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GHKKPM: विराट से मिलने के बाद सई का होगा भयंकर एक्सीडेंट, आएगा ये ट्विस्ट

नील भट्ट और ऐश्वर्या शर्मा स्टारर सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ इन दिनों लगातार सुर्खियों में छाया हुआ है. शो का ट्रैक दर्शकों को कॉफी पसंद आ रहा है. हालांकि कई यूजर्स लीप आने के बाद मेकर्स को ट्रोल भी कर रहे हैं तो कई यूजर्स सपोर्ट कर रहे हैं. सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin Latest Episode) आपने देखा कि विराट सई की आवाज सुनकर चौंक जाता है। इसी बीच सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी में नया मोड़ आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में…

शो में आप देखेंगे कि विराट गांव में पहुंचकर सवि और विनायक के साथ खूब मस्ती करता है. इस दौरान अचानक बारिश होने लग जाती है. बारिश में सई-विराट की नजर एक-दूसरे पर पड़ती है. सई को जिंदा देखकर विराट घबरा जाता है.

 

विराट बिना देर किए वहां से विनायक को लेकर चला जाएगा. विराट गुस्से में गाड़ी चलाएगा. इस दौरान विराट की गाड़ी का एक्सीडेंट होते होते बचेगा. विराट को यकीन ही नहीं होगा कि सई जिंदा है.

 

रिपोर्ट के अनुसार गुलाब राव सई को मरवाने के लिए साजिश रचेगा. गुलाब राव सई का एक्सीडेंट करवा देगा. इस एक्सीडेंट में सई बुरी तरह घायल हो जाएगी. दूसरी तरफ विराट परिवार के लोगों को सई के जिंदा होने का सच बता देगा. ये बात जानकर चौहान परिवार के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सई के आने के बाद पाखी-विराट के जीवन में क्या बदलाव आता है?

 

नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद की “पदयात्रा”

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने के लिए एक तरह से मानो तलवार खैंच ली है. वे लगातार राहुल गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं से मिल रहे हैं उनका यह भेंट मुलाकात का सिलसिला एक तरह से “प्रधानमंत्री पद” प्राप्त करने के लिए पदयात्रा के समान है.

देश में आज विपक्ष बिखरा बिखरा है. प्रधानमंत्री मोदी के पहले चुनाव को याद कीजिए 2014 से पहले, नीतीश कुमार ही वह शख्सियत थे जिन्होंने नरेंद्र मोदी को चुनौती दी थी. उनके रास्ते पर कांटा बन कर खड़े हो गए थे.

विपक्ष के साथ-साथ देश को भी यह उम्मीद थी कि नीतीश कुमार अपने व्यक्तित्व से मोदी को चुनौती दे सकते हैं मगर ऐसा नहीं हो पाया. आगे चलकर सारा किस्सा कहानी देश की आवाम को जानकारी में है ही.

नीतीश कुमार में एक बड़ी संभावना आज पुनः दिखाई दे रही है उनके पास 17 साल के मुख्यमंत्री पद का गौरवशाली इतिहास है और देश व्यापी पहचान भी. मगर यह भी सच है कि मध्यांतर में उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन करके अपनी छवि और भविष्य पर प्रश्न चिन्ह भी लगा लिया है. इस सब के बावजूद वे  सक्रिय रूप से आज अपनी भूमिका निभा रहे हैं वह प्रबल संभावना की ओर इंगित करता है कि आने वाले समय में नीतीश कुमार नरेंद्र दामोदरदास मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती बन करके खड़े हो सकते हैं.

नीतीश कुमार की “पदयात्रा” के पड़ाव

यह सच है कि नीतीश कुमार के भाजपा से अलग होकर के कांग्रेसी और राष्ट्रीय जनता दल के साथ तालमेल करके भाजपा को और सबसे अधिक प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को घात दिया है.

क्योंकि घटनाक्रम बता रहा है कि आज के सत्तासीन केंद्र के यह नेता विपक्ष और दूसरी पार्टियों को एक तरह से समूह खत्म कर देना चाहते हैं. ऐसे में नीतीश कुमार एक बड़ा चेहरा देश के सामने उपस्थित हुआ है और यह लगातार देश के बड़े नेताओं से संपर्क कर रहे हैं और सब को एकजुट कर रहे हैं साथ-साथ देश को संदेश दे रहे हैं कि – विपक्ष अभी जिंदा है.

नीतीश कुमार ने 6 सितंबर को को दिल्ली के मुख्यमंत्री व आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल सहित विपक्ष के कई प्रमुख नेताओं से मुलाकात एक बड़ा संदेश दे दिया है. उन्होंने राजनीति का दांव चलते हुए कहा कि वह न तो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं और न ही इसके लिए इच्छुक हैं.मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के कार्यालय में पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी महासचिव डी राजा से मुलाकात करने के बाद कुमार ने पत्रकारों से कहा कि यह समय वाम दलों, कांग्रेस और सभी क्षेत्रीय दलों को एकजुट कर एक मजबूत विपक्ष का गठन करने का है.

इस तरह नीतीश कुमार ने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों को एकजुट करने की पहल शुरू कर दी है. इस पहल के तहत नीतीश कुमार  आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के लिए उनके आवास पर पहुंचे। मौके पर दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और जनता दल ( एकी) नेता -संजय झा भी मौजूद थे.

अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर बताया  मेरे घर पधारने के लिए नीतीश कुमार का शुक्रिया. कुमार उनके साथ देश के कई गंभीर विषयों पर चर्चा की. उन्होंने अपने ट्वीट में बताया कि उनके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, आपरेशन लोटस, खुलेआम विधायकों की खरीद फरोख्त कर चुनी सरकारों को गिराना, भाजपा सरकारों में बढ़ता निरंकुश भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई.

दरअसल,आम आदमी पार्टी इन मुद्दों को लेकर केंद्र सरकार पर हमले बोल रही है. वहीं नीतीश ने कहा कि हमारी कोशिश क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट करने की है. यदि सभी क्षेत्रीय पार्टियां मिल जाएं तो यह बहुत बड़ी बात होगी और हम मिलकर देश के लिए एक माडल तैयार करने पर काम कर रहे हैं.

इससे पहले नीतीश कुमार ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से भी मुलाकात की और यह संदेश दे दिया है कि नीतीश कुमार एक ऐसी पद यात्रा पर निकल पड़े हैं जो आने वाले समय में उन्हें प्रधानमंत्री पद तक पहुंचा सकती है .

किंजल को तोषु से हमेशा के लिए दूर करेगी राखी, शाह हाउस में होगा तमाशा

सीरियल ‘अनुपमा’ में तोषु के एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर का सच शाह परिवार के सामने जल्द ही आने वाला है. राखी दवे शाह परिवार को तोषु के हरकतों की बारे में बताने वाली है. शो में अब तक आपने देखा कि राखी तोषु को जमकर जलील करती है. तो दूसरी तरफ किंजल और बेबी का शाह हाउस में शानदार स्वागत किया जा रहा है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में…

शो के आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि किंजल और बेबी शाह हाउस आ चुके हैं. किंजल का स्वागत धूमधाम से किया जा रहा है. इस दौरान अनुपमा सारी रस्में निभाएगी. दूसरी तरफ राखी किसी तरह अपने गुस्से को कंट्रोल करेगी.

 

मौका मिलते ही राखी तोषु और वनराज पर निशाना साधेगी. तोषु के एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर के बारे में जानकर किंजल और अनुपमा के पैरों तले जमीन खिसक जाएगी. ऐसे में किंजल अनुपमा की तरह तोषु को भी तलाक देने का फैसला करेगी.

 

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राखी कहेगी कि वो किंजल और उसके बच्चे को अपने साथ लेकर जाएगी. ये बात सुनकर शाह परिवार में हड़कंप मच जाएगा. राखी किंजल और तोषु से हमेशा के लिए दूर करना चाहेगी. इसी बीच अनुज वीडियो कॉल के जरिए किंजल के बेबी को देखेगा.

 

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तो दूसरी तरफ बरखा अनुज के लिए हलवा बनाकर लाएगी. बरखा को देखते ही अनुज का पारा चढ़ जाएगा। अनुज बिना बात के बरखा पर भड़क जाएगा. अनुज का गुस्सा देखकर बरखा घबरा जाएगी. ऐसे में जीके अनुज को संभालेगा.

