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मुसाफिर -भाग 2: कैसे एक ट्रक डाइवर ने चांदनी की इच्छा पूरी की

ऐसे में चांदनी एकएक पैसे के लिए मुहताज हो गई थी. चांदनी मन ही मन खुद पर बरसती कि चौमासे का भी इंतजाम नहीं किया. उधर भीमा भी 15 दिनों से गायब था. जाने कसबे की तरफ चला गया था या कहीं उफनती नदी में मछलियां खंगाल रहा था.

भीमा का ध्यान आते ही चांदनी सोचने लगी कि किसी जमाने में वह कितना गठीला और गबरू जवान था. आग लगे इस नासपिटी दारू में कि उस की देह दीमक लगे पेड़ की तरह खड़ीखड़ी सूख गई. अब नशा कर के आता है और उसे बेकार ही झकझोर कर आग लगाता है. खुद तो पटाके की तरह फुस हो जाता है और वह रातदिन भीतर ही भीतर सुलगती रहती है.

कभीकभी तो भीमा खुद ही कह देता है कि चांदनी अब मुझ में पहले वाली जान नहीं रही, तू तलाश ले कोई गबरू जवान, जिस से हमारे खानदान को एक चिराग तो मिल जाए.

तब चांदनी भीमा के मुंह पर हाथ रख देती और नाराज हो कर कहती कि चुप हो जा. शर्म नहीं आती ऐसी बातें कहते हुए. तब भीमा बोलता, ‘अरी, शास्त्रों में लिखा है कि बेटा पैदा करने के लिए घड़ी दो घड़ी किसी ताकतवर मर्द का संग कर लेना गलत नहीं होता. कितनों ने ही किया है. पंडित से पूछ लेना.’

चांदनी अपने घुटनों में सिर दे कर चुप रह जाती थी. रास्ता रुके हुए छठा दिन था कि रात के अंधेरे को चीरती एक टौर्च की रोशनी उस के ढाबे पर पड़ी. चांदनी आंखें मिचमिचाते हुए उधर देखने लगी. पास आने पर देखा कि टौर्च हाथ में लिए कोई आदमी ढाबे की तरफ चला आ रहा था.

वह टौर्च वाला आदमी ट्रक ड्राइवर बलभद्र था. बलभद्र आ कर ढाबे के बाहर बिछी चारपाई पर बैठ गया. बरसात अभी रुकी थी और आबोहवा में कुछ उमस थी.

बलभद्र ने बेझिझक अपनी कमीज उतार कर एक तरफ फेंक दी. वह एक गठीले बदन का मर्द था. पैट्रोमैक्स की रोशनी में उस का गोरा बदन चमक छोड़ रहा था. बेचैनी और उम्मीद में डूबती चांदनी कनखियों से उसे ताक रही थी.

थकान और गरमी से जब बलभद्र को कुछ छुटकारा मिला, तब उस का ध्यान चांदनी की ओर गया. वह आवाज लगा कर बोला, ‘‘क्या बाई, कुछ रोटी वगैरह मिलेगी?’’

‘‘हां,’’ चांदनी बोली.

‘‘तो लगा दाल फ्राई और रोटी.’’

चांदनी में जैसे बिजली सी चमकी. उस ने भट्ठी पर फटाफट दाल फ्राई कर दी और कुछ ही देर में वह गरम तवे पर मोटीमोटी रोटियां पलट रही थी. चारपाई पर पटरा लगा कर चांदनी ने खाना लगा दिया. खाना खाते समय बलभद्र कह रहा था, ‘‘5 दिनों में भूख से बेहाल हो गया.’’

जाने चांदनी के हाथों का स्वाद था या बलभद्र की पुरानी भूख, उसे ढाबे का खाना अच्छा लगा. वह 14 रोटी खा गया. पानी पी कर उस ने अंगड़ाई ली और वहीं चारपाई पर पसर गया.

बरतन उठाती चांदनी को जेब से निकाल कर उस ने सौ रुपए का एक नोट दिया और बोला, ‘‘पूरा पैसा रख ले बाई.’’

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घरेलू नौकरों से कैसे पेश आएं

