेहरे पर गरम सांसों का एहसास हुआ. जगवीरी के हाथ मेरी गरदन से नीचे की ओर फिसल रहे थे. मुझे लगने लगा जैसे कोई सांप मेरे सीने पर रेंग रहा है. जिस बात की आशंका उस की हरकतों से होती थी, वह सामने थी. मैं उस का हाथ झटक अंधेरे में ही गिरतीपड़ती बाहर भागी. आज फिर मन हो रहा था कि घर लौट जाऊं.

मैं रो कर मन का गुबार निकाल भी न पाई थी कि जगवीरी आ धमकी. मुझे एक गुडि़या की तरह जबरदस्ती गोद में बिठा कर बोली, ‘क्यों रो रही हो मुनिया? पिक्चर छोड़ कर भाग आईं.’

‘हमें यह सब अच्छा नहीं लगता, दीदी. हमारे मम्मीपापा बहुत गरीब हैं. यदि हम डाक्टर नहीं बन पाए या हमारे विषय में उन्होंने कुछ ऐसावैसा सुना तो…’ मैं ने सुबकते हुए कह ही दिया.

‘अच्छा, चल चुप हो जा. अब कभी ऐसा नहीं होगा. तुम हमें बहुत प्यारी लगती हो, गुडि़या सी. आज से तुम हमारी छोटी बहन, असल में हमारे 5 भाई हैं. पांचों हम से बड़े, हमें प्यार बहुत मिलता है पर हम किसे लाड़लड़ाएं,’ कह कर उस ने मेरा माथा चूम लिया. सचमुच उस चुंबन में मां की महक थी.

जगवीरी से हर प्रकार का संरक्षण और लाड़प्यार पाते कब 5 साल बीत गए पता ही न चला. प्रशिक्षण पूरा होने को था तभी बूआ की लड़की के विवाह में मुझे दिल्ली जाना पड़ा. वहां कुणाल ने, जो दिल्ली में डाक्टर थे, मुझे पसंद कर उसी मंडप में ब्याह रचा लिया. मेरी शादी में शामिल न हो पाने के कारण जगवीरी पहले तो रूठी फिर कुणाल और मुझ को महंगेमहंगे उपहारों से लाद दिया.

मैं दिल्ली आ गई. जगवीरी 7 साल में भी डाक्टर न बन पाई, तब उस के भाई उसे हठ कर के घर ले गए और उस का विवाह तय कर दिया. उस के विवाह के निमंत्रणपत्र के साथ जगवीरी का स्नेह, अनुरोध भरा लंबा सा पत्र भी था. मैं ने कुणाल को बता रखा था कि यदि जगवीरी न होती तो पहले दिन ही मैं कालेज से भाग आई होती. मुझे डाक्टर बनाने का श्रेय मातापिता के साथसाथ जगवीरी को भी है.

जयपुर से लगभग 58 किलोमीटर दूर के एक गांव में थी जगवीरी के पिता की शानदार हवेली. पूरे गांव में सफाई और सजावट हो रही थी. मुझे और पति को बेटीदामाद सा सम्मानसत्कार मिला. जगवीरी का पति बहुत ही सुंदर, सजीला युवक था. बातचीत में बहुत विनम्र और कुशल. पता चला सूरत और अहमदाबाद में उस की कपड़े की मिलें हैं.

सोचा था जगवीरी सुंदर और संपन्न ससुराल में रचबस जाएगी, पर कहां? हर हफ्ते उस का लंबाचौड़ा पत्र आ जाता, जिस में ससुराल की उबाऊ व्यस्तताओं और मारवाड़ी रिवाजों के बंधनों का रोना होता. सुहाग, सुख या उत्साह का कोई रंग उस में ढूंढ़े न मिलता. गृहस्थसुख विधाता शायद जगवीरी की कुंडली में लिखना ही भूल गया था. तभी तो साल भी न बीता कि उस का पति उसे छोड़ गया. पता चला कि शरीर से तंदुरुस्त दिखाई देने वाला उस का पति गजराज ब्लडकैंसर से पीडि़त था. हर साल छह महीने बाद चिकित्सा के लिए वह अमेरिका जाता था. अब भी वह विशेष वायुयान से पत्नी और डाक्टर के साथ अमेरिका जा रहा था. रास्ते में ही उसे काल ने घेर लिया. सारा व्यापार जेठ संभालता था, मिलों और संपत्ति में हिस्सा देने के लिए वह जगवीरी से जो चाहता था वह तो शायद जगवीरी ने गजराज को भी नहीं दिया था. वह उस के लिए बनी ही कहां थी.

एक दिन जगवीरी दिल्ली आ पहुंची. वही पुराना मर्दाना लिबास. अब बाल भी लड़कों की तरह रख लिए थे. उस के व्यवहार में वैधव्य की कोई वेदना, उदासी या चिंता नहीं दिखी. मेरी बेटी मान्या साल भर की भी न थी. उस के लिए हम ने आया रखी हुई थी.

जगवीरी जब आती तो 10-15 दिन से पहले न जाती. मेरे या कुणाल के ड्यूटी से लौटने तक वह आया को अपने पास उलझाए रखती. मान्या की इस उपेक्षा से कुणाल को बहुत क्रोध आता. बुरा तो मुझे भी बहुत लगता था पर जगवीरी के उपकार याद कर चुप रह जाती. धीरेधीरे जगवीरी का दिल्ली आगमन और प्रवास बढ़ता जा रहा था और कुणाल का गुस्सा भी. सब से अधिक तनाव तो इस कारण होता था कि जगवीरी आते ही हमारे डबल बैड पर जम जाती और कहती, ‘यार, कुणाल, तुम तो सदा ही कनक के पास रहते हो, इस पर हमारा भी हक है. दोचार दिन ड्राइंगरूम में ही सो जाओ.’

कुणाल उस के पागलपन से चिढ़ते ही थे, उस का नाम भी उन्होंने डाक्टर पगलानंद रख रखा था. परंतु उस की ऐसी हरकतों से तो कुणाल को संदेह हो गया. मैं ने लाख समझाया कि वह मुझे छोटी बहन मानती है पर शक का जहर कुणाल के दिलोदिमाग में बढ़ता ही चला गया और एक दिन उन्होंने कह ही दिया, ‘कनक, तुम्हें मुझ में और जगवीरी में से एक को चुनना होगा. यदि तुम मुझे चाहती हो तो उस से स्पष्ट कह दो कि तुम से कोई संबंध न रखे और यहां कभी न आए, अन्यथा मैं यहां से चला जाऊंगा.’

