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दिल का ख्याल रखें कुछ ऐसे

सर्दी में दिल से जुड़ी समस्याएं किसी भी मौसम के मुकाबले ज्यादा घातक हो जाती हैं. इस सर्दी भी ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं जहां हार्ट संबंधी बीमारियां मौत का कारण बन रही हैं. ऐसे में जरूरी है कि स्वास्थ्य को ले कर जरूरी सावधानियां बरती जाएं. सर्दी का मौसम सभी के लिए बड़ा सुहावना होता है और हो भी क्यों न, क्योंकि इस सुहावने मौसम में हर किसी के लिए कोई न कोई त्योहार होता है. इस दौरान हम सभी अपने रिश्तेदारों व दोस्तों के साथ मिल कर समय बिताते हैं और खुल कर जश्न मनाते हैं. लेकिन सर्दी में व्यक्ति की दिनचर्या थोड़ी सीमित हो जाती है.

इस का स्वास्थ्य पर असर दिखता है और ब्लड सर्कुलेशन कम हो जाता है, क्योंकि वर्कआउट कम हो जाता है. सर्दी हमारे दिल को कमजोर बना देती है लेकिन थोड़ा ध्यान इसे तंदुरुस्त बना सकता है. ठंड के महीनों में लोगों के दिल की बीमारियों व स्ट्रोक की वजह से होने वाली मौतों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी दिखाई देती है. सेहतमंद जीवनशैली को अपना कर दिल की किसी भी बीमारी से बचा जा सकता है. सो, समयसमय पर जांच कराना और डाक्टर्स से सलाह लेना बेहद जरूरी होता है ताकि इन बीमारियों का शुरुआत में ही पता लगाया जा सके और सही समय पर उन का इलाज किया जा सके.

इस बारे में न्यूबर्ग डायग्नोस्टिक्स के डा. विज्ञान मिश्रा कहते हैं कि कई अध्ययनों के नतीजे बताते हैं कि गर्मी की तुलना में सर्दी में होने वाला हार्टअटैक जानलेवा साबित हो सकता है जिस के कुछ खास समय होते हैं. मसलन, सर्दी के मौसम में सुबह के समय एंजाइना, दिल के दौरे और दिल से जुड़ी दूसरी बीमारियों का खतरा सब से अधिक होता है. क्या है रिस्क फैक्टर द्य ठंड की वजह से ब्लड वैसल्स (धमनियां) सिकुड़ जाती हैं. इस से ब्लडप्रैशर (रक्तचाप) बढ़ जाता है जो दिल के दौरे या स्ट्रोक के खतरे का कारण बन सकता है. द्य ठंड की वजह से कोरोनरी धमनियों के सिकुड़ने के कारण एंजाइना या कोरोनरी हृदय रोग के चलते सीने में दर्द के मामले बढ़ जाते हैं और कई बार स्थिति काफी बिगड़ सकती है.

इस मौसम में शरीर के तापमान को एकसमान बनाए रखने के लिए दिल को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. सर्दी में शरीर का तापमान बड़ी तेजी से घटता है और सर्द हवाओं की वजह से परेशानी अधिक बढ़ सकती है. द्य हाइपोथर्मिया (ऐसी अवस्था जिस में शरीर का तापमान काफी गिर जाता है) होने पर अगर आप के शरीर का तापमान 95 डिग्री से कम हो जाए तो आप के दिल की मांसपेशियों को काफी नुकसान हो सकता है. शारीरिक गतिविधियों में कमी डा. विज्ञान आगे बताते हैं कि इस मौसम में ठंडभरे माहौल की वजह से हमें बारबार सुस्ती का एहसास होता है और कहीं बाहर जाने की हमारी इच्छा खत्म हो जाती है. कंबल ओढ़ कर या आग के पास न बैठ कर, व्यायाम करना फायदेमंद हो सकता है.

इस से हृदय का ब्लड सर्कुलेशन सही बना रहता है. मिठाइयों और जंकफूड के अधिक सेवन से बढ़ता है खतरा सर्दी में हम सभी को ज्यादा भूख लगती है, जिस की वजह से खानेपीने पर ध्यान देते हैं और हमारी खुराक भी बढ़ सकती है. यह जरूरी नहीं है कि हमारे खानपान की सभी चीजें सेहत के लिए फायदेमंद हों, बहुत अधिक फैट (वसा) वाले भोजन तथा मीठी चीजों के सेवन की वजह से वजन बढ़ सकता है, जिस से दिल का दौरा पड़ने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं. सब से अधिक खतरा किसे द्य खतरे की संभावना बढ़ाने वाली कई चीजें होती हैं जो दिल की बीमारी होने के जोखिम को बढ़ा देती हैं. उम्र बढ़ना और परिवार में पीढ़ीदरपीढ़ी दिल की बीमारी की समस्या, दो ऐसे जोखिम हैं जिन्हें चाह कर भी बदलना संभव नहीं होता.

महिलाओं में 55 साल की उम्र और पुरुषों में 45 साल की उम्र के आसपास दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. इस के अलावा परिवार के निकट सदस्यों में किसी को भी पहले से दिल की बीमारी है तो शायद आप भी इस बीमारी से पीडि़त हो सकते हैं.

वंशानुगत समस्या की वजह से दिल की बीमारी का जोखिम बढ़ सकता है लेकिन आज की दिनचर्या की खराब आदतों का भी इस पर काफी बुरा असर पड़ता है. कुछ बदलाव लाएं जीवन में दिनचर्या से जुड़ी कुछ खराब आदतें निम्न हैं जो सेहत को नुकसान पहुंचाने के साथसाथ दिल की बीमारियों का कारण बन सकती हैं-

एक ही जगह पर लंबे समय तक बैठ कर काम करने की आदत.

पर्याप्त व्यायाम न करना. द्य फैट (वसा), प्रोटीन, ट्रांसफैट, मीठी चीजों तथा सोडियम से भरपूर आहार का सेवन करना.

धूम्रपान और अत्यधिक नशा करना.

तनाव को कम करने के लिए असरदार तकनीकों का उपयोग किए बिना तनावपूर्ण माहौल में काम करना जारी रखना.

अनियंत्रित डायबिटीज का होना आदि कई हैं. जांच कैसे करें जीनोमिक टैस्ंिटग : जेनेटिक टैस्ट, यानी आनुवंशिक जांच प्रक्रिया में कार्डियो जीनोमिक प्रोफाइल शामिल है, जिसे ‘हार्ट हैल्थ’ प्रोफाइल भी कहा जाता है. इस तरह के परीक्षण में आनुवंशिक तौर पर होने वाले परिवर्तन की जांच की जाती है, जो इस बीमारी के उच्च जोखिम से जुड़ी होने की प्रतिशत का पता लगा सकती है और इस के जरिए कार्डियोवैस्कुलर डिजीज होने की संभावना का भी पता लगाया जाता है.

इन परीक्षणों का उद्देश्य किसी व्यक्ति को हृदय रोग होने की संभावना के बारे में जानना होता है. आजकल कार्डियो जीनोमिक प्रोफाइल की मदद से लोगों के हृदय रोग, खासतौर पर दिल का दौरा या स्ट्रोक होने के जोखिम का अनुमान लगाया जाता है.

