ज्योति ने तेजी से साइकिल के ब्रेक लगाते हुए अपने को टक्कर से बचाने के लिए हैंडल बाईं तरफ काटा था और मोटरसाइकिल वाले ने अपने बाएं काटते हुए ब्रेक पर पैरों का दबाव बढ़ा दिया था, जिस से दोनों के वाहन टकराए नहीं, गिरे भी नहीं.
दोनों पैरों को सड़क पर टेकते हुए ज्योति ने मोटरसाइकिल सवार को गुस्से से देखा, कुछ कहने जा ही रही थी कि रुक गई. हरीश था.
ज्योति से नजरें टकराते ही उस के चेहरे पर अजीब सी चमक उभर आई. पैरों के जोर से अचानक बंद हो चुकी अपनी बाइक को पीछे कर के ज्योति के करीब लाता हुआ बोला, “ओह, तो तुम हो… अगर मैं इस समय कुछ और सोच रहा होता, तो वो भी मुझे मिल जाता…”
ज्योति जानती थी कि चलतीफिरती सड़क पर वह कोई छिछोरी हरकत नहीं करेगा, इसलिए बड़ी सहजता से उस ने पूछा, “क्या सोच रहे थे?”
“यही कि कुछ दिनों बाद तो नौकरी ज्वाइन करने जाना ही है. और काश, जाने से पहले तुम से एक मुलाकात कर के अपनी गलती की माफी मांग सकूं.
“मैं जानता हूं कि मेरी उस बात को ले कर तुम अभी तक मुझ से नाराज हो.”
ज्योति ने वहां ज्यादा देर यों साइकिल के, इधरउधर पैर कर के सड़क पर खड़े रहना उचित नहीं समझा. अचानक वह बोली,” नाराज तो बहुत हूं, पर कल तुम भैया से मिलने के बहाने आ सकते हो.”
इतना कह कर वह उचक कर साइकिल की गद्दी पर बैठी और घर की तरफ बढ़ गई.
हरीश ने भी बाइक स्टार्ट की और अपने घर की तरफ चला गया. ज्योति ने उस से बात कर ली थी, इसलिए उस की खुशी देखते ही बनती थी.
ज्योति घर पहुंची तो देखा कि पिता अमर नाथ को एंबुलेंस में बिठाया जा रहा है. मां भी उन के साथ हैं. जुगल उसे देखते ही बोला, “अच्छा हुआ तू आ गई. पिताजी को दिल का दौरा पड़ा है. मैं ने एंबुलेंस बुला ली है. उन्हें तुरंत अस्पताल ले कर जा रहा हूं.”
“मैं भी चलूं क्या?” ज्योति ने पूछा, तो जुगल ने मना कर दिया. फिर वह अपनी बाइक स्टार्ट कर एंबुलेंस के पीछे चला गया.
अमर नाथ को आईसीयू में भरती कर लिया गया था.
अस्पताल की सारी प्रक्रिया निबटा कर मां को वहां छोड़ जुगल घर आया. ज्योति उस का इंतजार कर रही थी. जुगल के आराम से बैठते ही उस ने पूछा, “जब मैं अपनी सहेली से मिलने जा रही थी, तब तो ऐसी कोई बात नहीं थी, फिर अचानक पिताजी को ये हार्ट अटैक…?
“अरे, मेरे होने वाले ससुर विश्व नारायण राठौर का फोन आया था. सुनते ही पिताजी गुस्से में भर कर चिल्लाने लगे थे, ‘पता नहीं, अपनी बिरादरी के लोगों को क्या हो गया है. कहीसुनी बातों पर विश्वास कर के मेरे लड़के पर इलजाम लगा रहे हैं. अरे, उन की लड़की में ही दोष होगा. मेरा जुगल कभी ऐसा नहीं कर सकता’.”
