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हमारी सैक्स लाइफ ठीक नहीं है, ऐसा कोई उपाय बताएं जिस से हमारी शादीशुदा जिंदगी खुशहाल हो सके?

सवाल

मैं 26 वर्षीय युवती हूं. विवाह को 2 वर्ष हो चुके हैं. हमारी सैक्स लाइफ ठीक नहीं है. हम दोनों का वजन काफी अधिक है. इस के अलावा वे हमेशा थकेथके रहते हैं. ऐसा कोई उपाय बताएं जिस से हमारी शादीशुदा जिंदगी खुशहाल हो सके.

जवाब

व्यायाम, सैर करने के अलावा आप को अपने खानपान पर भी समुचित ध्यान देने की आवश्यकता है. बेहतर होना कि किसी आहार विशेषज्ञ से अपना डाइट चार्ट बनवा लें और उसी के अनुसार दिनचर्या बनाएं. वजन से छुटकारा पा लेने के बाद आप की समस्याएं स्वत: सुलझ जाएंगी. संतानोत्पत्ति के लिए भी आप को अपने वजन को कम करना आवश्यक है.

ताऊजी डीजे लगवा दो : क्या बदली ताऊ की सोच

‘ताऊजी डीजे लगवा दो… ताऊ…’ के नारे लगाते हुए युवकों के शोर से ताऊजी की तंद्रा भंग हुई और वे उचक कर बाहर देखने लगे. बाहर का दृश्य अचंभित करने वाला था. ढोलक की ताल पर संग में हाथों में लट्ठ लिए गांव के कई युवक उन के दरवाजे पर खड़े नारे लगा रहे थे और अगुआई कर रहा था उन का अपना भतीजा कपिल, जो होने वाला दूल्हा था. हां भई, अगले महीने उस का विवाह जो था.

पंचों के पंचायती फरमानों ने युवाओं के हितों पर सदा से कुठाराघात किया है. आज समाज भले ही विकसित हो गया हो पर इन के तुगलकी फरमानों में बरसों पुरानी दकियानूसी सोच दिखती है. कभी युवतियों के कपड़ों पर आपत्ति जताएंगे तो कभी जातिधर्म के नाम पर प्रेम करने वालों को हमेशाहमेशा के लिए जुदा करते दिखेंगे.

युवाओं को कभी न भाने वाले इन के तुगलकी फरमानों की फेहरिस्त काफी लंबी है, लेकिन हाल में हरियाणा के 100 गांवों में डीजे पर लगाई गई पाबंदी युवाओं को नागवार गुजरी. इसी के विरोध में युवा नारे लगा रहे थे.

आज शादीविवाह में डीजे का उतना ही महत्त्व है जितना बैंडबाजे, बरात का या फूलमालाओं से सजी नवविवाहित जोड़े की गाड़ी का, जयमाला या फिर लजीज खाने का, भले ही विवाह में खाने में सौ व्यंजन परोस दें, तरहतरह के स्नैक्स से ले कर चाइनीजमुगलई खाने और अंत में जातेजाते तरहतरह के हाजमिक पान का स्वाद चखने के बावजूद  युवकयुवतियों का विवाह का सारा मजा तब तक अधूरा रहता है जब तक कि उन्हें डीजे पर थिरकने का मौका न मिले.

किसी पार्टी, फंक्शन, बर्थडे, शादीविवाह की शान डीजे भले ही समारोह में एक कोने की शोभा बढ़ाता हो, लेकिन पार्टी में शिरकत करते युवकयुवतियों के लिए समारोह का मुख्य आकर्षण यही कोना रहता है. डीजे की आवाज जितनी अधिक कानफोड़ू होगी मस्ती उतनी ही अधिक होती है और उतने ही अधिक मदहोश हो कर युवकयुवतियां थिरकते हैं.

डीजे पर एक भी गाना पूरा नहीं बजाया जाता बल्कि रीमिक्स कर कई गानों की खासकर पहली लाइन ही बजाई जाती है, जिस से हर किसी का पसंदीदा गाना एकाध मिनट के अंतराल में बज ही उठता है जिस से मनोरंजन का मजा दोगुना हो जाता है. यह गाने अधिकतर लेटैस्ट और प्रचलित होते हैं.

डीजे सिर्फ युवकयुवतियों को ही आनंदित नहीं करता बल्कि अधेड़ और बुजुर्गों में भी नया जोश भर देता है. इस की कानफोड़ू आवाज मदमस्त नाचते बूढ़ों में जवानी का संचार कर देती है वहीं जलतीबुझती लाइटों से डीजे पर थिरकने का मजा दोगुना हो जाता है और युवकयुवतियों संग उम्रदराज भी मदहोश हो कर अपने पसंदीदा गानों पर थिरक उठते हैं.

किसी यारदोस्त की शादी हो और नाचगाने का समां न बंधे, डीजे पर थिरकने को न मिले, तो मन में यही मलाल रहता है कि फलां की शादी में रूखासूखा भात खा कर आ गए. डीजे नहीं होने से न नाचगाना हुआ, न रौनक रही. दूसरी ओर डीजे पर थिरकते क्षणों की अपने कैमरे या मोबाइल द्वारा बनाई वीडियो क्लिपिंग्स सालोंसाल उस मस्ती को तरोताजा बनाए रखती हैं.

लेकिन हर पार्टीफंक्शन की शान बन चुके डीजे पर पाबंदी की बात बरदाश्त से बाहर थी. युवकयुवतियां सब बरदाश्त कर सकते हैं पर अपनी मौजमस्ती में खलल नहीं, सो वे ‘ताऊजी डीजे लगवा दो…‘ की नारेबाजी के साथ पंचों के फैसले के विरुद्ध खड़े थे.

असमंजस में पड़े ताऊजी ने कारण पूछा तो पता चला कि वे जिस डीजे वाले को कपिल की शादी में डीजे बजाने को मना कर आए हैं वे उसी से खफा हैं.