खून और पेशाब की जांच : जांच के नतीजों में लो-डैंसिटी लिपोप्रोटीन के उच्च स्तर जैसी कई बातों से दिल की बीमारी के बढ़ते जोखिम का संकेत मिलता है. दिल की बीमारियों के साथसाथ रक्त वाहिका (ब्लड वैसल्स) संबंधी रोग की संभावना का पता लगाने के लिए डाक्टर खून और पेशाब की जांच कराने की सलाह दे सकते हैं. सेहत की देखभाल करने वाली डाक्टरों की टीम जांच के नतीजों और पहले कराए गए उपचार की जानकारी के आधार पर इलाज की बेहतर योजना तैयार करती है.

ईसीजी : इलैक्ट्रोकार्डियोग्राम जिसे ईसीजी कहते हैं, यह बेहद कम समय में पूरी होने वाली जांच प्रक्रिया है. इस में कोई दर्द नहीं होता है. इस की मदद से दिल की इलैक्ट्रिकल ऐक्टिविटी और धड़कन की लय की जांच की जाती है. दिल हर बार धड़कने पर जो इलैक्ट्रिकल संकेत देता है, उसे त्वचा से चिपके सैंसर द्वारा ग्रहण किया जाता है. फिर एक मशीन इन संकेतों को रिकौर्ड करती है, जिसे देख कर डाक्टर यह पता लगाता है कि उन संकेतों में कुछ विषमता है या नहीं. स्ट्रैस टैस्ट स्ट्रैस टैस्ट को सामान्य तौर पर ट्रेडमिल या ऐक्सरसाइज टैस्ट भी कहा जाता है. इस की मदद से यह पता लगाया जाता है कि हृदय किसी तनाव को कितने असरदार तरीके से सहन कर सकता है. इस जांच के नतीजे से यह मालूम होता है कि दिल की धमनियों में खून के प्रवाह में कमी है या नहीं. इस से डाक्टरों को मरीज के लिए सब से उचित व्यायाम और उस की तीव्रता निर्धारित करने में भी मदद मिलती है.

मां का जन्म-भाग 4 : माधुरी किस घटना से ज्यादा दुखी थी?

‘माधुरी, ये सब बातें दिमाग से निकाल दो. तुम ने कम कष्ट सहे हैं क्या इस दिन के लिए. यह इस पूरी प्रक्रिया का सब से मार्मिक पहलू है. अब दिमाग से यह निकाल दो कि ये तुम्हारी कोख से नहीं जन्में हैं. आज से तुम ही इन की मां हो. दुनिया यशोदा को ही कान्हा की मैया कहती है. कान्हा का जन्म तो देवकी की कोख से हुआ था. जिस ने इन्हें जन्म दिया उस का तुम हमारे ऊपर छोड़ दो. सब की अपनीअपनी मजबूरियां होती हैं. आज पैसा बहुतों के पास है लेकिन सब को सरोगेट मदर नहीं मिलती है. और हां, आज के बाद मेरे सामने इस विषय पर दोबारा बात नहीं होनी चाहिए. इन बच्चों के साथ एक नए जीवन की शुरुआत करो,’ कहते हुए डा.

लतिका का चेहरा गंभीर और लहजा सख्त हो गया.

प्रभाष ने तुरंत कहा, ‘जी मैडम, आप का धन्यवाद हम कैसे करें. बस, यही कहूंगा कि हमारा रोमरोम आप का कर्जदार है.’

डा. लतिका से मिलने के बाद दोनों केबिन से बाहर आ गए. और डा. नटियाल के केबिन के बाहर बैठ कर अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे. माधुरी ने किसी तरह दोनों हाथों में अलगअलग बच्चों को पकड़ा था. उस के हाथ कांप रहे थे और दिल जोरों से धड़क रहा था. उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब सच है. वह आंखें मूंदे सो रहे दोनों नवजन्में को डबडबाई आंखों से देख रही है. उसे इन्हें ठीक से पकड़ना भी नहीं आ रहा. एकएक कर के उस ने दोनों का माथा चूमा, पैर चूमे.

प्रभाष की ओर देखते हुए उस ने कहा, ‘आज मैं संपूर्ण हो गई. प्रकृति से मुझे अब कुछ नहीं चाहिए. मैं इन्हें इतना प्यार दूंगी जितना किसी ने अपने बच्चों को न दिया होगा. इन के नाम होंगे अंशुल और रोली.’

इस के बाद दोनों डा. शिरीष नटियाल से मिले जिन्होंने बच्चों को समयसमय पर लगने वाले टीकों की फाइल दी. और उन की लंगोट से लगाए, डब्बे वाले दूध को बनाने, बोतल से उसे पिलाने के तरीके इत्यादि के बारे में सबकुछ विस्तार से समझाया. दोनों बच्चों के साथ प्रभाष ने एक सैल्फी ली.

माधुरी ने उसे तुरंत टोकते हुए कहा, ‘इसे कहीं पोस्ट मत करना. बच्चों को नजर लग जाएगी. अभी अगले दोतीन महीने तक किसी को घर पर मत बुलाना. मैं चाहती हूं पहले ये दोनों मुझे तो स्वीकार लें. मैं इन के साथ जीना चाहती हूं. मुझे इस समय सिर्फ ये चाहिए. अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं आप, तो मैं इन्हें ले कर जौनपुर लौट जा रही हूं.’

‘अरे नहीं, ऐसा मत कहो. तुम्हें जो अच्छा लगे, करो. मैं भी अब इन से दूर नहीं रह सकता. एक काम करते हैं, जब हम इन के साथ खूब अच्छे से रहना शुरू कर लेंगे तब एक पार्टी करेंगे. सब को बुलाएंगे. तब तक सिर्फ तुम, मैं और हमारे अंशुल-रोली,’ यह कहते हुए प्रभाष की आंखें नम हो गईं.

प्रभाष ने डा. लतिका की मदद से एक एजेंसी से बात कर के 24 घंटे साथ रहने वाली एक आया ढूंढ़ी जो कल से घर आ जाएगी. उस दिन शाम से माधुरी का मातृत्व जीवन शुरू हुआ. प्रभाष ने सरोजिनी नगर की सभी दुकानों में मिठाई के डब्बे भिजवाए. उधर, इस खबर के बाद माधुरी को जानने वालों के दनादन फोन आने लगे. प्रभाष ने उसे मना किया था कि किसी की कौल उठाने से. उस ने माधुरी से कहा कि धीरेधीरे सब को बताएंगे, अभी वह अपनी खुशियों पर ग्रहण नहीं लगाना चाहता है. माधुरी ने भी इस समय बहस करना उचित नहीं समझा.

दोनों ने तय किया कि 3 महीने तक वे न तो कोई पार्टी देंगे और न ही बच्चों को कहीं बाहर ले जाएंगे. प्रभाष ने सब से यही कहा कि हमारे यहां रिवाज है 3 महीने बच्चे सिर्फ मांबाप के पास घर में रहते हैं. लोगों ने भी सोचा कि इतने साल बाद बच्चे हुए हैं, सो, प्रभाष का इतना सशंकित होना जायज है. सब ने खूब बधाइयां दीं.

घर आ कर माधुरी ने सब से पहले अपना कमरा बच्चों के अनुकूल किया. प्रभाष को उस ने एक लंबी लिस्ट पकड़ा कर बाजार भेजा. सूती कपड़े की लंगोट, बेबीडाइपर, दूध की 4 बोतलें, बिस्तर पे बिछाने का प्लास्टिक, कई सारे कपड़े जिन में सामने बटन हों ताकि पहननेउतारने में आराम रहे. बच्चों के साथ पहली रात माधुरी एक मिनट भी नहीं सोई. हर 2 घंटे पर उन्हें दूध पिलाना होता, एक सोता तो दूसरी जाग जाती. माधुरी के साथसाथ प्रभाष भी सारी रात जगा.