यह तो अच्छा हुआ कि जगवीरी से कुछ कहने की जरूरत नहीं पड़ी. उस के भाइयों के प्रयास से उसे ससुराल की संपत्ति में से अच्छीखासी रकम मिल गई. वह नेपाल चली गई. वहां उस ने एक बहुत बड़ा नर्सिंगहोम बना लिया. 10-15 दिन में वहां से उस के 3-4 पत्र आ गए, जिन में हम दोनों को यहां से दोगुने वेतन पर नेपाल आ जाने का आग्रह था.

मुझे पता था कि जगवीरी एक स्थान पर टिक कर रहने वाली नहीं है. वह भारत आते ही मेरे पास आ धमकेगी. फिर वही क्लेश और तनाव होगा और दांव पर लग जाएगी मेरी गृहस्थी. हम ने मकान बदला, संयोग से एक नए अस्पताल में मुझे और कुणाल को नियुक्ति भी मिल गई. मेरा अनुमान ठीक था. रमता जोगी जैसी जगवीरी नेपाल में 4 साल भी न टिकी. दिल्ली में हमें ढूंढ़ने में असफल रही तो मेरे मायके जा पहुंची. मैं ने भाईभाभियों को कुणाल की नापसंदगी और नाराजगी बता कर जगवीरी को हमारा पता एवं फोन नंबर देने के लिए कतई मना किया हुआ था.

जगवीरी ने मेरे मायके के बहुत चक्कर लगाए, चीखी, चिल्लाई, पागलों जैसी चेष्टाएं कीं परंतु हमारा पता न पा सकी. तब हार कर उस ने वहीं नर्सिंगहोम खोल लिया. शायद इस आशा से कि कभी तो वह मुझ से वहां मिल सकेगी. मैं इतनी भयभीत हो गई, उस पागल के प्रेम से कि वारत्योहार पर भी मायके जाना छूट सा गया. हां, भाभियों के फोन तथा यदाकदा आने वाले पत्रों से अपनी अनोखी सखी के समाचार अवश्य मिल जाते थे जो मन को विषाद से भर जाते.

उस के नर्सिंगहोम में मुफ्तखोर ही अधिक आते थे. जगवीरी की दयालुता का लाभ उठा कर इलाज कराते और पीठ पीछे उस का उपहास करते. कुछ आदतें तो जगवीरी की ऐसी थीं ही कि कोई लेडी डाक्टर, सुंदर नर्स वहां टिक न पाती. सुना था किसी शांति नाम की नर्स को पूरा नर्सिंगहोम, रुपएपैसे उस ने सौंप दिए. वे दोनों पतिपत्नी की तरह खुल्लमखुल्ला रहते हैं. बहुत बदनामी हो रही है जगवीरी की. भाभी कहतीं कि हमें तो यह सोच कर ही शर्म आती है कि वह तुम्हारी सखी है. सुनसुन कर बहुत दुख होता, परंतु अभी तो बहुत कुछ सुनना शेष था. एक दिन पता चला कि शांति ने जगवीरी का नर्सिंगहोम, कोठी, कुल संपत्ति अपने नाम करा कर उसे पागल करार दे दिया. पागलखाने में यातनाएं झेलते हुए उस ने मुझे बहुत याद किया. उस के भाइयों को जब इस स्थिति का पता किसी प्रकार चला तो वे अपनी नाजों पली बहन को लेने पहुंचे. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, अनंत यात्रा पर निकल चुकी थी जगवीरी.

मैं सोच रही थी कि एक ममत्व भरे हृदय की नारी सामान्य स्त्री का, गृहिणी का, मां का जीवन किस कारण नहीं जी सकी. उस के अंतस में छिपे जंगवीर ने उसे कहीं का न छोड़ा. तभी मेरी आंख लग गई और मैं ने देखा जगवीरी कई पैकेटों से लदीफंदी मेरे सिरहाने आ बैठी, ‘जाओ, मैं नहीं बोलती, इतने दिन बाद आई हो,’ मैं ने कहा. वह बोली, ‘तुम ने ही तो मना किया था. अब आ गई हूं, न जाऊंगी कहीं.’

तभी मुझे मान्या की आवाज सुनाई दी, ‘‘मम्मा, किस से बात कर रही हो?’’ आंखें खोल कर देखा शाम हो गई थी.

मेरा बेटा नहीं पढ़ना चाहता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरा 8 साल का बेटा है. वैसे तो वह होशियार और ऐक्टिव है लेकिन पता नहीं क्यों पढ़ाई में पीछे रहता है. मैं उस की पढ़ाईलिखाई पर पूरा ध्यान देती हूं लेकिन फिर भी उस की परफौर्मेंस ज्यादा अच्छी नहीं है. कहीं कुछ मेरी ही देखभाल में कमी तो नहीं?

जवाब

आप खुद मान रहीं हैं कि आप का बच्चा होशियार और ऐक्टिव है. जरूरी तो नहीं कि हर बच्चा क्लास में फर्स्ट आए. फिर भी कोशिश कर के देख लीजिए हो सकता है बच्चे के साथ की गई मेहनत रंग ले लाए. इस के लिए आप कुछ खास तरीके अपना सकती हैं. जैसे, बच्चे की नियमित रूप से दिमागी कसरत करवाएं. उस के साथ दिमागी खेल खेलें जैसे क्विज, डिक्शनरी भरना या सही विकल्प चुनना आदि. ऐसे खेलों से बच्चे का दिमाग विकसित होगा और याददाश्त बढ़ेगी.

रोजाना सुबह बच्चे को 5 भीगे बादाम खिलाएं. फिर गरम दूध दें. बादाम बच्चों के दिमाग के लिए लाभकारी होता है. इस में कौपर, विटामिन डी, कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन जैसे कई पोषक तत्त्व पाए जाते हैं.

बच्चों को नियमित रूप से पौष्टिक आहार खिलाया जाए तो उन का दिमाग भी बेहद मजबूत होता है, इसलिए बच्चे को खाने में केला, गाजर, पत्तागोभी, दूध, पालक, घी, सोयाबीन, सेब इत्यादि दें.