भोपाल के गोविंदपुरा इलाके में रहने वाले 29 साल के आशीष शर्मा एक रिटायर्ड अधिकारी के बेटे हैं. अपनी टाटा सूमो कार चलाने के लिए आशीष ने एक सितंबर से विज्ञापन के जरिए राजू सिंह नाम के व्यक्ति को बतौर ड्राइवर रखा था. उन्होंने राजू का टैस्टड्राइव लिया और उस के फोटोयुक्त पहचानपत्र लिए और नौकरी दे दी. चौथे दिन ही वे उस वक्त सन्न रह गए जब नयानवेला ड्राइवर कार ले कर फरार हो गया. आशीष उसे फोन करते रहे लेकिन वह लगातार बंद जाता रहा.
इस के बाद वे उस के दिए पते पर पहुंचे तो वहां भी वह नहीं मिला. दो दिन गुजर जाने के बाद वे थाने पहुंचे और अमानत में खयानत की रिपोर्ट दर्ज कराई. मुमकिन है राजू सिंह नाम का वह अनजान शख्स मय कार के कहीं मिल जाए और मुमकिन है न भी मिले. आशीष अब अपना सिर धुन रहे हैं कि राजू के कागजात की सचाई जानने के लिए उन्होंने न तो खुद कोई कोशिश की और न ही पुलिस वैरिफिकेशन कराया. किसी को नौकर रखने से पहले क्याक्या एहतियात बरतनी चाहिए, यह सबक उन्हें लगभग 7 लाख रुपए का पड़ा. किसी को नौकर रखने के बाद उस पर आंख बंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए, यह पाठ उन्हें मुफ्त में सम झ आ गया. दिल्ली के सफदरगंज इलाके की एक और वारदात को देख कहा जा सकता है कि आशीष सस्ते में निबट गए.
इस हादसे में 17 साल का नौकर दिव्यांग की हत्या कर भाग गया और साथ में कुछ ज्वैलरी, मोबाइल फोन और 40 हजार रुपए भी चुरा ले गया. हालांकि आरोपी पकड़ा गया लेकिन इस से दिव्यांग की जिंदगी वापस नहीं मिलने वाली. इस नौकर को भी केवल 3 महीने पहले रखा गया था. हादसे के वक्त मृतक के पेरैंट्स और दादी मंदिर गए हुए थे और बहन किसी काम से बाजार चली गई थी. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से पकड़े जाने के बाद इस नौकर ने बताया कि वह लगातार खुद को अपमानित महसूस कर रहा था. हत्या का आइडिया उसे 1996 में प्रदर्शित फिल्म ‘तू चोर मैं सिपाही’ से मिला था, इसलिए वह टूथपेस्ट से बाथरूम की खिड़की पर किलर किंग लिख गया था.
इस नौकर को भी बिना किसी खास छानबीन के नौकरी पर रख लिया गया था और पुलिस वैरिफिकेशन की जरूरत महसूस नहीं की गई थी क्योंकि उस की सिफारिश घर की नौकरानी ने की थी. बिहार के सीतामढ़ी से दिल्ली आया आरोपी नौकरी छोड़ना चाहता था लेकिन दिक्कत यह थी कि दूसरी नौकरी मिलने तक उसे खानेपीने के लाले पड़ जाते क्योंकि उस के पास बिलकुल पैसे नहीं थे जिस के लिए उस ने बजाय मेहनत के शौर्टकट रास्ता चुनते एक लाचार अपाहिज की हत्या कर दी जिस ने उसे घर से चोरी करते देख लिया था.
महंगा पड़ता है भरोसा भोपाल और दिल्ली के ये मामले तो बानगी भर हैं. देशभर में ऐसी घटनाएं होना अब रोजमर्रा की बात हो गई है जिन में घरेलू नौकर द्वारा हत्या, चोरी या लूटपाट की गई हो. दोटूक कहा जाए तो हर मामले में नौकरों पर किए गए विश्वास की कीमत बहुत महंगी चुकानी पड़ती है. इस के बारे में खोखली दलील यह दी जा सकती है कि भरोसा तो अब मजबूरी हो गई है क्योंकि घरेलू नौकर अब आसानी से नहीं मिलते और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं कि जांचेपरखे व आजमाए नौकर ऐसा नहीं करेंगे. यह ठीक वैसी ही बात है कि ऐक्सिडैंट के डर से सड़कों पर चलना ही छोड़ दिया जाए. भरोसा करना मजबूरी अगर हो ही गई है तो कुछ सावधानियां रख कर क्या किसी अनहोनी से बचा जा सकता है? इस सवाल का जवाब हां में ही निकलता है. भोपाल के आशीष ने तीसरे ही दिन नए ड्राइवर को गाड़ी दे कर दूसरी गलती की थी. पहली तो वह उपयुक्त छानबीन न कर के कर ही चुके थे जिस से नौकर को शह मिली.
यही गलती दिल्ली के सफदरगंज हादसे में हुई थी. घरेलू नौकरों द्वारा किए गए हर अपराध में लगभग यही गलती होती है कि लोग हड़बड़ाहट में अपनी सहूलियत के लिए आंखें बंद कर लेते हैं. जाहिर है खासतौर से नए रखे गए नौकर पर भरोसा करना ‘आ बैल मु झे मार’ वाली कहावत को चरितार्थ करना है. लेकिन इस से ऐसे बचा भी जा सकता है और रिस्क भी कम किया जा सकता है- द्य नए नौकर को रखने से पहले उस के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करें चाहे वह किसी भी सोर्स से आया हो. आजकल सोशल मीडिया पर भी घरेलू नौकर उपलब्ध हैं और कई एजेंसियां भी नौकर दिलवाती हैं लेकिन उन के बारे में जानकारियां उतनी नहीं होतीं जितनी कि होनी चाहिए. सिर्फ आधार कार्ड या कोई दूसरा फोटो आईडी ले लेने भर से नौकर भरोसेमंद नहीं हो जाता. द्य आमतौर पर घरेलू नौकर दूसरे नौकरों की सिफारिश पर रखा जाता है. यह एक बहुत बड़ी चेन है जिसे संक्षेप में सम झना जरूरी है. मिसाल दिल्ली की लें तो वहां बड़ी तादाद में बिहार और उत्तर प्रदेश से लोग कामकाज की तलाश में आते हैं और अपने गांव, शहर या तहसील के पहले से काम कर रहे लोगों से कहीं काम दिलाने की सिफारिश करवाते हैं.
यह बहुत ज्यादा हर्ज की बात नहीं है लेकिन काम दिलाने वाला जिसे पहले से मालिकों का भरोसा हासिल होता है वह भी इतना भर जानता है कि यह हमारी जात, बिरादरी, रिश्तेदारी या समाज का है. उसे भी पता नहीं रहता कि यह कहीं खुराफाती या अपराधी प्रवृत्ति का तो नहीं. उन्हें तो इसी बात की खुशी रहती है कि उन की हैसियत इतनी है कि बड़े शहर के बड़े लोग उन की सिफारिश पर किसी को नौकरी पर रख रहे हैं. यह उन के लिए शान की बात भी होती है. यही काम बड़ी एजेंसियां फीस ले कर करती हैं लेकिन गारंटी वे भी नहीं लेतीं. ऐसे में जाहिर है नौकरी देने वाला इस चेन या चैनल की आखिरी कड़ी है. इसलिए नौकर रखने से पहले पूरी तसल्ली करें. द्य काम पर रखने से पहले सख्त लहजे में यह नौकर को सम झा दें कि उस से मिलनेजुलने को कोई घर नहीं आएगा.
 उस के घर का चक्कर लगा लेना भी हर्ज की बात नहीं. इस से बहुत सी बातें स्पष्ट हो जाएंगी.
उस के संपर्क के ज्यादा से ज्यादा लोगों के मोबाइल नंबर लें और उन के वैरिफिकेशन की बाबत एकाध बार दिए गए नंबरों पर बात भी करें.
नौकर का पुलिस वैरिफिकेशन जरूर करवाएं.
घर की अहम जगहों पर सीसीटीवी जरूर लगाएं. नौकरी देने के बाद द्य नए नौकर के फोटो जरूर खींच कर रखें.
शुरुआती दिनों में नौकर को घर पर अकेला छोड़ने की भूल न करें.
नौकर की हर छोटीबड़ी गतिविधि को ध्यान से देखें.उसे बहुत ज्यादा मुंह न लगाएं और न ही ज्यादा उपेक्षित करें.पैसों और दूसरे लेनदेन के काम उस से न करवाएं. नौकर के सामने आर्थिक और पारिवारिक विषयों पर चर्चा न करें. लौकर, अलमारी वगैरह को उस की पहुंच और नजर से दूर रखें.
उस के काम की मौनिटरिंग ऐसे करते रहें कि यह बात उसे सम झ आ जाए कि उस पर आप की नजर है. कुछ दिनों बाद  जब ऐसा लगने लगे कि नौकर विश्वसनीय है, कोई हेरफेर नहीं करता या करती है तो उसे थोड़ा स्पेस दें.
एडवांस दिया जा सकता है लेकिन वह बहुत ज्यादा न हो. मुंबई में एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम कर रही गुंजन बताती हैं कि हम 3 फ्रैंड्स ने खाना बनाने को कुक यानी बाई रखी थी. 6 महीने में ही उस पर हमें यकीन हो गया था लेकिन पति की बीमारी का रोना रो कर एक बार वह हम से 20 हजार रुपए एडवांस ले गई और फिर कभी नहीं आई. इन तीनों ने महज 20 हजार रुपए के लिए पुलिस थाने के चक्कर में पड़ना ठीक नहीं सम झा.
आजकल ज्यादा नहीं 3 4 महीनों में ही नौकर घर में घुलमिल जाता है. इस वक्त और ज्यादा सावधानी की जरूरत होती है. कई बार नौकरों की मंशा लंबा हाथ मारने की होती है जिस के लिए वे पूरी प्लानिंग से काम करते हैं और मालिक व उस की आदतों व मिजाज के बारे में बहुतकुछ जान लेते हैं जिस में लौकर और तिजोरी खास हैं.
ऐसा कैसे, इसे वाराणसी के होटल व्यवसायी नागेश्वर से सम झते हैं जिन के घर से नौकरानी ने किस्तों में 3 लाख से भी ज्यादा की नकदी व लगभग 10 लाख के गहने चुराए. नागेश्वर की मानें तो छित्तूपुर की रहने वाली इस नौकरानी को काम करते एक साल ही हुआ था. इस बीच उस ने अपने व्यवहार से सब का दिल जीत लिया लेकिन साथ ही ‘शोले’ फिल्म के जय और वीरू की तरह उन के घर की तिजोरी देख ली, जिस में बेटी की शादी के लिए गहने व नकदी रखे थे.
इस नौकरानी ने किश्तों में हाथ साफ किया और जब पोल खुली तो घर में मातम सा मच गया. नागेश्वर की शिकायत पर पुलिस ने नौकरानी को पकड़ कर पूछताछ की तो उस ने महज 3 हजार की चोरी करना स्वीकार किया. द्य नौकर के जाने के बाद घर में रखी नकदी और जेवरात वगैरह की जांच करते रहें. द्य नौकर अगर लंबी छुट्टी पर जा रहा हो और यह कहे कि मैं अपनी जगह फलां को रख जाता/जाती हूं तो इस पेशकश को अस्वीकार कर दें. यह बड़ा रिस्क है.
छोटे बच्चों के मामले में अतिरिक्त सावधानी रखें. बेंगलुरु में खासे पैकेज पर नौकरी कर रहे भोपाल के हर्ष और नेहा ने अपने 3 साल के बच्चे की देखभाल के लिए आया 12 हजार रुपए महीने पर रखी थी. 2 महीने बाद उन की पड़ोसिन आंटी ने उन्हें बताया कि आया न केवल बच्चे को मारतीपीटती है बल्कि कभीकभी तो अपने बौयफ्रैंड के साथ घूमने भी चली जाती है. हैरानी की बात यह है कि जब वह बच्चे को घर में बंद कर जाती है तब वह रोता नहीं. मुमकिन है कि वह नौकरानी बच्चे को अफीम या नशे की कोई दूसरी दवा खिला जाती हो. आंटी ने कुछ वीडियो क्लिप उन्हें दिखाए जिन में आया बच्चे को मार रही थी और एक क्लिप में बच्चे को अंदर अकेला छोड़, फ्लैट पर ताला लगा कर कहीं जा रही थी.
इतना सुनना और देखना था कि हर्ष और नेहा के हाथों के तोते उड़ गए और उन का खून भी खौल उठा लेकिन उन्होंने सब्र से काम लेते उसी दिन नौकरानी का हिसाब कर उस की छुट्टी कर दी और बेटे को क्रैच में छोड़ने लगे. कुछ दिनों में यह अंदाजा लग ही जाता है कि नौकर को शराब या दूसरे किसी नशे की लत तो नहीं. अगर हो तो धीरेधीरे उसे निकालने की तैयारी करें लेकिन सुधारने की ठेकेदारी न लें. बीती 6 सितंबर को झारखंड के एक गांव जामटोली में नौकर सतेंद्र लकड़ा ने अपने मालिक रिचर्ड मिंज और उन की पत्नी मेलानी मिंज की नृशंस हत्या इसलिए कर दी थी कि वे उसे शराब पीने से रोकने लगे थे.
इस बात को ले कर मिंज दंपती उसे धौंसभरी सम झाइश भी दे चुके थे जिसे सतेंद्र ने अपनी बेइज्जती सम झा था. पतिपत्नी दोनों सतर्क रहें ड्राइवर, माली, धोबी जैसे नौकरों के सामने एहतियात से रहना बहुत जरूरी है. उन के सामने कपड़े न बदलें और बाथरूम से आधेअधूरे कपड़ों में बाहर न आएं. फूहड़ और घटिया हंसीमजाक तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए. जोधपुर में इसी साल अप्रैल में एक महिला ने रिपोर्ट लिखाई थी कि 4 साल पहले उन के पति की कपड़ों की दुकान में काम करने वाले एक नौकर ने उन का नहाते हुए वीडियो बना लिया था.
इसे वायरल करने का डर दिखा कर वह मालकिन से 3 साल तक बलात्कार भी करता रहा और पैसे भी ऐंठता रहा. हद तो तब हो गई जब शारीरिक रूप से संतुष्ट होने के बाद वह और ज्यादा पैसे मांगने लगा जोकि इज्जत बचाने के लिए मालकिन ने दिए भी लेकिन जब उस ने उन की बेटी से भी यही सब करने की मांग की तब कहीं मालकिन ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. पतियों को भी चाहिए कि नौकरानियों पर लार न टपकाएं और न ही उन से एक खास मंशा से नजदीकियां हासिल करने की कोशिश करें, नहीं तो लेने के देने पड़ जाते हैं. अब से कोई 4 साल पहले भोपाल के सरकारी कालेज के एक प्रोफैसर पर नौकरानी ने बलात्कार का इलजाम लगाते थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी थी.
कुछ दिन जेल का जायका ले कर प्रोफैसर साहब बाहर जमानत पर आए तो उन की खूब जगहंसाई कालेज व रिश्तेदारी में हुई. जब वे कालेज जाते थे तो स्टूडैंट्स उन्हें देख दूर से बलात्कारीबलात्कारी के नारे से लगा कर मजे लेते थे. बलात्कार के मुकदमे की बाद की अदालती झं झटों से बचने के लिए उन्हें नौकरानी को 10 लाख रुपए देने पड़े थे. जिसे बलात्कार का जामा पहनाया गया था वह असल में सहमति से बन रहे संबंध थे. इसलिए हर लिहाज से सावधान और संयमित रहें. नौकरों से सलीके से पेश आएं जिस से वे आप को किसी किस्म का नुकसान न पहुंचा पाएं.