सुबह 5 बजे माधुरी ने प्रभाष को सोने के लिए भेजा और खुद बच्चों के पास लेट गई. अगले दिन दोपहर में एक आया आई जिस का नाम रश्मि था. रश्मि बहराइच से है और अब वह 24 घंटे बच्चों के साथ रहेगी. तय यह हुआ कि बच्चों की लंगोट या उन के कपड़े बदलना, धोना आदि रश्मि देखेगी. उन की दूध की बोतल उबालना, उन का दूध बनाना, उन्हें नहलाना ये सब काम माधुरी स्वयं करेगी. साफसफाई को ले कर माधुरी काफी संजीदा है. प्रभाष भी घर आ कर पहले हाथ, पैर और मुंह धोता है, उस के बाद ही वह बच्चों को गोद में ले सकता है.

माधुरी ने अपना पूरा वजूद बच्चों की देखभाल में लगा दिया. 15-20 दिनों में हालत यह हो गई कि माधुरी की आंखों के नीचे काले धब्बे आ गए. उसे हमेशा सिर में दर्द रहने लगा. रश्मि कहने को तो हमेशा साथ रहती पर माधुरी उसे भी रात को सोने भेज देती. हर 2 घंटे पे जागने से हालत यह हुई कि माधुरी ने पिछले कई दिनों से एक बार भी पूरी नींद नहीं ली.

दिन बीतते गए और माधुरी का बच्चों के प्रति समर्पण बढ़ता गया. उस ने किसी का फोन उठाना, कहीं बात करना सब बंद कर दिया. उसे समय भी नहीं मिलता था. एकसाथ 2 छोटे बच्चे संभालना बहुत कठिन कार्य है. महीनेभर बाद प्रभाष की मां रजनी देवी आईं. उन्हें भी दोनों ने महीनेभर आने से मना किया हुआ था. उन के आने से भी माधुरी को कोई खास मदद नहीं मिली क्योंकि सब से ज्यादा जरूरत रात में संभालने की थी. वह सिर्फ और सिर्फ माधुरी करती थी.

महीनेभर बाद माधुरी इतनी बीमार पड़ी कि उसे डा. सरोज को दिखाना पड़ा. डा. सरोज ने साफ कहा कि अगर रोज माधुरी की नींद नहीं पूरी होगी तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं. उसे कम से कम 6-7 घंटे सोना ही पड़ेगा. माधुरी की बगड़ती हालत के बाद प्रभाष और मां ने तय किया कि दिन में माधुरी सोए, वे देखभाल करेंगे. प्रभाष ने दुकान का काम देखना कम कर दिया. फोन से ही दुकान संभालता और दिन में एक बार जाता.

राज्यपाल और ताश के पत्ते

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार ने 13 राज्यपालों को ताश के पत्तों की तरफ फेंट दिया कुछ इस तरह की मानो तुरुप के पत्ते हों, संविधान में राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है उसकी अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति और गरिमा होती है. मगर धीरे-धीरे यह पद आज गरिमाहीन हो चुका हैं और केंद्र सरकार को अपने मालिक की तरह देखता है और हुक्म बजाता है. इन सभी राज्यपालों में सबसे बड़ा नाम है उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति नजीर का.

जिन्हें केंद्र ने आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना करके मानो एक तोहफा दिया है. न्यायमूर्ति नजीर अयोध्या भूमि विवाद, ‘तीन तलाक’ और ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित करने वाले कई बड़े फैसलों को हिस्सा रहे. वे कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे, जिन्होंने 2016 में 1,000 रुपए और 500 रुपए के नोट चलन से बाहर किए जाने से लेकर सरकारी नौकरियों एवं दाखिलों में मराठों के लिए आरक्षण और उच्च सरकारी अधिकारियों की भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तक कई मामलों पर फैसले सुनाए . लोकतांत्रिक देश में इस बात पर अब बहस होनी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति या संवैधानिक पदों पर बैठे विभुतियों को क्या राज्यपाल जैसा या अन्य कोई पद जिसमें वेतन और अन्य सुविधाएं मिलती हैं लेना उचित है. क्या इस नजीर से देश में न्यायाधीशों को अन्य को प्रभावित करने का चलन और ज्यादा नहीं हो जाएगा. दरअसल,राज्यपालों की ताजा नियुक्ति में कई राज्यों में विभिन्न समीकरणों को भी ध्यान में रखा गया है. और यह नियुक्तियां आने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए अधिक की गई है.

छत्तीसगढ़ की विवादास्पद राज्यपाल अनुसूइया उईके को मणिपुर भेज दिया गया है और नाराज अनुसूचित जनजाति को सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया गया है कि आरक्षण विधेयक को रोकना गलत था. असम के नए राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया वर्तमान में राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता थे और उन्हें राज्य में मुख्यमंत्री पद के सशक्त उम्मीदवार माना जा रहा था. मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव में मतदान होने के साथ राजभवन में अनुभवी हाथ देने का प्रयास है. दोनों राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता और बार-बार राजनीतिक बदलाव का इतिहास रहा है. यहां राज्यपाल अपनी महत्वपूर्ण भूमिका जैसा केंद्र चाहेगा निभाएंगे.

बिहार के निवर्तमान राज्यपाल फागू चौहान को मेघालय भेजा गया है, मणिपुर के राज्यपाल और पश्चिम बंगाल में कार्यकारी राज्यपाल रहे ला गणेशन को नागालैंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया है पूर्व लोकसभा सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता सीपी राधाकृष्णन के तमिलनाडु इकाई से बाहर होने से प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई की स्थिति मजबूत होगी कुल मिलाकर राधाकृष्णन के प्रदेश अध्यक्ष के साथ मतभेद थे और एक मजबूत पृष्ठभूमि है. इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री 3 दफा राज्यसभा में भाजपा के मौजूदा मुख्य सचेत शिव प्रताप शुक्ला की हिमाचल प्रदेश राज्यपाल के के रूप में नियुक्ति पार्टी के मुफीद है.

सत्ता, चुनाव और राज्यपाल छत्तीसगढ़ में राज्यपाल अनुसुइया उइके आरक्षण विधेयक को लेकर के विवादास्पद हो गई थी, पहले उन्होंने सरकार से विधायक लाने को कहा और फिर उस विधेयक को रोक कर बैठ गई जबकि एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में वे सिर्फ विधेयक को पुनः विचार के लिए सरकार के पास भेज सकती थी. मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया और एक पार्टी प्रवक्ता के रूप में वक्तव्य देती रही. भगत सिंह कोश्यारी (80) ने सितंबर 2019 में महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में उस समय पदभार संभाला था. जब महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सत्ता में थी, तो राज्यपाल कोटे से राज्य विधान परिषद में 12 सदस्यों की नियुक्ति जैसे कई मुद्दों पर सरकार के साथ उनके गहरे विवाद हुए. उन्हें हटाकर झारखंड के विवादास्पद राज्यपाल रमेश बैस को महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया है आप पहले भी झारखंड में राज्यपाल के रूप में विवादास्पद रहे हैं.