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

‘‘टीटू अंबानी’’: हर युवा दंपति को अवश्य देखनी चाहिए

रेटिंग: ढाई स्टार

निर्माताः महेंद्र विजयदान देठा व दिनेश कुमार

लेखक व निर्देशकः रोहित राज गोयल

कलाकारः तुशार पांडे,दीपिका सिंह, रघुवीर यादव,समता सागर,वीरेंद्र सक्सेना

अवधिः दो घंटे एक मिनट

दिन में सपने देखना कितना जायज? क्या सफलता के शिखर पर शॉर्ट कट रास्ता अपनाकर पहुंचा जा सकता है? क्या पत्नी की कमाई पर सिर्फ पति का हक होता है? यदि पत्नी की सरकारी नौकरी हो और पति बेरोजगार हो,तो किसे कितना झुकना चाहिए या समझौवादी होना चाहिए? शादी के बाद लड़की अपने माता पिता की जिम्मेदारी उठाए या न उठाए? सहित युवा पी-सजय़ी से जुड़े कई सामाजिक मुद्दों पर बात करने वाली फिल्म ‘‘टीटू अंबानी’’ लेकर फिल्मकार रोहित राज गोयल आए हैं.वर्तमान समय में पति पत्नी दोनों कमा रहे होते हैं.कई बार पति पत्नी में से किसी की कमाई कम होती है.जिसके चलते दोनों का अहम टकराता है और अलगाव की स्थिति पैदा होती है.यह भी इस फिल्म का हिस्सा है.मगर सुस्त लेखन और निर्देशन के चलते उतना प्रभाव छोड़ने में कामयाब नही होती,जितना होना चाहिए था.

कहानीः

यह कहानी है अजमेर में फोटो फ्रेम की दुकान चलाने वाले मध्यमवर्गीय परिवार के षुक्लाजी के छोटे बेटे टीटू की.टीटू दिन में सपने देखते हुए रातों रात अंबानी बनाजाना चाहते हैं.इसलिए वह कभी कैटरिंग का व्यापार तो कभी कोई अन्य धंधा करते हैं.उन्हे नौकरी करनी नही है.

इसके अलावा टीटू बिजली विभाग यानी कि सरकारी नौकरी करने वाली मौसमी संग प्यार की डोर भी सजा रहे हैं.टीटू कुछ कर नही रहा है,इसलिए मौसमी अपने माता पिता से टीटू संग विवाह करने की बात नही कर पा रही है.उधर टीटू का दावा है कि वह सफलता के शिखर पर पहुंचकर वह मौसमी के माता पिता के सामने जाएगा.लेकिन घटनाक्रम कुछ ऐसे बनते हैं कि टीटू ,मौसमी संग अपनी शादी के कार्ड छपवा कर बांट देता है.जिससे षुक्ला जी के घर में हंगामा होता है.फिर शुक्लाजी, मौसमी के माता पिता से मिलकर शादी के लिए रजामंदी दे देते हैं.शुक्ला जी को खुशी है कि उनकी बहू सरकारी नौकरी करती है.शादी के बाद भी टीटू दिन में सपने देखना नहीं छोड़ता. यहां तक कि वह पत्नी की कमाई पर अपना पूरा हक मानकर मौसमी की पर्स से सा-सजय़े छह हजार रूपए भी चुरा लेता है.हर तरफ से असफल टीटू को जब पता चलता है कि मौसमी आज भी अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा अपने माता पिता को देती है,तो टीटू,मौसमी के माता पिता के पास झगड़ने पहुंच जाते हैं. मौसमी के पिता टीटू को एक लाख नौ हजार की चेक दे देते हैं.बाकी बाद में देने की बात करते हैं.अब टीटू इस रकम को कए गलत कंपनी में इंवेस्ट कर अपने दोस्तो संग षराब व पार्टी करने लगता है.जब मौसमी को सारा सच पता चलता है तो वह टीटू से सवाल करती है? टीटू कहता है कि अपनी सरकारी नौकरी की धौंस दिखाने की बजाय अपने माता पिता के पास लौट जा.मौसमी मायके चली जाती है. इधर टीटू को कई ठोंकरें लगती है.कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.अंततः टीट नौकरी करने लगते हैं और मौसमी को मना कर वापस ले आते हैं.

लेखन व निर्देशनः

वर्तमान समय में फिल्म ‘‘टीटू अबानी’’ जैसी कहानियां कही जानी चाहिए.क्योंकि वर्तमान समय में मध्यम वर्गीय परिवारों के नए युवा दंपतियों के बीच तलाक की वजहों पर यह फिल्म बहुत ही सरल अंदाज में बात करती है.मगर अफसोस कमजोर पटकथा व निर्देशन के चलते फिल्म का बंटाधार हो गया है.

फिल्म का विषय अच्छा है.फिल्म कई ज्वलंत सवाल भी उठाती है.इसके कुछ चुटीले संवाद लोगों को हंसाते भी है.मगर रोहित राज गोयल ने पटकथा लेखन व निर्देशन के वक्त थोड़ी मेहनत की होती, तो शायद यह फिल्म लोगों के दिलों तक पहुंच जाती. मगर वह ऐसा कुछ नहीं कर पाए.यहां तक कि वह फिल्म की नायिका दीपिका सिंह की प्रतिभा का सही उपयोग नही कर पाए, जबकि दीपिका सिंह तो उनके निजी जीवन की पत्नी हैं. दीपिका सिंह के अभिनय को लोग आज भी ‘दिया और बाती हम’ की संध्या राठी के रूप में याद करते हैं.फिल्म में रोमांटिक एंगल भी ठीक से नही उभरा. अभि-ुनवजयोक मनोहर चंदा के कुछ संवाद बहुत अच्छे बन पड़े हैं.