ताऊजी ने अपनी असमर्थता जताई और बताया कि यह पाबंदी गांव के हित में है, लेकिन युवा नहीं माने. ‘अगर शादीविवाह में डीजे नहीं बजेगा तो क्या मातम पर बजेगा,’ युवाओं ने दलील दी और ‘ताऊजी डीजे…’ का पुरजोर नारा लगाया.

बात न बनती देख ताऊजी ने गांव के पंचों के पास चलने को कहा तो सभी नारे लगाते हुए सरपंच के पास जा धमके. ऐसा पहली बार हुआ था कि गांव के युवा अपने बुजुर्गों के सामने तन कर खड़े थे और डीजे पर पाबंदी हटवाने का हरसंभव प्रयत्न कर रहे थे.

सरपंच सभी को शांत करता हुआ बोला, ‘‘भई, इतने उग्र होने से अच्छा है अपनी बात बताओ?’’

बल्लू ने अपना पक्ष रखा, ‘‘सरपंचजी, अगले महीने कपिल की शादी है और हमें नाचनेगाने की भी आजादी नहीं. आप ही बताइए, शादी में डीजे न बजे और रौनक न हो तो क्या मजा आएगा भला.’’

‘‘ओह, तो यह बात है, भाई, तुम लोग तो जानते ही हो कि हरियाणा के 100 गांवों में डीजे पर पाबंदी है, हम तुम्हें यह आजादी कैसे दे दें?’’ सरपंचजी बोले, तो उन की बात पुख्ता करते हुए एक पंच बोला, ‘‘डीजे बजने से बहुत नुकसान होता है. तुम जानते हो डीजे की कानफोड़ू आवाज से विचलित हो कर भैंसें दूध नहीं देतीं और डीजे की धमक से गर्भधारण किए भैंसों के गर्भ भी गिर रहे हैं.’’

अब झबरू ने युवाओं का पक्ष रखा, ‘‘सरपंचजी, सारा दूध हमारे ही गांव का तो नहीं पहुंचता देश में, अगर एकदिन भैंस दूध नहीं देगी तो कौन सी मुसीबत आ जाएगी. शादीब्याह तो जीवन में एक ही बार होता है वह भी इस पाबंदी के कारण दिल में मलाल रह जाए तो क्या फायदा, हमेशा यारदोस्त यही बात कहेंगे कि फलां की शादी में न डीजे बजा और न नाचगाना हुआ, बस, रूखासूखा भात खा आए. पेट तो घर में भी भरते हैं फिर शादी की पार्टी का क्या फायदा?’’

बल्लू ने साथ दिया, ‘‘और जो यह भैंसों के गर्भ गिरने की बात है यह बेकार की बात है. आज तक किसी औरत का इस से गर्भ गिरा क्या? वे भी तो डीजे पर नाचतीगाती हैं और फिर एकाध दिन गर्भधारण की भैंस को विवाह वाले घर से दूर भी तो रखा जा सकता है. हमारी खुशी पर पाबंदी क्यों?’’

अब तीसरा बोला, ‘‘भाई, बात इतनी ही नहीं है. इस से बड़ेबुजुर्गों के सिर में दर्द भी हो जाता है जिस से उन का शादी का सारा मजा किरकिरा हो जाता है. तुम लोग नाचतेगाते हो और वे खाट पर सिर बांध कर पड़े रहते हैं.’’

‘‘वाह, पंचों ने क्या नुक्ता निकाला है. भई, पहले भी तो शादियां होती थीं. महीना पहले से ही जश्न शुरू हो जाता था. आप को तब नहीं खयाल आया अपने बुजुर्गों का. हमारा समय आया तो सिरदर्द होने लगा,’’ बल्लू ने अपना पक्ष रखा.

ताऊजी बोले, ‘‘देख लो पंचो, इन्हें ऐसी बातें करते शर्म भी नहीं आती.’’

‘‘भई, ताऊजी की शर्म वाली बात से एक और बात याद आई. जब युवकयुवतियां डीजे पर नाचते हैं तो बेशर्म हो कर नाचते हैं, भौंड़ी और फूहड़ हरकतें करते हैं जो देखने में भी अच्छी नहीं लगती हैं.’’ चौथे पंच ने कहा, तो 5वां पंच उन की हां में हां मिलाता हुआ बोला, ‘‘हां भई, डीजे पर थिरकते तुम लोग सिर्फ फूहड़ हरकतें ही नहीं करते बल्कि युवतियों से छेड़छाड़ भी करते हो और अश्लील गाने चलवाते हो जो बिलकुल अच्छा नहीं लगता.’’

कपिल आक्रोश में बोला, ‘‘आप हमें नाचते देखते हो या युवतियों के कपड़े और उन के थिरकते अंगों को.’’

झबरू आगे आया और सब को शांत करता हुआ बोला, ‘‘अगर युवकयुवतियां इस उम्र में फैशनेबलकपड़े नहीं पहनेंगे तो क्या बुढ़ापे में पहनेंगे. रही बात अश्लील गानों की तो ताऊजी आप अपना समय याद करो जब आप ने मदनू काका की शादी में गाना चलवाया था, ‘चोली के पीछे क्या है… चुनरी के नीचे क्या है…’ क्या वह फूहड़ अश्लील गाना नहीं था और जो आप ने अपने साथ नाचती युवती के साथ गलत हरकत की थी, सब जानते हैं. वह अलग बात है कि आप की शादी बाद में उसी से हो गई.’’

अब सब पंचों का मुंह देखने वाला था तभी कपिल बोला, ‘‘आप सब जानते हैं कि शादी का माहौल खुशी का होता है ऐसे में युवतियां स्वयं सजधज कर डीजे की धुनों पर नाचती हैं. कोई युवक अगर उन से टकरा जाए या वह टशन मारता हुआ उन के साथ नाचने लगे तो वे आंखें तरेरती हैं. भला, आप ही बताइए युवकों का इस में क्या कुसूर है, वे तो अपने ही नशे में चूर होते हैं.’’