 

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झुनझुनवाला, पैसा और मौत

यह कोई नई बात नहीं है कि पैसा हर खुशी दे सकता है लेकिन जान नहीं बचा सकता. कितने ही धन्ना सेठ, बड़े शहंशाह, राजनेता, उद्योगपति पैसे के बावजूद अस्मय मौत के शिकार हो चुके हैं. राकेश झुनझुनवाला भी उन में से एक हैं जो अरबों के शेयरों के मालिक थे पर 62 साल की आयु में मौत उसे छीन ले गई और उस का पैसा ताकता रह गया.

इस तरह के मौकों पर पंडितपादरी यह कहना नहीं भूलते कि दान दिया करो क्योंकि पैसा जान नहीं बचा सकता. उन का मतलब असल में यही होता है कि जिस के पास पैसा है वह पंडितों, पादरियों को लगातार दान देता रहे ताकि वे बिना काम किए मौज उड़ाते रहें. इसीलिए राकेश झुनझुनवाला जैसों के उदाहरण दिए जाते हैं कि देखो इतने पैसे का क्या फायदा हुआ.

असल में राकेश झुनझुनवाला ने जिस भी तरकीब से पैसा कमाया, यह तो पक्का है कि चार्टर्ड अकाउंटैंट बनने के बाद एक इन्कम टैक्स अफसर का बेटा इतना अगर कमा लेता है तो वह बहुत कमाल की बात है. अगर उस के तरीके गलत भी थे तो वे नीरव मोदी, विजय माल्या, ललित मोदी की तरह के नहीं थे. वे भारतीय जनता पार्टी के समर्थक थे और इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुरंत श्रद्धांजलि दी पर हरेक भाजपा के अमीर को तो मोदी की कृपा नहीं मिलती. उस में कुछ खासीयत थी कि उस ने बिना लंबेचौड़े आरोपों के पैसा कमाया और एक नई एयरलाइन भी शुरू की थी.

मौत का कोई भरोसा नहीं है पर इस का मतलब यह नहीं कि काम न किया जाए. कमाया न जाए या कमाया हुआ निठल्लों, निक्कमों को दे दिया जाए कि कहीं मौत न आ जाए. मौत पर लोग किसी को याद करते हैं तो इसलिए कि उस ने जीतेजी कमाया. वह लोगों के लिए आदर्श था. लोग उस के रहस्य को जानना चाहते थे. सैकड़ों उस जैसे बनना चाहते थे. अगर राकेश झुनझुनवाला ने पैसा न कमाया होता या सारा दान दे दिया होता तो उन की मौत सिर्फ म्यूनिसिपल रिकौर्ड में दर्ज होती, देशभर के अखबारों व चैनलों की हैडलाइन न बनती.

समाज का निर्माण उन्हीं लोगों ने किया है जिन्होंने मौत के डर को दिमाग से निकाल दिया. कुछ तो 80-90 वर्ष की आयु तक नया काम करते रहते हैं चाहे वे जानते हों कि उस का नतीजा 2-4 साल बाद आएगा और तब तक हो सकता है कि वे जिंदा ही न रहें.

मौत का डर असल में धर्म की देन है. उस ने ही सिखाया है कि पूजापाठ करो, पिरामिंड बनाओ, मुरदों को दफन करो, मरने के बाद भी आदमी की आत्मा रहती है. किसी धर्म में वह एक बार पैदा हो कर स्वर्ग या नर्क में जाता है तो किसी में बारबार जन्म लेता है. पर धर्म मौत की बात करते इसलिए हैं ताकि जीतेजी हरेक से वसूली की जा सके. मौत का डर किसी सिपाही को नहीं होता. एवरेस्ट पर चढऩे वाले को नहीं होता. समुद्र में अनजान राह पर जाने वाले को नहीं होता, नए हवाई अड्डा से पहली उड़ान भरने वालों को नहीं होता.

मौत का भय अमीरों को ज्यादा होता है क्योंकि पंडेपादरी उन के चारों ओर मंडराते रहते हैं, उन से बारबार कहते रहते हैं कि शरीर नश्वर है, आत्मा अजरअमर है, अपने की चिंता न कर पैसा हमें दे दो, तुम्हारी आत्मा का हम ख़याल रखेंगे. राकेश झुनझुनवाला का परिवार भी यही सोचता होगा. अब वे सब अनुष्ठान होंगे जिन में मुख्यतया बातें पैसे की निरर्थकता की ज्यादा होंगी जबकि राकेश झुनझुनवाले को याद इसीलिए किया जाएगा कि उन्होंने भरपूर कमाया और एक इतिहास बनाया.

मेरे पिताजी को शराब पीने की लत है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 21 साल की हूं. मेरे पिता बहुत ज्यादा शराब पीते हैं और जुआ भी खेलते हैं. वे अपनी सारी कमाई इन दोनों बुराइयों में उड़ा देते हैं. इतना ही नहीं, वे घर पर भी हमेशा झगड़ा करते रहते हैं. मैं इस समस्या से कैसे पार पाऊं?

जवाब
आप अपनी पढ़ाईलिखाई और कैरियर पर पूरा फोकस करें. जहां भी नौकरी मिले कर लें और अपने पैरों पर खड़ी होते ही घर से अलग हो जाएं.

ऐसे जुआरीशराबी बाप के साथ नरक सी जिंदगी आप को बहका भी सकती है. जब लड़के घर से अलग हो कर जिंदगी बसर कर सकते हैं, तो लड़कियां भी ऐसा कर सकती हैं. बस, जरूरत हिम्मत और अपने पैरों पर खड़े होने की है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

सब्जी: प्रिया को उस मुद्दे से क्यों चिढ़ हो रही थी?

“तुम मुझे अपनी सब्जी क्यों नहीं खिलातीं कभी? जब देखो तब बहाने लगाती रहती हो. नहीं खिलाना चाहती, यह बोल कर सीधा मना ही कर दिया करो. इस से तो कम ही बुरा लगेगा,” प्रिया गुस्से व अपमान के मिश्रित भाव से दीपा पर चिल्लाई.

दीपा व प्रिया 8वीं कक्षा की छात्राएं हैं, दोनों परम मित्र भी हैं. दोनों के बीच हर चीज का सहज लेनदेन है. लेकिन प्रिया को यह महसूस होता है कि दीपा उस से हर चीज, बात शेयर करती है लेकिन जब भी उस ने उस के लंचबौक्स से सब्जी मांगी, उस ने तुरंत कुछ न कुछ बहाना बना कर मना कर दिया, जैसे मिर्च ज्यादा है या मेरी मम्मी सब्जी अच्छी नहीं बनातीं, तेरा जायका बिगड़ जाएगा आदि .

आज भी जब वे दोनों लंचटाइम में अपना टिफिन बौक्स खोल कर बैठीं तो दीपा के टिफिन से आती खुशबू ने प्रिया के मुंह में पानी ला दिया.

खुशबू के वशीभूत हो उस ने जैसे ही रोटी का कौर दीपा की सब्जी में डालने का प्रयत्न किया, दीपा ने टिफिन को हाथ से ढक कर प्रिया को रोक दिया.

प्रिया को बुरा लगा. उस ने खीझते हुए कहा, “क्या है?”

“तुझे कितनी बार बताया है कि मेरी मम्मी बहुत ही तीखी सब्जी बनाती हैं और तुझे ज्यादा मिर्च पसंद नहीं है,” दीपा ने सफाई दी.

कभी चखने देगी तो पता चलेगा न कि आंटी कितना मिर्च डालती हैं. नहीं पसंद आएगी तो खुद ही मना कर दूंगी. खाने तो दे पहले,” प्रिया ने दीपा का हाथ टिफिन पर से हटाने की कोशिश की.

“प्रिया, मैं मना कर रही हूं न”.

“नहीं दूंगी मैं तुझे,” दीपा ने गुस्से से कहा.

“क्यों, क्यों नहीं देगी? मैं कभी मना करती हूं तुझे? तू यह बोल न कि अपना खाना मुझे खिलाना ही नहीं चाहती. शायद तू मेरा जूठा नहीं खा सकती, इसीलिए बहाने बनाती है. ठीक है, आज के बाद कभी नहीं कहूंगी तुझे कुछ भी और न ही तेरे साथ बैठ कर खाऊंगी, समझी? रह खुश,” प्रिया गुस्से में बरस कर उठी और अपना टिफिन उठा कर कमरे से बाहर चली गई.

दीपा की आंखें छलछला उठीं.

सब्जी को ले कर दोनों में अबोला हो गया. यह शीतयुद्ध 3 दिन जारी रहा और चौथे दिन भोजनावकाश के समय दीपा उधर चल दी जहां प्रिया बैठी थी. वहां जा कर उस ने अपना टिफिन खोल कर प्रिया के सामने रख दिया.

