‘‘राजीव का अहमदाबाद से फोन आया है...’’

सेवानिवृत्त विंग कमांडर यशपाल ने किताब पर से नजर हटाए बिना बात काटी, ‘‘तुम्हारा मतलब है संजीव का?’’

‘‘जी नहीं, मेरा मतलब है हमारे बेटे कैप्टन राजीव पाल का,’’ लतिका ने चिढ़े स्वर में कहा.

‘‘हमारा बेटा वैलिंगटन से अहमदाबाद कैसे चला गया?’’

‘‘अगर तुम गोल्फ खेलने और उपन्यास पढ़ने के बजाय टीवी, समाचारपत्र और पत्रिकाओं में रुचि लो तो तुम्हें पता चले कि दुनिया में क्या हो रहा है और तुम्हारा बेटा अहमदाबाद कब और क्यों गया है?’’

‘‘जानेमन, दुनिया में जो हो रहा है उसे जानने के बाद दुनिया छोड़ने को मन करता है, सो इसलिए...’’

‘‘तुम अब सिवा मनोरंजन के और किसी चीज में रुचि नहीं लेते हो. अच्छा सुनो, राजीव ने कहा है कि...’’

‘‘पहले यह बताओ, जब अहमदाबाद में इतनी गड़बड़ चल रही है तो राजीव वहां क्यों गया है?’’

‘‘क्योंकि उसी गड़बड़ यानी सांप्रदायिक दंगों से निबटने के लिए सेना बुलाई गई है, सो सेनाधिकारी होने के नाते हमारा बेटा भी गया है.’’

यशपाल को जैसे किसी ने करंट छुआ दिया, तेज स्वर में बोल उठे, ‘‘अब पुलिस का काम भी सेना करेगी? मैं ने अपने बेटे को देश की सीमा का प्रहरी बनने सेना में भेजा था, सिरफिरे लोगों की आपसी रंजिशों से होने वाले दंगेफसाद रोकने के लिए नहीं.’’

लतिका  झुं झला गई, ‘‘राजीव ने क्यों फोन किया था, पहले वह तो सुन लो.’’

‘‘सुनाओ, यशपाल के स्वर में भी उतनी ही  झुं झलाहट थी.’’

‘‘पुष्पा बहनजी, प्रेम जीजाजी और संजीव को राजीव कल सुबह के जहाज से यहां भेज रहा है. उस का कहना है कि जब तक अहमदाबाद में हालात सामान्य न हो जाएं यानी दुकानें न खुलने लगें तब तक हम जीजाजी और संजीव को यहीं रखें.’’

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