डा. एसपी सिंह, वरिष्ठ वैज्ञानिक (उद्यान) व शैलेंद्र सिंह, वैज्ञानिक (पादप रक्षा)

गाजर की उन्नत खेती गाजर एक अत्यंत ही पौष्टिक एवं महत्त्वपूर्ण सलाद वाली सब्जी है. इस का उपयोग सलाद, सब्जी, हलवा, मुरब्बा, जूस और रायता के रूप में किया जाता है. आमतौर पर गाजर की जड़ों का रंग नारंगी, लाल, काला व पीला होता है, जो कि क्रमश: विटामिन ए, लाइकोपिन एंथोसाइएनिन एवं जैन्थोफिलयंतो तत्त्वों का प्रमुख स्रोत है. इस के प्रयोग से भूख बढ़ती है, आंखों की रोशनी बढ़ती है और गुरदे की बीमारी में लाभप्रद होता है.

जलवायु : गाजर ठंडी जलवायु की फसल है. इस की जड़ों का रंग और बढ़वार तापमान द्वारा प्रभावित होती है. इस के लिए 10 डिगरी सैल्सियस तापमान अच्छा पाया गया है. अधिक तापमान पर जड़ें छोटी और कम तापमान पर जड़ें लंबी और पतली हो जाती हैं. भूमि एवं भूमि की तैयारी : गाजर की खेती दोमट या बलुई दोमट, जिस में जीवांश की पर्याप्त मात्रा हो एवं जल निकास का उचित साधन हो, भूमि में कड़ी परत न हो, इस की खेती के लिए सब से उपयुक्त समझी जाती है. खेत की 3-4 जुताई कर के मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए.

उन्नतशील किस्में लाल रंग की किस्में : पूसा वृष्टि, काशी अरुण, पूसा रुधिका. नारंगी रंग की किस्में : पूसा नयन ज्योति, पूसा यमदग्नि, कुरोडा, नैन्टीज. काले रंग की किस्में : पूसा आसिता, पूसा कृष्णा. खाद एवं उर्वरक : 8 से 10 टन गोबर की सड़ी खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बोने से 3 हफ्ते पहले डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें, तो बोआई के पहले अंतिम जुताई के समय 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलोग्राम फास्फोरस व 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालें. बोआई के 30 दिन बाद 30 किलोग्राम नाइट्रोजन को टौप ड्रैसिंग रूप में दें. बोआई का समय : गाजर की बोआई आमतौर पर अगस्त से अक्तूबर महीने तक की जाती है.

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