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उफ! यह मोटापा

मोटापा सिर्फ शरीर में चरबी का भर जाना नहीं है, बल्कि मोटापे से जन्मती हैं कई शारीरिक, सामाजिक और मानसिक समस्याएं, जिन के चलते पीडि़त व्यक्ति गहरे अलगाव और अवसाद में चला जाता है. उस के लिए जीना दूभर हो जाता है.

ललित चौधरी की ट्रेन आज फिर छूट गई. अब शेयरिंग टैक्सी से औफिस जाना पड़ेगा. कम से कम 2 घंटे लग जाएंगे. उन के चेहरे पर चिंता की रेखाएं साफ दिखने लगीं. वे भोपाल से 40 किलोमीटर दूर रहते थे और ट्रेन से घंटेभर में पहुंच जाते थे.

जल्दीजल्दी उन्होंने शेयरिंग टैक्सी की. ड्राइवर को तेज चलाने की हिदायत दी पर बाकी लोगों ने कहा कि यहां की सड़कें खराब हैं, रिस्क मत लें.

9.30 की जगह 11.10 पर औफिस के गेट के पास उतरे. हांफते हुए लिफ्ट की ओर बढ़े. ‘लिफ्ट खराब है’ की तख्ती देख उन का तो जैसे सिर ही चकरा गया. कलाई घड़ी देखते हुए वे मन ही मन बुदबुदाए, ‘फिर सीढ़ी से चौथी मंजिल तक जाना होगा, 20 मिनट और लेट.’

किसी तरह हांफते और पसीने से लथपथ, चेहरे पर चुहचुहा आए पसीने को रूमाल से पोंछते हुए औफिस पहुंचे तो वर्मा और पटेल सहित कई सहकर्मियों के चेहरों पर मुसकराहट की रेखाएं खिंच गईं. काजल बाबू ने पटेल को इशारा करते हुए व्यंग्य कसा, ‘‘आ गए अप्पू राजा. मालगाड़ी आज फिर 2 घंटे लेट है.’’

ललित चौधरी इन व्यंग्यबाणों की परवा किए बगैर कुरसी पर बैठे ही थे कि बड़े साहब का चपरासी आ कर बोला, ‘‘शर्मा साहब तीसरी बार आप को याद कर रहे हैं.’’ ललित बाबू मुंह लटकाए साहब के चैंबर की ओर चल दिए.

‘‘यह क्या तमाशा है चौधरीजी, 2 घंटे से मैं आप को ढूंढ़ रहा हूं और आप अब आ रहे हैं? विशाल कंस्ट्रक्शन की फाइल तैयार हुई?’’

‘‘नहीं, टाइम नहीं मिला.’’

‘‘टाइम नहीं मिला? आप काम ही क्या करते हैं कि टाइम नहीं मिलता? आप का दिमाग भी मोटा हो गया है. कोई भी काम करने के लिए कहो तो आप से होता ही नहीं. ऊंघने और सोने से फुरसत मिले तब न?’’

ललित क्या जवाब देते, गरदन ?ाकाए खड़े रहे. जब साहब का बोलना बंद हुआ तो चुपचाप बाहर निकल गए.

22-23 कर्मचारियों के बीच वे अकेले ऐसे क्लर्क हैं जो मोटापे के शिकार हैं. पेट निकला हुआ, मोटीमोटी बांहें और गरदन का तो पता ही नहीं चलता. ये अपने को जिम्मेदार क्लर्क मानते हैं किंतु किसी काम को निबटाने में इन्हें अच्छाखासा समय लग जाता है. लाइन कटी नहीं कि पसीने से लथपथ. कमीज, बनियान तक भीग जाती है. बदबूदार पसीने के कारण सहकर्मियों के बीच हमेशा उपहास का पात्र बनना पड़ता है उन्हें. उन के ऊंघने और खर्राटा भरने से भी लोग परेशान रहते हैं. टिफिन खाया नहीं कि खर्राटे भरने लगते हैं वे.

उन की पत्नी और बच्चे परेशान रहते हैं इस आदत से. ये आदतें उन्होंने गांव से सीखी थीं जहां उन के पिता व दादा रहते थे, पर अब 20 साल से भोपाल से कुछ दूर इस शहर में रहते हैं क्योंकि भोपाल में घर छोटे भी हैं और महंगे भी.

कार्यकुशलता : शक के घेरे में

मोटे और भारीभरकम बदन वाले लोगों के साथ परेशानी यह है कि इन की कहीं भी इज्जत नहीं होती, न औफिस में, न घर में और न ही समाज में. इन की कार्यकुशलता को शक की निगाह से देखा जाता है. इन की मानसिक क्षमता को भी गंभीरता से नहीं लिया जाता. सम?ा जाता है कि ऐसे लोगों का दिमाग भी मोटा होता है.

ललित चौधरी की ही बात ले लीजिए. अपनी ओर से औफिस का काम जिम्मेदारी और ईमानदारीपूर्वक निभाना चाहते हैं. कोशिश भी करते हैं पर न तो इन के सहकर्मी और न ही इन के औफिसर इन के काम को गंभीरता से लेते हैं. पतले और छरहरे बदन वालों की तरह इन में वह फुरती नहीं, थोड़ा सा चलने, भारी सामान उठाने, 10-20 सीढि़यां चढ़ने से हांफने लगते हैं. इन की जाति भी कई बार आड़े आने लगती है.

ऐसे लोग गाढ़ी नींद नहीं सो पाते. पेट निकले होने और गरदन मोटी होने के कारण सांस लेने में कठिनाई होती है, इस से नींद टूट जाती है इन की. फलस्वरूप दिन में मूड फ्रैश नहीं रहता ऐसे लोगों का. इन में दिनभर आलस, थकान और सुस्ती बनी रहती है.

किशोर बाबू की समस्या तो और भी जटिल है. घुटनों और कमर में हमेशा दर्द रहता है जिस से वे ठीक से चल नहीं पाते. पैर फैला कर लंगड़ाते हुए चलते हैं वे. सांस लेते हैं तो उन का पेट धौंकनी की तरह आगेपीछे होता है. उम्र तो 40 से अधिक नहीं, पर उन के चेहरे पर हमेशा बारह बजे रहते हैं.

आर्थ्रइटिस होने के कारण उन के जोड़ों में दर्द रहता है. पिछले साल उन्हें हार्टअटैक हो चुका है. चिकित्सक ने तैलीय व मसालेदार चीजें खाने से मना किया है पर खानेपीने के शौकीन किशोर बाबू का दिल नहीं मानता. सुबह के नाश्ते से ले कर रात के खाने तक कई तरह की गोलियां उन्हें गटकनी पड़ती हैं. औफिस पहुंचते हैं तो पहले आधा घंटा सुस्ताते हैं वे, फिर कोई काम शुरू करते हैं. दूसरे कर्मचारी इन के काम को कभी गंभीरता से नहीं लेते. इन्हें लोग ‘लंबदोर भैया’ कहते हैं.

पीडब्लूडी के दफ्तर में काम करने वाले वर्माजी को लोग ‘टुनटुन बाबू’ कहते हैं. भारीभरकम शरीर वाले इन बाबू के शरीर से निकलने वाले पसीने की बदबू से लोग खासे परेशान रहते हैं. इन्हें गरमी इतनी लगती है कि लाइट कटी नहीं कि कुरसी छोड़ कर बालकनी में चले जाते हैं और तब तक नहीं लौटते जब तक लाइट नहीं आ जाती और एसी चल नहीं जाता.

इन की एक और परेशानी है. खुजलाने की. खुजली, फोड़ेफुंसी से परेशान रहते हैं ये. इन के हाथ, बांह, निकले पेट और जांघों के बीच हमेशा खुजली होती रहती है. मौका मिलते ही वे खुजलाने से बाज नहीं आते. इन्हें गैस की भी शिकायत रहती है.

जो दिखता है, वही बिकता है

बदलते दौर में आजकल मार्केट का बस एक ही सूत्र है- ‘जो दिखता है वही बिकता है.’ इसे उलट कर ऐसे कह सकते है, ‘जो बिकता है वही दिखता है.’ आज के जमाने में हर चीज प्रोडक्ट बन गई है यहां तक कि बचपन, जवानी, संवेदना, गरीबी भी. ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं. इसीलिए सभी जगह छरहरे, स्मार्ट और गुडलुकिंग युवकयुवतियों की मांग ज्यादा है. इन का मानना है कि ऐसे लोग फुरतीले, ऐक्टिव और कार्यकुशल तो होते ही हैं, आत्मविश्वासी व जल्दी काम निबटाने में निपुण भी होते हैं.

दूसरी ओर, मोटे थुलथुल लोग देखने में आकर्षक और गुडलुकिंग नहीं होते, इसलिए उन की पूछापाछी कहीं नहीं होती- न औफिस में, न घर में और न ही समाज में. ऐसे लोगों को कोई गंभीरता से नहीं लेता. इन के काम ही नहीं, इन के विचार तक को कोई स्वीकारने को तैयार नहीं होता.

नौकरी के लिए कोई भी विज्ञापन पलट लीजिए. एक ही भाषा होती है, ‘आवश्यकता है छरहरे और स्मार्ट युवकयुवतियों की.’ यही कारण है कि अपनेआप को स्मार्ट और सुंदर दिखाने के लिए महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी इस होड़ में शामिल हैं. इस के लिए वे कौस्मैटिक सर्जरी, बेरियाट्रिक सर्जरी और लाइपो सक्शन तक कराने को तैयार रहते हैं. इसीलिए फिगर ठीक करने और मसल्स बनाने के लिए छोटेछोटे शहरों व कसबों तक में जिम, हैल्थ क्लब, ऐक्सरसाइज सैंटर और जैंट्स पार्लर खुल गए हैं, जहां अमीर युवकयुवतियों के साथसाथ मध्यवर्गीय वर्ग के नौजवान बेधड़क आ रहे हैं. यानी छोटेछोटे कसबों के युवा भी लुक को ले कर काफी सचेत हो गए हैं.

आजकल स्मार्टनैस के 3 सूत्र सर्वमान्य हैं- लुक, बातचीत और रिलेशनशिप. लुक अच्छा हो तभी

बातें करने का मन करता है और रिलेशनशिप भी तभी विकसित होती है. इस में मोटे लोग पिछड़ जाते हैं.

‘‘मेरी कोई गर्लफ्रैंड नहीं. कोई मु?ा से बात तक करना नहीं चाहती,’’ अशोक काव कहते हैं, ‘‘काफी ग्लानि और डिप्रैशन होता है. मेरे सभी साथियों की गर्लफ्रैंड्स हैं लेकिन…’’ अशोक गहरी सांस खींचते हैं, फिर आगे कहते हैं, ‘‘मेरी कोई नहीं है.’’ ऐसे युवक आत्ममुखी, आत्मकेंद्रित और अंतर्मुखी होते हैं.

चूंकि लड़कियां अपनी फिगर को ले कर काफी सचेत रहती हैं, सो मोटी लड़कियों में डिप्रैशन कुछ ज्यादा ही होता है. वे हमेशा उल?ान और तनाव में रहती हैं. यदि कोई उन के मोटापे को ले कर टोक देता है तो जैसे उन पर पहाड़ टूट पड़ता है.