अब सभी पंचों के मुंह पर ताला लग गया था. थोड़ी देर वातावरण में सन्नाटा रहा. सभी पंच और बुजुर्ग आपस में विचारविमर्श करने लगे. उन के भी मन के किसी कोने में विवाह जैसे अवसर पर ठुमकने की चाह थी. फिर सन्नाटा तोड़ते हुए सरपंच बोले, ‘‘भई, हम ने आप की सब दलीलें सुन लीं. हमें आप लोगों से हमदर्दी है और हम भी चाहते हैं कि आप नाचोगाओ, जश्न मनाओ, इसलिए कुछ शर्तों पर यह पाबंदी हटाते हैं.

‘‘युवकों को ध्यान रखना होगा कि शादीविवाह वाले घर के आसपास के घरों से सहमति ले कर ही डीजे लगवाएं. देर रात तक डीजे न बजे और कोई फूहड़ता या छेड़छाड़ की घटना न हो.’’

सरपंच की बात खत्म भी नहीं हुई थी कि युवक एकसाथ बोल पड़े, ‘‘हुर्रे… हमें आप की शर्तें मंजूर हैं पर डीजे तो बजेगा ही…’’

‘‘चलो, ताऊजी अपने घर और जातेजाते डीजे वाले को भी और्डर दे दो डीजे लगाने का,’’ कपिल ने कहा तो सभी युवक ताऊजी को साथ ले वापस चल दिए. पार्श्व में उन की ‘‘हुर्रे… पार्टी यों ही चालेगी… डीजे यों ही बाजेगा…’’ की आवाजें गूंज रही थीं और पंच भी खुश थे कि उन्होंने बीच का रास्ता निकाल कर युवकों के साथसाथ अपने मनबहलाव का रास्ता भी खोज लिया था.

मां का जन्म-भाग 5: माधुरी किस घटना से ज्यादा दुखी थी?

धीरेधीरे दिन बीतते गए. अंशुल-रोली 3 महीने के हो गए. अब वे एक बार में तीनचार घंटे सोते थे. सो, माधुरी को भी उसी बीच सोने का समय मिल जाता. बच्चों के जागने से पहले वह उठती, उन का दूध तैयार करती और उन के सोने के बाद सोती. इन 3 महीनों में माधुरी का 9 किलो वजन कम हो गया और कई सारी दवाएं शुरू हो गईं.

14 मार्च को अंशुल-रोली के 3 महीने के होने पर शाम को एक भोज का आयोजन हुआ. सारे रिश्तेदार, मित्र और महल्ले के लोग आमंत्रित किए गए. लोगों को धीरेधीरे पता लग गया था कि ये बच्चे सरोगेसी से किए गए हैं. भोज का आयोजन प्रभाष के घर के सामने वाले पार्क में किया गया. दोनों बच्चों को अलगअलग ट्रॉली पर बिठा कर प्रभाष और माधुरी रात 8 बजे पंडाल में आए. लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा उन की तरफ, हर कोई बधाई देने लग गया.

‘किस पर गए हैं? लड़का माधुरी पर है और लड़की प्रभाष पर,’ कहते हुए प्रभाष के फूफा ने दोनों के लिए लाए उपहार दिए.

‘प्रकृति इन्हें स्वस्थ रखे और ये खूब तरक्की करें,’ कहते हुए कुशवाहा जी ने आशीर्वाद दिया.

‘प्रकृति ने हमारी सुन ली है. आप सब बच्चों को खूब आशीर्वाद दीजिए. ये हमेशा स्वस्थ रहें, तरक्की करें,’ हर किसी से कहती फिर रही थीं प्रभाष की मां.

प्रभाष और माधुरी हर अतिथि से मिलते, उन का धन्यवाद करते और खाना खा कर ही वापस जाने का आग्रह करते. सब ठीक चल रहा था कि पड़ोस की मंजुला भाभी ने आखिर पूछ ही लिया, ‘माधुरी, तुम जब मायके गईं तब तो तुम्हारा पेट उतना नहीं निकला था. जबकि, सुना है कि जुड़वां बच्चों में ज्यादा निकलता है.’

प्रभाष समझ गया कि ये मजे लेने के लिए कह रही हैं. उस ने माधुरी की तरफ देखा और सिर हिलाते हुए हामी भरी. माधुरी समझ गई. उस ने मंजुला भाभी से कहा, ‘भाभी, मेरे पेट निकलने का सवाल ही नहीं उठता है. हम ने सरोगेसी का सहारा लिया है. आप को नहीं पता है क्या?’

‘सरोगेसी! ओह मुझे नहीं पता था. मुझे लगा तुम ने जन्म दिया है इन को.’

‘इन की मां मैं ही हूं,’ कहती हुई माधुरी ने अपना लहजा सख्त किया. मंजुला भाभी मौके की नजाकत समझ गईं, बोलीं, ‘हां भई, इस में दो राय नहीं है. तुम ही इन की मां हो. देखो तो, कितने प्यारे लग रहे हैं. आज इन की नजर जरूर उतारना.’

‘नजर तो पक्का उतारूंगी इन बच्चों की भी और हम दोनों की भी,’ कह कर माधुरी आगे बढ़ गई.

भोज में आमंत्रित कई लोगों को मालूम तो था ये सब पर ज्यादातर लोग खुश थे. प्रभाष और माधुरी का व्यवहार ही ऐसा है. कभी किसी से कोई विवाद नहीं, अपनी जिंदगी में व्यस्त. लेकिन मंजुला भाभी जैसे लोग भी हैं जिन को माधुरी ने उचित जवाब दिया. धीरेधीरे सब ने स्वीकार कर लिया और माधुरी अपने मातृत्व में रम गई. उस की दुनिया अंशुल-रोली के इर्दगिर्द सिमट गई. किसी के भी बीमार होने पर माधुरी बदहवास सी हो जाती. लोगों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि ‘ऐसा तो कभी देखा ही नहीं, माधुरी अपने बच्चों के लिए पागल है.’