व्यवस्था : हम सब किस तरह से थे अव्यवस्था के भागीदार

एक रात को मैं अपनी सहकर्मी साक्षी के घर भोजन पर आमंत्रित थी. पतिपत्नी दोनों ने बहुत आग्रह किया था. तभी हम ने हां कर दी थी. साक्षी के घर पहुंची. उन का बड़ा सा ड्राइंगरूम रोशनी में नहाया हुआ था. साक्षी ने सोफे पर बैठे अपने पति के मित्र आनंदजी से हमारा परिचय कराया.  साक्षी के पति सुमित भी आ गए. हम लोग सोफे पर बैठ गए थे. कुछ देर सिर्फ गपें मारीं. साक्षी के पति ने इतने बढि़या और मजेदार जोक सुनाए कि हम लोग टैलीविजन पर आने वाले घिसेपिटे जोक्स भूल गए थे. तय हुआ कि महीने में एक बार किसी न किसी के घर पर बैठक किया करेंगे.

हंसी का दौर थमा. भूख बहुत जोर से लग रही थी. रूम के एक हिस्से में ही डाइनिंग टेबल थी. टेबल खाना खाने से पहले ही तैयार थी और हौटकेस में खाना, टेबल पर लगा हुआ था. प्लेट्स सजी थीं. जैसे ही हम खाने के लिए उठने लगे, लाइट चली गई. एक चुटकुले के सहारे 5-10 मिनटों तक इंतजार किया. पर लाइट नहीं आई. आनंद ने पूछा, ‘‘अरे यार, तुम्हारे पास तो इनवर्टर था?’’

उन की जगह साक्षी ने जवाब दिया, ‘‘हां भाईसाहब है, पर खराब है. कब से कह रही हूं कि मरम्मत करने वाले के यहां दे दें. पर ये तो आजकलआजकल करते रहते हैं.’’

सुमित ने कहा, ‘‘बस भी करो. जाओ, माचिस तलाश करो. फिर मोमबत्ती ढूंढ़ो. कैंडललाइट डिनर ही सही.’’

साक्षी उठ कर किचन की तरफ गई. इधरउधर माचिस तलाशती रही, पर माचिस नहीं मिली. वहीं से चिल्लाई, ‘‘अरे भई, न तो माचिस मिल रही है, न ही गैसलाइटर जो गैस जला कर थोड़ी रोशनी कर लूं. अब क्या करूं?’’

‘‘करोगी क्या? यहां आ जाओ, मिल कर निकम्मी सरकार को ही कोस लें. इस का कौन काम सही है?’’ सुमित ने कहा. अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वे बोले, ‘‘बिजली का कोई भरोसा नहीं है कि कब आएगी, कब जाएगी. 4 घंटे का घोषित कट है, पर रहता है 8 घंटे. और बीचबीच में आंखमिचौली.

कभी अगर ट्रांसफौर्मर खराब हो जाए, तो समझ लो 2-3 दिनों तक बिजली गायब.’’

तभी आनंद ने कहा, ‘‘अरे भाईसाहब, रुकिए. मेरे पास माचिस है. यह मुझे ध्यान ही नहीं रहा. यह लीजिए.’’

उन्होंने एक तीली जला कर रोशनी की. सुमित तीली और माचिस लिए हुए चिल्लाए, ‘‘जल्दी मोमबत्ती ढूंढ़ कर लाओ.’’

‘‘मोमबत्ती…यहीं तो साइड में रखी हुई थी,’’ साक्षी ने कहा. दोनों पतिपत्नी मेज के पास पहुंच कर दियासलाई जलाजला कर मोमबत्तियां ढूंढ़ते रहे. पर वह नहीं मिली. कई जगहों पर देखी, लेकिन बेकार. इतने में ही उन्हें एक मोमबत्ती ड्रैसिंग टेबल की दराज में मिल गई. वहीं से वह चिल्लाई, ‘‘मिल गई.’’

जब काफी देर तक मोमबत्ती नहीं जली तो आनंद ने पूछा, ‘‘क्या हुआ, मोमबत्ती क्यों नहीं जलाते? क्या अंधेरे में रोमांस चल रहा है?’’

तब तक सुमित ड्राइंगरूम में आ चुके थे, बोले, ‘‘लानत है यार ऐसी जिंदगी पर. जब मोमबत्ती मिली, तो माचिस की तीलियां ही खत्म हो गईं.’’

आनंद कुछ कहते, उस से पहले ही बिजली आ गई.

सुमित ने मोमबत्ती एक कोने में फेंक दी और बोले, ‘‘खैर, बत्ती आने से सब काम ठीक हो गया.’’

मौके की नजाकत पर आनंद ने एक जोक और मारा तो सब खिलखिला उठे. प्रसन्नचित्त सब ने भोजन किया. थोड़ी देर में साक्षी फ्रिज में से 4 बाउल्स निकाल कर लाई. सभी लोग खीर खाने लगे.

तो मैं ने कहा, ‘‘अरे भाईसाहब, मीठी खीर के साथ एक बात कहूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगे?’’

सुमित ने खीर मुंह में भरे हुए ही कहा, ‘‘नहीं. आप तो बस कहिए, क्या चाहती हैं?’’

मैं ने कहा, ‘‘अभी आप सरकार को उस की बदइंतजामी के लिए कोस रहे थे. मैं सरकार की पक्षधर नहीं हूं, फिर भी क्षमाप्रार्थना के साथ कहती हूं कि जब आप के इस छोटे से परिवार में इतनी अव्यवस्था है, आप को पता नहीं कि माचिस कहां रखी है? मोमबत्ती कहां पर है? तो इतने बड़े प्रदेश का भार उठाने वाली सरकार को क्यों कोसते हैं?

‘‘जिले के ट्रांसफौर्मर के शीघ्र न ठीक होने की शिकायत तो आप करते हैं पर घर पर रखे इनवर्टर की आप समय से मरम्मत नहीं करवाते. कभी सोचा है कि ट्रांसफौर्मर के फुंक जाने के कई कारणों में से एक प्रमुख कारण उस पर अधिक लोड होना है. आप के इस रूम में जरूरत से ज्यादा बल्ब लगे हैं. अच्छा हो पहले हम अपने घर की व्यवस्था ठीक कर लें, फिर किसी और को उस की अव्यवस्था के लिए कोसें. मेरी बात बुरी लगे, तो माफ कर दीजिएगा.’’

आनंद ने ताली बजाते हुए कहा, ‘‘दोस्तो, हास्य के बीच, आज का यह सब से गहरा व्यंग्य. चलो, अब मीटिंग बरखास्त होती है.’’

पूर्णविराम -भाग 3: आलिशा- आदर्श की किस सच्चाई से हैरान थे लोग

रोज सुबह मैं अपनी गाड़ी से उस पार्क तक जाता, जहां मेरे हमउम्र कुछ दोस्त मेरा इंतजार कर रहे होते थे. लगभग 1 घंटा हम सैर कर के कुछ देर बैठ कर बातें करते और फिर अपनेअपने घर वापस आ जाते थे. मेरी आदत थी कि वौक कर के घर आते समय उधर से ही दूध, फल व ताजा सब्जियां खरीदते लेते आता था. यह मेरी रोज की दिनचर्या थी. अब रिटायर्ड बूढ़ा का काम ही क्या होता है. और वैसे भी मुझे फालतू का बैठना नहीं पसंद है. कहते भी हैं कि खाली घर शैतान का. सो मैं खुद को बिजी रखने की कोशिश करता.

उस दिन जब मैं सैर से वापस अपने घर आ रहा था, तो मुझे वही स्कूटी वाली लड़की दिखी. सड़क किनारे अपनी स्कूटी को स्टैंड पर लगा कर वह किसी से फोन पर बात कर रही थी. मन हुआ जा कर पूछें कि उस दिन उसे ज्यादा चोट तो नहीं आई थी? लेकिन फिर लगा कहीं उसे बुरा लगा तो? लेकिन फिर लगा पूछ ही लेता हूं, इस में क्या है.

“कैसी हो बेटा? उस दिन तुम्हें ज्यादा चोट तो नहीं आई थी न?” मैं ने पूछा तो वह मुझे देख कर एकदम से घबरा गई। उसे लगा होगा शायद मैं उसे डांटने आया हूं।

“अरे, तुम घबरा क्यों रही हो बेटा? मैं तो बस पूछ रहा हूं कि कहीं तुम्हें चोट तो नहीं आई थी उस रोज?” मैं ने प्यार से कहा, तो उस के चेहरे से डर गायब हो गया और हलकी सी मुसकराहट के साथ उस ने ‘न’ में अपना सिर हिलाया. बहुत ही प्यारी बच्ची लगी वह मुझे. अपने दोनों हाथों को जोड़ कर ‘सौरी’ बोलते हुए वह कहने लगी कि दरअसल, उस दिन उसे कहीं जल्दी पहुंचाना था.

“हां हां, कोई बात नहीं. होता है कभीकभी,” मैं ने कहा, तो वह मुसकरा पड़ी.

“वैसे तुम्हारा घर यहीं कहीं आसपास है क्या ?” मैं ने पूछा तो वह हंस कर बोली कि नहीं, वह यहां किसी और का इंतजार कर रही है.

“अच्छा, तो फिर मैं चलता हूं,” रास्ते भर मैं यही सोचता रहा कि नाहक ही मैं उस बच्ची को भलाबुरा बोलता चला गया. शशि सही कह रही थी कि होगी उसे कोई जल्दी. और उस लड़की ने भी यही कहा कि उसे उस दिन कहीं जल्दी पहुंचना था. खैर, जो भी हो पर उस का हाल पूछ कर मैं ने अपना मन हलका कर लिया. अब अकसर वह लड़की मुझे दिख जाती और मुसकरा कर “गुड मौर्निंग अंकल” कहती तो मुझे बड़ा अच्छा लगता था. उस से मिलने के बाद मुझे यही लगा कि बेकार में मैं आज के जैनरेशन को कोसता रहता हूं, जबकि वह लड़की तो कितनी संस्कारी है. मिलने पर हाथ जोड़ कर तुरंत नमस्ते कहती है और मेरी हालचाल भी लेति है.