लद्दाख के उपराज्यपाल आरके माथुर केंद्र शासित प्रदेश में प्रसिद्ध शिक्षा सुधारवादी सोनम वांगचुक के नेतृत्व वाले कड़े विरोध का सामना कर रहे थे. राष्ट्रपति ने माथुर के स्थान पर अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल ब्रिगेडियर बीडी मिश्रा (सेवानिवृत्त) को नियुक्त किया है. लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) कैवल्य त्रिविक्रम परनाइक को अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया है. आप सेना की प्रतिष्ठित उत्तरी कमान के कमांडर रह चुके हैं. यही नहीं उत्तर प्रदेश के दो नेताओं समेत चार भाजपा नेताओं को भी केंद्र सरकार द्वारा नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है. भाजपा नेताओं लक्ष्मण प्रसाद आचार्य, सीपी राधाकृष्णन, शिव प्रताप शुक्ला और गुलाब चंद कटारिया को क्रमशः सिक्किम, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और असम का राज्यपाल नियुक्त किया गया है. आचार्य उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य हैं और राधाकृष्णन कोयंबटूर से भाजपा के दो बार के लोकसभा सदस्य हैं.

पूर्व वित्त राज्य मंत्री शुक्ला राज्यसभा में भाजपा के सदस्य थे और वह 2022 में सेवानिवृत्त हुए, जबकि कटारिया राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के मौजूदा नेता हैं। कटारिया ने पिछली वसुंधरा राजे सरकार में गृह मंत्री के रूप में कार्य किया था. मणिपुर के राज्यपाल ला गणेशन को नगालैंड, बिहार के राज्यपाल फागू चौहान को मेघालय और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर को बिहार का राज्यपाल बनाया गया है. कुल मिलाकर के केंद्र की नरेंद्र दामोदरदास मोदी सरकार ने आगामी चुनाव के मद्देनजर राज्यपालों को ताश के पत्तों की तरह फेंट दिया है. अच्छा होता विश्व गुरु बनने की और नरेंद्र मोदी के युग में राज्यपालों को उनकी नियुक्ति के संदर्भ में निष्पक्ष रखा जाता, देश के चुनिंदा बुद्धिजीवियों को भी मौका दिया जाता.

राहुल, मोदी और चीन

हर देश अपने सैनिकों की इज्जत के प्रति बहुत सतर्क रहता है. सेना में सैनिकों के साथ चाहे कैसा भी बरताव किया जा रहा हो लेकिन जनता के मन में यह छवि बैठाई जाती है कि देश सैनिकों के लिए बहुतकुछ कर रहा है क्योंकि वे ही देश को दुश्मनों से बचाते हैं. इसीलिए जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने चीनियों द्वारा भारतीय सैनिकों के साथ मुठभेड़ का विषय उठाते हुए ‘पिटाई’ शब्द का इस्तेमाल किया तो भारतीय जनता पार्टी की सरकार को राहुल गांधी की आलोचना करने का अवसर मिल गया.

राहुल गांधी असल में बात कर रहे थे कि जब भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों से ठंड के दिनों में हिमालय की ऊंची सरहदों में मुठभेड़ कर रहे थे, उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी-20 सम्मेलन के दौरान इंडोनेशिया में चीनी नेता शी जिनपिंग के साथ फोटो खिंचा रहे थे, भारत-चीन मुद्दे को उठाने की हिम्मत नहीं कर रहे थे.

जब से नरेंद्र मोदी ने कहा है कि चीन न भारत में घुसा है, न कभी घुसेगा, तब से वे चीन के बारे में आमतौर पर चुप रहते हैं. भारत-चीन झड़पों पर सरकार ने टिकटौक ऐप को तो बंद कर रखा है पर इस के अलावा चीन के खिलाफ कोई और मोरचा खोला हो, ऐसा नहीं लगता. चीनी सामान के बहिष्कार के नाम पर एकदो साल चीन की बिजली की लडिय़ों को कम इस्तेमाल किया गया वरना तो उस का आयात बढ़ ही रहा है, घट नहीं.

चीन के साथ दोस्ती और शत्रुता 1947 से ही चलती आ रही है क्योंकि उत्तरी सीमा पर विवाद रहा है. भारत का तिब्बत पर सीधा शासन कभी नहीं रहा. हालांकि, कुछ समय तक भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने वहां अपने सैनिक तैनात किए थे. लेकिन इस तरह तो भारतीय सैनिक ब्रिटिश सरकार के राज के कारण चीन में काफी सालों तक जमे रहे. इस का मतलब यह नहीं था कि भारत का चीन पर कब्जा था. तिब्बती राजा समयसमय पर उत्तर में हमले करते रहे थे, इसलिए हमारी सीमा वहां है और कैसी है, यह कभी पक्का नहीं रहा. चीन ने 1962 में भारी हमला कर काफी जमीन, जिसे ब्रिटिश भारत के दौरान से भारत अपनी मानता रहा है, हथिया ली और आज तक वह विवाद नहीं सुलझा है.

लाइन औफ ऐक्चुअल कंट्रोल को अब सीमा मान लिया गया. पर यह भी बिना निशानदेही वाली 3,500 किलोमीटर की सीमा है. सो, जाहिर है इस पर विवाद होगा ही. इस विवाद के बारे में हर सरकार को देश की जनता को पूरा व सही जवाब देने में कठिनाई हुई है. जहां पाकिस्तान का नाम ले कर भारत में वोट बटोरे जा सकते हैं वहीं चीनी सेना भारतीय शासकों के लिए सिरदर्द रही है. यह भारत में हमेशा सत्ताधारी पार्टी के लिए राजनीतिक कमजोरी बनी रही है.

नरेंद्र मोदी की ‘ताकतवर’ छवि बनाने में जो मेहनत की गई है, उसे राहुल गांधी पंचर करने की कोशिश करेंगे, तो भारतीय जनता पार्टी को बेचैनी होगी ही. कभी लद्दाख, कभी सिक्किम और अरुणाचल में चीनी घुसपैठ का जवाब देना सेना के लिए चाहे आसान हो या मुश्किल, यह भारतीय नेता की छवि पर गहरा घाव जरूर करता रहता है.

सरकार को चिंता सीमा की कम, वोटों की ज्यादा रहती है. यह नरेंद्र मोदी के राज्यों तक के चुनावों से पहले सब कामधाम छोड़ कर चुनावी सभाओं में व्यस्त हो जाने से स्पष्ट है. राहुल गांधी ने इस मामले को अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान बारबार उठा कर मोदी को परेशान तो कर ही दिया है.

Yrkkh : शादी से पहले अभिमन्यु के सामने ये शर्त रखेगी आरोही

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में आए दिन नया-नया ट्विस्ट देखने को मिलते रहता है,यह सीरियल सालों से लोगों के दिलों पर राज कर रहा है, इन दिनों लगातार अक्षरा और अभिमन्यु की जीवन में परेशानियां चल रही है.

अब आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अक्षरा और अभिमन्यु एक-दूसरे के सामने आने वाले हैं,आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अक्षरा बहुत हिम्मत करके उदयपुर जाने के लिए तैयार हो रही है,इस खबर से अभिनव और अभीर काफी ज्यादा खुश हो जाते हैं.

 

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रूही जिद्द करके बैठी है कि रूही अभिमन्यु को अपना पापा बनाना चाहती है, लेकिन जब आरोही को ये बात पता चलेगी तो काफी ज्यादा परेशान हो जाएगी, वह अपने लाइफ के बारे में सोचेगी कि कैसे वह अभिमन्यु के साथ नए रिश्ते की शुरुआत करेगी .

आरोही को इस बात का पता चलता है कि अभिमन्यु ने एक बार फैसला कर लिया तो वह कभी भी पिछे नहीं हटेगा, अभिमन्यु भी इस बात पर पिछे नहीं हटेगा. और वह इस शर्त को मान लेता है.