वैसे, इन सब बातों से माधुरी को कोई फर्क नहीं पड़ता था. दिन, हफ्ते और महीने बीतने लगे और बच्चे एक साल के हो गए. इस बार प्रभाष ने अपने गृह जनपद भदोही में इन के एक वर्ष पूरे होने पर पार्टी का आयोजन किया.

वहां से लौटे महीनेभर हुए थे कि माधुरी का मासिकधर्म अनियमित हुआ. पिछले 13 महीने की एकएक घटना को सोचती माधुरी की आंख लग गई. प्रभाष ने घर आ कर चाय पी और बैठक के कमरे में सोफे पर पसर गया.

माधुरी 9 बजे के करीब उठी तो देखा प्रभाष समाचारपत्र पढ़ रहा है. रश्मि ने बताया कि उस ने चाय दे दी है.

“मुझे जगाया क्यों नहीं?”

“तुम अंशुल-रोली की देखभाल में थक जाती हो,” रश्मि ने कहा.

“तुम 9 बजे का अलार्म लगा कर सोई हो. और दोनों बच्चे भी सो रहे थे. सो, मैं ने जगाया नहीं तुम्हें.” यह कह कर प्रभाष चाय पीने लगा.

मां का जन्म-भाग 2 : माधुरी किस घटना से ज्यादा दुखी थी?

शहर के चौक बाजार में प्रभाष की ‘परिधान’ नाम से रेडीमेड कपड़े की दुकान है. वहां कुल 8 लोग काम करते हैं. परिधान, रेडीमेड कपड़ों के लिए शहर की अच्छी दुकानों में शामिल है. शादी के बाद दोनों का दांपत्य जीवन बहुत बढ़िया चल रहा था. दोनों साल में एक बार बाहर घूमने भी जाते थे. शाम को घर लौटते वक्त प्रभाष अकसर रजनीगंधा के फूलों का गजरा ले आता जो माधुरी को पसंद है. हफ्ते में एक दिन वे पिक्चर देखने जाते और लौटते समय चटपटा चाट हाउस की पानीपुरी भी खाते थे. शादी के 2 साल बीतने के बाद सब ने पूछना शुरू किया खुशखबरी के बारे में. प्रभाष की मां भदोही से जब फोन करती तो थोड़ी देर में यह मुद्दा आ ही जाता.

‘अरे, पड़ोस का मुकुल है न, जो तुम्हारे साथ पढ़ा था. उस की शादी अभी पिछले जून में हुई थी. सुना है, बहुरिया पेट से है. अब तुम लोग भी जल्दी कुछ अच्छी खबर सुनाओ. एक लल्ला का मुंह देख लूं तो चैन से ऊपर जाऊं.’

ऐसी बातें हर दूसरे दिन मां या तो प्रभाष या माधुरी से कहती. पड़ोसी और दोस्तों ने भी गाहेबगाहे पूछना शुरू कर दिया था. पड़ोस के कुशवाहा जी अकसर सुबह टहलते समय प्रभाष से पूछ बैठते, ‘बेटा, जल्दी से मुझे ताऊ जी बोलने वाला घर में लाओ. घर पूरा हो जाएगा.’ शादी के 5 साल बाद भी माधुरी की गोद सूनी ही रही.

दोनों को अब चिंता होने लगी थी. प्रभाष ने इस बारे में अपने प्रिय मित्र रोहन खत्री से चर्चा की तो उस ने शहर की जानीमानी स्त्रीरोग विशेषज्ञ डाक्टर सुहासिनी शर्मा को दिखाने का सुझाव दिया. मित्र की सलाह मानते हुए दोनों ने डा. सुहासिनी को दिखाया. पूरे 3 साल इलाज चला. दोनों की कई सारी जांच हुईं, कई सारी दवाएं चलीं. डा. सुहासिनी ने बहुत प्रयास किए कि माधुरी की सूनी गोद प्राकृतिक रूप से भर जाए पर सफलता हाथ न लगी. आखिर में उन्होंने प्रभाष को नई तकनीक का सहारा लेने की सलाह दी और इस बाबत अपनी मित्र डा. लतिका गुप्ता से बात भी की.

डा. लतिका देश की मशहूर आईवीएफ विशेषज्ञ हैं. उन्होंने पहली ही मुलाकात में प्रभाष-माधुरी को समझाया कि, ‘संतान के लिए पुरुष का शुक्राणु स्त्री के डिम्ब से मिलता है और एंब्रियो यानी कि भ्रूण बनाता है. यह भ्रूण स्त्री के गर्भ में 9 महीने पलता है और फिर बच्चे का जन्म होता है. इस प्रक्रिया के पूर्ण नहीं होने के 3 मुख्य कारण होते हैं- या तो पुरुष के शुक्राणु में कमी है या स्त्री के डिम्ब, जिसे हम आम बोलचाल में अंडे कहते हैं, कमजोर हैं या फिर स्त्री की कोख में दिक्कत है. मैं ने तुम दोनों की सारी रिपोर्ट देखी हैं. तुम्हारे मामले में तीनों ही सही हैं.’

‘फिर हम संतानविहीन क्यों हैं मैम?’ प्रभाष ने पूछा.