सीमा कहती है, ‘‘पता नहीं क्यों, मैं कैसी हो गई हूं? खानपान पर ध्यान देती हूं, डाइटिंग करती हूं, जिम भी जाती हूं, पर अभी तक कुछ भी फर्क नहीं आया. घर में सभी दुबलेपतले हैं, मांपिताजी, भाईबहन सभी के सभी, पर मैं सम?ा ही नहीं पाती हूं कि मैं कैसे ऐसी हो गई.’’

मोटे लोगों का न तो पढ़ाई में मन लगता है और न कोई काम करने में. सीमा कहती है, ‘‘परफौरमैंस में भी काफी फर्क आया है. मन एकाग्र नहीं रहता. मम्मी हमेशा चिंतित रहती हैं, पता नहीं इस की शादी कैसे होगी? कोई लड़का पसंद करेगा भी या नहीं.’’

ऐसी लड़कियों की शादी में भी काफी परेशानी होती है. मैट्रिमोनियल में हर जगह लिखा होता है, ‘गोरी, छरहरी और लंबी लड़की चाहिए.’ ऐसी लड़कियों को लड़के वाले भी पसंद नहीं करते. आशीष वर्मा के शब्दों में, ‘‘ऐसी लड़कियां दक्षता एवं कुशलता के अभाव में काम के प्रति सुस्त और लापरवाह होती हैं. इन के मां बनने में भी दिक्कत होती है. सब से बड़ी बात यह है कि इन की संतान भी मोटी होती है.’’

रोग का घर

मिसेज वर्मा की उम्र होगी यही कोई 38 वर्ष. वे 2 सालों से घुटनों के दर्द से परेशान हैं. डाक्टर कहते हैं, ‘मोटापा घटाओ.’ लेकिन, उन की जीभ पर लगाम ही नहीं है. दोचार दिन डाइटिंग करती हैं, फिर कोई पार्टी या बाजार जाती हैं तो सारी डाइटिंग धरी की धरी रह जाती है. ठूंसठूंस कर खा लेती हैं. सोचती हैं, ‘आज भर खा लेती हूं. एक दिन खाने से क्या होगा.’ इसीलिए शरीर एकदम भारी और थुलथुल हो गया है. चलनेफिरने में काफी परेशानी होती है. शर्मा आंटी का भी यही हाल है. उन के जिस्म में हमेशा कौलेस्ट्रौल बढ़ा रहता है. डाक्टर के साथसाथ उन के घर के लोग भी परेशान रहते हैं. कम खाने के लिए कितना भी कहो, पर वे सुनती ही नहीं हैं.

मोटे लोगों के शरीर में वसा की अधिकता होती है जिस से रक्त में कौलेस्ट्रौल का स्तर बढ़ जाता है जो रक्तनलियों की भीतरी दीवार में जमा हो कर उसे मोटा और सख्त बना देता है. इन के छिद्र पतले हो जाने के कारण रक्त का आवागमन बाधित हो जाता है जिस से उच्च रक्तचाप, कोरोनरी आर्टरी डिजीज, स्ट्रोक, हृदयाघात आदि की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे मरीज डाइबिटीज के भी शिकार ज्यादा होते हैं. पुरुषों में प्रौस्टेट, महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर, सर्विक्स तथा छोटी आंत के कैंसर की प्रबल संभावना होती है.

मोटापे के कारण : लगभग 35 प्रतिशत महिलाएं बां?ापन का शिकार हो जाती हैं. ऐसा ओवरी की एक विशेष तरह की बीमारी, जिसे पोलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम कहते हैं, के कारण होता है. इस बीमारी में ओवरी की भीतरी और बाहरी दीवार पर कौलेस्ट्रौल के जमाव के कारण रचनागत खराबी आ जाती है. इस कारण इस से स्त्रावित होने वाला एस्ट्रोजन और प्रोजैस्ट्रौन नामक हार्मोनों का स्त्राव भी बाधित हो जाता है. इस से मस्तिष्क से स्त्रावित हार्मोन का स्त्राव भी बाधित हो जाता है. फलस्वरूप गर्भधारण में परेशानी होती है. ऐसी मरीज की माहवारी में भी गड़बड़ी होती है, जैसे मासिक का कम होना, अत्यधिक स्त्राव या 2 मासिकों के अंतराल का कम हो जाना. मोटी महिलाओं में पित्त की थैली में पथरी, औस्टियो आर्थ्रइटिस और प्रीमैच्योर डैथ की भी संभावना बनी रहती है.

ऐसे लोगों को गरमी अपेक्षाकृत ज्यादा लगती है. थोड़ी सी गरमी में पसीनेपसीने हो जाते हैं. गंजी, शर्ट, चेहरा ही नहीं, जांघिया, मोजे तक भीग जाते हैं. बारबार और ज्यादा पसीना आने से बदबू भी आने लगती है, जिस से त्वचा रोग, खुजली और फोड़ेफुंसी हमेशा होती रहती हैं. फलस्वरूप गंदगी की वजह से वे सहकर्मियों के बीच घृणा, उपेक्षा और तिरस्कार के पात्र बनते हैं सो अलग.

ऐसे लोग थोड़ा सा भी शारीरिक श्रम करने, सीढि़यां चढ़ने, भारी सामान उठाने में ही नहीं, तेज कदमों से चलने मात्र से भी हांफने लगते हैं. पेट व गरदन में वसा के जमाव के कारण श्वसन तंत्र और फेफड़े पर दबाव पड़ता है. फलस्वरूप सांस लेने में कठिनाई होती है और गति तीव्र हो जाती है.

अपने ही शरीर से विरक्ति

एक मनोचिकित्सक एवं सैक्स विशेषज्ञ के शब्दों में, ‘‘मोटापे के संबंध में सब से दुखद और पीड़ादायक बात यह है कि ऐसे लोग अपने शरीर व अपनेआप से घृणा करने लगते हैं. उन के मस्तिष्क में रहरह कर वितृष्णा व अवसादपूर्ण विचार आते रहते हैं. शरीर की बनावट और बेढंगेपन के कारण वे दुखी, चिंतित तथा आत्म विध्वंसात्मक विचार रखते हैं.

‘‘आईने के सामने वे अपने हर अंग की आलोचना करते रहते हैं. उन की सोच हमेशा नकारात्मक होती है. वे अपने बाल, अपनी आंखें, गाल, छाती, होंठ, गरदन, पेट, जांघ, कमर यानी हर अंग को निहारते हुए व्यंग्य कसते हैं. इतना ही नहीं, अपनेआप को वे एकदम से बीमार सम?ाने लगते हैं. प्रतिरोधात्मक सोच, गुस्सा तथा अवसाद के कारण वे सारी चीजें खाने लगते हैं जिन के लिए उन्हें मना भी किया जाता है, जिन खाद्य पदार्थों से उन का वजन बढ़ता है.’’

एक दूसरे मनोचिकित्सक की नजर में, ‘‘ऐसे लोगों के दिलोदिमाग में यह बात घुस जाती है कि वे आकर्षक नहीं हैं, बल्कि कुरूप हैं. वे यह भी सोचते हैं कि प्रत्येक वह आदमी जो मु?ा से मिलता है, मेरे बारे में यही धारणा रखता है.’’

ड्यूक यूनिवर्सिटी के डाइट एंड फिटनैस विभाग के एक विशेषज्ञ के शब्दों में, ‘‘उन्हें इस बात की चिंता नहीं होती कि उन के शरीर के साथ क्या बुरा हो रहा है, बल्कि इस बात की चिंता होती है कि लोग उन के बारे में क्या सोच रहे हैं.’’

ऐसा देखा गया है कि मोटापे के शिकार लोग अपने मोटापे को ले कर हमेशा मानसिक दबाव, तनाव और अवसाद से पीडि़त होते हैं. ऐसे लोग आत्ममुखी, एकांतवासी और आत्मकेंद्रित होते हैं. वे कोलाहल, भीड़ से दूर भागते हैं. वे परिवार, समाज तथा दोस्तमित्रों से भी ज्यादा संपर्क नहीं रखते. उन्हें अपना जीवन एकदम नीरस और उबाऊ लगने लगता है.

ऐसे लोगों का सब से दुखद पहलू यह होता है कि उन में अपने शरीर के प्रति आत्मविश्वास की काफी कमी होती है. मानसिक उल?ान के कारण वे दृढ़तापूर्वक कोई ठोस निर्णय लेने की स्थिति में नहीं होते. उन में हमेशा एक अज्ञात डर बना रहता है. ऐसा लगता है कि वे जो निर्णय लेने जा रहे हैं उस में किंतुपरंतु है. क्या ठीक है क्या गलत है, वे यह सम?ा नहीं पाते. उन पर अपने लोगों का भी विश्वास नहीं होता. ऐसे लोगों को समाज ही नहीं, परिवार के दूसरे सदस्य भी किसी विशेष निर्णयात्मक विचारविमर्श में शामिल करना नहीं चाहते.

ये अपने शरीर की आकृति और बनावट को स्वीकार नहीं कर पाते. इन्हें अपने शरीर से प्यार नहीं होता. ये लोग अपने शरीर की सचाई को स्वीकार नहीं कर पाते. ऐसे लोग इस मानसिकता और सोच को बदल नहीं पाते या फिर बदलने की स्थिति में नहीं रहते. ये लोग अपने शरीर से आगे बढ़ कर न तो सोच पाते हैं और न ही उस में सुधार लाने की दिशा में कोई सकारात्मक पहल ही कर पाते हैं.

महिलाओं की स्थिति तो और भी नाजुक होती है. अधिकतर महिलाएं मानसिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से दुखी होती हैं. पासपड़ोस में उपहास और व्यंग्यबाण का शिकार तो होती ही हैं, अपने परिवार में भी वे इस से अछूती नहीं होतीं. न तो इन को, न इन के विचार और न ही इन के द्वारा किए काम को कोई गंभीरता से लेता है. शरीर की तरह इन की बुद्धि भी मोटी होती है. इस कारण ये हमेशा उपेक्षा, घृणा और तिरस्कार महसूस करती हैं.

धीरेधीरे इन में मानसिक अवसाद घर कर जाता है और फिर ये भावनात्मक रूप से अपने को शांत, स्थिर और संतुलित नहीं रख पातीं. इस के कारण इन के स्वभाव में परिवर्तन भी आने लगता है. मन चिड़चिड़ा तो हो ही जाता है, ये अपनेआप को अकेला भी महसूस करने लगती हैं. यदि कामकाजी महिलाएं हैं तो दफ्तर में भी इन के कामों को गंभीरता से नहीं लिया जाता, न तो सहकर्मी और न ही बौस. इन को जिम्मेदारी वाले काम नहीं दिए जाते क्योंकि ऐसे लोग शरीर से ऊपर उठ कर कुछ सोच ही नहीं सकते या फिर सोचने की स्थिति में नहीं रहते. इन के पास क्षमता या खासीयत होने के बावजूद इन को उभरने का मौका नहीं मिलता.