एक दिन पूछने पर उस ने अपना नाम अलिशा बताया, तो मुझे लगा कि यह लड़की जरूर दूसरे धर्म से है. वैसे, धर्मकर्म में क्या रखा है, इंसान अच्छा होना चाहिए. और वह लड़की बहुत नेकदिल थी, इतना मैं जान चुका था.

 

विंटर स्पेशल : प्रोटीन से भरपूर है ये आहार

अच्छे स्वास्थ्य के लिए शरीर को जो पोषक तत्त्व जरूरी हैं उन में प्रोटीन बेहद महत्त्वपूर्ण होता है. अमीनो एसिड आवश्यक और गैरआवश्यक में बंटे होते हैं. आवश्यक अमीनो एसिड वे हैं जिन्हें शरीर द्वारा बनाया नहीं जा सकता, जिन्हें भोजन से प्राप्त किया जाना चाहिए. गैरआवश्यक अमीनो एसिड वे हैं जिन्हें शरीर खुद बनाता है. लगभग 20 अमीनो एसिड हैं जिन में से 9 आवश्यक होते हैं. अमीनो एसिड हमारे शरीर में प्रोटीन बनाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं.

टिश्यू के विकास और रखरखाव से ले कर, बायोकैमिकल प्रतिक्रियाओं, त्वचा, बालों आदि के लिए मजबूती प्रदान करने, तरल पदार्थ को संतुलित करने, प्रतिरक्षा में सुधार करने और ऊर्जा प्रदान करने तक प्रोटीन की हमारे शरीर के विभिन्न अंगों के कुशल कामकाज में बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है.

प्रोटीन 2 प्रकार होते हैं, पूर्ण और अधूरे. पशु प्रोटीन पूर्ण प्रोटीन होते हैं, जबकि पौधों से प्राप्त प्रोटीन अपूर्ण होते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए किसी दूसरे खाद्य स्रोत के साथ जोड़ा जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, चावल या रोटी को फलियों या दाल के साथ खाने की आवश्यकता होती है.

इंडियन डायटैटिक एसोसिएशन यानी आईडीए के ताजा शोध से पता चला है कि भारतीय आहार शरीर को आवश्यक मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त नहीं होता है. इस में 50 प्रतिशत अपर्याप्त प्रोटीन पैटर्न होता है.

कई लोग प्रोटीन की कमी को गंभीरता से नहीं लेते हैं, हालांकि, यह आवश्यक है कि हमारा आहार ऐसा हो जो प्रोटीन का संतुलन बनाए रखे. जीवनशैली या शारीरिक गतिविधि के स्तर के बावजूद प्रत्येक वयस्क को शरीर के प्रतिकिलो वजन पर 0.85-1 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है और प्रतिदिन कम से कम 50 ग्राम प्रोटीन मिलना चाहिए. ज्यादा शारीरिक कसरत करने वाले व्यक्तियों को 0.5 ग्राम अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता हो सकती है और गर्भवती महिलाओं को सामान्य स्तर की तुलना में 36 प्रतिशत अधिक प्रोटीन चाहिए होता है.

प्रोटीन के कुछ स्रोत ये हैं :

बींस और फलियां

हरी सब्जियों की श्रेणी में आने वाली बींस और फलियों से न केवल प्रोटीन, बल्कि आयरन भी मिलता है. इस श्रेणी में आने वाले कुछ खाद्य पदार्थों में सोयाबीन, छोले, सेम, राजमा, मसूर, मूंगफली और लिमा सेम जैसे उत्पाद शामिल हैं. इन किस्मों को साबुत लेना बेहतर है, क्योंकि इस से शरीर में बेहतर तरीके से अवशोषण होने में मदद मिलती है.

सूखे मेवा और बीज

नट्स और बीज जैसे कि कद्दू, सूरजमुखी व तिल के बीज, पिस्ता, बादाम और काजू आदि प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं. इन्हें पूर्ण प्रोटीन में बदलने के लिए साबुत लेना चाहिए. उदाहरण के लिए, आप इन्हें सलाद पर छिड़क कर ले सकते हैं.

साबुत अनाज

ये अपनेआप में प्रोटीन के उत्कृष्ट स्रोत हैं. आप साबुत अनाज के आटे से बनी रोटी, ब्राउन चावल, ओट्स आदि का चयन कर सकते हैं. इनमें से क्विनोआ अकेले ही एक पूर्ण प्रोटीन है, इसीलिए इसे सुपरफूड भी कहा जाता है.

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डेयरी और अंडे

जो पूरी तरह से शाकाहारी नहीं हैं, डेयरी और अंडे से प्रोटीन प्राप्त कर सकते हैं. अंडा, दूध, दही और पनीर में काफी प्रोटीन होता है. वजन घटाने के लिए भी प्रोटीन उत्कृष्ट है. चिकन एक लीन प्रोटीन है, जिस की सिफारिश अकसर पोषण विशेषज्ञों द्वारा की जाती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह व्यक्ति को लंबे समय तक तृप्त रखने में मदद करता है. हालांकि, इसे ग्रिल्ड, स्टिर फ्राइड या स्ट्यूड फौर्म में लिया जाना चाहिए.

दरअसल, प्रोटीन एक मैक्रो पोषक तत्त्व है. यह 3 महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों में से एक है. कुछ लोग इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए सप्लीमैंट लेते हैं, हालांकि, प्रोटीन को प्राकृतिक स्रोतों से लेना अच्छा तरीका है. सप्लीमैंट किसी विशेषज्ञ की सलाह पर लेना चाहिए. इस पोषक तत्त्व को अपने दैनिक आहार का हिस्सा बनाइए. यह आप को जीवनभर स्वस्थ रख सकता है.

:कल्पना रंगराज, सीनियर न्यूट्रीशनिस्ट, पोर्टिया मैडिकल

कभी कभी ऐसा भी-भाग 1 : पूरबी के साथ आखिर क्या हुआ

कभीकभी जिंदगी में अचानक ऐसी मुसीबतें आ खड़ी होती हैं कि व्यक्ति बेबस हो जाता है, पर अगर आप ने कोई नेक काम किया हो, किसी की मदद की हो तो कोई न कोई मददगार जरूर उपस्थित हो जाता है. ऐसा ही कुछ पूरबी के साथ भी हुआ.

शौपिंग कर के बाहर आई तो देखा मेरी गाड़ी गायब थी. मेरे तो होश ही उड़ गए कि यह क्या हो गया, गाड़ी कहां गई मेरी? अभी थोड़ी देर पहले यहीं तो पार्क कर के गई थी. आगेपीछे, इधरउधर बदहवास सी मैं ने सब जगह जा कर देखा कि शायद मैं ही जल्दी में सही जगह भूल गई हूं. मगर नहीं, मेरी गाड़ी का तो वहां नामोनिशान भी नहीं था. चूंकि वहां कई और गाडि़यां खड़ी थीं, इसलिए मैं ने भी वहीं एक जगह अपनी गाड़ी लगा दी थी और अंदर बाजार में चली गई थी. बेबसी में मेरी आंखों से आंसू निकल आए.

पिछले साल, जब से श्रेयस का ट्रांसफर गाजियाबाद से गोरखपुर हुआ है और मुझे बच्चों की पढ़ाई की वजह से यहां अकेले रहना पड़ रहा है, जिंदगी का जैसे रुख ही बदल गया है. जिंदगी बहुत बेरंग और मुश्किल लगने लगी है.

श्रेयस उत्तर प्रदेश सरकार की उच्च सरकारी सेवा में है, सो हमेशा नौकर- चाकर, गाड़ी सभी सुविधाएं मिलती रहीं. कभी कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. बैठेबिठाए ही एक हुक्म के साथ सब काम हो जाता था. पिछले साल प्रमोशन के साथ जब उन का तबादला हुआ तो उस समय बड़ी बेटी 10वीं कक्षा में थी, सो मैं उस के साथ जा ही नहीं सकती थी और इस साल अब छोटी बेटी 10वीं कक्षा में है. सही माने में तो अब अकेले रहने पर मुझे आटेदाल का भाव पता चल रहा था.

सही में कितना मुश्किल है अकेले रहना, वह भी एक औरत के लिए. जिंदगी की कितनी ही सचाइयां इस 1 साल के दौरान आईना जैसे बन कर मेरे सामने आई थीं.

औरों की तो मुझे पता नहीं, लेकिन मेरे संग तो ऐसा ही था. शादी से पहले भी कभी कुछ नहीं सीख पाई क्योंकि पापा भी उच्च सरकारी नौकरी में थे, सो जहां जाते थे, बस हर दम गार्ड, अर्दली आदि संग ही रहते थे. शादी के बाद श्रेयस के संग भी सब मजे से चलता रहा. मुश्किलें तो अब आ रही हैं अकेले रह के.

मोबाइल फोन से अपनी परेशानी श्रेयस के साथ शेयर करनी चाही तो वह भी एक मीटिंग में थे, सो जल्दी से बोले, ‘‘परेशान मत हो पूरबी. हो सकता है कि नौनपार्किंग की वजह से पुलिस वाले गाड़ी थाने खींच ले गए हों. मिल जाएगी…’’

उन से बात कर के थोड़ी हिम्मत तो खैर मिली ही मगर मेरी गाड़ी…मरती क्या न करती. पता कर के जैसेतैसे रिकशा से पास ही के थाने पहुंची. वहां दूर से ही अपनी गाड़ी खड़ी देख कर जान में जान आई.

श्रेयस ने अभी फोन पर समझाया था कि पुलिस वालों से ज्यादा कुछ नहीं बोलना. वे जो जुर्माना, चालान भरने को कहें, चुपचाप भर के अपनी गाड़ी ले आना. मुझे पता है कि अगर उन्होंने जरा भी ऐसावैसा तुम से कह दिया तो तुम्हें सहन नहीं होगा. अपनी इज्जत अपने ही हाथ में है, पूरबी.