‘अकसर बाहरी कारणों से भी भ्रूण नहीं बन पाते या स्त्री गर्भाधान नहीं कर पाती. यह प्रक्रिया जितनी आसानी से मैं ने तुम्हें समझाई है, उतनी आसान नहीं है. एक सफल गर्भाधान के लिए सैकड़ों अन्य बातें भी जरूरी हैं. तुम दोनों की आयु देखते हुए पहले मैं तुम्हारे शुक्राणु और माधुरी के अंडे ले कर उन्हें लैब में प्रोसेस करेंगे, लैब में भ्रूण बनाएंगे और उसे नियत समय पर माधुरी की कोख में डालेंगे. ज्यादातर मामलों में कोख उस भ्रूण को स्वीकार करती है और स्त्री गर्भवती हो जाती है.’

‘इस में हमें क्या करना होगा?’ प्रभाष ने पूछा.

‘तुम दोनों को कुछ खास नहीं करना है, सिर्फ अगले एक महीने कुछ दवाएं खाओ जिस से कि तुम्हारे शुक्राणु मजबूत हों और माधुरी के अंडे विकसित हों. इस के बाद मैं पीरियड से नियत दिन गिन कर माधुरी को बुलाऊंगी. उसी दिन मैं माधुरी के अंडे निकालूंगी और तुम अपना वीर्य देना. फिर हम लैब में उन को प्रोसेस करेंगे. भ्रूण बनने की दशा में उस के अगले महीने मैं उसे माधुरी की कोख में डालूंगी. इस पूरी प्रक्रिया में 3 महीने लगते हैं.’

 

मां का जन्म-भाग 1 : माधुरी किस घटना से ज्यादा दुखी थी?

माधुरी को समझ नहीं आ रहा था कि इस घटना पर वह प्रसन्न हो या दुखी. प्रकृति का यह कैसा खेल है, वह अपनेआप से सवाल कर रही है. जिस बात के लिए उसे 12 वर्षों से समाज के लांछन और ताने मिले, लोग जिसे उस के अस्तित्व पर एक धब्बा समझते हैं, जिस ने न सिर्फ उस के शरीर बल्कि सोच तक को झकझोर दिया; क्या आज के तथ्यों की परिणति उन सब को नकार देगी? उस ने प्रभाष को कौल किया-

“हैलो, आप घर कब आएंगे?”

“आज कम ही ग्राहक हैं, सो जल्दी आ जाऊंगा,” प्रभाष ने जवाब दिया.

“मुझे एक जरूरी बात कहनी है. पिछले बुधवार को मेरा पीरियड आना था. आप तो जानते हैं मेरे पीरियड एकदो दिनों से ज्यादा आगेपीछे नहीं होते. पर बुधवार को नहीं आया तो मैं ने थोड़ा और इंतजार किया. आज 10 दिन लेट होने पर मैं ने टैस्ट किया,” कह कर माधुरी खामोश हो गई.

“हां, तुम ने बताया था कि इस बार… हां, क्या हुआ टैस्ट में?”

“दोनों डंडियां रंगीन हो गईं,” कह कर माधुरी चुप हो गई.

प्रभाष ने चहकते हुए कहा, “क्या, यह तो चमत्कार हो गया. विश्वास ही नहीं होता, ऐसा भी हो सकता है. इस के लिए हम ने क्याक्या नहीं किया है. प्रकृति के यहां देर है, अंधेर नहीं.

“पहले आप घर आइए, फिर देखते हैं क्या करना है?”

“सुनो, अपना ध्यान रखो. कल से घर के सब काम बंद. मैं आज ही मम्मी को फोन कर के बुला लेता हूं और एक चौबीस घंटे की कामवाली ढूंढ़ता हूं.”

माधुरी ने कहा, “अभी किसी से कुछ मत बोलिए. यह किट वाला टैस्ट उतना प्रामाणिक नहीं होता है. कल लैब से टैस्ट कराती हूं. आप जल्दी आओ. मैं फोन रखती हूं. अंशुल रो रहा है.”

“ओके, मैं बस निकल रहा हूं.”

मोबाइल रख कर माधुरी ने अंशुल को गोद में लिया और चुप कराने लगी. वैसे, रश्मि बहुत ध्यान रखती है दोनों बच्चों का पर जब उन्हें सोना होता है तब मां को ही खोजते हैं. माधुरी की गोद में आते ही बच्चे 10-15 मिनट में सो जाते हैं.

अंशुल को सुला कर माधुरी ने रश्मि से पूछा, “रोली कितने बजे सोई है?”

“6 बजे मेमसाहब.”

“ओके, फिर तो अभी उठेगी, मैं उस के लिए दूध बना कर रखती हूं. उठते ही उस को चाहिए होगा” कह कर माधुरी किचन में गई. पहले दूध खौलाया, फिर उसे ठंढा किया और रोली के पीने के लिए बोतल में भर दिया. बोतल रश्मि को दे दी.

दिनभर के काम से माधुरी थक चुकी थी. वह बिस्तर पर लेटीलेटी सोचने लगी. लगता है जैसे कल ही की बात हो…

पूरा घर ठसाठस भरा है. महल्ले वाले, रिश्तेदार, प्रभाष और माधुरी के ढेर सारे दोस्त; जाने कितने लोग आए हुए हैं. आने का प्रयोजन भी बड़ा है. शादी के 12 साल बाद सक्सेना भवन में बच्चों की किलकारियां गूंजी हैं. साल 2007 में प्रभाष और माधुरी का विवाह हुआ था. विवाह के समय माधुरी 26 वर्ष की और प्रभाष 29 वर्ष का था.