दांपत्य जीवन में तनाव

यह सच है कि मोटे लोग देखने में अट्रैक्टिव नहीं होते. ऐसी काया किसी को आकर्षित भी नहीं करती. जो काया आंखों को भाती ही नहीं, उस के प्रति प्यार कहां, इच्छा कहां, चाहत कहां, न पत्नी की आंखों में और न प्रेमिका की ही आंखों में.

पेट में, जांघ में, छाती में हर जगह वसा का जमाव. अंगप्रत्यंग थुलथुल.

10 कदम चले नहीं कि धौंकनी की तरह हांफने लगना. ऐसी स्थिति में सहवास की इच्छा क्या होगी? बिस्तर पर जाने के बाद शरीर इतना थक कर चूर कि मन में कोई दूसरा खयाल आता भी नहीं है. उधर पति की शिकायत कि वह इतनी मोटी है कि एक तो मन ही नहीं करता और मन किया भी तो संतुष्टि नहीं मिलती. कंपलीट इंटरकोर्स नहीं हो पाता.

मोटी लड़कियों या औरतों को मासिक में गड़बड़ी तथा सैक्स हार्मोन में अनियमितता के साथसाथ उत्तेजना में कमी होना आम बात है. इस कारण वे अवसाद, वितृष्णा व मानसिक तनाव से हमेशा घिरी रहती हैं. उन में सैक्स के प्रति कोई आकर्षण नहीं होता, इच्छा नहीं होती. धीरेधीरे सैक्स से विरक्ति होने लगती है उन्हें. इस कारण उन के दांपत्य जीवन में तनाव और बिखराव होना आम बात है.

मोटापे के कारण लोगों में कई तरह की दिक्कतें और परेशानियां होती हैं. शारीरिक कष्ट तो होता ही है, मानसिक परेशानियां भी कम नहीं होतीं. आज के जमाने में ऐसा भी नहीं है कि इस का इलाज नहीं है या फिर इस से छुटकारा पाया नहीं जा सकता. यदि समय रहते इस के प्रति सचेत रहा जाए तो निश्चितरूप से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. बस, जरूरत है इस के लिए पहल करने की.

अग्निपथ: घटा नए सैनिकों का कद

सेना को कमजोर करना सरकार की सब से बड़ी भूल होगी. अग्निपथ योजना किसी भी कोण से यह आश्वस्त नहीं करती कि इस से सेना युवा और तेज होगी. उलटे यह हर साल रिटायर हो रहे तीनचौथाई ट्रेंड सैनिक देश की गरीबी, बेरोजगारी और युवा सपनों पर पानी फेरेगी.

कुछ दिनों पहले बागपत के बड़ौत शहर में जूते के थोक व्यापारी ने फेसबुक लाइव पर कैमरे के सामने जहर खा कर सुसाइड करने की कोशिश की. व्यापारी को जहर खाता देख उन की पत्नी ने जहर की पुडि़या छीनने को कोशिश की, लेकिन तब तक व्यापारी ने लोगों से वीडियो को वायरल करने की अपील करते हुए पानी के साथ जहर निगल लिया. इस के बाद उन की पत्नी ने भी बचा हुआ जहर खा लिया. व्यापारी ने वीडियो में कहा कि सरकार छोटे दुकानदारों और किसानों की हितैषी नहीं है.

उत्तराखंड का 24 वर्षीय सोनू बिष्ट एक साल से बेरोजगार था. उस के पिता नहीं थे और मां गंभीर रूप से बीमार थी. कुछ समय उस ने सीटीआर निदेशक के कार्यालय में कंप्यूटर औपरेटर का कार्य किया, बाद में उसे हटा दिया गया. वह

4 बार सेना में भरती के लिए गया पर भरती न हो पाया. पिछले साल जिम कार्बेट टाइगर रिजर्व के बिजरानी रेंज जंगल में उस का शव पेड़ से लटका मिला. दुनिया छोड़ने से पहले उस ने अपने सारे शैक्षिक प्रमाणपत्रों को भी जला दिया था.

सेना में भरती की आस लिए

24 वर्षीय सुरेश भींचर 29 मार्च की रात 9 बजे सीकर, राजस्थान के जिला स्टेडियम से हाथों में तिरंगा उठाए दौड़ता हुआ निकला. 50 घंटे की दौड़ और

350 किलोमीटर का रास्ता तय कर के वह 2 अप्रैल की शाम 6 बजे दिल्ली पहुंचा और यहां उस ने अपने गृह जनपद नागौर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद बने हनुमान बेनीवाल से सेना में भरती खुलवाने का आग्रह ज्ञापन सौंपा.

राजस्थान के नागौर जिले के सुरेश भींचर के भीतर सेना में शामिल होने के जनून ने उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया. सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का यह उस का शांतिपूर्ण प्रयास था, जो पिछले कई सालों से सेना में भरती हो कर भारत मां की सेवा करने का सपना देख रहा है.

सुरेश ने कहा, ‘‘2 वर्षों से सेना में भरती बंद है. नागौर, सीकर, ?ां?ानू के युवाओं की उम्र निकली जा रही है. वे भरती की आस लिए कठोर वर्जिश कर रहे हैं, दौड़ लगा रहे हैं. उन के परिवार के लोग अपना पेट काटकाट कर उन को अच्छी खुराक दे रहे हैं कि वे सेना भरती के इम्तिहान में सफल हों, लेकिन भरती नहीं खुल रही है. मैं उन सब युवाओं का संदेश देने के लिए दौड़ कर दिल्ली आया हूं, उन का जोश बढ़ाने आया हूं.’’

गौरतलब है कि सेना में युवा सिर्फ रोजगार पाने की लालसा से नहीं आते, बल्कि उन के खून में देशभक्ति उबाल मारती है. देश के लिए जान देने का जज्बा होता है, इसलिए आते हैं. जिन की पिछली कई पीढि़यां देश पर कुरबान हो गईं, सीमा पर शहीद हो गईं, वे अपने उन वीर सपूतों की जीवनगाथा और वीरता से प्रेरणा पा कर देश के लिए मरमिटने का सपना ले कर सेना में आते हैं.

8 मई को भिवानी की सड़कों पर तिरंगा हाथों में ले कर युवाओं ने सरकार से मांग की कि जल्द से जल्द सेना भरती खुलवाई जाए. इस से पहले फरवरी में देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में एक रैली के दौरान युवाओं ने आग्रह किया था कि सेना भरती शुरू की जाए. राजनाथ सिंह से लोगों ने कहा कि युवाओं की उम्र निकली जा रही है. तब राजनाथ सिंह ने आश्वासन दिया था कि जल्दी ही भरतियां शुरू होंगी, मगर हुआ कुछ नहीं.

युवाओं में हताशा बढ़ने लगी. कुछ दिनों पहले ही राहुल गांधी ने ‘दो भारत’ की बात क्या कही कि बवाल मच गया. बवाल इसलिए क्योंकि मोदी सरकार के समक्ष गरीबी और बेरोजगारी कभी मुद्दा ही नहीं रहीं. वह 2014 से शाइनिंग इंडिया, विश्वगुरु, महाशक्ति जैसे दिवास्वप्न में खोई हुई है. उस चमचमाहट के आगे देश की भूखी, नंगी, बेरोजगार जनता उसे दिखती ही नहीं है. भूखीबेबस कराहें सरकार के कानों तक तब तक नहीं पहुंचतीं जब तक वे भयावह चीखें न बन जाएं.

बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान इन 4 राज्यों से सब से ज्यादा नौजवान सेना में आते हैं. 15-16 साल की उम्र से ही वे तैयारी में जुट जाते हैं. रोजाना कड़ी वर्जिश करते हैं, कईकई किलोमीटर की दौड़ लगाते हैं. इस के लिए वे काफी पैसा अपनी अच्छी खुराक और अपने ट्रेनर्स पर खर्च करते हैं. बीते 4 वर्षों से देश के अलगअलग हिस्सों में नौजवान सेना भरती शुरू करवाने की मांग ले कर कई बार सड़कों पर उतरे. दिल्ली के जंतरमंतर पर भी धरना दिया. मगर उन के शांतिपूर्ण प्रदर्शन से सरकार के कानों पर जूं नहीं रेंगी. मोदी सरकार इन नौजवानों के भविष्य पर ताला जड़ कर बैठी रही और अब जब ताला खुला तो उस में ऐसा ‘अग्निपथ’ नजर आया कि युवा आगबबूला हो गए और उस के बाद तो आक्रोशित युवाओं ने देशभर में आग लगा दी.

क्या है ‘अग्निपथ’

केंद्र सरकार ने 14 जून को सेना में छोटी अवधि की नियुक्तियों की घोषणा की. सरकार ने इसे ‘अग्निपथ योजना’ का नाम दिया. योजना के मुताबिक अब सेना में सिर्फ 4 वर्षों के लिए जवानों की भरती होगी, जिन्हें ‘अग्निवीर’ बुलाया जाएगा. योजना के तहत भरती किए गए युवाओं में से सिर्फ 25 प्रतिशत युवाओं को भारतीय सेना में 4 वर्षों के बाद आगे बढ़ने का मौका मिलेगा जबकि 75 प्रतिशत अग्निवीरों को नौकरी छोड़नी होगी.

4 वर्ष के बाद जो अग्निवीर सेना से रिटायर हो कर बाहर निकलेंगे उन के सामने क्या विकल्प होगा, इस का कोई जवाब सरकार के पास नहीं है.

भारत पहली बार सेना में इतनी कम अवधि के लिए युवाओं को भरती करने जा रहा है. जबकि अभी तक जो जवान सेना में आते थे, वे अगले 19 साल तक देश की सेवा करते थे. रिटायर होने पर उन्हें पैंशन मिलती थी और कैंटीन व स्वास्थ्य सेवाओं का फायदा मिलता था. मगर अग्निवीरों के लिए ऐसा कुछ नहीं है. कई सालों से सेना भरती खुलने के इंतजार में दिनरात मेहनत कर रहे युवा सरकार की 100 दिन की रोजगार गारंटी जैसे मनरेगा की तर्ज पर 4 साल के लिए सेना में भरती योजना ‘अग्निपथ’ को देख कर भावी अग्निवीर भयंकर रूप से उग्र हो गए.?

धूधू कर जल उठा देश

14 जून को ‘अग्निपथ योजना’ की घोषणा होते ही बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, ?ारखंड, हरियाणा, राजस्थान सभी जगह हालात बेकाबू हो गए. सेना में भरती की आस लगाए बैठे युवा हाथों में लाठीडंडा और मशालें उठाए सड़कों पर उतर आए. युवाओं का गुस्सा और प्रदर्शन का स्केल इतना व्यापक हो गया कि उन के आगे पुलिस बौनी हो गई.

पटना से सटे दानापुर रेलवे स्टेशन को तबाह कर दिया गया, जबकि वहां बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात था. पूरे प्लेटफौर्म पर प्रदर्शनकारियों ने बेखौफ तोड़फोड़ की और कई ट्रेनों को आग के हवाले कर दिया. फरक्का एक्सप्रैस और रेलगाड़ी के 2 इंजन पूरी तरह जल कर राख हो गए. स्टेशन के बाहर खड़ी बाइकें और अन्य वाहन भी प्रदर्शनकारियों ने फूंक दिए. रेलवे सुरक्षा पुलिस की चैकपोस्ट को भी नहीं छोड़ा.