दूर रह कर के भी श्रेयस इसी तरह मेरा मनोबल बनाए रखते थे और आज भी उन के शब्दों से मुझ में बहुत हिम्मत आ गई और मैं लपकते हुए अंदर पहुंची. जो थानेदार सा वहां बैठा था उस से बोली, ‘‘मेरी गाड़ी, जो आप यहां ले आए हैं, मैं वापस लेने आई हूं.’’

उस ने पहले मुझे ऊपर से नीचे तक घूरा, फिर बहुत अजीब ढंग से बोला, ‘‘अच्छा तो वह ‘वेगनार’ आप की है. अरे, मैडमजी, क्यों इधरउधर गाड़ी खड़ी कर देती हैं आप और परेशानी हम लोगों को होती है.’’

मैं तो चुपचाप श्रेयस के कहे मुताबिक शांति से जुर्माना भर कर अपनी गाड़ी ले जाती लेकिन जिस बुरे ढंग से उस ने मुझ से कहा, वह भला मुझे कहां सहन होने वाला था. श्रेयस कितना सही समझते हैं मुझे, क्योंकि बचपन से अब तक मैं जिस माहौल में रही थी ऐसी किसी परिस्थिति से कभी सामना हुआ ही नहीं था. गुस्से से बोली, ‘‘देखा था मैं ने, वहां कोई ‘नो पार्किंग’ का बोर्ड नहीं था. और भी कई गाडि़यां वहां खड़ी थीं तो उन्हें क्यों नहीं खींच लाए आप लोग. मेरी ही गाड़ी से क्या दुश्मनी है भैया,’’ कहतेकहते अपने गुस्से पर थोड़ा सा नियंत्रण हो गया था मेरा.

इतने में अंदर से एक और पुलिस वाला भी वहां आ पहुंचा. मेरी बात उस ने सुन ली थी. आते ही गुस्से से बोला, ‘‘नो पार्किंग का बोर्ड तो कई बार लगा चुके हैं हम लोग पर आप जैसे लोग ही उसे हटा कर इधरउधर रख देते हैं और फिर आप से भला हमारी क्या दुश्मनी होगी. बस, पुलिस के हाथों जब जो आ जाए. हो सकता है और गाडि़यों में उस वक्त ड्राइवर बैठे हों. खैर, यह तो बताइए कि पेपर्स, लाइसेंस, आर.सी. आदि सब हैं न आप की गाड़ी में. नहीं तो और मुश्किल हो जाएगी. जुर्माना भी ज्यादा भरना पड़ेगा और काररवाई भी लंबी होगी.’’

उस के शब्दों से मैं फिर डर गई मगर ऊपर से बोल्ड हो कर बोली, ‘‘वह सब है. चाहें तो चेक कर लें और जुर्माना बताएं, कितना भरना है.’’

मेरे बोलने के अंदाज से शायद वे दोनों पुलिस वाले समझ गए कि मैं कोई ऊंची चीज हूं. पहले वाला बोला, ‘‘परेशान मत होइए मैडम, ऐसा है कि अगर आप परची कटवाएंगी तो 500 रुपए देने पड़ेंगे और नहीं तो 300 रुपए में ही काम चल जाएगा. आप भी क्या करोगी परची कटा कर. आप 300 रुपए हमें दे जाएं और अपनी गाड़ी ले जाएं.’’

आउटसोर्सिंग-भाग 3 : क्या सुबोध मुग्धा के सपनों को पूरी कर पाया?

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी. जब विवाह निश्चित हो जाए तो हमें बुलाना मत भूलना,’’ तीनों व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोल कर अपनी दुनिया में लौट गए थे.

इधर, मानिनी और राजवंशीजी की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 3 माह बाद ही मुग्धा को आयरलैंड जाना था और एक माह बीतने पर भी कहीं बात बनती नजर नहीं आ रही थी.

यों उन के पास प्रस्तावों का अंबार लग गया था पर उन में से उन के काम के 4-5 ही थे. लड़के वालों को मुग्धा से मिलवाने और अन्य औपचारिकताओं का प्रबंध करते हुए उन के पसीने छूटने लगे थे पर बात कहीं बनती नजर नहीं आ रही थी.

उस दिन प्रतिदिन की तरह मुग्धा अपने औफिस गई हुई थी. राजवंशीजी जाड़े की धूप में समाचारपत्र में डूबे हुए थे कि द्वार की घंटी बजी.

राजवंशीजी ने द्वार खोला तो सामने एक सुदर्शन युवक खड़ा था. वे तो उसे देखते ही चकरा गए.

‘‘अरे बेटे तुम? अचानक इस तरह न कोई चिट्ठी न समाचार? अपने मातापिता को नहीं लाए तुम?’’

‘‘जी उन के आने का तो कोई कार्यक्रम ही नहीं था. मां ने आप के लिए कुछ मिठाई आदि भेजी है.’’

‘‘इस की क्या आवश्यकता थी, बेटा? तुम्हारी माताजी भी कमाल करती हैं. आओ, बैठो, मैं अभी आया,’’ युवक को वहीं बिठा कर वे लपक कर अंदर गए थे.

‘‘जल्दी आओ, जनार्दन आया है,’’ वे मानिनी से हड़बड़ा कर बोले थे.

‘‘कौन जनार्दन?’’ मानिनी ने प्रश्न किया था.

‘‘लो, अब यह भी मुझे बताना पड़ेगा? याद नहीं मुग्धा के लिए प्रस्ताव आया था. विदेशी तेल कंपनी में बड़ा अफसर है. याद आया? उन्होंने फोटो भी भेजा था,’’ राजवंशी ने याद दिलाया.

मानिनी ने राजवंशीजी की बात पर विशेष ध्यान नहीं दिया. वे लपक कर ड्राइंगरूम में पहुंचीं, सौम्यसुदर्शन युवक को देख कर उन की बाछें खिल गईं.

युवक ने उन्हें देखते ही अभिवादन किया. उत्तर में मानिनी ने प्रश्नों की बौछार ही कर डाली, ‘‘कैसे आए? घर ढूंढ़ने में कष्ट तो नहीं हुआ? तुम्हारे मातापिता क्यों नहीं आए? वे भी आ जाते तो अच्छा होता, आदिआदि.’’

युवक ने बड़ी शालीनता से हर प्रश्न का उत्तर दिया. मानिनी उस की हर भावभंगिमा का बड़ी बारीकी से निरीक्षण कर रही थीं. मन ही मन वे उसे मुग्धा के साथ बिठा कर जोड़ी की जांचपरख भी कर चुकी थीं.

इसी बीच राजवंशीजी जा कर ढेर सारी मिठाईनमकीन आदि खरीद लाए थे. मानिनी ने शीघ्र ही चायनाश्ते का प्रबंध कर दिया था.

‘इतना सबकुछ? अंकल, आप को इतनी औपचारिकता की क्या आवश्यकता थी,’ युवक मेज पर फैली सामग्री को देख कर चौंक गया था.

‘‘बेटे, ये सब हमारे शहर की विशेष मिठाइयां हैं. ये खास कचौडि़यां हमारे शहर की विशेषता है,’’ मानिनी प्लेट में ढेर सी सामग्री डालते हुए बोली थीं.

‘‘मेरी मां ठीक ही कहती हैं, हम दोनों परिवारों के बीच जो प्यार है वह शायद ही कहीं देखने को मिले,’’ युवक प्लेट थामते हुए बोला. मानिनी उलझन में पड़ गईं पर शीघ्र ही उन्होंने संशय को दूर झटका और घर आए अतिथि पर ध्यान केंद्रित कर दिया.

‘‘अच्छा, आंटी, अब मैं चलूंगा. आप दोनों से मिल कर बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘अरे, हम ने मुग्धा को फोन किया है, वह आती ही होगी. उस से मिले बिना तुम कैसे जा सकते हो?’’

‘‘उस की क्या आवश्यकता थी? आप ने व्यर्थ ही मुग्धाजी को परेशान किया.’’

‘‘इस में कैसी परेशानी? तुम कौन सा रोज आते हो,’’ राजवंशीजी मुसकराए.

तभी मुग्धा की कार आ कर रुकी. मानिनी और राजवंशीजी लपक कर बाहर पहुंचे. मानिनी उसे पीछे के द्वार से अंदर ले गईं.

‘‘जल्दी से तैयार हो जा. यह जींस टौप बदल कर अच्छा सा सूट पहन ले, बाल खुले छोड़ दे.’’

‘‘क्या कह रही हो मम्मी. किसी से मिलने के लिए इतना सजनेसंवरने की क्या आवश्यकता है?’’

‘‘किसी से नहीं जनार्दन से मिलना है. तू क्या सोचती है बिना बताए वह तुझ से मिलने क्यों आया है?’’

‘‘मुझे क्या पता, मम्मी. मैं आप का फोन मिलते ही दौड़ी चली आई. मुझे लगा किसी की तबीयत अचानक बिगड़ गई है.’’

‘‘तबीयत बिगड़े हमारे दुश्मनों की. मैं जनार्दन के पास जा रही हूं. तुम जल्दी तैयार हो कर आ जाओ,’’ मानिनी फिर ड्राइंगरूम में जा बैठीं.

मुग्धा तैयार हो कर आई तो दोनों पतिपत्नी बाहर चले गए. दोनों एकदूसरे को जानसमझ लें तो बात आगे बढ़े. वे इस तरह घबराए हुए थे मानो साक्षात्कार देने जा रहे हों.

मुग्धा ड्राइंगरूम में बैठे युवक को अपलक ताकती रह गई.

‘‘आप का चेहरा बड़ा जानापहचाना सा लग रहा है. क्या हम पहले कभी मिल चुके हैं?’’ चायनाश्ते की मेज पर रखी केतली से कप में चाय डालते हुए मुग्धा ने प्रश्न किया.