 

 

अमित शाह: इतिहास आपका इंतजार कर रहा है

देश की राजनीतिक परिदृश्य में जब से नरेंद्र दामोदरदास मोदी और अमित शाह का पदार्पण हुआ है इनके बड़े-बड़े बोल सुनकर देश की आवाम और साथ ही दुनिया के कान अब पकने लगे हैं. बड़ी-बड़ी बातें करना और सीधे-सीधे चला जाना, डींग हांकना कभी भी अच्छी बात नहीं मानी गई है. भारतीय संस्कृति और सभ्यता में सरलता और सहजता से अपनी बातों को रखना गरिमा मय माना गया है. मगर यह मोदी और अमित शाह का युग है जहां ऊंची ऊंची हांकना और माहौल बनाने की राजनीति का चलन हो गया है. सबसे हटकर कुछ ऐसी नीतिगत बातों पर टिप्पणी अधिकार पूर्वक करना कि देश के आम जनमानस में विरोध न हो और ना ही कोई बड़ा राजनीतिक दल या नेता कुछ बोल सके और बोले तो चक्रव्यूह में फंस जाए यह है भारतीय जनता पार्टी के आज के इन राजनीतिक चेहरों की राजनीति. आज इस आलेख में हम इन्हीं बातों को आपको खुलासा करके बताने जा रहे हैं.

इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है यह बयान देखिए-
-“हाल में संपन्न गुजरात विधानसभा चुनाव नतीजे न केवल राज्य के लिए, बल्कि पूरे देश लिए महत्त्वपूर्ण हैं. इन परिणामों से यह संदेश यह है कि नरेंद्र मोदी 2024 में फिर से प्रधानमंत्री रूप में चुने जाएंगे.”

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए अमित शाह ने कहा -” गुजरात के लोगों ने भाजपा को राज्य में ड़ी संख्या में सीट के साथ गुजरात में सत्ता में बनाए रखने में मदद करके इन लोगों को जवाब दिया जिन्होंने राज्य और प्रधानमंत्री को बदनाम करने की कोशिश की.”

अमित शाह ने गांधीनगर में विभिन्न परियोजनाओं के शिलान्यास और उद्घाटन कार्यक्रम मेंआगामी लोकसभा के मद्देनजर कहा-“गुजरात के लोगों ने जातिवाद के जहर को खत्म करने के लिए काम किया है और खोखले, झूठे और आकर्षक वादे करने वालों के मुंह पर तमाचा जड़ा है यह परिणाम अकेले गुजरात के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं है 2024 में (लोकसभा) चुनाव होगा और पूरा देश एक बार फिर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार है .”

भाजपा के नेता और गृहमंत्री ने कहा -“गुजरात का यह संदेश कश्मीर से कन्याकुमारी (देश में उत्तर से दक्षिण) और द्वारका से कामाख्या (पश्चिम से पूर्व) तक पहुंच गया है कि मोदी 2024 में फिर से प्रधानमंत्री बनेंगे.”

शाह ने कहा -“देश में एक भी राज्य नहीं है, जहां किसी पार्टी ने 27 साल तक लगातार शासन किया हो. गुजरात एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां भाजपा (27 साल) और उससे अधिक समय तक) शासन किया है . जब गुजरात चुनाव की घोषणा हुई तो कांग्रेस ने दावा कया कि इस बार यह उसका मौका है. दिल्ली से भी (आप पार्टी)लोग यहां मुफ्त में ये और वो’ देने के वादे के साथ पहुंचे. इन सब के बावजूद नब परिणाम घोषित हुआ तो भाजपा 156 नीट (गुजरात में कुल 182 में से ) के साथ विजेता बनकर उभरी.”
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देश के नेता अगर ऐसे हों तो
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ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब भाजपा के नेता गण इसी तरह बड़ी-बड़ी बातें करने से चुकते नहीं है, जिन्हें पढ़कर हंसी आती है. क्योंकि यह सब बातें आपके कहने की नहीं है यह सब जनता जानती है और समय पर निर्णय भी लेती है. और हम नीर क्षीर विवेचना करें यह समझते देर नहीं लगती कि भीतर का सत्य क्या है. लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों का महत्व है क्योंकि इन्हीं के द्वारा शासन सत्ता और नीतियां बनती हैं मगर हमारे नेता विचारधारा के साथ-साथ निर्दिष्ट भावना के साथ देश को आगे ले जाने में अपनी भूमिका अदा करें यह हमारे संविधान का मूल मंत्र है. मगर देखा यह जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद नहीं नयी परिपाटी शुरू हो गई है वह है अपने और अपने आकाओं के ढोल बजाने की. आज देश के बड़े नेता देश के प्रति वफादार नहीं दिखाई देते जितना अपने आशाओं के प्रति. इसके साथ ही हम सत्ता में कैसे का बीज रहे इसके लिए एन केन प्रयास किए जा रहे हैं जोकि लोकतंत्र के हित में नहीं है और तानाशाही का आगाज है.

एक समय था जब बड़े नेता संवेदनशील हुआ करते थे और लोगों के साथ आत्मीयता भरा व्यवहार किया करते थे मगर अब व्यवहार और भाषणों में जमीन आसमान का अंतर दिखाई देता है. हाल ही में 7 जनवरी 2023 को केंद्रीय मंत्री के रूप में अमित शाह छत्तीसगढ़ आए यहां कोरबा औद्योगिक नगर में जनसभा को संबोधित करने से पहले स्वागत इस दरमियान एक कार्यकर्ता जो मंच पर था और पूर्व पदाधिकारी भी उसके हाथ को अमित शाह ने झटक दिया जो वीडियो वायरल हो करके सवाल उठ रहा है कि जब आप अपने कार्यकर्ता के साथ ऐसा असंवेदनशील व्यवहार करेंगे तो आम जनता क्या अपेक्षा करें. दरअसल हमारे बड़े नेता सत्ता के मद में ऐसा व्यवहार करने लगे हैं जो राजा महाराजा किया करते थे यह देश हित में नहीं कहा जा सकता आत्म चिंतन करने की आवश्यकता है ताकि देश का भी भला हो और राजनीतिक पार्टियों के शीर्ष पर बैठे नेताओं का भी. क्योंकि आने वाला समय आपके व्यवहार और संवाद को कसौटी पर कसने के लिए इतिहास के रूप में इंतजार कर रहा है. gandhishwar.rohra@gmail.com

GHKKPM: सई के सामने आएगी विराट की सच्चाई, जानें क्या होगा आगे

सीरियल गुम है किसी के प्यार में इन दिनों अलग तरह का ड्रामा देखने को मिल रहा है, इस सीरियल में दिखाया जा रहा है कि सई अपने बेटे विनायक को ढ़ूंढने कि कोशिश कर रही है, ऐसे में विराट हर कोशिश कर रहा है कि सई को विनायक न मिले.