अभिनयः

पूरी फिल्म टीटू यानी कि अभिनेता तुशार पांडे के कंधो पर टिकी हुई है. तुशार पांडे अपने कैरियर की पहली इंटरनेशनल फिल्म ‘‘बियांड ब्लूज’’ के लिए रोम इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीत चुके हैं. बौलीवुड में उन्होने फिल्म ‘छिछोरे’ के अलावा वेब सीरीज ‘आश्रम’ में सत्ती के किरदार मंे अपनी प्रतिभा से लोगों को अवगत करा चुके हैं.इस फिल्म में भी तुशार पांडे ने टीटू के किरदार के साथ न्याय करने में अपनी तरफ से कोई कमी नही छोड़ी है.हास्य के पल हों या खुशी के क्षण अथवा गुस्सा,सब कुछ खो देने की बेबसी, हर जगह वह अपने अभिनय की छाप छोड़ जाते हैं.अफसोस उनके किरदार को कागज पर ठीक से उकेरा ही नही गया. दीपिका सिंह ने टीवी पर अपने अभिनय का डंका बजाया है,मगर अपनी इस पहली फिल्म में वह अपने अभिनय से निराश करती हैं.तुशार के साथ उनकी केमिस्ट्ी ठीक से नही जमी. फिल्म में रघुवीर यादव,समता सागर व वीरेंद्र सक्सेना जैसे प्रतिभावान दिग्गज कलाकार है,इन सभी कलाकारों ने अपनी तरफ से बेहतरीन परफार्मेंस दी है.

जलता लोकतंत्र, झुलसता संविधान

उदयपुर में 2 युवाओं द्वारा एक दर्जी की खुलेआम, दिनदहाड़े हत्या कर देना और फिर हत्या का वीडियो सोशल मीडिया पर डाल देना यह साबित करता है कि धर्म इस तरह पागल बना देता है कि लोग न आगापीछा देखते है, न परिणामों की चिंता करते हैं. नूपुर शर्मा के बयानों का समर्थन करने वाले इस दर्जी को मार डालने के लिए ये 2 युवा किसी बड़ी संस्था द्वारा भेजे गए हों, कोर्ई बड़ी योजना बनाई गई हो, ऐसा भी नहीं है. दर्जी का काम करने वाले इस कट्टरपंथी ने नूपुर शर्मा का समर्थन किया तो धर्म के बहकावे में और जवाब में उस की हत्या कर दी गई तो वह दूसरे धर्म के बहकावे की वजह से.

घरों, शहरों और देशों को उजाडऩे में, समाज को तोडऩे में, लोगों के बीच बेबात की दुश्मनी खड़ी करने में जो भूमिका धर्म की है वह जर, जमीन, जोरू की नहीं. लोग स्वभाववश एकदूसरे का सहयोग चाहते हैं और एकदूसरे को सहयोग करते भी हैं. लेकिन यह धर्म ही है जो कहता है कि अपने धर्म की खातिर अपने धर्म वाला हो या विधर्मी, दुश्मन हो सकता है.

हर धर्म कहता है कि पूजा करो, दान दो, कुरबानी करो. जो नहीं करता वह दुश्मन है. इस दर्जी ने कट्टर कथावाचकों की मुरीद नूपुर शर्मा का समर्थन किया क्यों? क्योंकि उसे सिखाया गया है कि दूसरे धर्म का हर जना दुश्मन है. यह सोचने की बात है कि आखिर दाढ़ी बढ़ाए ये 2 युवक जब दर्जी की दुकान में घुसे तो उन्होंने कहा, कपड़े सिलाने हैं और दर्जी ने सुन ली. उन के विधर्मी होने पर कोई एतराज नहीं किया क्योंकि वे ग्राहक थे. जब तक संबंध ग्राहक और दुकानदार का था, ठीक रहा, लेकिन बीच में दोनों के धर्म घुस गए जिन्होंने एक तरफ दर्जी का दिमाग खराब कर रखा था तो दूसरी तरफ इन 2 युवकों का.

इस हत्या के लिए जिम्मेदार दोनों धर्म हैं और दोनों धर्मों के वे हजारों प्रचारक जो ऊंचे मंदिरोंमसजिदों में बैठ कर प्रवचन करते हैं, अपनेअपने धर्मभक्तों को उकसाते हैं कि जो धर्म का आदेश न माने, मार डालो चाहे वह शंबूक हो, एकलव्य हो या उदयपुर का कन्हैयालाल तेली हो.

ओसामा बिन लादेन ने पहले अफगानिस्तान की गुफाओं में छिप कर अमेरिका पर हमला कराया, फिर पाकिस्तान में छिप कर रहने लगा. उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह सामने रह कर जिसे दुश्मन मान रहा है, उस से लड़ सके. उस ने लाखों घरों को बरबाद करा दिया, अफगानिस्तान का तहसनहस करा दिया. उस ने जो बीज बोए उस से सीरिया से लाखों शरणार्थी मारेमारे फिर रहे हैं पर उस का धर्म वहीं का वहीं है.

भारत में धर्म की राजनीति उबाल पर है. हर हथकंडा अपनाया जा रहा है कि धर्म के शीरे में सत्ता की गरमागरम जलेबी मिलती रहे, इसलिए शीरे के नीचे आग को सुलगाए रखा जा रहा है.

नूपुर शर्मा भी, कन्हैयालाल तेली भी और ये 2 युवक भी जिन्होंने हत्या की मात्र आग और लकड़ियां हैं जो खुद को जला कर धर्म के शीरे को खौला कर रखती हैं जिस में पकती जलेबी का रसपान कर धर्मों के पंडे, पादरी, मुल्ला, ग्रंथी मौज मनाते हैं पीढ़ी दर पीढ़ी. इन लकड़ियों से मकान बन सकते हैं, घरों के चूल्हे जल सकते हैं, दवाएं बन सकती हैं मगर धर्म के नाम पर सब स्वाह हो रहा है. आज नूपुर शर्मा जैसी ने हिंदूमुसलिम विवाद को उस मोड़ पर ला खड़ा किया है जिस का अंत भीषण वैमनस्य में हो सकता है, 1947 से पहले के वर्षों की परतें फिर ताजा हो सकती हैं. लोकतंत्र के कागज भी अब इसी आग में जल रहे हैं, संविधान से इसलिए ज्यादा उम्मीद न करें.

Monsoon Special: बारिश में बच्चों के लिए बनाएं ये 4 चटपटी डिश

  1. राजपूताना ढोकला

सामग्री

– 400 ग्राम मकई का आटा

– 40 ग्राम दही

– 10 ग्राम कड़े पापड़

– 10 एमएल तिल का तेल

– 2 चुटकियां हींग

– आवश्यकतानुसार गरम पानी.

सामग्री मूंग दाल की

– 100 ग्राम साबूत मूंग दाल को 30 मिनट पानी में भिगो कर निकाल लें.