‘‘जी हां, मैं रूपनगर से आया हूं, कुणाल बाबू मेरे पिता हैं,’’ चाय का कप थामते हुए वह युवक बोला.

‘‘कुणाल बाबू यानी दया इंटर कालेज के पिं्रसिपल?’’

‘‘जी हां, मैं उन का बेटा राजीव हूं. यहां अपने वीसा आदि के लिए आया हूं. मां ने आप लोगों के लिए कुछ मिठाई अपने हाथ से बना कर भेजी है.’’

‘‘अर्थात तुम जनार्दन नहीं राजीव हो. मम्मीपापा तुम्हें न जाने क्या समझ बैठे,’’ मुग्धा खिलखिला कर हंसी तो हंसती ही चली गई. राजीव भी उस की हंसी में उस का साथ दे रहा था.

‘‘मैं सब समझ गया. इसीलिए मेरी इतनी खातिरदारी हुई है.’’

‘‘तुम जनार्दन नहीं हो न सही, खातिर तो राजीव की भी होनी चाहिए. तुम ने हमारे यहां आने का समय निकाला यही क्या कम है?’’ कुछ देर में हंसी थमी तो मुग्धा ने कृतज्ञता व्यक्त की.

‘‘आप और मानस मेरी दीदी के विवाह में आए थे. हम ने खूब मस्ती की थी. उस बात को 7-8 वर्ष बीत गए.’’

‘‘तुम से मिल कर अच्छा लगा, आजकल क्या कर रहे हो. तब तो तुम आईआईटी से इंजीनियरिंग कर रहे थे?’’

‘‘जी, उस के बाद एमबीए किया. अब एक मल्टीनैशनल कंपनी में नौकरी मिल गई है. बीच में 3-4 वर्ष एक प्राइवेट कंपनी में था.’’

‘‘क्या बात है. तुम ने तो कुणाल सर का सिर ऊंचा कर दिया,’’ मुग्धा प्रशंसात्मक स्वर में बोली.

‘‘आप से एक बात कहनी थी मुग्धाजी.’’

‘‘कहो न, क्या बात है?’’

‘‘क्या मैं आप के जीवन का जनार्दन नहीं बन सकता? मैं ने तो जब से अपनी दीदी के विवाह में आप को देखा है, केवल आप के ही स्वप्न देखता रहा हूं.’’

मुग्धा राजीव को अपलक निहारती रह गई.

पलभर में ही न जाने कितनी आकृतियां बनीं और बिगड़ गईं. दोनों ने आंखों ही आंखों में मानो मौन स्वीकृति दे दी थी.

मानिनी और राजवंशीजी तो सबकुछ जान कर हैरान रह गए. उन्हें कोई अंतर नहीं पड़ा कि वह जनार्दन नहीं राजीव था. दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था, यही बहुत था.

अगले ही दिन कुणाल बाबू सपत्नीक आ पहुंचे थे. राजवंशीजी और मानिनी सभी आमंत्रित अतिथियों को रस लेले कर सुना रहे थे कि कैसे मुग्धा का भावी वर स्वयं ही उन के दर पर आ खड़ा हुआ था.

कसक: नीरव ने जूही की जिंदगी में कैसे मचा दी उथलपुथल

जूही का मन अचानक 10 वर्षों बाद नीरव को देख कर अशांत हो उठा था. 10 वर्षों पहले का वाकेआ उस की आंखों के सामने तैरने लगा. ठंड की भरी दोपहरी में हाथपैर सुन्न पड़ते जा रहे थे. वह तो अपनी सहेली के घर एक छोटे से फंक्शन में आई थी पर यों अचानक नीरव यहां टकरा जाएगा, उस ने कभी सोचा भी न था.

जूही न चाहते हुए भी नीरव के विषय में सोचने को मजबूर हो गईर् थी. ‘क्यों मुझे बिना कुछ कहे छोड़ गया था वह? क्यों मुझे एहसास कराया उस ने अपने प्यार का? क्यों कहा था कि मैं हमेशा साथ दूंगा? आखिर क्या कमी थी मुझ में? ‘कितने झूठे हो न तुम… डरपोक कहीं के.’ आज भी इस बात को सोच जूही के चेहरे पर दर्द की गहरी रेखा उभर गई थी, पर दूसरे ही क्षण गुस्से के भाव से पूरा चेहरा लाल हो गया था. फिर वही सवाल जेहन में आने लगे कि वह मुझे क्यों छोड़ गया था? आज क्यों फिर मुझ से मिलने आ गया? यों सामने आए सौरव को देखते ही मन में बेचैनी और सवालों की झड़ी लग गई थी.

जूही ने दोबारा उस कागज के टुकड़े को खोला और पढ़ा. नीरव ने केवल 2 लाइनें लिखी थीं, ‘प्लीज, एक बार बात करना चाहता हूं. यह मेरा मोबाइल नंबर है… हो सके तो अपना नंबर एसएमएस कर दो.’

यही पढ़ कर जूही बेचैन थी और सोच रही थी कि अपना मोबाइल नंबर दे या नहीं. क्या इतने वर्षों बाद कौल करना ठीक रहेगा? इन 10 वर्षों में क्यों कभी उस ने मुझ से मिलने या बात करने की कोशिश नहीं की? कभी मेरा हालचाल भी नहीं पूछा. मैं मर गई हूं या जिंदा हूं, किस हाल में हूं.  कभी कुछ भी तो जानने की कोशिश नहीं की उस ने. फिर क्यों वापस आया है? सवाल कई थे पर जवाब एक का भी नहीं था.

जाने क्या सोच मैं ने अपना नंबर लिख भेजा. 10 वर्षों पहले सहेली के घर गई थी, वहीं मुलाकात हुई थी. सहेली का रोका था. सब लोगों के बीच जो छिपछिप कर वह मुझे देख रहा था, शायद पहली नजर में ही वह मुझे भा गया था पर… न ही उस ने कुछ कहा न मैं ने. पूरे फंक्शन में वह मेरे आगेपीछे घूमता रहा. लेकिन जब चलने का समय हुआ तो अचानक चला गया था. न तो उस ने मुझे बाय बोला न ही कुछ… मन ही मन मैं ने उस को खूब गालियां दीं.

उस मुलाकात के बाद तो मिलने की उम्मीद भी नहीं थी. न उस ने जूही का नंबर लिया न ही जूही ने उस का. ऐसी तो पहली मुलाकात थी जूही और नीरव की. कितनी अजीब सी… जूही सोचसोच कर मुसकरा रही थी.  नीरव से हुई मुलाकात ने जूही के पुराने मीठे और दर्द भरे पलों को हरा कर दिया था.

एक दिन सहेलियों के साथ पैसिफिक मौल में मस्ती करते हुए नीरव से मुलाकात हो गई. वह मुझे बेबाकी से मिला. बात ही बात में उस ने मेरा नंबर और पता ले लिया.

अगले दिन शाम को घर पर बेतकल्लुफी के साथ वह हाजिर भी हो गया था. सारे घर वालों को उस ने सैल्फ इंट्रोडक्शन दिया और ऐसे घुलमिल गया जैसे सालों से हम सब से जानपहचान हो. जूही यह सब देख हैरान भी थी और कहीं न कहीं उसे एक अजीब सी फीलिंग भी हो रही थी. बहुत मिलनसार स्वभाव था उस का. मां, पापा और जूही की छोटी बहन तो उस की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. वास्तव में उस का स्वभाव, हावभाव सबकुछ कितना अलग और प्रभावपूर्ण था. जूही उस के साथ बहती चली जा रही थी.

वह फैशन डिजाइनर बनना चाहता था. निट के फाइनल ईयर में था. उस से मेरी अच्छी दोस्ती हो गईर् थी. रोज आनाजाना होने लगा था. जूही के परिवार के सभी लोग उसे पसंद करते थे. धीरेधीरे उस ने जूही के दिल में भी खास जगह बना ली थी. जूही जब उस के साथ होती तो उसे लगता ये पल यहीं थम जाएं. उस के साथ बिताए पलों की याद में वह खोई सी रहती थी. जूही को यह एहसास हो गया था कि नीरव के दिल में भी जूही के लिए खास फीलिंग्स हैं. अब तक उस ने जूही से अपनी फीलिंग्स बताई नहीं थीं.

नीरव और जूही का कालेज एक ही रास्ते पर पड़ता था. इसलिए नीरव अकसर जूही को घर छोड़ने आया करता था. और तो और, जूही को भी उस के साथ आना अच्छा लगता था. रास्तेभर वे बातें करते व उस की बातों पर जूही का हंसना कभी खत्म ही नहीं होता था. वह अकसर कहा करता था, ‘जूही की मुसकराहट उसे दीवाना बना देती है.’ इस बात पर जूही और खिलखिला कर हंस पड़ती थी.

आज भी जूही को याद है, नीरव ने उसे 2 महीने बाद उस के 22वें बर्थडे पर प्रपोज किया था. औसतन लोग अपनी चाहत को, गुलदस्ते या उपहार के साथ दर्शाते हैं, पर उस ने जूही के हाथों में एक छोटा सा कार्ड रखते हुए कहा था, ‘क्या तुम अपनी जिंदगी का सफर मेरे साथ करना चाहोगी?’ कितनी दीवानगी थी उस की बातों में.

जूही उसे समझने में असमर्थ थी. यह कहतेकहते नीरव उस के बिलकुल नजदीक आ गया और जूही का चेहरा अपने हाथों में थामते हुए उस के होंठों को अपने होंठों से छूते दोनों की सांसें एक हो चली थीं. जूही का दिल जोरों से धड़क रहा था. खुद को संभालते हुए वह नीरव से अलग हुई. दोनों के बीच एक अजीब मीठी सी मुसकराहट ने अपनी जगह बना ली थी. कुछ देर तो जूही वहीं बुत की तरह खड़ी रही थी. जब उस ने जूही का उत्तर जानने की उत्सुकता जताई तो जूही ने फौरन हां कह दी थी. उस रात जूही एक पल भी नहीं सोई थी. वह कई विषयों पर सोच रही थी जैसे कैरियर, आगे की पढ़ाई और न जाने कितने खयाल उस के दिमाग में आते. नींद आती भी कैसे, मन में बवंडर जो मचा था. तब जूही मात्र 22 वर्ष की ही तो थी फाइनल ईयर में थी. नीरव भी केवल 25 वर्ष का था. उस ने अभी नौकरी के लिए अप्लाई किया था.