समस्तीपुर में आंदोलनकारियों ने दरभंगा-नई दिल्ली संपर्क क्रांति एक्सप्रैस को फूंक दिया. पुलिस कुछ नहीं कर सकी. इस तरह बिहार और ?ारखंड के कई इलाके हिंसक और उग्र प्रदर्शनों की भेंट चढ़ गए.

नालंदा में हटिया-इसलामपुर ट्रेन की बोगियों को फूंक दिया गया. पालीगंज में बस जला दी गई. एक अनुमान के अनुसार अब तक रेलवे की 700 करोड़ रुपए की संपत्ति ‘अग्निपथ’ की आग में स्वाहा हो चुकी है.

मथुरा में नैशनल हाईवे नंबर दो से जाम हटाने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. वहां अनेक वाहनों को नुकसान पहुंचाया गया और कई यात्री चोटिल हुए. बलिया में रेलवे ट्रैक पर हिंसा और तोड़फोड़ हुई. वहां रेल कोच में आग लगा दी गई. शहर के भीतर पथराव हुआ.

हरियाणा का भी यही हाल रहा. रोहतक में धारा 144 लगी होने के बावजूद ट्रैक्टरों में सवार हो कर प्रदर्शनकारियों ने भाजपा दफ्तर को घेर लिया. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर निकल आए.

भाजपा नेताओं पर फूटा गुस्सा बिहार में कई जगहों पर भाजपा के दफ्तरों और नेताओं के घरों पर हमले हुए.

मधेपुरा में भी भाजपा कार्यालय पर सैकड़ों युवाओं ने हमला बोला. 16 जून को नवादा स्थित भाजपा कार्यालय में आग लगा दी गई और विधायक की गाड़ी समेत पुलिस की गाड़ी भी जला दी गई. ऐसे ही उग्र प्रदर्शन देश के अन्य राज्यों में भी हुए, लगातार जारी हैं और इस की वजह है युवाओं को भरी जवानी में भूतपूर्व बनाने की मोदी सरकार की अभूतपूर्व योजना अग्निपथ. सेना में भरती हो कर देश सेवा की चाह रखने वाले युवाओं के लिए लाई गई अग्निपथ अब सरकार के लिए ही अग्निपथ बन गई है. जिन्हें सरकार अग्निवीर बनाने वाली थी उन्होंने मशालें ले कर पूरे देश में अग्नि लगा दी.

आखिर क्यों अग्निवीर हुए इतने आगबबूला

दरअसल सरकार ने कोविड के नाम पर सेना में रूटीन भरती 2 वर्षों से बंद कर रखी है, जिस के लिए युवा शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन और आंदोलन कर रहे थे. 2 वर्षों से रुकी हुई भरती को छोड़ दो तो इस से पहले तक हर साल तीनों सेनाओं में करीब 60 हजार जवानों की भरती होती थी. करीब इतने ही फौजी रिटायर हो जाते थे.

अब सामान्य भरती प्रक्रिया शुरू करने के बजाय सरकार 4 साल की अग्निपथ योजना ले आई. इस योजना में युवाओं को सिर्फ 4 साल के लिए ही सेना में भरती किया जाएगा और 4 साल बाद

उन में से 75 प्रतिशत युवाओं को निकाल दिया जाएगा. सिर्फ 25 प्रतिशत को ही अगले 15 वर्षों के लिए सेना में सेवा का मौका मिलेगा.

सरकार का तर्क

इस योजना को ले कर सरकार के अपने तर्क हैं. रक्षा मंत्रालय का कहना है कि इस से 2030 तक सेना की औसत उम्र 32 से घट कर 24 से 26 साल हो जाएगी. सेना अगले

10 सालों में युवा और अनुभवी फौजियों के अनुपात को  1:1 तक लाना चाहती है. अग्निपथ योजना के तहत अगले 10 सालों में तीनों सेनाओं में आधे अग्निवीर होंगे. इस से सेना ज्यादा युवा, ज्यादा फिट और ट्रेनिंग देने लायक हो जाएगी.

अगर 2022-23 के रक्षा बजट को देखें तो यह 5.25 लाख करोड़ रुपए है. इस में से 1.19 लाख करोड़ रुपए केवल पैंशन में खर्च हो जाएंगे और तकरीबन इतने ही रुपए सैलरी पर खर्च होंगे. करीब पौने 3 लाख करोड़ रुपयों से सेना की बाकी जरूरतें पूरी होंगी. अग्निवीर योजना से पैंशन और सैलरी पर होने वाले खर्च का एक बड़ा हिस्सा बचेगा, जिसे सेना को अच्छे हथियार और टैक्नोलौजी देने में खर्च किया जा सकेगा.

सरकार ने अपना खर्च बचाने की तैयारी तो कर ली मगर उन लाखों नौजवानों के भविष्य के बारे में नहीं सोचा जो बचपन से सेना में आने का सपना पाले हुए थे. सेवानिवृत्त हुए तो रिटायर्ड फौजी कहलाएंगे, ताउम्र पैंशन पाएंगे, फौजियों को मिलने वाली अन्य सुविधाओं के हकदार होंगे और देश के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए तो शहीद का दर्जा पाएंगे.

सेना को कमजोर करने वाला कदम

रिटायर्ड मेजर जनरल अश्विनी सिवाच कहते हैं, ‘‘डिफैंस बजट में वेतन और पैंशन पर खर्च बढ़ता जा रहा है. सरकार पर दबाव था. वह किसी तरह पैंशन को कम करना चाहती थी. दूसरा प्रैशर औसत उम्र को ले कर है. सरकार सेना में औसत आयु 26 साल से घटा कर 20-21 साल करना चाहती है.

रक्षा विशेषज्ञ पी के सहगल यह सवाल उठाते हैं कि मात्र 6 महीने की ट्रेनिंग में भला एक बेहतर योद्धा कैसे तैयार होगा? गौरतलब है कि अग्निपथ योजना के तहत युवाओं को सिर्फ 6 महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी और उस के बाद उन की नियुक्ति हो जाएगी.

रक्षा विशेषज्ञ पी के सहगल का कहना है कि एक अच्छा सैनिक बनने में 6 से 7 साल लग जाते हैं. सेना से जुड़ाव, देश से जुड़ाव और जिम्मेदारी की भावना मजबूत होने में, सेना की गोपनीयता को आत्मसात करने में इतना वक्त लग जाता है. इस के अलावा आज सेना के पास बहुत ही सुपर सोफिस्टिकेटेड इक्विपमैंट आ गए हैं. ये इक्विपमैंट आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस से लैस हैं. 6 महीने की ट्रेनिंग में जवान उन इक्विपमैंट्स को हैंडल करना सीख लेंगे और कोई जंग जीत सकेंगे, यह सोचना एक बहुत बड़ी भूल है.

उल्लेखनीय है कि सेना अपने रंगरूट को तमाम मानकों पर खरा उतरने के बाद रेजीमैंटल ट्रेनिंग के लिए भेजती है. वहां उसे 19 माह तक जबरदस्त शारीरिक परिश्रम के दौर से गुजरना पड़ता है.

दिन 5 बजे से शुरू होता है और रात 10 बजे खत्म होता है. सप्ताह के सातों दिन यह ट्रेनिंग चलती है. कुल मिला कर करीब 5 हजार घंटे की कड़ी शारीरिक ट्रेनिंग के बाद सेना का जवान तैयार होता है.

यूपीएससी की कठिन परीक्षा को पार कर के सेना में जाने वाले अफसर को नैशनल डिफैंस एकेडमी (एनडीए) में 3 साल और उस के बाद इंडियन मिलिट्री एकेडमी या औफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी में एक साल ट्रेनिंग के बाद तैनाती मिलती है.

ऐसे ही वायुसेना में पहले 6 माह की बेसिक ट्रेनिंग, 6 महीने की विशेष श्रेणियों की ट्रेनिंग और बाकी 6 महीने की एंट्री ट्रेनिंग होती है.

नौसेना में सेलर की ट्रेनिंग 6 महीने के लिए आईएनएस चिल्का प्रशिक्षण स्कूल में होती है. इस के बाद 6 माह विभिन्न श्रेणियों की ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है जहां उसे समुद्री सेलिंग का प्रशिक्षण भी दिया जाता है.

एनडीए में 3 साल गुजारने के बाद नौसेना अफसर एक साल नौसैनिक एकेडमी में जाता है. इस के बाद 6 माह की सी-कैडेट ट्रेनिंग, 6 माह की मिड-सी ट्रेनिंग होती है.

इन के मुकाबले अग्निवीरों की मात्र 6 माह की ट्रेनिंग उन्हें सेना के लिए कितना उपयुक्त बनाएगी?

अश्विनी सिवाच ने भी 4 साल के लिए फौज में आए सैनिकों की वफादारी पर प्रश्नचिह्न लगाया है. वे कहते हैं, ‘‘फौज के अंदर नाम, नमक, निशान के काफी माने होते हैं. जिस जवान को पता है कि उस की 4 साल की ही नौकरी है उस में सामान्य जवानों की तरह वफादारी का जज्बा ही नहीं होगा.’’

गैरसामाजिक गतिविधियों में लिप्तता संभव

अश्विनी सिवाच एक और बड़े खतरे से आगाह करते हैं. उन का कहना है, ‘अग्निवीर’ बैटल ट्रेंड जवान होंगे. गरम खून होगा. ऐसे में 21 साल की उम्र में सेना से निकाले जाने के बाद अगर बाहर उन को ठीकठाक जौब नहीं मिली और ये किसी एंटीसोशल एक्टिविटी की तरफ चले गए तो क्या होगा? इस दिशा में अगर सरकार ने नहीं सोचा तो वह बड़ी गलती कर रही है. रिटायरमैंट के बाद इन की जौब सुनिश्चित करनी होगी, वरना देश के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा हो सकता है.’’

सेना में प्रयोग न करे सरकार

अश्विनी सिवाच का कहना है कि ‘‘सैनिकों की भरती पर प्रयोग करने का कदम सही नहीं है. सरकार को एक्सपैरिमैंट करना ही था तो पैरामिलिट्री पर करना चाहिए था, उस के लिए सेना सही नहीं है.’’

पाकिस्तान और चीन बौर्डर का नहीं रखा ध्यान

रक्षा विशेषज्ञ दिनेश नैन एक टीवी चैनल से बातचीत में कहते हैं, ‘‘सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि भारत के साथ पाकिस्तान और चीन के 2 बड़े बौर्डर हैं. इसे आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की मशीनों से कवर करना नामुमकिन है. इसे सिर्फ ट्रेंड जवानों से ही कवर किया जा सकता है. ‘अग्निवीरों’ की नियुक्ति के बाद ट्रेंड सैनिकों की संख्या 25 फीसदी ही रह जाएगी क्योंकि 4 साल की सर्विस के बाद 75 फीसदी तो बाहर हो जाएंगे. जो रह जाएंगे उन की भी ट्रेनिंग उस दर्जे की नहीं होगी जैसी सामान्य जवान की होती है. इसलिए यह सेना को कमजोर करने वाला कदम है.’