प्रिया ने देखा और फिर अनदेखा किया.

दीपा ने टिफिन और आगे खिसकाया प्रिया की नजरों की बिलकुल सीध में, फिर उस के सामने खुद बैठ गई. देखा, प्रिया बात करने को तैयार ही नहीं है तो एक लंबी सांस ली और प्यार से बोली, “खा ले, आलूमटर है, तेरा पसंदीदा.”

सब्जी की खुशबू प्रिया के नथुनों से हो कर उस के पेट व दिमाग में उथलपुथल मचा रही थी लेकिन यों एक सब्जी के लिए वह अपना आत्मसम्मान नहीं छोड़ सकती थी. उस ने खुद को मजबूत किया. अपना ईगो नहीं छोड़ा और बोली, “नहीं खानी, मेरे पास है.”

दीपा (प्यार से) बोली, “खा ले न, स्पैशल तेरे लिए बनवा कर लाई हूं मम्मी से, प्लीज.”

प्रिया ने आंखें तरेरीं, “आज आंटी मिर्च डालना भूल गईं?”

“देख, ज्यादा दिमाग मत लगा, चुपचाप खा ले,” दीपा ने प्यार से झिड़कते हुए कहा.

प्रिया बोली, “नहीं खानी.”

दीपा बोली, “क्यों?”

प्रिया ने जवाब दिया, “जब मांगती हूं तब तो देती नहीं. अब बिना जरूरत के कटोरा लिए बैठी है सामने. नहीं चाहिए.”

दीपा के चेहरे पर पीड़ा उभर आई.

उस ने मनुहार की, “खा ले, प्रिया, पैर पकडूं? देख, नया टिफिन भी लाई हूं तेरे लिए.”

“प्लीज, मुझे ये चोंचले मत दिखा…नया टिफिन? हुंह,” प्रिया ने मुंह बनाया और अपने इरादे पर दृढ़ रही.

दीपा ने कहा, “प्रिया, खा ले वरना मैं तुझ से कभी बात नहीं करूंगी.”

प्रिया बोली, “मत कर. मैं कौन सी मरी जा रही हूं.”

दीपा के आंसू नयनों की परिधि लांघ गए. उस ने एक पल प्रिया को निहारा और उठ कर चल दी.

उस का जाना प्रिया के आत्माभिमान पर चोट कर गया और वह एक पल में तूफान में औंधे पड़े वृक्ष की तरह छटपटा उठी और पीछे से जा कर दीपा का हाथ पकड़ रोक लिया.

अपनी बेस्ट फ्रैंड का दिल दुखाने पर उपजी पीड़ा को छिपाने की नाकाम कोशिश करती हुई वह नाटकीय गुस्से में बोली, “क्या है? खा रही हूं न. जब देखो, भागने की जल्दी लगी रहती है. जरा सा गुस्सा भी न कर सकूं?”

दीपा (आंसू पोंछते हुए विस्मय से), “जरा सा?”

प्रिया बोल पड़ी, “और क्या, बदला तो लेना ही चाहिए न? मुझे भी इतना ही बुरा लगता है जब तुम झट से सब्जी के लिए न कर देती हो.”

दीपा मुसकराई, “ले लिया बदला?”

प्रिया बोली, “हां, चल, अब खाना खाते हैं, भूख लगी है.”

दोनों मुसकरा देती हैं और मेज पर रखे टिफिन के सामने खाना खाने को बैठ जाती हैं.

खाते हुए प्रिया ने कहा, “दीपा, सचसच बता, तू हमेशा मुझे सब्जी खिलाने से मना क्यों कर देती है जबकि परांठे और अचार के लिए तू कभी मना नहीं करती? तुझे किसी का जूठा खाना पसंद नहीं, तो अलग से भी तो दे सकती है.”

दीपा खामोशी से कौर चबाते प्रिया को देखती रही लेकिन बोली कुछ नहीं.

प्रिया फिर बोली, “और आज यह नया टिफिन क्यों?”

दीपा ने अब भी कोई जवाब नहीं दिया.

प्रिया (अब खीझ कर) बोली, “बता न.”

दीपा गहरी सांस ले कर शांत स्वर में बोली, “सचमुच जानना है?”

प्रिया ने कहा, “हां.”

दीपा ने कहा, “पता नहीं तुझे कैसा लगेगा इस के पीछे की वजह जान कर. लेकिन सुन, चौथी क्लास में मैं ने पड़ोस में रहने व साथ पढ़ने वाली एक लड़की को अपने साथ खाना खिला लिया था. वह लड़की उस समय मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी. हम बचपन में साथ खेले, साथ पढ़े थे. एक दिन वह अपना टिफिन लाना भूल गई तो मैं ने उसे अपने साथ लंच करवा लिया. यह बात जब उस के घर वालों को पता चली तो उसे बहुत डांट पड़ी और उन लोगों के ताने बातोंबातों से सफर कर हम लोगों तक पहुंचे थे. बहुत बुरा लगा. मेरी मम्मी से भी मुझे डांट मिली. उस के बाद धीरेधीरे हम दोनों के बीच दूरी बनती चली गई जो अब तक कायम हैं .

प्रिया (अचरज से) बोली, “ऐसा क्यों?”

दीपा ने कहा, “क्योंकि वह लड़की ब्राह्मण थी.”

प्रिया ने कहा, “तो?”

दीपा बोली, “मैं धानक हूं.”

प्रिया (हलका चौंक कर) बोली, “अच्छा.”

दीपा ने कहा, “और तू भी ब्राह्मण है.”

प्रिया ने कहा, “इस से क्या फर्क पड़ता है? मैं ऐसा नहीं सोचती.”

दीपा ने कहा, “तुझे मैं समझती हूं लेकिन तेरे घर वाले? उन्हें यह सब अच्छा नहीं लगेगा.”

प्रिया बोली, “क्या यार, तू भी. पिछली क्लास में हम ने पढ़ा नहीं था कि अस्पृश्यता, छुआछूत, जातिवाद कानूनी अपराध बोलियां हैं और सामाजिक कुरीतियां भी?”

दीपा ने कहा, “पढ़ा था हम ने, हमारी मम्मियों ने नहीं.”

प्रिया बोली, “अब बदल रहा है यार सब. तू कैसी बातें कर रही है.”

दीपा ने कहा, “हां, मानती हूं यह बात. बहुतकुछ बदला है लेकिन सबकुछ नहीं. तू ही बता हम जैसों के लिए तेरे घर में चाय के कप अलग से रखे हुए हैं न, क्यों?”

दीपा ने सवाल गंभीर आवाज व गहरी निगाह के साथ पूछा था जिस की उम्मीद प्रिया को कतई न थी. वह ऐसे सकपकाई जैसे चोर की चोरी रंगे हाथों पकड़ी गई हो. क्या बोलती वह.

दीपा (प्रिया की आंखों में झांकते हुए) आगे बोली, “प्रिया, मेरी दोस्त, हमारी किताबों में क्या लिखा है, इस से अधिक माने हैं हमारे दिमागों में क्या लिखा है? बातों को रटने की नहीं, समझने की जरूरत होती है. तुझे मैं जानती हूं, समझती हूं. तेरा मन बहुत अच्छा है लेकिन तेरा मन सारे समाज का मन नहीं है. हम लोग अंडे खाते हैं, कभीकभी मांस भी. मुझे पता है कि तू शुद्ध शाकाहारी है, इसलिए तुम्हें मैं अपने घर की सब्जी नहीं खिलाना चाहती क्योंकि हम मांस और सब्जी एक ही कड़ाही में बनाते हैं,” यह कहतेकहते दीपा ने गहरी सांस ली.

प्रिया का सिर चकराने लगा था. समझ नहीं आ रहा था उसे कि वह क्या बोले. कहां सब्जी की बात और कहां यह मुद्दा? उलझ गई वह.

उस ने अजीब सी निगाहों से दीपा से सवाल किया, “तू मांस खाती है?”

दीपा ने कहा, “अब नहीं.”

प्रिया ने पूछा, “मतलब?”

दीपा ने कहा, “पहले खाती थी, अब छोड़ दिया.”

प्रिया ने आगे पूछा, “क्यों?”

दीपा (शरारत से मुसकरा कर) बोली, “तूने कहा था, इसलिए.”

प्रिया हैरत से बोली, “मैं ने… कब…?”