इतनी जल्दी शायद नीरव भी शादी नहीं करना चाहता था. वह मास्टर्स करना चाहता था. पर जूही उसे यह बताना चाहती थी कि वह उस से बेइंतहा मुहब्बत करती है और हां, जिंदगी का पूरा सफर उस के साथ ही बिताना चाहती है, इसलिए उस ने नीरव को कौल किया. तय हुआ कि अगले दिन जीआईपी मौल में मिलेंगे. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. यह बात जूही के मन में ही रह गई थी, कभी उस से बोल नहीं पाई.

जैसा कि दोनों ने तय किया था अगले दिन जूही तय समय पर वहां पहुंच गई. वहां पहुंच कर नीरव का फोन मिलाया तो फोन स्विचऔफ आ रहा था. वह वहीं उस का इंतजार करने बैठ गई थी. आधे घंटे बाद फिर फोन मिलाया. तब भी फोन औफ ही आ रहा था.

जूही काफी परेशान और विचलित थी पर उस ने सोचा, शायद कोईर् जरूरी काम में फंसा होगा. वह उस का इंतजार करती रही. इंतजार करतेकरते काफी देर हो गई पर वह नहीं आया. उस के बाद उस का फोन भी कभी औन नहीं मिला. 2 वर्षों तक जूही उस का इंतजार करती रही पर कभी उस ने उसे एक भी कौल नहीं किया.

इन 2 सालों में उस ने मम्मीपापा से अपने दिल की बात बताई तो उन्होंने भी नीरव को मैसेज किया. पर कब तक वे इंतजार करते. आखिर, थक कर उन्होंने जय से जूही की शादी करवा दी. जूही भी कुछ नहीं कह पाई. जय एक औडिटिंग कंपनी चलाता था. उस के मातापिता उस के साथ ही रहते थे. जूही विवाह के बाद सबकुछ भूलना चाहती थी और नए माहौल, नए परिवार में ढलना चाहती थी. पर शायद सोचा हुआ काम कभी पूरा नहीं होता.

शादी के बाद कितने साल लगे थे जूही को उसे भूलने में पर ठीक से भूल भी तो नहीं पाई थी. कहीं न कहीं किसी मोड़ पर तो हमेशा उसे नीरव की याद आ ही जाया करती थी. आज अचानक क्यों आया है? और क्या चाहता है?

जूही की सोच की कड़ी को तोड़ते हुए तभी अचानक फोन की घंटी बजी, एक अनजाना नंबर था. दिल की धड़कनें तेज हो चली थीं. जूही को लग रहा था, ‘हो न हो, यह नीरव की कौल हो.’ वह एक आवेग सा महसूस कर रही थी. कौल रिसीव करते हुए उस ने ‘‘हैलो,’’ कहा तो दूसरी ओर नीरव ही था.

नीरव ने अपनी भारी आवाज में कहा, ‘‘हैलो, आप…’’ इतने सालों बाद भी नीरव की आवाज जूही के कानों से होते हुए पूरे शरीर को झंकृत  कर रही थी.

खुद को संभालते हुए जूही ने कहा, ‘‘जी, मैं जूही. आप कौन?’’ उस ने पहचानने का नाटक करते हुए कहा. नीरव ने अपने अंदाज में कहा, ‘‘तुम तो मुझे भूल ही गईं, मैं नीरव.’’

‘‘ओह, नहीं, ऐसा नहीं है. ऐसे कैसे हो सकता है?’’ फिर जूही ने घबराहट भरी आवाज में कहा, ‘‘तुम भूले या मैं?’’

जूही के दिमाग में काफी हलचल थी, इस का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था. यह नीरव के लिए उस का प्यार था या नफरत. मिलने का उत्साह था या असमंजसता थी. एक मिलाजुला मिश्रण था भावों का, जिस की तीव्रता सिर्फ जूही ही महसूस कर सकती थी.

कभीकभी यह समझना कितना मुश्किल हो जाता है न कि आखिर किसी के होने का हमारे जीवन में इतना असर क्यों हो जाता है. जूही भी एक असमंजसता से गुजर रही थी. खुद को रोकना चाहती थी पर धड़कन थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. नीरव ने आगे कहना शुरू किया, ‘‘इतने सालों बाद तुम्हें देखा, बहुत अच्छा लगा, कल तुम बहुत खूबसूरत लग रही थीं.’’

जूही अब भी एक गहरी सोच में डूबी हुई थी और एक हलकी मुसकान के साथ उस ने कहा, ‘‘थैंक्स, मैं भी तुम से मिल कर खुश हुई. इनफैक्ट, सरप्राइज्ड भी हुई.’’

नीरव भांप गया था, जूही के कहने का क्या तात्पर्य था. उस ने कहा, ‘‘क्या तुम ने अब तक मुझे माफ नहीं किया. मैं जानता हूं कि तुम से वादा कर मैं आ न सका.’’

जूही ने कहा, ‘‘10 साल कोई कम तो नहीं होते. माफ कर दूं? मैं आज तक अपने को ही माफ नहीं कर पाई.’’

उस की बात से व्यंग्य साफ झलक रहा था. ‘‘कैसे करूं तुम्हें माफ, क्या तुम लौटा सकते हो बीता वक्त? मैं ने ही नहीं, मेरे मातापिता दोनों ने भी तुम्हारे जवाब का, तुम्हारा बहुत इंतजार किया. क्या दोष था, उन का? यही न कि उन्होंने तुम्हारे साथ मेरे सुखी जीवन की चाह की, मेरे सपनों को सच करना चाहा. और तुम ने क्या किया? मैं जानना चाहती हूं, क्या हुआ था तुम्हारे साथ? क्यों नहीं आए तुम.’’

जूही की आवाज से नाराजगी साफ झलक रही थी. अपने को संभालते हुए नीरव ने कहा, ‘‘मैं तुम से प्यार करता था, करता हूं और करता रहूंगा. तुम से तो इजहार कर दिया था पर दुनिया के सामने अपना प्यार कुबूल करने की हिम्मत नहीं कर पाया.

‘‘अगले दिन तुम से मिलने आने से पहले सोचा, क्यों न दिल की बात अपने घर वालों को भी बता दूं. मां तो सुनते ही नाराज हो गईं और बाकी सब ने चुप्पी साध ली. मां कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थीं. अपनी कसम दे कर उन्होंने मुझे आने से रोक दिया. अगले दिन ही मुझे पढ़ने के लिए बाहर भेज दिया गया. मुझ में इतनी हिम्मत नहीं थी कि परिवार से अलग हो जाऊं और न ही तुम्हारे सवालों का सामना करने की हिम्मत मुझ में थी. बाद में पता चला कि मेरी मां बहुत पहले ही मेरा रिश्ता तय कर चुकी थीं.

उन्होंने मेरे सुनहरे भविष्य के लिए बहुत से सपने बुन रखे थे और ये सारी चीजें आपस में इतनी उलझी हुई थीं कि उन्हें सुलझाने का वक्त ही नहीं मिला. और तो और, मां इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं होंगी, मैं जानता था. उन्होंने अपनी कसम दे कर मेरे पैर रोक दिए थे. उन्हें उस वक्त मैं कह ही नहीं पाया कि मैं अपनी जिंदगी वहीं छोड़ आया हूं. उस वक्त मैं ने चुप रहना ही ठीक समझा था या यह कह लो, मैं डर गया था.

‘‘जब तक हिम्मत आई, पता चला तुम्हारा रिश्ता हो चुका है. तुम्हारा मोबाइल औफ होने की वजह से तुम तक खबर पहुंचाना भी मुश्किल था. तुम नए बंधन अपना चुकी थीं. मैं जानता हूं तुम अपनी जिंदगी से खुश नहीं हो. इस बंधन में खुश नहीं हो, शायद इस का कारण मैं हूं.’’

‘‘हां, इन सब बातों के कोई माने नहीं अब, नीरव. किस जिंदगी की बात कर रहे हो, वह जिसे तुम जानते थे. वह तो तभी खत्म हो गई थी जब तुम बीच में ही छोड़ कर चले गए थे. और अब यह जिंदगी कर्जदार है उन 2 मासूमों की, जिन्हें मैं ने जन्म दिया है,’’ रोते हुए जूही ने कहा.

‘‘क्या हम फिर से आगे नहीं सोच सकते, जूही’’? नीरव ने पूछा.

‘‘फिर… यह कैसा सवाल है? अब 2 प्यारीप्यारी जिंदगियां भी जुड़ी हुई हैं मुझ से. मैं एक बार अपनेआप को धोखा दे चुकी हूं, लेकिन अब सब को धोखा देना होगा और सारी बातें छोड़ो, क्या अब है तुम में हिम्मत, सब का सामना करने की? अरे, जो तब नहीं कर पाया वह आज कहां से हिम्मत करेगा? मुझे नहीं मालूम था कि तुम इतने डरपोक हो. मैं लड़की हो कर भी हिम्मत कर पाई उस समय, और तुम… बहुत इंतजार किया तुम्हारा और तुम्हारे जवाब का.’’

नीरव की आवाज भारी हो गई थी और अपने को संभालते हुए वह बोला, ‘‘क्या तुम अपनी इस जिंदगी से खुश हो?’’

‘‘यही सवाल मैं करूं तो,’’ जूही ने कहा.

‘‘शायद नहीं, बस, जी रहा हूं. एक बीवी है, बेटी है. अच्छी है. बस, वह मेरा प्यार नहीं है. दिल में एक खालीपन है. पर उस खालीपन को भरा नहीं जा सकता, यही हकीकत है,’’ नीरव बोला.