लेकिन अब इस कहानी में बहुत बड़ा ट्विस्ट आने वाला है, सई विनायक की खोज में आगे तक पहुंच जाएगी, जब सई को पता चलता है कि विनायक इस दुनिया में नहीं है और सब विराट का किया धरा है तो वह परेशान हो जाती है. सई को एक मैसेज आता है, जिसके बाद से उसे यकिन हो जाता है कि विराट ने ही विनायक के साथ कुछ किया है.

 

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उसे समझ आ जाता है कि विराट उससे कुछ छुपा रहा है. सी मैसेज वाले इंसान जगपात से मुलाकात करती है. इसके बाद दोनों काम में लग जाते हैं.

सीरियल में यह भी देखने को मिलेगा कि अब पत्रलेखा के सब्र का बांध टूट रहा है. वह विराट पर फट जाती है. आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि सई विराट से बहुत सारा सवाल करती नजर आती है.  वहीं पत्रलेखा विराट से कहती है कि उसकी दोस्ती सई के साथ अच्छी हो गई है. पाखी की पूरी बात मानकर विराट उसके इशारे पर चलने को तैयार हो जाता है.

Bigg Boss 16 : साजिद खान के बाहर होते ही इन कंटेस्टेंट को मिली राहत

टीवी का सबसे चर्चित शो बिग बॉस 16 इन दिनों लगातार चर्चा में बना हुआ है, दरअसल इस शो से साजिद खान और अब्दू वाजिद का सफर खत्म हो चुका है. इनके अचानक जाने कि खबर सुनकर सभी घरवाले भावुक हो गए.

तभी निमृत ने कुछ ऐसा कह दिया जिससे सभी घरवालों का ध्यान अलग हो गया, साजिद के जाने कि खबर से अर्चना गौतम और सौंदर्या शर्मा दुखी थें, तो वहीं निमृत का बयान कुछ अलग दिख रहा था, निमृत कौर ने शिव ठाकरे से बताया कि सबसे ज्यादा खुशी प्रियंका और शालीन को हुई है.

बाद में निमृत ने कहा कि टीना को साजिद खान के आउट होने से फायदा हुआ है, बिग बॉस के घर में टीना दत्ता और शालीन चर्चा का विषय बन गए हैं, इन दोनों का रिश्ता काफी ज्यादा अलग है, एक लंबे समय तक साथ रहने के बाद अब ये दोनों अलग होते नजर आ रहे हैं. जिसमें काफी ज्यादा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है.

 

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कुछ वक्त पहले ही सलमान ने शालीन को समझाया था कि टीना शालीन के इमोशन के  साथ गेम खेल रही है. जिसके बाद से यह खेल काफी ज्यादा बदल गया है, टीना दत्ता और शालीन भनोट में दरार नजर आ रही है.

विंटर स्पेशल : सर्दियों में बनाएं घर पर खजूर और तिल के बार

सर्दियों के मौसम में हर कोई कुछ न कुछ मीठा खाना पसंद करता है ऐसे मे कुछ लोगों को ड्राई फ्रूट्स से बने डिशेज खाने के मन करते हैं. तो वहीं कुछ लोग तिल खजूर और अखरोट से बना पट्टी खाना पसंद करते हैं.

आइए जानते हैं कैसे बनाएं तिल, खजूर और अखरोट की पट्टी आप इसे घर पर ही बना सकते हैं. बनाने में बेहद कम समय लगेगा.

समाग्री

अखरोट

खजूर

सफेद तिल

ओट

शहद

घी

विधि

सबसे पहले एक ट्रे या थाली में कुछ बूंद घी लगाकर अलग रखें, उसके बाद आप अखरोट को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट लें. एक नॉन स्टीक की कड़ाही को गर्म करके अखरोट को कुछ देर तक भूनें. उसके बाद आप उसके बाद आप इश अखरोट को निकालकर अलग रख दें.

अब आप इसी कड़ाही में सफेद तिल को भूनें और फिर भूनने के बाद से इसे निकालकर आप अखरोट वाले बर्तन में रख दें. अब सेम कड़ाही में जई को रखे उसे भी कुछ देर तक भूनने के बाद इसे भी निकलकर रख दें.

अब दूबारा से आप कड़ाही को गर्म करें और उसमें खजूर को पिघलने के लिए रख दें. अब खजूर जब पिघल जाएं तो उसमें सभी चीजों को अच्छे से मिक्स कर दें. इससे खजूर के साथ में सभी ड्राई फ्रूट्स अच्छे से चिपक जाएंगे.

अब आप आंच बंद करके मिश्रण को ठंड़ा होने दें और फिर इसमें शहद को मिलाएं. अब इसे घी लगे ट्रे में अच्छे से फैलाएं.

अब आप इस स्वादिष्ट बार पट्टी को अपने मन चाहे आकार में काट लें. अब आप चाहे तो इसे एयर टाइट कंटेनर में रख सकते हैं. इसे आप करीब 2 से 3 हफ्ते तक रखकर खा सकते हैं.

 

बदबू : कमली ने किसना को किस हालत में देखा?

‘‘इतनी रात गए कहां से आ रहा है  हम सब परेशान हो रहे थे कि शाम से तू किधर है…’’ बापू की यह पूछताछ किसना को अखर गई.

‘‘तुम से चुपचाप सोया भी नहीं जाता है  अरे, जरा मुझे भी सुकून से अपने हिसाब से जीने दो,’’ किसना की तल्खी देख बापू समझ गए कि उन का बेटा जरूर कोई तीर मार कर आया है.