दीपा बोली, “तब जब ‘जैव विविधता एवं संरक्षण’ पाठ पढ़ते हुए तूने मांसाहार पर भावुक होते हुए कहा था, ‘यार, कैसे लोग हैं दुनिया में? अपने स्वाद के लिए मासूम जानवरों का दर्द भी महसूस नहीं करते. संसार में खाने की चीजों की कमी है क्या?’ यह बात लगी मुझे भीतर तक. तब से मैं वैजिटेरियन हूं.”

इतना कह कर दीपा मुसकराई. उस की इस मुसकराहट में प्रिया ने भी साथ दिया.

कुछ देर दोनों खामोश बैठी रहीं, फिर दीपा ने टिफिन खोला और बोली, “अच्छा सुन, खाना खाते हैं. आज तेरे लिए मम्मी से कह कर स्पैशल नई कड़ाही में सब्जी बनवाई है और टिफिन भी नया है. भई, तुम ऊंची जाति वालों का धर्म…” कहतेकहते दीपा की नजर प्रिया पर पड़ी. उस की आंखों में आंसू थे. दीपा घबरा गई, पूछा, “क्या हुआ, प्रिया? अब तो सब्जी का मसला हल हो गया है, यार. तो फिर ये आंसू?”

प्रिया उठी और दीपा के पास आ कर उसे कस कर गले लगा लिया. फिर भर्राए गले से बोली, “बकवास बंद कर अपनी, समझी? तू क्या है, मैं क्या हूं, ये छोटी बातें नहीं सोचती मैं. हम दोस्त हैं, बस. कल भी, आज भी और आगे भी. बात खत्म.

इतना कहकर दोनों ने एकदूजे पर अपनी बांहों की पकड़ और अधिक कस ली और एकदूसरे के कंधे भीगने लगे प्रेमनीर से.

पहाड़ की फायदेमंद मूली 

पहाड़ में पैदा होने वाली मूली भी मैदानी मूली की ही तरह खाद्य जड़ों वाली सब्जी है, जो कि क्रूसीफैरी परिवार की सदस्य है. मूली इतनी आसानी से पैदा होने और फैलने वाली फसल है कि यह न तो अधिक देखभाल मांगती है और न ही बहुत अधिक खाद आदि.  पहाड़ी मूली तकरीबन 2 किलो से 3 किलो वजन की होती है

दरअसल, यह एक जल्दी उगने वाली और सदाबहार फसल है. इस की जड़ें विभिन्न रंगों जैसे सफेद से लाल और हलके भूरे रंग की होती हैं.

पहाड़ी क्षेत्र में कुमाऊं मंडल, गढ़वाल, हिमाचल प्रदेश आदि मुख्य मूली उत्पादक राज्य हैं. पहाड़ की मूली के लिए अगस्त महीने का समय खेत तैयार कर के उत्पादन के लिए सही है.

पिछले कुछ सालों से पहाड़ में मूली की खूब पैदावार हो रही है. मूली की मांग हर शहर, हर गांवकसबे में सालभर बनी रहती है. वर्तमान में दूसरी फसलों की तरह मूली के दाम भी बहुत महंगे होते हैं.

मूली की खेती से अच्छा मुनाफा कमाने के लिए हाईब्रिड मूली की खेती करनी चाहिए, क्योंकि हाईब्रिड मूली का बीज बोने से उन की जड़ें दूध की तरह सफेद, लंबी और चमकदार होती हैं, इसलिए आप को बीज भंडार की दुकानों पर तमाम तरह की उन्नत किस्में मिल जाएंगी.

अगर हम मूली की उन्नत किस्मों की बात करें, तो पंजाब अगेती, पंजाब सफेद, पूसा देशी, पूसा चेतकी, जौनपुरी, बांबे रैड, पूसा रेशमी, अर्का, कल्याणपुर आदि के बीज मिल जाएंगे. मूली अगर घर पर ही गमले या मोटे डब्बे में लगाने जा रहे हैं, तो अखबार की गली हुई खाद और पत्तों को मिट्टी में मिला कर एक दिन बाद बीज बोने चाहिए. गमले या टीन और गत्ते के बक्से में मूली बहुत अच्छी होती है.

गमले में मूली लगाने का न कोई सीजन होता है और न ही मौसम. कभी भी मूली का बीज लगाया जा सकता है. अगर अगस्त महीने में मूली की खेती करते हैं, तो इन दिनों मूली के बीजों की बोआई मेंड़ पर नहीं की जाती है, बल्कि इन दिनों छिटकवां विधि से बोआई करते हैं, जैसे गेहूं की बोआई की जाती है.
3-4 दिन में अंकुरण होने के तुरंत बाद हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. इस के अलावा अगर मूली की खड़ी फसल में खरपतवार लग जाएं, तो हाथ से निकाल दें.

मूली की बोआई के तकरीबन 30-40 दिन बाद वह मंडियों में बेचने लायक तैयार हो जाती है. इन की जड़ों को हाथ से बहुत ही आसानी से उखाड़ कर उन्हें पानी से धो कर मंडी तक ले जाया जाता है.

मूली को खेत से उखाड़ने से पहले हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए. ऐसा करने से जड़ें टूटने से बच जाती हैं. यदि सब्जी मंडी आप के गांव के नजदीक है, तो इन्हें सुबह उखाड़ कर धोएं और यदि मंडी गांव से दूर शहर में है, तो शाम के समय ही खेत से उखाड़ कर अच्छी तरह धो कर ले जाना चाहिए.

खेत से मूली को उखाड़ने के बाद साफ पानी से धुलाई करते समय पीली और खराब पत्तियों को निकाल देना चाहिए. साथ ही, ऐसी मूली, जिन की जड़ें उखाड़ते समय टूट गई हैं, उन्हें भी निकाल देना चाहिए. इस के बाद जूट की बोरियों की झिल्ली बना कर उस में मूली को अच्छी तरह बांध कर और ऊपर से पानी डाल कर सब्जी मंडी में ले जाना चाहिए.

इस तरह से मूली की मार्केटिंग करने से जड़ें ताजी रहती हैं और इन के दाम भी अच्छे मिलते हैं, जिस से मूली की खेती से कमाई बहुत अच्छी होती है. मूली की प्रोसैसिंग कर इस का सलाद और अचार बना कर बाजार में बेच सकते हैं, जिस से उत्पादक को और भी ज्यादा मुनाफा होगा.

त्यौहार 2022: मेहमानों के लिए बनाएं ये खास स्प्रिंग डोसा और इडली अप्पम

त्योहारों की बात हो और खानेपीने का जिक्र न हो तो सब अधूरा है. लजीज पकवानों, जायकेदार खाना, चटपटे स्नैक्स, शीतल पेय, लुभावनी मिठाइयों के बिना भला क्या मजा त्योहारों का.

  1. स्प्रिंग डोसा

सामग्री :

3 कप चावल, 1 कप उड़द की धुली दाल, 1 छोटा चम्मच मेथीदाना, 1/2 चम्मच बेकिंग सोडा, नमक स्वादानुसार. भरने के लिए मसाला :  6 से 7 मैश किए हुए उबले आलू , 1/2 कप फ्रोजन मटर, 2-3 हरी मिर्चें बारीक कटी हुई, 2 प्याज बारीक कटे हुए, अदरक एक टुकड़ा कद्दूकस किया हुआ, 4 गाजर कसी हुई, 1 चम्मच राई, 2 चम्मच तेल, 1/2 चम्मच जीरा, 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर, 1/2 चम्मच धनिया पाउडर, 1/2 चम्मच अमचूर, 1/2 चम्मच लाल मिर्च पाउडर, थोड़ा हरा धनिया बारीक कटा हुआ, नमक स्वादानुसार, डोसा तलने के लिए तेल जरूरत के अनुसार.