‘‘नीरव, कितनी अजीब सी बात है न, जो हम चाहते हैं वह मिलता नहीं और जो मिलता है उसे हम चाहते नहीं,’’ कहते हुए जूही सुबकने लगी थी. कोशिश तो बहुत की थी कि रोक ले इन आंसुओं के सैलाब को, पर… इतने सालों से वही तो कर रही है. दुनिया में 2 तरह के लोग होते हैं, एक वे जो प्यार के लिए सबकुछ छोड़ दें, और दूसरे वे जो सब के लिए प्यार को छोड़ दें. तुम दूसरी तरह के लोगों में आते हो. तुम ने भी तो सुनहरे सपने और कैरियर को ही चुना था, क्यों?’’ जूही ने आगे कहा.

‘‘तुम सही कह रही हो. पर एक सच यह भी है कि आप की जेब में रुपए न हों और आप का बच्चा या परिवार का सदस्य दर्द से तड़प रहा हो, तब प्यार तो नहीं परोस सकते, लेकिन तुम्हें कभी भुला नहीं पाया.’’

फिर जिंदगी की आपाधापी में उलझता ही चला गया. पर तुम हमेशा याद आती रहीं. हमेशा सोचता था कि तुम क्या सोचती होगी मेरे बारे में, इसलिए तुम से मिल कर तुम्हें सब बताना चाहता था. काश, मैं इतनी हिम्मत पहले दिखा पाता. उस दिन जब हम मिलने वाले थे तब तुम मुझ से कुछ कहना चाहती थी न, आज बोल दो, क्या बताना था.

जूही को भी तो यह सब जानना था. वह तय नहीं कर पा रही थी कि नीरव को धोखेबाज कहे या इसे उस की मजबूरी माने. जूही ने कहा, ‘‘वह जो मैं तुम से कहना चाहती थी उन बातों का अब कोई वजूद नहीं.’’

जूही ने अपने जज्बातों को अपने अंदर ही दफनाने का फैसला किया था. एक फीकी सी मुसकराहट के साथ जूही ने कहा, ‘‘तुम से बात कर के अच्छा लगा.’’ अब शायद आंसुओं का सैलाब और हिचकियों का तूफान उसे बात नहीं करने दे रहा था. अंत में सिर्फ अच्छा कह कर उस ने बातों के सिलसिले पर पूर्णविराम लगाना चाहा. शायद सवाल तो बहुत से थे जेहन में पर उन सवालों का अब कोई औचित्य नहीं था.

नीरव ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘सुनो, एक वादा करो कि तुम हमेशा खुश रहोगी. करो वादा.’’

‘‘वादा तो नहीं पर कोशिश करूंगी,’’ जूही रोए जा रही थी और उसी पल कौल डिस्कनैक्ट हो गई.

इस की क्या जरूरत है-भाग 2: अमित अपने परिवार और दोस्तों से क्यों कट रहा था?

एक बार तो दरवाजे पर ताला दिखाई दिया था तो दूसरी बार बहुत देर तक बेल बजाने के बाद भी फ्लैट का दरवाजा नहीं खुला तो रमाकांत हताश हो कर लौट आए थे. फोन पर जरूर सप्ताह में 1-2 बार अमित से रमाकांत की बात हो जाती थी. धीरेधीरे दोनों के बीच बातचीत भी कम हो गई। अब व्हाट्सऐप पर कभीकभार संदेशों का आदानप्रदान होने लगा. अमित कभी रमाकांत से मिलने के लिए उन के घर नहीं जाता था.

करीब 2 साल के बाद एक दिन अचानक अमित रमाकांत के घर पहुंचा, रमाकांत को बहुत ताज्जुब हुआ। “अंकल, यह लो मुंह मीठा करो…”

“किस खुशी में मिठाई खिला रहो हो अमित…” रमाकांत ने पूछा.
“अंकल, मैं शादी कर रहा हूं।”

“ वाह, बधाई हो। कहां की लड़की है? आलोक और मोहिनी ने पसंद की या तुम्हारी अपनी पसंद है?” रमाकांत ने जिज्ञासा व्यक्त करते हुए पूछा.

“अरे, अंकल इस की क्या जरूरत है… एक साईट पर उस को देखा था, फिर चैटिंग शुरू हो गई। उस ने अपना वीडियो भेजा और मैं ने अपना। बस, हम एकदूसरे को पसंद आ गए. हम दोनों के प्रोफाइल भी मैच हो गए, बस बात फाइनल हो गई.“

“वाह, यह तो बहुत अच्छी बात है, अमित। अब एक बार ‘अपनी पसंद’ के साथ गांव चले जाओ, ताकि आलोक और मोहिनी भी ‘तुम्हारी पसंद’ देख लें.”

“इस की क्या जरूरत है अंकल, मैं ने व्हाट्सऐप पर नेहा की तसवीर भेज दी है और मम्मीपापा को नेहा का प्रोफाइल भी ईमेल से भेज दिया है…”

“वह तो ठीक है, पर एक बार नेहा को ले कर गांव चले जाते तो आलोक और मोहिनी को अच्छा लगता और दोनों अपनी होने वाली बहू को देख लेते…”

अमित बीच में ही रमाकांत की बात काटते हुए मुसकरा कर बोला, “अंकल, अभी तक तो हम दोनों भी एकदूसरे से नहीं मिले हैं, बस वीडियो कौल करते रहते हैं. अभी हम दोनों इतने व्यस्त हैं कि हम गांव नहीं जा सकते हैं, फिर मम्मीपापा शादी में आएंगे तब नेहा को देख ही लेंगे न…”

रमाकांत आश्चर्यचकित हो कर अमित की बातें सुन रहे थे। थोड़े से विराम के बाद पूछा,”ठीक है, पर शादी के कार्ड वगैरह कौन छपवा रहा है? तुम और नेहा बहुत बिझी हो तो आलोक यह काम कर सकता है। मेरे बेटे की शादी का कार्ड आलोक ने ही पसंद किया था। आलोक द्वारा पसंद किया हुआ कार्ड सभी को बहुत अच्छा लगा था. आलोक की चौइस बहुत लाजवाब है अमित.”

“ओह, अंकल, आप किस जमाने में जी रहे हैं…आज इतना समय किस के पास है कि बाजार में जा कर 10 दुकानों पर शादी के कार्ड पसंद करते हुए दिनभर घूमते रहें। अंकल, व्हाट्सऐप पर सभी को इन्वीटेशन भेज दूंगा…”

“और शौपिंग? फिर नेहा के साथ सिनेमा, नाटक आदि देखना, चौपाटी पर घूमना… भेलपूरी खाना…” रमाकांत ने मजाकिया मूड में पूछा.

“अंकल, आप भी न… कैसे आउटडेटेड सवाल पूछ रहे हैं…आजकल शौपिंग के लिए कौन बाजार में थैले लटकाए घूमता है, हम तो औनलाइन शौपिंग करने वाले हैं. हम नई फिल्म रिलीज होते ही डाउनलोड कर लेते हैं फिर जब समय मिलता है तब आराम से देख लेते हैं. अंकल, आजकल नाटक, सिनेमा सबकुछ यूट्यूब पर मिल जाते हैं, बाहर जा कर देखने की क्या जरूरत है और चौपाटी पर घूमने के लिए वक्त किस के पास है।

“मैं ने बताया न कि हम दोनों के पास बिलकुल समय नहीं है, दोनों अपनीअपनी कंपनी के एक बहुत ही जरूरी प्रोजैक्ट में बिजी हैं.“

रमाकांत कुछ और पूछने के मूड में थे मगर तभी अमित घड़ी देखते हुए उछल पड़ा,”ओह, मेरी पोस्ट लंच वेब मिटिंग का टाइम हो गया है। नाऊ आई हेव टू फ्लाई अंकल.”

रमाकांत की समझ में कुछ आए, इस से पहले अमित धनुष से छूटे तीर की तरह घर से बाहर निकल गया. कुछ ही दिनों बाद रमाकांत को व्हाट्सऐप पर अमित की शादी का आमंत्रण मिला. रमाकांत और शिल्पी विवाह समारोह में पहुंचे तो उन्हें बहुत ताज्जुब हुआ। शादी में केवल 25-30 लोग ही उपस्थित थे. रमाकांत की नजरें आलोक और मोहिनी के ढूंढ़ रही थीं, दोनों एक कोने में रखे सोफे पर मेहमानों की तरह बैठे हुए थे। रमाकांत को देखते ही आलोक के शुष्क अधरों पर धीमी सी मुसकराहट ऐसे फैल गई मानो किसी ने उन्हें जबरदस्ती से मुसकराने के लिए कह दिया हो. इस समय रमाकांत ने आलोक से केवल औपचारिक बात करना उचित समझा.

रमाकांत और आलोक के बीच बात हो ही रही थी कि अमित आ गया.
अमित को देख कर रमाकांत ने कहा,”अमित, शादी में बस इतने ही लोग… इतने तो हमारे घर के ही हो जाते हैं. तुम्हें शायद याद होगा कि अतुल के विवाह में 1,100 लोग आए थे, हमारे कुछ रिश्तेदार और दोस्त किसी कारणवश आ नहीं सके थे वरना 100-200 लोग और बढ़ जाते.”

“अंकल, बहुत से रिश्तेदारों और दोस्तों ने मेरे व्हाट्सऐप निमंत्रण को देख कर शुभकामनाएं और बधाई संदेश व्हाट्सऐप से ही भेज दिए हैं। शायद उन्हें बुरा लगा होगा, पर क्या करें, आजकल समय किस के पास है. अंकल, इस हाइटेक युग में हरेक के घर जा कर निमंत्रण देना मुझे तो प्रैक्टिकल नहीं लगता है. मेरा यह मानना है कि शादी का मतलब किसी मेले का आयोजन करना तो नहीं है जहां केवल लोगों की भीड़ ही भीड़ नजर आएं।“

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