“कहतेकहते, अचानक वह अपना सीना दबा कर वहीं पलंग पर बैठ गए. जिस मोबाइल पर बात हो रही थी, वह मोबाइल उन के हाथ से छूट कर गिर गया और वो दर्द से तड़पने लगे,”
सारी जानकारी दे कर जुगल ने आगे बताया, “ज्योति, दरअसल बात यह थी कि नीलिमा अर्थात तुम्हारी होने वाली भाभी ने मुझ से शादी करने से मना कर दिया.”
“ऐसा क्यों…? मंगनी के दिन तो तुम दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था, बल्कि तुम तो कह रहे थे कि पहले उस ने तुम्हे पसंद किया था,” ज्योति ने पूछा, तो जुगल बोला, “हां, उस ने ही मुझे पसंद किया था और मैं स्वयं उस की सुंदरता पर इस कदर मोहित हो गया था कि मैं ने भी हां कर दी थी.”
“लेकिन, मुझे आश्चर्य यह हो रहा है कि नीलिमा के कान में किस ने ये झूठ भर दिया कि मेरा चक्कर किसी और से चल रहा है और वो किसी और को चाहने वाले से कभी शादी नहीं कर सकती.”
“तो तुम्हारा किसी और से भी चक्कर चल रहा क्या?” सबकुछ जानते हुए भी ज्योति ने जुगल से पूछा, ताकि वह उस के दिल की थाह ले कर समझ सके कि सामने बैठा जुगल कितना सच्चा है और कितना झूठा.
“नहीं ज्योति, इस संसार में नीलिमा से ज्यादा सुंदर कौन है, जो मेरे जैसे हीरो के मन को भा जाए.”
“भैया, मन को भा जाने के लिए सुंदरता की जरूरत नहीं होती. कभीकभी इनसान अपनी वासना की पूर्ति के लिए भी किसी को चाहने लगता है.”
ज्योति की बात सुन कर जुगल के चेहरे का रंग एकदम से बदल गया. कुछ देर तक ज्योति को गौर से देखने के बाद वह बोला, “तुझे बड़ा ज्ञान आ गया है.” क्रोध में अपनी आवाज में तेजी लाता हुआ वह बोला, तो ज्योति ने पूछा, “मैं ने तो एक साधारण सी बात की थी, उस में इतना गुस्सा तुम को क्यों आ गया?”
“तू ने बात ही कुछ इस ढंग से कही, जैसे वह मुझ पर ही लागू होती हो.”
“अगर आप पर लागू नहीं होती, तो आप चीख कर नहीं बोलते.”
“तेरे कहने का मतलब क्या है?” इस बार जुगल झुंझला उठा.
“मेरे कहने का मतलब है कि आज पिताजी को जो ये अटैक आया है, उस के पीछे का कारण आप ही हो.”
“क्या आप इस बात से इनकार करते हो कि आप ने अपने दोस्त हरीश की बहन, प्रियंका को प्यार के सब्जबाग दिखाए, फिर उस के साथ शादी के वादे किए और उसे मझधार में छोड़ किसी और से शादी करने की सोची. भैया, यह उसी की हाय का नतीजा है.”
ज्योति के आगे वह अपनी हार नहीं मानना चाहता था, इसलिए उस ने पहले तो जोरदार अट्टहास लगाया, फिर बोला, “लगता है, तुझे भी गलतफहमी हो गई है. भला मै प्रियंका से क्यों प्यार करूंगा?”
“भइया, तुम पिताजी के डर से सच भले ही ना कबूलो, पर यह सच है कि तुम प्रियंका के साथ प्यार का खेल खेल कर उसे धोखा देने जा रहे थे. अगर इस बात में सचाई नहीं होती, तो तुम्हारा रिश्ता नहीं टूटता. और पिताजी भी अस्पताल में न होते.”
“इस का मतलब है कि प्रियंका ने ये झूठी खबर नीलिमा तक पहुंचाई है.”
“अजीब सोच है तुम्हारी. अपनी बदनामी वह खुद क्यों कराएगी?”
“कोई बात नहीं. मुझे बदनाम करने के लिए ये खबर जिस ने भी नीलिमा के घर पहुंचाई है, मैं उसे जिंदा नहीं छोडूंगा,” कहते हुए जुगल ज्योति को घूरता हुआ बाहर जाने लगा, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.