दूसरी तरफ रूही बिरला हाउस में सबको बताती है कि आरोही और अभिमन्यु शादी करने जा रहे हैं. इस खबर को सुनते ही सभी खुशी से झूम उठते हैं.

देबीना-गुरमीत ने इस खास अंदाज में मनाई वेडिंग एनिवर्सरी,देखें फोटोज

टीवी की मशहूर जोड़ी देबीना बेनर्जी  और गुरमीत चौधरी ने बीते दिनों अपनी शादी की बारहवीं सालगिरह मनाई है. इस खास दिन पर दोनों कपल कोफी ज्यादा रॉयल अंदाज में नजर आएं.

दोनों ने अपनी शादी की सालगिरह को शानदार तरीके से मनाया है, देबिना और गुरमीत की 2 प्यारी बेटियां हैं. पिंक और गोल्डन रंग से डेकोरेश हुआ था साथ ही में दोनों ने शैंपियन की बोतल को खोलकर इस पार्टी की शुरुआत की.

 

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इस पार्टी के दौरान गुरमीत और देबिना एक-दूसरे के साथ खोएं हुए दिखें, गुरमीत ब्लैक कलर के टीशर्ट और पैंट में नजर आएं तो वहीं देबीना ब्लैक सिमरी ड्रेस में नजर आईं. दोनों साथ में कपल गोल दे रहे थे.

फोटो शेयर करते हुए देबीना ने लिखा कि हैप्पी एक औऱ साल मेरे साथ के लिए, हमें भगवान ने जो कुछ भी दिया है उसके लिए हम काफी ज्यादा दयालु है.

गुरमीत चौधरी ने लिखा है कि हैप्पी एनिवर्सरी पार्टनर तुमने मुझे पूरा किया है, अब एक कंम्पलीट फैमली के साथ शुरू करते हैं शादी कि इस इनिंग्स को.

अगर गुरमीत और देबिना की बात करें तो यह कपल साल 2006 में मिला था, जहां पर इनके प्यार की शुरुआत हुई थी. जिसके बाद से कपल के बीच में कई बार लड़ाई झगड़े भी हुए लेकिन इनका साथ हमेशा बना रहा. आज यह अपनी जर्नी को खूब एंजॉय कर रहे हैं.

हो जाने दो -भाग 2 : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

अब तक बात सब जगह फ़ैल गई थी. जलज के कुछ स्टाफ मैम्बर्स भी हौस्पिटल पहुंच गए और उन की मदद से जलज की बौडी को एम्बुलैंस से घर लाने की कवायद हुई. कुछ महिलाएं कनिका को घर ले आईं और फिर जो कुछ हुआ वह तो अब तक कनिका की आंखों से रिस ही रहा है.

“वो लोग आ गए, चलो. पहले कनिका नहा ले, फिर एकएक कर बाकी तुम लोग भी नहा लो,” माधवी ने राखी को इशारा कर के कनिका को बाथरूम में ले जाने को कहा.

कनिका अपनी अलमारी में से कपड़े निकालने लगी.“पक्के रंग की साड़ी पहनना. कोई लेसवेस या गोटाकिनारी न लगी हो, यह जरूर देख लेना,” माधवी का यह स्वर सुन कर कनिका सोच में डूब गई. कच्चापक्का तो कभी सोचा ही नहीं. जलज तो उसे हर रंग के कपड़े ला कर देता था. काले से ले कर सफ़ेद तक. किसी रंग से उसे कोई परहेज नहीं था. माधवी ने आ कर एक बैगनी रंग की प्लेन साड़ी निकाल कर उस के हाथ में थमा दी. कनिका बाथरूम की तरफ चल दी.

शीशे में अपना चेहरा देख कर कनिका डर गई. सूनी मांग-माथे का चेहरा कितना डरावना लग रहा था. उस ने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर लीं और शीशे पर तोलिया डाल कर उसे ढक दिया.

किसी तरह रात हुई. आसपड़ोस के लोग जा चुके थे. माधवी और राखी किसी खास मंत्रणा में मशगूल थीं. कनिका किसी मूर्ति सी लौबी में जड़ हुई बैठी थी. वह रोतेरोते थक चुकी थी. उस का शरीर अब आराम करना चाहता था. लेकिन माधवी ने कहा था- “बिना मुझ से पूछे कोई काम न करना. ऐसा न हो कि किसी की नासमझी के कारण दिवंगत आत्मा को कष्ट हो.” इसलिए कनिका सास की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रही थी.

“सो जाओ तुम लोग भी.” माधवी की आवाज सुन कर कनिका अपने कमरे की तरफ चली.“बैड पर नहीं, तुम यहीं लौबी में बिछी दरी पर सोना. यही रिवाज है,” माधवी ने कहा.

कनिका की कुछ भी कहनेसुनने या विरोध करने की शक्ति चुक चुकी थी. उस ने सूनीसूनी आंखों से सास की तरफ देखा और बिना तकिया ही दरी पर लुढ़क गई.

सुबह आंख खुलते ही कनिका का जी मिचलाने लगा. ‘मौर्निंग सिकनैस है. कुछ दिन रहेगी, फिर अपनेआप ठीक हो जाएगी. बस, आप सुबह उठते ही 2 बिस्कुट चाय के साथ खा लेना, इस से आप को बेहतर लगेगा,’ लेडी डाक्टर की कही हिदायत याद आते ही कनिका रसोई की तरफ चली.

“अरे, रुको, हाथ मत लगाना किसी भी चीज को. गऊ ग्रास से पहले कोई कुछ नहीं खाएगा,” सास की कड़कती आवाज सुनते ही बिस्कुट का डब्बा उठाती कनिका के हाथ कांप गए.

“क्या ये वही मां जी हैं जो कल तक खुद अपने हाथ से उसे मनुहार कर के चायबिस्कुट खिलाती थीं.” सास का यह रूप देख कर कनिका विस्मित थी. वह चुपचाप रसोई से बाहर आ गई और लौबी में बिछी दरी पर बैठ गई. रसोई धोई गई. फिर खाना बना. पहले गऊ ग्रास, फिर पिंडदान, फिर पंडित जी को भोजन. ये सब करतेकरते दोपहर हो गई.

उलटियां करती कनिका बेहाल हो रही थी. लेकिन अभी तक पेट में अन्न का एक दाना तक नहीं गया था. दोपहर बाद राखी उस के लिए एक प्लेट उबली हुई बेस्वाद सी सब्जी और बिना घी लगी 2 रोटी ले कर आई. मन हो न हो, लेकिन शरीर को तो भूख लगती ही है. तब और भी ज्यादा जब शरीर में एक और शरीर पल रहा हो. कनिका ने लपक कर एक निवाला मुंह की तरफ किया. खाते ही उसे उबकाई सी आ गई.

जलज कितना खयाल रखता था उस के खानेपीने का. उस के आंखें फेरते ही सब का नजरिया एक ही दिन में कितना बदल गया. जो मां जी उसे ‘खा ले, खा ले’ कहती नहीं अघाती थीं, वे आज देख भी नहीं रहीं कि वह खा भी रही है या नहीं. दो बूंद आंसुओं और दो घूंट पानी के साथ कनिका ने 2 कौर किसी तरह निगल कर प्लेट एक तरफ सरका दी.

“कनिका, 12 दिन घर में सूतक रहेगा. इसी तरह का खाना बनेगा. वैसे भी, अब सादगी की आदत डाल लो. हमारे यहां पति की चिता के साथ ही सब रागरंग भस्म हो जाता है, समझी?” माधवी ने उस की जूठी प्लेट की तरफ नजर डाली और राखी को प्लेट उठाने का इशारा किया.