विधि :

  • डोसा बनाने के लिए सब से पहले उस का घोल तैयार करें. इस के लिए धुली उड़द की दाल और मेथीदाना को साफ कर के धो कर रातभर पानी में भिगो कर रख दें.
  • चावल भी साफ कर के अलग बरतन में भिगो कर रख दें.
  • मेथीदाना और उड़द की दाल का पानी निकाल कर बारीक पीस लें.
  • चावल को भी कम पानी में डाल कर पीस लें. अब दोनों मिश्रण को मिक्सी में दोबारा पीस कर गाढ़ा घोल तैयार कर लें.
  • अब इस में नमक और बेकिंग सोडा डाल कर ढक कर गरम जगह पर 12 से 15 घंटे के लिए रख दें.
  • यह मिश्रण फूल कर दोगुना हो जाता है. यह डोसा बनाने के लिए तैयार है. 
  • डोसा में भरने के लिए अब मसाला तैयार कर लें. कड़ाही में तेल डाल कर आंच पर चढ़ाएं.
  • जब तेल अच्छी तरह से गरम हो जाए तो इस में राई और जीरे का तड़का दें. जीरा भुनने के बाद इस में कटी प्याज, हरी मिर्च, अदरक डाल कर फ्राई करें.
  • इमें हल्दी और धनिया पाउडर मिक्स कर के हलका सा फ्राई करें. भुने मसाले में फ्रोजन मटर, मैश किए आलू, नमक, कसी गाजर, अमचूर पाउडर और लाल मिर्च पाउडर को डाल कर मिक्स करें.
  • आंच बंद कर दें. इस में कटा हुआ हरा धनिया मिला दें. अब मसाला डोसा में भरने वाला मसाला तैयार हो गया.
  • अब डोसा बनाने के लिए पहले से तैयार घोल को देखें. यह ज्यादा गाढ़ा न हो.
  • गैस पर नौनस्टिक तवा रखें. जब तवा गरम हो जाए तो गैस धीमी कर दें.
  • गीले कपडे़ से तवे को पोछ दें. पहली बार तवे पर थोड़ा सा तेल लगा कर हलका सा चिकना कर लें.
  • अब बड़ा चम्मच डोसा घोल ले कर तवे के बीच डाल कर चमचे को गोलगोल घुमाते हुए डोसे को तवे पर फैला दें. थोड़ा सा तेल डोसे के चारों तरफ लगा दें.
  • जब डोसे की ऊपरी सतह ब्राउन सी दिखने लगे तब डोसे की ऊपरी परत पर 3 चम्मच आलू मसाला फैला दें.
  • स्प्रिंग डोसा बनाने में यह मसाला ज्यादा रखा जाता है. डोसे को मोड़ लें.
  • इस को सावधानी से दूसरी प्लेट में रख लें. अब डोसे को पीस में काट लें.
  • टमाटर, धनिया, कसी गाजर और नारियल चटनी के साथ इस को सर्व करें.

इडली अप्पम

सामग्री :

2 कप इडली बैटर, 2 शिमला मिर्च, 2 बड़े चम्मच सोया सौस, 1 छोटा चम्मच सिरका, बारीक कटा अदरक, हरा धनिया, 2 बड़े चम्मच तेल, 1/2 छोटा चम्मच चिली सौस, 1 छोटा चम्मच नमक, 1/4 छोटा चम्मच लाल मिर्च पाउडर.

विधि :

  • इडली अप्पम बनाने के लिए अप्पम मेकर में इडली बैटर भरते जाएं.
  • 2 मिनट धीमी आग पर तब तक पकाएं जब तक दोनों तरफ भूरा न हो जाए. 
  • अब एक पैन में तेल गरम कर लें. उस में कटी हुई शिमला मिर्च और कटा अदरक भूनें. फिर टोमैटो सौस, चिली सौस, सिरका, सोया सौस, लाल मिर्च पाउडर अच्छी तरह मिलाएं और इस में अप्पम डालें.
  • अब इसे धनिया पत्ती से सजा कर गरमगरम परोसें ताकि खाने वाले कह उठें वाह.

साथ में शैलेंद्र सिंह

त्यौहार 2022: आ अब लौट चलें

गजब का आकर्षण था उस अजनबी महिला के चेहरे पर. उस से हुई छोटी सी मुलाकात के बाद दोबारा मिलने की चाह उसे तड़पाने लगी थी. लेकिन यह एकतरफा चाह क्या मृगमरीचिका जैसी नहीं थी? बसस्टौप तक पहुंचतेपहुंचते मेरा सारा शरीर पसीने से तरबतर हो गया था. पैंट की जेब से रूमाल निकाल कर गरदन के पीछे आया पसीना पोंछा, फिर अपना ब्रीफकेस बैंच पर रख कर इधरउधर देखने लगा. ऊपर बस नंबर लिखे थे. मुझे किसी भी नंबर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.

फिर भी अनमने भाव से कोई जानापहचाना सा नंबर ढूंढ़ने लगा, 26, 212, 50… पता नहीं कौन सी बस मेरे औफिस के आसपास उतार दे. तभी अचानक वहां आई एक महिला से कुछ पूछना चाहा. स्लीवलैस ब्लाउज और पीली प्रिंटेड साड़ी में लिपटी वह महिला बहुत ही तटस्थ भाव से काला चश्मा लगाए एक ओर खड़ी हो गई. महिला के सिवा और कोई था भी नहीं. सकुचाते हुए मैं ने पूछा, ‘‘सैक्टर 40 के लिए यहां से कोई बस जाएगी क्या?’’ ‘‘827,’’ उस का संक्षिप्त सा उत्तर था. ‘‘क्या आप भी उस तरफ जा रही हैं?’’ मैं ने पूछा.

हालांकि मुझे उस अनजान महिला से इस तरह कुछ पूछना तो नहीं चाहिए था परंतु देर तक कोई बस न आती दिखाई दी तो चुप्पी तोड़ने के लिए पूछ ही बैठा. ‘‘जी,’’ उस ने फिर संक्षिप्त उत्तर दिया. आधा घंटा और खड़े रहने के बाद भी कोई बस नहीं आई. 10 बजने वाले थे. देर से औफिस पहुंचूंगा तो कैसे चलेगा. एकदम सुनसान था बसस्टौप. ‘‘क्या सचमुच यहां से बसें जाती हैं?’’ मैं ने मुसकरा कर कहा. हालांकि मैं ने कुछ उत्तर सुनने के लिए नहीं कहा था, मगर फिर भी उस महिला ने कहा, ‘‘आज शायद बस लेट हो गई हो.’’ बस का इंतजार करना मेरी मजबूरी बन चुका था. आसपास कहीं औटो या रिकशा होता तो शायद एक क्षण के लिए भी न सोचता. तभी वही बस पहले आई जिस का इंतजार था. मुझे 3 महीने हो गए थे इस छोटे से शहर में. बसस्टौप से थोड़ी ही दूर मेरा फ्लैट था.

स्कूटर अचानक स्टार्ट न होने के कारण आज पहली बार बस में जाना पड़ा. बसस्टौप पर भी पूछतेपूछते पहुंच पाया था. स्टेट बैंक की नौकरी में मेरा यह पहला अवसर ही था जब इस छोटे से शहर में, जो कसबा ज्यादा था, रहना पड़ा. बच्चों की पढ़ाई की मजबूरी न होती तो शायद उन्हें भी यहीं ले आता और पत्नी का बच्चों के साथ रहना तो तय ही था. बड़ी लड़की को 10वीं की परीक्षा देनी थी और शहरों की अपेक्षा यहां इतनी सुविधा भी नहीं थी. 2 कमरों का छोटा सा फ्लैट बैंक की तरफ से ही मिला हुआ था. पिछले मैनेजर की भी यही मजबूरी थी, उसे भी इस फ्लैट में 3 वर्ष तक इसी तरह रहना पड़ा था.

चैक पास करतेकरते उस दिन अचानक कैबिन के दरवाजे की चरमराहट और खनखनाती सी आवाज ने सारा ध्यान तोड़ दिया, ‘‘लौकर के लिए मिलना चाहती हूं,’’ उस महिला ने कैबिन में घुसते ही कहा. मैं ने सिर उठा कर देखा तो देखता ही रह गया. बहुत ही शालीनता से बौबकट बालों को पीछे करती हुई, धूप का चश्मा माथे पर अटकाते हुए उस ने पूछा. ‘‘जी,’’ मैं ने कहा. कोई और होता तो ऊंचे स्वर में 1-2 बातें कर के अपने मैनेजर होने का एहसास जरूर कराता कि देखते नहीं, मैं काम कर रहा हूं. परंतु कुछ कहते न बना. मैं ने एक बार फिर भरपूर नजरों से उसे देखा और उसे सामने वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया. ‘‘लगता है, हम पहले भी मिल चुके हैं,’’ उस महिला का स्पष्ट सा स्वर था, पर स्वर में न कोई महिलासुलभ झिझक थी न ही घबराहट. ‘‘याद आया,’’ मैं ने नाटक सा करते हुए कहा, ‘‘शायद उस दिन बसस्टौप पर…’’ वह मुसकरा पड़ी. मैं फिर बोला, ‘‘अच्छा बताइए, मैं क्या कर सकता हूं आप के लिए?’’ मैं ने सीधेसीधे बिना समय गंवाए पूछा. ‘‘लौकर लेना चाहती हूं इस बैंक में, कोई उपलब्ध हो तो…?’’ ‘‘आप का खाता है क्या यहां?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जी हां. पिछले 5 साल से हर बार लौकर के लिए प्रार्थनापत्र देती हूं, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ. एफडी करने को भी तैयार हूं…’’ ‘‘क्या करती हैं आप?’’ मैं ने पूछा. ‘‘टीचर हूं, यहीं पास के स्कूल में.’’ मुझे लगा, इसे टालना ठीक नहीं. मैं ने उसे एप्लीकेशन फौर्म के साथ कुछ आवश्यक पेपर पूरे कर के कल लाने को कहा. उस असाधारण सी दिखने वाली महिला ने अपने साधारण स्वभाव से ऐसी अमिट छाप छोड़ दी कि मैं प्रभावित हुए बिना न रह सका. इस छोटी सी पहली मुलाकात से हम दोनों चिरपरिचित की तरह विदा हुए. कितने ही लोग आतेजाते मिलते रहते थे, परंतु इस महिला के आगे सब रंग ऐसे फीके पड़ गए कि मानसपटल पर किसी भी काल्पनिक स्वप्नसुंदरी की छवि भी शायद धूमिल पड़ जाए. दूसरे दिन ही मैं ने उसे लौकर उपलब्ध कराने की जैसे ठान ही ली और सारी औपचारिकताएं पूरी कर लीं. 11 बजे के बाद तो लगातार टकटकी बांधे बेसब्री से निगाहें दरवाजे पर अटकी रहीं. पौने 2 बजे उस के बैंक में आने से ही अटकी निगाहों को थोड़ी राहत मिली.

चेहरे के सभी भावों को छिपा कर दूसरे कामों में अनमने भाव से लगा रहा, परंतु तिरछी निगाहें मेरी अपनी कैबिन की चरमराहट पर ही थीं. ‘‘नमस्ते,’’ हर बार की तरह संक्षिप्त शब्दों में उस ने मुसकरा कर कहा और कागजात देती हुई बोली, ‘‘ये लीजिए सारे पेपर्स, राशनकार्ड, फोटो और जो आप ने मंगवाए थे.’’ ‘‘बैठिए, प्लीज,’’ उस के हाथ से पेपर्स ले कर मैं ने पूछा, ‘‘कुछ लेंगी आप?’’ ‘‘नो, थैंक्यू. बच्चे स्कूल से घर आने वाले हैं, स्कूल में ही थोड़ा लेट हो गई थी. पहले सोचा कि कल आऊंगी. फिर लगा, न जाने आप क्या सोचेंगे.’’ थोड़ीबहुत खानापूर्ति कर उसे लौकर दिलवा दिया और अपना ताला लौकर में लगाने को कहा, जैसा कि नियम था. मुसकरा कर वह आभार प्रकट करती चली गई. एक सवेरे जौगिंग करते हुए मैं पार्क में पहुंचा तो वह लंबे कदमों से चक्कर लगाने में लीन थी.

मुझे देख कर एक क्षण के लिए रुकी भी, शायद पहचानने का प्रयत्न कर रही हो, पर शुरुआत मैं ने ही की, बोला, ‘‘मेरा नाम…’’ ‘‘जानती हूं,’’ मेरी बात काटती हुई हाथ जोड़ कर बहुत ही शिष्ट व्यवहार से वह बोली, ‘‘आप को भला मैं कैसे भूल सकती हूं. 5 साल से जो नहीं हो पाया वह 2 ही दिन में आप ने कर दिया.’’ उस के पहने हुए नीले रंग के ट्रैक सूट और महंगे जूते उस की पसंद और छवि को दोगुना कर रहे थे. इस शहर में तो इन वस्तुओं का उपलब्ध होना संभव नहीं था, परंतु इन सब के बावजूद बिना किसी मेकअप के उस के चेहरे में गजब की कशिश थी. कोई भी साहित्यकार मेरी आंखों से देखता तो शायद तारीफ में इतिहास रच डालता. ‘‘यहां कैसे, आप? कहीं पास ही में रहती हैं क्या?’’ मैं ने पूछा. ‘‘जी, सामने वाली सोसाइटी में. घूमतेघूमते इधर निकल आई. रविवार था. कहीं जाने की जल्दी तो थी नहीं.

एक ही पार्क है यहां.’’ बातोंबातों में ही उस ने बताया कि 2 छोटे बेटे हैं, पति आर्मी में मेजर हैं और दूसरी जगह पोस्टेड हैं. छुट्टियों में आते रहते हैं. समय बिताने के लिए उस ने यह सब शौक रखे हैं, वरना नीरस से जीवन में क्या रखा है. न जाने क्यों, पहले दिन से ही उस के प्रति आकर्षण था और उस का प्रत्येक हावभाव मेरे दिमाग पर अजीब सी मीठी कसक छोड़ता रहा. मुझे उस से मिलने का नशा सा हो गया. रविवार का मैं बहुत ही बेसब्री से इंतजार करता रहता और वह भी पार्क में आती रही. हम दोनों पार्क के 2 चक्कर तेजी से लगाते, फिर तीसरी बार में इधरउधर की बातें करते रहते. मैं बैंक की बताता तो वह अपने स्कूल के शरारती बच्चों के बारे में. उस का इस तरह नियमित समय से आना लगभग तय था. चेहरे की मुसकराहट तथा भाव से उस का भी मेरे प्रति झुकना कोई असामान्य नहीं लगा. एक दिन अपना उम्र प्रमाणपत्र सत्यापित कराने बैंक में आई तो उस में लिखी उम्र देख कर मैं हैरान रह गया.

‘‘1964 का जन्म है आप का, लगता नहीं कि आप 38 की होंगी,’’ मैं ने कहा तो वह मुसकरा कर रह गई. ‘‘क्यों?’’ वह सकुचाती सी बोली, ‘‘क्या लगता था आप को?’’ शायद हर नारी की तरह वह भी 20-22 ही सुनना चाहती हो. मैं बोला, ‘‘कुछ भी लगता हो, परंतु आप 38 की नहीं लगतीं.’’ उस के चेहरे की लालिमा मुझ से छिपी नहीं रही. इस लालिमा को देखने के लिए ही तो मैं लालायित था. ‘‘शायद इसीलिए ही लड़कियां अपनी उम्र बताना पसंद नहीं करतीं,’’ मैं बोला. महिला के स्थान पर लड़की शब्द का प्रयोग पता नहीं मैं किस बहाव में कर गया, परंतु उसे अच्छा ही लगा होगा. मैं ने फिर दोहराया, ‘‘परंतु कुछ भी कहिए, मिसेज शर्मा, आप 38 की लगती नहीं हैं,’’ मेरे द्वारा चुटकी लेते हुए कही गई इस बात से उस के सुर्ख चेहरे पर गहराती लालिमा देखते ही बनती थी. ‘‘आप मर्दों को तो छेड़ने का बहाना चाहिए,’’ उस ने सहज लेते हुए दार्शनिक अंदाज में मुसकराते हुए कहा. मुझे लगा वह बुरा मान गई है,

इसलिए मैं ने कहा, ‘‘माफी चाहता हूं, यदि अनजाने में कही यह बात आप को अच्छी न लगी हो.’’ ‘‘नहीं, मुझे कुछ भी बुरा नहीं लगा. आप को जो ठीक लगा, आप ने कह दिया. मेरे सामने कह कर स्पष्टवादिता का परिचय दिया, पर पीछे से कहते तो मैं क्या कह सकती थी,’’ वह बोली. इतनी गंभीर बात को सहज ढंग से निबटाना सचमुच प्रशंसनीय था. यह सिलसिला जो पार्क से प्रारंभ हुआ था, पार्क में ही समाप्त होता नजर आने लगा, क्योंकि यह क्रम उस दिन के बाद आगे नहीं चल सका. मुझे लगा वह मेरी उस बात का बुरा मान गईर् होगी. अब हर सवेरे मैं उस पार्क में जा कर एक चक्कर लगाता, 1-2 एक्सरसाइज करता और देर तक इधरउधर शरीर हिला कर व्यायाम का नाटक करता. बैंक में कैबिन के बाहर ही गतिविधियों पर पैनी नजरें गड़ाए रहता, परंतु उस से फिर पूरे 2 सप्ताह न बैंक में मुलाकात हो सकी न पार्क में. शाम होती तो सुबह का इंतजार रहता और सैर के बाद तो बैंक में आने का इंतजार.

3 दिन लगातार बसस्टौप पर भी जाता रहा. मेरे मन की स्थिति एकदम पपीहा जैसी हो गई जो सिर्फ बरसात का इंतजार करता रहता है. उस का पता ले कर एक दिन उस के घर जाने का मन भी बनाया पर लगा, यह ठीक नहीं रहेगा. वह स्वयं क्या सोचेगी, उस के बच्चों को क्या कहूंगा. वह क्या कह कर मेरा परिचय कराएगी और कोशिशों के बावजूद नहीं जा पाया. बैंक में उस के पते के साथ फोन नंबर न होने का आज सचमुच मुझे बहुत ही क्षोभ हुआ. कम से कम फोन तो इस मानसिक अंतर्द्वंद्व को कम करता. चपरासी के हाथ अकाउंट स्टेटमैंट के बहाने उस को बैंक में आने का संदेशा भिजवाया. रविवार की इस सुबह ने मुझे बेहद मायूस किया. इस पूरे आवास काल में पहला रविवार था कि घूमने का मन ही नहीं बन सका. दरवाजे पर अचानक बजी घंटी ने दिल के सारे तार झंकृत कर दिए. इतनी सुबह तो कोई नहीं आता. हो न हो मिसेज शर्मा ही होंगी. लगता है कल चपरासी ठीक समय से पहुंच गया होगा,

यही सोचता मैं जल्दी से स्वयं को ठीक कर के जब तक दूसरी बार घंटी बजती, दरवाजे पर पहुंच गया. सामने अपनी पत्नी को पा कर सारा नशा काफूर हो गया. मेरा चेहरा उतर गया. ‘‘क्यों, हैरान हो गए न,’’ वह हांफते हुए बोली, ‘‘बहुत ही मुश्किल से मकान मिला है,’’ वह अपना सूटकेस भीतर रखते हुए बोली. ‘‘अरे, बताया तो होता, कोई फोन, चिट्ठी…’’ मैं ने कहा. ‘‘सोचा, आप को सरप्राइज दूंगी, जनाब क्या करते रहते हैं इस शहर में. अचानक बच्चों की छुट्टियां हुईं तो उन्हें मायके छोड़ सीधी चली आई. बताने का मौका कहां मिला.’’ मेरा मन उस के आने के इस स्वागत के लिए तैयार तो नहीं था परंतु चेहरे के भावों में संयतता बरतते हुए मुझे सामान्य होना ही पड़ा. फिर भी इस स्थिति को पचाते शाम हो ही गई. पत्नी के 3 दिन के इस आवासकाल में मैं ने हरसंभव प्रयास किया कि नपीतुली बातें की जाएं.

जब भी बाहर घूमने के लिए वह कहती तो सिरदर्द का बहाना बना कर टाल जाता. बाहर खाने के नाम पर उस के हाथ का खाना खाने की जिद करता. मुझे भय सा व्याप्त हो चुका था कि कहीं उस के साथ मिसेज शर्मा मिल गईं तो क्या करूंगा. क्या कह कर हमारा परिचय होगा. मेरे मन में अजीब सी शंका ने घर कर रखा था. मेरी पत्नी उस के स्वभाव, रूप को देख कर क्या सोचेगी. इसी भय के कारण मैं ने 3 दिन की छुट्टी ले ली थी. मन का भूत साए की तरह पीछे लगा रहा और यह तब तक सताता रहा जब तक मैं ने अपनी पत्नी को जाते वक्त बस में न बिठा दिया. क्या अच्छा है, क्या बुरा है, यह समझना भी नहीं चाहता था. अगली शाम मन का एकाकीपन दूर करने के लिए मैं टीवी देखता चाय की चुसकियां ले ही रहा था कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने मिसेज शर्मा को पाया.

दिल धक से रह गया. इच्छा के अनुकूल चिरपरिचिता को सामने पा कर सभी शब्दों और भावों पर विराम सा लग गया. बहुत ही कठिनाई से पूछा, ‘‘आप…’’ उस के हाथ में रजनीगंधा के फूलों का बना सुंदर सा बुके था. काफी समय बाद उसे देखा था. ‘‘जी,’’ वह भीतर आते हुए बोली, ‘‘कल बैंक गई तो पता चला आप कई दिनों से छुट्टी पर हैं. सोचा, आप से मिलती चलूं,’’ यह कह शालीनता का परिचय देते हुए उस ने मेरे हाथों में बुके पकड़ा दिया. ‘‘वह…क्या है कि…’’ मुझ से कहते न बना, ‘‘आप को मेरा पता कैसे मिला?’’ मैं ने हकलाते हुए बहुत बेहूदा सा प्रश्न पूछा, जिस का उत्तर भी मैं जानता था, ‘‘आइए, मैं ने उस पर भरपूर नजर डालते हुए आगे कहा, ‘‘बैठिए न. कुछ पिएंगी, चाय बनाता हूं. चलिए, थोड़ीथोड़ी पीते हैं.’’ ‘‘नहीं, बस, नीचे मेजर साहब गाड़ी में मेरा इंतजार कर रहे हैं.’’ ‘‘मेजर साहब…’’ मैं ने अचरज से पूछा. ‘‘हां, मेरे पति. उन का तबादला इसी शहर में हो गया है,’’ चेहरे पर बेहद खुशी लाते हुए बोली, ‘‘अब वे यहीं रहेंगे हमारे साथ. पूरा महीना लग गया तबादला कराने में. सुबह से रात तक भागदौड़ में बीत गया,

यहां तक कि सैर, स्कूल सभी को तिलांजलि देनी पड़ी,’’ कह कर वह चली गई. यह देखसुन कर मेरे शरीर का खून निचुड़ गया. स्वयं को संयत करता हुआ सोफे पर जा बैठा. आखिर इतनी तड़प क्यों हो गई थी मन में एक अनजान महिला के प्रति. क्यों इतनी उत्कंठा से टकटकी बांधे इंतजार करता रहा. यह अंतिम आशा भी निर्मूल सिद्ध हुई. क्या है यह सब, मैं पूरी ताकत से लगभग चीखते हुए मन ही मन बुदबुदाया. इतनी मुलाकातें… ढेरों बातें, लगता था वह प्रति पल करीब आती जा रही है. क्यों वह ऐसा करती रही? इतनी शिष्टता और आत्मीयता तो कोई अपने भी नहीं करते.

यदि ऐसे ही छिटक कर दूर होना था तो पास ही क्यों आई? ऐसा संबंध ही क्यों बनाया जिस के लिए मैं अपनी पत्नी से भी ठीक व्यवहार न कर सका तथा जिसे पाने की चाह पत्नी को भेजने की चाह से कहीं अधिक बलवती हो उठी थी? 2-4 बार की चंद मुलाकातों में क्याक्या सपने नहीं बुन डाले. परंतु मुझे लगा यह सब एकतरफा रास्ता था. उस ने कहीं, कुछ ऐसा नहीं किया जो अनैतिक हो, सिर्फ अनैतिकता मेरे विचारों और संवेदनाओं में थी, शायद संवेदनाओं को अभिव्यक्त करने की. मैं रातभर विरोधाभास के समुद्र में डूबताउतराता रहा और अपने खोए हुए संबंधों को फिर स्थापित करने की दृढ़ इच्छा ने मुझे सवेरे की पहली बस से अपने परिवार के पास भिजवा दिया.

पूजा चोपड़ा: खुद के सपने को खुद करें पूरा

पूजा चोपड़ा उन हजारों लड़कियों में से एक है, जिनके जन्म से पिता खुश नहीं थे, क्योंकि वे एक बेटे के इंतजार में थे. यही वजह थी कि पूजा की माँ नीरा चोपड़ा अपने दोनों बेटियों के साथ पति का घर छोड़ दिया और जॉब करने लगी. इस दौरान परिवार के किसी ने उनका साथ नहीं दिया, पर उनकी माँ ने हिम्मत नहीं हारी और एक स्ट्रोंग महिला बन दोनों बेटियों की परवरिश की. आज बेटी और अभिनेत्री पूजा अपनी कामयाबी को माँ के लिए समर्पित करना चाहती है और जीवन में उनकी तरह ही स्ट्रॉग महिला बनने की कोशिश कर रही है.

असल में पूजा चोपड़ा एक भारतीय मॉडल-फिल्म अभिनेत्री हैं. वह वर्ष 2009 की मिस फेमिना मिस इंडिया का ताज अपने नाम कर चुकी हैं. पूजा चोपड़ा का जन्म 3 मई वर्ष 1986 पश्चिम बंगाल के कोल्कता में हुआ था. पूजा चोपड़ा ने अपनी शुरुआती पढाई कोलकाता और पुणे से पूरी है. कई ब्यूटी पेजेंट जीतने के बाद उन्होंने मॉडलिंग शुरू की और धीरे-धीरे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी साख जमाई.