जुगल ने फोन उठाया, तो उधर से चाचा भ्रमर नाथ की आवाज सुनाई दी, “अरे जुगल, क्या हो गया भाई साहब को? अभीअभी तुम्हारी मामी का फोन आया था. कह रही थीं कि तुम शीघ्र चले आओ. तुम्हारे बड़े भइया बहुत सीरियस हैं.
“लेकिन, चाचा आप को आने की जरूरत नहीं है. वे आईसीयू में एडमिट हैं. दिल का दौरा पड़ा है उन्हें, पर डाक्टर का कहना है कि खतरे की कोई बात नहीं है. ठीक हो जाएंगे. फिर आप को देख कर तो उन्हें कुछ भी हो सकता है.”
“जरा ज्योति बिटिया को फोन देना,” उधर से चाचा ने कहा, तो जुगल ने मोबाइल डिस्कनेक्ट कर दिया और तेजी से घर के बाहर निकल गया.
ज्योति बातों से समझ गई कि चाचा का फोन था.
उठ कर उस ने बाहर का दरवाजा बंद किया और अंदर आ कर जुगल के व्यवहार के बार में सोचने लगी.
अचानक उसे ध्यान आया कि अभी तो शाम के 7
बजे हैं. मां वहां अगर रात में रुकती हैं तो भूखी कैसे रह पाएंगी. उस से गलती हो गई. उसे मां के लिए खाना बना कर टिफिन में रख कर भाई के हाथों भिजवा देना चाहिए था.
चाचा ने शायद इसीलिए फोन किया हो. वह जानती थी कि पिताजी अपने छोटे भाई से कितनी भी नफरत करें, चाचा ने कभी भी उन के लिए अपने मुंह से कभी कोई गलत शब्द नहीं निकाला.
उस का मन चाचा से बात करने के लिए छटपटाने लगा, तभी डोर बेल बज उठी. उस ने जा कर दरवाजा खोला और हैरान रह गई. सामने चाचा और चाची दोनों ही थे.
“ये ले टिफिन रख ले. इस में तुम्हारा और जुगल का खाना है. भाभी के लिए दूसरे टिफिन में खाना ले कर हम अस्पताल जा रहे हैं.”
“सालों बाद तो आप दोनों इस दरवाजे पर आए हैं. कुछ देर अंदर बैठिए,” अपने लिए लाया हुआ टिफिन चाची से लेते हुए ज्योति बोली.
“नहीं बेटी, अस्पताल जाना जरूरी है. चलते हैं,” कहते हुए भ्रमर नाथ ने बाइक स्टार्ट की और पीछे बैठी हुई चाची को साथ लिए अस्पताल चले गए.
पिताजी की तबीयत में कोई सुधार न हो पाया. डाक्टर के अनुसार वे कोमा में चले गए थे और उन्हें वेंटिलेटर पर रख दिया गया था.
चाचाचाची के लगातार अस्पताल चक्कर लग रहे थे और जुगल इस बात से खुश था कि पिता के इलाज में चाचा ही आगे बढ़ कर रुपए पानी की तरह खर्च कर रहे हैं. उस के पिता का पैसा बच रहा है.
उधर, किशन को जब पता चला कि ज्योति के पिता गंभीर हालत में अस्पताल में भरती हैं, तो वह उन्हें देखने अस्पताल पंहुचा. उस समय चाचा अपनी भाभी यानी ज्योति की मां के पास बैठे थे.
मां चूंकि किशन को पहचानती थीं, इसलिए उन्होंने अपने देवरदेवरानी को उस से परिचित करवाया और बोलीं, “इसी के साथ पढ़ाई कर के जुगल ने आज इंजीनियरिंग का डिप्लोमा हासिल कर लिया है और दोनों को नौकरी भी मिल गई है.”