‘फिर पंडित जी को क्यों छप्पन भोग खिलाए जा रहे हैं?’ कनिका ने अपने मन में उठे सवाल को वहीं का वहीं दफन कर दिया. सोच में सिर्फ एक ही बात थी, ‘कहीं जलज की आत्मा को कोई तकलीफ न हो.’

पहाड़ से दिन काटे नहीं कट रहे थे. कनिका को हिदायत थी कि सुबह सब से पहले उठ कर नहानाधोना कर ले और पक्के रंग के कपड़े पहन कर बैठक के लिए बैठ जाए. उसे ध्यान रखना होता था कि उस के चेहरे को कोई सुहागन स्त्री न देख ले या कोई पुरुष उसे छू न जाए. उस के इस्तेमाल किए गए कंघेतोलिए तक को सब से अलग रखा जाता था.

दिनभर शोक जताने वालों का आनाजाना लगा रहता था. कनिका को हरेक के सामने अपना कलेजा चीर कर दिखाना होता था कि उस पर कितना बड़ा पहाड़ टूट पड़ा है. आनेजाने वालों की संख्या से कनिका को अंदाजा हो गया था कि समाज में जलज का कद कितना बड़ा था. दूरदूर से उस के फेसबुक फ्रैंड्स भी अपनी संवेदनाएं प्रकट करने आ रहे थे. कुछ कनिका तक पहुंच पाते थे, तो कुछ बाहर पुरुषों की बैठक से ही लौट जाते थे.

“भाभी, ये जलज भैया के फेसबुक फ्रैंड हैं महेश. हरिद्वार से आए हैं,” राखी के यह कहने पर घुटनों में सिर दिए बैठी कनिका ने मुंह उठा कर देखा. जलज के ही हमउम्र 2 युवक नम आंखें लिए हाथ जोड़े खड़े थे. एक युवक विदेशी लग रहा था. कनिका ने भी हाथ जोड़ कर अपना सिर फिर से नीचे कर लिया.

“भाभी जी, जो कुछ हुआ, उस के लिए तो कुछ नहीं किया जा सकता लेकिन जो बचा है उसे सहेजने की जिम्मेदारी अब आप की है. जलज मेरा बहुत अच्छा दोस्त था. बेशक हमारी दोस्ती फेसबुक के माध्यम से ही हुई थी लेकिन हम एकदूसरे के बहुत करीब थे,” महेश कनिका के पास बैठ गया.

“ये मेरा दोस्त सैम है, यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कौलर है. भारतीय दर्शन पर शोध कर रहा है. असल भारत की परम्पराएं और रीतिरिवाज जानने की जिज्ञासा लिए गांवगांव, शहरशहर भटकता रहता है. इसे भी मैं अपने साथ ले आया,” महेश ने आगे कहा तो कनिका ने सैम की तरफ हाथ जोड़ कर उस का अभिवादन किया.

कनिका ने देखा भूरे बालों वाले सैम ने अपने कान पर पीर्सिंग करवा कर सोने की बाली सी पहन रखी है. दाहिने हाथ की कलाई और बाएं हाथ की भुजा पर विदेशी भाषा में लिखे कुछ शब्दों के टैटू बनवा रखे थे जिन के अर्थ कनिका की समझ से परे थे. होजरी की पतली सी सफ़ेद टीशर्ट और फुल्ली रुग्गड जींस में वह सचमुच सब से अलग दिख रहा था. माधवी की चुभती दृष्टि महसूस कर कनिका ने सैम पर से अपनी निगाहें हटा लीं और फिर से अपना मुंह घुटनों में छिपा लिया.

तभी कनिका को उबकाई सी आई और वह भाग कर वाशबेसिन की तरफ गई. उलटी कर के पलटी, तो देखा कि सैम पानी का गिलास लिए खड़ा था. कनिका को सैम की ये

ह हरकत अजीब लगी, लेकिन उसे सैम के कोमल हृदयी होने का आभास अवश्य हो गया था. उस ने चुपचाप पानी के 2 घूंट लिए और अपनी जगह आ कर बैठ गई.

“महेश जी, आप लोग खाना खा लीजिए,” राखी महेश और सैम को खाने के लिए ले गई. सैम ने कनिका की तरफ देखा. उस की आंखों में एक प्रश्न था- “आप ने खाया?” कनिका से उसे कोई प्रत्युतर का भाव नहीं मिला.

महेश की ट्रेन दूसरे दिन सुबह की थी. पूरे 20 घंटे सैम को कनिका के घर ही रहना था. उस की आंखें हर गतिविधि का भरपूर अवलोकन कर रही थीं, लेकिन भाषाई समस्या के कारण वह अधिक कहसुन नहीं पा रहा था. बारबार कनिका की तरफ उठती उस की आंखों में कनिका के प्रति सहज संवेदना झलक रही थी. एहसासों को अभिव्यक्त करने के लिए शब्दों की आवश्यकता भी कहां होती है.

हो जाने दो -भाग 1: जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

 

“सुनो, तुम वापस आ जाओ, जलज. मुझे तुम्हारी जरूरत है. और हमारे बच्चे को भी. तुम लौट आओ, प्लीज.” विलाप करती कनिका पति जलज के पार्थिव शरीर से लिपट गई. बड़ी ननद राखी ने उसे खींच कर अलग करने की कोशिश की, लेकिन कनिका ने जलज का हाथ नहीं छोड़ा.

राखी ने लाचारी से अपनी मां माधवी की तरफ देखा. माधवी शोक संतप्त महिलाओं की भीड़ में से उठ कर आई और पति को अंतिम पलों में निहारती कनिका को झटके से खींच कर उस से अलग कर दिया. कनिका को लगभग घसीटती हुई माधवी भीतर ले आई.

हमेशा चहकने वाला जलज आज कितना शांत लेटा हुआ है मानो उसे किसी से कोई मतलब ही नहीं. कनिका और उस के गर्भ में पल रहे 2 माह के अपने बच्चे से भी कैसे उस का मोह एक झटके में ही भंग हो गया. अभी 5 साल भी नहीं हुए थे उस की शादी को और ये वज्रपात…

30 वर्ष की उम्र में तो कनिका की कई सहेलियों की शादी तक नहीं हुई थी और उस ने इसी उम्र में इश्क के लाल से ले कर वैधव्य के सफ़ेद रंग तक, सबकुछ देख लिया. कनिका कैसे स्वीकार कर ले नियति के इस कठोर फैसले को. लेकिन स्वीकार करने के अलावा दूसरा चारा भी तो नहीं है.

जलज की पार्थिव देह की अंतिमयात्रा की तैयारी हो चुकी थी. पंडित जी अपना काम कर चुके थे. उन के कहे अनुसार, चचेरे छोटे भाई पंकज ने अपना सिर मुंडवा कर बड़े भाई को आखिरी भेंट दी. माधवी और राखी बारबार बेसुध होती कनिका को पकड़ कर पति के अंतिम दर्शनों के लिए लाईं, तो कनिका का दारुण क्रंदन सुन कर उपस्थित जनसमुदाय भी अपने आंसू नहीं रोक पाया.