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 20 एमएल देशी घी

– 1 छोटा चम्मच नीबू का रस

– नमक स्वादानुसार.

विधि

पापड़, दही, मकई का आटा, हींग और गरम पानी मिला कर मुलायम गूंध लें. अब इसे 20 मिनट के लिए अलग रख दें. अब गुंधे आटे को 30 ग्राम के गोल आकार में बांटें और हर लोई में उंगली से छेद कर लें. अब लोई को स्टीमर में 30 मिनट स्टीम दें. एक बरतन में देशी घी गरम कर मूंगदाल व हलदी पाउडर डाल कर पकाएं. थोड़ा सा पानी भी डाल दें. पानी डाल कर मूंग दाल को लगातार तब तक चलाती रहें जब तक वह पक न जाए. जब दाल बन जाए तब उस में नीबू रस डालें. अब ढोकले को तिल के तेल और मैश की हुई मूंग दाल के साथ परोसें.

*

2. झुनका भाखरी

सामग्री झुनका की

– 1 कप बेसन

– 1 मध्यम आकार का प्याज कटा

– 1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 1 छोटा चम्मच हरीमिर्च पेस्ट

– 1 छोटा चम्मच तेल

– 1 छोटा चम्मच सरसों के बीज

– 5-6 करीपत्ता

– 2 बड़े चम्मच धनियापत्ती कटी

– नमक स्वादानुसार.

सामग्री भाखरी की

– 2 कप जौ का आटा

– 1 कप मकई का आटा

– 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1 बड़ा चम्मच तिल रोस्टेड

– 1 छोटा चम्मच धनिया पाउडर

– नमक स्वादानुसार.

सामग्री मराठी स्टाइल सालसा की

– 1/2 कप आइसबर्ग लैट्यूस

– 1/4 कप पत्तागोभी कटी

– 1/2 कप खीरा बीज निकला और लंबाई में कटा

– 1/2 कप टमाटर बीज निकले

– 1/2 कप प्याज कटा

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1/2 नीबू का रस

– नमक स्वादानुसार.

विधि

एक नौनस्टिक पैन में तेल गरम कर सरसों के बीज करीपत्ते मिलाएं. जब सरसों चटकने लगे तब प्याज, हलदी और हरीमिर्च पेस्ट मिलाएं और इसे पारदर्शी होने तक भूनें. अब इस में बेसन डाल कर मध्यम आंच पर 2 मिनट पकाएं. फिर इस में पर्याप्त पानी और धनिया पाउडर मिलाएं. पक कर गाढ़ा घोल बनने दें. फिर आंच से उतार कर धनियापत्ती मिलाएं.

विधि भाखरी (सौफ्ट टाकोस) की

सारी सामग्री को मिला कर गूंधें और फिर 30 मिनट के लिए एक तरफ रख दें. फिर इस के बराबर हिस्से बना कर रोटियां बेलें और गरम तवे पर सेंकें.

विधि सालसा की

सारी सामग्री को मिला कर टौस करें फिर टाकोस के ऊपर सालसा फैला दें. ऊपर से झुनका मिश्रण डाल कर फोल्ड कर के परोसें.

*

3. इटैलियन चाट

सामग्री वेफर की

– 1 कप पारमेसन चीज कटा

– 1 बड़ा चम्मच नीबू के छिलके सूखे

– 1 छोटा चम्मच तुलसी की पत्तियां कटी

– 1 कप मैदा

– 4 बड़े चम्मच औलिव औयल

– 1 छोटा चम्मच इमली की चटनी

–  2 कप शकरकंदी उबली और कटी

– 1 छोटा चम्मच तेल

– 1 मध्यम आकार का बिना बीज वाला टमाटर

– 1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, नमक स्वादानुसार.

सामग्री सजाने की

– 5-6 स्पैगैटी पास्ता कच्चा

– तलने के लिए पर्याप्त तेल

– थोड़ा सा अदरक कतरा

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी.

विधि

ओवन को पहले से ही 150 डिग्री सैल्सियस पर गरम करें. वेफर के लिए एक बाउल में सारी सामग्री मिलाएं और गूंध कर लोई बना कर एक तरफ रख दें. फिर इस की छोटीछोटी पूरियां बना लें. अब बेकिंग ट्रे में पूरियां डाल कर उन्हें सुनहरा होने तक बेक करें. अब शकरकंदी और कटे टमाटर को तेल में तल लें. फिर नमक और लालमिर्च डालें. स्पैगैटी पास्ते को डीप फ्राई कर के एक तरफ रख दें. अब एक बाउल में आलू, अदरक, वेफर के ऊपर रख कर इमली की चटनी डालें और धनियापत्ती और तली स्पैगैटी से सजाएं.

*

4. ऐप्पल टौफी

सामग्री

– 9-10 लाल सेब के टुकड़े

– तलने के लिए पर्याप्त.

सामग्री सिरप की

– 1/4 कप तेल द्य 1/4 कप चीनी

– 1/4 कप शहद द्य 2 बड़े चम्मच तिल

– 1/2 छोटा चम्मच पीला रंग.

सामग्री घोल की

– 3 बड़े चम्मच मैदा द्य 3 बड़े चम्मच कौर्नफ्लोर.

सामग्री सौस की

– 1/4 कप शहद

– 2 बड़े चम्मच तिल.

विधि

सेब के टुकड़ों पर मैदे के घोल का कोट लगा कर गरम तेल में सुनहरा होने तक फ्राई कर टिशू पेपर पर रखें. अब सिरप में तिल मिलाएं और तले सेब पर कोट करें. कोटिंग के बाद सेब को कुछ समय के लिए ठंडे पानी में रखें और फिर निकाल कर टिशू पेपर पर रखें. जब ऐप्पल टौफी तैयार हो जाए तो उसे प्लेट पर रखें. सौस बनाने के लिए तिल और शहद का मिश्रण बनाएं. फिर इसे ऐप्पल टौफी पर छिड़कें. पुदीनापत्ती से सजा कर सर्व करें.

मेरी भाभी मुझे नजरअंदाज करती है, क्या करूं?