किशन से बातों ही बातों में चाचा ने दोस्ती कर ली. किशन चाचा को एक नजर में ही भा गया था. वे किशन से अचानक ही पूछ बैठे, “नौकरी तो तुम्हारी लग ही गई है. शादी के बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?”
“मै पहले अपनी बहन की शादी करूंगा और उस की शादी उसी से करना चाहता हूं, जिसे वह चाहती है.”
“कौन है वह…?” जब चाचा ने पूछा, तो किशन बोला, “है वो इसी तहसील का. मेरे साथ का ही पढ़ा हुआ एक लड़का और मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं. पर दुख तो यह है कि उस ने मेरी बहन से वादा कर के अपनी ही बिरादरी में किसी और से मंगनी कर ली.”
ये सब बातें हो ही रहीं थीं कि तभी डाक्टर ने सूचना दी कि मरीज को होश आ गया है. वह परिवार के सदस्यों को याद कर रहे हैं.
भ्रमर नाथ एक बार झिझके और उन्होंने अपनी भाभी को अंदर जाने का इशारा किया, तब वे बोलीं, “तुम भी साथ चलो देवरजी,” इतना कह कर उन्होंने अपने देवर का हाथ पकड़ा और अंदर वार्ड में ले गईं.
वेंटिलेटर के पास ही बेड पर मुंह पर पारदर्शी औक्सीजन मास्क लगाए बीमार आंखों से उन्होंने अपने छोटे भाई को देखा और जब उन की पत्नी ने इशारे से बताया कि जब से आप एडमिट हैं, ये एक पल भी नहीं सोए हैं.
आंखों के इशारे से भ्रमर नाथ को अपने करीब बुला कर उन्होंने अपनी पत्नी का हाथ अपने भाई के हाथों में दे दिया और उन के होंठ जाने क्या बुदबुदाए, फिर अगले ही पल उन का सिर एक ओर लुढ़क गया और पीछे चलती हार्ट मीटर की ऊपरनीची होती रेखाएं एकदम से शांत हो कर सीधी हो गईं.
सब को उस रूम से बाहर निकाला गया. रोनाधोना शुरू हो गया. अस्पताल की सारी फार्मेलिटी के बाद अमर नाथ के शव को घर वालों को सौंप दिया गया.
अगले दिन सवेरे उन का दाह संस्कार किया गया. मृत्युभोज आदि रीतियों को चाचा नहीं मानते थे.
चाचा के कहने से जुगल और किशन ने अपनी ज्वाइनिंग डेट बढ़वा ली थी.
2 महीने बाद जब उन के जाने का समय आ गया, तो एक दिन अपने घर में भ्रमर नाथ अपने संग भाभी और ज्योति को ले कर आ गए, ताकि एक से वातावरण में रहतेरहते उन का मन बदल जाए. उन्होंने जुगल को भी वहीं बुला लिया.
किशन तो उन से दोस्ती के बाद कई बार चाचा के यहां आ चुका था और उस ने अपने मन की सारी बातें उन से शेयर कर ली थीं. आज भी वो चाचा द्वारा दिए गए समय से पहले पहुंच गया था. उन्हें ये पता चल गया था कि किशन ज्योति को बहुत प्यार करता है और उस से ही शादी करना चाहता है, तो भ्रमर नाथ ने उन दोनों की पहले मंगनी, फिर शादी करवाने का पक्का इरादा कर लिया था. उन्हें पता था कि ज्योति कभी भी उन की बात नहीं टालेगी.
जुगल उन सब के पहुंचने के बाद अपनी मोटरसाइकिल से पहुंचा. सब को अपने बीच पा कर चाचा भ्रमर नाथ बहुत खुश थे.
उन्होंने भाभी को अंदर वाले कमरे में आराम करने और पत्नी सुनिधी को उन की सेवा में लगा दिया था. चाचा के बेटाबहू छुट्टियां मनाने शिमला गए हुए थे. बाहर ड्राइंगरूम में बच्चों से बातें करतेकरते अचानक वे किशोर से पूछ बैठे, “नौकरी तो तुम्हारी लग ही गई है और शादी भी तुम जल्दी करने की सोचोगे. बस तुम यह बताओ कि अपने मम्मीपापा की पसंद की लड़की से शादी करोगे या अपनी पसंद की?”