बिंदी तो आंसुओं के साथ पहले ही बह कर जा चुकी थी. राखी ने निर्ममता से भाभी के हाथ की चूड़ियां भाई के सिरहाने फोड़ दीं. माधवी ने पांव की बिछिया निकाल कर फेंक दी. कनिका चाह कर भी विरोध नहीं कर पाई. नहीं कह पाई कि जलज को बहुत शौक था उसे भरभर हाथ चूड़ियां पहने देखने का, कोई जा कर देखे तो सही कि उस की ड्रैसिंग टेबल कैसे अटी पड़ी है रंगबिरंगी चूड़ियों से. लेकिन, शब्द भी निशब्द हो चुके थे.

अंतिमयात्रा के लिए जैसे ही घर के आंगन ने अपने जवान लाडले को विदा दी, हर आंख नम हो आई. कनिका दहाड़ मार कर नीम बेहोशी की हालत में गिर पड़ी.

लगभग 2 घंटे बाद कनिका को होश आया तो उस ने खुद को महिलाओं से घिरा पाया. उस ने घबरा कर अपनी आंखें फिर से बंद कर लीं. वह इस भयावह हकीकत का सामना करने से कतरा रही थी.

“ओके, बाय, अपना खयाल रखना और हमारे बच्चे का भी,” जलज ने हमेशा की तरह मुसकरा कर कहा था.

“हां बाबा. और हां, तुम भी पहुंचते ही फोन कर देना,” जवाब में कनिका भी मुसकराई और जलज ने अपनी बाइक आगे बढ़ा दी. कनिका अपनी सीट पर आ कर बैठ गई.

बरसों से चला आ रहा यह संवाद आज भी दोनों के बीच रिपीट हुआ था. लेकिन तब कनिका कहां जानती थी कि यह उन का आखिरी संवाद होगा. इस से पहले कि रोज की तरह जलज का औफिस पहुंचने का फोन आता, कनिका के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से फोन आया.

“हेलो, जी, मैं मयंक बोल रहा हूं. क्या आप जलज जी को जानती हैं?” उधर से आई आवाज की गंभीरता से कनिका सहम गई.

“जी, वे मेरे पति हैं. आप कौन हैं और क्यों पूछ रहे हैं?” कनिका की छठी इंद्रिय उसे अशुभ संकेत दे रही थी.

“उन का ऐक्सिडैंट हो गया है. मैं उन्हें ले कर संजीवनी हौस्पिटल आया हूं. आप तुरंत यहां आ जाइए. कुछ फौरमैलिटी करनी हैं,” मयंक ने एक सांस में सब कह डाला.

कनिका तुरंत हौस्पिटल की तरफ भागी. औटो में बैठते ही उस ने पंकज को फोन कर दिया और तुरंत आने को कहा. भागतेदौड़ते वह हौस्पिटल पहुंची, पता चला कि सबकुछ ख़त्म हो चुका है. कनिका पथराई सी हौस्पिटल की फौरमैलिटी करती रही.

लेखिका- आशा शर्मा 

पूर्णविराम -भाग 1: आलिशा- आदर्श की किस सच्चाई से हैरान थे लोग

गाड़ी के बाएं शीशे से देख रहा था मैं, पीछे स्कूटी वाली लड़की कब से मुझे ओवरटेक करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन क्या उसे नहीं पता कि बाएं तरफ से ओवरटेक करना गलत है? फिर भी वह पतलीदुबली सी लड़की, जिस ने कैप्री जींस और टौप पहना हुआ था और अपने कानों में ईयरफोन लगाए हुए थी। वह बारबार पीपी…कर मेरा कान पका रही थी. चाह रहा था कि उसे रास्ता दे दूं, पर एक तो इतनी पतली सड़क, ऊपर से गाड़ी की आवाजाही. रास्ता देता तो कैसे? फिर भी कोशिश कर रहा था मैं. लेकिन उसे तो इतनी हड़बड़ी थी कि वह मेरी गाड़ी को टक्कर मारते हुए आगे निकल गई और अपनी स्कूटी सहित सड़क पर ही लुढ़क गई.

“अरे, देखो लड़की गिर गई,” बोल कर आतेजाते लोग अपनी गाड़ियां रोक कर उसे देखने लगे. मैं भी अपनी गाड़ी से उतर ही रहा था. मगर वह लड़की तो झट से उठी और अपनी स्कूटी से फुर्र हो गई. वहां खड़े लोग यह कह कहते हुए अपने रास्ते चल दिए कि चलो भई चलो, लड़की ठीक है, उसे कुछ नहीं हुआ… मगर मुझे बहुत गुस्सा आया कि उस लड़की ने मेरी गाड़ी का शीशा तोड़ दिया. बेवजह का खर्चा आ गया न. अब कौन करेगा इस की भरपाई? वह लड़की? मगर वह कौन है, कहां रहती है, मुझे क्या मालूम. मन ही मन मैं झल्ला पड़ा.

“पता नहीं आजकल के बच्चों को इतनी जल्दी क्यों रहती है? लगता है जैसे 2 पहिए की गाड़ी नहीं, हवाईजहाज चला रहे हों। अरे, सब्र नाम की तो चीज ही नहीं है इन में,” घर में घुसते हुए मैं बड़बड़ाया तो मेरे हाथों से दूध का पैकेट लेते हुए मेरी पत्नी शशि ने मुझे अजीब तरह से देखा और बोली, “क्या हो गया, यह सुबहसुबह किस पर बरस रहे हो?”

मैं ने उसे सुबह का सारा वाकेआ कह सुनाया, तो वह बोली, “हां, तो हो सकता उसे सच में जल्दी हो.“

“तो क्या किसी को भी टक्कर मार कर निकल जाएगी? और सोचो, अगर उसे सच में कुछ हो जाता तो मैं ही फंसता न? क्योंकि मेरी ही गाड़ी से उस की स्कूटी टकराई थी, तो इलजाम मुझ पर ही आता कि नहीं?” मेरी बातों पर शशि ने मुझे घूर कर देखा. जैसे पूछ रही हो,‘मुझे खुद की फिक्र है या उस लड़की की?’ लेकिन सच कहूं तो मुझे उस लड़की की ही फिक्र हो रही थी कि कहीं उसे ज्यादा चोट तो नहीं आई होगी? क्योंकि चोट का पता तुरंत नहीं चलता.

खैर, शशि चाय ले कर आई, तो चाय की चुसकियों के साथ मैं अखबार पढ़ने लगा. लेकिन आजकल अखबारों में भी ऐसेऐसे न्यूज आते हैं कि पढ़ कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

“देखो तो जरा,” मैं ने शशि को अखबार में छपी एक खबर पढ़ कर सुनाते हुए कहा, “क्या जमाना आ गया है. एक युवक ने सगाई के बाद अपनी मंगेतर के साथ कई बार संबंध बनाए. जब लड़की गर्भवती हो गई तो वह युवक और उस के परिवार वालों ने उस लड़की से विवाह करने से इनकार कर दिया, यह कह कर कि पता नहीं उस लड़की के पेट में किस का पाप है और वह उन के बेटे को बदनाम करने की कोशिश कर रही है. लेकिन लड़की का कहना है कि यह बच्चा उस के मंगेतर का ही है. अब लड़की के घर वालों ने लड़के के परिजनों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करवा दिया.

उस की डायरी- भाग 1: आखिर नेत्रा की पर्सनल डायरी में क्या लिखा था

न जाने कितनी देर से शिशिर अपने घर के बाहर सीढि़यों पर बैठा अपने हाथ में पकड़ी हुई नेत्रा की डायरी को एकटक देखे जा रहा था. आज सुबह ही तो उस के नौकर को स्टोररूम की सफाई करते समय नेत्रा की डायरी मिली थी और उस ने उसे ला कर शिशिर के हाथ में थमा दिया था. वह तो उस डायरी को देख कर चौंक गया था क्योंकि उसे नेत्रा के साथ चली मात्र 3 वर्ष की अपनी शादी में कभी यह पता ही नहीं था कि वह डायरी भी लिखती थी. नेत्रा के बारे में सोच कर उस के चेहरे पर कड़वा सा नापसंदगी का भाव आ गया.