सवाल

मैं इस वर्ष 26 साल की हो जाऊंगी. मेरा भाई मु?ा से 3 साल बड़ा है और उस की जल्दी ही लव मैरिज होने वाली है. मु?ो अपनी होने वाली भाभी जरा भी अच्छी नहीं लगती. उस का व्यवहार मेरी मम्मी के प्रति भी खास अच्छा नहीं है. ऐसा नहीं कि वह हमें कुछ उलटासीधा बोलती हो, बल्कि वह तो एक पढ़ीलिखी समझदार वर्किंग गर्ल है, लेकिन उस का व्यवहार बिलकुल भी मिक्सप होने वाला नहीं है.

जवाब

हमें इग्नोर सा करती है. पता नहीं, यह सब उस का नेचर है या जानबू?ा कर करती है. वैसे बातचीत करने में अच्छी है लेकिन मैं ही उस से बात करने में कम्फर्टेबल महसूस नहीं करती हूं. परेशान हूं कि शादी के बाद उन से कैसे निभाऊंगी. वैसे, भाई शादी कर के अलग ही रहने वाला है.

आप बेवजह ही परेशान हो रही हैं. आप शायद घर में आने वाली नई भाभी को ले कर ज्यादा ही सोच रही हैं. भाई की लव मैरिज है. वह आप के घर शादी से पहले ही आतीजाती रही हैं तो हो सकता है कभी ऐसा हो कि आप की मम्मी और आप घर में हों, लेकिन उसे पता न चला हो और वह आप लोगों को विश किए बिना ही घर में आप के भाई के कमरे में चली गई हो.

आप को यह बात अच्छी नहीं लगी, लेकिन आप ने अपनी होने वाली भाभी से पूछना भी ठीक नहीं सम?ा कि उस ने ऐसा क्यों किया. हो सकता है वह इन बातों से अनजान हो. यह बात कि भाभी बातचीत करने में ठीक हैं लेकिन आप उस के साथ कम्फर्टेबल नहीं हो तो यह तो आप की प्रौब्लम है, भाभी की तो इस में कोई गलती नहीं.

सब लोगों का अपनाअपना नेचर होता है. ठीक है भाभी के साथ आप की क्लोजनैस नहीं है लेकिन कोई लड़ाई भी तो नहीं है. भाभी को शादी के बाद घर आने दें. परिस्थिति बदलते देर नहीं लगती. वैसे भाभी से अच्छी दोस्त कोई नहीं हो सकती. आगे आप की भी शादी होनी है. भाभी के साथ दोस्ती करने की कोशिश करेंगी तो आप फायदे में रहेंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

पतझड़ में वसंत- भाग 3: सुषमा और राधा के बनते बिगड़ते हालात

‘‘राधा, नहीं ऐसा मत कह, तू ही तो है जिस से आज तक मैं ने हर बात साझा की है,’’ वह बताने लगी, ‘‘10 साल पहले हम ने इंडिया छोड़ने से पहले देहरादून में फ्लैट खरीदा था. यह सोच कर कि कभी इंडिया आएंगे तो ठाठ से रहेंगे. जाते समय फ्लैट की चाबी जेठ के बेटे रवि को दे गई थी. यहां आने से पहले मैं ने रवि से फोन पर कहा, साफसफाई करा कर रखना. मैं इंडिया आ रही हूं. काफी समय से मैं उस के संपर्क में हूं. कुछ दिनों पहले कहता था, घर तैयार नहीं है.

‘‘आज फोन किया तो बताया, ‘आंटी, वह मकान मैं ने बेच दिया है. जल्दी दूसरा खरीद दूंगा. मुझे एक महीने का समय दो.’ राधा, मैं तो कहीं की नहीं रही. पहले तो मेरे बच्चों ने दुत्कार दिया, अब यहां ये सब…’’

‘‘क्या? बेटों ने तुझे दुत्कारा? मुझे कुछ अंदाजा तो था कि आज डेढ़ महीने से अंदर ही अंदर किसी दर्द को ले कर तू तड़प रही है,’’ राधा ने मन की बात कह दी.

‘‘हां, आज मैं तुझे सारी कहानी सुनाऊंगी, 10 वर्षों पहले मेरे बेटों ने खूबसूरत साजिश रची थी. हम दोनों को इमोशनल ब्लैकमेल कर के, हमें अमेरिका आने का निमंत्रण दिया. हम ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया तो कहा, ‘आप दोनों के नाम से हम एक होटल खोलना चाहते हैं. इस में आप का शेयर भी होगा.’ रमेश को लगा, बच्चों ने ठीक सोचा है. घर का पैसा घर में ही रहेगा. कुछ पैसे से हम ने देहरादून में फ्लैट खरीद लिया. जिस के बारे में बच्चों को आज भी जानकारी नहीं है. हां, कुछ पैसे हम ने यहां बैंक में भी छोड़ दिए थे.

‘‘अमेरिका पहुंच कर हम दोनों की खुशी दूनी हो गई जब पता लगा हम दोनों दादादादी बनने वाले हैं. बड़े बेटे विशाल के घर मेहमान आने वाला है. सोच कर मैं ने बहू को अपने गले की चेन देने का मन बना लिया था. बहू के घर बेटा हुआ. मेरा दिल बल्लियों उछल रहा था. बहू की सेवा में मैं दिनरात लगी रहती थी.

‘‘बच्चा 6 महीने का हो गया तो बहू औफिस जाने लगी. दिनभर बच्चा मेरे पास रहता, रात को बहू के आने पर मैं रसोई में घुस जाती. पर अब तक मैं थक कर चूर हो चुकी होती थी. बच्चा 2 साल का हो गया तो नर्सरी जाने लगा. मैं ने राहत की सांस ली. तभी एक दिन छोटी बहू का फोन आया, ‘मांजी, आप फिर से दादी बनने वाली हैं. मैं आप को आ कर ले जाऊंगी.’

‘‘ठीक है, बहू की बात सुन कर मन तो खुश हुआ पर याद आया, कुछ दिनों पहले इसी के पति (मेरे बेटे) ने बताया था. ‘इंडिया से मेरी सास आई हैं. कुछ महीने रहेंगी.’ क्या बहू अपनी मां को प्रसव तक रोक नहीं सकती थी?