‘चलो, इस निखट्टू ने आज कुछ तो किया,’ यह सोचते हुए बापू नींद के आगोश में गुम हो गए.

कमरे में कमली अधनींदी सी लेटी हुई थी. आहट सुन कर वह उठ बैठी. देखा कि किसना ने कुछ नोट निकाले और उन्हें अलमारी में रखने लगा.

कमली की आंखें खुशी से चमक उठीं. उसे लगा कि 2 महीने ईंटभट्ठे पर काम करने की तनख्वाह आखिरकार किसना को मिल ही गई. कमली को पलभर में जरूरतों की झिलमिल करती लंबी फेहरिस्त पूरी होती दिखने लगी.

‘‘लगता है कि रज्जाक मियां ने आखिरकार तुम्हारी पूरी तनख्वाह दे ही दी. मैं तो सोच रही थी कि हर बार की तरह इस बार भी आजकल कर के 6 महीने में आधी ही तनख्वाह देगा,’’ कमली ने चहकते हुए पूछा.

‘‘अरे, वह क्यों देने लगा  इतना ही सीधा होता, तो हमारा खून क्यों पीता ’’ किसना ने खाट पर पसरते हुए कहा.

कमली ने देखा कि किसना पसीने से भीगा हांफ रहा था.

‘बेचारा दिनभर मजदूरी और काम की तलाश में भटकतादौड़ता रहता है,’ कमली ने सोचा.

कोई और दिन होता, तो कमली भी किसना को काट खाने ही दौड़ती कि कुछ कमा कर लाओ नहीं तो घर कैसे चलेगा, पर आज तो अलमारी में रखे नोट उस के दिल में हलचल मचा रहे थे.

कमली गुनगुनाती हुई एक लोटा पानी ले आई.

‘‘लो, पानी पी लो. लग रहा है कि तुम बहुत थक गए हो…

‘‘क्या हुआ… तुम्हारी छाती धौंकनी सी क्यों चल रही है

‘‘अरे, रज्जाक भाई ने पैसा नहीं दिया, तो फिर किस ने दिया पैसा ’’ कमली ने लाड़ जताते हुए पूछा.

‘‘जब से आया हूं, पहले बापू ने, फिर तुम ने मेरा दिमाग चाट कर रख दिया है. क्या कुछ देर शांति नहीं मिल सकती मुझे ’’ लोटा फेंकते हुए किसना ने कहा और करवट ले कर सोने की कोशिश करने लगा.

कमली ने चुपचाप किसना को एक चादर ओढ़ा दी और बगल में लेट गई.

किसना बेचैन सा रातभर करवटें बदलते रहा. वह कभी उठ बैठता, तो कभी लेट जाता.

सुबह के 5 बजे कमली उठी और तैयार हो कर उस ने ग्रेटर नोएडा की बस पकड़ी, जहां वह कुछ घरों में झाड़ूपोंछा और बरतन धोने का काम करती थी.

बिजली की फुरती से काम निबटाती कमली 5वें घर में जा पहुंची. वहां वह चाय नाश्ता बनाती थी. साहब और बीबीजी को दे कर वह खुद भी खाती थी.

कमली के वे साहब और बीबीजी नौकरी से रिटायर हो चुके थे. सो, वहां सुबह की हड़बड़ी नहीं रहती थी. वे दोनों देर तक सोने के आदी थे. आज भी सवा 10 बज गए थे. डोरबैल की आवाज से ही बीबीजी जागी थीं.

‘‘आओ कमली… पहले चाय बना ले… मैं तुम्हारे साहब को जगाती हूं…’’ कह कर बीबीजी बाथरूम में हाथमुंह धोने चली गईं.

जब तक चाय उबली, फुरतीली कमली ने सब्जीभाजी काट ली और कुकर में छौंक दी.

इस के बाद कमली ने साहबजी और बीबीजी को चाय थमा दी और खुद भी वहीं फर्श पर बैठ कर चाय पीने लगी. लगातार 4-5 घंटे काम करने के बाद वह हर दिन यहीं पलभर के लिए आराम करती थी.

साहबजी ने टैलीविजन चला दिया था. बारबार ‘दादरीदादरी’ सुन कर कमली के कान खड़े हुए, चाय हाथ से छलकतेछलकते बची.

जब दादरी के बिसाहड़ा गांव का नाम भी सुना, तो बीबीजी ने पूछा, ‘‘कमली, तुम भी तो काम करने दादरी से ही आती हो न  क्या तुम इन को जानती हो  रात एक भीड़ ने इन की हत्या कर दी…’’ मारे गए आदमी केफोटो को दिखाते हुए बीबीजी ने पूछा.

‘‘हाय… हम तो इन के पीछे वाली बस्ती में ही रहते हैं. इन्हें किस ने मारा ’’ कमली एकदम से चिल्लाई.

अब कमली के हलक से चाय नहीं उतर रही थी. वह गुमसुम सी वहीं खड़ी हो गई.

‘‘बीबीजी, आज मुझे जल्दी जाने दो. मैं ने सब्जी बना दी है… रोटी आप बना लेना…’’ कहते हुए कमली घर लौटने को बेचैन हो उठी.

जैसेतैसे कमली अपनी बस्ती के पास पहुंची, तो देखा कि वहां जमघट लगा हुआ था. टैलीविजन पर रिपोर्ट दिखाने वाले, पुलिस और भी न जाने कौनकौन से लोग दिख रहे थे. आज तक इस जगह कोई नेता नहीं पहुंचा था, वहीं आज पूरी भीड़ लगी हुई थी.

(क्रमश:)

मारा गया शख्स कौन था  पैसे होने के बावजूद किसना का मूड क्यों उखड़ा हुआ था  पढि़ए अगली किस्त में…

 

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