मुंबई की एक प्राइवेट कंपनी में अच्छी नौकरी लगने के बाद शिशिर के मातापिता ने उस की शादी अपनी पसंद से छोटे शहर की साधारण सी नेत्रा से करवा दी थी.

आधुनिक व स्मार्ट शिशिर के आगे सीधीसादी नेत्रा का व्यक्तित्व दब सा जाता था. शुरुआत में वह नेत्रा को अपने साथ मुंबई नहीं ले जाना चाहता था, परंतु अपने मातापिता व ससुराल वालों के दबाव के चलते उसे पत्नी को अपने साथ ले जाना पड़ा. कुछ समय साथ बिताने के बाद उन की गृहस्थी की गाड़ी ठीक ही चलने लगी थी. नेत्रा उस का बहुत खयाल रखती थी और धीरेधीरे उसे भी नेत्रा अच्छी लगने लगी थी. सुंदर तो वह थी ही और अब शहर के स्वच्छंद वातावरण में उस का संकोची स्वभाव भी कुछ खुलने लगा था. वह अधिक बात नहीं करती थी. बस, शिशिर की बातें सुन कर मुसकरा देती थी.

शुरूशुरू में शिशिर को यह सब बहुत अच्छा लगता था, मगर शांत पानी जैसे स्वभाव वाली नेत्रा का साथ भला चंचल भंवरे जैसे स्वभाव वाले शिशिर को कब तक भाता. शादी के एक वर्ष बाद ही शिशिर को नेत्रा के साथ घुटन महसूस होने लगी थी.

ऐसा नहीं था कि शिशिर को वह बिलकुल पसंद नहीं थी, पर जब वह अपने औफिस की आधुनिक लड़कियों को देखता था तो मन ही मन खीझ उठता था. वह चाहता था कि उस की पत्नी भी आधुनिक पोशाकें पहने, फर्राटेदार इंग्लिश बोले व सब से उन्मुक्त हो कर बातें किया करे. मगर सीधीसादी नेत्रा के लिए यह सब करना असंभव सा था. वह शिशिर के कहने पर साडि़यां छोड़ कर सलवारसूट पहनने लगी थी. लंबी चोटी को भी काटछांट कर बालों को कंधे तक ले आई थी. लेकिन शिशिर को हमेशा यही अखरता रहा कि इस से अधिक प्रयास या तो नेत्रा से हो नहीं सकता या फिर वह करना ही नहीं चाहती थी. धीरेधीरे उस के मन का गुबार उस की जबान पर भी आने लगा. वह अकसर छोटीछोटी बातों को ले कर नेत्रा पर झल्ला उठता था, पर नेत्रा हमेशा खामोशी से सिर झुकाए सब सुन लेती थी. शायद इसीलिए शिशिर को हार कर चुप होना पड़ता था.

शिशिर के दोस्त जब भी घर आते थे, नेत्रा बहुत अच्छी तरह उन का स्वागत करती थी. वह उन के लिए तरहतरह के पकवान बनाती थी और इस के बाद कई दिनों तक औफिस में उसे नेत्रा की तारीफें सुनने को मिलती थीं. फिर जब वह घर वापस आता तो नेत्रा को बड़े गौर से देखता और सोचता कि आखिर इस में ऐसा क्या है कि कोई इस की तारीफ करे. साधारण सी ही तो है.

जिंदगी कट रही थी. वह घर पर कम और औफिस व दोस्तों के साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करता था.

शिशिर के दोस्त उस पर शादी की दूसरी वर्षगांठ मनाने के लिए दबाव डालने लगे. उस ने नेत्रा के सामने यह बात कही तो उस ने सहर्ष स्वीकृति दे दी.

शिशिर ने पार्टी में सभी दोस्तों व परिचितों को बुलाया था. वर्षगांठ वाले दिन वह सुबह से ही सारे इंतजाम देखने में लगा था. उस ने नेत्रा को पार्टी में तैयार होने से ले कर उसे मेहमानों के सामने क्या बोलना है और क्या नहीं जैसे अनेक निर्देश दे डाले थे, पर जब नेत्रा तैयार हो कर पार्टी में पहुंची तो उस ने अपना सिर पीट लिया.

पार्टी की सभी महिलाएं एक से एक आधुनिक परिधान पहन कर आई थीं. एक अकेली नेत्रा साड़ी पहन कर आई थी. उस ने मेकअप भी हलका ही किया था.

यह देख शिशिर अपना आपा खो बैठा. वह नेत्रा की बांह पकड़ कर खींचते हुए उसे मेहमानों से दूर ले गया और उसे खूब खरीखोटी सुना दी.

नेत्रा ने आंखों में आंसू लिए उस से सौरी कहा, तब भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ. बेमन से केक काट कर उस ने अचानक तबीयत खराब होने का बहाना बना कर मेहमानों को जल्दी ही वापस भेज दिया.

उस दिन के बाद से एक दिन भी ऐसा नहीं बीता, जब घर में कलह न हुई हो. रहीसही कसर तब पूरी हो गई जब उस ने एक दिन नेत्रा को जींसटौप पहने एक रैस्तरां में बैठे देखा. वह एक व्यक्ति के साथ कौफी पीते हुए हंसहंस कर बातें कर रही थी.

शिशिर ने आव देखा न ताव उन की टेबल पर जा कर नेत्रा को एक जोरदार थप्पड़ रसीद कर दिया और उस की बात सुने बिना वह दनदनाता हुआ वहां से चला आया.

उस ने एक पल की भी देर किए बिना वकील से संपर्क कर के तलाक के कागज तैयार करवा लिए. तलाक की वजह नेत्रा का चरित्रहीन होना बताया.

परिवार ने खूब हायतौबा की, रोनाधोना किया. यहां तक कि उस के अपने दोस्तों ने भी उस के इस फैसले को गलत बताया, पर वह अपने फैसले से टस से मस नहीं हुआ.

नेत्रा ने कई बार शिशिर से बात कर के सफाई देने की कोशिश की, मगर जब शिशिर अपने फैसले पर अडिग रहा तो उस ने किसी भी इलजाम का विरोध किए बिना चुपचाप तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर कर दिए.

पहले तो शिशिर को इस बात पर हैरानी हुई, मगर फिर यह सोच कर तसल्ली हो गई कि नेत्रा खुद भी उसे तलाक दे कर अपने प्रेमी से विवाह करना चाहती होगी.

नेत्रा को तलाक देने के कुछ महीनों बाद उस ने अपनी सहकर्मी मुग्धा से विवाह कर लिया और विदेश चला गया.

मातापिता व परिवार ने उस से उसी समय सारे नाते तोड़ लिए थे जब उस ने नेत्रा को तलाक दिया था. सालों तक वह विदेश में रहा. पूरे 12 वर्षों बाद वह वापस लौट कर आया था. वापस आए हुए एक हफ्ता ही हुआ था. मुग्धा एयरपोर्ट से ही बेटी मृणाल के साथ कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली गई थी और वह सालों से बंद पड़े अपने घर को फिर से अपने परिवार के रहने लायक बनाने के लिए यहां आ गया था. यहां आते ही नेत्रा की डायरी ने उस के शांत जीवन में अचानक विस्फोट कर दिया था.

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