यह कोई नई बात नहीं है कि पैसा हर खुशी दे सकता है लेकिन जान नहीं बचा सकता. कितने ही धन्ना सेठ, बड़े शहंशाह, राजनेता, उद्योगपति पैसे के बावजूद अस्मय मौत के शिकार हो चुके हैं. राकेश झुनझुनवाला भी उन में से एक हैं जो अरबों के शेयरों के मालिक थे पर 62 साल की आयु में मौत उसे छीन ले गई और उस का पैसा ताकता रह गया.

इस तरह के मौकों पर पंडितपादरी यह कहना नहीं भूलते कि दान दिया करो क्योंकि पैसा जान नहीं बचा सकता. उन का मतलब असल में यही होता है कि जिस के पास पैसा है वह पंडितों, पादरियों को लगातार दान देता रहे ताकि वे बिना काम किए मौज उड़ाते रहें. इसीलिए राकेश झुनझुनवाला जैसों के उदाहरण दिए जाते हैं कि देखो इतने पैसे का क्या फायदा हुआ.

असल में राकेश झुनझुनवाला ने जिस भी तरकीब से पैसा कमाया, यह तो पक्का है कि चार्टर्ड अकाउंटैंट बनने के बाद एक इन्कम टैक्स अफसर का बेटा इतना अगर कमा लेता है तो वह बहुत कमाल की बात है. अगर उस के तरीके गलत भी थे तो वे नीरव मोदी, विजय माल्या, ललित मोदी की तरह के नहीं थे. वे भारतीय जनता पार्टी के समर्थक थे और इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुरंत श्रद्धांजलि दी पर हरेक भाजपा के अमीर को तो मोदी की कृपा नहीं मिलती. उस में कुछ खासीयत थी कि उस ने बिना लंबेचौड़े आरोपों के पैसा कमाया और एक नई एयरलाइन भी शुरू की थी.

मौत का कोई भरोसा नहीं है पर इस का मतलब यह नहीं कि काम न किया जाए. कमाया न जाए या कमाया हुआ निठल्लों, निक्कमों को दे दिया जाए कि कहीं मौत न आ जाए. मौत पर लोग किसी को याद करते हैं तो इसलिए कि उस ने जीतेजी कमाया. वह लोगों के लिए आदर्श था. लोग उस के रहस्य को जानना चाहते थे. सैकड़ों उस जैसे बनना चाहते थे. अगर राकेश झुनझुनवाला ने पैसा न कमाया होता या सारा दान दे दिया होता तो उन की मौत सिर्फ म्यूनिसिपल रिकौर्ड में दर्ज होती, देशभर के अखबारों व चैनलों की हैडलाइन न बनती.

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