“चाचाजी, चूंकि मेरे पिताजी ने भी अपनी पसंद की लड़की से शादी की थी, इसलिए उन्हें कोई एतराज नहीं होगा, यदि मैं अपनी पसंद की लड़की से शादी करना चाहूंगा तो… पर, मैं चाहता हूं कि पहले मेरी बहन की शादी हो जाए.”
“एक लड़का भी उस ने पसंद कर रखा है, पर वह लड़का अपनी बिरादरी की किसी दूसरी लड़की को पसंद किए बैठा है और मेरी बहन का कहना है कि वह या तो अपने प्रेमी से ही शादी करेगी, नहीं तो अपनी जान दे देगी.”
बिना जुगल की तरफ देखे किशोर अपनी बात कह गया, लेकिन ज्योति लगातार जुगल के चेहरे पर आतेजाते भाव परखती रही.
चाचाजी ने बात जारी रखते हुए फिर किशोर से पूंछा, “क्या तुम उस लड़के को जानते हो?”
जानते हुए भी अनजान बनते हुए किशोर बोला, “यही तो बात है चाचाजी कि मैं उसे नहीं जानता.
“जान जाऊंगा तो उस से रिक्वेस्ट करूंगा, अपनी बहन की खातिर उस के पैर पडूंगा, उसे मनाऊंगा और जो भी हो सकेगा करूंगा.”
“अच्छा मान लो कि वह लड़का मिल गया और राजी हो गया, तो फिर तुम बहन की शादी के बाद अपनी पसंद की लड़की से शादी करोगे ना?”
“बिलकुल चाचाजी. ये मेरा आप से वादा है कि मैं उसी से शादी करूंगा.”
“तो उस का कुछ नाम भी तो होगा, जिसे तुम चाहते हो…?”
“नाम तो नहीं बताऊंगा, पर ये बता सकता हूं कि वह इसी कमरे में मेरे सामने बैठी है.”
ज्योति अचानक यह सुन कर सब समझ गई और मुसकराती हुई चाचाजी व किशोर की तरफ देख कर अंदर अपनी चाची के पास चली गई.
तभी जुगल के अंतर्मन ने उसे समझाया कि उसे अपनी छवि सुधारने का यही एक मौका है और वो प्रियंका से अपना वादा भी निभा लेगा और अपने दोस्त पर भी उपकार कर देगा.
आखिर उस ने उस की बहन ज्योति का हाथ मांगा है और चाचाजी अपनी भतीजी की शादी करने में कोई कसर नहीं रखेंगे. पिता के बाद ज्योति की शादी कराने के बोझ से भी वह बच जाएगा.
इसलिए अपने दोस्त किशोर के कंधे पर हाथ रखते हुए वह उस से बोला, “अगर तुम्हारी बहन का चाहने वाला नहीं मिला, तो क्या तुम्हारी बहन प्रियंका मुझ से शादी करने को तैयार हो जाएगी?”
“अरे दोस्त, तुम अगर चाहोगे तो मैं और चाचाजी मिल कर प्रियंका को समझा लेंगे. आखिर उस का जीवनसाथी मेरे इस दोस्त से बढ़ कर और कौन हो सकता है,” कह कर किशन ने जुगल को गले लगा लिया. गले मिलते समय चूंकि जुगल की पीठ चाचाजी की तरफ थी, इसलिए चाचाजी की योजना सफल होते देख उस ने अपनी एक आंख सामने बैठे चाचा को देख कर दबा दी.
क्योंकि चाचा किशन द्वारा यह भी जान गए थे कि अपनी बहन की सारी कहानी किशन जानता था और कुछ तसवीरों के साथ टाइप करा कर एक गुप्त पत्र विश्व नारायण के घर गुमनाम पते से किशन ने ही भेजा था.