‘‘पहली बार लगा, मुझे इन लोगों ने फालतू समझा है? चुप रही. छोटे के घर बेटी ने जन्म लिया. मैं पिछला सब भूल कर फिर अपनी पुरानी फौर्म में आ गई. सोचने लगी, मेरे पास और काम ही क्या है, ये तो अपने बच्चे हैं. मैं जब नौकरी करती थी, तब मेरी सास बच्चों को संभालती थीं. मैं कुछ अनोखा तो कर नहीं रही. हां, यह जरूर था अब मैं पहले की अपेक्षा थकने लगी थी. मेरी थकान से जिसे सब से ज्यादा तकलीफ होती थी, मेरे पति थे. वे कहते, ‘क्यों सारा दिन खटती हो. बिलकुल नौकरमाई बन गई हो. छोड़ोे सब.’ मैं जानती थी. मेरी तकलीफ पति के सिवा कोई नहीं समझता.

‘‘एक दिन रमेश को दिल का दौरा पड़ा. बहुत कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया न जा सका. मेरी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गईर् थी. दिनरात अकेले पड़ी रोती रहती. कभी कोई बेटा या बहू पूछने भी न आते. कभीकभार छोटी बिटिया मेरे आंसू पोंछ कर तोतली भाषा में पूछ लेती, ‘दादी मम्मा, आप क्यों रो रही हो?’ मन करता खूब चिल्लाचिल्ला कर रोऊं. कितनी दुखी और बेबस हूं मैं. इन सब से तो यह 5 वर्ष की बिटिया भली है जो मेरे आंसू देख कर बेचैन हो जाती है. राधा, मैं बिलकुल टूट चुकी थी. तब मुझे यहां की बहुत याद आई. जी करता पंख लगा कर उड़ जाऊं, इंडिया पहुंच जाऊं.

‘‘एक रोज बीच वाली बहू ने फोन किया, ‘मम्मी, अब आप मेरे पास रहेंगी.’

‘‘‘नहीं बेटा, मुझे माफ करो. अब मैं तुम लोगों की सेवा न कर पाऊंगी.’

‘‘‘क्यों?’

‘‘मैं रुलाई रोक न पाई. उधर से बहू ने फोन पलट दिया. मैं रोती रही. उस दिन मुझे यकीन हो गया कि इन बच्चों ने मुझे आयानौकर से ज्यादा कुछ भी नहीं समझा. ये बच्चे मेरे दुख को क्यों नहीं समझते? पति को गए सिर्फ 6 महीने हुए हैं. मुझे तो दोशब्द संवेदना के चाहिए. ये फोन पटक कर अपना गुस्सा दिखा रहे हैं.

‘‘राधा, इस घटना के बाद सब के चेहरे का नकाब उतरने लगा. मुझे ले कर बहूबेटों में खुसरफुसुर होने लगी. परोक्ष से कई बार सुना. ‘मम्मी, हम तीनों के पास 4-4 महीने रहेंगी.’ एक बहू बोली, ‘न, न, न.’ दूसरी ने कहा, ‘तो क्या करें?’

‘‘राधा, बस, मैं ने समझ लिया था कि यहां रुकना ठीक नहीं हैं. किंतु जाऊंगी कहां? कोई न कोई रास्ता तो निकालना होगा.

‘‘एक दिन बड़े बेटे विशाल ने कहा, ‘मम्मी, हम नया हौस्पिटल खोल रहे हैं. हमें कुछ पैसा चाहिए. पापा के जो 20 लाख रुपए जमा हैं, उन में से 15 लाख रुपए दे दो.’

‘‘‘सोचूंगी.’

‘‘मैं ने सोच रखा था, इन्हें तो अब एक कौड़ी न दूंगी. एक दिन छोटे बेटे विभव ने कहा, ‘मम्मी, एक  और बात, हम लोगों का छोटे फ्लैट में शिफ्ट होने का इरादा है. ऐसे में हम तीनों के साथ आप रह न सकोगी. सो, 6 महीने के लिए आप ओल्डएज होम में रह लो. नया घर बनते ही हम आप को ले आएंगे.’

‘‘मैं निशब्द, लगा, सारे शरीर का खून निचुड़ गया है. मैं ने हिम्मत दिखाई. मन के भीतर जो उमड़ रहा था, सब कह देना चाहती थी. सो, ‘ठीक है बेटा, तुम सब ने मिल कर बढि़या खेल रचा है. पहले हमें इमोशनल ब्लैकमेल कर के बच्चे पालने के लिए यहां बुला लिया. 10 वर्षों तक तुम हम से काम लेते रहे. जब मैं ने मानसिक व शारीरिक असमर्थता दिखाई, तो ओल्डएज होम का रास्ता दिखा दिया. अरे, गोरों के साथ रह कर तुम्हारे तो खून भी सफेद हो गए हैं. लानत है मुझ पर, मेरी कोख पर, जिस ने ऐसी निकम्मी औलादें पैदा कीं.’

‘‘‘कहां गए वे संस्कार, वे भारतीयों के जीवन मूल्य? थू है तुम पर, तुम्हारी शिक्षा पर.’ मेरी तीखी आवाज सुन कर बेटे इधरउधर हो गए थे. बहुएं तो पहले ही खिसक गई थीं. मैं बड़ी देर तक अकेली रोती रही. कमरे से बाहर आ कर किसी ने संवेदना के दोशब्द भी न कहे.

‘‘राधा, विश्वास नहीं होता था ये हमारे बेटे हैं. मैं ने तय कर लिया था, मैं इंडिया वापस जाऊंगी, यहां रही तो घुटघुट कर मर जाऊंगी. पर सवाल यह था, जाऊंगी कहां, रहूंगी कहां? मन अतीत के पन्ने पलटने लगा.

‘‘मन की लिस्ट में सब से ऊपर तेरा नाम था. इसीलिए मेल डाला था, ‘इंडिया पहुंच कर क्या मैं तेरे पास रुक सकती हूं? शुक्र है, अंतिम समय, अपनी धरती तो नसीब हो गई. नहीं तो किसी ओल्डएज होम की दीवारों से टक्कर मारमार कर मर जाती.’’

राज बब्बर के दो साल “जेल” में!

देश दुनिया के चुनिंदा सफल फिल्मी दुनिया के सितारे और सेलिब्रिटी जब कानून को अपने हाथ में लेते हैं तो वह भी आम आदमी की तरह कानून के शिकंजे में होते हैं और जेल भी जाते हैं. ऐसे ही कितने उदाहरण हैं जिनमें  एक बड़ा चेहरा  संजय दत्त का है. वर्तमान में क्रिकेटर और टीवी की दुनिया के चर्चित नाम नवजोत सिंह सिद्धू भी अपनी सजा जेल में काट रहे हैं.