इस के अलावा दिनेश नैन ने सेवानिवृत्ति के बाद सैनिकों को मिलने वाली नौकरियों पर भी चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा, ‘‘हर साल करीब 60 हजार सैनिकों का रिटायरमैंट होता है. इतनी ही भरतियां होती हैं. कितने जवानों को रिटायरमैंट के बाद नौकरियां मिलती हैं? कुछ गार्ड एजेंसी में लग जाते हैं, कुछ प्राइवेट चौकीदार बन जाते हैं और अधिकांश अपने गांव लौट कर खेतीबाड़ी करते हैं और अपनी पैंशन के सहारे गुजरबसर करते हैं. ‘अग्निपथ योजना’ में 4 साल सेना को देने के बाद जिन तीनचौथाई सैनिकों को सेना से बाहर किया जाएगा उन के पास तो पैंशन भी नहीं होगी. जो पैसा उस वक्त उन्हें मिलेगा वह कितने दिन चलेगा?’’

दिनेश नैन की चिंता वाजिब है. पढ़ाईलिखाई की उम्र में सेना में भरती होने वाले नौजवान 22-25 साल में फिर बेरोजगार हो जाएंगे. 17 साल की आयु में सेना में भरती होने वाले जवान

10वीं-12वीं कक्षा तक ही शिक्षित होंगे. अगर वे सेना में ही रहते तो उच्च शैक्षणिक योग्यता की दरकार नहीं थी, क्योंकि वहां तो हथियार चलाना है और आदेश मानना है. मगर जब 4 साल बाद वे सेना से बाहर कर दिए जाएंगे और नौकरी खोजने जाएंगे तो 10वीं-12वीं पास को कौन सी अच्छी नौकरी मिलेगी? यानी सरकार ने उन की उच्च शिक्षा प्राप्त करने के 4 साल भी ले लिए और उन को पूरी नौकरी भी नहीं दी, सिर्फ लौलीपौप थमा दिया.’’

पूंजीपतियों की प्राइवेट आर्मी बनेंगे अग्निवीर

मोदी राज में जिस तेजी से रेलवे, हवाईअड्डे, बंदरगाह अडानी-अंबानी ग्रुप्स को बेचे जा रहे हैं तो उन की देखभाल और सुरक्षा के लिए बड़ी संख्या में जवानों की भी जरूरत पड़ेगी. खनिज की बड़ीबड़ी खदानें इन पूंजीपतियों के हाथों में चली गई हैं, उन की सुरक्षा के लिए जवान चाहिए.

अगले 5 सालों में देश के अधिकांश पीएसयू बिक चुके होंगे और सैकड़ों एकड़ में फैले हुए इन के परिसर की देखभाल का जिम्मा, जो अभी सरकारी एजेंसियो के जिम्मे है, वह भी बड़े प्राइवेट औपरेटर्स के पास चला जाएगा. ऐसे में अपने चहेते पूंजीपतियों के लिए प्राइवेट आर्मी बनाने की पूरी तैयारी सरकार ने कर दी है. यंग और ट्रेंड जवानों की अब कमी नहीं होगी. शुरुआती 4-5 सालों में जितने भी अग्निवीर 4 साल की नौकरी के बाद सेना से बाहर किए जाएंगे वे वहीं खप जाएंगे.

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय तो खुलेआम कह चुके हैं, ‘मु?ो यदि अपनी भाजपा औफिस में सुरक्षा रखनी है तो मैं अग्निवीर को प्राथिमकता दूंगा.’ एक रिटायर्ड फौजी को अपने दफ्तर का गार्ड बनाने में विजयवर्गीय की छाती चौड़ी होती होगी.

4 साल की सेना में रह कर देशसेवा करने के बाद एक अग्निवीर जब निकलेगा तो उस समय तक उस की आयु 25 साल होगी. वह ऊर्जा से भरपूर होगा. हाथ में उस के

11 लाख रुपए होंगे. छाती पर अग्निवीर का तमगा लगा कर वह भाजपा और संघ के दफ्तरों के अलावा मोदी के चहेते पूंजीपतियों की सुरक्षा में व उन की गाडि़यों के दरवाजे खोलने बंद करने के लिए तैनात किया जाएंगे.

यह ट्रेनिंग दे कर प्राइवेट सैक्टर के हाथ में सैनिकों का दस्ता सौंपे जाने की तैयारी है, जिन का रेट बहुत

कम होगा, मात्र 8 हजार से 12 हजार रुपए महीना. तमाम कौरपोरेट सैक्टर्स में जो गार्ड काम कर रहे हैं वे लगभग इतनी ही सैलरी पर हैं.

फिर इन से यह सवाल भी होगा कि आप उन 25 प्रतिशत जवानों में क्यों नहीं आए जिन्हें आगे 15 सालों के लिए सेना में रखा गया है? जरूर आप में कमी होगी. इस तरह प्राइवेट सैलरी के बाजार में पूर्व अग्निवीर सैनिकों का भाव और गिर जाएगा.

जिन जवानों की शौर्यगाथा कहने में समूचे शब्दकोष में शब्द कम पड़ जाते हैं, उन की ऐसी दुर्दशा… आह…! फिर इस बात की क्या गारंटी है कि 4 साल में रिटायर कर देने का यह फार्मूला अर्ध सैनिक बलों और पुलिस के लिए नहीं आएगा? जो फार्मूला सेना में चल जाएगा वह आगे इन में क्यों नहीं चलाया जाएगा?

अग्निपथ योजना वापस नहीं ली जाएगी

अग्निपथ योजना को ले कर देशभर में हो रहे प्रदर्शन के बीच सभी सेनाओं के सर्वोच्च अधिकारियों, सेना के अतिरिक्त सचिव, लैफ्टिनैंट जनरल अनिल पुरी, थलसेना के लैफ्टिनैंट जनरल बंसी पोनप्पा, नौसेना के वाइस एडमिरल दिनेश त्रिपाठी और एयरफोर्स के एयर मार्शल सूरज ?ा द्वारा एक संयुक्त प्रैस कौन्फ्रैंस में यह साफ कह दिया गया है कि अग्निपथ योजना वापस नहीं होगी. सेना में आगे की सभी भरतियां अब इसी योजना के तहत होंगी.

लैफ्टिनैंट जनरल अनिल पुरी ने कहा है कि जो युवा प्रदर्शन और तोड़फोड़ में शामिल रहे हैं उन के लिए सेना में कोई जगह नहीं है. आवेदन करने वाले प्रत्येक युवा का पुलिस वैरिफिकेशन होगा. इस के साथ ही उन्होंने आवेदन और आगे की प्रक्रियाओं की डिटेल भी जारी कर दी है.

द्य    24 जून को वायुसेना, 25 जून को नौसेना और 1 जुलाई को थलसेना ने नोटिफिकेशन जारी करने की बात कही है.

25 हजार अग्निवीरों का पहला बैच दिसंबर में जौइन करेगा.

अग्निवीरों का दूसरा बैच फरवरी 2023 में जौइन करेगा.

नौसेना में महिला अग्निवीरों की नियुक्ति होगी जो युद्धपोतों पर तैनात होंगी.

अग्निवीर के शहीद होने पर एक करोड़ रुपया उन के आश्रितों को मिलेगा.

तीनों सेनाओं में अगले 5 साल में सवा लाख अग्निवीर तैयार होंगे.

अग्निपथ से टूटेगा सैनिकों का मनोबल

भूतपूर्व सैनिक संघ उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष मेजर आशीष चतुर्वेदी लखनऊ के रहने वाले हैं. उन की 3 पीढि़यों ने सेना में रह कर देश की सेवा की है. मेजर आशीष चतुर्वेदी ने साल 2006 में सेना से रिटायर होने के बाद से भूतपूर्व सैनिकों के अधिकारों को ले कर लड़ाई लड़ने के लिए भूतपूर्व सैनिक संघ उत्तर प्रदेश की स्थापना की. इस संघ में 4 लाख 66 हजार के करीब सदस्य हैं. मोदी सरकार ने सेना में भरती के लिए अग्निपथ योजना की घोषणा की. इस को ले कर मेजर आशीष चतुर्वेदी से खास बातचीत हुई.

सेना के हित में नहीं : मोदी सरकार की अग्निपथ योजना के बारे में पूछने पर मेजर आशीष चतुर्वेदी कहते हैं, ‘‘सेना की चयन प्रक्रिया व ट्रेनिंग पूरी तरह से फ्री होती है. एक सैनिक की ट्रेनिंग में उस का खानपान, रहना, चिकित्सा और ट्रैवल फ्री होता है. सेना अभी तक जिस को ट्रेनिंग देती थी वह लंबे समय तक अपनी सेवाएं सेना को देता था. अग्निपथ के तहत चुने गए 75 फीसदी सैनिक अग्निवीर 4 साल में ही सेना से रिटायर हो कर वापस चले जाएंगे, इस से सेना के समय और धन दोनों का नुकसान होगा.

‘‘देश को सेना की जरूरत केवल युद्ध के समय ही नहीं पड़ती. सेना आंतरिक सुरक्षा और बाहरी सुरक्षा दोनों की जिम्मेदारी लेती है. आतंकवाद से निबटने, बाढ़ से जीवन बचाने और दूसरे अवसरों पर सेना देश के नागरिकों की सेवा और सुरक्षा की जिम्मेदारी लेती है. सिर्फ 4 साल के लिए सैनिकों के चुनाव का असर पूरी सेना के मनोबल पर पड़ेगा. सेना के रैगुलर सैनिकों के हिस्से से ही अग्निवीर सैनिकों को सुविधाएं दी जाएंगी. जैसे. ट्रेनिंग सैंटर सरकार नहीं बढ़ा रही पर इन पर अतिरिक्त बो?ा पड़ेगा, जिस से सैनिकों का मनोबल कमजोर होगा.’’

सेना पर है काम का दबाव :  मेजर आशीष चतुर्वेदी कहते हैं, ‘‘भारतीय सेना पर काम का दबाव बहुत अधिक है. भारत की सेना पाकिस्तान, कश्मीर, चीन और नौर्थईस्ट बौर्डर पर हमेशा सतर्क रहती है. इस के अलावा यूएन के साथ भी सेना काम करती है. ऐसे में भारतीय सेना दबाव में रहते हुए काम करती है. सेना को जरूरत है कि उस पर अधिक ध्यान दिया जाए. केवल किताबी बातों से सैनिक का काम नहीं चलता है.

‘‘सेना से रिटायर होने के बाद सैनिकों को सम्मानजनक जौब मिलनी चाहिए. अभी तक ऐसा संभव नहीं हो पाया है. 90 फीसदी सैनिक रिटायर होने के बाद केवल बैंक में या दूसरे किसी औफिस में गार्ड के रूप में काम करते हैं. सरकार अपने विभागों में नौकरियां नहीं दे पाती है. तमाम सैनिक कल्याण की बातें केवल पेपर तक में ही दर्ज होती हैं.’’

अपराधियों के टूल्स न बन जाएं अग्निवीर : मेजर आशीष चतुर्वेदी आगे कहते हैं, अग्निवीर सैनिक उस समय रिटायर हो जाएंगे जब दूसरे युवा नौकरियों में भरती हो रहे होंगे. अगर सरकार की बात मान लें कि 25 फीसदी सैनिक सेना में आगे जौब पर रहेंगे तो 75 फीसदी को बाहर जौब के लिए आना होगा. देश में बेरोजगारी की हालत सब को पता है. ऐसे में सेना से ट्रेनिंग ले कर आए 75 फीसदी युवा सैनिक बेरोजगारी के दौर में अपराधियों के बहकावे में आ गए तो ये गलत दिशा में जा सकते हैं.

‘‘अपराधियों को सेना द्वारा ट्रेनिंग दिए युवा मिल जाएंगे जिन को हर तरह के हथियार चलाने, बम बनाने जैसे दूसरे काम करने आते होंगे. ऐसे अपराध करने वालों से निबटना पुलिस और दूसरे लोगों को भारी पड़ेगा. यह समाज के लिए घातक होगा.’’

बेरोजगारी से निबटने के दूसरे रास्ते तलाशे सरकार : मेजर आशीष कहते हैं, ‘‘सरकार को अगर बेरोजगारी से निबटना है तो उसे दूसरे सरकारी विभागों में इस तरह की योजनाओं को लागू करना चाहिए जिस से कम से कम देश की सुरक्षा के साथ कोई खिलवाड़ तो नहीं हो सकेगा.’’

मोदी सरकार के विरोध का जवाब देने के लिए जिस तरह से सेना के अफसरों ने बयान और अग्निपथ योजना में नईनई बातें जोड़ी जा रही हैं, ये ठीक वैसी ही हैं जैसे नोटबंदी, तालाबंदी, जीएसटी और कृषि कानूनों के समय अलगअलग दावे किए जा रहे थे. मोदी सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि कृषि कानूनों को एक साल के बाद वापस लेना पड़ा. इस तरह की जिद करना सेना के लिए बहुत भारी पड़ेगा.

पहले प्रहार फिर विचार ठीक नहीं : वरुण गांधी

अग्निपथ योजना को ले कर देशभर में हुए बवाल और हिंसा के बाद सरकार द्वारा अब इस योजना में लगातार बदलाव को ले कर भाजपा के ही नेता वरुण गांधी सरकार पर भड़क उठे हैं. उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘‘अग्निपथ योजना’ को लाने के बाद महज कुछ घंटे में संशोधन दर्शाते हैं कि संभवतया योजना बनाते समय सभी बिंदुओं को ध्यान में नहीं रखा गया. जब देश की सेना, सुरक्षा और युवाओं के भविष्य का सवाल हो तो पहले प्रहार, फिर विचार करना एक संवेदनशील सरकार के लिए उचित नहीं. ‘सुरक्षित भविष्य’ हर युवा का अधिकार है.’’

यह पहली बार नहीं है जब वरुण गांधी अपनी ही सरकार के खिलाफ मुखर हुए हैं. इस से पहले किसान आंदोलन के समय भी वरुण ने केंद्र सरकार के खिलाफ लगातार आवाज उठाई थी. मगर उन की बात को दरकिनार कर दिया जाता है.

नसीम अंसारी कोचर

पत्रकार से गायक बनी रक्षा श्रीवास्तव को मिला मशहूर संगीतकार व गायक हरिहरन का साथ

इंसान अपनी जिंदगी में बहुत कुछ करना चाहता है, पर कई बार पारिवारिक हालात तो कई बार सामाजिक उसे वैसा करने से रोक देते हैं. तब इंसान हालात बदलने का इंतजार करते हुए दूसरा काम करता रहता है,मगर हालात बदलते ही अपने मनपसंद काम को अंजाम देना षुरू कर देता है.ऐसा ही कुछ इंदौर निवासी रक्षा श्रीवास्तव के संग हुआ.रक्षा रीवास्तव बचपन से ही गायक बनना चाहती थीं.

लेकिन उनके पुलिस अफसर पिता को यह पसंद नही था.तब रक्षा श्रीवास्तव ने पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्रकार बन गयी.वह कई टीवी चैनलों में पंद्रह वर्षों तक काम करती रहीं.पर कोरोना काल में उन्हें संगीतज्ञ कौशल महावीर के साथ नए सिरे से संगीत सीखने का अवसर मिला.इसी बीच उनकी मुलाकात संगीतकार राजीव महावीर और गायक व संगीतकार हरिहरन से मुलाकात हुई.

हरिहरन ने उन्हें नया जोश दिलाया और फिर संगीतकार राजीव महावीर के निर्देषन में रक्षा श्रीवास्तव ने एक संगीत अलबम ‘‘ मंजिलः ए म्यूजिकल जर्नी’’ बनाया. जिसमें उनके द्वारा स्वर बद्ध आठ गजलों का खूबसूरत गुलदस्ता है. इनमें से एक गजल हरिहरन ने खुद रक्षा श्रीवास्तव के साथ गाया है. रक्षा श्रीवास्तव के अलबम ‘‘मंजिलः ए म्यूजिकल जर्नी’ को ‘टी सीरीज’ संगीत कंपनी ने जारी किया है.गायक व संगीतकार हरिहरन ने स्वयं मशहूर लेखक रूमी जाफरी के साथ मिलकर रक्षा श्रीवास्तव के अलबम ‘‘मंजिलः ए म्यूजिकल जर्नी’ का मुम्बई के आइनॉक्स थिएटर में शानदार समारोह में लोकार्पण किया.

आठ गजलों से युक्त संगीत अलबम ‘‘मंजिलः ए म्यूजिकल जर्नी’’ में आठ गजलों में से रक्षा श्रीवास्तव की आवाज में छह सोलो गजलें हैं, एक गजल हरिहरन और रक्षा श्रीवास्तव की डुएट है और एक गजल हरिहरन की सोलो है. इस खूबसूरत गजल अलबम के संगीतकार राजीव महावीर हैं. इसकी दो गजलों के वीडियो का निर्देशन संदीप महावीर ने किया है.

इस अवसर पर मशहूर गायक व संगीतकार हरिहरन ने कहा ‘‘ राजीव महावीर ने सभी गजलों की खूबसूरत धुनें बनायी हैं. जबकि रक्षा श्रीवास्तव ने बेहतरीन आवाज के साथ बड़ी खूबसूरती से इन्हें गाया है.जब में पहली बार रक्षा से मिला, तभी मुझे अहसास हो गया था कि रक्षा के अंदर संगीत के गुण मौजूद हैं.इस वजह से उनकी गायकी में एक आक-ुनवजर्याण है. फिर जब मैंने उनके साथ एक गजल गायी तो मु-हजये अहसास हुआ कि वह संगीत जगत में बहुत आगे तक जाने वाली हैं. वीडियो निर्देशक संदीप महावीर ने गजब का निर्देशन कर मुझे हीरो बना दिया है.’’

खुश व उत्साहित रक्षा श्रीवास्तव ने कहा-  ‘‘ मैं स्वयं को काफी भाग्यशाली मानती हूं कि मुझे अपने संगीत करियर की शुरूआत में हरिहरन जैसे संगीत के गुणी गायक के साथ गाने का मौका मिला. हम रूमी जाफरी जी का भी शुक्रिया अदा करते हैं कि वह हमारी एक बार की गुजारिश पर हमें अपनी दुआएं देने यहां आ गए.’’

अलबम का लोकार्पण करने के बाद रूमी जाफरी ने रक्षा श्रीवास्तव की आवाज की तारीफ करते हुए कहा-ंउचय ‘‘मैंने दोनों गीत देखे,जो काफी अच्छे लगे. रक्षा की आवाज में क-िरु39या-रु39या है, वीडियो भी कमाल का बना है.हरिहरन एक ऐसे सिंगर हैं जो हर प्रकार की कम्पोजिशन को भलीभांति निभा लेते हैं.’’

वीडियो निर्देशक संदीप महावीर ने कहा- ‘‘हमने एक सोलो गाना रक्षा श्रीवास्तव पर ही कश्मीर की खूबसूरत वादियों में माइनस 4 डिग्री में फिल्माया है.वीडियो में एक खूबसूरत कहानी है. इस गाने में कश्मीर की वादियों में रक्षा एक पेटिंग बनाती हैं, जिसे वह दूसरे गाने में हरिहरन को देती हैं. तो इसमें एक कहानी व एक पूरी यात्रा नजर आने वाली हैं. हमने इसी दृष्टिकोण के साथ वीडियो फिल्माए हैं.’’

इस अलबम में हैदर नजमी की खूबसूरत गजल ‘हाथ मिले तो दिल भी मिला दे’,लखनऊ के अनुराग सिन्हा की गजल ‘या खुदा मेरे ख्यालों में ये मंजर क्यूँ है’,तौफिक पालवी की गजल ‘आरजू बनके..’ के अलावा बनारस की अंकिता की गजल ‘‘अधूरा प्यार‘‘ का भी शुमार है.

रक्षा श्रीवास्तव बताती हैं- पढ़ाई लिखाई में काफी तेज होने की वजह से मेरे परिवार वाले मु-हजये आईएएस या आईपीएस अधिकारी बनाना चाहते थे. जबकि संगीत के क्षेत्र में कुछ करने की इच्छा के चलते मैंने कॉलेज में एक विषय संगीत ले लिया. मैंने धीरे धीरे संगीत सीखना शुरू किया और नैसर्गिक प्रतिभा होने के कारण जल्द तरक्की करने लगी.तभी मेरी गजलों में रुचि जागी. मैंने उस्ताद सरवत हुसैन खान से संगीत की तालीम ली. उर्दू जबान पर पकड़ होने और साहित्य में रुचि से मेरी गायकी को बल मिला.लेकिन पारिवारिक दबाव के चलते मुझे संगीत की बनिस्बत मीडिया में काम करना पड़ा. आकर्षक व्यक्तित्व, तेज दिमाग, मेहनती और जल्द सीखने के हुनर की वजह से मुझे मीडिया अच्छी सफलता मिली.

15 साल तक मैंने पत्रकार के तौर पर मध्यप्रदे-रु39या काम किया. मगर मेरा दिल तो संगीत और गजल से ही मोहब्बत करता था. 15 साल का वनवास काटते काटते कोविड का दौर आया. मेरे अंदर की संगीत की चिंगारी भड़क उठी. परिणाम स्वरूप यह अलबम लेकर आ गयी हूं. इसमें सबसे ज्यादा बढ़ावा राजीव महावीर व हरिहरन से मिला. राजीव महावीर ने ही मुझे कौशल महावीर जैसा संगीत गुरू दिलाया.’’

Anupamaa की काव्या ने गंगूबाई लुक में मचाया धमाल, देखें Video

अनुपमा फेम काव्या यानी मदालशा शर्मा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन फैंस के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं, फैंस भी काव्या के अंदाज को काफी पसंद करते हैं. अब काव्या ने ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’  के लुक में वीडियो शेयर किया है. जिसे सोशल मीडिया पर काफी पसंद किया जा रहा है.

मदालसा शर्मा ने इंस्टाग्राम पर ये वीडियो शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है कि मेरे लिए इंस्टाग्राम बिलकुल फ्रिज की तरह है. मुझे पता है उसमें कुछ नहीं मिलना लेकिन फिर भी 10-10 मिनट बाद खोलना है मुझे. फैंस मदालसा शर्मा के लुक की खूब तारीफ कर रहे हैं.

 

बता दें कि ‘रविवार विथ स्टार परिवार’ इवेंट में रणबीर कपूर अपनी अपकमिंग फिल्म ‘शमशेरा’ का प्रमोशन करते हुए नजर आये थे. इस दौरान मदालसा शर्मा ने भी आलिया भट्ट स्टारर ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के लुक को कॉपी किया.

 

शो में इन दिनों बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में आप देखेंगे कि अनुपमा अनुज की जगह पूरे बिजनेस की जिम्मेदारी संभालती है. और उसे पता  चलता है कि अनुज की जानकारी के बिना कंपनी के अकाउंट्स से पैसे निकाले गये हैं.

 

शो में आगे ये भी दिखाया जाएगा कि अनुपमा पैसे को लेकर अधिक से सवाल करती है ऐसे में बरखा नाराज हो जाती है. एक रिपोर्ट के अनुसार, अनुपमा कंपनी से आधिक को बाहर करने वाली है.

शो में जल्द ही अनुज के सामने उसके भैया भाभी का राज खुलने वाला है कि उन्हें सिर्फ अनुज की प्रॉपर्टी से मतलब है. तो दूसरी तरफ अनुज एक हादसे का शिकार होगा. उस पर एक शीशे का गिलास गिरता दिखाई देगा. शो में ये देखना होगा कि वो बुरी तरह घायल होगा या इस एक्सीटेंड में अनुज की जान जाएगी?

TMKOC में दयाबेन का किरदार निभाएंगी ऐश्वर्या सखुजा? पढ़ें खबर

टीवी का मशहूर कॉमेडी शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ दर्शकों का सबसे पसंदीदा शो है. शो का हर किरदार घर-घर में मशहूर है. लेकिन फैंस का सबसे पसंदिदा करैक्टर दयाबेन है. फैंस दयाबेन के करैक्टर को काफी मिस करते हैं.कुछ दिन पहले खबर आई थी कि दयाबेन यानी दिशा वकानी शो में वापस कर रही हैं. लेकिन बाद में इस खबर को अफवाह बताया गया.

अब बताया जा रहा है कि शो में जल्द ही दया बेन की एंट्री होगी.  हालांकि निर्माता असित मोदी ने हाल ही में घोषणा की कि वे जल्द ही दयाबेन को पेश करेंगे.

 

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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक टीवी इंडस्ट्री की फेमस एक्ट्रेस ऐश्वर्या सखुजा शो में दयाबेन का किरदार निभाने के लिए संपर्क किया गया है.

 

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खबरों के मुताबिक दयाबेन के किरदार के लिए ऐश्वर्या सखुजा ने ऑडिशन दिया था लेकिन वो शो का हिस्सा नहीं बनेंगी. एक्ट्रेस ने कहा,  मैंने इस रोल के टेस्ट दिया था लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं इसे कर पाउंगी.

 

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हाल ही में एक्ट्रेस ने रामसे हंट सिंड्रोम जूझने के बारे में खुलासा किया था. एक्ट्रेस ने यह भी कहा था कि उन्हें काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा. वह सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. एक्ट्रेस अक्सर फोटोज और वीडियोज शेयर करती रहती हैं. एक्ट्रेस अपने पति रोहित नाग के साथ सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करती हैं.

 

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आपको बता दें कि ऐश्वर्या सखुजा ने टीवी के कई बड़े टीवी शोज में काम किया है. एक्ट्रेस को ‘सास बिना ससुराल’, ‘मैं ना भूलूंगी’, ‘त्रिदेवियां’ और ‘कृष्णादासी’ जैसे शोज करने के लिए जाना जाता है.

वियाग्रा: सख्त प्रतिबंध जरूरी आहे

सेक्स की दवाइयां और उसका कारोबार दुनिया भर में आज अरबों रुपए का है. और कामोत्तेजना बढ़ाने मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही इंसान का शगल और सपना रहा है. जाने कितने किस्से कहानियां हम पढ़ते रहे रहें हैं जिनमें कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए दवाओं का इस्तेमाल किया जाता रहा था.

अब आधुनिक समय में वियाग्रा एक ऐसा नाम है और उसका क्या काम है यह किसी से छुपा हुआ नहीं है. मगर इसके उपयोग से जाने कितनी जाने जा रही है उसका कोई आंकड़ा आपको नहीं मिलेगा. ऐसे में हम बता रहे हैं- इसका उपयोग करना कितना घातक है.

हाल ही में महाराष्ट्र में एक व्यक्ति की मौत से  फिर वियाग्रा चर्चा में है और वियाग्रा पर प्रश्नचिन्ह लग चुका है ऐसे में जितनी जल्दी हो सके  पर प्रतिबंध लग जाए तो यह व्यापक जनहित में उचित होगा.

दरअसल, महाराष्ट्र की आरेंज सिटी नागपुर में एक ऐसा मामला सामने आया है जो सरकार के सामने यह सच लेकर खड़ा है कि वियाग्रा पर  प्रतिबंध लगा देना दीजिए. यहां एक 25 साल के युवा की मौत अपनी कथित प्रेमिका के साथ संबंध बनाते वियाग्रा इस्तेमाल के बाद  हो गई. गौरतलब है कि यह घटना  नागपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित सौनेर के एक होटल में घटित हुई. कथित तौर पर यह सामने आया है कि व्यक्ति की मौत का कारण  वियाग्रा का ओवरडोज  रहा है.मगर पुलिस अन्य सभी संभावनाओं को देखते  हुए घटना की तफ्तीश कर रही है.

पुलिस ने  बताया है कि मृतक का नाम अजय पारटेकी है, वह अपनी महिला मित्र के साथ रविवार 3 जुलाई 2022 की शाम को सौनेर के एक होटल में गया था. जहां महिला मित्र के साथ संबंध बनाते समय वह अचानक गिर पड़ा और बेहोश हो गया. युवक के अचानक  बेहोश हो जाने के बाद उसकी महिला मित्र ने उसके एक अन्य मित्र के साथ ही फोन करके जानकारी दे कर बुलाया .

बचकर रहना समझदारी

जिस तरह से वियाग्रा को लेकर के देश दुनिया में कथित रूप से घटनाएं घटित हुई है उससे एक ही संदेश प्रसारित हो रहा है कि हमें वियाग्रा से बच कर रहना चाहिए इसका इस्तेमाल जानलेवा भी हो सकता है.

सेक्स के सुप्रसिद्ध डॉक्टर आर के अग्रवाल के अनुसार इन दवाइयों से ब्लड फ्लो बढ़ जाता है. ट्रीटमेंट के दौरान इसे 30 से 100 एमजी तक दिया जाता है. दरअसल जब इस दवा को हाई डोज में ले लिया जाता है तो ब्लड प्रेशर गिर जाता है. बीपी इतना कमतर हो जाता है कि हार्ट और ब्रेन की ब्लड सप्लाई बंद हो जाती है. परिणाम स्वरूप इलाज ना मिलने पर मृत्यु संभावित है.

डॉक्टर आर के अग्रवाल के अनुसार बिना हेल्थ एक्सपर्ट की सलाह के वियाग्रा का इस्तेमाल कतई नहीं करना चाहिए.

महत्वपूर्ण तथ्य है कि वियाग्रा के ओवरडोज का ये पहला मामला नहीं है,  ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में भी घटित हो चुका है जहां वियाग्रा के ओवरडोज के कारण एक युवक की मरणासन्न अवस्था हो गई थी  उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया  डॉक्टरों में अथक प्रयास से उसकी जान बचाई.

सुप्रसिद्ध सेक्स विशेषज्ञ सनंददास दीवान के अनुसार काम  उत्तेजना पैदा करने के लिए ली जाने वाली वियाग्रा ब्लड प्रवाह को बढाती है, ऐसे में नशा पत्ती फिर सैक्स उत्तेजक दवाई खतरनाक परिणाम देती है. दीवान का कहना है कि आज की युवा पीढ़ी पहले की तरह मजबूत नहीं है खानपान पहले जैसा नहीं रहा जिससे शरीर में आज से पचास साल पहले जैसी ताकत युवाओं में नहीं है . वियाग्रा का उपयोग सीधे तौर पर क्षणिक आनंद के लिए है मगर इससे शरीर बर्बाद हो जाता है और जान भी जा सकती है.

दरअसल,शोध में भी है पाया गया है कि अक्सर इसका सेवन करने वाले लोगों की आंखों की रोशनी तक जा सकती है. अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इसके कुछ साइड इफेक्ट भी बताए हैं. इनमें आंखों की रोशनी जाना, पीठ में दर्द, उल्टी होना, त्वचा पर  पड़ना, बेहोश होना और हार्ट अटैक होना शामिल है.

पुरस्कार- भाग 2: आखिर क्या हुआ विदाई समारोह में?

‘यह हम दोनों की ओर से आप के 50वें जन्मदिन पर छोटा सा उपहार है, पापा,’ उन का गला रुंध गया और आंखें नम हो गईं.

‘खुश रहो, मेरे बच्चो…अपने गरीब बाप से इतना प्यार करते हो. काश, वह दोनों भी…बहू, एक दिन…एक दिन मैं तुम्हें इस प्यार और सेवा के लिए पुरस्कार दूंगा.’

‘आप के आशीर्वाद से बढ़ कर कोई दूसरा पुरस्कार नहीं है, पापा. यह सबकुछ आप का दिया ही तो है…आप जो सारा विष स्वयं पी कर हम लोगों को अमृत पिलाते रहते हैं.’

सेवानिवृत्त हो कर जब वह घर पहुंचे तो पत्नी ने आरती उतार कर स्वागत किया. बहूबेटे, पोतेपोती ने फूलों के हार पहनाए और चरणस्पर्श किए. कुछ साथी घर तक छोड़ने आए थे. कुछ पड़ोसी भी मुबारक देने आ गए थे, उन सब को जलपान कराया गया. बड़े बेटे व बहुएं इस अवसर पर भी नहीं आ पाए. किसी न किसी बहाने न आ पाने की मजबूरी जता कर फोन पर क्षमा याचना कर ली थी उन्होंने.

अतिथियों के जाने के बाद उन्होंने बहूबेटे से कहा था, ‘‘लो भई, अब तक तो हम फिर भी कुछ न कुछ कमा लाते थे, आज से निठल्ले हो गए. फंड तो पहले ही खा चुका था, ग्रेच्युटी में से सोसाइटी ने अपनी रकम काट ली. यह 80 हजार का चेक संभालो, कुछ पेंशन मिलेगी. कुछ न बचा सका तुम लोगों के लिए. अब तो पिंकी और राजू की तरह हम बूढ़ों को भी तुम्हें ही पालना होगा.’

