सालों बाद वह उस शहर में आई थी. उस का अपना शहर, जिस की गलियां, सड़कें और बाजार उसे उंगलियों पर याद थे. उस दिन बाजार में अचानक बगल वाले अमित अंकल मिल गए थे. औफिस के काम से इस शहर में आए थे. दुनिया सचमुच गोल है, सलिल और लता यही सोच कर इस बड़े शहर में आए थे कि उन्हें यहां कोई नहीं पहचानता. इन बड़ेबड़े शहरों की बड़ीबड़ी इमारतों में एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी को नहीं जानता. उन के लिए अच्छा ही तो है कोई यह जानने की कोशिश नहीं करेगा कि वे कहां से आए हैं पर चाहने और सोचने में हमेशा फर्क होता है.
उस दिन बाजार में अचानक अमित अंकल से मुलाकात हो गई थी. उन की बेटी रोहिणी उसी की उम्र की थी. स्कूल से ले कर कालेज तक का साथ था उन का. अच्छे पड़ोसी थे वे. एकदूसरे के सुखदुख में हमेशा खड़े होने वाले. उन्होंने ही यह दुखद खबर दी थी कि बाबूजी नहीं रहे. उसे विश्वास नहीं हो रहा था बाबूजी उस से बिना मिले, बिना कुछ कहे, बिना कोसे इस दुनिया से कैसे जा सकते थे पर उस ने भी तो उन्हें इस बात का मौका ही कहां दिया था. वह तो चली आई थी सलिल के साथ अपनी नई दुनिया को बसाने के लिए. जानती थी बाबूजी इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे पर सलिल का प्रेम उस के सिर चढ़ कर बोल रहा था.
बचपन में सूई लगवाने पर घंटों रोने वाली लता इतनी कठोर हो सकती है, उस ने खुद भी न सोचा था. मां के जाने के बाद बाबूजी ने ही तो उसे और उस के भाईबहन को मां और बाप दोनों बन कर पाला था. सब ने कितना कहा था, ‘अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी, दूसरी शादी कर लो,’ पर बाबूजी ने लता के सिर पर हाथ रख कर कहा था, ‘मैं अपने बच्चों के लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहता. अब ये ही मेरी दुनिया हैं, मैं इन्हें देख कर ही जी लूंगा.’
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