 

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मानसिकता कम करना है जरुरी

अभिनेत्री पूजा आगे कहती है कि इस फिल्म की कहानी आज की है, केवल लखनऊ की नहीं, बल्कि मुंबई, पुणे, दिल्ली आदि में भी रहने वाली कुछ महिलाओं की हालत ऐसी ही होती है. आज भी पत्नी ऑफिस से आने पर घर के लोग, उसके ही हाथ से बने खाने का इंतजार करते है, ये एक मानसिकता है, जो हमारे देश में कायम है, इसे मनोरंजक तरीके से इस फिल्म में बताने की कोशिश की गई है. स्क्रिप्ट बहुत अच्छी है और मैंने इसमें एक मुस्लिम लड़की की भूमिका निभाई है, जो आत्मनिर्भर होना चाहती है.देखा जाय तो रियल लाइफ में मुस्लिम लड़कियों को बहुत दबाया जाता है, ऐसे में मेरे लिए एक मुस्लिम लड़की की भूमिका निभाना बड़ी बात है, क्योंकि मैं भी स्ट्रोंग और आत्मनिर्भर हूँ. इससे अगर थोड़ी सी भी मेसेज प्रताड़ित महिलाओं को जाएँ, जो खुद को बेचारी समझती है और सहती रहती है,तो मुझे ख़ुशी होगी.

अलग चरित्र करना है जरुरी

पूजा हंसती हुई कहती है कि इससे चरित्र से मेरा कोई मेल नहीं है, ये लड़की सकीना शादी-शुदा है और अंदर से खाली है. शादी के बाद उसके मायके वालों से उसका कोई रिश्ता नहीं है. उनकी एक गूंगी सास और पति है, वह घर पर खुद को स्ट्रोंग दिखाती है, पर अंदर से कमजोर है. उस पर काफी जुल्म होता है, पर वह घर से निकल नहीं सकती. इसका सबसे अधिक और बड़ा उदहारण मेरी माँ नीरा चोपड़ा है, जिसने दो बेटियों को लेकर बाहर निकल आई. एक पल के लिए उन्होंने कुछ सोचा नहीं, उन्होंने कई बड़ी-बड़ी होटलों में काम किया है. आज भी वह काम करती है. इस फिल्म में सकीना अंदर से कमजोर है, उसका कोई इस दुनिया में नहीं है, पति और सास उसपर अत्याचार के रहे है अब उसके पास 3 आप्शन है, या तो वह इसे सहती जाय, कुछ बोली तो घर से निकाल दिया जाएगा और घर से निकालने पर वह जायेगी कहा. अकेली कमजोर होते हुए खुद को मजबूत जाहिर करना बहुत चुनौतीपूर्ण था.

 

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बदलाव को करें सेलिब्रेट

पूजा कुछ बदलाव आज देखती है और कहती है कि पारंपरिक परिवारों में आज भी महिलाओं पर अत्याचार होते रहते है, लेकिन इसके लिए किसी पर ऊँगली उठाना ठीक नहीं. दूसरों को कहने से पहले खुद को सम्हालना जरुरी है. अभी बहुत कुछ बदला है. आज महिलाओं को काफी घरों में सहयोग मिलता है. इसे सेलिब्रेट करने की जरुरत है. पूरी बदलावहोने में समय लगेगा. विश्व प्लेटफार्म पर आजकल शादी-शुदा महिला को भी ब्यूटी कांटेस्ट में भाग लेने का मौका मिलता है, ये बहुत बड़ी बदलाव है.

मिली प्रेरणा

पूजा ने कॉलेज में एक्टिंग या मॉडलिंग के बारें में दूर-दूर तक सोचा नहीं था, क्योंकि स्कूल कॉलेज में वह टॉम बॉय की तरह थी. लेकिन उसकी हाइट अधिक होने की वजह से उन्होंने कई फैशन शो और ब्यूटी कांटेस्ट में भाग लिया और जीत भी गई.पुणे में उन्होंने काफी प्रतियोगिताए जीती इससे उनके अंदर एक कॉन्फिडेंस आया. आसपास के दोस्त और रिश्तेदारों ने भीबड़ी-बड़ी होर्डिंग मर पूजा की तस्वीरें देखकर तारीफ़ करने लगे फिर उन्होंने  एक्टिंग की तरफ आने के बारे में सोचा.

 

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मिला सम्मान

अभिनेत्री पूजा कहती है कि मैंने मिस इंडिया के लिए काफी मेहनत की थी, क्योंकि मुझे जीतना था और मिस वर्ल्ड में देश की प्रतिनिधित्व करना था. मैं पहली भारतीय थी, जिन्होंने ब्यूटी विथ पॉर्पोज अवार्ड जीती थी. मिस इंडिया के बाद फिल्मों के ऑफर आने लगे थे और मैंने किया. मिस इंडिया जीतने से लोगों के बीच एक सम्मान और ओहदा मिला, जो एक नार्मल पूना से आई हुई लड़की को नहीं मिलता. किसी से मिलना चाहती हूँ तो वो इंसान टाइम देता था. इससे जर्नी थोड़ी आसान हो गयी थी, लेकिन बाद में टैलेंट ही आपको आगे ले जाती है.

काम में पूरी शिद्दत

पूजा का कहना है कि मैं आउटसाइडर हूँ, इसलिए मुझे सोच-सोचकर कदम बढ़ाना है ये मैं जानती थी. इसके अलावा मैंने अपनी माँ से शिद्दत और मेहनत से काम करना सीखा है. मुझे सोशलाईज होना  पसंद नहीं, मेहनत और लगन  से ही काम करना आता है. मैं जिस किसी काम को आज तक किया, उसमे मैंने सौप्रतिशत कमिटमेंट देना सीखा है.

 

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करती हूँ सोशल वर्क

सोशल वर्क करने के बारें में अभिनेत्री पूजा बताती है कि सोशल वर्क मैं करती हूँ, क्योंकि ऐसी कई लडकियां होंगी, जो मेरी तरह ऐसी माहौल से गुजरी होंगी, मेरी माँ की तरह उन्होंने भी कष्ट झेले होंगे, या कही अनाथ होंगी. ऐसे में मैं उनकी कुछ मदद कर सकूँ, तो वह मेरे लिए अच्छी बात होगी. मैं अपने स्तर पर जो संभव हो करती जाती हूँ.

मिला परिवार का सहयोग

पूजा के जीवन में उसकी माँ और दीदी का बहुत सपोर्ट रहा, जिसकी वजह से वह यहाँ तक पहुँच पाई है. वह कहती है कि मेरा सपना हैं कि मेरी माँ का 12 घंटे काम कर थक जाना अच्छा नहीं लगता, मैं उन्हें एक ऐसी जिंदगी दे दूँ,जिसमे वह खुश होकर अपनी जिंदगी बिता सकें और कहे कि अब मैं बहुत खुश हूँ,मैंने देखा है कि मेरी माँ खुश होने पर ग्लो करती है. मेरी दीदी जॉब करती है. उन्होंने भी मुझे यहाँ तक आने में बहुत सहयोग दिया है, जब मैं 7 वीं कक्षा में थी तो मेरी दीदी उस समय कॉलेज जाती थी. उन्होंने सुबह 4 बजे उठकर शेयर रिक्शा में पुणे में 6 से 7 किलोमीटर कैंट एरिया में जाकर अखबार वितरितकरती थी. उससे आये एक्स्ट्रा पैसे से मैंने ट्यूशन लिया, क्योंकि मैं हिंदी और मराठी में बहुत कमजोर थी. मेरी दीदी मुझसे 4 साल बढ़ी है और उन्होंने मुझे नहलाना, धुलाना, खाना खिलाना आदि करती थी, क्योंकि माँ जॉब करती थी और सुबह निकलकर रात को आती थी. इस तरह से मेरी दो माएं है.

खुद के सपने को खुद करें पूरा

पूजा महिलाओं को मेसेज देना चाहती है कि खुद को पुरुषों से कभी कम न समझे, जो भी सपना उन्होंने देखा है, उसे उठकर खुद पूरा करें, खुद में आत्मविश्वास रखें. अभी महिलाएं,वार फील्ड से लेकर हर क्षेत्र में काम कर रही है. पुरुषों को चाहिए कि वे महिलाओं को आगे आने में सपोर्ट करें, लड़कियों को लड़कों से कभी कम न आंके.

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