बहू रो दी थी. सुबकते हुए बोली थी, ‘‘बेटी को यों गाली नहीं देते, पापा. यह चेक आज ही मम्मी के खाते में जमा कर दीजिए. आप ने अपनी भूखप्यास कम कर के, मोटा पहन कर, पैदल चल कर, एकएक पैसा बचा कर, बेटेबेटियों को आत्मनिर्भर बनाया है. आप इस घर के देवता हैं, पापा. हमारी पूजा को यों लज्जित न कीजिए.’’

उन्होंने अपनी सुबकती हुई बहू को पहली बार सीने से लगा लिया था और बिना कुछ कहे उस के सिर पर हाथ फेरते रहे थे.

समय अपनी निर्बाध गति से चलता जा रहा था. अचानक एक दिन उन के हृदय की धड़कन के साथ ही जैसे समय रुक गया. घर में कोहराम मच गया. भलेचंगे वह सुबह की सैर को गए थे. लौट कर स्नान आदि कर के कुरसी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे. बहू चाय का कप तिपाई पर रख गई थी. अचानक उन्होंने बाईं ओर छाती को अपनी मुट्ठी में भींच लिया. उन के चेहरे पर गहरी पीड़ा की लकीरें फैलती गईं और शरीर पसीने से तर हो गया.

उन के कराहने का स्वर सुन कर सभी दौड़े आए थे पर मृत्यु ने डाक्टर को बुलाने तक की मोहलत न दी. देखते ही देखते वह एकदम शांत हो गए थे. यों लगता था जैसे बैठेबैठे सो गए हों पर यह नींद फिर कभी न खुलने वाली नींद थी.

शवयात्रा की तैयारी हो चुकी थी. बाहर रह रहे दोनों बेटों का परिवार, बेटियां व दामाद सभी पहुंच गए थे. बेटियों और छोटी बहू ने रोरो कर बुरा हाल कर लिया था. पत्नी की तो जैसे दुनिया ही वीरान हो गई थी.

शवयात्रा के रवाना होतेहोते लोगों की काफी भीड़ जुट गई थी. बेटे यह देख कर हैरान थे कि इस अंतिम यात्रा में शामिल बहुत से चेहरे ऐसे थे जिन्हें उन्होंने पहले कभी न देखा था. पिता के कोई लंबेचौड़े संपर्क नहीं थे. तब न जाने यह अपरिचित लोग क्यों और कैसे इस शोक में न केवल शामिल होने आए थे बल्कि वे गहरे गम में डूबे हुए दिखाई दे रहे थे.

क्रियाकर्म के बाद दोनों बड़े बेटेबहुएं और बेटियां विदा हो गए. अंतिम रस्मों का सारा व्यय छोटे बेटे ने ही उठाया था, क्योंकि बड़ों का कहना था कि पिता की कमाई तो वही खाता रहा है.

मेहमानों से फुरसत पा कर छोटे बहूबेटे का जीवन धीरेधीरे सामान्य होने लगा. बेटे के आफिस चले जाने के बाद घर में बहू व सास प्राय: उन की बातें ले बैठतीं और रोने लगतीं, फिर एकदूसरे को स्वयं ही सांत्वना देतीं.

कुछ ही दिन बीते थे. रविवार को सभी घर पर थे. किसी ने दरवाजा खटखटाया. बेटे ने द्वार खोला तो एक अधेड़ उम्र के सज्जन को सामने पाया. बेटे ने पहचाना कि पिताजी की शवयात्रा में वह अनजाना व्यक्ति आंसू बहाते हुए चल रहा था.

‘‘आइए, अंकल, अंदर आइए, बैठिए न,’’ बेटे ने विनम्रता से कहा.

‘‘तुम मुझे नहीं जानते बेटा, तुम मुझ जैसे अनेक लोगों को नहीं जानते, जिन के आंसुओं को तुम्हारे पिताजी ने हंसी में बदला, उन की गरीबी दूर की.’’

‘‘मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा, अंकल…आप…’’ बेटा बोला.

‘‘मैं तुम्हें समझाता हूं बेटे. 10 साल पहले की बात है. तुम्हारे पिता दफ्तर जाते हुए कभीकभी मेरे खोखे पर एक कप चाय पीने के लिए रुक जाते थे. मैं एक टूटे खोखे में पुरानी सी केतली में चाय बनाता और वैसे ही कपों में ग्राहक को देता था. मैं खुद भी उतना ही फटेहाल था जितना मेरा खोखा. मेरे ग्राहक गरीब मजदूर होते थे क्योंकि मेरी चाय बाजार में सब से सस्ती थी.

‘‘तुम्हारे पिता जब भी चाय पीते तो कहते, ‘क्या गजब की चाय बनाते हो दोस्त, ऐसी चाय बड़ेबड़े होटलों में भी नहीं मिल सकती, अगर तुम जरा ढंग की दुकान बना लो, साफसुथरे बरतन और कप रखो, ग्राहकों के बैठने का प्रबंध हो तो अच्छेअच्छे लोग लाइन लगा कर तुम्हारे पास चाय पीने आएं.’

‘‘मैं कहता, ‘क्या कंरू बाबूजी, घरपरिवार का रोटीपानी मुश्किल से चलता है. दुकान बनाने की तो सोच ही नहीं सकता.’

‘‘और एक दिन तुम्हारे पिताजी बड़ी प्रसन्न मुद्रा में आए और बोले, ‘लो दोस्त, तुम्हारे लिए एक दुकान मैं ने अगले चौक पर ठीक कर ली है. 3 माह का किराया पेशगी दे दिया है. उस में कुछ फर्नीचर भी लगवा दिया है और क्राकरी, बरतन भी रखवा दिए हैं. रविवार को सुबह 8 बजे मुहूर्त है.’

‘‘मैं उन की बातें सुन कर हक्काबक्का रह गया. उन की कोई बात मेरी समझ में नहीं आई थी तो उन्होंने सीधेसादे शब्दों में मुझे सबकुछ समझा दिया. शायद यह बात आप लोग भी नहीं जानते कि वह अपनी नौकरी के साथसाथ ओवरटाइम कर के कुछ अतिरिक्त धन कमाते थे.

‘‘उन्होंने मुझे बताया कि ओवरटाइम की रकम वह बैंक में जमा कराते रहते थे. मेरी दुर्दशा को देख कर उन्होंने योजना बनाई थी और वह कई दिनों तक मेरे खोखे के आसपास किसी उपयुक्त दुकान की तलाश करते रहे और आखिर उन की तलाश सफल हो गई. वह दुकान को पूरी तरह तैयार करवा कर मुझे बताने आए थे कि अगले रविवार मुझे अपना काम वहां शुरू करना है.

‘‘अगले रविवार को मेरी उस दुकान का मुहूर्त हुआ तो बरबस मेरी आंखों से आंसुओं की धारा बह निकली. मैं उन के चरणों में झुक गया. मुझे कुछ नहीं सूझ रहा था कि किन शब्दों में मैं उन का धन्यवाद करूं. उन्होंने तो मेरे जीवन की काया ही पलट दी थी.

खर्सू के पेड़ पर रेशम

रेशम प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है. रेशम का इस्तेमाल कपड़ा बनाने के लिए किया जाता है. इस की बनावट के कारण यह बाजार में बहुत महंगी कीमतों में बिकता है. इन प्रोटीन रेशों में मुख्यत: फिब्रोइन होता?है. ये रेशे कीड़ों के लार्वा द्वारा बनते हैं.

रेशम की खेती मुख्यत: 3 प्रकार से होती है, मलबेरी रेशम, टसर रेशम व एरी रेशम के रूप में. सब से उत्तम रेशम शहतूत है, जो कि अर्जुन के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है. लेकिन मुनस्यारी में खर्सू जैसे सामान्य पेड़ पर भी इस का उत्पादन हो रहा है. दशकों से जानवरों के चारे और शीतकाल में सेंकने के लिए कोयला देने वाला खर्सू से रेशम भी बन सकता है.

इस पर कृषि विभाग कार्यशाला भी आयोजित करता?है, ताकि किसान उत्साह से इस की जानकारी ले कर रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकें.

अब तक नगण्य समझे जाने वाले कालामुनि, बिटलीधार के खर्सू के पेड़ों से रेशम तैयार होने लगा है. आने वाले सालों में खर्सू स्थानीय ग्रामीणों की आजीविका का प्रमुख माध्यम बनने जा रहा?है.

खर्सू चारा प्रजाति का पेड़ है. इस की चौड़ी पत्तियां जानवरों को खूब भाती हैं. जानवरों के लिए इन पत्तियों का चारा सब से पौष्टिक माना जाता है.

पशुपालकों के मुताबिक, खर्सू की पत्तियों का चारा खिलाने से दुधारू जानवरों का दूध बढ़ जाता?है. जंगलों में काफी अधिक संख्या में पाए जाने वाले इस वृक्ष की लकड़ी जलाने के काम आती है. इस के कोयले भी बनाए जाते हैं, जिन का प्रयोग ऊंचाई पर रहने वाले लोग शीतकाल में आग सेंकने में लाते हैं. इस वजह से इन का कटान भी काफी होता है.

इस खर्सू के दिन अब फिर गए हैं. पहाड़ी इलाके में शहतूत और बांज की पत्तियों में रेशम पैदा किया जाता है, पर अब खर्सू से रेशम पैदा करने की कवायद शुरू हो चुकी?है.

सब से पहले तो खर्सू जंगलों में काफी अधिक होता है. इस के लिए अलग से जंगल तैयार करने की आवश्यकता नहीं है. मुनस्यारी के ऊंचाई वाले कालामुनि, बिटलीधार से ले कर मुनस्यारी के आसपास के जंगलों में यह बहुतायत में है.

अब तक जानवरों के लिए पौष्टिक आहार मानी जाने वाली पत्तियों को रेशम के कीट भी अपना आहार बनाने जा रहे हैं. आने वाले दिनों में स्थानीय लोगों के लिए खर्सू आमदनी का प्रमुख जरीया बनने जा रहा है. खर्सू की पत्तियां खा कर कीट टसर बनाएगा. किसान खर्सू के पेड़ की सहज उपलब्धता से काफी उत्साहित है और एक विशेष बात यह है कि रेशम की फसल सब से कम समय में तैयार होती है. इस फसल को तैयार होने में 40 से 50 दिन लगते हैं, जिस को किसान खर्सू के पेड़ों का टसर रेशम का उत्पादन कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं.

इस काम को करने से लोगों के रोजगार के रास्ते भी खुल रहे हैं. खरीदार खुद आ कर माल ले जाते हैं. यह काम काफी सुविधाजनक है और कम तामझाम वाला है. खर्सू के एक पेड़ पर कुछ हजार कीट लाखों रुपयों का रेशम दे रहे हैं. इस का लाभ यह दिख रहा है कि पहाड़ों से शहर की तरफ पलायन भी रुक रहा है.

खर्सू का बीज तो नि:शुल्क मिलता है और यहां के लोगों द्वारा खर्सू के पेड़ और उगाए जा रहे हैं. रेशम उद्योग के साथसाथ पर्यावरण संरक्षण भी हो रहा है.

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