बहुचर्चित नेता और अभिनेता सांसद बने अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष भी बने मगर जब मर्यादा और कानून को अपने हाथ में लिया तो आज उनके सर  पर कानून की कटार लहरा रही है.

सांसद रहे फिल्म अभिनेता और कांग्रेस के पुर्व प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर को उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने बालीवुड के चेहरे  राज बब्बर को 1996 के चुनाव  में एक मतदान अधिकारी के साथ मारपीट करने  के मामले में  दोषी करार देते हुए दो साल कैद की सजा सुनाई तो मामला सुर्खियों में आ गया कुछ लोग ये मानते हैं कि बड़े सेलिब्रिटी लोग भी कानून के दायरे में है यह हमारे देश की लोकतंत्र की खूबसूरती है वही यह भी मानने वाले लोग हैं कि ऐसे लोगों को कई दफे जबरदस्ती झूठे आरोप लगाकर के फंसाने का षड्यंत्र होता है.

राज बब्बर की राजनीति की बात करें तो फिल्मों में एक ऊंचाई हासिल करने के बाद जब उन्होंने राजनीति में भाग्य आजमाया तो कांग्रेस ने पूरा मौका दिया प्रदेश अध्यक्ष बन करके पार्टी का नेतृत्व किया मगर राजनीति में कोई जलवा नहीं दिखा पाए .

कानून और संविधान सर्वोपरि

अभिनेता और कभी राजनीति में भाग्य आजमाने वाले राज बब्बर के संदर्भ में हम आपको बताते चलें कि लखनऊ की अदालत के विशेष अपर मुख्य नायिक दंडाधिकारी अंबरीष कुमार श्रीवास्तव ने राज बब्बर को दो वर्ष कारावास और 6500 रुपए जुर्माने की में नियुक्त मतदान अधिकारी मनोज कुमार श्रीवास्तव के जा सुनाई.  मामले में राज बब्बर के साथ आरोपी अरविंद सिंह यादव की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो पुलिस ने मामला दर्ज करने के बाद विवेचना की गई थी.बाद में, अदालत ने फैसले के खिलाफ अपील दायर करने का अवसर प्रदान करते हुए राज बब्बर को हुए 23 सितंबर, 1996 को अदालत में आरोपपत्र अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था. मतदान अधिकारी कृष्ण सिंह राणा ने दो मई 1996 को वजीरगंज थाने आरोपियों को तलब किया. सात मार्च 2020 को राज राज बब्बर व अरविंद सिंह यादव के अलावा अज्ञात लोगों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराई . उन्होंने शिकायत की थी कि मतदान केंद्र संख्या 192/103 के श्रीवास्तव, चंद्र दास साहू के अलावा डा एमएस कालरा थे संख्या 192 पर जब मतदाताओं का आना बंद हो गया तब भोजन करने जा रहे थे कि राज बब्बर पहुंच गए और फिल्मी स्टाइल में हंगामा मारपीट शुरू कर दी.

लखनऊ में समाजवादी पार्टी के तत्कालीन लोकसभा उम्मीदवार राज बब्बर अपने साथियों को लेकर मतदान केंद्र में आए व फर्जी मतदान का झूठा आरोप लगाने लगे. आरोप है कि राज बब्बर व उनके साथियों ने वादी व शिव कुमार सिंह को मारा पीटा। इसी बीच मतदान केंद्र के बूथ संख्या 191 अलावा वीके शुक्ला व पुलिस वालों ने उन्हें बचाया. आखिरकार आरोपपत्र पर संज्ञान लेकर अदालत ने बब्बर के खिलाफ आरोप तय किए गए अभियोजन ने वादी श्रीकृष्ण सिंह राणा, शिव कुमार सिंह, सजा सुनाये जाने के वक्त राज बब्बर अदालत में मौजूद थे.

हमारे देश की कानून व्यवस्था ऐसी है कि उसकी निगाह में सब बराबर है और कानून को अपने हाथ में लेने वाले चाहे कितनी बड़ी शक्ति रखते हों, बच नहीं सकते. इसके जाने कितने उदाहरण हमारे आसपास हैं जो हमें बताते हैं कि देश का संविधान और कानून सर्वोपरि है.

Ghum Hai Kisikey Pyaar Ki सई ने कराया बोल्ड फोटोशूट, देखें Photos

गुम है किसी के प्यार है में  की आयशा सिंह यानी सई सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह अक्सर सोशल मीडिया पर फैंस के साथ फोटोज और वीडियोज  शेयर करती रहती है. अब उन्होंने अपने ग्लैमरस फोटोशूट से फैंस को सरप्राइज कर दिया है.

शो में सई को अपने किरदार से दर्शकों के दिल पर राज करती है. सई का किरदार काफी सिंपल है, इस किरदार से सई घर-घर में मशहूर है. अब सई ने ऐसा बोल्ड और ग्लैमरस फोटोशूट करवाया है जिसमें उनका बेहद बोल्ड अवतार दिख रहा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Fitvilla Telly (@fitvillatelly)

 

इस फोटोज में आप देख सकते हैं कि आयशा ने लहंगा पहना है, उनका डीप नेकलाइन उनके लुक को बेहद बोल्ड बना रहा है और इसके साथ ही उनके एक्सप्रेशन कमाल के है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ayesha Singh (@ayesha.singh19)

 

फैंस आयशा के इस फोटोशूट की जमकर तारीफ कर रहे हैं. आयशा का बोल्ट फोटोशूट काफी दिनों बाद देखने को मिला है. शो की बात करे तो अपकमिंग एपिसोड में जल्द ही बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. पाखी, सई और विराट के बच्चे की सेरोगेट मदर बनेगी. लेकिन सई इस बात पर नाराज हो जाएगी और घर छोड़कर चली जाएगी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Kishori Shahane Vij (@kishorishahane)

 

दूसरी तरफ पाखी बेटी को जन्म देगी और वो दोनों अपने बच्चे के लिए बड़ा फैसला लेंगे, दोनों शादी कर लेंगे. शो में ये देखना दिलचस्प होगा सई विराट और पाखी को लेकर कैसे रिएक्ट करती है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Ayesha Singh (@ayesha.singh19)

 

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें