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फरवरी महीने में खेती-किसानी के काम

फरवरी माह में सर्दी कम होने लगती है और इस समय कई बार तेज हवाएं चलने लगती हैं, इसलिए गेहूं की फसल में सिंचाई करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि ज्यादा तेज हवाएं न चल रही हों. उन के थमने का इंतजार करें और मौसम ठीक होने पर ही खेत की सिंचाई करें. हवा के फर्राटे के बीच सिंचाई करने से पौधों के उखड़ने का पूरा खतरा रहता है. 15 फरवरी के बाद गन्ने की बोआई का सिलसिला शुरू किया जा सकता है. बोआई के लिए गन्ने की ज्यादा पैदावार देने वाली किस्मों का चुनाव करना चाहिए.

किस्मों के चयन में अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से मदद ली जा सकती है. गन्ने का जो बीज इस्तेमाल करें, वह बीमारी से रहित होना चाहिए. बोआई से पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए. बोआई के लिए 3 पोरी व 3 आंख वाले गन्ने के स्वस्थ टुकड़े बेहतर होते हैं. मटर की फसल की देखभाल भी जरूरी है. मटर की फसल में चूर्णिल आसिता रोग के कारण पत्तियों और फलियों पर सफेद चूर्ण सा फैल जाता है. रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देते ही उस का उचित निदान करें और कृषि माहिरों की राय ले कर दवा का छिड़काव करें.

यह महीना लोबिया, राजमा जैसी फसलों की बोआई के लिए मुफीद होता है. अगर इन की खेती करने का इरादा हो, तो इन की बोआई निबटा लेनी चाहिए. यह महीना बैगन की रोपाई के लिहाज से भी मुफीद होता है. लिहाजा, उम्दा नस्ल का चयन कर के बैगन की रोपाई निबटा लें. बैगन की उम्दा फसल के लिए रोपाई से पहले खेत की जुताई कर के उस में खूब सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद भरपूर मात्रा में मिलाएं. इस के अलावा खेत में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस और 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डाल कर अच्छी तरह मिला दें. बैगन के पौधों की रोपाई भी सूरज ढलने के बाद यानी शाम के वक्त ही करें, क्योंकि सुबह या दोपहर में रोपाई करने से धूप की वजह से पौधों के मुरझाने का डर रहता है. रोपाई करने के फौरन बाद पौधों की हलकी सिंचाई करें.

फरवरी महीने में ही मैंथा की बोआई भी निबटा लेनी चाहिए, वहीं मिर्च की खेती के लिए इस समय पौध रोपाई की जा सकती है. गरमी के मौसम की मिर्च की रोपाई फरवरीमार्च माह में करना अच्छा रहता है. मिर्च की उन्नत किस्म काशी अनमोल, काशी विश्वनाथ, जवाहर मिर्च-283, जवाहर मिर्च-218, अर्का सुफल और संकर किस्म काशी अर्ली, काशी सुर्ख या काशी हरिता शामिल हैं, जो ज्यादा उपज देती हैं. ग्रीष्मकालीन भिंडी की खेती के लिए बोआई का सही समय अभी है. ग्रीष्मकालीन भिंडी की बोआई फरवरीमार्च में की जा सकती है. भिंडी की उन्नत किस्मों में पूसा ए-4, परभनी क्रांति, पंजाब-7, अर्का अभय, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, वीआरओ-6 (इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है).

टमाटर की खेती भी वर्ष में 2 बार की जाती है. शीत ऋतु के लिए इस की बोआई जनवरीफरवरी माह में की जाती है. इस के एक हेक्टेयर क्षेत्र में फसल उगाने के लिए नर्सरी तैयार करने के लिए 350 से 400 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है. संकर किस्मों के लिए बीज की मात्रा 150-200 ग्राम प्रति हेक्टेयर ली जानी चाहिए. टमाटर की उन्नत किस्मों में देशी किस्म पूसा रूबी, पूसा-120, पूसा शीतल, पूसा गौरव, अर्का सौरभ, अर्का विकास, सोनाली और संकर किस्मों में पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड -2, पूसा हाइब्रिड -4, अविनाश-2, रश्मि और निजी क्षेत्र से शक्तिमान, रैड गोल्ड, 501, 2535 उत्सव, अविनाश, चमत्कार, यूएस 440 आदि हैं. सूरजमुखी की खेती भी अधिक मुनाफा देने वाली फसलों में आती है. सूरजमुखी की फसल 15 फरवरी तक लगाई जा सकती है. इस की फसल की बोआई करते समय इस के बीजों की पक्षियों से रक्षा करना बेहद जरूरी है.

इस की संकर किस्में बीएसएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-19, सूर्या आदि शामिल हैं. इस की बोआई करने से पूर्व खेत में भरपूर नमी न होने पर पलेवा लगा कर जुताई करनी चाहिए. 2-3 बार जुताई कर के खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए या रोटावेटर का इस्तेमाल करना चाहिए. इस की बोआई कतार में करें तो अच्छा रहता है. निराईगुड़ाई भी यंत्रों द्वारा की जा सकती है. बोआई से पूर्व 7-8 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद तैयारी के समय खेत में मिलाएं आम के बगीचों का मुआयना करें. इन दिनों आम में चूर्णिल आसिता रोग लगने का काफी अंदेशा रहता है. लिहाजा, कैराथेन दवा का छिड़काव करें.

अनेक बीमारियों के साथसाथ इन दिनों आम के पेड़ों को कुछ कीटों का भी खतरा रहता है. अगर ऐसा हो तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के बागबानी वैज्ञानिक की राय ले कर कीटों व बीमारी का निबटारा करें. ऐसा करने से आम के पेड़ महफूज रहेंगे. आम के साथसाथ सदाबहार फल केले के बागों का खयाल रखना भी लाजिम है. बाग में फैली तमाम सूखी पत्तियां बटोर कर खाद के गड्ढे में डाल दें. बाग की बाकायदा सफाई के बाद 15 दिनों के फासले पर 2 दफे सिंचाई भी करें. केले की उम्दा फसल हासिल करने के लिए बाग की निराईगुड़ाई करने के बाद पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन व पोटाश वाली खादें डालें. केले के पेड़ों पर अगर किसी बीमारी या कीटों का हमला नजर आए, तो तुरंत उस का इलाज फल वैज्ञानिक की राय के मुताबिक करें. इस महीने नीबू नस्ल के पौधों के लिए बोआई करना मुनासिब रहता है.

लिहाजा, नीबू, संतरा व मौसमी वगैरह के बीजों की बोआई पौधशाला में की जा सकती है. साथ ही, पौधशाला में कली बांधने का काम भी निबटाएं. आमतौर पर फरवरी महीने तक ठंड का मौसम काफी हद तक कम सा हो जाता है. लिहाजा, कई पशुपालक लापरवाह हो जाते हैं और अपने मवेशियों को सर्दी से बचाने के उपाय बंद कर देते हैं. मगर ऐसा करना अकसर काफी घातक साबित होता है. लिहाजा, सावधान रहें. हकीकत तो यह है कि जाती हुई सर्दी इनसानों के साथसाथ जानवरों को भी बीमार करने वाली होती है, इसलिए सर्दी से बचाव के उपाय एकदम से बंद न कर के धीरेधीरे बंद करें. पशुपालक अपने पशुओं की देखभाल का भी ध्यान रखें. अपने मुरगेमुरगियों के मामले में भी चौकन्ने रहें, ताकि वे बीमार न होने पाएं. गाय या भैंस हीट में आए, तो उसे पशु चिकित्सक के जरीए गाभिन कराने में लापरवाही न बरतें. समय पर टीकाकरण करवाएं. साथ ही, सरकार द्वारा समयसमय पर आने वाली लाभदायक योजनाओं का भी ध्यान रखें और उन का लाभ उठाएं.

बलात्कार पर रोक: पावरफुल औरतों के हाथों में

महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम कानून बन जाने के बावजूद महिला हिंसा कम नहीं हो रही. इस का एक कारण वह मानसिकता है जो सदियों से महिलाओं को नियंत्रण करने की कोशिश में रहती है. 2012 में देश में उस समय की कांग्रेस सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में दिल्ली के निर्भया कांड की प्रमुख भूमिका थी. 2019 में तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में बलात्कार की घटनाओं ने सरकार को खलनायक बना दिया था. यह तो कोरोना का प्रकोप था कि बात आईगई हो गई लेकिन देश की हर लड़की खासतौर पर गांवों की जहां एक बार महिलाओं के खिलाफ हिंसा मुख्यधारा में है.

देश में बलात्कार का मुद्दा बहुत पुराना है. इस के लिए इंटरनैट, फिल्में और फैशनेबल ड्रैसेज को जिम्मेदार बताना बेमानी बात है. जिस समय समाज में यह सब नहीं था तब भी बलात्कार की घटनाएं होती थीं. बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि का कारण जनसंख्या और ऐसी घटनाओं पर संज्ञान लेना है. अगर बलात्कार के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट समय पर दर्ज हो और समय पर कानून फैसला कर दे तो अपराधियों में डर बैठेगा. बलात्कार के मामलों में दुरुपयोग रोकने के लिए फर्जी शिकायत करने वालों के खिलाफ भी कड़ा कानून बने. देश में महिला हिंसा 2012 की तरह फिर से मुख्य धारा में है. 2012 में दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था, जिस में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की रहने वाली निर्भया के साथ दिल्ली में वीभत्स तरीके से बलात्कार हुआ.

इस के बाद उस की मौत हो गई. निर्भया कांड ने देश के सामाजिक और राजनीतिक माहौल को बदलने का काम किया. 2013 में महिला हिंसा कानून आया, जिस में महिलाओं से हिंसा करने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया. 2014 में भाजपा की अगुआई वाली एनडीए की सरकार बन गई. नरेंद मोदी देश के नए प्रधानमंत्री बने. महिला हिंसा, खासकर बलात्कार के जुर्म में शामिल नाबालिग आरोपियों की उम्र 18 साल से घटा कर 16 साल कर दी गई. महिला हिंसा के कड़े कानून के बाद भी बलात्कार जैसी घटनाओं में कमी नहीं आई क्योंकि एक वर्ग को यह बारबार पढ़ाया गया है कि कुछ जातियों का काम सेवा करना है और अगर उन की लड़कियों ने इच्छा से सेवा नहीं की तो जबरदस्ती कर लो. 2014 में सत्ता बदलने के बाद भी बलात्कार की घटनाओं में नेताओं की संलिप्तता चौंकाने वाली रही. किसी एक दल के नेता पर ही ऐसे मामले नहीं हैं. हर दल के नेताओं के खिलाफ ऐसे मामले प्रकाश में आए.

सत्ताधारी दल के लिए अपना बचाव करना बेहद मुश्किल हो जाता है जब उस के दल के लोगों का हाथ ऐसे मामलों में दिखता है. केंद्र और उत्तर प्रदेश में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी के लिए यह बेहद शर्मनाक रहा जब उस के विधायक कुलदीप सेंगर और पूर्व केंद्रीय गृहराज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद ऐसे मामलों में सामने आए. बलात्कार जैसी घटनाओं का प्रयोग चुनावी लाभ के लिए भी किया जाता है क्योंकि यह मुद्दा औरतों से जुड़ा होता है. हर राजनीतिक दल और उस के समर्थक अपने लाभ व हानि के हिसाब से बलात्कार की घटना पर अपना रोष प्रकट करते हैं.

अब बलात्कार करना और बाद में लड़की को मार कर लाश जला देने की नई तरकीब निकाल दी गई है ताकि कोई शिकायत वाला न रहे. अब चूंकि स्कूलों में सहशिक्षा है, आपसी मेलजोल तो हो जाता है और जाति के हिसाब से किसे शिकार बनाना आसान है, यह तय किया जा सकता है. पुलिस वालों के बेटे अपने पिता का अकसर बलात्कार के मामलों में इस्तेमाल करते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि बचा कैसे जा सकता है. पावर के नशे में सब पर सैक्स का नशा भी चढ़ जाता है. कठोर कानून के बाद भी पुलिसिया शिथिलता महिला हिंसा को ले कर भले ही 2012 में कठोर कानून बन गया हो लेकिन कानून का पालन नहीं हो रहा है. उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में एक मामले में एक नवोदय स्कूल में पढ़ने वाली लड़की की मौत होस्टल के कमरे में ही हुई थी. छात्रा के घर वाले मामले में हत्या, बलात्कार की आशंका जाहिर कर रहे थे. स्कूल प्रशासन आत्महत्या दिखा रहा था.

लड़की के घर वालों ने जिला प्रशासन से ले कर प्रदेश के कई अफसरों तक बात को पहुंचाया. इस के बाद भी बात नहीं सुनी गई. परिवार के लोग धरनेप्रदर्शन भी करने लगे. कानून की लापरवाही दूसरे मामलों में भी दिखती है. उत्तर प्रदेश के ही उन्नाव जिले में बिहार थाना क्षेत्र के हिंदू नगर में एक युवती के साथ दिसंबर 2018 में बलात्कार हुआ था. 4 माह के बाद मार्च 2019 में रायबरेली कोर्ट के आदेश पर मुकदमा लिखा गया. लड़की का गांव में रहने वाले शिवम त्रिवेदी से प्रेम संबंध था. शिवम ने उसे रायबरेली ले जा कर उस से रेप किया और उस का वीडियो भी बना लिया. इस के बाद लगातार रेप करता रहा. लड़की ने शादी का दबाव बनाया तो रायबरेली में एक कमरा ले कर लड़की को रख दिया. यहां वह लड़की नजरबंद रहने लगी. 12 दिसंबर को शिव अपने साथी शुभम के साथ लड़की को शादी करने के बहाने मंदिर ले गया. वहां रेप किया. उन्नाव जिले की बिहार थाने की पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर शिवम त्रिवेदी और शुभम त्रिवेदी को जेल भेजा था. कुछ समय बाद आरोपी जमानत पर जेल से छूट कर वापस गांव आए थे. अब वे लड़की को सबक सिखाना चाहते थे.

5 दिसंबर, 2019 को इस मामले की पेशी रायबरेली में थी. उन्नाव से रायबरेली जाने के लिए लड़की सुबह ट्रेन पकड़ने स्टेशन जा रही थी. सुनसान जगह पर सुबह करीब 4 बजे आरोपी शुभम, शिवम और उस के 3 साथियों ने युवती को घेर लिया. उस के बाद उसे पकड़ कर मिट्टी का तेल डाल कर आग लगा दी. उन्नाव के एसपी विक्रांत वीर ने बताया कि लड़की 90 फीसदी जल चुकी है. युवती ने बयान में आरोपियों के नाम बताए. इन में से 3 शुभम त्रिवेदी, हरिशंकर और उमेश को पुलिस ने तत्काल पकड़ लिया. लड़की की शिकायत पर पकड़े गए युवकों ने बताया कि जमानत पर आने के बाद लड़की को सबक सिखाने और सुबूत नष्ट करने के लिए उसे जला कर मारने का प्रयास किया गया. व्यवस्था पर उठे सवाल बलात्कार के खिलाफ कठोर कानून के बाद भी कानून का पालन नहीं हो रहा. उन्नाव में ही कुलदीप सेंगर के मामले में सवाल उठाते सुप्रीम कोर्ट ने 45 दिन में ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया था.

80 दिन बीतने के बाद भी ट्रायल पूरा नहीं हुआ. प्रियंका गांधी का कहना था कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों में उत्तर प्रदेश सब से ऊपर है. अपराधियों के खिलाफ मुकदमें दर्ज नहीं होते, मुकदमा दर्ज हो भी जाए तो कड़े कदम नहीं उठाए जाते, जिस से अपराधियों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वे लड़की को मारने के प्रयास तक पहुंच जाते हैं. अब सेंगर पूरी तरह बरी हो चुके हैं क्योंकि गवाह ही नहीं बचे हैं. हर गवाह डर गया है और वैसे भी, गांवकसबों में जाति का रोब चलता है और लड़की अगर बलात्कारी से नीचे की जाति की है तो वह ही दोषी है. बलात्कार पर चर्चा हैदराबाद, उन्नाव और मिर्जापुर की घटनाओं ने पूरे देश में बलात्कार के मुद्दे को समाज की मुख्यधारा में शामिल कर दिया है.

घटनाएं बताती हैं कि कठोर कानून बनने के बाद भी बलात्कार रुक नहीं रहे हैं. कुछ लोग इंटरनैट, पौर्न फिल्मों, अश्लील साहित्य, लड़कियों की आजादी, लड़कियों के फैशन, उन की लड़कों के साथ दोस्ती को बलात्कार से जोड़ कर देखते हैं. कुछ लोग मानते हैं कि लड़कियों को खुद हथियार ले कर अपनी सुरक्षा करनी चाहिए. यहां जो सब से जरूरी बात है वह यह कि पुलिस समय पर मुकदमा दर्ज करे और कानून समय पर सजा दें, तभी महिला हिंसा को रोका जा सकता है. इस के साथ ही समाज को भी अपनी मनोदशा बदलनी होगी. सड़कों पर कैमरे, महिला हैल्पलाइन की सुविधा देनी होगी. महिलाओं को बराबरी का हक देना होगा. महिला हिंसा कानून के दुरुप्रयोग पर भी बड़े सवाल उठते हैं. ऐसे में जरूरी है कि गलत शिकायत करने वाली महिलाओं के खिलाफ भी दंड का प्रावधान हो. यह समाज सभी का है. संविधान ने सभी को बराबरी का हक दिया है.

महिलाओं को भी उसी तरह से रहने का हक है जैसे पुरुषों को है. आज के समय में लड़कियां कालेजों, औफिसों, फैक्ट्रियों हर जगह काम कर रही हैं. ऐसे में उन्हें घर में बैठने की सलाह देना, अकेले सफर न करने, समय से घर आने की हिदायत देना ठीक नहीं है. सभ्य समाज वही है जिस में हर किसी को आजादी से रहने का अधिकार हो. इस के लिए महिलाओं और लड़कियों को भी आजादी देनी होगी. समाज, कानून और संविधान के लिए अफसोसजनक बात यह है कि रेप के भय से लड़कियां सही से अपने काम नहीं कर पा रही हैं. सो, कड़े कानून बनाने के साथसाथ समय पर रिपोर्ट और सजा का भी प्रावधान हो. गलत शिकायतों को भी रोकने की जरूरत है. गलत शिकायत करने वाले के खिलाफ भी सजा के कड़े प्रावधान हों. मुख्य बात यह है कि पिछड़ी और निचली कही जाने वाली जातियों को भयमुक्त हो कर काम करना होगा.

उन्हें आदमी से लड़ना होगा और औरत पर जुल्म हो, चाहे उन से नीची जाति की हो, अपने पिता और पति की न सुन कर अगर पावर में है तो उस का सही इस्तेमाल करना चाहिए. आज 10-15 प्रतिशत महिलाएं प्रशासन में निचली और पिछड़ी जातियों की हैं. वे इस मुद्दे को पूरे दम से ले सकती हैं. प्रशासन उन्हें तबादलों, उन की बहनों, उन के पिताओं को तंग करने की धमकी दे सकता है पर अगर वे सच के साथ खड़ी होंगी तो जैसे गांवों में चोरियां कम होती हैं, कुछ वैसे ही लड़कियों की आबरू की चोरी करने की हिम्मत किसी में न होगी.

भारत भूमि युगे युगे: भगवा हुईं कांग्रेसी कौलगर्ल्स

भगवा हुईं कांग्रेसी कौलगर्ल्स कर्नाटक में विधानसभा चुनाव आ गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी में 10 दिनों के मामूली अंतर से वहां के 2 दौरे किए. अलावा इस के, वहां भी राष्ट्रवाद, हिंदूमुसलिम, लव जिहाद, सनातन मंदिर और धारा 370 जैसे शब्द हर कहीं सुनाई देने लगे हैं. जल्द ही इस चुनावी शब्दकोष में यूसीसी और राष्ट्रवाद जैसे दर्जनों शब्द और जुड़ेंगे लेकिन एक नई बात पिछड़े समुदाय के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता बी के हरिप्रसाद ने यह कही कि जो कांग्रेसी पार्टी छोड़ कर भाजपा में चले गए, उन की तुलना वेश्याओं से की जा सकती है जो पेट पालने के लिए जिस्मफरोशी करती हैं.

अब कौन हरिप्रसाद को बताए कि वेश्यावृत्ति कोई बुरा काम नहीं है और औरतें इसे उस मजबूरी में करती हैं जिसे मर्द पैदा करते हैं. वैसे, ऐसे भगोड़ों के लिए विभीषण शब्द सटीक है. उत्तर भारत में तो इसी का इस्तेमाल किया जाता है और अब तो वेश्याओं के घर बसाने को ले कर भी लोग उदार हो चले हैं. इस के बाद भी उन से एक पतिव्रता होने की उम्मीद करना उन के साथ एक और ज्यादती है. तीरकमान बनाम तराजू देश में कुछ और हो न हो, चलेगा, लेकिन धर्म, उस के ग्रंथ व स्थलों पर विवाद न हो. लगता है कि कहीं हम और किसी दुनिया में तो नहीं आ गए. ?ारखंड के गिरिडीह जिले में स्थित पार्श्वनाथ की पहाडि़यों और तीर्थस्थल सम्मेत शिखर को पर्यटन स्थल क्या घोषित किया गया, जैनियों ने पवित्रता की दुहाई देते आसमान सिर पर उठा लिया और देखते ही देखते केंद्र सरकार इस धनाढ्य समुदाय के आगे ?ाक भी गई.

इस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक सच्चा आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा समुदायों और धर्म के नाम पर राजनीति कर रही है. ?ां?ाट यह है कि आदिवासी पार्श्वनाथ को अपने मुरुंग देवता का हैडक्वार्टर बता रहे हैं जबकि जैनियों का दावा है कि यह उन के भगवान का मुख्यालय है. अब ये दोनों समुदाय आमनेसामने हैं. आदिवासी होने के नाते हेमंत इसे मुरुंग का होना तो बता रहे हैं लेकिन वे यह भी बेहतर जानते हैं कि ?ारखंड के जंगलों में नक्सलियों की और शहरों में जैनियों व बनियों की हुकूमत चलती है. लिहाजा विवाद बातचीत से तो सुल?ाने से रहा. सांच को आंच नहीं बलात्कार के आरोप में फंसे दिग्गज मुसलिम भाजपाई नेता शाहनवाज हुसैन की एफआईआर दर्ज न करने की अर्जी सुप्रीम कोर्ट ने भी ठुकराते उन्हें पुचकारा है कि आप सही होंगे तो बच जाएंगे. मामले में ज्यादा पेंचोखम नहीं हैं.

26 अप्रैल, 2018 को एक महिला ने दिल्ली पुलिस में शिकायत की थी कि शाहनवाज ने उन का बलात्कार किया और इस के लिए बाकायदा उसे अपने छत्तरपुर स्थित फार्महाउस ले गए. पुलिस वालों को मालूम था कि आरोपी साहबों का लाडला है, लिहाजा वे पीडि़ता को घुमाते और धमकाते रहे. लेकिन पीडि़ता ने ‘इंसाफ का तराजू’ फिल्म देखी थी, सो, वह नायिका जीनत अमान की तरह अड़ गई. अब एफआईआर दर्ज होगी और कोर्ट में ट्रायल जैसे टोटके भी होंगे. कुछ या कई सालों बाद फैसला जो भी आए, हालफिलहाल तो कानूनी खामियों का खमियाजा दोनों पक्ष भुगत रहे हैं.

तल्खियां राहुल गांधी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के कानों में कोई मंत्र तो फूंका था जिस का असर अब उतरने लगा है या असर अब दिखने लगा है, एक ही बात है क्योंकि दोनों में फिर से तूतूमैंमैं होने लगी है. यह कलह बड़ी दिलचस्प है, जिस में गहलोत ने पायलट को कोसते उन्हें कोरोना तक कह डाला. कोरोना हर कोई जानता है कि एक जानलेवा वायरस है जो एक बार मानव मात्र को संक्रमित कर दे तो ऊपर वाला भी कुछ नहीं कर पाता. इस लिहाज से तो गहलोत को पायलट का लिहाज करना चाहिए वरना कांग्रेसी नर्सिंगहोम के डाक्टर भी कुछ नहीं कर पाएंगे.

खामोशी के बाद-भाग 3 : आखिर क्यों उसे अपनी बेटी से नफरत थी?

एक दिन सुमेधा पास आ कर बोली, ‘‘आप रोहित से पूछ रहे थे न राखी के बारे में. आप ने ऐसा सोचा भी कैसे विनय. वह लड़की इस घर की कोई नहीं है. बस मेरी जिम्मेदारी है. आप ने तो उसे अस्वीकार कर दिया था. पर मेरी वजह से उसे इस घर में जगह मिली. अभी वह छोटी है. पर धीरेधीरे उसे घर का सारा काम सिखा दूंगी ताकि उस पर कभी यह आरोप न लगे कि वह मुफ्त में रहती है. थोङी सी जगह ले रही है, खाना खा रही है, पढ़ रही है तो काम कर के इस घर का कर्ज भी चुकाएगी. और विनय तुम्हें तो पता है कि मेरा घुटना अब बहुत परेशान करने लगा है. उसे सक्षम बनाउंगी ताकि वह घर संभाले,” सुमेधा की बात से मेरे गाल पर एक चांटा सा पङा था. रौबदार पुलिसमैन था इसलिए अपने भावों को सफलतापूर्वक छिपा लिया.

2-3 साल में ही अंकिता ने घर का सारा कामकाज सीख लिया था. मैं पुलिस के जौब से सेवानिवृत्त हो गया था इसलिए घर पर ही रहता था. औनलाइन पुलिस की नौकरी के लिए बच्चों की काउंसिलिंग और इस क्षेत्र में कैरियर पर औनलाइन मार्गदर्शन का काम मैं ने शुरू कर दिया. समय अच्छा व्यतीत हो इस के लिए कुछ काउंसिलिंग संस्थाओं से भी जुङ गया था. सारा काम औनलाइन था.
सुमेधा के घुटनों का दर्द बढ़ने लगा था. अंकिता प्रयास करती कि सुमेधा को पूरा आराम मिले. मैं जब भी कहीं बाहर से घर आता सुमेधा की जगह अंकिता पैर धोने के लिए पानी ले आती. मैं ज्यादातर बाहर से आते ही बरामदे में कुरसी पर या अंदर सोफे पर कुछ देर बैठ जाता. अंकिता झट पानी ला कर रख देती. कुछ ही मिनटों में चाय और बिस्कुट या टोस्ट भी ला कर रख देती. जैसेजैसे अंकिता बङी हो रही थी, सुमेधा से उस का रिश्ता गहराने लगा था और मेरे चाहने या न चाहने की परवाह किए बगैर वह मेरी केयर टेकर भी बन गई थी.

रोहित पढ़ाई के लिए लंदन चला गया था. सुमेधा के घुटनों में असहनीय दर्द रहने लगा था. उस की चाल देख कर मैं समझने लगा था कि वह ठीक नहीं है। पर सुमेधा ने कभी अपनी पीङा मुझ से साझा नहीं की. अंकिता थी तो घर संभल रहा था. रातदिन भागती रहती थी वह लडकी. मुझे जरा सा खांसी हुई कि बाम ला कर बगल में रख देती, भाप लेने के लिए गरम पानी और टावेल रख जाती। सुमेधा के घुटनों को रोज गरम पानी से सेंकती, गरम तेल से धीरेधीरे घुटनों पर मालिश करती और जब वह सो जाती तब अंकिता भी रसोई की पनाह में चली जाती.

2 साल पहने सुमेधा चल बसी. घुटनों के दर्द के अलावा कोई बीमारी नहीं थी उसे. एक रात सोई तो सुबह उठी ही नहीं. डाक्टर ने कहा कि नींद में ही हार्ट अटैक आया था. अब अंकिता की जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गई थीं. पूरा घर उस का दायित्व था.
हर समय काम में लगी रहती. रात कई बार रसोई में लाइट दिखती थी. मुझे लगता था कि कुछ पढ़ रही है. शायद कोई प्राइवेट परीक्षा देने वाली हो. सुमेधा और रोहित ने उसे जीवन जीने की पूरी कला सीखा दी थी. किसी नर्स की तरह मेरी देखभाल करने वाली अंकिता कभी मुझ से बात नहीं करती. बस मजदूर की तरह काम में लगी रहती. 2 दिन पहले रोहित का फोन आया था, ‘‘पापा अंकिता की शादी है।”

‘‘ शादी…” मैं चौंक गया था,‘‘तुम्हें किस ने बताया?”

‘‘पापा, अंकिता ने ही बताया.”

“दरअसल, उस ने 1 हफ्ते पहले ही बताया था. पर मैं भूल गया. थोङा बिजी था पापा.‘‘

‘‘पापा, यह रिश्ता मम्मा ने ही तय किया था. उस लङके को मम्मा जानती थी। वह लङका टैक्सी चलाता है. और मम्मा ने ही उस से कहा था कि जब अपनी टैक्सी खरीदोगे तब मेरे बेटी को ले जाना।”

‘‘ओके…” मैं ने गहरी सांस ली. इस गहरी सांस का अर्थ मैं स्वयं भी नहीं समझ पाया. इस लङकी से मुक्ति पाने की खुशी थी या अकेले हो जाने का अनजाना सा भय.

‘‘और पापा सुनिए, आप को कोई तकलीफ नहीं होगी,‘‘ रोहित ने आगे कहा,‘‘अंकिता ने 2 कामवाली रख दी है। एक खाना बनाएगी और दूसरी पूरे घर की साफसफाई करेगी. आप को कोई परेशानी नहीं होगी पापा. मैं अपने इंटर्नशाीप के पैसे से उन का पेमेंट कर दिया करूंगा।”

मैं ने कुछ नहीं कहा. दरअसल, उस लड़की की शादी भी कभी होगी मैं ने तो सोचा भी नहीं था. पर सुमेधा ने संसार छोङने के पहले यह काम भी कर दिया. कितनी फिक्र थी सुमेधा को उस की.

दूसरे दिन सुबह अंकिता आई थी मेरे कमरे में और एक कागज का टुकडा मेरी ओर बढ़ा दिया, जिस पर उस के नए घर का पता लिखा था. होने वाले पति का नाम और उस का मोबाइल नंबर भी. इच्छा हो रही थी कि उसे बधाई दूं पर कुछ कह नहीं पाया. कुछ पल वह मेरे भाव को देखती रही फिर कमरे से निकल गई. मैं भावहीन सा हो गया था. अजीब सा महसूस कर रहा था. वह जा चुकी थी. मैं पुरानी यादों से बाहर निकल आया. अब मैं वर्तमान में था और मेरा जी तो यही चाह रहा था कि अंकिता के चले जाने की खुशियां मनाऊं. 17-18 साल से जिसे घर से निकालना चाह रहा था वह अब निकली है. मैं उत्साहित होना चाहता था पर हो नहीं पाया. कई चिंताएं मन को घेरने लगी थीं. सजासंवरा मेरा घर अब कौन संभालेगा?

8 बज गए थे. मैं बाहर आ गया. पहली नौकरानी आ चुकी थी. बाहर आंगन बुहार रही थी,”सर, मैं 7 बजे ही आ गई थी. आप शायद सो रहे थे तो सोचा बाहर की सफाई कर लेती हूं।” वहीं बाहर के नल पर उस ने हाथपैर धोया और अंदर आने लगी.

बोली,‘‘ सर, आप के लिए चाय बना लाती हूं. अंकिता मैडम ने मुझे सारा काम समझा दिया है सर,” इतना कह वह अंदर चली गई.

“अंकिता मैडम…” मैं ने मैडम शब्द को मन ही मन बुदबुदाया. हंसी सी आ गई. मेरे लिए तो वह बोझ थी. बस इस घर की एक नौकरानी. मैडम संबोधन जरा अजीब सा लगा. कामवाली चाय बना लाई थी. मैं कुछ कर नहीं पा रहा था। कुछ भी सामान्य नहीं लग रहा था. एक अनजान औरत घर में प्रवेश कर काम करने लगी थी. मैं तो जैसे अपने ही घर में अजनबी हो गया था. तभी दूसरी भी आ गई. “नमस्कार सर,‘‘ उस ने हाथ जोड़ कर अभिवादन करते हुऐ कहा, “मैं शालिनी. केयर टेकर… मुझे ही सारा घर संभालना है.‘‘

मैं ने धीरे से सिर हिला दिया और वह भी घर में प्रवेश कर गई. कुछ ही पल में पूरे घर में शोरशराबा गूंजने लगा. दोनों नौकरानियां एकदूसरे से बात करती हुई एकदूसरे को अपने बारे में बता रही थीं. मुझे बेहद अशांति सी होने लगी थी. मैं चाह रहा था कि अपने दैनिक कार्य को करूं पर कर नहीं पा रहा था. समय जैसे थम सा गया था. पर मुझे खुद को संभालना था तो मैं धीरे से उठा और अपने काम में लग गया. दोनों नौकरानियों की अंतरंगता बढ़ती जा रही थीं. दोनों बेखौफ पूरे घर को अपनी बातचीत और क्रियाकलाप से अशांत करती जा रही थीं. मैं अपने ही घर में स्वयं को अजनबी सा महसूस करने लगा था.

मुझे खीज सी होने लगी थी. इन्हें नियंत्रित करने वाला कोई नहीं था और ये इस का फायदा उठा रही थीं. खाना बनाने वाली रसोई पूरा साफ किए बिना चली जाती और दूसरी उस अधूरे काम को अनदेखा कर देती मानो वह उस का काम है ही नहीं.

1 हफ्ता ऐसे ही बीत गया. मुझे कई बार रसोई साफ करना पड़ता तो कभी डाइनिंग टेबल भी. रात को रोहित का फोन आया तो मेरी तकलीफ सुन कर परेशान हो गया, ’’पापा, आप को उन से बात करनी होगी. चुप रहेंगे तो वे ऐसा ही काम करेंगी.‘‘

“हां, बेटा बोलूंगा,” मैं ने बोल तो दिया पर कुछ बोला नहीं. सुबहशाम वौकिंग के लिए जाता था बस वहीं शांति मिलती थी. मित्रों के साथ कुछ सुखद पल बिताने के बाद मुझे घर आने की इच्छा ही नहीं होती थी. मेरी व्यथा कोई समझ नहीं सकता था. सब का परिवार था। कोई मेरी तरह अकेला तो नहीं था. कुछ दिन ऐसे ही बीते. अब तो मैं ने रोहित को भी अपनी तकलीफ बताना कम कर दिया था. क्या करता बता कर बेकार वह वहां परेशान होता.

कुछ सप्ताह ही बीते थे कि एक दिन कमरे का परदा हट गया था. गोल टेबल पर चाय की प्याली और चाय की केतली थी. एक सकारात्मक उर्जा महसूस हुई मुझे. मैं तेजी से कमरे से बाहर आया तो देखा अंकिता सामने के कमरे में बैठी रोहित से मोबाइल पर बात कर रही थी,‘‘आप चिंता मत करो और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो भैया. मैं यहां का काम संभाल लूंगी. आप बस उन दोनों का हिसाब कर दो. मैं ने मयूर को भी कहा है रात यहां से होते हुए घर जाना है. तो वह मुझे लेने आ जाएगा. तब तक मैं यहीं हूं।”

रोहित कुछ बोला तो अंकिता ने कहा,‘‘हां भैया, कहा न आप से चिंता मत करो…बाय भैया.’’

शायद घर की डुप्लीकेट चाबी थी उस के पास. मैं तेजी से अपने कमरे में वापस आ गया. चाय पी ली और मौर्निंग वौक के लिए निकलने लगा. अंकिता सामने के कमरे में सैल्फ की सफाई कर रही थी. बहुत अच्छी लग रही थी वह. नई साङी में वह खूबसूरत लग रही थी। उस ने मेरी ओर देखा तो मेरे चेहरे पर एक मुसकान आ गई और उस का चेहरा भी खिल गया.

रात तक अंकिता काम करती रही. मेरे मन को भी सुकून महसूस हो रहा था. रात घर के पास टैक्सी रुकी तो मैं बाहर आ गया. अंकिता रसोई के काम को अंतिम रूप दे रही थी. मैं ने उस के पति को इशारे से बुलाया.

‘‘क्या नाम है?‘‘

‘‘मयूर…’’ उस ने कहा.

‘‘कहां रहते हो?’’

‘‘दुर्गा नगर चाल में…’’

‘‘अपना घर है?‘‘

‘‘ नहीं किराए का.’’

‘‘अच्छा…’’ मैं ने कहा और ध्यान से देखा. अच्छा लङका लगा वह. अंकिता बाहर आ गई थी. उस की पलकें भीगी थीं शायद मयूर से मुझे बात करते देख कर. उस ने एक बार मेरी तरफ देखा. मेरा मन भर आया और अनजाने ही मेरी आंखें छलक उठीं. वह कुछ पल मेरी छलकी आंखों को देखती रही और अपना सिर झुका लिया. वह तेजी से निकल गई.
मेरे अंदर से आवाज आई रोक लो उसे. मैं रोकना भी चाहता था पर रोक नहीं पाया. वह टैक्सी में बैठ चुकी थी. मैं तेजी से कमरे में भागा. तकिए के नीचे दबे उस कागज के टुकडे को निकाला जिस पर मयूर का पता व मोबाइल नंबर था. मैं झट नंबर डायल कर दिया,”अंकिता ने फोन उठाया,‘‘ये गाङी चला रहे हैं. आप कौन?’’

‘‘बेटा, मैं विनय…’’

‘‘जी…” वह खामोश हो गई.

‘‘बेटा, तुम दोनों यहीं आ जाओ मेरे पास रहने.’’

‘‘ जी… पर…’’

‘‘क्या बेटी शादी के बाद पापा के पास नहीं रह सकती है… ’’ मैं ने भर्राए आवाज में पूछा और बिलख कर रो पङा,”बेटा, अकेले नहीं रह पाउंगा. तुम्हारे जाने के बाद अकेले बहुत तकलीफ हो रही है. कल से तुम दोनों यहीं रहना बेटा. अब कभी कहीं मत जाना,’’ वह चुप थी. पर सिसकियों की आवाज आ रही थी.

हम दोनों सिसकियों की भाषा में देर तक संवाद करते रहे. सालों का मौन आज टूटा जो था. मैं ने सुमेधा की तसवीर की ओर देखा, उस की मुसकान भी जैसे गहरी हो गई थी.

Satyakatha: देवरानी के इश्क का कहर

देवरानी मालती का संजू से इश्क लड़ाना जेठानी बबली को नापसंद था. इसे ले कर देवरानी और जेठानी के बीच तकरार होती रहती थी.  रात के करीब 9 बज चुके थे. बबली ने खाना बनाते हुए अपनी बेटी निशा को आवाज दी, ‘‘निशा, बेटी खाना तैयार है. रोटियां सेंक रही हूं. आ कर ले लो.’’

‘‘मम्मी, अभी भूख नहीं है. पूरा बना लो, फिर साथ में बैठ कर खा लेंगे.’’ अपने कमरे में टीवी पर नजरें गड़ाए निशा बोली.

कुछ ही देर में जब खाना तैयार हो गया, तब बबली भी किचन से निकल कर निशा के साथ आ कर टीवी पर सीरियल देखने लगी. उसे सीरियल देखते हुए रात के करीब 10 बज चुके थे.

बबली ने निशा से कहा, ‘‘काफी समय हो चुका है निशा, अब खाना लगा दूं?’’ निशा ने ‘हां’ बोला ही था कि उस के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी.

टीवी से नजरें हटाते हुए निशा ने मोबाइल स्क्रीन पर देखा, काल उस के मंगेतर संदीप की थी. काल रिसीव कर वह दूसरे कमरे में चली गई.

मध्य प्रदेश में जबलपुर से मंडला की ओर जाने वाले नैशनल हाईवे नंबर 30 पर जबलपुर से करीब 20 किलोमीटर दूर छोटा सा कस्बाई शहर है बरेला. वहीं वार्ड नंबर 15 में 40 साल की दीपा मेहरा उर्फ बबली अपनी 20 साल की बेटी निशा के साथ रहती थी. बरेला के पास के ही गांव टेंभरभीटा में बबली का मायका था. हाल में ही वहीं के रहने वाले संदीप झारिया से निशा का रिश्ता तय हुआ था.

मार्च 2022 में दोनों की शादी होने वाली थी. शादी तय होने के बाद  संदीप और निशा के बीच मोबाइल पर बातचीत होती रहती थी.

संदीप से बात करते हुए निशा ने बाहर बरामदे में किसी के आने की आहट सुनी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘शायद कोई घर पर आया है, बाद में काल करती हूं,’’ इतना कह कर निशा ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

काफी समय तक जब निशा का फोन नहीं आया, तब संदीप ने ही दोबारा काल की. तब निशा का मोबाइल बंद मिला. इसे पहले तो संदीप ने हल्के में लिया. सोचा बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. उन्होंने रात के 12 बजे तक निशा को कई दफा फोन मिलाया, लेकिन हर बार फोन बंद आने से वह चिंतित हो गया. घर में एक ही फोन से मांबेटी काम चलाते थे.

अगले रोज संदीप की नींद बबली के पिता चंद्रभान के काल की घंटी से टूटी. उन्होंने निशा को फोन नहीं लगने की बात कही, साथ ही पूछा कि क्या उन की निशा से कल रात बात हुई थी?

संदीप को चंद्रभान की बात सुन कर बीती रात निशा का फोन स्विच औफ होने का ध्यान आया. चंद्रभान टेंभरभीटा गांव में ही रहते थे, जो बरेला से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर ही था.

निशा का फोन स्विच्ड औफ आने पर वह काफी चिंतित हो गए. अपने छोटे भाई के बेटे आशीष को बरेला चलने को कहा. कुछ मिनट में ही दोनों बरेला पहुंच गए. जिस घर में बबली निशा के साथ रहती थी, वहां ताला लगा हुआ था.

उसी घर से सटे दूसरे मकान में बबली की देवरानी मालती रहती थी. चंद्रभान और आशीष जानते थे कि काफी समय से बबली और मालती के बीच बोलचाल बंद थी. फिर भी तसल्ली के लिए उन्होंने मालती के घर का दरवाजा खटखटाया.

भीतर से ही कौन है? क्या है? सवालों की रूखी आवाज आई. चंद्रभान ने तेज आवाज में बोलते हुए निशा के बारे में पूछा. चंद्रभान की आवाज सुन कर मालती ने वहीं से बोल दिया कि उसे दोनों के बारे में कुछ नहीं मालूम.

उस के बाद चंद्रभान और आशीष ने आसपास के दूसरे लोगों से भी पूछताछ की. अधिकतर पड़ोसियों ने यह तो बताया कि बबली और निशा बीती रात 8-9 बजे घर में ही देखे गए थे. कमरे से टीवी की आवाज भी आ रही थी, मगर उन के कहीं जाने के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी.

दिन निकल आया था. इसी के साथ बरेला के पूरे वार्ड में मांबेटी के रात से ही गायब होने की खबर भी फैल चुकी थी. चंद्रभान ने देर किए बगैर बरेला पुलिस थाने में दोनों के गायब होने की रिपोर्ट लिखाने के लिए कहा. तब तक संदीप भी वहां आ गया था.

बरेला पुलिस ने चंद्रभान और संदीप को पहले अपने रिश्तेदारों के यहां खोजने की सलाह दी. चंद्रभान समेत आशीष, संदीप के अलावा दूसरे रिश्तेदारों ने निशा और बबली के बारे में काफी पता किया. यही करतेकरते 3 दिन निकल गए, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला.

चंद्रभान ने थाने जा कर गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर उन्हें तलाशने का दबाव बनाया.

एक सप्ताह बीतने के बावजूद पुलिस निशा और बबली को ढूंढने में असफल रही. उस से बबली के मायके वालों ने नाराज हो कर डीएसपी और एसपी से ले कर सीएम हेल्पलाइन तक में शिकायत कर दी. उन्होंने सीधेसीधे स्थानीय पुलिस के खिलाफ ही शिकायत कर दी.

इस बात को ले कर मेहरा समाज के लोगों ने पुलिसप्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. पुलिस की नाकामी के खिलाफ स्थानीय लोगों ने ज्ञापन दे कर बरेला में नैशनल हाईवे 30 पर चक्का जाम करने की चेतावनी दे दी. उस के बाद पुलिस के आला अधिकारी हरकत में आए.

बरेला थाने में टीआई के नहीं होने की वजह से एसआई मुनेश लाल कोल के पास पुलिस थाने की जिम्मेदारी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए जबलपुर एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा ने बरेला पुलिस थाने की कमान तेजतर्रार डीएसपी अपूर्वा किलेदार को सौंप दी.

अपूर्वा किलेदार ने क्राइम ब्रांच और बरेला पुलिस के साथ मामले की तफ्तीश नए सिरे से शुरू कर दी.

उन्होंने तहकीकात की शुरुआत बबली और निशा के घर से की. इस सिलसिले में 2 अक्तूबर, 2021 को डीएसपी ने बरेला थाना स्टाफ और फोरैंसिक टीम के साथ घर पहुंच कर कमरे का ताला खुलवाया.

कमरा पूरी तरह से व्यवस्थित था. किचन में खराब हो चुके खाने की दुर्गंध आ रही थी. फोरैंसिक टीम ने किचन में रखे खाने को देखा. वहां पका हुआ खाना पड़ा था.

यह देख कर सभी इस बात से हैरान हो गए थे कि आखिर दोनों बगैर खाना खाए अचानक कहां चले गए.

बबली के चचेरे भाई आशीष ने पुलिस को एक राज की बात बताई. उन्होंने कहा कि जिस दिन वह मालती से बबली और निशा के बारे में पूछने गए थे, तब मालती की बेटी ने उन्हें बताया था कि रात में संजू चाचा के साथ 2 लड़के आए थे.

यह जानकारी पुलिस को एक महत्त्वपूर्ण कड़ी लगी. डीएसपी ने तत्काल सवाल किया, ‘संजू कौन है?’

उन्हें मालूम हुआ कि इस का जवाब मालती ही दे सकती है. फिर क्या था जांच की सुई मालती की ओर घूम गई.

इस बारे में सीधे मालती से पूछताछ करने के बजाय पहले पासपड़ोस के लोगों से संजू के बारे में पता किया गया, जिस का पूरा नाम संजू श्रीपाल था. वह दूसरी जगह का था, लेकिन हमेशा इस मोहल्ले में आता रहता था.

अधिकतर लोगों ने संजू के बारे में दबी जुबान से बताया कि मालती संजू के साथ अवैध संबध थे. वह उसी से मिलने मोहल्ले में आता था.

इस जानकारी के बाद पुलिस टीम मालती के पास जा पहुंची. पुलिस ने यह भी जानकारी लेने की कोशिश की कि करीबी रिश्तेदार हो कर भी उन की आपस में क्यों नहीं बनती थी.

मालती ने भोली बनते हुए इतना भर कहा कि उन के विचार और व्यवहार पसंद नहीं थे, इसलिए उन से बोलचाल बंद थी. संजू के बारे में पूछने पर मालती ने बताया कि वह उस के पति का दोस्त है.

पति चूंकि कामकाज के सिलसिले में हमेशा बाहर रहते हैं और ससुर काफी बूढ़े हैं, इसलिए संजू उस के पति के कहने पर परिवार का ध्यान रखता है.

पुलिस के लिए मालती से हुई पूछताछ महत्त्वपूर्ण साबित हुई. उसी दौरान पुलिस टीम ने साइबर टीम की मदद से संजू और मालती के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा ली. पता चला कि पिछले 4 दिनों से दोनों के बीच घंटों बातचीत हुई थी.

मुखबिर ने पुलिस को सूचना दी कि संजू अपने साथियों के साथ 3 अक्तूबर को मालती के घर गया था.

डीएसपी अपूर्वा किलेदार ने सादे कपड़ों में एक महिला कांस्टेबल को मालती के घर तब भेजा, जब वह घर पर नहीं थी. उस ने मालती की बड़ी बेटी से पूछताछ की.

उस से पुलिस को चौंकाने वाली जानकारी हाथ लगी. मालती की बेटी ने बताया कि 27 सितंबर की रात उस के घर संजू चाचा के साथ 2 लड़के आए थे.

मम्मी ने हमें खाना खिला कर जल्दी सुला दिया था, लेकिन संजू चाचा और दोनों लड़के देर रात तक घर पर ही थे. सुबह सो कर उठने के बाद मैं ने देखा कि बड़ी मम्मी बबली के घर पर ताला लगा था. मैं ने सोचा बड़ी मम्मी निशा दीदी को ले कर नानाजी के घर पर गई होंगी.

लापता मांबेटी के बारे में पुलिस को कई तरह की जानकारियां मिल गई थीं, जिस के केंद्र में संजू और मालती ही थे. पुलिस को पूरा भरोसा हो गया था कि बबली और निशा को गायब करने में संजू और मालती का ही हाथ रहा होगा. पुलिस ने संदेह के आधार पर संजू और मालती को पूछताछ के लिए 4 अक्तूबर को सुबह 11 बजे थाने बुलाया. उन्हें घंटों थाने में बैठा कर रखा. उस दौरान उन की बेचैनी, घबराहट वाली गतिविधियों पर नजर रखी गई.

धीरेधीरे उन पर पुलिस की सख्ती बढ़ती चली गई. अकस्मात मालती के मुंह से निकल पड़ा, ‘मांबेटी जिंदा होंगी तभी मिलेंगी न!’

मालती के यह कहते ही जांच टीम और सख्त हो गई. सीधे सवाल कर दिया, ‘‘किस दुश्मनी के चलते तुम ने दोनों को मरवा दिया?’’

पुलिस की सख्ती के आगे संजू भी टूट गया. उस ने बबली और निशा की हत्या कर लाश अपने गांव महगवां में कैनाल के किनारे दफनाने की बात कुबूल कर ली. पुलिस पूछताछ में इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह दिल दहलाने वाली थी.

मध्य प्रदेश के जिला जबलपुर के बरेला कस्बे की भगतसिंह कालोनी में रहने वाली 40 साल की दीपा मेहरा उर्फ बबली नगर के आंगनबाड़ी केंद्र में कार्यकर्ता के पद पर तैनात थी. उस की शादी सन 2000 में बरेला निवासी पंचमलाल के बड़े बेटे नरेश मेहरा से हुई थी.

अगले साल 2001 में निशा के जन्म के कुछ ही महीने के बाद पति नरेश की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी.

पंचमलाल का छोटा बेटा सुरेश राजमिस्त्री का काम करता था. उस की शादी मालती के साथ हुई थी. उस के बाद उस ने अपनी अलग गृहस्थी बसा ली थी.

अपनी बेटी के भविष्य के सपने संजोए बबली अपने जीवन की गाड़ी खींच रही थी. वक्त के साथ निशा जवान हो गई थी और वह सालीवाड़ा गौर के कालेज से ग्रैजुएशन के अंतिम साल की पढ़ाई कर ही रही थी. उस के नाना ने शादी का रिश्ता तय कर दिया था.

मालती गठीले बदन की खूबसूरत औरत थी. पंचम लाल के मकान में एक बड़ा दालान अर्थात बरामदा था. उसी से जुड़े 4 कमरे थे. 2-2 कमरे के 2 हिस्सों में दोनों परिवार रहने लगे.

बबली की देवरानी मालती का पति सुरेश अकसर काम के सिलसिले में मंडला जिले में रहता था. महीनों तक अपने घर नहीं आता था. मालती अपनी 3 बेटियों और 76 साल के ससुर पंचमलाल के साथ बरेला में रहती थी.

30 साल की मालती देहसुख से वंचित रहती थी. करीब 5 साल पहले मालती के संपर्क में संजू आया था. वह महगवां गांव का रहने वाला सुरेश का परिचित था. दोनों मिल कर काम तलाशते थे. जब सुरेश काम की तलाश में मंडला चला गया तो संजू मालती से मिलने आने लगा.

मालती की बेटियों के लिए संजू चौकलेट और बिसकुट ले कर आता था. वे उन्हें चाचा कह कर बुलाती थीं. मालती के ससुर पंचमलाल बूढ़े हो चले थे. उन्हें सुनाई नहीं देता था.

संजू और मालती अकेले में मिलते रहे. दोनों के बीच अवैध संबंध भी बन गए. उन्हें जब अपनी काम वासना की हसरतें पूरी करनी होती थीं, तब वह बच्चियों को पैसे दे कर कुछ खानेपीने के लिए बाहर भेज देता था.

करीब 4 साल पहले की बात है. दोपहर के 2 बजे का वक्त था. निशा स्कूल गई हुई थी और बबली आंगनबाड़ी केंद्र से घर लौटी थी.

घर की चारदीवारी में बने दरवाजे से बबली जैसे ही घर के भीतर दाखिल हुई तो उसे मालती के कमरे से किसी पुरुष की आवाज सुनाई दी, जबकि उस के ससुर पंचमलाल उस समय नहीं थे. बबली जैसे ही अपने कमरे में गई तो बगल के कमरे से कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई देने लगीं.

उस ने अपने पर्स को टेबल पर रखा और बरामदे में आ गई. बाहर निकल कर उस ने देखा कि मालती के कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. बबली ने चुपके से दरवाजे में बनी पतली झिर्री से आंख लगाई. अंदर का दृश्य देख कर दंग रह गई.

देवरानी मालती पलंग पर निर्वस्त्र हो कर किसी मर्द के साथ रंगरलियां मनाने में मस्त थी. मालती के साथ रंगरलियां मना रहे युवक का चेहरा उसे पहचान नहीं आया था.

बबली कुछ समय से देख रही थी कि मालती से मिलने एक युवक अकसर आता रहता था. उस के बारे में देवरानी से पूछा तो उस ने युवक को रिश्ते का भाई बताया. उस रोज बबली ने अपनी आंखों से जो सच देखा, उस के भीतर आक्रोश भर आया. सब काम छोड़ कर कुरसी डाल कर वह बाहर बैठ गई.

करीब आधे घंटे के बाद जब वह युवक मालती के कमरे से बाहर निकला तो बबली ने उसे पहचान लिया. वह संजू था, जिसे वह भाई बताती थी वही उस का यार था.

बबली को संजू के बुरे चरित्र के बारे में मालूम था. शराब का शौकीन क्रिमिनल माइंड का था वह. संजू एक बार अपने गांव की लड़की को ले कर भाग चुका था, उस लड़की का आज तक पता नहीं चला है. 34 साल का संजू शादीशुदा होने के साथ 2 बेटियों का बाप भी था.

जब मालती से बबली ने संजू के उस के कमरे में होने की बात की तो मालती ने अपनी गलती मानने के बजाय उसे ही भलाबुरा सुना दिया.

बबली ने संजू और मालती के संबंधों की बात ससुर पंचमलाल को भी बता दी. इस पर मालती जेठानी बबली से नाराज हो गई. उस दिन के बाद से बबली ने मालती से बातचीत करनी बंद कर दी.

संजू बेखौफ मालती के घर पर आ कर रंगरलियां मनाने लगा. बबली की बेटी निशा का रिश्ता संदीप के साथ तय हो चुका था. बबली को यह चिंता खाए जा रही थी कि मालती की करतूत का असर कहीं उस की बेटी के ब्याह पर न पड़े. परिवार की बदनामी की चिंता तो थी ही.

मालती शक्की स्वभाव की भी थी. उसे लगता था कि भतीजी निशा उस पर नजर रखती है. संजू के आनेजाने की हर खबर वह मां बबली को बताती है और मां इस की शिकायत ससुर से कर देती है.

इस संदेह के चलते वह भीतर से डर गई थी कि कहीं उस के और संजू के रिश्ते की बात पति सुरेश तक न पहुंच जाए.

संजू के मन में भी कुछ इसी तरह के विचार आ रहे थे. एक रोज मालती ने संजू से कहा कि उन के संबंधों में बबली और उस की बेटी बाधा बन गई हैं. उन की दखलंदाजी काफी बढ़ गई है. उन्हें रास्ते से हटाना होगा. इस के बाद दोनों ने मिल कर एक योजना बनाई.

संजू ने योजना के मुताबिक काम को अंजाम देने के लिए अपने दोस्तों राजा कोल और देवा कोल को शामिल कर लिया. बदले में उन्हें काम पूरा होने पर एकएक लाख रुपए देने का वादा किया. उन्हें कुछ पैसे एडवांस भी दे दिए.

27 सितंबर, 2021 की रात संजू राजा और देवा के साथ घर पहुंच गया. योजना के मुताबिक मालती ने ससुर पंचमलाल के खाने में नींद की गोलियां मिला दी थीं, जिस से पंचमलाल गहरी नींद सो गए थे. तीनों बेटियों को भी जल्दी से खाना खिला कर सोने के लिए दूसरे कमरे में भेज दिया था.

उस के बाद तीनों बबली के आंगन में घात लगाए बैठ गए. रात करीब 10 बजे बबली जैसे शौचालय की तरफ गई, तीनों ने उसे पीछे से कस कर पकड़ लिया.

इस सब से बेखबर निशा कमरे में संदीप से फोन पर बात कर रही थी. बाहर आहट सुन कर उस ओर जाने लगी. तब तक तीनों कमरे में घुस आए थे. निशा को भी उन्होंने दबोच लिया. उस की भी उन्होंने गला घोंट कर हत्या कर दी.

मांबेटी की हत्या कर उन्होंने शवों को चादर में लपेटा और रात में ही मोटरसाइकिल से नहर के किनारे ले जा कर झाडि़यों में फेंक आए.

अगले रोज तीनों दिन में लाशों को नमक के साथ को एक गड्ढे में दफना दिया. यह काम महगवां नहर के किनारे एकदम सुनसान इलाके में किया गया, जो मुख्य रोड से लगभग 800 मीटर अंदर की तरफ है.

एसडीएम प्रमोद सेनगुप्ता और तहसीलदार की उपस्थिति में पुलिस ने 4 मजदूरों की मदद से जब जमीन की खुदाई कराई, तब लगभग 5 फीट गहरे गड्ढे में 2 लाशें मिलीं.

दोनों लाशें ऊपरनीचे रखी हुई थीं. उन पर काफी मात्रा में नमक डाली गई थी. ऊपर निशा की निर्वस्त्र लाश थी. उस के नीचे बबली की लाश थी, वह अर्धनग्न थी. बबली के गले में फीता बंधा था.

घटनास्थल पर शवों की पहचान बबली और उस की बेटी निशा के रूप में हुई. परिजनों और रिश्तेदारों के बयान दर्ज किए गए.

लाशों का पोस्टमार्टम करवाने के बाद उन का अंतिम संस्कार करवाया. इस हत्याकांड में राजा और देवा की तलाश की गई. वे भी जल्द ही गिरफ्तार कर लिए गए.

हत्या के आरोपियों को गिरफ्तार करने और मांबेटी मर्डर केस का परदाफाश करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पुलिसकर्मियों की एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा ने सराहना की.

इतना ही नहीं, एसपी ने एसआई मुनेश कोल, रुकसार बानो, एएसआई चैन सिंह धुर्वे, कांस्टेबल मनोज, सूरज मिश्रा, तनवीर रिजवी, महेंद्र कुमार, सावित्री धुर्वे, प्रतिमा मिश्रा, जबलपुर क्राइम ब्रांच के एएसआई धनंजय सिंह, विजय शुक्ला, हैडकांस्टेबल विजेंद्र, दीपक तिवारी, मोहित उपाध्याय, बीरबल, साइबर सेल के अमित पटेल को पुरस्कृत करने की घोषणा की.

पुलिस गिरफ्त में आए आरोपी संजय श्रीपाल, उस की प्रेमिका मालती मेहरा, राजा कोल और देवा ठाकुर को भादंवि की धारा 450, 302, 201, 34 और एससी/एसटी ऐक्ट के तहत जबलपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से कोर्ट के आदेश पर सभी को जबलपुर की सैंट्रल जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मैं जीती

शहर और गांव की सीमा पर मैं वैसी ही पड़ी थी जैसा कुदरत ने मुझे इस धरती पर भेजा था. मेरे बदन पर खून से सना झीना सा एक कपड़ा लिपटा था. निगोड़ी हवा के एक झोंके ने उसे भी फडफ़ड़ा दिया था.

मैं 20 मिनट पहले ही दुनिया में आई थी. मैं गला फाड़ कर तो तब रोती जब दाई ने मेरा गला साफ किया होता. मेरा तो गला भी साफ नहीं था इसीलिए तो मैं रुकी बांसुरी सी महीनमहीन रो रही थी.

भय उगलती सांयसांय करती अंधेरी काली रात. बिजली कड़क रही थी. सन्नाटा बेकाबू हुआ जाता था. अंधेरे को अंधेरा बूझे.
कार सामने की सड़क पर आ कर रुकी थी. लंबा, तगड़ा, छोटीछोटी काली दाढ़ीमूंछों वाला एक ड्राइवर कार से नीचे उतरा था. मैं गाड़ी की डिक्की में थी. यदि 2 मिनट और डिक्की नहीं खुलती, तो तेरा दम घुट गया होता. ड्राइवर ने डिक्की से मुझे निकाला. वह सड़क से 10-15 कदम खेतों की ओर बढ़ा. उस ने बड़ी बेरहमी से मुझे नीचे पटक कर, इस विश्वास के साथ कि मैं अभी मर जाऊंगी, कहा, ‘मर.’

ओह, कैसा कसाई था वह. इतने बेदर्द तो वे भी नहीं होते जो मरे जानवर ढोते हैं. बांस की गांठों सी कठोर जमीन पर पड़ते ही मेरे बदन से टीस उठी थी.

मां ने मुझ नाजायज से नजात पा ली थी. टूटबिखर जाते मां के रिश्ते की बात ज्यों की त्यों बनी रह गर्ई थी. घर की इज्जत सलामत थी. पहाड़ से बड़े इस हादसे से परिवार उबर गया था. बड़े घरों में ऐसे अजबगजब नहीं होते.

घनी गहरी काली रात. कुत्ते, बिलाव, लोमड़ और सियार आदि से मेरी सुरक्षा थी. मगर अपने बिलों में अलसाए पड़े दुष्ट चींटों ने मेरी गंध ले ली थी कि मैं यहां पड़ी हूं. चीटों में विलक्षण सूझ होती है. वे एकदूसरे को सूंघते अपने लक्ष्य को साधते आगे बढ़ते जाते हैं.

डंक भरे सुर्ख स्याह चींटे आततायी दुश्मन से मुझ पर टूट पड़े थे. इतना स्वाद से भरा मुलायम मांस चींटे शायद पहली दफा खा रहे थे.

नन्ही सी मेरी जान. असंख्य चींटे. चींटों की नोंच से मैं बुरी तरह बिलख रही थी.
जैसे घर आया मेहमान धीरेधीरे घर को जाननेपहचानने लगता है उसी तरह मैं मां के पेट में आने के बाद मां की दुनिया को जाननेपहचानने लगी थी. शायद अभिमन्यु की तरह.

मेरी हर पीड़ा, हर कष्ट में अब मां थीं. मां, कमल के डंठल सी देह. गुलाब की पंखुरी से पतलेपतलेे उस के होंठ. मध्यम कद. 18-19 साल की उम्र. सरसों के निकले दानों सा सुरमई रंग. वह जब ऊंची एड़ी की सैंडल पहन कर 10वीं की किताब बगल में दबाए स्कूल के लिए निकलतीं तो धागे सी कांपतीं, इतनी सचेत, सावधान कि पैरों की आहट तक चुप. सहेलियों में घीशक्कर. लड़कों की छायामाया से दूर.

मां आबरू को औरत की अमूल्य थाती मानतीं. आचरण की सीखें देतीं. शर्म में पनडुब्बी सी डूबी रहतीं.

कुंती के आह्वान करते ही सूर्य आ गए थे. नहाईधोई मां एक सपने के सुपुर्द थीं. जहां चाह वहां राह. मां का सपना सच. काम अंधा होता है. बहक गए कदम. देह के दबाव में आ गई मां. लोहा लोहे से कटता है. देह देह से बुझती है.

डाकिनी रात.

धरती दरकी. धरती फटी. धरती लहूलुहान हुई. धरती जोरजोर से हिली. धरती आसमान छू गई. धरती हिलतीहिलती थिर गई थी. मूसलाधार बारिश हुई. मां नहा गई. सीप में स्वाति की एक बूंद सी मैं मां में आकार लेने आ गई थी.

मुसलमान परिवारों में मामाफूफी के लड़केलड़की के बीच पतिपत्नी के रूप में एक सहज संजीदा रिश्ता होता है. लेकिन हिंदुओं में यह रिश्ता राखी से जुड़ा है.
भोलीभाली मां को 2 महीने बाद पता चला कि मैं उन में हूं, इस सदमे का सामना मां नहीं कर पा रही थी. माथे की नसें तड़कतीतड़कती रुकीं. विक्षिप्त सी मां एकडेढ़ महीने तक गालियां खाती रहीं कि पाप गिर जाए.

मां की वह पलभर की कामाग्नि अब क्रोधाग्नि और चिंताग्नि में बदल कर उन्हें जलाने लगी थी. मां दिन झुलसतीं, रात सुलगतीं. न खातीं, न पीतीं, न सोतीं. बस, हर समय अपनी उस गलती को कोसती रहती थीं.

शुक्ल पक्ष के चंद्रमा की तरह जितनी तेजी से मैं मां के गर्भ में बढ़ रही थी, बछेड़ी सी छरहरी मां की काया कृष्ण पक्ष के चांद की तरह क्षणक्षण घटती जा रही थी.

भ्रूण हत्या की बात अब बेमानी थी. मां ने साढ़े 3 महीने तक अपने पेट में रख कर मुझे जीवन दे दिया था.
पाप छिपाती मां बदहवास रहने लगी थीं. मां का हर पल साल सा बीतता. मां का तकिया आंसुओं से भीग जाता. छोह से भरी मां पेट पर मुक्के मारतीं, ताकि अनचाही मैं भीतर ही मर जाऊं. मां कहतीं, ‘दुष्ट, मर जा तू.’

मैं बादाम की गिरी सी मां में सुरक्षित थी.

चिंता और हताशा से घिरी मां ने कई बार खुद को मारने का मन बनाया था. शायद उन्होंने यह सोच कर कि 2 हत्याएं होंगी, ऐसा कदम न उठाने के लिए उठते आवेग को दबा लिया था.

मां के बदलते हावभाव और पटरी से उतर गई दिनचर्या से मामी के मन में शक पनपने लगा था. चूंकि नानी नहीं थीं, इसलिए अब मामी ही मां की मां थीं. बालबच्चों वाली मामी कई दिनों तक मां की उदासी को मासिक दिनों की गड़बड़ी समझती रही थीं.

एक दिन मामी ने मां से कहा भी था, ‘चंपी, अगर तबीयत ठीक नहीं रहती है, तो डाक्टर को दिखा लाऊं.’

‘नहीं,’ कहने के साथ मां के हाथ का निवाला हाथ में ही रह गया और मुंह का मुंह में. मां उठ कर भीतर चली गई थीं.

मामी का संदेह और पुख्ता हो गया था. धरती से बीज और औरत के पेट छिपाए नहीं छिपता है. और एक दिन शक से घिरी मामी ने खिड़की की झिर्री से कपड़े बदलती मां का पेट देख लिया था.

आकाश धरती पर आ गिरा था. प्रलय. मामी का सुर्ख लाल चेहरा जर्द हो गया था. तैश और रंज से बेहाल मामी दीवार से सिर टकराने लगी थीं. आबरू हलाल. अनचाहा काल. क्या बनेगी अब.

रात के 11 बजे थे. मां का दरवाजा खटखटाया. खुद के सांस का भी सामना करने की हिम्मत हार चुकी मां की घिग्घी बंध गई थी. वे डरतेडरते उठीं. दरवाजा खुला. मामा थे. 35 साल की उम्र. हाथी सा भारी बदन. चेहरे पर बड़ीबड़ी मूंछों के 2 गुच्छे. पुलिस में डीएसपी. डंडा मार कर जमीन से पानी निकालने की कूवत. आग के शोले से वह भीतर घुसते आए थे. मामी साथ थीं.

‘जी, भैयाजी,’ मां मानो जमीन में अब धंसी.

मामा की खून भरी मोटीमोटी आंखें मां को लीलती गईं, ‘का… कौन है.’

‘कौन है?’ मां माथा पकड़ कर बैठ गई थीं. दोनों का आधाआधा दोष है. करोड़ों की संपत्ति के वारिस कुलदीपक को बुझवाऊं.
पाप उजागर था. मां सुबकसुबक कर रोए जा रही थीं.

मामा की जेब में पिस्तौल थी. मामा गुस्से में थे. उन का हाथ जेब में जाते देख मामी ने उसे वहीं पकड़ लिया था, ‘बहन की हत्या करोगे.’

‘नीच,’ मामा दनदनातेफनफनाते मां के कमरे से बाहर निकल आए थे.

मामा ने अपने कमरे में आते ही छोटे मामा को फोन मिलाया, जो जयपुर में बिजनैस करते हैं. बड़े मामा की आवाज भर्राई थी.
बड़े मामा कहने लगे, ‘तुम्हारे पास ही ला रहा हूं पापिन को.’

बड़े मामा ने फोन पटक दिया था. बेहद दुखी मन से वे बोले थे, ‘भेड़ सी भोली बहन, बाघिन बन गई तू.’
कार रातोंरात चलती रही थी.

भोर का समय था. सूर्य की पीली किरणें अभी फूटी नहीं थीं. बड़े मामा की कार छोटे मामा की कोठी के सामने आ रुकी थी. मां कार में डरी कबूतरी सी बैठी थीं. बड़े मामा दबे कदम गाड़ी से बाहर निकले. उन्होंने घंटी बजाई. अंदर से किसी के उठ कर आने की आहट हुई.

दरवाजा खुला. छोटे मामा थे. उन की आंखें कह रही थीं कि वह रातभर सोए नहीं हैं. दया तभी आती है, जब अगला दया का पात्र हो.

कार का दरवाजा खोल कर बड़े मामा ने मां को बड़ी बेरहमी से कार से बाहर कर दिया था.

कुंआरी का पेट घर की आबरू की कब्र होती है. दोनों भाइयों के होंठ बोलतेबोलते फड़फड़ा कर ही रह गए थे. अल्फाज घुट कर कंठ में ही दफन हो गए.
पानी में लाश बहा कर लोग लाश को देखते नहीं हैं. मां को यहां छोड़ते ही बड़े मामा गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा ले गए थे. हां, उन्होंने कार के कांच से जमीन पर थूक जरूर दिया था.

छोटी मामी ने मामा की इस घिनौनी बात को मानने से साफ मना कर दिया था कि मां को जहर दे दिया जाए. उन्होंने इतना ही कहा था, ‘रहने दीजिए, बच्ची गलती कर बैठी है.’

मजबूत कदकाठी के गोरेचिट्टे छोटे मामा को मां नरक दिखतीं. जब भी मां सामने आ जातीं, तो वह अपनी गरदन घुमा लेते या मुंह पर रूमाल ले लेते. मां जैसे उन की सगी बहन नहीं, जन्मजन्म की बैरन हों. मामा कल तक मां को बांहों में भर कर लाड़ से कहा करते थे, ‘मेरी बहन का ब्याह इतिहास होगा.’

आज…

मामी मां से रोजरोज उस का नाम पूछतीं. शायद मामा ही मामी पर दबाव डाल रहे होंगे. मामी मां से जितना खोदखोद कर पूछतीं, मां उतनी ही रोतीं, पर मुंह नहीं खोलती.

छोटे मामा की एक पड़ोसन थीं. 32 साल की उम्र. बेडौल होती काया. गपों की पिटारी. हमप्याला. 2 दोस्तों की तरह मामी और पड़ोसन एक ही कटोरी में खा लिया करती थीं.

पड़ोसिन आती. वह मां के धंसते जा रहे गालों की चिकोटी काट कर मां को अपनी मजबूत बांहों में भर लेती. फिर कहती, ‘सूखे पत्ते सी कितनी कमजोर हो गई है, मेरी बिटिया.’ फिर वह मां के लंबेलंबे केशों में उंगलियां फेर कर कहती, ‘यही तो औरत का धर्म है कि वह खुद धरती सी छीजती संसार रचती है. औरत की संपूर्णता औरत की कोख होती है.’

मामी की ओर देखते पड़ोसन की आंखों में शिकायत होती, ‘दुर्गी, यह तो अभी बच्ची है. इस की बच्चे करने की उम्र थोड़े न है.’

पड़ोसन का नाम करनी था. कुंद हुई मामी बात टाल जातीं, ‘करनी, क्या बताऊं, इस की बूढ़ी सास है. पोतेपोती का मुंह देखने के लिए जान देती है.’

पड़ोसन के लिए मां जैसे टाइमपास करने का एक जीताजागता खिलौना बन गई थीं. लेकिन मां चिंता और उदासी की गठरी बनी रहतीं.

मां को अपनी बांहों में समेट कर पड़ोसन सीखें देती, ‘बेटी, पेट वाली औरत को ऊंचीनीची जगह से बचना चाहिए.’

‘बेटी, ज्यादा ठंडेगरम पानी से मत नहाना, बच्चा होने के बाद पेट पर बादल पड़ जाते हैं. साड़ी पहनते औरत अच्छी नहीं दिखती.’

‘बेटी, एक करवट मत सोए रहना. पेट में बच्चे को हिलनेडुलने में दिक्कत होती है.’

पड़ोसिन की ये सीखे मां को शूल सी चुभतीं. मां उस की बांहें छुड़ा कर टपकती आंखों को हथेली की ओक में समेटती भीतर चली जातीं. चेहरे पर पड़ रही झाइयां और झुर्रियां आंसुओं से गीली हो जातीं.

पड़ोसन का घर आते रहना मामी की आंखों में पड़े कंकड़ सा करकने लगा था. एक दिन मामी ने सीधीसादी पड़ोसन में 5 साल पुरानी अपनी दोस्ती से यह सोच कर कुट्टी कर ली थी कि एक ‘नागिन’ के घर से निकल जाने के बाद फिर से उसे मना लूंगी.

मामी की बड़ी बिटिया कीनू 4 साल की और छोटी मीनू 3 साल की थी. उन दोनों अबोध बच्चियों को मामी मां से बचाए रखतीं, मानो मां कोढ़, खाज या तपैदिक की मरीज हों.

मामी जब भी उन बच्चियों को मां से घुलीमिली देखतीं, गुस्से से आंखें तरेर कर कहतीं, ‘कीनूमीनू, दोनों इधर आओ. चलो, नहाधो कर कपड़े पहनो और नाश्ता करो.’ पर, मामी की आंखें बचते ही वे बच्चियां फिर मां के गले आ लिपटतीं.

मां के कारण मामामामी का एकएक पल पहाड़ सा कटता. खेत के रखवाले की तरह उन की निगाहें हर क्षण चौकस रहतीं. मामामामी जब भी अकेले बैठते, मामी खीज कर कहतीं, ‘न जाने कब इस डाकिन से पिंड छुटेगा.’

मामा कहतेकहते भी कुछ नहीं कहते.

मामी पूछतीं, ‘डाक्टर से मिले थे.’

मामा का भारी मन टीस उठता, ‘दिन में रोज 2 बार फोन कर लेता हूं. वे एक ही सलाह देते हैं, इस तरह के गर्भपात में खतरा है.’

मैं मां के पेट में साढ़े 8 महीने की थी. मामा डाक्टर के इस सुझाव के साथ मां के लिए गोलियां लाए थे कि इन गोलियों को खाने से प्रेगनेंट का दर्द उठेगा. दर्द उठे, देर मत करना.
मां सब गोलियां हजम कर गई थीं. दर्द नहीं उठा था. हां, मानसिक पीड़ा से मां दोहरी हुई जाती थीं.

वह काली रात.

मामा मां को अस्पताल ले गए थे. मामी को भी साथ रखने की जरूरत नहीं समझी थी मामा ने.
स्टील के बड़ेबड़े औजार और मां के पेट में मुलायम सी मैं. स्त्री और पुरुष के प्राकृतिक संबंधों की नाजायज, अवैध औलाद.
अई मां, औजार 15 दिन पहले ही मुझ मां के पेट से खींच लाए थे.

खेत में पड़ी मैं चींटों की नोंच से बिलखतीतड़पती रुके गले से रोए जा रही थी कि एक कार एकाएक आ कर रुकी. मैं घबरा गई थी कि कहीं वही कसाई फिर आ गया है.

कई बार ऐसे संयोग बन जाते हैं, जिन पर विश्वास नहीं होता. दरअसल, वह कार यहां आ कर खराब हो गर्ई थी. कार से 2 आदमी नीचे उतरे थे. बिजली की चमक और टार्च की रोशनी एकसाथ मुझ पर गिरी. टार्च वाले आदमी ने मेरी ओर उंगली का संकेत कर के कहा, ‘लगता है, कोई नवजात बच्चा रो रहा है.’

बिना टार्च वाले ने आगे बढ़ते हुए कहा, ‘मैं उठा लाता हूं. अस्पताल में भरती करा देंगे, शायद जी जाए.’

टार्च वाले ने मना किया, ‘थाना, कचहरी का झंझट होगा. बेवजह हम फंसेंगे.’

बिना टार्च वाले आदमी में दया उपजी, ‘मैं लाता हूं उसे. अस्पताल पहुंचाना चाहिए.’

टार्च वाला आदमी गाड़ी का मालिक लगता था, वह कहने लगा, ‘मैं गाड़ी ठीक करता हूं, तुम उठा लाओ उसे.’

और वह दयावान मुझे अपने अंगोछे में लपेट लाया था.
शिशुगृह उन के रास्ते में पड़ता था. वे लोग मुझे शिशुगृह में रख कर चले गए थे.

मेरी दशा देख, दीदी की आंखों में आंसू भर आए थे. शायद मुझ सा दुर्भाग्य वह पहली दफा निरख रही होंगी. मुझे पालना से उठाते ही दीदी के शरीर पर असंख्य चींटे चढ़ गए थे.
भरी रात थी. मेरी दुर्दशा ने दीदी की आंखों की नींद उड़ा दी थी.

दीदी ने डिटोल घुले टब में मुझे झटपट नहलाया. मेरी समूची चमड़ी चींटों ने चाट ली थी. चमड़ी उतरे खरगोश सी मैं दीदी के हाथों में थी, मांस का लोथड़ मात्र. मरे चींटे टब में बादल के टुकड़े जैसे तैर रहे थे.

दीदी ने कपड़ा लपेट कर मुझे झूले में डाल दिया था और स्वयं कपड़े बदलने चली गई थीं कि मुझे तुरंत अस्पताल ले जाएंगी.

मेरी दुर्दशा देख डाक्टर की आंखें भर आई थीं. वे हतवाक थीं. उन की आंखों के कोर गीले थे. मेरी जांच करते उन के हाथ थरथर कांप रहे थे.

अस्पताल में रहते मेरे शरीर पर चमड़ी आने लगी थी. चींटों के डंक पीबने लगे थे. संक्रमण का खतरा बन गई मेरी बाईं आंख का आपरेशन हुआ. आंख निकालनी पड़ी थी. मेरी आंख के साथ ही आंख की खोह से मरे पड़े कई चींटे निकले थे.

15 दिन बाद मुझे शिशुगृह में ले आया गया था. जिस दिन मैं शिशुगृह में आई थी, उसी दिन दीदी ने मेरा नाम ‘शोभा’ रख कर मेरी फाइल तैयार की थी.

दूध पिलाती दीदी रोज मेरी सांसों की दुआएं मांगतीं और मैं अपनी बदहाल जिंदगी से मुक्ति. दीदी हारीं, मैं जीती.

 

 

 

लेखक-रत्नकुमार सांभरिया

चुनौतियां-भाग 6: गुप्ता परिवार से निकलकर उसने अपने सपनों को कैसे पूरा किया?

10 मिनट में हम ट्रांजिट कैंप में पहुंच गए. मैं उन के औफिस में गई. मूवमैंट और्डर पर स्टैंप लगवाई और गाड़ी में आ कर बैठ गई. गाड़ी यूनिट की ओर चल दी.यूनिट में पहुंच कर मैं ने एडयूडैंट कैप्टन अर्जुन सिंह को रिपोर्ट किया. उन्होंने मेरा उठ कर जबरदस्त स्वागत किया. तुरंत गरमागरम चाय मंगवाई. सर्दी बहुत थी, मैं ने केवल ठंडी कमीज पर कोटपारका पहना हुआ था. चाय की मुझे सख्त जरूरत थी. चाय पी कर बहुत अच्छा लगा.

कैप्टन अर्जुन सिंह ने कहा, ‘आप अपने सहायक को ले कर क्वार्टरमास्टर में जा कर स्नो क्लोथिंग और एक्स्ट्रा क्लोथिंग ले लें. फिर इस वातावरण में घुलमिल जाने के लिए अगले 48 घंटे रैस्ट में रहेंगी. ‘सतनाम सिंह,’ कैप्टन साहब ने आवाज दी. मेरा सहायक तुरंत हाजिर हुआ.‘मैडम को क्वार्टरमास्टर के पास ले जाओ और सारे कपड़े दिला दो और इन के कमरे में रखवा देना. अपस्लोटर खान को बुला कर ले आना. मैडम की सारी यूनिफौर्म फिट करवा कर तैयार करवा देना.’

‘जी, साहब.’‘लै. नीरजा, खान है तो टैंट रिपेयर करने के लिए लेकिन यूनिफौर्म बहुत अच्छी फिट करता है. हम सब उसी से यूनिफौर्म फिट करवाते हैं. सौ रुपया एक यूनिफौर्म का लेता है. आप नाप देने के बजाय उस को अपनी कमीज और पैंट दे देना. वह उस के मुताबिक फिटिंग कर देगा.’‘जी,’ कह कर मैं उठ खड़ी हुई. सैल्यूट किया और कमरे से बाहर आ गई. सतनाम मुझे क्वार्टरमास्टर के पास ले गया. सभी ने मुझे उठ कर सैल्यूट किया. क्वार्टरमास्टर सूबेदार रवि किशन थे. मैं ने अपना परिचय दिया, ‘मैं लै. नीरजा गुप्ता, आप की यूनिट में नई पोस्टिंग आई पर हूं.’

‘मैडम, आप का स्वागत है. मेन औॅफिस में आप का मूवमैंट और्डर आया था तो सभी उत्सुक थे कि पहली बार किसी महिला अफसर को यूनिट में देखेंगे,’ सूबेदार रवि ने कहा.दस मिनट में मुझे सारा क्लोथिंग दे दिया गया. सतनाम मुझे अपने कमरे ले आया. कमरा साफसुथरा और सुंदर था. पलंग, टेबल, 2 कुरसियां रखी थीं. टेबल पर टैलीफोन था. वाशरूम देखा, वह भी मौडर्न था. गीजर से ले कर अन्य सारी सुविधाएं उपलब्ध थीं.‘मैडम, अब आप आराम करें. आप 48 घंटे के रैस्ट पर हैं. यह इंटरकौम रखा है, आप वर्कशौप में किसी से भी बात कर सकती हैं. सभी आप से भी बात कर सकते हैं,’ सतनाम थोडी देर के लिए रुका, फिर बोला, ‘मैडम जी, आप वाशरूम में जा कर इजी हो जाएं. मैं आप के लिए नाश्ता लाता हूं.’
तभी टैलीफोन की घंटी बजी, ‘हैलो.’

‘जयहिंद मैम, मैं अफसर मैस से हवलदार शेखर बोल रहा हूं. जी, मुझे आप की डाइट के बारे में पूछना है कि आप मीट ईटर हैं, ऐग ईटर या वैजीटेरियन हैं. मैं उसी के अनुसार आप का ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर तैयार करवाऊंगा.’‘मैं ऐग इटर हूं,’ मैं ने जवाब दिया और फोन बंद कर दिया.सतनाम, मेरा नाश्ता लेने अफसर मैस चला गया था. मैं ने मिले क्लोथिंग में से अंडरपैंट वूलन, वेस्ट वूलन फुलस्लीव निकाली और बक्से में से नाइट सूट निकाला और यूनिफौर्म चेंज करने के लिए वाशरूम में घुसी. यूनिफौर्म हैंगर में लगा कर अलमारी में रख दी. सिर पर मैं ने कैप वलकलावा ही पहनी. दूसरी कैप मेरे पास नहीं थी. सतनाम नाश्ता ले आया. चाय थरमस में थी. नाश्ता करने लगी तो सतनाम चाय कप में डालने लगा. मैं ने उसे रोका, कहा, ‘चाय अभी मत डालो, ठंडी हो जाएगी. मुझे चाय तेज गरम चाहिए होती है. नाश्ता कर लूं, फिर डालना.’

‘जी, मैडम. आप अभी तक कैपवलकलावा ही पहने हैं?’ ‘हां, सतनाम. मेरे पास दूसरी कैप नहीं है.’
‘कोई बात नहीं, मैडम जी, यहां यूंनिट कैंटीन में बड़ी अच्छीअच्छी कैप आई हुई हैं. सिविल ड्रैस में पहनने के लिए. आप चलें मेरे साथ कैंटीन में. कैप ले लें. सभी अफसर पहनते हैं.’
‘मेरी सैलरी अकाउंट में नहीं आई है.’‘पैसों की जरूरत नहीं है, मैडम जी. सभी अफसरों को 2 महीने का क्रैडिट मिलता है. कैप ही नहीं, और भी जो चाहिए, मिल जाएगा. क्वार्टरमास्टर के साथ ही कैंटीन है.’
मैं नाश्ता खत्म कर के चाय पीने लगी. चाय गरम और बहुत टैस्टी थी. चाय पी कर मैं कैंटीन पहुंची. मुझे देख कर सब खड़े हो गए और सैल्यूट. सतनाम को साथ देख कर वे समझ गए थे कि मैं ही यूनिट में नई अफसर आई हूं.

‘जी, मैम.’‘मुझे अच्छी कैप चाहिए जो मैं सिविल ड्रैस के साथ पहन सकूं.’
‘जी, मैम,’ कह, वह कैप का डब्बा ले आया. कैप वलकलावा की तरह मैं ने 2 कैप लीं, एक काले रंग की जोकिसी भी ड्रैस के साथ पहनी जा सकती थी, दूसरी ग्रे रंग की.‘आप के पास अच्छे नाइटसूट हैं जो इतनी सर्दी में पहने जा सकें?’‘जी, मैम. अभी नया स्टाक आया है.’दो नाइटसूट लिए. पीयर सोप, टूथपेस्ट और जो भी जरूरत की चीजे थीं, सब ले लीं.मैं जाने लगी तो कैंटीन इंचार्ज बोला, ‘सिविल ड्रैस पर पहनने के लिए कोटपारका आया है. वह भी देख लें, आप को अच्छा लगेगा.’

मैं ने कोटपारका पहन कर देखा. सच में बहुत सुंदर था. मैं ने वह भी ले लिया. सब क्रैडिट पर मिल गया. सतनाम सब सामान कमरे में ले आया. नाइटसूट पहन कर देखे तो सब ठीक थे. केवल यूनिफौर्म फिट करवानी थी.‘ सतनाम, अपलोस्टर को बुला लाओ, यूनिफौर्म फिट करने के लिए दे दें.’
‘जी, मैडम.’ कह कर सतनाम चला गया. थोड़ी देर बाद एक अधेड़ उम्र के आदमी ने सलाम किया.‘आदाब मैम, मैं, अपलोस्टर खान.’.‘सतनाम, यह काला बक्सा खोलो. इस में ठंडी यूनिफौर्म है, उसे निकालो.’
‘यह, मैडम.’‘हां, यही.’‘खान, नाप के लिए ड्रैस ले जाओ. आप को पता है, यूनिफौर्म के नीचे बहुत से कपड़े पहने जाएंगे. इस हिसाब से आप कम से कम दोदो इंच खुली रखना. मैं ने एक्स्ट्रा लार्ज साइज ईयू करवाया है. मुझे यूनिफौर्म का मीडियम साइज आता है. पहले एक यूनिफौर्म फिट कर के दिखा देना. कितनी देर में दिखाओगे?’

‘मैम, लंच से पहले दिखा दूंगा.’‘आज मुझे कितनी यूनिफौर्म फिट कर के दे दोगे?’
‘कम से कम 2 यूनिफौर्म.’‘कुछ एडवांस चाहिए?’‘नहीं, मैम.’‘ठीक है, खान, अब आप जा सकते हैं. मुझे कम से कम 2 युनिफौर्म आज चाहिए.’‘मिल जाएंगी, मैम.’खान चला गया तो मैं ने सतनाम से कहा, ‘ऐसा करो, बक्से के सारे कपड़े निकाल कर हैंगर में लगा कर अलमारी में रख दो. फिर सोने के लिए मेरा बिस्तर तैयार कर दो.’सतनाम चुपचाप अपना काम करने लगा. इतने में बाहर का दरवाजा खटका. कुक एक ट्रे में चाय की थरमस और कुछ स्नैक्स ले कर खड़ा था. मैं ने उसे अंदर बुला कर चाय सर्व करने के लिए कहा. मैं चाय की चुस्कियां लेने लगी. मैं ने सतनाम से पूछा, ‘इस समय आप लोगों को चाय नहीं मिलती?’
‘मिलती है, मैडम जी, पर उस के लिए अभी विसल नहीं बजी है.’

थोड़ी देर बाद विसल बजी, तो सतनाम चाय पीने चला गया.‘मैडम जी, मैं चाय पी कर आता हूं, बाकी काम आ कर करता हूं. आप को कुछ नहीं करना है, जी.’सतनाम तो अच्छे घर का लड़का लगता है. कोई मजबूरी रही होगी जो हैल्पर में भरती हुआ. देश में गरीबी सब से बड़ी मजबूरी है. मैं गहरी सोच में डूब गई.
‘मे आई कम इन, मैडम?’‘यस, कम इन.’‘जयहिंद मैम, मैं मैस हवलदार शेखर हूं. मैं आप से लंच और डिनर का मीनू पूछने आया था.’

‘क्या सभी अफसर खाने का अलगअलग मीनू देते हैं? आप सब की पसंद का खाना सर्व करते हैं?’
‘मैम, 4 अफसर ही तो हैं. उन में से एक और्डनैंस अफसर हैं. दाल, चावल और रोटी तो सब के लिए एकजैसी बनती है लेकिन सब्जी अलगअलग पसंद की बनाते हैं. इस तरह 4 सब्जियां खाने को मिल जाती हैं.’‘मुझे आलू की सब्जी बहुत पसंद है, चाहे वह किसी भी तरह बनाई जाए. लेकिन आलू मीठे नहीं होने चाहिए.’‘नहीं मैम, हल्द्वानी के आलू खरीदे जाते हैं. वे मीठे नहीं होते. एक बजे आप का लंच यहीं आ जाएगा. वैसे, आप की और सीओ साहब की पसंद एकजैसी है. उन को भी आलू बहुत पसंद हैं.’ यह कह कर मैस हवलदार चला गया.

सतनाम चाय पी कर लौट आया था. उस ने बक्से का सारा सामान अलमारी में सजा दिया. 2 जोड़ी बड़े बूट उस ने पलंग के नीचे रख दिए. बिस्तर के लिए सब से पहले मैटरस बिछाई. उस के ऊपर 2 कंबल बिछाए. बैडहोल्डाल से निकाली सफेद बैडशीट बिछाई. सिरहाना रखा और उस के दूसरी छोर पर स्लीपिंग बैग रख दिया. मेरा बिस्तर तैयार था.‘मैडम जी, अब मैं जाता हूं, लंच के बाद आऊंगा. दोनों बूट तैयार कर दूंगा.’
सतनाम निकला तो खान ने दरवाजा खटकाया, ‘मैम, इस वर्दी की फिटिंग देख लें, ठीक हुई तो इसी के मुताबिक बाकी वर्दियां तैयार की जाएंगी. मैं वाशरूम में गई और पहन कर देखी. परफैक्ट फिटिंग थी.
मैं ने बाहर आ हर कहा, ‘ बिलकुल ठीक है. इसी के अनुसार फिटिंग कर देना. गरम पैंटों की फिटिंग सफाई से करना.’

‘उस की आप चिंता न करें. कोई शिकायत नहीं मिलेगी.’ सर्दी लग रही थी, खासकर पैरों को. मैं ने अलमारी से गरम सौक्स निकाले, पहन कर स्लर्र्पिंग बैग में घुस गई. सेना में सबकुछ व्यवस्थित होता है. खुद को सैटल करना कितना आसान है. मुझे पता ही नहीं चला, कब नींद आ गई. मेरी आंख तब खुली जब कुक लंच ले कर हाजिर हुआ. टेबल पर लंच लगाने में सतनाम कुक की हैल्प कर रहा था.
‘मैडम जी, उठो लंच कर लो. मैं क्वार्टरमास्टर से रूमहीटर ले आया हूं. दिनरात चलने दें, कमरा गरम रहेगा.’ मैं लंच करने लगी. कुक और सतनाम बाहर इंतजार करने लगे. खाना घर से भी ज्यादा स्वादिष्ठ था. पेट भर खाया. मैं ने सतनाम को आवाज दी. कुक बरतन उठा कर ले गया. मैं कुरसी पर बैठ कर घर में बात करने लगी. मां, बाऊ जी से बात हुई. मैं ठीक से सैटल हो गई हूं. सर्दी बहुत है. मैं इस मौसम में घुलमिल जाने के लिए 2 दिन के रैस्ट पर हूं. शानदार कमरा है. अटैच वाशरूम है. गरम कपड़ों से ले कर सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं. चिंता की कोई बात नहीं है. यह जानकर सब बहुत खुश हुए. लड़की को इतनी दूर भेजने से मां, बाऊ जी कतरा रहे थे.

मैं फिर स्लीपिंग बैग में घुस गई. हीटर के कारण कमरा गरम हो गया था. सतनाम ने दोनों बूट चमका दिए थे. पलंग के नीचे बूट रख कर सतनाम ने कहा, ‘मैडम जी, मैं जा रहा हूं. अंदर से कुंडी लगा लें. मैं अपलोस्टर के पास बैठूंगा. आप की यूनिफौर्म फिट करवा कर वाश और प्रैस करवा कर आऊंगा.’
‘सतनाम, कैंटीन से लाए नाइटसूट, कैप वलकलावा और कोटपारका भी ले जाओ. यहां ड्राईक्लीन की सुविधा है?’

‘है, मैडम जी. सब है. अब शाम 6 बजे आऊंगा. आप की चाय भी 6 बजे आती है.’
मैं कुंडी लगा कर बिस्तर में घुस गई. खूब सोई इतना कि सुबह फ्लाइट लेने में खराब हुई नींद पूरी हो गर्ह. घड़ी की ओर देखा तो शाम के 6 बजने वाले थे. मैं वाशरूम में गई. फ्रैश हो कर बाहर आ गई. दरवाजा खटका. मैं ने खोला तो सतनाम सारे कपड़े ले कर अंदर आया. उस के पीछे कुक चाय की ट्रे ले कर खड़ा था. मैं बिस्तर पर ही बैठी रही. कुक ने मुझे वहीं चाय पकड़ा दी. कप वह बाद में ले कर जाएगा. चाय मन मुताबिक गरम और टैस्टी थी.

‘यह आप का ठंडा ड्रैस जो आप ने नाप के लिए दिया था. यह भी धुल कर प्रैस हो गया है. आप की 2 यूंनिफौर्म बिलकुल तैयार हैं. मैं इन को स्टार लगा कर हैंगर में लगा देता हूं. मैडम जी, और हैंगर हैं?’
‘शायद नहीं हैं.’‘कोई बात नहीं. मैं कैंटीन से अभी ले कर आता हूं. 12 हैंगर ले आऊं?’
‘पैसे ले जाओ.’ ‘कैंटीन वाला आप से क्रैडिट बिल साइन करवा लेगा. वह कच्चे कागज पर लिख कर मेरे साइन ले लेगा.’ थोड़ी देर बाद वह हैंगर ले कर लौट आया. मेरी दोनों यूनिफौर्म स्टार लगा कर तैयार कर दी हैं. यहां बौर्डर एरिया में पीतल के स्टार नहीं लगते हैं. वेब के बने स्टार होते हैं, उन्हें लगाया जाता है. कोटपारका में भी वेब के स्टार लगा कर हैंगर में टांग दिया. बूट और बैल्ट पहले ही तैयार कर दी थीं.
‘अच्छा मैडम जी, अब मैं जाता हूं. कल सुबह हाजिर होऊंगा. कोई काम पड़े तो मैस हवलदार को बता दीजिएगा. मुझ तक संदेशा पहुंच जाएगा.’

सतनाम चला गया. परसों मेरा बटालियन कंमांडर से इंटरव्यू है. उस के लिए सब तैयारी हो चुकी थी. बाहर हवा फिर तेज हो गई थी. सतनाम कह रहा था कि सरदार जी के दिमाग की तरह यहां के मौसम का भी पता नहीं चलता है कि कब बिगड़ जाए. कह कर वह हंस दिया था. बाद में उस ने बताया था कि वह खुद सिख फैमली से है. घर में बूढ़े मांबाप के अलावा और कोई नहीं है. बुजुर्गों का बनाया घर है जिन में वे रहते है. वह पैसे भेजता है तो उन का दानापानी चलता है. ‘शादी नहीं की?’ इस पर उस ने कहा था, ‘हम गरीब आदमियों को कौन लड़की देता है, मैडम जी. हमारा जीवन ही घर से बाहर गुजरता है.’
आगे वह कुछ बोल नहीं पाया था. मैं ने भी उसे नहीं कुरेदा. दरवाजा खटका. मैं ने पूछा, ‘कौन?’ ‘मैम, बार ब्वाय. ड्रिंक ले कर हाजिर हुआ हूं.’

‘अंदर आ जाओ.’ट्रे में रम की बोतल, व्हिस्की की बोतल, वाइन, गिलास और स्नैक्स रखे थे. ब्वाय के पूछने पर मैं ने कहा, ‘मैं तो केवल वाइन पीती हूं.’‘मैं वाइन भी लाया हूं पर वाइन से सर्दी नहीं जाएगी. आप अंदर बैठी हैं, हीटर चल रहा है, इसलिए सर्दी महसूस नहीं हो रही है. बाहर खून जमा देने वाली सर्दी है. सिर्फ रम इस का इलाज है. एक पैग रोज सरकार की तरफ से मिलती है, जी. मैम, कहिए रम दूं या कुछ और.’‘ठीक है, एक पैग रम का दे दो.’ बनिए परिवार की लड़की, जहां मीट, अंडा और शराब पीना वर्जित है, आज रम पिएगी. कुछ देर के लिए मन के भीतर अपराधबोध आया, फिर मैं ने उसे झटक दिया. यहां लेह में जमा देने वाली सर्दी है. रम, व्हिस्की के सहारे ही जीना पड़ेगा.‘कुछ स्नैक्स भी लाए हो?’‘जी, मैम. पनीर के पकौड़े लाया हूं.’

उस ने एक पैग गिलास में डाला, पानी की बोतल से पानी डाला. मैं ने थोड़ा और पानी डालने के लिए कहा. प्लेट में पकौड़े डाले. बोला, ‘आप ड्रिंक लें, मैं जाता हूं. मैं ने एक पैग और दूसरे गिलास में डाल दिया है. अच्छा लगे तो पी लीजिएगा. मैम, अभी 8 बजे हैं, 9 बजे डिनर ले कर आऊंगा.’धीरेधीरे मैं ने एक पैग गटक लिया. सर्दी के कारण पता ही नहीं चला कि कुछ नशा हुआ है. सरूर तो आया लेकिन इतना नहीं. मैं ने दूसरे गिलास में रखे पैग में भी पानी डाला और पीने लगी. पनीर के पकौड़े भी अच्छे बने थे. मैं ने 2 पैग लगाने में 45 मिनट लगाए. पैरों को सर्दी महसूस होने लगी थी. मैं बिस्तर में आ कर बैठ गई.

डिनर भी आने वाला होगा. 9 बजने के ठीक 5 मिनट पहले डिनर आ गया. बड़े टिफिन और हौटकेस में सब पैक था. टेबल पर डिनर लग गया. डिनर लाने वाला बाहर चला गया. बिस्तर से उठते ही नशे के कारण थोड़े पांव लड़खड़ाए. कुरसी को पकड़ कर मैं संभल गई. रम पीने का पहला अनुभव था. जानती हूं, धीरेधीरे इस की आदत हो जाएगी. सर्दी भी कम महसूस हो रही थी. मैं ने डिनर खत्म किया. थोड़ी देर में ब्वाय टिफिन और हौटकेस ले गया. मैं बिस्तर पर आ गई. एक बार सोचा, घर में बात कर लेती हूं, फिर मन में आया, इस समय की तो जबान लड़खड़ाएगी. बात करने का विचार त्याग दिया. मैं ने कोटपारका उतार कर अलमारी में टांग दिया. बिस्तर पर स्लीपिंग बैग ले कर बैठ गई. बाहर किसी के कदमों की आवाज आ कर ठहर गई.

‘लै. नीरजा, गुडइवनिंग. कैसी हैं आप?’यह तो कैप्टन अर्जुन की आवाज है. मैं ने तुरंत दरवाजा खोला, ‘आइए सर, अंदर आ जाइएगा. बाहर सर्दी बहुत है.’‘मैं पूछने आया था कि आप सैटल हो गईं? खाना खा लिया?’ कहते हुए वे अंदर आ गए.‘जी, बिलकुल सैटल हो गई. ड्रिंक भी लिया और खाना भी खाया.’
‘कल शाम को आप की डाइनिंग इन पार्टी है. फिर मैस में जा कर अपना ब्रेकफास्ट, लंच, और डिनर ले सकेंगी. ड्रैस आप की कौन सी पहननी है, समय रहते बता दिया जाएगा. परसों आप की ठीक 9 बजे बटालियन कमांडर ब्रिगेडियर खुराना साहब से इंटरव्यू है. मैं आप के साथ चलूंगा. 9 बजे का मतलब है, 8 बजे ब्रेकफास्ट कर के हम यहां से चलेंगे. आधा घंटा हमें वहां पहुंचने में लगेगा. उस के बाद सीओ साहब का इंटरव्यू. डीटेल में आप को बताया जाएगा कि आप को क्या करना है. आप उस के मुताबिक तैयार रहिएगा.’

‘जी सर, मैं समय पर तैयार रहूंगी.’‘दैन ओके, मैं चलता हूं. गुडनाइट.’मैं फिर लेट गई. अब कोई आने वाला नहीं था. कब नींद आई, पता ही नहीं चला. सुबह दरवाजा खटकने से नींद खुली. घड़ी देखी, सुबह के 6 बजने वाले थे. कुंडी खोली, सामने मैस ब्वाय चाय ले कर खड़ा था. चाय गिलास में डाली और चला गया. मैं चाय पीने लगी. सतनाम आ गया था. उस ने वाशरूम का गीजर औन कर किया. बाहर आ कर बोला, ‘मैडम जी, आप चाय पी कर फ्रैश हो लेना. 8 बजे आप का ब्रेकफास्ट आ जाएगा.’मैं ने कमरे का दरवाजा बंद किया और फ्रैश होने के लिए वाशरूम में घुस गई. आधे घंटे में नहा कर बाहर आ गई.

सतनाम कह रहा था, ‘मैडम जी, 2 काम रोज जरूर करना. एक रोज नहाना चाहे कितनी भी सर्दी क्यों न हो, दूसरे, रात को सोने से पहले गरम पानी में नमक डाल कर पैर धोना. पैर कम से कम 15 मिनट पानी में डूबो कर रखना जी. पैर पोंछ कर, सुखा कर गरम सौक्स पहन कर सोना जी. इस से अच्छी नींद आएगी और आप के पैर कभी खराब नहीं होंगे जी. यहां सर्दी में पैर बहुत जल्दी खराब हो जाते हैं. सिर में हवा भी बहुत जल्दी लगती है. हमेशा कैपवलकलावा पहन कर रखना जी. रात को सोते समय भी. कईयों के होंठ फट जाते हैं. मैं आप को क्वार्टरमास्टर से लिपसोल ला दूंगा. सभी को मिलती है.’

समय पर ब्रेकफास्ट कर लिया. 10 बजे के करीब मैं ने कैप्टन अर्जुन को फोन किया, गुडमौर्निंग सर, कमरे में पड़ेपड़े बोर हो रही हूं. क्या मैं आप के साथ बैठ कर कुछ टाइम पास कर सकती हूं?’‘यू वर मोस्ट वैलकम बट यू आर नौट अलाउड टू गो आउट औफ द रूम. विल मीट यू इन द इवनिंग, इन डाइनिंग इन पार्टी. मैं आप को पढ़ने के लिए कुछ किताबें भेज देता हूं. बोरियत कम महसूस होगी.’
‘थैंक्स, सर.’ मैं ने फोन बंद कर दिया.चाय आई, लंच किया, फिर शाम का इंतजार करने लगी. 5 बजे की चाय के साथ एक इनविटेशन कार्ड आया, डाइनिंग इन पार्टी के लिए. 3 पीस ड्रैस पहननी थी यानी कोट, पैंट और स्वैटर. यहां सर्दी में कमीज, पैंट, फुल स्लीव स्वैटर, उस के उपर कोट, सिर पर कैप बलकलावा पहनना होगा. नीचे वेस्ट वूलन और अंडर पैंट वूलन भी रहेगा. पतले से पतला व्यक्ति भी इतने कपड़े पहन कर मोटा लगे.

7 बजे पार्टी के शुरु होने का समय था. 15 मिनट पहने जा कर बैठना था. मैं 6.30 बजे तैयार हो गई थी. 6.40 पर कैप्टन अर्जुन मुझे अफसर मैस तक एस्कोर्ट करने आए. हालांकि ऐटीकेट ट्रेनिंग में यह सब बताया गया था. फिर भी बड़ा अजीब लग रहा था. इस प्रकार का प्रोटोकौल और इज्जत केवल फोर्स में ही मिलती है.5 मिनट में हम अफसर मैस पहुंच गए थे. वहां केवल एक अफसर बैठे थे. उन्होंने अपना परिचय कैप्टन मल्होत्रा, आर्मी और्डनैंस कोर, टैक्निकल स्टोर के अफसर इंचार्ज. यानी, कल-पुर्जों के लिए हमें इन के पास जाना होगा.सीओ साहब का इंतजार था. 7 बजने से 2 मिनट पहले सीओ साहब का प्रवेश हुआ. आते ही उन्होंने मुझ से हाथ मिलाया, ‘मैं कर्नल रविंदर सुब्रमनियम.’‘मैं, लै. नीरजा गुप्ता, सर.’
‘रिलैक्स लै. नीरजा. आप सभी भी आराम से बैठें. लै. नीरजा, आप कहां की रहने वाली हैं? गुप्ता फैमली की लड़की सेना में कैसे?’

‘मैं गुरु की नगरी अमृतसर की रहने वाली हूं, सर. मैं जब इंजीनियरिंग कालेज में थी, तभी मैं ने तय कर लिया था कि मैं भारतीय सेना में जाऊंगी. यूपीएससी ने सेना के लिए स्थाई टैक्निकल अफसरों की वैकेंसी निकाली तो मैं ने तुरंत अप्लाई कर दिया. परिवार का विरोध जरूर था लेकिन आखिर में मान गए. मैं कपड़े के व्यापारी फैमली से हूं.’सभी को ड्रिंक सर्व हो गया था. थोड़ा पीने के बाद सभी इंफौर्मल होने लगे थे. सभी अनुशासित थे. मुझ से ट्रेनिंग के बारे में पूछते रहे. आप मेल कैडेट के साथ ट्रेनिंग लेती रही थीं या आप के लिए अलग स्क्वैड बनाया गया था.

‘हम 30 महिला कैडेट थीं. हमारे लिए अलग स्क्वैड बनाया गया था. हम पर आईएमए के एडयूडैंट साहब की सख्त नजर थी. वे रोज आ कर पूछते थे कि ट्रंनिंग ठीक से चल रही है, कोई इंस्ट्रक्टर तंग तो नहीं करता. कोई अभद्र भाषा का प्रयोग तो नहीं करता. अगर करे तो तुरंत बताना, हिचकचाना नहीं. इसलिए ट्रेनिंग में कोई मुश्किल नहीं हुई. भागदौड़ तो रही पर सब आसानी से निबट गया.8 बजे डिनर लग गया. डिनर के बाद सब से पहले सीओ साहब गुडनाइट कर के निकले. उस के बाद और्डनैंस अफसर, फिर मैं और कैप्टन अर्जुन. मुझे अपने कमरे तक छोड़ कर वे अपने कमरे में चले गए.

कल बटालियन कमांडर साहब का इंटरव्यू था. मैं जल्दी सो गई. सुबह बैड टी आने पर उठी. चाय पी और फ्रैश होने चली गई. आज ब्रेकफास्ट मुझे मैस में जा कर करना था. सतनाम आ गया था. उस ने यूनिफौर्म, बैल्ट, बूट निकाल दिए थे और बाहर चला गया था. वह जानता था, मैं उस के सामने यूनिफौर्म नहीं पहन सकती थी.10 मिनट में तैयार हो कर मैं मैस जाने लगी. सतनाम ने आ कर कहा, ‘मैडम जी, कमरे की चाबी दे दें कमरे की सफाई के लिए. आप का बिस्तर भी ठीक करना है.’‘ ठीक है, मैं इंटरव्यू के लिए चली जाऊंगी. सफाई करवा कर चाबी अपने पास रख लेना,’ चाबी सतनाम को देते हुए कहा.

‘मैडम जी, ये 2 चाबियां हैं. एक चाबी आप ले जाएं, एक चाबी मैं रख लेता हूं.’मैं ने एक चाबी उसे दे दी. मैस पहुंची तो कैप्टन अर्जुन ब्रेकफास्ट कर रहे थे. मैं ने उन को गुडमौर्निंग कहा. मैं भी ब्रेकफास्ट के लिए बैठ गई. ब्रैड आमलेट का ब्रेकफास्ट था, साथ में चाय.‘आप जल्दी से ब्रेकफास्ट कर के मेरे औफिस में आ जाएं. वहीं से आगे निकल चलेंगे.’‘जी, सर.’थोड़ी देर में मैं उन के औफिस के सामने पहुंची. कैप्टन साहब जिप्सी की ड्राइविंग सीट पर बैठे थे, ड्राइवर पीछे की सीट पर था. मुझे फ्रंट सीट पर बैठने के लिए कहा. बैठने पर जिप्सी तुरंत बटालियन के लिए चल दी. आधे घंटे में हम वहां पर थे.

‘ब्रिगेडियर साहब, बहुत कम बात करते हैं. वे केवल हाथ मिलाएंगे और यहां के टेन्योर के लिए शुभकामनाएं देंगे,’ कैप्टन अर्जुन ने कहा. बटालियन एडयूटैंट कैप्टन सेनगुप्ता के औफिस में इंटरव्यू रजिस्टर में मेरे परटीकुलर लिखे गए. कैप्टन सेनगुप्ता ने मुझे कमांडर साहब के कमरे के बाहर खड़ा रहने के लिए कहा और खुद रजिस्टर ले कर अंदर चले गए. जाने से पहले कहा, ‘जब मैं अंदर मार्च करने के लिए कहूं, तब आप को अंदर आना है.’थोड़ी देर बाद आदेश पर मैं अंदर गई और स्मार्ट सैल्यूट किया. वे बहुत खुश हुए. खुद चल कर मेरे पास आए. हाथ मिलाया और कहा, ‘लै, नीरजा गुप्ता, आप का हमारी बटालियन में स्वागत है. मैं खुश हूं कि महिला अफसर का स्वागत करने का अवसर मिल रहा है. आप को अपने को किसी से कम नहीं समझना है. अगर कोई दिक्कत आए तो सीधे आप मुझे बताएं. कोई प्रौबलम?’

‘नो, सर.’
‘आप को यहां के टेन्योर के लिए शुभकामनाएं. कैप्टन सेनगुप्ता, मार्च करें.’
मैं ने सैल्यूट किया और कमरे से बाहर आ गई. बाहर कैप्टन अर्जुन खड़े थे, पूछा, ‘सब ठीक रहा?’‘यस, सर.’कैप्टन सेनगुप्ता ने कहा, ‘चाय आने वाली है, चाय पी कर जाना.’‘ थैंक्यू सर, चलेंगे. कर्नल सुब्रमनियम साहब का फाइनल इंटरव्यू. वे इन को डीटेल में समझाएंगे कि क्या और कैसे काम करना है.’
‘ दैन, ओके, बाय.’ कैप्टन सेनगुप्ता ने हम दोनों से हाथ मिलाया और हम अपनी जिप्सी में बैठ कर वापस आ गए. कैप्टन अर्जुन ने कहा, ‘आप सीधे, मे आई कम इन, सर कहें और अंदर चली जाएं. वे आप को बताएंगे कि आप को क्या करना है.’

मैं ने कमरे के बाहर खड़ी हो कर अंदर आने इज्जात मांगी और उन्होंने तुरंत अंदर बुला लिया.’
‘अर्जुन नहीं आया?’‘सर, नहीं वे अपने औफिस में चले गए.’‘आप बैठिए, अर्जुन को बुलवाता हूं.’ और वे बाहर खड़े रनर को बुलाने भेजा.कैप्टन अर्जुन आए और साथ ही चाय भी आ गई. चाय सर्व कर के ब्वाय गया तो कर्नल साहब ने बात शुरू की, ‘आप के सामने काफी चुनौतियां हैं. मैं ने आईएमए से आया रिकौर्ड और सर्टीफिकेट देखे हैं. आप इंटैलिजैंट हैं.’‘थैंकयू, सर.’‘आप की योग्यता को देखते हुए मैं आप को वर्कशौप अफसर की ड्यूटी पर लगा रहा हूं. इस के 2 फायदे होंगे- एक तो आप सब से रूबरू होंगी. आप ने महसूस किया होगा, जब भी आप कहीं के लिए निकलती हैं, कोई औॅफिस से, कोई बैरक से, जो कहीं भी होता है, आप को देखने के लिए ठहर जाता है. लगता है, पूरी यूनिट थम गई हो. उन के मन से जिज्ञासा खत्म हो जाएगी. आज मैं खुद दोपहर 3 बजे आप को साथ ले कर हर सैक्शन में जाऊंगा. दूसरे, आप को काम सीखने का मौका मिलेगा.’

यहां सर्दी बहुत है और औक्सीजन की कमी है. आप ने महसूस किया होगा कि थोड़ा सा चलने पर सांस फूलने लगती है. अभी सितंबर की शुरुआत है. तापमान 4 से 6 डिग्री के बीच है. आगेआगे सर्दी और बढ़ेगी. माइनस 15-16 डिग्री तापमान रहेगा. ऊंचाई वाले इलाकों में हालत और खराब होती है.औक्सीजन और सर्दी के कारण जवानों के शरीर पर कई तरह के प्रभाव पड़ते हैं, जैसे पांव की उंगलियां सूज कर गलने लगती हैं. इस के लिए रोज तेज गरम पानी में नमक डाल कर कम से कम 30 मिनट पांव डूबो कर रखने के आदेश हैं. 24 घंटे बौयलर से वाशरूम में गरम पानी सप्लाई होता है. एडयूडैंट साहब और सीनियर जेसीओ सूबेदार मेजर सूमेर सिंह साहब यह यकीन करते हैं कि सभी जवान अपने हाथपैर धो कर सोने के लिए जाएं. सूबेदार मेजर साहब वर्कशौप में आप को असिस्ट भी करेंगे.

सर्दी के कारण जवानों के होंठ फट जाते हैं. इस के लिए रोज उन को लिपसोल लगाना पड़ता है. एक और भयंकर समस्या है, इंपोटैंसी की. कुछ जवानों में इसे पाया गया है. इस के लिए कार्यक्रम यह है कि हर 3 महीने बाद जवान को छुट्टी पर भेजा जाता है. आप को इन सब को इंटैलीजैंटिली हैंडल करना है. वर्कशौप का काम भी न रुके और रोटेशन बना रहे. अभी आप जाएं. लंच के बाद हम हर सैक्शन में जाएंगे.’
दोपहर बाद कर्नल साहब मेरे साथ हर सैक्शन में गए. मुझे नजदीक से देखने की लालसा जो जवानों के मन में थी, वह अब भी बनी हुई थी. मैं समझती हूं, रोजरोज जब मैं इन सेक्शनों में जाऊंगी तो इन की जिज्ञासा बिलकुल खत्म हो जाएगी. हुआ भी यही. मैं सुबह एक घंटा सरकारी डाक दखने के लिए अपने औफिस में बैठती, फिर शाम को एक घंटा सरकारी डाक साइन करने के लिए. धीरेधीरे जवानों से मैं फैमिलियर होती गई.

जहां मैं हर सैक्शन के काम को समझने लगी थी, वहीं वे हर आदेश को मानने लगे थे. कई तो अपने व्यक्तिगत जीवन की समस्याएं मेरे पास ले कर आने लगे. मैं सूबेदार मेजर सुमेर सिंह की मदद से दूर करने लगी. सब मुझे मानने लगे. कई तो अपनी समस्या मुझे अकेले में बताना चाहते थे. मैं सूबेदार मेजर से डिस्कस करती और जवान को अकेले में बुलाती. एक जवान ने बताया कि उस की वाइफ को घर वाले बहुत तंग करते हैं. मैं जो पैसा भेजता हूं, वे भी जबरदस्ती ले लेते हैं. बहुत कम मेरे बच्चों और वाइफ को देते हैं. हालांकि, पैसा मेरी वाइफ को ही मिलता है. अगर वह नहीं देती तो चोरी कर लेते हैं. एक और बात है, समझ नहीं आता कि आप से कहूं या न कहूं.

‘मैं ने उसे बेधड़क अपनी बात कहने को कहा.’‘मेरी वाइफ मूंहचित लगती है, जी. मेरे अपने भाई उस के साथ हमबिस्तर होने की बात करते हैं. मौका लगे तो वे जबरदस्ती करने की कोशिश करते हैं. बड़ी मुश्किल से किसी तरह वह अपनी इज्जत बचाए हुए है. यह बौर्डर एरिया है. फैमिली क्वार्टर नहीं हैं, नहीं तो मैं फैमिली यहां ले आता. इसी टैंशन के कारण मैं अपने सैक्शन में ठीक से काम भी नहीं कर पाता हूं.’
समस्या बहुत गंभीर थी. मैं ने तुरंत सूबेदार मेजर साहब को बुलाया. अनुभवी थे, उन्होंने समस्या का समाधान भी बता दिया. उन की फैमिली में भी कुछ ऐसी ही समस्या से जूझ रही थी. सैप्रेट फैमिली क्वार्टर ले कर अंबाला में रह रही थी. सैनिकों के साथ अकसर ऐसा होता है. मैं ने उसे बुलाया और पूछा, ‘तुम्हारे घर के पास मिलिट्री स्टेशन कौन सा है?’‘मैम, जबलपुर है.’

‘अगर आप को जबलपुर में सरकारी क्वार्टर दिला दिया जाए तो आप की वाइफ अकेली बच्चों के साथ रह लेगी. जो जवान बौर्डर एरिया में पोस्ट होते हैं, ये क्वार्टर उन को मिलते हैं. स्टेशन हैडक्वार्टर इन को अलौट करता है. वहां सभी बच्चे, औरतें ही रहती हैं. बिलकुल सुरक्षित. स्टेशन हैडक्वार्टर वहां हर चीज का प्रबंध करता है. स्कूल बस, सब्जी और राशन की गाड़ियां. कोई बीमार हो जाए तो उस के लिए एमआई रूम है. 24 घंटे की गार्ड रहती है. कोई अनजान आदमी वहां घुस नहीं सकता.’‘मैम, ऐसा हो जाए तो मैं जी जाऊंगा. बड़ी मेहरबानी होगी, आप की.’

‘कोई मेहरबानी नहीं है. आप एक ऐप्लिकेशन लिखें, स्टेशन हैडक्वार्टर, जबलपुर के नाम. ‘रिक्वेस्ट फौर सैप्रेटेड फैमिली क्वार्टर.’ यह निर्धारित प्रणाली द्वारा जबलपुर जाएगी. मैं व्यक्तिगत रूप से पत्र लिखूंगी. आशा है, जल्दी ही आप को क्वार्टर अलौट हो जाएगा.’
‘थैंक्यू, मैम.’उस ने सैल्यूट किया और चला गया. मैं सोचने लगी, नारी का हमेशा से किसी न किसी रूप में शोषण होता रहा है. क्यों? बस, इस यक्ष प्रश्न का उत्तर मेरे पास नहीं था. उस के प्रार्थना पर और मेरे पत्र लिखने पर उसे जल्दी ही क्वार्टर मिल गया. वह छुट्टी पर गया और अपनी फैमिली सेट कर आया.
मुझे कुछ महीनों में ऐक्टिंग कैप्टन बना दिया गया. यह सब अफसरों को मिलता है. पक्का रैंक मिलने तक वह इस रैंक को होल्ड करता है.

ऐसी ही अनेक चुनौतियों से जूझते पता ही नहीं चला कब 2 साल बीत गए और मेरी श्रीनगर की पोस्टिंग आ गई. जम्मूकश्मीर में सभी के लिए यही व्यवस्था है, अगर कोई 2 साल हाई ऐलटीटयूड में रहता है तो अगले साल वह कश्मीर के किसी भाग में रहेगा.

पोस्टिंग जाने से पहले मुझे सभी नायक, हवलदार और जूनियर अफसरों की कौनफिडेंशियल रिपोर्ट लिखनी थी. यह रिपोर्ट ऐसी होती है कि अगर खराब कर दी जाए तो आने वाले प्रमोशन पर प्रभाव पड़ता है. मैं ने मन बना लिया था, काम के दौरान चाहे कितना ही मनमुटाव हुआ हो, मैं इन का रिकौर्ड खराब नहीं करूंगी. जिन चुनौतियों और खराब परिस्थितियों में सब कार्य कर रहें हैं, सेवाएं दे रहें हैं, वे अमूल्य हैं. मेरे समक्ष ये छोटेमोटे झगड़े महत्त्वहीन हैं. मेरे इस कार्य की मेरे पोस्टिंग पर जाने के सम्मान में दिए गए बड़े खाने में जिक्र किया गया.

सीओ साहब ने और सूबेदार मेजर साहब ने इस की भूरिभूरि प्रशंसा की.
रिवायत के अनुसार जब मैं सीओ सहाब के साथ एकएक जवान, जूनियर अफसरों से मिलने गई तो उन सब की आंखों में मेरे लिए जो सम्मान दिखता था, वह देखते ही बनता था. उन्होंने भी आगे बढ़ कर सैल्यूट किया जो मुझे सैल्यूट करने से कतराते थे. धारणा यह थी कि औरतों को क्या सैल्यूट करना. वे पुरुषों के बराबर कभी हो नहीं सकतीं. जबकि सैल्यूट मेरे कंधों पर लगे स्टारों को करना था. कई पुरुष अफसरों की भी यही धारणा थी. एक धारणा यह भी थी कि औरते आतीं तो पुरुषों के नीचे ही हैं न. मैं ने इन सब धारणाओं को चुनौतियों के रूप में लिया और बेबुनियाद सिद्ध कर दिया.
कल श्रीनगर की मेरी फ्लाइट थी, नई चुनौतियों के लिए.

जानकारी: मुफ्त गूगल सेवाओं में छिपी है बेहिसाब कमाई

हम जितनी भी चीजें इंटरनैट पर सर्च करते हैं वे गूगल से सर्च करते हैं. दिलचस्प यह कि इतनी सारी सेवा देने के बावजूद गूगल अपने यूजर्स से एक पैसा भी नहीं लेता, कारण जानते हैं आप, नहीं न? चलिए बताते हैं ऐसा कैसे? सब जानते हैं कि गूगल दुनिया का सब से बड़ा सर्च इंजन है जो बिलकुल फ्री है. इस के माध्यम से हम अपने लगभग सभी सवालों के जवाब, मूवी, गाने, फोटोज आदि को पढ़सुन और डाउनलोड कर सकते हैं, वह भी बिना एक पैसा दिए, बिलकुल मुफ्त में. यही नहीं, गूगल मैप के जरिए मुफ्त जानकारी ले कर हम पूरे भरोसे से कहीं जा सकते हैं.

गूगल न्यूज हर किसी को लगातार अपडेट बनाए रखती है. जी मेल से दुनियाभर में पलभर में कहीं भी कम्युनिकेशन करना जीवन का हिस्सा बन चुका है. अब तो औफिस या प्राइवेट मीटिंग, सब गूगल मीट पर हो रही हैं. इतनी सरल वैश्विक सुविधाएं कोई सरकार देती तो जाने कितना टैक्स भरना होता? तो क्या गूगल कोई चैरिटेबल संस्था है? इस का उत्तर है- बिलकुल नहीं. गूगल दुनिया की बड़ी प्रौफिटअर्निंग कंपनी है. गूगल में नौकरी करना युवाओं का सपना होता है, क्योंकि उस का वेतन तथा कार्यप्रणाली श्रेष्ठ है. विभिन्न देशों की सरकारें समयसमय पर गूगल पर करोड़ों रुपए पेनल्टी के भी लगा चुकी हैं.

फिर सवाल है कि आखिर गूगल पैसा कैसे कमाता है, उस का बिजनैस मौडल क्या है? आंकड़ों के मुताबिक, गूगल की 96 फीसदी कमाई सिर्फ विज्ञापन से होती है. मतलब गूगल की बेहिसाब कमाई गूगल सेवाओं में हमारे देखेअनदेखे, स्किप किए गए विभिन्न विज्ञापनों में छिपी है. वर्ष 2020 में गूगल की कुल कमाई 146.9 बिलियन अमेरिकी डौलर थी जबकि वर्ष 2021 की कुल कमाई 209.5 बिलियन अमेरिकी डौलर रही. गूगल की कमाई के जरिए हर हाथ में दुनियाभर में थामे हुए मोबाइल, लैपटौप, कंप्यूटर और टैबलेट ही हैं. आजकल ज्यादातर फोन एंड्रौयड औपरेटिंग सिस्टम पर आधारित होते हैं. एंड्रौयड गूगल की ही कंपनी बन चुकी है. एप्पल आईफोन आईओएस आधारित हैं, इसलिए उन का ट्रैफिक गूगल सर्च पर लेने के लिए गूगल हर साल बड़ा भुगतान करता है. गूगल प्लेस्टोर का इस्तेमाल फ्री में एप्स को इन्सटौल करने के लिए हर मोबाइल पर किया जाता है. इन एप्स को गूगल प्लेस्टोर में जगह देने के लिए गूगल उन से फीस वसूल करता है. गूगल का एक वैब आधारित एप्लीकेशन एडसैंस है.

इस की सहायता से वैबसाइट, ब्लौग तथा एप ओनर अपनी वैबसाइट पर और ऐप में विज्ञापन दिखा कर पैसा कमाते हैं. वास्तव में यह पैसा गूगल ही कमाता है जिस का एक हिस्सा उन लोगों को दिया जाता है जिन की वैबसाइट और एप का उपयोग गूगल विज्ञापन दिखाने के लिए एडसैंस के माध्यम से करता है. इंटरनैट पर इतनी पौर्न साइट्स की बाढ़ वास्तव में वैब ट्रैफिक को गूगल एडसैंस के जरिए अपनी साइट पर ला कर धन कमाने की होड़ का हिस्सा भी है. गूगल एड्स नाम से एडवर्ड एप्लीकेशन उपलब्ध है. यह भी एक वैब आधारित एप्लीकेशन है. इस की सहायता से आप खुद अपना विज्ञापन बना सकते हैं और उसे गूगल, यूट्यूब पर प्रसारित भी कर सकते हैं.

सरल भाषा में तो जिस तरह के विज्ञापन आप को यूट्यूब और गूगल पर दिखाई देते हैं उसी तरह के विज्ञापन आप भी दिखा सकते हैं. इस के लिए गूगल आप से कुछ पैसे लेता है. गूगल सब से ज्यादा पैसा इसी तरीके से कमाता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, इन दिनों हर महीने लगभग 100 करोड़ लोग गूगल मैप का उपयोग करते हैं. गूगल मैप पर आने वाले इन्हीं यूजर्स द्वारा गूगल की खासी कमाई होती है. गूगल मैप में रैस्टोरैंट, होटल, क्लीनिक हौस्पिटल, स्कूल आदि को प्रमोट किया जाता है. आप ने देखा होगा कि जब आप गूगल मैप में किसी जगह को सर्च करते हैं तो उस के आसपास दुकान, स्कूल, हौस्पिटल, रैस्टोरैंट आदि की डिटेल सर्च रिजल्ट में नीचे आ जाती हैं. इन्हें टौप पर लाने के लिए गूगल इन से कुछ पैसे लेता है. गूगल मैप पार्टनरशिप के जरिए भी गूगल को बड़ी आय होती है. आप ने भी औनलाइन खाना या सामान मंगवाया ही होगा, स्विगी, जोमैटो, ऊबर, ओला आदि करैंट लोकेशन का उपयोग करते हैं और यह जानकारी गूगल इन के साथ सा?ा करने के लिए इन से पैसे लेता है जोकि गूगल मैप की कमाई का जरिया है. कम लोग ही जानते हैं कि गूगल वास्तव में अल्फाबेट इंक की सहायक कंपनी है और हैरान करने वाली बात यह है कि वित्तीय वर्ष 2021 में केवल गूगल विज्ञापन से अल्फाबेट को उस के कुल राजस्व का 82 फीसदी मिला था. उपयोगकर्ताओं की वृद्धि के साथसाथ हर महीने गूगल की कमाई बढ़ रही है. यही नहीं, इस में और वृद्धि होने का अनुमान भी है.

लेखक-विवेक रंजन श्रीवास्तव

जोड़ो यात्रा: कट्टरता की तोड़ पर फैविकोल

देश बहुत मुश्किल दौर से गुजर रहा है. आम लोगों को सम?ा नहीं आ रहा कि दिक्कत कहां और कैसी है. ऐसे में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा लोगों को एक आश्वासन देने में सफल रही है. इस यात्रा की पौलिटिक्स क्या है और यह कितनी प्रभावी रही, जानें आप भी.

दिनांक 3 जनवरी, 2023. स्थान- गाजियाबाद. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व लोकसभा सदस्य राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा एक ब्रेक के बाद उत्तर प्रदेश में दाखिल हुई तो वहां पार्टी के कई नेता व कार्यकर्ता यात्रा का स्वागत करने को खड़े थे. उन में प्रियंका गांधी भी थीं, जिन्हें देख राहुल भावुक हो गए. मंच पर राहुल अपनी इकलौती छोटी बहन के प्रति लाड़ छिपा न पाए और उन्हें प्यार से चूम लिया.

इसी दौरान वे प्रियंका से बात करते, उन से हंसीमजाक भी करते रहे. आखिर, बहुत दिनों बाद जो मिल रहे थे. किसी और के लिए यह कुछ भी हो लेकिन कांग्रेसियों के लिए यह बहुत ही जज्बाती दृश्य था. थकेहारे बड़े भाई ने अपनी छोटी लाड़ली बहन के प्रति प्यार जता कर कौन सा गुनाह कर दिया था, इसे सम?ाने के लिए कुछ भाजपा नेताओं के बयानों पर गौर करना जरूरी है ताकि यह पता चल सके कि नफरत में गलेगले तक डूबे लोग किस हद तक गिर सकते हैं.

विकृत और दूषित मानसिकता क्या होती है और किस किस्म के लोगों में पाई जाती है, इस का नमूना पेश किया उत्तर प्रदेश के एक मंत्री दिनेश प्रताप सिंह ने, जिन्होंने कहा, ‘‘अनजान बच्चे कर सकते हैं, दोचार साल के बच्चे इस तरह से चुंबन कर सकते हैं लेकिन आप 50 साल की उम्र में ऐसा कर रहे हैं. यह सब भारतीय संस्कार, संस्कृति में नहीं है कि कोई भाई अपनी बहन का इस तरह से भरी सभा में चुंबन ले. सनातन संस्कृति में हर चीज के नियम निर्धारित हैं. मैं कहता हूं, आरएसएस कौरव है तो आप किसी दशा में पांडव नहीं हो सकते.’’

कभी रायबरेली में गांधीनेहरू परिवार के करीबी रहे इस नेता के मुंह से जो सड़ांध निकली उस से कई बातें सम?ा आईं. उन में पहली यह है कि भारत जोड़ो यात्रा की कामयाबी भगवा गैंग को हजम नहीं हो रही थी जो उस ने अपने दिमाग में भरी गंदगी को शब्द देने को इस पूर्व कांग्रेसी को चुना. दूसरी बात यह कि सनातनी नियम/धरम आप पर यह बंदिश भी लगाते हैं कि अपनी बहन, मां, बेटी के प्रति प्यार जताने के तौरतरीके उन के संविधान से सीखें. तीसरी अहम बात यह कि आप अगर आरएसएस पर उंगली उठाने की जुर्रत करेंगे तो आप पर किसी भी तरह का कीचड़ उछालने से गुरेज परहेज नहीं किया जाएगा. कुछ भी बोलने या कहने से पहले संस्कृति के इन ठेकेदारों की इजाजत जरूरी है, वरना अंजाम भुगतने को तैयार रहिए.

ये सज्जन शायद ही बता पाएं कि वे हिंदू या सनातनी संस्कृति के ठेकेदार हैं या भारतीय संस्कृति के जो विविध धर्मों वाली है और शायद ही यह बात भी स्पष्ट कर पाएं कि राहुल गांधी किस एंगल से अब उन्हें सनातनी नजर आने लगे हैं जो उस के कायदेकानूनों का पालन करने के लिए बाध्य हों.

गौरतलब है कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल का अपनी बहन प्रियंका को चूमते हुए फोटो अलगअलग कैप्शनों के साथ वायरल किया गया था जिन का सार यह था कि हिंदुओं में ऐसा नहीं होता. ईसाइयों या मुसलमानों में होता होगा.

गंदगी भाईबहन के इस निश्च्छल प्यार वाले फोटो में नहीं थी, गंदगी उन विकृत दिमागों में है जो रिश्तेनातों का दम भरते अघाते नहीं लेकिन जब गरज पड़े तो इन्हीं पवित्र रिश्तों को भी बदनाम करने से नहीं चूकते. इस फोटो को जिन लोगों ने वायरल किया उन्हें ही सोशल मीडिया पर अपने वालों का विरोध ?ोलना पड़ा कि ‘यार, इस हद तक मत गिरो.’ राहुल गांधी का विरोध करना हो करो, मजाक उड़ाना है खूब उड़ाओ पर अपनी सीमाओं का तो खयाल रखो. कल को यही बात हमारेतुम्हारे बारे में कोई कहे तो कैसा लगेगा?

क्या वास्तव में पौलिटिक्स में भाईबहन के पवित्र रिश्ते पर कीचड़ उछालना भी जायज होता है? कोई वजह नहीं कि इस सवाल का जवाब कोई भी हां में देगा. पौलिटिक्स को घटिया और नफरत से रोकने का अहम मकसद लिए भारत जोड़ो यात्रा को ले कर तरहतरह के कयास लगाए गए जिस से साहित्य में जरा सी भी दिलचस्पी रखने वालों को तो तुरंत याद आ गया होगा कि ‘तुम्हारी पौलिटिक्स क्या है पार्टनर.’

60-70 के दशक के ख्यातिनाम साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध की चर्चित कविता का शीर्षक है यह. मुक्तिबोध परंपराओं और आधुनिकता में तालमेल बैठाने के लिए भी जाने जाते हैं. तुम्हारी पौलिटिक्स क्या है पार्टनर, बाद में जुमला बन गया था और आम बातचीत में इफरात से इस्तेमाल होने लगा था. जिन लोगों का साहित्य से कोई वास्ता नहीं था और जो मुक्तिबोध को नहीं जानते थे वे भी कोई चीज सम?ा न आने पर सवाल करने लगे थे कि ‘पार्टनर, तुम्हारी पौलिटिक्स क्या है.’

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को ले कर अब यह सवाल फिर मौजूं हो गया है. अधिकतर लोग उन की मंशा और मकसद नहीं सम?ा पा रहे थे और जो सम?ो वे हलकान और यह सोचते दहशत में भी हैं कि कहीं राहुल गांधी की यह ‘पौलिटिक्स’ चल गई तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं. आम लोगों को भी यह एहसास इस यात्रा से हुआ कि यह थोड़ी डिफरैंट है और इस में कोई हर्ज नहीं, आखिर राहुल गांधी गलत या बेजा तो कुछ कह नहीं रहे.

राहुल गांधी की मंशा या यात्रा का उद्देश्य बहुत कम शब्दों में कोई विस्तार से सम?ा पाया तो वे लंदन स्कूल औफ इकोनौमिक्स की प्रोफैसर मधुलिका बनर्जी हैं. ब्रिटेन के प्रतिष्ठित अखबार ‘द गार्डियन’ के हवाले से एक लेख में उन्होंने लिखा, ‘यह पूरा अभियान किसी अहिंसक सेना के विशाल सैन्य अभियान जैसा था, अलगअलग भाषाई समुदायों और पृष्ठभूमियों के लोगों को इस मार्च में शामिल होते देखना काफी दिलचस्प था. मैं ने इस यात्रा में चलते हुए भी राहुल गांधी को काफी विनम्र और तेज बुद्धि का शख्स पाया है.’

बकौल मधुलिका बनर्जी, राहुल गांधी को चुनौती देना और उन से असहमत होना संभव था जो कई भारतीय नेताओं के साथ संभव नहीं था. नरेंद्र मोदी के साथ ऐसा करना संभव नहीं है क्योंकि वे तो प्रैस कौन्फ्रैंस ही नहीं करते हैं. मोदी की सभाओं में वैभव के दर्शन होते हैं लेकिन इस से इतर राहुल गांधी की बढ़ी हुई दाढ़ी और आम लोगों के साथ तसवीरें एक अच्छी राजनीतिक छवि गढ़ती हैं.

बदली है इमेज

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी की इमेज वाकई बदली है. वे यात्रा में नाचे भी, वर्जिश भी की और लोगों से बिंदास अंदाज में बेतकल्लुफ होते मिले. पिछले 15 साल और पिछले ही 5 महीनों में काफी फर्क है. अभी तक उन की इमेज एक शौकिया राजनीति करने वाले नेता की थी पर अब उन की गंभीरता और परिपक्वता जब लोगों को सम?ा आई तो लोग उन से प्रभावित भी हुए.

5 महीने की 3,750 किलोमीटर की यात्रा में वे आम हिंदुस्तानी से बेहद अंतरंगता से मिले हैं और लोगों व उन की परेशानियों को नजदीक से सम?ा. लोग भी उन्हें नजदीक से देख प्रसन्न नजर आए कि कोई तो है जो उन की तकलीफें और परेशानियां सुनने निकला है. वह हल कर पाए या न कर पाए, यह बाद की बात है.

इंदौर के नजदीक बडवाह कसबे की 26 वर्षीया मानसी केसरी, जो हैदराबाद में एक सौफ्टवेयर कंपनी में जौब करती हैं, कहती हैं, ‘‘यह जरूरी नहीं कि इस यात्रा का मकसद यह सम?ा जाए कि राहुल गांधी खुद को नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं. मु?ो तो लगता है कि वे देश के मौजूदा हालात को ले कर चिंतित हैं और यह बात कई जगह उन्होंने कही भी है.’’

कुरेदने पर मानसी कहती हैं, ‘‘कुछ वर्षों पहले तक मु?ो भी लगता था कि राहुल गांधी पैराशूट टाइप के नेता हैं लेकिन अब उन्हें तमिलनाडु से कश्मीर तक जमीन पर पैदल चलते देखना एक अलग अनुभव है. आम लोगों से उन का यह जुड़ाव काफी माने रखता है. वे अपने कहे के मुताबिक सब से प्यार से मिले और एक ईमानदार आत्मीयता से मिले. इस का फायदा निश्चित ही उन्हें मिलेगा, हालांकि लगता नहीं कि वे कोई महत्त्वाकांक्षा ले कर चले होंगे. उन की प्यार और मोहब्बत की बातों ने हम युवाओं को एक अलग फीलिंग दी है जिस का सीधा संबंध मानवता से होना लगता है.’’

अपनी इमेज के बारे में राहुल गांधी ने यात्रा के दौरान कई बार कहा कि भाजपा ने उन की इमेज बिगाड़ने में हजारों करोड़ रुपए फूंक दिए लेकिन वे इसे नुकसानदेह की जगह फायदेमंद बताते रहे. उन्होंने जोर दे कर यह बात कही कि बड़ी शक्तियों से लड़ने में पर्सनल अटैक होते हैं जो मु?ो ताकत देते हैं. आरएसएस और भाजपा की मानसिकता को गहराई से सम?ाने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी और उन की दिशाएं व रास्ते अलगअलग हैं लेकिन बावजूद इस के, मैं उन से नफरत नहीं करता.

एक वक्त था जब भगवा गैंग ने उन की पप्पू वाली इमेज को खूब हवा दी थी. सोशल मीडिया पर उन का गंदे से गंदा और घटिया से घटिया मजाक बनाया गया लेकिन उन की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा. फर्क तो तब भी उन की सेहत पर नहीं पड़ा जब यात्रा के दौरान भी मजाक बनाबना कर उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश की गई. यह सनातनवादियों की नफरत कह लें या डर कि उन्हें गधा तक कहा गया. 17 जनवरी को वायरल हुए एक वीडियो में सूर्य कुमार नाम का तांत्रिक प्रतीकात्मक रूप में उन्हें गधा कहता नजर आया.

उन की पप्पू वाली इमेज पर रिजर्व बैंक औफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने राजस्थान से भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा लेते हुए सटीक बात यह कही कि राहुल गांधी पप्पू नहीं हैं. उन को ले कर जो धारणा बनाई गई है वह बिलकुल गलत है. उन्हें काफी जानकारी है. वे काफी स्मार्ट, नौजवान और जिज्ञासु शख्स हैं. मोदी सरकार की आर्थिक और सामाजिक नीतियों पर चिंता जाहिर करते रहने वाले रघुराम राजन का भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ना कम चौंका देने वाली बात नहीं थी क्योंकि उन की गिनती तटस्थ लोगों में होती है.

ये वही रघुराम राजन हैं जिन्होंने मोदी सरकार की नोटबंदी को गैरजरूरी करार देते हुए उस की बहुत ही तार्किक व तथ्यात्मक आलोचना की थी. राहुल गांधी की कौपी करते हुए उन्होंने कहा कि वे नफरत खत्म करने और प्यार, समानता व न्याय के लिए भारत जोड़ो यात्रा से जुड़े. लेकिन उन का यह कहना ज्यादा अर्थपूर्ण था कि, ‘मैं उन प्रतिबद्ध नागरिकों को अपना समर्थन देने के लिए कुछ मील पैदल चला जो समय के साथ भारतीयता का सम्मान करते हुए राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिकता, सद्भाव को मजबूत करने के लिए भारत को आगे बढ़ा रहे हैं.’ यानी राजनीति से हट कर भी विविध क्षेत्रों की हस्तियों ने इस यात्रा में शिरकत की. सो, जाहिर है, मोदी सरकार और उस की नीतियोंरीतियों के प्रति भड़ास लोगों के दिलों में भरी पड़ी है.

इन्होंने भी की कदमताल

रघुराम जैसे नामी और विशेषज्ञ अर्थशास्त्री ही नहीं बल्कि कला, फिल्म, खेल, पत्रकारिता और समाजसेवा सहित दूसरे क्षेत्रों की भी जानीमानी हस्तियां इस यात्रा से जुड़ीं और सभी ने अपनी बात सोशल मीडिया के जरिए सा?ा की (क्योंकि मुख्य मीडिया तो कवरेज देने से जितना हो सके, बचने की कोशिश कर रहा था).

इन हस्तियों में उल्लेखनीय नाम मराठी रंगमंच के परिपक्व अभिनेता अमोल पालेकर का भी है जो बीती 20 नवंबर को अपनी फिल्मकार और लेखिका पत्नी संध्या गोखले सहित भारत जोड़ो यात्रा से महाराष्ट्र के जलगांव-जामोद में शामिल हुए थे. इन्होंने 70 के दशक में ‘गोलमाल’, ‘रजनीगंधा’ और ‘चितचोर’ जैसी कोई दर्जनभर हिट हिंदी फिल्में दे कर अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवा लिया था.

अमोल पालेकर तो कुछ ज्यादा नहीं बोले लेकिन भगवा गैंग को मिर्ची उस वक्त लगी जब कांग्रेस ने उन के हाथ में हाथ डाले अपनी तसवीर शेयर करते हुए लिखा, ‘देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को सम?ाते हुए इस का निर्वहन करने के लिए प्रसिद्ध अभिनेता और फिल्म निर्देशक अमोल पालेकरजी अपनी पत्नी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए. देश की आवाज बुलंद करने के लिए आप का धन्यवाद.’’

इस शेयरिंग के बाद सोशल मीडिया पर अमोल पालेकर को जम कर ट्रोल किया गया. मानो, उन्हें अपनी मरजी से कुछ ऐसा करने का हक नहीं जिस से नरेंद्र मोदी की साख पर बट्टा लगता हो या उन की तथाकथित शान में गुस्ताखी होती हो. किसी यूजर ने इसे अमोल पालेकर की जिंदगीभर की मेहनत को मिट्टी में मिल जाना बताया तो किसी ने अपनी कुंठा यह कहते जाहिर की कि भारत जोड़ो यात्रा हारे हुए और अप्रासंगिक लोगों का मंच बन गया है जो किसी न किसी रूप में प्रचार चाहते हैं. भगवा गैंग के समर्थक फिल्म अभिनेता अशोक पंडित ने तो ‘घरौंदा’ फिल्म में अमोल पालेकर पर ही फिल्माए गए इस हिट गाने की ही मिसाल दे डाली कि ‘दो दीवाने शहर में रात में और दोपहर में आब ओ दाना ढूंढ़ते हैं, एक आशियाना ढूंढ़ते हैं…’

ऐसे सैकड़ों यूजर्स ने तंज कसते यह साबित कर दिया कि जो राहुल गांधी के साथ चलेगा, हम उस का भी मजाक बनाते रहेंगे और घटिया व बचकाने कमैंट्स करते रहेंगे. दरअसल यह सब वेबजह नहीं था क्योंकि इस से पहले अभिनेत्री पूजा भट्ट, रिया सेन, रश्मि देसाई, आकांक्षा पुरी, मोना अंबेगांवकर और अभिनेता सुशांत सिंह के अलावा भगवा नजरों में खटकती रहने वाली मशहूर समाजसेवी नर्मदा बचाओ आंदोलन की मुखिया मेघा पाटकर भी राहुल गांधी के साथ कदमताल कर चुकी थीं.

मेघा पाटकर उन गिनीचुनी हस्तियों में से हैं जिन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निजी तौर पर बेइंतहा चिढ़ते हैं. गुजरात विधानसभा चुनावप्रचार के दौरान उन्होंने सभाओं में मंच से मेघा पाटकर को पानी पीपी कर कोसा था, मानो वे समाजसेवी नहीं बल्कि कोई कांग्रेसी नेता हों. यह मेघा की खूबी ही कही जाएगी कि उन्होंने तमाम दुश्वारियां ?ोलते कभी न केवल इन के बल्कि कांग्रेस सरकारों के आगे घुटने नहीं टेके. वे विस्थापितों की लड़ाई आज भी शिद्दत से लड़ रही हैं चाहे कोई उन्हें टुकड़ेटुकड़े गैंग का सदस्य कहे या फिर विदेशी एजेंट. उन के तेवर और इरादों पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

आग में शुद्ध घी तो दिसंबर की पहली तारीख को और डला था जब वामपंथी कही जाने वाली अभिनेत्री स्वरा भास्कर उज्जैन में भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुईं. उन्होंने अपने अनुभव यह कहते सा?ा किए कि, ‘आज मैं भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुई और राहुल गांधी के साथ पदयात्रा की. यह समय ऊर्जा, प्रतिबद्धता और प्रेम प्रेरित करने वाला था. गर्मजोशी से लबरेज आम लोगों और उत्साह से भरे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का इस में शामिल होना और राहुल गांधी का सभी के प्रति ध्यान देना व अपनेपन का भाव रखना काफी प्रभावशाली पहलू है.’

बस, इतने में ही भगदड़ मच गई और भगवाइयों ने आसमान सिर पर उठा लिया. जिस के मुंह में जो आया वह उस ने बका. इतने पर भी तसल्ली नहीं हुई तो तबीयत से राहुल गांधी और स्वरा भास्कर पर कीचड़ उछाला गया. इस से और कुछ हुआ न हुआ हो लेकिन यह जरूर साबित हो गया कि किस नफरत की बात राहुल गांधी पूरी यात्रा में करते रहे. स्वरा सहित तमाम अभिनेत्रियों और आम महिलाओं के फोटो सोशल मीडिया पर सा?ा करते यह बतानेजताने की कोशिश की गई कि भारत जोड़ो यात्रा में अंतरंगता से बात करना, दोस्तों की तरह एकदूसरे का हाथ पकड़ना, हंसनामुसकराना, बातचीत करना और कदम से कदम मिला कर चलना भी चरित्रहीनता है. लेकिन जब यही सब मोदी, योगी, शाह और शिवराज करें तो यह सचरित्रता होती है.

मध्य प्रदेश के गृहमंत्री पंडित नरोत्तम मिश्रा ने अपना सनातनी प्रैसनोट पढ़ दिया कि ये सब टुकड़ेटुकड़े गैंग के मेंबर हैं और देश तोड़ना चाहते हैं. शायद उन्हें यह बात अखर रही होगी कि कोई सुंदर और सैक्सी अभिनेत्री उन्हें क्यों कभी गुलाब का फूल नहीं देती, चूंकि नहीं देती इसलिए वह देशद्रोही है.

इन सनातनियों से स्वस्थ मानसिकता की उम्मीद करना हमेशा से ही एक बेकार की बात रही है जो विरोधियों, खासतौर से राहुल गांधी और उन की भारत जोड़ो यात्रा, से इतने घबराए हुए थे कि बहुत निचले स्तर पर आ कर भड़ास और कुंठा निकाल रहे थे. उन के दिमाग की गंदगी निकालने को कोई तैयार नहीं. उलटे, राहुल गांधी का स्वागत करने वालों का जरूर हुजूम उमड़ पड़ता है.

प्यार और नफरत असल मुद्दा

यात्रा के प्रारंभ में ही इसे गैरराजनीतिक बता चुके राहुल गांधी ने यह भी प्रमुखता से स्पष्ट कर दिया था कि वे नफरत की नहीं, प्यार की राजनीति करते हैं. जबकि, राजनीति का यह उसूल जगजाहिर है कि दुनिया के किसी भी देश में नफरतविहीन राजनीति नहीं की जा सकती और न ही आप उस के बगैर सत्ता के शीर्ष तक पहुंच सकते हैं. बहुत आसान शब्दों में राजस्थान के अलवर में उन्होंने बड़ी मासूमियत से कहा था कि, ‘नफरतों के बाजार में प्यार की दुकान लगा रहा हूं.’

यह कहनेसुनने में साधारण बात है लेकिन बहुत गहरे दर्शन की है जिस का इशारा धर्म, जाति, संप्रदाय, क्षेत्र, भाषा और रंग की राजनीति की तरफ था. ऐसे में यह सोचना थोड़ा अटपटा और अव्यावहारिक लगता है कि फिर वह राजनीति कहां रह गई. या तो राहुल प्रधानमंत्री पद का दावेदार खुद को नहीं मानते या फिर पूरी शिद्दत से यह साबित करने पर तुले हुए हैं कि प्यार की राजनीति ‘आज नहीं तो कल’ सफल होगी.

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का आना और जाना यह बताता है कि लोकतंत्र में नफरत की राजनीति की एक तयशुदा मियाद होती है. जो लोग बहकावे में आ कर किसी नेता विशेष या पार्टी से जुड़ते हैं, उन्हें वोट दे कर सत्ता सौंपते हैं, एक दिन ऐसा आता है कि वे खुद ही उन से डरने लगते हैं क्योंकि नफरत की आंच उन की देहरी तक भी आ जाती है.

इस आग का स्रोत धर्मग्रंथ हैं, वे चाहे ईसाइयों के हों, मुसलमानों के हों या हिंदुओं के. उन के बारे में बिहार के शिक्षा मंत्री प्रौफेसर चंद्रशेखर ने बिना किसी लिहाज के नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में कहा था कि- ‘मनुस्मृति में समाज की 85 फीसदी आबादी वाले बड़े तबके को गालियां दी गईं.’

रामचरितमानस के उत्तरकांड में लिखा गया है कि नीच जाति के लोग शिक्षा ग्रहण करने के बाद सांप की तरह जहरीले हो जाते हैं. यह नफरत को बोने वाले ग्रंथ हैं. एक युग में मनुस्मृति, दूसरे युग में रामचरितमानस और तीसरे युग में गुरु गोलवलकर का बंच औफ थौट, ये सभी देश व समाज में नफरत बांटते हैं. नफरत देश को कभी महान नहीं बनाएगी, देश को केवल मोहब्बत महान बनाएगी.

बहुत साफ दिख रहा है कि यह वही बात है जो राहुल गांधी यात्रा के दौरान कहते रहे. चंद्रशेखर ने तो उसे विस्तार दिया और धर्मग्रंथों का हवाला दे डाला. इस के लिए उन्होंने शबरी के ?ाठे बेर खाने वाले प्रसंग का हवाला दिया कि आज पूर्व सीएम जीतनराम मां?ा मंदिर जाते हैं तो पाखंडी उसे छुआछूत के विचार से धोते हैं. हालांकि उन की जम कर खिंचाई और छिलाई हुई लेकिन वे अपने बयान से टस से मस नहीं हुए.

जब इफरात से कीचड़ उछालने के बाद भी तसल्ली नहीं हुई तो राहुल गांधी की टीशर्ट पर ही बातों के बताशे फोड़े जाने लगे. राहुल गांधी को ठंड क्यों नहीं लगती, इस पर भी फूहड़ रिसर्च हुई और इतनी हुई कि खुद राहुल गांधी को अपनी ठंड और टीशर्ट को ले कर व्याख्यान देना पड़ा. अब कांग्रेस को यह बताने की जरूरत नहीं रह गई थी कि यात्रा कितनी सफल है जिसे मीडिया कोई भाव नहीं दे रहा क्योंकि उस पर दबाब था या अधिकतर मीडिया हाउसों की इमारतें भगवा रंग में बहुत पहले से रंगी हुई थीं.

टीशर्ट हो या नजदीकी रिश्ता, इन पर भी फिकरे कसना ही वह अंतहीन नफरत है जो धर्म का सब से ज्यादा बिकने वाला प्रोडक्ट है. लेकिन राजनीति से होते समाज और घरों में यह नफरत जो, दरअसल विकृति होती है, आने लगती है. तो, खुद धार्मिक लोग ही उस का बहिष्कार शुरू कर देते हैं, जिस का आसान तरीका अमेरिका की तर्ज पर सरकार बदल देने का होता है.

भगवा गैंग ऐसी चीजों और घटनाओं पर चाह कर भी (मुमकिन यह भी है कि यह गलतफहमी हो) कुछ नहीं बोल सकता क्योंकि अगर बोलेगा तो वही विकृत दिमाग वाले भस्मासुर उस पर यह कहते चढ़ाई कर देंगे कि जब इतनी ही मोहब्बत या हमदर्दी राहुल गांधी से थी तो दुनियाभर के पाप हम से क्यों करवाए, हमें शह ही क्यों दी थी. ये वे लोग हैं जिन की नजर में धर्म और अधर्म में कोई फर्क ही नहीं होता.

ऐसे घटियापन पर राहुल गांधी कुछ नहीं बोले, जिस से कांग्रेसियों को सम?ा आ गया कि इस तरह के ओछेछिछोरे हथकंडे यात्रा में अड़ंगे डालने के लिए डाले जा रहे हैं. लिहाजा, वे अपने नेता की तरह शांत और प्रतिक्रियाहीन रहे. राजनीति में मानअपमान आम होते हैं लेकिन वे जब हदें तोड़ देते हैं तो किसी न किसी को जोड़ने की पहल करनी ही पड़ती है. इस बार राहुल गांधी ने कर दी, तो हल्ला मच गया कि यह भारत तोड़ो यात्रा है.

लड़ाई विचारधाराओं की

राहुल गांधी यात्रा के दौरान पूरी तरह संभल कर बोले, कई बार वे भावुक भी हुए. दार्शनिकों जैसी बातें करते रहे. इस युवा नेता ने कई बार विचारधाराओं की लड़ाई का भी जिक्र किया, जो फसाद की असल जड़ है. लेकिन यह लड़ाई वामपंथ बनाम दक्षिण पंथ जैसी सिद्धांतवादी नहीं है, बल्कि, भविष्य में इस यात्रा को उदार दक्षिणपंथ और संकरे या कट्टर दक्षिणपंथ के तौर पर भी देखा और सम?ा जाएगा.

आरएसएस की विचारधारा बेहद स्पष्ट है कि देश किसी भी कीमत पर हिंदू राष्ट्र बनना चाहिए जिस में सारे अधिकार और राज सवर्ण हिंदुओं का रहेगा. दूसरे धर्मों की बात तो अलग है, छोटी जाति वाले हिंदू भी मनुस्मृति के निर्देशों के मुताबिक रहेंगे. हालांकि संघ खेमे से इस बात का खंडन पिछले 8 साल से होने लगा है कि सभी जातियों के लोग हिंदू हैं और हम हिंदू एकजुट हो कर नहीं रहेंगे तो खतरे सिर पर खड़े हैं. लेकिन यह कितना बनावटी है, यह छोटी जाति वाले हिंदुओं से बेहतर कोई नहीं जानता.

इन काल्पनिक खतरों से हर कोई वाकिफ है. लेकिन जमीनी तौर पर शूद्र, आदिवासी और पिछड़े कहां खड़े हैं, यह भी हर कोई जानता है. यात्रा के दौरान इसी भेदभाव का जिक्र बारबार राहुल गांधी ने किया जिस का गहरा ताल्लुक देश के मौजूदा बिगड़ते हालात से है और यही वह फलसफा है जिस से भगवा गैंग खौफजदा है कि अगर छोटी जाति वाले, जिन्हें बड़ी मुश्किल से बहलाफुसला कर राष्ट्रवाद के नाम पर और मुसलमानों का डर दिखा कर इकट्ठा किया गया था, अगर फिसल गए तो हाथ में 6 करोड़ सवर्ण वोट ही रह जाएंगे.

पर क्या राहुल गांधी ऐसा कर पाएंगे, इस में शक है क्योंकि इस के लिए उन्हें पेरियार, ज्योतिबा फुले या एक हद तक कांशीराम बनना पड़ेगा क्योंकि दिक्कत यह है कि वंचितों ने ही यह मान लिया है कि वे जहां हैं वहीं ठीक हैं. लेकिन यह स्थिति बहुत विस्फोटक है. यह कहना और सोचना भी निराशा वाली बात होगी कि आखिर राहुल के पास इस सनातनी रोग का इलाज क्या है. अगर प्यार है, जैसा कि वे पूरी यात्रा में कहते रहे तो यह निष्कर्ष जरूर निराशाजनक है कि इस कैंसर का हालफिलहाल तो कोई इलाज नजर नहीं आता.

पिछले 8 वर्षों में न केवल कांग्रेस की, बल्कि तमाम छोटेबड़े क्षेत्रीय दलों की धर्मनिरपेक्ष वाली विचारधारा और भाषा का कोई जिक्र ही नहीं हुआ. इस से सम?ा आता है कि देश किस विस्फोटक स्थिति में अंदरूनी तौर पर पहुंच चुका है. भगवा गैंग का गुस्सा तरहतरह से राहुल गांधी पर इसे ले कर फूटा तो सम?ा यह भी आता है कि खोट उन की विचारधारा में है. इस बहुसंख्यवाद का खात्मा कहां जा कर और कैसे होगा, इस का सहज अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, फिर भी प्यार की पौलिटिक्स को मिला रिस्पौंस बताता है कि अभी सबकुछ अनियंत्रित नहीं है और लोग जाग रहे हैं.

यात्रा, युवा और बौखलाहट

भारत जोड़ो यात्रा की एक उल्लेखनीय बात- इस में युवाओं की भागीदारी होना ज्यादा रही. ये युवा जाहिर है, भगवा गमछाधारी नहीं थे बल्कि जातिधर्म और वर्गविहीन थे जिन्हें भरपूर उत्साह और समर्थन राहुल से मिला. कन्याकुमारी से ले कर कश्मीर तक के युवा राहुल की नजदीकी पाने को बेताब दिखे. यह महज जिज्ञासावश नहीं, बल्कि उन के पास राहुल से कहने और सुनने को काफीकुछ था. मसलन, बिगड़ता माहौल और फैलती नफरत के अलावा खुद से जुड़े मुद्दे भी.

यह सिलसिला पहले दिन 7 सितंबर को कन्याकुमारी से ही शुरू हो गया था जब बड़ी संख्या में युवा इस यात्रा से जुड़े थे और उन की टीशर्ट पर लिखा था- ‘मैं नौकरी के लिए चल रहा हूं.’ उस वक्त राहुल ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा था कि देश में 42 फीसदी युवा बेरोजगार हैं जिन्हें नौकरी और रोजगार की व्यवस्था करना कांग्रेस की प्राथमिकता रहेगी.

इस प्राथमिकता के ऐलान को सुन कर हर राज्य के युवा यात्रा से जुड़े जिन की न केवल रोजगार बल्कि दीगर समस्याओं को भी हल करना कांग्रेस की जिम्मेदारी होती जा रही है. क्यों युवा राहुल गांधी में अपना भविष्य देख रहे हैं और कैसेकैसे उन की आजादी पर हमले हुए हैं, इस सवाल का जवाब अब भाजपा को देना चाहिए लेकिन इस के लिए उसे राहुलफोबिया से उबर कर ईमानदारी से बात करनी होगी.

ऐसा तो कुछ होता दिखा नहीं, उलटे, बौखलाहट में भाजपा ने 16 जनवरी को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बेमौसम रोड शो आयोजित कर डाला. लोगों को इसलिए भी हैरानी हुई थी कि कोई चुनाव भी आसपास नहीं था. 15 मिनट का यह रोड शो पटेल चौक से संसद मार्ग तक की महज 350 मीटर की दूरी का था जिस के लिए जरूरत से ज्यादा ताम?ाम किए गए थे जिन्हें देख हर किसी ने यही कहा कि आखिर आना ही पड़ा सड़क पर.

वरिष्ठ कांग्रेसी जयराम रमेश ने इस पर तंज कसते हुए कहा कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से आतंकित भाजपा पीएम मोदी का इस्तेमाल करते बारबार रोड शो कर रही है. राहुल के पैदल मार्च को पीएम मोदी की तरह टीवी चैनलों ने कवर नहीं किया लेकिन इस के बावजूद राहुल इस यात्रा के जरिए जनमानस पर छा गए हैं.

इस के पहले कर्नाटक के हुबली में 12 जनवरी को भी नरेंद्र मोदी एक रोड शो में बड़े नाटकीय अंदाज में दिखे थे और हाथ उठाउठा कर लोगों का अभिवादन कर रहे थे लेकिन उन की बौडी लैंग्वेज बता रही थी कि वे सहज नहीं हैं क्योंकि उन के शो में भारत जोड़ो यात्रा जैसी स्वस्फूर्त भीड़ नहीं है. मुमकिन है यह भारत जोड़ो यात्रा का खौफ हो जिस ने उन्हें सड़क पर आने को मजबूर कर दिया था.

इसी तरह की हड़बड़ाहट मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी यह घोषणा करते दिखाई कि सरकार 1 फरवरी से 15 फरवरी तक प्रदेश में विकास यात्राएं आयोजित करेगी. ये वही शिवराज सिंह हैं जो भारत जोड़ो यात्रा की प्रासंगिकता को ले कर सवाल खड़े करते रहे थे. हालांकि उन का डर जायज है क्योंकि 2018 का नतीजा उन्हें याद है और राज्य में फिर इसी साल विधानसभा चुनाव हैं. मध्य प्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा को किसान और आदिवासियों ने भी हाथोंहाथ लिया था. शिवराज सिंह और भाजपा को हड़काते राहुल ने भविष्यवाणी सी कर दी थी कि इस साल उस का सूपड़ा साफ हो जाएगा.

असल में राहुल की भारत जोड़ो यात्रा और भाजपा की यात्राओं में एक बड़ा और मौलिक फर्क यह है कि भाजपा के साथ अधिकतर अधेड़ और बूढ़े नजर आते हैं जबकि राहुल की यात्रा में कन्याकुमारी से ले कर कश्मीर तक युवाओं का सैलाब उमड़ा रहा और उन में भी युवतियों की तादाद खासी थी जिसे ले कर राहुल गांधी पर भद्दे कमैंट्स किए गए.

महिलाएं भाजपा की यात्राओं में भी नजर आती हैं लेकिन वे सहज या स्वतंत्र नहीं होतीं बल्कि उन के सिर पर कलश ढोने की जिम्मेदारी और भार होता है. वे भाजपा नेताओं से अपने दुखड़े नहीं रोतीं क्योंकि उन की ड्यूटी भजन गाने में लगाई गई होती है. ऐसा क्यों, वजह साफ है कि भाजपा की यात्राएं पूजापाठियों को मंदिर तक ले जानी होती हैं. असल मंजिल से उन का कोई वास्ता नहीं होता. भाजपा की यात्राएं चारधाम, कांवड़ या फिर जगन्नाथ रथ यात्राओं जैसी होती हैं जिन में भजनकीर्तन हो रहे होते हैं, जयजय श्रीराम और हरहर महादेव के नारे लग रहे होते हैं और ये यात्राएं, हर कोई जानता है कि, सवर्णों के लिए होती हैं जो एक तबके को दूसरे तबके से तोड़ने का काम करती हैं.

अपनी यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने भी धर्मस्थलों पर जा कर माथा टेका लेकिन वे रास्ते में पड़ने वाले हर धर्म के स्थल पर गए और यह जताने की कोशिश करते रहे कि वे सभी धर्मों व धर्मस्थलों का सम्मान करते हैं. इस बाबत उन्होंने अपनी विविध धर्मों वाली पारिवारिक पृष्ठभूमि का हवाला भी दिया.

इस पूरी यात्रा के दौरान सब से दिलचस्प वाकेआ 17 जनवरी को हुआ जब चचेरे भाई वरुण गांधी की कांग्रेस में आने की अटकलों को ले कर उन्होंने साफ कर दिया कि जो एक बार आरएसएस के दफ्तर चला गया वह कांग्रेस में नहीं आ सकता. बकौल राहुल, ‘वरुण बीजेपी में हैं, मेरी विचारधारा उन से नहीं मिलती. मैं आरएसएस के दफ्तर नहीं जा सकता चाहे मेरा गला काट दिया जाए. मैं वरुण से मिल सकता हूं, उन्हें गले लगा सकता हूं.’

यह सही है कि न केवल वरुण गांधी बल्कि उन के जैसे कईयों की भाजपा और राजनीति में कोई हैसियत नहीं रह गई है. इसलिए वे भाजपा के आलोचक होते जा रहे हैं. अब उन का भविष्य अंधेरे में है, कांग्रेस में उन के लिए कोई जगह नहीं. यह इस यात्रा के दौरान ही स्पष्ट हो गया. वरुण के बहाने अगर बारीकी से देखें तो राहुल गांधी भाजपा से ज्यादा आरएसएस पर बरसे. शायद वे नफरत की असल जड़ आरएसएस को ठहराना चाह रहे थे. भाजपा और भाजपाई सरकार तो उस के रिमोट से औपरेट होते हैं. इस बात के अगले लोकसभा चुनाव में अपने अलग माने भी होंगे.

कितनी सफल रही यात्रा

देश में ऐसा क्या टूट गया जिसे जोड़ने को यह यात्रा आयोजित की गई, इस सवाल का जवाब 19वां पुराण रच सकता है क्योंकि 8 सालों में ही बीएसएनएल जैसे दर्जनभर सार्वजनिक उपक्रमों से ले कर रेलवे स्टेशन तक बिक गए हैं, युवाओं के सपने टूटे हैं, महिलाओं का आत्मसम्मान टूटा है जिन की हिम्मत तो रोज बढ़ती महंगाई तोड़ ही चुकी है, बलात्कारियों के खिलाफ कोई कारगर कार्रवाई नहीं होती, इस से भी महिलाएं टूटी हैं, नोटबंदी ने आम लोगों की कमर तोड़ी थी तो जीएसटी ने व्यापारियों का सुखचैन लूटा. सामाजिक तौर पर हिंदूमुसलिम एकता टूटी है. अगर कुछ बना है तो वे अरबोंखरबों के मंदिर और मूर्तियां हैं और जो टूट रहा है वह लोगों का विधायिका और कार्यपालिका पर भरोसा है. (सरित प्रवाह भी देखें)

यह टूटन तो मंडल कमीशन से ही शुरू हो गई थी जिस ने पिछड़े वर्ग में जबरदस्त जोश पैदा किया था. यह एक लिहाज से जरूरी भी था. फिर कमंडल ने समाज और देश को और तोड़ा लेकिन एक उन्माद भी लोगों में भर दिया और अब तो टूटन के ये हाल हैं कि कुछ भी साबुत नहीं बचा है. राहुल गांधी कोई फैविकोल ले कर नहीं निकले हैं जो यह सब जोड़ देंगे, न ही वे कोई चमत्कारी शख्स हैं, वे तो सिर्फ बता रहे हैं कि जोड़ने के उन के मकसद के माने क्या हैं.

भारत जोड़ो यात्रा पिछले साल की और इस साल की भी अहम घटना रही जिसे मीडिया ने भले ही मुनासिब जगह न दी हो लेकिन भगवा खेमे की बौखलाहट बताती है कि यह यात्रा खासी और इतनी कामयाब रही जिस की उम्मीद खुद कांग्रेसियों और राहुल गांधी को भी न रही होगी. हिम्मत खोते कांग्रेसियों में आस बंधी है कि अगर ईमानदारी, मेहनत और लगन से लड़ा जाए तो मौके खत्म नहीं हुए हैं. भोपाल के नजदीक सीहोर के युवा कांग्रेसी नेता बलबीर सिंह तोमर कहते हैं, ‘‘इस से एक बड़ा मैसेज हम कांग्रेसियों में यह गया है कि हमें चुनाव अब आम लोगों से जुड़ कर, विचारधारा के आधार पर लड़ना है और किसी से डरना

नहीं है.’’

भाजपा ने एक बड़ी गलती बहुत हलके स्तर पर इस यात्रा का मजाक उड़ाते यह कहते हुए की कि- ‘इस यात्रा का कोई मकसद ही नहीं है.’ यह सच है कि शुरू में आम लोगों को कुछ सम?ा नहीं आ रहा था लेकिन कश्मीर पहुंचतेपहुंचते यह यात्रा उत्तरोत्तर गंभीर होती गई. भाजपाई शासन में लोग चूंकि हैरानपरेशान हैं, इसलिए वे खुद से भारत जोड़ो यात्रा से जुड़े वरना तो जाहिर है ऐसी यात्राओं में भीड़ प्रायोजित रहती है, लोग ढो कर लाए जाते हैं जिन्हें आयोजन के मकसद से कोई लेनादेना नहीं होता.

भारत जोड़ो यात्रा इस रिवाज का अपवाद रही. यह बात खामोशी से भाजपाई भी मानते हैं. क्योंकि, इस पौलिटिक्स का मतलब एकदम अलग है जिस का जवाब उन की पार्टी नहीं दे पा रही. मुक्तिबोध होते तो यही कहते कि इस पौलिटिक्स के माने बहुत गहरे हैं क्योंकि इस से आम लोगों को आस बंधी है कि सबकुछ विकल्पहीन

नहीं है.

 

मुद्दा: जोशीमठ का संकट – धार्मिक पर्यटन से पड़ी दरारें

धार्मिक यात्राएं शहरों पर किस तरह से भारी पड़ रही हैं, जोशीमठ इस की मिसाल है. बद्रीनाथ जाने वालों का यह पहला पड़ाव होता है. अनियोजित विकास की भेंट चढ़ा जोशीमठ पलपल धंसता जा रहा है. यहां के लोग बेहाल हैं. उन का सबकुछ धार्मिक यात्राओं की भेंट चढ़ चुका है. जोशीमठ के 12 मकानों पर खतरा बने 2 होटल ‘मलारी इन’ और ‘माउंट व्यू’ को गिराने का सरकार का फैसला बताता है कि धार्मिक पर्यटन के बढ़ने से किस तरह से खतरा बढ़ा है.

नदियों और सड़कों के किनारे बने इन होटलों के कुछ कमरों का किराया इसलिए ज्यादा होता है क्योंकि कमरे से ही व्यू दिखता है. जिस समय इन के निर्माण हुए थे, इन को जोशीमठ के लिए बेहतर माना गया था. पहाड़ के खतरों से सरकार सीख नहीं ले रही, वह मैदानी इलाकों की नदियों के स्वरूप से खेल रही है. वाराणसी में गंगा नदी में 3,200 किलोमीटर तक चलने वाला निजी कंपनी का ‘गंगा विलास क्रूज’ आज भले ही मोदी सरकार के समर्थकों के लिए गौरव का विषय हो पर आने वाले दिनों में गंगा के स्वरूप में बदलाव भी संकट का कारण हो सकता है.

जोशीमठ का धार्मिक महत्त्व है. इस शहर को पौराणिक ग्रंथों में ज्योर्तिमठ के नाम से भी जाना जाता है. आदिशंकराचार्य ने देश में जिन 4 मठों की स्थापना थी, जोशीमठ उन में से एक है. यहां पर विष्णु का मंदिर है. इस के अलावा नरसिंह, नवदुर्गा और वासुदेव मंदिर भी हैं. बद्रीनाथ, जगन्नाथ, द्वारिका और रामेश्वरम चारधाम के नाम से जाने जाते हैं. मिलने वाले शुभ फल मान्यता है कि चारधाम यात्रा करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. इस यात्रा को करने से मुक्ति मिलती है. कहते हैं कि इस यात्रा में मृत्यु को प्राप्त हो जाना शुभ माना जाता है.

इन धामों की यात्रा करने से व्यक्ति को जीवनमुक्ति प्राप्त हो जाती है. बद्रीनाथ के बारे में प्रचार किया जाता है कि ‘जो जाए बदरी, वो न आए ओदरी’. इस का अर्थ है कि जो एक बार बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे उदर यानी गर्भ में नहीं जाना पड़ता. शिवपुराण इस मुक्ति को आगे बढ़ाता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का पूजन कर वहां का जल पी लेता है उस का दोबारा जन्म नहीं होता है. बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रह्मकपाल में पितृ तर्पण का विशेष माहात्म्य है. बारबार कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से अन्य तीर्थों के मुकाबले 8 गुना अधिक पुण्य मिलता है. यहां पर शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. जोशीमठ चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव होता है, जिस की वजह से इस का भौगोलिक महत्त्व बहुत है, जिस का खमियाजा इस शहर को भुगतना पड़ रहा है. जब यह शहर धंसने की तरफ पलपल बढ़ रहा है तो चारों तरफ चीखपुकार मची है.

सम?ाने वाली बात यह है कि जिस भगवान से कुछ पाने की मदद में लोग यहां आते थे, आज वही भगवान अपने ही घर को बचाने में असफल है. आंखों पर धर्म की पट्टी बांधे लोग अब भी कुछ सोचविचार करेंगे, यह दिख नहीं रहा. जब भी जोशीमठ के धार्मिक महत्त्व की चर्चा होगी तबतब उस के विनाश की तसवीर भी सामने दिखेगी. (सरित प्रवाह में टिप्पणी भी देखें.) ग्लेशियर के मलबे पर शहर बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जाने के लिए यहीं से हो कर जाना होता है. इस के आसपास बर्फीले पहाड़ देखने को मिलते हैं. यह देखने में बेहद सुंदर दिखता है. सुंदर दिखने वाला जोशीमठ दरअसल ग्लेशियर से निकलने वाले मलबे के पहाड़ पर बसा है. पहाड़ी ढलान होने के कारण भू कटाव का खतरा बहुत रहता है. 1505, 1803, 1991 और 1999 में यहां बड़े भूकंप आए. 1505 का भूकंप काफी तेज था.

पर्यटन के बढ़ते दबाव के कारण हुए निर्माण कार्यों का दबाव जोशीमठ पर भारी पड़ रहा है. यह शहर हर साल 6.62 सैंटीमीटर की गति से धंस रहा है. वैसे देखा जाए जो पूरा उत्तराखंड भूकंप की नजर से सब से खतरनाक हालत में है. हिमालय में होने वाली गतिविधियों से इस का पूरा इलाका खतरे में है. जोशीमठ भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले ‘जोन-5’ में आता है. जोशीमठ में हाल के कुछ सालों में यहां बड़े पैमाने पर बदलाव हुए. केदारनाथ हादसे और 7 फरवरी, 2021 में तपोवन क्षेत्र में धौलीगंगा में पानी के उफान के बाद भी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया. धौलीगंगा में आए उफान ने जोशीमठ की तलहटी अलकनंदा से विष्णुप्रयाग और मारवाड़ी पुल तक को प्रभावित किया था.

इस उफान में नदी का पानी एक दिन में ही 10 से 20 मीटर तक उठ गया था. उस समय भारी भू कटाव हुआ था, जिस का असर आज के जोशीमठ पर दिख रहा है. पानी का रिसाव इस कारण से ही हो रहा है. तेजी से बढ़ा भू धंसाव भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के नैशनल रिमोट सैंसिंग सैंटर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अप्रैल से नवंबर 2022 के बीच जमीन धंसने की गति धीमी थी. 2 जनवरी, 2023 के बाद इस की गति में तेजी आई है. इस दौरान भू धंसाव तेज हुआ, जिस के करण 12 दिनों में ही 5.40 सैंटीमीटर शहर धंस गया.

धंसाव का केंद्र जोशीमठ औली रोड के पास 2,180 मीटर की ऊंचाई पर था. इस की वजह से यहां के रहने वालों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है. इस के बाद प्रदर्शनकारियों की आवाजें गूंजने लगीं. धार्मिक पर्यटन और प्रकृति के बीच संघर्ष की एक मिसाल के रूप में जोशीमठ पर जिस प्रकार के खतरे महसूस किए जा रहे थे, विकास कार्यों के लिए उन को नजरअंदाज किया गया. उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की नीति को चारधाम परियोजना से उड़ान के पंख लगे और पहाड़ की प्रकृति को तहसनहस कर दिया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से केदारनाथ मंदिर के दर्शन कर उस का बड़े पैमाने पर प्रचार कार्य किया तब से इस क्षेत्र में पर्यटन बढ़ा.

बड़ी संख्या में लोगों का यहां आनाजाना शुरू हुआ. 2016 में बद्रीनाथ जाने वालों की संख्या 6.5 लाख थी जो 2022 में बढ़ कर 17.6 लाख हो गई. चारधाम यात्रा का धार्मिक महत्त्व तो है पर इस का जो भी आर्थिक महत्त्व था, अब भारी पड़ने लगा है. यात्रियों की सुविधाओं के लिए हरिद्वार से ले कर आगे हर शहर में नए निर्माण हुए. नदियों के किनारों पर अतिक्रमण कर के होटल बने. होटल, गेस्ट हाउस, दुकानें, सड़क और मंदिरों तक में नए निर्माण हुए. पेड़ों की कटाई और नदियों से खनन किया गया. जिन खतरों के खिलाफ सालोंसाल पहले जनता सतर्क थी उन्हें भूल गई, जिस का नतीजा अभी तो सिर्फ जोशीमठ के 600 से अधिक परिवार भुगत रहे हैं, आगे और गांवकसबे भी चपेट में आएंगे. खतरों को किया दरकिनार जोशीमठ से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर रैणी गांव है.

मार्च 1974 में यहीं से ‘चिपको आंदोलन’ की शुरुआत हुई जब इसी गांव की रहने वाली गौरा देवी कुछ महिलाओं को ले कर जंगल में पहुंचीं और पेड़ों से चिपक गईं. उन्होंने पेड़ों को काटने वाले लोगों को चेतावनी दी कि अगर इन पेड़ों को काटना ही है तो पहले हम पर गोली चलाओ. इस तरह यहां से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई और सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े. 47 साल पहले गढ़वाल कमिश्नर मुकेश मिश्रा ने आयोग बनाया जिसे मिश्रा कमीशन कहा जाता है. उस की रिपोर्ट ने जोशीमठ को बचाने के लिए जिन सु?ावों को पेश किया था उन पर अमल नहीं किया गया. मिश्रा कमीशन ने कहा था कि यहां के आसपास भारी निर्माण न हो.

सड़क बनाने के लिए बड़े पत्थरों, जिन को बोल्डर्स कहा जाता है, को खोदने या विस्फोट कर हटाने को मना किया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ के निचले इलाकों में पेड़पौधे लगाए जाएं और हरियाली बढ़ाने पर काम किया जाए. नालियों की व्यवस्था ऐसी हो कि भू कटाव न हो सके. उस समय उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था और भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं थी. काफीकुछ काम किया गया लेकिन बाद के सालों में इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया.

जोशीमठ को बचाने के लिए उत्तराखंड की कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों ने ईमानदारी से काम नहीं किया. शहर में भारी निर्माण कार्य होते रहे. जैसेजैसे पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी, उन की सुविधा के लिए अलग इंतजाम होने लगे. 1976 के मुकाबले आबादी कई गुना बढ़ गई. पानी का प्रयोग बढ़ा पर उस की निकासी का सही इंतजाम नहीं किया गया. संकट में चारधाम परियोजना जोशीमठ में लंबे समय से बेतरतीब निर्माण गतिविधियां चल रही हैं. केंद्र और राज्य सरकारें धार्मिक पर्यटन के सहारे राजस्व बढ़ाने की बात करती हैं. इस कारण केवल जोशीमठ ही नहीं, औली भी संकट में है.

वहां कृत्रिम बर्फ बनाने के लिए बाहर से पानी लाया गया, ?ाल बनाई गई. जबकि पानी के निकास का कोई उचित प्रबंध नहीं किया गया. इस वजह से जोशीमठ की तरह औली का भी संकट बढ़ सकता है. जोशीमठ की जनसंख्या 30 हजार के करीब है. पहाड़ी शहरों को देखें तो यह एक अच्छी आबादी वाला शहर है. जोशीमठ के कुल मकानों में से 761 मकानों को ज्यादा खतरनाक माना गया है. 1962 में चीन से युद्ध के बाद भारत में इस जगह के महत्त्व को सम?ा गया. युद्ध की हार की समीक्षा में यह बात उभर कर सामने आई थी कि अगर यहां भारत की सेना के लिए सड़क बन जाए तो बेहतर होगा. इस के बाद से जो निर्माण यहां हुआ उस से भी संकट पैदा हुआ है. केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद से सड़कों के निर्माण में तेजी आई, सेना के लिए भी जोशीमठ के इलाके में तमाम निर्माण हुए जिस वजह से जोशीमठ की परेशानियां और तेजी से बढ़ी हैं.

चारधाम परियोजना के तहत जोशीमठ औल वैदर रोड का हिस्सा है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्त्वाकांक्षी प्रोजैक्ट्स में से एक है. चारधाम परियोजना औल वैदर रोड परियोजना है. जो उत्तराखंड में चारधामों को जोड़ने के साथसाथ एक धार्मिक महत्त्व का प्रोजैक्ट है. इस के जरिए उत्तराखंड के गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को जोड़ने का काम किया जा रहा है. इस से तीर्थाटन और पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा ही, साथ ही, इस से पड़ोसी देश चीन का मुकाबला करने में भी मदद मिलेगी. पहले इस प्रोजैक्ट का नाम औल वैदर रोड प्रोजैक्ट ही था जिसे बाद में नाम बदल कर चारधाम प्रोजैक्ट किया गया. विरोध के बाद रोका गया काम आध्यात्म हो या फिर भौगोलिक महत्त्व, जोशीमठ हर तरह से बेहद खास है. यह करीब 4,677 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है.

यहां के हालात को ले कर स्थानीय लोगों में गुस्सा है. उन्होंने बद्रीनाथ हाइवे पर चक्काजाम किया. सीधेतौर पर इस की वजह को देखें तो पता चलता है कि यह एक मैन-मेड डिजास्टर है. यहां के लोग हेलांग बाईपास के निर्माण कार्यों का भी विरोध करते रहे हैं. लोगों की मांग है कि हेलांग और मारवाड़ी के बीच एनटीपीसी की सुरंग और बाईपास रोड का निर्माण बंद कराया जाए, साथ ही, इस संकट की जवाबदेही एनटीपीसी के तपोवन-विष्णुगढ़ हाईड्रोपावर प्रोजैक्ट पर तय की जाए. ताजा हालात देखते हुए चमोली प्रशासन ने सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ द्वारा हेलांग बाईपास के निर्माण कार्यों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है.

हेलांग बाईपास के निर्माण के अलावा तपोवन-विष्णुगढ़ प्रोजैक्ट और नगरपालिका की ओर से किए जा रहे तमाम निर्माण कार्यों पर भी रोक लगा दी गई है. भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि जोशीमठ में स्थिति पर करीब से नजर रखी जा रही है. भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले ‘जोन-5’ में पड़ने वाले जोशीमठ का सर्वे करने के लिए एक एक्सपर्ट टीम भी गठित की गई है. एनटीपीसी ने स्पष्टीकरण देते कहा है कि पिछले 2 सालों से जोशीमठ पर कोई सक्रिय निर्माण कार्य नहीं किया गया है. तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना से जुड़ी 12 किलोमीटर लंबी सुरंग जोशीमठ से एक किलोमीटर दूर और जमीन के एक किलोमीटर नीचे है. टनल जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजर रही है. विकास कामों को करने वाले अब बचाव का रास्ता निकाल रहे हैं. इस के बीच जोशीमठ में रहने वालों के लिए सरकार नए बसेरे की योजना बना रही है. विस्थापन का दर्द सहने को लोग मजबूर हैं.

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